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मैं अपनी भाभी से प्रेम करता हूं, पर वो मुझसे बात भी नहीं करती, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 35 साल है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है. पिछले 15 साल से मेरा अपनी भाभी के साथ जिस्मानी रिश्ता रहा है. लेकिन हाल ही में मेरे भतीजे ने हम दोनों को बिस्तर पर एकसाथ देख लिया था. तब से मेरी भाभी मुझ से बात नहीं कर रही हैं. मैं उस के बिना रह नहीं सकता. क्या करूं?

जवाब

इस तरह के संबंध बनाए तब जाने चाहिए जब छिपा कर रख सकें, वरना खतरा तो रहेगा ही. भतीजे की जगह अगर भाई या कोई और बड़ा देखता तो क्या हालत होती, इस का अंदाजा आप भी लगा सकते?हैं. आप की?भाभी वही कर रही?हैं जो इस हालत में किसी भी औरत को करना चाहिए. अब आप को चाहिए कि मुफ्त की मलाई का लालच छोड़ कर शादी कर लें और भाभी से जिस्मानी संबंधों की बात को भूल जाएं.

लड़के-लड़कियों का रिलेशनशिप में होना कोई नई बात नहीं हैं और न ही लड़कियों का अपने बौयफ्रैंड्स से छोटेमोटे गिफ्ट्स की उम्मीद लगाना नया है. लड़कियों की अपने बौयफ्रैंड्स से कई तरह की अपेक्षाएं होती हैं. कुछ के लिए रिलेशनशिप में आने का मतलब ही यह होता है कि आज तक जो इच्छाएं पूरी न हो सकीं, अब करेंगे. लेकिन, ये लड़कियां या तो स्कूलगोइंग होती हैं या फिर कालेजगोइंग, और उन के खुद के पास इतने पैसे नहीं होते जो उन के अरमानों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हों.

ऐसे में उन की जरूरतें पूरी करने के लिए प्रकट होते हैं उन के बौयफ्रैंड्स जिन्हें शरूशुरू में तो पैसा लुटाने और अपनी धाक जमाने में बड़ा मजा आता है, लेकिन जैसेजैसे उन के हाथ से पैसा जाने लगता है यह मजा सजा बन कर रह जाता है. डेट्स का बिल, मूवी टिकट, महंगे कैफे में खाना, मिलने पर फूल या चौकलेट, फोन का रिचार्ज विद ऐक्स्ट्रा डाटा पैक, फैस्टिवल और वेलैंटाइन पर अलग तोहफे और बर्थडे पर तो सम झो दीवाला निकल जाता है.

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कहीं आनाजाना हो, तब भी रिकशे से ले कर पानी खरीदने तक का बिल बौयफ्रैंड की जेब से ही खर्च होता है, क्योंकि गर्लफ्रैंड का हाथ बैग में लिपस्टिक के लिए तो हर घंटे जाता है लेकिन पैसों के लिए नहीं. लड़कियों का पैसों के मामले में पूरी तरह से बौयफ्रैंड पर आश्रित हो जाना और हर छोटीबड़ी चीज के लिए उस का मुंह ताकना एक आदत बन जाती है जो समय के साथ पहले से ज्यादा गहराती जाती है.

लड़कियों की प्यार के नाम पर अपने बौयफ्रैंड्स पर यह इकनौमिक डिपैंडैंस लड़कों का जीना मुश्किल कर देती है या यों कहें कि उन्हें बरबाद कर देती है. ये वही लड़के हैं जो बेचारे बाबू, जानु, शोनामोना करते रह जाते हैं और रिलेशनशिप खत्म होने पर इन्हीं गर्लफ्रैंड्स को गोल्डडिग्गर होने का टैग देते फिरते हैं. सोशल मीडिया पर तो ऐसे लड़कों की भरमार है. असल में देखा जाए तो इस में पूरी तरह लड़कियों की गलती नहीं कही जा सकती. लड़कों को खुद को एक लैवल अप दिखाने का कोई मौका छोड़ना पसंद नहीं. ऐसे में पैसा, रुतबा दिखाने से बेहतर क्या होगा?

  1. बौयफ्रैंड खर्च करने को शान मानते हैं

पीयूष एक अमीर घराने का लड़का था जिसे दिन के 700-800 रुपए लुटाना आम बात लगती थी. उस की गर्लफ्रैंड नीता भी खूब खर्चीली थी और आएदिन पापा से पैसे मांग कर खर्च करती थी. पीयूष और नीता रिलेशनशिप में थे और काफी खुश भी थे. लेकिन जब भी दोनों डेट पर जाते तो सारा खर्च पीयूष उठाता. उसे नीता का पैसे खर्च करना खुद की बेइज्जती लगता था. नीता के पास भी पैसे होते थे लेकिन पीयूष ही सारे बिल भरता था.

कालेज के थर्ड ईयर तक आतेआते पीयूष को पैसों की तंगी होने लगी, जिस के चलते अब वह नीता पर खर्च नहीं कर पाता था. नीता के सामने  झुकना और ‘लड़की के पैसों पर जीना’ वाली धारणा लिए रिलेशनशिप में रहना पीयूष को कतई मंजूर नहीं था. उस ने डेट्स पर जाना, नीता के साथ फिल्म देखना, घूमनाफिरना सब कम कर दिया. फिर क्या होना था, नीता और पीयूष के बीच अनबन होने लगी. पीयूष हमेशा टैंशन में रहने लगा, नीता को टाइम भी नहीं देता था. आखिर, कुछ ही दिनों में दोनों का ब्रेकअप हो गया.

2. गर्लफ्रैंड को इंप्रैस करने के लिए करते हैं खर्च

काव्या रोहित को कालेज में मिली थी. रोहित उसे देख कर मानो हवा में उड़ने लगा. जब वे दोनों रिलेशनशिप में आए तो रोहित जबतब उसे अपनी स्कूटी पर घुमाने ले जाता. वह उसे उस की मनपसंद आइसक्रीम खिलाने ले जाता था. काव्या के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह महंगे कपड़े खरीद पाती. वह रोहित के सामने जानबू झ कर कहा करती थी कि उसे यह या वह ड्रैस लेने का बहुत मन है लेकिन पैसे नहीं हैं अभी. रोहित यह सुन कर सम झ जाता कि उसे काव्या को गिफ्ट में अगली बार क्या देना है. काव्या और रोहित एक ही ग्रुप में थे. कोई और दोस्त काव्या को यह न कहे कि वह रोहित के पैसों पर जी रही है, रोहित उस के साथसाथ गु्रप की बाकी लड़कियों को भी शौपिंग करा आता. वे सभी कहीं कुछ खाने जाते तो काव्या खाने से इसलिए मना कर देती कि उस के पास पैसे नहीं हैं. इस पर रोहित अपने साथसाथ उस के पैसे भी दे देता.

रोहित हर दूसरे दिन अपनी मम्मी से पैसे मांगता था. मम्मी के मना करने पर उन से लड़ भी पड़ता. अपनी गर्लफ्रैंड का दिल जीतने के लिए उसे जो कुछ भी करना पड़ता, वह करता था. पर वह दिन दूर नहीं था जब दोनों का ब्रेकअप हो गया. रोहित और काव्या दोनों को ही ब्रेकअप का दुख था लेकिन ब्रेकअप के बाद रोहित को काव्या पर बहुत गुस्सा आया था. वह अब उस के बारे में किसी को भी कुछ बताता तो यह जरूर कहता कि वह एक पैसा खाने वाली लड़की है जिस ने उस का पैसों के लिए खूब इस्तेमाल किया. ऐसे में यह सम झना बहुत जरूरी हो जाता है कि चाहे आप का बौयफ्रैंड खुद आप पर पैसे लुटाना चाहे, फिर भी आप को उसे खुद पर खर्च करने से रोक देना चाहिए.

3. गर्लफ्रैंड्स खुद के खर्चे उठाना सीखें

ऐसा नहीं है कि हर लड़की अपने बौयफ्रैंड पर ही निर्भर रहती है. ऐसी लड़कियां भी हैं जो अपने खर्चे खुद उठाती हैं. फिर भी जिन लड़कियों को अपने पैसे खर्च करने के बजाय अपने बौयफ्रैंड की जेब ढीली करने में आनंद आता हो उन्हें यह सम झना बहुत जरूरी है कि वे अपने रिलेशनशिप को तो डिसबैलेंस्ड कर ही रही हैं, साथ ही, अपने बौयफ्रैंड की टैंशन और अजीब व्यवहार का कारण भी बन रही हैं.

