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तलाक के बाद: अवैद्य संबंधों ने उजाड़ दिया एक पूरा परिवार

विश्वप्रसिद्ध पर्यटनस्थल मांडू के नजदीक के एक गांव तारापुर में पैदा हुई पिंकी को देख कर कोई सहसा विश्वास नहीं कर सकता था कि वह एक आदिवासी युवती है. इस की वजह यह थी कि पिंकी के नैननक्श और रहनसहन सब कुछ शहरियों जैसे थे. इतना ही नहीं, उस की इच्छाएं और महत्त्वाकांक्षाएं भी शहरियों जैसी ही थीं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह कोई भी जोखिम उठाने से कतराती नहीं थी.

बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेमगाथा कहने वाले मांडू के आसपास सैकड़ों छोटेछोटे गांव हैं, जहां की खूबसूरत छटा और ऐतिहासिक इमारतें देखने के लिए दुनिया भर से प्रकृतिप्रेमी और शांतिप्रिय लोग वहां आते हैं. वहां आने वाले महसूस भी करते हैं कि यहां वाकई प्रकृति और प्रेम का आपस में गहरा संबंध है.

यहां की युवतियों की अल्हड़ता, परंपरागत और आनुवांशिक खूबसूरती देख कर यह धारणा और प्रबल होती है कि प्रेम वाकई प्रेम है, इस का कोई विकल्प नहीं सिवाय प्रेम के. नन्ही पिंकी जब मांडू आने वाले पर्यटकों को देखती और उन की बातें सुनती तो उसे लगता कि जैसी जिंदगी उसे चाहिए, वैसी उस की किस्मत में नहीं है, क्योंकि दुनिया में काफी कुछ पैसों से मिलता है, जो उस के पास नहीं थे.

मामूली खातेपीते परिवार की पिंकी जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे यौवन के साथसाथ उस की इच्छाएं भी परवान चढ़ती गईं. जवान होतेहोते पिंकी को इतना तो समझ में आने लगा था कि यह सब कुछ यानी बड़ा बंगला, मोटरगाड़ी, गहने और फैशन की सभी चीजें उस की किस्मत में नहीं हैं. लिहाजा जो है, उसे उसी में संतोष कर लेना चाहिए.

लेकिन इस के बाद भी पिंकी अपने शौक नहीं दबा सकी. घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने के उस के सपने दिल में दफन हो कर रह गए थे. घर वालों ने समय पर उस की शादी धरमपुरी कस्बे के नजदीक के गांव रामपुर के विजय चौहान से कर दी थी. शादी के बाद वह पति के साथ धार के जुलानिया में जा कर रहने लगी थी.

पेशे से ड्राइवर विजय अपनी पत्नी की इस कमजोरी को जल्दी ही समझ गया था कि पिंकी के सपने बहुत बड़े हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए बहुत दौलत चाहिए. उन्हें कमा कर पूरे कर पाना कम से कम इस जन्म में तो उस के वश की बात नहीं है. इस के बाद भी उस की हर मुमकिन कोशिश यही रहती थी कि वह हर खुशी ला कर पत्नी के कदमों में डाल दे.

इस के लिए वह हाड़तोड़ मेहनत करता भी था, लेकिन ड्राइवरी से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी कि वह सब कुछ खरीदा और हासिल किया जा सके, जो पिंकी चाहती थी. इच्छा है, पर जरूरत नहीं, यह बात विजय पिंकी को तरहतरह से समयसमय पर समझाता भी रहता था.

लेकिन अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की आदी होती जा रही पिंकी को पति की मजबूरी तो समझ में आती थी, लेकिन उस की बातों का असर उस पर से बहुत जल्द खत्म हो जाता था. शादी के बाद कुछ दिन तो प्यारमोहब्बत और अभिसार में ठीकठाक गुजरे. इस बीच पिंकी ने 2 बेटों को जन्म दिया, जिन के नाम हिमांशु और अनुज रखे गए.

विजय को जिंदगी में सब कुछ मिल चुका था, इसलिए वह संतुष्ट था. लेकिन पिंकी की बेचैनी और छटपटाहट बरकरार थी. बेटों के कुछ बड़ा होते ही उस की हसरतें फिर सिर उठाने लगीं. बच्चों के हो जाने के बाद घर के खर्चे बढ़ गए थे, लेकिन विजय की आमदनी में कोई खास इजाफा नहीं हुआ था.

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अकसर अपनी नौकरी के सिलसिले में विजय को लंबेलंबे टूर करने पड़ते थे. इस बीच पिंकी की हालत और भी खस्ता हो जाती थी. पति इस से ज्यादा न कुछ कर सकता है और न कर पाएगा, यह बात अच्छी तरह उस की समझ में आ गई थी. अब तक शादी हुए 17 साल हो गए थे, इसलिए अब उसे विजय से ऐसी कोई उम्मीद अपनी ख्वाहिशों के पूरी होने की नहीं दिखाई दे रही थी.

लेकिन जल्दी ही पिंकी की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आ गया, जो अंधा भी था और खतरनाक भी. यह एक ऐसा मोड़ था, जिस का सफर तो सुहाना था, परंतु मंजिल मिलने की कोई गारंटी नहीं थी. इस के बाद भी पिंकी उस रास्ते पर चल पड़ी. उस ने न अंजाम की परवाह की न ही पति और बच्चों की. इस से सहज ही समझा जा सकता है कि इच्छाओं और गैरजरूरी जरूरतों के सामने जिम्मेदारियों ने दम तोड़ दिया था. पिंकी को संभल कर चलने के बजाय फिसलने में ज्यादा फायदा नजर आया.

विजय का एक दोस्त था दिलीप चौहान. वह बेरोजगार था और काम की तलाश में इधरउधर भटक रहा था. काफी दिनों बाद दोनों मिले तो विजय को उस की हालत पर तरस आ गया. उस ने धीरेधीरे दिलीप को ड्राइविंग सिखा दी. धार, मांडू और इंदौर में ड्राइवरों की काफी मांग है, इसलिए ड्राइविंग सीखने के बाद वह गाड़ी चलाने लगा. दोस्त होने के साथसाथ विजय अब उस का उस्ताद भी हो गया था.

ड्राइविंग सीखने के दौरान दिलीप का विजय के घर आनाजाना काफी बढ़ गया था. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा हो गया था. जब विजय दिलीप को ड्राइविंग सिखा रहा था, तभी पिंकी दिलीप को जिस्म की जुबान समझाने लगी थी. उस के हुस्न और अदाओं का दीवाना हो कर दिलीप दोस्तीयारी ही नहीं, गुरुशिष्य परंपरा को भी भूल कर पिंकी के प्यार में कुछ इस तरह डूबा कि उसे भी अच्छेबुरे का होश नहीं रहा.

ऐसे मामलों में अकसर औरत ही पहल करती है, जिस से मर्द को फिसलते देर नहीं लगती. दिलीप अकेला था, उस के खर्चे कम थे, इसलिए वह अपनी कमाई पिंकी के शौक और ख्वाहिशों को पूरे करने में खर्च करने लगा. इस के बदले पिंकी उस की जिस्मानी जरूरतें पूरी करने लगी. जब भी विजय घर पर नहीं होता या गाड़ी ले कर बाहर गया होता, तब दिलीप उस के घर पर होता.

पति की गैरहाजिरी में पिंकी उस के साथ आनंद के सागर में गोते लगा रही होती. विजय इस रिश्ते से अनजान था, क्योंकि उसे पत्नी और दोस्त दोनों पर भरोसा था. यह भरोसा तब टूटा, जब उसे पत्नी और दोस्त के संबंधों का अहसास हुआ.

शक होते ही वह दोनों की चोरीछिपे निगरानी करने लगा. फिर जल्दी ही उस के सामने स्पष्ट हो गया कि बीवी बेवफा और यार दगाबाज निकला. शक के यकीन में बदलने पर विजय तिलमिला उठा. पर यह पिंकी के प्रति उस की दीवानगी ही थी कि उस ने कोई सख्त कदम न उठाते हुए उसे समझाया. लेकिन अब तक पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका था.

चूंकि पति का लिहाज और डर था, इसलिए पिंकी खुलेआम अपने आशिक देवर के साथ रंगरलियां नहीं मना रही थी. फिर एक दिन पिंकी कोई परवाह किए बगैर दिलीप के साथ चली गई. चली जाने का मतलब यह नहीं था कि वह आधी रात को कुछ जरूरी सामान ले कर प्रेमी के साथ चली गई थी, बल्कि उस ने विजय को बाकायदा तलाक दे दिया था और उस की गृहस्थी के बंधन से खुद को मुक्त कर लिया था.

कोई रुकावट या अड़ंगा पेश न आए, इस के लिए वह और दिलीप धार आ कर रहने लगे थे. पहले प्रेमिका और अब पत्नी बन गई पिंकी के लिए दिलीप ने धार की सिल्वर हिल कालोनी में मकान ले लिया था. मकान और कालोनी का माहौल ठीक वैसा ही था, जैसा पिंकी सोचा करती थी.

यह पिंकी के दूसरे दांपत्य की शुरुआत थी, जिस में दिलीप उस का उसी तरह दीवाना था, जैसा पहली शादी के बाद विजय हुआ करता था. पति इर्दगिर्द मंडराता रहे, घुमाताफिराता रहे, होटलों में खाना खिलाए और सिनेमा भी ले जाए, यही पिंकी चाहती थी, जो दिलीप कर रहा था. खरीदारी कराने में भी वह विजय जैसी कंजूसी नहीं करता था.

यहां भी कुछ दिन तो मजे से गुजरे, लेकिन जल्दी ही दिलीप की जेब जवाब देने लगी. पिंकी के हुस्न को वह अब तक जी भर कर भोग चुका था, इसलिए उस की खुमारी उतरने लगी थी. लेकिन पत्नी बना कर लाया था, इसलिए पिंकी से वह कुछ कह भी नहीं सकता था. प्यार के दिनों के दौरान किए गए वादों का उस का हलफनामा पिंकी खोल कर बैठ जाती तो उसे कोई जवाब या सफाई नहीं सूझती थी.

जल्दी ही पिंकी की समझ में आ गया कि दिलीप भी अब उस की इच्छाएं पूरी नहीं कर सकता तो वह उस से भी उकताने लगी. पर अब वह सिवाय किलपने के कुछ कर नहीं सकती थी. दिलीप की चादर में भी अब पिंकी के पांव नहीं समा रहे थे. गृहस्थी के खर्चे बढ़ रहे थे, इसलिए पिंकी ने भी पीथमपुर की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. क्योंकि अपनी स्थिति से न तो वह खुश थी और न ही संतुष्ट.

