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फिल्म बंधु को भारत सम्मान 2022   

फिल्म बंधु की चर्चा अब फ़िल्म नगरी में तेजी से हो रही और उसकी सराहना भी हो रही है. दिल्ली में बॉलीवुड गायक उदित नारायण, संगीत निर्देशक अनु मलिक, पार्श्व गायिका और अभिनेत्री सलमा आगा और माननीया सांसद सुनीता दुग्गल द्वारा फिल्म बंधु, उत्तर प्रदेश सरकार को, फिल्म निर्माताओं को राज्य में फिल्म निर्माण के प्रोत्साहन एवं संबंधित सुविधाएं प्रदान किए जाने हेतु, बुद्धा क्रिएशन्स ऑफ़ इंडियन सिनेमा और बुद्धांजलि रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित अवार्ड समारोह में ‘‘भारत सम्मान 2022’’ पुरस्कार फ़िल्म बंधु के उप निदेशक श्री दिनेश सहगल को प्रदान किया गया.

अगर मां को कैंसर है तो उनके बच्चों में भी कैंसर होने की संभावना प्रबल रहती है, क्या यह सच है?

सवाल

2 साल पहले मेरी बहन का ओवरियन कैंसर से निधन हो गया था. उन की 2 बेटियां क्रमश: 16 और 10 साल की हैं. डाक्टरों ने बताया कि यदि मां को कैंसर है तो उन के बच्चों में भी कैंसर होने की संभावना प्रबल रहती है. अत: भविष्य में ऐसे किसी खतरे से न जूझना पड़े इस के लिए हमें क्या करना चाहिए?

जवाब

बेटियों में ओवरियन कैंसर का खतरा (आम आबादी की तुलना में 3 से 6 गुना अधिक) ज्यादा रहता है. दोनों बेटियों के लिए फिलहाल यही सुझाव है कि हर साल वे सीए125 की जांच कराती रहें और ओवरियन कैंसर का पता लगाने के लिए ट्रांसवैजिनल अल्ट्रासाउंड करवा लें. उन्हें बीआरसीए1 तथा बीआरसीए2 जैसी जैनेटिक म्यूटेशन जांच भी करा लेनी चाहिए. यदि इस के परिणाम पौजिटिव आते हैं, तो बच्चे नहीं पैदा करने का फैसला करते हुए उन्हें खतरे कम करने वाली साल्पिंगो उफोरेक्टोमिया (इस सर्जिकल प्रक्रिया में महिला की ओवरी और फैलोपियन ट्यूब्स निकाल दी जाती हैं) पर भी विचार करना चाहिए. इस तरह की जांच की सलाह आमतौर पर 30-35 साल की महिलाओं को दी जाती है.

लेकिन आप अपनी बहन की बेटियों की यह सर्जिकल प्रक्रिया मां के ओवरियन कैंसर से पीडि़त होने की उम्र से 10 साल कम उम्र में करा सकती हैं. वे कम उम्र में भरापूरा परिवार पाने के बाद इस खतरे को कम करने के लिए ओवरी निकलवा सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

वे तीन शब्द: क्या आरोही को आदित्य अपना हमसफर बना पाया

दीवाली की उस रात कुछ ऐसा हुआ कि जितना शोर घर के बाहर मच रहा था उतना ही शोर मेरे मन में भी मच रहा था. मुझे आज खुद पर यकीन नहीं हो रहा था.

क्या मैं वही आदित्य हूं, जो कल था… कल तक सब ठीक था… फिर आज क्यों मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था… आज मैं अपनी ही नजरों में गुनाहगार हो गया था. किसी ने सही कहा है, ‘आप दूसरे की नजर में दोषी हो कर जी सकते हैं, लेकिन अपनी नजर में गिर कर कभी नहीं जी सकते.’

मुझे आज भी आरोही से उतना ही प्यार था जितना कल था, लेकिन मैं ने फिर भी उस का दिल तोड़ दिया. मैं आज बहुत बड़ी कशमकश में गुजर रहा हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं?

मैं गलत नहीं हूं, फिर भी खुद को गुनाहगार मान रहा हूं. क्या दिल सचमुच दिमाग पर इतना हावी हो जाता है? प्यार की शुरुआत जितनी खूबसूरत होती है उस का अंत उतना ही डरावना होता है.

मैं आरोही से 2 साल पहले मिला था. क्यों मिला था, इस का मेरे पास कोई जवाब नहीं है, क्योंकि उस से मिलने की कोई वजह  मेरे पास थी ही नहीं, जहां तक सवाल है कैसे मिला था, तो इस का जवाब भी बड़ा अजीब है. मैं एटीएम से पैसे निकाल रहा था, उस के हाथ में पहले से ही इतना सारा सामान था कि उस को पता ही नहीं चला कि कब उस का एक बैग वहीं रह गया.

मैं ने फिर उस को ‘ऐक्सक्यूज मी’ कह कर पुकारा और कहा, ‘‘आप का बैग वहीं रह गया था.’’

बस, यहां हुई थी हमारी पहली मुलाकात. अपने बैग को सहीसलामत देख कर वह खुशी से ऐसे उछल पड़ी मानो किसी ने आसमान से चांद भले ही न सही, लेकिन कुछ तारे तोड़ कर ला दिए हों. लड़कियों का खुशी में इस तरह का बरताव करने वाला फंडा मुझ को आज तक समझ नहीं आया.

उस की मधुर आवाज में ‘थैंक्यू’ के बदले जब मैं ने ‘इट्स ओके’ कहा तो बदले में जवाब नहीं सवाल आया और वह सवाल था, ‘‘आप का नाम?’’

मैं ने भी थोड़े स्टाइल से, थोड़ी शराफत के साथ अपना नाम बता दिया, ‘‘जी, आदित्य.’’

‘‘ओह, मेरा नाम आरोही है,’’ उस ने मेरे से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘भैया, कनाटप्लेस चलोगे?’’

मैं ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा.  यह सवाल उस ने मुझ से नहीं बल्कि साथ खड़े औटो वाले से किया था.

‘‘नहीं मैडमजी, मैं तो यहां एक सवारी को ले कर आया हूं. यहां उन का 5 मिनट का काम है, मैं उन्हीं को ले कर वापस जाऊंगा.’’

‘‘ओह,’’ मायूसी से आरोही ने कहा.

‘‘अम्म…’’ मैं ने मन में सोचा ‘पूछूं या नहीं, अब जब इनसानियत निभा रहा हूं तो थोड़ी और निभाने में मेरा क्या चला जाएगा?’

‘‘जी दरअसल, मैं भी कनाटप्लेस ही जा रहा हूं, लेकिन मुझे थोड़ा आगे जाना है. अगर आप कहें तो मैं आप को वहां तक छोड़ सकता हूं,’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा.

उस का जवाब हां में था. यह उस की जबान से पहले उस की आंखों ने कह दिया था.

मैं ने उस का बैग कार में रखा और उस के लिए कार का दरवाजा खोला.

रास्ते में हम ने एकदूसरे से काफी बातचीत की.

