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कैसे ये दिल के रिश्ते- भाग 3: क्या वाकई तन्वी के मन में धवल के प्रति सच्चा प्रेम था?

सेवासुश्रुषा के बावजूद धवल की हालत बिगड़ती गई. उधर वत्सल हवाई दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया. विमान नीचे उतारते समय पहिए जाम हो गए. जान तो वत्सल की बच गई मगर उसे कई महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा. हम बदहवास से कानपुर से मुंबई और मुंबई से कानपुर की दौड़ लगाते रहे.

अगर प्रणव को कैंसर हुआ होता तो शायद धवल उन के लिए इतनी भागदौड़ नहीं करता जितनी प्रणव ने जवान बेटे के लिए की. दौड़दौड़ कर उन के पैर सूज गए. रातदिन हम धवल के पास बैठे रहते. हमें खानेपीने और नहानेधोने का होश नहीं था. बेचारी तन्वी धवल के साथसाथ हमें भी संभाल रही थी.

जिसजिस ने जहांजहां चमत्कारी स्थल बताए वहांवहां हम ने फरियाद की कि धवल की बीमारी हमें दे दो, उसे चंगा कर दो. हम जी कर क्या करेंगे. हमारे मरने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ना है, पर हमारी फरियाद कुबूल नहीं हुई थी. धवल हमें छोड़ कर चला गया था.

तन्वी का विलाप हम से देखा नहीं गया था. धवल हमें अपने कंधों पर ले जाता तो यह शोभनीय लगता. दुनिया के सब बेटे अपने मातापिता को ले जाते आए हैं लेकिन नियति ने हमें विवश किया जवान बेटे की अरथी अपने कंधों पर ढोने के लिए.

चलनेफिरने में असमर्थ होने के कारण वत्सल कानपुर नहीं आ सका था. फोन पर उस ने प्रस्ताव रखा कि हम घर को ताला लगा कर उस के पास मुंबई चले आएं या ठीक होने के बाद वह नौकरी छोड़ कर कानपुर आ जाएगा और पिता का व्यवसाय संभालेगा. हम ने समझाया कि फिलहाल उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है. जल्दबाजी में कोई कदम उठाना ठीक नहीं.

हम जानते थे, वत्सल को ट्रकों के धंधे में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उस की शुरू से ही तमन्ना थी कि वह पायलट बने. इसलिए उस ने जेट एयरवेज में नौकरी की थी. हम नहीं चाहते थे कि हमारे कारण उसे मनपसंद नौकरी छोड़ कर अनचाहा व्यवसाय अपनाना पड़े. जब तक हमारे हाथपैर चल रहे थे, हम किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे. अशक्त होने के बाद तो हमें वत्सल पर आश्रित होना ही था.

धवल की मौत के बाद आई पहली दीवाली कितनी भयावह लगी थी हमें. पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था पर हमारे घर में अंधेरा था. हमारे घर का चिराग तो हमेशा के लिए बुझ चुका था. हम नकली चिराग जला कर क्या करते.

कुछ दिनों बाद तन्वी के पिता ने पूछा कि हम ने पुत्रवधू के भविष्य के बारे में क्या सोचा है? तो प्रणव ने सरल भाव से उत्तर दिया था, ‘सोचना क्या है… आप की दुआ से घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है. तन्वी बिना किसी परेशानी के जीवनभर यहां रह सकती है. समय काटने के लिए नौकरी करना चाहे तो हम उसे नहीं रोकेंगे. यदि वह पुनर्विवाह करना चाहे तो हमारी तरफ से इजाजत है. उसे प्रसन्न और खुशहाल देख कर हमें भी खुशी होगी.’

तन्वी के पिता ने गर्व से कहा था कि किसी दूसरे पुरुष का खयाल भी उन की बेटी अपने जेहन में कभी नहीं ला सकती. बेहतर होगा हम धवल के हिस्से की जायदाद तन्वी को सौंप दें ताकि वह भविष्य के प्रति असुरक्षा अनुभव न करे.

धवल की मृत्यु के मात्र 2 महीने बाद ही तन्वी और उस के पिता द्वारा जायदाद की मांग करना हमें अच्छा नहीं लगा. प्रणव ने तन्वी के पिता से स्पष्ट कह दिया कि वह जीतेजी अपने दोनों बेटों या उन के परिवारों को जायदाद सौंपने का इरादा नहीं रखते. वसीयत में अवश्य वे आधा भाग तन्वी और उस की संतान के नाम लिखने को तैयार हैं. जब तक वे जीवित हैं, तन्वी की देखभाल करेंगे ही और मरने के बाद तन्वी का हिस्सा उसे मिल ही जाना है.

तन्वी के पिता जिद करने लगे कि हम उसे उस का हिस्सा अभी सौंप दें ताकि वह हर चीज के लिए सासससुर की मुहताज न रहे, भविष्य के प्रति आशंकित सी घुटघुट कर न जिए.

हम ने उन्हें भरसक समझाया कि हमारे संपन्न घर में तन्वी को किसी भी अभाव का प्रश्न ही नहीं उठता. हम अपनी कुछ दुकानों या मकानों का किराया हर माह उसे देते रहेंगे ताकि वह खुलेहाथों खर्च कर सके, पर वे नहीं समझे और बारबार यही दोहराते रहे कि भविष्य का क्या भरोसा. हो सकता है हम बाद में वसीयत बदल दें और सारी संपत्ति वत्सल को दे डालें. हो सकता है हम तन्वी को प्रताडि़त करें, दुख दें.

हमारी समझ में नहीं आ रहा था, वे ऐसी आशंकाएं क्यों जता रहे थे. हम भला पुत्रवधू को दुख क्यों देते? सासससुर थे हम उस के, दुश्मन नहीं. तन्वी हमारे दिवंगत पुत्र की पत्नी और उस के होने वाले बच्चे की मां थी. हम बिना वजह उस पर जुल्म क्यों ढाते? पर लाख समझाने पर भी वे अपनी उस एक मांग को दोहराए जा रहे थे. शायद वे समझना चाहते ही नहीं थे. उन का यह व्यवहार हमें क्षुब्ध कर गया.

आधारशिला- भाग 2: किस के साथ सफलता बांटनी चाहती थी श्वेता

मैं ने उन की ओर देखा कि कहीं उन के इस वाक्य में मेरे प्रति उपहास तो नहीं, लेकिन नहीं, इस वाक्य का सहीसही अर्थ ही उन के चेहरे पर लिखा हुआ था. वे आगे बोले, ‘इस उम्र में अकसर ऐसा हो जाता है. दरअसल, श्रद्धा और प्रेम का अंतर हमें इस उम्र में समझ में नहीं आता. इसलिए आप इसे गंभीर अपराध के रूप में न लें. इसीलिए मैं ने आप से ही इस बारे में बात करना ठीक समझा. आप उस की मां हैं, उस के हृदय को समझ सकती हैं.’

‘परंतु ऐसा पत्र, जी चाहता है, उसे जान से मार डालूं.’

‘नहीं, आप इस बात को श्वेता को महसूस भी न होने दें कि आप को इस पत्र के बारे में सबकुछ मालूम है. हम इस समस्या को शांति से सुलझाएंगे. आप तो जानती ही हैं कि यदि अनुकूल परिस्थितियों में यह उम्र हवा का शीतल झोंका होती है तो प्रतिकूल परिस्थितियों में गरजता हुआ तूफान बन जाती है.’

‘आप कह तो ठीक ही रहे हैं,’ मैं ने मन ही मन उन के मस्तिष्क की परिपक्वता की सराहना की.

पुनीत से की गई 15-20 मिनट की बातचीत ने मेरे मन के बोझ को आंशिक रूप से ही सही, पर कुछ कम अवश्य किया था.

‘क्या आप ने मनोविज्ञान पढ़ा है?’ मैं ने पूछा तो वे हंस पड़े, ‘जी, बाकायदा तो नहीं, परंतु हजारों मजबूरियों से घिरा हुआ मध्यवर्गीय घर है हमारा. मैं 5 भाईबहनों में सब से बड़ा हूं. सब की अपनीअपनी समस्याएं, उन के सुखदुख का मैं गवाह बना. उन का राजदार, मार्गदर्शक, सभी कुछ. मातापिता ने परिस्थितियों से शांतिपूर्वक जूझने के संस्कार दिए और इस तरह मेरा घर ही मेरे लिए अनुभवों की पाठशाला बन गया.’

उन के गजब के संतुलित स्वर ने मेरे उबलते हुए मन को मानो ठंडक प्रदान की.

‘तो योजना के मुताबिक, आप कल हमारे घर आ रहे हैं?’ मैं ने कहा और उन से विदा ली.

मैं ने औटोरिकशा के बजाय बस से ही जाना ठीक समझा. एकांत से मुझे डर लग रहा था. बस  की भीड़ में शायद मेरा दुख अधिक तीव्रता धारण न कर पाए. मगर मेरा सोचना गलत था. भीड़भरी बस में भी मैं बिलकुल अकेली थी. मेरा दुख मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चल रहा था.

‘बसस्टौप से धीरेधीरे कदम बढ़ाते हुए मैं घर पहुंची. मुझे देखते ही श्वेता दौड़ कर आई और मेरे गले लिपट गई, ‘ओह मां, कितनी देर लगा दी. मैं अकेली बैठी कब से बोर हो रही हूं.’

‘श्वेता, छोड़ो यह बचपना,’ मैं ने अपने गले से उस की बांहें हटाते हुए कहा.

मैं ने बेरुखी से उस के हाथ झटक तो दिए थे, पर तभी पुनीत की वह बात याद आई, ‘आप अपने व्यवहार से उसे किसी तरह का आभास न होने दें कि आप उस के बारे में सबकुछ जान चुकी हूं,’ सो, मैं ने सहज स्वर में कहा, ‘बेटे, जल्दी जा कर लेट जाओ, तुम्हें अभी भी बुखार है. थोड़ी देर में अंकित भी आता होगा, वह तुम्हें जरा भी आराम नहीं करने देगा.’

श्वेता अपने कमरे में जा कर लेट गई. मैं एक पत्रिका ले कर पढ़ने बैठ गई, पर ध्यान पढ़ने में कहां था. मेरा मन तो किसी खुफिया अधिकारी की तरह श्वेता के पिछले व्यवहार की छानबीन करने लगा. वह अकसर पुनीत की प्रशंसा किया करती थी. सो, हम भी उन की योग्यता के कायल हो चुके थे, क्योंकि पिछले साल की अपेक्षा इस साल श्वेता को कैमेस्ट्री में काफी अच्छे अंक मिले थे.

जब पढ़ाने की तारीफ से आगे बढ़ कर उस ने उन के व्यक्तित्व की तारीफ शुरू की, तब भी मुझे कुछ अजीब नहीं लगा था. मैं सोचती, 14-15 वर्ष की उम्र यों भी सिर्फ योग्यता तोलने की नहीं होती. यदि वह उन्हें स्मार्ट कहा करती है  तो यह गलत नहीं. ऐसे ही शब्द तो इस उम्र में किसी के व्यक्तित्व को नापने का पैमाना होते हैं.