इस उम्र और हालात में तीसरी शादी वह कर नहीं सकती थी, लेकिन विजय को वह भूल नहीं पाई थी, जो अभी भी जुलानिया में रह रहा था. पिंकी को लगा कि क्यों न पहले पति को टटोल कर दोबारा उसे निचोड़ा जाए. यही सोच कर उस ने एक दिन विजय को फोन किया तो शुरुआती शिकवेशिकायतों के बाद बात बनती नजर आई.

ऐसा अपने देश में अपवादस्वरूप ही होता है कि तलाक के बाद पतिपत्नी में दोबारा प्यार जाग उठे. हां, यूरोप जहां शादीविवाह मतलब से किए जाते हैं, यह आम बात है. विजय ने दोबारा उस में दिलचस्पी दिखाई तो पिंकी की बांछें खिलने लगीं. पहला पति अब भी उसे चाहता है और उस की याद में उस ने दोबारा शादी नहीं की, यह पिंकी जैसी औरत के लिए कम इतराने वाली बात नहीं थी.

वह 28 जुलाई की रात थी, जब दिलीप रोजाना की तरह अपनी ड्यूटी कर के घर लौटा. उसे यह देख हैरानी हुई कि उस के घर में धुआं निकल रहा है यानी घर जल रहा है. उस ने शोर मचाना शुरू किया तो देखते ही देखते सारे पड़ोसी इकट्ठा हो गए और घर का दरवाजा तोड़ दिया, जो अंदर से बंद था.

अंदर का नजारा देख कर दिलीप और पड़ोसी सकते में आ गए. पिंकी किचन में मृत पड़ी थी, जबकि विजय बैडरूम में. जाहिर है, कुछ गड़बड़ हुई थी. हुआ क्या था, यह जानने के लिए सभी पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. मौजूद लोगों का यह अंदाजा गलत नहीं था कि दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं.

हैरानी की एक बात यह थी कि आखिर दोनों मरे कैसे थे? पुलिस आई तो छानबीन और पूछताछ शुरू हुई. दिलीप के यह बताने पर कि मृतक विजय उस की पत्नी पिंकी का पहला पति और उस का दोस्त है, पहले तो कहानी उलझती नजर आई, लेकिन जल्दी ही सुलझ भी गई.

दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. पुलिस वालों ने दिलीप से पूछताछ की तो उस की बातों से लगा कि वह झूठ नहीं बोल रहा है. उस ने पुलिस को बताया था कि वह काम से लौटा तो घर के अंदर से धुआं निकलते देख घबरा गया. उस ने मदद के लिए गुहार लगाई. इस के बाद जो हुआ, उस की पुष्टि के लिए वहां दरजनों लोग मौजूद थे.

दरवाजा सचमुच अंदर से बंद था, जिसे उन लोगों ने मिल कर तोड़ा था. सभी ने बताया कि पिंकी की लाश जली हालत में किचन में पड़ी थी और विजय की ड्राइंगरूम में. उस के गले में साड़ी का फंदा लिपटा था. पिंकी के चेहरे पर चोट के निशान साफ दिखाई दे रहे थे.

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जल्दी ही इस दोहरे हत्याकांड या खुदकुशी की खबर आग की तरह धार से होते हुए समूचे निमाड़ और मालवांचल में फैल गई, जिस के बारे में सभी के अपनेअपने अनुमान थे. लेकिन सभी को इस बात का इंतजार था कि आखिर पुलिस कहती क्या है.

धार के एसपी वीरेंद्र सिंह भी सूचना पा कर घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से जायजा लिया. पुलिस को दिए गए बयान में पिंकी की मां मुन्नीबाई ने बताया था कि पिंकी और विजय का वैवाहिक जीवन ठीकठाक चल रहा था, लेकिन दिलीप ने आ कर न जाने कैसे पिंकी को फंसा लिया.

जबकि दिलीप का कहना था कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस की गैरमौजूदगी में पिंकी पहले पति विजय से मिलतीजुलती थी या फोन पर बातें करती थी. पिंकी के भाई कान्हा सुवे ने जरूर यह माना कि उस ने पिंकी को बहुत समझाया था, पर वह नहीं मानी. पिंकी कब विजय को तलाक दे कर दिलीप के साथ रहने लगी थी, यह उसे नहीं मालूम था.

तलाक के बाद दोनों बेटे विजय के पास ही रह रहे थे. विजय के भाई अजय के मुताबिक हादसे के दिन विजय राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिकस्थल सांवरिया सेठ जाने को कह कर घर से निकला था.

वह छोटे बेटे अनुज को अपने साथ ले गया था. अनुज को उस ने एक परिचित की कार में बिठा कर अपनी साली के पास छोड़ दिया था, जो शिक्षिका है.

अब पुलिस के पास सिवाय अनुमान के कुछ नहीं बचा था. इस से आखिरी अंदाजा यह लगाया गया कि विजय पिंकी के बुलाने पर उस के घर आया था और किसी बात पर विवाद हो जाने की वजह से उस ने पिंकी की हत्या कर के घर में आग लगा दी थी. उस के बाद खुद भी साड़ी का फंदा बना कर लटक गया. फंदा उस का वजन सह नहीं पाया, इसलिए वह गिर कर बेहोश हो गया. उसी हालत में दम घुटने से उस की भी मौत हो गई होगी.

बाद में यह बात भी निकल कर आई कि विजय पिंकी से दोबारा प्यार नहीं करने लगा था, बल्कि उस की बेवफाई से वह खार खाए बैठा था. उस दिन मौका मिलते ही उस ने पिंकी को उस की बेवफाई की सजा दे दी. लेकिन बदकिस्मती से खुद भी मारा गया.

सच क्या था, यह बताने के लिए न पिंकी है और न विजय. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक दोनों की मौत दम घुटने से हुई थी, लेकिन पिंकी के पेट पर एक धारदार हथियार का निशान भी था, जो संभवत: तवे का था. विजय के सिर पर लगी चोट से अंदाजा लगाया गया कि खुद को फांसी लगाते वक्त वह गिर गया था, इसलिए उस के सिर में चोट लग गई थी.

यही बात सच के ज्यादा नजदीक लगती है कि विजय ने पहले पिंकी को मारा, उस के बाद खुद भी फांसी लगा ली. लेकिन क्यों? इस का जवाब किसी के पास नहीं है. क्योंकि वह वाकई में पत्नी को बहुत चाहता था, पर उस की बेवफाई की सजा भी देना चाहता था. जबकि पिंकी की मंशा उस से दोबारा पैसे ऐंठने की थी. शायद इसी से वह और तिलमिला उठा था.

पिंकी समझदारी से काम लेती तो विजय की कम आमदनी में करोड़ों पत्नियों की तरह अपना घर चला सकती थी. पर अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की जिद और ख्वाहिशें उसे महंगी पड़ीं, जिस से उस के बच्चे अनाथ हो गए. अब उन की चिंता करने वाला कोई नहीं रहा.

दिलीप कहीं से शक के दायरे में नहीं था. उस का हादसे के समय पहुंचना भी एक इत्तफाक था. परेशान तो वह भी पिंकी की बढ़ती मांगों से था, जिन से इस तरह छुटकारा मिलेगा, इस की उम्मीद उसे बिलकुल नहीं रही होगी.

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छुटकारा- भाग 1: पैंतरा पत्नी का

दरवाजा खोलने के बाद ममता अपने सामने खड़ी युवती को पहचान नहीं पाई थी. ‘‘मुझे आप ने करीब महीनेभर पहले दुलहन के वेश में देखा थामैडम. मैं मयंक प्रजापति की पत्नी रितु हूं,’’ उस ने शरमातेमुसकराते हुए अपना परिचय दियातो ममता मन ही मन चौंक पड़ी.

‘‘मयंक क्या साथ में नहीं आया है?’’

‘‘नहींआप से मिलने मैं आज अकेली आई हूं.’’

‘‘आओअंदर आ जाओ,’’ अपनी आंतरिक बेचैनी को काबू में रखते हुए ममता जबरदस्ती मुसकराई और रितु का हाथ पकड़ कर उसे ड्राइंगरूम की तरफ ले चली.

ममता मयंक की बौस थी. उन के हावभाव से कुछकुछ जाहिर हो रहा था मानो उन्हें रितु का बिना पूर्व सूचना दिए यहां घर पर आना पसंद नहीं आया हो.

बहुत छोटे से औपचारिक वार्तालाप के बाद उन्होंने रितु से कुछ रूखे स्वर में पूछा, ‘‘मयंक क्यों साथ नहीं आया है?’’

‘‘उन्हें तो पता ही नहीं है कि मैं आप से मिलने आई हूं. मैं आज दोपहर से बहुत परेशान हूंमैडम,’’ रितु अब सहज हो कर नहीं बोल पा रही थी.

‘‘क्यों…?’’

‘‘किसी ने फोन कर के मुझे जो बताया हैउस ने मेरी सुखशांति हर ली है.’’

‘‘क्या बताया है किसी ने तुम्हें फोन कर के?’’

‘‘यही कि मेरे पति मयंक और आप के बीच गलत तरह के संबंध हैं.’’

‘‘व्हाट नौनसैंस,’’ ममता एकदम से गुस्सा हो उठी, ‘‘मैं मयंक की बौस हूंरखैल नहीं. क्या तुम ने मयंक से इस विषय पर चर्चा की है?’’

‘‘नहींमैडम.’’

‘‘तुम मेरे पास किसलिए आई होमुझ से लड़नेझगड़ने?’’ ममता ने उसे गुस्से से घूरा.

‘‘बिलकुल नहींमैडम,’’ रितु फौरन हड़बड़ा उठी, ‘‘मेरी मम्मी का घर आप के घर के पास है. मैं बहुत परेशान थीसो पहले मम्मी के पास गई. उन से मिल कर मन शांत नहीं हुआतो आप से मिलने चली आई. आप मेरी बड़ी बहन जैसी हैं. मुझे लगा कि अगर आप समझा कर मुझे तसल्ली दे देंगीतो मेरा मन जरूर शांत हो जाएगा.’’

‘‘इन मामलों में समझनेसमझाने जैसा कुछ नहीं होता हैरितु. मेरे जैसी सफलपर तलाकशुदा औरतों के बारे में अफवाएं उड़ा कर उन का चरित्रहनन करने में लोगों को मजा आता है और समझदार इनसान को उन की बकवास पर ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘जी.’’

‘‘तुम शांत मन से घर जाओ. मयंक और मेरा कोई चक्कर नहीं चल रहा है.’’

‘‘जी.’’

‘‘औरत का.’’

‘‘ऐसी खुराफातें औरतों को ही ज्यादा सूझती हैं. अगर ये पागल औरत फिर से कभी फोन करेतो तुम उसे इतनी बुरी तरह से डांटना कि उस की दोबारा फोन करने की हिम्मत ही ना हो.’’

‘‘मैं ऐसा ही करूंगीमैडम.’’

