Download App

तोरिया की बोआई का सही समय

लेखक- ] प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, निदेशक, प्रसार्ड ट्रस्ट, मल्हनी, भाटपार रानी, देवरिया, 

इस समय वर्षा सामान्य से बहुत कम हुई है, जिस के कारण या अन्य किसी कारण से किसान खरीफ में कोई फसल नहीं ले पाए हैं, वे खाली पडे़ खेत में तोरिया/लाही की फसल ले सकते हैं. इस की खेती कर के अतिरिक्त लाभ लिया जा सकता है. तोरिया खरीफ एवं रबी सीजन के मध्य में बोई जाने वाली तिलहनी फसल है. खेत की तैयारी इस के लिए वर्षा कम होने के साथ समय मिलते ही खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 2-3 जुताई देशी हल, कल्टीवेटर या हैरो से कर के पाटा दे कर मिट्टी भुरभुरी बना लें. प्रमुख प्रजातियां तोरिया की प्रमुख प्रजातियां टी.

9, भवानी, पीटी 303, पीटी 30 और तपेश्वरी हैं, जो 75 से 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं. उपज क्षमता 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ है. बीज की मात्रा और बीजोपचार तोरिया के बीज डेढ़ किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए. बीजजनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए. इस के लिए ढाई ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित कर के ही बोएं. बोआई का उचित समय गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए तोरिया की बोआई सितंबर के पहले पखवारे में समय मिलते ही की जानी चाहिए. भवानी प्रजाति की बोआई सितंबर के दूसरे पखवारे में ही करें. खाद एवं उर्वरक मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए. यदि मिट्टी का परीक्षण न हो सके, तो 16 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग प्रति एकड़ में करें. 44 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 30 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें.

बोआई के 25 से 30 दिन के बीच पहली सिंचाई के बाद टौप ड्रैसिंग के रूप में 44 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ में देना चाहिए. बोआई की विधि बोआई 30 सैंटीमीटर की दूरी पर 3 से 4 सैंटीमीटर की गहराई पर कतारों में करनी चाहिए और पाटा लगा कर बीज को ढक देना चाहिए. घने पौधों को बोआई के 15 दिन के अंदर निकाल कर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सैंटीमीटर कर देनी चाहिए और खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराईगुड़ाई भी साथ में कर देनी चाहिए. सिंचाई फूल निकलने से पहले की अवस्था पर पानी की कमी के प्रति तोरिया (लाही) विशेष संवेदनशील है,

इसलिए अच्छी उपज लेने के लिए इस अवस्था पर सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक है. बरसात होने पर नुकसान से बचने के लिए उचित जल निकास की व्यवस्था करें. कीट एवं रोग प्रबंधन नाशीजीवों की सही पहचान कर के उचित प्रबंधन करना चाहिए. कटाईमड़ाई जब फलियां 75 फीसदी सुनहरे रंग की हो जाएं, तो फसल को काट कर सुखा लेना चाहिए. उस के बाद मड़ाई कर के बीजों को सुखा कर भंडारित करें.

हकीकत : कमाल साहब की अम्मी कहां थी?

फारुकी साहब के खानदान के हमारे पुराने संबंध थे. वे पुश्तैनी रईस थे. अच्छे इलाके में दोमंजिला मकान था. उन के 2 बेटे थे, जमाल और कमाल. एक बेटी सुरैया थी, जिस की शादी भी अच्छे घर में हुई थी.

फारुकी साहब अब इस दुनिया में नहीं रहे थे. सुनते हैं कि उन की बीवी नवाब खानदान की हैं. उम्र 72-73 साल होगी. वे अकसर बीमार रहती हैं. जमाल व कमाल भी शादीशुदा व बालबच्चेदार हैं. उन का भरापूरा परिवार है. सुरैया से मुलाकात हो जाती थी. उन के भी एक बेटी व एक बेटा है. दोनों की भी शादी हो गई है.

उन्हीं दिनों कमाल साहब के यहां से शादी का कार्ड आया. उन के दूसरे बेटे की शादी थी. कार्ड देख कर बड़ी खुशी हुई. कार्ड उन की अम्मी दुरदाना बेगम के नाम से छपा था. नीचे भी उन्हीं का नाम था. अच्छा लगा कि आज भी लोग बुजुर्गों की इतनी कद्र और इज्जत करते हैं.

शादी में जाने का मेरा पक्का इरादा था. इस तरह अम्मी व सुरैया आपा से भी मुलाकात हो जाती, पर मुझे फ्लू हो गया. मैं शादी में न जा सकी.

फिर कहीं से खबर मिली कि कमाल साहब की अम्मी बीमार हैं. उन्हें लकवे का असर हो गया है. एक दिन मैं कमाल साहब के यहां पहुंच गई. दोनों भाई बड़े ही अपनेपन से मिले. नई बहू से मिलाया गया, खूब खातिरदारी हुई.

