कुमार उसी दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ. कुछ ही दूरी पर एक नारी छाया धरती पर बैठी दिखाई दी. पीड़ा की छटपटाहट और रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था.
कुमार उसी दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ. कुछ ही दूरी पर एक नारी छाया धरती पर बैठी दिखाई दी. पीड़ा की छटपटाहट और रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था.
डाॅक्टर जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की जान बचाता है तो वह उसे एक नया जीवन ही देता है. लेकिन धरती में अकेले डाॅक्टर ही नहीं है जो किसी को जीवनदान दे सकता है. एक साधारण इंसान भी चाहे तो जीवन में एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों लोगों को जीवनदान दे सकता है. जी, हां! ये जीवनदान रक्तदान करके दिया जा सकता है. एक स्वस्थ व्यक्ति अपने 70 साल के जीवन में कम से कम 200 से 250 यूनिट रक्तदान कर सकता है. यूं तो कोई भी व्यक्ति एक महीने बाद ही फिर से रक्तदान कर सकता है, लेकिन अगर उसे इतनी जल्दी रक्तदान करने में किसी किस्म का मानसिक डर सताता हो तो वह रक्तदान करने के तीन महीने बाद आंख मूंदकर रक्तदान कर सकता है. इस तरह से कोई भी इंसान एक साल में 4-5 बार रक्तदान कर सकता है. अगर 4-5 बार रक्तदान करना जीवनशैली के चलते संभव न हो तो कोई भी साधारण आदमी एक साल में कम से कम 2 बार एक यूनिट खून तो आंख मूंदकर दान कर सकता है.
यह इसलिए जरूरी है क्योंकि दुनिया में हर दिन करीब 3700 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इनमें से करीब 2000 लोग बचाये जा सकते हैं, लेकिन वे इसलिए नहीं बच पाते; क्योंकि दुर्घटना के बाद तुरंत होने वाले इलाज के समय उनमें खून चढ़ाने की जरूरत होती है और खून समय पर मिल नहीं पाता. हर साल दुनिया में जो 13 लाख 50 हजार लोग रोड दुर्घटनाओं के चलते मारे जाते हैं, उनमें से कई लाख बच सकते हैं अगर समय पर खून मिल जाए. सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं में ही नहीं तमाम दूसरी बीमारियों में भी रक्त अनुपलब्धता के कारण होने वाली मौतों को देखें तो यह आंकड़ा हैरान करने वाला है. दुनिया में हर दिन करीब 1 लाख 50 हजार लोगों की मौत होती है, जिसमें 40,000 से ज्यादा लोगों की मौत का कारण खून की अनुपलब्धता से जुड़ी होती है.
भारत में भी हर दिन करीब 2000 या इससे भी ज्यादा लोग तमाम तरह की बीमारियों से लेकर सड़क दुर्घटनाओं तक में इसीलिए असमय मौत का शिकार हो जाते हैं; क्योंकि उनके इलाज में जरूरत के समय रक्त नहीं मिल पाता. हिंदुस्तान में हर साल 1.50 लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं या जीवनभर के लिए अपाहिज हो जाते हैं. इन हर तरह की मौतों में रक्तदान बड़े पैमाने पर कमी ला सकता है, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी देश में उतना रक्तदान नहीं हो पाता, जितने रक्त की हर समय जरूरत होती है. दुनिया में करीब 10 करोड़ लोग हर साल रक्तदान करते हैं. जबकि भारत में बमुश्किल 50 से 55 लाख लोग ही हर साल रक्तदान करते हैं. देश को हर साल तमाम तरह की बीमारियों और दुर्घटना में घायल लोगों को बचाने के लिए 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा ब्लड यूनिट की जरूरत पड़ती है, लेकिन हर साल करीब 90 लाख यूनिट ही हमारे यहां रक्त एकत्र हो पाता है, जिसका साफ सा मतलब है कि हर साल करीब 30 लाख लोगों को खून की जरूरत के समय नहीं मिल पाता, इसमें से बड़ी संख्या में लोग मर जाते हैं.
सवाल है लोग रक्तदान क्यों नहीं करते? इसकी सबसे बड़ी वजह रक्तदान को लेकर फैली तमाम तरह की भूतियां हैं, मसलन इससे हम कमजोर हो जाते हैं, इससे हमारे शरीर में खून का बनन बंद हो जाता है, इससे हमें कई तरह की बीमारियां लग जाती हैं. ऐसे न जाने कितने भ्रम हैं जो रक्तदान के साथ जुड़े हुए हैं. जबकि हकीकत इसके बिल्कुल अलग है. रक्तदान से न केवल किसी किस्म का नुकसान नहीं होता बल्कि उल्टे इससे कई किस्म के फायदे होते हैं. मसलन जो स्वस्थ लोग साल में एक या दो बार रक्तदान करते हैं, उनको हार्टअटैक की आशंकाएं कम से कम होती हैं. यही नहीं रक्तदान करने से वजन भी कम होता है. रक्तदान करने से शरीर में एनर्जी आती है तथा लिवर से जुड़ी समस्याओं में राहत मिलती है. इससे आयरन की मात्रा को बैलेंस कर सकते हैं और कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है.
इस सबके बावजूद भी सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया के ज्यादातर देशों में लोग रक्तदान से उदासीन रहते हैं. मसलन भारत जहां महज 75 फीसदी ही खून की जरूरत को पूरी कर पाता है, वहीं श्रीलंका को भारत से भी कम अपनी जरूरत का महज 60 फीसदी रक्त ही रक्तदान से हासिल हो पाता है. नेपाल और थाइलैंड में भारत से ज्यादा रक्तदान होता है; क्योंकि नेपाल अपनी जरूरत का 90 फीसदी तथा थाइलैंड करीब 95 फीसदी अपनी जरूरत का रक्त, रक्तदान के जरिये हासिल कर लेता है. कहने का मतलब यह है कि दुनिया के बहुत कम ऐसे देश हैं, जहां जरूरत से ज्यादा रक्त एकत्र होता है. सवाल है इसकी सबसे बड़ी वजह क्या है? इसकी सबसे बड़ी वजह तमाम किस्म की भ्रंातियां तो हैं ही, एक बड़ी वजह आधी दुनिया को रक्तदान से दूर रखना भी समस्या है. गौरतलब है कि भारत में सिर्फ 10 फीसदी महिलाएं ही रक्तदान कर पाती हैं.
भारत में महिलाओं का बहुत कम रक्तदान कर पाना इसलिए भी चिंता का विषय है; क्योंकि भारत की ज्यादातर महिलाएं मेडिकली फिट नहीं हैं. ज्यादातर महिलाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 से कम होता है. अगर हीमोग्लोबिन ठीक भी होता है तो उनका वजन खतरनाक स्तर से कम होता है. इसलिए महिलाएं हिंदुस्तान में काफी कम योगदान रक्तदान में करती हैं. देश में रक्तदान को लेकर धारणा यह भी बनी हुई है कि गर्मियों में रक्तदान करने से शारीरिक समस्याएं बढ़ जाती हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हिंदुस्तान जैसे देश में सबसे ज्यादा रक्त की जरूरत होती है. देश में कई वजहों से रक्तदान की बहुत जरूरत है. देश में हर साल 8,000 से ज्यादा बच्चे थैलीसिमिया जैसी बीमारी के साथ पैदा होते हैं. इनमें से कई बच्चों की असमय मौत हो जाती है क्योंकि इस बीमारी में लगातार खून बदलने की जरूरत होती है. यही नहीं भारत में करीब डेढ़ से दो लाख थैलीसिमिया के मरीज हैं, जिनमें बार बार रक्त बदलने की जरूरत पड़ती है. भारत में रक्तदान की दर बहुत ही कम है. 1000 में सिर्फ 8 लोग ही हैं जो स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं. भारत उन 70 से ज्यादा देशों में से है, जहां खून की जरूरत के समय लोग अपने करीबी रिश्तेदारों या खून बेचने वालों पर निर्भर रहते हैं. देश में कोई भी ऐसा हाॅस्पिटल नहीं है जहां बड़े पैमाने पर हर रोगी की जरूरत के लिए पहले से रक्त उपलब्ध हो.
ऐसे में जरूरी है कि हिंदुस्तान में रक्तदान को जितना ज्यादा हो सके प्रमोट करना चाहिए. तभी हम बड़े पैमाने पर होने वाली असमय की मौतों से बच सकते हैं.
आकाश काले मेघों से आच्छादित था. चौथे पहर तक अंधकार सा छाने लगा था, परंतु वर्षा नहीं हो रही थी. सूर्यदर्शन कई दिनों से नहीं हुआ था. वन हरियाली से लहलहा रहे थे. कई दिन से हो रही घनघोर वर्षा कुछ ही समय पहले थमी थी.