‘‘गुड. क्या यहां से तुम अपने घर जाओगी या मम्मी के घर?’’

‘‘मैं मम्मी के पास जाऊंगी. मयंक मुझे वहीं लेने आएंगे.’’

‘‘तुम चाय लोगी या ठंडा?’’

‘‘नहींमैडम.’’

‘‘मुझे औफिस के कुछ जरूरी काम निबटाने हैंरितु. फिर कभी मन परेशान हो तो तुम मुझ से मिलने आ सकती होपर पहले फोन जरूर कर लेना. मेरा नंबर तुम्ह मयंक दे देगा,’’ उसे विदा करने के लिए ममता झटके से उठ खड़ी हुई.

‘‘थैंक यू.’’

रितु को विदा करने के बाद ममता टैंशन और गुस्से का शिकार बन गई. कुछ मिनट उन्होंने सोचविचार में बिताए और फिर अपने मोबाइल से मयंक का नंबर मिलाया.

उन्होंने जब मयंक को रितु से हुई वार्तालाप की जानकारी दीतो वह हैरान हो उठा था.

‘‘मुझ से रितु ने इस बारे में कोई बात नहीं की. मुझे जरा भी भनक होतीतो मैं उसे जरूर आप के पास आने से रोक देता,’’ मयंक की आवाज बता रही थी कि पूरी बात सुन कर उसे तेज धक्का लगा था.

‘‘उसे आज पहले कुछ डराओधमकाओ और फिर बाद में प्यार से समझानामयंक. मैं नहीं चाहती कि भविष्य में वो फिर कभी मुझ से मिलने आए,’’ ममता ने कठोर लहजे में उसे हिदायत दी.

‘‘मैं ऐसा ही करूंगा.’’

‘‘औफिस में ऐसी कौन औरत हो सकती हैजिस ने रितु को फोन किया होगा?’’

‘‘मैं कोई अंदाजा नहीं लगा सकता हूं.’’

‘‘हमें आगे ज्यादा होशियार रहना होगामयंक.’’

‘‘मैं सोच रहा था कि…’’

‘‘क्या सोच रहे थे?’’

‘‘यही कि इस बार टूर पर मेरी जगह तुम्हारे साथ कोई और चला जाएतो ठीक रहेगा.’’

‘‘बेकार की बातें मत करो. तुम ही मेरे साथ चलोगे. शादी कर के क्या तुम मुझे अपनी जिंदगी से निकालने की सोच रहे होमैं ने तुम्हें इतने ऊंचे पद पर इसीलिए तो पहुंचाया है कि तुम मेरा साथ न छोड़ोगे. तुम तो जानते ही हो कि कितने कमाते हैंगुप्ताइस पद को चाहते थेपर तुम्हें यह पद अपने संबंध के कारण मिला है. अब इसे खत्म करने की सोचना भी नहीं.”

‘‘तुम मेरे कहने का गलत मतलब…’’

‘‘मयंकपिछले 2 सालों से हमारे बीच जो रिश्ता बना हैउस से हम दोनों का फायदा हुआ है. हर महीने के 3-4 दिन के टूर में तुम मुझे ही सहीतुम्हारा साथ तो मिलता है.

“मेरी सिफारिश पर तुम्हें 2 सालों में कई प्रमोशन मिले हैं. अगर तुम ने इस रिश्ते को तोड़ने की कोशिश कीतो मैं यह औफिस छोड़ जाऊंगी या तुम नई नौकरी भी ढूंढ़ लेना,” ममता ने अपने से 5 साल छोटे मयंक को साफ शब्दों में धमकी दे डाली.

‘‘ऐसी कोई बात मेरे दिमाग में उठी भी नहीं है,’’ मयंक ने बेचैन लहजे में उसे फौरन आश्वस्त किया.

‘‘गुड नाइट,’’ ममता ने विजयी भाव से मुसकराते हुए झटके से संपर्क काट दिया था.

मयंक की जब ममता से बात हुईतब वो अपनी ससुराल की तरफ जा रहा था. ममता से मिली धमकी ने उस का मूड खराब कर दिया था. मन को शांत करने के लिए उस ने अपनी मोटरसाइकिल को अपने सब से अच्छे दोस्त समीर के घर की तरफ घुमा दिया.

समीर को ले कर वो पास के पार्क में आया और बड़े ही संजीदा स्वर में उस से बोला, ‘‘तुझे मेरी कसम हैमुझ से झूठ मत बोलना.’’

‘‘बात क्या है…?’’ समीर उलझन का शिकार बन गया.

‘‘कल शाम तेरेमेरे बीच जो बात हुई थीक्या वह तू ने रितु को बताई हैं?’’

‘‘तेरी बौस ममता के साथ चल रहे तेरे चक्कर वाली बातें?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं वो बातें रितु को क्यों बताऊंगातेरी विवाहित जिंदगी की सुखशांति नष्ट कर के मुझे क्या मिलेगावैसेहुआ क्या है?’’

‘‘रितु कुछ देर पहले ममता से मिलने पहुंची थी. उस का कहना है कि किसी औरत ने फोन कर के उसे ममता और मेरे बीच चल रहे चक्कर की जानकारी दी थी.’’

‘‘और तुझे शक है कि उसे ये जानकारी मैं ने दी थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं ऐसा बेवकूफ नहीं हूं. अब तू क्या करेगा?’’

‘‘रितु को समझाना पड़ेगा कि वो ममता से फिर कभी मिलने ना जाएनहीं तो मेरी नौकरी जाती रहेगी.’’

‘‘तेरी जान भी अजीब मुसीबत में फंसी हुई है. ममता से संबंध तोड़ेगातो नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा. उस को खुश करना चालू रखता हैतो किसी ना किसी दिन रितु को सब मालूम पड़ सकता है और तब ना जाने क्या होगा.’’

‘‘वो बहुत ज्यादा भावुक हैसमीर. मैं ने उस के साथ बेवफाई की तो वो अपनी जान दे  देगी. उस के भाई लोग मेरी जान तो लेंगे. उस का एक भाई सेना में हैएक पुलिस में. मेरा उस से झगड़ा करने का कोई मन नहीं है.’’

‘‘आजकल जबरदस्त मंदी का दौर वैसे ही चल रहा है. नई नौकरी मिलना आसान भी तो नहीं है.’’

‘‘समझ में नहीं आता कि इस समस्या को कैसे सुलझाऊं. कोई ऐसी तरकीब बता कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे.’’

दोनों दोस्तों ने कुछ देर और माथापच्ची कीपर इस समस्या का कोई समाधान नहीं ढूंढ़ पाए.

उस रात मयंक और रितु अपने घर 11 बजे के बाद पहुंचे. कपड़े बदलने के बाद रितु को अपने सामने बिठा कर मयंक ने उस की ममता से हुई मुलाकात का जिक्र छेड़ा.

‘‘वो मेरी बौस हैस्वीटहार्ट. उस अनजान औरत के फोन के बल पर तुम्हें ममता मैडम से मिलने उन के घर नहीं जाना चाहिए था. तुम्हें पहले मुझ से बात करनी चाहिए थी. मेरी जिंदगी में तुम्हारे अलावा कोई दूसरी औरत कभी ना थी और ना कभी आएगी.

‘‘आइंदा ऐसी गलती कभी मत करना. वे हमारे जीएम की रिश्तेदार हैं और उन की नाराजगी मेरी नौकरी छुड़वा सकती है,’’ मयंक ने प्यार भरे भावुक लहजे में रितु को समझाया तो वो फिर कभी ममता से ना मिलने जाने को फौरन मान गई थी.

लेकिन रितु ने अपने वचन को निभाया नहीं. वो 2 दिन बाद शाम को अकेली फिर से ममता के घर बिना कोई सूचना दिए पहुंच गई.

‘‘कैसे आई हो?’’ दरवाजा रोक कर खड़ी ममता ने नाराज हो कर उस से ये सवाल पूछातो रितु की आंखों में फौरन आंसू भर आए.

‘‘आज फिर उस औरत का फोन आया थामैडम,’’ रितु ने रोआसी आवाज में उसे जानकारी दी.

जी हां…दुपट्टे को अब बाय नहीं हाय कहें

बेशक आजकल की गर्ल्स वैस्टर्न आउटफिट को ज्यादा तरजीह दे रही हैं, लेकिन इस के बावजूद वे इंडियन आउटफिट से खुद को दूर नहीं रख पातीं. इस की खास वजह यह है कि आमतौर पर इंडियन आउटफिट खुले होने की वजह से कूल और कंफर्टेबल फील कराते हैं. इन आउटफिट्स में एक है दुपट्टा. इसे अधिकांश कालेज गोइंग गर्ल्स से ले कर वर्किंग गर्ल्स तक को कैरी करते हुए देखा जा सकता है. दुपट्टे के लिए प्रयोग किए जाने वाले वैसे तो बहुत सारे स्टफ होते हैं जैसेकि कौटन, ग्लेज कौटन, सिल्क, जौर्जेट, शिफौन, कौटन नैट आदि. लेकिन गरमी में सब से अधिक डिमांड कौटन व ग्लेज कौटन के दुपट्टों की होती है.

आइए, जानते हैं दुपट्टे के नए ट्रैंड के बारे में:

लहरिया: लहरिया प्रिंट के दुपट्टे आमतौर पर शिफौन के होते हैं और इन पर लंबीलंबी धारियां बनी होती हैं. डिफरैंट कलर में मिलने वाले ये दुपट्टे लाइट व प्लेन कलर के सूट के साथ बेहद अट्रैक्टिव लगते हैं खासकर व्हाइट डै्रस के साथ. ये वजन में बेहद हलके होते हैं. इन्हें थोड़ा हैवी लुक देने के लिए इन के किनारों पर मोती, क्रोशिया लेस, गोटा, लटकन आदि का इस्तेमाल किया जाता है.

कैरी विद स्टाइल: दुपट्टे के साथ काफी सारे ऐक्सपैरिमैंट कर के आप स्टाइलिश लुक पा सकती हैं. इसे कैरी करने का यों तो सब से कौमन स्टाइल है फ्रंट से दोनों कंधों पर. लेकिन यह वन साइड के अलावा बैक से दोनों शोल्डर पर भी आकर्षक लुक देता है. इस के अलावा इसे मफलर स्टाइल में भी कैरी किया जा सकता है. वैसे आजकल दुपट्टों का प्रयोग धूप से बचने के लिए सिर और चेहरे को ढकने के लिए भी किया जाता है यानी स्टाइल के साथ सेफ्टी कवर भी.

