Download App

तेरे सुर और मेरे गीत: श्रुति और वैजयंति का क्या रिश्ता था

दूसरा पिता-भाग 2 : क्या कमलकांत को दूसरा पिता मान सकी कल्पना

पति के छिनते ही पद्मा की जैसे दुनिया ही छिन गई थी. कछुए की तरह अपने भीतर सिमट कर रह गई थी, अपने घर में, अपने कमरे में.

कल्पना अकसर कहा करती, ‘मां, आप का जी नहीं घबराता इस तरह गुमसुम रहतेरहते?’

वह हंसने का निष्फल प्रयास करती, ‘कहां हूं गुमसुम, खुश तो हूं.’ पर कहां थी, वह खुश? खाली हाथ, रीता जीवन, एक सतत प्यास लिए सूखा रेगिस्तान मन, उड़ती हुई रेत और सुनसान दिशाएं. औरत, पुरुष के बिना अधूरी क्यों रह जाती है?

अपने जीवन से हट कर पद्मा देखी हुई फिल्म के बारे में सोचने लगी…उसे लगा, वह खुद देवदास के किरदार में है, ‘अब तो सिर्फ यही अच्छा लगता है कि कुछ भी अच्छा न लगे,’ ‘यह प्यास बुझती क्यों नहीं’, ‘क्यों पारो की याद सताती है?’, ‘कौन कमबख्त पीता है होश में रहने के लिए? मैं तो पीता हूं जीने के लिए कि कुछ सांसें ले सकूं’, ‘मैं नहीं कर सकता. क्या सभी लोग सभीकुछ करते हैं?’ फिल्म के ऐसे कितने ही वाक्य थे, जो उस के दिलोदिमाग में ज्यों के त्यों खुद से गए थे. क्या हर दुख झेलने वाला व्यक्ति देवदास है? क्या देवदास आज की भी कड़वी सचाई नहीं है?

‘चंद्रमुखी, तुम्हारा यह बाहर का कमरा तो बिलकुल बदल गया.’

क्या जवाब दिया चंद्रमुखी ने, ‘बाहर का ही नहीं, अंदर का भी सब बदल गया है.’

क्या सचमुच वह भी बाहरभीतर से बदल नहीं गई पूरी तरह? चंद्रमुखी ने वेश्या का पेशा छोड़ दिया है. देवदास कहता है, ‘छोड़ तो दिया है, पर औरतों का मन बहुत कमजोर होता है, चंद्रमुखी.’

पद्मा सोचती है, ‘क्या सचमुच औरतों का मन बहुत कमजोर होता है? क्या आदमी का मोह, आदमी की चाह, उसे कभी भी डिगा सकती है? वह कभी भी उस के मोहपाश में बंध कर अपना आगापीछा भुला सकती है?’

अचानक पद्मा हड़बड़ा गई क्योंकि आगे चलता एक व्यक्ति अचानक चकरा कर उस के पास ही फुटपाथ पर गिर पड़ा था. वह कुछ समझ नहीं पाई. बगल के पान वाले की दुकान से पद्मा ने पानी लिया और उस के चेहरे पर छींटे मारे. लोगों की भीड़ जुट गई, ‘कौन है? कहां का है? क्या हुआ?’ जैसे तमाम सवाल थे, जिन के उत्तर उस के पास नहीं थे.

लोगों की सहायता से पद्मा ने उस व्यक्ति को एक तिपहिए पर लदवाया, खुद साथ बैठी और मैडिकल कालेज के आपात विभाग पहुंची.

पद्मा ने तिपहिया चालक की सहायता से उस व्यक्ति को उतारा और आपात विभाग में ले जा कर एक बिस्तर पर लिटा दिया. कल्पना को तलाश करवाया तो वह दौड़ी आई, ‘‘क्या हुआ, मां, कौन है यह?’’

पद्मा क्या जवाब देती, हौले से सारी घटना बता दी.

‘‘तुम भी गजब करती हो, मां. ऐसे ही कोई आदमी गिर पड़ा और तुम ले कर यहां चली आईं. मरने देतीं वहीं.’’

उस ने बेटी को अजीब सी नजरों से देखा कि यह क्या कह रही है? मरने देती? सहायता न करती? यह भी कोई बात हुई? अनजान आदमी है तो क्या हुआ, है तो आदमी ही.

‘‘दूसरे लोग उठाते और किसी अस्पताल ले जाते. या फिर पुलिस उठाती. आप क्यों लफड़े में पड़ीं, मरमरा गया तो जवाब कौन देगा?’’ भुनभुनाती कल्पना डाक्टरों के पास दौड़ी.

डाक्टरों ने कल्पना के कारण उस की अच्छी देखभाल की. 2 घंटे बाद उसे होश आया. दाएं हिस्से में जुंबिश खत्म हो गई थी, लकवे का असर था.

जब उसे ठीक से होश आ गया तो पद्मा को खुशी हुई, एक अच्छा काम करने का आत्मसंतोष. उस ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’

‘‘कहीं नहीं और शायद सब कहीं,’’ वह अजीब तरह से मुसकराया.

‘‘हम लोग आप के घर वालों को खबर करना चाहते थे, पर आप की जेब से कोई अतापता नहीं मिला. सिर्फ रुपए थे पर्स में, ये रहे, गिन लीजिए,’’ पद्मा ने पर्स उस की तरफ बढ़ाया.

कल्पना भी निकट आ कर बैठ गई थी.

‘‘मैडम, जो लोग सड़क पर गिरे आदमी को अस्पताल पहुंचाते हैं, वे उस का पर्स नहीं मारते,’’ वह उसी तरह मुसकराता रहा, ‘‘समझ नहीं पा रहा, आप को धन्यवाद दूं या खुद को कोसूं.’’

‘‘क्यों भला?’’ कल्पना ने पूछा, ‘‘आप के बीवीबच्चे आप की कुशलता सुन कर कितने प्रसन्न होंगे, यह एहसास है आप को?’’

‘‘कोई नहीं है अब हमारा,’’ वह आदमी उदास हो गया, ‘‘2 साल हुए, हत्यारों ने घर में घुस कर मेरी बेटी और पत्नी के साथ बलात्कार किया था. लड़के ने बदमाशों का मुकाबला किया तो उन लोगों ने तीनों की हत्या कर दी.’’

‘‘यह सुन कर वे दोनों सन्न रह गईं.

काफी देर तक खामोशी छाई रही, फिर पद्मा ने पूछा, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’

‘‘कहां बताऊं? शायद कहीं नहीं. जिस घर में रहता था, वहां हर वक्त लगता है जैसे मेरी बेटी, पत्नी और बेटा लहूलुहान लाशों के रूप में पड़े हैं. इसलिए उस घर से हर वक्त भागा रहता हूं.’’

