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त्यौहार 2022: मेरा प्यार था वह

मुझे ऐसा लगा कि नीरज वहीं उस खिड़की पर खड़ा है. अभी अपना हाथ हिला कर मेरा ध्यान आकर्षित करेगा. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पा कर मैं चौंकी.

‘‘मेघा, आप यहां क्या कर रही हैं? सब लोग नाश्ते पर आप का इंतजार कर रहे हैं और जमाईजी की नजरें तो आप ही को ढूंढ़ रही हैं,’’ छेड़ने के अंदाज में भाभी ने कहा.

सब हंसतेबोलते नाश्ते का मजा ले रहे थे, पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. मैं एक ही पूरी को तोड़े जा रही थी.

‘‘अरे मेघा, खा क्यों नहीं रही हो? बहू, मेघा की प्लेट में गरम पूरियां डालो,’’ मां ने भाभी से कहा.

‘‘नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरा नाश्ता हो गया,’’ कह कर मैं उठ गई.

प्रदीप भैया मुझे ही घूर रहे थे. मुझे भी उन पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आखिर उन्होंने मेरी खुशी क्यों छीन ली? पर वक्त की नजाकत को समझ कर मैं चुप ही रही. मां पापा भी समझ रहे थे कि मेरे मन में क्या चल रहा है. मैं नीरज से बहुत प्यार करती थी. उस के साथ शादी के सपने संजो रही थी. पर सब ने जबरदस्ती मेरी शादी एक ऐसे इनसान से करवा दी, जिसे मैं जानती तक नहीं थी.

‘‘मां, मैं आराम करने जा रही हूं,’’ कह कर मैं जाने ही लगी तो मां ने कहा, ‘‘मेघा, तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं… जूस पी लो.’’

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ मैं ने मां से रुखे स्वर में कहा.

‘‘मेघा, ससुराल में सब का व्यवहार कैसा है और तुम्हारा पति सार्थक, तुम्हें प्यार करता है कि नहीं?’’ मां ने पूछा.

‘‘सब ठीक है मां,’’ मन हुआ कि कह दूं कि आप लोगों से तो सब अच्छे ही हैं. फिर मां कहने लगी, ‘‘सब का मन जीत लेना बेटा, अब वही तुम्हारा घर है.’’

‘‘मांबेटी में क्या बातें हो रही हैं?’’ तभी मेरे पति सार्थक ने कमरे में आते ही कहा.

‘‘मैं इसे समझा रही थी कि अब वही तुम्हारा घर है. सब की बात मानना और प्यार से रहना.’’

‘‘मां, आप की बेटी बहुत समझदार है. थोड़े ही दिनों में मेघा ने सब का मन जीत लिया,’’ सार्थक ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

मेरी शादी को अभी 3 ही महीने हुए थे, मैं शादी के बाद पहली बार मां के घर आई

थी. हमारे यहां आने से सब खुश थे, पर मेरी नजर तो अभी भी अपने प्यार को ढूंढ़ रही थी.

सार्थक ने रात में कमरे में आ कर कहा, ‘‘मेघा क्या हुआ? अगर कोई बात है तो मुझे बताओ. जब से यहां आई हो, बहुत उदास लग रही हो.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है,’’ मैं ने अनमने ढंग से जवाब दिया. सार्थक मुझे एकदम पसंद नहीं. मेरे लिए यह जबरदस्ती और मजबूरी का रिश्ता है, जिसे मैं पलभर में तोड़ देना चाहती हूं पर ऐसा कर नहीं सकती हूं.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ सार्थक ने बड़े प्यार से कहा.

‘‘आज मेरे सिर में दर्द है,’’ मैं ने अपना मुंह फेर कर कहा.

रात करीब 3 बजे मेरी नींद खुल गई. सोने की कोशिश की, पर नींद नहीं आ रही थी. फिर पुरानी यादें सामने आने लगीं…

हमारे घर में सब से पहले मैं ही उठती थी. मेरे पापा सुबह 6 बजे ही औफिस के लिए निकल जाते थे. मैं ही उन के लिए चायनाश्ता बनाती थी. बाकी सब बाद में उठते थे.

मेरे पापा रेलवे में कर्मचारी थे, इसलिए हम शुरू से ही रेलवे क्वार्टर में रहे. रेलवे क्वार्टर्स के घर भले ही छोटे होते थे, पर आगे पीछे इतनी जमीन होती थी कि एक अच्छा सा लौन बनाया जा सकता था. हम ने भी लौन बना कर बहुत सारे फूलों के पौधे लगा रखे थे, शाम को हम सब कुरसियां लगा कर वहीं बैठते थे.

मेरे घर के सामने ही मेरी दोस्त नम्रता का घर था, उस के पापा भी रेलवे में एक छोटी पोस्ट पर काम करते थे. मैं और नम्रता एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ती थीं. हम दोनों पक्की सहेलियां थीं. बेझिझक एकदूसरे के घर आतीजाती रहती थीं. एक रोज मैं और नम्रता बाहर खड़ी हो कर बातें कर रही थीं, तभी मेरी नजर उस के घर की खिड़की पर पड़ी तो देखा कि नीरज यानी नम्रता का बड़ा भाई मुझे एकटक देख रहा है. मुझे थोड़ा अजीब लगा. नीरज भी सकपका गया. मैं अपने घर के अंदर चली गई, पर बारबार मेरे दिमाग में उलझन हो रही थी कि आखिर वह मुझे ऐसे क्यों देख रहा था.

मैं ने महसूस किया कि वह अकसर मुझे देखता रहता है. नीरज का मुझे देखना मेरे दिल को धड़का जाता था. शायद नीरज मुझे पसंद करने लगा था. धीरेधीरे मुझे भी नीरज से प्यार होने लगा. हमारी आखें चार होने लगीं. उस की आंखों ने मेरी आंखों को बताया कि हमें एकदूसरे से प्यार हो गया है. अब तो हमेशा मैं उस खिड़की के सामने जा कर खड़ी हो जाती थी. नीरज की भूरी आंखें और सुनहरे बाल मुझे पागल कर देते थे. अब हम छिपछिप कर मिलने भी लगे थे.

सुबह मैं फिर उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पाकर मैं हड़बड़ा गई और मेरी सोच पर पूर्णविराम लग गया.

‘‘मेघा, तुम कब से यहां बाहर बैठी हो? चलो अंदर चाय बनाती हूं,’’  मां ने कहा.

‘‘मैं यहीं ठीक हूं मां, आप जाओ, मैं थोड़ी देर में आती हूं.’’

मां ने मुझे शंका भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तुम अभी तक उस लफंगे को नहीं भूली हो? अरे, सब कुछ एक बुरा सपना समझ कर क्यों नहीं भूल जाती हो? उसी में सब की भलाई है. बेटा, अब तुम्हारी शादी हो चुकी है, अपनी घरगृहस्थी संभालो. अपने पति को प्यार करो. इतना अच्छा जीवनसाथी और ससुराल मिली है. एक लड़की को और क्या चाहिए?’’

मां की बातों से मुझे रोना आ गया. मेरी गलती क्या थी? यही न कि मैं ने प्यार किया और प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं है? अपने पति से कैसे प्यार करूं. जब मुझे उन से प्यार ही नहीं है?

‘‘अब क्यों रो रही हो? अगर तेरी करतूतों के बारे में जमाई राजा को पता चल गया, तो क्या होगा? अरे बेवकूफ लड़की, क्यों अपना सुखी संसार बरबाद करने पर तुली हो,’’ मां ने गुस्से में कहा.

‘‘कौन क्या बरबाद कर देगा मांजी?’’ सार्थक ने पूछा? जैसे उन्होंने हमारी सारी बातें सुन ली हों.

मां हड़बड़ा कर कहने लगी, ‘‘कुछ नहीं जमाईजी, मैं तो मेघा को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि अब पिछली बातें भूल जाओ… यह अपनी सब सहेलियों को याद कर के रो रही हैं.’’

‘‘ऐसे कैसे भूल जाएगी अपनी सहेलियों को… स्कूलकालेज अपने दोस्तों के साथ बिताया वह पल ही तो हम कभी भी याद कर के मुसकरा लेते हैं,’’ सार्थक ने कहा, ‘‘मेघा, दुनिया अब बहुत ही छोटी हो गई है. हम इंटरनैट के जरीए कभी भी, किसी से भी जुड़ सकते हैं.’’

हम मां के घर 3-4 दिन रह कर अपने घर रांची चल दिए. पटना से रांची करीब 1 दिन का रास्ता है. सार्थक तो सो गए पर ट्रेन की आवाज से मुझे नींद नहीं आ रही थी. मैं फिर वही सब सोचने लगी कि कैसे मेरे परिवार वालों ने हमारे प्यार को पनपने नहीं दिया.

प्रदीप भैया को कैसे भूल सकती हूं. उन की वजह से ही मेरा प्यार अधूरा रह गया था. मेरी आंखों के सामने ही उन्होंने नीरज को कितना मारा था. अगर तब नीरज की मां आ कर प्रदीप भैया के पैर न पकड़ती, तो शायद वे नीरज को मार ही डालते. उस दिन के बाद हम दोनों कभी एकदूसरे से नहीं मिले.

भैया ने तो यहां तक कह दिया था नीरज को कि आइंदा कभी यहां नजर आया या  मेरी बहन को नजर उठा कर भी देखने की कोशिश की, तो मार कर ऐसी जगह फेंकूंगा कि कोई ढूंढ़ नहीं पाएगा.

प्रदीप भैया की धमकी से डर कर नीरज और उस के परिवार वाले यहां से कहीं और चले गए.