बांधनी व टाई ऐंड डाई वर्क: बांधनी या बंधेज वर्क के दुपट्टे बनाने के लिए रेशमी धागे का इस्तेमाल किया जाता है. कुछकुछ दूरी पर धागों से दुपट्टों को बांध कर उन्हें रंग में कुछ देर के लिए डुबो दिया जाता है. फिर रंग से निकालने के बाद धागों को खोल कर सुखा दिया जाता है, जिस के फलस्वरूप बंधे हुए स्थान पर खूबसूरत डिजाइन उभर आते हैं. ऐसे दुपट्टे 2 या इस से अधिक कलर में भी बनाए जाते हैं. इन्हें हैवी लुक देने के लिए सीप, सीसे व सितारों का इस्तेमाल किया जाता है.

बाटिक व ब्लौक प्रिंट: बाटिक प्रिंट के लिए ग्लेज कौटन व सिल्क के स्टफ का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर वैक्स की सहायता से डिजाइन बनाए जाते हैं, जोकि सिंपल व सोबर लुक देते हैं. ब्लौक प्रिंट के लिए लकड़ी के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है जिन पर विभिन्न प्रकार के डिजाइन जैसेकि फूल, पत्ती, मोर आदि बने होते हैं. इस प्रकार से तैयार दुपट्टों की खासीयत यह होती है कि इन के डिजाइन कभी फेड नहीं होते.

कांदा वर्क: कांदा वर्क एक तरह की महीन कढ़ाई होती है. इस में सूई और धागों की मदद से डिजाइन बनाया जाता है. इस के डिजाइन बहुत बारीक होते हैं तथा उन्हें बनाने में मेहनत भी बहुत लगती है. प्लेन दुपट्टे पर रंगबिरंगे धागे से सजे डिजाइन देखने में बहुत आकर्षक लगते हैं. रिच लुक होने की वजह से ये आम दुपट्टों के मुकाबले कुछ महंगे होते हैं.

प्लेन दुपट्टा: प्रिंटेड सूट के साथ प्लेन दुपट्टा अच्छा लगता है. यदि आप इस पर स्वयं कुछ प्रयोग करना चाहती हैं, तो इस के चारों ओर लेस, गोटा, घुंघरू आदि लगा सकती हैं. चाहें तो सूट में से थोडे़ हिस्से को निकाल कर दुपट्टे के चारों तरफ लेस की तरह लगा लें या फिर प्रिंटेड कपड़े को दुपट्टे पर ऐप्लीक की तरह लगाएं.

किस आउटफिट के साथ पहनें: पटियाला सूट, सेमी पटियाला, अफगानी सलवार, चूड़ीदार सूट के साथ दुपट्टा अट्रैक्टिव लुक देता है. चूंकि आजकल मिक्स ऐंड मैच का फैशन है, तो इस लिहाज से हैंडीक्राफ्ट दुपट्टे को विभिन्न कुरतों के साथ मैच कर के पहना जा सकता है.

बीजी: जिम्मेदारियों की जंजीरों ने कैसे बीजी को बांध दिया

बीजी सुबह 8 बजे उठ जातीं. नहाधो कर थोड़ी बागबानी करतीं. दही बिलो कर मक्खन निकालना, आटा गूंधना, सब्जी काटना ये सब काम मेरे उठने से पहले ही कर लेती थीं. आज जब मैं सुबह उठी तो कोई खटखट सुनाई नहीं दी. कहां गईं बीजी, गुरुद्वारे तो कभी नहीं जातीं. कहती हैं घरगृहस्थी है तो फिर कैसा भगवान. सारे काम करने के बाद ही वे कालोनी के छोटे बाग में जाती थीं जहां मुश्किल से

10 मिनट तक टहलतीं. निक्की, मीशा के कमरे में भी नहीं मिलीं. बाहर आंगन में भी नहीं. अभी तो गेट का ताला भी नहीं खुला. फिर गईं तो कहां गईं.

सब के जाने का समय हो रहा था. बच्चों को तैयार करना, स्वयं तैयार हो कर स्कूल जाना. शिवम का औफिस के लिए लंच बनाना. कितने काम पड़े थे और इधर बीजी को ढूंढ़ने में ही समय निकलता जा रहा था. एकाएक ध्यान आया, वे अपने कमरे में भी तो हो सकती हैं. जल्दी से मैं वहां गई. दरवाजा आधा खुला हुआ था. झांक कर देखा तो सच में बीजी अपने पलंग पर ही सो रही थीं. मुझे चिंता हो गई.

वे इतनी देर तक कभी सोती ही नहीं. क्या बात हो सकती है. मैं ने उन्हें जगाया पर वे जागी नहीं. मैं ने जोर से झकझोरा, वे तब भी जगी नहीं. नाक के आगे उंगली रखी. सांस का स्पर्श नहीं हुआ. नब्ज देखी वह भी रुकी हुई थी. ऐसा लग रहा था वे निश्ंिचत हो कर सो रही हैं. मेरे मुंह से चीख निकल गई. आवाज सुन कर शिवम कमरे में आ गए. बच्चे भी जग गए. पूरे घर में कुहराम मच गया. पड़ोसी भी आ गए. धीरेधीरेरिश्तेदार और शहर के अन्य जानपहचान के लोग भी एकत्र हो गए.

बीजी के पार्थिव शरीर को जमीन पर उतार दिया गया. सफेद चादर से उन का शरीर ढक दिया गया. सबकुछ सपना सा लग रहा था. शिवम का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. निक्की और मीशा भी दादी के पास बैठ कर रोने लगीं. बीजी से उन का विशेष लगाव था. आने वाले लोग शिवम और मुझे सांत्वना देते पर साथ ही स्वयं भी रोने लगते. बीजी थीं ही ऐसी. वे बड़ों के साथ बड़ी और छोटों के साथ छोटी बन जाती थीं. जहां भी जातीं स्वयं ही रिश्ता बना लेतीं और उन रिश्तों को वे निभाना भी जानती थीं. उन की हर मुश्किल में काम आतीं.

ऐसी बीजी के अकस्मात चले जाने का सब को बेहद दुख था. बिना किसी को कष्ट दिए साफसुथरा शरीर लिए वे चली गईं और पीछे छोड़ गईं यादों का पुलिंदा. उन के बिना जीवन कैसा होगा, मैं सोच कर ही बेहाल होती जा रही थी. आगे की तो क्या कहूं, अभी क्या करना है, यही मुझे समझ नहीं आ रहा था. पड़ोसी सब संभाल रहे थे.

लौबी में बीजी शांत लेटी हुई थीं. गजल गायक जगजीत सिंह की हलकी आवाज में कैसेट बारीबारी से चल रही थीं. वे सुबहसुबह ये कैसेट जरूर चलाती थीं. कानों में आवाज जाने से ध्यान उधर खिंचने लग जाता था लेकिन वातावरण एक बार फिर बोझिल हो गया जब शिवम की बड़ी बहन सिम्मी बहनजी आईं. दूसरे शहर में रहती हैं, इसलिए आने में देर हो गई थी. रोरो कर उन का बुरा हाल हो रहा था. बीजी मां थीं उन की. वह मां जिसे

25 वर्ष की छोटी सी आयु में वक्त ने विधवापन का लबादा ओढ़ा दिया था. उन्होंने शिवम और सिम्मी बहनजी का लालनपालन किया, उंगली पकड़ कर जीवन में चलने के लिए सक्षम बनाया.

सिम्मी बहनजी तो शादी के बाद ससुराल चली गई थीं. घर में शिवम और बीजी अकेले रह गए थे. जब मेरी शिवम से शादी हुई तो मुझे सास के रूप में मां और सहेली एकसाथ मिल गई थीं. ऐसी मां, ऐसी सास भी होती है क्या. उन्होंने मुझे सिम्मी जैसा ही प्यार दिया. मैं ने उन की जगह ले कर उस कमी को पूरा किया था. मैं ने बीजी को पूरा मानसम्मान दिया और उन्होंने मुझे पूरी तरह से स्वीकारा. मेरी कमियों को उन्होंने सदैव ढांपे रखा जबकि मैं उन की नहीं, शिवम की पसंद थी.

‘‘बहू, जल्दी करो, वक्त बहुत हो गया. बीजी को नहला दो. रात में पता नहीं कब की गुजरी हैं. मर्द लोग जनाजा उठाने को कह रहे हैं,’’ किसी बुजुर्ग औरत ने कहा तो मैं चौंक गई. उठी तो 2 औरतें मेरे साथ लग गईं. दही मल कर बीजी को नहलाया. अनसिले सूट का कपड़ा उन के शरीर पर लपेट सफेद चादर से ढक दिया. गरमी के कारण शरीर थोड़ा फूल गया था पर शेष कोई विकृति नहीं आई.

75 वर्ष की हो गई थीं पर चेहरे पर वही चमक थी. 50 वर्ष का वैधव्य पूरा कर वे इस घर से सदा के लिए विदा हो रही थीं. जैसे ही अर्थी उठी, एक बार फिर कुहराम मच गया. शिवम फूटफूट कर रोने लगे. वे मां जिस का आंचल जीवनभर उस के सिर पर छाया करता रहा, उसे हर मुश्किल से बचाता, वह छूट रहा था. शिवम ने बीजी की चिता को मुखाग्नि दे कर पुत्र होने का अपना कर्तव्य निभाया.

श्मशान से लौटते हुए दोपहर हो गई थी. मेरे मायके वालों ने खाने का प्रबंध कर दिया था. न चाहते हुए भी 2-4 कौर मैं निगल गई. जीने के लिए खाना जरूरी है. कोई किसी के साथ नहीं जाता. आंसुओं का सागर उमड़ रहा हो, फिर भी कुछ खाना तो है ही न.

सारा दिन रोनेधोने में निकल गया था. मन के साथ शरीर भी थकावट से टूट रहा था, फिर भी आंखों में नींद का लेशमात्र भी नाम नहीं था. गृहस्थी की नैया डगमगाती सी लग रही थी. बीजी के बिना जीने की कल्पना से मैं सिहर उठी, कैसे होगा सबकुछ, शिवम और मुझे तो कुछ भी पता नहीं.

बीजी का जाना हमारे लिए अपूरणीय क्षति थी. जब से इस घर में आई हूं, बीजी ही सारे काम करती आ रही थीं. शुरू के दिनों में हमारे जगने से पहले ही वे मेरा और शिवम का लंचबौक्स तैयार कर टेबल पर रख देती थीं. हम जाने के लिए जल्दी करते पर वे नाश्ता कराए बिना घर से निकलने नहीं देती थीं. मैं उन दिनों एमए कर रही थी.

निक्की के पैदा होने के 2 महीने बाद ही मेरी परीक्षा थी. मैं तो विचार छोड़ चुकी थी. भला निक्की को संभालूंगी या परीक्षा की तैयारी करूंगी. पर बीजी ने मेरा साहस बढ़ाया था, मुझे प्रोत्साहित किया. उन्होंने कहा था, ‘स्नेहा, तुम निक्की की चिंता छोड़ दो. मैं सब देख लूंगी, तुम बस अपनी परीक्षा की तैयारी करो.’ सच में उन्होंने सबकुछ संभाल लिया था. मैं ने निश्ंिचतता से परीक्षा दी थी और उन के सहयोग व शुभकामनाओं से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी.