4. हर समय तोहफों की अपेक्षा न करें

लड़कियों का हर समय तोहफे मांगते रहना या अपने बौयफ्रैंड से महंगे तोहफे लेने की अपेक्षाएं असल में लड़कों के लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं. वे कभी दोस्तों से पैसे उधार मांगते हैं तो कभी बड़े भाईबहन से. मम्मीपापा अगर पैसे के लिए मना कर दें तो वे उन से लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं. पैसों को ले कर बौयफ्रैंड की यह टैंशन गर्लफ्रैंड अपनी अपेक्षाएं कम कर आसानी से दूर कर सकती है.

5. अपने बिल खुद भरें

हर चीज में लड़कियां लड़कों से आगे हैं तो इस में क्यों पीछे रहें. लड़कियों को जरूरत है कि वे डेट्स या मूवीज का पूरा बिल न सही पर अपने हिस्से का तो दे ही दें. इस से बेचारे बौयफ्रैंड का कम से कम थोड़ा बो झ तो कम होगा.

6. मनपसंद चीजों के लिए पैसे बचाना सीखें

लड़कियों को भी अपने घर से अच्छाखासा जेबखर्च तो मिल ही जाता है. और अगर किसी महंगी चीज को खरीदने का मन करे तो उस के लिए पैसे बचाएं. अपने खुद के पैसों से खरीदी हुई चीज का मोल कहीं ज्यादा होता है.

7. पैसे नहीं हैं तो इच्छाएं कम रखें

हर सुंदर चीज पर दिल आ जाना और अपने बौयफ्रैंड की तरफ नजर घुमा लेना बहुत सी लड़कियों की आदत होती है. यह एक बुरी आदत है क्योंकि आप की इच्छाएं पूरी करना आप के बौयफ्रैंड का काम नहीं है. अगर पैसे नहीं हैं तो ऐसी इच्छाएं रखना कम कर दीजिए. यानी, रिलेशनशिप में खर्च केवल लड़का ही उठाए, यह सरासर गलत है. लड़कालड़की दोनों ही रिलेशनशिप में बराबर की हिस्सेदारी रखते हैं, तो बिल्स के भी बराबर हिस्से होने चाहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

ऑनलाइन गेम: हत्यारा बनाने की मशीन

दरअसल, ऑनलाइन गेम यानी कि पहले का पबजी ऐसा नशा बनकर सामने आया है जिसके कारण आए दिन नासमझ नाबालिग कहे जाने वाले बच्चों द्वारा नृशंस हत्या की घटनाएं घटित हो रही है.

ऐसे में समाज और सरकार को चाहिए कि ऑनलाइन गेम पर जितनी जल्दी हो सके अंकुश लगाया जाए. यह किशोरों को हत्यारा बनाने की एक ऐसी मशीन है जिस का सच अब सामने आ चुका है.

हम आपको आज लखनऊ की नवीनतम घटना की जानकारी दे रहे हैं जिसमें एक 16 साल के नाबालिग लड़के ने सिर्फ इसलिए अपनी मां की हत्या कर दी उसकी मां उसे ऑनलाइन गेम खेलने से समझाया करती थी.

मोबाइल पर बैटल ग्राउंड गेम (पुराना नाम पब जी) खेलने से रोकने पर नवाबों की नगरी कहे जाने वाले लखनऊ के पंचम खेड़ा की यमुना पुरम कालोनी निवासी मह‍िला राधिका वर्मा (बदला हुआ नाम) की शनिवार देर रात उनके ही जाये सगे बेटे ने गोली मारकर हत्या कर दी . किशोर राहुल (बदला हुआ नाम) ने मां  की हत्या की साजिश 10 दिन पहले रची थी उसके लिए पिताजी की पिस्टल पर उसका ध्यान केंद्रित हुआ और पिता की लाइसेंसी पिस्टल अपने कब्जे में लेकर आखिरकार उसने अपने ही हाथ  अपनी मां की हत्या कर दी.और सोचने लगा कि वह पुलिस से बच सकता है.

मामला उजागर होने के बाद पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया कि पिता की पिस्तौल अपने कब्जे में करने के लिए राहुल ने बड़े ही शातिराना ढंग से इसके लिए पिता  की  अलमारी की डुप्लीकेट चाबी बनवाई और पिस्टल अपने कब्जे में कर ली थी.

यु ट्यूब से सीखा गोली चलाना

शनिवार 4  जून 2022 की देर रात करीब एक बजे उसने अलमारी से पिता की पिस्टल कब्जे में ली और सो रही मां पर गोली दाग दी. हत्या करने के बाद उसने मां के शव को छुपा भी दिया, बाद में शव से आ रही बदबू को छिपाने के लिए वह कमरे में तीन दिन से रूम फ्रेशनर छिड़क रहा था. पुलिस की छानबीन में सबसे चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि राहुल ने यू-ट्यूब से पिस्टल चलाना सीखा  मां   राधिका की हत्या करने से पहले उसने कई बार यू-ट्यूब पर गोलियां चलाने के वीडियो देखे थे .

वस्तुत:आज देश में करोड़ों की संख्या में युवा ऑनलाइन गेम में लगे रहते हैं और ऑनलाइन गेम  उनका जीवन बन गया है, राहुल भी बैटल ग्राउंड गेम खेलने का भयंकर आदी हो गया था. आसपास के लोगों ने भी उसके मोबाइल फोन के लत लगने  की बात पुलिस को बताई है. बेटे की बिगड़ती आदत को देखते हुए कई दिन से राधिका उसे समझा बूझा रही थी.

करीब दो सप्ताह पूर्व एक दिन राधिका को बहुत गुस्सा आया उसने राहुल को बुरा भला कर करके समझाया  और राहुल  से उसका मोबाइल फोन छीन लिया था. इसके बाद राहुल अपने रंग दिखाने लगा  उसने अपने नाना से बात कर मोबाइल फोन वापस दिलाने के लिए कहा था.

नाना ने बेटी से बात की, जिसके बाद किशोर को दोबारा मोबाइल फोन मिल गया था.इस घटना के बाद से ही किशोर मां की हत्या की साजिश रच रहा था. मृतका के प‍िता ने बताया कि किशोर किसी की बात नहीं सुनता था. वह अक्सर लोगों को उलटे जवाब ही देता था.

इन आदतों के कारण ही उसे कई स्कूलों से भी निकाला जा चुका था. वर्तमान में राहुल लखनऊ में सेनानी विहार स्थित एक स्कूल में 10वीं का छात्र था .

योगी सरकार के राज में महिलाएं चलाएगी हाई टेक नर्सरी

बागवानी को बढ़ावा देने और ग्रामीण आजीविका में सुधार के दोहरे उद्देश्य को पूरा करने के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार ने मनरेगा योजना के तहत  इज़राइली तकनीक पर आधारित  150 हाई-टेक नर्सरी स्थापित करने का निर्णय लिया है.

इन हाईटेक नर्सरी का संचालन उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं करेंगी.

योजनान्तर्गत प्रत्येक जिले में बेर, अनार, कटहल, नींबू, आम, अमरूद,  ड्रेगन-फ्रूट आदि फल तथा स्थानीय भौगोलिक आवश्यकताओं के अनुरूप अनेक सब्जियां उगाने के लिए दो-दो हाईटेक नर्सरी विकसित की जा रही हैं.

सरकार गुणवत्तापूर्ण फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के साथ-साथ हाई-टेक नर्सरी में गुणवत्ता वाले पौधे और बीज विकसित करना चाहती है. सरकार के इस कदम का एक और उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की बढ़ती संख्या के लिए पर्याप्त फसल उपलब्ध कराना भी है.

उल्लेखनीय है कि बस्ती और कन्नौज में क्रमशः फलों और सब्जियों के लिए इंडो-इजरायल सेंटर फॉर एक्सीलेंस की स्थापना की गई है, ताकि किसानों को गुणवत्तापूर्ण पौध मिल सके.

ये 150 हाईटेक नर्सरी राज्य के कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों के परिसर, बागवानी विभाग के अनुसंधान केंद्र में स्थापित की जाएंगी ताकि किसानों को आसानी से प्रशिक्षित किया जा सके. उद्यान विभाग के अनुमान के अनुसार प्रत्येक हाई-टेक नर्सरी की औसत लागत लगभग एक करोड़ रुपये होगी.

इन नर्सरियों को उचित बाड़, सिंचाई सुविधा, हाई-टेक ग्रीन हाउस जैसी बुनियादी सुविधाओं से लैस किया जाएगा और सीएलएफ (क्लस्टर लेवल फेडरेशन) / राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्य समूहों के माध्यम से इनका रखरखाव किया जाएगा.

इन नर्सरी से उत्पादित पौधों को इच्छुक स्थानीय किसानों, क्षेत्रीय स्तर पर किसान उत्पादन संगठनों (एफपीओ), राज्य स्तर पर अन्य निजी नर्सरी, राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्य सरकारों और अन्य के पौधरोपण के लिए बेचा जाएगा.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगले 5 वर्षों में बागवानी फसलों की खेती के क्षेत्र को 11.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 16 प्रतिशत  करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है  ताकि खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को पर्याप्त फल और सब्जियां मिल सकें.

