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घरेलू हिंसा: औरतों को राहत नहीं

अपराध व हिंसा की शिकार स्त्रियों के प्रतिशत में पिछले कुछ सालों में वृद्धि ही हुई है, कमी नहीं. यह समाज वैज्ञानिकों, समाज सुधारकों, शुभचिंतकों व अन्यों के लिए एक गहन चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि नारी को पुरुष द्वारा सुरक्षा के बदले शोषित, तिरस्कृत, अपमानित, उपेक्षित, उत्पीडि़त किया गया है. पुरुष पशुओं की भांति व्यवहार भी करता रहा है.

आज भी स्त्री के प्रति तमाम प्रकार के अपराध होते रहते हैं. जैसे दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, अपहरण, कन्याभ्रूण हत्या, लैंगिक दुर्व्यवहार, बलात्कार, शिशु हत्या आदि तमाम प्रकार के अपराधों की शिकार महिलाएं ही होती हैं.

शिक्षित रूसी सैनिक यूक्रेन में आक्रमण के दौरान जीभर कर वहां की औरतों का रेप कर रहे हैं और राष्ट्रपति पुतिन चुप बैठे हैं.

समाजशास्त्री राम आहूजा के अनुसार, हिंसा अपराध 3 प्रकार के होते हैं.

प्रथम, पुरुष द्वारा स्त्री के प्रति आपराधिक हिंसा की प्रवृत्ति के कारण किए जाने वाली हिंसा, जैसे बलात्कार, अपहरण एवं हत्या आदि हैं.

दूसरे, हिंसा का संबंध परिवार में महिला के साथ किए जाने वाले मानसिक, शारीरिक उत्पीड़न से है. जैसे दहेज हत्याएं, पत्नी को पीटना, विधवाओं पर अत्याचार करना आदि घरेलू हिंसा के अंतर्गत आती हैं.

तीसरे, सामाजिक हिंसा के अंतर्गत भ्रूण हत्या के लिए पत्नी, बहू को विवश करना तथा उन के साथ छेड़छाड़, विधवा युवती को सती होने के लिए विवश करना, बहुओं को अधिक दहेज लाने के लिए उत्पीडि़त करना एवं महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा न देना आदि ये सभी हिंसक वारदातें तीसरी श्रेणी की हैं.

सामाजिक हिंसा के अंतर्गत यौन शोषण व यौन उत्पीड़न को शामिल किया जाता है. एक और श्रेणी है, एक जाति, धर्म द्वारा दूसरी जाति, धर्म की औरतों से बदला लेने के लिए रेप करना. यह सदियों से चला आ रहा है और सभी धर्म व शासन इसे अपने सैनिकों, भक्तों के लिए इनाम की तरह मानते रहे हैं.

घरेलू हिंसा का अर्थ

घरगृहस्थी के अंदर महिला के साथ किया जाने वाला शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न या प्रताड़ना है. महिलाओं के प्रति अन्य आपराधिक हिंसाओं में पढ़ाईलिखाई के बावजूद वृद्धि हो रही है. साथ ही घरेलू हिंसाएं भी कम नहीं हो रही हैं.

हर महिला विवाह से पहले व विवाह के समय बहुत सुंदर सपने देखती है तथा उसे संजोती है कि अब प्रेम, शांति तथा आत्म उपलब्धि से पूरिपूर्ण जीवन की शुरुआत होगी परंतु इस के विपरित अनेक विवाहित स्त्रियों के सपने एक पल में ही चकनाचूर हो जाते हैं, क्योंकि पति की मारपीट और यातना का अंत न होने वाली लंबी अंधेरी गुफाओं में पत्नी अपनेआप को अकेली पाती है जहां उस का चीखनाचिल्लाना, गुहार सुनने वाला कोई नहीं होता.

भारतीय समाज व्यवस्था में तो ऐसी मारपीट का खुलासा करने में भी लज्जा आती है. यदि वे शिकायत की पहल करती हैं तो हमारे यहां पिछड़ी और दलित जातियों की बड़ीबूढ़ी औरतें उन्हें ही दोष देती हैं या फिर उन्हें चुपचाप सहन करने की सलाह दी जाती है.

सच यह है कि जोरू के मामले में अन्य लोग हस्तक्षेप नहीं करते क्योंकि यह मामला आदमीऔरत का निजी माना जाता है. यदि औरत थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने जाती है तो वहां पहले से ही समाज के बड़े पुलिस अधिकारी व कर्मचारी उसी विचारधारा या सोच के होते हैं. महिला को कमजोर समझ कर उस का मजाक उड़ाते हैं तथा रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी करते हैं और रिपोर्ट दर्ज भी नहीं करते.

धर्मसत्ता हावी

घरेलू हिंसा की शिकार या अन्य हिंसा की शिकार महिलाएं कितनी ही बार थाने में पुलिस अधिकारी की छेड़छाड़, यौन शोषण का शिकार हो जाती हैं. एक पीडि़ता होमगार्ड की बहू को पुलिस इंस्पैक्टर अकेले चैंबर में बुला कर 4 घंटे अर्धनग्न कर यह जांच करता रहा कि कहां खरोच आई है. इस तरह की तमाम घटनाएं घटती रहती हैं.

समाज में या थाने में लोग या कर्मचारी कहते हैं कि स्त्री इस के लायक होती है, इसलिए पत्नी को पुरुष की पिटाई का निरपेक्ष अधिकार है. ऐसी घटना केवल कम पढ़ेलिखे परिवारों में ही नहीं हो रहीं बल्कि बड़े घरों, सम्मानित परिस्थिति वाले परिवारों में जहां के लोग पढ़ेलिखे और आत्मनिर्भर हैं वहां भी मारपीट की घटनाएं आम बात हो गई हैं.

पिता द्वारा अपनी अविवाहित बेटियों तथा भाई द्वारा अपनी बहनों को मारनापीटना आज भी हक माना जाता है. औरतें अपने सगेसंबंधी, पड़ोसी, पुलिस, जज, वकील आदि से शिकायत भी करती हैं तो ऐसे में सारे लोग उन्हें समझौता करने की राय देते हैं और व इस के लिए दबाव भी बनाते हैं.

सच यह है कि पतिपत्नी को मांबाप भी सलाह देते हैं कि पत्नी अपने पति को सर्वस्व और परमेश्वर माने चाहे पति छोटीछोटी बातों में तानाशाही दिखाए. स्त्री पति को ईश्वर समझती है, बावजूद इस के पति (ईश्वर) के अत्याचार और उत्पीड़न सहती है. यहां तक कि परिवार में किसी भी प्रकार के नुकसान को पत्नी के सिर मढ़ कर पीटने की घटनाएं तो आम हैं.

पति की अकाल मृत्यु हो या पति की मां या बहन की, अगर पत्नी नई है तो उसे अपशकुनी कहने में देर नहीं लगती और उस से बहुत हिंसात्मक व्यवहार होते हैं, जिस के पीछे धर्म प्रचारक ही होते हैं. हिंसा, चोट, लात मारने से ले कर हड्डी तोड़ना, यातना देना, मार डालने की कोशिश और हत्या तक भी की जाती है. ऐसे में कितनी महिलाएं अपने पति व परिवार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा पाएंगी या करा पाती होंगी जहां धर्मसत्ता पूरी तरह हावी है.

घरेलू हिंसा के स्वरूप

धर्म के प्रवचन सुनसुन कर बढ़ेपले भारतीय समाज में लड़केलड़कियों के पालनपोषण में पूर्णरूप से पितृसत्ता हावी है जिस के फलस्वरूप लड़कियों को कमजोर, लड़कों को ताकतवर बनाया जाता है. लड़कियों को घर का सारा काम सौंप दिया जाता है और लड़के काम में हाथ तक नहीं बंटाते हैं.

इस तरह से लड़कियों के स्वतंत्र व्यक्तित्व को प्रारंभ से ही कुचला जाता है. कानून की दृष्टि में महिला के प्रति घरेलू हिंसा अपराध माना गया है और पुलिस का दायित्व है कि ऐसे मामलों की जांच करे. घरेलू हिंसा के रूप में दहेज हत्याएं, बलात्कार, लैंगिक दुर्व्यवहार, हत्या तथा शिशुहत्या, अपहरण और अगवा करना आदि शामिल हैं.

दहेज हत्याएं : भारतीय समाज व्यवस्था में विवाह हेतु दहेज अनिवार्य है, जिस से दहेज की समस्या एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जब दहेज उत्पीड़न, दहेज हत्या का मामला समाचारपत्रों, टीवी चैनलों पर न पढ़ा व देखा गया हो.

