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6 हेल्थ टिप्स : जिम छोड़ने के बाद भी रखें अपने बौडी को फिट

जैसा कि आप जानते हैं कि जिम जाकर या एक्सरसाइज करके वजन कम कर तो सकते हैं. पर इसके बाद इसे मेंटेन करना आपके लिए काफी चैलेंजिंग  होता है. अक्सर लोग जि‍म जाना छोड़ने के बाद पहले से भी ज्यादा मोटे हो जाते हैं. तो आइए जानते हैं कि जिम या एक्सरसाइज छोड़ने के बाद भी आप क्या खाएं जिससे आपक वजन नहीं बढ़े.

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  1. खीरा

आप कितना भी एक्सरसाइज कर लें, पर सबसे जरूरी है आपकी डाइट. तभी तो लो कैलोरी वाले फूड का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है. दूषित पदार्थों की वजह से ब्लड सर्कुलेशन ठीक नहीं रहता. ये तत्व ब्लड सर्कुलेशन को ठीक कर बेली फैट को कम करने में मदद करते हैं. खीरे में लो कैलोरी होती है.

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2. सेब

सेब में बी-केरोटिन, फाइबर जैसे पोषक तत्व काफी मात्रा में मौजूद होते हैं. इसके साथ ही सेब में पेक्टिन भी होता है जो वेट कम करने में मददगार साबि‍त होता है. रोज सेब खाने से आप पतले तो रहेंगे ही साथ ही बेली फैट भी कम होगा.

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3. अंडे

अंडे में प्रोटीन काफी होता है. जो कैलोरी बर्न में शरीर की मदद करता है. इसके साथ ही शरीर को स्वस्थ्य और मजबूत रखने में भी अंडा बेहद फायदेमंद है.

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4. पालक

पालक में फाइबर की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है. फाइबर को हमारा शरीर आसानी से पचा लेता है. इसकी वज़ह से आपकी बार-बार भूख लगने की परेशानी भी दूर होती है.

वेटिंग रूम- भाग 2: सिद्धार्थ और जानकी की जिंदगी में क्या नया मोड़ आया

एक कुरसी छोड़ कर नौजवान बैठ गया. जानकी ने यह सोच कर उसे बैठने के लिए कह दिया कि लड़का चाहे जैसा भी हो, थोड़ी देर बात कर के बोरियत तो दूर होगी. चाय की चुस्कियां लेते हुए नौजवान ने ही शुरुआत की, ‘‘मेरा नाम सिद्धार्थ है, पर मेरे दोस्त मुझे ‘सिड’ कहते हैं.’’

‘‘क्यों? सिद्धार्थ में क्या बुराई है?’’ जानकी ने टोका. सिद्धार्थ को इस एतराज की उम्मीद नहीं थी, थोड़ा हिचकिचाते हुए वह बोला, ‘‘सि-द्-धा-र्थ काफी लंबा नाम है न और काफी पुराना भी, इसलिए दोस्तों ने उस का शौर्टकट बना दिया है.’’

‘‘अमिताभ बच्चन, स्टैच्यू औफ लिबर्टी, सैंट फ्रांसिस्को, ग्रेट वौल औफ चाइना वगैरा नाम पचास बार भी लेना हो तो आप पूरा नाम ही लेते हैं, उस का तो शौर्टकट नहीं बनाते, फिर इतने अच्छे नाम का, जो सिर्फ साढ़े 3 अक्षरों का है, शौर्टकट बना दिया. जब बच्चा पैदा होता है तब मातापिता नामों की लंबी लिस्ट से कितनी मुश्किल से एक ऐसा नाम पसंद करते हैं जो उन के बच्चे के लिए फिट हो. बच्चा भी वही नाम सुनसुन कर बड़ा होता है और बड़ा हो कर दोस्तों के कहने पर अपना नाम बदल देता है. नाम के नए या पुराने होने से कुछ नहीं होता, गहराई उस के अर्थ में होती है.’’ पिछले 3 दिनों में जानकी ने पहली बार किसी से इतना लंबा वाक्य बोला था. पिछले 3 दिनों से वह अकेली थी, इसलिए किसी से बातचीत नहीं हो पा रही थी. शायद इसीलिए उस ने सिद्धार्थ से बातें करने का मन बनाया था. परंतु सिद्धार्थ एक मिनट के लिए सोच में पड़ गया कि उस ने जानकी के पास बैठ कर ठीक किया या नहीं. थोड़ा संभलते हुए कहा, ‘‘आप सही कह रही हैं, वैसे आप कहां जा रही हैं?’’ सिद्धार्थ ने बात बदलते हुए पूछा.

‘‘इंदौर जा रही हूं, और आप कहां जा रहे हैं?’’

‘‘मैं पुणे जा रहा हूं, आज से महाराष्ट्र में टैक्सी वालों की हड़ताल शुरू हो गई है, इसलिए ट्रेन से जाना पड़ रहा है, एक तो ये गाडि़यां भी कितनी लेट चल रही हैं. आज यहां मनमाड़ में कैसे?’’ सिद्धार्थ ने बातों की दिशा को मोड़ते हुए पूछा. अब जानकी, सिद्धार्थ के साथ थोड़ा सहज महसूस कर रही थी. कहा, ‘‘मैं पुणे गई थी लेक्चरर का इंटरव्यू देने, लौटते समय एक दिन के लिए नासिक गई थी, अब वापस इंदौर जा रही हूं.’’

‘‘पुणे में किस कालेज में इंटरव्यू देने गई थीं आप?’’ सिद्धार्थ ने जानकारी लेने के उद्देश्य से पूछा.

‘‘पुणे आर्ट्स ऐंड कौमर्स से हिस्ट्री के प्रोफैसर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आया था.’’

‘‘हिस्ट्री प्रोफैसर? आप हिस्ट्री में रुचि रखती हैं?’’ सिद्धार्थ ने चौंकते हुए पूछा. जानकी को उस की प्रतिक्रिया बड़ी अजीब लगी, उस ने पूछा, ‘‘क्यों? हिस्ट्री में क्या बुराई है? हमारे इतिहास में इतना कुछ छिपा है कि एक पूरी जिंदगी भी कम पड़े जानने में.’’ सिद्धार्थ अब जानकी से सिर्फ टाइमपास के लिए बातें नहीं कर रहा था, उसे जानकी के व्यक्तित्व में झांकने का मन होने लगा था. पिछले कुछ घंटों से वह दूर से जानकी को देख रहा था. वह जैसी दिख रही थी वैसी थी नहीं. उस ने सोचा था कि वह एक शर्मीली, छुईमुई, अंतर्मुखी, घरेलू टाइप की लड़की होगी. परंतु उस की शैक्षणिक योग्यता, उस के विचारों का स्तर और विशेषकर उस का आत्मविश्वास देख कर सिद्धार्थ समझ गया कि वह उन लड़कियों से बिलकुल अलग है जो टाइमपास के लिए होती हैं. कुछ देर वह शांत बैठा रहा. अब तक दोनों की चाय खत्म हो चुकी थी. आमतौर पर जानकी कम ही बोलती थी, पर यह चुप्पी उसे काफी असहज लग रही थी, सो उसी ने बात शुरू की. सिद्धार्थ के बाएं हाथ पर लगी क्रेप बैंडेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘यह चोट कैसे लगी आप को?’’

‘‘मैं बाइक से स्लिप हो गया था.’’

‘‘बहुत तेज चलाते हैं क्या?’’

