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हर स्किन पर सूट करे सेंसीबायो जैल फेसवाश

बात अगर चेहरे की आए तो कोई भी महिला इससे कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना चाहती . क्योंकि चेहरे की खूबसूरती हमारी ओवरआल सुंदरता को बढ़ाने का काम जो करती है. फिर चाहे हम कैसा भी आउटफिट पहन लें, वे हमारे चेहरे पर फब ही जाता है. लेकिन अगर चेहरा बेजान व डल है, वे हाइड्रेट नहीं है, तो चाहे आप कितना भी अच्छा मेकअप कर लें या फिर आउटफिट्स पहन लें, वे आप पर सूट ही नहीं करेगा . ऐसे में बस आप मन ही मन यही सोच कर परेशान रहती हैं कि फेस पर कौन सा ब्यूटी ट्रीटमेंट किया जाए या कौन सा ब्यूटी प्रोडक्ट लगाया जाए , जिससे चेहरा साफ भी हो जाए , साथ ही स्किन पर मोइस्चर भी बना रहे. ऐसे में बायोडर्मा का सेंसीबायो जैल moussant आपकी स्किन के लिए मैजिक का काम करेगा. तो आइए जानते हैं इस बारे में.

– जेंटल क्लीन योर स्किन

स्किन पर जितने हार्श प्रोडक्ट लगाए जाते हैं , उतना ही स्किन का मोइस्चर खत्म होने लगता है. लेकिन आज मार्केट में हमारे सामने इतने ज्यादा ब्यूटी प्रोडक्ट्स मौजूद हैं कि हमारी स्किन प्रोब्लम हमारे सामने होते हुए भी हम ब्यूटी प्रोडक्ट्स का चुनाव ठीक से नहीं कर पाते हैं. जिसका नतीजा स्किन डल होने के साथ अपनी नेचुरल ब्यूटी को भी खोने लगती है. ऐसे में बायोडर्मा का सेंसीबायो जैल moussant आपकी स्किन को जेंटली क्लीन करके स्किन को लंबे समय तक हाइड्रेट रखने का भी काम करता है. साथ ही सेंसिटिव स्किन के लिए भी काफी सूटेबल है. यानि इसे लगाने के बाद न तो स्किन पर किसी तरह की कोई जलन होती है और न ही आंखों में.

क्यों है खास

इसमें ऐसे खास इंग्रीडिएंट्स का इस्तेमाल किया गया है, जो स्किन प्रोब्लम्स को ठीक करके स्किन के लिए किसी न्यूट्रिशन से कम नहीं होते हैं , जिससे स्किन इसके कुछ ही अप्लाई के बाद महक उठती है. आपको बता दें कि इसमें विटामिन इ , विटामिन सी की मौजूदगी, जो स्किन के कोलेजन निर्माण में मदद करने के साथ स्किन को यंग दिखाने का काम करती है. साथ ही स्किन के हैल्थी बैक्टीरिया , जो एनवायरर्मेंटल डैमेज से स्किन को बचाने का काम करते हैं , ऐसे में इसमें प्रीबायोटिक स्किन को न्यूट्रिशन प्रदान करके स्किन को हैल्दी रखने में मदद करते हैं. साथ ही इसमें एंटीओक्सीडैंट्स आपकी स्किन को फ्री रेडिकल्स व यूवी किरणों से बचाने का काम करते हैं . ये पावरफुल एंटीएजिंग का भी काम करते हैं. ऐसे में इसमें वो सभी इंग्रीडिएंट्स मौजूद हैं , जो स्किन को बिना कोई नुकसान पहुंचाए स्किन की हैल्थ के लिए काफी अहम हैं. ये स्किन की एपरडर्मिस यानि आउटर लेयर को क्लीन करके दागधब्बो को भी कम करते हैं , साथ ही सीबम सेक्रेशन को सीमित करते हैं . इसका सोप फ्री फार्मूला स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस में रखता है.

सेंसिटिव स्किन को क्यों है खास केयर की जरूरत

2019 में फ्रंटियर ओफ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, 60 – 70 पर्सेंट महिलाओं की स्किन सेंसिटिव होती है. जिसकी वजह से स्किन में रेडनेस, डॉयनेस, इचिंग की समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है. क्योंकि सेंसिटिव स्किन नाज़ुक होने के कारण पोलुशन , स्ट्रेस व मेकअप से खुद को बचाने में ज्यादा सक्षम नहीं होती है. और अगर ऐसी स्किन पर हार्श व केमिकल वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है तो स्किन ड्राई होकर स्किन की हालत और खराब हो सकती है. ऐसी स्किन की माइल्ड ब्यूटी प्रोडक्ट्स से केयर करने की जरूरत होती है. ऐसे में ये माइल्ड जैल फेसवाश, जिसका सोप फ्री फार्मूला स्किन पर बिना कोई साइड इफ़ेक्ट दिए स्किन को स्मूद बनाने का काम करता है. इसकी खास बात यह है ये है कि ये स्किन से सिर्फ गंदगी को रिमूव करता है न कि स्किन के नेचुरल आयल को.

बता दें कि ये जैल moussant नोन कोमेडिक और फ्रैग्रैंस फ्री है. यानि ये पोर्स को क्लोग नहीं करता, साथ ही इससे स्किन पर किसी भी तरह की कोई एलर्जी , जलन नहीं होती है. इसे आप सुबह व शाम इस्तेमाल करके कुछ ही हफ्तों में अपने चेहरे पर बेहतरीन रिजल्ट देख सकते हैं. .

बौक्स मैटर डीएएफ काम्प्लेक्स

इसका डीएएफ काम्प्लेक्स , ऐसे एक्टिव इंग्रेडिएंट्स से मिलकर बना है, जो सेंसिटिव स्किन की टोलरैंस क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं. इसमें है कोको ग्लूकोसीडजैसा एक्टिव इंग्रीडिएंट , जो फोमिंग एजेंट का काम करने के साथ नेचुरल होता है. जो स्किन को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है. यानि हर स्किन के लिए पूरी तरह से सेफ है.

इन बातों का भी रखें ख्याल

– हमेशा ऐसे ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जो जेंटल हो.

– स्किन की क्लींजिंग व मॉइस्चराइजिंग जरूर करें.

– स्किन की बाहर से केयर करने के साथसाथ स्किन को अंदर से भी हैल्दी बनाने के लिए विटामिन्स, मिनरल्स से भरपूर डाइट लें.

– सेंसिटिव स्किन वालों को स्किन को टॉवल से क्लीन करने के बजाह फेसिअल क्लीनिंग वाइप्स से स्किन को क्लीन करने की कोशिश करनी चाहिए.

ज्योति- भाग 2: क्या सही था उसका भरोसा

कुछ झिझकते हुए वह औरत अंदर आई. गेहुंए रंग की गठीले बदन वाली वह औरत नजरें चारों तरफ घुमा कर उस अस्तव्यस्त कमरे का बारीकी से मुआयना करने लगी. बेतरतीब पड़ी बिस्तर की चादर, कुरसी की पीठ पर लटका गीला तौलिया, फर्श पर उलटीसीधी पड़ी चप्पलें.

‘‘हमें सुबह का नाश्ता और रात का खाना चाहिए. दिन में हम लोग औफिस में होते हैं, तो बाहर ही खा लेते हैं,’’ सुमित ने उस का ध्यान खींचा.

मनीष भी सुमित के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘कितने लोगों का खाना बनेगा?’’ औरत ने सुमित से पूछा.

‘‘कुल मिला कर 3 लोगों का, हमारा एक और दोस्त है, वह अभी घर पर नहीं है.’’

औरत ने सुमित को महीने की पगार बताई और साथ ही, यह भी कि वह एक पैसा भी कम नहीं लेगी.

दोनों दोस्तों ने सवालिया निगाहों से एकदूसरे की तरफ देखा. पगार थोड़ी ज्यादा थी, मगर और चारा भी क्या था. ‘‘हमें मंजूर है,’’ सुमित ने कहा. आखिरकार खाने की परेशानी तो हल हो जाएगी.

