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किसानों ने बनाई अपनी सब्जी मंडी

बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड में एक छोटा सा बाजार है, जिस का नाम है मोरसंड. यहां सड़क के किनारे सुबहसवेरे 7 बजे से ही सब्जियों की मंडी सजने लगती है. इस स्थानीय मंडी में आने वाली सब्जियां इतनी ताजी, खूबसूरत और अच्छी होती हैं कि अगर आप का मन न भी हो, तब भी आप सब्जी खरीदने को मजबूर हो जाएंगे.

लेकिन मोरसंड गांव में लगने वाली इस सब्जी मंडी का संचालन बाकी मंडियों की तर्ज पर बिहार सरकार नहीं करती है, बल्कि इस सब्जी मंडी को किसान बिचौलियों से बचने के लिए खुद ही संचालित करते हैं.

किसानों द्वारा संचालित मंडी सरकार द्वारा संचालित शहर की मुख्य मंडी से काफी दूरी पर मौजूद है. उस के बावजूद भी ग्राहक सरकारी मंडी में न जा कर मीलों का फासला तय कर किसानों द्वारा संचालित इस मंडी में खरीदारी करने आते हैं, जहां किसानों को उन के गांव के बगल में ही सब्जियों की उपज का सरकारी मंडी से अच्छा रेट मिल जाता है. इस से यहां अपनी सब्जी बेचने वालों को न केवल अच्छा मुनाफा मिलता है, बल्कि समय और पैसे की बचत भी होती है.

किसानों को खुद की मंडी चलाने का ऐसे आया विचार

पूसा के मोरसंड कसबे में किसानों द्वारा संचालित इस मंडी को खोलने का काम छोटे और म   झोले किसानों की आय बढ़ाने और उन के जीवनस्तर को सुधारने के लिए बिहार में काम कर रही संस्था आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत व एक्सिस बैंक फाउंडेशन द्वारा दिया गया.

जब किसानों ने एकेआरएसपीआई को मंडी में अपनी सब्जियों की उपज का वाजिब रेट न मिलने की बात बताई, तो एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं ने उन्हें संगठित कर जनता सब्जी संग्रह सह विक्रय केंद्र, मोरसंड बहादुरपुर नाम से एक किसानों की एक मंडी समिति बनवाने में मदद की.

इस मंडी समिति में सब्जी उत्पादक गांवों के किसानों को पदाधिकारी और सदस्य बनाया गया. इस के बाद किसानों ने मोरसंड कसबे की एक जगह को मंडी के रूप में चुना, जहां इस समिति से जुड़े सभी किसान अपनी सब्जियों को थोक में बेचने के लिए लाने लगे.

शुरुआती दौर में किसानों को ग्राहक कम मिलते थे, लेकिन जब लोगों को यह पता चला कि मोरसंड कसबे में किसानों द्वारा संचालित मंडी में ताजा और अच्छी सब्जियां वाजिब रेट में मिल रही हैं, तो दूरदूर के व्यापारी भी इन किसानों की सब्जियां खरीदने आने लगे.

सरकारी मंडी की जगह किसानों द्वारा खुद की मंडी खोलने के सवाल पर किसानों द्वारा संचालित मोरसंड मंडी के अध्यक्ष राम नंदन सिंह ने बताया कि भारत भले ही कृषि प्रधान देश है, लेकिन यहां सब से बुरी हालत भी किसान की ही है. सरकारें किसानों को तमाम तरह की छूट और राहतें देने की बात करती हैं, लेकिन कृषि उपज के वाजिब रेट को ले कर कोई ठोस सरकारी नीति न होने के चलते किसान हर जगह ठगा जाता रहा है.

उन्होंने बताया कि कभी मौसम किसान पर मुसीबत बन कर टूटता है, तो कभी हालात उस का साथ नहीं देते और सबकुछ ठीक रहने के बावजूद भी जब वह अपनी फसल बेचने मंडी पहुंचता है, तो वहां सही भाव नहीं मिलता. क्योंकि मंडियों में बिचौलियों और मुनाफाखोरों का गठजोड़ उन्हें अपनी उपज औनेपौने दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ता है.

ऐसी दशा में हम किसानों द्वारा संचालित इस मंडी पर पूरा नियंत्रण भी किसानों का होता है, जिस से हमें अपनी फसल का रेट तय करने का पूरा अधिकार होता है.

उन्होंने आगे बताया कि 5 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले मोरसंड व उस से लगे आसपास के गांवों चकहारी, पुनास, सिहिया खुर्द, ठहरा पातेपुर, गोपीनाथ, कैजिया, बेला जैसे दर्जनों गांवों के सैकड़ों किसान इस मंडी से जुड़े हुए हैं, जो अपनी सब्जियों जैसे आलू, गोभी, टमाटर, ब्रोकली, मटर, कद्दू, लौकी, गाजर, मेथी, धनिया, बंदगोभी, नेनुआ, बैगन, सेम, प्याज, लहसुन, परवल, मूली, साग, कुसुम, फर, भिंडी, पालक, खीरा, गेंधरी, हरी मिर्च जैसी फसलें बेचने आते हैं. यहां कुछ ही घंटों में किसानों की सब्जियां आसानी से बिक जाती हैं.

मोरसंड कसबे के किसानों द्वारा संचालित इस मंडी के संरक्षक देवनारायण सिंह ने बताया कि शहर की सरकारी मंडियों में किसान जब सब्जी या फल ले कर पहुंचता था, तो वहां उन की मुलाकात बहुत सारे एजेंट से हो जाती थी, जो उन की सब्जी को बिकवाने का काम करते थे, क्योंकि इन मंडियों में किसान बिचौलियों के बिना कुछ भी खरीदबेच नहीं सकते. वजह, यहां बिचौलिए ही किसानों की फसल की बोली लगाता है और उसे बिकवाता है.

उन्होंने बताया कि कुछ व्यापारी साठगांठ कर किसान की फसल औनेपौने दाम में खरीद लेते हैं. ऐसा छोटे शहरों की मंडियों में होता है, जहां ग्राहक कम आते हैं. और जो ग्राहक आते हैं, वह व्यापारी यानी बिचौलियों से आपस में मिले हुए होते हैं, जो किसान से उस की फसल को कम कीमत में खरीद कर दिल्ली, कानपुर जैसी बड़ी मंडी में पहुंचा कर ऊंचे भाव में बेचने में कामयाब हो जाते हैं.

इस मंडी में कई तरीके से होता है किसानों का फायदा

महिला किसान सविता देवी ने बताया कि सरकारी मंडी की तुलना में किसानों द्वारा संचालित खुद की मंडी में कई तरीके से धन, समय और श्रम की बचत होती है, क्योंकि किसान अपने खेतों में सब्जी की तुड़ाई करने के बाद दूर मंडियों में बेचने जाता है, तो उस में ट्रांसपोर्टेशन का खर्च तो जुड़ता ही है, साथ ही साथ मंडी में जाने के बाद उन्हें मंडी टैक्स, एजेंट का कमीशन, पल्लेदारी की जरूरत पड़ती है. ये सब खर्चे किसान को अपनी जेब से करने होते हैं. जो सब्जियों की बिक्री से हुई आमदनी से ही देना पड़ता है. बाकी जो बचता है, वो किसान को मिलता है.