महिलाओं के पक्ष व दहेज हत्या के विरुद्ध कई कठोर कानून बनाए गए हैं. बावजूद इस के, दहेज हत्याएं सामने आती हैं जहां पीडि़ता पक्ष ने हिम्मत के साथ पुलिस थाने में जा कर रिपोर्ट दर्ज कराई. तमाम महिलाओं के तो ऐसे मामले दर्ज नहीं किए जाते अगर पति का पक्ष रसूखदार है या पुलिस को वह खरीद सका है.

कुछ समय पूर्व यह केवल उच्च एवं मध्यवर्ग तक ही सीमित था, लेकिन अब यह निम्नवर्ग में भी संक्रामक रोग की तरह फैलता गया है. दहेज प्रथा व उस के उत्पीड़न, दहेज हत्या रोकने हेतु कई कानून हैं. उन्हें समय व परिस्थितियों के अनुसार प्रभावी बनाने के लिए संशोधन भी किए जा रहे हैं.

लेकिन अब इस का जम कर दुरुपयोग भी हो रहा है और इसलिए पुलिस वाले व अदालतें विवाह बचाने के चक्कर में हिंसा के मामलों में भी बीचबचाव ही करने की कोशिश करते हैं. जब मृत्यु हो जाए तो मामला गंभीर होता है पर मृतका के पति को सजा देने से लाभ क्या है. यह न्याय उस औरत को नहीं मिल रहा जो हिंसा की शिकार हुई.

पुरुष वर्चस्व वाली संस्था परिवार में किसी भी अपराध से बचने के लिए कोई न कोई उपाय ढूंढ़ ही लेते हैं. असाधारण मृत्यु दहेज हत्या को साधारण मृत्यु बता कर पुरुष थाने व अन्य जगहों पर घूस दे कर सजा से मुक्त हो जाता है और समाज में स्वतंत्र जीता है. इस तरह वह औरों के साहस को बढ़ावा देने में प्रेरक सिद्ध होता है. इन कानूनों के अलावा भी समय व परिस्थितियों के अनुसार न्यायालयों द्वारा कानून प्रतिपादित किए गए हैं. इन में स्वयंसेवी संगठनों को भी एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है और इस में आत्महत्या करने वाली स्त्री द्वारा आत्महत्या पूर्व लिखा किसी भी पत्र को साक्ष्य के तौर पर मानने की अनुमति है.

तमाम कानूनों के बावजूद दहेजप्रथा का प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है, क्योंकि कानून केवल कागजों तक ही सीमित हैं और इसे चलाने वाले पौराणिक विचारधारा के लोग हैं. वे आसानी से पुरुष को सजा पाते नहीं देखना चाहते हैं. वे महिला से अपनेआप को श्रेष्ठ समझते हैं.

हमारे शास्त्रों में महिला को बारबार शूद्र कहा गया है. तुलसीदास कहते हैं कि शूद्र, गंवार, ढोल, पशु, नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी. इस के अनुसार ही भारतीय पुरुषों की मानसिकता बनी हुई है. इस को बढ़ावा देने में पुलिस प्रशासन का विशेष योगदान है. घरेलू हिंसा का चाहे कोई भी रूप हो- दहेज उत्पीड़न, दहेज हत्या, यौन शोषण, लैंगिक दुर्व्यवहार या कन्याभ्रूण हत्या हो इन्हें रोकने के लिए ब्राह्मणवादी सोच व पितृसत्तात्मक सोच को बदल कर समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर समझना व व्यवहार में लाना होगा, पर यहां तो आज उलट हो रहा है और पुराणों का गुणगान किया जा रहा है.

जिस समाज में कन्याभ्रूण हत्या आम हो और उस में औरत स्वयं और उस के मातापिता भी शामिल हों वहां औरतों के प्रति हिंसा तो आम है ही. दलित और पिछड़ी औरतों को ऊंची जातियों से

इतनी दुत्कार मिलती है कि वे घर की मारपीट को सहने की आदी हो जाती हैं. पढ़ीलिखी और कमाऊ दलित व पिछड़ी औरतों को धर्म पर भी भरोसा कुछ ज्यादा होता है कि उन्हें देवीदेवता बचाने आ जाएंगे, जो कभी नहीं आते.

खुद पर भरोसा जरूरी

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो 2015 के सर्वे में पाया गया कि 56 प्रतिशत औरतों को मानसिक या शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा. जो औरतें अब पढ़ भी ली हैं, वे भी मारपीट से मुक्त नहीं हैं क्योंकि पति जानता है कि कमाऊ होने के बावजूद औरत के पास कोई और ठिकाना नहीं है.

हमारे यहां ऐसी पौराणिक कहानियां भरी हुई हैं जिन में पति के लिए हर बलिदान औरतों के लिए पुण्य का काम है और वे अकसर इसी भुलावे में पति की हिंसा को सहती हैं कि यह तो उन के जीवन में ही लिखा है.

ऊंचे घरों की इंग्लिश पढ़ीलिखी औरतें तो फिर भी अपने हकों को समझती हैं पर पहलीदूसरी पीढ़ी की पिछड़ी व दलित जातियों की औरतों का रहनसहन शिक्षा के बावजूद नहीं बदला है और वे जानकारी के अभाव में हिंसा का मुकाबला नहीं कर पातीं.

पिछड़े व दलित घरों की पढ़ीलिखी औरतों को स्कूली या कालेज की शिक्षा के बाद कुछ पढ़ने नहीं दिया जाता और उन्हें कमजोर बनाए रखने के हजार प्रपंच किए जाते हैं. जब तक औरतों में अपना भरोसा नहीं होगा कि वे हिंसक पुरुष को छोड़ सकती हैं, तब तक वे हिंसा का शिकार बनती रहेंगी.

कैसे ये दिल के रिश्ते- भाग 2: क्या वाकई तन्वी के मन में धवल के प्रति सच्चा प्रेम था?

निराश हो कर हम उन के घर से लौट आए. हम ने तो तन्वी को विवाह की स्वीकृति नहीं दी पर वह जिद करकर के धवल को राजी करने में सफल हो गई थी. धवल ने भावुक स्वर में कहा था, ‘मां, मैं तन्वी से विवाह करना चाहता हूं. उस का असीम प्यार देख कर मुझे नहीं लगता कि वह जीवन में किसी और पुरुष को स्वीकार कर पाएगी. हमें उस के प्यार की कद्र करनी चाहिए.’

हार कर फिर हम ने भी हथियार डाल दिए थे. सादे से समारोह में वे पतिपत्नी बन गए. ज्यादा भीड़ नहीं जुटाई थी हम ने. खास लोगों को ही बुलाया था. बड़े बेटे वत्सल को इस विवाह की सूचना नहीं दी. उस का स्वभाव उग्र है. हमें डर था कि वह आ कर हम से लड़ेगा और धवल को भी इस पागलपन के लिए डांटेगा.

धवल का मन रखने के लिए हम दुखी मन से उस के विवाह में शरीक हुए.

दुलहन बनी तन्वी बहुत सुंदर लग रही थी. हंसहंस कर वह परिचितों का स्वागत कर रही थी. उस के मातापिता हर आगंतुक के सामने बेटी के सच्चे प्यार और महान त्याग का बखान कर रहे थे. हर मेहमान नवदंपती के प्यार पर आश्चर्य प्रकट करता तन्वी की तारीफ कर रहा था.

मुझे यह सब बहुत अजीब लग रहा था. न जाने कैसे मातापिता थे वे, बेटी का संभावित वैधव्य उन के दिलों को क्यों नहीं दहला रहा था? मैं तो जितनी भी बार तन्वी को देखती, जी भर आता. इस का यह शृंगार कुछ ही दिनों का है, फिर इसे जीवन भर शृंगारविहीन रहना है, यह सोच कर कलेजा मुंह को आ रहा था. पकवानों से मेजें सजी थीं, पर मैं एक ग्रास भी गले से नहीं उतार पाई.

चढ़ावे में बेमन से चढ़ाया पन्ने का सैट तन्वी पर खूब फब रहा था. धवल और वत्सल दोनों ही बेटे मेरे लिए समान थे, मगर न जाने क्यों वत्सल की शादी में 5 सैट जेवर चढ़ावे में चढ़ाते समय मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई थी, पर तन्वी को एक सैट जेवर देना भी मुझे अखर गया था. पति की यादों के सहारे किसी को जिंदगी गुजारते देखा न हो, ऐसी बात नहीं थी पर तन्वी को देख कर यह यकीन नहीं आता था कि वह धवल का नाम ले कर जी लेगी.

विदा के समय तन्वी मातापिता और रिश्तेदारों से गले मिल कर कुछ ज्यादा ही रोई थी और फिर दुलहन की तरह वह भी पिया के घर आ गई थी. शहरभर में इस विवाह की खूब चर्चा हुई. स्थानीय अखबार तन्वी की तारीफों से भरे थे. इस प्रेमी युगल की लैलामजनूं, सोहनीमहीवाल, हीररांझा, शीरींफरहाद आदि से तुलना की गई.