मानसून में एक्ने और आयल फ्री स्किन पाइये

हर किसी को मानसून के मौसम का इंतजार होता है. क्योंकि गर्मी से राहत जो मिलती है. फिर चाहे हलकी बूंदाबांदी हो या फिर हैवी रेन , दिल को अलग ही सुकून मिल जाता है. लेकिन ये मौसम जितना सुहावना होता है, उतनी ही इस मौसम में नमी भी होती है, जो एक्ने का कारण बनती है. खासकर के ये मौसम ऑयली व कोम्बिनेशन स्किन वालों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होता है. लेकिन परेशान होने से समस्या का समाधान नहीं निकलता , बल्कि इस समय पर सही ब्यूटी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने की जरूरत होती है,  जो स्किन को क्लीन करने के साथ उसके पीएच लेवल को भी बैलेंस में बनाए रखे, ताकि आप मानसून के सीजन को खुशीखुशी एंजोय भी कर सके और स्किन पर एक्ने जैसी कोई समस्या भी न हो. इसके लिए बायोडर्मा का सेबियम जैल मोशेंट बेस्ट प्रोडक्ट है, जो स्किन को क्लीयर व हैल्दी बनाने का काम करता है.

क्यों होती है एक्ने की समस्या 

मानसून के मौसम में बहुत ज्यादा नमी होती है, जिसके कारण त्वचा में सीबम का अत्यधिक उत्पादन होने के कारण स्किन तेलिए लगने लगती है. जो बैक्टीरिया के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण माना जाता है. क्योंकि चिपचिपे व तेलिए फेस पर गंदगी, पसीना आसानी से चिपकने के कारण एलर्जी व  पोर्स के क्लोग होने के साथ एक्ने व ब्रेअकाउट्स का कारण बनता है. खासकर के ऑयली व कोम्बिनेशन स्किन वालों को एक्ने की समस्या का ज्यादा सामना करना पड़ता है. क्योंकि स्किन केयर के अभाव में स्किन बैरियर ठीक से कार्य करने में सक्षम नहीं होने के कारण उस पर तुरंत एलर्जी का कारण बनने के साथ पोर्स को ब्लोक भी कर देता है. जिससे चेहरे पर एक्ने आने के साथ धीरेधीरे आपके चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ने लगती है. ऐसे में सही स्किन प्रोडक्ट यानि क्लीन्ज़र से स्किन की केयर करने की जरूरत है.

बायोडर्मा का सेबियम जैल मोशेंट  

ये खास इसलिए है , क्योंकि ये स्किन को बिना ड्राई किए क्लीन करने का काम करता है. इसमें है जिंक सलफेट व कॉपर सलफेट जैसे इंग्रीडिएंट , जो स्किन को बिना कोई नुकसान पहुंचाए , उसकी एपिडर्मिस लेयर यानि स्किन की आउटर लेयर को क्लीन करके सीबम सेक्रेशन को भी कम करने का काम करता है , जिससे एक्ने की समस्या नहीं होती है. साथ ही ये चेहरे पर एक्ने के कारण होने वाले दागधब्बों को भी कम करता है. इसका सोप फ्री फार्मूला स्किन के पीएच लेवल को भी बैलेंस में रखता है. जिससे स्किन पर कोई प्रोब्लम हुए बिना  स्किन प्रोब्लम्स ठीक हो जाती हैं.

यूएसपी जानकर खरीदें 

जेंटली क्लीन योर स्किन 

स्किन के लिए वही प्रोडक्ट अच्छा होता है, जो उस पर हार्श इफेक्ट डाले बिना स्किन को क्लीन करता है. क्योंकि जेंटल प्रोडक्ट्स स्किन से गंदगी को न सिर्फ आसानी से रिमूव करने का काम करते हैं , बल्कि स्किन के नेचुरल आयल को भी स्किन में बनाए रखते हैं. जिससे स्किन हाइड्रेट भी बनी रहती है, साथ ही स्किन से डस्ट, गंदगी भी रिमूव हो जाती है. जो स्किन को खूबसूरत बनाने के साथ एक्ने फ्री स्किन देने का काम करती है.

पीएच लेवल को बनाए रखे 

ये सेबियम जैल मोशेंट स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस में रखने के साथ स्किन पर प्रोटेक्टिव बैरियर का काम करता है. इससे स्किन पर इंफेक्शन व बैक्टीरिया के पनपने के चांसेस काफी कम हो जाते हैं. साथ ही स्किन को बाहरी वातावरण से होने वाले नुकसान से भी प्रोटेक्शन मिलती है. और स्किन का मोइस्चर भी बना रहता है. जो हैल्दी व अट्रैक्टिव स्किन के लिए बहुत जरूरी होता है.

सीबम के अत्यधिक उत्पादन को रोके 

जब त्वचा पर अत्यधिक सीबम का उत्पादन होने लगता है, तो ये न सिर्फ स्किन पर ग्रीसी इफेक्ट देने का काम करता है, साथ ही पोर्स को भी क्लोग करके एक्ने का कारण बनता है. लेकिन इस सेबियम जैल मोशेंट में जिंक सल्फेट की मौजूदगी स्किन पर ज्यादा आयल को उत्पन्न होने से रोकने में मदद करता है. साथ ही इसमें कॉपर सलफेट स्किन पर बैक्टीरिया को पनपने से रोकने के साथ स्किन को हैल्दी बनाने में मददगार है.

पोर्स को क्लोग होने से रोके 

ये प्रोडक्ट नोन कॉमेड़ोजेनिक , नोन डाई और इसका सोप फ्री फार्मूला  होने के कारण ये एक्ने प्रोन, ऑयली व कोम्बिनेशन स्किन के लिए बेस्ट प्रोडक्ट है. क्योंकि अगर आप बिना सोचेसमझें व फिर इंग्रीडिएंट्स को बिना देखे ब्यूटी प्रोडक्ट्स खरीद लेते हैं , तो कई बार उनमें ज्यादा केमिकल्स का इस्तेमाल होने के कारण ये पोर्स के क्लोग करने का कारण बनते हैं. जो एक्ने व स्किन एलर्जी का बड़ा कारण है. जबकि इस प्रोडक्ट को आप सेफली यूज़ कर सकते हैं.

डर्मेटोलोजिस्ट  टेस्टेड 

जो भी ब्यूटी प्रोडक्ट आप मार्केट से खरीदें, देखें कि वो  डर्मेटोलोजिस्ट  टेस्टेड होना चाहिए. आपको बता दें कि ये प्रोडक्ट  डर्मेटोलोजिस्ट  टेस्टेड है, जिससे इसका स्किन पर किसी भी तरह का कोई रिएक्शन नहीं होने के साथ ये एक्ने को ट्रीट भी करेगा और स्किन के नेचुरल आयल को भी बनाए रखेगा. दुनियाभर में सेलिब्रिटीज भी इस प्रोडक्ट को यूज़ करने की सलाह देते हैं.  ये माइल्ड होने के साथ स्किन के लिए अच्छा होने के साथ आंखों को भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है.

कैसे अप्लाई करें 

इसे आप हफ्ते में सातों दिन अपने मोर्निंग व इवनिंग रूटीन में शामिल करें. बस आपको जरूरत है इस क्लीन्ज़र को अपने गीले चेहरे पर लगाने की. ध्यान रखें ये फोम वे में वर्क करेगा. फिर आप पानी से चेहरे को अच्छे से धो कर आराम से चेहरे को साफ कर लें. इससे आपका चेहरा क्लीन होने के साथसाथ आपको कुछ ही दिनों में एक्ने  फ्री स्किन मिल जाएगी.  तो फिर आज ही इसे अपने ब्यूटी रूटीन में शामिल करके पाएं हैल्दी व एक्ने फ्री स्किन.

ड्रग्स केस में फंसे शक्ति कपूर के बेटे सिद्धांत कपूर, पढ़ें खबर

बॉलीवुड के मशहूर एक्टर शक्ति कपूर (Shakti Kapoor) के बेटे सिद्धांत कपूर (Siddhanth Kapoor)  पर ड्रग्स लेने का गंभीर आरोप लगा है. रिपोर्ट के अनुसार, एक पार्टी में कथित तौर पर सिद्धांत कपूर ड्रग्स का सेवन करते पाए गए. इसके बाद उन्हें बेंगलुरु में हिरासत में लिया गया है.