‘‘ क्या आप यहीं दिल्ली से हैं?’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘नहीं, यहां तो मैं अपने चाचाजी के घर आई हूं. उन की बेटी यानी मेरी दीदी की शादी है इसलिए आज मैं शौपिंग के लिए आई थी,’’ आरोही ने मुसकान के साथ कहा.

‘‘कमाल है, दिल्ली जैसे शहर में अकेले शौपिंग जबकि आप दिल्ली की भी नहीं हैं,’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे, नहींनहीं, दिल्ली मेरे लिए बिलकुल भी नया शहर नहीं है. मैं दिल्ली कई बार आ चुकी हूं. मेरी स्कूल की छुट्टियों से ले कर कालेज की छुट्टियां यहीं बीती हैं इसलिए न दिल्ली मेरे लिए नया है और न मैं दिल्ली के लिए.’’

मैं ने और आरोही ने कार में बहुत सारी बातें कीं. वैसे मेरे से ज्यादा उस ने बातें की, बोलना भी उस की हौबी में शामिल है. यह उस के बिना बताए ही मुझे पता चल गया था.

उस के साथ बात करतेकरते पता ही नहीं चला कि कब कनाटप्लेस आ गया.

‘‘थैंक्यू सो मच,’’ आरोही ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘प्लीज यार, मैं ने कोई बड़ा काम नहीं किया है. मैं यहां तक तो आ ही रहा था तो सोचा आप भी वहां तक जा रही हैं तो क्यों न लिफ्ट दे दूं, और आप के साथ तो बात करते हुए रास्ते का पता ही नहीं चला कि कब क्नाटप्लेस आ गया,’’ मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘चलिए, मुझे भी दिल्ली में एक दोस्त मिला,’’ आरोही ने कहा.

‘‘अच्छा, अगर हम अब दोस्त बन ही गए हैं तो मेरी अपनी इस नई दोस्त से कब और कैसे बात हो पाएगी?’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए पूछा.

वह कुछ देर के लिए शांत हो गई. उस ने फिर कहा, ‘‘अच्छा, आप मुझे अपना नंबर दो, मैं आप को फोन करूंगी.’’

मैं ने उसे अपना नंबर दे दिया.

आरोही ने मेरा नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया और बाय कह कर चली गई.

मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मैं भी तो आरोही से उस का नंबर ले सकता था. अगर उस ने फोन नहीं किया तो…

‘चलो, कोई बात नहीं,’ मैं ने स्वयं को सांत्वना दी.

उस दिन मेरे पास जो भी फोन आ रहा था मुझे लग रहा था कि यह आरोही का होगा, लेकिन किसी और की आवाज सुन कर मुझे बहुत झुंझलाहट हो रही थी.

मुझे लगा कि आरोही सच में मुझे भूल गई है. वैसे भी किसी अनजान शख्स को कोई क्यों याद रखेगा और अगर उसे सच में मुझ से बात करनी होती तो वह मुझे भी अपना नंबर दे सकती थी.

अगले दिन सुबह मैं औफिस के लिए तैयार हो रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया, ‘‘हैलो, आई एम आरोही.’’

मैसेज देख कर मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस ने मुझे मैसेज किया है.

मैं ने तुरंत उसे मैसेज का जवाब दिया, ‘‘तो आखिर आ ही गई याद आप को अपने इस नए दोस्त की.’’

उधर से आरोही का मैसेज आया, ‘‘सौरी, दरअसल, कल मैं काम में बहुत व्यस्त थी और जब फ्री हुई तो बहुत देर हो चुकी थी तो सोचा इस वक्त फोन या मैसेज करना ठीक नहीं है.’’

मैं ने आरोही को मैसेज किया, ‘‘दोस्तों को कभी भी डिस्टर्ब किया जा सकता है.’’

आरोही का जवाब आया, ‘‘ओह, अब याद रहेगा.’’

बस, यहीं से शुरू हुआ हमारी बातों का सिलसिला. जहां मुझे अभी कुछ देर पहले तक लगता था कि अब शायद ही उस से दोबारा मिलना होगा. लेकिन कभीकभी जो आप सोचते हैं उस से थोड़ा अलग होता है.

आरोही की बड़ी बहन की शादी मेरे ही औफिस के सहकर्मी से थी. जब औफिस के मेरे दोस्त ने मुझे शादी का कार्ड दिया तो शादी की बिलकुल वही तारीख और जगह को देख कर मैं समझ गया कि हमारी दूसरी मुलाकात का समय आ गया है.

पहले तो शायद मैं शादी में न भी जाता, लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ आरोही से दोबारा मिलने के लिए जा रहा था.

मैं ने झट से उसे मैसेज किया, ‘‘मैं भी तुम्हारी दीदी की शादी में आ रहा हूं.’’

आरोही का जवाब में मैसेज आया, ‘‘लेकिन आदित्य, मैं ने तो तुम्हें बुलाया ही नहीं.’’

उस का मैसेज देख कर मुझे बहुत हंसी आई, मैं ने ठिठोली करते हुए लिखा, ‘‘तो?’’

उस का जवाब आया, ‘‘तो क्या… मतलब तुम बिना बुलाए आओगे, किसी ने पूछ लिया तो?’’

मुझे बड़ी हंसी आई, मैं ने अपनी हंसी रोकते हुए उसे फोन किया, ‘‘हैलो, आरोही,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम बिना बुलाए आओगे शादी में,’’ आरोही ने एक सांस में कहा, ‘‘हां, तो मैं डरता हूं्र्र क्या किसी से, बस, मैं आ रहा हूं,’’ मैं ने थोड़ा उत्साहित हो कर कहा.

‘‘लेकिन किसी ने देख लिया तो,’’ आरोही ने बेचैनी के साथ पूछा.

‘‘मैडम, दिल्ली है दिल वालों की,’’ यह कह कर मैं हंस दिया. लेकिन मेरी हंसी को उस की हंसी का साथ नहीं मिला तो मैं ने सोचा, ‘अब राज पर से परदा हटा देना चाहिए.’

मैं ने कहा, ‘‘अरे बाबा, डरो मत, मैं बिना बुलाए नहीं आ रहा हूं, बाकायदा मुझे निमंत्रण मिला है आने का.’’

‘‘ओह,’’ कह कर आरोही ने गहरी सांस ली.

‘‘तो अब तो खुश हो तुम,’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘हां, बहुत…’’ आरोही की आवाज में उस की खुशी साफ झलक रही थी.

उस दिन बरात के साथ जैसे ही मैं मेनगेट पर पहुंचा तो बस मेरी निगाहें एक ही शख्स को ढूंढ़ रही थीं. वहां पर बहुत सारे लोग मौजूद थे, लेकिन आरोही नहीं थी.

काफी देर तक जब इधरउधर देखने के बाद भी मुझे आरोही नहीं दिखाई दी तो मैं ने उस के मोबाइल पर कौल की, ‘‘कहां हो तुम…, मैं कब से तुम को इधरउधर ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने बेचैनी से पूछा.

‘‘ओह, पर क्यों… हम्म…’’ उस ने चिढ़ाते हुए कहा.