‘‘ठीक है, मैं कल से आ जाऊंगी,’’ कहते हुए वह जाने के लिए उठी.

‘‘आप ने नाम नहीं बताया?’’ सुमित ने उसे पीछे से आवाज दी.

‘‘मेरा नाम ज्योति है,’’ कुछ सकुचा कर उस औरत ने अपना नाम बताया और चली गई.

दूसरे दिन सुबह जल्दी ही ज्योति आ गई थी. रसोई में जो कुछ भी पड़ा था, उस से उस ने नाश्ता तैयार कर दिया.

आज कई दिनों बाद सुमित और मनीष ने गरम नाश्ता खाया तो उन्हें मजा आ गया. रोहन अभी तक सो रहा था, तो उस का नाश्ता ज्योति ने ढक कर रख दिया था.

‘‘भैयाजी, राशन की कुछ चीजें लानी पड़ेंगी. शाम का खाना कैसे बनेगा? रसोई में कुछ भी नहीं है,’’ ज्योति दुपट्टे से हाथ पोंछते हुए सुमित से बोली.

सुमित ने एक कागज पर वे सारी चीजें लिख लीं जो ज्योति ने बताई थीं. शाम को औफिस से लौटता हुआ वह ले आएगा.

रोहन को अब तक इस सब के बारे में कुछ नहीं पता था. उसे जब पता चला तो उस ने अपने हिस्से के पैसे देने से साफ इनकार कर दिया. ‘‘बहुत ज्यादा पगार मांग रही है वह, इस से कम पैसों में तो हम आराम से बाहर खाना खा सकते हैं.’’

‘‘रोहन, तुम को पता है कि बाहर का खाना खाने से मेरी तबीयत खराब हो जाती है. कुछ पैसे ज्यादा देने भी पड़ रहे तो क्या हुआ, सुविधा भी तो हमें ही होगी.’’

‘‘हां, सुमित ठीक कह रहा है. घर के बने खाने की बात ही कुछ और है,’’ सुबह के नाश्ते का स्वाद अभी तक मनीष की जबान पर था.

लेकिन रोहन पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा. वह जिद पर अड़ा रहा कि वह अपने हिस्से के पैसे नहीं देगा और अपने खाने का इंतजाम खुद कर कर लेगा.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी’’, सुमित बोला, उसे पता था रोहन अपने मन की करता है.

थोड़े ही दिनों में ज्योति ने रसोई की बागडोर संभाल ली थी. ज्योति के हाथों के बने खाने में सुमित को मां के हाथों का स्वाद महसूस होता था.

ज्योति भी उन की पसंदनापसंद का पूरा ध्यान रखती. अपने परिवार से दूर रह रहे इन लड़कों पर उसे एक तरह से ममता हो आती. अन्नपूर्णा की तरह अपने हाथों के जादू से उस ने रसोई की काया ही पलट दी थी.

कई बार औफिस की भागदौड़ से सुमित को फुरसत नहीं मिल पाती तो वह अकसर ज्योति को ही सब्जी वगैरह लाने के पैसे दे देता.

जिन घरों में वह काम करती थी, उन में से अधिकांश घरों की मालकिनें अव्वल दर्जे की कंजूस और शक्की थीं. नापतौल कर हरेक चीज का हिसाब रख कर उसे खाना पकाना होता था. सुमित या मनीष ज्योति से कभी, किसी चीज का हिसाब नहीं पूछते थे. इस बात से उस के दिल में इन लड़कों के लिए एक स्नेह का भाव आ गया था.

अपनी हलकी बीमारी में भी वह उन के लिए खाना पकाने चली आती.

एक शाम औफिस से लौटते वक्त रास्ते में सुमित की बाइक खराब हो गई. किसी तरह घसीटते हुए उस ने बाइक को मोटर गैराज तक पहुंचाया.

‘‘क्या हुआ? फिर से खराब हो गई?,’’ गैराज में काम करने वाला नौजवान शकील ग्रीस से सने हाथ अपनी शर्ट से पोंछता हुआ सुमित के पास आया.

‘‘यार, सुरेश कहां है? यह तो उस के हाथ से ही ठीक होती है, सुरेश को बुलाओ.’’

जब भी उस की बाइक धोखा दे जाती, वह गैराज के सीनियर मेकैनिक सुरेश के ही पास आता और उस के अनुभवी हाथ लगते ही बाइक दुरुस्त चलने लगती.

शकील सुरेश को बुलाने के लिए गैराज के अंदर बने छोटे से केबिन में चला गया. थोड़ी ही देर में मध्यम कदकाठी के हंसमुख चेहरे वाला सुरेश बाहर आया. ‘‘माफ कीजिए सुमित बाबू, हम जरा अपने लिए दोपहर का खाना बना रहे थे.’’

‘‘आप अपना खाना यहां गैराज में बनाते हैं? परिवार से दूर रहते हैं क्या?’’ सुमित ने हैरानी से पूछा. इस गैराज में वह कई सालों से काम कर रहा था. अपने बरसों के अनुभव और कुशलता से आज वह इस गैराज का सीनियर मेकैनिक था. ऐसी कोई गाड़ी नहीं थी जिस का मर्ज उसे न पता हो, इसलिए हर ग्राहक उसे जानता था.

‘‘अब क्या बताएं, 2 साल पहले घरवाली कैंसर की बीमारी से चल बसी. तब से यह गैराज ही हमारा घर है. कोई बालबच्चा हुआ नहीं, तो परिवार के नाम पर हम अकेले हैं. बस, कट रही है किसी तरह. लाइए, देखूं क्या माजरा है?’’

‘‘सुरेश, पिछली बार आप नहीं थे तो राजू ने कुछ पार्ट्स बदल कर बाइक ठीक कर दी थी. अब तो तुम्हें ही अपने हाथों का कमाल दिखाना पड़ेगा,’’ सुमित बोला.

सुरेश ने दाएंबाएं सब चैक किया, इंजन, कार्बोरेटर सब खंगाल डाला. चाबी घुमा कर बाइक स्टार्ट की तो घरर्रर्र की आवाज के साथ बाइक चालू हो गई.

‘‘देखो भाई, ऐसा है सुमित बाबू, अब इस को तो बेच ही डालो. कई बरस चल चुकी है. अब कितना खींचोगे? अभी कुछ पार्ट्स भी बदलने पड़ेंगे. उस में जितना पैसा खर्च करोगे उस से तो अच्छा है नई गाड़ी ले लो.’’

‘‘तुम ही कोई अच्छी सी सैकंडहैंड दिला दो,’’ सुमित बोला.

‘‘अरे यार, पुरानी से अच्छा है नईर् ले लो,’’ सुरेश हंसते हुए बोला.

‘‘बात तो तुम्हारी सही है, मगर थोड़ा बजट का चक्कर है.’’

‘‘हूं,’’ सुरेश कुछ सोचने की मुद्रा में बोला, ‘‘कोई बात नहीं, बजट की चिंता मत करो. मेरा चचेरा भाई एक डीलर के पास काम करता है. उस को बोल कर कुछ डिस्काउंट दिलवा सकता हूं, अगर आप कहो तो.’’

सुमित खिल गया, कब से सोच रहा था नई बाइक लेने के लिए. कुछ डिस्काउंट के साथ नई बाइक मिल जाए, इस से बढि़या क्या हो सकता था. उस ने सुरेश का धन्यवाद किया और नई बाइक लेने का मन बना लिया.

‘‘ठीक है सुरेश, मैं अगले ही महीने ले लूंगा नई गाड़ी. बस, आप जरा डिस्काउंट अच्छा दिलवा देना.’’

‘‘उस की फिक्र मत करो सुमित बाबू, निश्ंिचत रहो.’’

तीर्थयात्रा एडवेंचर टूरिज्म नहीं है

आज नेहा बहुत खुश थी. काफी समय से वह अपने पूरे परिवार के साथ अमरनाथ की यात्रा पर जाने की इच्छुक थी. आज जब पति ने इन छुट्टियों में वहां जाने का प्लान फाइनल किया तो उस का दिल खिल उठा. पर एक सवाल उस के मन में कौंध रहा था. उस के सासससुर की उम्र अधिक हो चुकी थी. ऐसे में क्या वे अमरनाथ की गुफा तक का कठिन सफर तय कर पाएंगे? इस का समाधान भी पति ने तुरंत कर दिया.