लेकिन मोरसंड मंडी के सफल संचालन के लिए किसानों की सहमति से महज एक रुपया किलोग्राम मंडी शुल्क लिया जाता है. इस के अलावा सब्जियों की लोडिंग और अनलोडिंग का काम किसान खुद ही आपस में मिल कर करते हैं, जिस से पल्लेदारी पर आने वाला शुल्क पूरी तरह से बच जाता है.

पूसा प्रखंड के लालपुर गांव के किसान राम दयाल ने बताया कि वह बैगन, फूलगोभी, पालक, टमाटर सहित कई तरह की सब्जियों की खेती करते हैं.

उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक उन्हें तैयार सब्जियों को बेचने के लिए गांव से तकरीबन 15 से 20 किलोमीटर दूर तक की मंडी में जाना पड़ता था, जिस से उन्हें ट्रांसपोर्टेशन पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता था. दूर मंडियों में आनेजाने में लगने वाले अतरिक्त समय व खर्च में भी कमी आई है.

उन्होंने यह भी बताया कि किसानों की इस मंडी का संचालन पूरी तरह से किसान ही करते हैं और इस पर सरकार का किसी तरह का हस्तक्षेप भी नहीं है.

जनता सब्जी संग्रह सह विक्रय केंद्र, मोरसंड बहादुरपुर में सब्जियों की बिक्री का हिसाबकिताब देखने वाले और इस समिति के कोषाध्यक्ष मंजेश कुमार ने बताया कि कई बार शहर की मंडी में सब्जियां बेचने के बाद आढ़ती किसानों का पैसा बकाया कर देते हैं, जबकि इस मंडी में किसानों की उपज की बिक्री के तुरंत बाद उन्हें भुगतान कर दिया जाता है.

शहर की मंडियों से व्यापारी यहां खरीदने आते हैं सब्जियां

समस्तीपुर जिले में बड़ी सब्जी मंडी होने के बावजूद भी वहां से फुटकर व्यापारी मोरसंड में सब्जियों की खरीदारी करने आते हैं. फुटकर व्यापारी बाबुल कुमार से जब यह पूछा गया कि जब जिले में मंडी है, तो वह इतनी दूर सब्जियों की खरीदारी करने क्यों आते हैं?

उन्होंने कहा कि शहर की मंडी में बहुत ज्यादा भीड़ होती है. इस से बचाव तो होता ही है. साथ ही, यहां लोडिंग चार्ज, मंडी शुल्क, कमीशन एजेंट शुल्क भी नहीं देना पड़ता है. यहां हर समय हरी और ताजी सब्जियां मिलती हैं, जबकि शहर की मंडी में दूर से आने वाली सब्जियां बासी हो जाती हैं.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि शहर की मंडी में देरी से पहुंचने पर सब्जियां नहीं मिल पाती हैं, जबकि यहां लेट हो जाने पर भी सब्जी उपलब्ध हो जाती है. और कभीकभी न पहुंच पाने की दशा में किसान द्वारा उन की दुकान तक डिलीवरी भी दे दी जाती है.

आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) में पूसा के एरिया मैनेजर शांतनु सिद्धार्थ दुबे ने बताया कि एकेआरएसपीआई व एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से मोरसंड में किसानों द्वारा संचालित सब्जी मंडी पूरे बिहार के लिए मौडल है.

उन्होंने बताया कि इस मंडी के खुल जाने से किसानों की आमदनी में इजाफा हुआ है, जिस से किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद भी बचत कर लेते हैं.

एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के कृषि प्रबंधक डा. बसंत कुमार ने बताया कि मोरसंड सब्जी मंडी की सफलता को देखते हुए इसी तर्ज पर बिहार में और भी कई जगहों पर किसान इस तरह की खुद की मंडी संचालित करने की कवायद कर रहे हैं. अगर ऐसा होता है, तो किसानों की सरकारी सब्जी मंडी पर निर्भरता कम होगी. साथ ही, अपनी उपज की कीमत भी किसान खुद तय कर पाएंगे.

एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि एकेआरएसपीआई द्वारा एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से समस्तीपुर में छोटे व म   झोले किसानों की आय बढ़ाने के लिए फील्ड लैवल पर कई तरह की तकनीकी, व्यावहारिक और आर्थिक सहायता मुहैया कराई जा रही है, जिस से किसान खेती में जोखिम को कम करने में कामयाब होने के साथ ही आधुनिक तरीकों से लागत को कम कर अपनी आय में इजाफा करने में कामयाब हो रहे हैं.

सब्जी उत्पादन तकनीक प्रशिक्षण  का आयोजन

हाल ही में ‘सब्जी उत्पादन तकनीक’ पर कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. केंद्राध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह ने बताया कि केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद से इस जनपद में जलवायु परिवर्तन आधारित कृषि तकनीकों का प्रदर्शन एवं क्षमता में विकास हेतु परियोजना की शुरुआत की गई है, जिस का उद्देश्य कृषि बागबानी, सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मत्स्यपालन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खीपालन आदि क्षेत्रों में रणनीतिक अनुसंधान के तहत अनुकूलीय रणनीतियों के निर्माण के साथसाथ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आंकलन प्रमुख है.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक और मानव निर्मित संसाधनों के निरंतर प्रबंधन के साथ ही साथ कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करने वाली जलवायु अनुकूल कृषि प्रौद्योगिकियों के माध्यम से बेरोजगारों को कृषि आधारित स्वरोजगार से जोड़ कर पारिवारिक आय में वृद्धि करना है. इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए किसानों व बेरोजगार नौजवानों को जायद के मौसम में उत्पादित की जाने वाली सब्जियों जैसे भिंडी, मिर्चा, लौकी, तोरई, लोबिया, धनिया, सहजन आदि की खेती करने का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है. इस से वे अतिरिक्त आय के साथसाथ रोजगार भी पा सकते हैं.

पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव ने अवगत कराया कि जायद के मौसम में सिंचाई की समुचित व्यवस्था होने पर आलू, सरसों, चना, मटर के बाद हरा चारा उत्पादन के लिए लोबिया और बाजरा की खेती करना उपयुक्त है. इस से पशुओं को शुष्क मौसम में भरपूर प्रोटीनयुक्त हरा चारा मिलता रहेगा, जिस से उन की दूध उत्पादन क्षमता प्रभावित नहीं होगी.

लोबिया की प्रमुख किस्में पूसा कोमल, काशी कंचन, नरेंद्र आदि हैं. इस के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इसी प्रकार बाजरा की उन्नत किस्म अनन्त है, जिस में 8-10 कटाई कर के चारा प्राप्त कर सकते हैं.