मैं ने भी उस को चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘ओह, ठीक है फिर लगता है हमारी वह मुलाकात पहली और आखिरी थी.’’

‘‘अरे, क्या हुआ, बुरा लग गया क्या, अच्छा बाबा, मैं आ रही हूं,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘लेकिन तुम हो कहां?’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘जनाब, पीछे मुड़ कर देखिए,’’ आरोही ने हंसते हुए कहा.

मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो बस देखता ही रह गया. हलकी गुलाबी रंग की साड़ी में एक लड़की मेरे सामने खड़ी थी. हां, वह लड़की आरोही थी. उस के खुले हुए बाल, हाथों में साड़ी की ही मैचिंग गुलाबी चूडि़यां, आज वह बहुत खूबसूरत लग रही थी.

आज मुझे 2 बातों का पता चला, पहला यह कि लोग यह कहावत क्यों कहते हैं कि मानो कोई अप्सरा जमीन पर उतर आई हो, और दूसरी बात यह कि शादी में क्यों लोग दूल्हे की सालियों के दीवाने हो जाते हैं.

मैं ने उसी की तरफ देख कर कहा, ‘‘जी, आप कौन, मैं तो आरोही से मिलने आया हूं, आप ने देखा उस को.’’

उस ने बड़ी बेबाकी से कहा, ‘‘मेरी शक्ल भूल गए क्या, मैं ही तो आरोही हूं.’’

मैं ने उस की तरफ अचरज भरी निगाहों से देख कर कहा, ‘‘जी, आप नहीं, आप झूठ मत बोलिए, वह इतनी खूबसूरत है ही नहीं जितनी आप हैं.’’

आरोही ने गुस्से से घूरते हुए कहा, ‘‘ओह, तो तुम मेरी बुराई कर रहे हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, मैं तो आप की तारीफ कर रहा हूं.’’

वह दिन मेरे लिए बहुत खुशी का दिन था, मैं ने आरोही के साथ बहुत ऐंजौय किया. उस ने मुझे अपने मम्मीपापा और भाईबहन से मिलवाया. पूरी शादी में हम दोनों साथसाथ ही रहे.

जातेजाते वह मुझे बाहर तक छोड़ने आई. मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा सुनो, मैं उस समय मजाक कर रहा था. तुम जितनी मुझे आज अच्छी लगी हो न उतनी ही अच्छी तुम मुझे उस दिन भी लगी थी जब हम पहली बार मिले थे,’’ यह सुन कर वह शरमा गई.

अब हम दोनों घंटों फोन पर बातें करते. वह अपनी शरारतभरी बातों से मुझे हंसाती और कभी चिढ़ा दिया करती थी. मैं कभी बहुत तेज हंसता तो कभीकभी मजाक में गुस्सा कर दिया करता. हम दोनों के मन में एकदूसरे के लिए इज्जत और दिल में प्यार था. जिस की वजह से हम दोनों बिना एकदूसरे से सवाल किए बात करते थे. कुछ चीजों के लिए कभीकभी शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़ती. आप की निगाहें ही आप के दिल का हाल बयां कर देती हैं. फिर भी वे 3 शब्द कहने से मेरा दिल डरता है.

अब मुझे रोमांटिक फिल्में देखना अच्छा लगता है. उन फिल्मों को देख कर मुझे ऐसा नहीं लगता था कि क्या बेवकूफी है. जहन में आरोही का नाम आते ही चेहरा एक मुसकान अपनेआप ओढ़ लेता था और बहुत अजीब भी लगता था, जब कोई अनजान शख्स मुझे इस तरह मुसकराता देख पागल समझता था. अपनी मुसकान को रोकने की जगह मैं उस जगह से उठ जाना ज्यादा अच्छा समझता था.

‘‘हाय, गुडमौर्निंग,’’ आज यह मैसेज आरोही की तरफ से आया.

हमेशा की तरह आज भी मैं ने आरोही को फोन किया, लेकिन आज पहली बार उस ने मेरा फोन नहीं उठाया. मैं पूरे दिन उस का नंबर मिलाता रहा, लेकिन उस ने मेरा फोन नहीं उठाया.

आज दीवाली है और आरोही मुझे जरूर फोन करेगी, लेकिन आज भी जब उस का कोई फोन नहीं आया तो मैं ने उस को फिर फोन किया. आज आरोही ने फोन उठा लिया.

‘‘कहां हो आरोही, कल से मैं तुम्हारा फोन मिला रहा हूं, लेकिन तुम फोन ही नहीं उठा रही थी,’’ मैं ने गुस्से में आरोही से कहा.

‘‘यह सब परवा किसलिए आदित्य,’’ आरोही ने रोते हुए पूछा.

‘‘परवा, क्या हो गया तुम्हें, सब ठीक तो है न… और तुम रो क्यों रही हो?’’ मैं ने बेचैनी से आरोही से पूछा.

‘‘प्लीज आदित्य, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. कानपुर मेरी शादी की बात चल रही थी इसलिए बुलाया गया था, लेकिन तुम्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम्हें तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा था जब मैं उस दिन रेस्तरां में तुम्हें घर वापस आने की बात कहने आई थी,’’ आरोही एक सांस में बोले जा रही थी. मानो कई दिन से अपने दिल पर रखा हुआ बोझ हलका कर रही हो.

‘‘तुम्हारे लिए मैं कभी कुछ थी ही नहीं आदित्य, शायद यह सब बोलने का कोई हक नहीं है मुझे… और न ही कोई फायदा, शायद अब हम कभी नहीं मिल पाएंगे, अलविदा…’’ यह कह कर आरोही ने फोन रख दिया.

मैं एकटक फोन को देखे जा रहा था, जो आरोही हमेशा खिलखिलाती रहती थी आज वही फूटफूट कर रो रही थी. इसलिए आज मैं खुद को गुनाहगार मान रहा था, लेकिन अब मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं अपनी आरोही को और नहीं रुलाऊंगा, मैं जान चुका हूं कि आरोही भी मुझे उतना ही प्यार करती है जितना कि मैं उसे करता हूं.

मैं ने फैसला कर लिया कि मैं कल सुबह ही टे्रन से कानपुर जाऊंगा. आज की यह रात बस किसी तरह सुबह के इंतजार में गुजर जाए. मैं ने अगली सुबह कानपुर की टे्रन पकड़ी. 10 घंटे का यह सफर मेरे लिए, मेरे जीवन के सब से मुश्किल पल थे. मैं नहीं जानता था कि आरोही मुझे देख कर क्या कहेगी, कैसा महसूस करेगी, इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं, मैं ने जैसे ही आरोही के घर पहुंच कर उस के घर के दरवाजे की घंटी बजाई तो आरोही ने ही दरवाजा खोला.

आरोही मुझे देख कर चौंक गई.

मैं ने आरोही को गले लगा लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो आरोही… सारी मेरी ही गलती है. मुझे हमेशा यही लगता था कि अगर मैं तुम से अपने दिल की बात कहूंगा तो तुम को हमेशा के लिए खो दूंगा. मैं भूल गया था कि मैं कह कर नहीं बल्कि खामोश रह कर तुम्हें खो दूंगा.’’

