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Anupamaa: अनुज की जाएगी याददाश्त! तोषु को धमकी देगी अनुपमा

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है, जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुज की एक्सिडेंट के बाद अनुपमा हालात को सुधारने की कोशिश कर रही है. तो अब तोषु को लेकर नया बखेड़ा खड़ा होने वाला है. अनुपमा की जिंदगी में एक के बाद एक मुसीबत दस्तक दे रही है. अनुपमा चाहकर भी इन परेशानियों से उबर नहीं पा रही है.

 

पिता बनने के बाद तोषु अपनी बेटी को गले लगाता है. जिसके बाद राखी तोषु की क्लास लगाती है. राखी दावा करती है कि तोषु का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है. राखी तोषु को अकेले में लेकर धमकी देती है. इसी बीच अनुपमा वहां पहुंच जाएगी.

 

शो में आप देखेंगे कि अनुपमा को देखते ही राखी और तोषु चुप हो जाएंगे. अनुपमा राखी से पूरी बात जानने की कोशिश करेगी. राखी अनुपमा को कुछ नहीं बताएगी. राखी के जाने के बाद अनुपमा तोषु से बात करेगी. अनुपमा तोषु को अपनी कसम देगी कि वह उसे सच-सच बताएं कि आखिर क्या हुआ है?

 

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अनुपमा तोषु से सच उगलवाने की कोशिश करेगी. तोषु कहेगा कि वो अपनी बेटी का पूरा ख्याल रखेगा. तोषु की हरकतें देखकर अनुपमा चिढ़ जाएगी. अनुपमा तोषु को धमकी देगी. अनुपमा कहेगी कि अगर तोषु ने कुछ गलत किया तो वो उसको पूरी तरह से बर्बाद कर देगी.

 

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रिपोर्ट के अनुसार, शो में दिखाया जाएगा कि अनुज अचानक ही बीमार पड़ने वाला है. वह रात को सोते समय बिस्तर से गिर जाएगा. अनुपमा अनुज के गिरते ही चिल्लाएगी. परिवार के लोग मिलकर अनुज को उठाएंगे. होश आने के बाद अनुज किंजल की डिलीवरी के बारे में पूछेगा. अनुपमा को एहसास होगा कि अनुज की याददास्त चली गई है.

GHKKPM: विराट-पाखी को साथ देखकर सई होगी हर्ट, होगी बड़ी गलतफहमी

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ लगातार बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो का ट्रैक इन दिनों दर्शकों को खूब पसंद आ रहा है. शो का अपकमिंग एपिसोड कॉफी दिलचस्प होने वाला है. शो में जल्द ही सई और विराट का आमना-सामना होगा. आइए बताते हैं, शो के अपकमिंग एपिसोड में…

शो में आप देखेंगे कि पाखी विनायक के इलाज के लिए मालदीव जाने का प्लान कैंसिल कर देती है. वह चाहती है पहले उसके बेटे का इलाज हो जाए. पाखी के इस बात से घर के सभी लोग खुश हो जाते हैं. विराट बताता है कि वीनू की डॉक्टर ने बताया है कि उसे कणकवली वाली डॉक्टर के इलाज से फायदा मिल रहा है. इसलिए उन दोनों ने फैसला लिया है कि पहले वीनू का इलाज करवाएंगे.

 

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तो वहीं दूसरी तरफ विराट विनायक को सई के पास इलाज के लिए लेकर जाएगा. विनायक इस बात से खुश हो जाएगा कि उसे सवी और डॉक्टर आंटी से मिलने का मौका मिलेगा. शो में आप देखेंगे कि विराट विनायक को लेकर सवि के पास जा रहा है. रास्ते में वह वीनू से पता पूछने के लिए कहेगा. विनायक मोबाइल फोन को स्पीकर पर डाल देगा और सई से पता पूछेगा. जब सई बोलेगी कि मैं डॉक्टर सई बोल रही हूं. ये सुनकर विराट चौंक जाएगा.

 

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खबरों के मुताबिक सई विराट और पाखी को पार्क में पति-पत्नी की तरह प्यार में देखेगी और हर्ट हो जाएगी. सई और विराट के बीच बड़ी गलतफहमी होगी.

 

त्यौहार 2022: बदली परिपाटी- मयंक को मिली अपनी करनी की सजा 

लगता है रात में जतिन ने फिर बहू पर हाथ उठाया. मुझ से यह बात बरदाश्त नहीं होती. बहू की सूजी आंखें और शरीर पर पड़े नीले निशान देख कर मेरा दिल कराह उठता है. मैं कसमसा उठता हूं, पर कुछ कर नहीं पाता. काश, पूजा होती और अपने बेटे को समझाती पर पूजा को तो मैं ने अपनी ही गलतियों से खो दिया है.

यह सोचतेसोचते मेरे दिमाग की नसें फटने लगी हैं. मैं अपनेआप से भाग जाना चाहता हूं. लेकिन नहीं भाग सकता, क्योंकि नियति द्वारा मेरे लिए सजा तय की गई है कि मैं पछतावे की आग में धीरेधीरे जलूं.

‘‘अंतरा, मैं बाजार की तरफ जा रहा हूं, कुछ मंगाना तो नहीं.’’

‘‘नहीं पापाजी, आप हो आइए.’’ मैं चल पड़ा यह सोच कर कि कुछ देर बाहर निकलने से शायद मेरा मन थोड़ा बहल जाए. लेकिन बाहर निकलते ही मेरा मन अतीत के गलियारों में भटकने लगा…

‘मुझ से जबान लड़ाती है,’ एक भद्दी सी गाली दे कर मैं ने उस पर अपना क्रोध बरसा दिया.

‘आह…प्लीज मत मारो मुझे, मेरे बच्चे को लग जाएगी, दया करो. मैं ने आखिर किया क्या है?’ उस ने झुक कर अपनी पीठ पर मेरा वार सहन करते हुए कहा.

कोख में पल रहे बच्चे पर वह आंच नहीं आने देना चाहती थी. लेकिन मैं कम क्रूर नहीं था. बालों से पकड़ते हुए उसे घसीट कर हौल में ले आया और अपनी बैल्ट निकाल ली. बैल्ट का पहला वार होते ही जोरों की चीख खामोशी में तबदील होती चली गई. वह बेहोश हो चुकी थी.

‘पागल हो गया क्या, अरे, उस के पेट में तेरी औलाद है. अगर उसे कुछ हो गया तो?’ मां किसी बहाने से उसे मेरे गुस्से से बचाना चाहती थीं.

‘कह देना इस से, भाड़े पर लड़कियां लाऊं या बियर बार जाऊं, यह मेरी अम्मा बनने की कोशिश न करे वरना अगली बार जान से मार दूंगा,’ कहते हुए मैं ने 2 साल के नन्हे जतिन को धक्का दिया, जो अपनी मां को मार खाते देख सहमा हुआ सा एक तरफ खड़ा था. फिर गाड़ी उठाई और निकल पड़ा अपनी आवारगी की राह.

उस पूरी रात मैं नशे में चूर रहा. सुबह के 6 बज रहे होंगे कि पापा के एक कौल ने मेरी शराब का सारा नशा उतार दिया. ‘कहां है तू, कब से फोन लगा रहा हूं. पूजा ने फांसी लगा ली है. तुरंत आ.’ जैसेतैसे घर पहुंचा तो हताश पापा सिर पर हाथ धरे अंदर सीढि़यों पर बैठे थे और मां नन्हे जतिन को चुप कराने की बेहिसाब कोशिशें कर रही थीं.

अपने बैडरूम का नजारा देख मेरी सांसें रुक सी गईं. बेजान पूजा पंखे से लटकी हुई थी. मुझे काटो तो खून नहीं. मांपापा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. पूजा ने अपने साथ अपनी कोख में पल रहे मेरे अंश को भी खत्म कर लिया था. पर इतने खौफनाक माहौल में भी मेरा शातिर दिमाग काम कर रहा था. इधरउधर खूब ढूंढ़ने के बाद भी पूजा की लिखी कोई आखिरी चिट्ठी मुझे नहीं मिली.

पुलिस को देने के लिए हम ने एक ही बयान को बारबार दोहराया कि मां की बीमारी के चलते उसे मायके जाने से मना किया तो जिद व गुस्से में आ कर उस ने आत्महत्या कर ली. वैसे भी मेरी मां का सीधापन पूरी कालोनी में मशहूर था, जिस का फायदा मुझे इस केस में बहुत मिला. कुछ दिन मुझे जरूर लौकअप में रहना पड़ा, लेकिन बाद में सब को देदिला कर इस मामले को खत्म करने में हम ने सफलता पाई, क्योंकि पूजा के मायके में उस की खैरखबर लेने वाला एक शराबी भाई ही था जिसे अपनी बहन को इंसाफ दिलाने में कोई खास रुचि न थी.

थोड़ी परेशानी से ही सही, लेकिन 8-10 महीने में केस रफादफा हो गया पर मेरे जैसा आशिकमिजाज व्यक्ति ऐसे समय में भी कहां चुप बैठने वाला था. इस बीच मेरी रासलीला मेरे एक दोस्त की बहन लिली से शुरू हो गई. लिली का साथ मुझे खूब भाने लगा, क्योंकि वह भी मेरी तरह बिंदास थी. पूजा की मौत के डेढ़ साल के भीतर ही हम ने शादी कर ली. वह तो शादी के बाद पता चला कि मैं सेर, तो वह सवा सेर है. शादी होते ही उस ने मुझे सीधे अपनी अंटी में ले लिया.

बदतमीजी, आवारगी, बदचलनी आदि गुणों में वह मुझ से कहीं बढ़ कर निकली. मेरी परेशानियों की शुरुआत उसी दिन हो गई जिस दिन मैं ने पूजा समझ कर उस पर पहली बार हाथ उठाया. मेरे उठे हाथ को हवा में ही थाम उस ने ऐसा मरोड़ा कि मेरे मुंह से आह निकल गई. उस के बाद मैं कभी उस पर हाथ उठाने की हिम्मत न कर पाया.