पौध रक्षा वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने सब्जियों में लगने वाले प्रमुख रोगों एवं कीड़ों पर चर्चा करते हुए बताया कि सब्जियों में रोगों एवं कीटों से बचाव के लिए नीम तेल 10 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें. नियंत्रित न होने की दशा में सब्जियों को    झुलसा रोग से बचाने के लिए मैनकोजेब 64 फीसदी, साइमोक्जिल 8 फीसदी डब्ल्यूपी फफूंदीनाशक मिश्रण का 1.2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

प्रसार वैज्ञानिक डा. आरवी सिंह ने जायद में सब्जियों (भिंडी, लोबिया, तोरोई, लौकी, कद्दू, करेला आदि) की खेती की नवीनतम तकनीकों के विषय में किसानों को विस्तृत जानकारी दी. साथ ही, जायद में दलहनी फसल (मूंग, उड़द) की खेती के विषय में भी विस्तृत जानकारी प्रदान की.

उन्होंने यह भी बताया कि जो किसान भाई वसंतकालीन गन्ने की खेती करते हैं, वे गन्ने के साथ लोबिया, भिंडी, करेला एवं धनिया (हरी पत्ती के लिए) की सहफसली खेती से अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रगतिशील किसान ओमप्रकाश, कमलेश, नरायन आदि ने प्रतिभाग किया. इस अवसर पर केंद्र के वैज्ञानिकों के साथसाथ जेपी शुक्ला, निखिल सिंह, प्रहलाद सिंह, बनारसी व सीताराम आदि कार्मिक भी उपस्थित रहे.

कांग्रेस बनाम बहुजन पार्टी

कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी बेबात की बयानबाजी में टाइम बेकार कर रहे हैं कि विधानसभा  चुनावों से पहले किसने कैसे साथ चलने की बात की थी और किस ने इंकार कर दिया था. कांग्रेस अगर कह रही कि उस ने मायावती के जीवन पर मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया भी था तो भी यह बेकार की बात है. यह तो एक 10 करोड़ की लौटरी के टिकट को 10 रुपए में खरीद कर 10 करोड़ को बांटने की लड़ाई जैसा है. न लौटरी निकलनी थी, न निकली तो लड़ाई किस बात की.

यह पक्का है कि  कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी दोनों के नेता अपना रास्ता भटक गए हैं और अब अपने भक्तों के मझदार में डूबने को छोड़ कर किसी विरान टापू पर सन्यास लेने की तैयारी में है. ऐसा नहीं कि उन के भक्तों के उन की जरूरत नहीं है या फिर उन के भक्तों को अपनी पाॢटयों नीतियों से नाराजगी हो.

कांग्रेस और बहुजन पार्टी को चाहने वालों की कमी नहीं है. सीधीसादी, बिखराव से बचाने वाली पार्टी कांग्रेस राज चलाने में खासी ठीकठाक है. बहुजन पार्टी हजारों सालों गुलामी झेल रहे दलितों को नई उम्मीद देती है. दिक्कत यह है कि दोनों नेता अब आरामतलब है. राहुल और प्रियंका गांधी भी पकीपकाई खीर चाहते हैं और मायावती ऐश की ङ्क्षजदगी चाहती हैं. इन दोनों को घरघर जा कर यह भरोसा दिलाना आता ही नहीं है कि वे उन के हकों को बचा कर रखेंगे या उन के लिए लड़ेंगे. वे तो कहते है कि राज दिला दो फिर सब ठीक कर देंगे. लेकिन राज मिलने के लिए जो करना होता है वह कांग्रेस 50 साल ब्रिटीश शासन में किया ओर मायावती ने कांशीराम के साथ 10-15 साल किया.

1947 के बाद कांग्रेस ने कभी लोगों के नाम पर लड़ाई नहीं लड़ी. सरकार मं होते हुए भी उस ने  चाहा जनता की नहीं सोची. कांग्रेस के जमाने में सरकारी अफसरों की चांदी हो गई. सरकारी कंपनियां अफसरों व कर्मचारियों की सैरगाह हो गईं. जहां जमीन पर पड़े सोने के टुकड़ों को जो चाहे बटोर ले. मायावती सत्ता में आने पर या तो अंबेडकर और खुद के महल मूॢतयां बनाने में लग गई या हीरों के हार पहनने में.

अब वे एकदूसरे को दोष दे रहे हैं पर फायदा क्या है? जनता आज खुश है यह नहीं कहा जा सकता या आज की जनता को इतना धर्मभीरू बना दिया गलत है कि वह धर्म ेे नाम पर पहले वोट देती है,  काम पर बाद में जनता के जाति का अहसास भी दिला दिया गया है और जनता अपने कपड़े बेच कर भी जाति को ओडऩा बचाने में लगी हुई है. कांग्रेस की जाति और धर्म के बिना की और बसपा की केवल दलित जाति की नीति किसी को नहीं भा रही. इन नेताओं का कार्य था कि ये सत्ता में आई पार्टी की छिपी लूट की पोल खोलते. आज हर मंदिर फैल रहा है, रामनवमी हो या जन्माष्टमी, लाखों नहीं करोड़ों एकएक जगह फूंके जा रहे हैं जो जनता से जबरन या उसे बहका कर लूटे जा रहे है, इस की कीमत मेहनतकश लोग दे रहे हैं जो या तो धर्म और जाति में क्या और काम पर भरोसा रखते है यवे जो नीची जाति का होने की वजह से बरसों से आजादी फायदे का इंतजार कर रहे है.

ये दोनों पाॢटयां जनता के बड़े हिस्से को ज्यादा हक ज्यादा मौके, ज्यादा पैसा, ज्यादा बराबरी दिला सकती हैं पर इन के नेताओं को खुद से ही फुरसत नहीं है.

सच्ची श्रद्धांजलि: भाग 1

Writer- Sandhya

सुबह-सुबह फोन की घंटी बजी. मुझे चिढ़ हुई कि रविवार के दिन भी चैन से सोने को नहीं मिला. फोन उठाया तो नीता बूआ की आवाज आई, ‘‘रिया बेटा, शाम तक आ जाओ. तुम्हारे पापा और निर्मला की शादी है.’’

मुझे बहुत तेज गुस्सा आ गया. लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘नीता बूआ, आप को मेरे साथ इतना भद्दा मजाक नहीं करना चाहिए.’’

वे तुरंत बोलीं, ‘‘बेटा, मैं मजाक नहीं कर रही हूं, बल्कि तुम्हें खबर दे रही हूं.’’

मैं ने फोन काट दिया. मुझ में पापा की शादी के संबंध में बातचीत करने का सामर्थ्य नहीं था. बूआ का 2 बार और फोन आया किंतु मैं ने काट दिया. मेरी चीख सुन राजेश भी जाग गए तथा मुझ से बारबार पूछने लगे कि किस का फोन था, क्या बात हुई, मैं इतना परेशान क्यों हूं वगैरहवगैरह. मैं तो अपनी ही रौ में बोले जा रही थी, ‘आदमी इतना भी मक्कार हो सकता है. अपनी जान से प्यारी पत्नी के देहांत के ढाई माह के अंदर ही उस की प्यारी सखी से शादी रचा ले, इस का मतलब तो यही है कि मम्मी के साथ उन के पति और उन की सखी ने षड्यंत्र रचा है.’

