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बढ़ती उम्र में विवाहेतर संबंध

रिटायरमैंट के बाद विश्वास कुमार का समय नहीं कट रहा था. कुछ वर्षों पहले उन की पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी. बच्चे शादी के बाद बाहर बस चुके थे. नौकरी के दौरान व्यस्त रहने के कारण करीबी नातेरिश्तेदार और दोस्त नहीं बन पाए थे. सरकारी अफसर थे तो पैसा, जायदाद और पैंशन सबकुछ था. अपनी सेहत का ध्यान रखते थे.

60 साल होने के बाद भी वे 50 साल से कम उम्र के ही लगते थे. उन की दिनचर्या फिक्स थी. तन और धन दोनों से वे मजबूत थे. जब तक रिटायरमैंट नहीं हुआ था, तमाम लोग आगेपीछे घूमते थे. रिटायरमैंट होते ही अकेलापन बढ़ गया था. अकेलापन दूर करने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया. फेसबुक, इंस्टाग्राम और डेटिंग साइट पर उन के अलगअलग नामों से खाते खुले हुए थे. उन्हीं में महिला मित्रों को तलाश कर उन के साथ हंसीमजाक के सहारे जीवन कट रहा था उन का.

सोशल साइट के जरिए ही उन को कानपुर में रहने वाली नेहा नामक महिला मिली. बातचीत में उस ने खुद को तलाकशुदा सिंगल बताया. विश्वास कुमार से उस की बातचीत बढ़ने लगी. उम्र में वह भी 50 के आसपास ही थी, पर उस ने खुद को इतना फिट रखा था कि 35 साल से अधिक की नहीं लगती थी.

विश्वास और नेहा के बीच बातचीत बढ़ने लगी. धीरेधीरे दोनों ने यह तय किया कि अब वे शादी कर एकसाथ ही रहेंगे. नेहा कानपुर से लखनऊ आ गई और विश्वास के साथ ही रहने लगी. विश्वास को दबाव में रखने के लिए नेहा ने दोनों की शादी का कचहरी में एक नोटरी प्रमाणपत्र बनवाया. करीब 3 माह तक दोनों साथसाथ रहे. इस के बाद अचानक दोनों के बीच ?ागड़े शुरू हो गए.

नेहा और विश्वास एकदूसरे से परेशान हो कर अलग होने की बात करने लगे. नेहा ने कहा कि उसे तलाक देने का

20 लाख रुपया हर्जाना देना होगा. इस के पहले विश्वास अपनी पहली पत्नी के

15 लाख रुपए के जेवर नेहा को दे चुके थे. पहले तो विश्वास ने पैसे देने से मना कर दिया पर नेहा के दबाव में उन को यह करना पड़ा. नेहा को 3 से 4 महीने साथ रखने की कीमत विश्वास को 35 लाख की नकदी और जेवर दे कर चुकानी पड़ी.

बढ़ती उम्र में ऐसे लोगों में विश्वास अकेले नहीं हैं. सरकारी विभाग में काम करने वाले नीरज के संबंध अपनी पत्नी से अच्छे नहीं थे. उन की 2 बेटियां थीं. दोनों की शादी करने के बाद नीरज ने अपने घर ही जाना छोड़ दिया. पत्नी अकेली रहती थी.

नीरज के संबंध औफिस में काम करने वाली एक महिला दीपा से हो गए. वह विधवा थी, पर दिखने में अभी भी लड़की सी नजर आती थी. कुछ दिनों बाद नीरज का तबादला दूसरे जिले में हो गया. नीरज वहां सरकारी मकान में रहने लगा. नीरज अपनी पत्नी की जगह दीपा को अपने साथ रहने के लिए कभीकभी बुला लेता था. वहां के लोग उसे ही नीरज की पत्नी सम?ाते थे. कुछ समय बाद यह बात नीरज की पत्नी को पता चली. तब तक नीरज के रिटारयरमैंट होने का समय आ गया था.

इसी समय देश में कोरोना का आतंक बढ़ गया था. होटल, रैस्तरां तक बंद हो चुके थे. नीरज का दीपा से मिलना भी बंद हो चुका था. वह दीपा के लिए कुछ कर नहीं पा रहा था. रिटायरमैंट के बाद मिले रुपएपैसे पत्नी और बेटियों की जानकारी में थे. न चाहते हुए भी नीरज को अपने रुपएपैसे और पैंशन में हिस्सा पत्नी को देना पड़ा.

दीपा के साथ कुछ न कर पाने का दुख नीरज को होने लगा था. घर में रहने के कारण अब वे दीपा से मिल भी नहीं पाते थे, जिस की वजह से वे डिप्रैशन में रहने लगे. रिटायरमैंट के समय युवा दिखने वाला नीरज 2 साल से भी कम समय में 75 साल का बूढ़ा दिखने लगा. अब वे परिवार पर आश्रित हो चुके थे. दूसरी तरफ दीपा भी मजबूर हो कर दूर से केवल नीरज की बेबसी को महसूस ही कर पा रही थी. नीरज के परिवार के लोग दीपा को घर के आसपास भी देखना पसंद नहीं करते थे.

कैसे बढ़ रहे विवाहेतर संबंध विवाहेतर संबंध कोई नई बात नहीं है. इस में नई बात यह है कि अब बढ़ती उम्र में भी ये बनते हैं. आज से 10-15 वर्ष पहले 60 से 70 साल के पुरुषों और 45 से 55 साल की महिलाओं में विवाहेतर संबंधों के बारे में कम सुनाई देता था. ऐसे संबंधों की औसत आयु 40 से 50 वर्ष के बीच होती थी.

50 वर्ष की उम्र के बाद बुढ़ापा दिखने लगता था. लोगों में जवानी के निशान खत्म हो जाते थे. लोग खुद को बूढ़ा मान कर इस तरफ से अपना ध्यान हटा लेते थे. अपनी घरगृहस्थी में रम जाते थे. अब ऐसा नहीं है. महिलाओं की हैल्थ, फिटनैस और खुद के रखरखाव से उन की उम्र का पता ही नहीं चलता है.

55 साल की महिला 30 साल की दिखती है. लोग चौंकते तब हैं जब वह कहती है कि मेरी तो 20 साल की बेटी है.

इस की वजह यह है कि अब महिला और पुरुष ही पहले से अधिक फिट, स्मार्ट और खुले विचारों के होने लगे हैं. सोशल मीडिया ने एकदूसरे से दोस्ती करने का अवसर भी दे दिया है. इससे एकदूसरे के साथ बातचीत व्यवहार बढ़ गया है. मोबाइल, व्हाट्सऐप, वीडियोकौल, चैटिंग, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम के जरिए तमाम अवसर एकदूसरे के करीब आने के मिलते हैं, जिस से दोस्ती और दोस्ती के आगे के संबंधों का आधार बढ़ जाता है.

कोरोनाकाल के कारण जब पर्यटन, होटल, रैस्तरां और बाहर घूमना बंद हुआ तो ऐसे लोगों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा. कई औफिस बंद हो गए. घरों से वर्क फ्रौम होम होने लगा. इस की वजह से ऐसे संबंधों को निभाने में दिक्कतें आने लगीं और ये दिक्कतें घरेलू ?ागड़ों व डिप्रैशन की वजह बनने लगीं.

वैलनैस लाइफ का बढ़ता क्रेज

बढ़ती उम्र में जवां दिखने का क्रेज तो पहले भी था, अब जवां बनने का क्रेज बढ़ रहा है. तमाम तरह के डाइट प्लान पर लोग अमल करने लगे हैं. खाने की जगह लोग डाक्टर की सलाह पर फूड सप्लीमैंट लेने लगे हैं. विटामिंस और मिनरल्स का प्रयोग बढ़ गया है. जिम का बढ़ता क्रेज इस का ही उदाहरण है.

पुरुषों में ही नहीं, महिलाओं में भी जिम का कल्चर बढ़ा है. इस से उन की उम्र जवां बनी रहने लगी है. इस से तन और मन से लोग जवां होने लगे हैं. उन को अपने लिए एक बेहतर रिश्ते की तलाश होने लगी है, जिस से विवाहेतर संबंध बढ़ रहे हैं.

छोटे शहरों और हिंदी स्कूलों में पढ़ने वाली महिलाएं और पुरुषों को जब बड़े शहरों में आ कर नए अवसर मिलने लगते हैं तो वे विवाहेतर रिश्तों की चमक में फंस जाते हैं. इस के पहले उन्होंने फिल्मों और टीवी सीरियलों की कहानियों में ऐसे रिश्तों को खूब देखा होता है. बड़े शहरों में आ कर उन को अवसर मिलते हैं.

फिटनैस और हैल्थ पहली प्राथमिकता

आज के दौर में महिला और पुरुष दोनों में अपनी हैल्थ और फिटनैस को ले कर सोच बदली है. किशोरावस्था से ले कर युवावस्था के बीच का फर्क खत्म हो गया है. 12वीं कक्षा के बाद अधिकतर युवा जौब करने की दिशा में आगे बढ़ते हैं. ग्रेजुएशन करतेकरते वे कैरियर शुरू कर चुके होते हैं. इस के बाद शादी, परिवार और कैरियर में आगे बढ़ने की दौड़ तेज हो जाती है. इस के बीच वे अपने खुद के बारे में सोचने का समय नहीं निकाल पाते.

कई लड़कियां अपना कैरियर नहीं बना पातीं. जब उम्र 40 से 45 के बीच पहुंचती है तो खुद के बारे में सोचने का समय मिलता है. इस दौर में ये लोग वह सबकुछ पाना चाहते हैं जो युवावस्था में पीछे छोड़ आते हैं. पैसा और जानकारी होने के कारण अब ये लोग जीवन को नए सिरे से जीने की सोचते हैं, जिस की वजह से विवाहेतर संबंध बढ़ने लगते हैं.