‘‘यहां लखनऊ में आप कैसे आए थे?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘इलाहाबाद में किताबों का प्रकाशक हूं. स्कूल, कालेजों की पुस्तकें प्रकाशित करता हूं-पाठ्यपुस्तकों से ले कर कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक आदि तक,’’ वह बोला, ‘‘यहां इसी सिलसिले में आया था. हजरतगंज के एक होटल में ठहरा हूं. एक सिनेमाहौल में पुरानी फिल्म ‘देवदास’ लगी है, उसे देखने गया था कि रास्ते में गश खा कर गिर पड़ा.’’

डाक्टरों से बात कर के कल्पना उस व्यक्ति को मां के साथ घर लिवा लाई, ‘‘चलिए, आप यहीं रहिए कुछ दिन,’’ उस ने कहा, ‘‘हम आप का सामान होटल से ले आते हैं. कमरे की चाबी दीजिए और होटल की कोई रसीद हो, तो वह…’’

‘‘रसीद तो कमरे में ही है, चाबी यह रही,’’ उस ने जेब से निकाल कर चाबी दी.

कल्पना ने मां को बताया, ‘‘इन्हें कोई ठंडी चीज मत देना. गरम चाय या कौफी देना.’’

फिर एक पड़ोसी को साथ ले कर कल्पना चली गई.

पद्मा कौफी बना लाई. उस व्यक्ति ने किसी तरह बैठने का प्रयास किया, ‘‘बिलकुल इतनी ही उम्र थी मेरी बेटी की,’’ उस का गला भर्रा गया, आंखों में नमी तिर आई.

‘‘भूल जाइए वह सब, जो हुआ,’’ पद्मा बोली, ‘‘आप अकेले नहीं हैं इस धरती पर जिन्हें दुख झेलना पड़ा, ऐसे तमाम लोग हैं.’’

वह कुछ बोला नहीं, भरीभरी आंखों से पद्मा की तरफ देखता रहा और कौफी के घूंट भरता रहा.

‘‘सच पूछिए तो अब जीने की इच्छा ही नहीं रह गई,’’ वह बोला, ‘‘कोई मतलब नहीं रह गया जीने का. बिना मकसद जिंदगी जीना शायद सब से मुश्किल काम है.’’

‘‘शायद आप ठीक कहते हैं,’’ पद्मा के मुंह से निकल गया, ‘‘मैं ने भी ऐसा ही कुछ अनुभव किया जब कल्पना के पिता ने अचानक एक दिन मुझे छोड़ दिया.’’

‘‘आप जैसी नेक औरत को भी कोई आदमी छोड़ सकता है क्या?’’ उसे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘मधु नामक एक लड़की पड़ोस में रहती थी. हमारे घर आतीजाती थी. वे उसी के मोह में फंस गए. कल्पना तब छोटी थी. वे चले गए मुझे छोड़ कर,’’ पता नहीं वह यह सब उस से क्यों कह बैठी.

धर्म: खरबों का भक्तिलोक

धर्म सत्ता पाने और उसे हथियाए रखने का सब से आसान जरिया है. इस के लिए जरूरत भक्ति का माहौल बनाए रखने की है. पूरे देश में मुद्दे की बात कोई नहीं कर रहा. भक्ति पर अरबों रुपए बरबाद किए जा रहे हैं और जनता अभावों को दरकिनार कर इस नशे में झूम रही है. धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन राजनीति में भक्ति या नायकपूजा पतन का निश्चित रास्ता है जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है.

-डाक्टर भीमराव आंबेडकर द्वारा 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए गए भाषण का अंश. आगे इसी भाषण में उन्होंने यह कहते आगाह किया था कि आम लोग किसी भी राजनेता के प्रति अंधश्रद्धा न रखें वरना इस की कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ेगी. दूसरे देशों की तुलना में भारतीयों को इस से ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. भारत की राजनीति में भक्ति या आत्मसमर्पण या नायकपूजा दूसरे देशों की तुलना में बड़े स्तर पर अपनी भूमिका निभाती है. यह वह समय था जब आम लोगों में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रति अंधभक्ति किसी सुबूत की मुहताज नहीं थी. अंधभक्ति आज भी है, बस, उस की वजह और चेहरा बदल गए हैं.

11 अक्तूबर के तमाम दैनिक अखबारों में 2 पृष्ठों का एक सरकारी विज्ञापन छपा था जिस का टाइटल था- श्री महाकाल लोक उज्जैन. बैकग्राउंड में मंदिर की तसवीर के साथसाथ विज्ञापन के नीचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हाथ जोड़े भक्तिमुद्रा में तसवीरें थीं. इस विज्ञापन की सब से ज्यादा आकर्षक लेकिन चिंताजनक बात श्री महाकाल लोक प्रोजैक्ट की लागत का 2-4 करोड़ नहीं, बल्कि 856 करोड़ होनी थी जिस में से कोई 250 करोड़ 11 अक्तूबर के जलसे के प्रचारप्रसार में ही खर्च किए गए या बेरहमी से फूंके गए एक ही बात है. चूंकि सभी अखबारों, न्यूज चैनल्स और दूसरे मीडिया माध्यमों को उन की हैसियत के हिसाब से शंकर का प्रसाद मिला था, इसलिए सभी ने फुरती से अपनी ड्यूटी बजाते इस दिन को खास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दिनभर मीडिया पर महाकाल लोक का सीधाउलटा प्रसारण होता रहा जिस में गिनाने को सरकारों का भक्तिप्रेम और एक अलौकिक काल्पनिक संसार था.

इस जलसे का लाइव प्रसारण हुआ जिसे 40 देशों के श्रद्धालुओं ने देखा. इस के बाद भाट गिरी और शिव पुराण शुरू हो गए कि श्री महाकाल लोक में भगवान शंकर के विविध रूप देखने को मिलेंगे. इस खर्चीले आयोजन को मध्य प्रदेश के 25 हजार मंदिरों में सीधे दिखाने के जिला कलैक्टरों को निर्देश थे कि वे मंदिरों में टीवी स्क्रीन का इंतजाम करें जिस से प्रदेश शिवमय दिखे. कहा यह भी गया कि इस जलसे से 50 देशों के एनआरआई जुड़ेंगे और उद्घाटन के बाद महाकाल लोक में एक लाख श्रद्धालु प्रति घंटे दर्शन कर सकेंगे. यहां रुक कर इसे सम झने की जरूरत है कि जब एक घंटे में एक लाख श्रद्धालु दर्शन करेंगे तो वे चढ़ावा भी इस लोक की भव्यता के हिसाब से चढ़ाएंगे.