‘‘मैं दोस्तों के साथ नाइटराइड पर था, थोड़ा डिं्रक भी किया था, इसलिए बाइक कंट्रोल में नहीं रही और मैं फिसल गया.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया. जानकी ने शरारतभरे अंदाज में कहा, ‘‘जहां तक मैं जानती हूं, रात सोने के लिए होती है न कि बाइक राइडिंग के लिए. खैर, वैसे आप यहां कैसे आए थे?’’ ?‘‘डैड का टैक्सटाइल ऐक्सपोर्ट का बिजनैस है, मुझे यहां सैंपल्स देखने के लिए भेजा था. डैड चाहते हैं कि मैं उन का बिजनैस संभालूं. इसीलिए उन्होंने मुझ से टैक्सटाइल्स में इंजीनियरिंग करवाई और फिर मार्केटिंग में एमबीए भी करवाया, पर मेरा इस सब में कोई इंट्रैस्ट नहीं है. मैं कंप्यूटर्स में एमटैक कर के यूएस जाना चाहता था. पर डैड मुझे अपने बिजनैस में इन्वौल्व करना चाहते हैं.’’ सिद्धार्थ ने काफी संजीदा हो कर बताया. जानकी को भी अब उस की बातों में रुचि जाग गई थी. थोड़ा खोद कर उस ने पूछा, ‘‘कोई और भाई है क्या आप का?’’

‘‘न कोई भाई न बहन, इकलौता हूं. इसीलिए सब को बहुत उम्मीदें हैं मुझ से.’’ सिद्धार्थ की आवाज में काफी उदासी थी. जानकी ने संवाद को आगे बढ़ाते हुए पूछा, ‘‘और आप उन की उम्मीदें पूरी नहीं कर रहे हैं? आप उन की इकलौती संतान हैं, आप से उम्मीदें नहीं होंगी तो किस से होंगी. आप के लिए जमाजमाया बिजनैस है और आप उस के मुताबिक ही क्वालिफाइड भी हैं, मतलब बिना किसी संघर्ष के आप वह सब पा सकते हैं जिसे पाने के लिए लोगों की आधी जिंदगी निकल जाती है.’’ ये सब कह कर तो जानकी ने जैसे सिद्धार्थ की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. वह बिफर पड़ा, ‘‘ये सब बातें देखनेसुनने में अच्छी लगती हैं मैम, जिस पर बीतती है वह ही इस का दर्द जानता है. अगर पिता डाक्टर हैं तो बेटे को डाक्टर ही बनना होगा ताकि पिता का हौस्पिटल आगे चल सके. पिता वकील हैं तो बेटा भी वकील ही बने ताकि पिता की वकालत आगे बढ़ सके, ऐसा क्यों? टीचर का बेटा टीचर बने, यह जरूरी नहीं, बैंकर का बेटा बैंकर बने, यह भी जरूरी नहीं फिर ये बिजनैस कम्युनिटी में पैदा हुए बच्चों की सजा जैसी है कि उन्हें अपनी चौइस से अपना प्रोफैशन चुनने का अधिकार नहीं है, अपना कैरियर बनाने का अधिकार नहीं है. मैं ने तो नहीं कहा था अपने पिता से कि वे बिजनैस करें, फिर वे मेरी रुचि में इंटरफेयर क्यों करें?’’

जानकी सोच भी नहीं सकती थी कि ऐसे फ्लर्ट से दिखने वाले नौजवान के अंदर इतनी आग होगी. जानकी ने बहस के लहजे में उस से कहा, ‘‘जिसे आप सजा कह रहे हैं, वह असल में आप के लिए सजा है, जब तक इंसान के सिर पर छत और थाली में खाना सजा मिलता है, तभी तक उसे कैरियर में चौइस और रुचि जैसे शब्द सुहाते हैं. जब बेसिक नीड्स भी पूरी नहीं होती है तब जो काम मिले, इंसान करने को तैयार होता है. कभी उन के बारे में भी सोच कर देखें, तब आप को आप से ज्यादा खुश कोई नहीं लगेगा.’’ ‘‘मैम, अगर आप मेरी जगह होतीं तो मेरी पीड़ा समझ पातीं, आप के पेरैंट्स ने कभी आप की लाइफ में इतना इंटरफेयर नहीं किया होगा, तभी आप इतनी बड़ीबड़ी बातें कर पा रही हैं.’’ सिद्धार्थ की आवाज में थोड़ा रूखापन था. जवाब में जानकी ने कहा, ‘‘इंटरफेयर तो तब करते न जब वे मेरे पास होते.’’

यह सुनते ही सिद्धार्थ के चेहरे के भाव ही बदल गए. वह क्या पूछे और कैसे पूछे, समझ नहीं पा रहा था. फिर आहिस्ता से पूछा, ‘‘सौरी मैम, कोई दुर्घटना हो गई थी?’’ ‘‘नहीं जानती,’’ जानकी की आवाज ने उसे व्याकुल कर दिया. ‘‘नहीं जानती, मतलब?’’ सिद्धार्थ ने आश्चर्य से पूछा. इस पर जानकी ने बिना किसी भूमिका के बताया, ‘‘नहीं जानती, मतलब मैं नहीं जानती कि वे लोग अब जिंदा हैं या नहीं. मैं ने तो उन्हें कभी देखा भी नहीं है. जब मेरी उम्र लगभग 4-5 दिन थी तभी उन लोगों ने या अकेली मेरी मां ने मुझे इंदौर के एक अनाथालय ‘वात्सल्य’ के बाहर एक चादर में लपेट कर धरती मां की गोद में छोड़ दिया, जाने क्या वजह थी. तब से ‘वात्सल्य’ ही मेरा घर है और उसे चलाने वाली मानसी चाची ही मेरी मां हैं. मैं धरती की गोद से आई थी, इसलिए मानसी चाची ने मेरा नाम जानकी रखा. न मैं अपने मातापिता को जानती हूं और न ही मुझे उन से कोई लगाव है.

‘‘मैं जानती हूं कि मातापिता के साथ रहना निसंदेह बहुत अच्छा होता होगा लेकिन मैं उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकती. जिद क्या होती है, चाहतें क्या होती हैं, बचपन क्या होता है, ये सब सिर्फ पढ़ा है. मानसी चाची ने हम सब को भरपूर दुलार दिया क्योंकि स्नेह को पैसों से खरीदने की जरूरत नहीं होती. हमारी मांगें पूरी करना, हमारा जन्मदिन मनाना जैसी इच्छाएं ‘वात्सल्य’ के लिए फुजूलखर्ची थीं. मानसी चाची ने हमें कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया लेकिन डोनेशंस से सिर्फ बेसिक नीड्स ही पूरी हो सकती थीं.’’ ये सब सुनने के बाद सिद्धार्थ अवाक् रह गया. आश्चर्य, दुख, दया, स्नेह और कई भाव एकसाथ सिद्धार्थ के चेहरे पर तैरने लगे. उन दोनों के अलावा वहां अब कोई नहीं था. अगले 10-15 मिनट प्रतीक्षालय में सन्नाटा छाया रहा. न कोई संवाद न कोई हलचल. सिद्धार्थ के मन में जानकी का कद बहुत ऊंचा हो गया. उस ने जानकी से बातचीत सिर्फ समय काटने के उद्देश्य से शुरू की थी. वह नहीं जानता था कि आज जीवन की इतनी बड़ी सचाई से उस का सामना होने वाला है. फिर सिद्धार्थ ने प्रतीक्षालय में पसरी खामोशी को तोड़ते हुए कहा, ‘‘आय एम सौरी मैम, मेरा मतलब है जानकीजी. मैं सोच भी नहीं सकता था कि…मैं आवेश में पता नहीं क्याक्या बोल गया, आय एम रियली सौरी.’’

