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ऐसी जुगुनी- भाग 2: जुगुनी ने अपने ससुरालवालों के साथ क्या किया?

उस के शब्द सुन कर तो बाबूजी ऐसे चिहुंक उठे जैसे किसी पहाड़ी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया हो. वे अच्छी तरह समझ रहे थे कि उन की पत्नी उन्हें जुगुनी के ससुराल वालों के खिलाफ बरगला रही है. उन्होंने मांबेटी दोनों को दुनियाभर के चमचमाते सामान के पीछे पागल होते पहले भी देख रखा है. पर, उन्हें यकीन है कि जुगुनी की अम्मा ने जो मन में ठान लिया है, वह उसे पूरा कर के ही दम लेगी. और अगर उन्होंने उस के मनमुताबिक नहीं किया, तो वह उन्हें चैन से जीने न देगी, खानापीनासोना सब हराम हो जाएगा.

वे उधेड़बुन में खो गए. चलो, तेजेंद्र के पापा से बात कर ही लेते हैं. भले ही उन्हें और उन के परिवारजनों के गले से मेरी बात नीचे न उतरे, पर उन्हें तो मनाना ही होगा कि वे दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के साथ रवाना कर दें. वरना जुगुनी की अम्मा उन की जान खा जाएगी. उन के परिवार वालों को बुरा लगता है तो लगने दो. जुगुनी को भी इस दो कौड़ी की ससुराल में कहां रहना है? उसे तो मुंबई महानगर में अपनी जिंदगी गुजारनी है तेजेंद्र के साथ.

बाबूजी का मन अभी भी हिचक रहा था. रात को अम्मा ने उन्हें गहरी नींद से जगा कर फिर उन पर दबाव बनाया, ‘‘पौ फटते ही तेजेंद्र के बड़ेबुजुर्गों से बात कर लेना क्योंकि कल शाम की ही ट्रेन से जुगुनी और तेजेंद्र को मुंबई के लिए कूच करना है.’’

सो, सुबह जब बाबूजी उठे तो वे हिम्मत बटोर कर, चाय की चुसकी लेते हुए तेजेंद्र के पापा से मुखातिब हुए, ‘‘भाईसाब अब आप का बेटा तेजेंद्र घरवाला गृहस्थ बन गया है. मुंबई में अपनी बीवी के साथ रहेगा. उस के यहां यारदोस्तों का आनाजाना होगा. इस बार अपनी दुलहन ले कर पहुंचने पर, वे उस से पूछेंगे कि तेजेंद्र, ससुराल से तुम्हें क्या मिला है, तब तेजेंद्र उन से क्या कहेगा कि दहेज तो बाप के घर छोड़ आया हूं. बस, बीवी ले कर आया हूं? वे तो समझेंगे कि बिटिया का बाप तो कंगला है जिस ने उसे एक धेला भी नहीं दिया. मुफ्त में अपनी बेटी उस के गले मढ़ दी.

‘‘सच, यह सोच कर मेरा दिल शर्म से डूबा जा रहा है. बेटी के बाप की तो नाक ही कट जाएगी. सो, मेरी आप से विनती है कि तेजेंद्र को अपने साथ कुछ सामान जैसे टीवी, फ्रिज वगैरा ले जाने की इजाजत जरूर दे दीजिए जिन्हें वह अपने महल्ले वालों और दोस्तों को दिखा सके कि हां, किसी फटीचर खानदान में उस की शादी नहीं हुई है.’’

बाबूजी ने दोनों हाथ जोड़ कर अपनी बात को इतने सलीके से पेश किया था कि तेजेंद्र के पापा से प्रतिक्रिया में कुछ भी कहते नहीं बना. वे हकला उठे, ‘‘मुझे इस में क्या आपत्ति हो सकती है?’’

वहां उपस्थित तेजेंद्र का छोटा भाई प्रेमेंद्र भी बोल उठा, ‘‘हां हां, अगर भाईसाहब ये सामान खुद ले जाने में सक्षम हों तो इस से अच्छी बात क्या हो सकती है. हम तो सोच रहे थे कि भाभीजी का सामान हम खुद धीरेधीरे मुंबई पहुंचा देंगे. इसी बहाने मुंबई भी आनाजाना बना रहेगा.’’

जुगुनी ने सोचा, ‘अगर दहेज का सामान अभी हमारे साथ चला जाएगा तो इन कमीनों द्वारा फुजूल में मुंबई आ कर मेरा दिमाग खराब करने से छुटकारा भी मिल जाएगा.’

उस वक्त बाबूजी अम्मा का मुंह ताकने लगे जैसे कि कह रहे हों कि तुम तो कह रही थी कि दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के घर वाले हड़पना चाहते हैं जबकि वे सभी सारे सामान को तेजेंद्र के साथ सहर्ष भेजने को तैयार हैं.

अम्मा ने उन के हावभाव को कनखियों से देखा और मुंह बिचका लिया. तुम्हें जो मगजमारी करनी है, वह करो. हमें तो दहेज का सामान बस मुंबई रफादफा करना है.

सो, कुछ मामूली उपहारों को छोड़ कर बाकी सामान धीरेधीरे 2-3 खेपों में मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया. तेजेंद्र मायूस हो गया, यह सोचते हुए कि मेरे घर वाले सोच रहे होंगे कि तेजेंद्र भौतिकवादी हो गया है. उसे अपने घर वालों से ज्यादा निर्जीव वस्तुओं से प्यार हो गया है.

वैसे तो, वह शादी से पहले ऐसी मानसिकता वाले लोगों की नुक्ताचीनी करने से बाज नहीं आता था. भाइयों में सब से छोटे भाई गजेंद्र ने सभी को समझाया, ‘‘भैया सुलझे हुए विचारों के भले आदमी हैं. वे स्वार्थी कभी नहीं हो सकते. उन्हें तो मर्यादित जीवन और अच्छे संस्कारों से हमेशा प्यार रहा है. स्वार्थपरता से तो उन्हें सख्त नफरत है. इसलिए हमें उन के बारे में कोई अनापशनाप धारणा नहीं बनानी चाहिए.

वे हम से और हमारी पारिवारिक संस्कृतियों से हमेशा जुड़े रहे हैं. हां, भाभीजी के बारे में अभी मैं कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि भविष्य में वे अपने ससुराल में क्या गुल खिलाएंगी. पर, यह तो तय है कि वे भारत में पाकिस्तान बनवा कर ही दम लेंगी.’’

तेजेंद्र के विवाह के चिह्न के तौर पर घर में कुछ भी उपलब्ध न रहने के कारण उस की तीनों बहनें नंदिनी, मीठी और रोशनी कुछ समय तक सदमे में थीं. शादी के उल्लास और चहलपहल के बाद अचानक छाए सन्नाटे से घर का कोनाकोना भांयभांय कर रहा था. उन की मां तो डेढ़ साल पहले ही डाक्टर की गलत दवा के कारण मौत का शिकार हो चुकी थीं. मां की असामयिक मौत के बाद, पापा गुमसुम रहने लगे थे.

बड़े भाई कमलेंद्र अपनी एकल पारिवारिक व्यवस्था में ही इस तरह उलझ गए थे जैसे उन का इस के सिवा दुनिया में कुछ और है ही नहीं. ऐसे में, परिवार को तेजेंद्र से ही बड़ी उम्मीदें थीं. उन्हें उन से आर्थिक मदद से अधिक मानसिक संबल की अपेक्षा थी. प्रेमेंद्र कोचिंग इंस्टिट्यूट चला कर अपनी और अपनी बहनों की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी कर ही लेता था. पापाजी के पैंशन के रुपए भी काम में आ जाते थे.

इस दरम्यान, जुगुनी की अम्मा का मुंबई आनाजाना अधिक बढ़ गया था. वह जुगुनी को ससुराल से भरसक दूरी बनाए रखने के लिए सचेत करती रहती थी. इस के लिए नएनए तौरतरीके भी वह उसे बताती रहती थी.

एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘अगर तेजेंद्र के मन में अपने भाईबहनों के प्रति लगाव बना रहेगा तो उसे उन की आर्थिक मदद भी करनी पड़ेगी. सो, तुम्हारी कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि उन के बीच संबंधों में दरार बढ़ती जाए. अभी तो उस की तीनों बहनें अनब्याही हैं. उन की शादी के लिए तेजेंद्र को ही पैसे खर्च करने पड़ेंगे. उस के पापा और कमलेंद्र तो कुछ भी करने से रहे. देखो, कमलेंद्र कितनी होशियारी से उन से कन्नी काट गया है. दरअसल, तुम्हें तो दूल्हा कमलेंद्र जैसा मिलना चाहिए था.’’

अम्मा कमलेंद्र का गुणगान करते हुए तेजेंद्र के नाम पर रोरो कर अपना माथा पीटती. एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘कुछ ऐसे गंभीर हालात पैदा करो कि तेजेंद्र की बहनें कुंआरी ही बूढ़ी हो जाएं. इस से तुम्हें फायदे होंगे-एक तो तेजेंद्र को उन की शादी पर पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे, दूसरे, तेजेंद्र के कमीने परिवार की सारे समाज में थूथू हो जाएगी.

‘‘जिस घर में बेटियां और बहनें अविवाहित रह जाती हैं, समाज में उसे बड़ी नीची निगाह से देखा जाता है. उस के बाद तुम अपनी सहेलियों और जानपहचान वालों में भाईबहन के रिश्ते के बारे में कुछ गंदी अफवाहें फैला देना. देखना, सारे के सारे सदमों से न केवल बीमार होंगे बल्कि दुश्ंिचताओं में पड़ कर पीलिया से ग्रस्त हो कर दम भी तोड़ देंगे.’’

पर, तेजेंद्र ने तो संकल्प ले रखा था कि वह अपने सहोदरों की जीवननैया पार लगा कर ही दम लेगा. इस बीच, प्रेमेंद्र ने तेजेंद्र को नंदिनी की शादी से संबंधित बातचीत करने और इस बाबत अन्य बंदोबस्त करने के लिए आने का आग्रह किया. जब अम्मा को इस बारे में पता चला तो उस ने जुगुनी को दिनरात बरगलाया, ‘‘बिटिया, तेजेंद्र को किसी भी कीमत पर नंदिनी की शादी के बारे में बातचीत करने के लिए उस के घर मत जाने देना.’’

इस तरह जिस शाम तेजेंद्र को ट्रेन पकड़नी थी, जुगुनी दहेज के मुद्दे पर उस से झगड़ बैठी. उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘जब तक तुम दहेज में मिला स्कूटर प्रेमेंद्र से छीन कर वापस नहीं लाओगे, तुम्हें तुम्हारे कमबख्त भाईबहनों के पास जाने नहीं दूंगी.’’ फिर, उस ने उस के पर्स से रिजर्वेशन टिकट निकाल कर फाड़ कर चिंदीचिंदी कर दिया. झगड़े पर उतारू औरत के सामने वह बेबस हो गया.

दूसरी और तीसरी बार भी जब वह नंदिनी के लिए लड़का देखने जाने की तैयारी में था तो जुगुनी ने उसे इसी तरह घर न जाने के लिए मजबूर कर दिया. तेजेंद्र तो जुगुनी के जोरजोर से शोर मचाने के कारण ही सहम जाता था, महल्ले वालों में शोर मच जाएगा तो उसी की बदनामी होगी. गलती भले ही औरत की हो, दुनिया पुरुष को ही दोषी ठहराती है.

जुगुनी ने उस की कमजोर नस पहचान ली थी और जबजब वह किसी ऐसे ही निहायत जरूरी काम से अपने पैतृक घर जाने का मन बनाता, जुगुनी शोर मचाने लगती और तेजेंद्र खामोश हो कर बैठ जाता. वह उस की कमजोर नस पर हाथ रख देती.

बहरहाल, हर बात में तूतूमैंमैं उन के दांपत्य जीवन का रोजमर्रा का हिस्सा बन गया था. जुगुनी तो मुंहफट थी ही, लेकिन जब उग्र होती तो गालीगलौज भी करने लगती. ऐसे में, तेजेंद्र अपना माथा पीट कर अपने बुरे समय को कोसता रहता. उस ने तो अपने ही क्षेत्र की लड़की से सिर्फ इसलिए शादी की थी कि उस की आदतें, रहनसहन आदि उसी की तरह होंगे जिस से रिश्तेदारी निभाने में कोई अड़चन नहीं आएगी. वह मुंबई में रह रहा होगा जबकि उस का और उस की पत्नी का परिवार सुखदुख में एकदूसरे के साथ होगा.

मुंबई में ही उस के लिए कितने ही शादी के प्रस्ताव आए थे. पर, उस ने सब से न कर दिया कि शादी करूंगा तो अपने ही क्षेत्र की किसी संस्कारी लड़की से, वरना नहीं करूंगा.

तेजेंद्र के पापा सेहत से और अपने अक्खड़ स्वभाव से इस लायक नहीं थे कि वे अपनी जिम्मेदारियों को निबटाते. कुल मिला कर वे अपने गृहस्थ जीवन के प्रति उदासीन हो गए थे. यह सोच कर कि मेरे सारे बेटे तो इतने बड़े और समझदार हो ही गए हैं कि वे उन की जिम्मेदारियों को भलीभांति निभा सकें.

इस बीच, तेजेंद्र ने मुंबई से फोन कर के अपने हाथ खड़े कर दिए, ‘‘प्रेमेंद्र, तुम्हारी भाभी मुझे तुम लोगों के लिए कुछ भी करने की इजाजत नहीं देतीं. इसलिए मैं तुम लोगों के लिए कुछ भी न कर पाने के लिए मजबूर हूं.’’

थकहार कर प्रेमेंद्र ने खुद नंदिनी के लिए एक रिश्ता तय किया, वह भी बड़ी अफरातफरी में क्योंकि उस की उम्र शादी के लिहाज से ज्यादा हो रही थी. नंदिनी की शादी हुई, पर अफसोस कि सफल नहीं रही. यह सब हताशा में उठाए गए कदमों के कारण हुआ. किसी को क्या पता था कि जिस लड़के के साथ नंदिनी का विवाह हुआ है, उस का पहले से ही किसी औरत के साथ नाजायज संबंध है जिस से उस की एक संतान भी है.

अम्मा को जब जुगुनी से यह बात पता चली तो वह फूली न समाई, ‘‘चलो, उस कमीने परिवार की बरबादी शुरू हो गई है. अब उन की बरबादी का मंजर हम तसल्ली से देखेंगे. कमीने प्रेमेंद्र को खुद पर कितना गरूर था. हमारे दहेज का स्कूटर हथियाने का उसे अब अच्छा दंड मिला है. उस की बहनों ने भी दहेज का सामान कब्जा कर बहती गंगा में खूब हाथ धोया. अब उन की मांग में कभी सिंदूर नहीं सजेगा, यह मेरी साजिश है. उन सब का ऐसा सत्यानाश हो कि वे फिर कभी आबाद न हो सकें और तेजेंद्र का सारा खानदान मटियामेट हो जाए.’’

एक दिन अम्मा ने जुगुनी को फोन पर बतलाया, ‘‘देखना, नंदिनी को जल्दी ही ससुराल से खदेड़ दिया जाएगा और वह घर आ कर बैठेगी. अब उस का दूसरा ब्याह न हो सकेगा क्योंकि यह सब मेरे ही टोनेटोटके का असर है. मैं एक डायन के भी संपर्क में हूं जिस ने अपने कर्मकांडों से तेजेंद्र के परिवार को नेस्तनाबूद करने का मुझ से वादा किया है.’’

जुगुनी खुश थी कि उस की अम्मा उस के रास्ते के सारे कांटे हटा कर उस की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए हर संभव कोशिश करने में जुटी हुई है. वैसे भी, वह अकेले यह सब कैसे कर पाती? टोनेटोटकों और औघड़बाजी के बारे में तो उसे इतना ज्ञान भी नहीं है जितना अम्मा को है. इसी वजह से अम्मा का मुंबई आनाजाना बढ़ गया. उस का मुंबई आने का तो उद्देश्य ही था कि येनकेनप्रकारेण तेजेंद्र का अपने परिवार से मोहभंग करा कर उसे ऐसी हालत में छोड़ा जाए जैसे धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. आखिरकार, वह अपनी बीवी के ही तलवे चाटेगा.