वैसे तो दूसरे ब्रैंडेड मंदिरों की तरह महाकाल के मंदिर में भी सालाना अरबों का चढ़ावा आता ही आता है लेकिन कायाकल्प के बाद अगर औसतन सौ रुपए प्रति श्रद्धालु भी चढ़ावा आया तो प्रति घंटे एक करोड़ रुपया इकट्ठा होगा. मंदिर दिन में 20 घंटे भी खुला रहा तो एक दिन में 20 करोड़ यानी एक महीने में 600 करोड़ और सालभर में 7,200 करोड़ रुपया तो आना ही है. इस के बाद जिस की जैसी इच्छा और श्रद्धा खासतौर से महिलाओं की जो ऐसे ब्रैंडेड मंदिरों में जा कर अपनी सुधबुध खो बैठती हैं और शरीर के जेवर तक अर्पण कर आती हैं. ये वही महिलाएं हैं जिन्हें धर्म के नाम पर नंगेपांव कलश यात्राओं में और देवी व शंकर के पहाड़ी पर बने मंदिरों में मीलों नंगेपांव चलाया जाता है, इस के बाद भी ये अपने नाजुक पैरों और तलुवों में पड़े छालों को भगवान का प्रसाद मानती हैं.

परवान चढ़ रहा भक्ति का कारोबार चढ़ावे के लिहाज से महाकाल लोक भी घाटे का कैंपस साबित नहीं होने वाला लेकिन इस के एवज में भक्तों को मिलेगा क्या, यह न तो उन्होंने कभी पहले सोचा था और न अभी सोच रहे हैं. ऐसा भी नहीं कि सोचने लायक दिमाग या बुद्धि उन के पास न हो. दरअसल ऐसा है कि वे कुछ सोचना ही नहीं चाहते. यही नहीं, सरकार भी नहीं चाहती कि पैसे वाले ये अक्लमंद महंगाई, बेरोजगारी, जीएसटी वगैरह के बारे में सोचते अपने दिमाग को तकलीफ दें वरना उस की पोल खुलने लगेगी. इसीलिए इन्हें महाकाल लोक जैसे मंदिर प्रांगण कर के चमका कर थमाए जा रहे हैं ताकि ये इन में उल झे रहें और इन की जेब व दिमाग दोनों ढीले हों.

वे, बस, हरहर महादेव का नारा लगाते खामोशी से पैसे चढ़ाते यह सोचते रहें कि यह सब हमारे कल्याण के लिए ही तो किया जा रहा है कि जब देश ‘हिंदू राष्ट्र’ बन जाएगा तो हमारी हैसियत वही होगी जो पौराणिक युग में हुआ करती थी. इस बारे में मनुस्मृति सहित तमाम धर्मग्रंथों में इफरात से लिखा है. इस के अलावा, गारंटेड मोक्ष तो मिलना तय है ही. जनता भक्ति में लीन रहे, यह पहली प्राथमिकता है जिस के लिए देशभर के कई बड़े मंदिर चमका कर पहले ही लोकार्पित किए जा चुके हैं. इन में पहला बड़ा नाम अयोध्या के राममंदिर का है. विवादित रहे राममंदिर, जिस की हिंसा में हजारों लोग मारे गए थे, को जून 2022 तक मिला चंदा 5 हजार करोड़ रुपए की अपार धनराशि का है. नकदी के अलावा लोग सोना, चांदी, गहने और ईंटें, पत्थर तक दान में दे रहे हैं.

राममंदिर के चंदे के लिए रामभक्तों ने 15 जनवरी से 27 फरवरी, 2021 तक समर्पण निधि अभियान चलाया था. अभियान इतना बड़ा था कि 9 लाख कार्यकर्ताओं की 175 हजार टोलियों ने घरघर जा कर 10 करोड़ परिवारों से चंदा इकट्ठा किया था. 5 हजार करोड़ रुपए की समर्पण निधि के बाद भी 3,500 करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के बैंक खातों में जमा है. यह स्थिति या पैसा तो तब है जब कई समर्पण केंद्रों का इकट्ठा किया चंदा ट्रस्ट के पास नहीं पहुंचा है. इन 35 केंद्रों का हिसाबकिताब और ब्योरा मिलने के बाद पता चलेगा कि कितनी धनराशि समर्पण निधि के रूप में प्राप्त हो चुकी है. राममंदिर चूंकि भगवा गैंग द्वारा प्रायोजित जन आंदोलन का नतीजा था, इसलिए आम और खास जनों से चंदा लिया जा रहा है. लेकिन वाराणसी के काशी विश्वनाथ कौरिडोर का बजट 900 करोड़ रुपए था जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही 13 दिसंबर, 2021 को लोकार्पित किया था.

लोकार्पण के बाद इस मंदिर पर भी चढ़ोत्री की बारिश होने लगी. हर साल इस मंदिर के खजाने में 20 करोड़ रुपए आते हैं. कौरिडोर बनने के बाद पंडेपुरोहितों का धंधा चमका है जो भक्तों को तिलक लगाने की भी दक्षिणा लेते हैं और अभिषेक व प्राइवेट अनुष्ठानों से भी तगड़ी कमाई करते हैं. इन्हीं कर्मकांडों से इस से ज्यादा कमाई उज्जैन के पेशवाओं, पंडितों और पुरोहितों की होनी तय है. दरअसल देशभर के मंदिरों में इन्हीं की सहूलियत और कमाई के लिए जनता की खूनपसीने की गाढ़ी कमाई को फूंका जा रहा है और दक्षिणा की शक्ल में ब्याज भी इन्हीं से अपने ही पैसों पर वसूला जा रहा है. गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर के लिए भी सरकार 2 किस्तों में 280 करोड़ रुपए साल 2019 में दे चुकी है.

इस के और भी प्रोजैक्ट पैंडिंग हैं. चारधाम परियोजना का बजट 12 हजार करोड़ रुपए का है. उज्जैन में अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने इस का जिक्र भी किया था. इसी तरह बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे दर्जनों मंदिरों पर भी सरकार मेहरबान है और दरियादिली से पैसा लुटाती है जिस से मंदिरों के पंडेपुजारियों की आमदनी बढ़े. मकसद यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग आएं और जेब ढीली करें. इस से दूसरा फायदा उन की भक्त मानसिकता बढ़ते रहने का होता है जिस से वे सरकार के कामों और फैसलों को हरि इच्छा मान कोई कुतर्क नहीं करते. ताकि भ्रम बना रहे यह बीमारी देशभर में फैलाने का जिम्मा भगवा गैंग ने नरेंद्र मोदी को दे रखा है जो दीवाली के पहले केदारनाथ और दीवाली पर अयोध्या गए.

