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घर वापसी

कोरोना वायरस के दौरान लागू लौकडाउन में पिछले कई दिनों से गोपाल परिवार के साथ अपने घर पर ही था. देश के सब से स्वच्छ शहर इंदौर में मध्य प्रदेश के अन्य शहरों की तुलना में कोरोना के अधिक मामले उसे रहरह कर परेशान कर रहे थे. इंदौर के कुछ हिस्सों में लोगों का प्रशासन के साथ असहयोग भी उसे चिंता में डाल रहा था. लौकडाउन का उल्लंघन भी उसे परेशान कर रहा था. लेकिन वह कर भी क्या सकता था. वह इस महामारी में लौकडाउन का पालन करते हुए घर में बंद था. उस का परिवार भी उस के साथ लौकडाउन का पालन सख्ती से कर रहा था.

गोपाल के परिवार में वृद्ध माता, पत्नी रेखा और 2 बच्चों का अच्छाभला परिवार है. गोपाल खुद एक टीवी मैकेनिक है. अच्छाभला काम है. लेकिन इन दिनों घर पर रह कर एवं लौकडाउन का पालन कर इस महामारी में डाक्‍टरों के निर्देशानुसार अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा कर रहा था. उसे मालूम था कि इस बीमारी से बचने का एकमात्र रास्ता घर पर रहना ही है.

आज फुरसत के पलों में गोपाल पता नहीं क्यों अतीत की यादों में खो रहा था. उसे आज भी वे दिन याद आ रहे थे जब उस की और उस की पत्नी के बीच झगड़ा हुआ था और बात न्यायालय तक चली गई थी. आज उसे और उस की पत्नी को देख कर कोई इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकता है. उस के जेहन में अपने उन वकील साहब की याद आ रही थी जो एक दशक पहले उस के तलाक के केस में उस के वकील थे, जिन्होंने उस का परिवार बचाया था. वकील साहब भी उन दिनों उन की तरह ही युवा थे और नईनई वकालत की शुरुआत की थी. आज तो वे शहर के नामीगिरामी वरिष्ठ वकील हैं. उन का नाम भी काफी है. आएदिन समाचारपत्रों में उन का नाम प्रकरणों के संदर्भ में आता रहता है .

यह बात उन दिनों की है जब उस के और उस की पत्नी रेखा के बीच छोटीछोटी बातों ने विकराल रूप ले लिया था. वह नाराज हो कर अपने मायके अपने मातापिता के पास उन के गांव हातौद चली गई थी. इसी नाराजगी में उस ने न्यायालय में तलाक हेतु एक प्रकरण पेश किया. इस के साथ ही उस ने अपने भरणपोषण के लिए दूसरा प्रकरण भी पेश किया. इन प्रकरणों के नोटिस न्यायालय से मिलने पर वह इन वकील साहब से मिला था. वकील साहब ने अपना नयानया औफिस उस के ही मोहल्ले में डाला था.

न्यायालय का नोटिस मिलने पर गोपाल इन्हीं वकील साहब के पास गया. बातचीत में वकील साहब भले और अच्छे लगे. फीस तय कर गोपाल ने कागजात पर अपने हस्ताक्षर कर उन्हें अपने दोनों प्रकरण सौंप दिए. उस ने वकील साहब से पूछा कि उस की पत्नी ने यह प्रकरण किस आधार पर पेश किए हैं?

वकील साहब ने बताया,”हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत आप की पत्नी ने तलाक का यह प्रकरण पेश किया है. इस में वे आधार दिए गए हैं, जिन के आधार पर तलाक लिया जा सकता है. इन में से एक आधार है क्रूरता. तुम्हारी पत्नी ने इसी आधार पर प्रकरण पेश किया है. उन्होंने आप के खिलाफ मारपीट, गालीगलौच एवं उस के मातापिता के अपमान का आरोप लगाया है.

“दूसरा प्रकरण भारतीय दंड प्रक्रिया के अंतर्गत भरणपोषण की सहायता चाही है. आप की पत्नी का कहना है कि वह कमाती नहीं है, इस कारण उसे भरणपोषण हेतु आप से प्रतिमाह एक राशि चाहिए. यह प्रावधान उसे यह अधिकार देता है.”

नियत तारीख पर वकील साहब ने कागजातों को पेश किया. अब प्रकरण चलना चालू हुए तो चलते रहे. तारीख पर तारीख लगती रही. वह और उस की पत्नी रेखा न्यायालय में आते रहे. उस की पत्नी के साथ उन के ससुर और सास भी रेखा को हिम्मत बंधाने आते थे. उस के ससुर रामप्रसाद और सास गोमतीबाई पास के गांव हातौद में रहते थे. रामप्रसाद एक दरजी थे तथा गांव में उन की दुकान थी. दोनों ही उसे गुस्से से देखते रहते थे .

वकील साहब के पूछने पर गोपाल ने बताया,“मैं ने कभी रेखा के साथ मारपीट नहीं की है. मेरी शिकायत तो उस के मातापिता द्वारा हमारी जिंदगी में किए जाने वाले हस्तक्षेप थे. वे हमारी रोज की जिंदगी में हस्तक्षेप करते थे. यही झगड़े का मूल कारण था.”

वकील साहब ने इस पर उसे समझाया, “प्रकरण पेश करने के लिए आधार बनाने होते हैं. शायद इसलिए यह लिखा गया हो. हो सकता है कि इस में झूठ भी हो. हम अपना पक्ष न्यायालय में प्रस्तुत करेंगे.”

गोपाल की शादी रेखा के साथ हातौद जैसे छोटे गांव में धूमधाम से हुई थी. तब गोपाल के पिताजी भी जीवित थे. दोनों परिवारों में उस समय आपस में काफी स्नेह एवं आदर था. उस के पिताजी की मौत के बाद मामला बिगड़ने लगा. उस के ससुर तथा सास रेखा के प्रति अत्यंत ही संवेदनशील होने लगे. घरपरिवार में उन का हस्तक्षेप दिनप्रतिदिन बढ़ने लगा. आएदिन गोपाल के ससुर रामप्रसाद तथा सास गोमतीबाई उन के घर आने लगे. हर काम और बात पर रामप्रसाद उसे सलाह देने लगे. सास गोमतीबाई भी रेखा के कान भरने लगीं. गोपाल को अपनी और रेखा के जीवन में उन का हस्तक्षेप अखरने लगा. गोपाल की मां भी कभीकभी इस संबंध में उसे बताती थीं. इस को ले कर मां भी अकसर दुखी रहती थीं, लेकिन वे कभी भी हस्तक्षेप नहीं करती थीं.

दिनप्रतिदिन गोपाल की जिंदगी में हस्तक्षेप बढ़ता ही गया. इसे ले कर अब अकसर छोटेमोटे झगड़े होने लगे. रेखा की जब भी अपनी मां से फोन पर लंबीलंबी बातचीत होती थी तब तो निश्चित ही झगड़े होते ही थे. धीरेधीरे इन झगड़ों ने बड़ा रूप ले लिया. सास गोमतीबाई उस की पत्नी को हर मामले पर सलाह देने लगीं. घर पर खाने में क्या बनेगा से ले कर मां की देखभाल व उन पर किए गए खर्च को ले कर झगड़े होने लगे. इन्हीं झगड़ों ने विकराल रूप ले लिया.

एक दिन इस बात पर दोनों पतिपत्नी में झगड़ा हुआ कि आखिर वह मां के लिए इतनी महंगी साड़ी क्यों लाया? रेखा बोली, “मां बाहर जाती ही कहां हैं. इतनी महंगी साड़ी का वह करेंगी क्या?”

इस बात पर गोपाल क्रोधित हो गया. दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. इस झगड़े के बाद रेखा ने अपने पिता को फोन पर सारी बातें बताई. इस पर रेखा के मातापिता आए और गोपाल पर क्रोधित हो कर अपनी बेटी को अपने घर ले गए.

इस घटना के 1 साल होने के बाद रेखा ने न्यायालय में क्रूरता के आधार पर तलाक का तथा अपने भरणपोषण के मुकदमे न्यायालय में पेश किए. गोपाल ने भी अपने वकील के मारफत जवाब पेश किया. मगर जैसाकि हर मुकदमे में होता है, दोनों ही पक्षों ने कुछ सच तो कुछ झूठ का आधार लिया. दोनों ही ने एकदूसरे को आपसी संबंधों के बिगड़ाव का दोषी माना.

मुकदमे अपनी रफ्तार से चल रहे थे, तारीख पर तारीख. न्यायालय ने आपसी समझौते की कोशिश भी की लेकिन दोनों पक्ष राजी नहीं हुए. गोपाल को दहेज के झूठे मुकदमे में फंसाने की भी धमकी दे डाली. पतिपत्नी के विवादों में अकसर जो आरोप एकदूसरे के खिलाफ लगाए जाते हैं उन में से काफी झूठे भी होते हैं. यही इन मुकदमे में भी हो रहा था. धीरेधीरे दोनों ही पक्ष तारीखों के कारण परेशान होने लगे. कई बरस निकल गए. अब दोनों ही पक्षों को कोई रास्ता समझ में नहीं आ रहा था. दोनों ही पक्षों के मन में अब कहीं न कहीं अपने द्वारा किए गए गलत व्यवहार के प्रति मन में पछतावा भी था.

ऐसी ही एक नियत तारीख पर न्यायालय में गोपाल, रेखा तथा गोपाल के वकील उपस्थित थे. हमेशा की तरह उस के ससुर रामप्रसाद भी थे. जज साहब अपने चैंबर में कोई फैसला लिखवा रहे थे. अनायास ही गोपाल के वकील ने रेखा के पिता से कहा,“रामप्रसादजी रेखा को उस के पति के घर क्यों नहीं भेज रहे हो? दोनों ही युवा हैं. उन के सामने पूरी जिंदगी पड़ी है. उन का जीवन मुकदमेबाजी में बरबाद हो जाएगा. गोपाल से मैं ने बात की है. वह तो रेखा को आज भी ले जाना चाहता है.”

