औरतों के लिए आजादी का जश्न मनाने का कोई अवसर है, ऐसा कहीं दिखता नहीं है. जब आजादी मिली और संविधान लिखा गया तो वादा किया गया कि सभी पुरुषों के बराबर औरतों को अधिकार मिलेंगे और उन से किसी तरह का न तो भेदभाव किया जाएगा, न ही उन का शोषण किया जाएगा. पर आज 75 साल बीत जाने के बाद भी देश व समाज की हालत क्या है, इस की पोल औरतों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को जानने के लिए किसी आयोग को बनाने की जरूरत नहीं है, एक दिन के 2-4 अखबारों में प्रकाशित समाचारों को थोड़ा गंभीरता से पढऩा ही काफी है.

अगस्त के पहले दिन के समाचारों में भी पहले दिनों की तरह नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के स्थान पर राष्ट्रपत्नी बोल जाने के आरोप में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के बंगलाभाषी अधीर रंजन चौधरी के पीछे पड़ी रही. चाहे पार्टी का उद्देश्य इस मामले में राजनीति को भुनाना हो पर यह बात बारबार जताई गई कि नई राष्ट्रपति जैसे पद का नाम तो पुल्लिंग ही होगा, स्त्रीलिंग नहीं. जब हिंदी में पुरुष के लिए पति व स्त्री के लिए पत्नी शब्द का इस्तेमाल होता है तो राष्ट्रपति शब्द पुल्लिंग ही क्यों. इस शब्द की जगह क्या हम राष्ट्राध्यक्ष जैसा शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकते थे.

इस पर विवाद खड़ा कर भाजपा का थिंकटैंक बारबार यह जताता रहा कि देखो, हम ने एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति पद पर बैठा कर कितना बड़ा एहसान किया है. अपमान असल में अधीर रंजन चौधरी ने नहीं किया, सरकार के लोगों ने किया जिन्होंने बारबार दोहराया कि एक महिला पुरुषों के लिए नियत पद पर बैठा दी गई है. राष्ट्रपति पद पर बैठने के बाद कोई किसी पार्टी का नहीं रहता पर भारतीय जनता पार्टी इसे राजनीतिक मुद्दा बना कर अपना किया ‘एहसान’ जताती रही.

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