कई अखबारों ने तन्वी को पुरातन प्रेमिकाओं से भी ज्यादा महान बताया, क्योंकि उन के प्रेमी धवल की तरह चंद महीनों के मेहमान नहीं थे. तन्वी ने यह जानते हुए भी कि धवल का साथ कुछ ही समय का है, फिर भी उस से विवाह किया था. सारे शहर के साथसाथ हम भी चकित थे.

विवाह के बाद तन्वी ने धवल की प्राणपण से सेवा की. उसे पक्का विश्वास था कि वह पति को यमराज से छीन लेगी. धवल के प्रति उस की निष्ठा देख कर मैं द्रवित हो उठती और मन ही मन पछताती कि मैं ने तन्वी के बारे में बिना किसी प्रमाण के कितनी गलत धारणा बना ली थी. चेहरा दिल का आईना होता है, तन्वी ने इस बात को गलत साबित कर दिया था. बेचारी लड़की, रातदिन जुटी रहती थी पति की सेवा में.

इसी दौरान तन्वी ने बताया कि वह गर्भवती है. इस समाचार को सुन कर हम खुश नहीं हुए. उस अभागे शिशु ने जन्म से पहले ही पिता को खो देना था. हमें यह भी आशंका थी कि कहीं उसे पिता की बीमारी विरासत में न मिल जाए. तन्वी अलबत्ता खुश थी. वह धवल की उस निशानी को जीवनभर सहेज कर रखना चाहती थी.

बेटे का विद्रोह- भाग 2: क्या शिव ने मां को अपनी शादी के बारे में बताया?

वह मन ही मन लापरवाही से बोला, ‘जो होगा देखा जाएगा. एक दिन तो बताना ही था. आज ही मैं उन्हें बता दूंगा कि मैं ने रोजी के साथ शादी कर ली है, “शुभस्य शीघ्रम.‘’

उस ने मन ही मन अम्मां का सामना करने के लिए अपने को तैयार कर लिया था. रोजी भी घबराई हुई थी, जाने क्या हंगामा होने वाला है. वह मन ही मन डर रही थी. वह अपने कमरे में चली गई थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या करना चाहिए.

“अम्मां आई हैं…” सुनते ही शिव भावुक हो कर लिफ्ट से तेजी से मां से मिलने को आतुर हो नीचे पहुंच गया था. उन के पैर छू कर वह उन से लिपट गया. मांबेटे दोनों की आंखों से आंसू बह निकले थे.

गगन उस की दूर की बूआ का बेटा था. वह भी उसी कंपनी में काम करता था. अम्मां को शायद उस ने ही बताया होगा…

“क्यों शिव, हमें किसी ने बताया है कि तुम ने ब्याह कर लिया है?”

‘धीरे बोलो अम्मां… घर के अंदर चलो. सब बताते हैं.‘

वे घर में घुसते ही सुंदर साजसज्जा को देखती ही  रह गईं, “मुझे लग रहा है कि यह बात सच है कि तुम ने   शादी कर ली है…”

“मेरी बात मत काटो. अब मैं  बिरादरी वालों के सामने क्या मुंह दिखाऊंगी शिव, तुम बहुत ही नालायक निकले… मेरी नाक कटा कर रख दी आदि कह कर रोतीबिसूरती रहीं.

“देखिए अम्मां, शादी तो हम ने कर ली है. अब जैसे बात बने वह करिए.*

“यह तो बताओ कि कौन जाति की है?”

शिव बात बदलते हुए बोले, “अम्मां, पापा कैसे हैं?”

“पापा का तो वही हाल है. पहले भांग का गोला खाते थे, अब तो दारू की बोतल के सिवा उन्हें कुछ नहीं चाहिए.’’

“तुम्हारे जीजा कुंवरपाल और पापा बैठ कर बोतल चढाते हैं… जिज्जी भी लालची हो गई हैं. धीमेधीमे मुझे तो किनारे कर दिया है और खुद ही मालकिन बन गई हैं,‘’ कहतेकहते वे आंसू बहाने लगी थीं.

“बेटा शिव, तुम से हाथ जोड़ कर कह रहे हैं… तुम घर चलो, नहीं तो सारी जायदाद पर तुम्हारे जीजा कब्जा कर लेंगे.‘’

वह अम्मां के साथ बातों में व्यस्त था. लेकिन रोजी को ले कर परेशान था कि तभी रोजी अपने हाथ में ट्रे में चायनाश्ता ले कर आई.

वह उसे देख कर दंग रह गया था, क्योंकि उस ने साड़ी पहन रखी थी. उस ने आते ही अम्मां के पैर छू कर उन का दिल जीत लिया था. उन्होंने प्यार से उसे आशीर्वाद दे कर अपने बगल में बिठा लिया.

‘शिव, बहू तो सुंदर भी है और सलीके वाली भी. किसी अच्छे घरपरिवार की दिखाई पड़ रही है,’ उन्होंने अपने हाथों से सोने के कंगन उतार कर उसे पहना दिए थे. वह मन ही मन डर रहा था कि रोजी अम्मां को यह न बता दे कि वह क्रिश्चियन है.

उस ने रोजी को इशारा कर के वहां से अंदर जाने को बोल दिया और बोला, ‘अम्मां, तुम नहाधो कर तैयार हो जाओ. फिर हम लोग नाश्ता करेंगे… तब तक मैं डाक्टर से बात करता हूं…”

’’लाओ, उन की रिपोर्ट हमें दे दो. तब तक हम देखें कि क्या गड़बड़ है…”

वह पापा की फाइल में रिपोर्ट को बड़े ही ध्यान से पढ़ने लगा था…

सुशीला घर की एकएक चीज को बड़ी बारीकी से देख रही थीं. बाथरूम में रखे शैंपू, फेसवाश, लोशन आदि की बोतलों को उठाउठा कर समझने की कोशिश कर रही थीं. उन्हें अपने घर का सीढ़ियों के नीचे बना हुआ ढाई फुट का अंधेरा सा गुसलखाना, जिस में जीरो पावर का टिमटिमाता बल्ब, जिस में बिजली के गुल होते ही घना अंधेरा छा जाता था. साथ ही, सीलन की अजीब सी बदबू से वहां भरी रहती थी…

यहां उजाले में नहाते हुए बड़े से शीशे में अपने को देख उन्हें सुखद एहसास हुआ था, जिस को उन के चेहरे की मुसकराहट बयान कर रही थी.

जब वे बाहर आईं, तो शिव ने उन के सामने आसन बिछा दिया था, क्योंकि वह जानता था कि अम्मां पहले पूजा करेंगी, तब नाश्ता करेंगी… उन्होंने अपने बैग से कुछ किताबें और माला निकाली… उन की उंगलियां तो माला के दाने सरकाती जा रही थीं, परंतु आंखें तो रोजी के इर्दगिर्द घूम रही थीं.

दोनों के फोन लगातार बज रहे थे, क्योंकि आज उन लोगों की एनिवर्सरी की पार्टी पहले से प्रायोजित थी. उन लोगों के फ्रेंड्स विश कर रहे थे.

“क्यों शिव, आज कुछ खास बात है क्या…? बहुत फोन आ रहे हैं.”

“हां अम्मां, आज पार्टी है… हम लोगों की शादी को पूरे एक साल हो गए हैं…

आप बड़े ही मौके से आई हैं… आप को सब दोस्तों से मिलवाएंगे…”

“नहीं शिव, हम होटल वगैरह में कभी गए नहीं हैं… मुझे नहीं अच्छा लगेगा…”

“वहां रोजी की मां भी आएंगी… आप उन से भी मिल लेना…”

“एक शर्त पर मैं चलूंगी कि तुम घर चलने का वादा करो…”

“ठीक है. रात में  प्रोग्राम सेट करता हूं… पहले डाक्टर से बात कर लूं…”

रोजी समझदार थी. आज  वह इंडियन स्टाइल में तैयार हुई थी. पिंक कलर की साड़ी, चूड़ियां और गजरे में वह बहुत सुंदर लग रही थी. वह इस तरह किसी त्योहार पर ही तैयार हुआ करती थी. शिव रोजी को देखता ही रह गया था.

सुशीलाजी बेटेबहू की सुंदर जोड़ी को देख कर अपने मन की सारी उलझन भूल  कर खुश हो कर बेटेबहू की नजर उतार कर बोलीं, ‘रामसीता सी जोड़ी है‘ और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी.

मां को हंसतेमुसकराते देख  शिव को अम्मां का पहले वाला रोतासिसकता चेहरा याद आ गया था.

शाम को पार्टी में खूब मस्ती हुई. जब रोजी अम्मां का हाथ पकड़ कर डांस के लिए ले कर आई, सब ने  खूब तालियां बजाई थीं.

पल्लव, जो उस का खास दोस्त था, वह बोला, ‘शिव, तू ने सही फैसला ले कर रोजी से शादी कर ली. दोनों कमा रहे हो… गाड़ी ले ली, फ्लैट भी ले लिया, लाइफ को एंजौय कर रहे हो. आज आंटी भी कितनी खुश दिख रही हैं… मुझे देखो, अम्मांपापा की जिद के चक्कर में  35 का हो गया हूं… उन्हें दहेज के साथ ढेर सारा नकद चाहिए, तो मुझे  प्रोफेशनल लड़की चाहिए… बस इसी झमेले के झूले में साल दर साल उम्र बढ़ती जा रही है. मैं तो अपनी जिंदगी से तंग आ गया हूं. मन करता है कि पंखे से लटक जाऊं और जिंदगी से छुट्टी मिल जाए…‘

शिव अपनी उलझनों में उलझा था… अभी पापा का सामना करना है और सब से छिपाना है कि रोजी क्रिश्चियन है… वह स्वयं गहरी सोच में था… उस के चेहरे पर तनाव परिलक्षित हो रहा था…

‘पल्लव इस तरह से जिंदगी से हार नहीं मानते… उस ने उस के कंधे को थपथपा कर कहा, ‘दोस्त यह जिंदगी एक जंग है’ कह कर वहां से  हट कर दूसरे दोस्तों को अटेन करने लगा था…

शिव और अम्मां दोनों ही अपनीअपनी उधेड़बुन में लगे हुए थे…

आज वह अम्मां के बगल में लेटा हुआ लाड़ जता रहा था…

“पार्टी तो बहुत बढिया रही… लेकिन शिव, तुम ने अभी तक नहीं बताया कि तुम्हारी बहू कौन जात की है…

“गगन बता रहा था कि  वह किरिस्तानी है…”

“तो क्या अछूत हो गई… सुंदर है… अच्छे घरपरिवार की है… सब सही है… तो अब किरिस्तानी है…

इसीलिए तो मैं घर आया नहीं… न जीओगी, न ही जीने दोगी… इतना मूड अच्छा था… सब खराब कर के रख दिया…’ वह नाराज हो उठा.

“सब जायदाद कुंवरपाल अपने नाम करवा लेंगे. तुम्हें कुछ भी नहीं मिल पाएगा…” अम्मां ने दूसरा पासा फेंका था.

नाराज शिव बिफर कर बोला, “अम्मां, आज तुम्हें जमीनजायदाद की याद आ रही है. जब स्कूल में मैं फटा जूता पहन कर जाता था… और बच्चे मुझे चिढ़ाया करते थे, तब  तुम लोगों को दर्द नहीं हुआ था…”

“क्या करते शिव… तुम्हारे बाबू के सामने बोलते तो खुद ही पिट जाते…”

“आप भूल गईं होंगीं… जब हम पार्वती के साथ बगीचे में लुकाछिपी खेल रहे थे, तो पापा ने मुझे जाड़े में ठंडे पानी से नहला दिया था कि पार्वती दलित है, अछूत है… तुम ने उसे क्यों छुआ… मैं कांपता रहा, रोताबिलखता रहा… उन्हें जरा भी दया नहीं आई और आप उन की हां में हां मिलाती रही थीं…”

“क्या करते शिव? यदि हम कुछ बोलते, तो वह हमें भी पीटपीट कर अधमरा कर देते…”

इंटरनेशनल बाइकर की पत्नी का प्यार और पैसों का कॉकटेल

राजस्थान के रेतीले शहर जैसलमेर में हर साल मोटरसाइकिल रैली का आयोजन किया जाता है. इस मोटरसाइकिल रैली में बड़ी संख्या में बाइकर्स पहुंचते हैं. इंडिया बाजा ने अंतरराष्ट्रीय बाइकर्स रैली का आयोजन किया था. इस बाइकर्स रैली में देशविदेश के तमाम बाइकर्स भाग लेने के लिए पहुंचे थे.

बेंगलुरु का रहने वाला 34 वर्षीय इंटरनैशनल बाइकर असबाक मोन भी इस रैली में अपने दोस्तों के साथ भाग लेने आया था. यह बात साल 2018 के अगस्त माह की है.

18 अगस्त, 2018 को रैली आयोजित होनी थी. रैली से पहले 15 अगस्त को असबाक रैली का ट्रैक देखने व उस का जायजा लेने के लिए अपने दोस्तों के साथ वहां गया था. राइडिंग ट्रैक देखने के बाद दूसरे दिन 16 अगस्त गुरुवार को असबाक प्रैक्टिस के लिए भी दोस्तों के साथ गया था.

राइडिंग के दौरान असबाक अपने दोस्तों से बिछुड़ गया और रास्ता भटक गया. राइडिंग के बाद एकएक कर असबाक के साथी होटल में लौट आए. शाम तक असबाक लौट कर नहीं आया. जब दोस्तों ने उस के मोबाइल पर फोन किया तो मोबाइल लगातार आउट औफ रीच आ रहा था.

सुबह से शाम और रात हो चली थी. सभी दोस्त असबाक के वापस आने का इंतजार करते रहे, लेकिन असबाक वापस नहीं आया और न ही उस की कोई खबर ही मिली.

रैली शुरू होने से पहले ही एक इंटरनैशनल बाइकर के अचानक लापता होने की खबर दूसरे दिन पुलिस तक पहुंची. इस पर जैसलमेर क्षेत्र के थाना शाहगढ़ के थानाप्रभारी करन सिंह पुलिस टीम के साथ दोस्तों के होटल पहुंच गए. लापता असबाक के बारे में उस के दोस्तों से पूरी जानकारी ली.

दोस्तों ने बताया कि राइडिंग के दौरान रेतीले रास्ते में हम लोग एकदूसरे से बिछुड़ गए थे.

इस के बाद पुलिस दोस्तों के साथ रेगिस्तान के धोरों में असबाक की तलाश करने के लिए निकल गई. घंटों की तलाश व छानबीन के बाद भी असबाक का कोई सुराग नहीं मिला. दोस्त और पुलिस वापस आ गई.

तलाश के दौरान 3 दिन बाद यानी 18 अगस्त को उस की लाश एक रेतीले इलाके में जमीन पर पड़ी मिली. लाश के पास ही स्टैंड पर खड़ी उस की बाइक मिली, जिस के हैंडिल पर हेलमेट लटका था. उस की पानी की बोतल खाली थी.

इस के बाद पुलिस ने लापता असबाक के परिजनों को जानकारी दी. जानकारी मिलते ही बेंगलुरु से पत्नी सुमेरा परवेज व असबाक के ससुर जैसलमेर पहुंच गए.

पुलिस ने माना भूखप्यास से हुई मौत

जांच के दौरान पता चला कि रेतीले इलाके में असबाक रास्ता भटक गया था. उस का पीने का पानी भी खत्म हो गया था. गरमी, भूख और प्यास के चलते उस की मौत हो गई थी. उस का मोबाइल भी मिल गया, लेकिन असबाक ऐसे इलाके में पहुंच गया था, जहां नेटवर्क नहीं आ रहा था.

असबाक की लाश मिलने के बाद घर वालों ने भी किसी पर शक नहीं जताया. पत्नी सुमेरा ने पुलिस को जो तहरीर दी उस में कहा गया था, शायद रास्ता भूल जाने के बाद भूखप्यास से उस की मौत हुई होगी. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. इसलिए अपने पति की मौत पर उसे किसी पर कोई शक नहीं है.

इस के चलते पुलिस ने भी आगे की जांच में कोई रुचि नहीं दिखाई. पुलिस ने लाश का पोस्टमार्टम कराने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया.

असबाक की मौत को हादसा मानते हुए पुलिस इस मामले को हमेशा के लिए बंद करना चाहती थी. कानूनी प्रक्रिया में लगभग 3 साल लग गए थे. इस बीच पुलिस टीम भी बदल चुकी थी.

3 साल पुराने इस केस को बंद करने के लिए साल 2021 में आए नए एसपी डा. अजय सिंह के सामने क्लोजर रिपोर्ट के लिए इस केस की फाइल को रखा गया. क्लोजर रिपोर्ट पर दस्तखत करने से पहले एसपी साहब एक बार इस केस फाइल को पढ़ना चाहते थे.

एसपी साहब ने क्लोजर रिपोर्ट पर दस्तखत करने से पहले इस रहस्यमयी मौत की फाइल व पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गौर से पढ़ा, जिस में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. जिसे पढ़ कर वह हैरान रह गए.

असबाक के रास्ता भटकने और भूख, प्यास से हुई मौत को उस समय जहां सामान्य माना गया था, लेकिन ऐसा था नहीं. अब इस मामले में नया मोड़ आ चुका था.

एसपी डा. अजय सिंह ने 3 साल बाद फिर से कराई केस की जांच

एसपी को फाइल में घटनास्थल का फोटो देखने के बाद संदेह हुआ. फोटो में असबाक जमीन पर गिरा पड़ा था. उस के पास ही उस की बाइक खड़ी दिखाई दे रही थी, जिस के हैंडिल पर हेलमेट टंगा था. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मामला इस के उलट दिखाई दिया.