दरअसल अब यात्रियों के लिए वहां हेलीकौप्टर की सुविधा उपलब्ध है. उन लोगों ने तय किया कि आगे का सफर हेलीकौप्टर से ही तय करेंगे .नेहा के प्रति राकेश ने एजेंट के जरिए 3 नाइट्स और 4 डेज का पैकेज बुक करा लिया.

श्रीनगर पहुंच कर वे सोनमार्ग की ओर निकले. हालांकि इन दोनों के बीच की दूरी मात्र 120 किलोमीटर थी मगर भारी भीड़ और ट्रैफिक जाम की वजह से 4 से 5 घंटे लग गए. वहां पहुंच कर उन्होंने एक होटल में रात बिताई और सुबहसुबह मुख्य यात्रा के लिए निकल पड़े.हेलीकॉप्टर बालटाल से मिलना था. उन्हें सुबह 9 बजे बालटाल पहुँचने को  कहा गया था. वे यह सोच कर 6 बजे पहुंच गए कि फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व के नियम के मुताबिक शायद उन्हें पहले मौका मिल जाए. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ और उन्हें 9 बजे तक इंतजार करना पड़ा.

हेलीपैड पर हद से ज्यादा भीड़ और शोरशराबा मचा हुआ था. एजेंट्स ने पैसेंजर्स को मूर्ख बनाया था. इतनी ज्यादा ओवरबुकिंग थी की टिकट पर लिखे समय के मुताबिक टेकऑफ होना नामुमकिन था. करीब 3 घंटे की जद्दोजहद के बाद फाइनली उन्हें बोर्डिंग पास मिल गया . करीब 1 बजे तक उन का नंबर आया और अंततः वे पंचतरणी पहुंच गए. वहां से गुफा की दूरी 7 किलोमीटर थी मगर इतनी ज्यादा भीड़ और धक्कामुक्की हो रही थी कि गुफा तक पहुंचतेपहुंचते 5 घंटे और बीत गए. शरीर बेदम हो रहा था और सोने पर सुहागा यह हुआ कि इस भीड़ में नेहा का मोबाइल भी किसी ने मार लिया. इसी दौरान बारिश शुरु हो गई. तापमान प्लस 15 से गिर कर जीरो डिग्री पर पहुंच गया. राकेश ने जल्दी से पैरंट्स के लिए एक टेंट बुक किया. किसी तरह चाय का इंतजाम किया और फिर थोड़ी देर में दर्शन के लिए निकल पड़े. वहां पालकी की सुविधा मौजूद थी मगर इस के लिए भी काफी जेब ढीली करनी पड़ी.

शाम 7 बजे तक वे दर्शन कर के फ्री हुए. अंधेरा भी गहरा हो चुका था. इसलिए उन लोगों को रात टैंट में बिताने का फैसला लेना पड़ा. टैंट के लिए भी प्रति व्यक्ति 3 से 4 सौ देने पड़े. सब भूखप्यास से व्याकुल हो रहे थे. चोटी पर भंडारे चल रहे थे मगर नेहा के परिवार के लोग इतने थक चुके थे कि किसी के भी शरीर में इतनी ताकत नहीं बची कि वह जा कर भंडारे से खाने का सामान ले कर आ सकें. उन लोगों ने भूखे पेट ही सोने का फैसला लिया पर यों सोना भी सहज नहीं था. ठंड इतनी ज्यादा थी कि कंबल के बावजूद वे पूरी रात कांपते रहे.

जहां तक बात वाशरूम फैसिलिटी की थी तो वहां की हालत तो बहुत ही दयनीय थी. गंदगी इतनी जैसे बीमारियों का घर. वह रात नेहा को इतनी भयानक लगी कि वह एकएक पल गिनती रही कि कब सुबह हो और कब वे वापस लौटे.

6 बजे वे पंचतरणी ( 7किलोमीटर ) के लिए निकले. लौटते समय केवल दोढाई घंटे लगे पर हेलीपैड पर एक बार फिर चार-पांच घंटे इंतजार करना पड़ा. 1 बजे के करीब जब वे वापस लौटे तब तक शारीरिक मानसिक रूप से इतने थक चुके थे , इतने त्रस्त हो चुके थे कि कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थे.

वास्तव में तीर्थयात्राएं ऐसे लोगों के लिए हैं जिन्हे लगता है कि वे सफर में जितनी ज्यादा तकलीफ और चुनौतियां सहेंगे उन पर उतनी ही ज्यादा दैव कृपा बरसेगी. पूरे सफर में आनद या रोमांच कहीं नहीं होता.

भारत के कई तीर्थस्‍थल आज भी बेहद दुर्गम मार्गों पर स्थित हैं. इन तीर्थस्‍थलों का रास्‍ता ऊंची चढ़ाई, प्राकृतिक आपदाओं से घिरे हजारों मीटर ऊंचे पर्वतों के  बीच से गुजरता हुआ किसी ऊंचे शिखर पर पहुंचता है. विषम जलवायु, जानलेवा  मौसम और कठिन से कठिन  परिस्थ‍ित‍यों के बावजूद हर साल लाखों लोग तीर्थों पर जाते हैं ताकि भगवान को पा सकें. भगवान का तो पता नहीं पर कई बार ऐसे प्रयासों में वे भगवान को प्यारे जरूर हो जाते हैं. कई लोग गंभीर बीमार का शिकार हो कर दम तोड़ देते हैं , कई  दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं  तो  कई कुदरत के अचानक बदले तेवरों से असामयिक  मौत की भेंट चढ़ जाते हैं. आइए आप को बताते हैं,  भारत के कुछ ऐसे तीर्थस्‍थलों के बारे में जहां जाना एक तरह से मौत को हाथ में ले कर चलने के बराबर है.

  1. कैलाश मानसरोवर

यह भारत के सब से दुर्गम तीर्थस्‍थानों में से एक है. पूरा कैलाश पर्वत 48 किलोमीटर में फैला हुआ है और इस की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 4556  मीटर है. इस यात्रा का सब से  अधिक कठिन मार्ग भारत के पड़ोसी देश चीन से हो कर जाता है. यह यात्रा करीब 28 दिन की होती है.

2. अमरनाथ

अमरनाथ भी बेहद दुर्गम  तीर्थस्‍थलों में से एक है. श्रीनगर शहर के उत्तरपूर्व में 135 किलोमीटर दूर यह तीर्थस्‍थल समुद्रतल से 13600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है.  यहां तापमान अक्‍सर शून्य से नीचे चला जाता है. यहां बारिश, भूस्‍खलन आदि कभी भी हो सकते हैं. सुरक्षा की दृष्टि से बेहद  संवेदनशील और  संदिग्ध   मानी जाने वाली इस यात्रा के लिए पहले से रजिस्‍ट्रशेन कराना होता है. बीमार और कमजोर यात्री अक्‍सर लौटा दिए जाते हैं.

3. वैष्‍णोदेवी

वैष्‍णो देवी जम्मूकश्‍मीर के कटरा जिले में स्थित तीर्थस्‍थल है. यह मंदिर 5,200  फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की  दूरी पर मौजूद है. मंदिर में जाने की यात्रा बेहद दुर्गम है. कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर वैष्‍णोदवी की गुफा है.

4.  हेमकुंड साहेब

हेमकुंड साहेब सिखों का तीर्थस्थल है. यहां पहुंचने की राह  बहुत ही दुर्गम है. यह तकरीबन 19 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा है. पैदल या खच्‍चरों पर पूरी होने वाली यात्रा  में जान का जोखिम भी होता है.

5. बद्रीनाथ

उत्‍तराखंड में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नाम की 2 पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित बद्रीनाथ भी एक तीर्थस्‍थल है जहां पहुंचने की  यात्रा भी बेहद दुर्गम है. हर साल यहां लाखों लोग पहुंचते हैं.