पापा दूसरी शादी कर रहे हैं, यह सुन कर मैं हतप्रभ थी. रोऊं या हंसूं, चीखूं या चिल्लाऊं, करूं तो क्या करूं, पापा की शादी की खबर गले में फांस की तरह अटकी हुई थी. मम्मी को गुजरे अभी सिर्फ ढाई माह हुए हैं, उन की मृत्यु के शोक से तो मन उबर नहीं पा रहा है. रातदिन मम्मी की तसवीर आंखों के सामने छाई रहती है. घर, औफिस सभी जगह काम मशीनी ढंग से करती रहती हूं, पर दिलोदिमाग पर मम्मी ही छाई रहती हैं. अपने मन को स्वयं ही समझाती रहती हूं. मम्मी तो इस दुनिया से चली गईं, अब लौट कर आएंगी भी नहीं. जिंदगी तो किसी के जाने से रुकती नहीं. मैं खुद भी कितनी खुश हूं कि मेरी मम्मी मुझे सैटल कर, गृहस्थी बसा कर गई हैं. कितने ऐसे अभागे हैं इस संसार में जिन की मम्मी  उन के बचपन में ही गुजर जाती हैं, फिर भी वे अपना जीवन चलाते हैं.

मम्मी के साथसाथ इन दिनों पापा भी बहुत याद आते, मन बहुत भावुक हो आता पापा को याद कर. मन में विचार आता कि मैं तो अपनी गृहस्थी, औफिस और अपनी प्यारी गुडि़या रिंकू में व्यस्त होने के बावजूद मम्मी को भुला नहीं पाती हूं, बेचारे पापा का क्या हाल होता होगा? वे अपना समय मम्मी के बिना किस तरह बिताते होंगे? 30 वर्षों का सुखी विवाहित जीवन दोनों ने एकसाथ बिताया था. मम्मी के साथ साए की तरह रहते थे. उन की दिनचर्या मम्मी के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थी.

मम्मी की मृत्यु के बाद 4 दिन और पापा के साथ रह कर मैं वापस लखनऊ आ गई थी. मैं ने पापा को लखनऊ अपने साथ लाने की बहुत जिद की, पापा को अकेला छोड़ना मुझे नागवार लग रहा था. पापा 2 साल पहले रिटायर्ड हो चुके थे. मेरा सोचना था कि मम्मी के बिना वे अकेले यहां क्या करेंगे.

पापा मेरे साथ आने के लिए एकदम तैयार नहीं हुए. उन का तर्क था, ‘यह घर मैं ने और हेमा ने बड़े प्यार से बनवाया है, सजायासंवारा है. इस घर के हर कोने में मुझे हेमा नजर आती है. उस की यादों के सहारे मैं बाकी जिंदगी गुजार लूंगा. फिर तुम लोग हो ही, जब फुरसत मिले, मिलने चले आना या मुझे जरूरत लगेगी तो मैं बुला लूंगा. 4-5 घंटे का ही तो रास्ता है.’

मैं ने कहा, ‘ठीक है पापा, किंतु मेरी तसल्ली के लिए कुछ दिनों के लिए चलिए.’

पापा तैयार नहीं ही हुए. मैं सपरिवार लखनऊ लौट आई. अपनी गृहस्थी में रमने की लाख कोशिशों के बावजूद पूरे समय मम्मीपापा पर ध्यान लगा रहता. पापा से रोज फोन से बात कर लेती, पापा ठीक से हैं, यह जान कर मन को कुछ तसल्ली होती.

आज अचानक नीता बूआ से पापा की शादी की खबर मिलना, मेरे जीवन में झंझावात से कम न था. मेरी दशा पागलों जैसी हो रही थी. मन में बारबार यही खयाल आता कि बूआ ने कहीं मजाक ही किया हो, यह खबर सही न हो.

निर्मला आंटी और मम्मी कालेज के दिनों से ही अच्छी सहेलियां थीं और शादी के बाद भी दोनों अच्छी सहेलियां बनी रहीं. निर्मला आंटी आगरा में रहती थीं. उन के पति बेहद स्मार्ट और हैंडसम थे व अच्छे ओहदे पर कार्यरत थे, लेकिन शादी के 2 साल बाद ही एक ऐक्सीडैंट में उन का देहांत हो गया. निर्मला आंटी को उन के पति के औफिस में काम पर रख लिया गया. लेकिन उन के ससुराल वालों ने उन्हें ‘अभागी’ मान उन से संबंध तोड़ लिया. उन की सास बहुत कड़े स्वभाव की थीं. उन्होंने साफ कह दिया कि बेटे से ही बहू है, जब बेटा ही नहीं रहा तो बहू कैसी?

निर्मला आंटी एकदम अकेली हो गई थीं, लेकिन मम्मी ने उन्हें टूटने नहीं दिया. मम्मी और निर्मला आंटी में बहुत प्रेम था. मम्मी उन्हें प्रेम से निम्मो कहती थीं तथा आंटी मम्मी को हेमू कह कर पुकारती थीं. मम्मी अब हर मौके पर निर्मला आंटी को अपने घर बुला लेती थीं. मम्मी अकसर आंटी से कहतीं, ‘निम्मो, फिर से शादी कर ले, अकेले जिंदगी पहाड़ जैसी लगेगी, मन की कहनेसुनने को तो कोई होना चाहिए.’ निर्मला आंटी हमेशा ‘न’ कर देतीं, कहतीं, ‘हेमू, यदि मेरे जीवन में उन का साथ होना होता तो उन का देहांत क्यों होता? यदि मेरे जीवन में अकेला, सूनापन है तो वही सही.’ मम्मी फिर भी कहतीं, ‘निम्मो, भविष्य की तो सोच, हर दिन एक से नहीं होते, कोई सहारा चाहिए होता है.’ निर्मला आंटी कहतीं, ‘हेमू, तू और तेरा परिवार है न, इतना अपनापन तुम लोगों से मिलता है, उस सहारे जिंदगी काट लूंगी.’  मम्मी के बहुत समझाने पर भी निर्मला आंटी दूसरी शादी के लिए तैयार न होतीं.

एक बार उन्होंने मम्मी से सख्ती से कह भी दिया था, ‘देख हेमू, यदि तू मुझे आइंदा पुनर्विवाह के लिए बोलेगी तो मैं तेरे पास आना छोड़ दूंगी,’ उन्होंने बहुत भावुक हो कर कहा था, ‘रमेश के साथ गुजरे 2 सालों पर मेरी पूरी जिंदगी कुरबान है हेमू.’ मम्मी ने आंटी को गले से लगाते हुए कहा था, ‘निम्मो, मैं आइंदा तुझ से विवाह के लिए नहीं बोलूंगी, मुझे हेमेश की कसम.’

पापा निर्मला आंटी को ‘साली साहिबा’ कह कर पुकारते थे. मम्मी को यदि पापा की मरजी के खिलाफ पापा से काम करवाना होता तो वे निर्मला आंटी के माध्यम से ही पापा को कहलवाती थीं तथा पापा यह कहते हुए कि साली साहिबा, आप की बात टालने की हिम्मत तो मुझ में नहीं है, काम कर देते थे.