नम्रता को हमारे प्यार के बारे में सब पता था. एक दिन नम्रता मेरी मां से यह कह कर मुझे अपने घर ले गई कि हम साथ बैठ कर पढ़ाई करेंगी. हमारी 12वीं कक्षा की परीक्षा अगले महीने शुरू होने वाली थी. अत: मां ने हां कर दी. अब तो हमारा मिलना रोज होने लगा.

एक रोज जब मैं नम्रता के घर गई तो कोई नहीं दिखा सिर्फ नीरज था. उस ने बताया कि नम्रता और मां बाहर गई हैं. मैं वापस अपने घर आने लगी तभी नीरज ने मेरा हाथ अपनी ओर खींचा.

‘‘नीरज, छोड़ो मेरा हाथ कोई देख लेगा,’’ मैं ने नीरज से कहा.

‘‘कोई नहीं देखेगा, क्योंकि घर में मेरे अलावा कोई है ही नहीं,’’ उस ने शरारत भरी नजरों से देखते हुए कहा. उस की नजदीकियां देख कर मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं अपनेआप को नीरज से छुड़ाने की कोशिश कर भी रही थी और नहीं भी. मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. तभी उस ने मेरे अधरों पर अपना होंठ रख दिया.

‘‘नीरज, यह क्या किया तुम ने? यह तो गलत है.’’

‘‘इस में गलत क्या है? हम एकदूसरे से प्यार करते हैं,’’ कह कर उस ने मेरे गालों को चूम लिया.

किसी को हमारे प्यार के बारे में अब तक कुछ भी पता नहीं था, सिर्फ नम्रता को छोड़ कर सुनहरे सपनों की तरह हमारे दिन बीत रहे थे. हमारे प्यार को 3 साल हो गए.

नीरज की भी नौकरी लग गई, और मेरी भी स्नातक की पढ़ाई पूरी हो गई. अब तो हम अपनी शादी के सपने भी संजोने लगे.

मैं ने नीरज को अपने मन का डर बताते हुए कहा, ‘‘नीरज, अगर हमारे घर वाले हमारे शादी नहीं होने देंगे तो?’’

‘‘तो हम भाग कर शादी कर लेंगे और अगर वह भी न कर पाए तो साथ मर सकते हैं न? बोलो दोगी मेरा साथ?’’

‘‘हां नीरज, मैं अब तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं सकती हूं,’’ मैं ने उस के कंधे पर अपना सिर रखते हुए कहा.

हमें पता ही नहीं चला कि कब प्रदीप भैया ने हमें एकदूसरे के साथ देख लिया था.

मेरे और नीरज के रिश्ते को ले कर घर में बहुत हंगामा हुआ. मुझे भैया से बहुत मार भी पड़ी. अगर भाभी बीच में न आतीं, तो शायद मुझे मार ही डालते. उस वक्त मांपापा ने भी मेरा साथ नहीं दिया था.

जल्दीजल्दी में मेरी शादी तय कर दी गई. इन जालिमों की वजह से मेरा प्यार अधूरा रह गया. कभी माफ नहीं करूंगी इन प्यार के दुश्मनों को.

‘‘हैलो मैडम, जरा जगह दो… मुझे भी बैठना है,’’ किसी अनजान आदमी ने मुझे छूते हुए कहा, तो मैं चौंक उठी.

मैं ने कहा, ‘‘यह तो आरक्षित सीट है.’’ तभी 2 लोग और आ गए और मेरे साथ बदतमीजी करने लगे. मैं चिल्लाई, ‘‘सार्थक.’’

सार्थक हड़बड़ा कर उठ गए. जब उन्होंने देखा कि कुछ लड़के मेरे साथ छेड़खानी करने लगे हैं, तो वे सब पर टूट पड़े. रात थी, इसलिए सारे पैसेंजर सोए हुए थे. मैं तो डर गई कि कहीं चाकूवाकू न चला दें.

अत: मैं जोरजोर से रोने लगी. तब तक डिब्बे की लाइट जल गई और पैसेंजर उन बदमाशों को पकड़ कर मारने लगे. कुछ ही देर में पुलिस भी आ गई.

‘‘मेघा, तुम ठीक हो न, तुम्हें कहीं लगी तो नहीं?’’ सार्थक ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उन के सीने से लगते ही लगा जैसे मैं ठहर गई. अब तक तो बेवजह भावनाओं में बहे जा रही थी, जिन की कोई मंजिल ही न थी.

‘‘मैं ठीक हूं, मैं ने कहा.’’ सार्थक के हाथ से खून निकल रहा था, फिर भी उन्हें मेरी ही चिंता थी.

तभी किसी पैसेंजर ने कहा, ‘‘आप चिंता न करें भाई साहब इन्हें कुछ नहीं हुआ है. पर थोड़ा डर गई हैं. खून तो आप के हाथ से निकल रहा है.’’

तभी किसी ने आ कर सार्थक के हाथों पर पट्टी बांध दी. तब जा कर खून का बहना रुका.

मैं यह क्या कर रही थी? इतने अच्छे इनसान के साथ इतनी बेरुखी. सार्थक को अपने से ज्यादा मेरी चिंता हो रही थी… मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूं?

अब सार्थक ही मेरी दुनिया है, मेरे लिए सब कुछ है. नीरज तो मेरा प्यार था. सार्थक तो मेरा जीवनसाथी है.

त्यौहार 2022: बंद मुट्ठी- पंडितजी ने नीता से क्या कहा?

रविवार का दिन था. पूरा परिवार साथ बैठा नाश्ता कर रहा था. एक खुशनुमा माहौल बना हुआ था. छुट्टी होने के कारण नाश्ता भी खास बना था. पूरे परिवार को इस तरह हंसतेबोलते देख रंजन मन ही मन सोच रहे थे कि उन्हें इतनी अच्छी पत्नी मिली और बच्चे भी खूब लायक निकले. उन का बेटा स्कूल में था और बेटी कालेज में पढ़ रही थी. खुद का उन का कपड़ों का व्यापार था जो बढि़या चल रहा था.

पहले उन का व्यापार छोटे भाई के साथ साझे में था, पर जब दोनों की जिम्मेदारियां बढ़ीं तो बिना किसी मनमुटाव के दोनों भाई अलग हो गए. उन का छोटा भाई राजीव पास ही की कालोनी में रहता था और दोनों परिवारों में खासा मेलजोल था. उन की पत्नी नीता और राजीव की पत्नी रिचा में बहनापा था.

रंजन नाश्ता कर के बैठे ही थे कि रमाशंकर पंडित आ पहुंचे.

‘‘यहां से गुजर रहा था तो सोचा यजमान से मिलता चलूं,’’ अपने थैले को कंधे से उतारते हुए पंडितजी आराम से सोफे पर बैठ गए. रमाशंकर वर्षों से घर में आ रहे थे. अंधविश्वासी परिवार उन की खूब सेवा करता था.

‘‘हमारे अहोभाग्य पंडितजी, जो आप पधारे.’’

कुछ ही पल में पंडितजी के आगे नीता ने कई चीजें परोस दीं. चाय का कप हाथ में लेते हुए वे बोले, ‘‘बहू, तुम्हारा भी जवाब नहीं, खातिरदारी और आदर- सत्कार करना तो कोई तुम से सीखे. हां, तो मैं कह रहा था यजमान, इन दिनों ग्रह जरा उलटी दिशा में हैं. राहुकेतु ने भी अपनी दिशा बदली है, ऐसे में अगर ग्रह शांति के लिए हवन कराया जाए तो बहुत फलदायी होता है,’’ बर्फी के टुकड़े को मुंह में रखते हुए पंडितजी बोले.

‘‘आप बस आदेश दें पंडितजी. आप तो हमारे शुभचिंतक हैं. आप की बात क्या हम ने कभी टाली है  अगले रविवार करवा लेते हैं. जो सामान व खर्चा आएगा, वह आप बता दें.’’

रंजन की बात सुन पंडितजी की आंखों में चमक आ गई. लंबीचौड़ी लिस्ट दे कर और कुल 10 हजार का खर्चा बता वे निकल गए.

इस के 2 दिन बाद दोपहर में पंडितजी राजीव के घर बैठे कोल्ड डिं्रक पी रहे थे, ‘‘आप को आप के भाई ने तो बताया होगा कि वे अगले रविवार को हवन करवा रहे हैं ’’

पंडितजी की बात सुन कर राजीव हैरान रह गया, ‘‘नहीं तो पंडितजी, मुझे नहीं पता. क्यों रिचा, क्या भाभी ने तुम्हें कुछ बताया है इस बारे में ’’ अपनी पत्नी की ओर उन्होंने सवालिया नजरों से देखा.

‘‘नहीं तो, कल ही तो भाभी से मेरी फोन पर बात हुई थी, पर उन्होंने इस बारे में तो कोई जिक्र नहीं किया. कुछ खास हवन है क्या पंडितजी ’’ रिचा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘दरअसल वे इसलिए हवन कराने के लिए कह रहे थे ताकि कामकाज में और तरक्की हो. छोटी बहू, तुम तो जानती हो, हर कोई अपना व्यापार बढ़ाना चाहता है. आप लोगों का व्यापार क्या कम फैला हुआ है उन से, पर आप लोग जरा ठहरे हुए लोग हैं. इसलिए जितना है उस में खुश रहते हैं. बड़ी बहू का बस चले तो हर दूसरे दिन पूजापाठ करवा लें. उन्हें तो बस यही डर लगा रहता है कि किसी की बुरी नजर न पड़ जाए उन के परिवार पर.’’

अपनी बात को चाशनी में भिगोभिगो कर पंडितजी ने उन के सामने परोस दिया. उन के कहने का अंदाज इस तरह का था कि राजीव और रिचा को लगे कि शायद यह बात उन्हीं के संदर्भ में कही गई है.