आरोही की आंखों में आंसू थे. उस के घर के सभी लोग वहां मौजूद थे. मैं ने आरोही की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘कल तक मुझ में हिम्मत नहीं थी, लेकिन आज मैं तुम्हारे प्यार की खातिर यहां आया हूं, आई लव यू आरोही, बोलो, तुम दोगी मेरा साथ…’’ मैं ने अपना हाथ आरोही की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

आरोही ने अपना हाथ मेरे हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘आई लव यू टू.’’

आज आरोही और मेरे इस फैसले में उस के परिवार वालों का आशीर्वाद भी शामिल था.

हार्ट अटैक: महिलाओं व पुरुषों में लक्षण अलगअलग

दिल की बीमारी अकसर कोरोनरी आर्टरी में ब्लौकेज के कारण होती है. हालांकि, कई बार, खासकर महिलाओं में, दिल की बीमारी और इस के लक्षण हृदय की धमनी से निकलने वाली छोटी धमनियों में बीमारी होने के कारण दिखते हैं. महिलाओं और पुरुषों में हार्ट अटैक का सब से आम लक्षण सीने में दर्द या असुविधा है. हालांकि जिन महिलाओं को हार्ट अटैक होता है उन में आधी को ही सीने में दर्द होता है. ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं कि महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण पुरुषों की तुलना में अलग हो सकते हैं और अधिकतर लोगों के पास संभावित हार्ट अटैक की स्थिति में करने के लिए कोई कार्ययोजना नहीं होती है. महिलाएं अकसर चेतावनी संकेतों को नजरअंदाज करती हैं और समझती हैं कि समस्या कुछ और है. कई ऐसी महिलाएं हैं जो घर और दफ्तर दोनों के कामों में लगी रहती हैं, इस से निजी देखभाल के लिए उन्हें कम समय मिलता है. इस के अलावा, महिलाओं में बीमारी के लक्षणों को गलत समझा जा सकता है. इस का नतीजा यह होता है कि महिलाओं की हृदय की अपनी बीमारी का पता बहुत देर से चलता है.

दूसरी ओर पुरुष अकसर चिकित्सकीय परीक्षणों में भाग लेते रहते हैं और उन का परीक्षण व उपचार होता रहता है. इस से लगता है कि उन्हें फायदा मिलता है. आइए, कुछ उदाहरणों से इस अंतर को समझें : 53 साल के देवेश बैंक मैनेजर हैं. उन्हें हाइपरटैंशन रहता है तथा करीब 5 वर्षों से इस के लिए रोज दवा ले रहे हैं. उन्होंने सीने में जलन की शिकायत की और अपने फैमिली डाक्टर से सलाह लेने का निर्णय लिया. लक्षणों को देख कर डाक्टर ने तुरंत हृदय रोग विशेषज्ञ से सलाह लेने के लिए कहा. पता चला कि देवेश की धमनियां जाम हो चुकी थीं. बहरहाल, समय पर इलाज से हार्ट अटैक टल गया.

 49 साल की मधुरिमा गृहिणी हैं. वे 1-2 सप्ताह से ठीक महसूस नहीं कर रही थीं. उन्होंने एक डाक्टर से संपर्क कर पेट में गड़बड़ी व सांस फूलने की शिकायत की. उन्होंने असामान्य थकान और कभीकभी चक्कर आने की भी शिकायत की. डाक्टर ने उन्हें कुछ दिन आराम करने की सलाह और डाइट प्लान देते हुए लक्षणों का कारण बढ़ती उम्र व रजोनिवृत्ति के चलते हार्मोन में बदलाव को बताया. इस के 3 दिन बाद मधुरिमा को सीने में जोरदार दर्द हुआ. उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां बताया गया कि उन्हें जोरदार हार्ट अटैक हुआ था. मधुरिमा ने पहले जिस डाक्टर से सलाह ली थी उस डाक्टर ने हृदय की स्थिति से उसे जोड़ कर नहीं देखा था, इसलिए उस के द्वारा दी गई सलाह बेकार हो गई जिस का नतीजा मधुरिमा को हार्ट अटैक के तौर पर झेलना पड़ा.

मधुरिमा की तरह ज्यादातर महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होती हैं. जब बात बिगड़ जाती है तभी वे डाक्टर के पास जाती हैं. आप ऐसा कतई न करें. गलत आदतें भी आप का जोखिम बढ़ा सकती हैं. महिलाओं में हार्ट अटैक के जोखिम वही होते हैं जो पुरुषों में. हालांकि कुछ जोखिम के घटक महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अलग ढंग से प्रभावित कर सकते हैं. उदाहरण के लिए डायबिटीज से महिलाओं में हार्ट अटैक का जोखिम ज्यादा बढ़ता है. यही नहीं, कुछ जोखिम घटक जैसे गर्भनिरोधक गोलियां और रजोनिवृत्ति से सिर्फ महिलाएं प्रभावित होती हैं.

उपचार के विकल्प

द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन का मानना है कि अगर आप के परिवार में हृदय की बीमारी का इतिहास है तो आप अपने कोलैस्ट्रौल की जांच 20 साल में या उस से भी पहले करा लें. कोरोनरी हार्ट डिजीज के मरीजों के लिए उपचार, स्टंटिंग के साथ एंजियोप्लास्टी और बाईपास सर्जरी का विकल्प मौजूद है. आज ड्रग एल्यूटिंग स्टंट्स यानी डीईएस उपलब्ध हैं जो कोरोनरी आर्टरी को ढांचागत सहायता मुहैया कराते हैं और साथ ही, इस पर लगी दवा की परत धमनी को फिर से संकरा होने से रोकती है. आज कई डीईएस उपलब्ध हैं और इन में रिजोल्यूट इंटीग्रिटी ऐसा ही एक डीईएस है जो पहला और एकमात्र अमेरिकी एफडीए से स्वीकृत ड्रग एल्यूटिंग स्टंट है. यह डायबिटीज के मरीजों के लिए है. हृदय की बीमारी से बचने के लिए आप की सही जीवनशैली न सिर्फ सर्वश्रेष्ठ बचाव है बल्कि यह आप की जिम्मेदारी भी है. आहार में मामूली संशोधन, नियमित व्यायाम और धूम्रपान के साथ शराब का सेवन भी छोड़ना हृदय को स्वस्थ रखने में काफी मददगार हो सकता है.       

– डा. एस के अग्रवाल
(लेखक कैलाश अस्पताल, नोएडा में सीनियर इंटरवैंशन कार्डियोलौजिस्ट हैं.)

मेरे अपने: उसके अपनों ने क्यों धोखा दिया?

प्रकाश और फिर अविनाश दोनों के अंबिका को ठुकरा कर चले जाने से टूट कर रह गई वह. मन में कोई इच्छा शेष न रह गई, पर उसे क्या पता उस की खुशियों में आग लगाने वाला कोई और नहीं उस के अपने ही थे.

