Loksabha Election 2024: हमेशा की तरह इस बार के चुनाव में भी महिला महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक दिग्गज नेता शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले बारामती लोकसभा क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव लड़ने जा रही हैं. वह इस सीट का साल 2009 से प्रतिनिधित्व कर रही हैं. बारामती पवार परिवार का गढ़ है. शरद पवार इस सीट से 1996 से 2009 तक सांसद रहे थे. सुप्रिया सुले भी यहां से लगातार 3 बार से सांसद हैं. इसी तरह भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की तरफ से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर लोकसभा सीट से अनुप्रिया पटेल चुनाव लड़ रही हैं. वह अपना दल सोनेलाल गुट की अध्यक्ष है. 2012 के विधानसभा चुनाव में वह विधायक चुनी गई थीं.  आइए आज आपको इस आर्टिकल में कुछ महिला उम्मीदवारों  की राजनीतिक छवि का लेखाजोखा बताते हैं.

 

1. तृणमूल कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री महुआ मोइत्रा

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महुआ मोइत्रा

5 फुट 6 इंच लंबी महुआ मोइत्रा की पहचान एक स्मार्ट और तेजतर्रार नेता के तौर पर होती है जो हमेशा ही लोकसभा में सरकार को घेरती रहती हैं. सदन में दिए जाने वाले उन के भाषण हमेशा ही वायरल होते रहते हैं. महुआ को एक कुशल वक्ता और बेहतरीन नेता के तौर पर जाना जाता है.

महुआ काफी पढ़ीलिखी हैं. उन का जन्म असम के कछार जिले में साल 1974 में हुआ. उन्होंने अपनी पढ़ाई राजधानी कोलकाता से की है. शुरुआती शिक्षा हासिल करने के बाद महुआ को उन के परिवार ने आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेज दिया. उन्होंने मैसाचुसेट्स के माउंट होलिओक कालेज से गणित और अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की है. बहुत ही कम लोगों को मालूम है कि महुआ राजनीति में आने से पहले एक सफल बैंकर हुआ करती थीं और अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निवेश बैंक जे पी मौर्गन में काम करती थीं. वहां वे करोड़ों रुपए की सैलरी पर काम कर रही थीं.

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2.कौन है बसपा प्रत्याशी डा. इंदु चौधरी, जिन्हें बचपन से ही जातिवादी भेदभाव का सामना करना पड़ा

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डा. इंदु चौधरी

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 80 उम्मीदवारों में 7 महिलाएं हैं. बहुजन समाज पार्टी ने इस बार डा. इंदु चौधरी पर दांव लगाया है. उत्तर प्रदेश के आंबेडकरनगर में एक दलित परिवार में जन्मी इंदु को बचपन से ही अपनी जाति की वजह से भेदभाव का सामना करना पड़ा. कई बार उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलीं, लेकिन न वे कभी डरीं, न रुकीं. न्याय के लिए संघर्ष करती रहीं और यह संघर्ष आज भी जारी है.

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3. हेमामालिनी एक बार फिर मथुरा से चुनाव लड़ेंगी, अब तीसरी बार जीत की गारंटी संदेह में

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जानेअनजाने या जोशखरोश में कांग्रेस अकसर कैसे अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारती रही है, इस का एक और उदाहरण कुरुक्षेत्र से बीती एक अप्रैल को देखने में आया जब रणजीत सिंह सुरजेवाला के हेमा मालिनी को ले कर दिए एक बयान ने खासा तहलका मचा दिया. इस बार अपनी जीत को ले कर जो दिग्गज भाजपाई डरे हुए हैं, 75 वर्षीया बुजुर्ग फिल्म ऐक्ट्रैस हेमा मालिनी उन में से एक हैं.

