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आत्मनिर्णय

मैं सोचती रह गई कि आज की नई पीढ़ी क्या हम बड़ों से ज्यादा समझदार हो गई है? आन्या ने जो फैसला लिया, शायद ठीक ही था, जबकि परिपक्व होते हुए भी आत्मनिर्णय लेने में मैं ने कितनी देर लगा दी थी.

मैं ने आन्या के पापा को उस के पैदा होने के महीनेभर बाद ही खो दिया था. हरीश हमारे पड़ोसी थे. वे विधुर थे और हम एकदूसरे के दुखसुख में बहुत काम आते थे. हरीश से मेरा मन काफी मिलता था. एक बार हरीश ने लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव मेरे सामने रखा तो मैं ने कहा, ‘यह मुमकिन नहीं है. आप के और मेरे दोनों के बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा. पति को तो खो ही चुकी हूं, अब किसी भी कीमत पर आन्या को नहीं खोना चाहती. हम दोनों एकदूसरे के दोस्त हैं, यह काफी है.’ उस के बाद फिर कभी उन्होंने यह बात नहीं उठाई.

धीरेधीरे समय का पहिया घूमता रहा और आन्या अपनी पढ़ाई पूरी कर के नौकरी करने लगी. उसे बस से औफिस पहुंचने में करीब सवा घंटा लगता था. एक दिन अचानक आन्या ने आ कर मुझ से कहा, ‘‘मम्मी, बहुत दूर है. मैं बहुत थक जाती हूं. रास्ते में समय भी काफी निकल जाता है. मैं औफिस के पास ही पीजी में रहना चाहती हूं.’’

एक बार तो उस का प्रस्ताव सुन कर मैं सकते में आ गई, फिर मैं ने सोचा कि एक न एक दिन तो वह मुझ से दूर जाएगी ही. अकेले रह कर उस के अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा और वह आत्मनिर्भर रह कर जीना सीखेगी, जोकि आज के जमाने में बहुत जरूरी है. मैं ने उस से कहा, ‘‘ठीक है बेटा, जैसे तुम्हें समझ में आए, करो.’’

3-4 महीने बाद उस ने मुझे फोन कर के अपने पास आने के लिए कहा तो मैं मान गई, और जब उस के दिए ऐड्रैस पर पहुंच कर दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजे पर एक सुदर्शन युवक को देख कर भौचक रह गई. इस से पहले मैं कुछ बोलूं, उस ने कहा, ‘‘आइए आंटी, आन्या यहीं रहती है.’’

यह सुन कर मैं थोड़ी सामान्य हो कर अंदर गई. आन्या सोफे पर बैठ कर लैपटौप पर कुछ लिख रही थी. मुझे देखते ही वह मुझ से लिपट गई और मुसकराते हुए बोली, ‘‘मम्मी, यह तनय है, मैं इस से प्यार करती हूं. इसी से मुझे शादी करनी है. पर अभी ससुराल, बच्चे, रीतिरिवाज किसी जिम्मेदारी के लिए हम मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से परिपक्व नहीं हैं. अलग रह कर रोजरोज मिलने पर समय और पैसे की बरबादी होती है. इसलिए हम ने साथ रह कर समय का इंतजार करना बेहतर समझा है. मैं जानती हूं अचानक यह देख कर आप को बहुत बुरा लग रहा है, लेकिन आप मुझ पर विश्वास रखिए, आप को मेरे निर्णय से कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.

‘‘और मैं यह भी जानती हूं, आप पापा के जाने के बाद बहुत अकेला महसूस कर रही हैं. आप हरीश अंकल से बहुत प्यार करती हैं. आप भी उन के साथ लिवइन में रह कर अपने अकेलेपन को दूर करें. फिर मुझे भी आप की ज्यादा चिंता नहीं रहेगी.’’

यह सब सुनते ही एक बार तो मुझे बहुत झटका लगा, फिर मैं ने सोचा कि आज के बच्चे कितने मजबूत हैं. मैं तो कभी आत्मनिर्णय नहीं ले पाई, लेकिन जीवन का इतना बड़ा निर्णय लेने में उस को क्यों रोकूं. तनय बातों से अच्छे संस्कारी परिवार का लगा. अब समय के साथ युवा बदल रहे हैं, तो हमें भी उन की नई सोच के अनुसार उन की जीवनशैली का स्वागत करना चाहिए. उन पर हमारा निर्णय थोपने का कोई अर्थ नहीं है. और यह मेरी परवरिश का ही परिणाम है कि वह मुझ से दूसरे बच्चों की तरह छिपा कर कुछ नहीं करती. मैं ने तनय को अपने गले से लगाया कि उस ने आन्या के भविष्य की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर मुझे मुक्त कर दिया है. मैं संतुष्ट मन से घर लौट आई और आते ही मैं ने हरीश के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी.

Winter 2022: जानिए, क्यों जरूरी है डाइटरी फैट्स

अकसर जब भी हमारा वजन बढ़ता है तो हम सबसे पहले अपनी डाइट से फैट को आउट कर देते हैं, क्योंकि हमें यही अपना सबसे बड़ा दुश्मन जो नजर आता है. जबकि ऐसा नहीं है. क्योंकि सभी फैट्स बेकार नहीं होते हैं. कुछ फैट्स हमारी हेल्थ के लिए फायदेमंद होते हैं, जिनमें डाइटरी फैट्स मुख्य हैं.

क्या है डाइटरी फैट्स

डाइटरी फैट्स हमें पशु व पौधों से प्राप्त होता है. आपको बता दें कि डाइटरी फैट्स फैटी एसिड से बना है और फैटी एसिड 2 तरह के होते हैं, सैचुरेटेड और अनसैचुरेटेड.

सैचुरेटेड vs अनसैचुरेटेड फैट

सैचुरेटेड फैट – सैचुरेटेड फैट्स हेल्थ के लिए अच्छे नहीं होते, क्योंकि ये बैड केलोस्ट्रोल के स्तर को बढ़ाने का काम करते हैं, जिससे हार्ट सम्बंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

अनसैचुरेटेड फैट – अनसैचुरेटेड फैट्स आपके शरीर के लिए बेस्ट है. यह कमरे के तापमान में तरल होते हैं और इसे सब्ज़ियों व मछली से प्राप्त किया जाता है.

जानिए क्यों जरूरी है फैट्स

  1. ऊर्जा का स्रोत

खाने के जरिए जो वसा हम लेते हैं वो कार्बोहाइड्रेट्स व प्रोटीन के साथ मिलकर हमें ऊर्जा प्रदान करने का काम करती है. जिससे हमारा शरीर एक्टिव रहने के कारण हम काम में मन लगा पाते हैं.

  1. विटामिन का वाहक

खाने में फैट विटामिन ए , डी , इ और के को आंतो में अवशोषित करने में मदद करता है. जो फैट सोल्युबल विटामिन्स होते है.

  1. हड्डियों को रखे मजबूत

जब भी हम कोई भारी एक्सरसाइज करते हैं तो हमारी हड्डियों व मांसपेशियो को नुकसान पहुंचने का डर बना रहता है. जबकि एक शोध में यह साबित हुआ है कि अगर शरीर में फैटी एसिड्स को बढ़ाते हैं तो इससे हमारी हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा बढ़ने से हड्डियां मजबूत होती हैं.

  1. मस्तिष्क के प्रौपर कार्य करने में सहायक

वसा माइलिन का एक हिस्सा है, जो हमारी तंत्रिका कोशिकाओं के चारों ओर लिपटा रहता है. यह प्रोटीन और वसा युक्त प्राधातो से मिलकर बनता है. जिससे वह इलेक्ट्रॉनिकल संदेशों को भेजने में सफल हो पाता है.

  1. ऊर्जा को संग्रहित करना

कई बार हम ऐसा भोजन खा लेते हैं, जिससे शरीर में अतिरिक्त कैलोरीज चली जाती है, जिसकी हमें अभी जरूरत ही नहीं होती. लेकिन ये उन्हें भविष्य के लिए स्पेशल फैट सेल्स में जमा रखने का काम करता है.

  1. टेस्टोस्टेरोन लेवल में बढ़ोतरी

टेस्टोस्टेरोन हार्मोन्स मसल्स की ग्रोथ के लिए जरूरी है. विभिन शोध में यह साबित हुआ है कि हाई फैट डाइट से टेस्टोस्टेरोन लेवल में बढ़ोतरी होती है. इसलिए अगर आप हैवी एक्सरसाइज करते हैं तो बाकी लोगों की तुलना में आप ज्यादा फैट वाली डाइट लें.

  1. पाएं हैल्दी स्किन

हैल्दी शरीर के लिए हैल्दी फैट और हैल्दी स्किन के लिए फैटी एसिड की जरूरत होती है. फैटी एसिड जैसे ओमेगा 3s और ओमेगा 6s हैल्दी सेल्स का निर्माण करते हैं. ये पाली अनसैचुरेटेड फैट्स स्किन को हाइड्रेट रखने के साथ यंग और ग्लोइंग दिखाने का काम करते हैं. और अगर शरीर में इसकी कमी हो जाती है तो स्किन रूखी, बेजान व ब्लैकहेड्स जैसी समस्या भी उत्पन हो जाती है. इसलिए गुड़ फैट्स को डाइट से न निकालें.

अपना घर- भाग 5: क्या बेटी के ससुराल में माता-पिता का आना गलत है?

घर पहुंच कर वाणी अरुण और रेणु के लिए चाय बनाने ही लगी कि देखा चायपत्ती खत्म हो गई है. ‘ओह, पत्ती खत्म हो गई? लेकिन सुबह तो थी. वह मन ही मन भुनभुनाई. अब चाय बनाने के लिए पत्ती तो थी नहीं, इसलिए उस ने अरुण और रेणु का खाना ही परोस दिया, वैसे भी वे लोग भूखे थे. सोचा, चाय बाद में बना देगी. पास में ही एक किराना स्टोर है, फोन कर देने पर कुछ देर में ही वह सामान घर पर भिजवा देता है. वाणी किचन के छोटेमोटे सामान वगैरह उसी दुकान से मंगवाती थी.  अच्छी सर्विस देता है वह दुकान वाला.

अभी वह अपने मांपापा को खाना दे कर कमरे से बाहर निकली ही थी कि मालती कहने लगी, “बहू, ऐसा कब तक चलेगा?”

“क..क्या हुआ मां जी?” वाणी ने अचकचा कर पूछा.

“यही की हमेशा तुम्हारे मांबाप यहां चले आते हैं. क्या अच्छा लगता है बेटी के घर बारबार आना? अरे, हमारे संस्कार में तो बेटी के घर का एक बूंद पानी पीना भी पाप माना जाता है और ये लोग… क्या जरा भी शर्मलाज नहीं है तुम्हारे मांबाप को? अब तो पड़ोसी भी पूछने लगे हैं. सच कहें, तो शर्म तो अब हमें आने लगी है.”

मालती की बात सुन वाणी अवाक थी. उसे लग रहा था काटो तो खून नहीं. वह सास को चुप कराना चाहती थी कि प्लीज, चुप हो जाओ.  मगर मालती बोलती ही जा रही थी जो मन, सो.  उधर अरुण और रेणु पहला कौर मुंह में डालने ही जा रहे थे कि मालती की कड़वी बातें सुन उन का हाथ का खाना हाथ में ही रह गया. ‘कहीं मांपापा ने सुन तो नहीं लिया…’ वह भागी उधर.

“प पापा…मम्मी… आप दोनों खा क्यों नहीं रहे? खा खाइए न, खाना अच्छा नहीं बना क्या?” वाणी झेंपी. “हां, वह मम्मी जी पूछ रही थीं कि डाक्टर ने क्या कहा?” किसी तरह वाणी बात को ढापना चाहती थी.