6. गंगोत्री और यमनोत्री

गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों ही उत्तरकाशी जिले में हैं. दुर्गम चढ़ाई होने के कारण लोग  इस उद्गम स्थल को देखने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते. यहां 5 किलोमीटर की सीधी खड़ी चढ़ाई है. इसी तरह गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है. गंगा का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह  स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है.

जरा इस समाचारों पर गौर करें ;

त्रिकुटा की पहाड़ियों पर लगी आग, फंसे वैष्णो देवी गए 25 हजार श्रद्धालु

मई 23, 2018

कटरा जिले में वैष्णो देवी गए 25 हजार लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़  रहा है. यहां त्रिकुटा की पहाड़ियों के जंगलों में आग लग गई. जिस के बाद कई सारी सेवाओं को बंद करना पड़ा.

यमुनोत्री व केदारनाथ में हार्ट अटैक से चार यात्रियों की मौत

23 मई , 2018, यमुनोत्री मार्ग पर चारधाम यात्रा के दौरान दम फूलने और हार्टअटैक से 4 यात्रियों की मौत हो गई. इस के साथ ही यमुनोत्री व केदारनाथ में हार्ट अटैक से मरने वाले यात्रियों की संख्या 39 हो गई है जब कि चारों धाम में यह आकंड़ा 42 पहुंच गया है. गौरतलब है कि केदारनाथ की यात्रा के लिए लगभग 18 किलोमीटर की यात्रा पैदल चल कर करनी पड़ती है.

गंगासागर में भगदड़

15 जनवरी 2017, पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध गंगासागर मेले में मकर संक्रांति के मौके पर भगदड़ मचने से 6 श्रद्धालुओं की मौत हो गई जब कि 15 से ज्यादा लोग जख्मी हुए .सरकार ने मारे गए लोगों के परिवार वालों को 5-5 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया. कोलकाता से 100 किलोमीटर दूर दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित सागर द्वीप पर हर साल मकर संक्रांति के मौके पर गंगासागर मेले का आयोजन होता है. यह हादसा गंगासागर के कुचुबेरिया इलाके में हुआ है.

फरवरी, 07 2019

वृंदावन के एक आश्रम के कमरे में एक युवक का बिस्तर पर खून से लथपथ शव पड़ा मिला. पुलिस तफ्तीश के मुताबिक गौधूलिपुरम कॉलोनी स्थित सियावर कुंज आश्रम में दो विद्यार्थी विशाल और संदीप रह रहे थे . इन के पास पिछले 15-20 दिनों से हरियाणा का रहने वाला सुनील नाम का शख्स भी आताजाता था जो वृंदावन में ईरिक्शा चलाता है और मंगलवार की शाम को वह अपने साथ  उस  युवक को आश्रम लाया था. सुबह विशाल ने कमरे में सुनील के साथ आए युवक का रक्तरंजित शव बिस्तर पर पड़ा हुआ देखा. पुलिस के अनुसार सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर हत्या की गई.

तीर्थयात्रा के दौरान या तीर्थस्थलों में जान गंवाने से जुड़ी इस तरह की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं जब एक तीर्थयात्रा व्यक्ति की अंतिम यात्रा बन जाती है.

लोगों को लगता है कि तीर्थयात्रा भी एक तरह का एडवेंचर्स ट्रिप ही है जहाँ पूजापाठ के साथसाथ रिलैक्स होने और फॅमिली संग एडवेंचर का मजा भी लिया जा सकता है पर ध्यान रखें जहाँ पूजापाठ और चढ़ावों की बातें ,मन्नतों का दौर,  कुछ खोने का डर और पाने की आस हो वहां जोखिम से खेलने और नया देखने का आनंद नहीं मिल सकता.

आधुनिक युग बुद्धिवाद का युग कहा जाता है. हर बात तर्क और बुद्धि की तराजू पर तौली जाती है.  मगर अफ़सोस तीर्थयात्राओं के  मसले पर जनता बड़ी आसानी से मूर्ख बन जाती है. वे हर तरह के तर्क और विवेक को ताक पर रख कर केवल दैवी कृपा का नाम जपते हुए इन यात्राओं पर निकल पड़ते हैं.

इस के विपरीत एडवेंचर टूरिज्म पर्यटन का वह नया रूप है जहां आप कथित जोखिम के साथ कुछ नया खोजने का प्रयास करते हैं. इस तरह के टूरिज्म में भी काफी रिस्क रहता है  मगर ये यात्राएं जीवन की बेहतरीन यात्राएं साबित होती हैं. बस यह जरूरी है कि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हों. रिवर राफ्टिंग ,बंजी जंपिंग, हैलीस्कीइंग ,स्नोर्कलिंग, साइकिल ट्रैकिंग ,स्काई डाइविंग ,स्कूबा डाइविंग जैसी एक्टिविटीज  एडवेंचर टूरिज्म का हिस्सा हैं जिन में जोखिम भी होता है और भरपूर रोमांच भी.

कुछ हट कर और रोचक करने की चाह रखने वाले साहसी प्रवृति के लोग एडवेंचर टूरिज्म का रुख करते हैं जब कि अनायास बिना श्रम दैवी कृपा से सब कुछ पाने की चाह रखने भीरु प्रवृति वाले तीर्थ यात्रा को निकलते है.

ऐसी मान्यता है कि तीर्थयात्रा यानी चारों धाम और ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, भजनपूजन, अर्चन करने से धर्मलाभ होता है और इंसान के सारे संकट दूर होते हैं. मनचाही मुराद पूरी होती है. इन तीर्थों में लाखोंकरोड़ों की संख्या में जनता धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत हो कर जाती है. करोड़ों रुपयों के चढ़ावे चढ़ते है जो तथाकथित पण्डेपुजारियों के पॉकेट में जाते हैं. जिसे जहाँ जगह मिलती है वहीँ सो जाते है. जो खाने को मिलता है खा लेते है. मंदिरों में भीड़ की वजह से एकदूसरे पर चढ़े जाते है. हर साल भगदड़ और भीड़ की वजह से सैकड़ों लोगों की मौतें होती हैं.

जरुरत है इस तरह की धार्मिक यात्राओं के बारे में फिर से विचारविमर्श करने की.

तीर्थयात्रा- ऐसी यात्राओं में हमें क्या हासिल होता है?

चोरी , बेईमानी और पाखण्ड का बोलबाला

दुनिया में फैली अनैतिकता और अराजकता से तीर्थ अछूते नहीं है. तरहतरह की बुराइयां तीर्थों में घुसी पड़ी है. चोर, ठग, धूर्त,बेईमान, उठाईगीरे, व्यभिचारी, पाखंडी ,लोभी, नीच व्यक्ति धर्म की खाल ओढ़ कर और साधुओं का चोला पहन कर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. हत्यारे, डाकू, चोर, अपराधी जैसे नीच लोग भी अपनी सुरक्षा तथा जीविका की तलाश में साधुसंत बन जाते हैं. सच्चे महात्माओं की कमी और झूठे और धूर्तों की बढ़ोतरी ने तीर्थों का माहौल खराब कर रखा है. तीर्थ स्थान अब धूर्त्तता ,बदमाशी, ढोंग और लूट के केंद्र बिंदु बन गए हैं.

लकीर का फकीर बनने वाली स्थिति-  तीर्थयात्रा में हम कुछ नया नहीं कर सकते. सैकड़ों साल पुरानी मान्यताओं को ढ़ोने का सिलसिला कायम रहता है जिन का विवेक से कोई वास्ता नहीं होता. जैसा घरवाले या पंडित कहते जाते हैं हम वैसा ही करते जाते हैं. लाखोंकरोड़ो की दम घोटती भीड़ में पसीने से नहाये किसी तरह मूर्ति दर्शन करना , लोगों की भीड़ में खुद को और बच्चों को कुचले जाने से बचाते हुए अस्तव्यस्त कपड़ों में बाहर निकलना और निकलते ही पंडितों और पुजारियों के चंगुल में फंस कर पैसे लुटाना. लूटखसोट चोरीचकारी से खुद को बचाने के प्रयास में मानसिक रूप से बिलकुल त्रस्त हाल में कठिन यात्रा कर वापस लौटना.