विवाहेतर संबंधों का सब से बड़ा कारण अपने साथी से सैक्स संबंधों की कमी मानी जाती है, हालांकि यह बात पूरी तरह से सच नहीं है. ऐसे भी तमाम कपल देखे जाते हैं जो अपने साथी के साथ पूरी तरह से वफादार होने के बाद भी विवाहेतर संबंधों में चले जाते हैं.

कई ऐसे कपल भी हैं जो बड़े ही तालमेल से दोनों जगह लंबे समय तक संबंधों को चलाते हैं. असल में ऐसे कपल विवाहेतर संबंधों को पूरी तरह से छिपा कर रखते हैं. वे अपनी सीमाएं तय कर लेते हैं. वे एकदूसरे के मामलों में दखल नहीं देते. वे चुपचाप किसी न किसी बहाने सप्ताह या महीने में एकदो बार मिलते हैं.

कई लोगों ने इन दिनों के लिए ऐसी जगहों पर फ्लैट लिए होते हैं, जहां पर कैमरे न लगे हों, आनेजाने वाले का विवरण गेट पर न रखा जाता हो. कई बार यह देखा गया है कि गेट वाले को ये रिश्वत भी देते हैं कि उन के खास मेहमान की एंट्री अपार्टमैंट के मुख्य गेट से न की जाए.

इन घटनाओं का खुलासा वहां होता है जहां इन से जुड़ा कोई अपराध हो जाता है. पूरी पड़ताल में यह खुल जाता है. ऐसे संबंध तब तक छिपे रहते हैं जब तक कोई अपराध न हुआ हो. इसलिए ऐसे संबंधों को बनाते समय यह जरूर खयाल रखें कि मामला अपराध तक न पहुंचे.                — द्य

उर्फी जावेद के कपड़े पर कमेंट करना वनराज को पड़ा भारी, मिला ये रिप्लाई

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस उर्फी जावेद अपने ड्रेसिंग सेंस को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं.लेकिन उर्फी जावेद ने दीवाली पर अपनी नई वीडियो को शेयर कर लोगों के तरफ अपना ध्यान खींच लिया है.

दरअसल उन्होंने टॉपलेस वीडियो शेयर करके लोगों को बधाई दी है, जिससे कुछ लोगों उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया  है, दरअसल उनका यह अंदाज लोगों को भी पसंद नहीं आय़ा, अनुपमा के एक्टर सुधाशुं पांडे ने गलत बताया है. उन्होंने इस वीडियो को घटिया बताया है.

 

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यहीं नहीं बल्कि उन्होंने मीडिया को भी लताड़ लगाया है, जैसे ही इस बात का पता उर्फी जावेद को पता चला तो उन्होंने सुधांशु पांडे को जवाब देने में पीछे नहीं हटी, उन्होंने इंस्टाग्राम पर करारा जवाब दिया है.

सुधांशु पांडे ने लिखा कि मैं इस घटिया इंसान को फॉलो नहीं करता हूं फिर भी मुझे इसका घटिया वीडियो देखने को मिल जाता है, दीवाली के पावन पर्व में ऐसे अपने बॉडी को शो करना गलत बात है. जिसके बाद उर्फी जावेद ने लंबा चौड़ा जवाब दिया है,

एक्टर सुधांशु पांडे को जवाब देते हुए लिखा है कि आप ऐसी घटिया चीजें देखते हैं क्योंकि आप दुनियां को कंट्रोल नहीं कर सकते हैं, मैं आपके जैसे इंसान को देखना पसंद नहीं करती हूं. मुझे ऐसा लग रहा है कि आपको अनुपमा का डॉयलॉग नहीं मिल रहा है टीआरपी के लिए तो आप मुझे कमेंट करके फेम होना चाहते हैं.

सवि और विनायक ने एक साथ मनाई भाईदूज, सई ने दिया ये रिएक्शन

सीरियल गुम है किसी के प्यार में सवि ने ऐलान कर दिया है कि वह विराट को अपना पिता बनाएगी, सई के लाख कोशिशो के बावजूद भी सवि विराट के परिवार से दूर नहीं हो पाती है.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें सवि और विनायक एक दूसरे के साथ भाईदूज मना रहे हैं. इस वीडियो को देखने के बाद से फैंस कयास लगा रहे हैं कि जल्द ही नील भट्ट और एश्वर्या शर्मा अपने बच्चों के लिए एक होने वाले हैं.

 

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बता दें आए दिन यह सीरियल ट्रोलिंग का शिकार होते रहता है, शो में आने वाले हर ट्विस्ट और टर्न हेटर्स के निशाने पर आते हैं. कुछ वक्त पहले ही इस सीरियल के डॉयरेक्टर ने ट्रोलिंग को लेकर बड़ा बया दिया था.

इस सीरियल के डॉयरेक्टर सिद्धार्थ वानकर ने जवाब दिया था कि ट्रोलिंग का उनपर क्या असर पड़ रहा है, सिद्धार्थ ने कहा था कि ट्रोलिंग का मुझपर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. इससे सीधे मेरी टीआरपी डाउन हो रही है. उन्होंने ये भ कहा था कि कई बार मेरे माता पिता पत्नी और मेरे बच्चों को गाली देते हैं.

आगे सिद्धार्थ ने कहा कि मैं इन सभी चीजों को नजर अंदाज करके आगे का काम करता हू.

मैं एक युवती से काफी सालों से प्यार करता हूं लेकिन अब वह मुझ से प्यार नहीं कर सकती, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं एक युवती से उस समय से प्यार करता हूं जब हम कक्षा 6 में पढ़ते थे. वह भी मुझे खूब प्यार करती थी. हमारा आपस में इतना प्यार था कि अगर किसी एक को चोट लगती तो दर्द दूसरे को होता था. अचानक 19 अप्रैल, को उस के पापा ने हमें साथ साथ देख लिया. उस दिन के बाद से हम दोनों की बातचीत कम होती गई. 19 अप्रैल के बाद से उस ने बात करनी बंद कर दी. मैं ने उस से बात करने की बहुत कोशिश की तब जा कर 1 साल बाद उस से मेरी बात हुई. मेरे यह पूछने पर कि क्या मेरे प्यार में कोई कमी रह गई थी, उस ने सिर्फ इतना ही कहा कि अब वह मुझ से प्यार नहीं कर सकती. मुझे यह सुन कर बड़ा सदमा लगा. उस दिन से आज तक मैं उसे मिस करता हूं. अपनी दास्तान का यह तो एक पेज ही है, बाकी पूरी बुक दिल व दिमाग में है. सो, प्लीज बताएं, मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप ने अपने एसएमएस में अपनी वर्तमान आयु के बारे में कोई जिक्र नहीं किया. अगर आप को लगता है कि उस के फादर के देखने के बाद पूरी कहानी बदल गई है और अब पहले जैसा प्यार संभव नहीं हो पा रहा है तो आप भी खुद को चेंज कीजिए. अगर पढ़ने की उम्र में कोई इन किस्सों में खुद को शामिल कर लेता है तो उस का विशेष दायित्व बनता है कि वह ऐसा कुछ खास करे कि कोई भी उस की ओर उंगली उठा कर यह न बोले कि आशिकी के चलते जीवन संवारते भी कैसे? आप अपना ध्यान और कामों में लगाइए. शुरू में कुछ दिक्कत होगी लेकिन कोशिश करने पर सफलता अवश्य मिलेगी ही.

दफ्तर में कर्म धर्म नहीं

अंशिका एक एनर्जी बेस्ड कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्य करती थी. वह बेहद सुल झी व विनम्र स्वभाव की लड़की थी. अपने साथियों की वह जहां तक संभव हो सकता था, मदद करती थी. धीरेधीरे उस के बौस विभाग के सब छोटेबड़े काम के लिए उसे ही याद करने लगे. अंशिका अपनी मेहनत के बल पर अपने कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ रही थी. वहीं दूसरी ओर उसी दफ्तर में रुचि मेहनत के बजाय ग्रहनक्षत्रों में उल झी हुई थी. रुचि दफ्तर की हर समस्या का समाधान व्रतों और अंगूठियों में खोजती थी.

कोई भी नया प्रोजैक्ट अगर रुचि को मिलता तो वह अपने पंडितजी से पूछे बिना हां नहीं कहती थी.

रुचि अपनी इन बेवकूफियों के कारण दफ्तर में तरक्की नहीं कर पाई और उस के लिए भी उस ने अपने ऊपर चल रही शनि की साढ़ेसाती को जिम्मेदार ठहराया. काश, कोई होता जो रुचि को बता पाता कि समय अच्छा या बुरा ग्रहनक्षत्रों से नहीं, हमारे कर्मों से बनता है.

उधर ज्योति जो एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी अपने गुरुजी की इतनी बड़ी भक्त थी कि उन की हर बात को वह पत्थर की लकीर मानती थी. ज्योति को लगता था कि उन की हर बात को मान कर उस की नौकरी तो बची ही रहेगी, उसे पदोन्नति भी मिल जाएगी.

स्कूल के काम पर ध्यान न दे कर उस ने बस पूजापाठ पर ध्यान दिया और नतीजा यह निकला कि लापरवाही के कारण ज्योति को नौकरी से हाथ धोना पड़ा.

ऊपर दिए उदाहरण रियल लाइफ से ही लिए गए हैं. जब एक युवा उत्साह के साथ दफ्तर में प्रवेश करता है तो अकसर वह दफ्तर की राजनीति का शिकार हो जाता है. इस राजनीति के कारण वह अकसर तनाव में रहने लगता है. इस तनाव से निबटने के 2 उपाय हैं, पहला आप समस्या को देखें और उस का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करें और दूसरा जो अकसर  लोग करते हैं वह है पंडितों के सहारे समाधान ढूंढ़ना. इस के लिए वह हवन, कीर्तन, तंत्रमंत्र में हजारों खर्च कर देता है. मगर थोड़ा सा ठंडे दिमाग से बैठ कर उस का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करेगा.