“बस बेटा, बहुत हो गया,” हाथ का खाना थाली में झाड़ते हुए रेणु उठ खड़ी हुई, “कहा था तुम से किसी होटल में रुक जाएंगे, पर तुम…  आखिर क्यों हमारी भी बेइज्जती कराने पर तुली हो?” लेकिन रेणु को अरुण ने कस कर डपटा.

“कुछ भी बोले जा रही हो? चुप हो जाओ. नहीं बेटा, कुछ नहीं, तुम चिंता मत करो और  रिश्तेदारी में तो यह सब चलता ही रहता है. हम फिर आएंगे लेकिन अभी मुझे एक जरूरी काम याद आ गया, तो जाना पड़ेगा. हां, मेरा बच्चा…,” बेटी के कंधे पर हाथ रखते हुए अरुण बोल तो रहे थे लेकिन उन की गीली आंखों में एक बेटी के पिता की बेबसी साफसाफ दिखाई पड़ रही थी.  अपने मांपापा के गले लग वाणी सिसक पड़ी. बेटी को छोड़ कर जाते हुए रेणु फूटफूट कर रो पड़ी. सबकुछ लेदे कर शादी करने के बाद भी एक बेटी के मांबाप की कोई औकात नहीं रहती. जब लोग बेटा न होने का ताना मारते थे तब अरुण यह बोल कर लोगों का मुंह बंद कर देते थे कि उस की एक बेटी सौ बेटों के बराबर होगी, देख लेना. अकसर अरुण यह बात दोहराते कि रिटायरमैंट के बाद वे वाणी के साथ रहने आ जाएंगे. बोलो बेटा, अपने बूढ़े मांपापा को साथ रखोगी न?” और मासूम सी वाणी कहती, हां, वह अपने मांपापा को हमेशा अपने साथ रखेगी. लेकिन आज अपने उसी मांपापा की अपनी ससुराल में ऐसी बेइज्जती होते देख वाणी का रोमरोम कराह उठा. वाणी ने नहीं रोका उन्हें जाने से क्योंकि वह उन की और बेइज्जती नहीं करवाना चाहती थी. लेकिन अफसोस कि उस के मांपापा बिना खाएपिए  चले गए.

अरे, एक जानवर को भी हम रोटी देते समय सहलाते हैं, लेकिन आज मालती ने तो सारी हदें पार कर दीं. देख लिया जब वाणी के मांपापा चले गए तो मालती अपनी मित्र मंडली के साथ रोज की तरह सतसंग के लिए निकल गई. पूजापाठ, हवनकृतन और पंडेपुजारियों पर मालती लाखों रुपए लूटा देती है. लेकिन वहीं किसी गरीब की एक पैसे से मदद की हो कभी, ऐसा कभी नहीं हुआ.

‘कोई इंसान इतना पत्थर दिल कैसे हो सकता है. कल उन की भी बेटी की शादी होगी, तब पता चलेगा उन्हें कि मांबाप के लिए एक बेटी का मोह क्या होता है,’ सिसकती हुई वाणी सोच ही रही थी कि कौलबैल बजी. उसे लगा किराने वाला आया होगा सामान ले कर. लेकिन जब सामने आलोक को पाया तो उस की बरदाश्त का बांध टूट गया और वह आलोक के सीने से लग  फूटफूट कर रोने लगी. आलोक तो सब समझ ही गया था लेकिन फिर भी उस के पूछने पर वाणी ने शुरू से अंत तक एकएक बात उस के सामने खोल कर रख दी. सुन कर आलोक का खून खौल उठा, सोच लिया उस ने जो हो पर आज वह मालती को नहीं छोड़ेगा. फैसला हो कर रहेगा, चाहती क्या हैं वह? लेकिन वाणी ने उसे यह कह कर रोक दिया कि यह सब करने का कोई फायदा नहीं है. लेकिन, उसे अब वह करना होगा जो वाणी चाहती है. “आलोक, मुझे यहीं दिल्ली में ही अपना एक घर चाहिए जिसे मैं ‘अपना घर’ कह सकूं और जहां मेरे मम्मीपापा जब चाहें, हक से आ कर रह सकें. मैं तुम्हें तुम्हारे परिवार से दूर नहीं करना चाहती. तुम्हारी मरजी तुम जहां रहना चाहो. लेकिन अब मेरा फैसला अटल है.“

आलोक ने कुछ नहीं बोला लेकिन वाणी का फैसला उसे एकदम सही लगा और वह अपनी पत्नी के इस फैसले में उस के साथ है.

मुद्दा: भारतीय जमीन और चीनी गांव

अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन ने हाल ही में चीन को ले कर एक विस्तृत रिपोर्ट यूएस कांग्रेस को सौंपी, जिस में चीन के सैन्य मिशन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बढ़ते प्रभाव का बिंदुवार तरीके से विवरण है. इस के अलावा चीन के भविष्य की भावी योजनाओं का उल्लेख भी इस रिपोर्ट में है. 192 पेजों की इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘मिलिट्री एंड सिक्योरिटी डैवलपमैंट्स इन्वौल्ंिवग द पीपल्स रिपब्लिक औफ चाइना’ है.

इस रिपोर्ट में ताइवान संकट, भारतचीन सीमा विवाद व पिछले साल पीपल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा आयोजित बहुपक्षीय सेना अभ्यासों के पैटर्न पर विस्तृत तथ्य भी पेश किए गए. भारत के परिप्रेक्ष्य से यह रिपोर्ट इसलिए भी अहम है कि पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सीमा पर भारतचीन की राजनयिक व सैन्य बातचीत के बावजूद चीन ने भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपने दावों को साबित करने के लिए ‘सामरिक कार्यवाही’ करना जारी रखा है.

रिपोर्ट में साफ शब्दों में कहा गया कि चीन अपने पड़ोसी देशों, खासकर भारत, के साथ आक्रामक व्यवहार कर रहा है. अपने पड़ोसी देश भारत को डराने के लिए चीन ने तिब्बत और शिंजियांग में मौजूद सुरक्षा बलों को पश्चिमी चीन भेज दिया है, ताकि उन की सीमा पर तैनाती हो सके.

पेंटागन ने इस रिपोर्ट से यह पुष्टि भी की है कि पिछले साल 2020 में चीन ने एलएसी के पूर्वी क्षेत्र यानी चीनीतिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और भारत के अरुणाचल प्रदेश के बीच ‘विवादित क्षेत्र’ पर

101 घरों का योजनाबद्ध गांव बसाया है. चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में गांव बसाए जाने वाली बात इस साल जनवरी माह में भी सामने आई थी. मीडिया में उस दौरान इसे ले कर खबरें भी प्रकाशित हुई थीं. सैटेलाइट से उस दौरान नए बसाए गांव की तसवीरों को जारी किया गया था. लेकिन सत्ता पक्ष ने इन आरोपों का खंडन करते हुए चुप्पी साध रखी थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने पश्चिमी हिमालय के दूरदराज इलाकों में एक फाइबर-औप्टिक नैटवर्क स्थापित किया है, ताकि आसानी से संचार व्यवस्था के विदेशी हस्तक्षेपों को रोका जा सके.

इस में पेंटागन ने बताया है कि इसी दौरान चीन के सरकारी मीडिया ने बीजिंग के दावों को जोरशोर से उठाया और भारत के दावों को अस्वीकार करना जारी रखा. चीनी मीडिया ने एलएसी के पास भारत के बुनियादी ढांचे के विकास को प्रभावित करने की कोशिश की. इस काम के लिए चीनी मीडिया तनाव बढ़ाने का आरोप भारत पर ही लगाता रहा.

चीन ने भारत के खिलाफ अपने दावे वाली जमीन से सेना को पीछे हटाने से भी साफ इनकार कर दिया था. उस ने शर्त रखी कि वह तब तक सेना को पीछे नहीं खींचेगा जब तक उस के दावे वाली जमीन से भारतीय सेना पीछे नहीं हट जाती और उस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में सुधार के काम को रोका नहीं जाता.

विवादित चीनी गांव

पेंटागन की रिपोर्ट आने के बाद मोदी सरकार की चीन के साथ सीमा मोर्चे पर हो रही विफलता की खूब किरकिरी होने लगी है. विपक्षी लगातार सरकार को घेरने में लगे हैं. कांग्रेस की तरफ से प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि ‘‘पिछले साल जून में अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद तपिर ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख चेतावनी दी थी कि चीन ने देश की सीमा में घुसपैठ की है. मगर पीएम और गृहमंत्री ने उन दावों को खारिज कर दिया और अब आज 17 महीने हो चुके हैं, लेकिन मोदी ने चीन को क्लीन चिट दे रखी है. यह क्लीन चिट ही भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है क्योंकि चीन ने पूरी दुनिया में इस का इस्तेमाल किया है.’’

पवन खेड़ा ने बात करते हुए आगे कहा कि पूर्वी लद्दाख में जो हुआ, वह हमारे सामने है. इस के अलावा पिछले महीने उत्तराखंड के बाराहोटी में चीन की पीएलए पुल तोड़ कर वापस चली गई. उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 6 महीनों में चीन के साथ 67 प्रतिशत व्यापार बढ़ा है. भारत के मैप पर चीन हमला कर रहा है और सरकार ऐप पर से प्रतिबंध हटा रही है. चीन हमारे सामरिक हितों के खिलाफ लगातार सक्रिय हो रहा है, लेकिन भारत सरकार चुप है.’’

ऐसे में भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने सीमावर्ती क्षेत्रों में, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश में, चीन के निर्माण से जुड़ी रिपोर्ट्स पर सवालों के जवाब देते हुए कहा, ‘‘भारत ने राजनयिक स्तर पर पूरी मजबूती के साथ इस तरह की गतिविधियों के प्रति अपना विरोध दर्ज कराया है और भारत भविष्य में भी ऐसा ही करेगा.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘चीन ने पिछले कई सालों में सीमावर्ती क्षेत्रों के साथसाथ उन क्षेत्रों में भी निर्माण किया जहां उस ने दशकों से कब्जा कर रखा है. भारत न तो इस तरह के किसी कब्जे को स्वीकार करता है और न ही चीन के अनुचित दावों को.’’

दरअसल, चीन ने अपने नए सीमा कानून के तहत पूर्वी इलाके के सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘दोहरे इस्तेमाल के लिए’ जिन गांवों का निर्माण किया है उन गांवों को खतरे के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि उन्हें ले कर दावा है कि ये गांव स्थायी सैन्य शिविर में तबदील हो चुके हैं.

एक ओर जहां विदेश मंत्रालय ने चीन के निर्माण को ले कर भारत की प्रतिक्रिया दी वहीं चीफ औफ डिफैंस जनरल विपिन रावत ने एक टीवी चैनल पर इस मुद्दे पर अपनी बात उलट रखी. उन्होंने कहा, ‘‘वे (चीन) बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहे हैं और यह तथाकथित गांव एलएसी पर उन के अधिकार क्षेत्र में है. उन्होंने एलएसी पर हमारे क्षेत्र का कभी उल्लंघन नहीं किया. कई तरह की धारणाएं हैं. हम इस बात को ले कर बेहद स्पष्ट हैं कि एलएसी कहां है क्योंकि हमें बताया गया है कि एलएसी पर हमारी स्थिति कहां है और यही वह क्षेत्र है जिस की सुरक्षा की हम से अपेक्षा की जाती है.’’

