लेखक- रोहित और शाहनवाज

दुनिया में चश्में कई प्रकार के होते हैं, कुछ नजरों के होते हैं, कुछ फैशन के तो कुछ यूं ही शोकिया पहन लिए जाते हैं, पर केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद एक नए प्रकार का चश्मा इजाद हुआ. जिसे ‘भक्त का चश्मा’ से जाना गया.

जी हां, भक्त का चश्मा ऐसा चश्मा हैं जिसे पहनते ही भक्तों के दिमाग में तर्क एक कान से घुसते ही दुसरे कान से बाहर निकल जाता है. दिमाग में कोई तर्क ठहरने की थोड़ी सी भी गुंजाइश नहीं रहती. उन के दिमाग में वैज्ञानिक आधार पर न तो तर्क बनते हैं और न वे सहन कर पाते हैं. इस के लिए बस एक ही काम करना होता है भाजपा का कट्टर समर्थक बन जाना. बाकी तो हमारे यहां गंगा पाप धोने के लिए है ही.

मोगा में निकाय चुनावों के भाजपा की हार के कमोबेश सभी तरह के समीकरणों की जांच कर लेने के बाद हम मोगा के स्टेशन रोड पर टहलते टहलते एक चाय की दुकान पर जा पहुंचे. हम ने 2 चाय आर्डर की और उसी चाय की टपरी के पास खाली जगह पर बैठ गए. यह दुकान मोगा रेलवे स्टेशन से एकदम नजदीक है जहां हर समय चहल पहल रहती है. खुला रोड, हर समय गाड़ियों की आवाजाही, छोटी-बड़ी ब्रांड की दुकाने इत्यादि चीजों को उस जगह देखा जा सकता है.

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चाय पीते पीते हम मोगा में भाजपा की हार के समीकरणों को ले कर दुकान के पास खड़े हो आपस में मोदीजी की तरह ‘चाय पर चर्चा’ करने लगे. इतने में एक आवाज पीछे से आई-

“सन 1990 में हम लोग 8-10 दिन अपनी दुकान बंद कर सौ-सवा सौ किलोमीटर खाली पेट पैदल चले थे मज्जिद ढाने के लिए.”

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यह आवाज इतनी भारी भरकम और तीखी थी जो शायद 15-20 मीटर दूर से भी सुनाई दे जाए. हम पीछे मुड़े तो देखा लगभग 6 फीट की हाईट वाले, मटमैला रंग का कुरता पजामा पहने, लगभग 63-66 वर्षीय वृद्ध आदमी हमारे ठीक पीछे खड़े थे. उन्होंने धुमैली रंग की स्वेटर डाली हुई थी जिस में कई दाग लगे थे, जिसे देख लग रहा था मानो कई दिनों से वह धुला न हो. सर पर बेहद कम और छोटे छोटे ग्रेइश बाल थे. उन की दाई आंख के इर्द गिर्द गहरा काला धब्बा था और वह आंख आधी ही खुल पा रही थी जिसे देख ऐसा महसूस हो रहा था की मानो उन की आंख पर किसी समय में गहरी चोट लगी हो.

खैर हम ने उन से पूछा की, ” क्या आप हम से कह रहे हैं?”

तो वह कहने लगे, “हां बात सुन ले, तेरा जिस समय जन्म नहीं हुआ था, हम ने अयोध्या में मज्जिद ढा दी थी. इस्लाम जहां कही भी फैला है बस तलवार की जोर पर फैला है. पहले हिन्दू डरपोक था अब नहीं है. अब तू देख लियो बंगाल में भी बीजेपी आ जाएगी, वो भी पूर्ण बहुमत से आएगी. ममता को उखाड़ फैंकना है. बंगाल में जय श्री राम का नारा लगाने में उन को दिक्कत है. वहां हजारों हमारे कार्यकर्त्ता मार दिए. बांग्लादेश से मुसलमान भारत आ जाते हैं. यहां खाते हैं रहते हैं अपने बच्चे पैदा करते हैं और आतंकवादी बन जाते हैं.”