कुमार पृषघ्र अपने आश्रम से दूर एक पहाड़ी चट्टान पर बैठा प्रकृति के इस अनुपम रूप का आनंद ले रहा था. तभी कहीं से एक पुष्पगुच्छ आ कर कुमार के चरणों के पास गिरा. चकित भाव से उसे उठा कर उस ने चारों ओर दृष्टिपात किया, लेकिन कहीं कोई दिखाई नहीं दिया. ऐसा अकसर होता रहता था. जब भी वह संध्या समय एकांत में प्रकृति की गोद में बैठता, कहीं से पुष्पगुच्छ आ कर उस के शरीर का स्पर्श करता. कई प्रयास करने पर भी वह नहीं जान पाया कि पुष्पगुच्छ कहां से, कौन फेंकता है. किंतु आज यह रहस्य स्वत: ही खुल गया.
कुछ क्षणों के अंतराल से एक नारी कंठ की चीख सुनाई दी. कुमार उसी दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ. कुछ ही दूरी पर एक नारी छाया धरती पर बैठी दिखाई दी. पीड़ा की छटपटाहट और रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था.
‘‘कौन हो तुम? क्या हुआ?’’ निकट जा कर कुमार पृषघ्र ने कोमल स्वर में पूछा. अंधकार की वजह से चेहरा स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था.
प्रश्न सुन कर, अपना कष्ट भूल कर वह एकाएक खड़ी हो गई, करबद्ध, नतमस्तक.
‘‘कौन हो? यहां इस निपट अंधकार में क्या कर रही थीं?’’
लेकिन उत्तर देने की अपेक्षा स्त्री ने पीठ मोड़ कर चेहरा छिपा लिया, किंतु प्रस्थान का प्रयास नहीं किया.
‘‘यह तुम्हीं ने फेंका था?’’ कुमार ने अपने हाथ के पुष्पगुच्छ को उस की ओर बढ़ाते हुए पूछा.
उस ने अपना चेहरा कुमार की ओर मोड़ा और तभी भयंकर गड़गड़ाहट के साथ आकाश में बिजली चमकी, जिस से सारा वनप्रदेश क्षण भर के लिए प्रकाशित हो गया. कुमार पृषघ्र ने तरुणी को क्षण भर में ही पहचान लिया.
‘‘तुम…तुम ही मुझ पर पुष्पगुच्छ फेंकती रही हो, गुर्णवी?’’ कुमार के स्वर में आश्चर्य था.
‘‘जी हां…किंतु क्षमा करें, देव, अब से ऐसा नहीं होगा.’’
‘‘लेकिन क्यों? क्या सहज परिहास के लिए? इस का परिणाम जानती हो?’’
‘‘अपराध क्षमा करें, कुमार, अब ऐसा नहीं होगा,’’ उस ने पुन: करबद्ध, नतमस्तक हो उत्तर दिया.
तभी आकाश में पुन: बिजली चमकी. कुमार ने अब देखा, गुर्णवी पसीने से तर क्षीणलता सी कांप रही है. बालों की वेणी और हाथों के गजरे उन्हीं पुष्पों के थे जिन्हें उस ने पुष्पगुच्छ के रूप में कुमार पर फेंका था. भय और रुदन की हिचकियों से उस का संपूर्ण शरीर रहरह कर थरथरा रहा था. वन विचरण के समय अकसर दोनों की भेंट हो जाया करती थी, अत: अपरिचित नहीं थे.
‘‘वह तो ठीक है कि अब ऐसा नहीं होगा, पर अब तक क्यों होता रहा, यह तो बताओ?’’ पृषघ्र के गौरवर्णी चेहरे पर एक रहस्यमयी मुसकान दौड़ गई, जिसे अंधकार में गुर्णवी न देख सकी.
‘‘क्षमा करें, देव… मैं…’’
‘‘क्या तुम मुझे चाहने लगी हो? क्या यह सब अभिसार की अभिलाषा से कर रही थीं?’’ कोमल स्वर में कुमार ने पूछा.
‘‘हां…नहीं…नहीं,’’ वह हड़बड़ा कर बोली.
तभी भयंकर गर्जना के साथ फिर बिजली चमकी. कुमार ने देखा, गुर्णवी के दोनों हाथ रक्तरंजित हो रहे थे. करबद्ध होने से रक्त बह कर कुहनियों तक आ गया था.
‘‘तुम तो घायल हो,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस के दोनों हाथों को अलग कर हथेलियां देखने का प्रयास किया.
‘‘मुझे छुएं नहीं, कुमार, मैं…मैं शूद्र कन्या हूं,’’ कहते हुए उस ने पीछे हटने का प्रयास किया.
‘‘यह समय इन बातों का नहीं है, तुम्हें सहायता और औषधि की आवश्यकता है. चलो, तुम्हें तुम्हारे आवास तक पहुंचा दूं.’’
‘‘मैं धीरेधीरे चली जाऊंगी. पैर में बड़ा शूल लगा है और मोच भी है, धीरेधीरे जाना होगा. किसी ने आप को मुझे छूते हुए देख लिया तो संकट होगा. आप पर विपत्ति आ जाएगी. आप पधारें,’’ गुर्णवी ने निवेदन किया.
‘‘ओह,’’ पृषघ्र बोला, ‘‘वह सब छोड़ो, मेरे पास आओ,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उसे उठा कर अपने बलिष्ठ कंधों पर डाल लिया और चल पड़ा.
गुर्णवी ने कोई विशेष विरोध भी नहीं किया.
उस के आवास तक पहुंचतेपहुंचते दोनों वर्षा की बौछारों में स्नान कर चुके थे. कुटिया काफी बड़ी थी. गुर्णवी दूसरी ओर वस्त्र बदलने चली गई. कुमार पृषघ्र पुन: बाहर आ कर खड़ा हो गया.
‘‘पधारें, कुमार,’’ गुर्णवी ने कुछ देर बाद भीतर से कहा. उस ने जैसेतैसे अग्नि प्रज्ज्वलित कर ली थी.
कुटिया में प्रवेश कर कुमार ने अग्नि के मंद प्रकाश में गुर्णवी के सौंदर्य को देखा और अभिभूत हो गया. भरी देहयष्टि, कटि प्रदेश को चूमती सघन केशराशि, बड़ेबड़े काले नेत्र और राजमहल के शिखर सा गर्वोन्मत्त वक्ष प्रदेश. कुमार पृषघ्र निर्निमेष उसे देखता ही रह गया.
गुर्णवी शूद्र जाति की यौवना थी. प्रकृति ने उसे सजानेसंवारने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, प्रकृति की वह अनुपम कृति थी. उस दिन के बाद कुमार पृषघ्र उस से अकसर मिलने लगा.
‘‘इस प्रकार की भेंट का परिणाम जानते हैं, कुमार?’’ एक सांझ उस ने कुमार पृषघ्र से पूछा.
‘‘क्या तुम भयभीत हो?’’ कुमार ने गुर्णवी के झील से गहरे नेत्रों में झांकते हुए पूछा.
‘‘मुझे कोई भय नहीं है,’’ वह बोली, ‘‘अधिक से अधिक क्या होगा… मेरा वध न? आप को पा कर जितना जीवन मिलेगा वह मेरे कई जन्मों की थाती होगी. न मेरे मातापिता हैं, न भाईबंधु. सबकुछ अल्पायु में ही खो चुकी हूं. इन वनों ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया है. मैं तो केवल आप के लिए चिंतित हूं,’’ उस के मुखमंडल पर गहन दुख और चिंता का भाव तैर गया.
‘‘ऐसा क्यों सोचती हो, गुर्णवी? जीवन के प्रति सदैव आशावान रहना सीखो.’’
‘‘हमारी व्यवस्था ही ऐसी है. यह जो वर्ण व्यवस्था है, हमारे ऋषियों ने कुछ सोच कर ही बनाई होगी. हमारे मिलन को कभी मान्यता नहीं मिलेगी. मैं…मैं…आप को पा कर भी नहीं पा सकूंगी,’’ कहते हुए गुर्णवी का स्वर भारी हो गया और बड़ेबड़े नेत्रों से 2 मोती टपक पड़े.
‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम्हारे प्रेम के प्रतिदान में मैं तुम्हें अपने साथ प्रतिष्ठित करूंगा. तुम विश्वास रखो,’’ पृषघ्र ने दृढ़ स्वर में कहा.
‘‘मेरे लिए यही प्रतिदान पर्याप्त है कि आप ने मेरे प्रेम को स्वीकार किया. ऋषियों द्वारा स्थापित इन कठोर नियमों और परंपराओं को तोड़ना सरल नहीं है, कुमार. परंपराओं और नियमों की चट्टानों से हम सिर फोड़तेफोड़ते मृत्युपर्यंत विजयी नहीं हो सकेंगे. आप अपना शिक्षण पूर्ण कर राजगृह को लौट जाएंगे और यह गुर्णवी यथावत ‘गुर्णवी’ ही रह जाएगी.’’
‘‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. मैं शक्ति के बल पर इस सनातनी व्यवस्था को बदल दूंगा.’’
‘‘मैं जानती हूं कुमार, आप जैसा क्षत्रिय वीर दूरदूर तक नहीं है. आप की तलवार की गति मैं ने देखी है. आप के धनुष की टंकार भी सुनी है और बाणों को आप की आज्ञा के प्रतिकूल जाते कभी नहीं पाया. आप केवल आप ही हैं परंतु केवल शस्त्रों से तो समाज नहीं बदल सकता. मुझे लगता है, हम दोनों को एकदूसरे तक पहुंचने में हजारों वर्ष लगेंगे.’’
‘‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है या चुनौती दे रही हो?’’ गंभीर स्वर में पृषघ्र ने पूछा.
देश की राजधानी के एक इलाके जहांगीरपुरी में जो कुछ हुआ और देश की उच्चतम न्यायालय ने संज्ञान लेने के बाद आदेश की जिस तरह जानबूझकर अवहेलना हुई है, वह यह संकेत दे रहा है कि देश मैं सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
ऐसा संभवतः भाजपा शासनकाल में पहली दफा हुआ है जब जनता के जुड़े मुद्दे पर राजधानी दिल्ली में नगर निगम द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अनदेखा करके अपने अवैध काम को अंजाम दिया गया है. यह कार्यवाही कई सवाल खड़े करती है और सोचने पर मजबूर करती है कि यह सारे हालात बता रहे हैं कि देश किस दिशा में जा रहा है.
जहांगीरपुरी मसले पर सुप्रीम कोर्ट और घटनाक्रम पर सब तथ्य देश के समक्ष रख रहे हैं जिसका जवाब केंद्र में बैठी हुई नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार को देना चाहिए और उच्चतम न्यायालय को भी चिंतन करना चाहिए.
सवाल पहला-
नगर निगम प्रशासन दिल्ली अखिर ‘किसके दम’ पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी, बुलडोजर चलाता रहा.
सवाल दूसरा-
जहांगीरपुरी में बिना पूर्व सूचना के अवैध निर्माण हटाने की हिमाकत आखिर कौन कर रहा है.
सवाल तीसरा
क्या बुलडोजर जानबूझकर के नहीं चलाया गया? जबकि सारे देश में उच्चतम न्यायालय के तोड़ फोड़ रोकने के आदेश की जानकारी जंगल में आग की तरह फैल चुकी थी.
सवाल चौथा
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जब वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा यह जानकारी दी गई की आदेश के बावजूद बुलडोजर नहीं रुके हैं उस समय क्या देश की न्याय व्यवस्था को गहरा आघात लगा .
सवाल पांचवां
और भी बहुतेरे सवाल और चिंतन आपके लिए छोड़ते हुए एक महत्वपूर्ण बात यह – आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जहांगीरपुरी मामले पर सुनवाई होनी है, देखना यह है कि क्या गुल खिलते हैं.
यह आपातकाल है क्या
कहते हैं,देश में जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था उस समय संजय गांधी के नेतृत्व में जामा मस्जिद के आसपास का अवैध निर्माण हटवाया गया था जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है.
देश के हालात भी आज कुछ ऐसे ही विचित्र बनते जा रहे हैं जब संवैधानिक संस्थाओं की सत्ता में बैठी हुई हनक सुनना नहीं चाहती.
दरअसल,उत्तर-पश्चिम दिल्ली में शोभायात्रा के दौरान हिंसा के कुछ दिनों बाद भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) के अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत जहांगीरपुरी में 20 अप्रेल 2022 को बुलडोजरों के द्वारा अनेक निर्माणों को तोड़ दिया गया.
इस तोड़फोड़़ के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर एक याचिका पर संज्ञान लेने के बाद उच्चतम न्यायालय को अभियान को रुकवाने के लिए दो दफा हस्तक्षेप करना पड़ा.
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्वाह्न में मकानों को गिराए जाने के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. पीठ में न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल थे.
पीठ ने उसी दिन उस समय फिर हस्तक्षेप किया जब उसे बताया गया कि अधिकारी इस आधार पर कार्रवाई नहीं रोक रहे हैं कि उन्हें कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है. तब प्रधान न्यायाधीश रमण को अपनी अदालत की रजिस्ट्री को निर्देश दिए कि जहांगीरपुरी में उत्तरी दिल्ली नगर निगम की तरफ से चलाए जा रहे अवैध निर्माण को तोड़ने के अभियान के बारे में अदालती आदेश की सूचना निगम के महापौर, आयुक्त और दिल्ली पुलिस के आयुक्त को तत्काल दी जाए.
‘‘बेटा, हम को माफ कर देना, हम ने आप पर शक किया.’’ नव्या की मां उस से बोली. मुकुल ने धीरे से मुसकरा के सिर हिलाया. तब तक उस की मां चायपानी ले आई थी. कुछ दिन बीत गए. राघव ने विमल से सच जानने के लिए पूरा जोर लगा रखा था लेकिन वह यही दोहराता रहता कि वो निर्दोष है. उस के वकील के आ जाने से अब उस पर सख्ती करना भी मुश्किल लग रहा था.
एक रोज राघव थाने में बैठे मोबाइल पर यों ही दोस्तों की पोस्ट्स देख रहे थे कि तभी उन की साली का फोन आया.
‘‘जीजू, मैं ने जिस लड़के के बारे में बताया था आप को, उस के साथ मेरी वीडियो सेल्फी देखी आप ने? आज ही अपलोड की मैं ने.’’
राघव झल्लाए, लेकिन उस से जान छुड़ाने के लिए उस का प्रोफाइल पेज खोला. जैसे ही उन्होंने उस की सेल्फी देखी. उस की बैकग्राउंड पर नजर जाते ही मानो वे उछल पड़े.
यहां मुकुल के घर नए रिश्ते वाले आए थे. लड़की का पिता बोल रहा था.
‘‘चलिए, जो हुआ सो हुआ आप के साथ. अब एक नई जिंदगी शुरू कीजिए.’’
तभी एक मजबूत आवाज गूंजी ‘जिंदगी भी क्याक्या दिखा देती है भाईसाहब.’ सब ने आवाज की दिशा में देखा. इंसपेक्टर राघव मुसकराते हुए खडे़ थे. अचानक उन्हें यहां पा कर सभी चौंक उठे. मुकुल ने पूछा.
‘‘विमल ने अपना जुर्म कबूल लिया क्या सर?’’
‘‘उसी सिलसिले में बात करने आया हूं.’’ राघव ने मुसकराते हुए कहा. मुकुल के पिता ने एक प्लेट उन की ओर बढ़ाई, ‘‘जी जरूर, लीजिए मुंह मीठा कीजिए आप भी.’’
‘‘धन्यवाद,’’ राघव ने विनम्रता से मना कर दिया और बोले.
‘‘देखिए मुकुलजी, मैं ने बहुत कोशिश की लेकिन विमल ने अपना जुर्म कबूल नहीं किया.’’
‘‘तो अब क्या होगा?’’ मुकुल के चेहरे पर दुविधा के भाव साफ दिखने लगे. राघव आगे बोले, ‘‘होगा वही जो होना है. मैं ने अभीअभी अपनी साली की भेजी हुई एक वीडियो सेल्फी देखी, संयोगवश ये उसी दिन की है, जिस दिन नव्या का खून हुआ था.’’
‘‘तो? उस से इस केस का क्या लेना?’’ इस बार मुकुल की मां बोल पड़ी.
‘‘जी वही बता रहा हूं.’’ राघव ने कहा, ‘‘वो सेल्फी उस ने अपने पुरुष दोस्त के साथ मल्लिका स्टोर के सामने खड़ी हो कर बनाई थी और मजे की बात ये कि पीछे का एक बेहद जरूरी दृश्य उस में अनायास ही कैद हो गया.’’
‘‘कैसा दृश्य?’’ मुकुल ने पूछा.
‘‘सुनिए तो…’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘मेरी तब तक की पूरी जांच के अनुसार ये समय वही था जब नव्या औफिस से घर लौट रही थी और विमल उस की गाड़ी से उतर चुका था. एक आदमी ने मल्लिका स्टोर के सामने नव्या की कार रुकवाई और उस में बैठ गया. कहने की जरूरत नहीं कि उसी आदमी का संग नव्या के लिए कातिल साबित हुआ.’’
‘‘कौन था वो आदमी?’’ मुकुल को देखने आए लड़की के पिता ने उत्सुकता से पूछा.
मिल गया हत्यारा, जिस ने बलात्कार भी कराया ‘‘वो आदमी…’’ राघव के इतना कहतेकहते मुकुल बिजली की तेजी से उठा और दरवाजे की ओर भागा. राघव चिल्लाए, ‘‘पकड़ो इस को जल्दी.’’
सिपाहियों ने मुकुल को दबोच लिया. वो छटपटाने लगा. सब लोग हैरान थे. मुकुल खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था लेकिन राघव के जोरदार पुलिसिया थप्पड़ ने उसे दिन में तारे दिखा दिए. वह सोफे पर गिर पड़ा और सिसकते हुए कहने लगा, ‘‘हां, मैं ने उस शाम मोटरसाइकिल से नव्या का पीछा किया क्योंकि वो अगले दिन वकील को बुला कर मुझ पर तलाक के लिए दबाव डलवाने वाली थी. इसी कारण उस ने औफिस से भी छुट्टी ले ली थी.’’
सभी हैरानी से उस की बातें सुन रहे थे. वो कहता गया, ‘‘हालांकि मैं ने सोचा था कि एक बार फिर प्यार से उसे समझाऊंगा, लेकिन जब मैं ने उसे विमल के साथ संबंध बनाते देख लिया तो मेरा शक यकीन में बदल गया. मैं ने उस से पहले ही मल्लिका स्टोर के सामने पहुंच उस की कार रुकवाई और कहा कि मेरी बाइक खराब हो गई है. उस ने अनमने भाव से मुझे अंदर बिठाया. जब वो कुछ सामान लेने उतरी तो इसी बीच मैं ने अपने साथ लाई नींद की गोलियां उस की कोल्डड्रिंक की बोतल में मिला दीं, जो उस ने विमल के साथ आधी ही पी थी.’’
‘‘लेकिन उस के साथ सामूहिक बलात्कार किन से कराया तुम ने?’’ राघव को अभी तक इस सवाल का उत्तर नहीं मिल सका था. मुकुल बोला, ‘‘मैं अपने घरेलू तनाव में डूबा एक दिन उसी जंगल में बैठा था. मैं ने देखा कि कुछ नशेड़ी वहां गप्पें मारते हैं, वे रोज वहां उसी जगह आते. मैं ने उस शाम नव्या के बेहोश जिस्म को वहीं रख दिया और उन का इंतजार करने लगा. जब वे वहां आए तो मैं ने पत्थर मार के उन का ध्यान नव्या की ओर दिला दिया, वे नशे की हालत में उस पर टूट पडे़…’’
‘‘और तुम ने सोचा कि ये मामला बलात्कार और हत्या का मान लिया जाएगा.’’ राघव ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘तभी मैं कहूं कि ऐसा हत्या का केस मैं ने पहले कभी कैसे नहीं देखा. वे नशेड़ी बलात्कार कर वहां से भाग गए और दुबारा नहीं लौटे. वैसे हम उन को भी ढूंढ निकालेंगे. मानता हूं कि नव्या ने तुम्हारे साथ गलत किया लेकिन हत्या तो हत्या है. तुम्हें सजा मिलेगी ही.’’
राघव के चेहरे पर विश्वास साफ झलक रहा था. वे मुकुल को गिरफ्तार कर वहां से चल पड़े.
संगीता का हाथ पकड़ कर अजीब से अंदाज में मुसकरा रही अंजलि बहुमंजिली इमारत में प्रवेश कर गई. अपने फ्लैट का दरवाजा निशा ने खोला था. उस के बेहद सुंदर, मुसकराते चेहरे पर दृष्टि डालते ही संगीता के मन को तेज धक्का लगा.
विवेक को औफिस के लिए निकले 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उस की पत्नी संगीता ने बड़े थकेहारे अंदाज में फोन उठाया.
उस की हैलो के जवाब में किसी स्त्री ने तेजतर्रार आवाज में कहा, ‘‘विवेक है क्या? फोन नहीं उठा रहा.’’
‘‘आप कौन बोल रही हैं?’’ उस स्त्री की चुभती आवाज ने संगीता की उदासी को चीर कर उस की आवाज में नापसंदगी के भाव पैदा कर दिए.
‘‘तुम संगीता हो न?’’
‘‘हां, और आप?’’
‘‘मोटी भैंस, ज्यादा पूछताछ करने की आदत बंद कर,’’ उस स्त्री ने उसे डांट दिया.
‘‘इस तरह बदतमीजी से मेरे साथ बात करने का तुम्हें क्या अधिकार है?’’ मारे गुस्से के संगीता की आवाज कांप उठी.
‘‘मु?ो अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि मैं विवेक के दिल की रानी हूं,’’ वह किलसाने वाले अंदाज में हंसी.
‘‘शटअप,’’ संगीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.
‘‘यू शटअप, मोटो,’’ एक बार वह फिर दिल जलाती हंसी हंसी और फिर फोन काट दिया.
‘‘बेवकूफ, पागल औरत,’’ बहुत परेशान और गुस्से में नजर आ रही संगीता ने जोर की आवाज के साथ फोन साइड में रखा.
‘‘भाभी, किस से ?ागड़ा कर रही हो?’’ संगीता की ननद अंजलि ने पीछे से सवाल पूछा तो संगीता की आंखों में एकाएक आंसू उमड़ आए.
अंजलि ने संगीता को कंधों से पकड़ा तो वह अपने ऊपर से पूरा नियंत्रण खो रोने लगी.
उसे सोफे पर बिठाने के बाद अंजलि उस के लिए पानी लाई. संगीता का रोना सुन कर उस के सासससुर भी बैठक में आ पहुंचे.
वे सब बड़ी मुश्किल से संगीता को चुप करा पाए. बारबार अटकते हुए फिर संगीता ने उन्हें फोन पर उस बददिमाग स्त्री से हुए वार्त्तालाप का ब्योरा दिया.
‘‘अगर विवेक ने इस औरत के साथ कोई गलत चक्कर चला रखा होगा तो मैं अपनी जान दे दूंगी,’’ संगीता फिर से रोंआसी हो उठी.
‘‘मेरा बेटा ऐसी गलत हरकत नहीं कर सकता,’’ विवेक की मां आरती ने अपने बेटे के प्रति विश्वास व्यक्त किया.
‘‘भाभी, बिना सुबूत ऐसी बातों पर विश्वास कर अपने को परेशान मत करो,’’ अंजलि ने कोमल स्वर में उसे सलाह दी.
‘‘उस गधे ने अगर कोई ऐसी गलत हरकत करने की मूर्खता की तो मैं लूंगा उस की खबर,’’ उस के ससुर कैलाशजी फौरन अपनी बहू के पक्ष में हो गए.
‘‘पापा, बिना आग के धुआं नहीं होता. वह लड़की बड़े कौन्फिडैंस से खुद को उन की प्रेमिका बता रही थी.’’
‘‘संगीता बेटा, तुम रोओ मत. हम जांच करेंगे पूरे मामले की.’’
‘‘मैं समय की मारी औरत हूं. पहले मैं ने अपना बच्चा खो दिया और अब उन्हें भी किसी ने मु?ा से छीन लिया है,’’ इस बार संगीता अपनी सास की छाती से लग कर सुबकने लगी.
काफी समय लगा उन तीनों को उसे सम?ानेबु?ाने में. फिर संगीता की कुछ देर को आंख लग गई और वे तीनों धीमी आवाज में इस नई समस्या पर विचारविमर्श करने लगे.
पिछले 2 महीनों से संगीता की बिगड़ी मानसिक स्थिति उन सभी के लिए चिंता का कारण बनी हुई थी.
करीब 6 महीने तक गर्भवती रहने के बाद संगीता ने अपने बच्चे को खो दिया था. काफी कोशिशों के बावजूद डाक्टर गर्भपात होने को रोक नहीं पाए थे. कोविड की वजह से डाक्टर के पास न जाने के कारण उस ने कुछ लापरवाही भी बरती थी. 2 महीने भी पूरे नहीं हुए थे, उस ने तब ही विवाहित जीवन के आरंभिक समय को मौजमस्ती का हवाला दे कर गर्भपात कराने की इच्छा जताई थी. वह इतनी जल्दी मां नहीं बनना चाहती थी.
विवेक ने फौरन उस की इच्छा का जबरदस्त विरोध किया. दोनों के बीच इस विषय पर काफी तकरार भी हुई.
विवेक और उस के मातापिता दकियानूसी किस्म के थे और अभी भी गंडों व धागों में भरोसा रखते थे. वे बाबा की कृपा मानते थे उस बच्चे को. बड़े अनमने से अंदाज में संगीता बच्चे को अपनी कोख में रखने को तैयार हुई. शायद ज्यादा खुश न होने से उस की तबीयत कुछ ज्यादा ही ढीली रहती. उस की एक्सपोर्ट कंपनी की नौकरी भी छूट गई इस वजह से.
डाक्टर की देखभाल के बावजूद जब गर्भपात हो गया तो संगीता जबरदस्त अपराधबोध और गहरी उदासी का शिकार हो गई.
‘मैं ने अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही अस्वीकार कर दिया, पहाड़ी वाले बाबा ने मु?ो इसी बात की सजा दी है. अच्छी औरत नहीं हूं…’ ऐसी बातें मुंह से बारबार निकाल कर संगीता गहरे डिप्रैशन का शिकार हो गई. उन का परिवार हमेशा से गांव में रहा था और वहीं का रहनसहन अब भी अपनाए हुए था.
किसी के सम?ाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. रोने या मौन आंसू बहाने के अलावा वह कुछ न करती. दोबारा से नौकरी शुरू करने में उस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाईर् थी. घर में पैसे की थोड़ी दिक्कत भी हो गई थी.
वह खाना तो बेमन से खाती पर उस की खुराक बढ़ गई. इस कारण उस का वजन तेजी से बढ़ा.
फोन पर उस स्त्री ने उसे मोटी भैंस कहा तो ये शब्द संगीता के दिल को तेज धक्का लगा गए.
नींद टूटने के बाद वह यंत्रचालित सी उठी और रसोई के पास लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई.
काफी लंबे समय के बाद उस दिन संगीता ने खुद को ध्यान से देखा. सचमुच ही उस का शरीर फूल कर बेडौल हो गया था. चेहरे का नूर पूरी तरह गायब था. आंखों के नीचे काले निशान भयानक से लग रहे थे. वह जानती थी कि उस की मां व दादियां इसी तरह की लगती थीं क्योंकि वे धूप में रहती थीं और गांव की गप्पों में समय काटा करती थीं.
अपनी बदहाली देख कर एक बार उसे धक्का लगा पर फिर उदासी के बादलों में घिर कर वह आंसू बहाने लगी.
‘‘मु?ो जीना नहीं चाहिए… जिंदगी बहुत भारी बो?ा बन गई है मेरे लिए,’’ ऐसा निराशाजनक, खतरनाक विचार पहली बार उस के मन में उठा और वह अपनी बेबसी पर रो पड़ी.
उस शाम विवेक की फैक्ट्री से लौटते ही शामत आ गई. अपने मातापिता व बहन के हाथों उसे गहन पूछताछ का शिकार बनना पड़ा. वे तीनों गुस्से में थे और बिना किसी ठोस सुबूत के ही उसे अवैध प्रेमसंबंध स्थापित करने का दोषी मान रहे थे.
आखिरकार वह बुरी तरह से चिढ़ कर चिल्ला उठा, ‘‘बेकार में मेरे पीछे मत पड़ो. मेरा किसी औरत से कोई गलत संबंध नहीं है. मेरी चिंता किसी को नहीं है पर इस कारण मैं अपने चरित्र पर धब्बा नहीं लगा रहा हूं.’’ आखिरी वाक्य बोलते हुए विवेक ने संगीता को गुस्से से घूरा और फिर पैर पटकता शयनकक्ष में चला गया.
उस के यों फट पड़ने के कारण संगीता अचानक अपने को समय की मारी सम?ाने लगी. उसे एहसास हुआ कि सचमुच वह अपने मर्द का खयाल न रखने की दोषी थी. अपना मोटा शरीर इस पल उसे खुद को बड़ा खराब और शर्मिंदगी पैदा करने वाला लगा.
आरती और कैलाशजी ने अपने बेटे को निर्दोष मान लिया और कुछ देर संगीता को सम?ा कर अपने कमरे में चले गए.
रात में सोने के समय तक विवेक का मूड खराब बना रहा. अपने को असुरक्षित व परेशान महसूस कर रही संगीता उस से लिपट कर लेटी पर उस ने किसी भी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त न की.
‘‘आप मु?ा से नाराज हो?’’ अपनी उपेक्षा से दुखी हो कर संगीता ने सवाल पूछा.
विवेक ने कोई जवाब नहीं दिया तो संगीता ने फिर से अपना सवाल दोहराया.
‘‘मैं नाराज क्यों नहीं होऊंगा?’’ विवेक एकदम से चिढ़ उठा, ‘‘सब घरवालों को मेरे पीछे डाल कर तुम्हें क्या मिला?’’
‘‘उस औरत की बातें सुन कर मैं बहुत परेशान हो गई थी,’’ संगीता ने सफाई दी.
‘‘कोई औरत तुम से फोन पर क्या कहती है, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं.’’
‘‘मु?ा से गलती हो गई,’’ संगीता रोंआसी हो गई.
‘‘तुम अपनेआप को संभालो, संगीता. बड़े ढीलेढाले अंदाज में जिंदगी जी रही हो तुम. अगर जल्दी अपने में बदलाव नहीं लाईं तो बीमार पड़ जाओगी एक दिन.’’
विवेक की आंखों में अपने लिए गहरी चिंता के भाव देख कर संगीता के मन ने अजीब सी शांति महसूस की.
‘‘आप गुस्सा थूक दो, प्लीज,’’ संगीता उस की आंखों में ?ांकते हुए सहमे से अंदाज में मुसकराई.
विवेक ने उसे प्यार के साथ अपनी छाती से लगा लिया. मन ही मन अपनी जिंदगी को फिर से सही राह पर लाने का संकल्प ले कर संगीता जल्दी ही गहरी नींद में खो गई.
सचमुच अगले दिन से ही संगीता अपनी दिनचर्या में बदलाव लाई. वह जल्दी उठी. विवेक के लिए नाश्ता भी उसी ने तैयार किया. जल्दी नहा कर तैयार भी हुई. आदत न होने के कारण थक गई पर फिर भी उस ने कुछ देर व्यायाम किया.
उस के इन प्रयासों को उस के सास, ससुर व अंजलि ने नोट भी किया.
संगीता खुद को काफी एनर्जी से भरा व खुश महसूस कर रही थी. लेकिन फिर उसी औरत का फोन दोपहर को आया और वह फिर से तनावग्रस्त हो गई.
‘‘तुम विवेक को आजाद कर दो, संगीता,’’ उसी स्त्री ने बिना भूमिका बांधे अपनी मांग उसे बता दी.
‘‘क्यों?’’ अपने गुस्से को काबू में रखते हुए संगीता ने एक शब्द का सवाल पूछा.
‘‘क्योंकि वह मेरे साथ खुश रहेगा.’’
‘‘तुम्हें यह गलतफहमी क्यों है कि वह मेरे साथ खुश नहीं है?’’
‘‘यह विवेक ही मु?ा से रोज कहता है, मैडम. तुम उस की जिंदगी में ऐसा बो?ा बन गई हो जिसे वह आगे बिलकुल नहीं ढोना चाहता.’’
‘‘कहां मिलती हो तुम उस से? कौन हो तुम?’’
पहले वह स्त्री खुल कर हंसी और फिर व्यंग्यभरे लहजे में बोली, ‘‘मोटो, मेरे बारे में पूछताछ न ही करो तो बेहतर होगा. जिस दिन मैं तुम्हारे सामने आ गई, उस दिन शर्म के मारे जमीन में गड़ जाओगी तुम मेरी शानदार पर्सनैलिटी देख कर.’’
‘‘पर्सनैलिटी का तो मु?ो पता नहीं पर तुम्हारे घटियापन के बारे में अंदाजा लगाना मेरे लिए मुश्किल नहीं है.’’
संगीता का चुभता स्वर उस स्त्री को क्रोधित कर गया, ‘‘मेरे चालचलन पर उंगली मत उठाओ क्योंकि विवेक मु?ो तुम से हजार गुणा ज्यादा चाहता है.’’
‘‘पागल औरत, ऐसे बेकार के सपने देखना बंद कर दो.’’
‘‘मोटी भैंस, सचाई का सामना करो और मेरे विवेक को आजाद कर दो.’’
‘‘विवेक का तुम से कोई संबंध नहीं है.’’
‘‘अच्छा,’’ वह गुस्से से भरी आवाज में बोली, ‘‘उस का मु?ा से क्या संबंध है, इस की खबर आज शाम उस के कपड़ों से आ रही मेरे बदन की महक तुम्हें देगी.’’
गर्मियों में घर में लगे पेड़-पौधों का विशेष रूप से ध्यान रखना पड़ता है. अब कुछ ऐसे स्मार्ट प्लांटर (गमले) ऑनलाइन उपलब्ध हो गए हैं, जो तय समय पर खुद ही पौधों को पानी दे सकेंगे.
इतना ही नहीं, इनमें ऐसे डिजाइन भी उपलब्ध हुए हैं, जिससे आप इनका घर की सजावट के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
कुछ ऐसे स्मार्ट गैजेट्स जो गर्मी में आपके पेड़-पौधों का विशेष ध्यान रखेंगे.
1. प्लांटी
यह एक इंटरनेट से जुड़ा पॉट (गमले) है. स्मार्टफोन ऐप से आप गमले में पानी की स्थिति, तापमान, रोशनी आदि का स्तर जान सकेंगे. अगर आपने ज्यादा धूप में पौधों को रखा है तो आपको प्लांटी की ऐप पर सूचना मिल जाएगी. इसमें आप पानी भी स्टोर कर सकते हैं. केवल ऐप के विकल्प से पौधों को कभी भी पानी दे सकते हैं.
कीमत- 5,123 रुपए
2. रेनी पॉट
कोरिया की एक कंपनी ने घरों में सजावट के लिए “रेनी पॉट” बनाया है. इसमें ऊपर की ओर एक बादल बना है, जिसके जरिए आपको पौधों में पानी डालना होता है. इसमें आप पानी भरकर रख सकते हैं. इसके बाद इसमें से धीरे-धीरे पौधों पर पानी गिरता रहेगा. पानी खत्म होने पर ऐप पर सूचना भी मिल सकती है. इसे दीवारों पर भी लगाया जा सकता है. यह कई रंगों में उपलब्ध है.
कीमत- 1,037 रुपए
3. प्लांट सेंसर
चीन की एक कंपनी कोबाची ने पौधों के लिए खास वाई-फाई सेंसर बनाया है. यह केवल वाई-फाई पर काम करता है. आपको केवल इसे गमलों से जोड़कर रखना होगा. इसके बाद यह अपने आप पौधे की स्थिति का विश्लेषण कर पानी, पौधे की स्थिति और मिट्टी तक की जानकारी दे देगा.
कीमत- 6,420 रुपए
4. स्मार्ट पॉट और एयर प्यूरीफायर
क्लैरी कंपनी ने एक ऐसा स्मार्ट पॉट बनाया है, जो न केवल गमले का बल्कि घर में एयर प्यूरीफायर का भी काम करेगा. इसके स्मार्टफोन ऐप से आप घर में प्रदूषण व वायु गुणवत्ता की भी जांच कर सकते हैं. इसके ऊपरी हिस्से में गमला है जिसमें आप घर की सुंदरता बढ़ाने के लिए कोई भी पौधा लगा सकते हैं.
कीमत- करीब 9 हजार रुपए
5. आईग्रो हर्बल किट
आईग्रो कंपनी ने घरों के अंदर पौधों को लगाने के लिए एक “एलईडी हर्बल किट” बनाई है. इसमें लाल, नीले और सफेद रंग की एलईडी लाइट्स हैं जो तय समय के लिए पौधों को रोशनी देती है. इस किट के साथ में छह अलग प्रकार के पौधे भी उपलब्ध हैं, जिन्हें आप लगा सकते हैं.
कीमत- 20 हजार रुपए से शुरू
‘अनुपमा’ (Anupamaa) के प्रीक्वल यानी ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ (Anupamaa Namaste America) जल्द ही हॉट स्टार पर रिलीज होने वाला है. अनुपमा के जीवन में 17 साल पहले क्या हुआ था, अब आप इस कहानी को 25 अप्रैल से डिज्नी प्लस हॉट स्टार पर देख सकते हैं. ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ का प्रोमो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. हाल ही में एक प्रोमो सामने आया है, जिसमें मोटी बा लोगों को करारा जवाब देती नजर आ रही है.
हाल ही में ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ (Anupamaa Namaste America) का एक प्रोमो भी रिलीज हुआ है, जिसने आते ही धमाल मचाकर रख दिया है. इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि बा, अनुपमा के साथ सब्जी लेने जाती हैं. तभी एक आदमी वहां आकर मोटी बा से कहता है कि अनुपमा को ऐसे डांस सिखाने के लिए बाहर भेजना सही नहीं है.
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इस बात पर मोटी बा उन्हें जवाब देती हैं कि उनकी सोच गिरी हुई है. प्रोमो से साफ पता चलता है कि मोटी बा अपनी बहू के सपने को पूरा करने के किसी से भी लड़ जाएंगी.
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‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ (Anupamaa Namaste America) का एक प्रोमो सामने आया था.जिसमें दिखाया गया था कि अनुपमा’ को अमेरिका जाने को लेकर तरह-तरह बात करती दिख रही है. एक महिला कहती नजर आ रही है कि अनुपमा अमेरिका चली जाएगी तो बच्चों को कौन संभालेगा.
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ऐसे में मोटी बा ने रिएक्ट किया और कहा कि मां के साथ-साथ बाप को भी बच्चों को देखने की जिम्मेदारी होती है. वह आगे कहती है कि अनुपमा के साथ साथ वनराज की भी कुछ जिम्मेदारियां है. अनुपमा के प्रीक्वल में सरिता जोशी का मोटी बा का किरदार निभा रही है. ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ के प्रोमो ने आते ही सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है.
टीवी से फिल्मों तक शरद केलकर की यात्रा काफी रोचक रही है. लोग उनके अभिनय की तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं मगर लोगों को पता नहीं होगा कि उन्हे पहले टीवी सीरियल से शूटिंग के पहले ही दिन हकलाने का आरोप लगाकर निकाल दिया गया था मगर शरद केलकर ने अपने हकलाने की बीमारी से छुटकारा पाया. फिर कई यादगार किरदार निभाए. वक्त वह भी आया जब फिल्म बाहुबली में प्रभास के किरदार को आवाज देने के लिए शरद केलकर को बुलाया गया. 22 अप्रैल को मोरल पुलिसिंग पर आधारित फिल्म ऑपरेशन रोमियो में वह एक बार फिर खलनायक के किरदार में हैं.
प्रस्तुत है शरद केलकर से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश
आपके सत्रह वर्ष के कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?
पहला टर्निंग प्वाइंट्स तो यही था कि मुझे एक सीरियल से महज इसलिए निकाल दिया गया था कि मैं हकलाता था तो इस टर्निंग प्वाइंट्स के चलते मेरी समझ में आया था कि जब मैं हकलाना बंद करुंगा. तभी काम कर पाउंगा. कहीं न कहीं वह रिजेक्शन मेरे लिए बहुत बड़ा टर्निंगं प्वाइंट और सीख थी कि मुझे इस कैरियर को गंभीरता से लेना होगा. यह कोई फन नही है. इसके बाद मैंने एक सीरियल सात फेरे किया था. इस सीरियल के किरदार नाहर सिंह से मुझे काफी शोहरत मिली थी. इसके बाद जब मैंने संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म रामलीला गोलियों की रास लीला में कांजी का किरदार निभाकर बतौर कलाकार एक बहुत बड़ी पहचान मिली. लोगों ने माना कि शरद केलकर बेहतरीन कलाकार हैं. फिर एक टर्निंग प्वाइंट ऐसा आया जब सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष के लोगों ने मेरे काम की तारीफ की. मैं एस. राजामौली निर्देशित फिल्म बाहुबली की बात कर रहा हूं जिसमें मैंने प्रभास के लिए डबिंग की थी. उसके बाद मुझे फिल्म तान्हाजी में छत्रपती शिवाजी महाराज का किरदार निभाने को मिला. मेरे लिए यह गर्व की बात है सिर्फ महाराष्ट्यिन या मराठी ही नहीं बल्कि किसी भी भारतीय के लिए छत्रपती शिवाजी महाराज का किरदार निभाना गर्व की ही बात होगी. ऐसा मौका जिंदगी में बहुत कम लोगो को मिलता है. मुझे यह अवसर मिला जिसके लिए मैं बहुत खुश हूं. इससे भी बड़ी बात यह है कि लोगों ने स्वीकार किया. कैरियर के अलावा कीर्ति गायकवाड़ के साथ मेरी शादी और मेरी बेटी का जन्मण्कीर्ति गायकवाड़ से बेहतर जीवन संगिनी मिल नहीं सकती थी. बेटी ने जन्म लेते ही मुझे बहुत बदला. उसके बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल गयी. यह वह घटनाएं हैं,जिन्होंने एक इंसान व एक कलाकार के तौर पर मुझे काफी बदला.
लोग कहते हैं कि कलाकार जिस किरदार को निभाता है. उसका उसकी जिंदगी पर असर पड़ता है. क्या आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है?
बिलकुल यह बात सही है, हर किरदार से हर इंसान की जिंदगी पर असर पड़ता है. वह कुछ न कुछ उससे सीखता है. अब वह क्या सीखता है अथवा अपने अंदर क्या समेटता है. वह बहुत मायने रखता है. कई बार हम नगेटिव शेड वाले किरदार निभाते हैं पर जरुरी नहीं कि हम नगेटीविटी को अपनाएं. उससे हम यह सीखते हैं कि हमें जीवन में क्या नहीं करना चाहिए. यदि हम नगेटीविटी की बात सोच रहे हैं. तो हमें याद आता है कि फलां फिल्म में हमने फलां किरदार निभाया था. वह किरदार इस तरह से सोचता था, जो कि गलत है तो हम सावधान हो जाते हैं. और हम गलत राह पर जाने से खुद को रोक लेते हैं. देखिए किसी भी सोच या विचार को कितना बढ़ावा देना है. यह आपके हाथ में होता है तो बिलकुल हम हर किरदार से कुछ सीखते हैंण्मुझे लगता है और मेरी पत्नी भी कहती हैं कि मैं अभिनय करते हुए एक इंसान व एक कलाकार के तौर पर ग्रो हुआ हूं तो कहीं न कहीं कलाकार व किरदार एक साथ चलते हैं. जब दोंनो एक साथ यात्रा करते हैं तो एक दूसरे से सीखते रहते हैं. कई बार हम अपने निजी जीवन की कुछ बातें किरदार में पिरोते हैं तो किरदार की कुछ बातें अपनी निजी जिंदगी में डालते हैं विकास के लिए यह एक मिला जुला प्रयास होता है. इन दिनों सभी लोग मुझे शांत देखते हैं पर कभी मैं बहुत ही ज्यादा गुस्सैल हुआ करता था कभी मैं एंग्रीयंग मैन था.
आपने बताया कि हकलाने के चलते आपको एक सीरियल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था पर इससे छुटकारा पाने के लिए आपने ऐसा क्या किया कि फिर आपको दूसरे कलाकार को अपनी आवाज देने के लिए बुलाया गया.
इसके कई पहलू हैं. सबसे पहले तो मैं हर इंसान से बार बार निवेदन करता हूं कि जो लोग हकलाते हैं या तुतलाते हैं उनका मजाक न बनाएं मेरा बहुत मजाक उड़ा था. मैं नहीं चाहता कि किसी अन्य का मजाक उड़ाया जाए. दूसरी चीज यह भी एक ऐसी बीमारी है. जिसका इलाज संभव है. अगर आप खुद उस पर ध्यान दे. मुझे कई लोगों ने कई तरह के उपाय बताएं. किसी ने कहा कि मुंह में पेंसिल डालकर बोलेए वगैरह वगैरह. मैं यह नहीं कहता कि मैं पूरी तरह से ठीक हो गया हूं. मैं अभी भी 95 प्रतिशत ही ठीक हुआ हूं. अभी भी पांच प्रतिशत हकलाता हूं. लेकिन इतना ठीक होने में समय लगा. बहुत सोचा लोगों को आब्जर्व किया. फिर मेरी समझ में आया कि हकलाहट की वजह मनोवैज्ञानिक नहीं बल्कि शारीरिक है. मेरे हकलाने की वजह सांस लेने का तरीका बहुत गलत था. उदाहरण के लिए आप दो सौ मीटर की दौड़ तेजी से लगाकर आओ. फिर एक वाक्य सही ढंग से बोल कर दिखाएं. आप नही बोल पाएंगे या आपकी सांस नहीं आएगी. यही हकलाहट में होता है. सांस नहीं आती है यीनी कि सांस एक रिदम में नहीं है मैंने फिल्में देखकर ही खुद को ठीक किया. अमिताभ बच्चन से ज्यादा अच्छा सांस लेने का तरीका किसी भी कलाकार का नहीं है. शत्रुघ्न सिंहा जी है तो मैंने ब्रीदिंग तकनीक पर काम किया. योगा किया. प्राणायाम किया. अगर आप यह सब करते है तो सांस लेने के तरीके की वजह से हकलाहट है तो वह दूर हो जाएगी.
जब आपको प्रभास को आपकी आवाज देने के लिए बुलाया गया तो कैसा महसूस हुआ?
बहुत अच्छा लगा. जिस चीज के लिए आपको रिजेक्ट किया गया हो जिस वजह से आपको कई बार अपमानित होना पड़ा हो, ताने पड़े हों फिर वही लोग जब आपको उसी आवाज के लिए बुलाते हैं तो एक अलग तरह की खुशी होती हैं पर मेरी सोच यह है कि मैंने जो सोचा वह मैने किया. मैंने लोगों को साबित किया कि वह गलत थे. पर मैं इसमें उनकी गलती भी नहीं मानता पर मैं यही चाहता हूं कि जो लोग मेरा मजाक उड़ाते थे. वह अब मुझे देखकर दूसरे बच्चों का मजाक उड़ाने की बात सपने में भी न सोचे जब मैंने प्रभास के लिए डबिंग की और उसकी फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की तो मुझे बहुत खुशी मिली. देखिए नब्बे प्रतिशत काम तो उसका है कि उसने उस किरदार को निभाया मगर दस प्रतिशत योगदान मेरा है लोग मुझे जानने लगे दर्शक मेरी प्रशंसा करें. इससे अधिक मुझे कुछ नही चाहिए. दर्शकों के बिना हम कलाकार शून्य हैं.
आप एक बार फिर फिल्म ऑपरेशन रोमियो में खलनायक की भूमिका में नजर आएंगे?
जी हां! यह है तो खलनायक मगर मेरा दावा है कि मैंने इस तरह का किरदार अब तक नहीं निभाया है मेरे लिए इसका किरदार मंगेष जाधव अब तक के सबसे असहज लेकिन यथार्थवादी किरदारों में से एक रहा. इससे अधिक बताना संभव नहीं.
वैसे आप मुझे पिछले कुछ वर्षों से एकदम अलग तरह के किरदार में देख चुके हैं पर ऑपरेशन रोमियो का किरदार अनूठा है फिल्म में मेरा किरदार मगेश जाधव वास्तविक जीवन में मेरे जैसा नहीं है और मुझमें इस तरह के कोई रंग नहीं हैं. मैं एक बेटी का पिता हूं. मैं एक भावुक इंसान हूं. यह फिल्म एक सत्य घटनाक्रम पर आधारित है. इसकी जानकारी होते हुए भी इसकी शूटिंग के दौरान मेरे मन में बार बार सवाल उठ रहा था कि क्या ऐसा इंसान हो सकता है? फिल्म की कहानी के केंद्र में नैतिक पुलिसिंग है. इसे देखते हुए लोग अहसास करेंगे कि कभी उनके साथ या उनके किसी जानने वाले के साथ ऐसा हो चुका है.
नैतिक पुलिसिंग की घटनाओं के बढ़ने की वजहें क्या हो सकती है?
मुझे लगता है कि कहीं न कहीं वीडियो रिकॉर्डिंग, अर्धसत्य का प्रक्षेपण और सोशल मीडिया पर सब कुछ डालने से लोगों की छवि खतरे में पड़ जाती है. मसलन, गले लगाना भी अभिवादन का एक तरीका है और यह एक सामाजिक इशारा है लेकिन हमने देखा है कि जब एक लड़का और लड़की एक.दूसरे को सामाजिक रूप से गले लगाते हैं, और उस तस्वीर को संदर्भ से हटकर सोशल मीडिया पर डालते हुए हैं. आसानी से इसकी एक कहानी बनाते हैं. मगर इस तसवीर से यह पता नहीं चलता कि यह शादी के पहले की है या शादी के बाद की.
गंगा गांव की एक भोलीभाली और बेहद खूबसूरत लड़की थी. उस की मासूम खूबसूरती को वैसे तो शब्दों में ढालना बहुत ही मुश्किल है, पर यह समझ लीजिए कि गंगा को देख कर ऐसा लगता था, जैसे खेतों की हरियाली उसी पर छाई हुई है…
अल्हड़, मस्त गंगा पूरे गांव में घूमतीफिरती… कभी गन्ना चूसते हुए, तो कभी बकरी के बच्चे को पकड़ने के लिए… गांवभर के मुस्टंडे आंखें
भरभर कर उसे देखा करते और ठंडी आहें भरते थे, पर गंगा किसी को घास नहीं डालती थी.
गांव के सरपंच के बेटे की शादी का मौका था… सरपंच के घर खूब रौनक थी… दूरदराज के गांवों से भी ढेरों मेहमान आए थे.
गंगा के पिता लक्ष्मण सिंह और सरपंच में गहरी दोस्ती थी, सो गंगा का पूरा परिवार उस शादी में घराती के रोल में बिजी था. कई सारे इंतजाम लक्ष्मण सिंह के ही जिम्मे थे…
गंगा की मां पार्वती घर के कामों को निबटाने में सरपंच की पत्नी का हाथ बंटा रही थी. गंगा के लिए तो यह शादी जैसे कोई त्योहार, कोई उत्सव जैसी थी… नएनए कपड़े पहनना, सजनासंवरना और नाचगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना…
‘‘अरी ओ गंगा… कुछ काम भी कर लिया कर… सारा दिन यहां से वहां मटकती फिरती है…’’ पार्वती ने कहा.
‘‘अरी अम्मां, काम करने के लिए तू तो है… अभी तो मेरी खेलनेकूदने की उम्र है,’’ गंगा खिलखिलाते हुए बोली.
‘‘देख तो… ताड़ जैसी हो गई है… कल हाथ पीले हो गए, तो अपनी ससुराल में खिलाएगी… पत्थर…’’ पार्वती गुस्सा दिखाते हुए बोली.
‘‘अम्मां… तू फिक्र मत कर… मेरी ससुराल में नौकरचाकर होंगे… मैं नहीं करूंगी कोई कामधाम,’’ गंगा ने तपाक से जवाब दिया.
‘‘तेरे मुंह में गुड़ की डली मेरी लाडो… तेरी खातिर ऐसी ही ससुराल देखेंगे…’’ बीच में गंगा के पिता लक्ष्मण सिंह बोले.
‘‘यह लो… सेर को सवा सेर. समझाने के बजाय उस की हां में हां मिला रहे हो… ओ गंगा के बापू… क्यों इतना सिर चढ़ा रहे हो… लड़की जात है… दोचार गुण सीख लेगी तो ससुराल में काम आएंगे…’’ गंगा की मां तुनक कर बोली.
‘‘क्यों इस के पीछे पड़ी रहती हो… जब ब्याह होएगा… तो सब अपनेआप सीख जाएगी…’’ लक्ष्मण सिंह ने कहा.
‘‘बापू… यह देखो… यह घाघरा और चोली सिलवाई है… अम्मां की बनारसी साड़ी से… कैसी है बापू?’’ गंगा ने पिता से पूछा.
‘‘बहुत बढि़या है… मेरी लाडो एकदम रानी लगती है रानी…’’ लक्ष्मण सिंह खुश होते हुए बोले.
गंगा लहंगाचोली को अपने तन से लगा कर हिलहिल कर खुद को निहार रही थी.
शाम को सरपंच के यहां से बरात निकलनी थी. गंगा के मांबापू पहले ही वहां पहुंच चुके थे. गंगा सजसंवर कर जब वहां पहुंची, तो सब के मुंह खुले के खुले रह गए…
हर कोई गंगा को ही देख रहा था… सब को अपनी तरफ देखते हुए देख कर गंगा शरमा गई. शर्म के मारे उस के गाल और गुलाबी हो गए…
दूसरे गांवों के सरपंच भी वहां आए हुए थे. सीमन गांव के सरपंच और उन का बेटा निहाल भी इस शादी में आए थे… निहाल बांका जवान था. गठा हुआ शरीर और रोबदार चेहरामोहरा… झबरीली मूंछें और गुलाबी होंठ.
गंगा और निहाल ने एकसाथ एकदूजे को देखा. निहाल से नजरें मिलते ही गंगा का दिल जोरजोर से धड़कने लगा और निहाल तो बस एकटक गंगा को ही देखे जा रहा था… मानो उस की आंखें गंगा के सिवा कुछ देखना ही नहीं चाहती हों.
‘‘चलो चलो… जल्दी करो… वर निकासी का समय हो गया,’’ किसी ने कहा.
गंगा और निहाल की तंद्रा टूटी. बरात गई और बरात वापस भी आ गई… लेकिन गंगा और निहाल तो जैसे एकदूसरे में ठहर गए थे… प्यार का बीज फूट चुका था.
‘‘गंगा…’’ किसी ने धीरे से गंगा को पुकारा.
गंगा ने देखा कि एक कोने में निहाल खड़ा था… उस ने गंगा को इशारा किया कि घर के पीछे आ जाओ.
गंगा का दिल जोर से धड़क रहा था, पर निहाल से मिलने की बेताबी भी थी… सब से नजरें बचा कर गंगा घर के पिछवाड़े में पहुंच गई, जहां निहाल बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.
‘‘गंगा…’’ निहाल ने गंगा के कान
में कहा.
गंगा का पूरा शरीर सिहर गया… मानो निहाल की सांसें, खून के साथ उस की धमनियों में बहने लगी हों.
‘‘हम आज अपने गांव वापस जा रहे हैं,’’ निहाल ने गंगा से कहा.
यह सुन कर गंगा की आंखों में आंसू आ गए और उस ने पलकें उठा कर निहाल को देखा.
‘‘अरी पगली, रोती क्यों हो… अब मैं तुम्हें ब्याह कर हमेशा के लिए साथ ले जाऊंगा,’’ निहाल ने गंगा के आंसू पोंछते हुए कहा.
गंगा थरथर कांप रही थी. निहाल ने उस का माथा चूम लिया. गंगा को ऐसा एहसास पहले कभी नहीं हुआ था. वह लता की तरह निहाल से लिपट गई.
निहाल उसे उठा कर पिछवाड़े में मवेशियों के लिए बनी कोठरी में ले गया. गंगा सुधबुध खो बैठी थी और निहाल बेताब था. उस अंधेरी कोठरी में अचानक बिजलियां चमकीं… कई सारे जुगनू टिमटिमाने लगे… जज्बातों की बारिश जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रही थी… बांध टूट गए…
कुछ ही पलों में सबकुछ शांत था, मानो एक भयंकर तूफान आया और
फिर थम गया, जो छोड़ गया कुछ निशानियां… जिन्हें अब गंगा समेट
रही थी.
‘‘गंगा, मैं जल्दी ही आऊंगा और तुम्हें अपनी दुलहन बना कर ले जाऊंगा,’’ निहाल बोला.
गंगा शांत थी. उसे कुछ कहनेसुनने का समय ही न मिला. निहाल फुरती से कोठरी से बाहर निकल गया.
गंगा पिघली जा रही थी. निहाल के प्यार और इस अनोखे एहसास से घिरी गंगा कोठरी से बाहर निकली. निहाल अपने पिता के साथ वापस गांव के लिए निकल चुका था.
गंगा नहीं जानती थी कि जिस पर उस ने अपना सबकुछ लुटा दिया है, वह कौन है, किस गांव का है और उसे लेने कब आएगा.
मदमस्त लहराती चंचल गंगा एकाएक शांत और गंभीर हो गई थी. रातदिन आहट रहती कि अब निहाल आए या उस की कोई खबर ही आ जाए… कई महीने बीत गए, पर निहाल नहीं आया.
पार्वती और लक्ष्मण सिंह समझ नहीं पा रहे थे कि खिलीखिली सी उन की बेटी क्यों पलपल मुरझा रही है.
नदी किनारे बैठ आंसू बहाती गंगा हताश हो गई… उस का धीरज अब जवाब दे चुका था. अम्मांबापू का ब्याह के लिए जोर देना… जैसे गंगा को भीतर ही भीतर मार रहा था.
एक दिन नदी की आतीजाती लहरों को देखतेदेखते जाने कौन सा तूफान गंगा के दिल में उठा कि उस ने नदी में छलांग लगा दी. गंगा डूबने लगी. उस का दम घुटने लगा. सांसें उखड़ने लगीं. एकाएक हाथपैर मारती गंगा के हाथ में लकड़ी का एक भारी लट्ठा आ गया. गंगा उस के सहारे तैर कर नदी के किनारे आ गई.
पानी में कूदने, डूबने और मौत का सामना कर लौटी गंगा के मन में एक ही विचार बारबार कौंध रहा था कि जानबूझ कर पानी में कूदने या अनजाने में पानी में गिरने पर इनसान कितना छटपटाता होगा… कितनी तकलीफदेह मौत होती होगी… उस समय उसे अगर एक लकड़ी मिल जाए… तो कितनों की जान बच सकती है… बस, उस ने कुछ सोच कर जंगल से लकडि़यां तोड़ीं और उन से एक नाव तैयार की और उतार दी नदी में.
अब गंगा ने तय किया कि उस की जिंदगी का एक यही मकसद होगा… वह इस नाव से सब को पार लगाएगी और डूबतों के प्राण बचाएगी…
गंगा अब ‘नाव वाली गंगा’ कहलाने लगी. गरीब जरूरतमंदों को नदी पार कराने वाली गंगा… डूबतों की जान बचाने वाली गंगा…
अम्मांबापू की उस के आगे एक न चली. गंगा ने शादी करने से साफ मना कर दिया. कह दिया कि ब्याह की बात की तो वह नदी में कूद कर अपनी जान दे देगी. अम्मांबापू ने हार मान ली.
महीने बीते… साल गुजरे… नाव वाली गंगा नहीं बदली. वह डटी रही नदी किनारे… पार करवाती रही नदी… न जाने कितनी जानें बचाईं उस की नाव ने.
इस बार बारिश बहुत हुई. कई गांव के खेतखलिहान, घरजमीन सब बाढ़ की भेंट चढ़ गए. गंगा के गांव में भी बाढ़ ने तहलका मचाया, लेकिन गंगा औरों की तरह गांव छोड़ कर भागी नहीं, बल्कि बाढ़ में डूबे लोगों को बचा कर उन की देखरेख करती रही.
बाढ़ का पानी अब उतार पर था. गंगा अपनी नाव के साथ नदी किनारे बैठी थी कि तभी किसी ने नदी में छलांग लगा दी. गंगा ने लपक कर अपनी नाव उस तरफ चला दी. उस ने देखा कि एक नौजवान डूब रहा था, घबरा कर हाथपैर मार रहा था.
गंगा ने पास पहुंच कर उसे बड़ी मुश्किल से अपनी नाव पर चढ़ा लिया और उस की पीठ दबा कर पानी निकाला.
‘‘क्यों कूदे…?’’ गंगा ने औंधे पड़े उस नौजवान से पूछा.
‘‘मेरा तो सबकुछ लूट गया है. खेतखलिहान, घरजायदाद सब बरबाद हो गया और परिवार भी… सब बह गए. अब मैं
जी कर भी
क्या करूंगा… क्यों बचाया तुम ने?’’ उस नौजवान ने उलटा लेटे हुए ही जवाब दिया.
‘‘तूफान तो आते हैं और चले जाते हैं… पर इस का यह मतलब तो नहीं है कि जिंदगी खत्म हो गई. एक तूफान से क्या घबराना. हिम्मत करो और फिर जीना शुरू करो. हो सकता?है कि कुछ बहुत अच्छा हो जाए…’’ गंगा ने कहा.
इतना सुन कर वह नौजवान पलटा. गंगा का मुंह खुला का खुला रह गया.
‘‘निहाल…’’ गंगा बुदबुदाई.
‘‘गंगा…’’ निहाल गंगा को देख कर हैरान रह गया.
‘‘मैं ने तुम्हें धोखा दिया. उसी
की सजा मुझे मिली है,’’ निहाल रोते
हुए बोला.
गंगा की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे.
‘‘गंगा, क्या तुम मुझे एक मौका और नहीं दोगी?’’ निहाल ने गंगा की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.
गंगा अवाक थी. उस ने निहाल पर एक तीक्ष्ण निगाह डाली और बोली, ‘‘तुम ने पश्चाताप कर लिया. इस से तुम्हारे तनमन का मैल धुल गया है, लेकिन तुम्हारा और मेरा मेल मुमकिन नहीं है. आओ, तुम्हें नदी किनारे लगा दूं, क्योंकि बीच मंझधार में छोड़ना मेरी फितरत नहीं है.’’
निहाल को नदी किनारे पर उतार कर गंगा की नाव चल पड़ी. निहाल देखता रहा दूर तक, उथली लहरों पर गंगा को चप्पू चलाते हुए.
नदी की कलकल से मानो यही आवाज सुनाई दे रही थी :
‘सागर से मुझ को मिलना नहीं है,
सागर से मिल कर मैं खारी हो जाऊंगी.’