रामप्रसाद ने भी सकारात्मक जवाब दिया. कहा,“वकील साहब, कौन पिता अपनी बेटी को शादी के बाद घर बैठाना पसंद करेगा? बहुत तकलीफदेह होता है एक शादीशुदा बेटी को घर रखना. रोज रेखा की मां रोती है. मेरी तकलीफ का अंदाजा आप लगा सकते हो. अगर गोपाल मेरी बेटी को अपने घर ले जाए तथा अच्छी तरह रखे तो मुझे क्या एतराज हो सकता है,” यह कहते हुए रामप्रसाद की आंखें भर आईं.

इस पर वकील साहब ने गोपाल की तरफ मुड़ कर उस से पूछा, “हां, तो गोपाल क्या कहना है? तुम अपनी पत्नी को ले जाने के लिए तैयार हो?”

इस पर गोपाल ने कहा, “वकील साहब, हम पतिपत्नी के बीच तो पहले भी कोई समस्या नहीं थी. यदि मेरे सासससुर हमारी जिंदगी में हस्तक्षेप कम कर दें तो मैं आज और इसी क्षण रेखा को ले जाने के लिए तैयार हूं. यह वादा करने के लिए भी तैयार हूं कि उसे कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा.”

वकील साहब ने रेखा के पिता से कहा, “आप अपनी बेटी की जिंदगी में खुशियां चाहते हैं या नहीं?”

रामप्रसाद बोले, “रेखा तो हमारी जिंदगी है. इकलौती संतान होने के कारण हमें उस की चिंता रहती है. इसलिए रेखा की मां भी उसे फोन करती रहती हैं. हम इसी चिंता के कारण इंदौर अधिक आते हैं. कभी कुछ काम होता है तो कभी रेखा की चिंता.”

वकील साहब ने फिर समझाया, “यदि आप लोगों के हस्तक्षेप से पतिपत्नी के जीवन में अशांति हो रही है तो ऐसी चिंता किस काम की… यह उन का जीवन खाक कर देगी. आप यदि कुछ समय तक आना और फोन करना कम कर दें और आप की बेटी खुशी से अपने पति के साथ रहे तो आप को कोई एतराज तो नहीं है?”

रामप्रसाद ने भी बगैर कोई समय गवाएं कहा, “भला हमें एतराज क्यों होने लगा? हमें तो अपनी बेटी की खुशियों से मतलब है.”

इतने में ही जज साहब अपने चैंबर से बाहर आए. गोपाल के वकील साहब ने सारी बातें जज साहब को बताई. जज साहब भी खुश हुए. दोनों को समझाया भी. उन्होंने रामप्रसाद से कहा, “हम आप की चिंता को भी समझते हैं. हम रेखा के अपने ससुराल जाने के बाद भी कुछ समय तारीखे लगाएंगे. इन तारीखों पर गोपाल और रेखा न्यायालय में आप से मिल सकेंगे. रेखा भी आप को बता सकेगी कि उसे अपने ससुराल में कोई तकलीफ तो नहीं है. उस के साथ प्रेम और सम्मानपूर्वक व्यवहार हो रहा है अथवा नहीं. आप की एवं रेखा के संतुष्टि के बाद ही प्रकरण समाप्त करेंगे,” यह सुन कर रामप्रसाद, रेखा और गोमतीबाई और उन के वकील भी संतुष्ट हो गए.

रेखा न्यायालय से ही गोपाल के साथ अपने ससुराल जाने के लिए राजी हो गई. गोपाल ने भी अपने सासससुर को विश्‍वास दिलाया कि वह रेखा को पूरे सम्मान, आदर और सुखसुविधा से रखेगा. उसे अपने सासससुर के समयसमय पर फोन करने अथवा आने पर भी कोई एतराज नहीं था .

कुछ तारीखों के बाद जज साहब ने गोपाल, रेखा और रामप्रसाद से बातचीत के बाद प्रकरण समाप्त कर दिया. गोपाल की वृद्ध मां भी इस घटनाक्रम से बेहद प्रसन्न थीं. उन्होंने भी घर पर रेखा का स्वागत किया. रेखा भी घर वापसी से बेहद खुश थी.

आज गोपाल को मुकदमे समाप्त होने के बाद उसी दिन शाम को वकील साहब के कार्यालय में हुई मुलाकात भी याद आई. गोपाल अपने वकील साहब से मिलने उन के कार्यालय गया था. वकील साहब ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि मुकदमे समाप्त हो चुके हैं. उन्होंने गोपाल से रेखा के साथ अच्छी तरह रहने और झगड़ा न करने की तारीफ की.

इस के बाद वकील साहब ने अपनी बाकी फीस की याद दिलाई. इस पर गोपाल बोला, “वकील साहब, बाकी फीस कैसी? फीस तो पूरे मुकदमे की थी. आप ने पूरा मुकदमा तो लड़ा ही नहीं,” यह बात सुन कर वकील साहब के चेहरे पर एक छोटी सी मुसकान उभर आई.

वकील साहब भले थे. इसलिए उन्होने कहा,“फीस भले ही मत दो लेकिन अपनी पत्नी के साथ अच्छी तरह रहना. यदि भविष्य में आप दोनों के बीच कोई विवाद हुआ तो इस बकाया फीस के साथ नए मुकदमे की अग्रिम फीस लूंगा,”यह सुन कर गोपाल अनायास ही भावुक हो गया. वकील साहब की सलाह का साफ असर और परिवार के एक होने का संतोष दोनों उस के चेहरे पर साफसाफ देखा जा सकता था.

इतने में ही रेखा ने उसे आवाज दी. कहा, “आज खाना नहीं खाना है? आज आप कहां खोए हुए हो?”

इस पर गोपाल ने बड़े ही स्नेह से पत्नी का हाथ पकड़ कर मुसकरा कर बोला, “कहीं नहीं. ऐसे ही कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं.”

इस पर रेखा बोली,” पुरानी यादों को छोड़ो, मैं ने आज आप की पसंद की खीर बनाई है. गोपाल ने रेखा का हाथ छोड़े बगैर कहा,“हां, चलो खाना खाते हैं. खीर से तो खाने में और मजा आएगा.”

दोनों ही खाना खाने चल पड़े. बच्चे और मां पहले से ही वहां मौजूद थे.

हम्बल पोलीटीशियन नागराजः भारतीय लोकतंत्र, राजनीति व राजनेताओं पर व्यंगात्मक तमाचा

रेटिंगः चार स्टार

निर्माताः अप्लॉज इंटरटेनमेंट

निर्देशकः साद खान

लेखकः दानिश सैट व साद खान

कलाकार: दानिश सैट, प्रकाश बेलावाडी, विनय चेंदूर, गीताजंली कुलकर्णी, दिशा मदान व अन्य

अवधिः लगभग साढ़े पांच घंटे (लगभग आधे घंटे के दस एपीसोड)

ओटीटी प्लेटफार्मः वूट सेलेक्ट

दानिश सेट की भ्रष्ट राजनेता पर आधारित कन्नड़ भाषा की फिल्म ‘‘हम्बल पोलीटीशियन नागराज’’ ने 2018 में सफलता के झंडे गाड़े थे. अब उसी पर दानिश सैट,साद खान व समीर नायर एक दस एपीसोड की कन्नड़ भाषा में ही वेब सीरीज ‘‘ हम्बल पोलीटीशियन नागराज ’’ लेकर आए हैं, जो कि पांच जनवरी से अंग्रेजी सब टाइटल के साथ ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘वूट सेलेक्ट’’ पर स्ट्ीम हो रही है. यह वेब सीरीज वर्तमान समय की राजनीति व राजनेताओं पर हास्य व्यंग युक्त तमाचा है.

कहानीः

यह कर्नाटक राज्य पर आधारित काल्पनिक कहानी है.जहां विनम्र और आत्ममुग्ध राजनेता नागराज (डेनिश सैट) की अपनी ओबीपी पार्टी है. नागराज हमेशा बंदूक लेकर चलते हैं.बात बात में बंदूक से गोली भी चला देते हैं. उनकी राय में राजनेता देश से बढ़कर है. विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी के विधायक कम जीतते हैं..उधर केजीबी (प्रकाश बेलावडी) के नेतृत्व वाली सेक्युलर पार्टी भी बहुमत पाने से वंचित रह गयी है,उसे बहुमत के लिए तीन विधायक चाहिए. वर्चस्वशाली परिवार के नेतृत्व वाली पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं है.

 

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सेक्युलर पार्टी की राष्ट्ीय अध्यक्ष (गीतांजली कुलकर्णी) चाहती हैं कि उनकी पार्टी की सरकार बने और केजीबी मुख्यमंत्री बने. केंद्र में भी सेक्यूलर पार्टी की ही सरकार है.केजीबी मुख्यमंत्री बनने के लिए कुछ ज्यादा ही उतावले हैं. वह राज्य के राज्यपाल गोवर्धन के अलावा प्रधानमंत्री को फोन व संदेश भेजकर उन्हे हर हाल में मुख्यमंत्री बना देने के लिए कहते रहते हैं.राज्यपाल का कहना है कि बहुमत के लिए 114 विधायक चाहिए और केजीबी के पास 111 हैं.

उधर हर हाल में राज्य की सत्ता पर काबिज होने और मुख्यमंत्री बनने के लिए नागराज अजीबोगरीब और गंदे खेल खेलना शुरू कर देते हंै.नागराज पहले सेक्युलर पार्टी के साथ हाथ मिलाने का असफल प्रयास करते हैं.फिर उनकी नजर फैमिली रन पार्टी’ पर होती है. फैमिली रन पार्टी एक विरासत वाली पार्टी है, जिसके शीर्ष पर एक अनजान वंशज करण है,जो अपनी फिरंगी माँ की बात सुनते हैं.