पागलपन –लोग पागलों की तरह सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा भूखेप्यासे , परेशान होते हुए करते हैं. अपने मन में कोई मुराद ले कर या कोई इच्छा पूरी होने पर अपनी मानता पूरी करने की खातिर तीर्थयात्रा पर निकल पड़ते हैं. लोगों के मन में यह बात गहरी बिठा दी जाती है कि ऐसा न किया गया तो कोई अनहोनी घटित हो सकती है. सोचने वाली बात यह है कि यदि कीर्तन, प्रवचन ,सत्संग ,सम्मेलन और पण्डेपुजारियों के सहारे ही यदि इंसान को सब कुछ हासिल हो जाता तो फिर तो कर्म की कोई आवश्यकता ही नहीं होती.

डर पैदा होता है-–अक्सर ऐसा देखा जाता है कि तीर्थ स्थलों पर साधुओं ,बाबाओ और पंडितों द्वारा लोगों को कभी भगवान के नाम पर तो कभी अनिष्ट की आशंका पैदा कर डरायाधमकाया जाता है. ताकि व्यक्ति उन के चंगुल में फँस जाए.

इस सन्दर्भ में दिल्ली की अनुजा बताती हैं, ” एक बार हम परिवार समेत वैष्णो देवी की यात्रा पर गए. जब हम पूजा कर लौट रहे थे तभी रास्ते में एक बूढ़ा बाबा मिला. मुझ को अपने जाल में फंसाता हुआ बोला कि बेटा मैं एक ऐसा मंत्र जानता हूँ जो तुम्हे हर तकलीफ से दूर करेगा. मैं ने सास की बीमारियों का जिक्र किया तो वह बाबा उन के नाम पर पूजापाठ कराने के बहाने 20 हज़ार रूपए मांगने लगा. पहले तो मैं तैयार हो गई मगर पति के इंकार करने पर बिना पूजा कराये जाने लगी तो बाबा जोर डालने लगा और डराने लगा कि इस भूमि पर आ कर यदि कोई इस पूजा से मना करता है तो उस के साथ बहुत बुरा होता है. मेरे पति इन बातों को नहीं मानते थे . सो वे मुझ से जल्द वापस लौटने को कहने लगे . इस पर बाबा गुस्से में आ कर मुझे और मेरे परिवार को श्राप देने लगा कि घर पहुँचतेपहुँचते  हमारा बड़ा नुकसान होगा. हमें सजा जरूर मिलेगी. मेरे पति ने तो इन बातों को सीरियसली नहीं लिया मगर मैं रास्ते भर इन्ही बातों को सोचती रही. मेरे कानों में बाबा की आवाज गूंजती रही और लौटते समय हमारा पूरा सफर बिना किसी एन्जॉयमेन्ट के निकल गया. मैं किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त रही.”

गंदगी और भीड़ — तीर्थयात्रा करना आसान नहीं. रास्ते लम्बे होने के साथ गंदे भी होते हैं. भीड़ की वजह से हर जगह अफरातफरी मची होती है. कहीं भी ढंग का मैनेजमेंट नहीं हो

एडवेंचर टूरिज्म 

इस के विपरीत एडवेंचर टूरिज्म से हमारा आत्मविश्वास बढ़ाता है. जब हम अपने साथियों के साथ प्रकृति के दुरूह राज खोलते हैं, कठिन से कठिन रास्तों पर भी पूरे हौसले और कोतुहल के साथ आगे बढ़ते हैं , रोमांच भरे साहसी गतिविधियों का आनंद लेते हैं तो हमारे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है. हमारे मन में यह बात ढृण हो जाती है कि हम कुछ भी कर सकते हैं.

आनंद देता है – इस तरह की यात्राओं में हमें बहुत कुछ सीखने और करने को मिलता है. हम अपने मनपसंद स्पोर्ट्स का आनंद लेते हैं जिस से मन की थकान दूर होती है और हम रिफ्रेश हो जाते हैं.

हम दोस्तों या अपनी जैसी सोच वालों के साथ मिल कर सफर करने का मजा लेते है. एक जैसी प्रवृत्ति वालों के साथ हम ग्रुप निर्माण करते है जो लम्बे समय तक हमारा साथ देते हैं. हमारी तलाश पूरी होती है.

रास्ते भर हम तरहतरह के खाने पीने का आनंद लेते है.  जोखिम भरे सफर के साथ तरहतरह का भोजन पार्टी का मजा देता है.

हमारे मन में नया उत्साह पैदा होता है. हमें जीवन में कुछ नया करने का हौसला मिलता है.

इस लिए जब जिंदगी में रिलैक्स होना हो , कुछ नया करना हो या रोमांच का अनुभव करना हो तो एडवेंचर टूरिज्म के लिए निकलें तीर्थयात्रा के लिए नहीं.

मुझे अपनी मां की उच्छृंखलता देख कर उन से नफरत होने लगी है, क्या करूं?

सवाल

मैं 15 वर्षीय छात्र हूं. आजकल बहुत तनाव में जी रहा हूं. दरअसल, मुझे अपनी मां की उच्छृंखलता देख कर उन से नफरत होने लगी है. हमारे एक अंकल जो मेरे पापा के अच्छे दोस्त हैं, उन से मेरी मां की नजदीकियां दिनोंदिन बढ़ रही हैं. वे अंकल अकसर मेरे पापा की गैरमौजूदगी में घर आते हैं और घंटों मां के साथ गप्पबाजी करते हैं. भद्देभद्दे मजाक सुन कर मेरा खून खौलने लगता है, जबकि मां खूब मजा लेती हैं. कई बार दोनों ऐसे चिपक कर बैठे होते हैं जैसे पति पत्नी हों. उन्हें लगता है कि मैं उन की हरकतों से अनजान हूं. बताएं, क्या करूं?

जवाब

आप अच्छे बुरे की समझ रखने वाले विवेकशील युवक हैं. आप को लगता है कि आप की मां और आप के तथाकथित अंकल का व्यवहार अमर्यादित है, तो आप अपनी मां से एतराज जता सकते हैं.

आप उन से साफ शब्दों में कहें कि आप को पिता की गैरमौजूदगी में उस तथाकथित अंकल का रोज आना और घंटों गप्पें लगाना नागवार गुजरता है. इतने से ही वे दोनों सतर्क हो जाएंगे. अगर न हों तो आप कह सकते हैं कि आप पिता से उन की शिकायत करेंगे. इस के बाद आप की समस्या स्वत: हल हो जाएगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मैंने एक लड़के के साथ भागकर शादी की थी लेकिन अब वो मुझे परेशान करता है, क्या करूं?

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. 2 वर्ष पहले मेरे पिता मेरे लिए एक विवाह प्रस्ताव लाए थे. लड़का पढ़ा लिखा और काफी योग्य था, पर परले दर्जे का घमंडी था. मैं ने उस के लिए मना कर दिया. फिर मेरे चाचा ने एक लड़का तलाशा. लड़का हर तरह से ठीक था. अकसर हमारे यहां आता जाता था. मैं उस से प्यार करने लगी. इसी बीच हम से गलती हो गई. हम ने संबंध बना लिया और मैं गर्भवती हो गई. घर में कोई बताने वाला नहीं था. क्या करें, क्या न करें सोचते सोचते 3 महीने बीत गए. हमें कुछ समझ नहीं आया, तो हम घर से भाग गए. वहीं मैं ने एक बेटे को जन्म दिया. खबर मिलने पर पिता आ कर बच्चे का नामकरण वगैरह कर के हमें घर ले आए. अब वे बात बात पर मुझे और मेरे पति को खरीखोटी सुनाते रहते हैं. हम माफी भी मांग चुके हैं. बताएं क्या करें?

जवाब

माता पिता अपने बच्चों का हमेशा भला चाहते हैं. इसीलिए आप के द्वारा 2 बार गलती पहली विवाहपूर्व गर्भधारण करना और दूसरी घर से भाग जाने की करने पर भी वे आप को आप के बच्चे सहित घर ले आए. हमेशा सामने देख कर पिता यदि गुस्से में कभी कड़वी बात कह देते हैं, तो आप को उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए.