मेहनत का कोई तोड़ नहीं : दफ्तर में ऐसे बहुत से घाघ कर्मचारी होंगे जो हमेशा काम न करने के बहाने बनाने में एक्सपर्ट होते हैं. इन लोगों के घर में हमेशा एक न एक मुसीबत खड़ी रहती है. ये लोग टैक्नोलौजी से नावाकिफ होते हैं पर सारे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स से वाकिफ होते हैं. दफ्तर में मेहनत करने वालों की ही साख होती है. मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता. कामचोर लोग कुछ दिन मजे कर सकते हैं मगर आगे बढ़ने के लिए मेहनत करना जरूरी है.

नो शौर्टकट : अगर आप दफ्तर के किसी काम से वाकिफ नहीं हैं तो अपने जूनियर या सीनियर से मदद लेने से हिचकिचाएं मत. बहुत बार देखने में आता है कि अगर काम में कोई परेशानी होती है तो अपने सहकर्मियों से मदद लेने के बजाय व्रत या अंगूठी पहनने लगते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन की समस्या हल हो जाएगी. याद रखिए सफलता का कोई शौर्टकट नहीं होता. आप जितना काम करेंगे उतना ही आप का आत्मविश्वास बढ़ेगा.

काम बनता है कर्मों से : समीर अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आ कर कभी कोई भी काम नहीं करता था पर जैसे ही किसी को प्रमोशन मिलता था, समीर हमेशा यह बोल कर पल्ला  झाड़ देता था कि यह सब किस्मत का खेल है.

समीर जैसे लोगों को इस बात का बिल्कुल पता नहीं कि किस्मत हमारी हाथों की लकीरों से नहीं, बल्कि हमारे कामों से बनती है. किस्मत खुद कुछ नहीं है. हम जैसा काम करते हैं वैसा ही फल हमें मिलता है चाहे वह औफिस हो या जिंदगी.

प्रोफैशनल बनें: यह आज के समय में सब से अधिक जरूरी है. आप विनम्रता और दृढ़ता दोनों को साथ ले कर चलेंगे तो आप को किसी भी पूजापाठ की जरूरत नहीं पड़ेगी. प्रोफैशनलिज्म ही वह मंत्र है जो आप की सफलता के लिए जरूरी है.

ब्रेक ले कर काम करें : एक बार हम नौकरी करना आरंभ करते हैं तो अपने शौक को पीछे छोड़ देते हैं जो सही नहीं है. यह आप के शौक ही तो हैं जो आप को जिंदा रखते हैं. आप के शौक आप को असीम खुशी और ऊर्जा से भर देंगे जो आप को आप के दफ्तर के काम को और बेहतर ढंग से करने में मदद करेंगे.

तनाव को मत होने दें हावी : कोई भी नया काम आते ही तनावग्रस्त होने के बजाय आप उस काम को सम झने की कोशिश करें. तनाव को दूर करने का एक ही उपाय है, आप उस काम को करें जो आप को तनाव देता है. शायद कुछ मुश्किल होगी, मगर एक बार आप ने यह कर लिया तो आप का आत्मविश्वास बढ़ जाएगा. आप अपनेआप को स्वावलंबी महसूस करेंगे.

जिंदगी में जब भी कोई मुश्किल आए तो मंदिर या मसजिद में मदद ढूंढ़ने के बजाय एक बार खुद से मदद मांगिए. खुद को यह विश्वास दिलाएं कि आप को अपनी मदद खुद ही करनी है.

ग्रह, नक्षत्र, अच्छा या बुरा समय उन ही लोगों का होता है जो खुद पर विश्वास नहीं रखते हैं. हर मुश्किल का डट कर मुकाबला करें. ये मुश्किलें आप को परेशान करने नहीं, बल्कि आप को मजबूत बनाने आई हैं.

‘रेवड़ी कल्चर’: दो मिनट मैगी न समझें

सारी बहस मुफ्त की रेवड़ी बनाम जन कल्याण सुविधा से जुड़ी है पर सच यह है कि इन सुविधाओं को पाने के लिए जनता को हमेशा गरीब ही बने रहना होगा. हर पार्टी के नेता मुफ्त योजनाओं की घोषणा करते हैं पर यह कितना सही है? आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में मुफ्त बिजलीपानी के बल पर चुनाव जीता. इस के बाद पंजाब चुनाव में जीत मिली. अब गुजरात विधानसभा के चुनाव में आप (आम आदमी पार्टी) अपने मुफ्त बिजलीपानी फामूर्ले पर जनता में पैठ बना रही है.

गुजरात में सरकार चला रही भाजपा के लिए यह परेशानी की बात है. इस की काट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘रेवड़ी कल्चर’ का नारा उछाला. भाजपा की आईटी ट्रोल सेना इस को ले कर ?ापट पड़ी कि जिस से अरविंद केजरीवाल को घेरा जा सके. केजरीवाल ने भी मोरचा संभाल लिया है. रेवड़ी कल्चर देश की जनता को पसंद है. इस के बल पर कई बार सत्ता बदली है. गुजरात चुनाव में रेवड़ी कल्चर मुद्दा बन गया है. इस का जवाब भाजपा नहीं दे पा रही. पहली बार चौकीदार का सामना थानेदार से पड़ गया है. रेवड़ी कल्चर को ‘दो मिनट मैगी’ न सम?ों, देश की राजनीति में इस का प्रभाव हमेशा चुनाव की दशा बदलता रहता है. 16 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि मुफ्त का रेवड़ी कल्चर देश के लिए बहुत घातक है. यह देश के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला है. इस से सभी को दूर रहने की आवश्यकता है. प्रधानमंत्री का इशारा चुनाव के समय राजनीतिक दलों की ओर से मतदाताओं को लुभाने के तरहतरह के तरीकों की ओर था.

रेवड़ी कल्चर को ले कर देश की सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बैंच ने कहा था कि नीति आयोग, वित्त आयोग, सत्ताधारी दल और विपक्षी पार्टियों, रिजर्व बैंक औफ इंडिया और अन्य संस्थाओं को भी इस मामले में सु?ाव देने चाहिए कि आखिर इस रेवड़ी कल्चर को कैसे रोका जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त का रेवड़ी कल्चर देश के लिए बहुत घातक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 के दौरान 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने का दावा किया. इस को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों तक बढ़ाया गया ताकि वोट का लाभ मिल सके. मुफ्त का रेवड़ी कल्चर देश की राजनीति और चुनाव में कोई ‘दो मिनट मैगी’ की तरह से नहीं है. यह चुनाव के समय शुरू हो कर चुनाव के बाद खत्म हो जाता है. यह भारत की राजनीति में अंदर तक प्रवेश कर चुका है.

हर पार्टी और सरकार ऐसे लोग चाहती है जो उस पर निर्भर रहें और उस के कहने पर वोट दें. मुफ्त के रेवड़ी कल्चर के प्रभाव को बढ़ाने के लिए ही सरकारें चाहती हैं कि जनता गरीब रहे, उस को वोट देती रहे. जनता गरीब रहे, तभी वह मंदिरमंदिर और नेताओं के दरवाजेदरवाजे उम्मीद का टोकरा ले कर घूमती रहती है. चुनाव के समय जो सब से ज्यादा रेवड़ी देता है उसे वह वोट देती है. मुफ्त का रेवड़ी कल्चर असल में जनता द्वारा दिए गए टैक्स के पैसों से ही बांटा जाता है. 1970 से भारत में गरीब और गरीबी चुनावी मुद्दा बनते रहे हैं. उस समय कांग्रेस की नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था. 52 वर्षों बाद आज भी गरीबी और गरीब जस के तस हैं. यही नहीं, देश के तमाम राज्य तक केंद्र सरकार से लोन लेने में आगे रहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेवड़ी कल्चर के बहाने दिल्ली की केजरीवाल सरकार को घेरने की कोशिश में थे.

असल में दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने लगातार 2 चुनाव जीत कर दिल्ली पर अपना ?ांडा फहरा रखा है. दिल्ली के साथ ही साथ आम आदमी पार्टी ने अब पंजाब का विधानसभा चुनाव जीत लिया है. इस के बाद वह गुजरात में भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है. आप को जिस तरह से सफलता मिल रही है उस से भाजपा में खौफ फैल रहा है. उसे लग रहा कि आप कहीं कांग्रेस का विकल्प बन कर भाजपा को सत्ता से बाहर न कर दे. आप की सफलता के मूल में वे नीतियां हैं जिन में जनता को फ्री दिया जाता है. आप पार्टी की फ्री बिजली और फ्री पानी का वादा लोगों को पसंद आया, इस कारण प्रधानमंत्री ने इस को मुफ्त का रेवड़ी कल्चर कह डाला. भाजपा की यह रणनीति होती है कि विरोधी को टारगेट कर के ट्रोल सेना द्वारा सोशल मीडिया पर उस की आलोचना की जाए. प्रधानमंत्री मोदी का टारगेट यह था कि रेवड़ी कल्चर के बहाने आप पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को टारगेट किया जाए जिस से उन को राहुल गांधी की तरह ‘पप्पू’ और अखिलेश यादव की तरह से ‘टोटी चोर’ कह कर बदनाम किया जा सके और गुजरात के विधानसभा चुनाव के पहले ही केजरीवाल को रेवड़ी कल्चर के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके.