वे अब प्रधानमंत्री कम महंत ज्यादा लगने लगे हैं. हर धार्मिक आयोजन में उन की वेशभूषा ऋषिमुनियों सरीखी रहती है. मुख्यधारा के ये लोग हल्ला इतना मचाते हैं कि बस अब पौराणिक युग की पुनर्स्थापना हो ही गई है और वे कोई पीएम नहीं, बल्कि अवतार हैं जो दुष्टों का नाश करने को अवतरित हुए हैं. ये दुष्ट हर कोई जानता है कि मुसलमान, दलित, आदिवासी और औरतों के अलावा विपक्षी दलों के वे नेता हैं जो पूरी तरह मनुवाद और वर्णव्यवस्था से सहमत नहीं. इन मुट्ठीभर लोगों के होहल्ले में मुद्दों और बाकी लोगों की आवाजें दब कर रह गई हैं और यही भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं की चिंता भी थी कि लोकतंत्र अपने माने खो देगा. उज्जैन हो, काशी हो, अयोध्या हो या चारधाम हो, नरेंद्र मोदी के भाषणों का धर्म और भक्ति के इर्दगिर्द ही घूमना कोई शुभ संकेत नहीं है. देश तरहतरह की समस्याओं से घिरता जा रहा है. बढ़ती महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है.

लेकिन सरकार है कि धार्मिक आयोजनों, मंदिरों की मरम्मत में पैसा फूंके जा रही है जिस से रोजगार पंडेपुरोहितों को ही मिलता है. आम लोग तो और लुटतेपिटते हैं. तथाकथित बुद्धिजीवी सवर्ण अपनी खिसियाहट ढकने के लिए दलील यह देते रहते हैं कि मंदिरों के विकास से स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता है. लेकिन ये लोग यह नहीं सोच पाते कि यह कोई उत्पादक काम नहीं है और न ही सेवा है. इस से पैसा बनता नहीं, बल्कि खर्च होता है जोकि फुजूल है. यही मध्यवर्गीय ज्यादा पैसा धरमकरम पर खर्चते हैं. क्यों खर्चते हैं, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि सिर्फ इसलिए कि इन का यह मुगालता कायम रहे कि वे हिंदुत्व की पहली जमात के लोग हैं. यह सारी ताम झाम एक साजिश है जिस से कुछ अगड़ी जाति वालों में उन के श्रेष्ठ होने का भ्रम बना रहे. यही धर्म के जरिए सामाजिक और जातिगत भेदभाव फैलाने का वह टोटका है जिस के लिए भगवा गैंग प्रतिबद्ध है.

बढ़ती भूख और बेरोजगारी सरकार जब अरबों रुपए सब का पेट भरने वाले भगवान के मंदिरों की भव्यता पर फूंक रही है तो क्यों देश में करोड़ों लोग भूखे हैं? इसे भाग्य और पूर्वजन्म के कर्म कह कर टरकाने की कोशिश करना एक धूर्तता वाली बात है जिस का जनक धर्म ही है. सब को खाना और रोजगार मिले, इस की जिम्मेदारी तथाकथित ऊपर वाले के सिर मढ़ना अपनी जिम्मेदारियों से भागने वाली बात है जो धार्मिक भाषा में ही कहें तो अकर्मण्यता है. यह जिम्मेदारी तो सीधेतौर पर सरकार की है जिस पर वह खरा नहीं उतर पा रही. महाकाल लोक के हफ्तेभर बाद ही ग्लोबल हंगर इंडैक्स 2022 की यह रिपोर्ट हकीकत उजागर कर देने वाली थी कि 121 देशों की लिस्ट में भारत 107वें नंबर पर है. रिपोर्ट में भारत की स्थिति उस के गरीब और निरीह कहे जाने वाले पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार से भी बदतर बताई गई थी. भक्तों और गोदी मीडिया ने यह कह कर आंख बंद कर लेने की कोशिश की कि यह तो विश्वगुरु बनने जा रहे भारत को बदनाम करने की साजिश है.

‘भूखे भजन न होय गोपाला’ की तर्ज पर सरकार सहित सभी को यह सम झ लेने की जरूरत है कि करोड़ों भूखों और बेरोजगारों के चलते विश्वगुरु बनने का वेवजह का ख्वाब देखना बेतुकी और गैरजरूरी बात है. महाकाल लोक पर जो 856 करोड़ रुपए बहाए गए उन्हें सही जगह इस्तेमाल कर कुछ सौ युवाओं को तो रोजगार दिया जा सकता था जिस से देश की तरक्की ही होती. बेरोजगारी का यह वह दौर है जब हताशनिराश युवा रोजगार और नौकरियों की मांग को ले कर सड़कों पर हैं तो फिर क्यों सरकार देश के मंदिरों पर पानी की तरह पैसा बहा रही है, यह ऊपर बताया जा चुका है. हालांकि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में बड़ी तादाद में बेरोजगार शामिल हो रहे हैं लेकिन लगता नहीं कि बगैर किसी बड़े हादसे या आंदोलन के सरकार अपनी प्राथमिकताएं बदलेगी. रही बात अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी और बदहाली की व रुपए की गिरती कीमत की तो सरकार को ऐसी कोई चिंता है,

ऐसा लगता नहीं. उस का तो पूरा ध्यान मंदिरों और मूर्तियों के विकास पर है. सो, कोई क्या कर लेगा. -भारत भूषण श्रीवास्तव द्य बौखलाए क्यों हैं शिवराज सिंह चौहान 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की जनता ने शिवराज सिंह चौहान सरकार को चलता कर दिया था तो इस की एक बड़ी वजह उस की ऊटपटांग कार्यशैली भी थी जिस में कोई बदलाव कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद भी नहीं हुआ है. प्रदेश सरकार खजाने को मैनेज नहीं कर पा रही है, इस से ज्यादा चिंता की बात प्रदेश पर लगातार बढ़ता कर्ज है. हाल ही में राज्य सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से एक हजार करोड़ रुपए का और कर्ज 15 साल के लिए लिया है. मार्च 2022 तक राज्य के सिर पर 2 लाख 95 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था. अब यह कुल 3 लाख 3 हजार करोड़ रुपए का हो गया है. महाकाल लोक पर एक दिन में करोड़ों रुपए फूंक कर सरकार एक तरह से अदूरदर्शिता ही दिखा गई.