यदि आप से सहन नहीं होता, तो आप को पति के साथ रहने की कहीं और व्यवस्था कर लेनी चाहिए. दूर होने से मन की कड़वाहट कम हो जाती है और संबंधों में मधुरता लौट आती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

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छोटी सी जिंदगी- भाग 2: रोहित को कौन-सी बीमारी हुई थी?

‘‘कुछ नहीं, बस, जुकाम ही है,’’ अनुपमजी ने जवाब दिया.

सभी साथ में डिनर कर फिर प्रोजैक्ट पर बातचीत करने लगते हैं.

देखते ही देखते साहिल को बिजनैस संभालते हुए 2 साल हो जाते है. इसी बीच उन की कंपनी के एक महत्त्वपूर्ण कर्मचारी का ऐक्सिडैंट हो जाता है, जिस वजह से वह कर्मचारी कोमा में चला जाता है और कंपनी के एक प्रोजैक्ट का कामकाज रुक सा जाता है.

गायत्री बोलती हैं. ‘‘भैया, मु?ो लगता है हमे इस प्रोजैक्ट के लिए कोई दूसरा कर्मचारी रख लेना चाहिए.’’

‘‘नहीं मां, यह प्रोजैक्ट मैं हैंडल करना चाहता हूं,’’ साहिल ने कहा.

‘‘ओके बेटा. पर तुम्हें भी एक सैक्रेटरी की जरूरत होगी,’’ गायत्री ने जवाब दिया.

‘‘तो तय हुआ कि सैक्रेटरी पद के लिए इंटरव्यू का आयोजन रखते हैं,’’ अनुपम ने कहा.

‘‘हां बिलकुल,’’ गायत्री ने हामी भरते हुए कहा.

दस दिनों बाद गायत्री, अनुपमजी और साहिल तीनों ही एक कमरे बैठे इंटरव्यू ले रहे थे, पर कोई लड़की साहिल को सम?ा ही नहीं आ रही थी. तभी एक और आवाज आती है, ‘‘मे आई कम इन, सर?’’

‘‘सनाया, तुम.’’ साहिल चौंक कर खड़ा हो जाता है.

सनाया ने कई बार साहिल को रोहित के साथ देखा होता है तो उस के मन में साहिल के लिए भी वही फीलिंग आ जाती है, जो वह रोहित के लिए महसूस करती है और उस का मन नफरत से भर जाता है, परंतु मजबूरी के कारण उसे यह जौब करनी ही होगी, इसीलिए वह साहिल के यस कहने पर अंदर आ जाती है. उस के डौक्यूमैंट देख व उसे जौब दे कर इंटरव्यू का वही समापन कर साहिल यह जौब सनाया को देने की सिफारिश करने लगता है (क्योंकि वह सनाया को कालेज टाइम से ही पसंद करता था). तीनों कुछ डिस्कशन के बाद सनाया को अपौइंटमैंट लैटर देने का और्डर देते है. अनुपम और गायत्री दोनों एकसाथ बोल पड़ते हैं, ‘‘तुम इस लड़की को पहले से जानते हो?’’

‘‘जी. मैं ने बताया था कि मेरी एक अच्छी दोस्त की डैथ हो गई है. सनाया उसी की दोस्त थी.’’

‘‘बस, इतना ही?’’ अनुपम उसे थोड़ा चिढ़ाने लगता है.

साहिल शरमाते हुए अपने बालों में हाथ फेरने लगता है.

‘‘ओह, तो बात यहां तक पहुंच गई और मां को पता भी नहीं.’’

‘‘नहीं मां, मैं, वो… बस, बताने ही वाला था कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘ह्म्म्म…’’ गायत्री ने बैठे मन से कहा.

अगली सुबह जब साहिल नाश्ता करने नहीं आता है तो उस के चाचा उस के कमरे में जाते हैं. ‘‘क्या हुआ भाई, आज बड़ी देर तक सोए हो?’’

‘‘फीवर हो गया है. वौमिटिंग भी हो रही है. पूरी बौडी में दर्द हो रहा है. फ्लू तो रहता ही है,’’ साहिल ने जवाब दिया.

अनुपम बोले, ‘‘चलो मेरे साथ, अभी डाक्टर के पास चलते हैं.’’

साहिल और अनुपमजी दोनों डाक्टर के पास जाते हैं. डाक्टर चैकअप करते समय देखते हैं कि गले के नीचे लाल धब्बा है और आंखों में पीलापन. वजन भी तेजी से घटा है.

डाक्टर ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हें माउथ इन्फैक्शन और थकान रहती है?’’

साहिल बोला, ‘‘जी.’’

डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं ने कुछ टैस्ट लिखे हैं, बाहर लैब में करवा लें. रिपोर्ट देख कर ही प्रिस्क्रिप्शन दे पाऊंगा.’’

सारे टैस्ट करवा कर दोनों घर लौटने को होते हैं कि वहां रोहित व्हीलचेयर पर दिखाई देता है. लेकिन साहिल मुंह फेर लेता है और वहां से वे दोनों निकल जाते हैं क्योंकि रिपोर्ट कल शाम को मिलनी है.

दूसरे दिन शाम को गायत्री और अनुपमजी रिपोर्ट लेने जाते हैं. रिपोर्ट ले कर डाक्टर के पास जाते हैं.

रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर कहते हैं, ‘‘गायत्रीजी, आप के बेटे को एड्स है.’’

गायत्री बोलीं, ‘‘मेरे बेटे को एड्स कैसे हो सकता है. मैं ने बड़ी मेहनत से अपने बेटे की परवरिश की है.’’

डाक्टर कहते हैं, ‘‘यही सच है, मैं आप को डाक्टर खेतान का एड्रैस देता हूं, वे एड्स विशेषज्ञ हैं. आप यह रिपोर्ट ले कर उन के पास चली जाएं.’’

गायत्री अनुपमजी के साथ डा. खेतान के पास जाती हैं. ‘‘देखिए, आप के बेटे का एड्स सैकंड स्टेज पर है. हमे तुरंत इलाज शुरू करना होगा. उस के शरीर पर जो धब्बे हैं वे धीरेधीरे जख्म बनते जाएंगे. एक क्रीम दे रहा हूं, उन पर लगा दीजिएगा और ये दवाइयां समय पर देनी होंगी,’’ डा. खेतान ने कहा.

गायत्री बोलीं, ‘मेरा बेटा ठीक तो हो जाएगा न डाक्टर. आप पैसों की बिलकुल चिंता न करें. हम विदेश में भी इलाज करवाने को तैयार हैं.’’

डाक्टर ने कहा, ‘‘देखिए, इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. दवाइयों से आदमी की सांसें कुछ हद तक बढ़ाई जा सकती हैं, पर बीमारी को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है.’’

गायत्री ने कहा, ‘‘बस डाक्टर, आप से एक विनती है कि आप साहिल को उस की बीमारी न बताएं, प्लीज. मैं नहीं चाहती कि वह रोज मरमर कर जिए.’’

देररात तक गायत्री कुछ सोचती रहती हैं और अगले दिन सुबह वे अनुपम को किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में एक हफ्ते के लिए आस्ट्रेलिया भेज देती हैं और  जल्दबाजी में सनाया व साहिल की शादी की डेट फिक्स करवा देती हैं.

‘‘मां, आप चाचा के वापस आने का इंतजार तो करो, मैं अभी उन से बात करता हूं, उन्होंने मु?ो बधाई कौल भी नहीं किया.’’

‘‘अरे नहीं, मेरी अभी ही उन से बात हुई है, उन्होंने कहा है वे बहुत बिजी हैं और कोर्ट मैरिज ही तो है. रिसैप्शन उन के आने के बाद रख लेंगे. अब आगे मु?ो कुछ नहीं सुनना.’’

गायत्री देवी 2 दिनों बाद ही उन दोनों की शादी करवा देती हैं.

यह आप ने क्या कर दिया, भाभी. एक मासूम की जिंदगी को जानबू?ा कर मौत के मुंह में धकेल दिया,’’ अनुपम गायत्री से अकेले में बात कर रहा होता है.