2 वर्षों बाद मीशा के आ जाने पर तो काम और भी बढ़ गए. पर बीजी थीं कि सब संभाल लेतीं. घर के अनेक काम, बच्चों की देखभाल, बाहर के काम, राशन, फल, सब्जी लाना, बैंक, पोस्टऔफिस, बिजली, पानी के बिल जमा कराना जैसे न जाने कितने ही तो काम होते हैं, हमें तो पता ही नहीं चलता था और वे सब कर लेतीं. घर की जिम्मेदारियों के साथसाथ रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी सब के साथ निभातीं. खुशीगमी के अवसर पर हर जगह पहुंचतीं. हम तो कभीकभार ही विवाहोत्सव में चले जाते थे.

सारी रात बीजी की बातों, उन की यादों में ही बीत गई. अगला दिन और भी भारी था. सिम्मी बहनजी और रिश्तेदारों ने संभाल लिया. शिवम चाहते थे बीजी की सभी रस्मों को निभाया जाए लेकिन रिश्तेदार भी कब तक बैठ सकते हैं.

भारी मन से न चाहते हुए भी शिवम को सब की बात माननी पड़ी. चौथे दिन शोकसभा कर सब औपचारिकताएं निभाईं. इस बीच सिम्मी बहनजी और मामीजी हमारे साथ ही रहीं. रिश्तेदार, जानपहचान वाले लोग आतेजाते रहे. 20 दिनों के बाद सब समाप्त हो गया. सब अपनेअपने घर लौट गए और रह गए शिवम, मैं, निक्की और मीशा. बीचबीच में मैं और शिवम अपने काम पर चले जाते थे तो सिम्मी बहनजी और मामीजी घर देख लेती थीं. उन के जाने के बाद आज पहला दिन था. रोज सुबह 5 बजे उठती थी पर आज 4 बजे उठी. अकेले ही सारे काम निबटाने थे.

काम करते करते 7 बज गए. जल्दीजल्दी निक्की, मीशा को तैयार कर के स्वयं तैयार हो गई. शिवम औफिस के लिए चले गए थे. पहले बीजी निक्की और मीशा को बसस्टौप पर छोड़ आती थीं. आज उन के बैग उठा कर उंगली पकड़ कर बस स्टौप पर गई. उन्हें बिठा कर अपने स्कूल के लिए रिकशा ले लिया. बीजी के होते हुए शिवम मुझे अपने साथ ही ले जाते थे. मुझे स्कूल छोड़ कर अपने औफिस के लिए निकल जाते थे. मैं 10 मिनट पहले ही स्कूल पहुंच जाती थी, लेकिन आज 10 मिनट देर से पहुंची.

निक्की मीशा के स्कूल की छुट्टी मुझ से पहले हो जाती थी. एकाएक ध्यान आया तो हाथपांव फूल गए. यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. शौर्ट लीव ले कर स्टौप पर पहुंची तो बस निकल गई थी. अभिभावक के बिना कंडक्टर ने उन्हें उतारा ही नहीं. उसी रिकशा से उन के स्कूल गई. बस अभी वापस नहीं आई थी. 10 मिनट प्रतीक्षा की. उन्हें ले कर घर पहुंची. ताले खोले, कपड़े बदले, जल्दीजल्दी खाना बना कर दोनों को खिलाया. उन्हें सुला कर शाम का नाश्ता, रात का खाना बनाया.

बाई हम सब के चले जाने के बाद आती थी. बीजी उस से सारे काम करवा लेती थीं. मैं जब तक आती, घर साफसुथरा मिलता. खाना खा कर मैं भी निक्की, मीशा के साथ सो जाती थी. शरीर में ताजगी आ जाती थी. शाम और रात के कामों में बीजी की सहायता भी करती थी.

बाई पीछे से आ कर चली गई थी. सारा घर गंदा पड़ा हुआ था. बरतन, सफाई, कपड़े सभी ज्यों के त्यों पड़े थे. कहां से शुरू करूं. बच्चों को पढ़ाना, रात का खाना, सुबह के लिए तैयारी. सब काम करतेकरते रात के साढ़े 9 बज गए. शरीर थकान के मारे टूट रहा था. शिवम सोने के लिए आए तो मैं उन की गोद में सिर रख कर फफकफफक कर रो पड़ी. पता नहीं यह बीजी की उदासी का रोना था या फिर उन के कामों को याद कर रही थी. कितना विवश हो गईर् थी मैं. रोतेरोते ही सो गई.

सुबह उठी तो सिर भारी था. पहले दिन की तरह सारे काम निबटाए. इन्हीं दिनों बिजली का बिल भी आया हुआ था. मैं ने शिवम के हाथ में पकड़ा दिया. उन्होंने कहा वे औफिस के लंचटाइम में आ कर जमा करवा देंगे. शाम को थकेमांदे शिवम लौटे तो मैं ने पूछा, ‘‘बिजली के बिल का क्या हुआ, आज अंतिम दिन था?’’

‘‘जमा हो गया,’’ उन्होंने जूते उतारते हुए कहा.

‘‘लंच टाइम में गए थे क्या?’’

‘‘नहीं, मैं जाने की सोच ही रहा था मिस्टर शशांक ने बताया कि वे बिल जमा करवाने जा रहे हैं, मैं ने उन्हीं को दे दिया. हां, वे बता रहे थे कि बिलों का भुगतान करने के लिए उन के पास एक लड़का आता है. हर बिल के 20 रुपए लेता है. मैं ने उस से बात कर ली है. आगे से वह बिल घर से ही ले जाएगा. कई बिलों का भुगतान हम औनलाइन भी कर सकते हैं.’’

‘‘यह तो अच्छी बात है. चिंता ही समाप्त हुई. बेवजह ही बीजी धूप, गरमी, सर्दी में चक्कर काटती रहती थीं,’’ मैं ने कहा. ‘‘हां,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर शिवम कपड़े बदलने वौशरूम में चले गए. शायद यह अपराधबोध था. बीजी जिन कामों को कष्ट झेल कर करती थीं, समय के साथसाथ उन सब का धीरेधीरे निवारण होने लगा था. दूध लेने डेरी पर नहीं जा सकते थे, दूध घर पर ही मंगवाने लगे. मक्खन निकालना छोड़ दिया, बाजार से ले लेते. घर पर दही जमा लेती. राशन इकट्ठा ले आते. फल, सब्जी, ग्रौसरी सप्ताह में एक बार जा कर ले आने लगे. कोई चीज कम रह जाए तो आतेजाते रास्ते से ले आते.

मुख्य समस्या निक्की, मीशा और घर के अन्य कामों की थी. उस के लिए बस छुड़वा कर वैन लगवा ली. स्कूल के साथ ही एक क्रैच है. उस की वैन छुट्टी के समय आ कर बच्चों को ले जाती है. हम ने दोनों को क्रैच में भेजना शुरू कर दिया. वहां अटैंडैंट बच्चों को कपड़े बदलवा कर, खाना खिला कर थोड़ी देर के लिए सुला देते.

कभीकभी मुझे वहां जाने में देर हो जाए तो भी मैं निश्चिन्तत रहती. वे दोनों होमवर्क भी कर लेतीं. वापस आते हुए मैं उन्हें साथ ले आती. कामवाली बाई अब सुबह जल्दी आ जाती है. किचन में भी मेरी मदद कर देती है. जो काम बच जाता है, शाम को आ कर कर लेती हूं.

शिवम पहले घर का कोई भी काम नहीं करते थे, यहां तक कि अपना सामान जहांतहां रख देते. कपड़े फैले रहते. चाय पी कर घूमने निकल जाते थे. अब ऐसा नहीं करते. अपना सामान संभाल कर रखना शुरू कर दिया है. औफिस से आ कर स्वयं चाय बना कर पी लेते हैं. निक्की, मीशा को पढ़ाने भी लगे हैं. सप्ताहांत जब खरीदारी के लिए जाते हैं तो निक्की, मीशा को भी साथ ले जाते. वे खुश रहती हैं. घर के वातावरण से निकल कर बाहर जाना उन्हें भी अच्छा लगता है. पहले हम जब बाहर जाते थे तो दोनों को बीजी के पास ही रुकना पड़ता था.

सालभर में सारे घर का ढांचा ही बदल गया. शिवम कई बार अपराधबोध में डूब जाते. ऐसा लगता था कि वे कोईर् काम नहीं कर सकते. बीजी बेचारी इन्हीं कामों की चक्की में पिसती रहती थीं. जीवनभर उन्होंने क्या सुख देखा, क्या सुख पाया. न शिवम ने सोचा, न ही मैं ने. बस, उन पर निर्भर रह कर अपनी अज्ञानता दर्शाते रहे. जो कुछ अब किया है पहले भी तो कर सकते थे.

क्यों इंसान इतना स्वार्थी हो जाता है कि अपनी सुखसुविधा से आगे कुछ सोच ही नहीं पाता. बीजी यह कर लेंगी, बीजी वो कर लेगी. किसी काम के लिए वे मना भी न करती थीं. बीजी ने भी हमारी आदत बिगाड़ रखी थी. वे अकेली क्यों जूझती रहीं. हम नादान थे पर वे तो काम की जिम्मेदारी हमें सौंप सकती थीं. वे नहीं, तो भी घर चला रहे हैं. शायद पहले से अधिक सुचारु रूप से. किसी के चले जाने से संसार का कोई काम नहीं रुकता. काम के लिए वे याद नहीं आतीं, बल्कि कामों से निकल कर दीवार पर टंग गई हैं, पर दिल से वे कभी नहीं जा सकतीं.

अलविदा: आरती से आखिर इतनी चिढ़ने क्यों लगी थी पूजा

पूजा सुबह से गुमसुम बैठी थी. आज उस की छोटी बहन आरती दिल्ली से वापस लौट रही थी. उस को आरती के वापस आने की सूचना रात को ही मिल चुकी थी. साथ ही इस बात की भनक भी मिल गई थी कि लड़के ने आरती को पसंद कर लिया है और आरती ने भी अपने विवाह की स्वीकृति दे दी है. उस को लगा था कि इस स्वीकृति ने न केवल उस के साथ अन्याय ही किया?है, बल्कि उस के भविष्य को भी तहसनहस कर डाला है.

पूजा आरती से 4 वर्ष बड़ी?थी लेकिन आरती अपने स्वभाव, रूप एवं गुणों के कारण उस से कहीं बढ़ कर थी. वह एक स्कूल में अध्यापिका थी. विवाह में देरी होने के कारण पूजा का स्वभाव काफी चिड़चिड़ा हो गया था. हर किसी से लड़ाईझगड़ा करना उस की आदत बन चुकी थी.

उन के पिता दोनों पुत्रियों के विवाह को ले कर अत्यंत चिंतित थे. इसलिए बड़े बेटों को भी उन्होंने विवाह की आज्ञा नहीं दी थी. उन्हें भय था कि पुत्र अपने विवाह के पश्चात युवा बहनों के विवाह में दिलचस्पी ही नहीं लेंगे. पितापुत्र आएदिन अखबारों में पूजा के विवाह के लिए विज्ञापन देते रहते. कभी पूजा के मातापिता, कभी पूजा स्वयं लड़के को और कभी पूजा को लड़के वाले नापसंद कर जाते और बात वहीं की वहीं रह जाती.

वर्ष दर वर्ष बीतते चले गए, लेकिन पूजा का विवाह तय नहीं हो पाया. वह अब पड़ोस में जा कर आरती की बुराइयां करने लगी थी.

एक दिन पूजा सामने वाली उषा दीदी के घर जा कर रोने लगी, ‘‘दीदी, मेरे लिए जितने भी अच्छे रिश्ते आते हैं वे सब मुझे ठुकरा कर आरती को पसंद कर लेते हैं. इसीलिए मुझे आरती की शक्ल से भी नफरत हो गई है. मैं ने भी पक्का फैसला कर रखा है कि जब तक मेरा विवाह नहीं होगा, मैं आरती का विवाह भी नहीं होने दूंगी.’’

उषा दीदी पूजा को समझाने लगीं, ‘‘यदि तुम्हारे विवाह से पहले आरती का विवाह हो भी जाए तो क्या हर्ज है? शायद आरती की ससुराल की रिश्तेदारी में तुम्हारे लिए भी कोई अच्छा वर मिल जाए. ऐसे जिद कर के आरती का जीवन बरबाद करना उचित नहीं.’’

लेकिन पूजा का एक ही तर्क था, ‘जब मैं बरबाद हो रही हूं तो दूसरों को क्यों आबाद होने दूं.’

2 वर्ष तक लाख जतन करने के बाद भी जब पूजा का विवाह निश्चित नहीं हुआ तो वह काफी हद तक निराश हो गई थी.

आरती अध्यापन कार्य करने के पश्चात शाम को घर पर भी ट्यूशन पढ़ा कर अपनेआप को व्यस्त रखती.

पूजा सुबह से शाम तक मां के साथ घरगृहस्थी के कार्यों में उलझी रहती. वह यह भी भूल गई थी कि अधिक पकवान, चाटपकौड़ी खाने से उस का शरीर बेडौल होता जा रहा?था.

लोग पूजा को देख कर हंसते तो वह कुढ़ कर कहती, ‘‘बाप की कमाई खा रही हूं, जलते हो तो जलो लेकिन मेरी सेहत पर कुछ भी असर नहीं पड़ेगा.’’

पिता ने हार कर अपने दोनों बड़े पुत्रों की शादियां कर दी?थीं.

बड़े बेटे का एक मित्र मनोज उन के परिवार का बड़ा ही हितैषी?था. उस ने आरती से शादी करने के लिए अपने एक अधीनस्थ सहयोगी को राजी कर लिया था.

मनोज ने आरती के पिता से कहा, ‘‘चाचाजी, आप चाहें तो आरती का रिश्ता आज ही तय कर देते हैं.’’

पिता ने उत्तर दिया, ‘‘बेटा, आरती तुम्हारी अपनी बहन है. मैं कल ही किसी बहाने आरती को तुम्हारे साथ अंबाला भेज दूंगा.’’

चूंकि मनोज का परिवार भी अंबाला में रहता था, इसलिए आरती के बड़े भाई तथा मनोज के परिवार के लोगों ने ज्यादा शोर किए बगैर आरती के शगुन की रस्म अदा कर दी. विवाह की तारीख भी निश्चित कर दी.

चंडीगढ़ में पूजा को इस संबंध में कुछ नहीं बताया गया था. घर में सारे कार्य गुप्त रूप से किए जा रहे थे, ताकि पूजा किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर सके.

अचानक एक दिन पूजा को एक पत्र बरामदे में पड़ा हुआ मिला. वह उत्सुकतावश पत्र को एक सांस में ही पढ़ गई. पत्र के अंत में लिखा था, ‘आरती की गोदभराई की रस्म के लिए हम लोग रविवार को 4 बजे पहुंच रहे हैं.’

पढ़ते ही पूजा के मन में जैसे हजारों बिच्छू डंक मार गए. उस से झूठ बोला गया कि अंबाला में मनोज के बच्चे की तबीयत ज्यादा खराब होने की वजह से आरती को वहां भेजा गया था. उसे लगा कि इस घर के सब लोग बहुत ही स्वार्थी हैं. उस ने पत्र से अंबाला का पता डायरी में लिखा और पत्र को फाड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया.

2 दिन के पश्चात लड़के के पिता के हाथ में एक चिट्ठी थी, जिस में लिखा था, ‘आरती मंगली लड़की है. यदि इस से आप ने पुत्र का विवाह किया तो लड़का शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होगा.’

पत्र पढ़ते ही उस परिवार में श्मशान जैसी खामोशी छा गई. वे लोग सीधे मनोज के घर पहुंच गए. लड़के के पिता गुस्से से बोले, ‘‘आप जानते थे कि लड़की मंगली है, फिर आप ने हमारे परिवार को ही बरबाद करने का क्यों निश्चय किया? मैं इस रिश्ते को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकता.’’

मनोज ने उन लोगों को समझाने का काफी प्रयत्न किया, लेकिन बिगड़ी बात संवर न सकी.

चंडीगढ़ से पूजा के बड़े भाई को अंबाला बुला कर सारी स्थिति से अवगत कराया गया. पत्र देखने पर पता चला कि यह पूजा की लिखावट नहीं है. उस के पास तो अंबाला का पता ही नहीं था और न ही आरती के रिश्ते की बात की उसे कोई जानकारी थी.

चंडीगढ़ आने पर बड़े भैया उदास एवं दुखी थे. पूजा से इस बात की चर्चा करना बेकार था. घर का वातावरण एक बार फिर खामोश हो चुका था.

उषा दीदी की बड़ी लड़की नीलू, पूजा से सिलाई सीखने आती थी. एक दिन कहने लगी, ‘‘पूजा दीदी, आप ने जो चिट्ठी किसी को बेवकूफ बनाने के लिए लिखवाई थी, उस का क्या हुआ?’’

आरती के कानों में इस बात की भनक पड़ गई और वह झटपट मां तथा?भाई को बताने भाग गई.

2 दिन पश्चात पूजा की मां ने उषा के घर जा कर नीलू से सारी बात उगलवा ली कि पूजा दीदी ने ही मनोज भाई साहब के रिश्तेदारों को तंग करने के लिए उस से चिट्ठी लिखवाई थी.

आरती और पूजा में बोलचाल बंद हो गई लेकिन फिर धीरेधीरे घर का वातावरण सामान्य हो गया. पूजा और आरती चुपचाप अपनेअपने कामों में लगी रहतीं.

आरती स्कूल जाती और फिर शाम को ट्यूशन पढ़ाती.

पूजा उसे अच्छेअच्छे कपड़ोंजेवरों में देख कर कुढ़ती और फिर उस का गुस्सा उतरता अपनी भाभियों तथा बूढ़े पिता पर, ‘‘मैं पैदा ही तुम्हारी गुलामी करने के लिए हुई थी. क्यों नहीं रख लेते मेरे स्थान पर एक माई.’’

स्कूल की अध्यापिकाएं आरती को समझातीं, ‘‘अब भी समय है, यदि कोई लड़का तुम्हें पसंद कर ले तो तुम स्वयं ही कोशिश कर के विवाह कर लो.’’

आरती की एक सखी ने अपने ममेरे भाई के लिए उसे राजी कर लिया था और उस के साथ स्वयं दिल्ली जा कर उस का विवाह तय कर आई थी.

आरती की शादी की बात पूजा को बता दी गई थी. पूजा ने केवल एक ही शर्त रखी थी, ‘आरती की शादी में जितना खर्च होगा, उस से दोगुना धन मेरे नाम से बैंक में जमा कर दो ताकि मैं अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हो जाऊं.’

विवाह का दिन नजदीक आता जा रहा था. बाहरी रूप से पूजा एकदम सामान्य दिखाई दे रही थी. पिता ने मोटी रकम पूजा के नाम बैंक में जमा करवा दी थी. आरती को उपहार देने के लिए पूजा ने अपने विवाह के लिए रखी हुई 2 बेहद सुंदर चादरें व गुड्डेगुडि़या का जोड़ा निकाल लिया था तथा छोटीमोटी अन्य कई कशीदाकारी की चीजें भी थीं.

आरती के विवाह का दिन आ गया. पूजा सुबह से ही भागदौड़ में लगी थी. घर मेहमानों से खचाखच भरा था, इसलिए दहेज के सामान का कमरा ऊपर की मंजिल पर निश्चित हुआ था और विदा से पूर्व दूल्हादुलहन उस में आराम भी कर सकते थे. उस कमरे की चाबी आरती की बड़ी भाभी को दे दी गई थी.

पूजा ने सामान्य सा सूट पहन रखा था. उस की मां ने 2-3 बार गुस्से से उसे डांटा भी, ‘‘आज भी ढंग के  कपड़े नहीं पहनने तो फिर 4 सूट बनवाने की जरूरत ही क्या थी?’’

पूजा ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘अब सूट बदलने का क्या फायदा. मुझे कई काम निबटाने हैं.’’

मां बड़ी खुश हुईं कि इस के मन में कोई मलाल नहीं. बेचारी कितनी भागदौड़ कर रही?है.

पूजा अपने कमरे में बारबार आजा रही थी. भाभी समझ रही थीं कि शायद मां उसे ऊपर काम के लिए भेज रही हैं और आरती समझ रही थी कि शायद अधूरे काम पूरे कर रही है.

दरअसल, पूजा अपने दहेज के लिए सहेज कर रखी हुई सब चीजों को छिपाछिपा कर बांध रही थी. यहां तक कि उस ने अपने जेवर भी डब्बों में बंद कर दिए थे.

बरात आने में केवल 1 घंटा शेष रह गया था. आरती को मेकअप के लिए ब्यूटी पार्लर भेज दिया गया था और पूजा घर में ही अपनेआप को संवारने लगी थी. उस ने बढि़या सूट पहना और शृंगार इत्यादि कर के पंडाल में पहुंच गई. सब रिश्तेदारों से हंसहंस कर बतियाती रही.

निश्चित समय पर बरात आई तो बड़े चाव से पूजा आरती को जयमाला के लिए मंच पर ले गई. इस के पश्चात पूजा किसी बहाने से भाभी से चाबी ले कर पंडाल से खिसक गई.

बरात ने खाना खा लिया तो घर के लोग भी खाना खाने में व्यस्त हो गए. अचानक बड़ी?भाभी को खयाल आया कि पूजा ने अभी खाना नहीं खाया. उसे बुलवाने किसी बच्चे को भेजा तो पता चला कि पूजा ऊपर वाला कमरा ठीक कर रही है. थोड़ी देर बाद आ जाएगी.

काफी देर बाद भी पूजा नीचे नहीं उतरी तो मां स्वयं उसे बुलाने ऊपर पहुंच गईं. तब पूजा ने कहा, ‘‘मैं दूल्हादुलहन का कमरा ठीक कर रही हूं. 5 मिनट का काम बाकी है.’’

मां और दूसरे लोग नीचे फेरों की तैयारी में व्यस्त हो गए.

रात 1 बजे तक फेरे भी पूरे हो चुके थे, लेकिन पूजा नीचे नहीं आई थी. घर के लोग डर रहे थे कि बारबार बुलाने से शायद वह गुस्सा न कर बैठे और बात बाहर के लोगों में फैल जाए. इसलिए सभी अपनेआप को काबू में रखे हुए थे.

दूल्हादुलहन को आराम करने के लिए भेजा जाने लगा तो भाभी ने सोचा कि पहले वह जा कर कमरा देख ले. जैसे ही भाभी ने दरवाजा खोला तो सामने बिस्तर पर फूल इत्यादि बिखरे पड़े थे. साथ ही एक लिफाफा भी रखा हुआ था.

पत्र आरती के नाम था, ‘प्रिय आरती, मैं ने अपनी सभी प्यारी चीजें तुम्हारे विवाह के लिए बांध दी हैं. अपने पास कुछ भी नहीं रखा. पैसा भी पिताजी को लौटा रही हूं. केवल मैं अकेली ही जा रही हूं. पूजा.’

भाभी ने पत्र पढ़ लिया, लेकिन उसे किसी को भी नहीं दिखाया और वापस आ कर दूल्हादुलहन को आराम करने के लिए उस कमरे में ले गई.

थोड़ी देर बाद अचानक ही आरती भाभी से पूछ बैठी, ‘‘भाभीजी, पूजा दिखाई नहीं दे रही. क्या सो गई है?’’

भाभी ने कहा, ‘‘हां, मैं ने ही सिरदर्द की गोली दे कर उसे अपने कमरे में भिजवा दिया है. थोड़ी देर बाद ऊपर आ जाएगी.’’

भाभी दौड़ कर पति के पास पहुंची और उन्हें छिपा कर पत्र दिखाया. पत्र पढ़ कर उन्हें पैरों तले की जमीन खिसकती नजर आने लगी.

बड़े भैया सोचने लगे कि अगर मातापिता से बात की तो वे लोग घबरा कर कहीं शोर न मचा दें. अभी तो आरती की विदाई भी नहीं हुई. भैयाभाभी ने सलाह की कि विदा तक कोई बहाना बना कर इस बात को छिपाना ही होगा.

विदाई की सभी रस्में पूरी की जा रही थीं कि मां ने 2-3 बार पूजा को आवाज लगाई, लेकिन भैया ने बात को संभाल लिया और मां चुप रह गईं.

सुबह 8 बजे बरात विदा हो गई. आरती ने सब से गले मिलते हुए पूजा के बारे में पूछा तो भाभी ने कहा, ‘‘सो रही है. कल शाम को तेरे घर पार्टी में हम सब पहुंच ही रहे हैं. फिर मिल लेना.’’

बरात के विदा होने के बाद अधिकांश मेहमान भी जाने की तैयारी में व्यस्त हो गए.

10 बजे के लगभग बड़े भैया पिताजी को सही बात बताने का साहस जुटा ही रहे थे कि सामने वाली उषा दीदी का नौकर आया, ‘‘भाभीजी, मालकिन बुला रही हैं. जल्दी आइए.’’

भाभी तथा भैया दौड़ कर वहां पहुंचे. वहां उषा दीदी और उन के पति गुमसुम खड़े थे. पास ही जमीन पर कोई चीज ढकी पड़ी थी. उषा तो सदमे से बुत ही बनी खड़ी थी. उन के पति ने बताया कि नौकर छत पर कपड़े डालने आया तो पूजा को एक कोने में लेटा देख कर घबरा कर नीचे दौड़ा आया और उस ने बताया कि पूजा दीदी ऊपर सो रही?हैं लेकिन यहां आ कर कुछ और ही देखा.

बड़े भैया ने पूजा के ऊपर से चादर हटा दी. उस ने कोई जहरीली दवा खा कर आत्महत्या कर ली थी.

समीप ही एक पत्र भी पड़ा हुआ था. लिखा था :

‘पिताजी जब तक आप के पास यह पत्र पहुंचेगा तब तक मैं बहुत दूर जा चुकी होंगी. आरती को तो आप ने केवल विदा ही किया है, लेकिन मैं आप को अलविदा कह रही हूं. मैं आरती के विवाह में सम्मिलित नहीं हुई, इसलिए मेरी विदाई में उसे न बुलाया जाए.

आप की बेटी पूजा.’

मांबाप और भाइयों को दुख था कि पूजा को पालने में उन से कहीं गलती हो गई थी, जिस से वह इतनी संवेदनशील और जिद्दी हो गई थी और अपनी छोटी बहन से ही जलने लगी थी. उन्हें लगा कि अगर वे कहीं सख्ती से पेश आते तो शायद बात इतनी न बिगड़ती. पूजा न केवल बहन से ही, बल्कि पूरे घर से ही कट गई थी.

जिस लड़की ने जीते जी उन की शांति भंग कर रखी थी, उस ने मृत्यु के बाद भी कैसा अवसाद भर दिया था, उन सब के जीवन में.

मेरे बेटे का पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरा 8 साल का बेटा है. वैसे तो वह होशियार और ऐक्टिव है लेकिन पता नहीं क्यों पढ़ाई में पीछे रहता है. मैं उस की पढ़ाई-लिखाई पर पूरा ध्यान देती हूं लेकिन फिर भी उस की परफौर्मेंस ज्यादा अच्छी नहीं है. कहीं कुछ मेरी ही देखभाल में कमी तो नहीं?

जवाब

आप खुद मान रहीं हैं कि आप का बच्चा होशियार और ऐक्टिव है. जरूरी तो नहीं कि हर बच्चा क्लास में फर्स्ट आए. फिर भी कोशिश कर के देख लीजिए हो सकता है बच्चे के साथ की गई मेहनत रंग ले लाए. इस के लिए आप कुछ खास तरीके अपना सकती हैं. जैसे, बच्चे की नियमित रूप से दिमागी कसरत करवाएं. उस के साथ दिमागी खेल खेलें जैसे क्विज, डिक्शनरी भरना या सही विकल्प चुनना आदि. ऐसे खेलों से बच्चे का दिमाग विकसित होगा और याददाश्त बढ़ेगी.

रोजाना सुबह बच्चे को 5 भीगे बादाम खिलाएं. फिर गरम दूध दें. बादाम बच्चों के दिमाग के लिए लाभकारी होता है. इस में कौपर, विटामिन डी, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन जैसे कई पोषक तत्त्व पाए जाते हैं.

बच्चों को नियमित रूप से पौष्टिक आहार खिलाया जाए तो उन का दिमाग भी बेहद मजबूत होता है, इसलिए बच्चे को खाने में केला, गाजर, पत्तागोभी, दूध, पालक, घी, सोयाबीन, सेब इत्यादि दें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

स्वाद जबरदस्त, सेहत पस्त

भारतीय व्यंजन की कायल पूरी दुनिया है. जितना मशहूर घर का खाना है उतने ही मशहूर यहां मिलने वाले स्ट्रीट फूड भी हैं. स्ट्रीट फूड यानी सड़क किनारे मिलने वाले समोसे, चाटपकोड़े, भेलपूरी, चाऊमीन, मोमोज, जलेबी, कचौड़ी, गोलगप्पे, टिक्की, बर्गर, इडली, डोसा, छोलेभठूरे, छोलेकुलचे और न जाने क्याक्या. स्ट्रीट फूड देख कर हम ललचाते इसलिए भी हैं क्योंकि रेस्टोरैंट और होटल या ढाबे के मुकाबले यह न सिर्फ सस्ता होता है बल्कि यह स्वादिष्ठ भी होता है. हम सभी इसे चाव से खाते हैं. सस्ते व स्वाद के चलते खा तो लेते हैं पर उस के बाद जब पेट में जलन, मरोड़, उल्टियां व दस्त शुरू होते हैं तब पता लगता है कि स्ट्रीट फूड सेहत पर कितना भारी पड़ता है.

कुछ दिन पहले दिल्ली में एक इंस्टिट्यूट ने गोलगप्पे, मोमोज, चाट, समोसे व बर्गर की जांच की तो पता चला इन में मल के अंश हैं. इन में ई कोलाई बैक्टीरिया बहुतायत में हैं जिन से इन्फैक्शन होता है. ई कोलाई मिलने का मतलब है कि इन्हें बनाने में साफ पानी का इस्तेमाल नहीं होता है और न ही इन्हें हाइजीनिक कंडीशन में तैयार किया जाता है. सैंट्रल पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक, फूड आइटम में कौलीफौर्म बैक्टीरिया का मोस्ट प्रोबेबल नंबर यानी एमपीएन 50 या उस से कम होना चाहिए जबकि जो आइटम्स चैक किए गए उन में इन की संख्या 2,400 से अधिक पाई गई. अब आप को इसी से अंदाजा लग गया होगा कि यह कितना खतरनाक होता है.

स्ट्रीट फूड लगातार खाने से उल्टी, डायरिया, पेटदर्द, बुखार, भूख में कमी, टाइफायड, फूड पौइजनिंग या फिर पेट में जलन आदि हो सकती है. स्ट्रीट फूड खाते समय हमें सिर्फ खाना दिखाई देता है, यह नहीं दिखाई देता कि फूड तैयार करने वाला कौन सा मसाला इस्तेमाल करता है, बरतन साफ है या नहीं, पानी साफ है या गंदा. वह जहां खड़ा है वहां आसपास गंदगी का ढेर है या नहीं. पर यदि आप थोड़ा सा धैर्य और जीभ पर कंट्रोल कर लें व इन बातों पर ध्यान रखें तो न सिर्फ बीमारियों से बच सकते हैं बल्कि आप के बच्चे भी इस से बच सकते हैं क्योंकि बच्चों पर स्ट्रीट फूड का असर जल्दी होता है. डाक्टरों की मानें तो लगातार स्ट्रीट फूड खाना बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर बना देता है और ऐसे भोजन से बच्चे सुस्त हो जाते हैं. बच्चों को मोटापा व कम उम्र में डायबिटीज जैसी बीमारियां घेर लेती हैं.