रिपोर्ट में असबाक की मौत का कारण गरदन की हड्डी टूटी होना बताया गया था. ऐसी हालत में उस व्यक्ति की तत्काल मौत हो जाती है या पैरालिसिस हो जाता है. यदि पहले चोट लगी होगी तो कोई भी व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता है.

अब प्रश्न यह उठता है कि जब असबाक खड़ा ही नहीं हो सकता, तब उस की बाइक स्टैंड पर किस ने खड़ी की? साथ ही हेलमेट बाइक के हैंडिल पर किस ने टांगा? आशंका व्यक्त की गई कि असबाक के साथ कोई दूसरा व्यक्ति भी था.

दूसरी बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के पेट में आधा पचा भोजन था. चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार पेट में भोजन होने पर भूख से मौत नहीं हो सकती.

एसपी डा. अजय सिंह ने इसे सामान्य मौत नहीं मानते हुए एक सुनियोजित हत्या का मामला होने की आशंका व्यक्त की. इस संबंध में संबंधित थाना शाहगढ़ में मामला दर्ज किया गया. साथ ही डीएसपी भवानी सिंह को इस मामले की फिर से तफ्तीश करने का जिम्मा सौंपा.

डीएसपी भवानी सिंह ने गहन जांचपड़ताल शुरू की. सब से पहले उन्होंने मौकाएवारदात को फिर से देखने का निर्णय लिया. घटनास्थल राजस्थान के जैसलमेर जिले से 150 किलोमीटर दूर थाना शाहगढ़ के क्षेत्र में था. इस बीच उन की टीम भी जांच कार्य में सहयोग के लिए जुट गई.

घटनास्थल रेगिस्तान में था. जहां असबाक की लाश मिली थी, वहां रेत के टीलों के अलावा बाइक व जमीन पर ऐसी कोई चीज नहीं थी, जिस से दुर्घटना जैसी कोई बात नजर आ रही हो. असबाक के शरीर पर किसी प्रकार का कोई जख्म भी नहीं था.

जांच में यह बात भी सामने आई कि असबाक के लापता होने के बाद उस के तीनों दोस्तों ने उस की तलाश भी नहीं की थी. डीएसपी भवानी सिंह के अनुसार प्रैक्टिस के लिए असबाक के साथ उस के 5 दोस्त गए थे. इन में 2 विदेशी दोस्त आरोन और बैंजी के अलावा बेंगलुरु के संजय व विश्वास तथा केरल का साबिक शामिल था.

इस संबंध में पुलिस ने मृतक के परिजनों से संपर्क किया. मृतक के भाई अरशद व मां सुबेदा ने जो जानकारी दी, वह चौंकाने वाली थी. उन्होंने बताया, ‘‘पतिपत्नी के संबंध अच्छे नहीं थे. कुछ साल पहले असबाक की पत्नी सुमेरा ने किराए के गुंडों से असबाक की पिटाई भी कराई थी.’’

उन्होंने पत्नी पर असबाक की हत्या कराने का आरोप लगाया.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने इस मामले में सुमेरा व असबाक के दोस्तों को अपने बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस भेजा. नोटिस के बावजूद सुमेरा व पति के दोस्त जैसलमेर नहीं आए.

इस बीच पुलिस ने तीनों दोस्तों के साथ ही पत्नी सुमेरा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच में अनेक साक्ष्य मिले.

इस के बाद जैसलमेर पुलिस बेंगलुरु गई और असबाक के दोस्त विश्वास व संजय को हिरासत में ले कर जैसलमेर लौट आई.

पूछताछ के बाद दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस संबंध में जो दिलचस्प व हैरान कर देने वाली कहानी दोस्तों ने बताई, वह इस प्रकार निकली—

असबाक मूलरूप से केरल के कुन्नूर जिले का रहने वाला था. वह बेंगलुरु में एक निजी कंपनी में काम करता था. असबाक बेंगलुरु के आरटी नगर में रहता था. बेंगलुरु से पहले वह दुबई में काम करता था. वह एक अंतरराष्ट्रीय बाइक राइडर था. असबाक की अपनी पत्नी सुमेरा से नहीं बनती थी.

सुमेरा का नीरज नाम के एक युवक से अफेयर चल रहा था. उस की अपने प्रेमी से मोबाइल पर लंबी बातें होती थीं. सुमेरा अपने पति असबाक को पसंद नहीं करती थी.

उस की नजर करोड़पति बाइकर पति असबाक की दुबई और बेंगलुरु की प्रौपर्टी पर थी. वह चाहती तो पति को तलाक दे सकती थी, लेकिन ऐसा करने पर उस के हाथ से प्रौपर्टी निकल जाती. इसलिए शातिर पत्नी ने तलाक की जगह कत्ल को चुना.

असबाक के दोस्त संजय व विश्वास भी बाइकर थे, जबकि अब्दुल साबिक वीडियोग्राफर था. सुमेरा ने इन के साथ षडयंत्र रच कर असबाक की हत्या की योजना बनाई. इस के लिए उस ने तीनों दोस्तों को असबाक की हत्या की सुपारी दी.

2 हजार किलोमीटर दूर ले जा कर की हत्या

असबाक की हत्या को बेंगलुरु से 2 हजार किलोमीटर दूर राजस्थान के जैसलमेर के सुनसान रेगिस्तान में अंजाम देने को चुना गया.

योजनानुसार दोस्तों ने असबाक से जैसलमेर में आयोजित होने वाली इंडिया बाजा औफ रोड रैली में भाग लेने के लिए कहा. असबाक इस के लिए राजी हो गया.

जैसलमेर में असबाक को उस के 2 विदेशी दोस्त भी मिल गए, जो बाइक रैली में भाग लेने आए हुए थे. तीनों दोस्त असबाक को 16 अगस्त की सुबह साजिशन सुनसान रेगिस्तान इलाके में ले गए. पूर्व नियोजित षडयंत्र के तहत तीनों ने राइडिंग के लिए 2 रूट ए और बी निर्धारित किए.

योजनानुसार विदेशियों को ए रूट पर जाने को कहा गया. जबकि असबाक और उस के तीनों दोस्त बी रूट पर प्रैक्टिस के लिए निकले थे. ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि वे असबाक की हत्या आसानी से कर सकें.

विदेशी दोस्तों को अलग रूट पर भेज कर वे असबाक के साथ दूसरे रूट पर निकल गए. दूर सुनसान रेगिस्तान के टीलों के बीच पहुंच कर तीनों ने असबाक को दबोच लिया और उस की गरदन मरोड़ कर हत्या कर दी.

हत्या के राज को छिपाने और दुर्घटना का रूप देने के लिए उस की बाइक को स्टैंड पर खड़ा कर असबाक का हेलमेट हैंडिल पर टांग दिया.

इस के साथ ही उस की पानी की बोतल को खाली कर दिया. ताकि ऐसा लगे कि रास्ता भटक जाने के बाद गरमी, भूख व प्यास के चलते उस की मौत हो गई.

तीनों दोस्त हत्या के बाद होटल लौट आए और असबाक के लापता होने का नाटक करने लगे. संजय ने लौटने के बाद दोपहर एक बजे अपने मोबाइल पर स्टेटस लगाया कि मैं होटल आ चुका हूं. जबकि उस के दोनों दोस्तों के मोबाइल शाम 6 बजे छतरैल टावर की रेंज में औन हुए.

डीएसपी भवानी सिंह ने स्वीकार किया कि यदि तत्कालीन जांच अधिकारी असबाक के दोस्तों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स व लोकेशन चैक कर लेते तो हत्या का राज 3 साल पहले ही खुल जाता. यहां पुलिस से चूक हो गई थी.

पत्नी और दोस्त भगोड़ा घोषित

पति की हत्या की मास्टरमाइंड सुमेरा ने हत्या की साजिश को पूरी तरह फूलप्रूफ रचा था. असबाक की हत्या के बाद उस की बाइक को स्टैंड पर खड़ा करना ही हत्यारों की सब से बड़ी गलती साबित हुई.

3 साल बाद नए एसपी डा. अजय सिंह की नजरों से से यह गलती छिपी नहीं रह सकी और हत्या का राज उजागर हो ही गया.

इस हाईप्रोफाइल मर्डर में फरार चल रही पत्नी सुमेरा व केरल निवासी दोस्त साबिक की तलाश में पुलिस टीम बेंगलुरु और केरल भी गई. लेकिन अभी तक दोनों का पता नहीं चल पाया है. दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ मिले तथा घर पर ताला लगा मिला.

दरअसल, पुलिस को यह जानकारी मिली कि साबिक ने केरल हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी.