कर्ज बना जी का जंजाल- भाग 1: खानदान के 9 लोगों की मौत

महाराष्ट्र के सांगली जिले में म्हैसल गांव के रहने वाले शिक्षक और डाक्टर भाइयों के 2 परिवारों की जिंदगी मजे में कट रही थी. सभी सामान्य मध्यमवर्गीय जीवनशैली गुजार रहे थे. वे मिरज तहसील के इस गांव में रहने वाले एक चर्चित खानदान से थे.

नरवाड के रास्ते पर इस गांव में करीब 70 साल पुराना एक घर उन्हीं वानमोरे बंधुओं का है. दोनों यल्लाप्पा वानमोरे के बेटे हैं. एक समय में उन के पास 2 एकड़ जमीन थी.

कुछ समय पहले दोनों भाइयों के बीच घर का बंटवारा हो गया और उन्होंने कुछ जमीनें बेच डाली थीं. कहने को तो पशु चिकित्सक माणिक वानमोरे ने अंबिका नगर और पोपट वानमोरे ने शिवशंकर नगर इलाके में अलगअलग बंगले बनवा लिए थे, किंतु उन की 72 साल की मां आक्काताई यल्लाप्पा वानमोरे पुराने मकान में ही रहती थीं. इस कारण दोनों परिवार का वहां अकसर मिलनाजुलना होता रहता था.

उन के बीच पारिवारिक संबंध मधुर बने हुए थे. सभी सदस्यों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना लगा रहता था.

यह कहें कि उन से पुश्तैनी घर भी गुलजार बना रहता था, किंतु 20 जून, 2022 की सुबह से वहां सन्नाटा पसर गया. पूरे गांव में मातम का माहौल बन गया. इस का कारण उस घर से एक साथ 9 लाशों का बरामद होना था.

सभी लाशें दोनों भाइयों के परिवार के सदस्यों की थीं. उन की एक साथ हुई संदिग्ध मौत से पूरा गांव गमगीन हो गया था. मरने वालों में माणिक वानमोरे ओर पोपट वानमोरे भी थे.

दोनों परिवार सारे पर्वत्यौहार या घरेलू आयोजन एक साथ मनाते थे. किसी के घर में कुछ भी आयोजन हो, वे एक साथ मिल कर खुशियां बांटते थे.

इतना ही नहीं, कोई भी जरूरी निर्णय लेना हो, वे इकट्ठे लिया करते थे. उन की एकमात्र बुजुर्ग सदस्य 72 वर्षीया अक्काताई अपने पुश्तैनी घर के अलावा अकसर माणिक के घर पर ही रहती थीं, लेकिन उन का दोनों भाइयों के परिवार में आनाजाना लगा रहता था.

पोपट की बेटी अर्चना बैंक औफ इंडिया के कोल्हापुर की एक शाखा में नौकरी करती थी. उस के साथ अक्काताई भी रहने चली गई थीं, लेकिन 18 और 19 जून को शनिवार और रविवार की छुट्टी होने के कारण पोपट ने अपनी मां और बेटी को कोल्हापुर से बुला लिया था. 2

दादी और पोती 18 जून की सुबह ही अपने गांव आ गई थीं. वानमोरे बंधुओं के सभी सदस्य एक घरेलू आयोजन के सिलसिले में जुटे थे.

घर वालों की थी वो आखिरी पार्टी

रविवार का दिन था. दोनों भाइयों पोपट और माणिक समेत उन के परिवार के सदस्यों का माणिक के अंबिकानगर स्थित बंगले की छत पर जमावड़ा लगा हुआ था. उन का बड़ी सी छत पर एक साथ होना पड़ोसियों के लिए कोई नई बात नहीं थी. वे अकसर जमा हो कर आपस में चर्चा करते रहते थे.

वानमोरे बंधुओं के परिवार को आसपास के लोग काफी शिक्षित और सभ्य मानते थे. लोग उन की इज्जत करते थे. उन में कायम एकजुटता और आपसी एकता की मिसाल देते थे. कुल मिला कर परिवार में बने आनंद के माहौल से दूसरे लोग भी वाकिफ थे.

रविवार की शाम को दोनों परिवार के सदस्यों ने पानीपूरी की पार्टी का आयोजन किया था. इस मौके पर काफी समय तक खानेपीने का दौर चला था. उन्होंने मिठाई और आईस्क्रीम के भी मजे लिए थे.

देर रात पोपट और उन का परिवार अपने शिवशंकर नगर के बंगले की ओर निकल गया था, जबकि मां अक्काताई माणिक के घर पर ही रुक गई थीं. आधी रात के समय पोपट का बेटा शुभम माणिक काका के घर आ गया था.

माणिक गांव के ही एक गवली यानी ग्वाले से दूध लिया करते थे. सोमवार (20 जून) की सुबह जब गवली के पास माणिक के घर से कोई दूध लेने नहीं आया, तब दूधिया खुद दूध देने माणिक के घर चला गया.

माणिक के घर का दरवाजा भीतर से बंद था. गवली ने बाहर से आवाज लगाई और दरवाजे पर कई थपकियां भी दीं. फिर भी दरवाजा नहीं खुला. कुछ समय बाद गवली सोच में पड़ गया कि ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ, फिर आज सूरज ऊपर चढ़ जाने के बाद भी दरवाजा क्यों बंद है?

गवली ने यह बात पड़ोस में ही रहने वाले माणिक वानमोरे के चचेरे भाई को बताई. उसे भी यह सुन कर आश्चर्य हुआ. चचेरे भाई ने माणिक के साथसाथ अन्य लोगों से मोबाइल पर संपर्क करना शुरू किया. सभी के मोबाइल पर रिंग तो जा रही थी, पर कोई जवाब नहीं मिल रहा था.

देखते ही देखते यह बात कई लोगों तक पहुंच गई. माणिक के घर के पास अगलबगल वालों के साथ ही कई लोग इकट्ठा हो गए. लोग आपस में बातें करने लगे कि कल रात माणिक की छत पर सभी को तो मजे में बातें करते और खातेपीते देखा था तो फिर अब क्या हो गया!

दोनों घरों में मिली 9 लाशें

वानमोरे परिवार का कोई सदस्य फोन काल भी रिसीव नहीं कर रहा था. किसी से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था. इस से गांव वाले भी परेशान हो गए.

लोगों को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. उन में से ही कुछ माणिक के घर के पीछे के दरवाजे की ओर गए. एक ही धक्के में पीछे का दरवाजा खुल गया. कुछ लोग अंदर घुसे. माणिक और उन के परिवार के सदस्यों को आवाजें दीं. उन के पुकारने का कोई जवाब नहीं मिल रहा था. जब लोगों ने अंदर गए, तब वहां का नजारा देख कर सभी दंग रह गए.

भीतर का दृश्य देख कर सभी की रूह कांप गई. उन्हें लगा जैसे उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई हो. दरसअसल, लोगों ने देखा कि घर के कमरों में माणिक समेत परिवार के सभी सदस्य मृत पड़े थे. सभी के मुंह से झाग निकल रहे थे.

माणिक वानमोरे, उन की मां अक्काताई, पत्नी रेखा, बेटा आदित्य, बेटी अनीता और भतीजे शुभम का शव देख कर रिश्तेदार और गांव वाले सदमे में आ गए.