इस संबंध में वायरल हुए एक परचे पर उस की चुप्पी भी हैरान कर देने वाली है. इस चर्चित परचे के मुताबिक 11 अक्तूबर को 3,110 वाहनों का ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल किया गया. 15 जिलों से कोई 66 हजार लोगों को ढोया गया जिन के खानेपीने पर ही 3 करोड़ 39 लाख 38 हजार 700 रुपए खर्च हुए. दीगर खर्चों का हिसाबकिताब अभी सामने नहीं आया है. 25 हजार मंदिरों में टीवी लगाने पर कितना खर्च हुआ होगा, सहज अंदाज लगाया जा सकता है. महाकाल लोक के लोकार्पण के दिन सभी विभागों के कुल 65 हजार कर्मी ड्यूटी पर लगाए गए थे. यह सब ताम झाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रसन्न करने के लिए था या बाबा महाकाल को, यह तो शिवराज सिंह ही जानें जिन के जाने की चर्चा आएदिन उन्हें परेशान करती रहती है. किसान और युवा बेरोजगार तो सरकार से खफा हैं ही,

अब सरकारी कर्मचारी भी आजिज आ चले हैं. प्रधानमंत्री के दौरे के बाद 16 अक्तूबर, इतवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे के दिन सभी महाविद्यालयों को निर्देश थे कि वे ज्यादा से ज्यादा तादाद में छार्त्रों को ढो कर लाएं या फिर कालेजों में औनलाइन जमावड़ा दिखाएं. हाल तो यह है कि प्रदेश की समस्याओं पर सरकार का कोई ध्यान है ही नहीं. ऊपर वाले के साथसाथ दिल्ली वालों को खुश करने के चक्कर में शिवराज सिंह इतने बौखलाने लगे हैं कि आएदिन मंच से कर्मचारियों, अधिकारियों को हटा देने और देख लेने की धमकी देते नजर आते हैं.

इसे उन की बहुत बड़ी कमजोरी के तौर पर देखा जा रहा है. यह सोचना बेमानी है कि इस से जनता खुश होती है क्योंकि उसे मालूम है कि सरकार का ध्यान उस की परेशानियों की तरफ है ही नहीं. असल में यह प्रदेश भाजपा की अंदरूनी कलह और फूट की देन है. इसे भी मुख्यमंत्री मैनेज नहीं कर पा रहे हैं. अमित शाह जब ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया के महल जय विलास पैलेस गए तो शिवराज गुट के हाथपांव फूल गए थे. यह अनिश्चितता अभी भी बरकरार है. नगरनिगम चुनावों में मिली असफलता को मोदीशाह ने गंभीरता से लिया है और अगले साल नवंबर में होने वाले चुनाव को ले कर वे शिवराज सिंह पर आश्वस्त नहीं हैं.

भारत भूमि युगे युगे: अपने अपने अंधविश्वास

अपने अंधविश्वास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा में यह कह कर उन आलोचकों के मुंह बंद करने की नाकाम कोशिश की जो उन्हें विकट का अंधविश्वासी कहते रहते हैं. 31 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के पहले डेटा सैंटर का उद्घाटन करने नोएडा गए योगी के चेहरे पर यह कहते भी हवाइयां ही उड़ रही थीं कि गौतमबुद्ध नगर कोई अभिशप्त जगह नहीं है.

योगीजी तनिक हाई लैवल के अंधविश्वासी हैं जो उन्होंने 5, कालिदास मार्ग, लखनऊ, स्थित मुख्यमंत्री दफ्तर, जिस में अखिलेश बैठा करते थे, का पूरे विधिविधान से शुद्धिकरण करवाया था. उन्हें डर था कि अखिलेश कहीं यहां कोई जादूटोना न कर गए हों. इस हलके अंधविश्वास के बाद उन का तगड़ा अंधविश्वास नवरात्र के दिनों में देखने में आया था जब वे पूरे 9 दिन अपने मठ में सिद्धियां हासिल करने को कैद या बंद रहते किसी उच्च कोटि की साधना में रत थे.

नमक के चमचे बुद्धिजीवी कांग्रेसी नेता उदित राज बेकारी और बेचारगी के दिनों में भी सुर्खियों में रहने का हुनर जानते हैं. उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की गुजरात यात्रा पर तंज कस ही दिया जिस से भगवा गैंग दिल ही दिल में खुश हुआ और उसे उदित पर चढ़ाई का मौका भी मिल गया था. इधर बात राजनीति की कम नमक के क्षेत्रवार खाने को ले कर ज्यादा थी. असल में द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि गुजरात देश 76 फीसदी नमक की पैदावार करता है जिसे सभी भारतीय खाते हैं. उदित राज को यह अतिशयोक्ति लगी तो उन्होंने ट्वीट कर डाला कि द्रौपदी मुर्मू जैसा राष्ट्रपति किसी देश को न मिले, चमचागीरी की भी हद है, कहती हैं 70 फीसदी लोग गुजरात का नमक खाते हैं.

अच्छा तो यह होता कि उदित यह बताते कि गुजरात का नमक किनकिन मीडिया संस्थानों को तोहफे में दिया जाता है जो वे नमक हलाली करते रहते हैं. मी लौर्ड लोकतंत्र बचाइए पिछले 8 सालों से जिन लोगों को लोकतंत्र की चिंता खाए जा रही है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन में से एक हैं. बीते दिनों कोलकाता स्थित राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में देश के चीफ जस्टिस यूयू ललित से ममता का सामना हुआ तो उन्होंने बड़े मार्मिक ढंग से गुहार लगाई कि आप लोकतंत्र बचाइए क्योंकि समाज का एक वर्ग सभी लोकतांत्रिक शक्तियों को कैद कर रहा है. चीफ जस्टिस इस अपील पर खामोश ही रहे क्योंकि 8 नवंबर को उन्हें रिटायर होना था और इतने कम दिनों में वे 75-8=63 साल के लोकतंत्र को नहीं बचा सकते थे.

ममता की बात इस लिहाज से तो सटीक है कि देश में जो 15-20 फीसदी लोकतंत्र बचा है, उस का श्रेय ज्युडीशियरी को ही जाता है, बाकी का राम जाने. लक्ष्मीगणेश ही क्यों आम आदमी पार्टी यानी आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल इन दिनों नए किस्म की राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने नोटों पर लक्ष्मीगणेश की तसवीर छापने की मांग कर डाली और दलील यह दी कि इस से अर्थव्यवस्था सुधरेगी.

मुद्रा का धार्मिकीकरण भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं है लेकिन डर इस बात का है कि कहीं अब जातियों के हिसाब से यह मांग न उठने लगे. जैनियों के नोटों पर महावीर स्वामी, मुसलमानों के नोटों पर हजरत साहब और सिखों के नोटों पर गुरुनानक देव हों तो क्या हर्ज. इधर हिंदुओं के नोट वर्णव्यवस्था के हिसाब से छापे जाएं तो देश हिंदू राष्ट्र बन ही जाएगा. मजा तो तब आएगा जब ब्राह्मणों के नोटों पर परशुराम, क्षत्रियों के नोटों पर राम, वैश्यों के नोटों पर उन की जाति के देवता, मसलन यादवों के नोटों पर कृष्ण और कायस्थ के नोटों पर चित्रगुप्त छपे हों और शूद्रों के नोटों पर बुद्ध और अंबेडकर छापे जा सकते हैं. ऐसा हो पाया तो कोई हमारी अर्थव्यवस्था को हिला नहीं पाएगा.