इस पार्टी के कर्नाटक अध्यक्ष पुष्पेश, नोगराज के साथ नही जाना चाहते. मगर नागराज व करण की बात होने के बाद करण,पुष्पेश को आदेश देते हैं कि मां चाहती है कि नागराज से हाथ मिलाओ.अब नागराज ‘फैमिली रन पार्टी‘ के पुष्पेश व उनकी पार्टी के विधायकों को डराकर अपनी पार्टी के विधायकों के साथ एक रिसोर्ट में जाकर बंद कर देते है,सभी के मोबाइल भी छीन लेते है. मगर एक एमएलए मंजय एक वीडियो बनाकर अपनी पत्नी इंदूलेखा तक भेजने में सफल रहते है. वीडियो में रोते हुए मयंज कहता है कि उसका नागराज ने अपहरण कर लिया है. इधर एक विधायक के कम होने से नागराज खुश नही है और वह राज्यपाल से मिलने भी नहीं जा रहे.

अब नागराज हर वक्त टीवी के रियालिटी शो ‘बिग बाॅस’ की तर्ज पर सभी विधायको पर नजर रखने के अलावा उनके साथ ‘सुप्रीम बाॅस’ बनकर बातें भी करते रहते हंै. उसका हर कदम व काम अपमान जनक व मजाकिया ही नजर आता है. फिर नागराज अपनी तरफ से केजीबी के एक विधायक को और केजीबी ‘फैमिली पार्टी’ के तीन विधायकांे की खरीद फरोख्त में लग जाते हैं.इस तरह पूरे दस एपीसोड की वेब सीरीज में लोकतंत्र के नाम पर बहुमत हासिल करने के लिए भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनैतिक खरीद- फरोख्त की प्रथा का खेल चलता रहता है और दर्शक इंज्वाॅय करता है.

लेखन व निर्देशनः

इस वेब सीरीज देखकर लोगों को कुछ वर्ष पहले कर्नाटक में भाजपा,काॅंग्रेस व जेडीएस के बीच हुए ‘रिसोर्ट खेल’ की याद आ जाती है. लेखक व निर्देशक ने भले ही किरदारों के नाम काल्पनिक रख दिए हांे,मगर हम आज भी यही राजनीतिक परिदृश्य हम देख रहे हैं. इतना ही नही जिन्होने 2018 में प्रदर्शित दानिश की इसी नाम की फिल्म को पसंद किया था,उन्हें नागराज के किरदार में दानिश सैट की हरकतें हंसाएंगी. इतना ही नहीं इस वेब सीरीज को देखते हुए 1988 में प्रदर्शित मनोहर श्याम जोशी लिखित हास्यव्यंग युक्त सीरियल ‘‘कक्काजी कहिन’’ की भी याद आती है.क्योकि इस सीरियल में जिस मानसिकता को उजागर किया गया था, वही ‘हंम्बल पोलीटीशियन नागराज’ में भी नजर आता है.

निर्देशक ने इसे पैरोडी व हास्य के साथ मिश्रित कर इस तरह पेश किया है कि यह सीरीज राजनीति व राजनेताओं के गाल पर थप्पड़ ही जड़ती है,पर लोग हंसे बिना नहीं रह पाते. निर्देशक व लेखक साद खान ने बहुत ही चतुराई के साथ भारतीय सुरक्षा एजंसियों पर भी तंज कसा है.कुछ जगहों पर अति भी हो गयी है. कुछ किरदार कैरीकेचर बनकर रह गए हैं.

अभिनयः

पोलीटीशियन नागराज के किरदार में अभिनेता दानिश सैट ने जानदार अभिनय किया है.केजीबी के किरदार को निभाने वाले प्रकाश बेलावाड़ी की प्रतिभा तो जग जाहिर है. वह कमाल के अभिनेता हैं.

नागराज के सहायक मंजूनाथ के किरदार में विजय चंदूर अपनी छाप छोड़ जाते हैं.वह अपनी सहज काॅमिक टाइमिंग से लोगों को अपना बना लेते हैं.टीवी पत्रकार दिशा मदान का अभिनय ठीक ठाक है.

वेब सीरीज ‘‘गुल्लक’’ में सर्वाधिक पसंद की जाने वाली अभिनेत्री गीतांजली कुलकर्णी ने जिस अंदाज में पार्टी अध्यक्षा का किरदार निभाया है,वह कमाल का है और वह एक राजनेता की याद दिला ही देती हैं. टीकू टलसानिया को देखना अच्छा लगता है.

कोख को किया कलंकित

सौजन्य- मनोहर कहानियां

गुजरात के जिला खेड़ा के इंडस्ट्रियल एरिया नडियाद और आणंद में ऐसे कई अस्पताल हैं, जो निस्संतान दंपतियों को सरोगेसी मदर (किराए की कोख यानी जो दूसरे के बच्चे को अपनी कोख में पालती हैं) की व्यवस्था करते हैं.

आणंद के एक ऐसे ही निजी अस्पताल में मायाबेन दाबला काम करती थी. लगातार एक ही अस्पताल में काम करने की वजह से मायाबेन की ऐसी तमाम महिलाओं से जानपहचान हो गई थी, जो अपनी कोख किराए पर देती थीं.

इस तरह का काम बहुत गरीब महिलाएं करती हैं, जिन्हें पैसे की बहुत ज्यादा जरूरत होती है या फिर कोई बहुत करीबी रिश्तेदार महिला करती है, जिसे अपने उस रिश्तेदार की बहुत फिक्र होती है.

रिश्तेदार महिला तो अपने रिश्तेदार के लिए इस तरह का काम करती है, पर जो महिलाएं पैसा ले कर किसी अन्य का बच्चा अपनी कोख में पालती हैं, उन के लिए यह एक तरह का धंधा होता है. वे तब तक यह काम करती रहती हैं, जब तक उन का शरीर साथ देता है.

निस्संतान दंपतियों को, जो हर तरफ से निराश हो चुके होते हैं, उन्हें इस तरह की औरतों की तलाश रहती है. पर वे किस से कहें कि मेरे लिए तुम अपनी कोख में मेरा बच्चा पाल दो. हर किसी से या किसी अंजान से तो इस तरह की बात कही नहीं जा सकती. इसलिए इस तरह के लोग किसी दलाल के माध्यम से ऐसी महिलाएं तलाशते हैं.

मायाबेन की इस तरह की अनेक महिलाओं से जानपहचान हो गई थी, इसलिए वह निस्संतान दंपतियों और इस तरह की महिलाओं के बीच दलाली का भी काम करने लगी थी.

इस के अलावा कभीकभी ऐसा भी होता था कि निस्संतान दंपति खुद अपने साथ अपने गांव की या किसी परिचित के माध्यम से किसी गरीब महिला को पैसे का लालच दे कर सरोगेट मदर के लिए ले कर आते थे.

मायाबेन ऐसी महिलाओं से जानपहचान बना कर उन्हें आगे किसी जरूरतमंद के लिए तैयार कर लेती थी. ऐसी ही महिलाओं से सरोगेट मदर के लिए अन्य गरीब महिलाएं भी मिल जाती थीं. इस तरह मायाबेन को नौकरी से जो वेतन मिलता था, वह तो मिलता ही था, इस तरह की दलाली से भी उसे अच्छी कमाई हो जाती थी.

किराए की कोख दिलवाती थी मायाबेन

कहते हैं इंसान बड़ा लालची होता है. उसे कहीं से चार पैसे मिलने की उम्मीद होती है तो वह लालच में यह भी नहीं देखता कि वे चार पैसे उसे सही रास्ते से मिल रहे हैं या गलत रास्ते से. उसे तो बस वे पैसे चाहिए.

ऐसा ही कुछ मायाबेन के साथ भी हुआ. कुछ कमाई अलग से करने के चक्कर में मायाबेन सरोगेट मदर और निस्संतान दंपतियों के बीच दलाली करतेकरते वह बच्चे बेचने का काम भी करने लगी. वह ऐसे निस्संतान दंपतियों को बच्चे भी बेचने लगी, जो किसी भी रूप में बच्चा पैदा करने लायक नहीं होते थे.

हमारे यहां बच्चा गोद लेना भी आसान नहीं है. जबकि हर कोई अपना वारिस चाहता है. इस के लिए यानी एक संतान के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है. मायाबेन ऐसे ही लोगों के लिए मोटी रकम ले कर बच्चे उपलब्ध कराने का काम भी करने लगी थी. क्योंकि उस के पास ऐसी महिलाएं भी थीं, जो पैसे ले कर दूसरे के लिए बच्चा पैदा करने को तैयार थीं.

चूंकि यह आसान काम नहीं है, इसलिए मायाबेन इस के लिए काफी पैसे लेती थी. क्योंकि इस के लिए उसे ऐसी महिलाओं को तलाशना पड़ता था, जो अपना बच्चा बेचने के लिए तैयार होती थीं.

जबकि कोई भी महिला जल्दी से अपना बच्चा बेचने को तैयार नहीं होती. पर एक सच्चाई यह भी है कि पेट की भूख इंसान से कुछ भी करवा सकती है. इन कामों से उसे मोटी कमाई हो रही थी.

चूंकि ऐसा करना कानूनी रूप से गलत है, इसलिए यह काम वह चोरीछिपे करती थी. पर कोई भी गलत काम लगातार कितना भी चोरीछिपे किया जाए, उस की जानकारी लोगों को हो ही जाती है.

ऐसा ही मायाबेन के इस काम के बारे में भी हुआ. जब इस बात की जानकारी कुछ लोगों को हुई तो उन्हीं में से किसी ने यह बात खेड़ा की एसपी अर्पिता पटेल तक पहुंचा दी.

चूंकि यह मामला एक तरह से मानव तसकरी से जुड़ा था, इसलिए इस बात का पता चलते ही उन के कान खड़े हो गए. मायाबेन भले ही किसी गरीब महिला का बच्चा किसी धनी निस्संतान दंपति के हाथों बेचवा कर नेकी का काम कर रही थी, पर कानून की नजरों में था तो यह गलत ही.