इस पर पुलिस ने न्यायिक प्रक्रिया के तहत लगभग 25 पेज की फैक्चुअल रिपोर्ट (तथ्यात्मक रिपोर्ट) हाईकोर्ट में पेश की और साबिक को जमानत देने का विरोध किया.

इस पर कोर्ट ने पुलिस रिपोर्ट का मूल्यांकन करते हुए साबिक की जमानत याचिका खारिज कर दी. इस के बाद जैसलमेर न्यायालय से दोनों की गिरफ्तारी का वारंट भी जारी करा दिए. दोनों जांच में पुलिस का सहयोग नहीं कर रहे थे तथा जांच के लिए पुलिस के सामने भी उपस्थित नहीं हो रहे थे.

ऐसे में पुलिस ने इसी साल जनवरी 2022 में न्यायिक कानूनी प्रक्रिया के तहत उन्हें भगोड़ा घोषित कर नोटिस दोनों के घरों पर चस्पा करा दिए.

अब पुलिस को दोनों की किसी भी कोर्ट से जमानत मिलने की उम्मीद कम ही है. जैसलमेर पुलिस पहले ही लुक आउट नोटिस जारी कर चुकी है, ऐसे में इन के विदेश भागने की आशंका नहीं के बराबर है.

3 साल पहले पुलिस ने जिस केस को हादसा समझा था, वह एक हाईप्रोफाइल हत्या थी. प्रेमी के प्यार में अंधी हो चुकी बेवफा पत्नी ने प्रौपर्टी हड़पने के लिए गद्दार दोस्तों के जरिए एक प्रतिभाशाली अंतरराष्ट्रीय बाइकर की निर्मम हत्या करा कर दोस्ती व रिश्तों को कंलकित कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बीसी सखियों को वर्दी के रूप में मिलेगी निफ्ट की डिजाइन की साड़ियां

महिलाओं को सशक्त बनाने और राज्य में हथकरघा बुनकरों के लिए रोजगार के व्यापक अवसर पैदा करने के दोहरे उद्देश्य को पूरा करते हुए, योगी सरकार बीसी-सखियों को निफ्ट रायबरेली द्वारा डिजाइन की गई एक लाख से अधिक साड़ियां देगी.

हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यूपी सरकार बीसी सखी योजना के तहत काम करने वाली महिलाओं को वर्दी के रूप में दो हैंडलूम साड़ियां उपलब्ध कराएगी. इसके लिए सरकार हैंडलूम बुनकरों द्वारा बनाई गई साड़ियों को खरीदेगी.

काम में शामिल बुनकरों को डीबीटी के जरिए 750 रुपये प्रति साड़ी मजदूरी दी जाएगी.

यूपी हैंडलूम के एमडी केपी वर्मा ने बताया कि बीसी-सखी के रूप में काम करने वाली 58,000 महिलाओं में से प्रत्येक को सरकार द्वारा दो साड़ियां दी जाएंगी.

निफ्ट द्वारा भेजे गए डिजाइनों को मुख्यमंत्री ने पहले ही मंजूरी दे दी है और साड़ियों की बुनाई का काम प्रगति पर है. प्रत्येक साड़ी की कीमत 1934.15 रुपये और विभाग को 1.16 लाख साड़ी और ड्रेस सामग्री के लिए 22,43,61,400 रुपये की राशि जारी की गई है.

यूपी हथकरघा विभाग ने इस संबंध में पांच उत्पादक कंपनियों को साड़ियां बनाने का काम सौंपा है जिनमें से 3 वाराणसी जिले से और एक-एक मऊ और आजमगढ़ से हैं.

यूपी हथकरघा पहले ही लगभग 537 बुनकरों को 1.20 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है और 12,837 से अधिक साड़ियां तैयार हैं.

केपी वर्मा के अनुसार “कोविड-19 के कारण प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों के कारण बुनकरों के लिए रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया था. इस योजना के माध्यम से बुनकर को रोजगार प्रदान किया गया है. साथ ही इस योजना ने बिचौलियों की भूमिका को समाप्त कर दिया है और पैसा सीधे उनके बैंक खाते में स्थानांतरित किया जा रहा है. योजना के अंतर्गत आने वाले बुनकरों को अधिक से अधिक लाभ मिल रहा है और इसके परिणामस्वरूप अन्य हथकरघा बुनकर भी इस योजना की ओर आकर्षित हो रहे हैं और उत्पादक कंपनियों में अपना नामांकन करा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक मौजूदा ग्राम पंचायत के लिए 21 मई 2020 को 58,000 बीसी सखियों को शामिल करने की घोषणा की थी. बीसी सखियों गांव में लोगों की बैंकिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए वन-स्टॉप समाधान उपलब्ध कराती हैं, वह भी घर पर.

महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्यों को बीसी सखियों के रूप में शामिल करने से वित्तीय समावेशन, समय पर पूंजीकरण, एसएचजी लेनदेन के डिजिटलीकरण और समुदाय के समग्र विकास को सुनिश्चित करने में मदद मिलती है. यह महिलाओं की उद्यमशीलता क्षमताओं के निर्माण के उद्देश्य को और मजबूत करता है.

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं लेकिन वह शादीशुदा है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. वह शादीशुदा है. उस की शादी उस के घर वालों ने जब वह 18 साल का था तभी कर दी थी. वह शादी नहीं करना चाहता था. पर घर में इस बात को ले कर रोज झगड़ा होता. उसे घर से निकालने की धमकी दी जाती. इसी दबाव के चलते मजबूरन उसे शादी करनी पड़ी. वह अपनी पत्नी से बात भी नहीं करता. मैं कुछ कहती हूं तो उदास हो जाता है. हम दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं. एकदूसरे के बिना जिंदा नहीं रह सकते, मगर साथ भी नहीं रह सकते. क्या करें?

जवाब

आप का प्रेमी शादीशुदा है. उस की शादी भले ही घर वालों के दबाव में हुई हो पर उस की अपनी पत्नी है, घरपरिवार है बावजूद इस के वह यदि आप से संबंध रखे हुए है, तो इस से उस का दांपत्य जीवन तो बरबाद होगा ही, आप को भी कुछ हासिल होने वाला नहीं है. वह अपनी पत्नी से बात करता है या नहीं यह बात माने नहीं रखती.

सच तो यह है कि वह उस की वैध पत्नी है. समाज में उस की ब्याहता पत्नी की ही इज्जत होगी और आप से उस के संबंध जितने भी मधुर हों, अवैध ही कहलाएंगे. इसलिए अच्छा होगा कि आप इस नाजायज संबंध को समाप्त कर के आगे बढ़ें और कोई उपयुक्त रिश्ता देख कर विवाह कर लें. इसी में आप दोनों की भलाई है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मेरे अपने- भाग 3: उसके अपनों ने क्यों धोखा दिया?

‘‘किस बात का डर?’’

‘‘क्या महेन से शादी कर के मैं सही कदम उठा रही हूं.’’

‘‘अरे, पागल हुई हो क्या? यह सब सोचने लग गईं आप?’’

‘‘बूआ की बातों ने मन में भारी डर पैदा कर दिया है.’’

‘‘ओह, दीदी, तुम तो जानती हो बूआ को, तिल का ताड़ बना देती हैं.’’

‘‘फिर भी जरा सोचा जाए तो महेन के बारे में हम जानते ही क्या हैं? न उस के घरवालों से मिले हैं. पता नहीं हमारी निभेगी या नहीं.’’

‘‘ओह दीदी, अब यह सब सोचना छोड़ो.’’

‘‘जब शादी की उम्र थी तो शादी न की, अब इस ढलती उम्र में दुलहन बनूंगी तो लोग हंसेंगे नहीं?’’

‘‘लोगों के कहने की, हंसने की तुम्हें इतनी परवा क्यों है? दीदी, तुम्हारा मन गवाही देता है कि महेन भला आदमी है, तुम्हारे योग्य है तो और क्या चाहिए.’’

‘‘सोचती हूं, अब शादी कर के क्या होगा? तुम और दिनेश तो हो ही सहारे के लिए. क्यों राधिका, तू अपनी दीदी को बुढ़ापे में सहारा देगी न?’’

राधिका भावविभोर हो कर अंबिका से लिपट गई, ‘‘वाह… दीदी, यह भी कोई पूछने की बात है? यदि तुम ने आसरा न दिया होता तो मैं और मेरे बच्चे भीख मांगते होते. दिनेश को तो तुम जानती हो, जमानेभर का नकारा.’’

‘‘छोड़ वह सब. अब यह तय रहा, मैं महेन से शादी नहीं करूंगी.’’

‘‘अच्छी तरह सोचविचार कर लो.’’

‘‘सोच चुकी.’’

अगली सुबह अंबिका उठी तो ऐसा लग रहा था कि मन में एक भारी बो?ा उतर गया है. घर से निकल कर रिकशे की तलाश में नजरें घुमा रही थी कि अचानक कानों में आवाज पड़ी, ‘‘अंबिका, तुम?’’

