जहां दोस्ती होती है वहां भेदभाव की जगह नहीं रहती है. बहुत सारे ऐेसे उदाहरण हैं जहां दोस्ती में भेद को सही नहीं माना जाता. इस के बाद भी मनुवादी सोच और जातीय भेद के कारण दोस्ती में जाति का भेद होता है. आजादी के बाद लंबे समय तक इस का प्रभाव कम होता जा रहा था लेकिन हाल के 10-12 सालों में यह फिर से तेजी से बढ़ने लगा है. राजनीतिक बहस और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देने के कारण यह दिखने भी लगा है.

दोस्ती में जाति का भेद नया नहीं है. पौराणिक काल से यह होता आ रहा है. कर्ण और दुर्योधन की पुरानी कहानी है जिस की मिसाल दी जाती है. वहीं यह भी पता चलता है कि किस तरह से बाकी लोग कर्ण के साथ भेदभाव करते थे. महाभारत काल में राजा पांडू की पत्नी कुंती ने शादी से पहले ही कर्ण को जन्म दिया था. लोकलाज के कारण कर्ण को नदी में बहा दिया था. इस के बाद कर्ण का पालनपोषण नदी किनारे रहने वाले मछुआरे के घर में हुआ. इस कारण वे शूद्रपुत्र कहलाते थे. इस के कारण समाज में भेदभाव होता था.

हर कोई कर्ण को अपमानित करता था. बराबरी का योद्धा होने के बाद भी उस को सम्मान नहीं दिया जाता था. इस भेदभाव को दूर करने के लिए कौरव पुत्र दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का राजा बना दिया. उस के बाद कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती जाति के भेदभाव से आगे निकल गई. कर्ण ने भी दोस्ती का पूरा हक अदा किया. महाभारत में अपने ही भाइयों के खिलाफ युद्ध किया. जातिगत भेद होने के बाद भी कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती मशहूर है.

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