‘‘इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं, क्योंकि उन दोनों को साथ रहते हुए 3 दिन हो चुके हैं. मैं ने जो किया, सही किया. मैं अपने बेटे को खुशियां देना चाहती हूं, बस,’’ गायत्री ?ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘आप बहुत गलत कर रही हैं, भाभी.’’

‘‘कल उन का रिसैप्शन है. उस के बाद वे दोनों कुछ दिनों के लिए घूमने जा रहे हैं. आप मेरे दोनों बच्चों को खुश रहने दो.’’

अनुपम यह सब सुन कर गुस्से में वहां से चला जाता है.

रिसैप्शन पर अनुपम को पता चलता है कि सनाया उन की कंपनी के उसी कर्मचारी की बहन है जिस का कुछ दिनों पहले ऐक्सिडैंट हुआ था और गायत्री देवी उस की भाभी को मासिक घरखर्च व पति के इलाज के पैसे भी देती हैं ताकि वे लोग बिना किसी शक के एहसान तले दबे रहें और गायत्री सब की नजरों में महान बनी रहें.

ज्योति- भाग 1: क्या सही था उसका भरोसा

‘‘हां मां, खाना खा लिया था औफिस की कैंटीन में. तुम बेकार ही इतनी चिंता करती हो मेरी. मैं अपना खयाल रखता हूं,’’ एक हाथ से औफिस की मोटीमोटी फाइलें संभालते हुए और दूसरे हाथ में मोबाइल कान से लगाए सुमित मां को समझाने की कोशिश में जुटा हुआ था.

‘‘देख, झूठ मत बोल मुझ से. कितना दुबला गया है तू. तेरी फोटो दिखाती रहती है छुटकी फेसबुक पर. अरे, इतना भी क्या काम होता है कि खानेपीने की सुध नहीं रहती तुझे.’’ घर से दूर रह रहे बेटे के लिए मां का चिंतित होना स्वाभाविक ही था, ‘‘देख, मेरी बात मान, छुटकी को बुला ले अपने पास, बहन के आने से तेरे खानेपीने की सब चिंता मिट जाएगी. वैसे भी 12वीं पास कर लेगी इस साल, तो वहीं किसी कालेज में दाखिला मिल जाएगा,’’ मां उत्साहित होते हुए बोलीं.

जिस बात से सुमित को सब से ज्यादा कोफ्त होती थी वह यही बात थी. पता नहीं मां क्यों नहीं समझतीं कि छुटकी के आने से उस की चिंताएं मिटेंगी नहीं, उलटे, बहन के आने से सुमित के ऊपर जिम्मेदारी का एक और बोझ आ पड़ेगा.

अभी तो वह परिवार से दूर अपने दोस्तों के साथ आजाद पंछी की तरह बेफिक्र जिंदगी का आनंद ले रहा था. उस के औफिस में ही काम करने वाले रोहन और मनीष के साथ मिल कर उस ने एक किराए पर फ्लैट ले लिया था. महीने का सारा खर्च तीनों तयशुदा हिसाब से बांट लेते थे. अविवाहित लड़कों को घरगृहस्थी का कोई ज्ञान तो था नहीं, मनमौजी में दिन गुजर रहे थे. जो जी में आता करते, किसी तरह की बंदिश, कोई रोकटोक नहीं थी उन की जिंदगी में. कपड़े धुले तो धुले, वरना यों ही पहन लिए. हफ्ते में एक बार मन हुआ तो घर की सफाई हो जाती थी, वरना वह भी नहीं.

सुमित से जब भी उस की मां छोटी बहन को साथ रखने की बात कहती, वह घोड़े सा बिदक जाता. छुटकी रहने आएगी तो सुमित को दोस्तों से अलग कमरा ले कर रहना पड़ेगा और ऊपर से उस की आजादी में खलल भी पड़ेगा. यही वजह थी कि वह कोई न कोई बहाना बना कर मां की बात टाल जाता.

‘‘मां, अभी बहुत काम है औफिस में, मैं बाद में फोन करता हूं,’’ कह कर सुमित ने फोन रख दिया.

वह सोच रहा था, कहीं मां सचमुच छुटकी को न भेज दें.

तीनों दोस्तों को यों तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन खाना पकाने के मामले में तीनों ही अनाड़ी थे, ब्रैड, अंडा, दूध पर गुजारा करने वाले. रोजरोज एक ही तरह का खाना खा कर सुमित उकता गया था. बाहर का खाना अकसर उस का हाजमा खराब कर देता था. परिवार से दूर रहने का असर सचमुच उस की सेहत पर पड़ रहा था. मां का इस तरह चिंता करना वाजिब भी था. इस समस्या का कोई स्थायी हल निकालना पड़ेगा, वह मन ही मन सोचने लगा. फिलहाल तो 4 बजे उस की एक मीटिंग थी. खाने की चिंता से ध्यान हटा, वह एक बार फिर से फाइलों के ढेर में गुम हो गया.

सुमित के अलावा रोहन और मनीष की भी यही समस्या थी. उन के घर वाले भी अपने लाड़लों की सेहत की फिक्र में घुले जाते थे.

शाम को थकहार कर सुमित जब घर आया तो बड़ी देर तक घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला. एक तो दिनभर औफिस में माथापच्ची करने के बाद वह बुरी तरह थक गया था, उस पर घर की चाबी ले जाना आज वह भूल गया था. फ्लैट की एकएक चाबी तीनों दोस्तों के पास रहती थी, जिस से किसी को असुविधा न हो.

थकान से बुरी तरह झल्लाए सुमित ने एक बार फिर बड़ी जोर से घंटी पर हाथ दे मारा.

थोड़ी ही देर में इंचभर दरवाजे की आड़ से मनीष का चेहरा नजर आया. सुमित को देख कर उस ने हड़बड़ा कर दरवाजा पूरा खोल दिया.

‘‘क्यों? इतना टाइम लगता है क्या? बहरा हो गया था क्या जो घंटी सुनाई नहीं दी?’’ अंदर घुसते ही सुमित ने उसे आड़ेहाथों लिया.

गले में बंधी नैकटाई को ढीला कर सुमित बाथरूम की तरफ जा ही रहा था कि मनीष ने उसे टोक दिया, ‘‘यार, अभी रुक जा कुछ देर.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ सुमित ने पूछा, फिर मनीष को बगले झांकते देख कर वह सबकुछ समझ गया, ‘‘कोई है क्या, वहां?’’

‘‘हां यार, वह नेहा आई है. वही है बाथरूम में.’’

‘अरे, तो ऐसा बोल न,’’ सुमित ने फ्रिज खोल कर पानी की ठंडी बोतल निकाल ली.

मनीष की प्रेमिका नेहा नौकरी करती थी और एक वुमेन होस्टल में रह रही थी. जब भी सुमित और रोहन घर पर नहीं होते, मनीष नेहा को मिलने के लिए बुला लेता.

सुमित को इस बात से कोई एतराज नहीं था, मगर रोहन को यह बात पसंद नहीं आती थी. उस का मानना था कि मालिकमकान कभी भी इस बात को ले कर उन्हें घर खाली करने को कह सकता है.

जब कभी नेहा को ले कर मनीष और रोहन के बीच में तकरार होती, सुमित बीचबचाव से मामला शांत करवा लेता.

‘‘यार, बड़ी भूख लगी है, खाने को कुछ है क्या?’’ सुमित ने फ्रिज में झांका.

‘‘देख लो, सुबह की ब्रैड पड़ी होगी,’’ नेहा के जाने के बाद मनीष आराम से सोफे पर पसरा टीवी देख रहा था.

सुमित को जोरों की भूख लगी थी.इस वक्त उसे मां के हाथ का बना गरमागरम खाना याद आने लगा. वह जब भी कालेज से भूखाप्यासा घर आता था, मां उस की पसंद का खाना बना कर बड़े लाड़ से उसे खिलाती थीं. ‘काश, मां यहां होतीं,’ मन ही मन वह सोचने लगा.

‘‘बहुत हुआ, अब कुछ सोचना पड़ेगा. ऐसे काम नहीं चलने वाला,’’ सुमित ने कहा तो मनीष बोला, ‘‘मतलब?’’

