लाड़ लड़ाती बेटी जैसी बहू पा कर मैं निहाल हो गई. मांमां कर जब वह गले लग जाती तो बेटी की कमी पूरी हो जाती लेकिन कभीकभी ज्यादा मीठा भी कड़वा लगने लगता है... ‘‘वाणी, बस मु झे तुम से यही कहना है कि मेरी मम्मी को भी अपनी मां ही सम झना, उन्हें सास मत सम झना. दीदी का जब से विवाह हुआ है, उन्हें अकेलापन लगता होगा. तुम बिलकुल अपनी मां की तरह ही रहना उन के साथ, प्रौमिस करो, वाणी,’’ फोन पर दूसरी तरफ वाणी ने क्या कहा होगा, यह तो नहीं जान सकती थी लतिका, पर अपने बेटे मयंक की फोन पर यह बात सुन कर उन्हें बेटे पर गर्व हो आया, वाह, कितनी अच्छी बात कर रहा है उन का बेटा, गर्व से सीना चौड़ा हो गया, आंखों में चमक उभर आई. एक महीने बाद ही तो मयंक का विवाह होना था. वह वाणी से प्रेमविवाह कर रहा था.

मयंक ने जब मां लतिका को पहली बार वाणी से मिलवाया था, तो वाणी उन्हें पहली नजर में ही पसंद आ गई थी. सुंदर, स्मार्ट, खूब हंसमुख वाणी का घर मुंबई के एक इलाके पवई में लतिका के घर से कुछ दूरी पर ही था. वाणी और मयंक अच्छे पद पर थे. दोनों एक कौमन फ्रैंड के घर पर मिले थे. दोस्ती, प्यार, फिर अब विवाह होने वाला था. वाणी अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. लतिका की बेटी सुनयना का विवाह 2 वर्षों पहले हुआ था. वह सपरिवार अमेरिका में थी. लतिका और उस के पति विनोद बहुत उत्साहपूर्वक विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे. वाणी लतिका से फोन पर काफी संपर्क में रहती थी. अभी से ही वह लतिका का दिल जीत चुकी थी. और आज बेटे की फोन पर बात सुन कर तो लतिका के पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. विनोद जैसे ही औफिस से आए, लतिका ने उन के साथ बैठ कर चाय पीते हुए मयंक की फोन पर सुनी बात बताई. विनोद ने कहा, ‘‘वाह, तुम तो बहुत लकी हो. एक बेटी गई, दूसरी बेटी घर आ रही है. चलो, अच्छा है. मयंक सचमुच सम झदार बेटा है.’’ लतिका का वाणी को बहू बना कर लाने का उत्साह और भी बढ़ गया था. दिन गिन रही थीं. कब बहू आए और उन्हें अच्छा साथ मिले. कुछ महीनों से उन का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था. और वाणी बहू बन कर आ भी गई, घर की दीवारें जैसे चहक उठीं. लतिका ने खुलेदिल से उस पर स्नेह की वर्षा कर दी.

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