उस ने चौंक कर सिर उठाया. अविनाश उस के सामने खड़ा था.

यह सोच कर अंबिका के होंठ संकुचित हुए, माथे पर बल पड़ गए कि यही वह फरेबी था जो शादी की बेदी पर उसे ठुकरा कर चला गया था.

‘‘अंबिका, क्या तुम्हारे पास थोड़ा समय है? मेरे साथ एक प्याला कौफी पी सकती हो?’’

अंबिका को हिचकिचाते देख उस ने आग्रह किया, ‘‘मैं तुम्हारा ज्यादा समय नहीं लूंगा.’’

अंबिका अनिच्छा से बैठी कौफी के प्याले में चम्मच डुलाती रही.

‘‘अंबिका,’’ अविनाश बोला, ‘‘मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं.’’

हां, सो तो तुम हो ही, अंबिका ने मन ही मन कहा, पर प्रत्यक्ष में वह बोली, ‘‘अब इन बातों से फायदा?’’

अविनाश पलभर के लिए गंभीर हो गया और बोला, ‘‘जानता हूं, गड़े मुरदे उखाड़ने से कोई फायदा नहीं, पर आज इतने सालों बाद तुम्हें अचानक देखा तो मु?ा से रहा नहीं गया. सोचा, दो बातें कर के अपने मन का बो?ा हलका कर लूं. तुम्हारे साथ भारी अन्याय हुआ और तुम ने मु?ो कोसा भी होगा, पर हमारी शादी टूटने की एक वजह थी.

‘‘शादी के चंद रोज पहले तुम्हारे बहनबहनोई मेरे मातापिता से मिलने आए थे. उन्होंने मेरे मांबाप के कान भरे, तुम्हारे बारे में काफी जहर उगला. उन्होंने कहा कि तुम चरित्रहीन हो. कालेज में किसी प्रकाश नाम के लड़के के साथ तुम्हारा रोमांस चला था और तुम काफी बदनाम हो गई थीं. तुम शादी के बंधन में भी नहीं बंधना चाहती थीं, वगैरहवगैरह.’’

अंबिका स्तब्ध रह गई, ‘‘?ाठ, बिलकुल ?ाठ,’’ उस ने तड़प कर कहा.

‘‘जानता हूं, यह सब ?ाठ ही रहा होगा. पता नहीं तुम्हारे परिवार वालों को तुम से क्या नाराजगी थी जो उन्होंने तुम्हारी इतनी बुराई की. हमेशा शादीब्याह के मामले में दूसरे लोग जलन के मारे भांजी मार देते हैं, बनाबनाया काम बिगाड़ देते हैं, पर ये लोग तो तुम्हारे अपने थे, तुम्हारे निकटतम संबंधी थे.

‘‘उन की बातों से मेरे मांबाप बुरी तरह भड़क गए. उन्हें लगा उन के साथ भारी धोखा हो रहा है. उन्होंने आव देखा न ताव, चटपट मंगनी तोड़ दी और मु?ो लिख भेजा.’’

‘‘छोडि़ए भी,’’ अंबिका ने उपेक्षा से कहा, ‘‘जो बीत गया सो बीत गया.’’

‘‘तुम्हारा कहना ठीक है,’’ कुछ देर बाद अविनाश ने कहा, ‘‘अच्छा, तो मैं विदा लेता हूं.’’

उस के जाने के बाद अंबिका मर्माहत सी बैठी रही. उस के मन में एक कोलाहल मचा हुआ था. उस के अपनों ने ही उस से छल किया था. ऐसा क्यों किया था उन्होंने? क्यों वे अंबिका की खुशियों के आड़े आए थे? क्यों उन्होंने अंबिका का घर न बसने दिया?

उस का मन रो उठा. इतना बड़ा विश्वासघात, इतना भारी छल, क्या यह सब सिर्फ इसलिए कि अंबिका उन का पालनपोषण कर रही थी? उस ने उन्हें रहने के लिए आश्रय दे रखा था? शायद उन्हें डर था कि अंबिका की शादी हुई तो वे घर से बेघर हो जाएंगे और उन की आमदनी का जरिया भी जाता रहेगा. अपने स्वार्थ के लिए उन्होंने अंबिका की खुशियों का गला घोंटा था.

लेकिन अब और नहीं, अंबिका अब किसी के हाथों की कठपुतली नहीं बनेगी, अब वह किसी के इशारों पर नहीं नाचेगी.

वह यंत्रवत उठी और टैलीफोन की ओर बढ़ी.

‘‘हैलो,’’ उधर से महेन बोला, ‘‘अरे, अंबिका तुम, कहो, कैसे याद किया?’’

‘‘महेन, हमारी शादी कब की तय है?’’ उस ने सूखे कंठ से पूछा.

‘‘अरे, यह भी भूल गईं क्या? अगले रविवार को ही तो हमारा गठबंधन है.’’

‘‘महेन, क्या तुम अभी, इसी वक्त शादी नहीं कर सकते?’’

‘‘यह क्या कह रही हो? शादी के कार्ड बांटे जा चुके हैं, सगेसंबंधियों का जमघट होगा.’’

‘‘महेन, हमें किसी शोरशराबे की क्या आवश्यकता है? चलो न, हम अभी शादी कर लेते हैं, किसी मंदिर में…’’

‘‘लेकिन, इस उतावलेपन की वजह?’’ महेन का आश्चर्य से भरा स्वर उभरा.

‘‘नहीं जानती, नहीं बता सकती, बस, इतना ही जानती हूं कि अब तुम से एक पल का विछोह बरदाश्त के बाहर है. अब यह दूरी असहय है, मैं तुम्हारी होना चाहती हूं, जल्द से जल्द. प्लीज, महेन, मेरी इतनी सी बात रख लो. बोलो, आओगे न? मैं यहां इस रैस्तरां में तुम्हारी राह देख रही हूं.’’

कुछ देर सन्नाटा छाया रहा. अंबिका सांस रोके वहीं खड़ी रही. उसे लगा कुछ ही पल में एक युग बीत गया हो. फिर उस ने सुना महेन कह रहा था, ‘‘मैं आ रहा हूं.’’

ज्योति- भाग 4: क्या सही था उसका भरोसा

‘‘अब आप को जातपांत का ध्यान आ रहा है, तब क्यों नहीं आया था जब नेहा दीदी के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा?’’ ज्योति कुछ भावुक स्वर में बोली. उसे मन में थोड़ी शंका भी हुई कि कहीं मनीष उस की बातों का बुरा न मान जाए, आखिर वह इस घर में सिर्फ एक खाना पकाने वाली ही थी.

मनीष ने ज्योति की इस नसीहत का बुरा नहीं माना. वह खुद भी नेहा को इस तरह रुला कर अच्छा महसूस नहीं कर रहा था. एक लंबे अरसे से वह और नेहा एकदूसरे के करीब थे. दोनों ने एकदूसरे के साथ जीनेमरने के वादे किए थे. कितनी ही बार दोनों ने अलग होने का फैसला लिया, मगर कुछ पलों की जुदाई भी दोनों से बरदाश्त नहीं होती थी.

मनीष को ज्योति की बात में सचाई लगी. जातपांत के ढकोसलों में आ कर नेहा जैसी लड़की को खोना बहुत बड़ी बेवकूफी थी, जो उसे टूट कर चाहती थी और हर हाल में उस का साथ देने को तैयार थी.

‘‘अब चाहे कुछ भी हो जाए. नेहा ही मेरी जीवनसंगिनी बनेगी,’’ मनीष के शब्दों में सचाई की झलक थी.

ज्योति मुसकरा उठी. उस की एक कोशिश से 2 दिल टूटने से बच गए थे.

उसी दिन नेहा से माफी मांग कर मनीष ने उस से शादी का वादा किया. रही बात घरवालों की, तो उन्हें भी किसी तरह मानना होगा, और वह उन्हें राजी कर के रहेगा.

रक्षाबंधन से ठीक एक दिन पहले सुमित के लिए उस की छोटी बहन की राखी आई थी. रोहन और मनीष की कोई बहन नहीं थी. तो इस दिन उन दोनों की कलाई सूनी रह जाती थी. नहाधो कर नया कुरतापजामा पहन कर सुमित ने उल्लास से लिफाफा खोल कर राखी निकाली. ज्योति से उस ने छुटकी की भेजी राखी अपनी कलाई में बंधवा ली. एक राखी ज्योति ने भी उसे अपनी ओर से बांध दी.

रोहन मनीष के साथ बैठा मैच देख रहा था. हाथ में राखी के 2 चमकीले धागे लिए ज्योति आई.

‘‘भैया, मैं आप दोनों के लिए भी राखी लाई हूं. असल में, मेरा कोई सगा भाई नहीं है, तो आप तीनों  को ही मैं भाई मानती हूं.’’