घर के बाहर बनी पुलिया पर आसपास के आवारा लड़कों के साथ बैठी वह सिगरेट के कश लगाती जबतब कालोनी के लोगों को नजर आती. अपने दोस्तों के साथ कार में बाहर घूमने जाना उस का प्रिय शगल था. रात को वह शराब के नशे में धुत हो घर आती और सो जाती. मैं ने उसे अपने झांसे में लेने की कई नाकाम कोशिशें कीं, लेकिन हर बार उस ने मेरे वार का ऐसा प्रतिवार किया कि मैं बौखला गया. उस ने साफ शब्दों में मुझे चेतावनी दी कि अगर मैं ने उस से उलझने की कोशिश की तो वह मुझे मरवा देगी या ऐसा फंसाएगी कि मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं उस के गदर से तभी तक बचा रहता जब तक कि उस के कामों में हस्तक्षेप न करता.

तो इस तरह प्रकृति के न्याय के तहत मैं ने जल्द ही वह काटा, जो बोया था. घर की पूरी सत्ता पर मेरी जगह वह काबिज हो चुकी थी. शादी के सालभर बाद ही मुझ पर दबाव बना कर उस ने पापा से हमारे घर को भी अपने नाम करवा लिया. और फिर हमारा मकान बेच कर उस ने पौश कालोनी में एक फ्लैट खरीदा और मुझे व जतिन को अपने साथ ले गई. मेरे मम्मीपापा मेरी बहन यानी अपनी बेटी के घर में रहने को मजबूर थे. यह सब मेरी ही कारगुजारियों की अति थी जो आज सबकुछ मेरे हाथ से मुट्ठी से निकली रेत की भांति फिसल चुका था.

अपना मकान बिकने से हैरानपरेशान पापा इस सदमे को न सह पाने के कारण हार्टअटैक के शिकार हो महीनेभर में ही चल बसे. उन के जाने के बाद मेरी मां बिलकुल अकेली हो गईं. प्रकृति मेरे कर्मों की इतनी जल्दी और ऐसी सजा देगी, मुझे मालूम न था.

नए घर में शिफ्ट होने के बाद भी उस के क्रियाकलाप में कोई खास अंतर नहीं आया. इस बीच 5 साल के हो चुके जतिन को उस ने पूरी तरह अपने अधिकार में ले लिया. उस के सान्निध्य में पलताबढ़ता जतिन भी उस के नक्शेकदम पर चल पड़ा. पढ़ाई-लिखाई से उस का खास वास्ता था नहीं. जैसेतैसे 12वीं कर उस ने छोटामोटा बिजनैस कर लिया और अपनी जिंदगी पूरी तरह से उसी के हवाले कर दी. उन दोनों के सामने मेरी हैसियत वैसे भी कुछ नहीं थी. किसी समय अपनी मनमरजी का मालिक मैं आजकल उन के हाथ की कठपुतली बन, बस, उन के रहमोकरम पर जिंदा था.

इसी रफ्तार से जिंदगी के कुछ और वर्ष बीत गए. इस बीच लिली एक भयानक बीमारी एड्स की चपेट में आ गई और अपनेआप में गुमसुम पड़ी रहने लगी. अब घर की सत्ता मेरे बेटे जतिन के हाथों में आ गई. हालांकि इस बदलाव का मेरे लिए कोई खास मतलब नहीं था. हां, जतिन की शादी होने पर उस की पत्नी अंतरा के आने से अलबत्ता मुझे कुछ राहत जरूर हो गई, क्योंकि मेरी बहू भी पूजा जैसी ही एक नेकदिल इंसान थी.

वह लिली की सेवा जीजान से करती और जतिन को खुश करने की पूरी कोशिश भी. पर जिस की रगों में मेरे जैसे गिरे इंसान का लहू बह रहा हो, उसे भला किसी की अच्छाई की कीमत का क्या पता चलता. सालभर पहले लिली ने अपनी आखिरी सांस ली. उस वक्त सच में मन से जैसे एक बोझ उतर गया और मेरा जीवन थोड़ा आसान हो गया.

इस बीच, जतिन के अत्याचार अंतरा के प्रति बढ़ते जा रहे थे. लगभग रोज रात में जतिन उसे पीटता और हर सुबह अपने चेहरे व शरीर की सूजन छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए वह फिर से अपने काम पर लग जाती. कल रात भी जतिन ने उस पर अपना गुस्सा निकाला था.

मुझे समझ नहीं आता था कि आखिर वह ये सब क्यों सहती है, क्यों नहीं वह जतिन को मुंहतोड़ जवाब देती, आखिर उस की क्या मजबूरी है? तमाम बातें मेरे दिमाग में लगातार चलतीं. मेरा मन उस के लिए इसलिए भी परेशान रहता क्योंकि इतना सबकुछ सह कर भी वह मेरा बहुत ध्यान रखती थी. कभीकभी मैं सोच में पड़ जाता कि आखिर औरत एक ही समय में इतनी मजबूत और मजबूर कैसे हो सकती है?

ऐसे वक्त पर मुझे पूजा की बहुतयाद आती. अपने 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन में मैं ने एक पल भी उसे सुकून का नहीं दिया. शादी की पहली रात जब सजी हुई वह छुईमुई सी मेरे कमरे में दाखिल हुई थी, तो मैं ने पलभर में उसे बिस्तर पर घसीट कर उस के शरीर से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत की थी.

काश, उस वक्त उस के रूपसौंदर्य को प्यारभरी नजरों से कुछ देर निहारा होता, तारीफ के दो बोल बोले होते तो वह खुशी से अपना सर्वस्व मुझे सौंप देती. उस घर में आखिर वह मेरे लिए ही तो आई थी. पर मेरे लिए तो प्यार की परिभाषा शारीरिक भूख से ही हो कर गुजरती थी. उस दौरान निकली उस की दर्दभरी चीखों को मैं ने अपनी जीत समझ कर उस का मुंह अपने हाथों से दबा कर अपनी मनमानी की थी. वह रातों में मेरे दिल बहलाने का साधनमात्र थी. और फिर जब वह गर्भवती हुई तो मैं दूसरों के साथ इश्क लड़ाने लगा, क्योंकि वह मुझे वह सुख नहीं दे पा रही थी. वह मेरे लिए बेकार हो चुकी थी. इसलिए मुझे ऐसा करने का हक था, आखिर मैं मर्द जो था. मेरी इस सोच ने मुझे कभी इंसान नहीं बनने दिया.

हे प्रकृति, मुझे थोड़ी सी तो सद्बुद्धि देती. मैं ने उसे चैन से एक सांस न लेने दी. अपनी गंदी हरकतों से सदा उस का दिल दुखाया. उस की जिंदगी को मैं ने वक्त से पहले खत्म कर दिया.

उस दिन उस ने आत्महत्या भी तो मेरे कारण ही की थी, क्योंकि उसे मेरे नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया था और उस की गलती सिर्फ इतनी थी कि इस बारे में मुझ से पूछ बैठी थी. बदले में मैं ने जीभर कर उस की धुनाई की थी. ये सब पुरानी यादें दिमाग में घूमती रहीं और कब मैं घर लौट आया पता ही नहीं चला.

‘‘पापा, जब आप मार्केट गए थे. उस वक्त बूआजी आई थीं. थोड़ी देर बैठीं, फिर आप के लिए यह लिफाफा दे कर चली गईं.’’ बाजार से आते ही अंतरा ने मुझे एक लिफाफा पकड़ाया.

‘‘ठीक है बेटा,’’ मैं ने लिफाफा खोला. उस में एक छोटी सी चिट और करीने से तह किया हुआ एक पन्ना रखा था. चिट पर लिखा था, ‘‘मां के जाने के सालों बाद आज उन की पुरानी संदूकची खोली तो यह खत उस में मिला. तुम्हारे नाम का है, सो तुम्हें देने आई थी.’’ बहन की लिखावट थी. सालों पहले मुझे यह खत किस ने लिखा होगा, यह सोचते हुए कांपते हाथों से मैं ने खत पढ़ना शुरू किया.

‘‘प्रिय मयंक,

‘‘वैसे तो तुम ने मुझे कई बार मारा है, पर मैं हमेशा यह सोच कर सब सहती चली गई कि जैसे भी हो, तुम मेरे तो हो. पर कल जब तुम्हारे इतने सारे नाजायज संबंधों का पता चला तो मेरे धैर्य का बांध टूट गया. हर रात तुम मेरे शरीर से खेलते रहे, हर दिन मुझ पर हाथ उठाते रहे. लेकिन मन में एक संतोष था कि इस दुखभरी जिंदगी में भी एक रिश्ता तो कम से कम मेरे पास है. लेकिन जब पता चला कि यह रिश्ता, रिश्ता न हो कर एक कलंक है, तो इस कलंक के साथ मैं नहीं जी सकती. सोचती थी, कभी तो तुम्हारे दिल में अपने लिए प्यार जगा लूंगी. लेकिन अब सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं. मायके में भी तो कोई नहीं है, जिसे मेरे जीनेमरने से कोई सरोकार हो. मैं अपनी व्यथा न ही किसी से बांट सकती हूं और न ही उसे सह पा रही हूं. तुम्हीं बताओ फिर कैसे जिऊं. मेरे बाद मेरे बच्चों की दुर्दशा न हो, इसलिए अपनी कोख का अंश अपने साथ लिए जा रही हूं. मासूम जतिन को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. खुश रहो तुम, कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना. जाने से पहले एक बात तुम से जरूर कहना चाहूंगी. ‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं.’

‘‘तुम्हारी चाहत के इंतजार में पलपल मरती…तुम्हारी पूजा.’’

पूरा पत्र आंसुओं से गीला हो चुका था, जी चाह रहा था कि मैं चिल्लाचिल्ला कर रो पड़ूं. ओह, पूजा माफ कर दे मुझे. मैं इंसान कहलाने के काबिल नहीं, तेरे प्यार के काबिल भला क्या बनूंगा. हे प्रकृति, मेरी पूजा को लौटा दे मुझे, मैं उस के पैर पकड़ कर अपने गुनाहों की माफी तो मांग लूं उस से. लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत.