बताया जा रहा है कि सिद्धांत कपूर इस समय पुलिस की हिरासत में हैं. सिद्धांत कपूर ने ‘चुप चुप के’, ‘भूल भुलैया’, ‘भागम भाग’ जैसी फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम किया है. जबकि उन्होंने ‘जज्बा’, ‘हसीना पारकर’ और ‘चेहरे’ जैसी बॉलीवुड फिल्मों में अहम किरदार निभाया है.

 

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हाल ही में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने क्लीन चिट दे दी थी. उन्हें पिछले साल एक क्रूज ड्रग्स बस्ट मामले में गिरफ्तार किया गया था. आर्यन खान ने पिछले साल लगभग एक महीना जेल में बिताया था और बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया.

 

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एक रिपोर्ट के मुताबिक शक्ति कपूर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो सकी. सिद्धांत की बात करें तो वो कई फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुके हैं.

 

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शाह परिवार को खरी-खोटी सुनाएगी बरखा, अनुपमा देगी करारा जवाब

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि बरखा ने बापूजी और वनराज की जमकर बेईज्जती की. तभी अनुपमा आती है और वह बापूजी से माफी मांगती है. तो दूसरी तरफ वह बरखा को भी जवाब देती है. शो के आनेवाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि बापूजी उसे कुछ तोहफे देंगे. बरखा शाह हाउस से आया हुआ सारा सामान टेबल के नीचे रखवाएगी और यह सब वनराज देख लेगा. बरखा भी देख लेगी कि वनराज ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया है.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि अनुज अनुपमा से पूछेगा कि वनराज को घर के बाहर क्यों रोक लिया गया था. अनुपमा बताएगी कि शाह परिवार का नाम गेस्ट लिस्ट में नहीं था. अनुज और शाह परिवार की बॉन्डिंग देख बरखा को जलन होगी.  तभी अंकुश उसे शांत करवाने की कोशिश करेगा लेकिन बरखा का पारा बढ़ता जाएगा.

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुपमा पूजा करने की बात करेगी  तभी बरखा घर और बिजनेस को लेकर अनाउंसमेंट करेगी. अनुज सबको बताएगा कि घर और बिजनेस की असली मालकिन अनुपमा है.

 

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अनुपमा जैसे ही कुछ कहने लगेगी, बरखा म्यूजिक ऑन कर देगी और सबको डांस करने के लिए कहेगी. अनुपमा यह देखकर थोड़ा परेशान होगी और जाकर म्यूजिक बंद कर देगी और भजन लगा देगी. शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि सारा और अधिक नजदीक आएंगे. दूसरी तरफ बरखा अनुपमा से प्रॉपर्टी छीनने के लिए चाल चलेगी.

कपल्स के बीच उम्र का फासला

अब से कुछ दशकों पहले तक कपल्स की उम्र में 10-12 साल का अंतर होना आम बात थी. तब सोच यह थी कि पति के उम्र में बड़े होने से पत्नी पर उस का वर्चस्व कायम रहेगा. लड़की के मातापिता भी अपनी बेटी से बड़ी उम्र के लड़के से संबंध करने के इच्छुक रहते थे. लेकिन आज लड़कियां अच्छी पढ़ाईलिखाई कर रही हैं और जौब भी कर रही हैं तो उन की सोच बदल गई है. अब वे अपने मातापिता की पसंद से नहीं, अपनी पसंद से शादी करना चाहती हैं. वे ऐसे लड़के को अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हैं जो हमउम्र हो या 2 साल तक का अंतर हो.

पतिपत्नी की उम्र के बीच कितना अंतर होना चाहिए, इस बारे में सब की राय भिन्नभिन्न हो सकती है. लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो दोनों के बीच उम्र का अधिक अंतर नहीं होना चाहिए.

बेहतर हो कि यह अंतर केवल दोतीन साल से अधिक न हो. आमतौर पर लड़का ही बड़ा होता है लेकिन यह जरूरी नहीं. लड़की भी लड़के से दोतीन साल बड़ी हो सकती है. फिल्मी दुनिया में तो यह अंतर कोई माने नहीं रखता. ऐसे उदाहरण भी हैं जिन में अभिनेता अपनी अभिनेत्री पत्नी से 20 साल बड़ा

या अभिनेत्री पत्नी अपने अभिनेता पति से

4-5 साल बड़ी है.

यदि पतिपत्नी के बीच उम्र का अधिक अंतर नहीं है तो दोनों में वैचारिक समानता रहेगी. अधिक अंतर होने से उन के विचार मेल नहीं खा सकते, क्योंकि दोनों की सोच में अंतर होता है. यदि 15-20 साल का अंतर है तो उन में वैचारिक सामंजस्य स्थापित होना बड़ा मुश्किल है.

यदि पति, पत्नी से 15-20 साल बड़ा है तो जाहिर है उस की जवानी भी इतने समय पहले ढलेगी, जबकि पत्नी का यौवन चरम स्तर पर होगा. ऐसे में उन के बीच शारीरिक संबंधों को ले कर समस्या पैदा हो सकती है.

बुढ़ापे की ओर अग्रसर पति अपनी पत्नी को संतुष्ट करने में अपनेआप को असमर्थ पाते हैं. ऐसे में वे सैक्स से बचने के लिए तब बिस्तर पर जाते हैं जब पत्नी सो चुकी होती है. अन्यथा कोई बहाना कर संभोग करने से बचते हैं.

इस से उन में आत्मगलानि भी होती है. तब उन्हें इस बात का एहसास होता है कि पतिपत्नी के बीच उम्र का अधिक अंतर होने का क्या परिणाम होता है. इस से पत्नी के विवाहेतर संबंध बनने की आशंका रहती है.

यदि पति उम्र में 10 साल बड़ा है तो उसे अपनी पत्नी के साथ कहीं आनेजाने में संकोच का अनुभव होता है. क्योंकि पत्नी जवानी के जोश में होती है, जबकि उस का जोश ठंडा पड़ चुका होता है.

जब उम्र का अंतर अधिक होता है तो वे एकदूसरे को सम   झ ही नहीं पाते. ऐसे में रिलेशनशिप एक बो   झ लगने लगती है. वे अपने मन की बात एकदूसरे से शेयर कर ही नहीं पाते.

यदि आप भी ऐसे दंपती हैं जिन के बीच उम्र का अधिक अंतर है तो कुछ बातें ध्यान में रखें-

अपने पार्टनर को अपने से हेय या हीन न समझें.

अपनी सोच को पार्टनर की सोच के अनुरूप बनाएं.

सैक्स को ले कर उलाहने न दें.

वैचारिक मतभेदों को मिलबैठ कर सुल   झाएं.

एकदूसरे का सम्मान करें.

अपने पार्टनर के प्रति पूर्ण वफादार बने रहें.

विवाहेतर संबंधों से बचें.

दोनों के बीच कभी कम न हो प्यार की गरमाहट.

पार्टनर के चरित्र पर शक न करें.

घर के महत्त्वपूर्ण फैसलों में पार्टनर की राय लें.

पार्टनर का मजाक न बनाएं.

पतिपत्नी के रिश्तों की अहमियत समझें.

एकदूसरे के लिए समय निकालें.

पार्टनर की खुशियों का ध्यान रखें.

विधवाओं पर आज भी बेडि़यां

रूबीना एक कसबे में महीनाभर पहले विधवा हुई. उस की उम्र 30-32 साल है. शादी के 10 साल हो गए थे. सास बहुत तेज है. बहू से अकसर तूतूमैंमैं करती रहती है. महल्ले वाले सासबहू को ले कर चटखारे लेते रहते हैं.

पति बस का ड्राइवर था, जिस की रोड ऐक्सिडैंट में मौत हो गई. फिर क्या था, अब तो सास को रूबीना और भी फूटी आंख न सुहाती. तरहतरह के विभूषणों से बहू नवाजी जाने लगी. ‘करमजली, डायन, पति को खा कर चैन पड़ गया सीने में ‘कुलक्षिणी’. अब जाने क्याक्या उस के कुलक्षण थे.

रूबीना बच्चों के एक क्रैच में आया है. हाथ में कुछ पैसे आते हैं तो घर खर्च चलाने के बाद अपनी मरजी से खर्चती है, सास से बिना पूछे. सजनासंवरना, ठेले पर चाटपानीपूरी खाना या फिर शाम के शो में कभी पिक्चर ही चले जाना और एक गलती उस की यह भी है कि उसे बच्चा नहीं था. चाहे पतिपत्नी दोनों में से किसी में कमी हो, बच्चा न हुआ तो हो गई वह कुलक्षिणी.

अब पति का श्राद्ध निबटा कर फिर से वह अपनी दिनचर्या में आ गई, यानी क्रैच में काम पर जाना, दिनभर शाम तक घर का काम करना और फिर शाम को दुकानों में ठेलों पर घूमना,  खरीदना, खाना, टहलना और साजशृंगार की चीजें खरीदनापहनना. मगर न घर में चैन था, न बाहर. टोकने वाले टोकते या उस की छीछी करते तो वह बिफर पड़ती.