बड़ा प्यारा रिश्ता था पापा और निर्मला आंटी का. दोनों के रिश्तों में शुद्ध लगाव के अलावा ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता था जिसे आपत्तिजनक कहा जा सके. वे दोनों कभी भी अकेले में मिलते हुए या बातें करते हुए भी नजर नहीं आते थे. दोनों के रिश्तों की धुरी तो मम्मी ही नजर आती थी. फिर दोनों ने शादी कैसे कर ली और क्यों कर ली. दोनों इतने समय से मम्मी को छल रहे थे. इस गुत्थी को मैं किसी भी तरह सुलझा नहीं पा रही थी.

मम्मी और निर्मला आंटी रंगरूप, स्वभाव में बहुत मेल खाती थीं. पहली नजर में तो वे जुड़वां बहनें ही नजर आती थीं. मम्मी के कैंसर का पता अंतिम स्थिति में चल पाया. पापा ने मम्मी के इलाज और सेवा में रातदिन एक कर दिए.

मैं ने उन्हें छिपछिप कर रोते हुए देखा था. मम्मी की हालत की खबर निर्मला आंटी को भी दे दी गई. वे खबर मिलते ही मम्मी के पास पहुंच गईं. आते ही मम्मी की सेवा में लग गईं. कितना प्यार करती थीं मम्मी को वे, कभीकभी उन की बुदबुदाहट मुझे सुनाई भी पड़ी थी, ‘यह क्या हो गया? मेरी हेमू को कुछ नहीं होना चाहिए, उसे बचा लो, मुझे उठा लो, उस के सारे कष्ट मुझे दे दो.’

फिर वही सवाल दिमाग को मथने लगता कि कैसे दोनों ने शादी कर ली? इस का मतलब तो यही है कि दोनों मम्मा के सामने नाटक कर रहे थे.

काली सोच: शुभा की आंखों पर कैसा परदा पड़ा था

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुसकरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिडि़या अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’

मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.

‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’

‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’

‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.

‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.

‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’

‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’

उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया. हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.

‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’

‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’

‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’

‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’

‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’

‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’ मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार डाल देती.

पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.

‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.

‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’

‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.

‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’

‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.

‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’

‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’

‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’

‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’

‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’

हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.

सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े. साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.

घर में एक अदृश्य तनाव अब हर समय पसरा रहता. जिस घर में पहले प्रिया की शरारतों व खिलखिलाहटों की धूप भरी रहती, वहीं अब सर्द खामोशी थी.

सभी अपनाअपना काम करते, लेकिन यंत्रवत. रिश्तों की गर्माहट पता नहीं कहां खो गईर् थी.

हम मांबेटी की बातें जो कभी खत्म ही नहीं होती थीं, अब हां…हूं…तक ही सिमट गई थीं.

जीवन फिर पुराने ढर्रे पर लौटने लगा था कि तभी एक रिश्ता आया. कुलीन ब्राह्मण परिवार का आईएएस लड़का दहेजमुक्त विवाह करना चाहता था. अंधा क्या चाहे, दो आंखें.

हम ने झटपट बात आगे बढ़ाई. और एक दिन उन लोगों ने मानसी को देख कर पसंद भी कर लिया. सबकुछ इतना अचानक हुआ था कि मुझे लगने लगा कि यह सब पुरोहितजी के बताए उपायोें के फलस्वरूप हो रहा है.

हंसीखुशी के बीच हम शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे कि पुरोहित दोबारा आए, ‘जयकारा हो बहूरानी.’

‘सबकुछ आप के आशीर्वाद से ही तो हो रहा है पुरोहितजी,’ मैं ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा.

‘इसीलिए विवाह का मुहूर्त निकालते समय आप ने हमें याद भी नहीं किया,’ वे नाराजगी दिखाते हुए बोले.

‘दरअसल, लड़के वालों का इस में विश्वास ही नहीं है, वे नास्तिक हैं. उन लोगों ने तो विवाह की तिथि भी लड़के की छुट्टियों के अनुसार रखी है, न कि कुंडली और मुहूर्त के अनुसार,’ मैं ने अपनी सफाई दी.

‘न हो लड़के वालों को विश्वास, आप को तो है न?’ पंडित ने छूटते ही पूछा.

‘लड़के वालों की नास्तिकता का परिणाम तो आप की बेटी को ही भुगतना पड़ेगा. यह मंगल दोष किसी को नहीं छोड़ता.’

‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’ जैसेतैसे मेरे मुंह से निकला. पुरोहितजी की बात से शादी की खुशी जैसे काफूर गई थी.

‘कुछ कीजिए पुरोहितजी, कुछ कीजिए. अब तक तो आप ही मेरी नैया पार लगाते आ रहे हैं,’ मैं गिड़गिड़ाई.

‘वह तो है बहूरानी, लेकिन इस बार रास्ता थोड़ा कठिन है,’ पुरोहित ने पान की गिलौरी मुंह में डालते हुए कहा.

‘बताइए तो महाराज, बिटिया की खुशी के लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं,’ मैं ने डबडबाई आंखों से कहा.

‘हर बेटी को आप जैसी मां मिले,’ कहते हुए उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, फिर मेरे कान के पास मुंह ले जा कर जो कुछ कहा उसे सुन कर तो मैं सन्न रह गई.

‘यह क्या कह रहे हैं आप? कहीं बकरे या कुत्ते से भी कोई मां अपनी बेटी की शादी कर सकती है.’

‘सोच लीजिए बहूरानी, मंगल दोष निवारण के लिए बस यही एक उपाय है. वैसे भी यह शादी तो प्रतीकात्मक होगी और आप की बेटी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए ही होगी.’

‘लेकिन पुरोहितजी, बिटिया के पापा भी तो कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन की सलाह के बिना…’

‘अब लेकिनवेकिन छोडि़ए बहूरानी. ऐसे काम गोपनीय तरीके से ही किए जाते हैं. अच्छा ही है जो यजमान घर पर नहीं हैं.

‘आप कल सुबह 8 बजे फेरों की तैयारी कीजिए. जमाई बाबू (बकरा) को मेरे साथी पुरोहित लेते आएंगे

और बिटिया को मेरे घर की महिलाएं संभाल लेंगी. ‘और हां, 50 हजार रुपयों की भी व्यवस्था रखिएगा. ये लोग दूसरों से तो 80 हजार रुपए लेते हैं, पर आप के लिए 50 हजार रुपए पर बात तय की है.’ मैं ने कहते हुए पुरोहितजी चले गए.

अगली सुबह 7 बजे तक पुरोहित अपनी मंडली के साथ पधार चुके थे. पुरोहिताइन के समझाने पर प्रिया बिना विरोध किए तैयार होने चली गई तो मैं ने राहत की सांस ली और बाकी कार्य निबटाने लगी.

‘मुहूर्त बीता जा रहा है बहूरानी, कन्या को बुलाइए.’ पुरोहितजी की आवाज पर मुझे ध्यान आया कि प्रिया तो अब तक तैयार हो कर आई ही नहीं.

‘प्रिया, प्रिया,’ मैं ने आवाज दी, लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं ने उस के कमरे का दरवाजा बजाया, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो मेरा मन अनजानी आशंका से कांप उठा.