‘‘हुंह, हमें क्या पड़ी है नजर लगाने की. हम क्या किसी से कम हैं,’’ रिचा को गुस्से के साथ हैरानी भी हो रही थी कि जिस जेठानी को वह बड़ी बहन का दर्जा देती है और जिस से दिन में 1-2 बार बात न कर ले, उसे चैन नहीं पड़ता, वह उन के बारे में ऐसा सोचती है.

‘‘पंडितजी, आप की कृपा से हमें तो किसी चीज की कमी नहीं है, पर आप कहते हैं तो हम भी पूजा करवा लेते हैं,’’ एक मिठाई का डब्बा और 501 रुपए उन्हें देते हुए राजीव ने कहा. उन्हें 15 हजार रुपए का खर्चा बता और उन के गुणगान करते पंडितजी तो वहां से चले गए पर राजीव और रिचा के मन में भाईभाभी के प्रति एक कड़वाहट भर गए. मन ही मन पंडितजी सोच रहे थे कि इन दोनों भाइयों को मूर्ख बनाना आसान है, बस कुनैन की गोली खिलाते रहना होगा.

अगले रविवार जब रंजन के घर वे हवन करा रहे थे तो नीता से बोले, ‘‘बड़ी बहू, मुझे जल्दी ही यहां से जाना होगा. देखो न, क्या जमाना आ गया है. तुम लोगों ने हवन कराने की बात की तो राजीव भैया मेरे पीछे पड़ गए कि हम भी आज ही पूजा करवाएंगे. बताया तो होगा, तुम्हें छोटी बहू ने इस बारे में ’’

‘‘नहीं, पंडितजी, रिचा ने तो कुछ नहीं बताया.’’

नीता उस के बाद काम में लग गई पर उसे बहुत बुरा लग रहा था कि रिचा उस से यह बात छिपा गई. जब उस ने उन्हें हवन पर आने का न्योता दिया था तो उस ने यह कह कर मना कर दिया था कि रविवार को तो उस के मायके में एक समारोह है और वहां जाना टाला नहीं जा सकता.

हालांकि तब नीता को इस बात पर भी हैरानी हुई थी कि आज तक रिचा बिना उसे साथ लिए मायके के किसी समारोह तक में नहीं गई थी तो इस बार अकेली कैसे जा रही है, पर यह सोच कर कुछ नहीं बोली थी कि हर बार हो सकता है साथ ले जाना मुमकिन न हो.

रिचा के झूठ से नीता के मन में एक फांस सी चुभ गई थी.

2 दिन बाद नीता मंदिर गई तो आशीष देते हुए पंडितजी बोले, ‘‘आओ बड़ी बहू. भक्तन हो तो तुम्हारे जैसी. कैसे सेवाभाव से उस दिन भोजन खिलाया था और दक्षिणा देने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी थी. छोटी बहू ने तो 2 चीजें बना कर ही निबटारा कर दिया और दक्षिणा में भी सिर्फ 251 रुपए दिए. मैं तो कहता हूं कि पैसा होने से क्या होता है, दिल होना चाहिए. तुम्हारा दिल तो सोने जैसा है, बड़ी बहू. तुम तो साक्षात अन्नपूर्णा हो.’’

उस के बाद नीता ने तुरंत 501 रुपए निकाल कर पंडितजी की पूजा की थाली में रख दिए.

कुछ दिनों बाद जब रिचा मंदिर आई तो वे उस की प्रशंसा करने लगे, ‘‘छोटी बहू, तुम आती हो तो लगता है कि जैसे साक्षात लक्ष्मी के दर्शन हो गए हैं. कितने प्रेमभाव से तुम सब काम करती हो. तुम्हारे घर पूजा करवाई तो मन प्रसन्न हो गया. कहीं कोई कमी नहीं थी और बड़ी बहू के हाथ से तो पैसा निकलने का नाम ही नहीं लेता. हर सामग्री तोलतोल कर रखती हैं. तुम दोनों बहुओं के बीच क्या कोई कहासुनी हुई है  बड़ी बहू तुम से काफी नाराज लग रही थीं. काफी कुछ उलटासीधा भी बोल रही थीं तुम लोगों के बारे में.’’

रिचा ने तब तो कोई जवाब नहीं दिया, पर उस दिन के बाद से दोनों परिवारों में बातचीत कम हो गई. कहां दोनों परिवारों में इतना अपनापन और प्रेम था कि दोनों भाई और देवरानीजेठानी जब तक एकदो दिन में एकदूसरे से मिल न लें, उन्हें चैन नहीं पड़ता था. यहां तक कि बच्चे भी एकदूसरे से कटने लगे थे.

पंडितजी इस मनमुटाव का फायदा उठा जबतब किसी न किसी भाई के घर पहुंच जाते और कोई न कोई पूजा करवाने के बहाने पैसे ऐंठ लेते. साथ में कभी खाना तो कभी मिठाई, वस्त्र अपने साथ बांध कर ले जाते.

नीता ने एक दिन उन्हें हलवा परोसा तो वे बोले, ‘‘वाह, क्या हलवा बनाती हो बहू. छोटी बहू ने भी कुछ दिन पहले हलवा खिलाया था, पर उस में शक्कर कम थी और मेवा का तो नाम तक नहीं था. जब भी उस से तुम्हारी बात या प्रशंसा करता हूं तो मुंह बना लेती है. क्या कुछ झगड़ा चल रहा है आपस में  यह तो बहू सब संस्कारों की बात है जो गुरु और ब्राह्मणों की सेवा से ही आते हैं. अच्छा, चलता हूं. आज रंजन भैया ने दुकान पर बुलाया है. कह रहे थे कि कहीं पैसा फंस गया है, उस का उपाय करना है.’’

धीरेधीरे पंडितजी दोनों भाइयों के बीच कड़वाहट पैदा करने में तो कामयाब हो ही गए साथ ही उन्हें भ्रमित कर मनचाहे पैसे भी ऐंठ लेते. एकदूसरे की सलाह पर काम करने वाले भाई जब अपनीअपनी दिशा चलने लगे तो व्यापार पर भी इस का असर पड़ा और कमाई का एक बड़ा हिस्सा पंडित द्वारा बताए उपाय और पूजापाठ पर खर्च होने लगा.

नीता और रिचा, जो अपने सुखदुख बांट गृहस्थी और दुनियादारी कुशलता से निभा लेती थीं, अब अपनेअपने ढंग से जीने का रास्ता ढूंढ़ने लगीं जिस के कारण उन की गृहस्थी में भी छेद होने लगे.

पहले कभी पतिपत्नी के बीच शिकवेशिकायत होते थे तो दोनों आपसी सलाह से उसे सुलझा लेती थीं. अकसर नीता राजीव को समझा देती थी कि वह रिचा से गलत व्यवहार न किया करे या फिर रिचा को ही सही सलाह दे दिया करती थी.

बंद मुट्ठी के खुलते ही रिश्तों के साथसाथ धन का रिसाव भी बहुत शीघ्रता से होने लगता है. बेशक दोनों परिवार अलग रहते थे, पर मन से वे कभी दूर नहीं थे. अब उन के बीच इतनी दूरियां आ गई थीं कि एक की बरबादी की खबर दूसरे को आनंदित कर देती. वे सोचते, उन के साथ ऐसा ही होना चाहिए था.

धीरेधीरे उन दोनों का ही व्यापार ठप होने लगा और आपसी प्यार व विश्वास की दीवारें गिरने लगीं. उन के बीच दरारें पैदा कर और पैसे ऐंठ कर पंडितजी ने एक फ्लैट खरीद लिया और घर में हर तरह की सुविधाएं जुटा लीं. उन के बच्चे अंगरेजी स्कूल में जाने लगे.

जब पंडितजी ने देखा कि अब दोनों परिवार खोखले हो गए हैं और उन्हें देने के लिए उन के पास धन नहीं है तो उन का आनाजाना कम होने लगा. अब राजीव और रंजन उन्हें सलाह लेने के लिए बुलाते तो वे काम का बहाना बना टाल जाते. आखिर, उन्हें तो अपनी कमाई का और कोई जरिया ढूंढ़ना था, इसलिए बहुत जल्दी ही उन्होंने दवाइयों के व्यापारी मनक अग्रवाल के घर आनाजाना आरंभ कर दिया.

‘‘क्या बताऊं यजमान, कैसा जमाना आ गया है. आप कपड़ा व्यापारी भाई रंजन और राजीव भैया को तो जानते ही होंगे, कितना अच्छा व्यापार था दोनों का. पैसों में खेलते थे, पर विडंबना तो देखो, दोनों भाइयों की आपस में बिलकुल नहीं बनती. आपसी लड़ाईझगड़ों के चलते व्यापार तो लगभग ठप ही समझो.

‘‘आप भी तो हैं, कितना स्नेह है तीनों भाइयों में. अगलबगल 3 कोठियों में आप लोग रहते हो, पर मजाल है कि आप के दोनों छोटे भाई आप की कोई बात टाल जाएं. यहां आ कर तो मन प्रसन्न हो जाता है. मैं तो कहता हूं कि मां लक्ष्मी की कृपा आप पर इसी तरह बनी रहे,’’ काजू की बर्फी के 2-3 पीस एकसाथ मुंह में रखते हुए पंडितजी ने कहा.

‘‘बस, आप का आशीर्वाद चाहिए पंडितजी,’’ सेठ मनक अग्रवाल ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘वह तो हमेशा आप के साथ है. मेरी मानो तो इस रविवार लक्ष्मीपूजन करवा लो.’’

‘‘जैसी आप की इच्छा,’’ कह मनक अग्रवाल ने उन के सामने हाथ जोड़ लिए. वहां से कुछ देर बाद जब पंडितजी निकले तो उन के हाथ में काजू की बर्फी का डब्बा और 2100 रुपए का एक लिफाफा था.

आने वाले रविवार को तो तगड़ी दक्षिणा मिलेगी, इसी का हिसाबकिताब लगाते पंडितजी अपने घर की ओर बढ़ गए.