जब मैं उम्र के इस दौर से गुजर रही थी, मुझे भी अपनी शिक्षिका देविका कोई आसमानी परी मालूम होती थीं. मेरी मां और बाबूजी अकसर कहा करते थे, ‘इसे हमारी कोई बात समझ में ही नहीं आती, लेकिन वही बात अगर देविका कह दें तो तुरंत मान लेगी.’

यह तो बहुत बाद में समझ आया कि देविका भी औरों की तरह साधारण सी महिला थीं. मुझे महसूस होने वाला उन का पढ़ाने का जादुई ढंग उन के अपने बच्चों पर बेअसर रहा था. उन के दोनों बेटे क्लास में मुश्किल से ही पास होते थे.

बस, इसी तरह श्वेता का भी पुनीत का अतिरिक्त गुणगान करना मुझे जरा भी संदेहजनक नहीं लगा था.

दरवाजे की डोरबैल जोर से बज रही थी. शायद अंकित आ गया था. मैं ने भाग कर दरवाजा खोला.

अंकित को दूध का गिलास पकड़ा कर मैं रात के खाने की तैयारी में लग गई. श्वेता की समस्या ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया था, मगर फिर भी सोच लिया था कि जैसे भी हो, यह बात मैं इन के कानों में नहीं पड़ने दूंगी. इन का प्यार भी असीम था और गुस्सा भी. इन्हें यदि इस पत्र के बारे में पता चल जाता, तो शायद श्वेता को सूली पर चढ़ा देते.

शाम को ये लगभग 8 बजे घर पहुंचे. श्वेता और अंकित में किसी बात पर झगड़ा हो रहा था. टीवी जोरजोर से चल रहा था. इन्होंने आते ही पहले टीवी औफ किया, फिर बच्चों को जोरदार आवाज में डांटा. जब कोलाहल बंद हुआ तब मुझे खयाल आया कि मैं अपने विचारों में किस कदर खोई हुईर् थी.

‘क्या बात है, कुछ परेशान सी लग रही हो, बच्चों को इन की शैतानियों के लिए डांट नहीं रही हो?’ इन्होंने पास आ कर पूछा.

‘लीजिए, अब डांटना ही हमारे स्वस्थ होने का परिचायक हो गया. क्या मैं चुपचाप बैठी आप को अच्छी नहीं लग रही?’ मैं ने शरारत से पूछा.

‘नहीं, बिलकुल अच्छी नहीं लग रही हो. बच्चों की आवाजें, टीवी का शोर और इन सब से ऊपर तुम्हारी आवाज हो, तभी मुझे लगता है कि मैं अपने घर

आया हूं’, इन्होंने नहले पे दहला मारा. खाना खाते समय श्वेता खामोश ही रही. उस के पास सुनाने के लिए कुछ नहीं था, क्योंकि वह स्कूल जो नहीं गई थी. फिर भी एकाध बार पुनीत की तारीफ करना नहीं भूली.

योजना के मुताबिक अगले दिन पुनीत हमारे घर आए. श्वेता उन्हें देख कर आश्चर्यचकित रह गई, ‘सर, आप? यहां कैसे? आप को कैसे पता चला कि मैं यहां रहती हूं? मैं बीमार थी, क्या इसीलिए मुझे देखने आए हैं?’ उस ने सवालों की झड़ी लगा दी.

पुनीत मुसकराते हुए बोले, ‘हां भई, मैं इस तरफ किसी काम से आया था, सोचा, तुम से भी मिलता चलूं. पता तो तुम ने ही मुझे दिया था.’

‘ओह, हां. मुझे तो याद ही नहीं रहा.’ श्वेता के चेहरे पर खुशी झलक रही थी. टीवी पर फिल्म चल रही थी. श्वेता फिल्म देखते हुए हमेशा अपनेआप को भी भूल जाती थी, मगर अब उसे फिल्म से भी कोई मतलब नहीं था. उस की दुनिया तो जैसे पुनीत में ही सिमट आई थी.

‘सर, आप क्या खाएंगे?’ श्वेता इठला कर पूछ रही थी.

‘जो आप बना लाएं,’ उन्होंने शरारती स्वर में कहा.

सरिता का प्रेम प्रवाह: सरिता और बलराम ने ऐसा क्या किया

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में मीरजापुरइलाहाबाद मार्ग से सटा एक गांव है-महड़ौरा. विंध्यक्षेत्र की पहाड़ी से लगा यह गांव हरियाली के साथसाथ बहुत शांतिप्रिय गांवों में गिना जाता है. इसी गांव के रहने वाले बंसीलाल सरोज ने रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद बड़ा सा मकान बनवाया, जिस में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे.

उन के भरेपूरे परिवार में पत्नी, 2 बेटे, एक बेटी और बहू थी. गांव में बंसीलाल सरोज के पास खेती की जमीन थी, जिस पर उन का बड़ा बेटा रणजीत कुमार सरोज उर्फ बुलबुल सब्जी की खेती करता था. खेती के साथसाथ रणजीत अपने मामा के साथ मिल कर होटल भी चलाता था.

जबकि छोटा राकेश सरोज कानपुर में बिजली विभाग में नौकरी करता था. वह कानपुर में ही रहता था. महड़ौरा में 9-10 कमरों का अपना शानदार मकान होने के साथसाथ बंसीलाल के पास गांव से कुछ दूर सरोह भटेवरा में दूसरा मकान भी था.

रात में वह उसी मकान में सोया करते थे. बंसीलाल के परिवार की गाड़ी जिंदगी रूपी पटरी पर हंसीखुशी से चल रही थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. दोनों बेटे अपनेअपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, जबकि वह खुद इतनी पेंशन पाते थे कि अकेले अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च उठा सकते थे.

बड़ा बेटा रणजीत कुमार सुबह होने पर खेतों पर चला जाता था, फिर दोपहर में उसे वहां से होटल पर जाना होता था. जहां से वह रात में वापस लौटता था और खापी कर सो जाता था. यह उस की रोज की दिनचर्या थी. रणजीत की 3 बेटियां थीं. 10 साल की माया, 7 साल की क्षमा और 3 साल की स्वाति. वह अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहता था और उन्हें बेटों की तरह प्यार करता था.

उस की बेटियां भी अपनी मां से ज्यादा पिता को चाहती थीं. व्यवहारकुशल रणजीत गांव में सभी को अच्छा लगता था. वह जिस से भी मिलता, हंस कर ही बोलता था. खेती और होटल के काम से उसे फुरसत ही नहीं मिलती थी. उसे थोड़ाबहुत जो समय मिलता था, उसे वह अपने बीवीबच्चों के साथ गुजारता था.

सोमवार 19 मार्च, 2018 का दिन था. रात होने पर रणजीत कुमार रोज की तरह होटल से घर आया तो उस की पत्नी सरिता उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो जी, दूसरे मकान पर बाबूजी को खाना दे आओ. आज काफी देर हो गई है, बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे. आप खाना दे कर आओ तब तक मैं आप के लिए खाने की थाली लगा देती हूं.’’

पत्नी के हाथ से खाने का टिफिन ले कर रणजीत दूसरे मकान पर चला गया, जहां उस के पिता बंसीलाल रात में सोने जाया करते थे. उन का रात का खाना अकसर उसी मकान पर जाता था.

रणजीत उन्हें खाना दे कर जल्दी ही लौट आया और घर आ कर खाना खाने बैठ गया. खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया. रणजीत की मां, पत्नी सरिता, बहन सोनी और रणजीत की तीनों बेटियां बरांडे में सो गईं.

रणजीत सोते समय अपने कमरे का दरवाजा खुला रखता था. उस दिन भी वह अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोया था. देर रात पीछे से चारदीवारी फांद कर किसी ने रणजीत के कमरे में प्रवेश किया और पेट पर धारदार हथियार से वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया. उस पर इतने वार किए गए थे कि उस की आंतें तक बाहर आ गई थीं. रणजीत की मौके पर ही मौत हो गई थी. आननफानन में घर वाले उसे अस्पताल ले कर भागे, लेकिन वहां डाक्टरों ने रणजीत को देखते ही मृत घोषित कर दिया.

भोर में जैसे ही इस घटना की सूचना पुलिस को मिली वैसे ही विंध्याचल कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों का हुजूम लगा हुआ था. अशोक कुमार सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घर के उस कमरे में जहां रणजीत सोया हुआ था, काफी मात्रा में खून पड़ा हुआ था. मौकाएवारदात को देखने से यह बात साफ हो गई कि जिस बेदर्दी के साथ रणजीत की हत्या की गई थी, संभवत: वारदात में कई लोग शामिल रहे होंगे.

यह भी लग रहा था कि या तो हत्यारों की रणजीत से कोई अदावत रही होगी या किसी बात को ले कर वह उस से खार खाए होंगे. इसी वजह से उसे बड़ी बेरहमी से किसी धारदार हथियार से गोदा गया था. खून के छींटे कमरे के साथसाथ बाहर सीढि़यों तक फैले थे.

इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने आसपास नजरें दौड़ा कर जायजा लिया तो देखा, जिस कमरे में वारदात को अंजाम  दिया गया था, वह कमरा घर के पीछे था. संभवत हत्यारे पीछे की दीवार फांद कर अंदर आए होंगे और हत्या कर के उसी तरह भाग गए होंगे.

इसी के साथ उन्हें एक बात यह भी खटक रही थी कि हो न हो इस वारदात में किसी करीबी का हाथ रहा हो. घटनास्थल की वस्तुस्थिति और हालात इसी ओर इशारा कर रहे थे. ताज्जुब की बात यह थी कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी घर के किसी मेंबर को कानोंकान खबर नहीं हुई थी.

बहरहाल, अशोक कुमार सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मृतक रणजीत के बारे में जानकारी एकत्र की और थाने लौट आए. उन्होंने रणजीत के पिता बंसीलाल सरोज की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

रणजीत की हत्या होने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंची तो तमाम लोग महड़ौरा में एकत्र हो गए. हत्या को ले कर लोगों में आक्रोश था. आक्रोश के साथसाथ भीड़ भी बढ़ती गई. महिलाएं और बच्चे भी भीड़ में शामिल थे.

आक्रोशित भीड़ ने गांव के बाहर मेन रोड पर पहुंच कर इलाहाबाद मीरजापुर मार्ग जाम कर दिया. दोनों तरफ का आवागमन पूरी तरह ठप्प हो गया. गुस्से के मारे लोग पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ हत्यारों को गिरफ्तार करने और उस की बीवी को मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे थे.

इस की जानकारी मिलने पर विंध्याचल कोतवाली पुलिस वहां पहुंच गई, जहां भीड़ जाम लगाए हुए थी. जाम के चलते इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने धरने पर बैठे गांव वालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं थे.