‘सुनिए, कोई है? पुरोहितजी, पंडितजी, अरे, कोई मेरी मदद करो. मानसी, मानसी, दरवाजा खोल बेटा.’ लेकिन मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मेरे हितैषी होने का दावा करने वाले पुरोहित बजाय मेरी मदद करने के, अपने दलबल के साथ नौदोग्यारह हो गए थे.

हां, आवाज सुन कर पड़ोसी जरूर आ गए थे. किसी तरह उन की मदद से मैं ने कमरे का दरवाजा तोड़ा.

अंदर का भयावह दृश्य किसी की भी कंपा देने के लिए काफी था. मानसी ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस की रगों से बहता खून पूरे फर्श पर फैल चुका था और वह खुद एक कोने में अचेत पड़ी थी. मेरे ऊलजलूल फैसलों से बचने का वह यह रास्ता निकालेगी, यह मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

पड़ोसियों ने ही किसी तरह हमें अस्पताल तक पहुंचाया और सुशांत को खबर की. ऐसी बातें छिपाने से भी नहीं छिपतीं. अगली ही सुबह मानसी के ससुराल वालों ने यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि ऐसे रूढि़वादी परिवार से रिश्ता जोड़ना उन के आदर्शों के खिलाफ है.

‘‘यह सब मेरी वजह से हुआ है,’’ सुशांत से कहते हुए मैं फफक पड़ी.

‘‘नहीं शुभा, यह तुम्हारी वजह से नहीं, तुम्हारी धर्मभीरुता और अंधविश्वास की वजह से हुआ.’’

‘‘ये पंडेपुरोहित तो तुम जैसे लोगों की ताक में ही रहते हैं. जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और तुम फंस गईं जाल में. लेकिन यह समय इन बातों का नहीं. अभी तो बस यही कामना करो कि हमारी बेटी ठीक हो जाए,’’ कहते हुए सुशांत की आंखें भर आईं.

‘बधाई हो, मानसी अब खतरे से बाहर है,’ डा. रोहित ने आईसीयू से बाहर आते हुए कहा. ‘रोहित, विनोद का बेटा है, मानसी के लिए जिस का रिश्ता मैं ने महज विजातीय होने के कारण ठुकरा दिया था, इसी अस्पताल में डाक्टर है और पिछले 48  घंटों से मानसी को बचाने की खूब कोशिश कर रहा है. किसी अप्राप्य को प्राप्त कर लेने की खुशी मुझे उस के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही है. ऐसे समय में उस ने मानसी को अपना खून भी दिया है.

‘क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि रोहित सिर्फ व सिर्फ मेरी बेटी मानसी के लिए ही बना है?

‘मैं भी बुद्धू हूं.

‘मैं ने पहले बहुत गलतियां की हैं. अब और नहीं करूंगी,’ यह सब वह सोच रही थी.

रोहित थोड़ी दूरी पर नर्स को कुछ दवाएं लाने को कह रहा था. उस ने हिम्मत जुटा कर रोहित से आहिस्ता से कहा, ‘‘मानसी ने तो मुझे माफ कर दिया, पर क्या तुम व तुम्हारे परिवार वाले मुझे माफ कर पाएंगे.’’

‘कैसी बातें करती हैं आंटी आप, आप तो मेरी मां जैसी है.’ रोहित ने मेरे जुड़े हुए हाथों को थाम लिया था.

आज उन की भरीपूरी गृहस्थी है. रोहित के परिवार व मेरी बेटी मानसी ने भी मुझे माफ कर दिया है. लेकिन क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊंगी. शायद कभी नहीं.

इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंसने वाली मैं अकेली नहीं हूं. ऐसी घटनाएं हर वर्ग व हर समाज में होती रहती हैं.

मैं आत्मग्लानि के दलदल में आकंठ डूब चुकी थी और अपने को बेटी का जीवन बिगाड़ने के लिए कोस रही थी.

Summer Special: गरमी में ऐसे रखें हाथों का ख्याल

क्या हाथों पर पूरा-पूरा ध्यान देने के बावजूद भी वे सुंदर नजर नहीं आते? ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी सही देखभाल नही होती है. गरमी में हाथों में पसीना आने से हाथों की सौफ्टनेस चली जाती है. कपड़े और बरतन धोने से भी हाथों की रंगत खराब हो जाती है. ऐसे में जरूरत है कि हाथों को नियमित तौर पर ऐक्सफोलिएट और मौइश्चराइज किया जाए. हाथों की केयर करने के लिए आप स्पा जाने की बजाय घर पर ही होममेड पैक से कर सकती हैं. आइए आपको बताते हैं हाथों की केयर करने के लिए कुछ आसान टिप्स….

लाइम यानी नींबू के सौफ्टनर का करें इस्तेमाल

1 बड़ा चम्मच नीबू का रस, 1 छोटा चम्मच चीनी और थोड़ा पानी मिला कर पेस्ट बना लें. इस मिक्सचर को हाथों पर 5 मिनट के लिए लगा कर छोड़ दें. फिर हाथों को गरम पानी से साफ कर के सुखा लें.

शुगर ऐक्सफोलिएट से करें हाथों की देखभाल

वैजिटेबल/सनफ्लावर/बेबी या औलिव औयल के 2 बड़े चम्मच के साथ 3 बड़े चम्मच चीनी मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को अपने हाथों पर 3-4 मिनट तक रगड़ती रहें. फिर गरम पानी से धो कर सुखा लें.

हनी-एग सौफ्टनर देगा हाथों को सौफ्टनेस

एक बाउल में थोड़ा सा शहद, अंडे का सफेद हिस्सा, 1 चम्मच ग्लिसरीन और 1 चम्मच बार्ली पाउडर लें. सब को अच्छी तरह मिला कर हाथों पर लगाएं. कुछ मिनट तक हाथों पर लगा रहने के बाद पानी से साफ कर लें.

टोमैटो लाइम सौफ्टनर से करें ड्राई हाथों की केयर

यदि आप के हाथ बेहद रूखे हैं, तो 1 नीबू और 1 टमाटर का जूस निकाल कर अच्छी तरह मिला लें. फिर 2-3 चम्मच ग्लिसरीन मिलाएं और इस पेस्ट से हाथों का मसाज करें. 4-5 मिनट के बाद गरम पानी से साफ कर लें.

नेल सौफ्टनर से नेल्स को चमकाएं

औलिव आयल से नेल्स की मसाज करें. इसके बाद गरम पानी में डुबाएं. इस से ब्लड सर्कुलेशन अच्छे से होता है और नेल्स भी क्लीन और हेल्दी रहते हैं.

सिसकी- भाग 2: रानू और उसका क्या रिश्ता था

‘मम्मी, आप की नूडल्स और आप का परांठा मु?ो तो बहुत बुरा लगता है. ये तो भैया के लिए ही रहने दो. मु?ो तो दूध दो चौकलेट वाला,’ यह कह कर वह मम्मी के गले से जोर से चिपक जाती.

मम्मी उसे गले से लगाए ही दूध गरम करतीं, फिर उस में चौकलेट मिक्स मिलातीं और रानू को अपनी गोद में बिठा कर उसे प्यार से पिलातीं.