पुरस्कार- भाग 1: आखिर क्या हुआ विदाई समारोह में?

उन्हें एक निष्ठावान तथा समर्पित कर्मचारी बताया गया और उन के रिटायरमेंट जीवन की सुखमय कामना की गई थी. अंत में कार्यालय के मुख्य अधिकारी ने प्रशासन तथा साथी कर्मचारियों की ओर से एक सुंदर दीवार घड़ी, एक स्मृति चिह्न के साथ ही रामचरितमानस की एक प्रति भी भेंट की थी. 38 वर्ष का लंबा सेवाकाल पूरा कर के आज वह सरकारी अनुशासन से मुक्त हो गए थे.

वह 2 बेटियों और 3 बेटों के पिता थे. अपनी सीमित आय में उन्होंने न केवल बच्चों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाया बल्कि रिटायर होने से पहले ही उन की शादियां भी कर दी थीं. इन सब जिम्मेदारियों को ढोतेढोते वह खुद भारी बोझ तले दब से गए थे. उन की भविष्यनिधि शून्य हो चुकी थी. विभागीय सहकारी सोसाइटी से बारबार कर्ज लेना पड़ा था. इसलिए उन्होंने अपनी निजी जरूरतों को बहुत सीमित कर लिया था, अकसर पैंटशर्ट की जगह वह मोटे खद्दर का कुरतापजामा पहना करते. आफिस तक 2 किलोमीटर का रास्ता आतेजाते पैदल तय करते. परिचितों में उन की छवि एक कंजूस व्यक्ति की बन गई थी.

बड़ा लड़का बैंक में काम करता था और उस का विवाह साथ में काम करने वाली एक लड़की के साथ हुआ था. मंझला बेटा एफ.सी.आई. में था और उस की भी शादी अच्छे परिवार में हो गई थी. विवाह के बाद ही इन दोनों बेटों को अपना पैतृक घर बहुत छोटा लगने लगा. फिर बारीबारी से दोनों अपनी बीवियों को ले कर न केवल अलग हो गए बल्कि उन्होंने अपना तबादला दूसरे शहरों में करवा लिया था.

शायद वे अपने पिता की गरीबी को अपने कंधों पर ढोने को तैयार न थे. उन्हें अपने पापा से शिकायत थी कि उन्होंने अपने बच्चों को अभावों तथा गरीबी की जिंदगी जीने पर विवश किया पर अब जबकि वह पैरों पर खड़े थे, क्यों न अपने श्रम के फल को स्वयं ही खाएं.

हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. उन का तीसरा बेटा श्रवण कुमार साबित हुआ और उस की पत्नी ने भी बूढ़े मातापिता के प्रति पति के लगाव को पूरा सम्मान दिया और दोनों तनमन से उन की हर सुखसुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास करते रहते थे.

सब से छोटी बहू ने तो उन्हें बेटियों की कमी भी महसूस न होने दी थी. मम्मीपापा कहतेकहते दिन भर उस की जबान थकती न थी. सासससुर की जरा भी तबीयत खराब होती तो वह परेशान हो उठती. सुबह सो कर उठती तो दोनों की चरणधूलि माथे पर लगाती. सीमित साधनों में जहां तक संभव होता, उन्हें अच्छा व पौष्टिक भोजन देने का प्रयास करती.

सुबह जब वह दफ्तर के लिए तैयार होने कमरे में जाते तो उन का साफ- सुथरा कुरता- पजामा, रूमाल, पर्स, चश्मा, कलम ही नहीं बल्कि पालिश किए जूते भी करीने से रखे मिलते और वह गद्गद हो उठते. ढेर सारी दुआएं अपनी छोटी बहू के लिए उन के होंठों पर आ जातीं.

उस दिन को याद कर के तो वह हर बार रोमांचित हो उठते जब वह रोजाना की तरह शाम को दफ्तर से लौटे तो देखा बहूबेटा और पोतापोती सब इस तरह से तैयार थे जैसे किसी शादी में जाना हो. इसी बीच पत्नी किचन से निकली तो उसे देख कर वह और हैरान रह गए. पत्नी ने बहुत सुंदर सूट पहन रखा था और आयु अनुसार बड़े आकर्षक ढंग से बाल संवारे हुए थे. पहली बार उन्होंने पत्नी को हलकी सी लिपस्टिक लगाए भी देखा था.

‘यह टुकरटुकर क्या देख रहे हो? आप का ही घर है,’ पत्नी बोली.

‘पर…यह सब…बात क्या है? किसी शादी में जाना है?’

‘सब बता देंगे, पहले आप तैयार हो जाइए.’

‘पर आखिर जाना कहां है, यह अचानक किस का न्योता आ गया है.’

‘पापा, ज्यादा दूर नहीं जाना है,’ बड़ा मासूम अनुरोध था बहू का, ‘आप झट से मुंहहाथ धो कर यह कपड़े पहन लीजिए. हमें देर हो रही है.’

वह हड़बड़ाए से बाथरूम में घुस गए. बाहर आए तो पहले से तैयार रखे कपड़े पहन लिए. तभी पोतापोती आ गए और अपने बाबा को घसीटते हुए बोले, ‘चलो न दादा, बहुत देर हो रही है…’ और जब कमरे में पहुंचे तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. रंगबिरंगी लडि़यों तथा फूलों से कमरे को सजाया गया था. मेज पर एक बड़ा सुंदर केक सजा हुआ था. दीवार पर चमकदार पेपर काट कर सुंदर ढंग से लिखा गया था, ‘पापा को स्वर्ण जयंती जन्मदिन मुबारक हो.’

वह तो जैसे गूंगे हो गए थे. हठपूर्वक उन से केक कटवाया गया था और सभी ने जोरजोर से तालियां बजाते हुए ‘हैपी बर्थ डे टू यू, हैपी बर्थ डे पापा’ कहा. तभी बहू और बेटा उन्हें एक पैकेट पकड़ाते हुए बोले, ‘जरा इसे खोलिए तो, पापा.’

पैकेट खोला तो बहुत प्यारा सिल्क का कुरता और पजामा उन के हाथों में था.

शिवानी- भाग 1: फार्महाउस पर शिवानी के साथ क्या हुआ

विवाह के बाद का 1 महीना कब बीत गया, शिवानी को पता ही नहीं चला. बनारस के जानेमाने समृद्घ, स्नेहिल, सभ्य परिवार की इकलौती बहू बन कर शिवानी खुद पर नाज करती थी. बीएचयू में ही मंच पर एक कार्यक्रम पेश करते हुए वह कब गौतम दंपती के मन में उन के इकलौते बेटे अजय की दुलहन के रूप में जगह बना गई, किसी को पता ही न चला.

यह रिश्ता बिना किसी अवरोध के तय हो गया. शिवानी भी अपने अध्यापक मातापिता रमेश और सुधा की इकलौती संतान थी. गौतम का अपना बिजनैस था. परिवार में पत्नी उमा, बेटा अजय, उन के छोटे भाई विनय और उन की पत्नी लता सब एकसाथ ही रहते थे. उमा और लता में बहनों जैसा प्यार था. विनय और लता बेऔलाद थे. अपना सारा स्नेह अजय पर ही लुटा कर उन्हें चैन आता था.

गौतम परिवार में शिवानी का स्वागत धूमधाम से हुआ था. अजय पिता और चाचा के साथ ही बिजनैस संभालता था. लंबाचौड़ा बिजनैस था, जिस में टूअर पर जाने का काम अजय ने संभाल रखा था. विवाह के बाद की चहलपहल में समय जैसे पलक झपकते ही बीत गया.

एक दिन औफिस से आ कर अजय ने शिवानी से कहा, ‘‘अगले हफ्ते मुझे इंडिया से बाहर कई जगह टूअर पर जाना है.’’

यह सुन कर शिवानी एकदम उदास हो गई, पूछा, ‘‘मुझे भी ले जाओगे?’’

‘‘अभी तो तुम्हारा पासपोर्ट भी नहीं बना है. पहले तुम्हारा पासपोर्ट बनवा लेते हैं, फिर अगली बार साथ चलना.’’