दरअसल, विवाद यह है कि इस गांव का निर्माण चीन ने उस इलाके में किया है जिस पर 1959 में पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने अरुणाचल प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में एक औपरेशन के बाद असम राइफल्स की चौकी पर हमले के बाद कब्जा कर लिया था. इसे लोंगजू घटना के तौर पर जाना जाता है. रिपोर्ट के अनुसार, ऊपरी सुबनसिरी जिले में विवादित सीमा के साथ लगता गांव चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में है.

अब समस्या यह है कि एक तरफ जहां विदेश मंत्रालय इस जमीन को मैप के आधार पर अपनी जमीन मानता है और चीन के बसाए इस गांव को अवैध कब्जे के तौर पर देखता है, वहीं डिफैंस जनरल विपिन रावत इसे अपने अधिकार क्षेत्र का हिस्सा नहीं मानते. ये दोनों बातें एकदूसरे को काटती दिखाई देती हैं, जो भारतचीन सीमा मसले पर भारत की अस्पष्टता को दर्शाता है.

चीन की बढ़ती ताकत

2017 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 19वीं पार्टी कांग्रेस में अपने भाषण के दौरान चीन को वैश्विक शक्ति में बदलने के लिए 2 मिशन प्रस्तुत किए थे. पहला, 2035 तक पीएलए के आधुनिकीकरण को पूरा करना. दूसरा, 2049 तक पीएलए को विश्वस्तरीय सेना में बदलना. तब से चीन लगातार अपनी सैन्य, खुफिया और परमाणु क्षमताओं को और अधिक जोश के साथ बना रहा है.

पेंटागन की रिपोर्ट में भारत के लिए खतरे की बात सिर्फ यह नहीं कि चीन

ने भारत से कब्जाए क्षेत्र पर गांव का निर्माण कर लिया, इस से अधिक गौर करने वाली बात यह है कि चीन एक सोचीसम?ा रणनीति के तहत अपनी कार्यवाहियों को अंजाम दे रहा है. पेंटागन की रिपोर्ट में खुलासा होता है कि चीन ने अपनी सैन्य ताकत के विस्तार के लिए अपने लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जो भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.

पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन अनुमान से कहीं अधिक तेजी से अपने परमाणु हथियारों का विस्तार कर रहा है. वह सुपर पावर अमेरिका को पीछे छोड़ने की कोशिश में जुटा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन के पास 2027 तक 700 परमाणु हथियार हो सकते हैं और 2030 तक यह आंकड़ा 1,000 से अधिक पहुंच सकता है. फिलहाल अमेरिका में इन की संख्या 6,000 तक बताई जा रही है.

हालांकि रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि मौजूदा वक्त में चीन के पास कितने हथियार हैं किंतु हाल यह है कि एक समय हर फ्रंट पर साथसाथ चल रहे चीन और भारत की आपसी तुलना हुआ करती थी, आज उस चीन के लक्ष्य में विश्व के सुपर पावर अमेरिका से सीधा तुलना करने का लक्ष्य है. वहीं दूसरी तरफ, हम खुद अपनी तुलना अपने से कई मानो में कमजोर देश पाकिस्तान से करते हैं.

यह मौजूदा समय में भारत की वैश्विक मंचों पर गिरती साख और दबने का सीधा परिणाम है. रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन सक्रिय रूप से निवेश कर रहा है और परमाणु हथियारों को तैनात करने के लिए अपनी भूमि, समुद्र और वायु आधारित साधनों का विस्तार कर रहा है. वह इस के विस्तार के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है.

अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा यूएस कांग्रेस को सौंपे गए दस्तावेजों के अनुसार, चीन अपने रक्षा बजट में सालाना औसतन 7 प्रतिशत की वृद्धि कर रहा है और 2023 तक इसे बढ़ा कर 270 अरब डौलर करने की उम्मीद है. दूसरी ओर, भारत ने पिछले 10 वर्षों में 9 फीसदी की औसत वृद्धि दर के साथ कुल रक्षा खर्च किया है. आंकड़ों के अनुसार, जहां चीन ने अपने 2021 के रक्षा बजट में 209 अरब डौलर का आवंटन किया है, वहीं भारतीय आवंटन 64.8 अरब डौलर पर बेहद कम है.

पेंटागन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी की लड़ाकू इकाइयों में लगभग 9,75,000 सक्रिय कर्मी हैं. पीपल्स लिबरेशन आर्मी की नेवी के पास दुनिया की सब से बड़ी नौसेना है, जिस में 355 जहाज और पनडुब्बियां हैं, जिन में लगभग 145 से अधिक प्रमुख सतह लड़ाके शामिल हैं. पीपल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स और प्लान एविएशन मिल कर इस क्षेत्र की सब से बड़ी और दुनिया की तीसरी सब से बड़ी एविएशन फोर्स का प्रतिनिधित्व

करते हैं. रिपोर्ट आगे बताती है, ‘‘पीपल रिपब्लिक औफ चाइना (पीआरसी) अपनी साइबर हमले की क्षमता को आगे बढ़ा रहा है.’’

भारत के लिए माने

पेंटागन की यह रिपोर्ट, जो चीन के विस्तारवाद की नीति को स्पष्ट करती है, भारत के लिए भारी चिंता का विषय है. पेंटागन की रिपोर्ट आने से स्पष्ट है कि हमारे सीमाई दरवाजे खोलते ही ठीक सामने एक ऐसा पड़ोसी देश घात लगाए बैठा है जो हम से ताकत में कोसों आगे है और, बस, एक मौके का इंतजार कर रहा है.

भारत के लिए चिंता के और भी कई कारण हैं. हम अब उस चीन की कल्पना कर रहे हैं जिस के पास हम से उन्नत, आधुनिक सेना है, जो परमाणु हथियारों से भरी हुई है, जो हमारे दोस्तों को जीतने में लगी हुई है और हमारे नाक के नीचे वाले क्षेत्रों को सीधे प्रभावित कर रही है, जो ग्लोबल पौलिटिक्स को प्रभावित कर रही है, जो दुनिया के बाजारों पर कब्जा कर रही है. भारत की संप्रभुता के लिहाज से यह रिपोर्ट बहुत अहमियत रखती है, खासकर ऐसे समय में जब देश अंधराष्ट्रवाद और राष्ट्रवाद के बीच अंतर को सम?ा नहीं पा रहा है.

चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में एक गांव का निर्माण भारतीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय जरूर हो सकता है. लेकिन केवल उस पर ध्यान केंद्रित करना, पूरी पेंटागन रिपोर्ट को नजरअंदाज करना और तत्काल सीमा पर ?ाड़पें भारत के लिए आत्मपराजय साबित हो सकती हैं. मसलन, इस की खी?ा कई तरह से आंतरिक रूप से भी सामने आ सकती है.

आज भारत उन पड़ोसी देशों से घिरा है जिन का भरोसा अब सीमित होता जा रहा है. भारत की आतंरिक नीतियां तक पड़ोसी देशों को प्रभावित कर रही हैं. ऊपर से लोकतंत्र जैसे मामलों में भारत का ग्लोबल रैपुटेशन लगातार गिरता जा रहा है. अर्थव्यवस्था में भी पकड़ कमजोर पड़ती जा रही है. चीन द्वारा ऐसे समय में भारत के पड़ोसियों पर महत्त्वपूर्ण निवेश चहुं दिशाओं से घेरने की मंशा से है. आज नेपाल, भूटान, श्रीलंका, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी दोस्त चीन के ज्यादा करीब दिखाई देते हैं. ऐसे में ‘विवादित जमीन’ पर चीन का बनाया गांव खतरनाक तो है ही, साथ ही, जले में नमक छिड़कने से कम नहीं है, जिस पर ऊहापोह की स्थिति में ही हम फंसे रह गए हैं.

कला: पिंजरे में हास्य कलाकार

एक समय था जब हास्य कलाकार जम कर सरकार या किसी पार्टी के सुप्रीम नेता पर कटाक्ष किया करते थे और सहसा उस समय के नेता उस कटाक्ष को हंसते चेहरे से स्वीकार कर लिया करते थे. मशहूर कार्टूनिस्ट केशव शंकर पिल्लई और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का किस्सा इतिहास में दर्ज भी है. कार्टूनिस्ट शंकर ने जब प्रधानमंत्री नेहरू को अपने कौलम के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया तब नेहरू ने कहा था कि, ‘आप के उद्घाटन पर तो मैं जरूर आऊंगा पर एक शर्त है, आप हमें भी न बख्शें.’

शंकर ने नेहरू को निराश नहीं किया. माना जाता है कि उस दौरान शंकर ने सैकड़ों कार्टून नेहरू की आलोचना करते हुए बनाए, दिलचस्प यह कि नेहरू इस से व्यथित नहीं हुए, बल्कि शंकर की प्रशंसा की.

हंसीमजाक और व्यंग्य कसना भारत देश के लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा रहा है. ये चीजें खुशहाल लोकतंत्र की मजबूती की तरफ इशारा करती हैं. कई साहित्यकारों ने अपने व्यंग्यों के माध्यम से देश की राजनीति और समाज की कुरीतियों पर सहज ढंग से अपनी बात रखी है. हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल ऐसे कई नाम हैं.

राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सरल और हंसमुख नेता अपने व्यंग्यों के लिए मशहूर थे. वे सदन में नेहरू के सामने खड़े हो कर बड़े शान से कटाक्ष किया करते थे.

आज भी जब प्रधानमंत्री मोदी सदन में विपक्ष पर चुटीले व्यंग्य कसते हैं तब

वहां मौजूद धुरविरोधी विपक्ष के चेहरे पर भी मुसकान छा जाती है. इस से नेताओं के समर्थकों को भी संदेश जाता है कि जमीन पर विचारधारा का विस्तार लाठीडंडों और गालीगलौजों के इतर हलके अंदाज में भी प्रस्तुत किया जा सकता है. किंतु समस्या अब यह अधिक पैदा होती दिखाई दे

रही है कि हंसीठिठोली करने पर भी एकाधिकार जमाया जा रहा है. कौन इसे करेगा कौन नहीं, किस पर किया जाएगा किस पर नहीं, यह विशेष राजनीतिक विचारधारा तय कर रही है.

कला पर हमला

देश के लोगों में एकदूसरे के प्रति बढ़ रही हीनभावना चिंता का विषय है. देश में असहिष्णुता का मुद्दा समयसमय पर उठता रहा है. लेकिन आज भाजपा सरकार पर असहमति की आवाज दबाने और विरोधों को कुचलने के गंभीर आरोप लग रहे हैं.

2015 में फिल्म जगत के संजीदा कलाकारों और अन्य क्षेत्रों के साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों ने सरकार के इस नकारात्मक रवैए के खिलाफ अपने अवार्ड वापस किए थे. उस दौरान यह संकेत साफ था कि देश में अब सबकुछ पहले जैसा नहीं रहा. कला या तो कैद में है या बिकवाली पर है. कला का स्वतंत्र स्वरूप गुम होता जा रहा है.

आज यह बात सटीक बैठती दिखाई दे रही है. क्या फिल्मकार व कलाकार, क्या बुद्धिजीवी व साहित्यकार, क्या कौमेडियन सब पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं. सरकार के खिलाफ हलकेफुलके जोक पर भी हाहाकार मचाया जा रहा है. प्रशासन को अभिव्यक्ति की आवाज दबाने के काम में लगाया जा रहा है. धार्मिक विसंगतियों पर कुछ भी बोलने से कट्टरपंथी बुरी तरह जलभुन जा रहे हैं, धमकियां दे कर, मारपिटाई कर डरा रहे हैं. शासन ऐसे असामाजिक तत्त्वों पर रोक लगाने के बजाय, उलटा कलाकारों पर रोक लगा रहा है.

मुन्नवर फारूकी विवाद

हाल में स्टैंडअप कौमेडियन मुन्नवर फारूकी इस के ताजे उदाहरण बने हैं. उन्हें न सिर्फ लगातार धमकियां मिल रही हैं, बल्कि पुलिस ने बचकाने तर्क दे कर उन के शो को रद्द करवा दिया है.

28 नवंबर को बेंगलुरु के गुड शेफर्ड औडिटोरियम में होने वाले मुनव्वर फारूकी के शो ‘डोंगरी टू नोव्हेयर’ को स्थानीय प्रशासन द्वारा रद्द करा दिया गया. यह पहला मौका नहीं था जब मुन्नवर का शो रद्द हुआ हो, पिछले 2 महीनों में यह 12वां शो था जिसे धमकियों के चलते रद्द करना पड़ा.

मुन्नवर की दिक्कतें साल 2021 से बढ़नी शुरू हुई थीं जब मध्यप्रदेश के इंदौर में मुनरो कैफे में मुनव्वर फारूकी का स्टैंडअप कौमेडी शो था. वहां लाइव शो के दौरान ही कुछ हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता आ धमके थे. उन्होंने जबरन शो को रुकवाया और उत्पात मचाया.

भारत जैसे बड़े लोकतंत्र के लिए दुखद यह रहा कि मुन्नवर ने अंत में कहा, ‘‘मु?ो लगता है कि यह अंत है. मेरा नाम मुनव्वर फारूकी है और यह मेरा समय है. आप लोग एक अद्भुत दर्शक थे. अलविदा. मेरा हो गया. नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया.’’

इस मसले पर मुन्नवर से सहानुभूति रखने वाले यह कह रहे हैं कि मुन्नवर फारूकी को उन के धर्म के चलते टारगेट किया जा रहा है. उन्हें बेवजह टारगेट किया जा रहा है. यह बात एक माने तक सही है पर पूरी तसवीर बयान नहीं करती है. मसलन, बात सिर्फ उन के धर्म की नहीं है या उन के हिंदू न होने की नहीं है, आज तो स्थिति यह है कि जो भी सत्ताधारी पार्टी के विचारों से संबंध नहीं रखता या विरोध करता है उसे निशाने पर लिया जा रहा है.

मामले और भी

मुन्नवर के अलावा बहुत सारे हिंदू स्टैंडअप कौमेडियन हैं जिन्हें हिंदूवादी संगठनों और सत्ताधारी पार्टी द्वारा निशाने पर लिया जाता रहा है. कई कलाकार इस की चपेट में आए हैं. इस फेहरिस्त में कुनाल कामरा, राजीव निगम, वीर दास, तन्मय भट्ट, किकु शारदा सरीखे कौमेडियन पहले ही आ चुके हैं.

मुन्नवर फारूकी के शो रद्द होने के तुरंत बाद बेंगलुरु में ही कुनाल कामरा के 1 से 19 दिसंबर तक चलने वाले कई शो को रद्द किया जा चुका है. शो के कैंसिल किए जाने पर कुनाल ने अपने विरोधियों और प्रशासन पर कटाक्ष किया. कुनाल कामरा अकसर सत्ताधारी पार्टी और हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर आते रहे हैं.

इस के अलावा कुछ दिनों पहले ही स्टैंडअप कौमेडियन और अभिनेता वीर दास को वाशिंगटन डीसी में अपने 6 मिनट के मोनोलोग प्रदर्शन के लिए सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी विरोधी प्रतिक्रिया और सत्ताधारी पार्टी के विरोध का सामना करना पड़ा था. यह शो अमेरिका के कैनेडी सैंटर में ‘टू इंडियाज’ शीर्षक से था. इस में भारत के विरोधाभासों को ले कर कटाक्ष किए गए थे. भारत में इस पर विरोध इतना बढ़ गया कि उन के खिलाफ अलगअलग थानों में देशद्रोह के मुकदमे दर्ज किए गए. ऐसे ही राजीव निगम और तन्मय भट्ट को भी अतीत में इन्हीं तरह के विरोधों का सामना करना पड़ा है.

दरअसल, मसला यहां सत्ताधारी पार्टी के विचारों से विरोधाभास रखने का है. जो कलाकार सत्ता के मनमाफिक बात नहीं करता है, उसे सीधे निशाने पर लिया जा रहा है. जो कलाकार चाटुकारिता में व्यस्त हैं उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार और पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया जा रहा है. ऐसे कलाकारों की एक लंबी फेहरिस्त है जो देश तोड़ने और सांप्रदायिकता को भड़काने का काम खुलेआम कर रहे हैं. जो देश की आजादी का मजाक उड़ा रहे हैं, उन्हें सरकार सुरक्षा दे रही है.

हाल ही में ‘आश्रम’ वैब सीरीज के निर्देशक प्रकाश ?ा को भी इसी प्रकार के विरोध का सामना करना पड़ा था. कहीं वैब सीरीज को बंद करवाने की धमकी दी जाती है क्योंकि वह मौजूदा सरकार या सामाजिक व्यवस्था पर कटाक्ष कर रही है. असल बात यह है कि कलाकारों का आलोचनात्मक चरित्र होना बीजेपी, आरएसएस के गले नहीं उतर रहा है.

कला सब से आसान और रचनात्मक माध्यम होता है लोगों तक अपनी बात को रखने का, जिस से सत्ता में वैठे लोग हमेशा से डरते आए हैं. मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को कौन भूल सकता है जिन्हें देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा हाल के मामले में कार्टूनिस्ट मंजुल की घटना भी इसी फेहरिस्त में शामिल है, जो सरकार की आलोचना अपने बनाए कार्टूनों से करते हैं.

शासक का विरोध करना कठिन

आज हकीकत यह है कि शासकों और उन की विचारधारा का विरोध करना एक कठिन कार्य बनता जा रहा है. देश को इतना कमजोर दिखाया व बनाया जा रहा है कि वह कौमेडियन वीर दास के कटाक्षों तक को नहीं ?ोल पा रहा है, कामरा और वरुण ग्रोवर के व्यंग्यों को सहन नहीं कर पा रहा है.

फारूकी को जेल में महीनाभर बिताने और उन के कार्यक्रमों को एक के बाद एक रद्द किया जाना मुन्नवर के इतर देश के लोकतंत्र को भी कैद किए जाने जैसा है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आजाद भारत का अभिन्न हिस्सा है जिसे हमारे संविधान में खास जगह दी गई है.

हकीकत यह है कि आज कार्टूनिस्ट को सजा दी जा रही है, कवि को लिटरेरी नक्सल का खिताब दिया जा रहा है. दाभोलकर, पंसारे, कलबुर्गी और लंकेश इस के उदाहरण हैं. देश में ‘लेफ्ट’ और ‘लिबरल’ की शत्रु छवि गढ़ी जा रही है. विरोध करने वालों पर तुरंत देशद्रोह का टैग लगा दिया जा रहा है. कई लोग इसे पुरानी सरकारों में हुए हमलों के बराबर बता रहे हैं कि यह ‘इज इक्वल टू’ मामला है, पर सच यह है कि मौजूदा शासक एक कदम आगे बढ़ गए हैं. वे नाफरमानी सुनना नहीं चाहते.

हाल में हुए कौमेडियन वीर दास, कामरा, मुन्नवर पर हम और आप सहमत और असहमत हो सकते हैं पर उन की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें यह अधिकार देती है कि वे संवैधानिक दायरे में रह कर अपने तरीके से खुद की बात रख सकते हैं.

प्रशासन: पुलिस का यातनागृह

‘‘कानून द्वारा शासित एक सभ्य समाज में कस्टडी में मौत सब से बुरे अपराधों में से एक है. जब एक पुलिसकर्मी किसी नागरिक को गिरफ्तार करता है, तब क्या उस के जीवन के मौलिक अधिकार समाप्त हो जाते हैं? क्या नागरिक के जीवन के अधिकार को उस की गिरफ्तारी के बाद निलंबित किया जा सकता है? वास्तव में, इन सवालों का जवाब ठोस तरीके से ‘नहीं’ होना चाहिए.’’ हिरासत में यातना और मौतों का संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति डी के बसु ने अपने ऐतिहासिक फैसले में यह बात रखी थी पर लगता है देश की पुलिस ने आज तक इस बात पर ठीक से गौर नहीं किया.

उत्तर प्रदेश में पुलिस कस्टडी में मौतों की घटनाएं आम होती जा रही हैं. कुछ दिनों पहले आगरा में सफाईकर्मी अरुण वाल्मीकि का मामला शांत नहीं हुआ था कि यूपी के कासगंज से 9 नवंबर को 21 साल के नौजवान अल्ताफ की पुलिस हिरासत में मौत का संदिग्ध मामला सामने आया है. इस मौत के बाद पुलिस प्रशासन पर चारों तरफ से उंगलियां उठ रही हैं.

अल्ताफ कासगंज कोतवाली क्षेत्र के नगला सैय्यद अहरौली का रहने वाला था. अल्ताफ पर एक लड़की को भगाने का आरोप था. इस मामले में पुलिस उसे पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन ले गई थी. पुलिस के अनुसार, पूछताछ के दौरान ही उस ने बाथरूम जाने की बात कही, जहां पुलिसकर्मी उसे ले कर गए और वहां उस ने आत्महत्या कर ली.

पुलिस का यह दावा है कि अल्ताफ ने अपनी जैकेट की डोरी से जमीन से 2 फुट की ऊंचाई पर लगी टोंटी से फांसी लगा कर आत्महत्या की. पोस्टमार्टम जांच में भी अल्ताफ के फांसी लगने को मौत की वजह बताया गया है पर पुलिस की टोंटी वाली थ्योरी नासम?ा से नासम?ा लोगों को भी हजम नहीं हो रही. वजह है लौकअप के टौयलेट की वह तसवीर जिस में साफ दिख रहा है कि जिस नल के पाइप से डोरी बांध कर अल्ताफ के आत्महत्या करने का दावा किया गया, वह जमीन से केवल 2 फुट की ऊंचाई पर है. जबकि अल्ताफ की लंबाई साढ़े 5 फुट बताई गई है. सवाल उठता है कि साढ़े 5 फुट का व्यक्ति 2 फुट ऊंचे नल से लटक कर कैसे फांसी लगा सकता है?

खैर, अल्ताफ के पिता चांद मियां ने पुलिस पर हत्या का आरोप लगाया था पर बाद में एक वीडियो में उन्होंने कहा कि वह उस समय गुस्से में थे और उन्होंने जो कहा उस का मतलब यह नहीं था. उन्होंने कहा, ‘‘मैं ने डाक्टरों, पुलिस से बात की और पता चला कि अल्ताफ की मौत आत्महत्या से हुई है. पुलिस उसे अस्पताल भी ले गई थी. मैं पुलिस की कार्रवाई से संतुष्ट हूं.’’ चांद मियां मजदूरी का काम करते हैं और घर का पेट पालते हैं.

वहीं, अल्ताफ के चाचा शाकिर अली ने कहा कि केस लड़ने के लिए उन के पास संसाधन नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘‘हम गरीब लोग हैं और बस जीवित रहना चाहते हैं. हम मांग करने की स्थिति में नहीं हैं. जब हम उस से मिले थे तो वह जीवित और बिलकुल ठीक था. हमें नहीं पता कि बाद में क्या हुआ.’’ खैर, वजह जो भी रही हो, तथ्य यह है कि एक युवक को पुलिस ने आरोपी बना पुलिस थाने में रखा जहां कुछ समय के भीतर ही उस की मौत हो गई.

कस्टोडियल डैथ के हालिया मामले

‘‘पुलिस अत्याचार या हिरासत में मौत के मामलों में, शायद ही कभी पुलिसकर्मियों की संलिप्तता का सीधा दिख सकने योग्य सुबूत उपलब्ध होगा. आमतौर पर केवल पुलिस अधिकारी ही होगा जो उस परिस्थिति को समझ सकता है जिस में किसी व्यक्ति की अपनी हिरासत में मौत हुई है. भाईचारे के बंधनों से बंधे होने के नाते यह अज्ञात नहीं है कि पुलिसकर्मी चुप रहना पसंद करते हैं और अकसर अपने सहयोगियों को बचाने के लिए सचाई से हट जाते हैं.’’

जाहिर है, यह बात उस संदेह में कही गई जब थानों में कस्टडी में लाए आरोपियों की मौत के जिम्मेदार खुद पुलिसकर्मी होते हैं और वे फर्जी तरीके से थ्योरियां गढ़ कर मामले को रफादफा करने में लगे रहते हैं, जिस में उन का साथ उन्हीं के डिपार्टमैंट के अन्य सहयोगी पुलिसकर्मी देते हैं.

कुछ समय पहले आगरा के जगदीशपुरा थाने में चोरी की बात सामने आई थी. जगदीशपुरा थाना पुलिस ने चोरी के शक के आधार पर एक सफाईकर्मी अरुण वाल्मीकि को घर से उठा लिया. हिरासत में लिए गए तमाम लोगों के साथसाथ पुलिस अरुण से पूछताछ कर रही थी. आरोप है कि इसी दौरान पुलिसकर्मियों ने अरुण को बुरी तरह से पीटा और यातनाएं दीं, जिस से उस की हालत बिगड़ने लगी. अगले दिन जब अरुण को होश नहीं आया तो उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसे डाक्टरों ने मृत घोषित किया.

ऐसा ही एक मामला पिछले साल तमिलनाडु के थूथूकुडी से सामने आया, जहां एक पितापुत्र की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई. मामला पिछले साल 19-20 जून का था. पी जयराज और उस के बेटे जे बेनिक्स की दुकान देर तक खोले रखने के चलते बहस हो गई. बहस के बाद पुलिस उन्हें पकड़ कर थाने ले गई. हिरासत में रखने के 2 दिनों बाद दोनों की मृत्यु हो गई. दोनों के कपड़े खून से रंगे हुए थे. पुलिस पर आरोप लगा कि कस्टडी में उन्होंने दोनों के साथ बर्बरता दिखाई, जिस से दोनों की मृत्यु हुई.

हैरान करते आंकड़े

गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 3 अगस्त को लोकसभा को बताया कि पिछले 3 वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों में पुलिस हिरासत में 348 लोगों की मौत हुई. वहीं, 5221 लोगों की मौत न्यायिक हिरासत के दौरान हुई. पुलिस कस्टडी के दौरान हिरासत में लिए 1,189 लोगों को प्रताडि़त किया गया.

इन आंकड़ों के मुताबिक हिरासत में होने वाली मौतों के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में सब से ऊपर है. 2018 से ले कर 2021 के दौरान यूपी में 1,318 लोगों की हिरासत में मौत हुई है, जो पूरे देश का करीब 24 फीसदी है. इन में से 23 लोगों की जान पुलिस हिरासत में गई, जबकि 1,295 लोगों की मौत न्यायिक हिरासत में हुई है.

नित्यानंद राय कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम के एक सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या भारत में हिरासत में होने वाली मौतों और यातनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मिली जानकारी का हवाला देते हुए मंत्री ने कहा कि 2018 में पुलिस हिरासत में 136 लोग मारे गए, 2019 में 112 और 2020 में 100 लोग मारे गए. इस बीच, 2018 में 542 लोगों को पुलिस हिरासत में, 2019 में 411 और 2020 में 236 लोगों को प्रताडि़त किया गया.

वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, 10 वर्षों में पुलिस हिरासत में 1,004 में से अधिकांश 69 फीसदी की मौतें बीमारी व प्राकृतिक कारणों से और 29 फीसदी की मौतें आत्महत्या के चलते हुईं. इस रिपोर्ट में सुसाइड से मौतें होने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है. 2015-19 के बीच 36 प्रतिशत आत्महत्या का आंकड़ा रहा.

कुछ मामलों में परिजनों ने कथित तौर पर आरोप लगाया है कि इन आत्महत्याओं में हिरासत में प्रताड़ना के भाव अधिक थे. साल 2019 में पुलिस हिरासत में हुई 85 मौतों में से केवल2.4 फीसदी को उस वर्ष की रिपोर्ट में पुलिस को उस के द्वारा की गई प्रताड़ना के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था. हालांकि, एनजीओ प्लेटफौर्म नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टौर्चर द्वारा उसी वर्ष के दौरान पुलिस हिरासत में हुई 124 मौतों में से 76 फीसदी को यातना या फाउल प्ले के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था.

एनएचआरसी के दिशानिर्देशों के मुताबिक, पुलिस या न्यायिक हिरासत में होने वाली मौतों की सूचना 24 घंटे के भीतर आयोग को देनी होती है. अगर आयोग अपनी जांच में किसी सरकारी कर्मचारी की लापरवाही पाता है तो उस के खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्य या केंद्र सरकार से सिफारिश करता है.

जय भीममें छाप

हाल ही में मलयाली भाषाई फिल्म ‘जय भीम’ आई थी. यह फिल्म असल घटना पर आधारित है. इस फिल्म में टौर्चर और कस्टडी में मौत के बिंदु को सटीक तरह से उठाया गया. फिल्म में पुलिस की भूमिकाओं और उन के काम करने के तौरतरीकों को फिल्म के केंद्र में रखा गया था. इस फिल्म में पुलिस के असल के करीब चरित्र को दिखाया गया था.

फिल्म में पुलिसिया टौर्चर और समाज में फैले जातिवाद के प्रश्न को बखूभी उठाया गया था. फिल्म का निर्देशन किया था टी जे ज्ञानवेल ने और फिल्म पर सारा बजट लगाया था खुद अभिनेता सूर्या ने. यह बताना इसलिए भी जरूरी है कि इस तरह की संवेदनशील फिल्मों को बनाना आज के समय में बड़ा जोखिमभरा हो गया है. इस से न सिर्फ लगाए पैसे डूबते हैं बल्कि समाज में राजनीतिक दबावों और असामाजिक तत्त्वों द्वारा विरोधों को भी ?ोलना पड़ता है.

यह फिल्म एससी-एसटी और पिछड़ों पर होने वाले अत्याचार व थानों में आरोपियों के साथ पुलिस के बर्बर चरित्र को दिखाती है कि कैसे पगपग पर पुलिस वाले ताकतवर लोगों के लिए काम करते हैं, कैसे दलितों और गरीबों को सच उगलवाने के नाम पर तो कभी ?ाठ गढ़ने के नाम पर टौर्चर किया जाता है, ?ाठे मुकदमों में फंसाया जाता है, कानून को धता बता पुलिस द्वारा हिरासत में लिए आरोपियों के साथ अमानवीय यातनाओं को अंजाम दिया जाता है, खासकर तब जब आरोपी निचली जाति या निचले तबके से संबंध रखता हो.

पुलिस प्रवृत्ति और कस्टडी बनती नरक

भारत ने मानवाधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र के अन्य संकल्प पत्रों की तरह कैदियों के भी अधिकारों का खयाल रखने व उन्हें यातना न देने के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया हुआ है पर पुलिस को अनियमित ताकत देने की हनक ने एक तरह का डंडातंत्र लोगों के ऊपर खड़ा कर दिया है कि लोग खुद को पुलिस से सुरक्षित कम, डरेडरे ज्यादा महसूस करने लगे हैं.

आमतौर पर लोगों के मन में पुलिस के प्रति सकारात्मक भावना है ही नहीं. ठुल्ला, मामा, घूसखोर जैसे शब्दों का इस्तेमाल इन के लिए होते रहे हैं. धारणा बनी है कि ‘पुलिस से न दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी अच्छी,’ यह सिर्फ इसलिए क्योंकि पुलिस के चरित्र में विक्टिम और आरोपी, सब के लिए प्रताड़ना की प्रवृत्ति विकसित हो चुकी है. आज स्थिति यह है कि घर में चोरी होने, लड़की के साथ छेड़खानी होने, ?ागड़ाफसाद होने की स्थिति में लोग पुलिस के पास जाने में हिचकते हैं क्योंकि अपराधी पकड़े जाएं या न पकड़े जाएं पर पीडि़त जरूर यहांवहां चक्कर काट कर घंटों उत्पीडि़त महसूस करता है.

राजधानी दिल्ली के थानों तक में पुलिसकर्मी पीडि़त से ठीक से तो क्या, सीधे मुंह बात नहीं करते. थानों में अक्खड़ भाषा और तूतड़ाक बोली में पीडि़त को उलटा हड़काया जाता है. पीडि़त के कपड़े और हुलिया देख कर बात की जाती है. अधिकतर मामलों को दबाने या आगे न ले जाने की बात पर जोर दिया जाता है. छेड़खानी जैसे मामलों में पीडि़त लड़की थाने तक जाने की हिमाकत कर दे तो उसे कोर्ट, इज्जत, टाइम बरबादी जैसे बहाने दे कर मामला रफादफा करवाया जाता है.

जाहिर सी बात है, यह सब एक पीडि़त के साथ होता है तो छोटे से छोटे मामलों में हिरासत में लिए आरोपी के साथ एक प्रकार से मारपीट करने, डंडा बजाने का खुला न्योता सम?ा जाता है. उस के अधिकार बाद में आते हैं पहले स्वादानुसार सारी डिग्रियां ट्राई कर ली जाती हैं. सवालजवाब करने के तौरतरीके सिर्फ और सिर्फ डराधमका कर डंडों के आधार पर होते हैं. पुलिस के पास उस प्रकार की इंटैलिजैंस की कमी रहती है कि वह अपने सवाल और सामने वाले के जवाबों के आधार पर आरोपी से जानकारियां उगलवा सके.

किंतु जहां ऐसे मौकों पर पुलिस को कुछ दायरों में सीमित करने की जरूरत है वहां देश की सत्ता में बैठे नेता खुद को सत्ता में बनाए रखने व अपने खिलाफ विरोधों को रोकने के लिए इन्हें ऐक्सैस पावर देने के हिमायती बने रहते हैं और इन का भरपूर उपयोग करते हैं. यहीं से ही पुलिस के भीतर अनियंत्रित प्रवृत्ति जन्म लेती है जो यातनागृहों में तबदील हो जाती है.

एक साथी की तलाश: क्या श्यामला अपने पति मधुप के पास लौट पाई?

एक साथी की तलाश: भाग 2- क्या श्यामला अपने पति मधुप के पास लौट पाई?

श्यामला उन में एक साथी को खोजती, जो उसे मिल ही नहीं पाता. उस के व्यक्तित्व की सारी संवेदनाएं जैसे मन मसोस कर रह जातीं. वह अकेलेपन की शिकार हो रही थी, अवसाद से घिर रही थी. और अपने अड़ियल स्वभाव की वजह से वे नहीं समझ पाए या उन्होंने समझना ही नहीं चाहा.

‘‘साब खाना,’’ बिरूवा प्लेट लिए खड़ा था. उस के हाथ से प्लेट ले कर वे चुपचाप खाने लगे. पहले वे चुप रहते थे, पर अब बोलना भी चाहें तो किस के साथ.

बिरूवा भी अपनी थाली ले कर वहीं जमीन पर बैठ गया, ‘‘आप ने कुछ बताया नहीं साब, मेरे घर वाले अब मुझे गांव बुला रहे हैं,’’ बिरूवा ने दोबारा बात छेेड़ी.

‘‘अभी कुछ दिन रुको. अभी तो मुझे रिटायर हुए 2 ही दिन हुए हैं, फिर बताऊंगा,’’ कह कर वे चुप हो गए.

बिरूवा भी जानता था, उन के कुछ दिन की कोई सीमा नहीं थी.

मधुप सोच रहे थे. बिरूवा दूर रह कर भी अपने परिवार के दिल के कितने करीब है, क्योंकि उन्हें पता है कि वह यदि दूर है तो उन्हें सुख व खुशियां देने के लिए. लेकिन अपने परिवार के साथ रहने पर भी, सारी भौतिक सुखसुविधाएं देने पर भी वे उन के दिल के करीब नहीं रह पाए और अपने परिवार से दूर हो गए.

श्यामला गुनगुनाना चाहती थी, जीवन को भरपूर जीना चाहती थी, हिरनी जैसे कुलांचे मारना चाहती थी. मतलब, जीवन के हर रूप को आत्मसात करना चाहती थी. पर श्यामला की जीवंतता को नियंत्रित कर उन्हें लगता, उन्होंने उस पर शासन कर लिया. पर, वे सिर्फ श्यामला के शरीर पर ही तो शासन कर पाए थे, हृदय पर नहीं. हृदय से तो वे धीरेधीरे उस से दूर होने लगे थे. इतनी दूर कि उस दूरी को फिर वे चाह कर भी नहीं पाट पाए.

उस के जाने के बाद जाना था कि वैवाहिक जीवन के विघटन के कारण कभी बहुत बड़े नहीं होते. दोनों में से जब किसी एक का व्यक्तित्व अंदर ही अंदर दम तोड़ने लगता है, तो वैवाहिक जीवन का विघटन शुरू हो जाता है. किसी एक का हर वक्त नकारा जाना उस अधिकार सूत्र को तोड़ देता है, जो दोनों को एकदूसरे से बांधता है.

मधुप ने प्लेट नीचे रख दी, ‘‘अब नहीं खाया जा रहा बिरूवा, पेट सूप से भर गया.

क्या बताएं बिरूवा को कि पेट तो यादों से ही भर जाता है. वहीं यादें जो अकेले में डराती हैं और साथ में रुलाती हैं.

अचानक आंखों के सामने बदली छा गई. उन्होंने आंखों को हाथ से पोंछ लिया. अनायास ही आंखें गीली हो गई थीं. भरापूरा परिवार, 2 जुड़वा बेटे और पत्नी के होते हुए भी वे आज वैरागी की सी जिंदगी जी रहे थे. टीवी बंद कर वे बिस्तर पर लेट गए. नीरव रात में कहीं दूर से कुत्तों के भूंकने का स्वर स्पष्ट सुनाई देता है.

बेटे 12वीं कर के इंजीनियरिंग में निकल कर बाहर पढ़ने चले गए. इतने दिनों तक बच्चों की जिम्मेदारियों ने ही श्यामला को बांधा हुआ था, लेकिन बच्चों के जाने के बाद वह अवसाद की शिकार हो गई.

मधुप सबकुछ जानतेबूझते भी उस का साथ देने के बजाय उपदेश देने लग जाते उसे. उपदेश देने में उन की जबान जरूर हिल जाती.

श्यामला का मन करता कोई साथी हो, जिस से अपने दिल की बातें बांट सके. बच्चों के साथ की व्यस्तता अब खत्म हो गई थी. जो थोड़ाबहुत वार्तालाप उन की वजह से होता था, अब समाप्त हो गया था.

‘‘क्या करूं सारा दिन…? कितना पढूं, कितना टीवी देखूं, अकेले मन नहीं लगता,’’ श्यामला एक दिन रोने लगी.

‘‘तुम्हारा मन लगाने के लिए मैं क्या करूं, नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाऊं’’, उस के रोने से मधुप चिढ़ गए.

‘‘ये मैं ने कब कहा, आप कहें तो घर से बुटीक का काम शुरू कर दूं. व्यस्त भी रहूंगी और थोड़ेबहुत पैसे भी मिल जाएंगे.’’

‘‘बस अब यही करने को रह गया, घर को दुकान बना दो, कोई जरूरत नहीं,’’ मधुप फिर अभेद हो गए.

मधुप की चुप्पी से परेशान हो कर श्यामला की नाराजगी थोड़े दिन में अपनेआप ही दूर हो जाती थी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया. नाराज हो कर उस ने दूसरे कमरे में सोना शुरू कर दिया. उन्होंने कोई तवज्जुह नहीं दिया.

वैसे भी पत्नी को मनाना उन के लिए सब से निकृष्ट कार्य था. पत्नी को क्यों मनाया जाए, जैसे खुद रूठी है वैसे ही खुद मान भी जाएगी. उन्होंने तो कभी बच्चों को भी डांट कर प्यार नहीं किया. पता नहीं, कैसा अनोखा स्वभाव था उन का.

उन दोनों को अलगअलग सोते हुए एक हफ्ता गुजर गया. काश, तभी चेत जाते. श्यामला की नाराजगी कभी इतनी लंबी नहीं खिंची थी. एक दिन वे सुबह औफिस के लिए तैयार हो रहे थे कि श्यामला उन के सामने आ खड़ी हुई.

‘अब मुझ से यहां न रहा जाएगा, मैं जा रही हूं.’’

उन्होंने चौंक कर श्यामला की तरफ देखा, एक हफ्ते बाद सीधेसीधे श्यामला का चेहरा देखा था उन्होंने. एक हफ्ते में जैसे उस की उम्र सात साल बढ़ गर्ई थी. रोतेरोते आंखें लाल, और चारों तरफ काले स्याह घेेरे.

‘ये क्या कर रही हो तुम श्यामला, छोटी सी बात को तूल दे रही हो,’’ उस की ऐसी शक्ल देख कर वे थोड़े पसीज गए थे.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ वे धीेरे से उस के कंधों को पकड़ कर बोले.

‘‘क्या ठीक हो जाएगा?’’ उस ने हाथ झटक दिए थे, ‘‘मैं अब यहां नहीं रह सकती, घर में रखे सामान की तरह, आप की बंदिश किसी समय मेरी जान ले लेगी, मेरे तन के साथसाथ मेरे मनमस्तिष्क पर भी बंदिशें लगा दी हैं आप ने, मैं आप से अलग कहीं जाना तो दूर की बात है, आप से अलग सोच तक भी नहीं सकती, मुझ से नहीं हो पाएगा अब यह सब.’’

‘‘तो अब क्या करना चाहती हो,’’ वे व्यंग्य से बोले.

‘‘मैं यहां से जाना चाहती हूं आज ही. आप अपना घर संभालो. आप जब औफिस से आओगे, तो मैं नहीं मिलूंगी.’’

‘‘तुम्हें जो करना है करो. जब सोच ही लिया है तो मुझ से क्यों कह रही हो,’’ कह कर मधुप दनदनाते हुए औफिस चले गए.

वे हमेशा की तरह जानते थे कि श्यामला ऐसा कभी नहीं कर सकती. इतनी हिम्मत नहीं थी श्यामला के अंदर कि वह इतना बड़ा कदम उठा पाती.

लेकिन अपनी पत्नी को शायद वह पूरी तरह से नहीं जानते थे. उस दिन उन की सोच गलत साबित हुई. बिना स्पंदन व जीवतंता के रिश्ते आखिर कब तक टिकते. जब वे औफिस से लौटे तो श्यामला जा चुकी थी. घर में सिर्फ बिरूवा था.

‘‘श्यामला कहां है?’’ उन्होंने बिरूवा से पूछा.

‘‘मालकिन तो चली गईं साब, कह रही थीं, पूना जा रही हूं हमेशा के लिए.’’ यह सुन कर वे भौंचक्के से रह गए.

‘‘ऐसा क्या हुआ साब…? मालकिन क्यों चली गईं?’’

‘‘कुछ नहीं बिरूवा,’’ क्या समझाते उसे.

एक साथी की तलाश: भाग 1- क्या श्यामला अपने पति मधुप के पास लौट पाई?

शाम गहरा रही थी. सर्दी बढ़ रही थी. पर मधुप बाहर कुरसी पर बैठे शून्य में टकटकी लगाए न जाने क्या सोच रहे थे. सूरज डूबने को था. डूबते सूरज की रक्तिम रश्मियों की लालिमा में रंगे बादलों के छितरे हुए टुकड़े नीले आकाश में तैर रहे थे. उन की स्मृति में भी अच्छीबुरी यादों के टुकड़े कुछ इसी प्रकार तैर रहे थे.

2 दिन पहले ही वे रिटायर हुए थे. 35 सालों की आपाधापी व भागदौड़ के बाद का आराम या विराम… पता नहीं…

‘‘पर, अब… अब क्या…’’ विदाई समारोह के बाद घर आते हुए वे यही सोच रहे थे. जीवन की धारा अब रास्ता बदल कर जिस रास्ते पर बहने वाली थी, उस में वे अकेले कैसे तैरेंगे.

‘‘साब सर्दी बढ़ रही है… अंदर चलिए,’’ बिरूवा कह रहा था.

‘‘हूं…’’ अपनेआप में खोए मधुप चौंक गए.

‘‘हां… चलो,’’ कह कर वे उठ खड़े हुए.

‘‘इस वर्ष सर्दी बहुत हो रही है साब…’’ बिरूवा कुरसी उठा कर उन के साथ चलते हुए बोला, ‘‘ओस भी बहुत पड़ रही है. सुबह सब भीगाभीगा रहता है, जैसे रातभर बारिश हुई हो,’’ बिरूवा लगातार बोलता जा रहा था.

मधुप अंदर आ गए. बिरूवा उन के अकेलेपन का साथी था. अकेलेपन का श्राप उन्हें मिला था, पर भुगता बिरूवा ने भी था.

खाली घर में बिरूवा कई बार अकेला ही बातें करता रहता. उन की जरूरत से अधिक चुप रहने की आदत थी. उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर बड़बड़ाया हुआ वह स्वयं ही खिसिया कर चुप हो जाता.

पर, श्यामला खिसिया कर चुप न होती थी, बल्कि झल्ला जाती थी, ‘‘मैं क्या दीवारों से बातें कर रही हूं. हूं, हां भी नहीं बोल पाते. चेहरे पर कोई भाव ही नहीं रहते, किस से बातें करूं,’’ कह कर कभीकभी उस की आंखों में आंसू आ जाते.

मधुप की आवश्यकता से अधिक चुप रहने की आदत श्यामला के लिए इस कदर परेशानी का सबब बन गई थी कि वह दुखी हो जाती थी. उन की संवेदनहीनता, स्पंदनहीनता की ठंडक, बर्फ की तरह उस के संपूर्ण व्यक्तित्व को झुुलसा रही थी. नाराजगी में तो मधुप और भी अभेद हो जाते थे. मधुप ने कमरे में आ कर टीवी चला दिया. तभी बिरूवा गरम सूप ले कर आ गया, ‘‘साब सूप पी लीजिए.’’

बिरूवा के हाथ से ले कर वे सूप पीने लगे. बिरूवा भी वहीं जमीन पर बैठ गया. कुछ बोलने के लिए वह हिम्मत जुटा रहा था, फिर किसी तरह बोला, ‘‘साब घर वाले बहुत बुला रहे हैं. कहते हैं, अब घर में आराम करो, बहुत कर लिया कामधाम, दोनों बेटे कमाने लगे हैं. अब जरूरत ना है काम करने की…’’

मधुप कुछ बोल न पाए, छन्न से दिल के अंदर कुछ टूट कर बिखर गया. बिरूवा का भी कोई है, जो उसे बुला रहा है. 2 बेटे हैं जो उसे आराम देना चाहते हैं. उस के बुढ़ापे की और असशक्त होती उम्र की फिक्र है उन्हें… लेकिन सबकुछ होते हुए भी यह सुख उन के नसीब में नहीं है.

बिरूवा के बिना रहने की वे कल्पना भी नहीं कर पाते. अकेले में इस घर व दीवारों से भी उन्हें डर लगता है, जैसे कोनों से बहुत सारे साए निकल कर उन्हें निगल जाएंगे. उन्हें अपनी यादों से भी डर लगता है और अकेले में यादें बहुत सताती हैं.

‘‘सारा दिन आप व्यस्त रहते हैं, रात को भी देर से आते हैं, मैं सारा दिन अकेले घर में बोर हो जाती हूं,’’ श्यामला कहती थी.

‘‘तो और औरतें क्या करती हैं? और क्या करती थीं? बोर होना तो एक बहाना भर होता है काम से भागने का. घर में सौ काम होते हैं करने को.’’

‘‘पर, घर के काम में कितना मन लगाऊं. घर के काम तो मैं कर ही लेती हूं. आप कहो तो बच्चों के स्कूल में एप्लीकेशन दे दूं नौकरी के लिए, कुछ ही घंटों की तो बात होती है, दोपहर में बच्चों के साथ घर आ जाया करूंगी,’’ श्यामला ने अनुनय किया.

‘‘कोई जरूरत नहीं है. कोई कमी है तुम्हें?’’ अपना निर्णय सुना कर जो मधुप चुप हुए तो कुछ नहीं बोले. उन से कुछ बोलना या उन को मनाना टेढ़ी खीर था. हार कर श्यामला चुप हो गई. जबरदस्ती भी करे तो किस के साथ, और मनाए भी तो किस को…

‘‘नोवल्टी में अच्छी पिक्चर लगी है, चलिए न किसी दिन देख आएं. कहीं भी तो नहीं जाते हैं हम…’’

‘‘मुझे टाइम नहीं… और वैसे भी 3 घंटे हाल में मैं नहीं बैठ सकता.”

‘‘तो फिर आप कहें तो मैं किसी सहेली के साथ हो आऊं.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं भीड़ में जाने की, सीडी ला कर घर पर देख लो.’’

‘‘सीडी में हाल जैसा मजा कहां आता है.’’

लेकिन अपना निर्णय सुना कर चुप्पी साधने की उन की आदत थी. श्यामला थोड़ी देर बोलती रही, फिर चुप हो गई. तब नहीं सोच पाते थे मधुप कि पौधे को भी पल्लवित होने के लिए धूप, छांव, पानी व हवा सभी चीजों की जरूरत होती है. किसी एक चीज के न होने पर भी पौधा मर जाता है. दफिर श्यामला तो इनसान थी. उसे भी खुश रहने के लिए हर तरह के मानवीय भावों की जरूरत थी, वह उन का एक ही रूप देखती थी. आखिर कैसे खुश रह पाती वह.

‘‘थोड़े दिन पूना हो आऊं मां के पास. भैयाभाभी भी आए हैं आजकल. उन से भी मुलाकात हो जाएगी.’’

‘‘कैसे जाओगी इस समय?’’ मधुप आश्चर्य से कहते और पूछते, ‘‘किस के साथ जाओगी?’’

‘‘अरे, अकेले जाने में क्या हुआ… 2 बच्चों के साथ सभी जाते हैं.’’

‘‘जो जाते हैं, उन्हें जाने दो. पर, मैं तुम लोगों को अकेले नहीं भेज सकता.’’

फिर श्यामला लाख तर्क करती, मिन्नतें करती, पर मधुप के मुंह पर जैसे टेप लग जाता.

ऐसी अनेकों बातों से शायद श्यामला का अंतर्मन विरोध करता रहा होगा. पहली बार विरोध की चिनगारी कब सुलगी और अब भड़की, याद नहीं पड़ता मधुप को.

‘‘साब खाना लगा दूं,’’ बिरूवा कह रहा था.

‘‘भूख नहीं है बिरूवा, अभी तो सूप लिया है.’’

‘‘थोड़ा सा खा लीजिए साब, आप रात का खाना अकसर छोड़ने लगे हैं.”

‘‘ठीक है, थोड़ा सा यहीं ला दे,’’ मधुप बाथरूम से हाथ धो कर बैठ गए.

इस एकरस दिनचर्या से वे 2 दिन में ही घबरा गए थे, तो श्यामला कैसे बिताती पूरी जिंदगी. वे बिलकुल भी शौकीन तबीयत के नहीं थे. न उन्हें संगीत का शौक था, न किताबें पढ़ने का, न पिक्चरों का, न घूमने का. न बातें करने का.

श्यामला की जीवंतता, मधुप की निर्जीवता से अकसर घबरा जाती. कई बार चिढ़ कर वह कहती, ‘‘ठूंठ के साथ आखिर कैसे जिंदगी बिताई जा सकती है.’’

‘‘काश, तभी संभाल लिया होता सबकुछ.’’

श्यामला के जीवन में स्पंदन था, संवेदनाएं थीं, भावनाएं थीं और वे…? श्यामला कहती, ‘‘आप को सिर्फ अपनेआप से प्यार है, मैं और बच्चे तो आप के लिए जीवनयापन करने के यंत्र भर हैं.’’

दगाबाज : आयुषा के साथ क्या हुआ

सरन अपने बेटे विनय की दुलहन आयुषा का परिचय घर के बुजुर्गों और मेहमानों से करवा रही थीं. बरात को लौटे लगभग 2 घंटे बीत चुके थे. आयुषा सब के पैर छूती, बुजुर्ग उसे आशीर्वाद देते व आशीर्वाद स्वरूप कुछ भेंट देते. आयुषा भेंट लेती और आगे बढ़ जाती.

जीत का परिचय करवाते हुए सरन ने जब आयुषा से कहा, ‘‘ये मोहना के पति और तुम्हारे ननदोई हैं,’’ तो एकाएक उस की निगाह जीत पर उठ गई. जीत से निगाह मिलते ही उस के शरीर में झुरझुरी सी छूट गई. जीत उस का पहला प्यार था, लेकिन अब मोहना का पति. जिंदगी कभी उसे ऐसा खेल भी खिलाएगी, आयुषा सोचती ही रह गई. अंतर्द्वंद्व के भंवर में फंसी वह निश्चय नहीं कर पाई कि जीत के पैर छुए या नहीं? अपने मन के भावों को छिपाने का प्रयास करते हुए उस ने बड़े संकोच से उस के पैरों की तरफ अपने हाथ बढ़ाए.

जीत भी उसे अपने साले की पत्नी के रूप में देख कर हैरान था. वह भी नहीं चाहता था कि आयुषा उस के पैर छुए. आयुषा के हाथ अपने पैरों की ओर बढ़ते देख कर वह पीछे खिसक गया. खिसकते हुए उस ने आयुषा के समक्ष अपने हाथ जोड़ दिए. प्रत्युत्तर में आयुषा ने भी वही किया. दोनों के बीच उत्पन्न एक अनचाही स्थिति सहज ही टल गई.

जीत को देखते ही आयुषा के मन का चैन लुट गया था. जीवन में कुछ पल ऐसे भी होते हैं, जिन्हें भुलाने को जी चाहता है. वे पल यदि जीवित रहें तो ताजे घाव सा दर्द देते हैं. ठीक वही दर्द वह इस समय महसूस कर रही थी. सुहागशय्या पर अकेली बैठी वह अतीत में खो गई.

मामा की लड़की रंजना की शादी में पहली बार उस का साक्षात्कार जीत से हुआ था. मामा दिल्ली में रहते हैं. पेशे से वकील हैं. गली सीताराम में पुश्तैनी हवेली के मालिक हैं. तीनमंजिला हवेली की निचली मंजिल में बड़े हौल से सटे 4 कमरे हैं. मुख्य द्वार से सटे एक बड़े कमरे में उन का औफिस चलता है. बाकी कमरे खाली पड़े रहते हैं. बीच की मंजिल में 12 कमरे हैं, जिन में उन का 4 प्राणियों का परिवार रहता है. नानी, वे स्वयं, मामी और रंजना. बेटा प्रमोद भोपाल में सर्विस में है. ऊपरी मंजिल में 6 कमरे हैं, लेकिन सभी खाली हैं.

मैं अपनी मम्मी के साथ शादी अटैंड करने आई थी. पापा 2 दिन बाद आने वाले थे. मेहमानों को रिसीव करने के लिए मामा, मामी और उन के परिवार के कुछ सदस्य ड्योढ़ी पर खड़े थे. हवेली में घुसते हुए अचानक मेरे पैर लड़खड़ा गए थे. इस से पहले कि मैं गिरती, मामी के पास खड़े जीत ने मुझे संभाल लिया था. वह पहला क्षण था जब मेरी निगाहें जीत से टकराई थीं. प्रेम बरसात में उफनती नदियों की तरह पानी बड़े वेग से आता है, उस क्षण भी यही हुआ था. हम दोनों ने उस वेग का एहसास किया था.

उस के बाद शादी के दौरान ऐसा कोई क्षण नहीं आया जब हमारी नजरें एकदूसरे से हटी हों. जीत सा सुंदर और आकर्षक जवान मैं ने इस से पहले कभी नहीं देखा था. मैं मानूं या न मानूं पर सत्य कभी नहीं बदला जा सकता. कोई जब हमारी कल्पना से मिलनेजुलने लगता है, तो हम उसे चाहने लगते हैं. उस की समीपता पाने की कोशिश में लग जाते हैं. उस समय मेरा भी यही हाल था. मैं जीत की समीपता हर कीमत पर पा लेना चाहती थी.

मामा द्वारा रंजना की शादी हवेली से करने का फैसला हमारे लिए फायदेमंद सिद्ध हुआ था. इतनी विशाल हवेली में किसी को पुकार कर बुला लेना या ढूंढ़ पाना दूभर था. रंजना की सगाई वाले दिन सारी गहमागहमी निचली और पहली मंजिल तक ही सीमित थी. जीत ने सीढि़यां चढ़ते हुए जब मुझे आंख के इशारे से अपने पास बुलाया तो न जाने क्यों चाह कर भी मैं अपने कदमों को रोक नहीं पाई थी.

सम्मोहन में बंधी सब की नजरों से बचतीबचाती मैं भी सीढि़यों पर उस के पीछेपीछे चढ़ती चली गई थी. थोड़े समय में ही हम ऊपरी मंजिल की सीढि़यों पर थे. एकाएक उस ने मुझे अपनी बांहों में जकड़ कर अपने तपते होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया था. अपने शरीर पर उस के हाथों का दबाव बढ़ते देख कर मैं ने न चाहते हुए भी उस से कहा था, ‘छोड़ो मुझे, कोई ऊपर आ गया तो?’

पर वह कहां सुनने वाला था और मैं भी कहां उस के बंधन से मुक्त होना चाह रही थी. मैं ने अपनी बांहों का दबाव उस के शरीर पर बढ़ा दिया था. न जाने कितनी देर हम दोनों उसी स्थिति में आनंदित होते रहे थे. लौट कर सारी रात मुझे नींद नहीं आई थी. जीत की बांहों का बंधन और तपते होंठों का चुंबन मेरे मनमस्तिष्क से हटाए भी नहीं हटा था.

अगली रात ऊपरी मंजिल का एक कमरा हमारे शारीरिक संगम का गवाह बना था. जीत और मैं एकदूसरे में समाते चले गए थे. दो शरीरों की दूरियां कैसे कम होती जाती हैं, यह मैं ने उसी रात जाना था. कितने सुखमय क्षण थे वे मेरी जवानी के, सिर्फ मैं ही जान सकती हूं. उन क्षणों ने मेरी जिंदगी ही बदल डाली थी.

शादी के बाद हम बिछुड़े जरूर थे पर इंटरनैट हमारे मिलन का एक माध्यम बना रहा था. हम घंटों चैट करते थे. एकदूसरे की समीपता पाने को तरसते रहते थे. हम निश्चय कर चुके थे कि हम शीघ्र ही शादी के बंधन में बंध जाएंगे.

तभी एक दिन मैं ने पापा को मम्मी से कहते हुए सुना था, ‘आयुषा के लिए मैं ने एक सुयोग्य वर तलाश लिया है. लड़का सफल व्यवसायी है. पिता का अलग व्यापार है. लड़के के पिता का कहना है कि वे अपनी लड़की की शादी पहले करना चाहते हैं. उस की शादी होते ही वे बेटे की शादी कर देंगे. तब तक हमारी आयुषा भी एमए कर चुकी होगी.’

मम्मी तो पापा की बात सुन कर प्रसन्न हुई थीं, पर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई थी. उसी शाम जीत से चैट करते हुए मैं ने उसे साफ शब्दों में कहा था, ‘जीत या तो तुम यहां आ कर पापा से मेरा हाथ मांग लो या फिर मैं पापा को स्थिति स्पष्ट कर के उन्हें तुम्हारे डैडी से मिलने के लिए भेज देती हूं.’

जीत ने कहा था, ‘तुम चिंता मत करो. यह समस्या अब तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी है. मैं वादा करता हूं, तुम्हें मुझ से कोई नहीं छीन पाएगा. तुम सिर्फ मेरी हो. मुझे सिर्फ थोड़ा सा समय दो.’ उस ने मुझे आश्वस्त किया था.

उस के बाद जीत ने चैट करना कम कर दिया था. फिर धीरेधीरे मेरे और जीत के बीच दूरियों की खाई इतनी बढ़ती चली गई कि भरी नहीं जा सकी. जीत ने मुझ से अपना संपर्क ही तोड़ लिया. बरबस मुझे पापा की इच्छा के समक्ष झुकना पड़ा था.

सुहागकक्ष का दरवाजा बंद होने की आवाज के साथ मेरी तंद्रा टूट गई. विनय सुहागशय्या पर आ कर बैठ गए, ‘‘परेशान हो,’’ उन्होंने प्रश्न किया.

अपने मन के भावों को छिपाते हुए मैं ने सहज होने की कोशिश की, ‘‘नहीं तो,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘आयुष,’’ मुझे अपनी बांहों में भरते हुए विनय बोले, ‘‘मैं इस पल को समझता हूं. तुम्हें घर वालों की याद आ रही होगी, पर एक बात मेरी भी सच मानो कि मैं तुम्हारी जिंदगी में इतनी खुशियां भर दूंगा कि बीती जिंदगी की हर याद मिट जाएगी.’’

मेरे मन के कोने में हमसफर की एक छवि अंकित थी. विनय का व्यक्तित्व ठीक उस छवि से मिलता था. इसलिए मैं विनय को पा कर धन्य हो गई थी. ऐसे में हर पल मेरा मन यह कहने लगा था कि विनय जैसे सीधेसच्चे इंसान से कुछ भी छिपाना ठीक नहीं होगा. संभव है भविष्य में मेरे और जीत के रिश्तों का पता चलने पर विनय इन्हें किस प्रकार लें? तब पता नहीं हमारी विवाहित जिंदगी का क्या हश्र हो? मैं उस समय कोई भी कुठाराघात नहीं सह पाऊंगी. मुझे आत्मीयों की प्रताड़ना अधिक कष्टकर प्रतीत होती है, पर जबजब मैं ने विनय को सत्य बताने का साहस किया. मेरा अपना मन मुझे ही दगा दे गया. बात जबान पर नहीं आई. दिन बीतते गए. यहां तक कि हम महीने भर का हनीमून ट्रिप कर के यूरोप से लौट भी आए.

हनीमून के दौरान विनय ने मेरी उदासी को कई बार नोटिस किया था. उदासी का कारण भी जानना चाहा, पर मैं द्वंद्व में फंसी विनय को कुछ भी नहीं बता पाई. उसे अपने प्यार में उलझा कर मैं ने हर बार बातों का रुख ही बदल दिया था.

हनीमून से लौटते ही विनय 2 महीने के बिजनैस टूर पर फ्रांस और जरमनी चले गए. सासूमां ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया पर वे नहीं रुके. जीत और मोहना को उन्होंने जरूर रोक लिया.

उन्होंने जीत से कहा, ‘‘मोहना को तो मैं अभी महीनेदोमहीने और आप के पास नहीं भेजूंगी. आयुषा घर में नई है. उस का मन बहलाने के लिए कोई तो उस का हमउम्र चाहिए. वैसे आप भी यहीं से अपना बिजनैस संभाल सकें, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी. कम से कम आयुषा को 2 हमउम्र साथी तो मिल जाएंगे.’’

जीत थोड़ी नानुकर के बाद रुक गया. मैं समझ चुकी थी कि उस के रुकने का आशय क्या है? वह मुझे फिर से पाने का प्रयास करना चाहता है. मैं तभी से सतर्क हो गई थी. उस ने पहले कुछ दिन तो मुझ से दूरियां बनाए रखीं. फिर एक दिन जब सासूमां मोहना के साथ उस के लिए कपड़े और आभूषण खरीदने बाजार गईं तो जीत मेरे कमरे में चला आया. वह अतिप्रसन्न था. ठीक उस शिकारी की तरह जिस के हाथों एक बड़ा सा शिकार आ गया हो.

मेरे समीप आते हुए उस ने कहा, ‘‘हाय, आयुषा. व्हाट ए सरप्राइज? वी आर बैक अगेन. अब हम फिर से एक हो सकते हैं. कम औन बेबी,’’ जीत ने कहते हुए अपने हाथ मुझे बांहों में भरने के लिए बढ़ा दिए.

मेरे सामने अब मेरा संसार था. प्यारा सा पति था. उस का परिवार था. जीत के शब्द मुझे पीड़ा देने लगे. उस के दुस्साहस पर मुझे क्रोध आने लगा. न जाने उस ने मुझे क्या समझ लिया था? अपनी बपौती या बिकाऊ स्त्री? मैं उस पर चिंघाड़ पड़ी, ‘‘जीत, यहां से चले जाओ वरना,’’ गुस्से में मेरे शब्द ही टूट गए.

‘‘वरना क्या?’’

‘‘मैं तुम्हारी करतूत का भंडाफोड़ कर दूंगी.’’

‘‘उस से मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन तुम कहीं की नहीं रहोगी. आयुषा, तुम्हारा भला अब सिर्फ इसी में है कि मैं जैसा कहूं तुम करती जाओ.’’

‘‘यह कभी नहीं होगा,’’ क्रोध में मैं ने मेज पर रखा हुआ वास उठा लिया.

मेरे क्रोध की पराकाष्ठा का अंदाजा लगाते हुए उस ने मेरे समक्ष कुछ फोटो पटक दिए और बोला, ‘‘ये मेरे और तुम्हारे कुछ फोटो हैं, जो तुम्हारे विवाहित जीवन को नष्ट करने के लिए काफी हैं. यदि अपना विवाह बचाना चाहती हो तो कल शाम 7 बजे होटल सनराइज में चली आना. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ जीत तेजी से मुझ पर एक विजयी मुसकान उछालते हुए कमरे से बाहर निकल गया.

अब मेरा क्रोध पस्त हो गया था. उस के जाते ही मैं फूटफूट कर रो पड़ी. मुझे अपना विवाहित जीवन तारतार होता हुआ लगा. जीत ने मेरी सारी खुशियां छीन ली थीं. बेशुमार आंसू दे डाले थे. मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं? कैसे जीत से छुटकारा पाऊं? मेरी एक जरा सी नादानी ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था, पर मैं ने यह निश्चय अवश्य कर लिया था कि यह मेरी लड़ाई है, मुझे ही लड़नी है. मैं किसी और को बीच में नहीं लाऊंगी. कैसे लड़ूंगी? यही सोचसोच कर सारी रात मेरी आंखों से अविरल अश्रुधारा बहती रही थी.

सवेरे उठी तो लग रहा था कि तनाव से दिमाग किसी भी समय फट जाएगा. विपरीत परिस्थितियों में कई बार इंसान विचलित हो जाता है और घबरा कर कुछ उलटासीधा कर बैठता है. मुझे यही डर था कि मैं कहीं कुछ गलत न कर बैठूं. दिन यों ही गुजर गया. शाम के 5 बजते ही जीत घर से निकल गया. जाते हुए मुझे देख कर मुसकरा रहा था. अब तक मैं भी यह निश्चय कर चुकी थी कि आज जीत से मेरी आरपार की लड़ाई होगी. अंजाम चाहे जो भी हो.

मैं जब होटल पहुंची तो जीत बड़ी बेताबी से मेरे आने का इंतजार कर रहा था. मुझे देखते ही वह बड़ी अक्कड़ से बोला, ‘‘हाय डियर, आखिर जीता मैं ही, अगर सीधी तरह मेरी बात मान लेती तो मैं तुम्हें परेशान क्यों करता?’’

‘‘जीत,’’ मैं ने उस की बात अनसुनी करते हुए कहा, ‘‘मैं बड़ी मुश्किल से अपनों की इज्जत दांव पर लगा कर तुम्हारी इच्छा पूरी करने आई हूं. मेरे पास ज्यादा समय नहीं है. आओ और जैसे चाहो मेरे शरीर को नोच डालो. मैं उफ तक नहीं करूंगी,’’ कहते हुए मैं ने अपनी साड़ीब्लाउज उतारना शुरू कर दिया, उस के बाद पेटीकोट भी.

अचानक मेरे इस व्यवहार को देख कर जीत चकित रह गया. उस ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. विचारों के बवंडर ने संभवत: उसे विवेकशून्य कर दिया. आयुषा से क्या कहे, कुछ नहीं सूझा. घबराते हुए उस ने मुझ से पूछा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ में क्या है?’’

‘‘जहर की शीशी,’’ मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम्हें तृप्त कर के इसे पी लूंगी. सारा किस्सा एक बार में खत्म हो जाएगा.’’

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘चाहो तो तुम भी इसे पी सकते हो. हमारा प्यार भी अमर हो जाएगा और हम भी.’’

तभी मैं ने देखा उसे अपनी आशाओं पर पानी फिरता हुआ नजर आया था. उस के चेहरे से पसीना चूने लगा था. फिर उस के पैर मुझ से कुछ दूर हुए और दूर होतेहोते कमरे से बाहर हो गए.

सवेरे जब नींद टूटी तो मैं ने देखा कि जीत कहीं बाहर जा रहा था.

सासूमां और मोहना उस के पास दरवाजे पर खड़ी थीं. मुझ पर नजर पड़ते ही मोहना ने मुझे बताया कि आज जीत की एक जरूरी मीटिंग है, उसे 10 बजे की फ्लाइट पकड़नी है. सच क्या था. वह केवल जीत जानता था या मैं. जीत ने जाते समय मुझे देखा तक नहीं, पर मैं उसे जाते हुए देख कर मंदमंद मुसकरा रही थी. मैं अब विनय के प्रति पूरी तरह समर्पित थी.

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