चिंटू और रानू बाहर के कमरे में बैठ कर एकटक अपनी मम्मी और पापा की फोटो को देखते रहते. उन की आंखों से आंसू बहते रहते.

‘चिंटू, चलो बाजार चलते हैं, तुम्हें जूता लेना है न?’

‘अरे, अभी तो मैं होमवर्क कर रहा हूं.’

‘आ कर कर लेना.’

‘अच्छा चलो पर आइसक्रीम भी खिलाना.’

मम्मी तक आवाज पहुंच चुकी थी.

‘खबरदार जो आइसक्रीम खाई, सर्दी हो जाती है. नाक बहने लगती है,’ मम्मी की जोर से आवाज अंदर से ही आती.

‘अरे, एकाध आइसक्रीम खा लेने से सर्दी नहीं होती,’ पापा बचाव करते.

‘रहने दो, तुम्हें क्या है, परेशान तो मु?ो ही होना पड़ता है.’

पापा सम?ा जाते कि अब मम्मी से बहस करना खतरे से खाली नहीं है. वे चुप हो जाते पर हाथों के इशारे से चिंटू को सम?ा देते कि वे बाजार में आइसक्रीम खाएंगे ही.

‘रानू को भी ले लें,’ कहते हुए पापा रानू को गोद में उठा लेते.

बाजार से जब लौटते तो एक आइसक्रीम मम्मी के लिए ले कर आना न भूलते.

‘देख लेना चिंटू, मम्मी बेलन ले कर मारने दौड़ेगी.’

‘पर पापा, हम लोग सभी ने आइसक्रीम खा ली है. मम्मी अकेली नहीं खा पाई हैं. उन के लिए तो ले जानी ही पड़ेगी न.’

‘रख लो बेटा, मैं भी उस के साथ बेईमानी नहीं कर सकता.’

मम्मी को आइसक्रीम रानू के हाथों से दिलाई जाती. मम्मी कुछ न बोलतीं. आइसक्रीम को फ्रिज में रख देतीं.

‘अरे खा लो, फ्रिज में वह पानीपानी हो जाएगी,’ पापा बोलते जरूर पर वे मम्मी की ओर देख नहीं रहे होते थे.

‘रख ली, तुम्हारा लाड़ला फिर मांगेगा तो उसे देनी पड़ेगी.’

‘अरे, तुम तो खा लो. उसे दूसरी ला देंगे.’

पर मम्मी न खातीं. आइसक्रीम शाम को उसे फिर से मिल जाती.

बाहर किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. चिंटू बो?िल कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ गया. वह जानता था कि इस समय केवल कामवाली काकी ही आई होंगी. वैसे भी अब उन के घर में कोई आताजाता था ही नहीं. पापा थे तब कोई न कोई आताजाता रहता था पर अब तो जैसे सभी ने इस घर की तरफ से मुंह फेर लिया था. कामवाली काकी ही थीं दरवाजे पर.

दरवाजा खुलते ही वे अंदर आ गईं. उन्होंने लाड़ से रानू को गोद में उठा लिया. काकी जब भी इन बच्चों को देखतीं उन की आंखों से आंसू बह निकलते. कितना अच्छा घर था. सभी लोग हंसीखुशी रहते थे पर एकाएक कुदरत ने ऐसा कर दिया कि महीनेभर में ही सारी खुशियां गायब हो गईं.

चिंटू के पापा सहेंद्र थे भी भले आदमी. वे कचहरी में नौकरी करते थे. जरूरतमंद लोगों की हमेशा मदद करने और उन की ईमानदारी की वजह से सभी लोग उन की इज्जत करते थे. उम्र ज्यादा नहीं थी, केवल 35 साल. उन की पत्नी रीना थीं तो घरेलू महिला मगर वे सामाजिक कामों में आगे रहतीं. सहेंद्र उन्हें कभी रोकते नहीं थे. 2 संतानें थीं. बड़ा बेटा 8 साल का और छोटी बेटी

6 साल की. पिताजी थे जो उन के साथ ही रहते थे. मां का देहांत तो कुछ वर्ष पूर्व ही हो गया था. मां की मौत ने पिताजी को तोड़ दिया था. वे बिस्तर पर लग गए. पिछले साल उन्हें लकवा लग गया. सहेंद्र उन की सेवा करते और उन की पत्नी भी उन्हें अपने पिता की तरह ही सहयोग करतीं.

वैसे तो सहेंद्र का एक भाई और था महेंद्र पर वह शादी हो जाने के बाद से ही इसी शहर में अलग रह रहा था. एक बहन भी थी जिस की भी शादी हो चुकी थी. पिताजी ने बाकायदा अपनी जायदाद को 3 भागों में बांट दिया था. महेंद्र को भी एक हिस्सा मिला और बहन को भी. वैसे तो पिताजी चाहते थे कि वे एक हिस्सा अपना भी बचाएं, बुढ़ापे का क्या भरोसा, किसी ने साथ नहीं दिया तो कम से कम दो टाइम की रोटी तो खा ही लेंगे पर सहेंद्र ने उन्हें भरोसा दिला दिया था कि वे पूरे समय उन की देखभाल करेंगे, वे चिंता न करें. उन्होंने सहेंद्र की बात मान ली.

सहेंद्र जानते थे कि इस चौथे हिस्से के चक्कर में भाईबहनों में ?ागड़ा हो जाएगा. वे नहीं चाहते थे कि उन के भाई और बहनों के बीच कभी भी जायदाद को ले कर कोई ?ागड़ा हो. सहेंद्र अपने भाई महेंद्र को बहुत स्नेह करते थे और बहन को भी. बहन भी जब मायके के नाम पर आती थी तो सहेंद्र के घर ही आती थी. महेंद्र के घर तो केवल बैठने जाती थी. अकसर जब भी बहन मायके में रुक कर अपनी ससुराल जाती तो सहेंद्र फूटफूट कर रोते जैसे अपनी बिटिया को विदा कर रहे हों.

सहेंद्र शाम को घर लौटते तो अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर घुमाने ले जाते. बच्चे उन के आने की राह देखते रहते. कई बार उन की पत्नी भी साथ हो लेती पर अकसर ऐसा नहीं हो पाता था.  रीना घर में ठहर जाती और बच्चों के लिए खाना बनाने लगती. शाम का खाना सभी लोग मिल कर खाते. रानू को खाना खिलाना रीना के लिए बड़ी चुनौती होती. वह पूरे घर में दौड़ लगाती रहती और हाथों में कौर पकड़े रीना उस के पीछे भागती रहती. रीना जानती थी कि रानू का यह खेल है, इसलिए वह कभी ?ां?ालाती नहीं थी. चिंटू पापा के साथ बैठ कर खाना खा लेता.

रीना तो पिताजी को खाना खिलाने के बाद ही खुद खाना खाती. पिताजी के लिए खाना अलग से बनाती थी. रीना स्वयं सामने खड़ी रह कर पिताजी को खाना देती और फिर उन की दवाई भी देती. वह अपने पल्लू से पिताजी का चेहरा साफ करती और उन्हें सुला देती. तब तक सहेंद्र अपने बच्चों का होमवर्क करा देते.