अपना प्रयास विफल होता देख उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को वहां की स्थिति बता कर पुलिस फोर्स भेजने को कहा, ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके.

वायरलैस पर सड़क जाम की सूचना प्रसारित होते ही पड़ोसी थानों जिगना, गैपुरा और अष्टभुजा पुलिस चौकी के अलावा जिला मुख्यालय से पहुंची पुलिस और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया. कुछ ही देर में पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि रणजीत के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. काफी समझाने के बाद ग्रामीण मान गए और उन्होंने धरना समाप्त कर दिया. इस के साथ ही धीरेधीरे जाम भी खत्म हो गया.

जाम समाप्त होने के बाद विंध्याचल कोतवाली पहुंचे पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने रणजीत के हत्यारों को हर हाल में जल्द से जल्द गिरफ्तार कर के इस केस को खोलने का सख्त निर्देश दिए. पुलिस अधीक्षक के सख्त तेवरों को देख कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार और उन के मातहत अफसर जीजान से जांच में जुट गए.

अशोक कुमार सिंह ने इस केस की नए सिरे से छानबीन करते हुए मृतक रणजीत के पिता बंसीलाल से पूछताछ करनी जरूरी समझी. इस के लिए वह महड़ौरा स्थित बंसीलाल के घर पहुंचे, जहां उन्होंने बंसीलाल से एकांत में बात की. इस बातचीत में उन्होंने रणजीत से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी जुटाई. बंसीलाल से हुई बातों में एक बात चौंकाने वाली थी जो रणजीत की पत्नी सरिता से संबंधित थी.

पता चला उस का चालचलन ठीक नहीं था. इस संबंध में रणजीत के पिता बंसीलाल ने इशारोंइशारों में काफी कुछ कह दिया था.

इस जानकारी से इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने पूछताछ के लिए मृतक रणजीत की पत्नी सरिता और उस के चचेरे भाई बलराम सरोज को थाने बुलाया. लेकिन इन दोनों ने कुछ खास नहीं बताया. दोनों बारबार खुद को बेगुनाह बताते रहे.

बलराम रणजीत का भाई होने का तो सरिता पति होने का वास्ता देती रही. दोनों के घडि़याली आंसुओं को देख कर इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उन पर नजर रखने लगे. इसी बीच उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि सरिता और बलराम भागने के चक्कर में हैं.

मुखबिर की बात सुन कर अशोक कुमार सिंह ने बिना समय गंवाए 29 मार्च को महड़ौरा से सरिता को थाने बुलवा लिया. साथ ही उस के चचेरे देवर बलराम को भी उठवा लिया. थाने लाने के बाद दोनों से अलगअलग पूछताछ की गई.

पूछताछ के लिए पहला नंबर सरिता का आया. वह पुलिस को घुमाने का प्रयास करते हुए अपने सुहाग का वास्ता दे कर बोली, ‘‘साहब, आप कैसी बातें कर रहे हैं, भला कोई अपने ही हाथों से अपने सुहाग को उजाड़ेगा? साहब, जरूर किसी ने आप को बहकाया है. आखिरकार मुझे कमी क्या थी, जो मैं ऐसा करती?’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘देखो सरिता, तुम ज्यादा सती सावित्री बनने की कोशिश मत करो, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सब कुछ सचसच बता दो वरना मुझे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा.’’ लेकिन सरिता पर उन की बातों का जरा भी असर नहीं पड़ा. वह अपनी ही रट लगाए हुई थी.

अशोक कुमार सिंह सरिता के बाद उस के चचेरे देवर बलराम से मुखातिब हुए, ‘‘हां तो बलराम, तुम कुछ बोलोगे या तुम से भी बुलवाना पड़ेगा.’’

‘‘म…मम…मतलब. मैं कुछ समझा नहीं साहब.’’

‘‘नहीं समझे तो समझ आओ. मुझे यह बताओ कि तुम ने रणजीत को क्यों मारा?’’

‘‘साहब, आप यह क्या कह रहे हैं, रणजीत मेरा भाई था, भला कोई अपने भाई की हत्या क्यों करेगा? मेरी उस से खूब पटती थी. उस के मरने का सब से ज्यादा गम मुझे ही है. और आप मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक इंसपेक्टर अशोक कुमार का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के बाएं गाल पर पड़ा. वह अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया.

अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘बलराम, भाई प्रेम को ले कर तुम्हारी जो सक्रियता थी, वह मैं देख रहा था. तुम्हारा प्रेम किस से और कितना था, यह सब भी मुझे पता चल चुका है. तुम ने रणजीत को क्यों और किस के लिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’

उन्होंने सरिता की ओर इशारा करते हुए कहा तो बलराम की नजरें झुक गईं. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस की बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगी.

तीर निशाने पर लगता देख इंसपेक्टर अशोक कुमार सिह ने बिना देर किए तपाक से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है, दोनों साफसाफ बता दो कि रणजीत की हत्या क्यों और किसलिए की, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

सरिता और बलराम ने खुद को चारों ओर से घिरा देख कर सच्चाई उगलने में ही भलाई समझी. पुलिस ने दोनों को विधिवत गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो रणजीत के कत्ल की कहानी परत दर परत खुलती गई.

बलराम ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि न जाने कैसे रणजीत को उस के और सरिता के प्रेम संबंधों की जानकारी मिल गई थी.

फलस्वरूप वह उन दोनों के संबंधों में बाधक बनने लगा. यहां तक कि उस ने बलराम को अपनी पत्नी से मिलने के लिए मना कर दिया था. इसी के मद्देनजर सरिता और बलराम ने योजनाबद्ध तरीके से रणजीत की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक बलराम ने घर में घुस कर बरामदे में सोए रणजीत की चाकू घोंप कर हत्या कर दी.

बलराम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घर से 2 सौ मीटर दूर गेहूं के खेत से बरामद कर लिया. सरिता और बलराम ने स्वीकार किया कि जिस चाकू से रणजीत की हत्या की गई थी, उसे बलराम ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव के एक लोहार से बनवाया था. पुलिस ने उस लोहार से भी पूछताछ की. उस ने इस की पुष्टि की.

पुलिस लाइन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने खुलासा करते हुए बताया कि रणजीत सरोज की पत्नी के अवैध संबंध उस के चचेरे भाई बलराम से पिछले 5 वर्षों से थे. रणजीत ने दोनों को एक बार रंगेहाथों पकड़ा था. उस वक्त घर वालों ने गांव में परिवार की बदनामी की वजह से इस मामले को घर में ही दबा दिया था. साथ ही दोनों को डांटाफटकारा भी था.

रणजीत ने बलराम को घर में आने से मना भी कर दिया था. इस से सरिता अंदर ही अंदर जलने लगी थी. उसे चचेरे देवर से मिलने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने बलराम के साथ मिल कर पति की हत्या की योजना तैयार की ताकि पिछले 5 सालों से चल रहे प्रेम संबंध चलते रहें.

पकड़े जाने पर दोनों ने पुलिस और मीडिया के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए अवैध संबंधों में हत्या की बात मानी. दोनों ने पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया. रणजीत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के बाद पुलिस ने पूर्व  में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह सरिता और बलराम का नाम शामिल कर के दोनों को जेल भेज दिया.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 1: जाति का बंधन जब आया राघव और रम्या के प्यार के बीच

अभी लोकल ट्रेन आने में 15 मिनट बाकी थे. रम्या बारबार प्लेटफौर्म की दूसरी तरफ देख रही थी. ‘राघव अभी तक नहीं आया. अगर यह लोकल ट्रेन छूट गई तो फिर अगली के लिए आधे घंटे का इंतजार करना पड़ेगा’, रम्या सोच रही थी.

तभी रम्या को राघव आता दिखाई दिया. उस ने मुसकरा कर हाथ हिलाया. राघव ने भी उसे एक मुसकान उछाल दी. रम्या ने अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ाई. अभी सुबह के 7 बजे थे. लिहाजा स्टेशन पर अधिक भीड़ नहीं थी. एक कोने में कंधे से स्कूल बैग लटकाए 3-4 किशोर, एक अधेड़ उम्र का जोड़ा व कुछ दूरी पर खड़े लफंगे टाइप के 4-5 युवकों के अलावा स्टेशन एकदम खाली था.

रम्या प्लेफौर्म की बैंच से उठ कर प्लेटफौर्म के किनारे आ कर खड़ी हुई तो उस का मोबाइल बज उठा. उस ने अपने मोबाइल को औन किया ही था कि अचानक किसी ने पीछे से उस की पीठ में छुरा भोंक दिया. एक तेज धक्के से वह पेट के बल गिर पड़ी, जिस से उस का सिर भी फट गया और वह बेहोश हो गई.

राघव जब तक उस तक पहुंच पाता, हमलावर नौ दो ग्यारह हो चुका था. चारों तरफ चीखपुकार गूंज उठी. रेलवे पुलिस ने तत्काल उसे सरकारी अस्पताल पहुंचाने का इंतजाम किया. रम्या के मोबाइल फोन से उस के पापा को कौल की. संयोग से वे स्टेशन के बाहर ही खड़े हो अपने एक पुराने परिचित से बातचीत में मग्न हो गए थे. वे उस रोज रम्या के साथ ही घर से स्टेशन तक आए थे. उन्हें चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर कुछ काम था. इसीलिए वे बाहर निकल गए जबकि रम्या परानुरू की लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पर ही रुक गई. रम्या रोज 2 ट्रेनें बदल कर महिंद्रा सिटी अपने औफिस पहुंचती थी.

अचानक फोन पर यह खबर सुन कर रम्या के पिता की हालत बिगड़ने लगी. यह देख कर उन के परिचित उन्हें धैर्य बंधाते हुए साथ में अस्पताल चल पड़े.

रम्या को तुरंत आईसीयू में भरती कर लिया गया. घर से भी उस की मां, बड़ी बहन, जीजा सभी अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर ने 24 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए कह दिया कि यदि इतने घंटे सकुशल निकल गए तो बचने की उम्मीद है.

मां और बहन का रोरो कर बुरा हाल था. उन का दामाद, डाक्टर और मैडिकल स्टोर के बीच चक्करघिन्नी सा घूम रहा था.

राघव सिर पकड़े एक कोने की बैंच पर  बैठ गया. वह दूर से रम्या के मम्मीपापा और बड़ी बहन को देख रहा था. क्या बोले और कैसे, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के परिवार के लोग गांव में रहते हैं. अत: वे तमिल के अलावा और कोई भाषा नहीं जानते थे जबकि वह शुरू से ही पढ़ाई में होशियार थी. इसीलिए गांव से निकल कर होस्टल में पढ़ने आ गई थी और फिर इंजीनियरिंग कर नौकरी कर रही थी वरना उस की दीदी का तो 12वीं कक्षा के बाद ही पास के गांव में एक संपन्न किसान परिवार में विवाह कर दिया गया था. सुबह से दोपहर हो गई वह अपनी जगह से हिला ही नहीं, अंदर जाने की किसी को अनुमति नहीं थी. उस ने रम्या की खबर उस के औफिस में दी तो कुछ सहकर्मियों ने शाम को हौस्पिटल आने का आश्वासन दिया. अब वह बैठा उन लोगों का इंतजार कर रहा था. वे आए तभी वह भी रम्या के मातापिता से अपनी भावनाएं व्यक्त कर सका.