इस बीच, भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुफ्त की रेवड़ी वाले बयान को ले कर कहा कि पिछले 5 वर्षों में भ्रष्ट कारोबारियों का 10 लाख करोड़ रुपए तक का कर्ज माफ किया गया. जो सदन गरीब को 5 किलोग्राम राशन दिए जाने पर धन्यवाद की आकांक्षा रखता है वही सदन बताता है कि 5 वर्षों में भ्रष्ट धनपशुओं का 10 लाख करोड़ रुपए तक का कर्ज माफ हुआ है. मुफ्त की रेवड़ी लेने वालों में मेहूल चौकसी और ऋषि अग्रवाल का नाम शीर्ष पर है. सरकारी खजाने पर आखिर पहला हक किस का है? आप ने उठाए सवाल आम आदमी पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुफ्त की रेवड़ी वाली टिप्पणी को ले कर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की.

इस में कहा कि जनकल्याण पर किए गए खर्च को मुफ्त रेवड़ी नहीं कहा जा सकता. आम आदमी पार्टी ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जनकल्याण पर खर्च को मुफ्त रेवड़ी नहीं माना जा सकता है. आम आदमी पार्टी ने कहा कि कारोबारी घरानों के कर्ज माफी और टैक्स माफी को मुफ्त रेवड़ी माना जाए. कुछ पार्टियां चुनाव से पहले कुछ वादे करती हैं पर सरकार बनने पर कुछ और करती हैं. जैसे प्रधानमंत्रीजी ने चुनाव से पहले हर भारतीय को 15-15 लाख रुपए देने की बात कही थी लेकिन सरकार बनने के बाद कुछ धनाढ्य लोगों के 10 लाख करोड़ माफ कर दिए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आज देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जहां मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की सुविधाएं देना गुनाह हो गया है. इस से सरकारों को बहुत घाटा हो रहा है और यह बंद होना चाहिए.

केजरीवाल कहते हैं कि देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. 75वें साल में शिक्षा का ऐसा सिस्टम बन जाना चाहिए था कि पूरे देश में बच्चों को अच्छी और मुफ्त शिक्षा मिलती. इस वक्त हमें प्लानिंग करनी चाहिए थी कि 5 साल में पूरे देश में शानदार सरकारी स्कूल बना कर बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे. तभी सही माने में आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई जाती. केजरीवाल ने कहा कि डेनमार्क, नौर्वे जैसे 39 देश अपने बच्चों को मुफ्त में अच्छी शिक्षा देते हैं. कनाडा, यूके जैसे 9 देशों में मुफ्त इलाज की सुविधा है जबकि अमेरिका, जरमनी जैसे 16 देश बेरोजगारी भत्ता भी देते हैं. ये देश इसलिए विकसित और अमीर बने क्योंकि ये मुफ्त में अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं देते हैं. मोदीजी कह रहे हैं कि आम लोगों को मिल रही फ्री शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी बंद होना चाहिए. इस से सरकारों को घाटा होता है. सामान्य तौर पर हम सीधे कह सकते हैं कि सरकारें मुफ्त का कुछ भी नहीं देतीं. हमारा, आप का दिया हुआ टैक्स ही सरकारों के खर्चे के काम आता है. अगर उस का एक बड़ा हिस्सा देश के गरीब लोगों के लिए चलने वाली लोक कल्याणकारी योजनाओं में खर्च होता है तो दिक्कत किस बात की है.

पुराना है रेवड़ी कल्चर का चलन राजनीतिक दलों के चुनाव जीतने की महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए मुफ्तखोरी के वादे किए जाते हैं. सरकारों के 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने और किसानों के कर्जे माफ कर देने की घोषणाओं पर अमल ने यह हालत बना दी है कि जिन घरों में पहले से ही बिजली की खपत कम है वहां भी निश्ंिचततापूर्वक 200 यूनिट बिजली खर्च करने की लापरवाही बढ़ी है. कर्ज लेने वाले किसान मान कर चलने लगे हैं कि चुनाव के बाद कर्जे माफ कर दिए जाएंगे. इस से राज्य सरकारों के बजट पर असर पड़ा है. आज हालत यह है कि देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 27 में वित्त वर्ष 2021-2022 के दौरान उन के ऋण अनुपात में 0.5 से 7.2 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. पंजाब तो अपने जीडीपी का करीब 53.3 प्रतिशत तक कर्ज ले चुका है. राजस्थान का यह अनुपात 39.8, पश्चिम बंगाल का 38.8, केरल का 38.3 और आंध्र प्रदेश का 37.6 प्रतिशत है.

ये सभी राज्य राजस्व घाटा पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से अनुदान लेते हैं. महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्य भी कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी और 20 फीसदी से गुजर रहे हैं. सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए लोकलुभावने वादे कर लेते हैं. इन का बाकायदा घोषणापत्र भी जारी कर देते हैं. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने मुफ्त लैपटौप, टेबलेट और बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया. 2012 में चुनाव जीतने के बाद ये सारे वादे वह पूरे नहीं कर सकी. इस के बाद के चुनाव हार गई. दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने मुफ्त बिजली और पानी का वादा किया. उस को पूरा भी किया तो वे दो बार विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे. मुफ्त के वादे करना सरल होता है उन को पूरा करना कठिन होता है. 1982 में राज्य की राजनीति में फिल्म अभिनेता एनटीआर की तेलुगूदेशम पार्टी के उभरने के बाद महिलाओं को मुफ्त धोती देने से ले कर 2 रुपए किलो चावल तक देने के वादे किए गए. जयललिता की ‘अम्मा रसोई’ मशहूर रही है जहां मुफ्त खाना मिलता था.

भारत में बहुत से ऐसे राज्य हैं जहां राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को मुफ्त सौगात बांटने के वादे किए और सत्ता में भी आ गए मगर खजाने खाली हो गए और वहां की सरकारें कर्जदार हो गईं. लोकतंत्र में मतदाता राजनीतिक दलों की नीतियों, सिद्धांतों व भविष्य के कार्यक्रमों को देख कर वोट देते हैं. मगर दक्षिण भारत से शुरू हुई रेवड़ी बांटने की रवायत अब उत्तर भारत में भी शुरू हो गई है. मुफ्त लैपटौप या साइकिल बांटने या अन्य जीवनोपयोगी जरूरी सुविधाएं देने से किसी गरीब परिवार का क्या भला हो सकता है जब तक कि उस की आय बढ़ाने का स्थायी साधन न खोजा जाए और उसे उस का कानूनी हक न दिया जाए. मुफ्त की रेवड़ी जैसी सुविधाओं को पाने के लिए तो जनता को हमेशा गरीब ही बने रहना होगा. भारत की जनता को भी पता है कि मुफ्त की रेवड़ी रोजरोज नहीं बंटती.

जब वोट देने का समय आता है तभी इस की याद आती है. गांव के पंचायत चुनावों में यह खूब देखने को मिलता है, जिस की वजह से पंचायत चुनाव बहुत महंगे हो जाते हैं. सत्ताधारी भाजपा सरकार की चिंता गुजरात चुनाव को ले कर है. उसे डर है कि अगर आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल का मुफ्त रेवड़ी बांटने का फामूर्ला वहां काम कर गया तो भाजपा के लिए भारी पड़ जाएगा. इसलिए वह केजरीवाल को मुफ्त रेवड़ी बांटने को ले कर बदनाम करना चाहती है. आप ने जिस तरह से इस मुद्दे को संभाला है उस से साफ है कि गुजरात की लड़ाई खास होती जा रही है.

एक मुकाम दो रास्ते : भाग 2

पापा को बस 2 चीजों से बेहद लगाव था. एक तो अपने बिजनैस से और दूसरा ब्रिज से. ब्रिज तो उन से कोई हर रोज खिलवा ले घंटोंघंटों तक. वह अपना बिजनैस का काम तो शाम 6 बजे ही खत्म कर देते थे. उस के बाद वह कभी भी अपने साथियों के साथ ब्रिज खेलने को तैयार रहते थे.

मुझे याद है, जब वह हफ्ते की 7 शामों में से 3-4 शामें घर से बाहर ही बिताते थे. रात को 12-1 बजे के बाद ही घर लौटते थे. मैं तो सो ही जाता था. मैं सोचता कि उन के घर आने पर मम्मी और पापा में थोड़ीबहुत नोकझोंक तो होती ही होगी, क्योंकि घर का वातावरण अगले दिन भी तनावपूर्ण रहता था.

समय गुजरता गया. हम कभी भी 3 से 4 नहीं हो पाए. मम्मी ने भी हालात से समझौता कर लिया. शायद पापा ने भी समझौता कर लिया था. अब वह हफ्ते में केवल 2 दिन ही ब्रिज खेलने जाते थे शाम को, मंगलवार और शुक्रवार को. अब 11 बजे ही घर आ जाते थे.

हां, अपनी दुकान से सीधे ही चले जाते थे ब्रिज खेलने. खाना भी घर पर नहीं खाते थे. वहीं पर पिज्जा मंगवा लेते थे और बीयर तो पी ही जाती थी.

पापा के ब्रिज के तीनों साथियों की दोस्ती बरसों पुरानी थी. तीनों ही दिल्ली से एक ही हवाईजहाज से आए थे मांट्रीयल. मांट्रीयल में हवाईअड्डे से शहर आने के लिए बस की प्रतीक्षा कर रहे थे, जब एकदूसरे का परिचय हुआ था. चारों एकदूसरे से कितने भिन्न हैं, परंतु ब्रिज के खेल ने उन के शौक को गहरी दोस्ती में बदल दिया था.

अनवर मियां एक कालेज में गणित के लेक्चरर हैं. कभी शादी की ही नहीं. सुदेशजी इंजीनियर हैं, यहां की हवाईजहाज बनाने वाली एक कंपनी में. 3 शादियां कर चुके हैं और तीनों से ही तलाक हो गया. जब हफ्ते में 3-4 शाम दोस्तों के साथ देर रात एक ब्रिज खेलते रहेंगे तो तलाक नहीं होगा? माधवेशजी क्या करते हैं, किसी को अच्छी तरह मालूम ही नहीं. शायद एक्सपोर्टइंपोर्ट का काम करते हैं.