घर में शिवानी की उदासी सब ने महसूस की. उमा ने कहा, ‘‘विवाह की भागदौड़ में ध्यान ही नहीं रहा कि पासपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है. कोई बात नहीं बेटा, अगली बार साथ चली जाना. इस के तो टूअर लगते ही रहते हैं… ये दिन हम सासबहू मिल कर ऐंजौय करेंगे.’’

उमा के स्नेहिल स्वर पर अपनी उदासी एकतरफ रख शिवानी को मुसकराना ही पड़ा.

लता ने भी कहा, ‘‘अब इस के लिए अच्छेअच्छे गिफ्ट्स लाना… भरपाई तो करनी पड़ेगी न.’’

सभी शिवानी का मूड ठीक करने के लिए हंसीमजाक करते रहे. शिवानी भी फिर धीरेधीरे हंसतीमुसकराती रही.

रात को एकांत मिलते ही अजय ने कहा, ‘‘मेरा भी मन तो नहीं लगेगा तुम्हारे बिना पर मजबूरी है… अब बाहर के काम मैं ही संभालता हूं. जल्दी निबटाने की कोशिश करूंगा. तुम बिलकुल उदास मत होना. आराम से घूमनाफिरना और फिर हम टच में तो रहेंगे ही. विवाह के बाद अपने दोस्तों से भी नहीं मिली हो न… सब से मिलती रहना. मैं जल्दी आ जाऊंगा.’’

शिवानी का मन उदास तो बहुत था पर अजय के स्पर्श से मन को ठंडक भी पहुंच रही थी. अजय की बाहों के सुरक्षित घेरे में वह बहुत देर तक चुपचाप ऐसे ही बंधी पड़ी रही. 2 दिन बाद अजय चला गया. शिवानी को लगा जैसे वह अकेली हो गई है. वह सोचने लगी कि कैसा होता है पतिपत्नी का रिश्ता. जो कुछ दिन पहले तक अजनबी था, आज उसी के बिना एक पल भी रहना मुश्किल लगता है, सब कुछ उसी के इर्दगिर्द घूमता रहता है.

उमा और लता ने उसे कुछ उदास सा देखा, तो उमा ने कहा, ‘‘जाओ बहू, अपने मम्मीपापा के पास कुछ दिन रह आओ, लोकल मायके में अकसर रहने को नहीं मिलता है… जब भी गई हो थोड़ी देर में लौट आई हो. अब कुछ दिन रह लो. टाइमपास हो जाएगा.’’

शिवानी को मायके आ कर अच्छा लगा. रमेश और सुधा बेटी की ससुराल से पूरी तरह संतुष्ट थे.

सुधा ने कहा भी, ‘‘बेटा, वे बहुत अच्छे लोग हैं. उन के साथ तुम हमेशा प्यार से रहना. बहुत ही कम लड़कियों को ऐसा घरवर मिलता है.’’

अजय फोन पर तो शिवानी के संपर्क में रहता ही था. 2 दिन हुए थे. शिवानी के दोस्तों जिन में लड़केलड़कियां दोनों शामिल थे, सब ने शिवानी के लिए एक पार्टी रखी.

उस की सहेली रेखा ने कहा, ‘‘तुम्हारे लिए ही रखी है पार्टी. आजकल बोर हो रही हो न? कुछ टाइमपास करेंगे. खूब धमाल करेंगे.’’

शिवानी ने अजय को फोन पर पार्टी के बारे में बताया, तो वह खुश हुआ. बोला, जरूर जाना…ऐंजौय करो.

पिता रमेश ने तो सुन कर ‘‘हां, जाओ,’’ कहा पर मां सुधा ने मना करते हुए कहा ‘‘दिन भर जहां मन हो, घूमफिर लो, पर रात में रुकना मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘अरे मम्मी, संजय के फार्महाउस पर पार्टी है और अब तो मैं मैरिड हूं. आप चिंता न करें. सब पुराना गु्रप ही तो है.’’

‘‘नहीं शिवानी, मुझे इस तरह रात में रुकना पसंद नहीं है.’’

सुधा शिवानी के रात भर बाहर रुकने के पक्ष में बिलकुल नहीं थीं पर शिवानी ने जाने की तैयारी कर ही ली. तय समय पर वह तैयार हो कर रेखा के घर गई. वहां अनिता, सुमन, मंजू, सोनिया, रीता, संजय, अनिल, कुणाल, रमन सब पहले से मौजूद थे. सब पुराने सहपाठी थे. सब की खूब जमती थी. संजय का फार्महाउस बनारस से बाहर 1 घंटे की दूरी पर था. 2 कारों में सब 1 घंटे में फार्महाउस पहुंच गए.

इन सब में रीता, रमन और शिवानी विवाहित थे. सब मिल कर चहक उठे थे. 6 बज रहे थे. सब से पहले कोल्ड ड्रिंक्स का दौर शुरू हुआ. सब एकदूसरे का गिलास भरते रहे. खूब हंसीमजाक के बीच भी शिवानी को अपना सिर भारी होता महसूस हुआ. वह थोड़ा शांत हो कर एक तरफ बैठ गई. उस के बाद म्यूजिक लगा कर सब थिरकने लगे. सब लोग कालेज स्टूडैंट्स की तरह मस्ती के मूड में थे. वहीं एक सोफे पर शिवानी निढाल सी बैठी थी.

रेखा ने कहा, ‘‘तू किसी रूम में जा कर थोड़ा लेट ले.’’

‘‘हां ठीक है.’’

संजय के फार्महाउस की देखभाल माधव काका और उन की पत्नी करते थे. बहुत पुराने लोग थे. संजय ने उन्हें आवाज दी, ‘‘काकी, शिवानी को एक रूम में ले जाओ और आराम करने देना इसे. इस की तबीयत ठीक नहीं है.’’

रेखा भी साथ जा कर शिवानी को लिटा आई. फिर सब के साथ डांस में व्यस्त हो गई. सब ने जम कर धमाल किया. खूब डांस कर के थक गए तो माधव और जानकी ने सब का खाना लगा दिया. सब डिनर के लिए शिवानी को उठाने गए पर वह गहरी नींद में बेसुध थी.

रेखा ने कहा, ‘‘इसे सोने दो. उठेगी तो खा लेगी. यह तो शादी के बाद कुछ ज्यादा ही नाजुक हो गई है?’’

सब इस मजाक पर हंसने लगे.

सब ने डिनर किया. उस के बाद जिस का जहां मन किया, सोने के लिए लेट गया. रेखा, रीता, सुमन दूसरे कमरे में जा कर सो गई थीं. इस फार्महाउस में 3 रूम थे. तीसरा रूम इस समय खाली था. शिवानी को कोई होश नहीं था. वह बिलकुल बेसुध थी. रात को 3 बजे संजय ने सब पर एक नजर डाली. सब गहरी नींद में सोए थे. संजय चुपचाप उठ कर सीधा शिवानी के रूम में गया. उस ने शिवानी पर कामुक नजरें डाली. शिवानी को वह पहले से ही पसंद करता था.

आज उस ने शिवानी के ड्रिंक्स में नशीला पदार्थ मिला दिया था. यह सब प्रोग्राम उस ने सोचसमझ कर बनाया था. दरवाजा अंदर से बंद कर के वह शिवानी की तरफ बढ़ गया.

शिवानी ने बेहोशी में ही हाथपांव मारे, अपने को बचाने की कोशिश भी की, लेकिन नशे के असर से उस की आंख ही नहीं खुल रही थी. हाथपांव भी निर्जीव ही लग रहे थे.

संजय अपने इरादे में सफल हो चुका था. शिवानी के साथ जबरदस्ती संबंध बना कर वह अपनी योजना के सफल होने पर मुसकराता हुआ कपड़े पहन कर रूम से निकल कर बाकी दोस्तों के बीच जा कर सो गया.

सुबह सब से पहले नशे का असर खत्म होते ही शिवानी की ही आंखें खुलीं.

जरा होश आया तो महसूस हुआ कि उस के साथ बीती रात क्याक्या हुआ है. वह कांप उठी. गुस्से के कारण उस का मन हुआ अभी जा कर बलात्कारी को जान से मार दे. आवेश में वह बिस्तर से उठी और कांपते कदमों से सिर पकड़ कर ड्राइंगरूम में जाते ही चौंक गई.