इस दर्दनाक घटना की खबर तुरंत माणिक के बड़े भाई पोपट को देने के लिए रिश्तेदारों ने उन्हें फोन किया. पोपट के फोन की भी रिंग बज रही थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. फोन नहीं उठाने पर सभी पोपट के घर पर गए. उन का भी दरवाजा वैसे ही आगे से बंद था. सभी रिश्तेदार पिछले दरवाजे से घर में घुसे.

वहां भी उन्हें वही डरावना दृश्य नजर आया जैसा माणिक के घर पर था. पोपट की पत्नी संगीता का शव बैडरूम में पड़ा था, जबकि पोपट का शव हाल में सोफे के पास था. किचन में पोपट की बेटी अर्चना का शव था. इस तरह वानमोरे परिवार के दोनों भाइयों के परिवार और मां के साथ पूरा परिवार संदिग्ध मौत की चपेट में आ गया था.

इस घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया. घटनास्थल पर पुलिस दलबल के साथ आई. सांगली के एसपी दीक्षित कुमार गेडाम, सीओ अशोक वीरकर, एडिशनल एसपी मनीषा दुबले के साथ मिरज गांव पहुंच गए. एक ही खानदान के 9 लोगों की एक साथ संदिग्ध मौत से वे भी चौंक गए.

तहकीकात में घटनास्थल से एक सुसाइड नोट मिला, जिस से पूरा मामला खुदकुशी का सामने आया. करीब एक किलोमीटर के फासले पर रह रहे माणिक (49) और पोपट (52) के परिवारों के 9 लोगों की मौत की घटना काफी चौंकाने वाली थी.

घटनास्थल के दोनों जगहों से 2 सुसाइड नोट मिले, जिन में कुछ साहूकारों और कई दूसरे लोगों के नाम लिखे थे. इसी के साथ उन के द्वारा कर्ज वापसी की मांग और नहीं देने पर अंजाम बुरा होने की धमकियों की बातें लिखी हुई थीं. सुसाइड नोट में सूदखोरों की प्रताड़ना का जिक्र किया गया था. वे मानसिक रूप से परेशान चल रहे थे. उन पर भारी कर्ज का बोझ था.

इस आधार पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि वानमोरे परिवार कई लोगों का कर्जदार था, जिसे वापस करने में वे असमर्थ थे. जिस कारण साहूकारों और दूसरे लोगों द्वारा बारबार तकादा किया जाता रहा होगा. धमकियां मिलती होंगी, जिस से परिवार के लोग अपमानित महसूस करते होंगे और धमकियों से डरे हुए भी रहते होंगे.

पुलिस ने शुरुआती जांच में कर्ज के दबाव में आत्महत्या की बात के आधार पर काररवाई की और जरूरी काररवाई करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

मृतकों की शिनाख्त माणिक परिवार में उन के अलावा पत्नी रेखा (45), बेटी अनीता (28), बेटा आदित्य (15) और मां अक्काताई वानमोरे (72)  के अलावा पोपट वानमोरे समेत उन के बेटे शुभम (28), पत्नी संगीता (48) और बेटी अर्चना (30) के रूप में हुई.

पुलिस टीम ने मृतकों के बारे में पासपड़ोस से पूछताछ की तो पता चला कि 52 वर्षीय पोपट याल्लप्पा वानमोरे मिरज के इंग्लिश मीडियम स्कूल में ड्राइंग के शिक्षक थे और शिवशंकर नगर में रहते थे. उन के साथ पत्नी संगीता पोपट वानमोरे, बेटा शुभम और बेटी अर्चना रहते थे. करीब 7 साल पहले उन की नियुक्ति आष्टा के स्कूल में हुई थी. वहां से तबादला होने पर वह मिरज के स्कूल में आ गए थे.

दुनिया को बदलने की प्रेरणा देती डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘‘लाइफ ऑफ ए डोजो”

पूरे विश्व में मार्शल आर्ट/ कुंगफू मास्टर के रूप में लोकप्रिय ‘एम्प्टी हैंड कॉम्बैट‘ के कॉस्मो जिमिक भले अमरीका में रहते हों, मगर उनका जन्म भारत में मणिपुर के सुदूर क्षेत्र में हुआ था. बाद में वह अमरीका जाकर बस गए. मगर कुछ दिन पहले मास्टर कास्मों जिमिक मुंबई, भारत आए.

8 अगस्त, 2022 को करमवीर स्पोर्ट्स क्लब,अंधेरी (वेस्ट), मुंबई में उनकी एक सप्ताह की यात्रा पर बनी डाक्यमेंट्री फिल्म ‘‘लाइफ आफ ए डोजो मास्टर’’ का प्रदर्शन व लोकार्पण किया गया.इस डाक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण ‘चीता जीत कुने डू ग्लोबल स्पोर्ट्स फेडरे-रु39यान’ और ‘एम्प्टी हैंड कॉम्बैट’ के सहयोग से हुआ है.इस अवसर पर कॉस्मो जिमिक, सारा लैंग जिमिक,सगून वाघ,श्रीदेवी -रु39योट्टी वाघ,अमरजीत -रु39योट्टी और चीता  यजने-रु39या -रु39योट्टी ने कार्यक्रम की -रु39याोभा ब-सजय़ाई.मास्टर कास्मो जिमिक आठवीं

डिग्री ब्लैकबेल्ट धारी हैं. यह डाक्यूमेंट्री फिल्म महज एक डाक्यूमेंट्री नहीं है, बल्कि यह लोगों को शिक्षित करने का भी काम करती है. इस पर रोशनी डालते हुए चीता जीत कुनेडू ग्लोबल स्पोर्ट्स फेडरे-रु39यान के संस्थापक ग्रैंडमास्टर चीता यजने-रु39या -रु39योट्टी ने कहा ‘‘यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म लोगों को कुछ कर गुजरने की शिक्षा देती है और इससे उनका मनोबल ब-सजय़ेगा. कॉस्मो जिमिक दुनिया के लिए एक उदाहरण है,

जिन्होंने मार्शल आर्ट को एक अलग मुकाम दिया और लोगों को बताया कि मार्शल आर्ट लोगों को कुछ देने में विश्वास रखता है, ना कि लेने में.