उन्होंने कुछ साल पहले ही शादी की थी, निशा से. मैं उन दिनों स्कूल में ही था. जब निशा आंटी भारत से आई ही थीं, तब मम्मीपापा ने काफी बड़ी एक पार्टी की थी उस के रिसेप्शन में.

निशा आंटी और माधवेश अंकल की उम्र में काफी फर्क था. कम से कम 12-14 साल का तो होगा ही. माधवेश अंकल के बाल काफी उड़ गए थे. सिर के कुछ गिनेचुने बालों के ऊपर ही उन्होंने अपने गंजेपन को छिपाने की जिम्मेदारी दे दी थी.

मांट्रीयल आ कर निशा आंटी ने नौकरी खोजने की काफी कोशिश की, परंतु उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई. एमए पास अवश्य थीं, परंतु वह भी तृतीय श्रेणी में. 50 प्रतिशत से भी कम थे नंबर उन के. उन्हें स्कूल में भी नौकरी नहीं मिल सकी. वैसे, कनाडा के स्कूलों में गणित के शिक्षकों की हमेशा कमी रहती है. इत्तिफाकन निशा आंटी भारत में हमेशा हिंदी मीडियम में ही पढ़ी थीं, इसलिए उन की अंगरेजी भी ज्यादा अच्छी नहीं थी. मुझे ही उन की अंगरेजी मुश्किल से समझ में आती थी, तो फिर कनाडा के बच्चों को कैसे समझ आती. अवश्य ही उन्हें यहां के स्कूल वालों ने इंटरव्यू में तो बुलाया होगा, परंतु उन के अंगरेजी बोलने के ढंग से उन्हें नौकरी नहीं दी होगी.

मेरा उन दिनों बीकौम का दूसरा साल था. शीतकालीन सत्र में मैं ने और सिसिल ने 5 विषय ले रखे थे. हम दोनों लाइब्रेरी में साथसाथ ही पढ़ते थे. हम दोनों को ही एक विषय ‘औपरेशन मैनेजमेंट’ में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. लगता था कि इस कोर्स में अवश्य फेल होंगे. सोचा, किसी से ट्यूशन ले लें इस विषय में.

सिसिल की आर्थिक स्थिति काफी नाजुक थी, इसलिए ट्यूशन मुझे ही करवानी थी. ट्यूटर 20 डौलर प्रति घंटा मांग रहा था. अचानक खयाल आया कि निशा आंटी ने तो एमए गणित में किया है. उन्होंने शायद एमए में ‘औपरेशन रिसर्च’ का विषय लिया होगा. उस में जरूर ही उन्होंने लीनियर प्रोग्रामिंग पढ़ा होगा.

मैं ने मम्मी से अपनी परेशानी का जिक्र किया. मम्मी ने कहा कि कल शाम को जब वह हमारे घर आएंगी, तभी उन से बात कर लूं.

निशा आंटी और मम्मी हर बुधवार को पूरे हफ्ते की शौपिंग एकसाथ करती थीं. माधवेश अंकल वैसे तो कार हर रोज ले जाते थे, परंतु बुधवार को कार घर पर ही छोड़ जाते थे. निशा आंटी उस दिन सारी शौपिंग और बैंक आदि का काम निबटा लेती थीं. शाम को ढाईतीन बजे वह हमारे घर आ जाती थीं. मम्मी और वह अपने घर के खानेपीने के सामान की पूरे हफ्ते की खरीदारी कर लेती थीं. खरीदारी के बाद वह मम्मी को घर पर छोड़ देती थीं. मम्मी उन के लिए हमेशा ही कुछ न कुछ नमकीन व मीठा शाम की चाय के लिए सुबह से ही तैयार कर रखती थीं. चाय पी कर निशा आंटी अपने घर चली जाती थीं.

मैं उस दिन खासतौर से पहले ही घर आ गया था यूनिवर्सिटी से. निशा आंटी चाय पी रही थीं मम्मी के साथ रसोई में ही. मैं उन के सामने ही बैठ गया किचन टेबल पर.

‘‘कितने बड़े हो गए हो, रमन, पिछले साल की क्रिसमस पार्टी में ही देखा था तुम्हें. 5 फुट 10 इंच के तो हो गए होगे अब तक?’’ निशा आंटी एकदम कई सवाल कर बैठीं एकसाथ.

‘‘यह 6 फुट का हो गया है. हर साल 3-4 इंच बढ़ जाती है लंबाई इस की. कपड़े खरीदते ही छोटे हो जाते हैं,’’ मम्मी ने मेरी ओर से ही जवाब दे दिया.

‘‘आंटी, आप को लीनियर प्रोग्रामिंग आती है?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मेरे औपरेशन मैनेजमेंट के कोर्स में है. मिड टर्म में बस इसी पर सवाल हैं.’’

‘‘एमए में गणित में पढ़ाई के दौरान पढ़ी थी थोड़ीबहुत लीनियर प्रोग्रामिंग. अब इतने सालों में भूल गई होऊंगी कुछकुछ. फिर भी एक बार पढ़ कर कुछ तो याद आ ही जाएगा. मेरे पास तो कोई किताब भी नहीं है, जो पढ़ सकूं इस विषय में,’’ निशा आंटी बोलीं.

 

Satyakatha: कर्ज चुकाने को भुलाया फर्ज

कां चनगरी के नाम से प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के शहर फिरोजाबाद के थाना उत्तर का घनी आबादी वाला मोहल्ला है आर्यनगर. इसी मोहल्ले की गली नंबर-9 में रहते हैं कोयला व्यवसाई लोकेश जिंदल उर्फ बबली. उन की के.डी. कोल ट्रेडर्स नाम से फर्म है.

पहली अप्रैल, 2022 को शाम साढ़े 4 बजे लोकेश के दरवाजे पर लगी कालबैल को किसी ने बजाया. उस समय घर में नौकरानी रेनू शर्मा के अलावा लोकेश की 74 वर्षीय मां कमला अग्रवाल दूसरी मंजिल पर मौजूद थीं.

घंटी की आवाज सुन कर रेनू ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर 2 युवक खड़े थे. कारोबारी को पूछते हुए दोनों युवक दूसरी मंजिल पर कारोबारी की मां कमला देवी के पास पहुंच गए.

दोनों युवक कमला देवी से बातचीत करने लगे. कुछ देर बाद कमला देवी ने रेनू को बुलाया और दोनों मेहमानों के लिए चाय बनाने को कहा. रेनू किचन में चाय बनाने चली गई. जब वह चाय ले कर कमरे में पहुंची तो वहां का नजारा देख कर सन्न रह गई.

माताजी बिस्तर पर लहूलुहान पड़ी थीं. वाशबेसिन का शीशा टूटा पड़ा था. कांच के कुछ टुकड़े बिस्तर पर भी पड़े थे. बदमाशों ने कमला देवी का कांच से गला रेत कर हत्या कर दी थी.

कमरे का यह दृश्य देख कर रेनू की चीख निकल गई. एक बदमाश ने रेनू को दबोच लिया. उस की पिटाई कर उसे भी कांच के टुकड़े से घायल कर दिया. धमकी दी कि अगर शोर मचाया तो उसे भी मार देंगे. बदमाश कमरे की अलमारी में रखी नकदी व आभूषण लूट कर भाग गए.

बदमाशों के जाने के बाद रेनू ने शोर मचाया. शोर सुन कर पड़ोसी आ गए. बिस्तर पर कमला देवी की लाश पड़ी थी. इस के साथ ही रेनू घायल थी. वह घबराई हुई थी और रो रही थी.

उस दिन अर्पित मां तथा बुआ व चाचा के परिवार के सदस्यों के साथ आसफाबाद स्थित डीडी टाकीज में 3 से 6 बजे शो की मूवी देखने गए हुए थे. वे सब घर से दोपहर ढाई बजे निकले थे. शाम 5 बजे पड़ोसी भाटिया ने फोन कर उन्हें घटना की जानकारी दी.

सभी लोग शो छोड़ कर दौड़ेदौड़े घर पहुंचे. वहां भीड़ और पुलिस को देखते ही परिजनों में हाहाकार मच गया.

इस से पहले सूचना मिलने पर थाना उत्तर के थानाप्रभारी संजीव कुमार दुबे अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पंहुच गए थे. तब तक वहां भीड़ जमा हो चुकी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना से अवगत कराया.

इस पर एसएसपी आशीष तिवारी, एसपी (सिटी) मुकेशचंद्र मिश्र व

अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एसएसपी आशीष तिवारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने देखा कि कमला देवी की मौत हो चुकी थी. कमरे में सामान बिखरा पड़ा था. अलमारी खुली पड़ी थी. मृतका के गले, सिर पर चोट के निशान थे. बैड के नीचे खून से सना तकिया पड़ा था.

पुलिस ने टापा कलां निवासी घायल नौकरानी रेनू शर्मा को उपचार के लिए प्राइवेट ट्रामा सेंटर भेज दिया. जरूरी काररवाई निपटाने के बाद कमला देवी के शव को मोर्चरी भिजवा दिया.

शहर के व्यस्ततम और तंग गलियों वाले आर्यनगर में दिनदहाड़े दिल दहलाने वाली घटना से सनसनी फैल गई. लोगों के मन में इस बात को ले कर आक्रोश था कि घटनास्थल से थाना कुछ ही दूरी पर स्थित होने के बावजूद पुलिस सूचना देने के आधे घंटे बाद घटनास्थल पर आई.

गुस्साए लोगों को एसएसपी आशीष तिवारी ने भरोसा दिया कि इस जघन्य घटना का शीघ्र खुलासा कर दिया जाएगा.