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4. बिहार की पतवार संभालने की कोशिश में लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती

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मीसा भारती

इस लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने बिहार में 6 महिला उम्मीदवार उतारे हैं जबकि भाजपा ने बिहार में एक भी महिला को अवसर नहीं दिया. राजद की लिस्ट में बिहार की कुल 22 सीटों पर जिन 6 महिला उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया गया है उन में लालू यादव की दोनों बेटियों के नाम भी शामिल हैं. इस में रोहिणी आचार्य को सारण से तो मीसा भारती को पाटलिपुत्र से उम्मीदवार बनाया गया है. बीजेपी ने मीसा के खिलाफ पाटलिपुत्र से राम कृपाल यादव को उम्मीदवार बनाया है जो पिछली दफा मीसा को शिकस्त दे चुके हैं.

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5. जानिए सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी के बारे में, जिन्हें भाजपा ने नई दिल्ली सीट से प्रत्याशी बनाया है

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बांसुरी
कभी राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अब परिवारवाद का विरोध छोड़ कर वंशवाद का विरोध करना शुरू कर दिया है. भाजपा का गठन 80 के दशक में हुआ था. 1980 का लोकसभा चुनाव जनवरी माह में हुआ था. भाजपा का गठन अप्रैल में हुआ था. भाजपा ने गठन के बाद पहला चुनाव 1984 का लड़ा था. उस समय पार्टी में कोई प्रमुख नेता नहीं था. अटल बिहारी वाजपेयी का ही नाम चर्चा में रहता था. जब भाजपा में पहचान वाले नेता ही नहीं थे तो उन के परिवार के लोग होने का सवाल ही नहीं था. ऐसे में भाजपा के लिए परिवारवाद का विरोध करने में दिक्कत नहीं थी.

6. सुप्रिया सुले और सुनेत्रा पवार: ननद भौजाई के बीच चुनावी लड़ाई

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सुप्रिया सुले और सुनेत्रा पवार

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक दिग्गज नेता शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले बारामती लोकसभा क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव लड़ने जा रही हैं. वह इस सीट का साल 2009 से प्रतिनिधित्व कर रही हैं. बारामती पवार परिवार का गढ़ है. शरद पवार इस सीट से 1996 से 2009 तक सांसद रहे थे. सुप्रिया सुले भी यहां से लगातार 3 बार से सांसद हैं.

हालांकि यह चुनाव पिछले चुनावों से अलग है. अब शरद पवार की एनसीपी विभाजित हो गई है. इस के एक गुट की बागडोर 80 साल के शरद पवार के हाथ में है और दूसरे गुट का नेतृत्व उन के भतीजे अजित पवार कर रहे हैं. अजित पवार बीजेपी और शिवसेना के साथ गठबंधन कर के महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा बन चुके हैं. सुप्रिया सुले अब एनसीपी (शरद पवार) की उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगी.

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7. श्रेया वर्मा: समाजवादी पार्टी में तीसरी पीढ़ी का दखल

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श्रेया वर्मा

श्रेया वर्मा समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक बेनी प्रसाद वर्मा की पोती हैं. इस से एक बात और साफ होती है कि चुनाव लड़ना अब सामान्य परिवार और खासकर महिलाओं के लिए सरल नहीं है.

समाजवादी पार्टी यानी सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की गोंडा सीट से श्रेया वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है. 31 साल की श्रेया वर्मा बेनी प्रसाद वर्मा की पोती और राकेश वर्मा की बेटी हैं. बेनी प्रसाद वर्मा सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं. मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे बेनी प्रसाद को मुलायम सिंह यादव के बाद सपा में नंबर 2 का नेता माना जाता था.

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8. बीजेपी की ऐक्टिव और स्ट्रौंग महिला नेता हैं कमलजीत सहरावत

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कमलजीत सहरावत

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बहुत से मौजूदा सांसदों की जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा है. पूर्व मेयर कमलजीत सहरावत एक ऐसा ही चेहरा हैं. दिल्ली में बीजेपी ने पश्चिमी दिल्ली के मौजूदा सांसद प्रवेश वर्मा का टिकट काट कर कमलजीत सहरावत को मौका दिया है.