‘क्या किसी के खसम का खा रही हूं मैं? अपना कमाती हूं, दिनभर घरबाहर खटती हूं, बुढि़या को बैठा कर खिलाती हूं फिर क्यों न पहनूं? पति था भी तो कौन सा सोहाग करता था मुझ से?

4-6 महीने में घर आ कर 5 हजार रुपए दे कर जाता तो अगले 3-4 महीने फिर खबर ही नहीं. जाने कहांकहां मुंह मार चुका था. मैं ने तो कई बार खुद पकड़ा. तो, अब उस के लिए रोने बैठी रहूं.’

लोगों को उस की जबान पर बड़ा ताज्जुब होता. विधवा हो कर इतनी जबान चले. सभी उस की सास की आग में और घी डाल जाते. लेकिन हम उन लोगों से पूछते कि रूबीना गलत भी कहां है? पति साल में 4-6 बार आ कर 6-8 हजार रुपए दे कर अपना काम खत्म समझे. जिस के रहने, न रहने से रूबीना को खास फर्क भी न पड़ा, उस के चले जाने से वह अपनी जिंदगी को मातम का काला साया बना कर खानापहननाघूमना सब छोड़ दे? क्या समाज इस के लिए उसे सर्टिफिकेट देगा? या उसे पद्मभूषण की उपाधि मिलेगी? या उस का मरा हुआ पति जीवित हो जाएगा?

अब आइए एक हाई क्लास मौडर्न फैमिली के 60 साल की बुजुर्ग महिला का हालेदिल लें. डाइनिंग का यह माहौल है. वह अपने बेटे, बहू और पोते के साथ कहीं किसी के घर गेस्ट हो कर आई हैं. खाने में वेज-नौनवेज सबकुछ है. बुजुर्ग विधवा महिला सर्विंग बाउल से अपनी प्लेट में कुछ टुकड़े नौनवेज के लेती है.

बहू और उस की हमउम्र होस्ट सहेली एकदूसरे को देखती हैं. दोनों के होंठों के बीच हलकी व्यंग्यभरी मुसकान ऐंठ कर दबी होती है. बुजुर्ग महिला का बेटा यह समझता है और सब को सुना कर अपनी मां से कहता है, ‘मां नौनवेज की दूसरी डिश ट्राई करो.’ फिर अपने दोस्त की पत्नी की तरफ देख कर कहता है, ‘दरअसल, डाक्टर ने मां को नौनवेज खाने की सलाह दे रखी है. पापा के जाने के बाद से उन की तबीयत बहुत खराब रहने लगी थी.’

बुजुर्ग महिला का नौनवेज फेवरेट था लेकिन इतनी कैफियतें सुन खाने से मन उठ गया. वह सोच रही थी कि नौनवेज खाना या न खाना खुद की चौइस क्यों नहीं हो सकती? क्यों सेहत या कमजोरी का बहाना बनाना पड़ा? अपने पति के प्रति प्रेम, लगाव क्या किसी के खाने से जुड़ा मसला होना चाहिए? गोया कि पति नहीं तो क्या पसंद का खाना भी नहीं, क्योंकि पसंद का खाया, पहना तो अब पति के प्रति प्रेम को प्रमाणित नहीं किया जा सकता. दूसरे, नौनवेज खा लिया तो अब शरीर की भूख इतनी बढ़ जाएगी कि पुरुष देखते ही उस के साथ भाग जाने को मन करेगा. हद हो गई लकीर के फकीरों की. यह आज के समाज का चित्र है और कुछ नहीं.

भारतीय समाज में एक स्त्री शादी के बाद जैसे हमेशा ही प्रमाण देती रहती है कि वह अपने पति के प्रति समर्पित है. पति ही उस का सबकुछ है और, तभी समाज में उस का एक स्थान होता है. ठीक उसी तरह पति की मृत्यु के बाद भी एक विधवा स्त्री इस स्थिति में रहती है कि उसे हर वक्त यह प्रमाणित करते रहना पड़े कि पति के जाने के बाद भी वह पति को ही जपती रहेगी. उस के सिवा उस की जिंदगी का कोई महत्त्व नहीं है और वह यह बात स्वीकार करती है.

एक विधवा स्त्री अगर भावनात्मक रूप से इस कदर पति से जुड़ी है कि वह खुद ही सबकुछ त्याग कर जीना चाहे, इसी में उसे खुशी मिले तो बात जबरदस्ती की नहीं होती. लेकिन जिस स्त्री को विवाह में पति से दुख ही मिला हो या उसे पति के लिए विलाप ही करते रहने से अच्छा मूव औन कर जाना ज्यादा सही और व्यावहारिक लगता हो तो उसे पति के नाम पर जिंदगीभर मातमपुरसी करते रहने की बाध्यता क्यों हो?

यहां पुरुषों से तुलना तो बनती है. आखिर हर बात में संविधान से ले कर समाज तक बराबरी का दंभ भरने वाला कानून किस कोने में जा कर छिप जाता है जब बात स्त्री के दैनिक जीवनधारण की आती है?

इतिहास के पन्नों में विधवा स्त्री

हम बात करें हिंदू समाज की विधवाओं की, क्योंकि इस धर्म में विधवाओं को ले कर ऐसे कड़े नियमकानून थे, अब भी मानसिकता वही है कि लगता है जैसे विधवा हो जाने से स्त्री ने कोई जानबूझ कर अपराध किया है, जिस के लिए उसे सजा पानी है.

मध्यकाल से पहले तक यानी वैदिककाल में स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी. यद्यपि तब विधवाओं के जीवनयापन में बेडि़यां थीं लेकिन जीवन आज से पूरी तरह अलग था और इस से उन के सम्मान की हानि नहीं थी.

बात तब बिगड़ी जब मनु ऋषि ने स्त्री को आजन्म पिता, पति और पुत्र के अधीन ही रहने का फरमान सुना दिया. इस के बाद तो भारत में साम्राज्य विस्तार हेतु सैकड़ों आक्रमण हुए और उस दौरान राजाओं और मुगल, अफगान, पठान शासकों और आक्रमणकारी दलों की शिकार स्त्रियां या फिर विधवा स्त्रियां ही बनती रहीं.

मजबूरन सामाजिक पंचायतों द्वारा स्त्री और परिवार की मानमर्यादा की सुरक्षा हेतु स्त्रियों, खासकर विधवा स्त्रियों, पर घोर पाबंदियां लगाई गईं और लगाई जाती रहीं. जबकि, स्त्रियों पर ढेरों नियम न थोप कर उन की सुरक्षा के नियम कड़े किए जाना उचित होता.

आगे चल कर मध्यकाल और उस के बाद ऊंची जातियों की विधवा स्त्रियों पर ऐसी बेडि़यां थोपी गईं और उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से यह बात मानने को बाध्य किया जाता रहा कि पति की मृत्यु स्त्री के घोर पाप और अपराध का फल है और इस पाप के बदले उस ने अपना सारा सुख, सारी सुविधा का त्याग नहीं किया तो ईश्वर, जो कहीं है भी कि नहीं, उसे कभी माफ नहीं करेगा और यदि उस ने चोरीछिपे कुछ अच्छा खापहन लिया तो उसे भयानक सजा ‘तथाकथित’ ईश्वर की ओर से मिलेगी.

इन बातों को घोल कर पिलाने के लिए उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाने लगा और कम उम्र में कुलीन ब्राह्मण के नाम पर बूढ़े बीमार लोगों के विवाह में दे कर उन्हें जानबूझ कर वैधव्य की ओर धकेला जाता रहा.

स्थिति जघन्य हो चुकी थी और सारे भारत में सतीप्रथा को अत्यंत पूजनीय स्थान दे कर जलती चिता में मृत पति के साथ स्त्रियों को जिंदा जलाया जा रहा था. इस घोर अंधविश्वास और अन्याय के युग में ईश्वरचंद्र विद्यासागर युग प्रवर्तक के रूप में सामने आए. उन के अथक प्रयासों व लंबी लड़ाई के बाद वर्ष 1856 में विधवा पुनर्विवाह कानून लागू हुआ. ज्ञात हो, ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने खुद अपने बेटे का ब्याह एक विधवा कन्या से करवाया था.