कोयला कारोबारी लोकेश जिंदल पिछले 15 दिनों से व्यापार के सिलसिले में गुवाहाटी गए हुए थे. घर पर उन की पत्नी शोभा व बेटा अर्पित थे. अर्पित अपनी मां, चाचा व बुआ के परिवार के साथ मूवी देखने चला गया था.

ऐसा लगता था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को पहले से घर की पूरी स्थिति का पता था. पुलिस समझ गई थी कि घटना को अंजाम परिचितों द्वारा ही दिया गया है.

उपचार के बाद रेनू से पुलिस ने पूछताछ की. रेनू ने बताया कि वह युवकों को नहीं पहचानती. उस ने पूरी घटना पुलिस को बताते हुए कहा, जब उस ने दरवाजा खोला तो 2 लोग खड़े थे.

लोकेश बाबूजी को पूछते हुए दोनों अंदर चले आए और सीधे दूसरी मंजिल पर कमरे में माताजी के पास बैठ कर बातें करने लगे. इस से लगा कि वह घरवालों के परिचित हैं. इस तरह नौकरानी ने पूरी बात पुलिस को बता दी.

कारोबारी की मां की हत्या व लूट की गुत्थी नौकरानी के बयानों से उलझ गई थी. जिस तरह से कमला देवी की हत्या की गई, उस से यह बात समझ नहीं आ रही थी कि हत्यारों ने वाशबेसिन पर लगे शीशे को तोड़ कर कांच से हत्या क्यों की?

यदि वे हत्या व लूट करने ही आए थे तो अपने साथ कोई हथियार क्यों नहीं लाए? कमला देवी ने चाय बनाने को कहा तो जरूर वे परिचित ही होंगे.

घटना के बाद कमला देवी के कमरे में पुलिस को कई अहम सुराग मिले. इन में नौकरानी रेनू की चूडि़यां, चप्पल व कान के कुंडल आखिर वहां कैसे आ गए?

रेनू का कहना था कि बदमाशों द्वारा उस के साथ बुरी तरह मारपीट करने के दौरान ये सभी चीजें वहां गिर गई थीं. नौकरानी के बयानों के हिसाब से पुलिस को साक्ष्य नहीं मिले.

परिवार की महिलाओं ने बताया कि यहां से 6 किलोमीटर दूर आसफाबाद स्थित भारत टाकीज में परिवार के सदस्य मूवी ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने गए थे. इस बात की जानकारी केवल रेनू व मां को थी. चाय के प्याले भी नहीं मिले.

जिस बरतन में रेनू द्वारा चाय बनाने की बात कही जा रही थी, वह किचन में उसी जगह पर रखा मिला. जहां घर वाले उसे छोड़ कर गए थे. चाय बनाने के कोई सबूत भी नहीं दिखाई दे रहे थे. आसपास के लोगों ने भी 2 लोगों के बाइक से आनेजाने की पुष्टि नहीं की.

इन सब बातों के चलते पुलिस के संदेह की सुई नौकरानी पर भी घूम रही थी. परिवार की महिलाओं ने पुलिस से आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग करते हुए न्याय की गुहार लगाई.

पूछताछ के दौरान घर वालों ने बताया कि नौकरानी रेनू उन के यहां स्थाई रूप से काम नहीं करती थी. नौकरानी को जरूरत पड़ने पर बुलाया जाता था. बीचबीच में वह अपनी मरजी से आतीजाती थी.

शुक्रवार को सभी लोग पिक्चर देखने जा रहे थे, इसलिए मां की देखभाल के लिए उसे बुला लिया था. 3 माह पहले मां की बैक बोन का औपरेशन कराया गया था. तब से ज्यादातर समय वह बिस्तर पर ही गुजारती थीं. लेकिन बेंत के सहारे आसानी से चलफिर लेती थीं.

ऐसा लगता था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को पहले से ही घर की पूरी स्थिति का पता था कि पहली अप्रैल शुक्रवार को घर में कौनकौन था. एसएसपी आशीष तिवारी ने घटना के खुलासे के लिए फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

बदमाशों तक पहुंचने के लिए पुलिस ने क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने के साथ ही आसपास के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

एसओजी के साथ ही 3 थानों की 5 पुलिस टीमें खुलासे के लिए गठित कीं. घटना की जानकारी मिलने पर सदर विधायक मनीष असीजा के साथ ही कई भाजपा नेता भी वहां पहुंच गए. विधायक ने परिजनों को ढांढस बंधाया.

पुलिस टीम में शामिल हत्याकांड का परदाफाश करने वाली टीम में एसपी (सिटी) मुकेश कुमार मिश्र, सीओ (सिटी) हरिमोहन सिंह, थानाप्रभारी (उत्तर) संजीव कुमार दुबे, एसओजी प्रभारी रवि त्यागी, थानाप्रभारी (दक्षिण) रामेंद्र कुमार शुक्ला, थानाप्रभारी (लाइनपार) आजाद पाल, महिला थानाप्रभारी हेमलता, थानाप्रभारी (रामगढ़) हरवेंद्र मिश्रा शामिल थे.

लोकेश जिंदल के मकान पर बदमाशों द्वारा दिनदहाड़े हत्या व लूट को अंजाम दिया गया था. वहां से एसपी (सिटी) मुकेश चंद्र मिश्र का कार्यालय व थाना (उत्तर) करीब 500 मीटर की दूरी पर है. वहीं नगर विधायक मनीष असीजा का आवास महज डेढ़ सौ मीटर व शिकोहाबाद विधायक मुकेश वर्मा का आवास मात्र 50 मीटर दूर है.

इस के बाद भी बदमाश बेखौफ हो कर वारदात को अंजाम दे कर साफ निकल गए. पुलिस को इस की भनक तक नहीं लगी. मामला लोकेश जिंदल की तहरीर पर दर्ज कर लिया गया.

सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस को अगर उम्मीद थी तो नौकरानी रेनू शर्मा से ही थी. वही मौके की प्रत्यक्षदर्शी थी. वही बदमाशों के हुलिया की सही जानकारी दे सकती थी, जिस से बदमाश पुलिस की गिरफ्त में आ सकते थे.

पुलिस ने रेनू को विश्वास में ले कर उस से बदमाशों के बारे में गहनता से पूछताछ की. पुलिस ने उसे न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया. तब रेनू ने पुलिस को सारी घटना बता दी. तब पुलिस ने बिना देरी किए रात में ही लोहिया नगर से तरुण गोयल को गिरफ्तार कर लिया.

दूसरे दिन 2 अप्रैल को एसएसपी आशीष तिवारी ने प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर आर्यनगर में हुई हत्या व लूट की घटना का परदाफाश करते हुए जानकारी दी कि कर्ज में डूबे रिश्तेदार ने ही हत्या व लूट की घटना को अंजाम दिया था.

बदमाश एक ही था. वह भी कोई बाहरी व्यक्ति न हो कर मृतका की बेटी का दामाद था. दामाद होने के कारण उस का घर आनाजाना था उसे सभी सम्मान देते थे. नौकरानी रेनू शर्मा उस से अच्छी तरह परिचित थी.

पुलिस ने हत्यारोपी को गिरफ्तार करने के साथ ही उस के कब्जे से लूटे गए 77,620 रुपए तथा ज्वैलरी जिस में सोने की 4 चूडि़यां, कानों के टौप्स, 2 अंगूठियां, चांदी के नोट के साथ आलाकत्ल पेचकस भी बरामद कर लिया.

आरोपी ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. कमला देवी की हत्या लूट के उद्देश्य से की गई थी. पुलिस को वारदात के 12 घंटे बाद ही आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई थी.

हत्या व लूट की वारदात को तरुण गोयल ने अंजाम दिया था. वह मूलरूप से मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के बंगला एरिया के मकान नंबर 195 का निवासी है. तरुण मृतका कमला देवी की बेटी रंजना उर्फ पिंकी का दामाद है. वह मेरठ में सेनेटरी का काम करता था. उस का अच्छा कारोबार था.

परिजनों के अनुसार क्रिकेट मैचों पर औनलाइन सट्टा खेलने के कारण उस पर 50-60 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. तब वह लौकडाउन में भाग कर फिरोजाबाद आ गया था.

वह फिरोजाबाद के थाना उत्तर के लोहिया नगर की गली नंबर 2 में घरजमाई बन कर रहने लगा था. यहां रह कर वह सेनेटरी का काम करता था.

तरुण को पता चला कि उस के और नानी सास के परिजन शुक्रवार को एक साथ फिल्म देखने गए हैं और नानी सास ही घर पर अकेली हैं.

उस की नजर नानी सास कमला देवी के रुपयों व आभूषणों पर थी. उसे पता था कि लोकेश का कोयले का बड़ा व्यवसाय है. उस ने सुनियोजित षडयंत्र रचा और पहली अप्रैल, 2022 की शाम साढ़े 4 बजे वह आर्यनगर में उन के घर पर पहुंच गया.

घंटी बजाने पर रेनू ने दरवाजा खोल दिया. घर पर नौकरानी रेनू को देख कर उसे अपनी योजना पर पानी फिरते दिखा. लेकिन लालच के चलते वह खुद को रोक नहीं सका. दूसरी मंजिल पर वह सीधे कमला देवी के कमरे में पहुंचा.

उस समय कमला देवी सो रही थीं. तरुण ने जैसे ही कमरे में रखी अलमारी खोली. आहट सुन कर कमला देवी जाग गईं. इस पर कमला देवी ने टोका. तभी तरुण ने कमरे में रखे पेचकस से उन के सिर पर वार किया.

शोर मचाने पर तरुण ने वाशबेसिन के शीशे को तोड़ दिया और उस के कांच से कमला देवी का गला रेत दिया.