कमलजीत दिल्ली बीजेपी की महासचिव हैं. वे एसडीएमसी की मेयर रह चुकी हैं. वर्तमान में वे वार्ड संख्या-120 (द्वारका बी) से पार्षद हैं. वे एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटी की सदस्य भी हैं. कमलजीत सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहती हैं. एक्स पर उन के 48 हजार से ज्यादा फौलोअर्स हैं. वहीं फेसबुक पर उन्हें 2 लाख से ज्यादा लोग फौलो करते हैं. पार्टी गतिविधियों में वे बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं.

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9. सीता सोरेन :पहचान बनाने के चक्कर में पहचान खो रहीं

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सीता सोरेन
विचारधारा का संकट आदिवासी बाहुल्य राज्य झारखंड में भी दस्तक दे चुका है. सियासी तौर पर देखा जाए तो 49 वर्षीया सीता सोरेन के झारखंड मुक्ति मोरचा छोड कर भाजपा जौइन कर लेने से कोई हाहाकार नहीं मच गया है लेकिन सामाजिक तौर पर इस घटना के अपने अलग माने हैं जो आदिवासी समुदाय की अपनी पहचान को ले कर उलझन को बयां करते हुए हैं. आजादी के बाद इस राज्य का इतना ही विकास हुआ है कि लोग राम और रामायण को जानने लगे हैं. इस का यह मतलब भी नहीं कि घरघर में रामायण या रामचरितमानस पढ़ी जाने लगी हो बल्कि यह है कि आदिवासियों, जो खुद को मूल निवासी कहते हैं, ने हिम्मत हारते एक समझौता सा कर लिया है कि अब राम ही उन की नैया पार लगाएगा. धर्म के इस प्रपंच से हमेशा ही आदिवासी समुदाय जिल्लत की जिंदगी जीता रहा है.

यह राम है कौन और कहां रहता है, यह इन्हें भाजपाई बता रहे हैं कि जल, जंगल और जमीन की लड़ाई मिथ्या है, तुम लोग नाहक ही भटक रहे हो और इस भटकाव से मुक्ति चाहते हो तो राम की शरण में आ जाओ जिस ने शबरी के झूठे बेर खा कर ही उस का उद्धार कर दिया था. सीता सोरेन के भगवा गैंग में चले जाने की दास्तां भी कुछकुछ ऐसी ही है कि वे सियासी मोक्ष की चाहत में रामदरबार की सब से पिछली कतार में कतारबद्ध हो कर जा बैठी हैं. अपने ससुर, देवर और परिवार से बगावत करने के एवज में उन्हें भाजपा से दुमका सीट से टिकट मिला है.

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10. अनुप्रिया पटेल: विरासत की राजनीति में न पार्टी बची न परिवार

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अनुप्रिया पटेल

भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की तरफ से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर लोकसभा सीट से अनुप्रिया पटेल चुनाव लड़ रही हैं. वह अपना दल सोनेलाल गुट की अध्यक्ष है. 2012 के विधानसभा चुनाव में वह विधायक चुनी गई थीं. इस के बाद वह 2014 के लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद और मोदी मंत्रिमंडल में केन्द्रीय मंत्री बनीं. अनुप्रिया पटेल डाक्टर सोने लाल पटेल की बेटी हैं.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में डाक्टर सोने लाल पटेल को कमजोर वर्ग का प्रभावी नेता माना जाता है. उन का राजनीतिक कैरियर बहुजन समाज पार्टी से शुरू हुआ. वह कांशीराम के बेहद करीबी और बसपा के संस्थापक सदस्यों में से थे. डाक्टर सोनेलाल पटेल ने हमेशा जातिवाद का डट कर विरोध किया और सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ी. शुरूआती दौर में वह भाजपा और उस के मनुवाद के प्रबल विरोधी थे. सोने लाल पटेल का जन्म कन्नौज जिले के बगुलिहाई गांव में एक कुर्मी हिंदू परिवार में हुआ था.

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