रोहन और मनीष ने भी खुशीखुशी ज्योति से राखी बंधवाई.

उसी शाम तीनों दोस्त बैठ कर छुट्टी वाले दिन का आनंद ले रहे थे. ‘‘यार सुमित, नेहा से शादी कर के मुझे अलग फ्लैट लेना पड़ेगा, तुम लोगों के साथ बिताए ये दिन बहुत याद आएंगे,’’ मनीष ने कहा.

‘‘और हम क्या यों ही कुंआरे रहेंगे?’’ रोहन ने उस की पीठ पर धप्प से एक हाथ मारा, ‘‘क्यों, है न सुमित? तेरी और मेरी भी शादी हो जाएगी.’’

फिर सब अपनीअपनी जिंदगी में मस्त भविष्य के सपनों में तीनों कुछ देर के लिए खो गए. लेकिन सुमित कुछ और ही सोच रहा था.

शादी की बात पर उसे न जाने क्यों सुरेश का खयाल आ गया. इतने अच्छे स्वभाव वाला सुरेश अपने निजी जीवन में निपट अकेला था. ‘‘यार, मैं सोच रहा हूं किसी का घर बसाना अच्छा काम है, मेरी जानपहचान में एक सुरेश है, वही गैराज वाला,’’ सुमित ने रोहन की तरफ देखा. रोहन सुरेश को जानता था. ‘‘अगर कोई सलीकेदार महिला सुरेश की जिंदगी में आ जाए तो कितना अच्छा हो.’’

‘‘सही कहा तुम ने, बहुत भला है बेचारा,’’ रोहन समर्थन में बोला.

कुछ देर खामोशी छाई रही, शायद अपनेअपने तरीके से सब सोच रहे थे.

‘‘एक बहुत नेक औरत है मेरी नजर में,’’ तभी तपाक से रोहन बोला.

‘‘कौन?’’ मनीष और सुमित ने एकसाथ पूछा.

‘‘हमारी ज्योति दीदी, और कौन?’’

दोनों ने रोहन को अजीब सी नजरों से घूरा.

‘‘यार, ऐसे क्यों देख रहे हो. कुछ गलत थोड़े ही बोला मैं ने. एक चोरउचक्के को भी जिंदगी में दूसरा मौका मिल जाता है तो फिर एक विधवा क्यों दूसरी शादी नहीं कर सकती? औरत को भी दूसरी शादी करने का उतना ही हक है जितना मर्द को. और फिर मुन्नी के बारे में सोचो. इतनी छोटी सी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया, आखिर उस को भी तो एक पिता का प्यार मिलना चाहिए कि नहीं? बोलो, क्या कहते हो?’’

रोहन की बात सौ फीसदी सच थी. ज्योति कम उम्र में ही विधवा हो गई थी. उसे पूरा अधिकार था कि वह किसी के साथ एक नया जीवन शुरू कर सके, जो उस का और उस की बेटी का सहारा बन सके. उस के जैसी व्यवहारकुशल और भली औरत किसी का भी घर संवार सकती थी.

तीनों दोस्तों की नजर में सुरेश के लिए ज्योति एकदम फिट थी. ‘‘लेकिन ज्योति मानेगी क्या?’’ मनीष ने शंका जाहिर की.

‘‘मैं मनाऊंगा ज्योति दीदी को,’’ सुमित बोला.

उसी शाम जब ज्योति उन तीनों का खाना पका कर निपटी और मुन्नी भी अपनी पढ़ाई कर चुकी तो सुमित ने उसे रोक लिया.

‘‘बोलो, क्या बात करनी थी भैया,’’ ज्योति ने पूछा.

बड़े नापतोल कर शब्दों को चुन कर सुमित ने अपनी बात ज्योति के सामने रखी. वह कुछ अन्यथा न ले ले, इस बात का उस ने पूरा ध्यान रखा.

सिर झुकाए सुमित की बातों को चुपचाप सुनती रही ज्योति. आज तक उस के अपने सगे रिश्ते वालों ने उस का घर बसाने की चिंता नहीं की थी. वह अकेली ही अपने दम पर अपना और अपनी बेटी का पेट पाल रही थी. उस ने कभी किसी से सहारे की उम्मीद नहीं की थी. लेकिन खून का रिश्ता न होने पर भी उस के ये तीनों मुंहबोले भाई आज उस के भले के लिए इतने फिक्रमंद हैं, यह सोच कर ही ज्योति की आंखों से आंसू बह चले.

उसे इस तरह से रोता देख तीनों के चेहरे पर परेशानी के भाव आ गए. सुमित को लगा शायद उसे यह सब नहीं कहना चाहिए था.

‘‘देखो ज्योति, रो नहीं, हम तुम्हारी और मुन्नी की भलाई चाहते है, बस. एक बार सुरेश से मिल लो, फिर आगे जो तुम्हारी मरजी,’’ सुमित ने प्रयास किया उसे शांत कराने का.

‘‘भैया, मैं तो इसलिए रो रही हूं कि आज मुझे अपने और पराए की पहचान हो गई. जो मेरे अपने हैं, वे कभी मेरे सुखदुख में काम नहीं आए और एक आप हो, जिन से खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी आप लोगों को मेरी और मेरी बेटी की चिंता है,’’ कुछ सयंत हो कर अपनी गीली आंखें पोंछती हुई वह बोली, ‘‘यह सच है कि एक पिता की जगह कोईर् नहीं ले सकता. मेरी बेटी पिता के प्यार से हमेशा महरूम रही है. मगर मैं ने उसे मां और बाप दोनों का प्यार दिया है. अगर आप लोगों को यकीन है कि कोई नेक इंसान मेरी बेटी को सगी बेटी की तरह प्यार देगा, तो मैं भी आप पर भरोसा करती हूं.’’

बात बनती देख तीनों के चेहरे खिल गए. 2 अधूरे लोगों को मिला कर उन के जीवन में खुशियों की बहार लाने से बढ़ कर भला और क्या नेकी हो सकती थी.

सुरेश और ज्योति की एक औपचारिक मुलाकात करवाई गई. तीनों ने पूरी तसल्ली के बाद ही ज्योति के लिए सुरेश जैसे इंसान को चुना था. सुरेश ने सहर्ष ज्योति और मुन्नी को अपना लिया, एकाकी जीवन के सूनेपन को भरने के लिए कोई तो चाहिए था.

बहुत ही सादगी के साथ सुरेश और ज्योति का विवाह संपन्न हुआ. तीनों दोस्तों ने शादी की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. प्रीतिभोज पर वरवधू पक्ष के कुछेक रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था.

सुमित ने मां और छुटकी को भी खास इस विवाह के लिए बुला रखा था. उस की मां गर्व का अनुभव कर रही थी सपूत के हाथों नेक काम होते देख कर.

विदाई के समय ज्योति सुमित, मनीष और रोहन के गले लग कर जारजार रोने लगी, तो तीनों को महसूस हुआ जैसे उन की सगी बहन विदा हो रही है.

अपने आंचल में बंधे खीलचावल को सिर के ऊपर से पीछे फेंक कर रस्म पूरी करती ज्योति विदा हो गईर् थी, साथ में देती गई ढेरों आशीर्वाद अपने तीनों भाइयों को.

 

पत्नी में सैक्स को लेकर कभी उत्साह नहीं होता, ऐसे लगता है कि रेप कर रहा हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 35 वर्षीय विवाहित युवक हूं. विवाह को 8 वर्ष हो चुके हैं. 2 बच्चे हैं. विवाह को इतना समय बीत जाने पर भी पत्नी में सैक्स को ले कर कभी कोई उत्साह नहीं होता. कभी पहल नहीं करती. बस मेरे कहने पर निढाल सी पड़ी रहती है. लगता है जैसे बलात्कार कर रहा हूं. कई बार तो उस की उदासीनता देख कर सारा रोमांच हवा हो जाता है. बताएं क्या करूं?

जवाब

आज भी युवाओं को नाममात्र का सैक्स ज्ञान है खासकर युवतियों को. युवक तो फिर भी अपने यार दोस्तों से बात कर के या इधर उधर से थोड़ी बहुत जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, पर युवतियां आज भी इस विषय पर बात करने से कतराती हैं.

आप की पत्नी भी संभवतया सैक्स के बारे में जानकारी नहीं रखतीं. आप उन्हें सैक्स पर लिखी कोई अच्छी पुस्तक पढ़ने को दें. साथ घूमने जाएं. सहवास से पूर्व उन से प्रेमालाप करें. आलिंगन चुंबन आदि काम क्रीड़ाएं कर के उन में कामोत्तेजना जगाने के बाद संबंध बनाएंगे, तो सहवास आनंददायक होगा और संभवतया आप की पत्नी की भी रुचि बढ़ेगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

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