ये विधवा महारानियां

रानी लक्ष्मीबाई, गोरखपुर के निकट तुलसीपुर की रानी ईश्वर कुमारी, अनूप नगर के राजा प्रताप सिंह की पत्नी चौहान रानी, मध्य प्रदेश के रामगढ़ रियासत की रानी अवंतिका लोधी, नाना साहेब पेशवा की पुत्री मैना, सिकंदर बाग की वीरांगना उदा देवी… किसकिस का नाम लें, जिन्होंने पति की मृत्यु के बाद न केवल राजगद्दी और प्रजा को संभाला बल्कि राज्य के बाहरी आक्रमणकारियों और अंगरेजों की साजिशों व दबावों के विरुद्ध जम कर लड़ाइयां लड़ीं, शहीद हुईं और इतिहास से निकल कर लोगों के लिए प्रेरणा बन गईं. अगर वे विधवा होने के बाद सामाजिक दबावों के आगे सिर झुका लेतीं तो भारत की गौरवगाथा वह न होती जो आज इतिहास में दर्ज है.

कालांतर में विधवा स्त्रियों की दशा

विधवा पुनर्विवाह कानून के पारित होने से अब तक विधवा स्त्रियों की दशा में क्याकुछ सुधार हुए हैं, हम अपनी छिपी हुई मानसिकता को परख कर आज समझ सकते हैं.

गौर कीजिए कुछ पौइंट्स पर जब हम कूपमंडूक बन जाते हैं.

जब खुद के घर में नौकरी या व्यवसाय करने वाले पुत्र की किसी विधवा स्त्री से ब्याह की बात आती है तो आज भी लोग तुरंत पीछे हट जाते हैं, नाकभौं सिकोड़ते हैं.

अपने घर में अगर जवान बेटे की मौत हो जाए, उस की विधवा पत्नी को बेटे की जागीर देने में भी आनाकानी होने लगती है. बहुत बार उसे किसी तरह टरकाने की कोशिश की जाती है.

जब घर में बेटे की मौत हो जाए और उस के बच्चे भी हों, बहुत कम ही परिवार ऐसे होते हैं जो अपने घर या रिश्तेदार के किसी बेटे से बहू के ब्याह को राजी हों. ज्यादातर सब की सोच यही होती है कि अब उस की अलग क्या जिंदगी होगी. बच्चे ही पाल लेगी और क्या.

अगर कोई संयुक्त परिवार का बेटा खत्म हो जाए जहां वह संयुक्त व्यवसाय का हिस्सा रहा हो, उस की पत्नी व्यवसाय में उस का स्थान लेना चाहे तो घर के दूसरे पुरुष सदस्य उसे यह हक लेने दें, यह आज भी भारतीय परिवारों में इतना आसान नहीं है.

विधवा स्त्री की परिवार के अन्य विवाहित सधवा स्त्रियों के मुकाबले अकसर पूछपरख और भागीदारी कम होती है. किसी शगुन वाले अनुष्ठान में वह दूरदूर से सेवा और कामकाज करे, इतना ही उस के हिस्से में है. सभा या अनुष्ठान में उस की जम कर खुशी से भागीदारी समाज और रिश्ते में आज भी आंखों की किरकिरी है.

एक तो हिंदू विवाह में कन्यादान की रीति कन्या को वस्तु समान बनाती है जिसे दान किया जा सके, तिस पर वह भी विधवा स्त्री को हक नहीं कि वह पिता के अभाव में अपनी बेटी के ब्याह के वक्त धार्मिक रीति निभा सके. यह कितनी अपमानजनक स्थिति है जिसे मानने की बाध्यता ने अपनाना आसान कर दिया है. समाज तो है ही, विधवा स्त्री भी खुद को तुच्छ समझ कर हर अधिकार से खुद को निकाल ले जाती है.

इन सब के उलट आज की मौडर्न विधवा स्त्री स्वतंत्रता से जीने और अपने सामान्य प्राकृतिक, सामाजिक अधिकारों के लिए विरोधी तेवर मुखर करती है तो वह अलगथलग कर दी जाती है. उस के लिए पीठ पीछे कुछ उपाधियां निर्धारित कर दी जाती हैं, जैसे ‘इस के लक्षण ठीक नहीं हैं’, ‘बहुत चालू औरत है’, ‘पति की मौत से इस के पर निकल आए’ आदि.

और अब भी अगर यह दावा किया जाए कि अब जमाना बदल गया है, विधवाएं अब बेखौफ, बेलौस जिंदगी जीती हैं तो रुख करें भारत के धर्मस्थानों और तीर्थस्थलों का. वृंदावन तो अब ‘विधवाओं का शहर’ ही कहलाने लगा है.

आज भी बंगाल, असम, ओडिशा से हजारों की संख्या में विधवाएं अपने घर और समाज से लांछित व परित्यक्त हो कर वृंदावन पहुंचती हैं और मजबूरन भगवान के नाम पर भीख मांग कर रोतेधोते गुजारा करती हैं. उन की ऐसी बदतर हालत पर सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के बाल और महिला विकास मंत्रालय को फटकार लगा चुका है कि विधवा स्त्रियों के सम्मान की क्या कहें, दो रोटी और एक सादे कपड़े भर के गुजारे के लिए उन्हें दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं, विधवाओं को इस से नजात दिला कर एक सम्मान की जिंदगी देने की पहल क्यों नहीं की जाती?

विधवा स्त्रियों के हालात में सुधार हेतु कुछ जरूरी उपाय

१.     आज भी हमारे समाज में विधवा नाम से एक मैंटल ब्लौकेज बना हुआ है. पत्नी की मृत्यु के बाद पति को व्यक्तिगत जीवन में भले ही दिक्कतें हों लेकिन वह अछूत तो नहीं हो जाता. लेकिन यह क्या कि पति की मृत्यु से पत्नी समाज के अंधविश्वासों के कारण मानसिक यातना की शिकार हो जाए. शुभ कार्यों में उस की उपस्थिति अनुचित मानी जाए. वह कन्यादान के काबिल न रहे. किसी शादी और शुभ अनुष्ठानों में वह अकसर सेवा तो दे लेकिन विवाहित स्त्रियों से अलगथलग पड़ जाए.

२.     हिंदू धर्म में जब तक विवाहित स्त्रियों के लिए प्रतीक चिह्न, जैसे सिंदूर, चूड़ी, बिछिया, पायल, अल्ता जरूरी रहेंगे तब तक विधवा स्त्रियों के खानपान, रहनसहन, पहनावे पर समाज की भेदभावभरी कुदृष्टि बनी रहेगी. यदि विवाहित स्त्रियों के पहचान के लिए प्रतीक चिह्नों की बाध्यता खत्म हो तो विधवा स्त्रियों की पहचान के लिए थोपे गए तुगलकी कानून भी कमजोर हों. निसंदेह इस के लिए विवाहित स्त्रियों को ही आगे आना होगा.

३.     विधवा स्त्रियों के लिए आर्थिक जानकारी निहायत जरूरी है और इस के लिए सबकुछ भविष्य पर छोड़ना ठीक नहीं. विवाहित रहते हुए ही एक स्त्री को या तो अपने पति के निवेश के बारे में जानकारी हो जानी चाहिए या फिर पति अगर जानकारी न देता हो तो आर्थिक नियमों की जानकारी उसे किसी बाहरी स्रोत से प्राप्त कर के रखनी चाहिए. मनी मैनेजमैंमेंट, बैंकिंग, सेविंग्स, इन्वैस्टमैंट आदि की जानकारी के लिए स्त्री को शुरू से ही सतर्क रहना चाहिए. इस से किसी अनहोनी पर वह आसानी से आर्थिक मोरचा संभाल पाएगी.

४.     आर्थिक आजादी सम्मान से जीने का मुख्य आधार है और एक स्त्री को आज के जमाने में किसी भी तरह आत्मनिर्भर होना चाहिए. अगर विवाहित रहते हुए पैसे कमाने की गुंजाइश न रहे तो आज के जमाने के हिसाब से वह इतना स्मार्ट वर्क जरूर कर ले कि जब भी जरूरत पड़े, अपने मनपसंद क्षेत्र में काम ढूंढ़ सके.

५.     एक स्त्री को अपने कानूनी अधिकार और कानूनी बंदिशों के बारे में मालूमात होनी चाहिए ताकि विधवा हो जाने की स्थिति में पति और ससुराल की संपत्ति में उस का या उस के बच्चों का जो भी हक है उसे मिल सके. जरूरत पड़ने पर कानूनी सलाहकार की मदद से वह अपना हक सुनिश्चित कर सके.

एक तार्किक, बौद्धिक नजरिया जीवन के दुखद पहलुओं को कुछ हद तक मनोनुकूल कर सकता है. लेकिन पहल सब से पहले एक स्त्री को ही करनी होगी. यह न देखें कि जो विधवा है वह जाने, मुझे क्या? जिंदगी कब किस की किस करवट बैठे, कोई नहीं जानता. इसलिए आज के समाज में हर उस परंपरा व नजरिए का विरोध होना चाहिए जो मनुष्य होने के सामान्य अधिकार और सम्मान की रक्षा न करे.

सामंजस्य: क्या रमोला औफिस और घर में सामंजस्य बिठा पाई?