उन के चेहरे पर एक कुटिल मुसकान खेल रही थी और आंखों से धूर्तता टपक रही थी. बस, उन्हें तो अब तीनों भाइयों की बंद मुट्ठी को खोलना था. उन का हाथ जेब में रखे लिफाफे पर गया. लिफाफे की गरमाहट उन्हें एक सुकून दे रही थी.

त्यौहार 2022: घर पर ऐसे बनाये चटपटी और टेस्टी सिंघाड़े के आटे की पकौड़ी

पकौड़ी का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले प्याज़ की पकौड़ी ,आलू की पकौड़ी, पनीर की पकौड़ी और भी न जाने कितनी तरह की पकौड़ियों का ख्याल आता है.जो की सभी बेसन से बनती है. पर क्या कभी आपने सिंघाड़े के आटे की पकौड़ी का स्वाद चखा है.ये खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है उतनी ही ज्यादा ये फायदेमंद भी होती है.

जी हाँ ,सिंघाड़ा , जिसे वाटर कैलट्रोप या वाटर चेस्टनट के रूप में भी जाना जाता है, एक जलीय फल होता है. जिसे कच्चा, उबला हुआ या आटे के रूप में खाया जाता है. सिंघाड़े का आटा हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है. इसका उपयोग मुख्य रूप से उपवास और त्यौहारों के दौरान विभिन्न व्यंजनों को तैयार करने में किया जाता है.

सिंघाड़े के आटे का सेवन करने से बॉडी को एनर्जी मिलती है .सिंघाड़ा में मौजूद पोषक तत्व जैसे विटामिन ए, प्रोटीन, सिट्रिक एसिड, फॉस्फोरस, निकोटिनिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट , डाइटरी फाइबर, कैल्शियम, जिंक हमारी बॉडी को हेल्थी रखने के लिए बेहद फायदेमंद है यानी ये हमारे सम्पूर्ण सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है .

तो अगर आप भी इस फेस्टिव सीजन गर्म चाय के साथ इन कुरकुरी पकौड़ियों का स्वाद चखना चाहते है तो हम आज आपसे इसकी रेसिपी शेयर करने जा रहे है .तो चलिए जानते है की चटपटी और कुरकुरी सिंघाड़े के आटे की पकौड़ी कैसे बनाये-

कितने लोगों के लिए-3 से 4
समय-10 से 15 मिनट
मील टाइप -वेज

हमें चाहिए-
सिघाड़े या कूटू का आटा – 200 ग्राम
आलू उबले हुए – 200 ग्राम
काली मिर्च – आधा छोटी चम्मच
हरा धनिया – एक टेबल स्पून
हरी मिर्च – 2 बारीक कटी हुई
सेंधा नमक – स्वादानुसार
घी या तेल – पकोड़े तलने के लिये आवश्यकतानुसार

बनाने का तरीका-
-सबसे पहले एक बाउल में उबले हुए आलू को मैश कर ले. अब इसमें हरी मिर्च और हरा धनिया मिलाएं.
-अब इसमें सिंघाड़े का आटा , पिसी हुई काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर इन सभी को अच्छे से मिक्स कर ले.
(ध्यान रहे की इसमें पानी बिलकुल भी नहीं डालना है)
-अब एक कढाई में पकौड़ी तलने के लिए तेल गर्म करे.तेल गर्म हो जाने के बाद इसमें एक छोटे चम्मच की सहायता से मिक्सचर को लेकर धीरे धीरे एक एक करके कढाई में डालते जाये.
(आप चाहे तो आप हाथ से इसकी गोलियां बनाकर भी कढाई में डाल सकती है)
-अब थोड़ी देर के बाद कलछी से एक पकौड़ी को उठा कर देखे .

(अगर ये पक गयी होगी तो आसानी से तली से छूट जायेगी.ज्यादा ज़ल्दिबाज़ी न करें)
-अब उसे दूसरी तरफ पलट दे और हल्का लाल होने तक पकाते रहे.
-. पकौड़ियों की साइड बदलते रहें ताकि दोनों ओर से गोल्डन ब्राउन हो जाए.
-अब इसे कढाई से निकालकर गर्मागर्म परोसे.तैयार है सिंघाड़े के आटे की स्वादिष्ट पकौड़ी.
-आप इसे चाय या धनिये और पुदीने की चटनी के साथ खा सकते है.

झारखंड: राज्यपाल बनाम हास्यपाल!

आज राज्यपाल राज्यपाल न रहकर के हास्यपाल बनकर रह गए हैं या फिर कहें केंद्र सरकार की कठपुतली से ज्यादा की औकात नहीं रह गई है. इसका सबसे बड़ा सत्य है कि राज्यपाल रमेश बैस का दिल्ली दौड़ कर जाना. राज्यपाल के पास पूरा प्रशासनिक अमला होता है वह राज्य की संवैधानिक प्रमुख की हैसियत रखता है ऐसे में संविधानिक चर्चा के लिए वे राज्य में वरिष्ठ अधिवक्ताओं व न्यायाधीश से सलाह ले सकते हैं मगर दिल्ली की दौड़ उनकी हकीकत को बयां करती है.

हाल ही में जो घटना क्रम झारखंड में देखा गया है उसे देख समझकर के यह जन चर्चा है कि राज्यपाल अपने पद की गरिमा को स्वयं खत्म कर रहे हैं.यह कुछ  वैसे ही है, जैसे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना.

दरअसल, आज राजनीति राजशाही की तरह गंदी और बदतर स्थिति में पहुंचती जा रही  है जो भी संविधानिक पद हैं उनको एक शुचिता गरिमा के तहत एक अच्छी सोच के तहत बनाया गया ताकि देश में लोकतंत्र की स्थापना के साथ देश हित में जनता के हित में चलता रहे मगर धीरे-धीरे जिन लोगों के हाथों में सत्ता की चाबी आ गई वह यह सोचने लगे कि अब हमें ही आजीवन पदों में रहना है, यह वही सोच है जिसे हम राजतंत्र की परिभाषा में बांध सकते हैं .

अगर गंभीर विवेचना की दृष्टि से देखा जाए तो यह पाते हैं कि राज्यपाल का पद अब पूरी तरीके से अपनी गरिमा को समाप्त प्राय कर  चुका है. झारखंड में देखें अथवा पश्चिम बंगाल में, दक्षिण राज्यों में देखें या बिहार में अथवा छत्तीसगढ़ में हमें जहां विपक्ष की सरकार है ऐसे राज्यपालों की पदस्थापना की जाती है जो पक्षपाती हों, वर्तमान सरकार और मुख्यमंत्री के लिए रास्ते में सिर्फ रोड़े अटकाएं. यह सोच और दृष्टि लोकतंत्र के लिए नुकसान पर है और देश की जनता खामोशी से यह सब देख रही है यह नहीं समझना चाहिए.

महामहिम झारखंड के रंग ढंग

वर्तमान में झारखंड में महामहिम पद पर रमेश बैंस विराजमान है. जोकि लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी के सांसद रहे हैं और केंद्र में मंत्री भी एक तरह से कहा जा सकता है कि आप भाजपा के एक कट्टर कार्यकर्ता है. अब जब झारखंड में आप की पदस्थापना हुई है तो झारखंड सरकार हेमंत सोरेन को परेशान हलाकान होना पड़ रहा है . राज्यपाल की कुपित दृष्टि से झारखंड की सरकार हिल रही है मुख्यमंत्री पद पर बहुमत की सरकार होने के बाद भी हेमंत सोरेन को पटना और रायपुर की दौड़ लगानी पड़ रही है ताकि उनकी सरकार बच जाए . हालात यह है कि 5 सितंबर 2022 को हेमंत सोरेन को झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना पड़ा और बहुमत सिद्ध करना पड़ा इसके बावजूद सब कुछ सामान्य रहने की संभावना नहीं है और महामहिम राज्यपाल रमेश बैस के एक निर्णय के बाद आगे राजनीतिक का ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है.

आज राज्यपाल अपनी राजनीति करने के लिए देश भर में चर्चा का विषय बन गए हैं. ऐसे में आवश्यकता यह है कि विवेकपूर्ण निर्णय लेने वाले सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक और न्यायालयीन क्षेत्र में कार्य करने वाले वरिष्ठ और निष्पक्ष लोगों को राज्यपाल पद से शोभायमान किया जाना चाहिए.

Anupamaa: अनुज की जाएगी याददाश्त! तोषु को धमकी देगी अनुपमा

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है, जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुज की एक्सिडेंट के बाद अनुपमा हालात को सुधारने की कोशिश कर रही है. तो अब तोषु को लेकर नया बखेड़ा खड़ा होने वाला है. अनुपमा की जिंदगी में एक के बाद एक मुसीबत दस्तक दे रही है. अनुपमा चाहकर भी इन परेशानियों से उबर नहीं पा रही है.

 

पिता बनने के बाद तोषु अपनी बेटी को गले लगाता है. जिसके बाद राखी तोषु की क्लास लगाती है. राखी दावा करती है कि तोषु का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है. राखी तोषु को अकेले में लेकर धमकी देती है. इसी बीच अनुपमा वहां पहुंच जाएगी.

 

शो में आप देखेंगे कि अनुपमा को देखते ही राखी और तोषु चुप हो जाएंगे. अनुपमा राखी से पूरी बात जानने की कोशिश करेगी. राखी अनुपमा को कुछ नहीं बताएगी. राखी के जाने के बाद अनुपमा तोषु से बात करेगी. अनुपमा तोषु को अपनी कसम देगी कि वह उसे सच-सच बताएं कि आखिर क्या हुआ है?