मार्शल आर्ट के जरिए कॉस्मो ने लाखो लोगों की मदद की और काफी लोगों को मुफ्त में शिक्षा देकर उन्हें एक काबिल इंसान बनाकर उनके जीवन को एक मकसद दिया.‘‘

जबकि इस मौके पर खुद मास्टर कॉस्मो जिमिक ने कहा  ‘‘आइए इस विश्व समुदाय में दूसरों की मदद करने के लिए कुछ करें. यह फिल्म आपको अच्छा करने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करेगी. दुनिया को बदलने के लिए जीवन को प्रभावित करेगी.जैसे कि हम दोनों को-िरु39या-रु39या कर रहे है. इंसान को को-िरु39या-रु39या करते रहना चाहिए, चाहे सफलता मिले या ना मिले. लेकिन एक ना एक दिन को-िरु39या-रु39या जरूर कामयाब होती है.आज के समय के लिए एक बहुत जरूरी डॉक्यूमेंट्री फिल्म है, जो लोगों को कुछ करने की प्रेरणा देगी‘‘

TMKOC: दयाबेन का किरदार निभाएंगी काजल पिसाल! मेकर्स ने कही ये बात

टीवी का मशहूर कॉमेडी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ घर-घर में मशहूर है. इस शो के हर एक किरदार को दर्शक पसंद करते हैं. शो में दयाबेन के किरदार को दर्शक खूब याद करते हैं. हाल ही में खबर आई थी कि दयाबने का किरदार काजल पिसाल निभाएंगी. आइए बताते हैं, क्या है पूरा मामला…

खबर आई थी कि एक्ट्रेस काजल पिसाल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में दयाबेन के किरदार में एंट्री कर सकती हैं. उन्हें लेकर फैंस भी खूब एक्साइटेड नजर आए थे. लेकिन अब इस मामले पर खुद मेकर्स ने चुप्पी तोड़ी है.

 

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रिपोर्ट के अनुसार, शो के मेकर्स ने कहा है कि दयाबेन के तौर पर काजल पिसाल की एंट्री सिर्फ और सिर्फ अफवाह है. अभी तक इस बारे में मेकर्स ने कोई एक्शन नहीं लिया है.बता दें कि ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में दयाबेन की एंट्री को लेकर पहले भी अफवाहें उड़ चुकी हैं.

 

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शो का एक प्रोमो भी रिलीज हुआ था, जिसमें दयाबेन की एंट्री होती नजर आई थी. हालांकि उस प्रोमो को यूजर्स ने टीआरपी स्टंट बताया था और मेकर्स की जमकर क्लास भी लगाई थी. कुछ दिनों पहले ही ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में दिशा वकानी की वापसी की खबरें भी सामने आई थीं.

 

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मेरी मम्मी हमेशा भाई को डांटती रहती हैं, क्या करूं?

सवाल

मेरा भाई 26 साल का है. वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करता है. घर में मम्मी हैं, पापा हैं और मैं हूं. दिक्कत यह है कि मम्मी हमेशा भाई को डांटती रहती हैं. इस बात से वह चिड़चिड़ा हो गया है. जबकि वह न तो कोई नशा करता है और न ही उस की कोई गलत आदत है. वह घरखर्च भी चला रहा है, फिर भी मम्मी उस के सिर पर दानापानी ले कर चढ़ी रहतीं हैं. अब तो वह गुमसुम भी रहने लगा है. मुझे डर है कि कहीं वह डिप्रैशन का शिकार न हो जाए. मैं उस की मदद कैसे कर सकती हूं?

जवाब

कई मांओं को बेटों से जरूरत से ज्यादा आशाएं होती हैं और पूरी न होने पर वे चिड़चिड़ी हो जाती हैं. मम्मी के इतने कठोर व्यवहार का कोई ऐसा कारण होगा ही. सब से पहले आप अपनी मम्मी से बात करें और उन से सारी बातें पूछें कि आखिर वे ऐसा क्यों करती हैं. मम्मी से यह भी पूछें कि क्या उन्हें कोई परेशानी है उस से. अगर है तो वे खुल कर बात करें. रोजरोज की चिकचिक से जाहिर तौर पर इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है और उस पर डिप्रैशन हावी होने लगता है.

यदि मम्मी न समझें तो पापा से बात करें. हो सकता है पापा अगर मम्मी को समझाएं तो वे समझ जाएं. अपने भाई से कहें कि गुमसुम न रहे और जो कुछ भी मन में चल रहा है उस के बारे में खुल कर बात करे. इस समस्या का हल केवल बातचीत ही है.

एक मां ही पूछ सकती है ये 5 सवाल

व्यक्ति के जीवन की सबसे पहली गुरु एक मां ही होती है जो उसे चलना, हंसना, बोलना आदि सिखाती है. और बच्चा कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाए एक मां के लिए तो वह बच्चा ही रहता हैं. मां का प्यार बच्चों के लिए हमेशा वैसा ही रहता है जैसा बचपन में रहता है.

बड़े हो जाने पर आप मां की बातों को भूल सकते हैं लेकिन एक मां आपकी छोटी से छोटी बात को भी याद रखती है. आज हम आपको मां के पूछे गए उन सवालों को बताने जा रहे हैं जो एक मां की ममता को दर्शाते हैं और ये सवाल सिर्फ एक मां ही पूछती हैं. तो आइये जानते हैं उन सवालों को.

खाया या नहीं?

भले ही बच्चा कितनी भी देर से घर क्यों न आए लेकिन आपकी मां आपसे यह जरूर पूछेगी कि खाना खाया या नहीं.

मेरा बच्चा सबसे सुंदर

हर मां के लिए उसका बच्चा दुनिया में सबसे खूबसूरत होता है. आपकी मां के लिए आप हमेशा राजा बेटा या रानी बिटियां ही रहेगें, जोकि उनके प्यार को दर्शाता है.

ये क्या पहना है?

जब भी आप कोई नया फैशन या कपड़े ट्राई करते हैं तो हर मां का सवाल होता है कि ये क्या पहना है. हर बच्चे की मां उनसे यह सवाल तो पूछती ही होगी.

आज क्या खाओगे?

बच्चे जब स्कूल या औफिस से वापिस आता है तो मां का सबसे पहला सवाल होता है आज क्या खाओगे. सिर्फ अभी ही नहीं अगर आप 50 साल के भी क्यों ना हो जाएं मां का ये सवाल हर बार यही रहेगा.

तबीयत ठीक है?

जितनी केयर मां कर सकती है उतना कोई भी नहीं कर सकता. ऐसे में आपके थोड़ा-सा बीमार पड़ने पर आपकी मां आपसे जरूर पूछेंगी कि तबीयत ठीक है. अगर आप थोड़ा-सा थक कर भी घर पहुंचेगे तो आपकी मां का यही सवाल होगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

और आंखें भर आईं- भाग 2: क्यों पछता रही थी पार्वती?

पेपर में मोबइल की वह वार्त्तालाप थी जो कल पार्वती ने अपनी मां के साथ की थी. पढ़तेपढ़ते इंस्पैक्टर सीमा की आंखें क्रोध से लाल हो गईं. इंस्पैक्टर अमिता ने पढ़ा. उस की आंखों में भी आक्रोश झलकलने लगा. उस ने महिला हवलदार को आवाज दी. पार्वती की मां का पता देते हुए कहा, ‘मेरी गाड़ी ले जाओ. घर में जितनी औरतें, मर्द मिलें. उन्हें मारते हुए साथ ले आओ. याद रहे, बाहर से कोई चोट दिखाई नहीं देनी चाहिए. सुक्खा सिंह को साथ ले जाओ.”

‘‘नहीं, इंस्पैक्टर अमिता, अमानुषता नहीं,” मैं ने कहा.

“पार्वती ने मैडम के साथ जो अमानुषता की, मैं छोडूंगी नहीं.”