रमोला के हाथ जल्दीजल्दी काम निबटा रहे थे, पर नजरें रसोई की खिड़की से बाहर गेट की तरफ ही थीं. चाय के घूंट लेते हुए वह सैंडविच टोस्टर में ब्रैड लगाने लगी.

‘‘श्रेयांश जल्दी नहा कर निकलो वरना देर हो जाएगी,’’ उस ने बेटे को आवाज दी.

‘‘मम्मा, मेरे मोजे नहीं मिल रहे.’’

मोजे खोजने के चक्कर में चाय ठंडी हो रही थी. अत: रमोला उस के कमरे की तरफ भागी. मोजे दे कर उस का बस्ता चैक किया और फिर पानी की बोतल भरने लगी.

‘‘चलो बेटा दूध, कौर्नफ्लैक्स जल्दी खत्म करो. यह केला भी खाना है.’’

‘‘मम्मा, आज लंचबौक्स में क्या दिया है?’’

श्रेयांश के इस सवाल से वह घबराती थी. अत: धीरे से बोली, ‘‘सैंडविच.’’

‘‘उफ, आप ने कल भी यही दिया था. मैं नहीं ले जाऊंगा. रेहान की मम्मी हर दिन उसे बदलबदल कर चीजें देती हैं लंचबौक्स में,’’ श्रेयांश पैर पटकते हुए बोला.

‘‘मालती दीदी 2 दिनों से नहीं आ रही है. जिस दिन वह आ जाएगी मैं अपने राजा बेटे को रोज नईनई चीजें दिया करूंगी उस से बनवा कर. अब मान जा बेटा. अच्छा ये लो रुपए कैंटीन में मनपसंद का कुछ खा लेना.’’

रेहान की गृहिणी मां से मात खाने से बचने का अब यही एक उपाय शेष था. सोचा तो था कि रात में ही कुछ नया सोच श्रेयांश के लंचबौक्स की तैयारी कर के सोएगी पर कल दफ्तर से लौटतेलौटते इतनी देर हो गई कि खाना बाहर से ही पैक करा कर लेती आई.

खिड़की के बाहर देखा. गेट पर कोई आहट नहीं थी. घड़ी देखी 7 बज रहे थे. स्कूल बस आती ही होगी. बेटे को पुचकारते हुए जल्दीजल्दी सीढि़यां उतरने लगी.

ये बाइयां भी अपनी अहमियत खूब समझती हैं. अत: मनमानी करने से बाज नहीं आती हैं. मालती पिछले 3 सालों से उस के यहां काम कर रही थी. सुबह 6 बजे ही हाजिर हो जाती और फिर रमोला के जाने के वक्त 9 बजे तक लगभग सारे काम निबटा लेती. वह खाना भी काफी अच्छा बनाती थी. उसी की बदौलत लंचबौक्स में रोज नएनए स्वादिष्ठ व्यंजन रहते थे. शाम 6 बजे उस के दफ्तर से लौटते वह फिर हाजिर हो जाती. चाय के साथ मालती कुछ स्नैक्स भी जरूर थमाती.

मालती की बदौलत ही रमोला घर के कामों से बेफिक्र रहती थी और दफ्तर में अच्छा काम कर पाती. नतीजा 3 सालों में 2 प्रमोशन. अब तो वह रोहन से दोगुनी सैलरी पाती थी. परंतु अब मालती के न होने पर काम के बोझ तले उस का दम निकले जा रहा था. बढ़ती सैलरी अपने साथ बेहिसाब जिम्मेदारियां ले कर आ गई थी. हां, साथ ही साथ घर में सुखसुविधाएं भी बढ़ गई थीं. तभी रोहन और रमोला इस पौश इलाके में इतने बड़े फ्लैट को खरीद पाने में सक्षम हुए थे.

मालती के रहते उसे कभी किसी और नौकर या दूसरी कामवाली की जरूरत महसूस नहीं हुई थी. लगभग उसी की उम्र की औरत होगी मालती और काम बिलकुल उसी लगन से करती जैसे वह अपनी कंपनी के लिए करती थी. इसी से रमोला हमेशा उस का खास ध्यान रखती और घर के सदस्य जैसा ही सम्मान देती. परंतु इधर कुछ महीनों से मालती का रवैया कुछ बदलता जा रहा था. सुबह अकसर देर से आती या न भी आती. बिना बताए 2-2, 3-3 दिनों तक गायब रहती. अचानक उस के न आने से रमोला परेशान हो जाती. पर समयाभाव के चलते रमोला ज्यादा इस मामले में पड़ नहीं रही थी. मालती की गैरमौजूदगी में किसी तरह काम हो ही जाता और फिर जब वह आती तो सब संभाल लेती.

श्रेयांश को बस में बैठा रमोला तेजी से सीढि़यां चढ़ते हुए घर में घुसी. बिखरी हुई बैठक को अनदेखा कर वह एक बार फिर रसोई में घुस गई. वह कम से कम 2 सब्जियां बना लेना चाहती थी, क्योंकि आज रात उसे लौटने में फिर देर जो होनी थी.

हाथ भले छुरी से सब्जी काट रहे थे पर उस का ध्यान आज दफ्तर में होने वाली मीटिंग पर अटका था. देर रात एक विदेशी क्लाइंट के साथ एक बड़ी डील के लिए वीडियो कौन्फ्रैंसिंग भी करनी थी. उस के पहले मीटिंग में सारी बातें तय करनी थीं. आधेपौने घंटे में उस ने काफी कुछ बना लिया. अब रोहन को उठाना जरूरी था वरना उसे भी देर हो जाएगी.

रोहन कभी घर के कामों में उस का हाथ नहीं बंटाता था उलटे हजार नखरे करता. कल रात भी वह बड़ी देर से आया था. उलझ कर वक्त जाया न हो, इसलिए रमोला ने ज्यादा सवालजवाब नहीं किए. जबकि रोहन का बैंक 6 बजे तक बंद हो जाता था. वह महसूस कर रही थी कि इन दिनों रोहन के खर्चों में बेहिसाब वृद्धि हो रही है. शौक भी उस के महंगे हो गए थे. आएदिन महंगे होटलों की पार्टियां रमोला को नहीं भातीं. फिर सोचती आखिर कमा किस लिए रहे हैं. घर और दोनों गाडि़यों की मासिक किश्तों और उस पर बढ़ रहे ब्याज के विषय में सोचती तो उस के काम की गति बढ़ जाती.

‘‘आज तुम श्रेयांश को मम्मी के घर से लाने ही नहीं गए, बेचारा इंतजार करता वहीं सो गया था. तुम तो जानते ही हो मम्मी के हार्ट का औपरेशन हुआ है. वह श्रेयांश की देखभाल करने में असमर्थ हैं,’’ रमोला ने बेहद नर्म लहजे में कहा पर मन तो हो रहा था कि पूछे इस बार क्रैडिट कार्ड का बिल इतना अधिक क्यों आया?

मगर रोहन फट पड़ा, ‘‘हां मैं तो बेकार बैठा हूं. मैडम खुद देर रात तक बाहर गुलछर्रे उड़ा कर घर आएं. मैं जल्दी घर आ कर करूंगा क्या? बच्चे की देखभाल?’’

रोहन के इस जवाब से रमोला हैरान रह गई. उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा. सिर झुकाए लैपटौप पर काम करती रही. क्लाइंट से मीटिंग  के पहले यह प्रेजैंटेशन तैयार कर उसे कल अपने मातहतों को दिखानी जरूरी थी. कनखियों से उस ने देखा रोहन सीधे बिस्तर पर ही पसर गया. खून का घूंट पी वह लैपटौप पर तेजी से उंगलियां चलाने लगी.

चाय बन चुकी थी पर रोहन अभी तक उठा नहीं था. अपनी चाय पी वह दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी. अपने बिखरे पेपर्स समेटे, लैपटौप बंद किया. साथसाथ वह नाश्ता भी करती जा रही थी. हलकी गुलाबी फौर्मल शर्ट के साथ किस रंग की पतलून पहने वह सोच रही थी. आज खास दिन जो था.

तभी रोहन की खटरपटर सुनाई देने लगी. लगता है जाग गया है. यह सोच रमोला उस की चाय वहीं देने चली गई.

‘‘गुड मौर्निंग डार्लिंग… अब जल्दी चाय पी लो. मैं बस निकलने वाली हूं,’’ परदे को सरकाते हुए रमोला ने कहा.

‘‘क्या यार जब देखो हड़बड़ी में ही रहती हो. कभी मेरे पास भी बैठ जाया करो,’’ रोहन लेटेलेटे ही उस के हाथ को खींचने लगा.

‘‘मुझे चाय नहीं पीनी, मुझे तो रात से ही भूख लगी है. पहले मैं खाऊंगा,’’ कहते हुए रोहन ने उसे बिस्तर पर खींच लिया.