 

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अनुपमा तोषु से सच उगलवाने की कोशिश करेगी. तोषु कहेगा कि वो अपनी बेटी का पूरा ख्याल रखेगा. तोषु की हरकतें देखकर अनुपमा चिढ़ जाएगी. अनुपमा तोषु को धमकी देगी. अनुपमा कहेगी कि अगर तोषु ने कुछ गलत किया तो वो उसको पूरी तरह से बर्बाद कर देगी.

 

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रिपोर्ट के अनुसार, शो में दिखाया जाएगा कि अनुज अचानक ही बीमार पड़ने वाला है. वह रात को सोते समय बिस्तर से गिर जाएगा. अनुपमा अनुज के गिरते ही चिल्लाएगी. परिवार के लोग मिलकर अनुज को उठाएंगे. होश आने के बाद अनुज किंजल की डिलीवरी के बारे में पूछेगा. अनुपमा को एहसास होगा कि अनुज की याददास्त चली गई है.

GHKKPM: विराट-पाखी को साथ देखकर सई होगी हर्ट, होगी बड़ी गलतफहमी

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ लगातार बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो का ट्रैक इन दिनों दर्शकों को खूब पसंद आ रहा है. शो का अपकमिंग एपिसोड कॉफी दिलचस्प होने वाला है. शो में जल्द ही सई और विराट का आमना-सामना होगा. आइए बताते हैं, शो के अपकमिंग एपिसोड में…

शो में आप देखेंगे कि पाखी विनायक के इलाज के लिए मालदीव जाने का प्लान कैंसिल कर देती है. वह चाहती है पहले उसके बेटे का इलाज हो जाए. पाखी के इस बात से घर के सभी लोग खुश हो जाते हैं. विराट बताता है कि वीनू की डॉक्टर ने बताया है कि उसे कणकवली वाली डॉक्टर के इलाज से फायदा मिल रहा है. इसलिए उन दोनों ने फैसला लिया है कि पहले वीनू का इलाज करवाएंगे.

 

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तो वहीं दूसरी तरफ विराट विनायक को सई के पास इलाज के लिए लेकर जाएगा. विनायक इस बात से खुश हो जाएगा कि उसे सवी और डॉक्टर आंटी से मिलने का मौका मिलेगा. शो में आप देखेंगे कि विराट विनायक को लेकर सवि के पास जा रहा है. रास्ते में वह वीनू से पता पूछने के लिए कहेगा. विनायक मोबाइल फोन को स्पीकर पर डाल देगा और सई से पता पूछेगा. जब सई बोलेगी कि मैं डॉक्टर सई बोल रही हूं. ये सुनकर विराट चौंक जाएगा.

 

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खबरों के मुताबिक सई विराट और पाखी को पार्क में पति-पत्नी की तरह प्यार में देखेगी और हर्ट हो जाएगी. सई और विराट के बीच बड़ी गलतफहमी होगी.

 

त्यौहार 2022: बदली परिपाटी- मयंक को मिली अपनी करनी की सजा 

लगता है रात में जतिन ने फिर बहू पर हाथ उठाया. मुझ से यह बात बरदाश्त नहीं होती. बहू की सूजी आंखें और शरीर पर पड़े नीले निशान देख कर मेरा दिल कराह उठता है. मैं कसमसा उठता हूं, पर कुछ कर नहीं पाता. काश, पूजा होती और अपने बेटे को समझाती पर पूजा को तो मैं ने अपनी ही गलतियों से खो दिया है.

यह सोचतेसोचते मेरे दिमाग की नसें फटने लगी हैं. मैं अपनेआप से भाग जाना चाहता हूं. लेकिन नहीं भाग सकता, क्योंकि नियति द्वारा मेरे लिए सजा तय की गई है कि मैं पछतावे की आग में धीरेधीरे जलूं.

‘‘अंतरा, मैं बाजार की तरफ जा रहा हूं, कुछ मंगाना तो नहीं.’’

‘‘नहीं पापाजी, आप हो आइए.’’ मैं चल पड़ा यह सोच कर कि कुछ देर बाहर निकलने से शायद मेरा मन थोड़ा बहल जाए. लेकिन बाहर निकलते ही मेरा मन अतीत के गलियारों में भटकने लगा…

‘मुझ से जबान लड़ाती है,’ एक भद्दी सी गाली दे कर मैं ने उस पर अपना क्रोध बरसा दिया.

‘आह…प्लीज मत मारो मुझे, मेरे बच्चे को लग जाएगी, दया करो. मैं ने आखिर किया क्या है?’ उस ने झुक कर अपनी पीठ पर मेरा वार सहन करते हुए कहा.

कोख में पल रहे बच्चे पर वह आंच नहीं आने देना चाहती थी. लेकिन मैं कम क्रूर नहीं था. बालों से पकड़ते हुए उसे घसीट कर हौल में ले आया और अपनी बैल्ट निकाल ली. बैल्ट का पहला वार होते ही जोरों की चीख खामोशी में तबदील होती चली गई. वह बेहोश हो चुकी थी.

‘पागल हो गया क्या, अरे, उस के पेट में तेरी औलाद है. अगर उसे कुछ हो गया तो?’ मां किसी बहाने से उसे मेरे गुस्से से बचाना चाहती थीं.

‘कह देना इस से, भाड़े पर लड़कियां लाऊं या बियर बार जाऊं, यह मेरी अम्मा बनने की कोशिश न करे वरना अगली बार जान से मार दूंगा,’ कहते हुए मैं ने 2 साल के नन्हे जतिन को धक्का दिया, जो अपनी मां को मार खाते देख सहमा हुआ सा एक तरफ खड़ा था. फिर गाड़ी उठाई और निकल पड़ा अपनी आवारगी की राह.

उस पूरी रात मैं नशे में चूर रहा. सुबह के 6 बज रहे होंगे कि पापा के एक कौल ने मेरी शराब का सारा नशा उतार दिया. ‘कहां है तू, कब से फोन लगा रहा हूं. पूजा ने फांसी लगा ली है. तुरंत आ.’ जैसेतैसे घर पहुंचा तो हताश पापा सिर पर हाथ धरे अंदर सीढि़यों पर बैठे थे और मां नन्हे जतिन को चुप कराने की बेहिसाब कोशिशें कर रही थीं.

अपने बैडरूम का नजारा देख मेरी सांसें रुक सी गईं. बेजान पूजा पंखे से लटकी हुई थी. मुझे काटो तो खून नहीं. मांपापा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. पूजा ने अपने साथ अपनी कोख में पल रहे मेरे अंश को भी खत्म कर लिया था. पर इतने खौफनाक माहौल में भी मेरा शातिर दिमाग काम कर रहा था. इधरउधर खूब ढूंढ़ने के बाद भी पूजा की लिखी कोई आखिरी चिट्ठी मुझे नहीं मिली.

पुलिस को देने के लिए हम ने एक ही बयान को बारबार दोहराया कि मां की बीमारी के चलते उसे मायके जाने से मना किया तो जिद व गुस्से में आ कर उस ने आत्महत्या कर ली. वैसे भी मेरी मां का सीधापन पूरी कालोनी में मशहूर था, जिस का फायदा मुझे इस केस में बहुत मिला. कुछ दिन मुझे जरूर लौकअप में रहना पड़ा, लेकिन बाद में सब को देदिला कर इस मामले को खत्म करने में हम ने सफलता पाई, क्योंकि पूजा के मायके में उस की खैरखबर लेने वाला एक शराबी भाई ही था जिसे अपनी बहन को इंसाफ दिलाने में कोई खास रुचि न थी.

थोड़ी परेशानी से ही सही, लेकिन 8-10 महीने में केस रफादफा हो गया पर मेरे जैसा आशिकमिजाज व्यक्ति ऐसे समय में भी कहां चुप बैठने वाला था. इस बीच मेरी रासलीला मेरे एक दोस्त की बहन लिली से शुरू हो गई. लिली का साथ मुझे खूब भाने लगा, क्योंकि वह भी मेरी तरह बिंदास थी. पूजा की मौत के डेढ़ साल के भीतर ही हम ने शादी कर ली. वह तो शादी के बाद पता चला कि मैं सेर, तो वह सवा सेर है. शादी होते ही उस ने मुझे सीधे अपनी अंटी में ले लिया.

बदतमीजी, आवारगी, बदचलनी आदि गुणों में वह मुझ से कहीं बढ़ कर निकली. मेरी परेशानियों की शुरुआत उसी दिन हो गई जिस दिन मैं ने पूजा समझ कर उस पर पहली बार हाथ उठाया. मेरे उठे हाथ को हवा में ही थाम उस ने ऐसा मरोड़ा कि मेरे मुंह से आह निकल गई. उस के बाद मैं कभी उस पर हाथ उठाने की हिम्मत न कर पाया.

घर के बाहर बनी पुलिया पर आसपास के आवारा लड़कों के साथ बैठी वह सिगरेट के कश लगाती जबतब कालोनी के लोगों को नजर आती. अपने दोस्तों के साथ कार में बाहर घूमने जाना उस का प्रिय शगल था. रात को वह शराब के नशे में धुत हो घर आती और सो जाती. मैं ने उसे अपने झांसे में लेने की कई नाकाम कोशिशें कीं, लेकिन हर बार उस ने मेरे वार का ऐसा प्रतिवार किया कि मैं बौखला गया. उस ने साफ शब्दों में मुझे चेतावनी दी कि अगर मैं ने उस से उलझने की कोशिश की तो वह मुझे मरवा देगी या ऐसा फंसाएगी कि मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं उस के गदर से तभी तक बचा रहता जब तक कि उस के कामों में हस्तक्षेप न करता.