हालांकि फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स ऐक्ट 2006 के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति जो गंदा या अनहाइजीनिक खाना बेचता है या लोगों को परोसता है उस पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है या फिर बेचने वालों को जेल भी जाना पड़ सकता है पर यह कानून सिर्फ कागजों में ही है. देश के हर गलीमहल्ले में गोलगप्पे, चाऊमीन, बर्गर, जलेबी, समोसा आदि बेचे जाते हैं. इन के विक्रेताओं पर कभी कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती.  दिल्ली के जानेमाने गैस्ट्रोलौजिस्ट डा. एम पी शर्मा ने बताया कि स्ट्रीट फूड खाने से पेट में इन्फैक्शन होता है. जिन बरतनों का इस्तेमाल किया जाता है वे ठीक से धोए नहीं जाते. अच्छी तरह से बरतन साफ नहीं किए जाते, तीसरा, जो खाना बनाया जाता है उस में जो तेल इस्तेमाल होता है उसे बारबार उबालते रहते हैं, उसी तेल में खाना बनाया जाता है. उस तेल की क्वालिटी खराब हो जाती है. उस से बीमारी होती है, चौथा कारण यह है कि इस में जो मिर्चमसाले इस्तेमाल किए जाते हैं वे ठीक नहीं होते जिस से पेट में दर्द, अल्सर, पेट में जलन आदि होती है. डायरिया के साथसाथ कुछ लोगों को मियादी बुखार हो सकता है. कालरा, वायरल और हेपेटाइटिस हो जाता है जिसे हम जौंडिस कहते हैं.

यह इन्फैक्टेड पानी या खाने से होता है. अगर किसी ने यह ठान ही लिया है कि हमें तो यह स्ट्रीट फूड खाना ही खाना है, ऐसी स्थिति में यह कोशिश होनी चाहिए कि खाना ठंडा न हो. खाने को अच्छी तरह बौयल करवाएं. इस से जो बैक्टीरिया होते हैं वे मर जाते हैं. लेकिन वायरस नहीं मरता. स्टील गिलास या मैटल के गिलास साफ नहीं हो पाते, इसलिए हमेशा पानी डिसपोजल गिलास में ही पिएं. प्लेट्स भी डिसपोजल हों. स्टील या मैटल के प्लेट्स साफ नहीं होने की वजह से उन में बैक्टीरिया रह जाते हैं. अकसर स्ट्रीट फूड बेचने वाले एक तसले में पानी भर कर उस में बरतन को डुबो कर साफ करते रहते हैं और एक गंदे से कपड़े से पोंछ कर उस में फूड परोस देते हैं, ऐसे में सही सफाई नहीं होती. यदि कोई व्यक्ति पहले से ही इन्फैक्टेड है और उस ने उसी प्लेट में खाया, फिर गंदे पानी से उसी प्लेट को धो कर आप को उसी में खाना दे दिया गया तो आप भी इन्फैक्टेड हो सकते हैं.

स्ट्रीट फूड खाना ही है तो सावधानी जरूर बरतें. थोड़ा अधिक पैसा खर्च कर अच्छी और साफसुथरी जगह से ही खाएं. बेचने वालों को भी कहें कि खाना ढक कर रखो. खुले में मक्खियां खाने में बैठती हैं जो बीमारी पैदा करती हैं. स्ट्रीट फूड बनाने वालों की भी यह जिम्मेदारी होनी चाहिए. उन्हें भी एजुकेशन देने की जरूरत है. ये सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि यह आप की भी जिम्मेदारी है.

दोबारा मां बनने के बाद अनुपमा ने शेयर की फोटोज, फैंस ने दिया ये रिएक्शन

स्टार प्लस का शो अनुपमा में इन दिनों दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो में अनुपमा फिर से मां बन गई है. कपाड़िया हाउस में छोटी अनु की एंट्री हुई है. ऐसे में अनुज-अनुपमा को दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई है.

शो में इस ट्रैक को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं. अनुपमा और अनुज काफी समय से छोटी अनु को घर लाने का इंतजार कर रहे थे.  आखिरकार ये इंतजार खत्म हो गया है.

 

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छोटी अनु के आने से बरखा, अंकुश और अधिक को बड़ा झटका लगा है. तो दूसरी तरफ अनुपमा और अनुज सिर्फ बेटी के साथ हर मोमेंट को एंजॉय कर रहे हैं.

 

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इसी बीच अनुपमा ने छोटी अनु और अनुज का किरदार निभाने वाले गौरव खन्ना के साथ फोटोज शेयर की हैं. फोटोज में आप देखेंगे कि तीनों ने येलो कलर के आउटफिट्स पहने हैं और तीनों कॉफी खुश नजर आ रहे हैं.

 

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अनुपमा ने फोटोज शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘द मिनियन्स…कलर कॉर्डिनेटेड कपाड़िया.’ फैंस इस पोस्ट पर खूब प्यार बरसा रहे हैं. फैंस इस पोस्ट पर लगातार कमेंट कर रहे हैं, एक यूजर ने लिखा है, कपाड़िया बड़े ही प्यारे हैं, तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा है कि परफेक्ट फैमिली फोटो है.शो में अब ये देखना होगा कि शाह परिवार  छोटी अनु को लेकर क्या रिएक्ट करते हैं?

 

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GHKKPM: पाखी नहीं है प्रेग्नेंट, सई को पता चलेगा सच्चाई?

टीवी सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि पाखी विराट और सई के बच्चे की सेरोगेट मदर बनी है. तबसे पाखी नई-नई चाल चल रही है  और विराट के करीब जाने की कोशिश कर रही है. शो के अपकमिंग एपोसड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया जा रहा है कि पाखी विराट के करीब जाने के लिए नई-नई चाल रही है. लेकिन सई को पाखी के इरादों के बारे में पता है.

 

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सई सिर्फ अपने बच्चे के लिए पाखी को बर्दाश्त कर रही है. अब पाखी खुद ही अपनी मुसीबतें में फंस रही हैं. वह अपने झूठ को बचाने के लिए सारी हदें पार कर रही है.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि भवानी और सई, पाखी का प्रेग्नेंसी टेस्ट करवाने के लिए अस्पताल जाएंगे. जब डॉक्टर पाखी का चेकअप करेगी तो पता चलेगा कि वह प्रेग्नेंट नहीं है.

 

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डॉक्टर की बात सुनकर पाखी शॉक्ड हो जाती हैं. लेकिन जैसे ही डॉक्टर सई को ये बताने जाती है तो कोई डॉक्टर को गोली मार देता है. बता दें कि वैषाली डॉक्टर को गोली मारती है.शो में अब ये देखना होगा कि क्या वैशाली और पाखी की सच्चाई सामने आ पाएगी या नहीं?

 

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न्यायाधीशों के निशाने पर याचिकाकर्ता

छत्तीसगढ़ में 16 आदिवासी एक मुठभेड़ में मार दिए गए. आरोप ये भी है कि तभी एक मासूम बच्चे की उंगलियां भी काट दी गईं थीं. उसी वक्त जांच के लिए आदिवासी एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार ने साल 2009 में एक याचिका डाली. तब से अब 2022 तक इस याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हुई.

अचानक से सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 14 जुलाई को इस याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5 लाख का जुर्माने का आदेश दे दिया. ये हत्याएं छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के वक्त हुईं थीं. याचिकाकर्ता जांच चाहते थे. सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर 5 लाख का जुर्माना लगाया है, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार से उन पर एक केस करने का आदेश भी दिया है.

यहां दिलचस्प बात ये है कि ये आदेश जस्टिस खानविलकर की बेंच ने दिया है. इन्होंने ही पिछले महीने गुजरात दंगों की दोबारा से जांच करने की मांग करने वाली जाकिया जाफरी की याचिका को भी ख़ारिज किया था. ना केवल ख़ारिज किया था बल्कि सेम पैटर्न पर याचिका डालने वाली एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के लिए कहा कि वे इस मुद्दे को अपने लिए भुना रही हैं और उन पर कार्रवाई हो, अगले ही दिन गुजरात सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया.

मतलब याचिकाकर्ताओं को ही अब टारगेट किया जा रहा है. इतना भारी जुर्माना लगाया जा रहा है कि आगे कोई पीड़ितों के लिए लड़ने की सोचे भी नहीं. ये याचिका 13 साल से पड़ी हुई थी, इस पर अब जा कर पहली बार सुनवाई हुई.

देश धनसंपदा लूट कर विजय माल्या की तरह विदेश भाग जाओ तो अवमानना पर सिर्फ 2000 रुपये जुर्माना लगेगा और निर्दोषों की हत्या के खिलाफ कोर्ट जाओगे तो 5 लाख रुपये जुर्माना लगेगा!

गजब के इंसाफ पर फैसले दर फैसले हो रहे हैं देश में. यह फैसला उन लोगों के लिए नसीहत है जो गरीबों, वंचितों, शोषितों के लिए लड़ रहे है कि चुपचाप बैठ कर अन्याय व अत्याचार के दृश्यों को फिल्मों की तरह देखें. बीच मे इन्टरवेल में कानाफूसी कर लें और अगले सीन के लिए इंतजार करें.

जनता मुर्गों की तरह बना दी गई है. सब के आगे मुफ्त राशन के दाने डाल दिये गए है. खाने में लगी हुई है. जिस मुर्गी को काटा जाता है बस वो ही कुकुडूकु करती है.

एक दिलचस्प कहानी है. एक मामले को ले कर ग्रामीण बुजुर्ग दरोगा के पास गया. दरोगा ने कहा कि 20 हजार में मामला निपटा दुंगा. बुजुर्ग ने पैसे देने से इनकार कर दिया. मामला कोर्ट में पहुंचा और 12 साल बाद फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि आप मुकदमा जीत गए हो. बुजुर्ग ने आशीर्वाद स्वरूप कहा कि भगवान आप को दरोगा बनाए.

जज ने कहा कि जज का पद बड़ा होता है. बुजुर्ग ने कहा कि पदों की जानकारी तो मुझे नहीं लेकिन जो मामला उसी दिन 20 हजार में दरोगा निपटा रहा था, वो मामला 12 साल बाद तकरीबन 1लाख रुपये खर्च करवा कर आप ने निपटाया है. ताकत तो दरोगा में ही ज्यादा है.

भविष्य में लोग न्यायालय जाने से डरने लगेंगे. अपने स्तर पर निपटने के प्रयास करेंगे. भ्रष्टाचार बढ़ेगा. कई जगहों पर तो देश मे लोग गुंडों/गैंगस्टर से मदद लेते है, उस को बढ़ावा मिलेगा. मी लार्ड ऐसा ना किया करो. इस तरह तो अकेली खड़ी इंसाफ की देवी की आंखों पर पट्टी भी नहीं बांधनी पड़ेगी.

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