भावनाओं का ज्वार थमा तो कुछ हलका महसूस हुआ. शायद मां को पूजा का यह सुसाइड लैटर मिला हो और मुझे बचाने की खातिर यह पत्र उन्होंने अपने पास छिपा कर रख लिया हो. यह उन्हीं के प्यार का साया तो था कि इतना घिनौना जुर्म करने के बाद भी मैं बच गया. उन्होंने मुझे कालकोठरी की सजा से तो बचा लिया, परंतु मेरे कर्मों की सजा तो नियति से मुझे मिलनी ही थी और वह किसी भी बहाने से मुझे मिल कर रही.

पर अब सबकुछ भुला कर पूजा की वही पंक्ति मेरे मन में बारबार आ रही थी, ‘‘कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना.’’ अंतरा के मायके में भी तो उस की बुजुर्ग मां के अलावा कोई नहीं है. हो सकता है इसलिए वह भी पूजा की तरह मजबूर हो. पर अब मैं मजबूर नहीं बनूंगा…कुछ सोच कर मैं उठ खड़ा हुआ. अंतरा को आवाज दी.

‘‘जी पापा,’’ कहते हुए अंतरा मेरे सामने मौजूद थी. बहुत देर तक मैं उसे सबकुछ समझाता रहा और वह आंखें फाड़फाड़ कर मुझे हैरत से देखती रही. शायद उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जतिन का पिता होने के बावजूद मैं उस का दर्द कैसे महसूस कर रहा हूं या उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि अचानक मैं यह क्या और क्यों कर रहा हूं, क्योंकि वह मासूम तो मेरी हकीकत से हमेशा अनजान थी.

पास के पुलिस स्टेशन पहुंच कर मैंने अपनी बहू पर हो रहे अत्याचार की धारा के अंतर्गत बेटे जतिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. मेरे कहने पर अंतरा ने अपने शरीर पर जख्मों के निशान उन्हें दिखाए, जिस से केस पुख्ता हो गया. थोड़ा वक्त लगा, लेकिन हम ने अपना काम कर दिया था. आगे का काम पुलिस करेगी. जतिन को सही राह पर लाने का एक यही तरीका मुझे कारगर लगा, क्योंकि सिर्फ मेरे समझाने भर से बात उस के पल्ले नहीं पड़ेगी. पुलिस, कानून और सजा का खौफ ही अब उसे सही रास्ते पर ला सकता है.

पूजा के चिट्ठी में कहे शब्दों के अनुसार, मैं उसे रिश्तों की इज्जत करना सिखाऊंगा और एक अच्छा इंसान बनाऊंगा, ताकि फिर कोई पूजा किसी मयंक के अत्याचारों से त्रस्त हो कर आत्महत्या करने को मजबूर न हो. औटो में वापसी के समय अंतरा के सिर पर मैं ने स्नेह से हाथ फेरा. उस की आंखों में खौफ की जगह अब सुकून नजर आ रहा था. यह देख मैं ने राहत की सांस ली.

मेरे टीचर गलत हरकत करते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 10वीं जमात में पढ़ती हूं. मेरे ट्यूशन के सर हमेशा मेरे अंगों को छूने की कोशिश करते हैं और अकसर वे इस में कामयाब हो जाते हैं. वे मुझसे ‘आई लव यू’ भी कहते हैं. यह बात मैं अपने घर वालों से कैसे कहूं?

जवाब

आप को यह बात फौरन अपनी मम्मी को खुल कर बतानी चाहिए. वे आप के पापा से सलाह कर के उस टीचर की खबर ले लेंगी. मम्मी से कह दें कि आप उस टीचर से कतई नहीं पढ़ेंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

राजनीतिक मेहनत

राजनीति में भी उसी तरह रातदिन मेहनत की जरूरत है जैसे किसी किराने की दुकान को सफल बनाने में होती है. राजनीति जागीरदारी नहीं होती जिस में पिछले पुरखों की कमाई पर मौजमस्ती या सिर्फ आराम किया जा सके.

शिवसेना के टूटने की भारी वजह में से एक है कि उद्धव ठाकरे का आलसीपन, जो न ज्यादा दौरों पर गए और शायद अपने मंत्रालय के दफ्तर में तो कभी गए ही नहीं. वे पिता की तरह आरामकुरसी पर बैठ कर राज करना चाह रहे थे. उन्हें एकनाथ शिंदे ने जता दिया कि यह जनता को तो दूर, विधायकों और सांसदों को संभालने के लिए भी काफी नहीं है. नतीजा सामने है.

मायावती भी एक ऐसा ही उदाहरण हैं जिन्होंने न केवल बहुजन समाज पार्टी को मरने दिया बल्कि दलितों के हकों के रास्तों को बेच खाया भी. वहां अब ऊंची जातियों की फर्राटेदार बड़ी गाडिय़ां दौड़ रही हैं.

कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, प्रजा समाजवादी पार्टी, अकाली दल और कुछ हद तक कांग्रेस का भी यही हाल है कि उन के आज के नए नेता सोच रहे हैं कि क्योंकि उन का इतिहास और नाम बड़ा है, इसलिए लोग अपनेआप उन की ओर आकर्षित होंगे.

आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, वाई एस रेड्डी की तेलगांना प्रजा समिति अगर जिंदा हैं और लगातार राज में हैं तो इसलिए कि इन के नेता हर समय जनता के बीच मौजूद दिखते हैं.

भारतीय जनता पार्टी की सफलता के पीछे भी यही कहानी है. पिछले 70-80 सालों से पौराणिक परंपरा को फिर से लागू करने के लिए लाखों पंडोंपुजारियों और उन के भक्तों व ऊंची जातियों की वर्णव्यवस्था के समर्थकों ने रातदिन मेहनत की. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सुबह ही शाखाएं लगाना अपनेआप में आसान नहीं है जिस के लिए लाखों लोगों को घरों से निकाल कर पास के बाग में जमा किया जाता है. राज आने पर भी यह काम बंद नहीं हुआ. हां, कम जरूर हो गया है क्योंकि जो लोग त्याग करने के लिए जमा किए जाते रहे हैं आज मंदिरों, आश्रमों, स्कूलों, पार्टी दफ्तरों, कांवड़ यात्राओं, रामनवमी यात्राओं, तीर्थयात्राओं, गौरक्षक दलों में राज करने का मजा ले रहे हैं.

राहुल गांधी कुछ दिन कुछ सक्रिय होते हैं और फिर कहीं छुट्टी पर चले जाते हैं. सोनिया, प्रियंका और राहुल कांग्रेस की जनता के बीच रहने की परंपरा को कुछ हद तक कायम रख रहे हैं पर पार्टी के दूसरे नेता घरों में बैठ कर सत्तासुख भोगने के आदी हो चुके हैं.

भारतीय जनता पार्टी रातदिन सोनिया और राहुल के पीछे इसीलिए पड़ी रहती है कि वह समझती है कि इन्होंने कैसे 1970 से सत्ता खो कर 1981 में पा ली, 1900 में खो कर 1991 में पा ली, 1996 में खो कर 2004 में फिर छीन ली.

आज भी राहुत गांधी को घेरने, सोनिया को ईडी में उलझाए रखने की वजह यह है कि भाजपाई सत्ताधारी इन से डरते हैं कि कहीं ये सरकार से नाराज जनता को अपने झंडे के नीचे जमा न कर लें.

भारतीय जनता पार्टी का हाल अब उस बाबरी मसजिद का सा है जो ऊंची खड़ी तो है पर उस के टिकने का भरोसा नहीं. केवल 2 जनों की मनमरजी से चल रही पार्टी में नए नेता पैदा नहीं हो रहे. ये दोनों जनता के बीच नहीं जा रहे पर इन के प्यादे लाखों की गिनती में इन का काम कर रहे हैं. जैसे बाबरी मसजिद मुसलिम भक्तों की सुरक्षा का भाव न बचा सकी, लगता है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने धर्मभक्तों की आस्था को आर्थिक संकटों पूरी तरह निकाल नहीं पाएगी. भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में बहुत फर्क नहीं है जिन के नेताओं के दर्शन टीवी या मंच पर होते हैं, अपनों के बीच नहीं.

एरोल मस्क का स्पर्म चाहती हैं महिलाएं, सौतेली बेटी से था अफेयर

टेक्नोलौजी की दुनिया के अरबपति एलन मस्क के 76 वर्षीय इंजीनियर पिता एरोल मस्क सुर्खियों में तब आ गए, जब उन्होंने अपनी सौतेली बेटी के साथ अफेयर की बात कुबूलते हुए उस के दूसरे बच्चे का पिता होने की बात का खुलासा कर दिया. फिर तो उन के स्पर्म की मांग की झड़ी के साथसाथ डिजाइनर बेबी की भी चर्चा गर्म हो गई.

एलन मस्क अरबपति दुनिया का वह नाम है, जो हमेशा टेक्नोलौजी और साइंस जगत में नए प्रयोग करने की वजह से चर्चा में बने रहते हैं. कुल 9 बच्चों के पिता एलन मस्क की पर्सनल लाइफ भी सुर्खियां बटोरने में कुछ कम नहीं है, कारण उन की एक संतान ट्रांसजेंडर है.

पिछले दिनों उन की चर्चा उन के इंजीनियर पिता 76 वर्षीय एरोल मस्क को ले कर हुई, जिन से वह नफरत करते हैं. नफरत ऐसी कि उन्हें एलन ने यहां तक कह दिया था, ‘‘मेरे पिता शैतान हैं.’’  कारण उन के अफेयर सौतेली बेटी से रहे हैं. यह बात एलन ने तब कही थी, जब उन्हें पता चला कि पिता एरोल मस्क ही उस की सौतेली बहन जाना के बच्चों के पिता हैं. हालांकि इस बारे में जब उस के बच्चों की शक्ल पिता एरोल और उस से मिलतीजुलती नजर आई, तभी उन्हें संदेह हो गया था. किंतु इस बारे में कुछ भी कहने से कतराते रहे थे.