‘‘रोहन, अब ज्यादा रोमांटिक न बनो, मेरी कमीज पर सलवटें पड़ जाएंगी. छोड़ो मुझे. नाश्ता और लंचबौक्स मैं ने तैयार कर दिया है. खा लेना, 9 बजने को हैं. तुम भी तैयार हो जाओ,’’ कह रमोला हाथ छुड़ा चल दी.

‘‘रोहन, दरवाजा बंद कर लो मैं निकल रही हूं,’’ रमोला ने कहा और फिर सीढि़यां उतर गैराज से कार निकाल दफ्तर चल दी. रमोला मन ही मन मीटिंग का प्लान बनाती जा रही थी.

‘उमेश को वह वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के वक्त अपने साथ रखेगी. बंदा स्मार्ट है और उसे इस प्रोजैक्ट का पूरा ज्ञान भी है. जितेश को मार्केटिंग डिटेल्स लाने को कहा ही है. एक बार सब को अपना प्रेजैंटेशन दिखा, उन के विचार जान ले तो फिर फाइनल प्रेजैंटेशन रचना तैयार कर ही लेगी. सब सहीसही सोचे अनुसार हो जाए तो एक प्रमोशन और पक्की,’ यह सोचते रमोला के अधरों पर मुसकान फैल गई.

दफ्तर के गेट के पास पहुंच उसे ध्यान आया कि लैपटौप, लंचबौक्स सहित जरूरी कागजात वह सब घर भूल आई है. आज इतनी दौड़भाग थी सुबह से कि निकलते वक्त तक मन थक चुका था. रमोला ने कार को घर की तरफ घुमा दिया. कार को सड़क पर ही छोड़ वह तेजी से सीढि़यां चढ़ने लगी. दरवाजा अंदर से बंद न था. हलकी थपकी से ही खुल गया. बैठक में कदम रखते ही उसे जोरजोर से हंसने की आवाजें सुनाई दीं.

‘‘ओह मीतू रानी तुम ने आज मन खुश कर दिया… सारी भूख मिट गई… मीतू यू आर ग्रेट,’’ रोहन की आवाज थी.

‘‘साहबजी आप भी न…’’

‘तो मालती आ चुकी है… रोहन उसे ही मीतू बोल रहा है. पर इस तरह…’ सोच रमोला का सिर मानो घूमने लगा, पैर जड़ हो गए.

जबान तालू से चिपक गई. उस की बचीखुची होश की हवा चूडि़यों की खनखनाहट और रोहन के ठहाकों ने निकाल दी. वह उलटे पांव लौट गई. बिना लैपटौप लिए ही जा कर कार में बैठ गई. उस के तो पांव तले से जमीन खिसक गई थी.

‘मेरी पीठ पीछे ऐसा कब से चल रहा है… मुझे तो कुछ पता ही नहीं चला. रोहन मेरे साथ ऐसी बेवफाई करेगा, मैं सोच भी नहीं सकती. घर संभालतेसंभालते महरी उस के पति को भी संभालने लगी,’ मालती की जुरअत पर वह तड़प उठी कि कब रोहन उस से इतनी दूर हो गया. वह तो हमेशा हाथ बढ़ाता था. मैं ही छिटक देती थी. उस के प्यारइजहार की भाषा को मैं ने खूब अनदेखा किया.

‘रोहन को इस गुनाह के रास्ते पर धकेलने वाली मैं ही हूं. साथसाथ तो चल रहे थे हम… अचानक यह क्या हो गया. शायद साथ नहीं, मैं कुछ ज्यादा तेज चल रही थी, पर मैं तो घर, पति और बच्चे के लिए ही काम कर रही हूं, उन की जरूरतें और शौक पूरा हो इस के लिए दिनरात घरबाहर मेहनत करती हूं. क्या रोहन का कोई फर्ज नहीं? वह अपनी ऐयाशी के लिए बेवफाई करने की छूट रखता है?’ विचारों की अंधड़ में घिरी कार चला वह किधर जा रही थी, उसे होश नहीं था. बगल की सीट पर रखे मोबाइल पर दफ्तर से लगातार फोन आ रहे थे. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की बेहद उच्च पदासीन रमोला अचानक खुद को हारी हुई, लुटीपिटी, असहाय महसूस करने लगी. उसे सब कुछ बेमानी लगने लगा कि कैसी तरक्की के पीछे वह भागी जा रही है. उसे होश ही न रहा कि वह कार चला रही है.

जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. सिरहाने रोहन और श्रेयांश बैठे थे. डाक्टर बता रहे थे कि अचानक रक्तचाप काफी बढ़ जाने से ये बेहोश हो गई थीं. कुछ दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी हो गई. उमेश और जितेश दफ्तर से उस से मिलने आए थे. उन की बातों से लगा कि उस की अनुपस्थिति में दफ्तर में काफी मुश्किलें आ रही हैं. रमोला ने उन्हें आश्वासन दिया कि बेहतर महसूस करते ही वह दफ्तर आने लगेगी, तब तक घर से स्काइप के जरीए वर्क ऐट होम करेगी.

रोहन को देख उसे घृणा हो जाती. उस दिन की हंसी और चूडि़यों की खनखनाहट की गूंज उसे बेचैन किए रहती. रोहन को छोड़ने यानी तलाक की बात भी उस के दिमाग में आ रही थी. पर फिर मासूम श्रेयांश का चेहरा सामने आ जाता कि क्यों उस का जीवन बरबाद किया जाए. उस के उच्च शिक्षित होने का क्या फायदा यदि वह अपनी जिंदगी की उलझनों को न सुलझा सके.

‘हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा’ एक कवि की ये पंक्ति उसे हमेशा उत्साहित करती थी, विपरीत परिस्थितियों में शांतिपूर्वक जूझने के लिए प्रेरणा देती थी. आज भी वह हार नहीं मानेगी और अपने घर को टूटने से बचा लेगी, ऐसा उसे विश्वास था.

रमोला से उस की कालेज की एक सहेली मिलने आई. वह यूएस में रहती थी. बातोंबातों में उस ने बताया कि वहां तो नौकर, दाई मिलते नहीं. अत: सारा काम पतिपत्नी मिल कर करते हैं. रमोला को उस की बात जंच गई कि अपने घर का काम करने में शर्म कैसी.

उस के जाने के बाद कुछ सोचते हुए रमोला ने रोहन से कहा, ‘‘रोहन मैं सोचती हूं कि मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूं. घर पर रह कर तुम्हारी तथा श्रेयांश की देखभाल करूं. तुम्हारी शिकायत भी दूर हो जाएगी कि मैं बहुत व्यस्त रहती हूं, घर पर ध्यान नहीं देती हूं.’’

यह सुनना था कि रोहन मानो हड़बड़ा गया. उसे अपनी औकात का पल भर में भान हो गया. श्रेयांश के महंगे स्कूल की फीस, फ्लैट और गाडि़यों की मोटी किस्त ये सब तो उस के बूते पूरा होने से रहा. कुछ ही पलों में उसे अपनी सारी ऐयाशियां याद आ गईं.

‘‘नहीं डियर, नौकरी छोड़ने की बात क्यों कर रही हो? मैं हूं न,’’ हकलाते हुए रोहन ने कहा.

‘‘ताकि तुम अपनी मीतू के साथ गुलछर्रे उड़ा सको… नहीं मुझे अब घर पर रहना है और किसी महरी को नहीं रखना है,’’ रमोला ने सख्त लहजे में तंज कसा.

रोहन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह घुटनों के बल वहीं जमीन पर बैठ गया और रमोला से माफी मांगने लगा. भारतीय नारी की यही खासीयत है, चाहे वह कम पढ़ीलिखी हो या ज्यादा घर हमेशा बचाए रखना चाहती है. रमोला ने भी रोहन को एक मौका और दिया वरना दूसरे रास्ते तो हमेशा खुले हैं उस के पास.

रमोला ठीक हो दफ्तर जाने लगी. गाड़ी के पहियों की तरह दोनों अपनी गृहस्थी की गाड़ी आगे खींचने लगे. अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए रमोला ने भी तय कर लिया था कि वह घर और दफ्तर दोनों में सामंजस्य बैठा कर चलेगी, भले ही एकाध तरक्की कम हो. नौकरी छोड़ने की उस की धमकी के बाद से रोहन अब घर के कामों में उस का हाथ बंटाने लगा था. इन सब बदलावों के बाद श्रेयांश पहले से ज्यादा खुश रहने लगा था, क्योंकि लंचबौक्स उस की मम्मी खुद तैयार करती और रोज नईनई डिश देती.

एक गलती: क्या उन समस्याओं का कोई समाधान निकला?

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