आवाज सुन कर रेनू कमरे में आ गई. तरुण ने उसे दबोच लिया और मारपीट करते हुए कांच से उस के शरीर पर वार किए. तरुण ने रेनू की हत्या करने के लिए उस के गले में शीशा फंसा दिया. मगर रेनू गिड़गिड़ाई और पेट में पल रहे बच्चे की दुहाई व राज किसी को न बताने की बात कह कर अपनी जान बचाई.

आरोपी ने रेनू को धमकी देते हुए कहा कि वह घर में 2 बदमाशों के आने की कहानी सभी को बताए. लेकिन उस का नाम हरगिज अपनी जुबान पर न लाए, वरना अंजाम बुरा होगा. इस के बाद अलमारी से नकदी व जेवर लूट कर भाग गया.

रेनू ने घटना के बाद हत्यारे द्वारा दी गई धमकी को ध्यान में रखते हुए वैसा ही किया. वह पुलिस को घुमाती रही. इस से पुलिस का शक उसी पर बढ़ता गया. कई घंटे की पूछताछ के बाद आखिर रेनू ने सारा भेद खोल दिया.

हत्याकांड के बाद तरुण खून लगे कपड़े बदलने के लिए अपने घर गया, कपड़े बदले, इस के बाद थाना उत्तर से पुलिस को बुलाने की बात पर वह स्वयं अपनी बाइक से थाने पहुंचा और घटना की जानकारी दी.

वारदात के बाद वह लगातार घटनास्थल पर ही रहा ताकि घटना पर नजर रख सके. उसे पता था कि नौकरानी रेनू उस के खिलाफ कुछ नहीं बोलेगी और वह बच निकलेगा.

पुलिस द्वारा नानी सास की हत्या कर उन के यहां लूट करने वाले बेटी के दामाद तरुण गोयल को जब जेल ले जाया जा रहा था, तब पत्रकारों ने उस से प्रश्न किया कि जब नौकरानी रेनू शर्मा तुम्हें अच्छी तरह जानती थी, तब तुम ने उस चश्मदीद गवाह को क्यों छोड़ दिया था?

इस पर तरुण ने कहा कि रेनू ने गर्भवती होने की बात बताते हुए 2 जिंदगियों की हत्या नहीं करने की बात कह कर जान की भीख मांगी थी. इस पर उसे जिंदा छोड़ दिया. आरोपी तरुण गोयल को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया.

आरोपी औनलाइन सट्टा खेलने से कर्जदार हो गया था. उस के शौक भी शानोशौकत वाले थे. उस ने परिस्थितियों का हल निकालने की कोशिश नहीं की.

पैसे के जुनून के चलते घिनौनी साजिश रच कर हत्या व लूट जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दे कर रिश्तों में जहर घोलने का काम ही किया. कातिल दामाद के शैतानी दिमाग ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा    द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

BIGG BOSS 16: अब्दु रोजिक और शिव ठाकरे हुए इमोशनल, देखें Video

बिग बॉस 16 में इन दिनों कुछ न कुछ नया देखने को मिल रहा है. हाल ही में बिग बॉस 16 से मान्या सिंह का सफर खत्म हो गया है. कम वोट मिलने की वजह से उन्हें बेघर कर दिया गया है. इसके बाद में इस शो में नॉमिनेशन टॉस्क हुआ है.

इस लिस्ट में गौतम विज और टीना दत्ता का नाम शामिल हुआ है. इस बार शो के सबसे चर्चित कंटेस्टेंट अब्दु रोजिक पर नॉमिनेशन का गाज गिरा है. जिसे जानते ही उनके फैंस का दिल टूट गया है. अब्दू रोजिक की कुछ तस्वीरे सामने आई है जिसे देखकर आप भी इमोशनल हो जाएंगे.

 

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नॉमिनेशन में नाम आने के बाद से अब्दू रोजिक शिव से बात करते हुए काफी ज्यादा भावुुक लग रहे हैं. वह अपनी इमोशन को कंट्रोल नहीं कर पाएं और रोने लगें. शिव भी भावुक हो गए और रोने लगें. जिसके बाद अब्दु शिव को समझाने लगे की जनता मुझे जाने नहीं देगी, वह मुझे इस घर से बेघर नहीं करने देगी.

बता दें कि अब्दु रोजिक और शिव ठाकरे बहुत कम समय में अच्छे दोस्त बन गए हैं. दोनों एक दूसरे के साथ बिग बॉस के घर में रहना चाहते हैं. इऩकी दोस्ती को इनके फैंस भी पसंद करते हैं.

इस शो में बाकी कंटेस्टेंट भी दमदार खेल रहे हैं. हालांकि अभी तक ये कहना मुश्किल है कि कौन होगा इस शो का विनर.

Manohar Kahaniya: पूरे परिवार को लील गया सूदखोरों का आतंक

बिहार में सूदखोरों का आतंक पिछले दिनों कर्जदारों के घर मौत बन कर आ धमका. एक ही परिवार के 5 सदस्यों की लाशें जब फंदे से झूलती मिलीं, तब सुशासन की सरकार का पूरा महकमा सकते में आ गया.

समस्तीपुर जिले में विद्यापति नगर थाना क्षेत्र के मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मनोज झा के परिवार में थोड़ी चहलपहल थी. कई दिनों बाद परिवार में खुशी का माहौल बना था. क्योंकि मनोज झा की 2 महीने पहले ब्याही गई बेटी निभा अपने पति आशीष के साथ मायके आई थी.

उन के लिए साधारण दिनों से अच्छा अलग खाना पकाया जाना था. शाम होने से पहले मनोज झा मछली ले कर आए थे. मछली देख कर उन की पत्नी सुंदरमणी देवी तुनकती हुई बोली, ‘‘ई मछली पकतई कैसे?’’

‘‘काहे की भेलई?’’ मनोज झा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘की भेलई! गैस सिलेंडर ले गेलई हरामजादा!’’ सुंदरमणी बोली.

‘‘के ले गेलई, अहां के बुझौव्वल काहे बुझाव छियय हो सत्यम के माई.’’ मनोज बोले.

‘‘अरे मनोज, हम बताव छियय. सहुकरवा के दूगो आदमी आइल छियय. खूब गोस्सा में गारीगलौज कैलकय. हम केतनो समझैलियय, लेकिन नय मानलौ औ सिलेंडर उठा के लो गेलौ.’’ मनोज झा की विधवा मां सीता देवी दुखी मन से बोलीं.

‘‘ओक्कर ई मजाल, किश्त के सूद लेवे के बाद ई हरकत कईलकय. अच्छा, कल्हे जा के ओकरा से फरिया लेव. लकड़ी पर पकावे के इंतजाम कअर्.’’ सुंदरमणी की ओर मुंह कर मनोज बोले.

अपने पिता, मां और बाबूजी की बातें निभा भी सुन रही थी. वह जानती थी कि उस के पिता पिछले 5 साल से कर्ज में डूबे हैं. कर्ज की किश्तें नहीं चुकाने के चलते घर की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई है. उन्होंने बड़ी दीदी किरण की शादी में जो कर्ज लिया था, वह अभी तक नहीं चुक पाया था. वह उदास मन से मछली का थैला ले कर आंगन में धोने चली गई.

निभा के दिमाग में अचानक किरण की शादी का वह दृश्य घूम गया. बारात आने वाली थी. सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन मनोज झा एक कोने में उदास बैठे थे. उन के सामने गांव का एक आदमी भी बैठा था. वह एकदम से झकाझक कुरता पायजामे में दबंग की तरह दिख रहा था.

उस ने पिता मनोज का हाथ पकड़ रखा था. निभा उन के लिए एक गिलास पानी और प्लेट में नाश्ता ले कर गई थी. दरअसल, वह संभ्रांत व्यक्ति चौधरी था. गांव का ही था और गांव में किसी की भी मदद के लिए तत्पर रहता था. राजनीति करता था. किसानों और छोटेछोटे काम करने वालों के लिए जरूरी पूंजी का कर्ज देता था.

निभा ने उसे बोलते हुए सुना, ‘‘देख मनोज, तेरा दुख मुझ से छिपा नहीं है. बाबूजी के कर्ज का तू मेरा कर्जदार है, वह आज नहीं तो कल चुका ही देगा. लेकिन शादीब्याह के मौके पर तुम्हें अकेला कैसे छोड़ सकता हूं….अरे मेरा भी फर्ज है कि नहीं. गांव की बेटी है. अच्छे से शादी संपन्न हो जानी चाहिए. बराती के स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. बाजाबत्ती के लिए हम ने इंतजाम कर दिया है. गांव वालों को भी लगना चाहिए कि ब्राह्मण परिवार की शादी है.’’

‘‘बाबूजी, ई नाश्ता और पानी,’’ निभा बोली.

‘‘हांहां, लाओ बेटी.’’ चौधरी हाथ बढ़ा कर निभा के हाथ से प्लेट लेते हुए बोला, ‘‘पानी यहीं नीचे रख दे. और तू जा! मम्मी दादी की मदद कर.’’

‘‘अरे निभा इतना धीमेधीमे क्यों साफ कर रही है, जरा तेजी से हाथ चला. अंधेरा होने से पहले मछली तल लेना है. लाइट भी कट गई है.’’ मम्मी की आवाज सुन कर पुरानी यादों में खोई निभा हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘हां मम्मी, अभी करती हूं.’’

‘‘क्या हुआ बेटी, लगता है तू कहीं खोई हुई थी,’’ मां सुंदरमणी बोली.

‘‘हां मम्मी, चौधरी का आदमी किस्त लेने आया था न?’’ निभा ने सवाल किया.

‘‘अरे बेटी तू क्यों इन बातों को याद करती हो… तू और दामादजी तो 1-2 दिन की हमारे मेहमान हो. अपने परिवार के बारे सोचो.’’ मां ने समझाया.

‘‘नहीं मां, बताओ न दीदी की शादी का कर्ज ही अभी तक चला आ रहा है न?’’ निभा ने जानने की जिद की.