सब सोए पड़े थे. दूसरे रूम में भी झांका. सब सो रही थीं. शिवानी के पैर डगमगा गए कि यह क्या हो गया. उसे तो यह भी नहीं पता कि किस ने रेप किया है… किस से क्या कहेगी, वह अब क्या करेगी… तनमन से निढाल वह वापस बैड पर आ गिरी.

आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. वह बहुत देर तक रोती रही. मन हुआ कि चीखचीख कर सब को बता दे कि उस के साथ क्या अनर्थ हुआ है. फिर धीरेधीरे सब 1-1 कर उठते गए. सब उस के पास उस की तबीयत पूछने आ रहे थे. उस ने सब लड़कों के चेहरे पढ़ने की कोशिश की पर किसी के चेहरे से उसे कुछ पता नहीं चल सका.

मेरी बेटी गलत संगत के कारण कैरियर पर ध्यान नहीं दे रही है, क्या करूं?

सवाल

हमारी 18 साल की बेटी है, जो शुरू में तो पढ़ाई में काफी अच्छी थी लेकिन गलत संगत के कारण अब वह न तो हमारी बात मानती है और न ही अपने कैरियर पर ध्यान दे रही है. हम उस के कैरियर को ले कर काफी चिंतित हैं. कैसे उसे सही राह दिखाएं, कुछ समझ नहीं आ रहा?

जवाब

जैसेजैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है उन्हें अपने पेरैंट्स से ज्यादा अपने फ्रैंड्स की बातें सही लगने लगती हैं. कई बार वे उन के प्रभाव में इतना अधिक आ जाते हैं कि सहीगलत में फर्क नहीं कर पाते. ऐसे में आप उन्हें प्यार से सही राह पर लाइए और समझाइए कि अगर अभी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया तो आगे जा कर नुकसान उठाना पड़ेगा. हो सकता है आप की बात उसे समझ आ जाए वरना सख्ती ही बरतनी होगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

ठगी का शिकार हुईं ‘कुंडली भाग्य’ की श्रद्धा आर्या, पढ़ें खबर

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस श्रद्धा आर्या (Shraddha Arya) सुर्खियों में छाई रहती हैं. वह अक्सर अपने फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. अब हाल ही में एक्ट्रेस अपने साथ हुई ठगी के कारण चर्चा में आ गई हैं. जी हां श्रद्धा आर्या आर्या ठगी का शिकार हुई है. आइए बताते हैं, क्या है पूरा मामला.

दरअसल श्रद्धा आर्या को एक इंटीरियर डिजाइनर ने ठगा है. एक्ट्रेस ने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए जानकारी दी है. हाल ही में एक्ट्रेस ने अंधेरी में एक घर खरीदा था जिसे डिजाइन करवाने के लिए उन्होंने डिजाइनर हायर किया था. लेकिन वह डिजाइनर एक्ट्रेस के पैसे और सामान के साथ फरार हो गया है.

 

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श्रद्धा आर्या ने इंस्टाग्राम पर इस बात की जानकारी देते हुए उसकी शिकायत भी की है. एक्ट्रेस ने डिजाइनर का नाम बताते हुए लिखा है कि वह इंटीरियर डिजाइनर, जिसके बारे में मुझे लगा था कि मैं उसपर भरोसा कर सकती हूं, उसने मेरा भरोसा तोड़ दिया और घर की फिटिंग और बाकी सामानों के साथ फरार हो गया. जबकि मैंने 95 प्रतिशत फीस चुका दी थी, जो कि उसने खुद मुझसे बताई थी.

 

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एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रद्धा आर्या ने अपने साथ हुई ठगी के बारे में बात करते हुए कहा है कि  मैं ऑनलाइन इंटीरियर डिजाइनर की तलाश कर रही थी और इसी दौरान मुझे वो दिखा. मैंने शादी के बाद अपने घर की सजावट के लिए उसे हायर किया था. उसने मुझसे वादा किया था कि वह चार महीनों में काम खत्म कर देगा, लेकिन लंबा वक्त लेने के बाद भी वह काम नहीं निपटा पाया.

 

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अनुपमा के नाम सारी जायदाद करेगा अनुज, वनराज का उजड़ेगा घर

टीवी शो ‘अनुपमा’ (Anupama) में अनुज और अनुपमा आखिरकार शादी के बंधन में बंध गये हैं. दर्शकों को अनुज-अनुपमा की शादी का बेसब्री से इंतजार था. अब अनुपमा कपाड़िया परिवार की बहू बन गई है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

कपाड़िया परिवार में होगा अनुपमा का शानदार स्वागत

 

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शो में अब तक आपने अब तक देखा कि अनुज-अनुपमा ने सात फेरे लिए. अब अनुपमा की शाह परिवार से विदाई हो गई है. नए ससुराल में अनुपमा का भव्य स्वागत किया जाएगा और यह देखकर अनुपमा इमोशनल हो जाएगी. काव्या भी अनुपमा की खुशियों में खुश होगी.

अनुज की सम्पति की मालकिन होगी अनुपमा

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि  अनुज अनुपमा  के नाम अपनी पूरी जायदाद कर देगा और घर की सारी जिम्मेदारियां वो अनुपमा के नाम कर देगा. शो में अनुज-अनुपमा जमकर रोमांस करेंगे.  शो के आने वाले एपिसोड में अनुज और अनुपमा की शानदार केमिस्ट्री देखने को मिलने वाला है.

वनराज का उजड़ेगा घर

 

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शो में दिखाया जा रहा है कि एक तरफ अनुपमा का घर बस रहा है तो वहीं  दूसरी तरफ वनराज का घर उजड़ जाएगा. अनुपमा की विदाई के बाद वनराज को इस बात की चिंता सताएगी कि शादी के बाद शाह परिवार में अनुपमा की जिम्मेदारियां कौन संभालेगा. दूसरी तरफ काव्या भी अपने एक्स हसबैंड के साथ कॉन्टेक्ट करेगी. तो वहीं बा को इस बात की भनक लग जाएगी. खबरों के अनुसार काव्या वनराज को तलाक देने की बात कहेगी.

सुपर स्टार अक्षय कुमार का तंबाकू विज्ञापन

अक्षय कुमार  फिल्मी दुनिया में अपना एक ऊंचा मुकाम बना चुके हैं. उन्होंने जो संघर्ष किया है उसे भी हम आपको बताते चलें और यह भी कि अभी अभी उन्होंने विमल गुटखा का विज्ञापन करने के  खातिर आखिरकार प्रशंसकों से माफी मांग ली है.

अक्षय कुमार खिलाड़ी कुमार के नाम से भी बॉलीवुड में जाने जाते हैं 90 के दशक में जब वे फिल्मी दुनिया में आए तो वह अपनी नकल के कारण हाशिए पर रहते थे. मगर धीरे-धीरे उन्होंने अभिनय कला को कुछ ऐसा साधा है कि आज उनकी फिल्में 200-300 करोड़ के क्लब में बड़ी आसानी से पहुंच जाती है.

अक्षय कुमार नाम है एक ऐसे फिल्म अभिनेता का जो हमेशा सुर्खियों में बना रहता है कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का साक्षात्कार ले कर के, कभी उनका समर्थन करके और कभी अपनी फिल्मों और अपनी कार्यशैली के कारण हाल में उन्होंने विमल तंबाकू गुटखा एक ऐसा विज्ञापन किया जिसके कारण उनके फैंस ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया, अब यह अक्षय कुमार की ही समझदारी है कि उन्होंने अपने प्रशंसकों की बात को गंभीरता से लिया और यह घोषणा कर दी है कि वह आगे ऐसे किसी भी विज्ञापन में काम नहीं करेंगे .

जैसा कि होना चाहिए था उनके प्रशंसक अक्षय कुमार की इस भलमनसाहत की भी खूब प्रशंसा कर रहे हैं.

दरअसल, अक्षय कुमार ने हाल ही में तंबाकू ऐड में अजय देवगन  और शाहरुख खान के साथ नजर आए थे. इस ऐड के सामने आते है कि अक्षय को सोशल मीडिया पर खूब खरी-खोटी सुनाई. यह विज्ञापन आते ही  कुछ प्रशंसकों ने उनका एक पुराना साक्षात्कार शेयर कर उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया.