पिछले 3 दिन के पंजाब के सफर में, हम इस तरह के विचारधारा वाले लोगों से मिलने के लिए तरस गए थे. पंजाब निकाय चुनावों के रिजल्ट से भाजपा को मिली करारी हार को ध्यान में रखते हुए हमें ऐसा ही लग रहा था की शायद ऐसी मानसिकता रखने वाले लोगों का कुछ उद्धार हो चुका होगा. लेकिन अंकल की बातों ने हमें बिलकुल गलत साबित कर दिया.

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हम ने सोचा क्यों न अंकल से कुछ गंभीर विषयों पर सवाल पूछे जाए. हम ने उन से बेरोजगारी के संबंध में सवाल पूछा. उन्होंने जवाब दिया कि, “सरकार बार बार कहती है, बैंको से लोन लो, आत्मनिर्भर बनो, सरकार ने हर आदमी को नौकरी देने का क्या ठेका ले रखा है? हिन्दुस्तान में मुसलमान 3-3 शादियां कर लेता था, मोदी ने तीन तलाक का कानून इसे रोकने के लिए बनाया. सरकार में आने के बाद बीजेपी ने धारा 370 हटा दी और जम्मू-कश्मीर को भारत में मिला लिया. ज्यादा देर नहीं रह गई तू देख लेना अब पाकिस्तान के भी 3 टुकड़े हो जाएंगे और निरकाना साहिब जाने के लिए पासपोर्ट नहीं लेना पड़ेगा…”

सवाल एक चीज का पूछा था लेकिन जवाब उसे छोड़ कर उन सब का मिल गया जो पूछा ही नहीं था. अगर हम अंकल को रोकते नहीं तो अंकल नॉनस्टॉप आगे कुछ कुछ कहते रहते. इसीलिए हम ने दिल्ली बौर्डर पर हो रहे किसान आंदोलन के बारे में पूछना बेहतर समझा.

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हमने उन से पूछा की किसान आंदोलन के बारे में उन का क्या मानना है तो जवाब मिला, “अरे भाई ये तो किसान है ही नहीं. इन को बैठ कर खाने की आदत हो गई है. काम ये करते नहीं हैं. हर आदमी को कमा कर के खाना होगा. ऐसे नहीं चलेगा. ये सब खालिस्तानी पीछे पकड़े गए जब 26 जनवरी को बवाल हुआ. हम तो कारसेवक थे. मज्जिद ढाने के लिए सौ सवा सौ किलोमीटर पैदल चलें हैं वो भी बिन खाए पीए. अभी तो दो मज्जिद और हैं काशी और मथुरा में…”

फिर वही हुआ जो पहले हुआ था, पूछा कुछ और जवाब मिला कुछ और ही और वो भी ऊलझुलूल. अंकल ने हमें फिर गोलमोल घुमा दिया. इस बार हम ने सोचा अंकल की दुखती रग पर ही हाथ रख देते हैं कुछ तो निकलेगा, कुछ तो कमी दिखेगी सरकार की. हम ने पूछा आप पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम बढ़ गए, लौकडाउन में देश गर्त में चला गया, उस पर आपका क्या कहना है.

अंकल जी तमतमा गए. शायद वे इस सवाल की अपेक्षा नहीं कर रहे थे, और सवाल पूछने वाले को वहीँ पीटपीट कर धो देना चाहते थे, लेकिन वे भी मजबूर थे. उन्होंने हमारी पीठ पर दुत्कारते हुए हाथ मारा, और कहने लगे, “देखो बेटा बात ऐसी है ‘कट यौर कोट्स अकॉर्डिंग टू यौर क्लोथस’. यानी चादर देखकर पैर पसारे. यह बात सुन ले ध्यान से. गाड़ी जो होती है वो सिर्फ कमर्शियल यूज़ के लिए होती है. जियो के टावर ग..म..ग.. म… ग..ग..ग.. क्यों तोड़े? आन्दोलन से क्या मतलब है? टावर तोड़ने पर सरकार टैक्स लगाएगी की नहीं? पंजाब में पेट्रोल प्लाज़ा बंद किया हुआ है, दाम तो बढ़ेंगे ही.”

“तो क्या सर सरकार ने दाम बढ़ा कर ठीक किया क्या?” जब हम ने यह पूछा तो अंकल कहने लगे, “मोदी एक ऐसा टाइम ला देगा जब दुनिया भारत से पेट्रोल डीजल खरीदेगी.” वे आगे थोड़ा सा हकलाते हुए कहने लगे, “ग…ग..म…म..ग.. ची..ची…चीन… जैसे यह चीन दुनिया को आंखें दिखाता है अगर इस में हिम्मत होती तो भारत से लड़ाई कर के देखता. इस ने हमारी मार्किट खाई तो हम ने इन के चीजों का बहिष्कार कर दिया…..”

जब हम ने उन से कहा कि मोदी ने चाइना का जवाब एप बैन कर के दिया तो अंकल ने फिर बात घुमा दी, और हम से हमारी जात पूछने लगे.

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बातों ही बातों में अंकल ने बताया कि उनका घर रेलवे स्टेशन के पीछे ही है. और यह भी बताया कि उनके घर में सभी लोगों की नौकरियां सरकारी है. खुद वह भी कभी किसी जमाने में सरकारी नौकर थे. पोस्ट ऑफिस में काम किया करते थे. उन्हीने कहा, “हमारी तीनों बहुएं गवर्नमेंट सर्विस करती हैं. तीनो टीचर है. हमारा बड़ा लड़का सेशन कोर्ट में सेशन जज का लीडर है. सन 48 में हम ने परचून की दुकान यहां पर ली. इसी के बगल में हमने कुछ सालों बाद एक और दुकान ली. यही मौके में हम ने अपने चार मकान भी बनाए.” फिर सब इंग्लिश में कहावत कहते हुए उन्हीने कहा, ‘ओन्ली द वेयरर नोस वेयर द शू पिन्चेस’. जो आदमी पैसा कमा रहा है सिर्फ उसी को पता है कि वह पैसा कैसे कमा रहा है.”

जब हमने उनसे यह पूछा कि उनके और उनके बच्चों की कांग्रेस के समय पर सरकारी नौकरियां लग गई, लेकिन आज के समय पर भाजपा एक-एक कर सारी सरकारी कंपनियों को प्राइवेट कर रही है और सरकारी नौकरियों का कुछ अता पता नहीं है तो इसके जवाब में वह कहते हैं, “देख बेटा ‘नेसेसिटी इस द मदर ऑफ इन्वेंशन’. जरूरत ही आविष्कार की जननी होती है. तुम चाहो तो रिक्शा चलाकर छोटा-मोटा व्यापार कर कर किसी भी तरीके से अपना घर चला सकते हो और आगे बढ़ सकते हो. दाम बढ़ा है तो क्या हुआ. यही नियति है.”

अंकल बताते हैं कि वो करीब 100 साल पहले हरियाणा के रेवाड़ी के कोसली इलाके में रहते थे. जिसके बाद उनके पिताजी पंजाब के मोगा में आकर बस गए और उसके बाद से वो यहीं पर रह रहे हैं.

उन्होंने पंजाब के सिखों के बारे में इस तरीके से बताया कि, “पंजाब में जो हिंदू है वह हिंदू ही है. यह जो सिख हैं ना इन की बातें जैसी है इन की खोपड़ी भी वैसे ही है.”

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निकाय चुनावों के संबंध में अंकल ने बताया की, “यहां के लोग और किसान भाजपा के कैंडिडेट को प्रचार ही नहीं करने देते थे. यह लोग तो यहां पर किसी को खड़ा ही नहीं होने देते थे. बीजेपी तो पंजाब की बाकी सब जगह पर जीती हुई है.”

खैर भाजपा की हार के संबंध में हम ने अंकल की अज्ञानता को वैसे ही रहने दिया, सोचा उन्हें इसी प्रकार खुश रहने दिया जाए. फिर जाते जाते हम ने अंकल का नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम सुरेश कुमार शर्मा बताया और स्टेशन पर हमें आगे तक छोड़ कर हम ने एकदूसरे को अलविदा कह दिया.

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