महिला एसआई बनी डमी जरूरतमंद

बच्चा खरीदने वाला बच्चे का न जाने किस तरह उपयोग करता होगा? इसलिए जब बात मानव तसकरी की सामने आई तो एसपी अर्पिता पटेल ने इस मामले की सच्चाई का पता लगाने की जिम्मेदारी खेड़ा की एसओजी टीम को सौंप दी.

पुलिस चाहती तो मायाबेन को गिरफ्तार कर के पूछताछ कर सकती थी. पर तब पुलिस को सबूत जुटाना मुश्किल हो जाता. एसपी खेड़ा अर्पिता पटेल इस मामले की तह तक जाने और इस काम में लिप्त महिलाओं को सबूतों के साथ गिरफ्तार करना चाहती थीं. इसीलिए उन्होंने यह काम एसओजी को सौंपा था.

एसओजी प्रभारी ने यह जिम्मेदारी विभाग की तेजतर्रार महिला एसआई आर.डी. चौधरी को सौंपी. आर.डी. चौधरी को पता ही था कि मायाबेन बच्चा बेचती है. इसलिए उन्होंने सोचा कि वह उस से एक जरूरतमंद बन कर मिलें, तभी सच्चाई का पता चल सकता है.

इस के लिए उन्होंने अपने साथ 2 महिला सिपाहियों को ले कर बच्चा बेचने वाले रैकेट की मुखिया मायाबेन लालजीभाई दाबला निवासी 104, कर्मवीर सोसायटी, पीजी रोड नडियाद से मिलने की कोशिश शुरू कर दी. उन की यह कोशिश रंग लाई और वह एक जरूरतमंद यानी डमी ग्राहक के रूप में मायाबेन से मिलने में कामयाब हो गईं.

तय स्थान शांताराम नगर, नजदीक सब्जी मंडी, नडियाद में वह सहयोगियों के साथ तय समय पर पहुंच गईं. पर साथ आई महिला सिपाही इस तरह अलगअलग खड़ी हो गईं, जैसे वे उन के साथ नहीं हैं.

पर मायाबेन दाबला तय समय पर एसआई आर.डी. चौधरी से मिलने अकेली नहीं आई थी. उस के साथ 2 अन्य महिलाएं मोनिकाबेन महेश शाह निवासी किशन समोसा वाले की गली, बणियावड, नडियाद और पुष्पाबेन संदीप पटेलिया निवासी रामादूधा की चाल, मिल रोड, नडियाद भी थीं.

6 लाख में बेचती थी लड़का

मायाबेन ने पहले तो आर.डी. चौधरी को गौर से देखा, उस के बाद धीरे से बोली, ‘‘बताइए, आप क्या चाहती हैं?’’

‘‘मुझे एक बच्चा चाहिए.’’ आर.डी. चौधरी ने कहा.

‘‘क्यों? अभी तो आप की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं है. आप चाहें तो आप को अपना बच्चा हो सकता है.’’ मायाबेन ने कहा.

‘‘डाक्टर ने कहा है कि मेरी फेलोपियन ट्यूब ब्लौक है, जो औपरेशन के बाद भी ठीक नहीं हो सकती. जबकि मुझे बच्चा चाहिए. बच्चा मुझे कहीं से गोद भी नहीं मिल रहा है. सरोगेट द्वारा बच्चा पाने में पैसा भी खर्च करो और इंतजार भी करो. इसलिए मेरा सोचना है कि जब पैसा ही खर्च करना है तो बच्चा खरीद ही क्यों न लूं. मुझे पता चला है कि आप पैसे ले कर बच्चा दिला देती हैं, इसलिए मैं आप के पास आई हूं.’’ आर.डी. चौधरी ने एक सांस में अपनी समस्या ऐसे बताई कि मायाबेन तथा उस के साथ आई महिलाओं को उन पर जरा भी शक नहीं हुआ.

‘‘आप को लड़का चाहिए या लड़की?’’ मायाबेन ने पूछा.

‘‘मतलब?’’ डमी ग्राहक बनी एसआई आर.डी. चौधरी ने जवाब देने के बजाय सवाल किया.

‘‘मतलब यह कि लड़का चाहिए तो उस के लिए अधिक पैसे लगेंगे. लड़की कम पैसों में मिल जाएगी.’’

‘‘लड़के के लिए कितने रुपए देने होंगें?’’ आर.डी. चौधरी ने पूछा.

‘‘लड़के के लिए पूरे 6 लाख रुपए देने होंगे. अगर आप को लड़का चाहिए तो आप 6 लाख रुपए की व्यवस्था कीजिए. आप को लड़का अभी मिल जाएगा.’’ मायाबेन ने कहा.

डमी ग्राहक बन कर आई आर.डी. चौधरी ने हामी भर दी तो मायाबेन ने कहा, ‘‘ठीक है, आप पैसे की व्यवस्था कीजिए. मैं बच्चा मंगा रही हूं.’’

‘‘मैं ने पैसों की व्यवस्था कर रखी है. आप बच्चा मंगाइए. मैं देखूंगी भी तो. बच्चा पसंद आ गया तो सारे पैसे एकमुश्त दे कर बच्चा ले लूंगी.’’ आर.डी. चौधरी ने कहा.

सब कुछ तय हो जाने के बाद मायाबेन ने फोन किया तो एक महिला एक नवजात बच्चा ले कर आ गई. उस महिला के आते ही आर.डी. चौधरी ने अपनी पूरी टीम बुला ली और चारों महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि वह बच्चा उसी महिला का था. उस का नाम राधिकाबेन राहुल गेडाम था. वह नागपुर की रहने वाली थी. नडियाद में वह किडनी हौस्पिटल के सामने स्थित कंफर्ट होटल में कमरा नंबर 203 में रुकी थी.

राधिका से की गई पूछताछ में पता चला कि उसे पैसों की काफी जरूरत थी, इसलिए उस ने मायाबेन और उस के साथ मिल कर यह काम करने वाली मोनिका और पुष्पा से संपर्क किया था.

माया ने उस से उस के बेटे का सौदा डेढ़ लाख रुपए में किया था. जबकि उसी बच्चे का सौदा मायाबेन ने आर.डी. चौधरी से 6 लाख रुपए में किया था.

4 महिलाएं हुईं गिरफ्तार

एसओजी द्वारा की गई पूछताछ में पता चला कि मायाबेन और उस के साथ बच्चों का व्यापार करने वाली मोनिका और पुष्पा महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपने सूत्रों से इस तरह की गरीब गर्भवती महिलाओं को खोजती थीं.

इस के बाद उन से सौदा कर के उन्हें नडियाद ला कर उन की डिलीवरी करा कर उन्हें तय रकम दे कर उन से बच्चा ले लेती थीं. उस के बाद बच्चा चाहने वाले से मोटी रकम ले कर उसे बच्चा सौंप देती थीं.

यह भी पता चला है कि पहले भी मायाबेन ने सरोगेसी द्वारा बच्चे प्राप्त कर के अलगअलग शहरों गोवा, रायपुर और जयपुर में भी बच्चे बेचे हैं. पुलिस के अनुसार बच्चों का सौदा करने वाला यह रैकेट जरूरतमंद की जरूरत और हैसियत देख कर पैसा वसूलता था.

प्राथमिक पूछताछ के बाद एसओजी टीम ने चारों महिलाओं को थाना कोतवाली नडियाद पुलिस के हवाले कर दिया, जहां थानाप्रभारी एन.जी. गोस्वामी ने चारों महिलाओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 370, 144, 120बी एवं 511 के तहत मुकदमा दर्ज कर चारों को 8 अगस्त, 2021 को अदालत में पेश किया, जहां से चारों महिलाओं को मामले की विस्तृत जांच के लिए 5 दिनों के रिमांड पर लिया.

इस मामले की गंभीरता का इसी बात से पता चलता है कि जैसे ही इस मामले की जानकारी आईजी रेंज वी. चंद्रशेखर को हुई तो वह भी नडियाद आ पहुंचे. उन्होंने एसपी अर्पिता पटेल और जांच अधिकारी एन.जी. गोस्वामी से मिल कर मामले की पूरी जानकारी ली, साथ ही दिशानिर्देश भी दिए कि आगे क्या करना है.

रिमांड के दौरान मायाबेन ने स्वीकार किया कि उसे बेटे की शादी के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए बच्चों को बेचने का यह घिनौना काम उस ने किया.

बच्चों का सौदा करने पर उसे जो 6 लाख रुपए मिलते, उस में से ढाई लाख रुपए उसे मिलते. बाकी के साढ़े 3 लाख रुपए में से डेढ़ लाख बच्चे की मां को और एकएक लाख रुपए मोनिका तथा पुष्पा को मिलते.

पुलिस ने उन से उन लोगों के बारे में पता लगाने की कोशिश की, जिनजिन को उन्होंने बच्चे बेचे थे, पर उन से कुछ हासिल नहीं हो सका. पुलिस डीएनए जांच करा कर यह भी पता करेगी कि जिस बच्चे का सौदा किया गया था, वह राधिका का ही है या किसी और का.

रिमांड के दौरान जांच में सहयोग न मिलने की वजह से पुलिस इस मामले में और ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाई.

रिमांड अवधि खत्म होने पर फिर से चारों महिलाओं को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 12 अगस्त, 2021 को जेल भेज दिया गया.

अभी तक मैं संभोग का पूरा सुख नहीं पा सका, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें ताकि मैं सहवास का आनंद उठा सकूं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय विवाहित युवक हूं. शादी हुए 1 वर्ष हो चुका है. अभी तक मैं संभोग का पूरा सुख नहीं पा सका. वास्तव में मुझे सैक्स के विषय में कोई जानकारी नहीं है. मैं पत्नी से संबंध तो बनाता हूं पर बहुत जल्दी निवृत्त हो जाता हूं. मेरे यौनांग में पूरी तरह तनाव भी नहीं आता. कृपया मेरा मार्गदर्शन करें ताकि मैं सहवास का पूरापूरा आनंद उठा सकूं?