तो इस तरह प्रकृति के न्याय के तहत मैं ने जल्द ही वह काटा, जो बोया था. घर की पूरी सत्ता पर मेरी जगह वह काबिज हो चुकी थी. शादी के सालभर बाद ही मुझ पर दबाव बना कर उस ने पापा से हमारे घर को भी अपने नाम करवा लिया. और फिर हमारा मकान बेच कर उस ने पौश कालोनी में एक फ्लैट खरीदा और मुझे व जतिन को अपने साथ ले गई. मेरे मम्मीपापा मेरी बहन यानी अपनी बेटी के घर में रहने को मजबूर थे. यह सब मेरी ही कारगुजारियों की अति थी जो आज सबकुछ मेरे हाथ से मुट्ठी से निकली रेत की भांति फिसल चुका था.

अपना मकान बिकने से हैरानपरेशान पापा इस सदमे को न सह पाने के कारण हार्टअटैक के शिकार हो महीनेभर में ही चल बसे. उन के जाने के बाद मेरी मां बिलकुल अकेली हो गईं. प्रकृति मेरे कर्मों की इतनी जल्दी और ऐसी सजा देगी, मुझे मालूम न था.

नए घर में शिफ्ट होने के बाद भी उस के क्रियाकलाप में कोई खास अंतर नहीं आया. इस बीच 5 साल के हो चुके जतिन को उस ने पूरी तरह अपने अधिकार में ले लिया. उस के सान्निध्य में पलताबढ़ता जतिन भी उस के नक्शेकदम पर चल पड़ा. पढ़ाई-लिखाई से उस का खास वास्ता था नहीं. जैसेतैसे 12वीं कर उस ने छोटामोटा बिजनैस कर लिया और अपनी जिंदगी पूरी तरह से उसी के हवाले कर दी. उन दोनों के सामने मेरी हैसियत वैसे भी कुछ नहीं थी. किसी समय अपनी मनमरजी का मालिक मैं आजकल उन के हाथ की कठपुतली बन, बस, उन के रहमोकरम पर जिंदा था.

इसी रफ्तार से जिंदगी के कुछ और वर्ष बीत गए. इस बीच लिली एक भयानक बीमारी एड्स की चपेट में आ गई और अपनेआप में गुमसुम पड़ी रहने लगी. अब घर की सत्ता मेरे बेटे जतिन के हाथों में आ गई. हालांकि इस बदलाव का मेरे लिए कोई खास मतलब नहीं था. हां, जतिन की शादी होने पर उस की पत्नी अंतरा के आने से अलबत्ता मुझे कुछ राहत जरूर हो गई, क्योंकि मेरी बहू भी पूजा जैसी ही एक नेकदिल इंसान थी.

वह लिली की सेवा जीजान से करती और जतिन को खुश करने की पूरी कोशिश भी. पर जिस की रगों में मेरे जैसे गिरे इंसान का लहू बह रहा हो, उसे भला किसी की अच्छाई की कीमत का क्या पता चलता. सालभर पहले लिली ने अपनी आखिरी सांस ली. उस वक्त सच में मन से जैसे एक बोझ उतर गया और मेरा जीवन थोड़ा आसान हो गया.

इस बीच, जतिन के अत्याचार अंतरा के प्रति बढ़ते जा रहे थे. लगभग रोज रात में जतिन उसे पीटता और हर सुबह अपने चेहरे व शरीर की सूजन छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए वह फिर से अपने काम पर लग जाती. कल रात भी जतिन ने उस पर अपना गुस्सा निकाला था.

मुझे समझ नहीं आता था कि आखिर वह ये सब क्यों सहती है, क्यों नहीं वह जतिन को मुंहतोड़ जवाब देती, आखिर उस की क्या मजबूरी है? तमाम बातें मेरे दिमाग में लगातार चलतीं. मेरा मन उस के लिए इसलिए भी परेशान रहता क्योंकि इतना सबकुछ सह कर भी वह मेरा बहुत ध्यान रखती थी. कभीकभी मैं सोच में पड़ जाता कि आखिर औरत एक ही समय में इतनी मजबूत और मजबूर कैसे हो सकती है?

ऐसे वक्त पर मुझे पूजा की बहुतयाद आती. अपने 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन में मैं ने एक पल भी उसे सुकून का नहीं दिया. शादी की पहली रात जब सजी हुई वह छुईमुई सी मेरे कमरे में दाखिल हुई थी, तो मैं ने पलभर में उसे बिस्तर पर घसीट कर उस के शरीर से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत की थी.

काश, उस वक्त उस के रूपसौंदर्य को प्यारभरी नजरों से कुछ देर निहारा होता, तारीफ के दो बोल बोले होते तो वह खुशी से अपना सर्वस्व मुझे सौंप देती. उस घर में आखिर वह मेरे लिए ही तो आई थी. पर मेरे लिए तो प्यार की परिभाषा शारीरिक भूख से ही हो कर गुजरती थी. उस दौरान निकली उस की दर्दभरी चीखों को मैं ने अपनी जीत समझ कर उस का मुंह अपने हाथों से दबा कर अपनी मनमानी की थी. वह रातों में मेरे दिल बहलाने का साधनमात्र थी. और फिर जब वह गर्भवती हुई तो मैं दूसरों के साथ इश्क लड़ाने लगा, क्योंकि वह मुझे वह सुख नहीं दे पा रही थी. वह मेरे लिए बेकार हो चुकी थी. इसलिए मुझे ऐसा करने का हक था, आखिर मैं मर्द जो था. मेरी इस सोच ने मुझे कभी इंसान नहीं बनने दिया.

हे प्रकृति, मुझे थोड़ी सी तो सद्बुद्धि देती. मैं ने उसे चैन से एक सांस न लेने दी. अपनी गंदी हरकतों से सदा उस का दिल दुखाया. उस की जिंदगी को मैं ने वक्त से पहले खत्म कर दिया.

उस दिन उस ने आत्महत्या भी तो मेरे कारण ही की थी, क्योंकि उसे मेरे नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया था और उस की गलती सिर्फ इतनी थी कि इस बारे में मुझ से पूछ बैठी थी. बदले में मैं ने जीभर कर उस की धुनाई की थी. ये सब पुरानी यादें दिमाग में घूमती रहीं और कब मैं घर लौट आया पता ही नहीं चला.

‘‘पापा, जब आप मार्केट गए थे. उस वक्त बूआजी आई थीं. थोड़ी देर बैठीं, फिर आप के लिए यह लिफाफा दे कर चली गईं.’’ बाजार से आते ही अंतरा ने मुझे एक लिफाफा पकड़ाया.

‘‘ठीक है बेटा,’’ मैं ने लिफाफा खोला. उस में एक छोटी सी चिट और करीने से तह किया हुआ एक पन्ना रखा था. चिट पर लिखा था, ‘‘मां के जाने के सालों बाद आज उन की पुरानी संदूकची खोली तो यह खत उस में मिला. तुम्हारे नाम का है, सो तुम्हें देने आई थी.’’ बहन की लिखावट थी. सालों पहले मुझे यह खत किस ने लिखा होगा, यह सोचते हुए कांपते हाथों से मैं ने खत पढ़ना शुरू किया.

‘‘प्रिय मयंक,

‘‘वैसे तो तुम ने मुझे कई बार मारा है, पर मैं हमेशा यह सोच कर सब सहती चली गई कि जैसे भी हो, तुम मेरे तो हो. पर कल जब तुम्हारे इतने सारे नाजायज संबंधों का पता चला तो मेरे धैर्य का बांध टूट गया. हर रात तुम मेरे शरीर से खेलते रहे, हर दिन मुझ पर हाथ उठाते रहे. लेकिन मन में एक संतोष था कि इस दुखभरी जिंदगी में भी एक रिश्ता तो कम से कम मेरे पास है. लेकिन जब पता चला कि यह रिश्ता, रिश्ता न हो कर एक कलंक है, तो इस कलंक के साथ मैं नहीं जी सकती. सोचती थी, कभी तो तुम्हारे दिल में अपने लिए प्यार जगा लूंगी. लेकिन अब सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं. मायके में भी तो कोई नहीं है, जिसे मेरे जीनेमरने से कोई सरोकार हो. मैं अपनी व्यथा न ही किसी से बांट सकती हूं और न ही उसे सह पा रही हूं. तुम्हीं बताओ फिर कैसे जिऊं. मेरे बाद मेरे बच्चों की दुर्दशा न हो, इसलिए अपनी कोख का अंश अपने साथ लिए जा रही हूं. मासूम जतिन को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. खुश रहो तुम, कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना. जाने से पहले एक बात तुम से जरूर कहना चाहूंगी. ‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं.’

‘‘तुम्हारी चाहत के इंतजार में पलपल मरती…तुम्हारी पूजा.’’

पूरा पत्र आंसुओं से गीला हो चुका था, जी चाह रहा था कि मैं चिल्लाचिल्ला कर रो पड़ूं. ओह, पूजा माफ कर दे मुझे. मैं इंसान कहलाने के काबिल नहीं, तेरे प्यार के काबिल भला क्या बनूंगा. हे प्रकृति, मेरी पूजा को लौटा दे मुझे, मैं उस के पैर पकड़ कर अपने गुनाहों की माफी तो मांग लूं उस से. लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत.

भावनाओं का ज्वार थमा तो कुछ हलका महसूस हुआ. शायद मां को पूजा का यह सुसाइड लैटर मिला हो और मुझे बचाने की खातिर यह पत्र उन्होंने अपने पास छिपा कर रख लिया हो. यह उन्हीं के प्यार का साया तो था कि इतना घिनौना जुर्म करने के बाद भी मैं बच गया. उन्होंने मुझे कालकोठरी की सजा से तो बचा लिया, परंतु मेरे कर्मों की सजा तो नियति से मुझे मिलनी ही थी और वह किसी भी बहाने से मुझे मिल कर रही.