‘‘क्या करोगी जान कर, वह एक कर्ज थोड़े है. कर्ज पर कर्ज लद चुका है. कोरोना में काम खत्म हो गया तो कर्ज और बढ़ गया. अब तो क्या बताऊं…’’ मां मायूस हो गई और आंचल के पल्लू से नम हो चुकी आंखें पोछती हुई चली गई.

आर्थिक तंगी से जूझते हुए एक परिवार की यह बात 5 जून, 2022 की है. उस परिवार के मुखिया 45 वर्षीय मनोज झा थे, लेकिन परिवार की सब से बड़ी सदस्या 66 वर्षीया सीता देवी थीं. उन के पति की साल भर पहले आकस्मिक मौत हो गई थी. बताते हैं कि वह भी कर्ज में डूबे थे और उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

परिवार के दूसरे सदस्यों में मनोज झा की 42 वर्षीया पत्नी सुंदरमणी के अलावा 2 बेटे सत्यम (8) और शिवम (7) थे. मनोज की दोनों बेटियों किरण और निभा की शादी हो चुकी थी और वे अपनीअपनी ससुराल में रह रही थीं. हालांकि दोनों बेटियां अपने मायके का हालसमाचार लेती रहती थीं और बीचबीच में उन से मिलने आतीजाती रहती थी.

इसी सिलसिले में निभा अपने पति के साथ मायके आई थी. उस के आने की सूचना मां ने फोन पर पति को देते हुए चावल और आटा लाने को भी कहा था. यह सब निभा ने भी सुन लिया था. मायके में अपने मातापिता, दादी, छोटेछोटे भाइयों की हालत देख कर उसे बहुत दुख हुआ था.

अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद मनोज झा अपने दामाद की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे. उन को स्पैशल खाना खिलाने के लिए मछली ले कर आए थे.

घर के आंगन में मछली और चावल पकते हुए रात के करीब 9 बज गए थे. सीता देवी और सुंदरमणी को छोड़ कर सभी ने मछली भात खाया था. शिवम और सत्यम के लिए उस दिन का बेहद ही मजेदार खाना था, लेकिन रात को लालटेन की रोशनी में मछली खाने में उसे काफी समय लग गया था.

रात के साढ़े 10 बज चुके थे. छोटे से घर में सभी के लिए सोने का इंतजाम भी करना था. उस काम में निभा ने अपनी मां की मदद की.

उस दिन गरमी अधिक थी. सोने के इंतजाम के तौर पर मनोज झा ने अपने छोटे बेटे को ले कर गेट पर अपना बिस्तर लगा लिया, जबकि सासबहू और सत्यम एक कमरे में चले गए. निभा ने अपने पति के साथ उस के ठीक बगल के कमरे में अपना बिछावन लगा ली.

अगले दिन निभा की नींद शोरगुल के साथ टूटी. सूरज निकल चुका था और बाहर गेट पर कई लोग उस के पापा को पुकार रहे थे. उन में एक आवाज उस के चचेरे भाई की भी थी. उस ने तुरंत अपने पति को जगाया और कमरे से बाहर आई.

बाहर आते ही उस की नजर बगल के कमरे में खुले दरवाजे पर गई. उस के बाहर ही कुछ लोग खड़े थे. दरवाजे से उस के पिता, मां और दादी फंदे से झूलते दिख रहे थे. उन के बाद पीछे की ओर उस के दोनों भाई भी फंदे में लटके थे.

इस दृश्य को देख कर निभा वहीं धड़ाम से गिर पड़ी. उसे पति ने किसी तरह संभाला. उस समय सुबह के करीब 6 बज चुके थे. उस दृश्य को देख कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने कहा उन्हें मार कर फांसी पर लटका दिया गया है. तो कोई कहने लगा मनोज ने सभी को जहर दे कर मार डाला, फिर उन्हें फांसी पर लटका दिया होगा.

इस घटना ने दिल्ली में बुराड़ी की सामूहिक आत्महत्या की घटना की याद ताजा कर दी. घर और गांव में कोहराम मच गया. एक परिवार के सामूहिक मौत की खबर जंगल में आग की तरह पूरे गांव से हो कर जिला मुख्यालय तक जा पहुंची.

घटना की सूचना पा कर दलसिंह सराय के एसडीपीओ दिनेश पांडेय समेत विद्यापति नगर थाने की पुलिस पूरे फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गई. इसी बीच मनोज झा की बड़ी बेटी किरण और परिवार के दूसरे सदस्यों को इस की सूचना मिल गई. वे लोग भी तुरंत वहां पहुंच गए.

राजधानी पटना से फोरैंसिक विभाग की 5 सदस्यीय टीम भी पहुंच गई. सभी ने घटनास्थल का जायजा लिया. निरीक्षण के बाद टीम के सदस्यों ने शवों को फांसी के फंदे से उतार कर समस्तीपुर सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. इसी के साथ मनोज झा के घर को जांच के लिए सील कर दिया गया.

घटना के बाद से मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मीडिया, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं समेत गैर राजनीतिक संस्थाओं के लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया, जो कई दिनों तक जारी रहा.

मनोज झा के परिजनों से उस रोज की पारिवारिक गतिविधियों के बारे में जुटाई गई जानकारी के मुताबिक सीता देवी ने एक दिन पहले ही अपनी बेटी यानी मनोज की बहन रीना झा से बात की थी. उन्होंने उस से अपने घर की माली हालत का दुख सुनाया था.

यहां तक कहा था कि सूदखोर घर का गैस सिलेंडर तक ले जा चुके हैं. गांव में रहने की इच्छा अब नहीं होती है. हर दूसरे दिन साहूकार का आदमी कर्ज की किश्त मांगने आ धमकता है. उसी दिन उन की बात पोती किरण से भी उस की ससुराल में हुई थी.

गांव में सीता देवी सहायता समूह का संचालन करती थी. वह ‘जीविका दीदी’ का भी काम संभालती थी. जबकि मनोज खैनी की दुकान चला कर परिवार का पेट भरता था.

मनोज झा की एकलौती बहन रीना ने भी पुलिस को बताया कि उस के भाई मनोज ने लोन पर गाड़ी ले कर काम शुरू किया था, लेकिन लोगों ने उस गाड़ी को भी सही से चलने नहीं दिया. फिर उस ने गांव में ही छोटी सी खैनी की दुकान खोली थी. वह भी गांव के दबंगों ने बंद करवा दी थी. दबंगों द्वारा भतीजे को मारने की धमकी दी जाती थी.

भाई ने अपनी बड़ी बेटी किरण कुमारी की शादी के लिए गांव के साहूकार से 3 लाख रुपए कर्ज लिया था. उस की शादी 28 जून, 2017 को धूमधाम से हुई थी.

साहूकार 5 वर्ष पहले लिए गए 3 लाख रुपए कर्ज का सूद सहित 17 लाख रुपए मांग रहा था, जिस से वह परेशान था. उस की किश्त चुकाता था, जिसे वह किश्त को सूद के रूप में रख लेता था और उस का कर्ज बढ़ता ही जा रहा था.

किरण के पति गोविंद झा ने बताया कि साहूकार ने कई किश्तों में 3 लाख रुपए का कर्ज दिया था, जिस में कुछ पैसा उन के ससुर ने साहूकार को कई किश्तों में लौटाया भी था. इस की जानकारी डायरी में लिखी मिली है.

इस मामले के तूल पकड़ने पर घटना के दूसरे दिन राजग सरकार के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री एवं स्थानीय सांसद नित्यानंद राय पहुंचे. मृतक मनोज झा की बेटियों से मिले. उन्होंने उन से गुहार लगाई कि कर्ज देने वालों ने उन के जमीन के कागज ले लिए हैं. और अब उन्हें भी अपनी जान का खतरा लग रहा है.

मनोज झा की बेटी किरण ने बताया कि साहूकार के आतंक के चलते उस के दादा रतिकांत झा ने भी मौत को गले लगा लिया था. उन की मृत्यु 16 अगस्त, 2021 को हुई थी. लेकिन उस वक्त गांव वालों ने मामला सलटाने की बात कह कर चुप करा दिया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उन की मौत का कारण नहीं मालूम हो पाया था. सभी का मऊ गांव में ही प्रशासन की देखरेख में गंगा की सहायक नदी वाया के तट अखाड़ा घाट पर दाह संस्कार करवा दिया गया.

इस मौके पर परिजनों, रिश्तेदारों व ग्रामीणों की मौजूदगी में सभी शवों की मुखाग्नि मनोज झा के छोटे दामाद पटना जिले के खुसरूपुर निवासी आशीष मिश्रा ने दी. इस मौके पर अंचलाधिकारी अजय कुमार व थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार सहित अन्य लोग मौजूद थे.

इस मामले को ले कर किरण ने विद्यापतिनगर थाने में एक रिपोर्ट लिखवाई, जिस में गांव के श्रवण झा, उस के बेटे मुकुंद कुमार झा और अर्जुन सिंह के बेटे बच्चा सिंह पर कर्ज का रुपया वापस करने के लिए हमेशा प्रताडि़त करने और घर में घुस कर हत्या करने का आरोप लगाया.

वहीं घटना के विभिन्न पहलुओं पर नजर रखते हुए पुलिस जांच में जुट गई थी. कथा लिखे जाने तक घटना में आरोपी बनाए गए श्रवण झा और उस के बेटे मुकुंद कुमार झा ने दलसिंहसराय कोर्ट में 14 जून को आत्मसमर्पण कर दिया था.

जबकि बच्चा सिंह फरार था. थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार ने कहा कि पुलिस आगे की काररवाई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर करेगी. उन्होंने मनोज झा के खानदान में बची बेटियों की सुरक्षा का भी आश्वासन दिया.

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