लेकिन एक दिन उन्होंने इस का खुलासा करते हुए ब्रिटिश वेबसाइट ‘द सन’ को एक इंटरव्यू में कहा था कि 3 साल पहले सौतेली बेटी जाना से जन्मी बेटी अनप्लांड थी. इस से पहले भी वह एक बेटे को जन्म दे चुकी है. इसी के साथ एरोल ने स्वीकारा कि वह अपनी सौतेली बेटी जाना बेजुइडेनहाट के बेटे और बेटी के पिता हैं. इस तरह दोनों बच्चे टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क के भाईबहन ही हुए.

यही नहीं एरोल ने चौंकाने वाली एक बात और कही कि हम धरती पर केवल एक चीज बच्चे पैदा करने के लिए ही आए हैं. उन का यह कहना था कि संभ्रांत महिलाएं उन के स्पर्म की मांग कर बैठीं. उन में भारत की महिलाएं भी शामिल हैं.

उन महिलाओं को लगता है कि एरोल के स्पर्म से पैदा होने वाला बच्चा एक डिजाइर बेबी होगा, जो जितना स्वस्थ और बुद्धिमान होगा, उतना ही वह धनवान भी होगा. आने वाले दिनों में उस में एलन मस्क जैसे गुण विकसित होने में कोई कमी नहीं रहेगी.

यह तो आने वाले वक्त की बात होगी, जिस का अनुमान लगाया जा रहा है. किंतु अपनी दूसरी पत्नी हीड के परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में रह रहे एरोल मस्क को जब अपने बेटे एलन मस्क की नाराजगी के बारे में मालूम हुआ, तब उन्होंने अपनी मजबूरी दर्शाते हुए अपना दर्द कुछ इस तरह से बयां किया—

‘‘मैं इसे एक गलती नहीं कहूंगा, क्योंकि कोई भी बच्चा यह नहीं सुनना चाहेगा कि वो एक गलती से पैदा हुआ. आप को समझना होगा कि मैं 20 साल से अकेला था. आखिर मैं भी आदमी हूं, जो गलतियां करता है.’’

हीड की बेटी ही 3 साल पहले एरोल के बच्चे की मां बनी थी, जिसे छिपा कर रखा गया था. एलन के पिता एरोल मस्क साउथ अफ्रीका में इंजीनियर हैं. उन के मुताबिक दूसरा बच्चा भी अनप्लांड था, लेकिन उस के पैदा होने के बाद से ही वह 35 साल की जाना के साथ रह रहे हैं.

उन के उस सीक्रेट बेबी का जन्म 2018 में हुआ था. तब जाना ने अपने 10 महीने के बच्चे के साथ सितंबर 2018 में फेसबुक पर अपनी फोटो शेयर की थी. उस की शक्ल बिलकुल एलन मस्क से मिलती थी. इसे ले कर लोगों को संदेह हुआ, किंतु लोगों ने उन के रुतबे की वजह से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई थी.

एलन मस्क की सौतेली बहन जाना बेजुइडेनहाट की उम्र महज 4 साल थी, जब एरोल मस्क ने पहली पत्नी मेय हेल्डमेन से शादी तोड़ कर जाना की मां हीड बेजुइडेनहाट से दूसरी शादी की थी. उस वक्त हीड 25 साल की थी और एरोल 45 वर्ष के थे. एरोल और मेय हेल्डमेन के 3 बच्चे एलन, टोस्का और किंबल हैं. एरोल और हीड से भी 2 बच्चे हैं एलेक्जेंड्रा एली और एशा रोज मस्क.

यह जानते हुए कि जाना हीड के पहले पति की बेटी हैं, एरोल ने उस के साथ अफेयर किया. नतीजा साल 2017 में एरोल के बेटे इलियट रश मस्क का जन्म हुआ. उस के बाद 2018 में बेटी का जन्म हुआ.

एलन को अपने पिता की करतूत की जानकारी पहली बार 2017 में ही तब हो गई थी, जब मालूम हुआ था कि अविवाहित जाना पिता एरोल के बच्चे की ही मां बनने वाली हैं.

उस के बाद से ही एलन के संबंध अपने पिता से बिगड़ गए थे, जबकि एरोल की दूसरी पत्नी हीड बेजुइडेनहाट ने बच्चे के जन्म के बाद भी उस के पिता की पहचान छिपा ली थी. उन्हें डर था कि इस खबर के सामने आते ही उन के परिवार में सभी रिश्तों के हालात बिगड़ जाएंगे.

फिर भी एरोल के संबंध सौतेली बेटी के साथ बने रहे. साथ ही उन्होंने 2018 में दिए एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि जाना का बच्चा एक गलती का परिणाम था. यह तब हुआ जब उस के बौयफ्रैंड ने उसे घर से निकाल दिया था और वह एरोल के घर रुकने आ गई थी.

उन्हीं दिनों एलन ने भी एक इंटरव्यू में अपने पिता से रिश्तों और सौतेले भाई के जन्म पर बात की थी. तब एलन ने कहा था, ‘‘वह इतने भयानक इंसान हैं, आप को पता नहीं है. मेरे पिता के पास वह करने का पूरा प्लान रहा होगा. वह आगे भी घिनौनी प्लानिंग करेंगे. लगभग हर अपराध जिस के बारे में आप सोच सकते हैं, उन्होंने किया है. लगभग हर बुराई जो आप सोच सकते हैं, उन्होंने की है. यह सच इतना भयानक है कि आप इस पर विश्वास नहीं कर सकते.’’

इस नाराजगी को खत्म करने के लिए एरोल मस्क ने पहल की और उन्होंने चौंकाने वाला खुलासा कर दिया.

इस बात को लंबे समय तक गुप्त रखने के बाद अचानक क्या हो गया, जो एरोल ने अपनी गलती कुबूल ली? इस बारे में जब उन से पूछा तो उन्होंने बड़े ही अलग अंदाज में बताया कि इस धरती पर हम इंसान प्रजनन के लिए ही हैं.

साथ ही स्वीकार किया कि बच्चे को उस के पिता का नाम देना भी जरूरी था. वैसे उन का यह भी कहना था कि उन्होंने कभी बेटी का डीएनए चैक नहीं किया, लेकिन वह बिलकुल मेरी दूसरी बेटियों रोज और टोस्का की तरह ही दिखती है.

इस विवाद के बाद एरोल अपने स्पर्म के कारण भी चर्चा आ गए हैं. कारण, कई संभ्रांत महिलाएं चाहती हैं कि वह एरोल के स्पर्म से गर्भवती हों, ताकि उन का प्रभावशाली बच्चा पैदा हो.

इसे ले कर कोलंबिया की एक कंपनी ने उन से संपर्क किया है. कंपनी के माध्यम से उच्च श्रेणी की महिलाएं चाहती हैं कि एरोल मस्क के स्पर्म से अगली पीढ़ी का एलन मस्क पैदा हो सके.

इस पेशकश पर एरोल का कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो वह इस का कोई पैसा नहीं लेंगे. यह उन का एक दान होगा. उन्हें बदले में सिर्फ अन्य सुविधाएं मिलनी चाहिए, जैसे प्रथम श्रेणी की यात्रा और पांच सितारा आवास.

यह कहना गलत नहीं होगा कि एरोल के स्पर्म की बदौलत डिजाइनर बेबी पैदा करने की ललक फिर से पैदा हो गई है.

आईवीएफ तकनीक से न केवल जरूरत के मुताबिक बच्चे पैदा करने की सहूलियत मिल गई है, बल्कि भविष्य में बच्चे के लिए स्पर्म को सुरक्षित रखना भी संभव है. इस के लिए स्पर्म डोनर से सुविधाएं ली जाती हैं.

जब कपल बच्चे की चाहत में आईवीएफ क्लीनिक जाते हैं तो डाक्टर से कई तरह की डिमांड  करते हैं. इस के पीछे का उद्देश्य डिजाइनर बेबी ही होता है.

डिजाइनर बेबी वह बच्चा होता है, जिस के जींस में बदलाव किए जाते हैं. इसे जींस का मेकअप भी कहा जा सकता है. कपल्स की डिमांड के मुताबिक बच्चे को आंखों, बालों का रंग, लंबाई, स्किन कलर और गुण दिए जाते हैं.

यह काम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी आईवीएफ तकनीक के जरिए किया जाता है. हालांकि कई देशों में यह काम गैरकानूनी है. आईवीएफ स्पैशलिस्ट डाक्टर के सामने अधिकतर कपल इस तरह की मांग रखते जरूर हैं, लेकिन भारत में आईवीएफ टेक्नोलौजी इतनी एडवांस नहीं हुई है. आईवीएफ टेक्नोलौजी का मकसद हेल्दी बेबी पैदा करना है.

भारत, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जरमनी और स्विटजरलैंड समेत 40 देशों में इनहैबिटेबल जेनेटिक मोडिफिकेशन तकनीक पर रोक है. बच्चे का लुक एग-स्पर्म पर निर्भर करता है. उस के गुण और ब्लड ग्रुप जींस पर. लेकिन आईक्यू उस की परवरिश और आसपास के माहौल पर निर्भर करती है.

शरीर में कुछ जींस प्रभावकारी होते हैं, जिन से बच्चे की लंबाई और आंखों का रंग प्रभावित होता है. यही कारण है कि स्पर्म डोनर की मांग उसी के अनुरूप होती है. आंखों का रंग हरा, काला, भूरा, नीला तभी होता है जब बच्चे के मम्मीपापा या दादीदादा की आंखों का रंग ऐसा हो.

भारत में एआरटी बैंक (एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलौजी क्लिनिक) से स्पर्म और एग आते हैं. उन के डोनर की पहचान गुप्त रखी जाती है. पुरुषों के लिए स्पर्म डोनर बनना आसान है, लेकिन महिलाओं को एग डोनर बनने के लिए पूरी आईवीएफ प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस में सर्जरी की जाती है.