विंटर स्पेशल: सर्दियों में बनाएं पालक के पराठे

सर्दी के मौसम में लोग ज्यादातर पालक खाना पसंद करते हैं. ऐसे में लोग पालक के कई तरह के फूड बनाकर खाना पसंद करते हैं. जैसे साग, पालक के परांठे. ऐसे में आज मैं आपरको पालक के परांठे बनाने बताउंगी.

कैसे सर्दी के मौसम में पालक के परांठे बनाएं जाते हैं. घर पर आप अपने परिवाल वालों के लिए बहुत आशान तरीके और कम समय में पालक के परांठे बनाएं जा सकते हैं.

समाग्री

पालक

सूखा आटा

गेंहू

नमक

तेल

पान एक कप

विधि

सबसे पहले पालक को अच्छे से साफ करलें उसके बाद उसे धोकर साफ करके उबले के लिए रख दें उसमें थोड़ा सा नमक भी डाल दें. जब पालक कुछ देर तक उबल जाए तो उसे निकालकर ग्राइंडर में पीस लें.

अब सबसे पहले आटा को लेकर उसमें नमक और पीसी हुई हर मिर्च डाल दें. उसके बाद से उस आटे में ग्राइंड किया हुआ पालक मिक्स कर दें. जब पालक को अच्छे से मिलाकर उसको अच्छे से गुंथ ले जब आटा गुंथ जाए तो उसके गोल- गोल लोइया बनाकार उसके परांठे बना लें.

परांठे बनाते समय दोनो तरफ आप घी या फिर रिफाइंड का इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐसे में आपके परांठे सुंदर और फूले- फूले होंगे. आप चाहे तो किस मेहमान को भी ये परांठे दे सकत हैं.

इसके साथ आप हरी धनिया की चटनी या फिर रेड सॉस का इस्तेमाल करें परांठे अच्छे लगेंगे.

 

धार्मिक कट्टरता

भारतीय जनता पार्टी के लिए ईरान की फुटबौल टीम का कतर में व्यवहार एक चेतावनी है. ईरान अपने देश में धार्मिक शरीयती कानून लागू करने की ऐसी ही कोशिश कर रहा है. जिस तरह भारत में भगवाई गैंग हिंदू पौराणिक पुरोहिताई समाज बनाना चाहता है. 10-15 साल इसलामी पंडों, खुमैनी-खामेनाई, की जबरदस्ती बरदाश्त करते और सरकारी मोरल पुलिस के अत्याचारों को सहतेसहते ईरानवासी तंग आ गए थे और आखिर एक लडक़ी म्हासा अमीन की पुलिस वालों के हाथों हुई मौत ने सब बदल कर रख दिया.

जनआक्रोश के चलते 2 महीने से ईरान उबल रहा है. तकरीबन 300 लोग मारे जा चुके हैं. उन में 70-80 बच्चे तक शामिल हैं. जेलें ऐक्टरों, लेखकों से भर दी गर्ई हैं, पुलिस सैल बर्बरता दिखा रही है पर फिर भी जनता चुप नहीं बैठ रही.

हाल यह हो गया कि कतर में वर्ल्ड कप फुटबौल में जो ईरानी टीम फुटबाल खेलने गई, वह राष्ट्रपति से मिल कर उन की दुआ ले कर गई पर असल में उस के मन में कुछ और था. पहले ही मैच, जो इंगलैंड से हुआ, में ईरानी टीम ने अपने देश की राष्ट्रीय धुन बजने पर अपना मुंह सी लिया. यह बहुत गंभीर विद्रोह है. खिलाड़ी जानते हैं कि ईरान लौटते ही उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. अगर मैचों के बाद उन्होंने किसी देश में पनाह ले ली तो भी ईरानी पुलिस उन्हें अपने गुप्तचरों के हाथों मरवा सकती है.

खिलाडिय़ों ने यह खतरा क्यों मोल लिया, क्योंकि धर्म से भी ऊपर व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं हैं. भारत में धर्म के नाम पर एकएक कर के व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं छीनी जा रही हैं. औरतों को घरों में दुबक कर रहने को कहा जा रहा है. बलात्कारियों को जेलों से रिहा ही नहीं किया जा रहा उन्हें संस्कारी कह कर उन का स्वागत भी किया जा रहा है. इस का मतलब साफ है कि अगर आप जय श्रीराम बोलोगे तो आप का हर गुनाह माफ है और नहीं बोलोगे तो आप की हर शराफत देशद्रोह है.

सरकार ने कितने ही लोगों को गिरफतार कर रखा है कि उन के घर से लैफ्टिस्ट लिटरेचर मिला है. कितनों को जेलों में ठूंसा हुआ है कि वे उस भीड़ का हिस्सा थे जो सरकार के आतंकी कानून का विरोध कर रही थी.

सरकार औरतों, दलितों, पिछड़ों के फायदे के लिए न कानून बना रही, न योजनाएं बना रही, वह अपना गुणगान केवल पुरोहितों की दुकानों को बनवाने को गिनवा कर कर रही है जिस का खमियाजा आम औरतों को और ज्यादा आरतियों, और ज्यादा पूजापाठ में लग कर उठाना पड़ रहा है. अगर वे किसी माता की चौकी, देवी के जागरण में न जाएं तो भगवा गैंग उन्हें जाति से बाहर कर देते हैं.

औरतों को घूंघट, बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र जबरन पहनाए जा रहे हैं. यह ईरान के हिजाब की तरह ही है. वहां मोरल पुलिस है. यहां भगवा गमछे डाले लठैतों के गैंग हैं. ईरानी पुलिस को सरकार पैसा देती है, भगवा गैंग चंदा जमा करते हैं. सडक़ों पर बैरियर लगा कर, गाडिय़ों को रोक कर 500-1,000 रुपए झटके जाते हैं, दुकानदारों से तो लाखलाख रुपए तक वसूल कर लिए जाते हैं कि धार्मिक आयोजन होना है, मंदिर सजाना है.

जैसे ईरान आज विद्रोह की कगार पर है, जैसे उस के फुटबौल खिलाड़ी पूरी दुनिया के सामने विद्रोह पर उतर आए वैसा भविष्य में भारत में भी हो, तो बड़ी बात नहीं. यहां सरकारी अंकुश साफ दिख नहीं रहा, छिपा है, यहां ब्रेनवाश से काम लिया जा रहा है. लेकिन, कब जनता का व्रिदोह फूट जाए, पता नहीं.