महिला हवलदार बाहर निकली तो उसी दरवाजे से एसीपी सिद्धार्थ ने प्रवेश किया. मुझे देख कर सीधे मेरी ओर बढ़े. उस का रोब इतना था कि वहां खड़े सभी कर्मचारी सैल्यूट करने लगे. उस ने अपनी कैप उतारी और मेरे चरणों में झुक कर प्रणाम किया. सिद्धार्थ ने भी वही सवाल किए जो अमिता और सीमा ने किए थे.

मेरा उत्तर सुने बिना मेरा हाथ पकड़ा और अपनी केबिन की ओर बढ़ा. ‘‘सर, आप मेरे साथ आइए. सर, यहां बैठिए, मेरे सामने. कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं? आप ने मुझे बुलाया होता तो भागा हुआ आता. आप ने यहां आने की तकलीफ क्यों की?’’ वह मेरे पास ही बैठ गया.

उस के इस व्यवहार से मैं अचंभित और गदगद था. इतना बड़ा अफसर होने पर भी उस में कोई अंतर नहीं आया था. बहुत प्रयत्न करने पर जब मैं उत्तर देने को उद्दत हुआ तो उसी समय इंस्पैक्टर सीमा ने प्रवेश किया. सैल्यूट करने के बाद मेरे आने का सबब और सारा केस समझाने लगी. सारी बात सुनने के बाद “अच्छा” कहा और अपनी सीट पर र्बैठ गया, फिर पूछा, “मैडम की क्या हालत है?”

इंस्पैक्टर सीमा ने जवाब दिया, “सर, थोड़ी देर पहले अस्पताल में मेरी डाक्टर से बात हुई थी. उन्होंने कहा कि मैडम खतरे से बाहर हैं किंतु सकते व सदमे में हैं.”

“सदमे और सकते में तो रहेंगी. इतनी स्नेहशील और सहृदय महिला को कोई अपना मारता है तो वे महीनों क्या, सालों तक सदमे से उभर नहीं पाएंगी,” एसीपी सिद्धार्थ ने कहा, “इंस्पैक्टर किसी को मैडम की स्टेटमैंट लेने भेजा?”

‘‘जी, सर. इंस्पैक्टर रोजी इसी काम के लिए अस्पताल में है. अभी तक लौटी नहीं.”

“पता करो, स्टेटमैंट ली या नहीं. एक बार स्टेटमैंट और मैडिकल रिपोर्ट आ जाए, फिर देखता हूं सब को. सर, छोडूंगा नहीं. देख लेना, सर.”

इतने में बाहर शोर हुआ. इंस्पैक्टर अमिता जोरजोर से आदेश दे रही थी, ‘‘इस को इस की बेटी के साथ बंद कर दो. इस की भाभी को भी इसी के साथ. इन श्रीमान को एसीपी साहब के कमरे में ले आओ. ए, रोनाधोना बंद करो, नहीं तो सारा रोना घुसेड़ दूंगी जहां से निकल रहा है. कुतिया कहीं की.’’

थोड़ी देर बाद षोर बंद हुआ. इंस्पैक्टर अमिता मेरे समधी ईश्वर चंद्र को ले कर केबिन में घुसी. सिद्धार्थ ने एक बार मुझे देखा, फिर ईश्वर चंद्र को. इस के बाद इंस्पैक्टर अमिता से कहा, ‘इन श्रीमानजी की कुछ सेवापानी की या नहीं? जाओ, पहले सेवापानी कर के लाओ. फिर देखेंगे कि क्या करना है.”

‘‘नहीं सिद्धार्थ, नहीं, प्लीज. मैं पुलिस की सेवापानी को बखूबी समझता हूं. मैं अपनी मंशा आप को समझा चुका हूं.”

“देखो, अपने इन सभ्य संमधी साहब को. आप की बेटी के पागलपन के कारण इन की पत्नी अस्पताल में है. फिर भी ये आप को बचाना चाहते हैं.”

सर, मुझे याद आ रहा है, 2 महीने पहले ये यह वूमेन सैल में आए थे. शिकायत की थी कि ससुराल में इन की बेटी को तंग किया जा रहा है. इन की बेटी को जान का खतरा है. शायद फिनायल की गोली भी खा ली थी. इंस्पैक्टर रजनी को तब इंक्वायरी के लिए भेजा गया था. मैं उस इंक्वायरी की रिपोर्ट मंगवा लेती हूं.’’

“जल्दी मंगवाओ. तब तक इन ईश्वर चंद्र को लौकअप में बंद कर दो. यदि चूंचां करें तो सेवापानी करने से पीछे मत हटना, साले की.”

मैं भी उठने लगा तो एसीपी सिद्धार्थ ने कहा, “आप नहीं, सर. अभी चाय आ रही है, इकट्ठे बैठ कर चाय पिएंगे. तकरीबन 2 साल बाद मिले हैं. मैं आईपीएस की ट्रेनिंग पर जा रहा था तो आप का आशीर्वाद लेने आया था. फिर पुलिस की झंझटों में ऐसे पड़ा कि आप से मिलने का समय ही नहीं मिला.”

“मैं आप की सक्रियता और व्यस्तता समझता हूं एसीपी साहब.”

“नहीं सर, आप के मुख से सिद्धार्थ ही अच्छा लगता है, एसीपी साहब नहीं.”

मैं कुछ कहने को हुआ कि इतने में चाय आ गई. दोनों चाय पीने लगे. इंस्पैक्टर अमिता इंस्पैक्टर रजनी की इंक्वायरी रिपोर्ट ले कर हाजिर हुई. जैसेजैसे सिद्धार्थ रिपोर्ट पढ़ता गया, उस के चेहरे का रंग बदलता गया. चेहरे और आंखों में आक्रोश व क्रोध स्पष्ट दिख रहा था. तभी उस ने उतेजित हो कर कहा, “बुलाओ उन सब को मेरे केबिन में.”

‘‘सर, अभी लाई,” इंस्पैक्टर जल्दी से बाहर चली गई. थोड़ी देर बाद सभी केबिन में थे. पार्वती ने एक बार बड़ी निरीह नजर से मेरी ओर देखा. मुझे ऐसा लगा, वह सचमुच अपने किए पर पछता रही है. उस की भाभी भी एक तरफ सिर झुकाए खड़ी थी. मैं जान नहीं पाया कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है? मां की आंखों में आक्रोश व क्रोध था. ईश्वर चंद्र भी सिर झुकाए खड़े थे. इंस्पैक्टर ने 2 फाइलें सिद्धार्थ के सामने रख दीं.

“पार्वती की मैडिकल रिपोर्ट और स्टेटमैंट इसी में लगी है.’’

“जी, सर.”

“ओके. पार्वती, आप को क्या कहना है?”

‘‘सर, मेरी सरासर गलती है. मैं माफी के लायक भी नहीं हूं. मैं किसी के बहकावे में आ गई थी.’’

“और आप को बहकाने वाली आप की मां थी, क्यों?”

पार्वती ने एक बार अपनी मां की ओर देखा लेकिन कहा कुछ नहीं.

“नहीं सर, यह झूठ है. मैं ने किसी को नहीं बहकाया,” पार्वती की मां ने कहना शुरू किया था.

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