इंडियन मैडिकल काउंसिल औफ रिसर्च की गाइडलाइंस के अनुसार डोनर की उम्र 21 से 40 साल के बीच होनी चाहिए. लेकिन महिलाएं एरोल मस्क के स्पर्म के लिए बेकरार हुई जा रही हैं लेकिन वे उन की उम्र को नहीं देख रहीं कि वह 76 साल के हो चुके हैं.

Manohar Kahaniya: सरपंच न बनने पर बना जल्लाद

सोमवार 6 दिसंबर, 2021 का दिन था. कड़कड़ाती ठंड छत्तीसगढ़ की हवाओं को सर्द बनाए हुए थी.  शाम के लगभग 7 बज रहे थे. इंजीनियर शिवांग चंद्राकर अपने फार्महाउस से धीमी गति से बाइक चलाते हुए अपने घर मरौदा की ओर जा रहा था. तभी उस ने देखा कि कोई उसे हाथ दे रहा है, सामने अशोक खड़ा था. उसे देख कर शिवांग ने बाइक रोक दी.

शिवांग अशोक देशमुख को अच्छी तरह जानता था, जिसे वह अच्छी तरह जानता था. अशोक ने शिवांग चंद्राकर ने कहा, ‘‘भाई, मेरी बाइक खराब हो गई है. क्या तुम मुझे लिफ्ट दे सकते हो?’’

शिवांग चंद्राकर जानता था कि अशोक  गांव का नामचीन व्यक्ति है, उस की उस से कभी नहीं बनी. मगर इंसानियत भी कोई चीज होती है, यह सोच कर उस ने मुसकरा कर  कहा, ‘‘हांहां क्यों नहीं भाई, आओ बैठो बताओ कहां चलना है.’’

यह सुनना था कि अशोक देशमुख उछल कर शिवांग की बाइक पर बैठ गया.

अशोक ने शिवांग के कंधे पर हाथ रखा तो उसे महसूस हुआ मानो उस के हाथ में कोई कठोर चीज है. शिवांग को जाने क्यों महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है, मगर अब वह क्या कर सकता था. चुपचाप बाइक चला रहा था, देखा सामने 2 लोग और खड़े मिले. वह भी उसे रुकने के लिए इशारा कर रहे थे.

उन्हें देख कर के शिवांग ने बाइक की गति तेज कर दी. मगर अशोक ने कंधे पर थपथपा कर कहा, ‘‘नहींनहीं, रुको.’’

मजबूर शिवांग ने बाइक रोकी. वही दोनों लोग उस के पास आ गए जो हाथ के इशारे से बाइक रुकवा रहे थे. शिवांग उन्हें थोड़ाथोड़ा जानता था.

तभी अशोक देशमुख ने शिवांग को कस कर पीछे से जकड़ लिया. शिवांग को महसूस हुआ मानो वह किसी बड़े खतरे में फंस चुका है. थोड़ी ही देर में उस के मस्तिष्क में अशोक देशमुख के साथ सारे विवाद घूमने लगे. उस ने अशोक के चंगुल से छूटने की कोशिश की. लेकिन उस ने पूरी ताकत से उसे जकड़ रखा था इसलिए छूट नहीं सका.

इसी बीच सामने खड़े दोनों व्यक्तियों ने आगे बढ़ कर उसे पकड़ा. उन में से एक ने उस के गले में नायलोन की रस्सी डाल कर कस दी. थोड़ी ही देर में दम घुटने से शिवांग की मौत हो गई.

इस के बाद अशोक देशमुख ने अपने साथियों के साथ मिल कर शिवांग के हाथ और पैर पकड़ कर लाश झाडि़यों के पास डाल दी. फिर अशोक अपने साथियों से बोला, ‘‘तुम लोग यहां रुको, मैं अभी कार ले कर आता हूं.’’

उस के दोनों साथियों में एक बसंत साहू था और दूसरा विक्की उर्फ मोनू देशमुख.

इस पर बसंत साहू ने कहा, ‘‘भैया जल्दी आना, यहां लोग आतेजाते रहते हैं किसी को भी शक हो सकता है.’’

‘‘हां, मैं जल्द ही कार ले कर आता हूं.’’

अशोक तेजी से चला गया. थोड़ी ही देर में अपनी कार ले कर के वहां आ गया और तीनों ने मिल कर शिवांग चंद्राकर के शव को कार की डिक्की में डाल दिया.

अशोक देशमुख कार चलाते हुए झरझरा में हरीश पटेल की खाली पड़ी जमीन पर ले गया. वहां हार्वेस्टर चलने से गड््ढे बने हुए थे. एक गड्ढे में शिवांग की लाश जलाने की व्यवस्था उन्होंने पहले ही कर रखी थी.

वहीं दोनों अन्य आरोपी अपनी मोटर बाइक से आ गए. फिर तीनों ने मिल कर मिट्टी का तेल डाल कर शिवांग चंद्राकर के शव में आग लगा दी.

दिसंबर का महीना था. लोग भीषण ठंड के कारण अपनेअपने घरों में दुबके हुए थे. कहीं ऐसे में लोगों को आग जलती हुई दिखती है तो दूसरे लोग यही समझते हैं कि ठंड दूर करने के लिए किसी ने अलाव जला रखा है.

यही वजह थी कि जब ये लोग शिवांग के शव को जला रहे थे तो लोगों ने कोई शक नहीं किया. जब आग बुझी तो शिवांग का शव आधा जल चुका था. तब वह उसे मिट्टी से ढक कर अपनेअपने घर चले गए.

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का चंदखुरी गांव अपनी खेतीकिसानी के कारण जिले भर में प्रसिद्ध है. लगभग 3 हजार की जनसंख्या का यह हरित अनुपम गांव शहर से लगा हुआ है. यहां के धनाढ्य लोगों को दाऊजी कह कर सम्मान के साथ संबोधित किया जाता है. अधिकांश लोगों का जीवनयापन खेतीकिसानी और शहर में नौकरी से गुजरबसर करना होता है.

31 वर्षीय अशोक देशमुख गांव की राजनीति करते हुए खेतीकिसानी करता था. हाल ही में हुए ग्राम पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव चंद मतों से हार गया था. जिस का दोषी वह शिवांग चंद्राकर और उस के परिवार को ही मानता था. यही कारण था कि अशोक शिवांग से बदला लेने का मौका ढूंढ रहा था.

उस ने गांव के ही रहने वाले अपने खास दोस्त विक्की उर्फ मोनू देशमुख (20 वर्ष) और बसंत साहू (उम्र 24 वर्ष) जोकि गांव चंद्रपुरी में ही रहते थे, से एक दिन मौका देख कर बात की.

‘‘यार मोनू, आज मैं सरपंच होता, मेरी गांव में अच्छीखासी चलती. दो पैसे कमाता, तुम लोगों को भी हमेशा खिलातापिलाता, मगर एक आदमी की वजह से पूरा प्लान धरा का धरा रह गया.’’

इस पर मोनू और बसंत साहू ने उस की ओर देखा तो मोनू ने कहा, ‘‘भैया, मैं जानता हूं लेकिन अब क्या किया जा सकता है. चुनाव में इस ने तो आप का बैंड बजा दिया.’’

यह सुन कर के अशोक ने कहा, ‘‘अगर तुम लोग मेरे सच्चे दोस्त हो तो मेरा साथ दो, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी में कभी हमारा कोई विरोध नहीं करेगा.’’

‘‘क्याक्या करना होगा, बताओ.’’

इस पर विक्की उर्फ मोनू ने गुस्से से भर कर  कहा, ‘‘शिवांग के बड़े भाई धर्मेश ने मुझे थप्पड़ मारा था, इसलिए मैं भी इन से बदला लेना चाहता हूं. मैं तुम्हारे साथ हूं. शिवांग इंजीनियर क्या बन गया है, इस के घर के लोग अपने आप को बड़ा आदमी समझने लगे हैं.’’

यह सुन कर अशोक खुश होते हुए बोला, ‘‘बस, मेरे दोस्त, तुम ने मेरा दिल जीत लिया. मैं एक योजना बनाता हूं और इस को सबक सिखाते हैं.’’

इस पर बसंत साहू  ने कहा, ‘‘हां, क्या है आखिर तुम्हारी योजना, भाई. बताओ?’’

‘‘यह बात है तो सुनो. मेरे दिमाग में बहुत दिनों से एक कीड़ा कुलबुला रहा है. सरपंच चुनाव में तो हार गया हूं. मगर इन से हम 25-50 लाख रुपए वसूल सकते हैं. इस से तुम दोनों की भी जिंदगी बन जाएगी. फिर जिंदगी भर ऐश करोगे.’’

यह सुन कर के दोनों खुशी से उछल पड़े और एक साथ बोले, ‘‘ऐसा है तो हम तुम्हारे साथ हैं जब जैसा कहोगे वैसा करेंगे.’’

7 दिसंबर, 2021 सुबह लगभग 11 बज रहे थे कि थाना पुलगांव के टीआई नरेश पटेल के पास 2 लोग आए.

उन में से एक ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘साहब, मैं दीपराज चंद्राकर हूं और गांव चंदखुरी से आया हूं. मेरा भांजा शिवांग चंद्राकर कल शाम से लापता है उस का कोई पता नहीं चल रहा है.’’

यह कहते दीपराज रोआंसा हो गया. उस की आंखें भर आई थीं.

थानाप्रभारी नरेश पटेल मामले की गंभीरता को समझ कर उन्हें भरोसा दिलाते हुए बोले, ‘‘तुम लोग चिंता मत करो, हम पूरी मदद करेंगे. तुम अभी गुमशुदगी दर्ज करवाओ.’’

इस के बाद दीपराज ने शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के पुलिस ने अपने स्तर से इंजीनियर शिवांग को ढूंढना शुरू कर दिया.

एक हफ्ता बीत गया था. शिवांग चंद्राकर का कहीं कोई पता नहीं चल रहा था. रिश्तेदारों के यहां मातापिता ने पता किया, मगर शिवांग की कोई जानकारी नहीं मिल रही थी.