छोटी सी जिंदगी- भाग 3: रोहित को कौन-सी बीमारी हुई थी?

अगले ही दिन साहिल और सनाया अपने ट्रिप पर निकल जाते हैं. तकरीबन एक महीने बाद जब वे वापस लौटते हैं तो सनाया को भी फ्लू हो चुका होता है और साथ ही वौमिटिंग भी होती है. अनुपम यह सब देख कर बहुत दुखी होता है.

साहिल कहता है, ‘‘मां, मेरा फ्लू तो इसे भी लग गया, जरूर मु?ा ही से इन्फैक्शन हुआ होगा इसे. मैं इसे डाक्टर के पास ले जाता हूं.’’

‘‘नहींनहीं, तुम नहीं, मैं ले जाती हूं.’’

गायत्री सनाया को ले कर हौस्पिटल जाती हैं.

डाक्टर कहते हैं, ‘‘ये कौन है, भाभीजी?’’

‘‘यह मेरी बहू है,’’ गायत्री ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या हुआ है इन्हें… फ्लू,’’ डाक्टर ने अंदाजा लगाते हुए पूछा.

‘‘जी,’’ गायत्री ने कहा.

डाक्टर ने कहा, ‘‘ये टैस्ट करवाओ बेटा और भाभीजी, आप जरा यहीं रुकिए.’’ सनाया के जाते ही डाक्टर ने गायत्री से कहा, ‘‘आप यह क्या कर रही हैं भाभीजी, आप ने साहिल की शादी क्यों करवाई?’’

‘‘वह सब छोडि़ए, आप प्लीज किसी को कुछ न बताएं.’’

‘‘ओके, पर आप ने बहुत गलत किया है उस बच्ची के साथ.’’

‘‘मु?ो जाना होगा, मैं सनाया को अकेले हौस्पिटल में नहीं छोड़ सकती.’’

गायत्री सनाया के सारे टैस्ट करवा कर उसे घर ले जाती हैं और अगले दिन खुद रिपोर्ट लेने जाती हैं, पर उन के आने से पहले ही सनाया सारी रिपोर्ट्स ले कर देख लेती है. एचआईवी पौजिटिव और प्रैग्नैंसी पौजिटिव.

‘‘ओह… तो इसीलिए कल डाक्टर

मां से…’’

‘‘बेटा, तुम मेरी बेटी हो, मैं तुम्हारा इलाज करवाऊंगी,’’ गायत्री पीछे से कहती हैं.

‘‘मैं आप की बेटी हूं, इसीलिए आप ने मु?ो मौत के मुंह में धकेल दिया. सम?ा नहीं आ रहा है मां कि मु?ो मां बनने की खुशी होनी चाहिए या…’’ सनाया ने रोते हुए कहा.

‘‘वह सब मैं नहीं जानती, तुम, बस, साहिल को कुछ मत बताना,’’ गायत्री ने रूखे स्वर में कहा.

सनाया अपनी सास को देखती ही

रह गई.

डाक्टर ने कहा, ‘‘ये दवाइयां टाइम पर लेना, बेटा.’’

सनाया बोली, ‘‘क्या मेरा बच्चा भी एचआईवी पौजिटिव ही होगा?’’

डाक्टर ने कहा, ‘‘100 में से एक केस में ऐसी मां का बेबी नौर्मल होता है. एक उम्मीद ही काफी होती है जीने के लिए. नैगेटिविटी से ही पौजिटिविटी का जन्म होता है. बस, जरूरत है धैर्य और ढेर सारी कोशिश की. अगर तुम अपना खयाल रखो और सकारात्मक रहो तो हो सकता है तुम एक स्वस्थ बेबी को जन्म दो.’’  सनाया के मुंह से निकला, ‘हम्म…’

सनाया घर पहुंचे, उस से पहले ही गायत्री आ कर साहिल को सनाया की रिपोर्ट के बारे में बता देती हैं और सनाया को एक चरित्रहीन लड़की साबित करने की कोशिश करती हैं. तभी वहां अनुपम पहुंच जाते हैं, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, साहिल. तुम्हारी मां एक निर्दोष को दोषी बता रही हैं, असल में उसे यह बीमारी तुम से मिली है.’’

साहिल हैरानी से बोला, ‘‘मु?ा से? मु?ो… कब से… आप लोगों ने मु?ो बताया क्यों नहीं?’’

अनुपम ने कहा, ‘‘हां, तुम्हें पहले से ही यह बीमारी है और तुम्हारी मां ने सबकुछ जानते हुए पहले उस मासूम को मौत के मुंह में धकेल दिया और अब उसे…’’

साहिल ने कहा, ‘‘आप को यह नहीं करना चाहिए था, मां.’’

‘‘अच्छा, और तुम्हें वह सब करना चाहिए था जिस की सजा इस बीमारी के रूप में तुम्हें मिली. मैं ने तुम्हें ये संस्कार दिए थे जो तुम ने…’’ गायत्री ने कहा.

‘‘भाभी, क्या कह रही हैं आप? इस में साहिल की कोई गलती नहीं है. उस का चरित्र भी एकदम साफ है,’’ अनुपम ऊंची आवाज में कहता है.

‘‘तुम यह बात इतने यकीन से कैसे कह सकते हो?’’

‘‘क्योंकि हौस्पिटल में हमें रोहित दिखा था, मैं ने उस से पूछताछ की. तब पता चला कि वह साहिल की गैरमौजूदगी में  साहिल का रेजर उपयोग कर लेता था और भाभी, डाक्टर का भी कहना है कि यह बीमारी किसी इन्फैक्टेड आदमी के उपयोग की हुई सूई, रेजर, टूथब्रश या हेयरब्रश इस्तेमाल करने से भी हो सकती है. मेरी रिक्वैस्ट पर डाक्टर ने रोहित और साहिल दोनों के टैस्ट करवाए जिस से यह साबित हुआ कि साहिल को यह बीमारी रोहित से मिली है और मेरे पास प्रूफ भी है इस बात का.’ अनुपम ने सारी बातें सब को बताईं.

‘‘क्या… रोहित… वह हमारी बरबादी का कारण है…’’ सनाया ने घर के दरवाजे से हैरतभरी आवाज में कहा.

‘‘हां बेटा, यही सच है. यह देखो रिपोर्ट,’’ अनुपम ने रिपोर्ट सनाया को देते हुए कहा.

‘‘मैं जानती हूं तुम्हारे साथ बहुत गलत हुआ है, पर मेरे किए की सजा साहिल को न देना बेटा और हो सके तो मु?ो माफ कर देना,’’ गायत्री सनाया से कहती हैं.

तभी हौस्पिटल से कौल आती है, ‘‘अनुपमजी, रोहित अब इस दुनिया में नहीं रहा.’’

यह जान कर साहिल और सनाया को भी अपने सामने मौत खड़ी नजर आती है.

देखते ही देखते 9 महीने पूरे हो जाते हैं. साहिल का पूरा मुंह छालों से भर जाता है. इन्फैक्शन अब गले तक बढ़ जाता है. उस के शरीर के धब्बे अब जख्म में बदल चुके हैं, वजन तेजी से घट रहा है, थकावट बढ़ने लगी है. साथ ही, सनाया के चेहरे पर भी धब्बे दिखाई देने लगे हैं. उस के मुंह में भी इन्फैक्शन हो गया है, पर वजन जरूर बढ़ गया है. दोनों ही हौस्पिटल में भरती हैं. सनाया को लेबरपेन होने लगा है.