 

भारतीय जनता पार्टी के लिए ईरान की फुटबौल टीम का कतर में व्यवहार एक चेतावनी है. ईरान अपने देश में धार्मिक शरीयती कानून लागू करने की ऐसी ही कोशिश कर रहा है. जिस तरह भारत में भगवाई गैंग हिंदू पौराणिक पुरोहिताई समाज बनाना चाहता है. 10-15 साल इसलामी पंडों, खुमैनी-खामेनाई, की जबरदस्ती बरदाश्त करते और सरकारी मोरल पुलिस के अत्याचारों को सहतेसहते ईरानवासी तंग आ गए थे और आखिर एक लडक़ी म्हासा अमीन की पुलिस वालों के हाथों हुई मौत ने सब बदल कर रख दिया.

जनआक्रोश के चलते 2 महीने से ईरान उबल रहा है. तकरीबन 300 लोग मारे जा चुके हैं. उन में 70-80 बच्चे तक शामिल हैं. जेलें ऐक्टरों, लेखकों से भर दी गर्ई हैं, पुलिस सैल बर्बरता दिखा रही है पर फिर भी जनता चुप नहीं बैठ रही.

हाल यह हो गया कि कतर में वर्ल्ड कप फुटबौल में जो ईरानी टीम फुटबाल खेलने गई, वह राष्ट्रपति से मिल कर उन की दुआ ले कर गई पर असल में उस के मन में कुछ और था. पहले ही मैच, जो इंगलैंड से हुआ, में ईरानी टीम ने अपने देश की राष्ट्रीय धुन बजने पर अपना मुंह सी लिया. यह बहुत गंभीर विद्रोह है. खिलाड़ी जानते हैं कि ईरान लौटते ही उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. अगर मैचों के बाद उन्होंने किसी देश में पनाह ले ली तो भी ईरानी पुलिस उन्हें अपने गुप्तचरों के हाथों मरवा सकती है.

खिलाडिय़ों ने यह खतरा क्यों मोल लिया, क्योंकि धर्म से भी ऊपर व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं हैं. भारत में धर्म के नाम पर एकएक कर के व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं छीनी जा रही हैं. औरतों को घरों में दुबक कर रहने को कहा जा रहा है. बलात्कारियों को जेलों से रिहा ही नहीं किया जा रहा उन्हें संस्कारी कह कर उन का स्वागत भी किया जा रहा है. इस का मतलब साफ है कि अगर आप जय श्रीराम बोलोगे तो आप का हर गुनाह माफ है और नहीं बोलोगे तो आप की हर शराफत देशद्रोह है.

सरकार ने कितने ही लोगों को गिरफतार कर रखा है कि उन के घर से लैफ्टिस्ट लिटरेचर मिला है. कितनों को जेलों में ठूंसा हुआ है कि वे उस भीड़ का हिस्सा थे जो सरकार के आतंकी कानून का विरोध कर रही थी.

सरकार औरतों, दलितों, पिछड़ों के फायदे के लिए न कानून बना रही, न योजनाएं बना रही, वह अपना गुणगान केवल पुरोहितों की दुकानों को बनवाने को गिनवा कर कर रही है जिस का खमियाजा आम औरतों को और ज्यादा आरतियों, और ज्यादा पूजापाठ में लग कर उठाना पड़ रहा है. अगर वे किसी माता की चौकी, देवी के जागरण में न जाएं तो भगवा गैंग उन्हें जाति से बाहर कर देते हैं.

औरतों को घूंघट, बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र जबरन पहनाए जा रहे हैं. यह ईरान के हिजाब की तरह ही है. वहां मोरल पुलिस है. यहां भगवा गमछे डाले लठैतों के गैंग हैं. ईरानी पुलिस को सरकार पैसा देती है, भगवा गैंग चंदा जमा करते हैं. सडक़ों पर बैरियर लगा कर, गाडिय़ों को रोक कर 500-1,000 रुपए झटके जाते हैं, दुकानदारों से तो लाखलाख रुपए तक वसूल कर लिए जाते हैं कि धार्मिक आयोजन होना है, मंदिर सजाना है.

जैसे ईरान आज विद्रोह की कगार पर है, जैसे उस के फुटबौल खिलाड़ी पूरी दुनिया के सामने विद्रोह पर उतर आए वैसा भविष्य में भारत में भी हो, तो बड़ी बात नहीं. यहां सरकारी अंकुश साफ दिख नहीं रहा, छिपा है, यहां ब्रेनवाश से काम लिया जा रहा है. लेकिन, कब जनता का व्रिदोह फूट जाए, पता नहीं.

बिपासा ने शेयर की बेटी की क्यूट फोटो, पति करण भी दिखें साथ

एक्ट्रेस बिपासा बासु ने 12 नवंबर को एक बेटी को जन्म दिया है, जिसके बाद से उनका परिवार पूरा हो गया है, बता दें कि करण सिंह ग्रोवर और बिपासा बासु ने साल 2016 में शादी रचाई थी, जिसके बाद से वह लंबे समय से पेरेंट्स बनने का इंतजार कर रहे थें.

हालांकि कुछ दिक्कतों के बाद उनकी विश अब जाकर पूरी हो गई हैं. 6 साल के लंबे इंतजार के बाद उनके घर में बच्चे की किलकारी गुंजी हैं. इन दिनों वह पैरेट्स वुड को एंजॉय कर रहे हैं. हाल ही में बिपासा ने अपनी बेटी की पहली झलक दिखाई है, जिसमें उनकी बेटी अपने पापा करण की गोद में सोई हुईं नजर आ रही हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Bipasha Basu (@bipashabasu)

शेयर की गई फोटो में देखा जा सकता है कि करण की बेटी देवी अपने पापा की गोद में हैं, यह बेहद की प्यारी तस्वीर है, फैंस इस तस्वीर पर लगातार कमेंट कर रहे हैं. वहीं एक यूजर ने इस तस्वीर को देखने के बाद से लिखा है कि थू थू नजर ना लगे.

वहीं करण बिपासा की बेटी काफी ज्यादा क्यूट लग रही हैं, इससे पहले बिपासा ने करण के साथ रोमांस करते हुए फोटो शेयर की थीं. बता दें कि करण और बिपासा की पहली मुलाकात अलोन के सेट पर हुई थी, जहां से दोनों का रोमांस शुरू हुआ था. इससे पहले भी करण सिंह ग्रोवर 2 शादियां कर चुके थें, बिपासा

आर्यन खान जल्द करेंगे बॉलीवुड में डेब्यू, शाहरुख के सपने होंगे पूरे

बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपनी खास पहचान बनाने वाले किंग खान यानि शाहरुख खान जल्द अपने बेटे आर्यन खान को बॉलीवुड में डेब्यू करने वाले हैं. आर्यन को बॉलीवुड में ल़ॉच को लेकर शाहरुख खान काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं.