धीरेधीरे लोगों में आक्रोश पैदा हो रहा था कि पुलिस शिवांग को आखिर क्यों नहीं ढूंढ पा रही है. मामला उच्च अधिकारियों तक पहुंचा. जब स्थिति बिगड़ने लगी तो पुलिस के आईजी ओ.पी. पाल के निर्देश पर एसएसपी ने केस को गंभीरता से लिया. इस के अलावा उस के पैंफ्लेट छपवा कर बताने वाले को 10 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की.

टीम में थानाप्रभारी नरेश पटेल, गौरव तिवारी, एसआई डुलेश्वर सिंह चंद्रवंशी, एएसआई राधेलाल वर्मा, नरेंद्र सिंह राजपूत, समीत मिश्रा, अजय सिंह, हैडकांस्टेबल संतोष मिश्रा, कांस्टेबल जावेद खान, प्रदीप सिंह, जगजीत सिंह, धीरेंद्र यादव, चित्रसेन, केशव साहू, लव पांडे, अलाउद्दीन, हीरामन, तिलेश्वर राठौर को शामिल किया गया.

इस सब के बावजूद पुलिस को शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी के बारे में कहीं कोई सुराग नहीं मिल रहा था और पुलिस हाथ पर हाथ धरे मानो बैठी हुई थी कि 5 जनवरी, 2022 को शिवांग चंद्राकर के बड़े भाई धर्मेश चंद्राकर ने थानाप्रभारी को सनसनीखेज जानकारी दी.

धर्मेश ने बताया, ‘‘सर, झरझरी कैनाल रोड के पास एक खेत में एक कंकाल और हड्डियां मिली हैं, टाइमैक्स घड़ी मिली है, जले हुए कपड़े हैं, देख कर लगता है कि यह शिवांग के ही होंगे.’’

थानाप्रभारी नरेश पटेल ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दी. इस के बाद पुलिस अधिकारी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां खुदाई कर के अस्थियां और एक मानव मुंड बरामद किया. फोरैंसिक विशेषज्ञ मोहन पटेल ने सूक्ष्मता से जांच शुरू की.

कंकाल और जले हुए कपड़ों व बालों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता था कि यह आखिर किस का शव है.

शिवांग चंद्राकर का पूरा परिवार चिंतित था और लोगों द्वारा यह कयास लगाया जा रहा था कि यह शिवांग का कंकाल और अवशेष हो सकता है.

नरेश पटेल ने उच्चाधिकारियों को जानकारियां दे कर अवशेष की जांच डीएनए हेतु रायपुर भेजने की काररवाई शुरू कर दी.

इस के साथ ही जिले भर में यह चर्चा होने लगी कि 6 दिसंबर को लापता हुए शिवांग चंद्राकर की जब कोई जानकारी नहीं मिल रही है तो जरूर 5 जनवरी को मिले हुए कंकाल से उस का संबंध हो सकता है.

इस संदर्भ में स्थानीय समाचार पत्रों में भी इसी तरह की खबरें प्रकाशित हो रही थीं. और जब डीएनए जांच रिपोर्ट सामने आई तो यह स्पष्ट हो गया कि वह अस्थियां शिवांग की ही हैं.

पुलिस के सामने अब इस केस को खोलने की चुनौती थी. इस के लिए 5 जांच टीमें बनाई गईं और आईजी ओ.पी. पाल और एसएसपी बद्रीनारायण मीणा ने पुलिस टीमों के साथ मीटिंग करने के बाद दिशानिर्देश दिए.

पुलिस ने इस केस में करीब 500 लोगों से पूछताछ की. पुलिस ने जोरशोर से विवेचना प्रारंभ कर दी.

पुलिस ने इसी दरमियान छत्तीसगढ़ के चंद्रखुरी गांव के रहने वाले अशोक देशमुख से भी पूछताछ की. पुलिस को पता चला था कि सरपंच के चुनाव में अशोक की शिवांग से खटपट हुई थी. लेकिन अशोक खुद को बेकुसूर बताता रहा.

पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स की जांच की तो पाया कि उस दिन वह अपने घर में ही था. ऐसे में वह पुलिस की जांच से बाहर हो गया था.

इसी दरमियान एक दिन दूसरे संदिग्ध आरोपी विक्की उर्फ मोनू देशमुख से जब पूछताछ चल रही थी तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या उस ने अशोक देशमुख  और बसंत साहू के साथ मिल कर की थी.

पुलिस को उस ने अपने बयान में बताया कि शिवांग चंद्राकर के भाई धर्मेश ने एक विवाद में उसे थप्पड़ जड़ दिया था. जिस का बदला लेने के लिए वह अशोक देशमुख के साथ इस हत्याकांड में शामिल हो गया था.

उस ने अपने इकबालिया बयान में यह भी बता दिया कि अशोक देशमुख पिछला पंचायत पंच चुनाव हारने के कारण शिवांग चंद्राकर से बदला लेना चाहता था और उस से 30 लाख रुपए  फिरौती की योजना बनाई थी.

मगर पुलिस की सक्रियता और गांव का सख्त माहौल देखते हुए उन लोगों ने फिरौती की योजना को दरकिनार कर के मौन रहना ही उचित समझा था.

यह जानकारी मिलने के बाद तत्परता दिखाते हुए टीआई नरेश पटेल की टीम ने उसी रात अशोक देशमुख और विक्की चंद्राकर को हिरासत में ले लिया और जब इन दोनों से पूछताछ की तो दोनों ही पुलिस जांच के सामने टूट गए और सब कुछ सचसच बयां कर दिया.

अशोक देशमुख ने बताया कि पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव लड़ रहा था. मगर शिवांग देशमुख के पिता राजेंद्र देशमुख के कारण वह चुनाव हार गया था.

इस के साथ ही रेगहा में स्थित 15 एकड़ के कृषि फार्महाउस का विवाद भी इस का एक कारण था, जिसे राजेंद्र चंद्राकर ने उस से हथिया लिया था.

यहां एक रोचक बात यह भी सामने आई कि जांच में यह पाया गया कि अशोक देशमुख घर पर ही था तो फिर अब कैसे हत्यारा हो गया. पुलिस ने उस की पत्नी रजनी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि पति घर पर ही था. मोबाइल में 7 मिस काल दिखाई दे रही थीं.

अब सवाल यह था कि आखिर जब अशोक घर पर था तो पत्नी ने काल क्यों किया था और अशोक ने काल रिसीव क्यों नहीं कीं.

अशोक ने इस संदर्भ में खुलासा करते हुए बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या के लिए उस ने लंबे समय तक एक योजना बनाई थी कि किस तरह हम हत्या के इस केस से बच सकते हैं और फिरौती भी हासिल कर सकते हैं?

इसी तारतम्य में यह सोचीसमझी योजना बनाई गई थी कि हत्या के दिन मोबाइल को घर में रखना है. ताकि कभी पुलिस वेरिफिकेशन हो तो एक नजर में यह माना जाए कि वह तो घर पर ही था. फिर भला हत्या कैसे कर सकता है.

इस तरह आरोपियों ने इंजीनियर शिवांग की बाइक पर लिफ्ट ले कर एकांत में गला घोट कर हत्या कर दी थी.

जांच के बाद पुलिस ने हत्याकांड में प्रयुक्त कार, मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. गला घोटने में प्रयुक्त हुई नायलौन की रस्सी भी आरोपियों की निशानदेही पर बरामद कर ली.

तीनों आरोपियों अशोक देशमुख पुत्र रामनारायण देशमुख, विक्की उर्फ मोनू देशमुख और बसंत साहू को भादंवि की धारा 364, 365, 201, 120बी और 302 के तहत मामला दर्ज कर के 10 फरवरी, 2022 को गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन 11 फरवरी को उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, दुर्ग, छत्तीसगढ़ के समक्ष पेश किया.

जहां मामले की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रैट ने तीनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश जारी कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों और चर्चा पर आधारित

अपहरण: क्या ज्योतिष और पाखंड पर भरोसा करना सही है?

‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि हमारा बच्चा जरूर मिलेगा. आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो 10 साल बाद ही सही, लेकिन मिलेगा जरूर. उसे कुछ नहीं हो सकता. वह जिंदा रहेगा और एक न एक दिन हम उसे जरूर पा जाएंगे,” यह किसी पागल का प्रलाप नहीं, एक ऐसे पिता का कहना था, जिस का साढ़े 5 माह का नन्हा अबोध पुत्र लापता हो गया.

नन्हा शिशु जिसे अभी हंसना भी नहीं आया था, उसे कोई क्यों और कहां ले गया, इस की किसी को जानकारी न थी. पुलिस को सूचना दी गई. सीसीटीवी खंगाले गए. यह तो पता चल गया कि उसे कोई गोदी में ले जा रहा है, पर वह कौन है, यह पता नहीं चल पा रहा था.

जैसाकि अकसर होता है, परिस्थितियों से विवश आदमी ज्योतिषियों के चक्कर में उलझ जाता है. यही अबोध शिशु सिद्धार्थ के दुखी मातापिता के साथ भी हुआ. ज्योतिषियों ने उन से खूब पैसा लूटा और किसी ने कहा कि बच्चा फरीदाबाद में मिलेगा, तो किसी ने कहा ग्वालियर में. जिस का जो मन आता वह कह देता और मातापिता वहीं जा पहुंचते, पर निराश हो कर लौट आते. हर व्यक्ति उन के लिए इस समय महत्त्वपूर्ण हो गया था.

दोनों पढ़ेलिखे थे पर इस तरह की घटना के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने बुद्धि, विवेक और धैर्य से काम लेना शुरू किया. टीवी चैनलों और अखबारों के दफ्तरों के चक्कर काटने शुरू किए. पत्रकारों ने उन से बात सहानुभूति से की पर उन के करनेधरने के बावजूद भी कुछ नहीं हुआ. पुलिस उन दिनों विधानसभा चुनावों में लगी थी और इसलिए व्यस्त थी. हर रोज कहीं न कहीं मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की रैली होती थी और सारी फोर्स वहां लग जाती थी.