पिछले 2 सालों से राघव और रम्या औफिस की एक ही बिल्डिंग में काम कर रहे थे. रम्या एक तमिल ब्राह्मण परिवार से थी, जो काफी संपन्न किसान परिवार था, जबकि राघव उत्तर प्रदेश के पिछड़े वर्ग के गरीब परिवार से था. उस का और रम्या का कोई तालमेल ही नहीं, मगर न जाने वह कौन सी अदृश्य डोर से उस की ओर खिंचा चला गया.

उस की पहली मुलाकात भी रम्या से इसी चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर हुई थी, जहां से उसे परानुरू के लिए लोकल ट्रेन पकड़नी थी. उस दिन अपनी कंपनी का ही आईडी कार्ड लटकाए रम्या को देख कर वह हिम्मत कर उस के नजदीक पहुंच गया. जब रम्या को ज्ञात हुआ कि वह पहली बार लोकल ट्रेन पकड़ने आया है तो उस ने उस से कहा भी था कि जब उसे पीजी में ही रहना है तो परानुरू की महिंद्रा सिटी में शिफ्ट हो जाए. रोजरोज की परानुरू से चेंग्ल्पप्त की लोकल नहीं पकड़नी पड़ेगी.

खुद रम्या को तो रोज 2 ट्रेनें बदल कर अपने गांव से यहां आना पड़ता था. उन की बातों के दौरान ही ट्रेन आ गईं. जब तक वह कुछ समझता ट्रेन चल पड़ी. रम्या उस में सवार हो चुकी थी और वह प्लेटफौर्म पर ही रह गया. यह क्या अचानक रम्या प्लेटफौर्म पर कूद गई.

रम्या जब कूदी उस समय ट्रेन रफ्तार में नहीं थी. अत: वह कूदते ही थोड़ा सा लड़खड़ाई पर फिर संभल गई.

राघव हक्काबक्का सा उसे देखते रह गया. फिर सकुचा कर बोला, ‘‘तुम्हें इस तरह नहीं कूदना चाहिए था?’’

‘‘तुम अभी मुझ से ट्रेन के अप और डाउन के बारे में पूछ रहे थे… तुम यहां नए हो… मुझे लगा तुम किसी गलत ट्रेन में न बैठ जाओ सो उतर गई,’’ कह रम्या मुसकराई.

रम्या के सांवले मुखड़े को घेरे हुए उस के घुंघराले बाल हवा में उड़ रहे थे. चौड़े ललाट पर पसीने की बूंदों के बीच छोटी सी काली बिंदी, पतली नाक और पतले होंठों के बीच एक मधुर मुसकान खेल रही थी. राघव को लगा यह तो वही काली मिट्टी से बनी मूर्ति है जिसे उस के पिता बचपन में उसे रंग भरने को थमा देते थे.

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ रम्या ने पूछा.

‘‘यही कि तुम्हें कुछ हो जाता तो, मैं पूरी जिंदगी अपनेआप को माफ न कर पाता… तुम्हें ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘ब्लड… ब्लड…’’ यही शब्द उन वाक्यों के उसे समझ आए, जो डाक्टर रम्या की फैमिली से तमिल में बोल रहा था.

राघव तुरंत डाक्टर के पास पहुंच गया. बोला, ‘‘सर, माई ब्लड ग्रुप इज ओ पौजिटिव.’’

‘‘कम विद मी,’’ डाक्टर ने कहा तो राघव डाक्टर के साथ चल पड़ा. उन्हीं से राघव को पता चला कि शाम तक 5-6 यूनिट खून की जरूरत पड़ सकती है. राघव ने डाक्टर को बताया कि शाम तक अन्य सहकर्मी भी आ रहे हैं. अत: ब्लड की कमी नहीं पड़ेगी.

रक्तदान के बाद राघव अस्पताल के एहाते में बनी कैंटीन में कौफी पीने के लिए आ गया. अस्पताल आए 6 घंटे बीत चुके थे. उस ने एक बिस्कुट का पैकेट लिया और कौफी में डुबोडुबो कर खाने लगा.

तभी उस की नजर सामने बैठे व्यक्ति पर पड़ी, जो कौफी के छोटे से गिलास को साथ में दिए छोटे कटोरे (जिसे यहां सब डिग्री बोलते हैं) में पलट कर ठंडा कर उसे जल्दीजल्दी पीए जा रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के अप्पा जब भी बाहर कौफी पीते हैं, तो इसी अंदाज में, क्योंकि वे दूसरे बरतन में अपना मुंह नहीं लगाना चाहते. अरे, हां ये तो रम्या के अप्पा ही हैं. मगर वह उन से कोई बात नहीं कर सकता. वही भाषा की मुसीबत.

तभी उस की नजर पुलिस पर पड़ी, जिस ने पास आ कर उस से स्टेटमैंट ली और उसे शहर छोड़ कर जाने से पहले थाने आ कर अनुमति लेने की हिदायत व पुलिस के साथ पूरा सहयोग करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

शाम के 6 बज चुके थे. जब उस के सहकर्मी आए तो राघव की सांस में सांस आई. वे

सभी रक्तदान करने के पश्चात रम्या के परिजनों से मिले और राघव का भी परिचय कराया.

तब उस की अम्मां ने कहा, ‘‘हां, मैं ने सुबह से ही इसे यहीं बैठे देखा था. मगर मैं नहीं जान पाई कि ये भी उस के सहकर्मी हैं,’’ और फिर वे राघव का हाथ थाम कर रो पड़ीं.

उन लोगों के साथ राघव भी लौट गया. वह रोज शाम 7 बजे अस्पताल पहुंच जाता और 9 बजे लौट आता. पूरे 15 दिन तक आईसीयू में रहने के बाद जब रम्या प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट हुई तब जा कर उसे रम्या की झलक मिल सकी. रम्या की पीठ का घाव तो भरने लगा था, मगर उस के शरीर का दायां भाग लकवे का शिकार हो गया था, जबकि बाएं भाग में गहरा घाव होने से उसे ज्यादा हिलनेडुलने को डाक्टर ने मना किया था. रम्या निर्जीव सी बिस्तर पर लेटी रहती. अपनी असमर्थता पर आंसू गिरा कर रह जाती.

दुर्घटना के पूरे 6 महीनों के बाद स्वास्थ्य लाभ कर उस दिन रम्या औफिस जौइन करने जा रही थी. सुबह से रम्या को कई फोन आ चुके थे कि वह आज जरूर आए. उस दिन राघव की विदाई पार्टी थी. वह कंपनी की चंडीगढ़ ब्रांच में ट्रांसफर ले चुका था. वह दिन उस का अंतिम कार्यदिवस था.

कच्चा पपीता खाने के ये हैं 5 फायदे

विटामिन का प्रमुख स्रोत है पपीता. इसमें विटामिन ए, सी, ई मैग्नीशियम और पोटेशियम भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. पका पपीता सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. अक्सर लोग पके पपीते के फायदे गिनाते हैं, पर क्या आपको कच्चे पपीते के फायदे के बारे में पता है? आपको बता दें कि कच्चा पपीता हमारी सेहत के लिए कई तरह से लाभकारी है. इसका इस्तेमाल हमें कई बीमारियों से दूर रखता है. कच्चे पपीते का इस्तेमाल मोटापे, पीलिया और डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है. इस खबर में हम आपको कच्चे पपीते से होने वाले 5 फायदों के बारे में बताएंगे.

लीवर में है फायदेमंद

लीवर संबंधी परेशानियों में कच्चा पपीता बेहद कारगर होता है. पीलिया होने के बाद लीवर पर इसका काफी प्रभाव पड़ता है और वह कमजोर हो सकता है. ऐसी स्थिति में कच्चे पपीते का उपयोग काफी असरदार साबित होता है.

गैस की समस्या में है कारगर

कच्चे पपीते से पेट की गैस की समस्या में आराम मिलता है. ये पाचनतंत्र को ठीक रखने में भी बेहद कारगर है.

कैंसर से होता है बचाव

कच्चे पपीते में एंटी औक्सीडेंट और फीटोन्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं, जो शरीर में कैंसर की कोशिकाओं को बनने से रोकने का काम करते हैं. इससे कैंसर का खतरा कम होता है.

डायबिटीज में है कारगर

डायबिटीज के रोगियों के लिए कच्चे पपीते का सेवन करना काफी फायदेमंद होता है. इसके नियमित प्रयोग से खून में शुगर की मात्रा संतुलित रहती है, जिससे डायबिटीज की समस्या कंट्रोल में रहती है. इसलिए डायबिटीज के रोगियों के लिए कच्चा पपीता काफी फायदेमंद हो सकता है.

यूरिन इंफेक्शन में है लाभकारी

कच्चे पपीते में पाए जाने वाला विटामिन पेशाब संबंधित इंफेक्शन को बढ़ने नहीं देता. आमतौर पर ये समस्या महिलाओं में देखी जाती है. इसलिए जरूरी है कि महिलाएं भी इसका इस्तेमाल करें.

टूट गई राकेश बापट और शमिता की जोड़ी, आपसी सहमति से हुए अलग

बिग बॉस के  फेमस  कपल राकेश बापट और शमिता शेट्टी की जोड़ी को फैंस काफी पसंद करते है. फैंस को इस कपल से जुड़ी हर खबर का बेसब्री से इंतजार रहता है. लेकिन अब फैंस के लिए बुरी खबर आ रही है.  रिपोर्ट्स के मुताबिक शमिता और राकेश ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला कर लिया है. जी हां, बिग बॉस 15 की इस जोड़ी का ब्रेकअप हो गया है.

हाल ही में खबर आई थी कि राकेश बापट शमिता के घर के पास शिफ्ट होने का प्लान कर रहे हैं.  लेकिन अब खबर आ रही है कि दोनों का ब्रेकअप हो गया है. इस खबर से फैंस का दिल टूट गया है.

 

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एक रिपोर्ट के मुताबिक राकेश बापट से अलग होने की खबर पर शमिता शेट्टी ने हाल ही में रिएक्शन दिया था. एक्ट्रेस ने कहा था कि  ‘हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि इन चीजों का हम पर फर्क न पड़े. रिश्ता दो लोगों के बीच होता है.

 

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शमिता ने आगे ये भी कहा कि  दूसरे आपके बारे में क्या सोच रहे हैं इस पर ज्यादा नहीं सोचना चाहिए. हमें इससे फर्क नहीं पड़ता है.’  शमिता और राकेश बिग बॉस हाउस में मिले थे. बिग बॉस ओटीटी के बाद शमिता शेट्टी ने बिग बॉस सीजन 15 में भी हिस्सा लिया.