सहेंद्र के परिवार में कोई समस्या न थी, पर एक दिन अचानक सहेंद्र बीमार हो गए. औफिस से लौटे तो उन्हें तेज बुखार था. हलकी खांसी भी चल रही थी. वे रातभर तेज बुखार में पड़े रहे. उन्हें लग रहा था कि मौसम के परिवर्तन के कारण ही उन्हें बुखार आया है. हालांकि शहर में कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा था. इस कारण से रीना भयभीत हो गई थी.

‘आप डाक्टर से चैक करा लें,’ रीना की आवाज में भय और चिंता साफ ?ालक रही थी.

‘नहीं, एकाध दिन देख लेते हैं, थकान के कारण बुखार आ गया हो शायद.’

YRKKH: अक्षरा-अभिमन्यु की तस्वीरें हुई वायरल, फैंस को याद आए नायरा-कार्तिक

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata hai) में  इन दिनों शादी का ट्रैक दिखाया जा रहा है. शो में अक्षरा और अभिमन्यु की शादी की रस्में शुरू हो गई है. ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में जल्द ही गोयनका और बिरला फैमिली अक्षरा और अभिमन्यु की संगीत सेरेमनी के लिए एक साथ नजर आएंगे. अक्षरा और अभिमन्यु की संगीत की फोटो सोशल मीडिया पर छाई है. आइए आपको दिखाते हैं, अक्षरा और अभिमन्यु की संगित की फोटो.

अक्षरा और अभिमन्यु की शानदार ट्विनिंग

 

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इन फोटोज को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि अक्षरा और अभिमन्यु का संगीत बेहद ग्रैंड अंदाज में होने वाला है. दोनों पिंक जोड़े में नजर आ रहे हैं.

 

अक्षरा और अभिमन्यु की संगीत सेरेमनी देख लोगों को कार्तिक-नायरा की संगीत सेरेमनी याद आ गई. उनके संगीत में भी बादशाह ने अपने गानों से चार चांद लगा दिया था.

 

अक्षरा और अभिमन्यु की संगीत में मशहूर सिंगर कुमार सानू धमाकेदार एंट्री करेंगे. वह दोनों की संगीत मे चार चांद लगाते नजर आएंगे. कुमार सानू से जुड़ीं ये फोटोज खूब सुर्खियों में हैं,  इस फोटो में आप देख सकते हैं कि एक तरफ वह सुर छेड़ते दिखाई दिए तो वहीं अक्षरा और अभिमन्यु डांस करते नजर आए.

 

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अक्षरा और अभिमन्यु की शादी का फैंस को भी बेसब्री से इंतजार है. दरअसल फैंस ने इन तस्वीरों पर कमेंट कर अपनी एक्साइटमेंट जाहिर की है.

 

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Anupamaa: वनराज को लूजर कहेगा पारितोष, काव्या भी देगी धमकी!

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) में लगातार हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. जिससे फैंस का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि वनराज अपने नौकरी खोने की वजह से डिप्रेशन में है, बा बापूजी को बताती है कि कहीं वनराज गलत कदम न उठा ले. ऐसे में में बापूजी वनराज को समझाते हैं. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि काव्या राखी दवे की बातों में आकर वनराज को खूब सुना रही है. शो के अगले एपिसोड  में अब कुछ ऐसा होने वाला है कि वनराज के साथ-साथ अनुपमा के भी होश उड़ जाएंगे.

 

शो में आप देखेंगे कि वनराज को समझ नहीं आएगा कि नौकरी जाने के बाद से वह अब नई शुरुआत कैसे करें, वह पारितोष के साथ अपनी आगे की प्लानिंग शेयर करेगा. तभी पारितोष बताएगा कि उसे बिजनेस शुरू करने के लिए फंडिंग की जरूरत होगी और इसके लिए उसे कोई मिल भी गया है.

 

परितोष उस शख्स का नाम जैसे ही वनराज को बताएगा, तभी शाह हाउस में राखी दवे की एंट्री होगी. ऐसे में वनराज मना कर देगा कि वह राखी दवे जैसी इंसान से कोई भी मदद नहीं लेना चाहता है. तो वहीं पारितोष का पारा चढ़ जाएगा और वह वनराज को लूजर कह देगा.

 

पारितोष आगे ये भी कहेगा कि वह भी वनराज की तरह ही लूजर बन गया है लेकिन आगे वह ऐसा नहीं होने देगा. पारितोष की बात सुनकर अनुपमा भी हैरान हो जाएगी.

शो में आप ये भी देखेंगे कि अनुपमा की मां अनुज को शगुन में कुछ देना चाहेंगी लेकिन वह कुछ भी लेने से मना कर देगा. वह अनुपमा की मां से वादा करेगा कि अबवह एक बेटे की तरह ही उनकी सारी जिम्मेदारी उठाएगा.

Summer Special: गरमी में पैर रहेंगे क्लीन

गरमी में स्किन का ख्याल तो सभी रखते हैं, लेकिन क्या आप अपने पैरों का ख्याल रखते हैं. पैर का ख्याल रखना हमारी लाइफ में सबसे ज्यादा जरूरी है. हम रोजाना जूते और सैंडल पहनते हैं, जिससे हमारे पैरों में पसीना और धूल मिट्टी जमा हो जाती है और अगर पैरों में पसीना न आए तो यह हमारी पैरों की स्किन को भी नुकसान पहुंचा सकती है. इसीलिए पैरों को भी डिटौक्स की जरूरत होती है, जिससे हमारी पैरों की स्किन और ज्यादा सुंदर हो जाएगी. इसीलिए आज हम आपको घर पर कैसे पैरों को कैसे डिटौक्स करें इसके लिए कुछ टिप्स बताएंगे.

कुछ देर में डालें पानी में पैर

पानी में पैर डालकर बैठें, इसमें थोड़ा एप्सम सौल्ट और इसेंशल औइल मिला हैं. 15 मिनट तक पैरों को पानी में डाले रहें इसके बाद सुखाकर मौइश्चराइजर लगाएं.

फुट मास्क करें ट्राई

ये मास्क पैरों पर कुछ देर के लिए लगाए जाते हैं फिर इन्हें धो दिया जाता है. फुट मास्क पैरों की स्किन को नर्म बनाते हैं और फंगस जैसी समस्याओं को भी दूर करते हैं.

फुट स्क्रब है बैस्ट

पैरों पर नियमित रूप से स्क्रब करना चाहिए. इससे डेड स्किन सेल्स निकलती है साथ ही पैरों की स्मेल भी खत्म होती है.

फुट पैड्स से आते हैं टौक्सिन्स बाहर

फुट पैड्स इस तरह से बनाए जाते हैं जिनसे पैरों से पसीना आए. माना जाता है कि इस प्रक्रिया से शरीर से टौक्सिन्स बाहर आते हैं.

ऐक्युप्रेशर वाली मसाज आएगी काम

हमारे पैर पेड़ की जड़ की तरह होते हैं जिनमें कई सारी नर्व्स होती हैं. ऐक्युप्रेशर मसाज से शरीर के कई हिस्सों में दर्द से राहत मिलती है.

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