इसका इशारा खुद आर्यन खान ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए दिया है, लेकिन मजे की बात ये है कि आर्यन खान एक्टिंग से हटकर वो राइटिंग में अपनी कैरियर को बनाना चाहते हैं, आर्यन खान ने मंगलवार को अपनी इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर की है जिसे देखकर साफ हो रहा है कि वह जल्द डेब्यू करने वाले हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Aryan Khan (@___aryan___)

आर्यन ने अपने पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा है कि राइटिंग पूरी कर ली है, जिसे वह अपने चाहने वाले लोगों को इशारे करते नजर आ रहे हैं,आगे उन्होंने लिखा है कि वह एक्टश का इंतजार नहीं कर सकता है,

आर्यन की इस पोस्ट पर तमाम बॉलीवुड से लेकर उनके चाहने वाले फैंस उन्हें बधाई देते नजर आ रहे हैं, वहीं शाहरुख ने कमेंट किया है कि वाह सोच रहे हो , विश्वास कर रहे हो, सपने पूरे होंगे, बस अब हिम्मत करो,

तुम्हारे प्रोजेक्ट के लिए मेरी दुआएं हमेशा मेरी साथ हैं, आर्यन खान की मां गौरी खान ने लिखा है कि यह स्पेशल होता है. जिससे साफ समझ आ रहा है कि आर्यन की कामयाबी को देखकर उनके परिवार वाले काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. उम्मीद है कि आर्यन भी अपने पापा की तरह कामयाब निकलेंगे.

कोंडागांव में ड्रैगन फ्रूट की खेती

गन फ्रूट मूल रूप से मैक्सिको का पौधा माना जाता है. इस का वैज्ञानिक नाम ह्वाइट फ्लेशेड पतिहाया है और वानस्पतिक नाम ‘हाइलोसेरेसुंडाटस’ है. वियतनाम, चीन और थाईलैंड में इस की खेती बड़े पैमाने पर होती है. भारत में इसे वहीं से आयात किया जाता रहा है. अब तक इसे अमीरों और रईसों का ही फल माना जाता था, पर जल्द ही यह आम लोगों तक भी पहुंचने वाला है.

बेहद खूबसूरत दिखने वाले इस फल में अद्भुत स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुण पाए जाते हैं. इस बेहद स्वादिष्ट फल में भरपूर मात्रा में एंटीऔक्सीडैंट्स, प्रोटीन, फाइबर, विटामिंस और कैल्शियम आदि पाया जाता है. यही वजह है कि इसे वजन घटाने में मददगार, कोलैस्ट्राल कम करने में सहायक और कैंसर के लिए लाभकारी बताया जाता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का विशेष गुण होने के कारण कोरोना काल में इस का महत्त्व काफी बढ़ गया. इन्हीं वजहों से पूरी दुनिया के लोग इस के दीवाने हैं. वैसे, भारत के कई राज्यों में किसानों द्वारा इस की खेती के प्रयोग हो रहे हैं.

गुजरात के कच्छ, नवसारी और सौराष्ट्र जैसे हिस्सों में बड़े पैमाने पर यह उगाया जाने लगा है. छत्तीसगढ़ में भी कई प्रगतिशील किसानों ने इस की खेती शुरू की है. बस्तर क्षेत्र के जगदलपुर में भी कुछ प्रगतिशील किसानों ने इस की खेती में कामयाबी हासिल की है. कोंडागांव में पहली बार ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म और रिसर्च सैंटर’ ने इस की खेती लगभग 2 साल पहले शुरू की थी. शुरुआत में इन के द्वारा तकरीबन 1,000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए गए थे. वर्तमान में इस में अच्छी तादाद में फल आने शुरू हो गए. इस उपलब्धि के बारे में मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म और रिसर्च सैंटर के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि यह कोंडागांव ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए गर्व और खुशी का विषय है कि कोंडागांव में पैदा किए जा रहे ड्रैगन फ्रूट का न केवल स्वाद और रंग बेहतरीन है, बल्कि औषधीय गुणों व पौष्टिकता के हिसाब से भी यह उत्तम गुणवत्ता का है.

इस का स्वाद भी बेजोड़ है. उन्होंने आगे बताया कि बस्तर की जलवायु और धरती इस की खेती के लिए मुफीद है. हम ने सिद्ध कर दिया कि यहां पर ड्रैगन फ्रूट की सफल खेती की जा सकती है. आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर काली मिर्च की सफल खेती के साथ ही पेड़ों के बीच वाली खाली जगह में ड्रैगन फ्रूट की मिश्रित खेती भी सफलतापूर्वक की जा सकती है. ड्रैगन फ्रूट का पौधा कोई विशेष देखभाल भी नहीं मांगता और केवल एक बार लगाने पर कई साल तक लगातार भरपूर उत्पादन और नियमित मोटी आमदनी देता है. कैक्टस वर्ग का कांटेदार पौधा होने के कारण इसे कीड़ेमकोड़े भी नहीं सताते और जानवरों के द्वारा इस पौधे को बरबाद करने का डर भी नहीं रहता है. एक बार रोपने के बाद इस की सफल खेती से किसान बिना किसी विशेष अतिरिक्त लागत के एक एकड़ से तकरीबन 4-5 लाख रुपए सालाना अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं. आस्ट्रेलियन टीक के रोपने के साथ काली मिर्च व औषधीय पौधों के साथ मिश्रित खेती करने पर यह आमदनी द्विगुणित, बहुगुणित हो सकती है.

भारी मांग होने के कारण इस की मार्केटिंग में भी कोई समस्या नहीं है. गुजरात सरकार दे रही इस की खेती को बढ़ावा ड्रैगन फ्रूट की खेती के इतने सारे फायदों को देखते हुए गुजरात सरकार ने इस की खेती को अपने प्रदेश में काफी बढ़ावा दिया है. यह अलग बात है कि आज राजनीति का हर क्षेत्र में प्रवेश हो रहा है, इसलिए गुजरात सरकार ने इस फ्रूट का नाम बदल कर ‘कमलम’ रखने का फैसला किया है.

गुजरात सरकार ने इस फ्रूट के नए नामकरण ‘कमलम’ के पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है. अब देखने वाली बात यह है कि कोंडागांव में इस की सफल खेती को देखते हुए इस लाभदायक खेती से क्षेत्र के अन्य किसानों को जोड़ने की मुहिम को जिला प्रशासन और प्रदेश शासन का कितना सहयोग मिल पाता है, क्योंकि यह तो तय है कि काली मिर्च और औषधीय पौधों के साथ ही इस की मिश्रित खेती यहां के किसानों को न केवल मालामाल कर सकती है, बल्कि बस्तर सहित पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है.

लेखिका- अपूर्वा त्रिपाठी

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें