Family Story In Hindi : ‘बेटी है. एक दिन पराए घर जाना है, अभी तो सब सुखसुविधाएं भोग ले.’ यही सब सोच कर सुरभि को छूट देती रही थी सुनंदा लेकिन उस के प्यारलाड़ का यह नतीजा निकलेगा किस ने सोचा था.

सुबह 9 बजे डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हुए आलोक को गंभीर, चिंतामग्न देख कर सुनंदा ने पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो?’’ गहरी सांस लेते हुए कुछ न कह कर आलोक चुपचाप चाय पीते रहे.
‘‘बताओ, परेशान लग रहे हो, कुछ तो है.’’
बेहद गंभीर स्वर में आलोक ने कहा, ‘‘मैं रात में 3 बजे उठा था, बच्चों के कमरे की लाइट जलती देख जा कर देखा, तुम्हारी लाड़ली लैपटौप पर कुछ देख रही थी. मैं उसे डांटने वाला था लेकिन चुपचाप वापस आ गया वरना सौरभ की नींद डिस्टर्ब हो जाती. तुम्हारी लाडली की वजह से वैसे भी रात को उस की नींद खराब होती रहती है. तुम्हारी ही जिद पर मैं ने सुरभि को लैपटौप ले कर दिया था कि उसे प्रोजैक्ट बनाने होते हैं. मैं ने तो लैपटौप पर उसे हमेशा कोई न कोई शो ही देखते देखा है.’’
सुनंदा चुप रही, जानती है कि सुरभि को रात में कोई न कोई शो देखने का चस्का लग गया है. वह भी गुस्सा होती है पर जब सुरभि का चेहरा देखती है, उसे डांटने का मन नहीं करता.
आलोक फिर बोले, ‘‘मुझे उस की आदतें बिलकुल पसंद नहीं हैं, फिर कह रहा हूं, उसे समझाओ कि यह कैरियर बनाने का समय है.’’
‘‘हां, समझाऊंगी उसे.’’
‘‘तुम समझ चुकीं,’’ कह कर आलोक औफिस चले गए.
सुनंदा रोज के काम निबटाती हुई बच्चों के रूम में गई. स्कूल जाने से पहले सौरभ रोज की तरह अपना सारा सामान संभाल कर रख गया था लेकिन पूरे कमरे में सुरभि का सामान यहांवहां बिखरा पड़ा था. सीख लेगी, बच्ची ही तो है, सोच कर सुनंदा ने ही रोज की तरह उस का सामान संभाला पर साथ ही साथ यह भी सोच रही थी, सौरभ से 3 साल बड़ी है सुरभि पर दोनों के स्वभाव, आदतों में जमीनआसमान का अंतर है. कोई बात नहीं, सब सीख ही लेती हैं लड़कियां समय के साथ.

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