‘‘यार, खानेपीने की दिक्कत हो रही है, मैं ने सोच लिया है किसी खाना बनाने वाले को रखते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘और उस को पगार भी तो देनी पड़ेगी?’’ मनीष ने कहा.

‘‘हां, तो दे देंगे न, आखिर कमा किसलिए रहे हैं.’’

‘‘लेकिन, हमें मिलेगा कहां कोई खाना बनाने वाला,’’ मनीष ने कहा.

‘‘मैं पता लगाता हूं,’’ सुमित ने जवाब दिया.

दूसरे दिन सुबह जब सुमित काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा, किसी ने दरवाजा खटखटाया. करीब 30-32 साल की मझोले कद की एक औरत दरवाजे पर खड़ी थी.

सुमित के कुछ पूछने से पहले ही वह औरत बोल पड़ी, ‘‘मुझे चौकीदार ने भेजा है, खाना बनाने का काम करती हूं.’’

‘‘ओ हां, मैं ने ही चौकीदार से बोला था.’’

‘‘अंदर आ जाइए,’’ सुमित उसे रास्ता देते हुए बोला और कमरे में रखी कुरसी की तरफ बैठने का इशारा किया.

कठिनाइयां- भाग 3: लड़ाकू फौज के जवान ने उसके साथ क्या किया?

नई दिल्ली पहुंचने में 2 दिन और एक रात लगनी थी. गाड़ी की स्पीड अच्छी थी. तीनतीन घंटे कोई स्टेशन नहीं आता था. दूर की गाड़ियां हमेशा लेट हो जाती हैं. यह गाड़ी सुबह 4 बजे पहुंचनी थी पर 8 बजे पहुंची. शान ए पंजाब, जिस में मेरी अमृतसर जाने की सीट बुक थी, निकल चुकी थी. अमृतसर के लिए रिजर्वेशन करवाना जरूरी था. क्वार्टरमास्टर ने मुझ से हाथ मिलाया. मैं ने उन का धन्यवाद किया. उन की गाड़ी और उन के कुछ जवानों की गाड़ी शाम को थी. उन की रैजिमैंट के 2 जवान मेरे साथ जालंधर तक जाने थे. क्वार्टरमास्टर ने उन को आदेश दिया कि मेजर का ख़याल रखना. इन का सामान उठा लेना. यह न हो कि इन को कुली करना पड़े. मैं ने कहा, ‘नहीं क्वार्टरमास्टर साहब, सामान बहुत हलका है, मैं उठा लूंगा.’

गाड़ी 9 नंबर प्लेटफौर्म पर आई थी और एमसीओ 12 नंबर प्लेटफौर्म पर था. मैं ने एक जवान से कहा, ‘इस का रेलवे वारंट और अपना रेलवे वारंट ले कर चलो. एमसीओ में आगे की गाड़ी के लिए रिजर्वेशन करवा कर आते हैं.’

एमसीओ ने 11 बजे अमृतसर जाने वाली डीलक्स गाड़ी में 3 बर्थें रिजर्व कर दीं. 2 जालंधर के लिए, एक मेरी अमृतसर के लिए. गाड़ी 1 नंबर प्लेटफौर्म से चलनी थी. सामान में मेरा एक बिस्तरबंद था और बैग. बैग मैं ने उठा लिया और बिस्तरबंद एक जवान ने उठा लिया था.

अभी 9 बजे थे. गाड़ी आने में बहुत समय था. सामान 1 नंबर प्लेटफौर्म पर रख दिया. जवानों से मैं ने नाश्ते के लिए पूछा. वे कहने लगे, ‘नाश्ता हमारे पास है. आप को मैं अभी देता हूं.’ मैं ने कहा, ‘नहीं, आप करें. मैं नाश्ता रेलवे रैस्टोरैंट में जा कर करूंगा.’

‘ठीक है, मेजर. आप नाश्ता कर के आएं. आप सामान की फिक्र न करें.’ मैं समझ गया था कि नाश्ता उन के पास केवल अपने लिए था, तभी उन्होंने जोर नहीं दिया. मैं रेलवे रैस्टोरैंट में गया और लंचब्रंच इकठ्ठा कर लिया.

11 बजे गाड़ी आई और अपनीअपनी बर्थों पर सो गए. बीच में टिकटचेकर आया. उस के बाद फिर सो गए. कहांकहां गाड़ी रुकी, पता नहीं चला. जब लुधियाना से गाड़ी चली तो मैं ने डोगरा रैजिमैंट के जवान से पूछा, ‘यह कौन सा स्टेशन निकला है?’

‘मेजर, लुधियाना निकला है.’

‘आप की मंजिल तो आने वाली है.’

‘हां, मेजर, फखवाडा और गौरयां में 2-2 मिनट का स्टौपेज है. फिर जालंधर.’

‘गाड़ी लेट चल रही है?’

‘जी, टीटी कह रहा था कि गाड़ी कोई एक घंटा लेट चल रही है.’

‘ओह, आप को पठानकोट के लिए गाड़ी मिल जाएगी?’

‘नहीं, मेजर जो गाड़ी पकड़नी थी, वह तो 5 बजे निकल जाती है. जब तक यह गाड़ी जालंधर पहुंचेगी, 8 बज जाएंगे. पता नहीं आगे की गाड़ी कब मिलेगी?’

‘8 बजे तो अमृतसर पहुंचने का टाइम है.’

‘हिंदुस्तान की गाड़ियों का यही हाल है. हमेशा लेट हो जाती हैं. कभी प्लैनिंग के मुताबिक हम घर नहीं पहुंचे हैं. आगे हम दोनों को कांगड़े के लिए गाड़ी पकड़नी है. पठानकोट अगर हम 9 बजे तक पहुंच गए तो आगे की गाड़ी मिल जाएगी वरना दोपहर 2 बजे तक इंतजार करना पड़ेगा.’

‘वहां से तो नैरोगेज की गाड़ी चलती है न?’

‘जी, मेजर.’

रात 8 बजे गाड़ी जलंधर पहुंची. फगवाड़ा और गौरयां में बहुत देर तक रुकी रही. अगर लगातार चले तो जलंधर से अमृतसर में गाड़ी को 2 घंटे लग जाते हैं. इस हिसाब से गाड़ी 10 बजे पहुंच जानी चाहिए. लेकिन गाड़ी पहुंची रात 11 बजे. मेरा घर स्टेशन से बहुत दूर था. इतनी रात को किसी हालत में पहुंचा नहीं जा सकता था. रात को मैं ने हालबाजार में अपने ससुराल रुकने का फसला किया. सुबहसुबह उठ कर घर चला जाऊंगा. पत्नी को डिलीवरी के लिए यहीं के सरकारी अस्पताल में ले कर आना पड़ेगा. मिलिटरी अस्पताल कैंट में दूर था. वहां का कार्ड भी नहीं बना था. सरकारी अस्पताल नजदीक भी था और मेरे मामा के लड़के वहीं डाक्टर भी थे.

मैं ससुराल पहुंचा तो वे बड़े खुश हुए कि मैं समय पर आ गया हूं. हालबाजार में इतनी रात को खाने के लिए मिल जाता है. छोलेकुलचे मंगवाए और खा कर लेट गया. लंबे सफर की थकावट के कारण सो नहीं पाया. सुवह 5 बजे घर के लिए बस चलती थी. मैं उस में जाने के लिए तैयार था. चाय पीने के लिए पूछा. मैं ने कहा, ‘घर जा कर पिऊंगा.’ उन्होंने मुझे रोका नहीं. शन्नो, मेरी पत्नी का हौसला बढ़ जाएगा. पति अगर साथ में हो तो पत्नी बड़े से बड़ा दर्द सह लेती है.

2 दिनों बाद मुझे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. खुशी के साथ रास्ते की पूरी थकान मिट गई. उन सब के मुंह भी बंद जो कहते थे कि लड़की होगी. शन्नो के महल्ले वालों ने तो खबर भी फैला दी कि शन्नो के लड़की हुई है, जैसे, लड़की होना कोई अभिशाप हो.

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