डाक्टर ने कहा, ‘‘अब सनाया को ले जाना होगा.’’

साहिल बोला, ‘‘डाक्टर, कभी ऐसी स्थिति आए कि मां और बेबी में से किसी एक को ही बचाया जा सकेगा, तो प्लीज, आप मेरी सनाया की ही जान बचाइएगा.’’

डाक्टर ने कहा, ‘‘हां बेटा, ऐसा

ही होगा.’’

डाक्टर सनाया को ले जाते हैं. सनाया एक स्वस्थ बेटे को जन्म देते ही दुनिया छोड़ कर चली जाती है और साहिल भी अपने बच्चे की सूरत देख सनाया के पास चला जाता है.

8 वर्षों बाद एक टीवी प्रोग्राम में गायत्री इंटरव्यू दे रही होती हैं, जिस में वे किसी एनजीओ का जिक्र कर रही होती हैं, जो गांवगांव, शहरशहर जा कर लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करता है और एचआईवी पौजिटिव लोगों को मुफ्त इलाज मुहैया करवाता है. वह एनजीओ गायत्री ही चला रही हैं. इंटरव्यू दे कर जब वे बाहर आती हैं तो एक आवाज आती है, ‘‘दादी, आप, टीवी पर बहुत ब्यूटीफुल लग रही थीं.’’ यह कहते हुए एक बच्चा दौड़ते हुए आ कर उन के गले लग जाता है.

बहुरुपिया- भाग 2: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

आखिर किस पत्थरदिल पर ऐसी बातों का असर न होता? मैं उस से अकसर मिलने लगी. अब इन मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो चुका था और परिचय गहरी दोस्ती में बदल चुका था. ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान हर्ष ने बताया कि वह विवाहित है और उस की 3 साल की बेटी भी है. उस की पत्नी मीनाक्षी लोकल विश्वविद्यालय में संस्कृत प्रवक्ता थी और वह स्वयं कोई काम नहीं करता था.

‘‘मुझे कुछ करने की क्या जरूरत है? मेरे एमएलए पिता ने काफी कुछ कमा रखा है. अगली बार मुझे भी एमएलए का टिकट मिल ही जाएगा. क्या रखा है दोचार कौड़ी की नौकरी में? हर्ष ने बड़ी अकड़ के साथ कहा.’’

‘‘जब नौकरी से इतना ही परहेज है तो फिर मीनाक्षी जैसी नौकरीशुदा से क्यों शादी कर ली तुम ने?’’ मैं ने दुविधा में पड़ कर पूछा.

‘‘बेवकूफ है वह, अपनी ढपली अपना राग अलापती है. शादी से पहले उस ने और उस के परिवार वालों ने वादा किया था कि वह शादी के बाद नौकरी छोड़ देगी, लेकिन बाद में उस का रंग ही बदल गया और उस ने अपनी बहनजी वाली नौकरी नहीं छोड़ी. वह नहीं जानती कि एमएलए परिवार में किस तरह रहा जाता है,’’ हर्ष का चेहरा अंधे अभिमान से दपदपा रहा था.

उस के जवाब को सुन कर मैं हत्प्रभ रह गई. मेरी चेतना मुझ से कह रही थी कि मेरा मन एक गलत आदमी के साथ जुड़ने लगा है. मगर चाहेअनचाहे मैं इस डगर पर आगे बढ़ती जा रही थी. उस की बातों में मेरी तारीफों के पुल और उस के एमएलए पिता के ताल्लुकात में मुझे अपनी शोहरत में दीए को तेल मिलता सा लगता था. इस दीए की टिमटिमाहट की चमक हर्ष के सच की कालिमा को ठीक से नहीं देखने दे रही थी.

‘‘तुम मेरे लिए मंदिर में रखी एक मूर्ति के समान हो. मैं जो कहूं वह बस सुन लिया करो, मगर उसे ज्यादा दिल से लगाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं एक शादीशुदा आदमी हूं और इस रास्ते पर तुम्हारे साथ ज्यादा लंबा नहीं जा सकता,’’ उस ने साफसाफ कहा.

‘‘मुझे पता है हर्ष तुम शादीशुदा हो. मैं भी तुम से उस तरह की कोई उम्मीद नहीं कर रही हूं. मगर समझ में नहीं आता कि अब हम दोनों जानते हैं कि हम इस रास्ते पर आगे नहीं जा सकते तो ये बेवजह की मुलाकातें किस लिए हैं?’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी, मैं तुम्हें सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहता हूं. मैं अपने लिए तुम से किसी तरह की उम्मीद नहीं करता. बस एक सच्चा दोस्त बन कर तुम्हें आगे बढ़ाना चाहता हूं. अगले साल थाईलैंड में होने वाली प्रदर्शनी के लिए तुम्हें ललित कला ऐकैडमी स्कौलरशिप दिलवाऊंगा. मेरे डैडी के बड़ेबड़े कौंटैक्ट्स हैं, इसलिए ऐसा कर पाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है. बस तुम्हारी 2-4 इंटरनैशनल प्रदर्शनियां हो गईं तो फिर तुम्हें मशहूर होने में देर नहीं लगेगी.’’

यह सुन कर मैं मन ही मन गद्गद हो रही थी. मैं अकसर सोचा करती कि मैं मशहूर हो पाऊं  या न हो पाऊं, पर कम से कम मेरे पास एक इतना बड़ा प्रशंसक तो है. देखा जाए तो क्या कम है. अब हमारी मुलाकात रोज होने लगी थी. हर्ष की मेरे प्रति इबादत अब किसी और भाव में बदलने लगी थी. जो हर्ष पहले मुझे अपने सामने बैठा कर मुझे देखने मात्र की और मेरी पेंटिंग्स के बारे में बातें करने की चाहत रखता था. वह अब कुछ और भी चाहने लगा था.

‘‘एक चीज मांगू तुम से?’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या मैं तुम्हें अपनी बांहों में ले सकता हूं?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘सिर्फ 1 बार प्लीज. पता है मुझे क्या लगता है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘कि मैं तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं और वक्त बस वहीं ठहर जाए. तुम सोच भी नहीं सकतीं कि मैं तुम्हारा कितना सम्मान करता हूं.’’

‘‘और मैं कठपुतली सी उस की बांहों में समा गई.’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी और तुम्हें आकाश की बुलंदियों को छूते हुए देखना चाहता हूं,’’ मेरे बालों को सहलाते हुए उस का पुराना एकालाप जारी रहा.

‘‘हर्ष, प्लीज अब घर जाने दो मुझे. 1-2 पेंटिंग्स पूरी करनी हैं कल शाम तक.’’

‘‘ठीक है, जल्दी फिर मिलूंगा. इस हफ्ते मौका मिलते ही डैडी से तुम्हारे लिए ललित कला ऐकैडमी की स्कौलरशिप के बारे में बात करूंगा.’’

कुछ दिनों के बाद हम फिर से अपने पसंदीदा रेस्तरां में आमनेसामने बैठे थे. डिनर खत्म होतेहोते रात की स्याही बढ़ने लगी थी. कई दिनों की लगातार बारिश के बाद आज दिन भर सुनहली धूप रही थी. हर्ष ने रेस्तरां के पास के पार्क में टहलने की इच्छा व्यक्त की. मौसम मनभावन था. पार्क में टहलने के लिए बिलकुल परफैक्ट. इसलिए बिना किसी नानुकुर के मैं ने हामी भर दी.

‘‘जरा उधर तो देखो, क्या चल रहा है,’’ हर्ष ने पार्क के एक कोने में लताओं के झुरमुट पर झूलते हुए कतूबरकतूबरी के जोड़े की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘क्या चल रहा है… कुछ भी नहीं,’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘‘देखो यह एक प्राकृतिक भावना है. कोई भी जीव इस से अछूता नहीं है, फिर हम ही इस से कैसे अछूते रह सकते हैं?’’

‘‘हर्ष, तुम जो कहना चाहते हो साफसाफ कहो, पहेलियां न बुझाओ.’’

‘‘कहना क्या है, तुम्हें तो पता है कि मैं शादीशुदा हूं और शहर भर में मेरे एमएलए पिता की बड़ी इज्जत है, इसलिए मैं तुम्हारे साथ ज्यादा आगे तो जा ही नहीं पाता. मगर जैसी गहरी दोस्ती तुम्हारे और मेरे बीच में है उस में मेरा इतना हक तो बनता है कि मैं कभीकभार तुम्हारा चुंबन ले लूं और फिर इस में हर्ज ही क्या है. यह भावना तो प्रकृति की देन है और हर जीव में बनाई है.’’

मेरे कोई प्रतिक्रिया करने से पहले ही वह मुझे एक बड़े से पेड़ की आड़ में खींच चुका था और कुछ कहने को खुलते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों से सिल चुका था.

‘‘एक दिन तुम दुनिया की सब से अच्छी चित्रकार बनोगी. तुम्हारी पेंटिंग्स दुनिया की हर मशहूर आर्ट गैलरी की शान बढ़ाएंगी. कई महीनों  से डैडी बहुत व्यस्त हैं, इसलिए मैं उन से तुम्हारी स्कौलरशिप के बारे में बात नहीं कर पाया. मगर आज घर पहुंचते ही सीधा उन से यही बात करूंगा.’’ चंद पलों की इस अवांछित समीपता के बाद उस ने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद करते हुए अपना एकालाप दोहराया.

‘‘मैं ने बिना कुछ कहे अपना सिर उस कठपुतली की तरह हिलाया जिस की डोर पर हर्ष की पकड़ दिनबदिन मजबूत होती जा रही थी.’’

‘‘रिलैक्स डार्लिंग, जल्द ही तुम एमएफ हुसैन की श्रेणी में खड़ी होगी. चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे फ्लैट पर छोड़ता हुआ निकल जाऊंगा.’’ उस ने अपनी कार का दरवाजा मेरे लिए खोलते हुए कहा.

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं लेकिन वो ऐक्स गर्लफ्रैंड से बात करता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. पहले मेरी गलती के कारण हम दोनों में ब्रेकअप हो गया था, लेकिन अब फिर हम बात करने लगे हैं. मैं अब उस पर भरोसा नहीं कर पा रही हूं क्योंकि वह अब भी अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड से बात करता है. पूछने पर बताता है कि उस से प्यार की बात नहीं वैसे ही बात करता हूं, प्यार तो मैं सिर्फ तुम से ही करता हूं. पर मुझे उस का उस युवती से बात करना अच्छा नहीं लगता. मैं क्या करूं?

जवाब

शक प्यार की कैंची है. प्रेम भरोसे का रिश्ता होता है. ऐसा व्यक्ति जिसे शक की बीमारी हो दूसरे को क्या खुश रखेगा. आप सब से पहले अपने बौयफ्रैंड पर शक करना छोड़ें. संभवतया पहले भी आप की यही गलती रही होगी.

सोचिए, जब पहले ब्रेकअप के बाद भी वह आप से बात करता है और कहता है कि वह आप से ही प्यार करता है तो क्यों परेशान होती हैं. प्यार को ऐंजौय कीजिए. रही उस की किसी अन्य युवती से बात करने वाली बात, तो करने दीजिए.

आप से प्रेम करने के कारण वह समाज में रहना थोड़ी छोड़ देगा. हां, उस की लगाम कस कर रखिए. उस का ज्यादा साथ दीजिए. दूसरी युवती से बात करते वक्त भी अगर आप साथ होंगी तो वह कम ही बात करेगा. साथ ही वह युवती भी ज्यादा इंट्रस्ट नहीं दिखाएगी, जिस से आप का शक भी दूर होगा और उस के साथ रहने से प्यार भी बढ़ेगा. निराश न हों.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

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जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती- भाग 3: शादी के बाद खुशमन क्यों बदल गया?

खुशमन चिल्ला कर बोला, ‘‘क्यों? क्या मैं ने तुम्हारे खानदान का ठेका ले रखा है? तुम्हें पाल रहा हूं क्या यही कम है, जो तुम्हारी मां को भी उठा लाऊं? तुम से भी मैं ने शादी इसलिए की थी कि समाज में रहने के लिए एक सुंदर पत्नी चाहिए थी और घर को संभालने के लिए एक औरत न कि तुम्हारी खूबियां देख कर. वैसे भी खूबी तो कोई है नहीं तुम में, जिस का मैं वर्णन कर सकूं और फिर तुम्हारी मां के अब दिन ही कितने रह गए हैं. केयर टेकर है संभाल लेगी उसे,’’ कह कर खुशमन चला गया.

सारा दिन खुशी यही सोचती रही कि क्या उस का कोई वजूद नहीं? सिर्फ उस की शक्ल देख कर खुशमन ने इसलिए शादी की थी कि उस की एक सुंदर पत्नी है, यह समाज में दिखा सके?

सारी रात खुशी इन गुजरे सालों के बारे में सोचती रही. खाना भी नहीं खाया और न ही खुशमन ने पूछा. वह तो शायद खुशमन के लिए कठपुतली थी. मगर आज तो पानी सिर के ऊपर से गुजर गया था. आज खुशमन ने उसे उस का स्थान दिखा दिया था. पहले भी 2-3 बार वह बेइज्जत हो कर मां के पास गई थी, परंतु फिर खुशमन के कहने पर लौट आई थी. अब उस ने लौट कर न आने का सोची थी. खुशमन के जाने के बाद खुशी ने अपना समान समेटा, चाबी नौकरानी को पकड़ाई और मां के पास चली गई. आज उस की उन्हें जरूरत थी. उस मां को जिस ने उस के इतना काबिल तो बनाया था कि वह अपनी जिंदगी खुद जी सके न कि खुद को अधूरा समझे.

मां ने देखा तो खुश हो कर बोली, ‘‘खुशमन छोड़ कर गया है?’’

‘‘नहीं मां, खुशी को आने के लिए किसी की मंजूरी या साथ की जरूरत थोड़े होती है. वह कब आ जाए पता ही नहीं चलता,’’ खुशी हंसते हुए बोली.

‘‘यह क्या बोले जा रही है?’’ मां बोली, ‘‘कुछ नहीं मां, तुम्हें मेरी जरूरत थी तो मैं आ गई बस.’’ खुशी ने मां का काफी ध्यान रखा. अब मां काफी ठीक हो गई थीं. काफी संभल भी गई थीं. कितना खुदगर्ज था खुशमन. एक बार भी फोन कर के नहीं पूछा.

मां ने एक दिन खुशमन के बारे में पूछा तो खुशी ने भी सच बता दिया. यह भी कह दिया कि अब वह वापस नहीं जाएगी.

एक दिन सुबह नाश्ता कर के बैठी ही थी कि खुशमन आ गया. बोला, ‘‘क्या नजारे हैं महारानी के…एक तो बिन बताए निकलना और फिर कितनेकितने दिनों तक घर न लौटना…चलो घर… ले जाने को आया हूं. बाहर कार में इंतजार कर रहा हूं…सामान ले कर आ जाओ,’’ एक ही सांस में सब बोल गया. मां की तबीयत के बारे में कुछ नहीं पूछा.

जैसे ही खुशमन बाहर जाने लगा, खुशी जोर से बोली, ‘‘ठहरिए, खुशमन… आप क्या समझते हो आप जब चाहोगे कुछ भी बोल दोगे… जब चाहोगे घर से निकाल दोगे, जब चाहोगे लेने आ जाएंगे…क्या समझा है आप न मुझे? मैं न तो कोई वस्तु हूं और न ही कोई कठपुतली. मैं एक नारी हूं, जिस का अपना वजूद होता है. वह अपना जीवन जी सकती है. वह कभी अधूरी नहीं होती. उसे अधूरा बनाया जाता है. क्या नहीं कर सकती वह? मैं बताती हूं क्याक्या कर सकती है वह… मांबाप को संभाल सकती है, कमा सकती है, घर संभाल सकती है, इसलिए कभी अधूरा न समझना मुझे. जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती. खुशी भी न कभी अधूरी थी, न है, न रहेगी. इसलिए अब मैं आप के साथ नहीं जाना चाहती और आगे से खुशी के घर में कदम भी मत रखना.’’

खुशमन हैरान हो गया था. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि खुशी ने दरवाजा बंद कर दिया. खुशमन बंद दरवाजा देख कर वहां से धीमेधीमे कदमों से चला गया.

मेरा चचेरा भाई मेरे साथ अश्लील हरकतें करता है, कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मेरा एक चचेरा भाई है. हम दोनो हमउम्र हैं. जब भी हम लोग चाचा के घर रहने जाते हैं तो रात के समय मेरा भाई मेरे करीब आ जाता है और उस समय वह मेरे साथ जिस तरह की अश्लील हरकतें करता है वे मुझे अच्छी नहीं लगतीं पर मैं न उसे मना कर पाती हूं और न ही घर में किसी और से इस विषय में बात कर पाती हूं. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप का चचेरा भाई रात को आप के साथ अश्लील हरकतें करता है तो आप को उस के कमरे में नहीं सोना चाहिए. अपनी मां या बहन के साथ सो सकती हैं. पर आप ऐसा नहीं कर रहीं.

यदि आप को उस की हरकतें वाकई नागवार गुजरतीं तो आप पहली बार ही उसे धमका देतीं. वह दोबारा ऐसा करने की जुरअत न करता. पर लगता है कि आप को इस सब में मजा आता है, अच्छा लगता है इसीलिए आप उसे मना नहीं कर रहीं अर्थात इस सब में आप की मूक सहमति है. पर आप को समझना चाहिए कि इस से आप आगे चल कर मुश्किल में पड़ सकती हैं.

अत: उसे मना कर दें. यदि वह नहीं मानता तो सख्त शब्दों में उसे धमकी दें कि आप अपने घर वालों से उस की शिकायत करेंगी. वह संभल जाएगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

बेवफाई- भाग 2: प्रेमलता ने क्यों की आशा की हत्या

‘‘नहीं, न ही सासससुर यहां हैं. ससुर हैं. वे अपने दूसरे बेटे के पास रहते हैं. उन का नंबर हमें मालूम नहीं है.’’

‘‘और क्या जानती हो मैडम के बारे में?’’

‘‘यही कि अखबार में काम करती थीं. साहब दुबई में काम करते हैं, महीने 2 महीने में आते थे… कभी मैडम भी चली जाती थीं. बड़े अच्छे…’’

‘‘प्रेमलता के बारे में जो भी जानती हो विस्तार से बताओ?’’

दया के चेहरे पर क्रोध और घृणा के भाव उभरे. बोली, ‘‘बस इतना ही जानते हैं

कि वे मैडम की बचपन की सहेली थीं. बावरी सी हो जाती थीं मैडम इन्हें देखते ही. जिस छुट्टी के रोज प्रेमलता अचानक दिन में आ जाती थीं, तब चाहे कितना भी काम पड़ा हो उन के आते ही मैडम हमें अपने कमरे में जाने को कह देती थीं यह कह कर कि जब तक न पुकारें आना मत.’’

‘‘प्रेमलता अकसर आती थीं?’’

‘‘हां, रात को भी यहीं रुकती थीं. मैडम भी जाती थीं उन के घर. औफिस से फोन कर के कह देती थीं कि आज प्रेम के घर जा रही हूं. सुबह आऊंगी. दोनों ही नौकरी करती थीं. सो दिन में तो फुरसत होती नहीं थी.’’

‘‘साहब की दोस्ती भी थी प्रेमलता से?’’

‘‘पता नहीं. उन के आने पर तो जब कोई दावत होती थी तभी आती थीं वह और दावत में तो साहब सब से ही हंस कर बात करते हैं.’’

‘‘साहब और मैडम में कभी झगड़ा हुआ प्रेमलता का नाम ले कर?’’

‘‘हमारे साहब व मैडम में कभी झगड़ा नहीं होता था साहब.’’

‘‘माफ करिएगा इंस्पैक्टर, आशा मैडम और दिलीप सर जैसे संभ्रांत दंपती नौकरों के सामने नहीं झगड़ते,’’ स्नेहा बोली, ‘‘और फिर उन के झगड़े का प्रेमलता की हत्या करने से क्या संबंध?’’

‘‘मेरे हर सवाल का संबंध हत्या के कारण से है. आप कहिए. आप को मिला कुछ?’’ देव ने पूछा.

‘‘प्रेमलता के बारे में कुछ नहीं, न ही ऐसा कुछ जिस के बारे में मुझे न मालूम हो.’’

‘‘इस में मैडम की व्यक्तिगत फाइलें भी तो हो सकती हैं?’’

‘‘अगर मैं कहूंगी कि लगता तो नहीं, तब भी आप अपनी शिनाख्त तो करेंगे ही सो कर लीजिए,’’ स्नेहा मुसकराई, ‘‘वैसे मैडम के लैपटौप से ज्यादा प्रेमलता का लैपटौप और ड्राइवर वगैरा इस तहकीकात में मदद कर सकते हैं आप की.’’

देव मुसकराया, ‘‘यहां आने से पहले ही मैं ने अपने सहायक वसंत को प्रेमलता के बंगले पर भेज दिया था और कमिश्नर साहब प्रेमलता के स्टाफ को बुलवा कर उस का औफिस खुलवाने की व्यवस्था करवा रहे हैं. आप ने भी सुना होगा, प्रेमलता ने जातेजाते अपने ड्राइवर को यहां रुकने और पुलिस से सहयोग करने को कहा था. अभी लेंगे उस का सहयोग.’’

तभी स्नेहा का मोबाइल बजा, ‘‘ओके सर… बौडी तो पोस्टमार्टम के लिए ले गए… पुलिस पूछताछ कर रही है. प्रेमलता फिलहाल तो सहयोग नहीं कर रही,’’ मोबाइल बंद कर के स्नेहा ने देव की ओर देखा, ‘‘दिलीप सर का फोन था. वे प्लेन में बैठ चुके हैं और 2 बजे तक पहुंच जाएंगे. मैं एअरपोर्ट जाऊंगी उन्हें लाने.’’