जिस दिन यह घटना हुई, सुबह 10 बजे पति के दफ्तर चले जाने के बाद सिद्धार्थ की मां निर्मला उसे अंदर सुला कर बाहर कपड़े धो रही थी. इसी दौरान उस के पड़ोस के फ्लैट की लङकी जो लगभग 8 साल की थी, आ कर पूछा, ‘‘आंटी, मैं भैया को उठा लूं गोद में?’’ वह पहले भी यदाकदा उसे उठा कर खिलाया करती थी, सो कोई नई बात नहीं थी.

‘‘हां, जब तक मैं इस का दूध बनाऊं, तुम इसे खिलाओ,’’ यह कह कर निर्मला अंदर चली आई. तभी उन के फ्लैट के सामने आए एक बुजुर्ग से मकानमालिक की एक नौकरानी ने उस बच्ची से कहा, ‘‘लाओ, सिद्धार्थ को मैं घुमा लाऊं.’’

यह नौकरानी 22-23 साला युवती थी, जिसे आए अभी कुल 4-5 दिन ही हुए थे. फ्लैट मालिक भी 2 माह पहले ही आए थे. उन्होंने अभी कुछ पैसा दे दिया पर रजिस्ट्री नहीं कराई थी. देखने में वह नौकरानी नहीं लगती थी. वह कह गए थे कि उस को यहां काम दिलाने में उन के एक दोस्त की सिफारिश थी.

वह स्वयं को अनपढ़, गरीब और अनाथ बतलाती थी और खुद को झारखंड की बताती थी लेकिन न वह गरीब लगती थी और न ही अनपढ़. उसे चोरीचोरी मोबाइल पर कान में लीड लगाए कुछ सुनते हुए देखा गया था. मकानमालिक के साथ भी उस के संबंध नौकरानी जैसे नहीं थे. ऐसा लगता था कि दोनों चोरीछिपे घूमने जाते थे क्योंकि पहले एक निकलता और दूसरा कुछ मिनट बाद.

नौकरानी ने अपना नाम मंजू बताया था और झारखंड के रांची के पास गांव में अपना निवास स्थान. वह भी कई बार सिद्धार्थ को बड़ा लाड़प्यार जता कर गोद में उठा लिया करती थी और निर्मला को बच्चे को ठीक से रखने के तौरतरीके भी बताया करती थी.

सिद्धार्थ की मां से वह कहती, ‘‘तुम इस को नहलाधुला कर साफ रखा करो. पाउडर वगैरा छिङका करो, सुंदरसुंदर कपड़े पहनाया करो. मेरी पिछली मालकिन तो बहुत ज्यादा खयाल रखती थीं.’’

उस दिन भी उस ने बातोंबातों में सिद्धार्थ को गोद में ले लिया और साथ वालों की उस लङकी की उंगली पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, तुम्हें बाजार घुमा लाऊं.’’

निर्मला, जो बड़ी सरल स्वभाव की महिला थी, संदेह नहीं हुआ. लेकिन जब कुछ देर बाद पड़ोसी की एक छोटी लङकी दौड़ती हुई आई और कहने लगी कि मंजू और सिद्धार्थ को मैट्रो में चढ़ते देखा है, वह मैट्रो में घुस नहीं पाई. निर्मला मैट्रो स्टेशन लाइन की तरफ भागी और मंजु को आवाजें देदे कर चीखतीचिल्लाती रही. लेकिन उस की आवाज पर किसी ने जवाब नहीं दिया. वह आधे घंटे में रोतीकलपती घर वापस चली आई. इसी चक्कर में उस का मोबाइल सङक पर गिर गया और बुरी तरह टूट गया.

उस के बाद वह अपने होशोहवास खो बैठी. तब तरस खा कर किसी ने उस के मोबाइल का सिम बदल कर अपने फोन में लगा कर पति को सूचित किया. बच्चे के पिता रमन एक बैंक में काम करता है. वे तुरंत घर की ओर स्कूटर से भागे.

घर पहुंच कर उन्होंने सारी बातें सुनीं और तुरंत थाने पहुंचे. वहां पुलिस वालों ने उन की रपट दर्ज नहीं की. शाम 5 बजे बहुत कहनेसुनने के बाद रोजनामचे में रपट (संख्या 521) दर्ज की गई, पर अनापशनाप 6 माह के शिशु को पुलिस वालों ने 6 साल का लिखा. इस बीच नया फ्लैट मालिक भी फ्लैट खाली कर के चला गया. जब पिछला मालिक आया तो पता चला कि उस ने जो ड्राफ्ट दिया था वह नकली था. हां, वह ₹2 लाख कैश जरूर दे गया था. उस का विजिटिंग कार्ड भी नकली था. ऐसी कोई कंपनी थी ही नहीं जिस का वह अपने को सीईओ कह रहा था.

रमन ने बताया कि 13 दिनों तक स्थानीय पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की. 14 जुलाई को पुलिस वालों ने उन्हें जवाब दे दिया तो उन्होंने पुलिस की अपराध शाखा में रिपोर्ट लिखाई. पुलिस ने उन्हें इतना जरूर बताया कि रांची के पास किसी गांव से उस नौकरानी के नाम का कोई नहीं है.

इस के बाद भी सिद्धार्थ के मिलने की जहां भी संभावना थी, वहां पुलिस वालों को साथ ले जा कर वह खाक छानते रहे. सारे सीसीटीवी देखे गए पर सभी में नौकरानी और फ्लैट मालिक के असली चेहरे पूरी तरह नहीं दिख रहे थे. लगता था वह हमेशा कैप पहने रहता था. नौकरानी हर समय सिर पर चुन्नी बांधे रहती थी. उन्होंने सारे सीसीटीवी कैमरे देख लिए थे. पुलिस वालों के खाने और जाने का खर्च स्वयं उठाते रहे.

इस दौरान उन्होंने नन्हें सिद्धार्थ का सुराग देने वाले को ₹1 लाख का पुरस्कार देने की भी घोषणा कर दी.

उन्होंने पुलिस आयुक्त से ले कर उपराज्यपाल, केंद्रीय गृहमंत्री व उप प्रधानमंत्री तक के दरवाजे खटखटाए. लेकिन उन के सारे प्रयास निरर्थक रहे. सब तो चुनावों में लगे थे. इस बात से उन्हें बहुत क्षोभ हुआ कि सिद्धार्थ ने एक साधारण व्यक्ति के घर जन्म लिया. यदि किसी नेता या बड़े आदमी का बेटा खोता तो उस की खोज में पुलिस आकाशपाताल एक कर देती.

पर सिद्धार्थ एक मामूली बैंक क्लर्क की संतान है, उस की परवा किस को होगी. हजारों गरीब बच्चे आएदिन खोते रहते हैं. किसी का कुछ पता नहीं चलता और उन के मांबाप को आखिर सब्र का ही सहारा लेना पड़ता है.

पुलिस लापरवाही दिखा रही थी. रमन ने कहा कि संजय गीता कांड में पुलिस ने अपराधियों को कितनी तत्परता से पकड़ दिखाया था, लेकिन उन की किसी ने मदद नहीं की. वह पुलिस वालों को कोसते, भलाबुरा कहते. पर इस से क्या बनता? चुनावों की धूमधाम में गरीब मातापिता का उन की एकमात्र संतान से विछोह अजीब लग रहा था.

एक दिन रमन ने खुद छानबीन करने का फैसला किया. वे रात को उस फ्लैट में बाहर की खिङकी से घुस गए जहां नया फ्लैट मालिक रहता था. उन्होंने बारीकी से एक चादर, तकिया, पलंग के नीचे का हिस्सा देखना शुरू किया. उन्हें एक जगह कंडोम दिखा यानी यह औरत नौकरानी नहीं थी. या तो प्रेमिका थी या पत्नी. कूङे की बालटी में रमन को एक स्टोर की रसीद मिली. स्टोर से मेकअप का ढेर सारा सामान खरीदा गया था. स्टोर वाराणसी का था. रमन का एक दोस्त वाराणसी में रहता था. रमन ने तुरंत उसे फोन किया.

वह उस स्टोर तक गया और उस की फोटो खींच कर रमन को भेज दी. रमन उसी दिन वाराणसी चले गए. निर्मला भी जाना चाहती थीं पर उसे डर था कि कहीं कोई सूचना मिली तो घर बंद रह जाएगा.

स्टोर मालिक को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि यह सामान किस ने खरीदा था. उस के पास सीसीटीवी कैमरा था पर उस में केवल 1 सप्ताह का डेटा रिकौर्ड रहता था. स्टोर मालिक ने यह जरूर बताया कि जो हुलिया रमन बता रहे हैं उस जैसा पुलिस वाला एक लङका 2-3 बार आया तो था पर कब और क्यों उसे याद नहीं. रमन को लगा कि उस के बेटे को उठाने वाला कहीं आसपास ही होगा. रमन ने स्टोर के सामने एक कमरा ढूंढ़ा और वहीं रहने लगे. रमन ने 2 मोबाइल और एक सीसीटीवी सैट भी खरीदा. वे घंटों उस स्टोर में आनेजाने वालों की वीडियो देखते रहते.

एक रोज रमन को एक स्वामी आता दिखा. उस की चाल से रमन को संदेह हुआ. वे भागते हुए स्टोर में पहुंचे तो देखा कि वह स्वामी बिल बनवा रहा था. उस बिल में पूजा सामग्री तो थी पर खाने के सामान के साथ बेबी मिल्क पाउडर भी था. रमन ने पूरी कोशिश रखी कि वह स्वामी की आंखों के सामने न पड़े. रमन ने तुरंत अपने दोस्त को फोन पर मैसेज डाल दिया, ‘कम इमीडिएटली…’

दोस्त जब तक आया वह स्वामी जाने की तैयारी में था. दोनों ने स्वामी का पीछा करने का फैसला किया.

स्वामी को एहसास हो गया कि उस का पीछा किया जा रहा है और वह भागने लगा. रमन और दोस्त भी पीछे भागे तो वह एक मकान में घुस गया और दरवाजा बंद कर लिया.

रमन को एक रोज स्कर्ट पहने कटे बाल वाली लङकी स्टोर की तरफ आती दिखी. वह कुछ जानीपहचानी लग रही थी पर नौकरानी तो हो नहीं सकती. यह लङकी वाराणसी के माहौल में भी अलग लग रही थी.

स्टोर वाले के पास जा कर पता किया तो जो बताया गया वह चौंकाने वाला था. उस ने बताया कि वह तो उस की पुरानी ग्राहक है और किसी के साथ लिवइन में रह रही है. वह कंडोम ले कर जाया करती थी पर अब बेबी डायपर भी ले जाती है. रमन का शक बढ़ गया.

अब रमन ने खुद का हुलिया बदल लिया. दाढ़ी बढ़ा ली और हर समय कैप लगाए रहते. जितने टाइम स्टोर खुला रहता वे कमरे में खिङकी से हटते नहीं थे. सारे दिन का खाना भी एकसाथ सुबह ही बना कर आसपास रख लेते. रमन पहले कभी गांव में पहलवानी करते थे और आज भी चुस्त थे इसलिए तुरंत मकान में खिड़कियों को पकड़ कर पहली मंजिल से घुस गए. मकान खाली था पर एक कोने में एक पालने में एक बच्चा लेटा था. यह उन का बेटा ही था.

इतने में दोस्त ने मकान के पीछे से देखना शुरू किया तो उसे कटे बाल वाली एक लङकी छोटी सी खिङकी से निकलती दिखी. उस दोस्त ने तुरंत उसे दबोच लिया. अब तक शोर सुन कर गली में लोग जमा हो गए. पुलिस बुला ली गई.

रोनेधोने के बाद लङकी ने उगल दिया कि वह और स्वामी पतिपत्नी हैं. पर उन के बच्चे नहीं हो सकते क्योंकि वे एक आश्रम से भागे हुए हैं जहां लङके का औपरेशन करा डाला गया था और लङकी का गर्भाशय निकाला जा चुका था ताकि वे कभी मांबाप न बन सकें और जीवनभर आश्रम के लोगों और मेहमानों की सेवा हर तरह से करते रहें.

उन दोनों को प्रेम हो गया और वे आश्रम से भाग आए. बच्चे को चुराने के पीछे वजह थी कि गोद लेने में बहुत कागज चाहिए होते हैं जो उन के पास नहीं था. उन्हें उम्मीद थी कि बच्चे को साथ ले कर वे धीरेधीरे सारे कागज नए नामों से बनवा लेंगे. उन्होंने अपना अलग आश्रम बनाने की भी योजना बना रखी थी पर रमन और उस के दोस्त की वजह से सारा प्लान फेल हो गया.

एक दिन अचानक वाराणसी से लालजीराम के मित्र आ गए. उन्होंने एक खोए हुए बच्चे का हुलिया बयान किसा और बताया कि गन्ने के खेत में 2 कुत्तों की रखवाली में बिलकुल नाटकीय अंदाज में एक नन्हा शिशु पाया गया है जिस की परवरिश अब गांव से दूर मंदिर का एक पुजारी कर रहा है. लालजीराम एक पुलिस इंस्पैक्टर को अपने साथ ले कर उसी रात वाराणसी के लिए रवाना हो गए. राम के साथ गए हुए पुलिस इंस्पैक्टर ने कोई पैसा लेने से इनकार किया.

सिद्धार्थ के वापस आ जाने पर उस के घरपरिवार वाले बहुत खुश हैं. सिद्धार्थ बहुत कमजोर हो कर लौटा है. उस के शरीर पर कुछ निशान पाए गए हैं, जो आग से जले हुए लगते हैं. शायद उस अबोध शिशु को किसी तरह की यातना दी गई है. यद्धपि मातापिता को अपना नन्हा बच्चा मिल गया है, लेकिन सिद्धार्थ का पिता अब भी परेशान है. वह आश्रम की तलाश में है, जहां वह स्वामी व लङकी रहती थी पर वे मुंह नहीं खोल रहे थे. उन का दिन का चैन और रात की नींदें छीन ली थीं. वे अब भी आशंकित रहते हैं कि कहीं ये दोनों जेल से छूटने के बाद उन के बच्चे को न उठा ले जाएं. आश्चर्य की बात यह थी कि उन दोनों अपराधियों को अपनी किसी गलती का पछतावा नहीं  था.

Anupamaa से होगी काव्या की छुट्टी? देखें Video

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों खूब धमाल हो रहा है. ये सीरियल लगातार टीआरपी लिस्ट में भी टॉप पर बना हुआ है. इसी बीच काव्या यानी मदालसा शर्मा (Madalsa Sharma) को लेकर एक पोस्ट सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रही है. सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया है, जिसे फैंस देख कन्फ्यूज हो गये हैं कि मदालसा शर्मा ‘अनुपमा’ छोड़ रही हैं या नहीं?  आइए बताते हैं, क्या पूरा मामला…

दरअसल इस वीडियो में मदालसा शर्मा ‘जाती हूं मैं’ गाना गाती नजर आईं, जिसपर सुधांशु पांडे ने कहा, अरे तू जा रे.. इस बात पर ही दोनों झगड़ा करने लगे.  काव्या ने इस वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि ‘जाते-जाते किसी को ‘जा रे’ कहने से उसकी ईगो हर्ट हो सकती है और वो आपके ऊपर जानलेवा प्रहार कर सकता है.

 

सीरियल ‘अनुपमा’ की बात करे तो शो में इन दिनों दिखाया गया कि तोषू अचानक हॉस्पिटल आ जाता है, जिसे देखकर किंजल और बाकी परिवार तो खुश हो जाता है, लेकिन राखी दवे का खून खौल जाता है. वह अनुपमा से बातें बताने की कोशिश करती हैं, लेकिन कुछ भी नहीं कह पाती हैं.

 

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शो में आप देखेंगे कि अनुपमा किंजल के चक्कर में अपने पति अनुज और छोटी अनु को भूल जाती है तो दूसरी ओर अनुज उससे कहता है कि अगर उसका मन हो तो वह वहां पर रुक सकती है. अनुज इसके अलावा भी अनुपमा से कुछ कहने की कोशिश करता है, लेकिन तभी वहां तोषू आ जाता है, जिससे अनुपमा अपने पति का फोन काट देती है.

 

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शो में ये भी दिखाया जाएघा कि राखी दवे तोषू को अपने साथ अकेले लेकर जाती हैं और उससे पूछती हैं कि वह होटल में किसी लड़की के साथ क्या कर रहा था. इस बात पर तोषू बहाने बनाने लगता है. वह राखी दवे से कहता है कि लड़की के साथ उसका कोई भी इमोशनल अटैचमेंट नहीं है.

 

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राखी दवे तोषु की तुलना वनराज से करती है और कहती है कि तुम्हारी रगों में तो वनराज शाह का खून बह रहा है जो उसने अपनी बीवी के साथ किया वो तू अपनी बीवी के साथ कर रहा है. लेकिन मैं अपनी बेटी को अनुपमा नहीं बनने दूंगी.

द्रौपदी मुर्मू का चयन

भारत में राष्ट्रपति केवल संवैधानिक प्रतीक है कि वह शासक है. सरकार उसी के नाम पर चलती है और 1950 से ही राष्ट्रपति के पास न्यायालय के अधिकार रहे है. भारत में अब तक ऐसा मौका नहीं आया जब राष्ट्रपति को शासन की असली बागडोर संभालनी हो. इसलिए द्रौपदी मुर्मू के निर्वाचन को किसी लोकतांत्रिक क्रांति का नाम देना गलत ही होगा.

भारतीय जनता पार्टी के नेता दौपदी मुर्मू के सफल चुनाव पर जो कसीदे पढ़ रहे हैं असल में नरेंद्र मोदी का मुंह देख कर उसी धुन पर बांसुरी बजा रहे हैं. द्रौपदी मुर्मू जैसी कोई आदिवासी महिला नेता बिना किसी बड़ी पार्टी के सहयोग से अगर किसी राज्य की मुख्यमंत्री भी बनती तो एक छोटीमोटी क्रांति कहा जा सकता था जैसा मायावती, जयललिता या ममता बनर्जी ने कर दिखाया.

भारतीय समाज प्रतीकों में बहुत विश्वास करता है और इतना करता है कि प्रतीक की मौजूदगी को वास्तव में ठोस मानने लगता है. चमत्कारों में विश्वास पैदा करना हर धर्म का मुख्य हथकंडा है पर जब इसे राष्ट्रीय राजनीति में ले आया जाए तो इस का खोखलापन स्पष्ट हो जाता है.

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रपति मनोनीत द्रौपदी मुर्मू और कांग्रेस की मनोनीत प्रतिभा पाटिल में कोई खास फर्क नहीं है. दोनों योग्यता और सौभाग के कारण बहुमत के मतों वाली पार्टी की देन हैं पर न प्रतिभा पाटिल से आशा थी कि वे देश को बदलेंगी न द्रौपदी मुर्मू से की जानी चाहिए. हां, कोई अप्रत्याशित घटना घट जाए और यूक्रेन के ऐक्टर कौमेडियन वोलोदोमीर जेलेंस्की की तरह संकट के दौरान देश का नेतृत्व करने का मौका मिल जाए, तो बात दूसरी होगी.

आदिवासियों महिलाओं को तो छोडि़ए, अभी तो स्वर्ण महिलाओं की इस समाज में पूछ नहीं है. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बने रहने के दौरान ऐसा कुछ नहीं हुआ कि कहा जा सके कि देश में औरतों के लिए कोई बदलाव आया. वर्ष 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी की राजनीति पर पूरी पकड़ रही पर वे भी औरतों को सवर्ण या असवर्ण भेदभाव, परंपराओं, संकीर्णता के गहरे गढ़े से नहीं निकाल पाईं.

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना इतना सुखद है कि यह प्रतीकात्मक पद भी ऊंचे घर से संबधित हस्ती को नहीं दिया गया. द्रौपदी मुर्मू को निर्वाचन के लिए बधाई और यह आशा की जाए कि कम से कम वे अब वंचितों की सुनेंगी तो सही.

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