पर अब सबकुछ भुला कर पूजा की वही पंक्ति मेरे मन में बारबार आ रही थी, ‘‘कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना.’’ अंतरा के मायके में भी तो उस की बुजुर्ग मां के अलावा कोई नहीं है. हो सकता है इसलिए वह भी पूजा की तरह मजबूर हो. पर अब मैं मजबूर नहीं बनूंगा…कुछ सोच कर मैं उठ खड़ा हुआ. अंतरा को आवाज दी.

‘‘जी पापा,’’ कहते हुए अंतरा मेरे सामने मौजूद थी. बहुत देर तक मैं उसे सबकुछ समझाता रहा और वह आंखें फाड़फाड़ कर मुझे हैरत से देखती रही. शायद उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जतिन का पिता होने के बावजूद मैं उस का दर्द कैसे महसूस कर रहा हूं या उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि अचानक मैं यह क्या और क्यों कर रहा हूं, क्योंकि वह मासूम तो मेरी हकीकत से हमेशा अनजान थी.

पास के पुलिस स्टेशन पहुंच कर मैंने अपनी बहू पर हो रहे अत्याचार की धारा के अंतर्गत बेटे जतिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. मेरे कहने पर अंतरा ने अपने शरीर पर जख्मों के निशान उन्हें दिखाए, जिस से केस पुख्ता हो गया. थोड़ा वक्त लगा, लेकिन हम ने अपना काम कर दिया था. आगे का काम पुलिस करेगी. जतिन को सही राह पर लाने का एक यही तरीका मुझे कारगर लगा, क्योंकि सिर्फ मेरे समझाने भर से बात उस के पल्ले नहीं पड़ेगी. पुलिस, कानून और सजा का खौफ ही अब उसे सही रास्ते पर ला सकता है.

पूजा के चिट्ठी में कहे शब्दों के अनुसार, मैं उसे रिश्तों की इज्जत करना सिखाऊंगा और एक अच्छा इंसान बनाऊंगा, ताकि फिर कोई पूजा किसी मयंक के अत्याचारों से त्रस्त हो कर आत्महत्या करने को मजबूर न हो. औटो में वापसी के समय अंतरा के सिर पर मैं ने स्नेह से हाथ फेरा. उस की आंखों में खौफ की जगह अब सुकून नजर आ रहा था. यह देख मैं ने राहत की सांस ली.

मेरे टीचर गलत हरकत करते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 10वीं जमात में पढ़ती हूं. मेरे ट्यूशन के सर हमेशा मेरे अंगों को छूने की कोशिश करते हैं और अकसर वे इस में कामयाब हो जाते हैं. वे मुझसे ‘आई लव यू’ भी कहते हैं. यह बात मैं अपने घर वालों से कैसे कहूं?

जवाब

आप को यह बात फौरन अपनी मम्मी को खुल कर बतानी चाहिए. वे आप के पापा से सलाह कर के उस टीचर की खबर ले लेंगी. मम्मी से कह दें कि आप उस टीचर से कतई नहीं पढ़ेंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

राजनीतिक मेहनत

राजनीति में भी उसी तरह रातदिन मेहनत की जरूरत है जैसे किसी किराने की दुकान को सफल बनाने में होती है. राजनीति जागीरदारी नहीं होती जिस में पिछले पुरखों की कमाई पर मौजमस्ती या सिर्फ आराम किया जा सके.

शिवसेना के टूटने की भारी वजह में से एक है कि उद्धव ठाकरे का आलसीपन, जो न ज्यादा दौरों पर गए और शायद अपने मंत्रालय के दफ्तर में तो कभी गए ही नहीं. वे पिता की तरह आरामकुरसी पर बैठ कर राज करना चाह रहे थे. उन्हें एकनाथ शिंदे ने जता दिया कि यह जनता को तो दूर, विधायकों और सांसदों को संभालने के लिए भी काफी नहीं है. नतीजा सामने है.

मायावती भी एक ऐसा ही उदाहरण हैं जिन्होंने न केवल बहुजन समाज पार्टी को मरने दिया बल्कि दलितों के हकों के रास्तों को बेच खाया भी. वहां अब ऊंची जातियों की फर्राटेदार बड़ी गाडिय़ां दौड़ रही हैं.

कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, प्रजा समाजवादी पार्टी, अकाली दल और कुछ हद तक कांग्रेस का भी यही हाल है कि उन के आज के नए नेता सोच रहे हैं कि क्योंकि उन का इतिहास और नाम बड़ा है, इसलिए लोग अपनेआप उन की ओर आकर्षित होंगे.

आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, वाई एस रेड्डी की तेलगांना प्रजा समिति अगर जिंदा हैं और लगातार राज में हैं तो इसलिए कि इन के नेता हर समय जनता के बीच मौजूद दिखते हैं.

भारतीय जनता पार्टी की सफलता के पीछे भी यही कहानी है. पिछले 70-80 सालों से पौराणिक परंपरा को फिर से लागू करने के लिए लाखों पंडोंपुजारियों और उन के भक्तों व ऊंची जातियों की वर्णव्यवस्था के समर्थकों ने रातदिन मेहनत की. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सुबह ही शाखाएं लगाना अपनेआप में आसान नहीं है जिस के लिए लाखों लोगों को घरों से निकाल कर पास के बाग में जमा किया जाता है. राज आने पर भी यह काम बंद नहीं हुआ. हां, कम जरूर हो गया है क्योंकि जो लोग त्याग करने के लिए जमा किए जाते रहे हैं आज मंदिरों, आश्रमों, स्कूलों, पार्टी दफ्तरों, कांवड़ यात्राओं, रामनवमी यात्राओं, तीर्थयात्राओं, गौरक्षक दलों में राज करने का मजा ले रहे हैं.

राहुल गांधी कुछ दिन कुछ सक्रिय होते हैं और फिर कहीं छुट्टी पर चले जाते हैं. सोनिया, प्रियंका और राहुल कांग्रेस की जनता के बीच रहने की परंपरा को कुछ हद तक कायम रख रहे हैं पर पार्टी के दूसरे नेता घरों में बैठ कर सत्तासुख भोगने के आदी हो चुके हैं.

भारतीय जनता पार्टी रातदिन सोनिया और राहुल के पीछे इसीलिए पड़ी रहती है कि वह समझती है कि इन्होंने कैसे 1970 से सत्ता खो कर 1981 में पा ली, 1900 में खो कर 1991 में पा ली, 1996 में खो कर 2004 में फिर छीन ली.

आज भी राहुत गांधी को घेरने, सोनिया को ईडी में उलझाए रखने की वजह यह है कि भाजपाई सत्ताधारी इन से डरते हैं कि कहीं ये सरकार से नाराज जनता को अपने झंडे के नीचे जमा न कर लें.

भारतीय जनता पार्टी का हाल अब उस बाबरी मसजिद का सा है जो ऊंची खड़ी तो है पर उस के टिकने का भरोसा नहीं. केवल 2 जनों की मनमरजी से चल रही पार्टी में नए नेता पैदा नहीं हो रहे. ये दोनों जनता के बीच नहीं जा रहे पर इन के प्यादे लाखों की गिनती में इन का काम कर रहे हैं. जैसे बाबरी मसजिद मुसलिम भक्तों की सुरक्षा का भाव न बचा सकी, लगता है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने धर्मभक्तों की आस्था को आर्थिक संकटों पूरी तरह निकाल नहीं पाएगी. भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में बहुत फर्क नहीं है जिन के नेताओं के दर्शन टीवी या मंच पर होते हैं, अपनों के बीच नहीं.

एरोल मस्क का स्पर्म चाहती हैं महिलाएं, सौतेली बेटी से था अफेयर

टेक्नोलौजी की दुनिया के अरबपति एलन मस्क के 76 वर्षीय इंजीनियर पिता एरोल मस्क सुर्खियों में तब आ गए, जब उन्होंने अपनी सौतेली बेटी के साथ अफेयर की बात कुबूलते हुए उस के दूसरे बच्चे का पिता होने की बात का खुलासा कर दिया. फिर तो उन के स्पर्म की मांग की झड़ी के साथसाथ डिजाइनर बेबी की भी चर्चा गर्म हो गई.

एलन मस्क अरबपति दुनिया का वह नाम है, जो हमेशा टेक्नोलौजी और साइंस जगत में नए प्रयोग करने की वजह से चर्चा में बने रहते हैं. कुल 9 बच्चों के पिता एलन मस्क की पर्सनल लाइफ भी सुर्खियां बटोरने में कुछ कम नहीं है, कारण उन की एक संतान ट्रांसजेंडर है.

पिछले दिनों उन की चर्चा उन के इंजीनियर पिता 76 वर्षीय एरोल मस्क को ले कर हुई, जिन से वह नफरत करते हैं. नफरत ऐसी कि उन्हें एलन ने यहां तक कह दिया था, ‘‘मेरे पिता शैतान हैं.’’  कारण उन के अफेयर सौतेली बेटी से रहे हैं. यह बात एलन ने तब कही थी, जब उन्हें पता चला कि पिता एरोल मस्क ही उस की सौतेली बहन जाना के बच्चों के पिता हैं. हालांकि इस बारे में जब उस के बच्चों की शक्ल पिता एरोल और उस से मिलतीजुलती नजर आई, तभी उन्हें संदेह हो गया था. किंतु इस बारे में कुछ भी कहने से कतराते रहे थे.

लेकिन एक दिन उन्होंने इस का खुलासा करते हुए ब्रिटिश वेबसाइट ‘द सन’ को एक इंटरव्यू में कहा था कि 3 साल पहले सौतेली बेटी जाना से जन्मी बेटी अनप्लांड थी. इस से पहले भी वह एक बेटे को जन्म दे चुकी है. इसी के साथ एरोल ने स्वीकारा कि वह अपनी सौतेली बेटी जाना बेजुइडेनहाट के बेटे और बेटी के पिता हैं. इस तरह दोनों बच्चे टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क के भाईबहन ही हुए.