 

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रिपोर्ट के अनुसार, राकेश बापट और शमिता शेट्टी कई महीने पहले ही अलग हो गए थे. ब्रेकअप की खबरों के बाद शमिता शेट्टी और राकेश बापट ने कोई बड़ा स्टेटमेंट नहीं दिया है. राकेश बापट और शमिता शेट्टी बहुत ही शांति से अपना रिश्ता खत्म करना चाहते हैं.

YRKKH: अक्षरा से नफरत करेगा अभिमन्यु, रिश्ते में आएगी दरार

प्रणाली राठौड़ (Pranali Rathod) और हर्षद चोपड़ा (Harshad Chopda) स्टारर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में  इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि सच जानने के बाद नील घर छोड़कर चला जाता है और अभिमन्यु उसे ढूंढने के लिए निकलता है. तो दूसरी ओर नील खाई के पास जाता है, और वहां कार आ जाती है. अभिमन्यु मायूस होकर घर लौटता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया जाएगा नील घर छोड़कर चला जाता है, अभिमन्यु उसे ढूंढने के लिए निकलता है. अक्षरा उसे फोन करती है, लेकिन उसकी बातों का कोई जवाब नहीं देता है. ऐसे में मंजरी का रो-रोकर बुरा हाल हो जाता है.

 

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शो में ये भी दिखाया गया कि नील खाई के किनारे पर खड़ा रहता है. दूसरी तरफ आरोही उसे देख लेती है और अपने साथ गोयनका हाउस ले आती है. तो वहीं  अक्षरा भी वहां पहुंचती है और नील को देखकर राहत की सांस लेती है.

 

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अक्षरा नील के सामने स्माइली कचौड़ी लेकर जाती है,  लेकिन वह कचौड़ी फेंक देता है. नील को नाराज देखकर अक्षरा उसे समझाती है कि वह घर चल ले. अक्षरा कहती है कि मां की तबीयत पहले से ही खराब है, ऐसे में वह उसके साथ चल लें. तो दूसरी तरफ अभिमन्यु वहां पहुंचता है, अक्षरा को देखकर उसका गुस्सा फूटता है.

 

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हार्दिक, भाजपा और देश

एक समय था जब हार्दिक पटेल का मतलब था – भाजपा का विरोध, गुजरात में नरेंद्र दामोदरदास मोदी के खिलाफ खड़ा एक विद्रोही युवा. जो आग उगलते हुए यह संदेश दे रहा था कि आने वाला समय बदलाव का है. मोदी मुक्त भारत का है.

मगर अब अचानक ऐसा क्या हो गया है कि हार्दिक पटेल को कांग्रेस छोड़कर उसी भाजपा की गोद में बैठना सुखद महसूस हुआ है, जो उसे राजद्रोही करार कर चुकी थी और मुकदमा चल रहा था.

वस्तुतः देश में अब एक नई राजनीति की परीपाटी शुरू हुई है जिसकी जनक आज की भाजपा है जिसमें भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में बनाए रखने के लिए येन केन प्रकारेण विपक्ष के और देश के महत्वपूर्ण बड़े नेताओं को किसी भी तरीके से पार्टी में शामिल कर लेना एक कूटनीति के तहत जारी है.

यही कारण है कि कांग्रेस  धीरे-धीरे कमजोर होती चली जा रही है अन्य पार्टियों को भी भाजपा इसी तरह सेंध लगाकर छोटा कर रही है  लंबी लकीर खींचती जा रही है और सत्ता का ताज पहने हुए हैं.

गुजरात के परिदृश्य में देखें तो यह समझ सकते हैं कि इस तरह भाजपा और उसके बड़े नेताओं ने एक चक्रव्यूह बुनकर हार्दिक पटेल को भाजपा में लाया गया है. आगामी समय में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं और यहां किसी भी तरीके से विपक्ष को कमजोर कर के खत्म करके सत्ता सिंहासन संभालना ही मकसद है .

हार्दिक पटेल की राजनीतिक बलि!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पाटीदार आरक्षण आंदोलन के चर्चित नेता रहे हार्दिक पटेल विधिवत सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए हैं  और एक तरफ से अब उनकी राजनीतिक बलि चढ़ गई है. भाजपा में प्रवेश का मतलब यह है कि अब राजनीतिक रूप से उनका जनाधार धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा जनता का जो समर्थन और प्यार हार्दिक पटेल को मिला था वह अब खत्म हो जाएगा और सांप छछूंदर की गति जैसा हार्दिक पटेल का राजनीतिक भविष्य एक तरह से खत्म कर दिया जाएगा .

हार्दिक पटेल भाजपा के प्रदेश मुख्यालय राजधानी गांधीनगर के निकट कोबा स्थित श्रीकमलम में आधिकारिक रूप से दल में शामिल हो गए. वह भाजपा की ओर से विजय मुहर्त माने जाने वाले समय दोपहर 12 बज कर 39 मिनट पर पार्टी में शामिल हुए.इधर कांग्रेस की महिला नेता श्वेता ब्रह्मभट्ट ने भी केसरिया बाना धारण किया है. कभी भाजपा के कट्टर विरोधी रहे हार्दिक ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के शान में कसीदे पढ़े. उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर कड़ा प्रहार  किया.भाजपा में शामिल होने से पहले उन्होंने कोबा से श्रीकमलम तक एक रोड शो भी किया.इससे पूर्व हार्दिक ने अपने कांग्रेस छोड़ भाजपा केसरिया अंग वस्त्र रख कर उन्हें विधिवत भाजपा में हुए शामिल, अपने संदेश में उन्होंने कहा राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित एवं समाज हित की भावनाओं के साथ आज से नए अध्याय का प्रारंभ करने जा रहा हूँ. भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी  के नेतृत्व में चल रहे राष्ट्र सेवा के भगीरथ कार्य में छोटा सा सिपाही बनकर काम करूंगा.

उधर पूर्व में हार्दिक को कट्टर विरोधी मानने वाली भाजपा ने भी हृदय परिवर्तन कर  अपने पोस्टरों में  युवा देशप्रेमी नेता बता गुणगान किया. मजे की बात यह है कि  गुजरात सरकार के निर्देश पर ही पूर्व में  हार्दिक के विरुद्ध राजद्रोह का मुकदमा चला था. भाजपा में शामिल होने से पहले हार्दिक ने अपने घर और एसजीवीपी मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया . उन्होंने गत 18 मई को कांग्रेस के शीर्ष और प्रदेश नेतृत्व पर तीखा प्रहार करते हुए दल को प्राथमिक सदयस्ता से इस्तीफा दे दिया था. मालूम हो  कि वर्ष 2015 के पाटीदार आरक्षण आंदोलन से चर्चा में आए 28  वर्षीय हार्दिक ने पिछले लोकसभा चुनाव से पहले मार्च 2019 में विधिवत कांग्रेस का दामन थामा था.

इस नए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद गुजरात में एक तरफ से भाजपा ने अपनी बढ़त बना ली है कांग्रेस पीछे पीछे दौड़ रही है. देशका भविष्य क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में समाया हुआ है.

Satyakatha: प्यार पर जोर नहीं

सौजन्य- सत्यकथा

नाम की तरह चंचला का दिल भी चंचल था. तभी तो 6 महीने तक प्रेमी मिथुन से प्यार करने के बाद उस ने दूसरे प्रेमी आकाश को चुन लिया. आकाश और चंचला को जब भी मौका मिलता, जमाने की नजरों से बचते हुए वे आम के बगीचे में निकल जाते थे और जी भर कर बातें करते थे. एक दिन काले घने लंबे केशों को अंगुलियों में लपेट कर खेल रहा आकाश चंचला की झील सी गहरी आंखों में डूबते हुए बोला, ‘‘तुम बेहद खूबसूरत हो, चंचला.’’

‘‘अच्छा,’’ अपनी खूबसूरती की तारीफ सुन कर इठलाती हुई चंचला आगे बोली, ‘‘क्या मैं वाकई बेहद खूबसूरत हूं या यूं ही…’’

‘‘चाहे तुम जिस की भी सौगंध ले लो, मैं झूठी कसमें नहीं खाता हूं. जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो, मेरी जिंदगी ही बदल गई है.’’ चंचला को अपने आगोश में लेते हुए आकाश ने लंबी गहरी सांसें लीं तो चंचला के बदन में आकाश के गरम बदन के स्पर्श के बाद एक झुरझुरी सी दौड़ पड़ी और उसे कस कर अपनी बांहों में भर लिया.

फिर उस की आंखों में झांकती हुई वह धीरे से बोली, ‘‘क्या तुम सचमुच मुझे बेहद प्यार करते हो?’’

‘‘अपने आप से भी ज्यादा,’’ सटीक जवाब दिया आकाश ने.

‘‘कभी तुम मुझे धोखा तो नहीं दोगे?’’

‘‘चाहे तो कोरे कागज पर लिखवा लो. मेरा नाम यूं ही आकाश नहीं है, दिल भी मेरा आकाश की तरह बड़ा है. रही धोखा देने वाली बात तो आज तो ऐसी बात कह दी तुम ने, ऐसी बात फिर से मत कहना. मैं क्या तुम्हें धोखेबाज नजर आता हूं या मेरा प्यार ही धोखा है?’’ खुद की बांहों से चंचला को दूर करते हुए आकाश बोला.

‘‘तुम तो बुरा मान गए. मेरा वो कहने का मतलब नहीं था जो तुम समझ रहे हो,’’ तड़प कर चंचला बोली.

‘‘मैं क्या समझ रहा हूं,’’ झुंझला कर आकाश बोला, ‘‘यार, मैं ही पागल था जो तुम जैसी लड़कियों से दिल लगा बैठा.’’

‘‘अरे, बाप रे बाप,’’ चंचला समझ रही थी उस का प्यार उस की बातों से काफी गुस्सा हो गया है. इसलिए उस ने अपनी बातों को दूसरी ओर घुमा दिया, ‘‘मेरा सोना, इतना गुस्सा. मैं ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा होने वाला पति इतना गुस्से वाला होगा.’’

‘‘यार, तुम…तुम फिजूल की बातें मत किया करो, वरना…’’

‘‘वरना क्या, तुम मुझे और भी ज्यादा प्यार करोगे?’’

‘‘यार तुम मुझे और ज्यादा परेशान मत करो, वरना मुझे और ज्यादा गुस्सा आ जाएगा.’’

‘‘गुस्सा आ जाएगा तो मेरी बला से,’’ प्रेमी की कमर में गुदगुदाते हुए चंचला ने शरारत भरी आंखों से उस की ओर देखा तो आकाश अपनी हंसी नहीं रोक सका. उसे हंसता हुआ देख चंचला के चेहरे पर भी मुसकान तैरने लगी.

आम के बड़े बगीचे में एक पेड़ की ओट लगाए बैठे प्रेमी युगल ने घंटों कैसे बिता दिए, उन्हें पता ही नहीं चला. उन्हें तो ऐसा लग रहा था जैसे अभीअभी आए हों. अभी मिले हों और प्यार की दोचार बातें की हों.

कल फिर इसी जगह मिलने का वादा कर के आकाश अपने घर की ओर हो लिया तो चंचला भी दूसरे रास्ते से अपने घर की ओर बढ़ चली थी. ये बात 7 जनवरी, 2022 की उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की झंगहा थानाक्षेत्र के नौवाबारी गांव की है.

वादे के मुताबिक, अगले दिन चंचला प्रेमी आकाश से मिलने उसी जगह पहुंची, जहां बीते कल दोनों मिले थे. घंटों इंतजार के बाद भी न तो आकाश वहां पहुंचा और न ही उस ने चंचला को फोन किया. गुस्से से चंचला लालपीली हुई जा रही थी.

उसे विश्वास था उस का प्यार और लड़कों जैसा धोखेबाज नहीं है. वादा किया है तो उस से मिलने जरूर आएगा, लेकिन आकाश नहीं आया और दिन ढलने को भी आ गया.

हारे जुआरी की तरह चंचला लड़खड़ाते कदमों से घर पहुंची और बिस्तर पर जा कर पसर गई. आकाश के न आने से चंचला अंतर्मन तक दुखी थी. किसी काम में उस का मन नहीं लग रहा था. फिर मन ही मन वह यह सोच रही थी कि हर लड़कों से आकाश जुदा था फिर उस से वादा कर के मिलने क्यों नहीं आया.

कई दिन बीत गए थे. न तो आकाश गांव में कहीं दिखा और न ही उस का फोन आया. ऊपर से उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. चंचला आकाश की विरह में तड़प रही थी.

खैर, 25 जनवरी, 2022 की बात है. समय यही कोई सुबह का था. कुत्तों का झुंड गांव के बाहर गुलाब जायसवाल के खेत में गड्ढे में मंडरा रहे थे. कुत्तों को देख गांव वाले मौके पर पहुंचे तो वहां सड़ांध महसूस हुई, जहां अपने पैरों से कुत्ते उसे जगह को खोद रहे थे.

उसी समय गांव वालों ने इस की जानकारी मुखिया को दी और मुखिया ने यह खबर झंगहा थाने तक पहुंचा दी.

घटना की जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी संतोष कुमार अवस्थी एसआई धीरेंद्र राय, देवीशंकर पांडेय, कांस्टेबल कमलापति तिवारी, प्रभात मिश्र और अशोक कुमार के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर पहुंची पुलिस ने फावड़े से उस जगह की खुदाई करानी शुरू की, जहां कुत्ते अपने पैरों से खोद रहे थे. थोड़ी सी मिट्टी हटते ही सब की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. 2 अलगअलग गड्ढों में एकएक कर 2 लाशें मिलीं.

दोनों लाशें गड्ढे से निकाली गईं. दोनों के हाथ नायलोन की रस्सी से पीछे की ओर बंधे थे और किसी भारी धारदार हथियार से दोनों के सिर पर वार किया गया था. यही नहीं, खोजबीन करते वक्त मौके से पुलिस को एक मोबाइल फोन भी मिला, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

लाश मिलते ही मौके पर मौजूद गांव वालों की अचरज से आंखें फटी रह गईं और उन के पैरों की जमीन भी जैसे खिसक गई. दोनों लाशें गांव से 19 दिनों पहले रहस्यमय तरीके से गायब साहब जायसवाल के बेटे आकाश और जितेंद्र जायसवाल के बेटे गणेश जायसवाल की थीं.

आकाश और गणेश की लाशें बरामद होते ही गांव में दहशत फैल गई थी. साहब और जितेंद्र जायसवाल के घर में तो कोहराम मच गया था. दोनों घरों में रोनापीटना शुरू हो गया था. दोनों परिवारों को यह यकीन नहीं हो रहा था कि उन के बच्चे अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उन की हत्या किस ने और क्यों की होगी. यह एक बड़ा सवाल बन कर सामने आ खड़ा था.

दरअसल, 7 जनवरी, 2022 को दिन में आकाश चंचला से मिल कर घर लौटा. देर रात तक वह और उस का अजीज दोस्त गणेश दोनों ही गांव में घूमते देखे गए थे. उस के बाद से दोनों अचानक गायब

हो गए.

दोनों के अचानक से लापता होने से घर वाले परेशान हो गए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें धरती निगल गई या आसमान खा गया? अभी दोनों यहीं देखे गए थे फिर अचानक से गायब कहां हो गए.

खैर, रात जैसेतैसे बीती. साहब जायसवाल और जितेंद्र जायसवाल दोनों ही अपनेअपने बेटों को 4 दिनों तक उन के हर संभावित ठिकानों पर ढूंढते रहे. जब दोनों का कहीं पता नहीं चला तो हार मान कर 11 जनवरी, 2022 को झंगहा थाने की नई बाजार, पुलिस चौकी में दोनों के लापता होने की संयुक्त तहरीर दे दी थी.

तहरीर लेने के बाद पुलिस चुपचाप बैठ गई. इधर आकाश और गणेश के रहस्य से परदा उठ चुका था. पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दिया.

उधर लाशें बरामद होने के बाद मौके पर पहुंचे थानाप्रभारी संतोष कुमार अवस्थी ने घटना की सूचना एसपी (उत्तरी) मनोज अवस्थी, एसपी (सिटी) सोनम कुमार, सीओ (चौरीचौरा), एसएसपी डा. विपिन ताडा और डीआईजी जे. रविंद्र को दे दी.

घटना की सूचना जैसे ही पुलिस अधिकारियों को मिली, वे तुरंत हरकत में आए और मौके पर पहुंच कर घटनास्थल का जायजा लिया. वे जानते थे कि उन्होंने अगर ऐसा नहीं किया तो मुख्यमंत्री उन्हें बख्शेंगे नहीं. क्योंकि दिल दहला देने वाली यह घटना मुख्यमंत्री योगी के शहर में घटी थी.

डीआईजी जे. रविंद्र ने एसएसपी डा. विपिन ताडा को दोहरे हत्याकांड का जल्द से जल्द परदाफाश करते हुए असल कातिल को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने के आवश्यक निर्देश दिए.

डीआईजी के आदेश के बाद जिला पुलिस तेजी से हरकत में आई और आगे की काररवाई शुरू की. जांच की काररवाई थानाप्रभारी संतोष कुमार अवस्थी को सौंप दी गई थी. प्रथमदृष्टया प्रेम प्रसंग में हत्याकांड को अंजाम देना लग रहा था और पुलिस ने अपनी काररवाई का रुख भी इसी ओर मोड़ दिया था.

यही नहीं, शवों के पास से बरामद मोबाइल फोन भी जांच के लिए फोरैंसिक प्रयोगशाला, लखनऊ भेज दिया गया. कातिलों तक पहुंचने के लिए पुलिस के पास यही एक सहारा बचा था.

घटनास्थल चीखचीख कर कह रहा था कि हत्या कहीं और की गई थी और लाशों को यहां ला कर दफनाया गया था. इस से यही साबित हो रहा था कि हत्यारा गांव की भौगोलिक स्थिति से परिचित था. इस का मतलब हत्यारा कोई गांव का ही हो सकता था. पुलिस की जांच गांव के इर्दगिर्द जा कर सिमट गई थी.

2 दिनों बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई थी. रिपोर्ट में चौंकाने वाली बातें लिखी हुई थीं. दोनों युवकों की हत्या करीब 17-18 दिन पहले की गई थी, वह भी किसी धारदार हथियार से.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से एक बात साफ हो गई थी कि आकाश और गणेश जिस दिन गायब हुए थे, उसी दिन उन की हत्या कर दी गई थी. पुलिस हत्यारों तक पहुंच न सके, इसलिए मोबाइल फोन लाश के साथ गड्ढे में दफना दिया था. फोन आकाश की लाश के पास बरामद हुआ था, इसलिए पुलिस उस फोन को आकाश का मान कर चल रही थी.

29 जनवरी को मोबाइल की काल डिटेल्स आ चुकी थी. रिपोर्ट के मुताबिक फोन आकाश का ही था. 7 जनवरी की रात करीब साढ़े 7 बजे उस के मोबाइल पर एक नंबर से काल आई थी. उस के तुरंत बाद उस ने दूसरे नंबर पर किसी को काल की थी.

जिस नंबर पर आकाश ने काल की थी, जांच में वह नंबर उस के दोस्त गणेश का निकला, जिस की उस के साथ ही हत्या हो चुकी थी.

पुलिस ने उस पहले वाले नंबर की जांच की तो वह नंबर किसी सत्यम पुत्र ओमप्रकाश निवासी नौवाबारी, झंगहा का निकला. पुलिस पूछताछ के लिए सत्यम को हिरासत में थाने ले आई. थाने में उस के साथ कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया.

उस ने पुलिस को दिए बयान में बताया कि आकाश और गणेश दोनों उस के अजी॒ज दोस्त थे. दोनों की हत्या उस ने नहीं की. यह सच है कि हत्या जैसे जघन्य अपराध में उस ने अपनी भागीदारी निभाई थी.

प्यार में रंजिश रखे उन की हत्या मिथुन ने की थी. फिर उस ने पूरी कहानी विस्तार से कह सुनाई, जो त्रिकोण प्रेम पर आधारित थी.

सत्यम की निशानदेही पर उसी दिन नौवाबारी का रहने वाला मिथुन भी पुलिस की पकड़ में तब आ गया जब वह कहीं भागने की फिराक में गाड़ी के इंतजार में सड़क किनारे परेशानहाल खड़ा था.

पूछताछ में मिथुन ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया और वही बयान दिया जो पहले सत्यम दे चुका था. आखिर में उस ने कहा, ‘‘मेरे और चंचला के प्यार के बीच में जो भी आएगा, वह मारा जाएगा.’’ उसे अपने किए पर तनिक भी अफसोस नहीं है.

19 दिनों से आकाश और गणेश के दोहरे हत्याकांड से परदा पूरी तरह उठ चुका था. एसपी (उत्तरी) मनोज कुमार अवस्थी ने अगले दिन 30 जनवरी, 2022 को पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित की और दोहरे हत्याकांड का खुलासा किया जो त्रिकोण प्रेम के दुष्परिणाम के रूप में सामने आया.

फिर पुलिस ने दोनों आरोपियों मिथुन और सत्यम को कोर्ट के सामने पेश कर गोरखपुर मंडलीय कारागार भेज दिया. पुलिस पूछताछ के आधार पर इस दोहरे हत्याकांड की कहानी ऐसे सामने आई—

17 वर्षीय आकाश मूलरूप से गोरखपुर जिले के झंगहा थाने के नौवाबारी का रहने वाला था. साहब जायसवाल के 3 बच्चों में वह सब से बड़ा था. आकाश इंटरमीडिएट का छात्र भी था और गोरखपुर औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरी भी करता था. उसी गांव में गणेश भी रहता था. गणेश आकाश का दोस्त था और उस से करीब एक साल छोटा था.

16 वर्षीय गणेश अपने भाईबहनों में बीच का था. वह 3 भाईबहन थे. बहन सब से छोटी थी. पिता जितेंद्र जायसवाल 5 सदस्यीय परिवार का टैंपो चला कर भरपोषण करते थे.

गणेश जैसा काबिल और लायक बेटा पा कर वह बेहद खुश थे क्योंकि इस छोटी उम्र में वह पढ़ाई के साथसाथ घर संभालने में पिता का हाथ बंटा रहा था. आकाश के साथ वह भी गीडा में नौकरी करता था.

आकाश और गणेश का एक और जानी यार था सत्यम. तीनों की यारी के चर्चे गांव में होते थे. एकदूसरे के वे हमराज भी थे जो एकदूजे के एकएक अच्छेबुरे राज को अपने सीने में दफन किए थे.

सत्यम आकाश का गहरा और विश्वासपात्र दोस्त था, यह बात उसी गांव में रहने वाला मिथुन प्रसाद जानता था. मिथुन के सीने में आकाश के प्रति नफरत की आग धधक रही थी. उसे जब भी देखता, नफरत भरी हुंकार मारता था. ऐसा लगता था जैसे उसे अभी जिंदा खा जाएगा.

मिथुन के सीने में आकाश के प्रति जो नफरत की आग धधक रही थी, इस के पीछे नादान इश्क ने जन्म लिया था. वह इश्क कोई और नहीं, आकाश के पड़ोस में रहने वाली सुंदर लड़की चंचला थी, जिसे मिथुन दिलोजान से चाहता था और चंचला भी उसे प्यार करती थी.

दोनों के सीने में मोहब्बत की आग बराबर लगी थी. आखिर ऐसा क्या हुआ था जो मिथुन को अपने प्यार की कुरबानी देनी पड़ी थी. जब तक इस प्रकरण पर रोशनी नहीं डाली जाएगी, कहानी तिलिस्म ही बनी रहेगी.

करीब 22 वर्षीय मिथुन प्रसाद देवरिया जिले के रामपुर कारखाना थाने के एक छोटे से गांव बनकटा का मूल निवासी था. मिथुन के पिता रामदयाल प्रसाद की शादी गोरखपुर जिले के झंगहा के नौवाबारी में नेवासा में हुई थी.

रामदयाल शादी के बाद घरजमाई बन कर ससुराल में पत्नी के साथ रहता था और सासससुर की सेवा करता था.

मिथुन का जन्म नौवाबारी में हुआ था. उसी गांव में बचपन बीता और पलाबढ़ा भी. आशिकमिजाज मिथुन का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. 12वीं तक पढ़ने के बाद उस ने अपनी आगे की पढ़ाई पर विराम लगा दिया था और शादीपार्टियों में डीजे बजाने लगा.

मिथुन जिस डीजे को बजाता था, उस पार्टी में 3 नाचने वाली युवतियां भी थीं. बारातियों का मन अपनी अदाओं से जब भी वो लुभाती थीं, मिथुन के सीने पर सांप लोट जाता था. उन तीनों में से मिथुन का दिल नाजनीन पर आ गया.

स्टेज पर नाजनीन जब भी ठुमके लगाती, मिथुन भी वहां पहुंच कर उस के साथ नाचने लगता था. नाजनीन के स्पर्श से मिथुन के बदन में वासना की आग लगने लगती थी.

मिथुन नाजनीन के हुस्न की गिरफ्त में आ चुका था. उस के गदराए बदन को पाने के लिए मौके की फिराक में पड़ा रहता था.

एक दिन मिथुन ने नाजनीन के साथ तब अपना मुंह काला कर दिया, जब वह पार्टी प्लेस के एक कमरे में रात में प्रोग्राम कर अकेली सो रही थी. इस जुर्म में मिथुन को जेल भी जाना पड़ा. यह बात 2020 की है.

जेल की सलाखों के पीछे के दौरान उसी जेल में कैदी दीनानाथ से उस की मुलाकात हुई. दीनानाथ गोरखपुर के झंगहा के नौवाबारी का ही रहने वाला था. बातोंबातों में दोनों ने अपना परिचय एकदूसरे को दिया तो दोनों ही यह जान कर खुश हो गए कि वे एक ही इलाके के रहने वाले थे.

परिचय के दौरान मिथुन को यह भी पता चल चुकी थी कि दीनानाथ की एक सयानी बेटी चंचला भी है, जो मां के साथ घर पर रहती है. उस दिन से चंचला की तसवीर मिथुन की आंखों के सामने उभरने लगी थी.

9 महीने बाद जमानत पर मिथुन बाहर आया. बाहर आ कर सब से पहले वह दीनानाथ के घर पहुंच कर उस की पत्नी और बेटी से मिला और दीनानाथ की कुशलता का समाचार दिया. उस द्नि के बाद से दीनानाथ के घर का दरवाजा मिथुन के लिए खुल गया था.

मिथुन ने चंचला के बारे में जैसी कल्पना की थी, वह वैसी ही निकली. कच्ची उम्र के जिस पड़ाव में दोनों थे. इश्क के चक्कर में वहां अकसर लड़केलड़कियों के पांव फिसल जाते हैं. यहां भी वही हुआ. मिथुन और चंचला एकदूसरे से प्यार करते थे. एकदूसरे के प्यार में दोनों इस कदर डूबे हुए थे कि भविष्य की योजना तक बना डाली.

चंचला मिथुन के इश्क में इस कदर अंधी हो गई थी कि मिथुन के सिवाय उसे कुछ नहीं दिखता था. हर घड़ी उस की आंखों के सामने मिथुन का चेहरा दिखता था. इस बीच दीनानाथ भी जमानत पर जेल से बाहर आ गया था.

पिता के घर आ जाने से मिथुन का उस के घर पर ज्यादा देर तक टिकना बनता नहीं था. पहले की तरह दोनों खुल कर प्यार भी नहीं कर पा रहे थे. चंचला मिथुन को अपने आगोश में भरने के लिए तड़प रही थी.

बात करने के लिए चंचला को उस ने एक नया मोबाइल फोन दिया था. चंचला मोबाइल फोन को घर में छिपा कर रखती थी. उसे जब भी मौका मिलता तो चुपके से मिथुन से बात कर लेती थी. इसी बीच एक दिन मौका देख कर चंचला मिथुन के साथ घर से पैसे चुरा कर भाग गई.

सयानी बेटी के घर से भाग जाने पर दीनानाथ की गांव में बहुत बेइज्जती हुई. मिथुन उस की इज्जत पर जीवन भर के लिए धब्बा लगा देगा, यह उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. लेकिन यह बदनुमा दाग ले कर दीनानाथ जीना नहीं चाहता था, इसलिए अपनी जानपहचान वालों से उस ने बेटी के बारे में पता लगाना शुरू कर दिया. आखिरकार, बेटी को 6 महीने में ढूंढ निकाला.

चंचला मिथुन के साथ 6 महीने तक रही थी. मांबाप ने बेटी को समझाया और ऊंचनीच समझाया. उस के मांबाप ने उसे यह भी समझाया कि मिथुन उस की जातिबिरादरी का नहीं है, इसलिए उस के साथ जीवन बिताने का सपना देखना छोड़ दे. वक्त आने पर वह खुद ही अच्छा घरवर देख कर शादी कर देंगे.

मांबाप ने बेटी को जो समझाया, उस के सामने चंचला नतमस्तक थी. उस ने कसम खाई कि आज के बाद वह मिथुन को हमेशा के लिए भूल जाएगी. कभी जुबान पर उस का नाम नहीं आने देगी.

उस दिन के बाद से चंचला ने मांबाप को दिए वचन की लाज रखी और मिथुन को अपने दिल से निकाल दिया.

भले ही चंचला ने मिथुन के लिए अपने दिल का दरवाजा बंद कर लिया था. लेकिन उस के दिल में अभी भी कुछकुछ होता था. सैक्स की अनुभूति कर चुकी चंचला पुरुष के बिना नहीं जी सकती थी. आखिरकार उस के जीवन में आकाश नाम का दूसरा प्रेमी आ गया, जो उस का पड़ोसी था और स्मार्ट भी.

जैसेजैसे मिथुन उस के जीवन से दूर होता जा रहा था, वैसेवैसे आकाश उस के दिल में उतरता जा रहा था. चंचला और आकाश दोनों एकदूसरे के दिल के बहुत करीब आ चुके थे. दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. आकाश को पा कर चंचला की दुनिया ही बदल गई थी. मिथुन को वह बिलकुल भूल चुकी थी.

चंचला मिथुन को भले ही भूल चुकी थी लेकिन मिथुन के दिल में चंचला की प्रेम की आग अभी भी धधक रही थी. उस से अलग हो कर जीने के बारे में तो उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

चंचला के दूरियां बनाने से मिथुन विरह की आग में जल रहा था. कई बार उस ने उस से मिलने की कोशिश की थी लेकिन चंचला उसे देखते ही अपना मुंह दूसरी ओर फेर लेती थी जैसे उस से कभी मिली ही न हो.

चंचला के इस बर्ताव से मिथुन परेशान था कि आखिर अचानक से उस ने उस से मुंह क्यों मोड़ लिया? मिथुन ने उसी समय तय कर लिया कि अगर वह उस की नहीं हो सकी तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. उस के और चंचला के प्यार के बीच में जो भी आएगा, उसे वह जड़ से उखाड़ कर फेंक देगा.

आखिरकार मिथुन को चंचला के अचानक से मुंह मोड़ने का कारण पता चल ही गया कि चंचला अपने पड़ोस के लड़के आकाश जायसवाल के साथ आशिकी कर रही है.

जब से मिथुन को चंचला के दूसरे प्रेमी के बारे में पता चला था, वह जलभुन उठा था कि उस ने उसे छोड़ कर दूसरा प्रेमी कैसे रख लिया, वह उस के जिंदा रहते. दूसरे प्रेमी का सुख चंचला को किसी कीमत पर नहीं लेने देगा. चंचला मेरी थी, मेरी है और मेरी ही रहेगी. मेरे और उस के प्यार के बीच में जो भी आएगा, मरेगा. और उसी समय उस ने आकाश को जान से मारने की कसम खाई.

आकाश तक पहुंचने का मिथुन के पास सीधा कोई रास्ता नहीं था और न ही जानपहचान ही. अलबत्ता इतना जानता था कि आकाश 3 दोस्त हैं, उन में से कोई एक उस का साथी बन जाए तो उस के जरिए सीढ़ी बना कर वह आकाश तक पहुंच सकता है. एक बार वह उस तक पहुंच गया तो आकाश को ठिकाने लगा सकता है.

उस के रास्ते से हटते ही फिर से चंचला उस की हो जाएगी. उस दिन के बाद से मिथुन ने आकाश के 2 दोस्तों गणेश और सत्यम में से उस के एक दोस्त सत्यम को तोड़ कर अपनी ओर कर लिया.

सत्यम को उस ने यह कहते हुए धमकाया कि अगर तुम ने यह राज आकाश को बताया तो वह उसे जान से मार देगा. सत्यम मिथुन के आपराधिक स्वभाव को अच्छी तरह जानता था. मिथुन की धमकी से वह बुरी तरह डर गया था और डर की वजह से उस का साथ देने को तैयार हो गया.

जब मिथुन ने आकाश और चंचला के संबंधों के बारे में सत्यम से पूछा तो उस ने बता दिया कि चंचला और आकाश एकदूसरे से प्यार करते हैं. यह सुन कर मिथुन जलभुन गया. उस से चंचला की दूरियां और बरदाश्त नहीं हो रही थीं. वह उसे अपनी बांहों में देखना चाहता था.

सत्यम आकाश की पलपल की गतिविधियों की रिपोर्ट मिथुन तक पहुंचा रहा था. उस दिन 7 जनवरी, 2022 की तारीख थी. सत्यम ने फोन कर के मिथुन को सूचना दी कि कल सुबह आकाश गणेश के साथ गीडा अपनी नौकरी पर वापस लौट जाएगा. आगे जो तुम्हें करना है, आज ही कर डालो वरना दोबारा ऐसा मौका नहीं मिलेगा.

सत्यम की सूचना के बाद मिथुन ने फैसला कर लिया कि आज रात आकाश का काम तमाम कर देगा. योजना के मुताबिक रात 7 बजे के करीब नौवाबारी गांव के बाहर इंटर कालेज परिसर पहुंच कर मिथुन ने सत्यम को फोन कर बुला लिया. वह आकाश की हत्या करने के लिए अपने साथ कुल्हाड़ी भी लाया था. मिथुन के हाथ में कुल्हाड़ी देख सत्यम डर गया था. वह चुपचाप मिथुन के बगल में नीचे बैठ गया, जहां वह पालथी मार कर बैठा था.

मिथुन ने सत्यम से कहा कि वह अपने मोबाइल फोन से आकाश को फोन कर के यहां आने को कहे. सत्यम ने वैसा ही किया, जैसा मिथुन उसे करने के लिए कहा था. सत्यम ने आकाश को फोन कर के धोखे से गांव के बाहर इंटर कालेज के पास बुलाया तो आकाश को पता नहीं क्यों अजीब लगा कि इतनी रात गए वह वहां क्यों बुला रहा है. मिलना है तो यहीं मिल ले लेकिन सत्यम अपनी जिद पर अड़ा रहा कि उसे एक बहुत जरूरी बात बतानी है, जो यहीं बता सकता है.

सत्यम आकाश का प्रिय दोस्त था. आकाश उस की बात कभी नहीं टालता था. उस ने अपने दूसरे मित्र गणेश को फोन कर के बता दिया कि वह गांव के बाहर इंटर कालेज के पास सत्यम से मिलने जा रहा है, कोई जरूरी काम है उस का फोन आया था.

उस वक्त शाम के करीब साढ़े 7 बज रहे थे. गणेश को फोन कर के आकाश सत्यम से मिलने पैदल ही चल दिया. इस बारे में उस ने घर वालों को कुछ भी नहीं बताया था. इधर सत्यम ने मिथुन को अलर्ट कर दिया था कि आकाश आ रहा है.

करीब 20 मिनट बाद आकाश इंटर कालेज के प्रांगण में था. प्रांगण के चारों ओर घना अंधेरा फैला हुआ था. उस अंधेरे में सत्यम के साथ मिथुन को खड़ा देख आकाश चौंक गया. उसी वक्त उस के दिमाग में खतरे की घंटी बज उठी.

उधर आकाश को देखते ही नफरत और गुस्से से मिथुन की आंखों में गुस्सा उतर आया, ‘‘साले, कुत्ते, मादर… मेरी प्रेमिका पर नजर डालने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?’’

मिथुन के मुंह से भद्दीभद्दी गालियां सुन कर आकाश सकपका गया. मिथुन आगे बोलता गया, ‘‘तू जानता नहीं था कमीने कि चंचला मेरी जान है. उस से इश्क लड़ा बैठा साले हरामी. अब तुझे मरने से कोई नहीं बचा सकता. जब तक तू रहेगा, चंचला मेरी नहीं हो सकती, इसलिए तू तो गया.’’ कहते हुए मिथुन ने कुल्हाड़ी आकाश के सिर पर चला दी.

वार इतना जोरदार था कि एक ही वार में आकाश नीचे जमीन पर जा गिरा और तड़पने लगा. उसी वक्त गणेश आकाश को ढूंढता हुआ वहां आ पहुंचा. मिथुन और सत्यम गणेश को देख कर डर गए कि गणेश आकाश की लाश देख चुका है, वह जिंदा रहा तो उन के राज खोल सकता है.

फिर उसी कुल्हाड़ी से मिथुन ने गणेश के सिर पर वार कर के उस की भी हत्या कर दी. फिर दोनों ने मिल कर बारीबारी गुलाब जायसवाल के खेत में गड्ढा खोद कर दोनों लाशें उसी गड्ढे में दफना दीं.

लाशें दफनाते समय मिथुन ने आकाश के मोबाइल का स्विच्ड औफ कर के उस की लाश के साथ दफना दिया और कुल्हाड़ी झाड़ी में छिपा दी. फिर दोनों अपनेअपने घर जा कर सो गए.

चंचला के सामने जब मिथुन की घिनौनी करतूतें खुलीं तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वह जिस प्रेमी को बेवफा समझ रही थी, वह तो इस दुनिया में था ही नहीं.

आज भी आकाश के प्यार को याद कर के चंचला विरह की आग में जल रही है. इस त्रिकोण प्रेम में गणेश का क्या कसूर था. वह तो बेचारा मुफ्त में मारा गया. कहानी लिखने तक पुलिस दोनों आरोपियों मिथुन प्रसाद और सत्यम के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी थी और दोनों अपने गुनाहों की सजा काट रहे थे.

—कथा में चंचला परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

बड़े काम का सहजन

डा. विनय कुमार सिंह, डा. डीके सिंह

भारत के विभिन्न भागों में सहजन के पेड़ आसानी से देखे जा सकते हैं. ये गरमी के मौसम के शुरुआती समय में फली के रूप में फल देना शुरू कर देते हैं. इस के फल पेड़ पर कई दिनों तक रहते हैं और जल्दी खराब भी नहीं होते हैं.

इस पेड़ की फली व पत्ती में कार्बोहाइडे्रट, प्रोटीन, विटामिन-ए, बी व सी, कैल्शियम, फास्फोरस व लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इस की एक ग्राम फली में नारंगी से 4 गुना ज्यादा विटामिन-सी, गाजर से 4 गुना ज्यादा विटामिन-ए, दूध से 4 गुना ज्यादा कैल्शियम, केले से 3 गुना पोटैशियम, जई से 4 गुना ज्यादा रेशा व पालक से 9 गुना ज्यादा लोहा पाया जाता है.

सहजन के बीज

बीजों से 40 फीसदी खाद्य तेल निकलता है, जो गुणवत्ता में ओलिव औयल के समान होता है. बीजों के चूर्ण का उपयोग गंदे पानी को फिटकरी के मुकाबले ज्यादा साफ करता है और बैक्टीरिया को हटाता है. मलावी और अफ्रीका में इस के बीजों से बड़े पैमाने पर पानी साफ किया जाता है.

सहजन के बीजों का तेल सूखी त्वचा के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो एक मौश्चराइजर का काम करता है. इस का पेस्ट बना कर खुरदुरी और एलर्जिक त्वचा को बेहतर बनाया जा सकता है.

इतना ही नहीं, इस के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए इस्तेमाल किया जाता है. त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्त्व कौस्मैटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है.

घरेलू कामों में इस्तेमाल

महिलाएं सहजन से कई प्रकार की सब्जियां बनाती हैं. इस के फूलों को भी कई जगहों पर खाने में इस्तेमाल किया जाता है. कुछ लोग इस की फली को दाल में डाल कर पका कर भी सेवन करते हैं.

सहज के पेड़ की छाल के रेशों से कागज, चटाई, रस्सी व दूसरे सामान बनाने के उपयोग में लाया जाता है. सहजन की बड़ी फलियां पानी की टंकी में डालने से पानी में सभी तरह के कीटाणुओं को मार कर जल को साफ कर देता है.

पशुओं के लिए लाभकारी

सब्जी के रूप में उपयोग किए जाने वाले सहजन अब दुधारू पशुओं के लिए हाइजैनिक फूड की तरह इस्तेमाल किए जा रहे हैं. आईसीएआर के एक शोध से पता चला है कि सहजन के प्रयोग से पशुओं के दूध में दोगुनी वृद्धि होती है. यह पशुओं का बांझपन रोग भी खत्म करने में सक्षम औषधि है. दुधारू पशुओं के लिए सहजन को हरा चारा या सूखे पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. ठ्ठ

सहजन का अचार

एकदम कच्ची और बिना बीज वाली नरमनरम सहजन की फलियों से अचार बनाया जाता है, जो खाने में बहुत स्वादिष्ठ होता है. दूसरे फलों की तरह इस का अचार बना कर बिना मौसम स्वाद लिया जा सकता है.

सामग्री : सहजन की फली 300 ग्राम, नमक स्वादानुसार, सरसों का तेल 1/3 कप, हींग 2-3 चुटकी, हलदी पाउडर 1 छोटा चम्मच, सौंफ पाउडर 1 छोटा चम्मच, लाल मिर्च पाउडर 1/4 छोटा चम्मच, काली मिर्च पाउडर 1/4 छोटा चम्मच, पीली सरसों दरदरी पिसी हुई 2 छोटा चम्मच, सिरका 1 चम्मच.

अचार बनाने की विधि

सारी फलियों को धो कर एक इंच तक लंबा काट कर सुखा लें. अब एक चम्मच नमक डाल कर एक डब्बे में बंद कर 3 दिनों तक के लिए रख दें और हर रोज एक बार हिला दें.

3 दिन बाद अचार बनाने की प्रक्रिया शुरू करें. इस के लिए तेल को किसी पैन में तेज गरम कर के उतार कर हलका ठंडा कर के इस में हींग, हलदी पाउडर, सौंफ पाउडर डाल कर मिला लें, फिर सहजन की फली डाल कर मिला दें.

नमक, लाल मिर्च पाउडर, सरसों पाउडर और काली मिर्च पाउडर डाल कर मिलाएं और सिरका भी डाल दें. एक हफ्ते बाद इस का इस्तेमाल करें और इसे आप 2 महीने तक इस्तेमाल में ला सकते हैं.

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