‘‘मेरा विभाग पासपोर्ट, कस्टम और सामान लाने की औपचारिकताएं संभाल लेगा. दिलीप को हम प्लेन से निकलते ही अपने साथ ले आएंगे,’’ देव ने कहा, ‘‘बेहतर होगा आप हमारे साथ चलें.’’

स्नेहा ने सीधे उस की आंखों में देखा, ‘‘आप को दिलीप सर पर शक है?’’

‘‘फिलहाल तो नहीं,’’ देव ने बगैर पलकें झुकाए कहा, ‘‘वैसे शक आप कर रही हैं मेरी सहृदयता पर… एक शोकाकुल व्यक्ति की सहायता कर रहा हूं मानवता के नाते.’’

‘‘ओह सो नाइस औफ यू… रास्ते में पूछताछ नहीं करेंगे?’’ स्वर में व्यंग्य था या जिज्ञासा, देव समझ नहीं सका.

‘‘पहले आप दोनों को बात करने दूंगा. फिर मौका देख कर सवाल करूंगा, क्योंकि बगैर सवाल किए तो इस हत्या की वजह पता चलने से रही और जिस के पास इस सवाल का जवाब है वह जवाब देने से रही. सो यहांवहां सवाल कर के ही अटकल लगानी होगी, मुझे भी और आप को भी,’’ देव ने कहा और फिर स्नेहा को भृकुटियां चढ़ाते देख कर जल्दी से बोला, ‘‘वजह की तलाश तो मेरे से ज्यादा आप को है, क्योंकि आशाजी आप की…’’

‘‘आशाजी मेरी बौस ही नहीं, मेरी बड़ी बहन की तरह भी थीं,’’ स्नेहा ने रुंधे स्वर में बात काटी, ‘‘बड़े प्यार से या यह कहिए बड़े मनोयोग से संवार रही थीं मेरा कैरियर. उन जैसी सहृदया, शालीन महिला की हत्या क्यों हुई और वह भी उन की प्रिय सखी के हाथों, यह जानने को मैं वाकई में बेचैन हूं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं. अच्छा, यह बताइए प्रेमलता आप के औफिस में भी आया करती थीं?’’

‘‘कभीकभार. या फिर उस सार्वजनिक छुट्टी को जब उन की तो छुट्टी रहती थी, लेकिन हमारा औफिस खुला रहता था. तब वे दोपहर को मैडम को लेने आती थीं. स्विमिंग या किसी रिजोर्ट वगैरा में ले जाने को, बिलकुल किसी स्नेहिल बहन या अभिन्न सहेली की तरह और आज उसी सहेली ने बेबात उन का खून कर दिया,’’ स्नेहा का स्वर फिर रुंध गया.

देव ने कुछ देर उसे संयत होने का समय दिया. फिर बोला, ‘‘वही बात तो हमें

तलाश करनी है. प्रेमलता कोई कमसिन किशोरी तो है नहीं जो किसी बात पर चिढ़ कर भावावेश में आ कर किसी का खून कर दे.’’

‘‘खून तो भावावेश में आ कर नहीं सोचसमझ कर किया है इंस्पैक्टर. तभी तो वह रिवौल्वर ले कर आई थी. आप के सहायक ने मैडम के कौल रिकौर्ड चैक कर के बताया तो है कि कल रात मैडम ने देर तक प्रेमलता से बात की थी. आप ने भी गौर किया होगा प्रेमलता की आंखें चढ़ी हुई थीं जैसे रात भर जागी हो. ऐसा क्या कहा होगा मैडम ने जिस के कारण न प्रेमलता रात भर सो सकी और न आशा मैडम को आज का दिन देखने दिया,’’ स्नेहा सिसक पड़ी.

‘‘वही तो हमें पता लगाना है स्नेहाजी. अगर आप ऐसे विह्वल होंगी तो कैसे चलेगा,’’ वासुदेव ने कहा और फिर स्नेहा का ध्यान बंटाने को जोड़ा, ‘‘वैसे अच्छा है कि आप ने खोजी पत्रकार बनना पसंद किया हमारे विभाग में आना नहीं, वरना हम जैसों की तो खटिया ही खड़ी कर देनी थी आप ने.’’

देव हंसा, ‘‘बखिया तो हमारे विभाग की अभी भी उधेड़ती रहती हैं. लेकिन इस बार प्रेमलता की असलियत उधेड़ने में मुझे वाकई में आप की मदद चाहिए. चलिए, आशाजी के बैडरूम को देखते हैं, शायद कुछ मिल जाए.’’

‘‘जब आप खुद ही शायद कह रहे हैं तो फिर दिलीप सर के आने तक रुक जाइए. ऐसे मैडम के बैडरूम में जाना और वह भी उन के न रहने के बाद अच्छा नहीं लग रहा. आप चाहें तो बैडरूम सील कर दें,’’ स्नेहा हिचकिचाई, ‘‘मैं प्रेमलता का घर देखना चाहूंगी.’’

‘‘चलिए. वासुदेव, तुम खयाल रखना कोई किसी चीज से छेड़छाड़ न करे. अगर कोई खास फोन हो तो मुझे बता देना,’’ कह देव उठ खड़ा हुआ, ‘‘बजाय इस के कि आप पुलिस की गाड़ी में चलें, मैं आप के साथ आप की गाड़ी में चलता हूं. फिर उसी में एअरपोर्ट चले जाएंगे.’’

प्रेमलता के सरकारी बंगले पर वसंत एक औफिसनुमा कमरे में बैठा कंप्यूटर चैक कर रहा था.

‘‘कुछ मिला क्या?’’ देव ने पूछा.

वसंत ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘रूटीन औफिस फाइलें सर. ऐसा कुछ नहीं जिस पर उंगली उठाई जा सके. लेकिन आई पैड में कविताएं भरी पड़ी हैं, शायद रोज ही एक कविता लिखती थीं महापौर…’’

‘‘कहीं उन्हीं कविताओं को छपवाने को ले कर तो झगड़ा नहीं हुआ था दोनों में स्नेहाजी?’’ देव ने वसंत की बात काटी.

‘‘संडे सैनसेशन में कहानियां और कविताएं न छापना मैनेजमैंट की पौलिसी है, जिस में मैडम कोई बदलाव नहीं कर सकती थीं,’’ स्नेहा ने वसंत के कंधे पर झुक कर आई पैड स्क्रीन को देखा, ‘‘और फिर ये कविताएं तो हिंदी में हैं. संडे सैनसेशन में छापने का सवाल ही नहीं उठता? मैं इन्हें पढ़ सकती हूं?’’

‘‘जरूर,’’ वसंत ने आई पैड पकड़ाते हुए कहा, ‘‘प्राय: सभी कविताएं ‘मेरी उम्मीद’ या ‘मेरी उम्मीद की किरण’ को संबोधित हैं. बहुत अच्छी कवयित्री बन सकतीं थीं महापौर अगर उन्होंने उम्मीद को छोड़ कर कोई और विषय भी चुना होता.’’

‘‘लय और छंद का तालमेल बहुत बढि़या है, मेरी जिंदगी है उम्मीद मेरी बंदगी है उम्मीद…’’

‘‘हम यहां कविता पाठ करने नहीं, तहकीकात करने आए हैं,’’ देव ने टोका, ‘‘लगता है वसंत, तुम ने भी अभी तक कविताओं का रसास्वादन ही किया है?’’

‘‘आप ने ही आई पैड चैक करने को कहा था, तो उस में तो कविताएं ही हैं. टेबल टौप में पुरानी रूटीन फाइलें हैं और लैपटौप पर भी औफिस की कोई गोपनीय सूचना नहीं है. प्रेमलता का बैडरूम लौक्ड है. दूसरे कमरों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है.’’

‘‘मास्टर की से बैडरूम खोल लो,’’ देव ने कहा, ‘‘स्नेहाजी, चलिए पहले बैडरूम देखते हैं.’’

बैडरूम में घुसते ही सब चौंक पड़े.

ज्योति: क्या सही था उसका भरोसा

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‘मरीजों की चिंता सबसे पहले होती है’- डा. नेहा सिंह

डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले अधिकतर लोग निजी क्षेत्र में चिकित्सा सेवा को प्रथमिकता देते है. मिर्जापुर की रहने वाली डॉ नेहा सिंह ने निजी क्षेत्र में काम करने की जगह पर सरकारी अस्पतालों में सेवा करने को प्रथमिकता दी. डॉ नेहा का मानना था कि सरकारी अस्पतालों के जरिये वो गरीब और कमजोर वर्ग से आने वाले लोगो की अधिक सेवा कर सकती है. डॉ नेहा सिंह ने प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने की चुनौती भी स्वीकार की. उनकी सोंच थी कि अच्छी चिकित्सा व्यवस्था के लिये अच्छे डाक्टर के साथ ही साथ अच्छे प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर की भी जरूरत होती है. यही नहीं डॉ नेहा ने प्राइवेट सेक्टर में जाकर डाग्नोसिस सेंटर खोलने की जगह पर सरकारी अस्पतालों में प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने की चुनौती को स्वीकार किया. वह ऐसे लोगो के लिये प्रेरणा का काम करती है जो सरकारी अस्पतालो में काम करके खुशी का अनुभव नहीं कर रहे होते है. डॉ नेहा ने अपने काम से एक अलग छवि बनाई है. जिसकी वजह से मरीज उनकी हर बात मानते है और उनसे अपनी हर बात शेयर करते है.

प्रोविंशियल मेडिकल सर्विस को बनाया अपना कैरियर:

डॉ नेहा सिंह के पिता खुद डाक्टर है. ऐसे में 12 वीं के बाद नेहा ने भी डाक्टर बनने के लिये परीक्षा दी. रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली में उनको एमबीबीएस करने के लिये प्रवेश मिल गया. वहां से अपनी पढाई पूरी करने के बाद नेहा ने प्रोविंशियल मेडिकल सर्विस में अपना कैरियर बनाने की सोची. पहली ही बार में ही परीक्षा में सफल हो गई. उत्तर प्रदेश के तमाम शहरों के सरकारी अस्पतालों में उन्हें सेवा करने का मौका मिला.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती और देवरिया में काम करने का उनका अनुभव कैसा रहा? पूछने पर नेहा बताती है, ‘टीबी और चेस्ट विभाग में काम करते वक्त हमने देखा कि ज्यादातर लोग इस बीमारी को शुरुआती दिनों में गंभीरता से नहीं लेते है. इससे बचने की कोशिश नहीं करते है. लोगों को जागरूक होना चाहिये. अपनी सफाई का ध्यान रखना चाहिये. नशे से बचना चाहिये. अच्छा भोजन करना चाहिये.

“अगर कोई दिक्कत हो तो इलाज कराना चाहिये. लापरवाही नही बरतनी चाहिये. टीबी अब पहले जैसा घातक नहीं है पर इससे सावधान रहने की जरूरत है.”

कोरोना संकट में जनता की सेवा:

2020 में जब कोरोना का प्रकोप पूरी दुनिया पर संकट बनकर छाया तो भारत के सामने सबसे बडी समस्या खडी हो गई. ऐसे समय में सरकारी अस्पताल और वहां का आधारभूत ढांचा ही ढाल बनकर कोरोना के सामने खडा हुआ. डॉ नेहा सिंह का अनुभव और साहस भी इसमें बडा सहारा बना. उनकी ड्यूटी बस्ती जिले के सरकारी अस्पताल में लगी थी. इस अस्पताल को एल-2 का दर्जा दिया गया था. जिसका मतलब था कि कोरोना के गंभीर मरीजों का इलाज यहां होता था. वहां काम करना सबसे खतरनाक माना जा रहा था.

यहां काम करना चुनौती से कम नहीं था. डॉ नेहा सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार किया. बच्चों और घर परिवार की चिंता छोड दी. वहां 15 दिन ड्यूटी देने के बाद बाकी के 15 दिन क्वारंटीन रहना पडता था. ऐसे में लगातार दो माह तक बच्चों से दूर रही. यह उनके जीवन में पहला अवसर था जब बच्चों से इतने लंबे समय तक दूर रहना पडा.

डॉ नेहा सिंह बताती है ‘मुझे भी एक बार कोरोना हो गया था. उस समय थोडा सा डर लग रहा था. मेरी 8 साल की बेटी और 3 साल का बेटा है. उनकी चिंता हो रही थी. अच्छी बात यह थी कि हमारा परिवार साथ रहता है तो बच्चों की देखभाल हो रही थी. दो माह तक बच्चों से दूर रहना बहुत अलग लग रहा था. दूसरे लोगों की दिक्कतों को देखते हुये हमारी परेशानी कम थी. इस बात को सोंच कर अपना हौसला बनाती रही.’

सशक्त समाज के लिये जागरूक हो महिलाएं:

“साफसफाई के अभाव में महिलाएं तमाम तरह की बीमारियों की शिकार हो जाती है, जिससे उनकी सेहत पर बुरा असर पडता है. सरकारी अस्पताल में काम करते वक्त हमें गांव और छोटेबडे शहरों की महिलाओं से मिलने का मौका मिला. हम उन्हें समझाने का काम करते थे. बहुत सारी महिलाएं सरवाइकल कैंसर से ग्रस्त होने के बाद इलाज के लिये आती थी. सफाई और पीरियडस के दिनो में हाईजीन का ख्याल रखने से महिलाएं तमाम बीमरियों से बच सकती है.”

डॉ नेहा का मानना है कि महिलाओं को अपनी हेल्थ से जुडे विषयों पर जागरूक होना चाहिये. इसके लिये पत्र-पत्रिकाएं पढे. उन्हें केवल मनोरंजन की निगाह से न देखे. इनमें आजकल बहुत सामग्री छपने लगी है. उसे पढ़े और समझे ताकि किसी मुसीबत में न पडे. राजनीति और समाज के दूसरे विषयों को पढ़े और समझे ताकि यह पता चल सके कि समाज और राजनीति में क्या कुछ आपके लिये हो रहा और क्या नहीं हो रहा है.  महिलाएं जागरूक और आत्मनिर्भर रहेगी तो अपने फैसले खुद ले सकेगी और एक सशक्त समाज का निर्माण कर सकेगी.

परिवार है सफलता की धुरी:

डॉ नेहा मानती है कि किसी भी महिला की सफलता में उसके परिवार की भूमिका सबसे अधिक होती है. कोरोनाकाल में मेरा परिवार मेरे बच्चों की देखभाल करने के लिये उपलब्ध न होता तो मै अपने बच्चों को छोड़ कर अपना काम बेहतर तरह से नहीं कर पाती. कैरियर और सफलता के लिये परिवार को ले कर आगे चलना चाहिये. इससे ही मजबूत समाज बनता है.

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