अक्षय कुमार ने खुद को ट्रोल होता देख आखिरकार संवेदनशीलता का परिचय दिया और खुद को इस विज्ञापन से अलग कर दिया और यही नहीं आधी रात को इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए फैन्स से माफी मांगी.

अक्षय कुमार ने लंबा चौड़ा पोस्ट लिखकर अपनी बात कही उसके बाद तो अक्षय कुमार के प्रशंसकों ने बढ़-चढ़कर उनकी भूरी भूरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी जो स्वाभाविक है क्योंकि आज के समय में कोई भी स्टार अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है.

खिलाड़ी कुमार की उदार माफी

खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार पर जब प्रशंसक व्यंग बाण छोड़ने लगे तो अक्षय कुमार ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर कर लिखा- ” मैं सभी फैन्स और अपने वेल विशर्स से माफी मांगता हूं.  आपसे मिले रिसपॉन्स ने मुझे हिलाकर कर रख दिया. मैं तंबाकू का सपोर्ट नहीं किया और आगे भी इसका समर्थन नहीं करूंगा. मैं आप सबसे इमोशन्स की कद्र करता हूं और जिस तरह से आपने मेरे विमल इलायजी के ऐड पर अपना रिएक्शन दिया, उसका मैं सम्मान करता हूं. मैं इस विज्ञापन से खुद को हटाता हू्ं और मैंने तय किया है कि इस ऐड जो फीस मुझे मिली है उस अच्छे काम में लगाऊंगा.”

अक्षय कुमार यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे बढ़ कर लिखा

– ” चूंकि कुछ कानूनी नियमों की वजह से ये ऐड तय समय पर रिलीज करने का कॉन्ट्रेक्ट है, लेकिन मैं आप सबसे वादा करता हूं कि फ्यूचर में इस तरह का कोई काम नहीं करूंगा. मैं इसके बदला में आप सभी ने प्यार और शुभकामनाएं चाहता हूं. ”

हमने देखा है कि बॉलीवुड में ऐसी घटनाएं कम ही घटित हुई है बड़े स्टार अभिनेताओं सामने आकर के माफी मांगते हैं, ऐसा दक्षिण की फिल्मों के अभिनेता तो करते हैं मगर बालीवुड में ऐसा नजारा कभी दिखाई देता है.

स्ट्रा रीपर- भूसा मशीन

केएसए-756 डीबी

स्ट्रारीपर एक ऐसा कृषि यंत्र है, जो खेतों में बचे धान, गेहूं जैसी फसलों के अवशेषों को भूसे में बदल देता है. आजकल ज्यादातर देखने में आया है कि धान, गेहूं फसल की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर यंत्र द्वारा की जाती है, जिस में सामान्यतौर पर फसल में ऊपरी अनाज वाले हिस्से की कटाई कर ली जाती है, बाकी अवशेष खेत में खड़े रह जाते हैं, जिन्हें ज्यादातर किसान या तो खेत में जोत देते हैं, जिस से उस की खाद बन जाती है या बहुत से किसान उसे खेत में ही जला देते हैं, जो पर्यावरण के साथसाथ खेती की मिट्टी के लिए भी नुकसानदायक है.

स्ट्रा रीपर यंत्र इसी समस्या का समाध??ान करता है. वह बचे फसल अवशेष को काट कर सफाई के साथ कम समय में ही भूसा बना देता है, जो पशुओं के चारे के लिए काम आता है.

हालांकि सरकार ने कंबाइन हार्वेस्टरों के साथ स्ट्रा रीपर जैसे यंत्रों को जोड़ना भी जरूरी कर दिया है, जो फसल की कटाई के दौरान अनाज स्टोरेज के साथसाथ भूसा भी इकट्ठा कर सकें. फिर भी अनेक स्थानों पर ऐसी कमियां रह जाती हैं, इस के लिए किसानों को स्ट्रा रीपर का इस्तेमाल करना चाहिए.

स्ट्रा रीपर एकसाथ 3 तरह के काम करता है. खेत में खड़ी फसल काटने के बाद थ्रेशिंग करना और पुआल साफ करना अथवा भूसा बनाना. स्ट्रा रीपर ट्रैक्टरों के साथ जोड़ कर प्रयोग किया जाता है. यह असाधारण काम करता है और ईंधन की खपत कम करता है.

स्ट्रा रीपर कृषि यंत्र पर कई राज्य सरकारों की ओर से सब्सिडी का लाभ भी किसानों को दिया जाता है. यह छोटे और बड़े दोनों किसानों के लिए उपयोगी है.

इस मशीन के जरीए फसल कटाने पर कई प्रकार का फायदा होता है. पहला, गेहूं के दानों के साथसाथ भूसा भी मिल जाता है. इस से पशुओं के लिए चारे की समस्या नहीं होती है. इस के अलावा दूसरा फायदा यह है कि जो दाना मशीन से खेत में रह जाता है, उस को ये मशीन उठा लेती है, जिसे किसान अपने पशुओं के लिए दाने के रूप में प्रयोग कर लेते हैं. स्ट्रा रीपर का उपयोग कटाई, थ्रेशिंग के साथसाथ भूसे की सफाई के लिए किया जाता है.

केएसए-756 डीबी, स्ट्रा रीपर

देश की नंबर वन भूसा मशीन कंपनी केएस एग्रीकल्चर ने भूसा मशीन में नंबर वन टैक्नोलौजी के दावे के साथ भूसा मशीन केएसए-756 डीबी बनाई है. ऐसा माना जाता है कि केएस एग्रीकल्चर कंपनी अपनी सर्विस क्वालिटी के कारण आज भी दुनिया की नंबर वन कंपनी बनी हुई है.

केएस कृषि यंत्र बनाने वाली कंपनी के एक प्रतिनिधि का कहना है कि यह दुनिया का पहला डबल ब्लोअर और 5 पंखों वाला स्ट्रा रीपर है. इस स्ट्रा रीपर को 30 साल के क्षेत्र के अनुभव के साथ विकसित कर के बनाया गया है. यह यंत्र मजबूत और टिकाऊ है, जिस का वजन तकरीबन 2040 किलोग्राम है.

यह यंत्र 7 से 7.5 फुट तक चौड़ाई के साथ फसल अवशेष की कटिंग करता  है. कम ईंधन की खपत व ट्रैक्टर के साथ आसानी से चलने वाला यंत्र है.

यह घंटेभर में 2 से 3 ट्रौली तक भूसा भरने में सक्षम है. मशीन चलने के समय पत्थर के प्रवेश को रोकने के लिए अलार्म के साथ स्टोन ट्रे दी गई है.

इस रीपर को 45 हौर्सपावर के ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. इस की अनुमानित कीमत 3 लाख, 55 हजार रुपए तक है. अधिक जानकारी के लिए मोबाइल नंबर 9988970055 पर संपर्क कर सकते हैं.

स्वराज स्ट्रा रीपर

स्ट्रा रीपर ऐसी कटाई मशीन है, जो एक ही बार में पुआल को काटती है, थ्रेश करती है और साफ करती है. कंबाइन हार्वेस्ट के बाद बचे गेहूं के डंठल फसल अवशेष को दोलन करने वाले ब्लेड से काटा जाता है, जबकि घूमने वाली रील उन्हें पीछे की ओर धकेलती है और इन्हें बरमा करती है. बरमा और गाइड ड्रम द्वारा फसल अवशेष को मशीन में पहुंचाया जाता है, जो थ्रेशिंग सिलैंडर तक पहुंचता है और जो डंठल को छोटे टुकड़ों में काट कर भूसे में बदल देता है.

इस यंत्र में हैवी ड्यूटी गियर बौक्स, थ्रेशर ड्रम में 288 ब्लेड और कंकड़पत्थर को अलग करने के लिए जाल लगा है, जिस से साफसुथरा भूसा मिलता है.

इस यंत्र की काम करने की क्षमता 1 से 2 एकड़ प्रति घंटा तक है. अवशेषों से बचे हुए अनाज को इकट्ठा करने के लिए 40 से 50 किलोग्राम तक की क्षमता वाला टैंक भी लगा है.

दशमेश 517 स्ट्रा रीपर

45 हौर्सपावर के टैक्टर के साथ चलने वाले इस स्ट्रा रीपर से थ्रेशिंग ड्रम में 216 ब्लेड लगे हैं. अनाज भंडारण के लिए अलग से टैंक लगा है. यंत्र की चैसिस की लंबाई-56 इंच है और काम करने की कूवत 1 से 2 एकड़ प्रति घंटा है. इस में लगे थ्रेशर का व्यास लगभग 20 इंच है और कटर बार की चौड़ाई 7 फुट है. यंत्र का कुल वजन लगभग 1,800 किलोग्राम है.

इस के अलावा अनेक कंपनियां स्ट्रा रीपर बना रही हैं, जिस में स्वराज स्ट्रा रीपर, भलकित स्ट्रा रीपर, मालवा स्ट्रा रीपर खास हैं. साथ ही साथ अन्य कृषि यंत्र निर्माता जैसे करतार, महिंद्रा, न्यू हालैंड आदि भी स्ट्रा रीपर बना रहे हैं. हां, आप अपनी पसंद से जांचपरख कर यंत्र खरीद सकते हैं.

यहां आप को केवल सामान्य जानकारी दी गई है. कीमत आदि में उतारचढ़ाव हो सकता है. वैसे, कृषि यंत्रों पर सरकार द्वारा सब्सिडी का प्रावधान है. उस का फायदा भी आप अपने स्तर पर ले सकते हैं.

मारपीट का मौडल

हिंदुमुसलिम अलगाव जल्दी ही हिंदू अलगाव में बदलेगा उस का अंत हमेशा था. जब आप कीकर की खेती अपने खेत में करोंगे तो उस के बीच आसपास तो फैलेंगे ही फलेफूलेंगे ही.  हिंदुमुसलिम झगड़े हर कट्टर  हिंदु को सिखा रहे है कि अलग रहना और पड़ोसी से झगडऩा. उस से मारपीट करना, उसे अपनी तरह ढालना आप का फर्ज ही नहीं हक और जिम्मेदारी भी है. पंचायतों, खापों, गांवों में यह सदियों से होता रहा है जहां लोगों को अपने घरों में पहनने, खाने, सोने, शादी करने और यहां तक की मरने पर भी पड़ोसियों की राय को मानना ही होता था.

आजादी के बाद नई पढ़ाई, विज्ञान, नई तकनीक, शहरों तक के सफर, किताबों, उपन्यासों, अखबारों, टीवी ने एक नई बात सिखाई कि हर जना अपनी सोच रखने का हक रखता है और एक समाज मजबूत तभी होता है जब अलगअलग तरह की सोच रखने वाले अपना जातियों, धर्मों के लोग एक समय काम करने की तरकीब सीख सकें.

मुसलिम मसजिदों में लाउडस्पीकरों को हटवाना या उन का शोर इतना कम करना कट्टरियों का कदम था ताकि उस की आवाज मसजिद से बाहर न जाए और मुसलिम अजान ङ्क्षहदू घरों को दूषित न करें. लेकिन यह करने पर उन्हें मंदिरों, गुरूदारों से भी लाउडस्पीकर हटवाने पड़े. देश में अभी इतनी अराजकता आने में समर्थ है जब एक वर्ग कहेगा कि हम चाहे जो करें तुम ऐसा नहीं करोंगे. संविधान जिस दिन चौराहों पर जलेगा. उसी दिन ऐसा होगा.

गुजरात सहसाना जिले में मंदिर में 2 भाई लाउडस्पीकर पर आरती आ रहे थे. आवाज ज्यादा थी तो पड़ोसी निकल आया, उसी धर्म का. इस पर झगड़ा हो गया तो पड़ोसी ने अपने साथियों को बुला लिया. गुजरात मौडल जो पूरे देश में लागू हो रहा है सिखा रहा है कि कानून को अपने हाथ में लेने का पूरा हक हर भीड़ को है चाहे वह भीड़ 4-5 जनों की हो. 4-5 जने औरतों की साडिय़ां उतार सकते है, दलितों को खंबे से बांध कर पीट सकते हैं. भीड़ पर गाड़ी चढ़ा सकते हैं, जबरन नारे लगवा सकते हैं. न प्रधानमंत्री उस पर बोलेंगे, न गृहमंत्री कुछ करेंगे. इन 6 जनों ने मिलकर 2 की जमकर घुनाई कर दी. लाठियों से, एक मर गया.

चलो कोई बात नहीं. यह होता है है. मुसलिम मसजिद का लाउडस्पीकर बंद कराने के लिए किसी ङ्क्षहदू की जान मंदिर में जाए या मसजिद के सामने, फर्म नहीं पड़ता. यह संदेशा तो गया कि लाउडस्पीकर चलाओगे तो जानें जा सकती हैं. सब से बड़ी बात है कि दूसरे धर्मों के लोगों को पाठ पढ़ाना कि वे खाल में रहें, हमारे कहे के हिसाब से चलें.

और जब हम लाठियां चलाना आ ही गया है तो दलितों पर भी चलाएंगे, औरतों पर भी चलाएंगे. 6 मई के जिस दिन गुजरात की यह खबर छपी उसी दिन खबर छपी की एक दलित ङ्क्षहदू को मुसलिम लडक़ी से शादी करने पर हैदराबाद में मार डाला गया. उसी रोज दिल्ली की एक गरीब बस्ती में ङ्क्षहदू और मुसलिम बच्चों में झगड़ा होने पर दोनों तरफ के कट्टर जवान कूद पड़े.

एक और मामला उसी रोज के (6 मई) के अखबार में छपा है जिस में 13 साल के लडक़े ने 8 माह के पड़ोसी ने बच्चे को पानी में डुबा कर मार डाला. मां अपने 3 बच्चों को घर पर छोड़ कर बाजार तक  गर्ई थी जिस दौरान पड़ोसियों के लडक़े ने यह किया क्योंकि वह उस की मां से कई बार फटकार खा चुका था.

मारपीट का मौडल अब और तेज और तीखा होता जा रहा है. यह हर रोज होगा, बढ़ेगा क्योंकि हमें पाठ पढ़ाया जा रहा है कि हमारा पड़ोसी अगर दूसरे धर्म, जाति, सोच का है तो उसे सावर रहने का हक नहीं है. वह कहीं और जाए, पाकिस्तान जाए या समुद्र में जाए उसे तो भीड़ के साथ रहना होगा, भीड़ वाले नार लगाने होंगे.

मोस्टवांटेड आतंकी बन गई आफिया

डा. आफिया सिद्दीकी एक न्यूरो साइंटिस्ट थी, लेकिन उस ने अपनी जड़ें आतंकी गतिविधियों में फैलाईं. पाकिस्तान की डा. आफिया सिद्दीकी का सपना तो एक बहुत बड़ी न्यूरो साइंटिस्ट बनने का था. पर वह बन गई लेडी अलकायदा. अमेरिका की विशेष अदालत ने आफिया को 86 साल की सजा सुनाई है. अमेरिका में 16 जनवरी को यहूदी मंदिर में घटी बंधक बनाने वाली घटना के कारण आफिया एक बार फिर चर्चा में आ गई है.

ब्यूटी विद डेंजरस ब्रेन वाली आफिया को छुड़ाने के लिए उस के भाई ने टेक्सास स्टेट के डलास के कोलीविले शहर में स्थित यहूदी मंदिर में 4 लोगों को बंधक बना लिया था. इस के बदले में उस ने अपनी बहन डा. आफिया सिद्दीकी को छोड़ने की मांग रखी थी. जिन 4 लोगों को बंधक बनाया गया था, उस में एक रब्बी यानी कि यहूदी धर्मगुरु भी थे.

इस घटना के बारे में जैसे ही अमेरिकी पुलिस को पता चला, तुरंत ही स्वाट कमांडो, एफबीआई के एजेंट सहित सुरक्षाकर्मी सिनेगोग पहुंच गए थे. यहूदियों के उपासना गृह यानी मंदिर को सिनेगोग कहते हैं.

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को तुरंत इस घटना की जानकारी दी गई थी. मामला यहूदियों के धर्मस्थल का था, इसलिए इजरायल भी जोश में आ गया था. सिनेगोग में चल रहे धार्मिक कार्यक्रम का फेसबुक पर लाइव प्रसारण चल रहा था. उसी समय हमलावर अंदर घुस आए थे. उन के हाथों में बंदूकें थीं.

कोलीविले 34 वर्ग किलोमीटर में फैला 27 हजार से भी कम जनसंख्या वाला शहर है. इस छोटे से शहर में इस तरह की बड़ी घटना से पूरे अमेरिका में खलबली मच गई थी. अमेरिका में पिछले काफी समय से कोई बड़ी आतंकी घटना नहीं घटी थी. अचानक यह क्या हो गया, यह सवाल सभी को सताने लगा था.

उसी दौरान टेक्सास के गवर्नर ग्रेग एबोट ने एक ट्वीट कर के कहा था कि ‘ईश्वर ने प्रार्थना सुन ली है. सारे बंधक जीवित और सुरक्षित हैं.’

इस ट्वीट को पढ़ कर सभी ने खुद को हल्का महसूस किया. पूरी घटना की अभी सहीसही जानकारी नहीं मिली है, पर इतना तो साफ हो चुका है कि पाकिस्तानी आतंकवादी डा. आफिया सिद्दीकी को छुड़ाने के लिए यह पूरा षडयंत्र रचा गया था. बंधक बनाने वाले आतंकियों को अमेरिकी पुलिस ने कुछ देर बाद ढेर कर दिया, तब कहीं जा कर लोगों की जान में जान आई.

अब आइए डा. आफिया सिद्दीकी के बारे में थोड़ा जान लेते हैं.

आफिया का जन्म पाकिस्तान के कराची शहर में 2 मार्च, 1972 में हुआ था. आफिया न्यूरो साइंटिस्ट बनना चाहती थी. इसलिए बड़ी होने पर वह न्यूरो साइंस की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गई थी. अमेरिका की ब्राइंडेस यूनिवर्सिटी से उस ने न्यूरो साइंस में पीएचडी कर ली.

उस ने जिस साल अपना डाक्टरेट पूरा किया था, उसी साल यानी कि 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला हुआ था. इस घटना के बाद आफिया अमेरिका छोड़ कर पाकिस्तान वापस आ गई थी.

अमेरिका के इस आतंकवादी हमले में सीआईए के एजेंटों ने पाकिस्तान के रावलपिंडी से पहली मार्च, 2003 को खूंखार आतंकवादी खालिद शेख मोहम्मद को पकड़ा था. 9/11 के मास्टरमाइंड लोगों में से वह भी एक था. उसे पाकिस्तान से ग्वांटेनामो बे डिटेंशन कैंप में ले जाया गया था.

उस से पूछताछ में डा. आफिया सिद्दीकी का नाम सामने आया था. आफिया अल कायदा के लिए फाइनेंस मैनेज करती थी.

अमेरिका पर हमले में आफिया ऐसी पहली महिला थी, जिस का नाम मोस्टवांटेड लिस्ट में आया था. अमेरिकी एजेंट आफिया तक पहुंचते, उस के पहले ही वह अपने 3 बच्चों के साथ वह गायब हो गई थी. उस समय कहा गया था कि आफिया और उस के तीनों बच्चों का अपहरण हो गया है. इसी तरह 5 साल बीत गए.

आफिया किसी के हाथ नहीं लग रही थी. 5 साल बाद आफिया के अफगानिस्तान के गजनी शहर में होने का पता चला. अफगानिस्तान पुलिस ने आफिया को पकड़ कर एफबीआई को सौंप दिया.

अमेरिकी सेना ने आफिया को अफगान के बगराम एयरफोर्स बेस में बनी जेल में रखा. बगराम जेल में आफिया ने एम-4 कारबाइन गन से एफबीआई के अधिकारियों और अमेरिकी सेना के जवानों पर फायरिंग कर के उन की हत्या करने की कोशिश की थी. जवाब में अमेरिकी सेना के जवानों ने भी उस पर फायरिंग की.

इस फायरिंग में आफिया को गोली लगी. उसे अस्पताल में भरती कराया गया. आफिया के ठीक होने के बाद एफबीआई को लगा कि आफिया को अफगानिस्तान में रखना खतरे से खाली नहीं है तो उसे अमेरिका ले जाया गया.

सितंबर, 2008 में अमेरिका में उस पर अमेरिकी सेना के जवानों की हत्या के प्रयास का मुकदमा चलाया गया. आफिया को दोषी ठहरा कर उसे 86 साल के कारावास की सजा दी गई है. तब से आफिया टेक्सास की जेल में बंद है.

आफिया का निकाह 1995 में एनेस्थीसियोलौजिस्ट अमजद मोहम्मद खान के साथ हुआ था. आफिया अमेरिका में थी और अमजद पाकिस्तान में. फोन पर ‘निकाह कुबूल है’ कह कर उन का निकाह हुआ था. बाद में अमजद भी अमेरिका आ गया था.

मैसाचुसेट्स के एक महिला अस्पताल में वह नौकरी करने लगा था. उसी बीच आफिया ने अपनी न्यूरोसाइंस की पढ़ाई पूरी की थी.

उस के 3 बच्चों में 2 बेटे मोहम्मद, आरिफ और बेटी मरियम थी. तीनों बच्चों को आफिया ने अमेरिका में ही जन्म दिया था. बाद में आफिया ने पहले पति अमजद से तलाक ले लिया था.

तलाक के बाद आफिया पाकिस्तान आ गई थी. पाकिस्तान आ कर उस ने दूसरा निकाह अल कायदा के आतंकवादी अमर अल बलूची के साथ कर लिया था. इस के बाद उसी के साथ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो गई थी.

आफिया का नाम दुनिया के सामने पहली बार तब आया था, जब एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच एक डील हुई है. जिस में पाकिस्तान के ऐबटाबाद में छिपे अलकायदा के सर्वेसर्वा ओसामा बिन लादेन की तलाश में अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए की मदद करने वाले डा. शकील अहमद के बदले आफिया को वापस करने की मांग की थी.

डा. शकील अहमद ने ओसामा बिन लादेन को मारने में अमेरिका की खुफिया एजेंसियों की मदद की थी. आफिया का नाम आतंक की दुनिया में तब जुड़ा था, जब आतंकवादी खालिद शेख मोहम्मद ने एफबीआई को उस के बारे में बताया था.

पिछले साल आफिया पर जेल में हमला होने की बात सामने आई थी. पाकिस्तान ने अमेरिका के सामने इस हमले के लिए विरोध दर्ज कराया था. पाकिस्तान पहले से ही आफिया का बचाव करता आया है. अब जब आफिया को छुड़ाने के लिए यहूदी धर्मस्थल पर निर्दोष लोगों को बंधक बनाने की घटना सामने आई है तो पाकिस्तान की बोलती बंद हो गई.

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से बात तक नहीं करते हैं. पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है, यह पूरी दुनिया जानती है. पूरी दुनिया में कहीं भी आतंकवादी घटना घटती है, उस का कोई न कोई सिरा पाकिस्तान तक जरूर पहुंचता है.

आफिया सिद्दीकी अमेरिका से पाकिस्तान वापस गई तो उस का ब्रेन वाश किया गया था. कराची के रहने वाले उस के पिता मोहम्मद सलाम सिद्दीकी न्यूरोसर्जन थे और मां इस्मत अध्यापिका थीं.

इस्मत की राजनैतिक गलियारों में अच्छी पकड़ थी. मातापिता चाहते थे कि आफिया बड़ी हो कर न्यूरो साइंटिस्ट बने. वह न्यूरो साइंटिस्ट बन भी गई थी.

अंत में वह इतनी खतरनाक आतंकी बन गई कि दुनिया उसे लेडी अलकायदा के नाम से जानने लगी. आफिया जब तक जिएगी, तब तक शायद ही वह जेल से बाहर आ सकेगी.

गजब की बात तो यह है कि आफिया ने जो किया है, उस के लिए उसे जरा भी अफसोस या पछतावा नहीं है. खूंखार आतंकी आफिया को छुड़ाने के लिए पाकिस्तान में बाकायदा मूवमेंट चल रहा है.

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