यही नहीं एरोल ने चौंकाने वाली एक बात और कही कि हम धरती पर केवल एक चीज बच्चे पैदा करने के लिए ही आए हैं. उन का यह कहना था कि संभ्रांत महिलाएं उन के स्पर्म की मांग कर बैठीं. उन में भारत की महिलाएं भी शामिल हैं.

उन महिलाओं को लगता है कि एरोल के स्पर्म से पैदा होने वाला बच्चा एक डिजाइर बेबी होगा, जो जितना स्वस्थ और बुद्धिमान होगा, उतना ही वह धनवान भी होगा. आने वाले दिनों में उस में एलन मस्क जैसे गुण विकसित होने में कोई कमी नहीं रहेगी.

यह तो आने वाले वक्त की बात होगी, जिस का अनुमान लगाया जा रहा है. किंतु अपनी दूसरी पत्नी हीड के परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में रह रहे एरोल मस्क को जब अपने बेटे एलन मस्क की नाराजगी के बारे में मालूम हुआ, तब उन्होंने अपनी मजबूरी दर्शाते हुए अपना दर्द कुछ इस तरह से बयां किया—

‘‘मैं इसे एक गलती नहीं कहूंगा, क्योंकि कोई भी बच्चा यह नहीं सुनना चाहेगा कि वो एक गलती से पैदा हुआ. आप को समझना होगा कि मैं 20 साल से अकेला था. आखिर मैं भी आदमी हूं, जो गलतियां करता है.’’

हीड की बेटी ही 3 साल पहले एरोल के बच्चे की मां बनी थी, जिसे छिपा कर रखा गया था. एलन के पिता एरोल मस्क साउथ अफ्रीका में इंजीनियर हैं. उन के मुताबिक दूसरा बच्चा भी अनप्लांड था, लेकिन उस के पैदा होने के बाद से ही वह 35 साल की जाना के साथ रह रहे हैं.

उन के उस सीक्रेट बेबी का जन्म 2018 में हुआ था. तब जाना ने अपने 10 महीने के बच्चे के साथ सितंबर 2018 में फेसबुक पर अपनी फोटो शेयर की थी. उस की शक्ल बिलकुल एलन मस्क से मिलती थी. इसे ले कर लोगों को संदेह हुआ, किंतु लोगों ने उन के रुतबे की वजह से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई थी.

एलन मस्क की सौतेली बहन जाना बेजुइडेनहाट की उम्र महज 4 साल थी, जब एरोल मस्क ने पहली पत्नी मेय हेल्डमेन से शादी तोड़ कर जाना की मां हीड बेजुइडेनहाट से दूसरी शादी की थी. उस वक्त हीड 25 साल की थी और एरोल 45 वर्ष के थे. एरोल और मेय हेल्डमेन के 3 बच्चे एलन, टोस्का और किंबल हैं. एरोल और हीड से भी 2 बच्चे हैं एलेक्जेंड्रा एली और एशा रोज मस्क.

यह जानते हुए कि जाना हीड के पहले पति की बेटी हैं, एरोल ने उस के साथ अफेयर किया. नतीजा साल 2017 में एरोल के बेटे इलियट रश मस्क का जन्म हुआ. उस के बाद 2018 में बेटी का जन्म हुआ.

एलन को अपने पिता की करतूत की जानकारी पहली बार 2017 में ही तब हो गई थी, जब मालूम हुआ था कि अविवाहित जाना पिता एरोल के बच्चे की ही मां बनने वाली हैं.

उस के बाद से ही एलन के संबंध अपने पिता से बिगड़ गए थे, जबकि एरोल की दूसरी पत्नी हीड बेजुइडेनहाट ने बच्चे के जन्म के बाद भी उस के पिता की पहचान छिपा ली थी. उन्हें डर था कि इस खबर के सामने आते ही उन के परिवार में सभी रिश्तों के हालात बिगड़ जाएंगे.

फिर भी एरोल के संबंध सौतेली बेटी के साथ बने रहे. साथ ही उन्होंने 2018 में दिए एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि जाना का बच्चा एक गलती का परिणाम था. यह तब हुआ जब उस के बौयफ्रैंड ने उसे घर से निकाल दिया था और वह एरोल के घर रुकने आ गई थी.

उन्हीं दिनों एलन ने भी एक इंटरव्यू में अपने पिता से रिश्तों और सौतेले भाई के जन्म पर बात की थी. तब एलन ने कहा था, ‘‘वह इतने भयानक इंसान हैं, आप को पता नहीं है. मेरे पिता के पास वह करने का पूरा प्लान रहा होगा. वह आगे भी घिनौनी प्लानिंग करेंगे. लगभग हर अपराध जिस के बारे में आप सोच सकते हैं, उन्होंने किया है. लगभग हर बुराई जो आप सोच सकते हैं, उन्होंने की है. यह सच इतना भयानक है कि आप इस पर विश्वास नहीं कर सकते.’’

इस नाराजगी को खत्म करने के लिए एरोल मस्क ने पहल की और उन्होंने चौंकाने वाला खुलासा कर दिया.

इस बात को लंबे समय तक गुप्त रखने के बाद अचानक क्या हो गया, जो एरोल ने अपनी गलती कुबूल ली? इस बारे में जब उन से पूछा तो उन्होंने बड़े ही अलग अंदाज में बताया कि इस धरती पर हम इंसान प्रजनन के लिए ही हैं.

साथ ही स्वीकार किया कि बच्चे को उस के पिता का नाम देना भी जरूरी था. वैसे उन का यह भी कहना था कि उन्होंने कभी बेटी का डीएनए चैक नहीं किया, लेकिन वह बिलकुल मेरी दूसरी बेटियों रोज और टोस्का की तरह ही दिखती है.

इस विवाद के बाद एरोल अपने स्पर्म के कारण भी चर्चा आ गए हैं. कारण, कई संभ्रांत महिलाएं चाहती हैं कि वह एरोल के स्पर्म से गर्भवती हों, ताकि उन का प्रभावशाली बच्चा पैदा हो.

इसे ले कर कोलंबिया की एक कंपनी ने उन से संपर्क किया है. कंपनी के माध्यम से उच्च श्रेणी की महिलाएं चाहती हैं कि एरोल मस्क के स्पर्म से अगली पीढ़ी का एलन मस्क पैदा हो सके.

इस पेशकश पर एरोल का कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो वह इस का कोई पैसा नहीं लेंगे. यह उन का एक दान होगा. उन्हें बदले में सिर्फ अन्य सुविधाएं मिलनी चाहिए, जैसे प्रथम श्रेणी की यात्रा और पांच सितारा आवास.

यह कहना गलत नहीं होगा कि एरोल के स्पर्म की बदौलत डिजाइनर बेबी पैदा करने की ललक फिर से पैदा हो गई है.

आईवीएफ तकनीक से न केवल जरूरत के मुताबिक बच्चे पैदा करने की सहूलियत मिल गई है, बल्कि भविष्य में बच्चे के लिए स्पर्म को सुरक्षित रखना भी संभव है. इस के लिए स्पर्म डोनर से सुविधाएं ली जाती हैं.

जब कपल बच्चे की चाहत में आईवीएफ क्लीनिक जाते हैं तो डाक्टर से कई तरह की डिमांड  करते हैं. इस के पीछे का उद्देश्य डिजाइनर बेबी ही होता है.

डिजाइनर बेबी वह बच्चा होता है, जिस के जींस में बदलाव किए जाते हैं. इसे जींस का मेकअप भी कहा जा सकता है. कपल्स की डिमांड के मुताबिक बच्चे को आंखों, बालों का रंग, लंबाई, स्किन कलर और गुण दिए जाते हैं.

यह काम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी आईवीएफ तकनीक के जरिए किया जाता है. हालांकि कई देशों में यह काम गैरकानूनी है. आईवीएफ स्पैशलिस्ट डाक्टर के सामने अधिकतर कपल इस तरह की मांग रखते जरूर हैं, लेकिन भारत में आईवीएफ टेक्नोलौजी इतनी एडवांस नहीं हुई है. आईवीएफ टेक्नोलौजी का मकसद हेल्दी बेबी पैदा करना है.

भारत, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जरमनी और स्विटजरलैंड समेत 40 देशों में इनहैबिटेबल जेनेटिक मोडिफिकेशन तकनीक पर रोक है. बच्चे का लुक एग-स्पर्म पर निर्भर करता है. उस के गुण और ब्लड ग्रुप जींस पर. लेकिन आईक्यू उस की परवरिश और आसपास के माहौल पर निर्भर करती है.

शरीर में कुछ जींस प्रभावकारी होते हैं, जिन से बच्चे की लंबाई और आंखों का रंग प्रभावित होता है. यही कारण है कि स्पर्म डोनर की मांग उसी के अनुरूप होती है. आंखों का रंग हरा, काला, भूरा, नीला तभी होता है जब बच्चे के मम्मीपापा या दादीदादा की आंखों का रंग ऐसा हो.

भारत में एआरटी बैंक (एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलौजी क्लिनिक) से स्पर्म और एग आते हैं. उन के डोनर की पहचान गुप्त रखी जाती है. पुरुषों के लिए स्पर्म डोनर बनना आसान है, लेकिन महिलाओं को एग डोनर बनने के लिए पूरी आईवीएफ प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस में सर्जरी की जाती है.

इंडियन मैडिकल काउंसिल औफ रिसर्च की गाइडलाइंस के अनुसार डोनर की उम्र 21 से 40 साल के बीच होनी चाहिए. लेकिन महिलाएं एरोल मस्क के स्पर्म के लिए बेकरार हुई जा रही हैं लेकिन वे उन की उम्र को नहीं देख रहीं कि वह 76 साल के हो चुके हैं.

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