जवाब

आप सहवास में प्रवृत्त होने से पहले उस के लिए उपयुक्त माहौल बनाएं. पत्नी से प्रेमालाप करें. उस के बाद आलिंगन, चुंबन आदि कामक्रीड़ाएं करें. जब अनुभव करें कि पत्नी सहवास के लिए पूरी तरह कामोत्तेजित हो गई है तभी संबंध बनाएं. इस से आप देर तक सहवास कर पाएंगे और आप को अधिक सुखानुभूति होगी. इस के अलावा सैक्स ज्ञान के लिए आप सैक्स पर किसी अच्छे लेखक की पुस्तक से भी जानकारी ले सकते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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अपना घर- भाग 2: क्या बेटी के ससुराल में माता-पिता का आना गलत है?

वाणी को अपने पापा की हमेशा चिंता लगी रहती है कि कहीं उन का शुगर लैवल न बढ़ जाए, इसलिए डाक्टर की सलाह के बावजूद वह डायबिटीज़ के बारे में गूगल पर भी सर्च करती रहती थी.  जानती थी उस के पापा खानेपीने के मामले में बहुत लापरवाह हैं.  रेणु के डर से घर में तो नहीं, पर बाहर वे मिठाई खा ही लेते हैं, कंट्रोल ही नहीं होता उन से. वैसे, एक बात यह भी है कि जिस चीज के लिए इंसान को मना किया जाता है, उस का मन उसी ओर भगाता है. अरुण के डर से ही रेणु फ्रिज लौक कर के रखने लगी थी. बुरा लगता है पर क्या करे? अपने मम्मीपापा को विदा कर वाणी मन ही मन मुसकराती हुई घर आ ही रही थी कि मनोरमा मामी और अपनी सास की बातें सुन उस के कदम बाहर ही रुक गए.

“जरा भी शरम-लाज है इन्हें, देखो तो जरा. जब देखो मुंह उठाए चले आते हैं यहां. यह भी नहीं समझते कि यह उन की बेटी की ससुराल है,” मुंह बिचकाती हुई वाणी की सास मालती बोली थी.

“मैं ने तो पहली बार देखा है दीदी, बेटी की ससुराल में किसी मांबाप को गबागब खाते हुए. बड़े बेशर्म लोग हैं ये तो. एक हम हैं, बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते हैं और एक ये लोग, हायहाय,” ज़ोर का ठहाका लगाती हुई मनोरमा मामी बोली. इस पर मालती कहने लगी कि हर 3 महीने पर डाक्टर को दिखाने के बहाने यहां पहुंच ही जाते हैं दोनों और खापी कर ही जाते हैं. मन तो करता है पूछूं कि वहां आप के शहर में डाक्टर नहीं है जो यहां दिखाने चले आते हैं. लेकिन बेटे को बुरा न लगे, इसलिए चुप लगा जाती हूं.

दोनों की बातें सुन वाणी स्तब्ध रह गई. जिस सास और मामी सास को सुबह उठ कर सब से पहले चाय बना कर पिलाती है, उन की एक आवाज पर दौड़ी चली आती है, उन के लिए मनपसंद खाना बनाती है, उन की  छोटीछोटी खुशियों का ध्यान रखती है, वही दोनों उस के मांपापा के बारे में ऐसी बातें कर रहे हैं. हां, पता है उसे कि मालती को उस के मांपापा का यहां आना जरा भी पसंद नहीं है लेकिन कम से कम बाहर वालों के सामने तो नहीं बोलना चाहिए था उन्हें? जबकि पता है उन्हें कि मनोरमा मामी एक की चार लगा कर बोलने में माहिर हैं. उन्हें इधर की उधर करने में खूब मजा आता है. फिर भी? और ऐसा क्या गलत कर दिया उस के मांपापा ने जो बाहर वालों के सामने उन की बुराई ले कर बैठ गईं? क्या कोई मांबाप अपनी बेटी के घर नहीं आ सकता? मन तो किया बोल दे कि जब लड़के के मांबाप बड़े हक से अपने बेटे के घर रह सकते हैं, तो क्या बेटी के मां-बाप आजा भी नहीं सकते?

और किस ने बनाए हैं ये रिवाज कि बेटी के घर का मांबाप पानी भी नहीं पी सकते? अरे, शर्म तो लड़के वालों को आनी चाहिए जो दहेज के नाम पर लड़की वालों के सामने अपना हाथ पसारते हैं. बेटे को बेच देते हैं एक तरह से. लेकिन फिर भी अकड़ तो देखो. यही मनोरमा मामी इसलिए अपने बेटे की बरात लौटाने पर अड़ गई थीं क्योंकि लड़की वाले गाड़ी नहीं दे पाए थे. उन्होंने कहा था  कि शादी के बाद वे किसी भी तरह से गाड़ी दे देंगे, पर अभी फेरे हो जाने दीजिए नहीं तो समाज और लोगों के सामने उन की जगहंसाई हो जाएगी. पर मामी और उस के परिवार वाले नहीं माने और हार कर जाने कहां से कैसे कर उन्हें गाड़ी के पैसों का इंतजाम करना पड़ा. तब जा कर शादी हो पाई थी. और यही मामी यहां बैठ कर गाल बजा रही हैं. शर्म तो इन्हें आनी चाहिए.  लेकिन वह कुछ न बोल कर अपने कमरे की तरह बढ़ने ही लगी कि मालती ने टोका.

“गए तुम्हारे मांपापा? अब फिर कब आने वाले हैं?” मटर का दाना निकालती हुई मालती बोली.

“जी मां जी, गए. अब 3 महीने बाद फिर आएंगे.” सास के व्यवहार से वाणी को रोना आ गया.  वाणी के मांपापा जब भी यहां आते हैं, कुछ न कुछ ले कर ही आते हैं, खाली हाथ कभी नहीं आते. लेकिन फिर भी इन की बोली तो देखो, फिर कब आएंगे… क्या वे यहां खाने आते हैं या उन के घर में खाने की कमी है? अरे, वे चाहें तो दोचार को खिला कर खा सकते हैं. पैसे की कोई कमी नहीं है उन के पास. वे तो बेटी के मोह वश यहां चले आते हैं.

“वहां कोई बढ़िया डाक्टर नहीं  है क्या बहू, जो तुम्हारे मांपापा को यहां इतनी दूर दिखाने आना पड़ता है?” मनोरमा मामी ने तल्खी से पूछा तो वाणी तिलमिला उठी.  मन तो किया बोल दे, वहां लखनऊ में भी तो अच्छेअच्छे डाक्टर्स हैं, फिर वह यहां महीनेभर से क्यों पड़ी है? लेकिन चुप लगा गई. बेकार में बात बढ़ाने से क्या फायदा? और जब अपने घर वाली ही उसे शह दे रही हैं तो बोलेगी ही न. वाणी  के तेवर देख दांत निपोरते हुए मनोरमा मामी कहने लगीं, “हां, नहीं होंगे वहां अच्छे डाक्टर, तभी तो यहां दिखाने आना पड़ता है, है न बहू?” लेकिन वाणी ने उस की बातों का कोई जवाब न दिया और फ्रिज से निकाल कर ठंडा पानी गटकने लगी. उस के पापा ने ही समझाया था उसे कि जब दिमाग में ज्यादा गुस्सा भर जाए तो इंसान को ठंडा पानी पी लेना चाहिए, गुस्सा ठंडा हो जाता है. चाहती तो पलट कर वह अपनी सास को जवाब दे सकती थी कि उस के मायके वाले यहां आ कर बड़े हक से रह सकते हैं जब तक मन चाहे, तो उस के मायके वाले क्यों नहीं आ सकते यहां? यह घर उस का भी तो उतना ही है जितना मालती का? लेकिन एक दिन किसी बात पर मालती ने ही कहा था, ‘यह तुम्हारी ससुराल है बहू, तुम्हारा मायका नहीं.’ यह सुन कर वाणी की आंखें भर आई थीं. वह पूछना चाहती थी कि तब उस का अपना घर कहां है? यही तो बिडंबना है लड़की के साथ कि उस का अपना कोई घर नहीं होता.  मायके में वह पराई अमानत कहलाई जाती है और विवाह के बाद उसी लड़की को ससुराल में पराए घर की लड़की बताया जाता है. बेचारी लड़की किस घर को अपना घर माने, मायके या ससुराल को? अकसर लोगों को कहते सुना है कि बेटा, तू तो पराई है. तुझे बड़े हो कर अपने असली घर जाना है. और ससुराल जा कर यह सुनना पड़ता है कि ये हमारे घर की बहू है. यह कोई नहीं कहता कि यह घर मेरी बहू का है. एक लड़की सिर्फ मायके और ससुराल की बन कर रह जाती है. उस का अपना घर कौन सा है, वह यह तलाशते जीवन गुजार देती है.

वहां अपने मायके में वाणी  हर काम अपनी मरजी से करती थी बिना किसी डर और हिचकिचाहट के. लेकिन ससुराल में तो उसे हर काम अपनी सास से पूछ कर करना पड़ता है. मन न होते हुए भी उसे सारे रीतिरिवाज निभाने पड़ते हैं.  लेकिन फिर भी उसे यह एहसास दिलाया जाता है कि वह उस का अपना घर नहीं, ससुराल है. वाणी अपने मांपापा की एकलौती संतान है. उन की भी ज़िम्मेदारी वाणी  की ही है. लेकिन घर और औफिस की ज़िम्मेदारी इतनी है कि वह उन से मिलने तक नहीं जा सकती. डाक्टर से दिखाने के बहाने ही उस के मांपापा यहां आ जाते हैं, तो उन से मिलना हो जाता है. एक दिन आलोक ने ही सजेस्ट किया था वहां अच्छे डाक्टर नहीं हैं तो क्यों नहीं अरुण यहां दिल्ली में अपना इलाज करवाते हैं? डाक्टर स्वेतांग, डायबिटीज़ स्पैशलिस्ट हैं, तो उन से ही अगर अरुण का इलाज हो, तो बेहतर रहेगा. और तब से वे इसी डाक्टर से अपना इलाज करवा रहे हैं. इसी बहाने आपस में उन का मिलना भी हो जाता है. तो, इस में बुराई क्या है?

खैर, ठंडा पानी पीने के बाद भी वाणी का गुस्सा कम नहीं हुआ आज.  तेज कदमों से अपने कमरे में जा कर उस ने अंदर से दरवाजा भिड़का दिया. मन तो किया खूब रोए, ज़ोरज़ोर से रोए मगर यहां तो रोना भी गुनाह है. तुरंत कहेंगे, ’ऐसा क्या बोल दिया जो रोने बैठ गई? हां, अब बेटे से मेरी शिकायत करेगी, घर में 2 चूल्हे करवाएगी, यही तो सिखापढ़ा कर भेजा है इस के मांबाप ने. यहां आ कर यही सब तो पट्टी पढ़ा कर जाते हैं वे लोग’ जैसे विषैले शब्द मालती अपने मुंह से निकालना शुरू कर देगी  और मनोरमा मामी तो हैं ही आग में घी डालने के लिए. खुद की बहू से तो बनती नहीं उन की, तो चाहती हैं यहां भी सासबहू के झगड़े का मजा लें. मगर वाणी उन्हें कोई मौका ही नहीं देती.  एक तो वैसे ही वाणी के पापा का शुगर लैवल बढ़ा हुआ है और ये लोग जरा सा उन के खाने पर भी आंख गड़ा रहे हैं जैसे कितना पहाड़-पर्वत खा लिया हो उन्होंने.

क्या एक मांबाप का इतना भी हक नहीं होता है कि एक दिन वे अपनी बेटी के घर आ कर रह सकें? शादी के बाद इतनी पराई हो जाती हैं बेटियां? यह सोच कर वाणी  की आंखें भर आईं.

याद है जब वह छोटी थी तब उस के पापा उस के लिए नई साइकिल खरीद कर लाए थे.  रोज वे उसे पार्क में साइकिल सिखाने के लिए ले कर जाते थे. वे साइकिल पकड़े रहते थे ताकि वाणी गिरे तो वे संभाल सकें. फिर चुपके से छोड़ भी देते साइकिल के कैरिअर को और वाणी इस भ्रम में रहती कि पापा ने पकड़ रखी है साइकिल. पापा के भरोसे के बल पर वह दूर निकल जाती थी साइकिल चलातेचलाते.  लेकिन जब पलट कर देखती और पापा नहीं होते तो वह लड़खड़ा कर गिरने ही वाली होती कि आ कर अरुण दोनों हाथों से साइकिल थाम लेते थे. कहते, ‘बेटा, तुम खूब तेज दौड़ो, जब गिरने लगोगी, मैं थाम लूंगा तुम्हें.’ उन का अपना तो कुछ था ही नहीं, उन की पूरी दुनिया तो वाणी के आसपास ही होती थी. वाणी हंसती तो उस के मांपापा हंसते, वाणी रोती तो वे उदास हो जाते थे. हर बच्चे की तरह उस ने भी जिद की होगी, गलतियां की होंगी. पर कभी उस के मांपापा ने उस पर हाथ नहीं उठाया, बल्कि प्यार से ज़िंदगी की सीख दी, संस्कार दिए अपनी बेटी को. याद नहीं कि कभी उस के पापा ने तेज आवाज में बात भी की हो उस से. हां, रेणु थोड़ी सख्त जरूर थी. पर पता है, सो जाने के बाद वह अपनी लाड़ली बेटी को जीभर कर प्यार करती थी. अपने मांपापा की जान थी वह और आज भी वाणी ही उन के लिए सबकुछ है.

अपना घर- भाग 1: क्या बेटी के ससुराल में माता-पिता का आना गलत है?

डायबिटीज़ के मरीज अरुण की भूख जब बरदाश्त के बाहर होने लगी और वे आवाज दे कर बोलने ही जा रहे थे कि रेणु ने आंखें तरेरीं, “शर्म है कि नहीं कुछ आप को? बेटी के घर आए हो और भूखभूख कर रहे हो, जरा रुक नहीं सकते? यह आप का अपना घर नहीं है, बेटी की ससुराल आए हैं हम,  समझे?”

“अरे, तो क्या हो गया? क्या बेटी के घर में भूख नहीं लग सकती? भूख तो भूख है, कहीं भी लग सहती है,” अरुण ने ठहाका लगाया, “तुम भी न रेणु, कुछ भी सोचती हो. यह हमारी बेटी का घर है, किसी पराए का नहीं.”

यह सुन कर रेणु भुनभुनाते हुए कहने लगी कि इसलिए वह यहां आना नहीं चाहती है. मगर वाणी  है कि समझती ही नहीं. जाने क्या सोचते होंगे इस की ससुराल वाले?

“अब क्या सोचने बैठ गईं? यही तुम्हारी बड़ी खराब आदत है. किसी भी बात को सोचतेसोचते पता नहीं उसे कहां से कहान ले जाती हो. ऐसा कुछ नहीं है रेणु. कोई कुछ नहीं सोचता,” अरुण बोल ही रहे थे, तभी खाने की प्लेट लिए वाणी ने कमरे में प्रवेश किया.

“सौरी पापा, वह मम्मी जी, पापा जी को खाना खिला रही थीं. आप लोगों को भी भूख लगी होगी. आप खा लो. मम्मी आप भी पापा के साथ ही बैठ जाओ. मैं तब तक और फुलके ले कर आती हूं,” कह कर हड़बड़ाई सी वाणी फिर किचन में भागी. लेकिन रेणु कहने लगी कि बेकार में  बेटी परेशान हो रही है.  क्या वे लोग कहीं बाहर नहीं खा सकते थे? कितने तो होटल हैं शहर में. जाने क्या सोचते होंगे इस की ससुराल वाले कि जब देखो इस के मांबाप यहां आ जाते हैं.

“अरे, मम्मी कैसी बातें कर रही हो आप. क्या मेरा घर आप लोगों का घर नहीं है? मेरे रहते आप लोग किसी होटल में खाने जाओगे, अच्छा लगेगा क्या? कोई कुछ नहीं सोचता. प्लीज, आप ज्यादा मत सोचो,“ प्लेट में गरम फुलके डालती हुई वाणी बोली.

“हां, मैं भी यही समझा रहा हूं तुम्हारी मां को, पर इन्हें है कि शर्म ही बहुत आती है. अरे भई, ये रिश्तेदार हैं हमारे, तो आनाजाना तो लगा ही रहेगा? वैसे, बेटा कढ़ी बहुत अच्छी बनी थी. मजा आ गया,” डकार लेते हुए अरुण बोले तो रेणु कहने लगी कि चलो अब यहां से, नहीं तो घर पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. “हांहां, चलोचलो” अपनी पैंट को ऊपर चढ़ाते हुए अरुण बोले, “अच्छा बेटा, अब हम निकलते हैं.”

“ओके पापा, लेकिन आप अपना ध्यान रखिएगा और मम्मी, आप भी. पापा, आप थोड़े अजीब हो, पर आप दुनिया के बेस्ट पापा हो” अरुण के दोनों गालों को खींचती हुई वाणी बोली तो रेणु भी हंस पड़ी. बापबेटी का प्यार देख रेणु मन ही मन मुसकरा पड़ी, सोचने लगी कि कितना प्यारा रिश्ता है इन दोनों का. एकदम पारदर्शी, कोई दुरावछिपाव नहीं. दोनों राजनीतिक से ले कर फिल्मों तक पर खुल कर बातें करते हैं और अपना पक्ष भी रखते हैं.  और एक उस के जमाने में, पिता से बात करना तो दूर, उन के सामने खड़े भी नहीं हो सकते थे.

“पापा प्लीज, आप ज्यादा मीठा मत खाया करो, चिंता होती है मुझे. देखा न डाक्टर ने भी आप को मीठा खाने से मना किया है.  प्लीज पापा,  वादा करिए मुझ से, आप मिठाई छुएंगे भी नहीं,” वाणी बोली, तो बड़बड़ाते हुए रेणु कहने लगी कि इन्हें समझाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि इन से बरदाश्त ही नहीं होता. मिठाई देखते ही उस पर ऐसे टूट पड़ते हैं, जैसे कभी खाया न हो.  “ठीक है, तो फिर मैं भी सीटबेल्ट नहीं लगाऊंगी गाड़ी चलाते समय,” वाणी ने डराया. जानती है वह उस के पापा उसे ले कर बहुत फिक्ररमंद रहते हैं.

“नहींनहीं बेटा, ऐसा मत करना. ठीक है, मैं मीठा नहीं खाऊंगा, पर अपनी मम्मी से बोलो, वह मुझे ज्यादा डांटा न करे. बहुत डांटती है ये मुझे,” बच्चा सा मुंह बनाते हुए अरुण बोले तो वाणी को हंसी आ गई.

“मम्मी, आप भी पापा को मत डांटा करो और पापा, आप भी मम्मी की बात माना करो,” एक गार्जियन की तरह अपने मांपापा को समझाती हुई वाणी बोली, ”3 महीने बाद फिर से डायबिटीज़ जांच करा कर डाक्टर से दिखाने यहां आ जाना. ज्यादा देर करोगे तो फिर डाक्टर से डांट पड़ेगी.”

ऐसे बनाएं रेस्टोरेंट जैसे चिकन पकौड़े

आज आपको चिकन पकौड़े बनाने की रेसिपी बताते हैं. इसे आप काफी कम समय में बहुत आसानी से बना सकते हैं. तो आइए जानते हैं चिकन पकौड़े बनाने की रेसिपी.

सामग्री:

बोनलेस चिकन- 400 ग्राम,

लाल मिर्च- 2 टीस्पून,

धनिया पाऊडर- 1 टीस्पून,

अदरक-लहसुन पेस्ट- 1/2 टीस्पून,

नमक- 1 टीस्पून,

गरम मसाला- 1 टीस्पून,

सौंफ- 1 टीस्पून,

हल्दी- 1/4 टीस्पून,

नींबू का रस- 1 टीस्पून,

करी पत्ता- 5-6,

बेसन- 80 ग्राम,

चावल का आटा- 1 टेबलस्पून,

पानी- 70 मि.ली.,

तेल- तलने के लिए

बनाने की विधि:

चिकन पकौड़ा बनाने के लिए एक कटोरी में 400 ग्राम बोनलेस चिकन ले लें. अब इसमें दो चम्मच लाल मिर्च, एक चम्मच धनिया पाउडर, आधा चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट, आधा चम्मच नमक, एक चम्मच गरम मसाला, एक चम्मच जीरा व आधा चम्मच हल्दी डालकर अच्छे से मिक्स करें.

अब इसमें आधा चम्मच नींबू का रस डालकर 15 से 20 मिनट तक ढक कर रख दें. जिससे ये अच्छे से मैरीनेट हो जाए.

अब एक दूसरे कटोरे में 80 ग्राम बेसन, एक चम्मच चावल का आटा व 70 मिलीलीटर पानी डालकर पेस्ट बना लें. अब एक पैन में औयल गर्म करके चिकन को बेसन के पेस्ट में लपेटकर डीप गोल्डन ब्राउन फ्राई करें.

अब इसे प्लेट में निकाल कर चटनी व टमाटो सौस के साथ गर्मागर्म सर्व करें.

सिसकी- भाग 2: रानू और उसके बीच कैसा रिश्ता था

Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

सहेंद्र शाम को घर लौटते, तो अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर घुमाने ले जाते. बच्चे उन के आने की राह देखते रहते. कई बार उन की पत्नी भी साथ हो लेती पर अकसर ऐसा नहीं हो पाता था.  रीना घर में ठहर जाती और बच्चों के लिए खाना बनाने लगती. शाम का खाना सभी लोग मिल कर खाते. रानू को खाना खिलाना रीना के लिए बड़ी चुनौती होती. वह पूरे घर में दौड़ लगाती रहती और हाथों में कौर पकड़े रीना उस के पीछे भागती रहती. रीना जानती थी कि रानू का यह खेल है, इसलिए वह कभी झुंझलाती नहीं थी. चिन्टू पापा के साथ बैठ कर खाना खा लेता.

रीना तो पिताजी को खाना खिलाने के बाद ही खुद खाना खाती. पिताजी के लिए खाना अलग से बनाती थी. रीना स्वंय सामने खड़ी रह कर पिताजी को खाना देती और फिर उन की दवाई भी देती. वह अपने पल्लू से पिताजी का चेहरा साफ करती और उन्हें सुला देती. तब तक सहेंद्र अपने बच्चों का होमवर्क करा देते.

सहेंद्र के परिवार में कोई समस्या न थी. पर एक दिन अचानक सहेंद्र बीमार हो गए. औफिस से लौटे तो उन्हें तेज बुखार था. हलकी खांसी भी चल रही थी. वे रातभर तेज बुखार में पड़े रहे. उन्हें लग रहा था कि मौसम के परिवर्तन के कारण ही उन्हें बुखार आया है. हालांकि शहर में कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा था. इस कारण से रीना भयभीत हो गई थी.

‘आप डाक्टर से चैक करा लें,’ रीना की आवाज में भय और चिंता साफ झलक रही थी.

‘नहीं, एकाध दिन देख लेते हैं, थकान के कारण बुखार आ गया हो शायद.’

वे उस दिन औफिस नहीं गए. उन्होंने अपने साहब को फोन कर औफिस न आ पाने के बारे में बता दिया था. रीना ने बच्चों को उन के पास नहीं जाने दिया. चिन्टू दूर से ही पापा से बातें करता रहा. पापा के बगैर उस का मन लगता कहां था. रानू  तो दौड़ कर उन के बिस्तर पर चढ़ ही गई. बड़ी मुश्किल से रीना ने उसे उन से अलग किया. सहेंद्र दोतीन दिनों तक ऐसे ही पड़े रहे. इन दोतीन दिनों में रीना ने कई बार उन से डाक्टर से चैक करा लेने को बोला. पर वे टालते रहे.

रीना की घबराहट बढ़ती जा रही थी. रीना ने अपने देवर महेंद्र को फोन कर सहेंद्र की बीमारी के बारे में बता दिया था. पर महेंद्र देखने भी नहीं आया.

उस दिन रीना ने फिर महेंद्र को फोन लगाया, ‘भाईसाहब, इन की तबीयत ज्यादा खराब लग रही है. हमें लगता है कि इन्हें डाक्टर को दिखा देना चाहिए.’

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‘अरे, आप चिंता मत करो, वे ठीक हो जाएंगे.’

‘नहीं, आज 5 दिन हो गए, उन का बुखार उतर ही नहीं रहा है. आप आ जाएं तो इन्हें अस्पताल ले जा कर दिखा दें,’ . रीना के स्वर में अनुरोध था.

‘अरे, मैं कैसे आ सकता हूं, भाभी. यदि भाई को कोरोना निकल आया तो?’’

‘पर मैं अकेली कहां ले कर जाऊंगी. आप आ जाएं भाईसाहब, प्लीज.’

‘नहीं भाभी, मैं रिस्क नहीं ले सकता.’ और महेंद्र ने फोन काट दिया था.

रीना की बेचैनी अब बढ़ गई थी. उस ने खुद ही सहेंद्र को अस्पताल ले जाने का निर्णय कर लिया.

रीना ने सहेंद्र को सहांरा दे कर औटो में बैठाला और खुद उसे पकड़ कर बाजू में ही बैठ गई. बड़ी मुश्किल से एक औॅटो वाला उन्हें अस्पताल ले जाने को तैयार हुआ था, ‘एक हजार रुपए लूंगा बहनजी.’

‘एक हजार, अस्पताल तो पास में ही है. 50 रुपए लगते हैं. और आप एक हजार रुपए कह रहे हो?’

‘कोरोना चल रहा है बहनजी. और आप मरीज को ले जा रही हैं. यदि मरीज को कोरोना हुआ तो… मैं तो मर ही जाऊंगा न फ्रीफोकट में.’ औटो वाले ने मजबूरी का पूरा फायदा उठाने की ठान ही ली थी.

‘पर भैया, ये तो बहुत ज्यादा होते हैं.’

‘तो ठीक है, आप दूसरा औटो देख लो,’ कह कर औटो स्टार्ट कर लिया. रीना एक तो वैसे ही घबराई हुई थी, बड़ी मुश्किल से औॅटो मिला था, इसलिए वह एक हजार रुपए देने को तैयार हो गई. उस ने सहेंद्र को सहारा दिया. सहेंद्र 5 दिनों के बुखार में इतने कमजोर हो गए थे कि स्वंय से चल भी नहीं पा रहे थे. रीना के कंधों का सहारा ले कर वे औटो में बैठ पाए. औॅटो में भी रीना उन्हें जोर से पकड़े रही. बच्चे दूर खड़े हो कर उन्हें अस्पताल जाते देख रहे थे.

सहेंद्र को कोरोना ही निकला. उस की रिपोर्ट पौजिटिव आई. डाक्टरों ने सीटी स्कैन करा लेने की सलाह दी. उस की रिपोर्ट दूसरे दिन मिल पाई. फेफड़ों में इन्फैक्शन पूरी तरह फैल चुका था. सहेंद्र को किसी बड़े अस्पताल में भरती कराना आवश्यक था. रीना बुरी तरह घबरा चुकी थी. वह अकेले दूसरे शहर कैसे ले कर जाएगी. उस ने एक बार फिर महेंद्र से बात की, ‘भाईसाहब, इन्हें कोरोना निकल आया है और सीटी स्कैन में बता रहे हैं कि फेफड़ों में इन्फैक्शन बहुत फैल चुका है, तत्काल बाहर ले जाना पड़ेगा.’

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‘तो मैं क्या कर सकता हूं, भाभी?’

‘मैं अकेली कहां ले कर जाऊंगी, आप साथ चलते, तो मुझे मदद मिल जाती.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है, भाभी, कोरोना मरीज के साथ मैं कैसे चल सकता हूं?’

‘मैं बहुत मुसीबत में हूं, भाईसाहब. आप मेरी मदद कीजिए, प्लीज.’

‘देखो भाभी, इन परिस्थितियों में मैं आप की कोई मदद नहीं कर सकता.’

‘ये आप के भाई हैं भाईसाहब, यदि आप ही मुसीबत में मदद नहीं करेंगे तो मैं किस के सामने हाथ फैलाऊंगी.’  रीना रोने लगी थी. पर रीना के रोने का कोई असर महेंद्र पर नहीं हुआ.

‘नहीं भाभी, मैं रिस्क नहीं ले सकता. आप ही ले कर जाएं,’ और महेंद्र ने फोन काट दिया.

हताश रीना बिलख पड़ी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

दोतीन अस्पताल में भटकने के बाद आखिर एक अस्पताल में सहेंद्र को भरती कर ही लिया गया. उसे सीधे आईसीयू में ले जाया गया जहां किसी को आने की अनुमति न थी. रीना को एम्बुलैंस बहुत मुश्किल से मिल पाई थी. उस ने सहेंद्र के औफिस में फोन लगा कर साहब को बोला था. साहब ने ही एम्बुलैंस की व्यस्था कराई थी. हालांकि, एम्बुलैंसवाले ने उस से 20 हजार रुपए ले लिए थे. उस ने कोई बहस नहीं की. इस समय उसे पैसों से ज्यादा फिक्र पति की थी. एम्बुलैंस में बैठने के पहले उस ने एक बार फिर अपने देवर को फोन लगाया था, ‘इन के साथ मैं जा रही हूं. घर में बच्चे और पिताजी अकेले हैं. आप उन की देखभाल कर लें.’

महेंद्र ने साफ इनकार कर दिया. उस ने अपनी ननद को भी फोन लगाया था. ननद पास के ही शहर में रहती थी. पर ननंद ने भी आने से मना कर दिया. रीना अपने साथ बच्चों को ले कर नहीं जा सकती थी और उन्हें ले भी जाती तो पिताजी… उन की देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए. उस ने अपनी कामवाली बाई को फोन लगाया, ‘‘मुन्नीबाई, मुझे इन्हें ले कर अस्पताल जाना पड़ रहा है, घर में बच्चे और पिताजी अकेले हैं. तुम उन की देखभाल कर सकती हो?’ रीना के स्वर में दयाभाव थे हालांकि, उसे उम्मीद नहीं थी कि मुन्नी उस का सहयोग करेगी. जब उस के सगे ही मदद नहीं कर रहे हैं तो फिर कामवाली बाई से क्या अपेक्षा की जा सकती है. पर उस के पास कोई और विकल्प था ही नहीं, इसलिए उस ने एक बार मुन्नी से भी अनुरोध कर लेना उचित समझा.

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‘ज्यादा तबीयत खराब है साहब की?’

‘हां, दूसरे शहर ले कर जाना पड़ रहा है.’

‘अच्छा, आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं आ जाती हूं आप के घर.’

मुन्नीबाई ने अपेक्षा से परे जवाब दिया था.

अजोला: पौष्टिकता से भरपूर जलीय चारा

हमारे देश की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्त्वपूर्ण स्थान है. हमारे यहां जोत का आकार दिनप्रतिदिन छोटा होता जा रहा है और किसान चाह कर भी हरे चारे की खेती करने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं. यही वजह है कि देश में हरे चारे की उपलब्धता बहुत कम होती जा रही है.

झांसी स्थित भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के एक अनुमान के मुताबिक, साल 2025 में हरे चारे की आवश्यकता 1,170 मिलियन टन होगी, जबकि उपलब्धता महज 411 मिलियन टन तक ही होगी. इस प्रकार हरे चारे की उपलब्धता तकरीबन 65 फीसदी कम रहेगी. इसी कमी को पूरा करने के लिए हमें हरे चारे के वैकल्पिक स्रोत तलाशने होंगे, ताकि उन की सहायता से पशुओं को कुछ मात्रा में हरा चारा उपलब्ध कराया जा सके.

पशुओं के लिए वैकल्पिक हरे चारे के रूप में अजोला का नाम सब से ऊपर आता है. अजोला उगाने के लिए हरे चारे की फसलों को उगाने की तरह उपजाऊ भूमि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है. इसे किसी भी प्रकार की भूमि में गड्ढा खोद कर और उस में पानी भर कर जलीय चारे के रूप में उगाया जा सकता है. रेतीली जमीन में भी गड्ढे में प्लास्टिक की शीट बिछा कर पानी भर कर अजोला को उगाया जा सकता है.

अजोला वास्तव में समशीतोष्ण जलवायु में पाया जाने वाला एक जलीय फर्न है. वैसे तो इस की कई प्रजातियां होती हैं, मगर इन में अजोला पिन्नाटा सब से प्रमुख है.

अजोला हरे चारे की आवश्यकता को पूरी तरह तो प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है, मगर अपने पोषक गुणों के कारण यह पशुओं के लिए हरे चारे में एक उत्तम विकल्प के रूप में जाना जाता है. अजोला गाय, भैंस, मुरगियों व बकरियों के लिए आदर्श चारा है.

अजोला खिलाने से दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. जो मुरगी सामान्य रूप से साल में 150 अंडे देती है, अजोला आहार में देने से वह साल में 180-190 अंडे तक दे सकती है. इतना ही नहीं, मछली उत्पादन में भी अजोला लाभकारी साबित हुआ है.

अजोला पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के साथसाथ कम लागत में बेहतर परिणाम देने में सक्षम है. इसे उगाने के लिए अलग से जमीन की भी आवश्यकता नहीं होती. इसे सीमेंट की क्यारियों में भी तैयार किया जा सकता है. गुणवत्ता, पाचनशीलता और प्रचुर मात्रा में प्रोटीन का स्रोत होने के कारण अजोला किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.

अजोला की पत्तियों में एनाबीना नामक साइनोबैक्टीरिया होता है, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करता है, इसीलिए धान के खेतों में रोपनी के एक सप्ताह बाद अजोला की खेती करने पर धान की भरपूर पैदावार हासिल होती है. अजोला पशुपालन से ले कर फसल उत्पादन बढ़ाने तक किसानों के लिए बड़ा लाभकारी हो सकता है.

अजोला की प्रमुख प्रजातियां

* अजोला माइक्रोफिला

* अजोला पिन्नाटा

* अजोला फिलिक्लोइड्स

* अजोला रुबरा

* अजोला कैरोलिनियाना

अजोला उगाने का तरीका

सब से पहले एक छोटी ट्रे में अजोला का प्योर कल्चर तैयार करते हैं. फिर 2 मीटर 3 2 मीटर 3 30 सैंटीमीटर का एक गड्ढा खोद कर इस में प्लास्टिक शीट बिछा देते हैं, ताकि पानी मिट्टी में अवशोषित न हो सके. इस के बाद गड्ढे में 10-12 किलोग्राम मिट्टी भर देते हैं. फिर इस में 10 लिटर पानी + 2 किलोग्राम गाय का गोबर + 30 ग्राम सुपर फास्फेट का मिश्रण डालते हैं. अब इस में 0.5 से 1 किलोग्राम शुद्ध अजोला कल्चर समान रूप से फैला देते हैं.

अजोला बहुत तेजी से फैलता है और 8-10 दिनों में गड्ढे को पूरा ढक देता है. जब गड्ढा पूरा ढक जाए तो उस में से प्रतिदिन 1 से 1.5 किलोग्राम अजोला निकाला जा सकता है.

अजोला को बांस की छलनी की सहायता से क्यारी से निकाल लेते हैं और 3-4 बार साफ पानी से धो कर ही पशु को चारे के साथ मिला कर नियमित रूप से खिलाते हैं.

बेहतर उत्पादन के लिए हर 5वें दिन तालाब में 20 ग्राम सुपर फास्फेट+1 किलोग्राम गोबर का मिश्रण डालते हैं. इस प्रकार एक वर्ग फुट तालाब से प्रतिदिन 200 से 250 ग्राम अजोला का उत्पादन सफलतापूर्वक किया जा सकता है.

अजोला उत्पादन के लिए 25 डिगरी सैल्सियस से ऊपर का तापमान, पानी का पीएच मान 5.5-7 व आंशिक धूप इष्टतम स्थिति कहलाती है. सीधी धूप शैवाल के बनने में सहायक हो कर अजोला फर्न के उत्पादन में बाधक हो सकती है, इसलिए अजोला की क्यारियों के ऊपर थोड़ी छाया कर देते हैं.

अजोला कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन व लाभकारी फाईटोकैमिकल्स का अच्छा स्रोत होने के कारण पशुओं के शारीरिक विकास के लिए अच्छा है. गायों को चारे के साथ अजोला देने से उन के दूध उत्पादन में 15 फीसदी तक की वृद्धि देखी गई है.

वृंदा वर्मा, आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या

कार्तिकेय वर्मा, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ

डा. संजीव कुमार वर्मा, भाकृअनुप-केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ

Winter 2022: सर्दियों में घर पर बनाइएं टेस्टी तवा नान

 सामग्री

– मैदा (150 ग्राम)

– आटा ( 100 ग्राम)

– दही (1/4 कप)

– तेल (1 बड़ा चम्‍मच)

– बेकिंग सोडा (1/2 छोटा चम्मच)

– शक्‍कर (1 छोटा चम्मच)

– नमक (1/2 छोटा चम्मच)

तवा नान बनाने की विधि :

– सबसे पहले मैदा और आटा को छान लें.

– फिर दही में शक्कर, बेकिंग सोडा और नमक डाल कर मिक्‍स कर लें.

– इसके बाद दही के मिश्रण को आटे में डाल कर मिला लें.

– इसके बाद गुनगुने पानी मी मदद से आटा गूंथ लें.

– ये आटा एकदम नरम रहना चाहिए.

– अब हथेली में थोड़ा सा तेल लगाएं.

– और आटे को मसल-मसल कर अच्‍छी तरह से गूंथ कर चिकना कर लें.

– इसके बाद आटे को ढक कर किसी गरम जगह पर 3 घंटे के लिए रख दें.

– तब तक आटा फूल जाएगा और नान के लिए तैयार हो जाएगा.

– आटा तैयार होने पर एक बार उसे और हल्‍के हाथ से गूंथ लें.

– अब उसकी लोई बना लें.

– फिर उन्‍हें सूखे आटे में लपेट लें और कपड़े से ढक कर रख दें.

– अब तवा को गैस पर रख कर गरम करें.

– जब तक तवा गरम हो रहा है एक लोई लेकर उसे आटे में लपेटें और बेल लें.

– बेली हुई लोई हल्‍की मोटी रहनी चाहिए, तभी वह नान की तरह बन पाएगी.

– अब हाथ में थोड़ा सा पानी लेंकर बेली हुई लोई की ऊपरी लेयर पर लगाएं.

– और उसे बराबर से फैला दें.

– इसके बाद लोई को पानी वाली से साइड से तवे पर रखें और मीडियम आंच पर सेकें.

– लोई में पानी लगे होने की वजह से वह तवा से चिपक जाएगी, इसे छुड़ाए नहीं.

– जब नान की ऊपर की लेयर हल्‍की सी सिक जाए, तवे का हैंडल पकड उसे उठाएं और तवा को उलटा कर   लें.

– अब तवे में चिपकी हुई लोई को गैस की आंच पर ले जाएं और घुमा-घुमा कर चित्‍तीदार होने तक सेंक लें.

– सिंकने के बाद तवा को सीधा कर लें और कलछी की मदद से नान को तवे से अलग कर लें.

– इसी तरह से सारी नान सेंक लें और तंदूरी नान रोटी  में देशी घी लगाकर ग्रेवी वाली सब्‍जी के साथ आनंद लें.

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