मैं ने कहा, ‘‘कमाल साहब, मुझे अम्मी से मिलना है. कहां हैं वे?’’

कमाल साहब का चेहरा फीका पड़ गया. वे कहने लगे ‘‘दरअसल, अम्मी सुरैया के यहां गई हुई हैं. वे एक ही जगह पर रहतेरहते बोर हो गई थीं.’’

मैं वहां से निकल कर सीधी सुरैया आपा के यहां पहुंच गई. वे मुझे देख कर बेहद खुश हो गईं, फिर अम्मी के कमरे में ले गईं.

खुला हवादार, साफसुथरा महकता कमरा. सफेद बिस्तर पर अम्मी लेटी थीं. वे बड़ी कमजोर हो गई थीं. कहीं से नहीं लग रहा था कि यह एक मरीज का कमरा है.

अम्मी मुझ से मिल कर खूब खुश हुईं, खूब बातें करने लगीं. उन्हीं की बातों से पता चला कि वे तकरीबन डेढ़ साल से सुरैया आपा के पास हैं. जब उन पर लकवे का असर हुआ था. उस के तकरीबन एक महीने बाद ही कमाल और जमाल, दोनों भाई अम्मी को यह कह कर सुरैया आपा के पास छोड़ गए थे कि हमारे यहां अम्मी को अलग से कमरा देना मुश्किल है और घर में सभी लोग इतने मसरूफ रहते हैं कि अम्मी की देखभाल नहीं हो पाती. तब से ही अम्मी सुरैया आपा के पास रहने लगी थीं.

सुरैया आपा और उन की बहू बड़े दिल से उन की खिदमत करतीं, खूब खयाल रखतीं.

मैं ने सुरैया आपा से कहा, ‘‘अम्मी डेढ़ साल से आप के पास हैं, पर 3-4 महीने पहले कमाल भाई के बेटे की शादी का कार्ड आया था, उस में तो दावत देने वाले में अम्मी का नाम था और दावत भी अम्मी की तरफ से ही थी.’’

सुरैया आपा हंस कर बोलीं, ‘‘दोनों भाइयों के घर में अम्मी के लिए जगह न थी, पर कार्ड में तो बहुत जगह थी. कार्ड तो सभी देखते हैं और वाहवाह करते हैं, घर आ कर कौन देखता है कि अम्मी कहां हैं? दुनिया को दिखाने के लिए यह सब करना पड़ा उन्हें.’’

विंटर स्पेशल : सर्दियों की इन परेशानियों का इलाज है आंवला

आंवला सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है. आंवला में भरपूर मात्रा में विटामिन-सी, आयरन, और कैल्शियम पाया जाता है. इसे कई तरह से खाया जा सकता है. कुछ लोग इसका अचार बना कर खाते हैं, कुछ मुरब्बा, कुछ लोग आंवले का जूस पीना पसंद करते हैं. सर्दियों में गुड़ के साथ आंवले का सेवन करने से शरीर में गर्माहट बनी रहती है और कई बीमारियों से बचाव भी होता है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आंवला के कौन कौन से फायदे हैं.

मजबूत होता है रोग प्रतिरोधक क्षमता

आंवले के जूस में विटामिन सी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है. इससे शरीर की इम्यूनिटी मजबूत होती है.

दिल के लिए है फायदेमंद

आंवले में पाया जाने वाला विटामिन सी दिल की सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. जिन लोगों को कोलेस्ट्रौल की समस्या होती है, उन्हें नियमित रूप से आंवले का सेवन करना चाहिए.

त्वचा के लिए है फायदेमंद

त्वचा की खूबसूरती बनाए रखने में विटामिन सी काफी कारगर होता है. इससे त्वचा टाइट होती है. झुर्रियों में भी ये काफी लाभकारी होता है. त्वचा की चमक बरकरार रकना चाहती हैं तो आंवला का सेवन जरूर करें. इसके अलावा आप दही में आंवला पाउडर मिला कर चेहरे पर लगा सकती हैं.

सूजन में है असरदार

शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स दिल, स्किन के साथ शरीर की इम्यूनिटी पर भी बुरा असर डालते हैं. ये फ्री रेडिकल्स शरीर में होने वाली सूजन के लिए जिम्मेदार होते हैं. इस सूजन से कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं. आंवला में मौजूद एंटीऔक्सीडेंट फ्री रेडिक्लस को न्यूट्रलाइज कर शरीर का सूजन दूर करते हैं.

अच्छे लोग -भाग 1 :कुछ पल के लिए सभी लोग क्यों डर गए थें

रिचा ने मम्मीपापा को सहारा दे कर कार से उतारा. फिर उन के आगेआगे मकान की तरफ बढ़ी. मकान सन्नाटे में डूबा था. उस के आगे धूल और गंदगी का साम्राज्य था, जैसे महीनों से वहां सफाई नहीं की गई थी. सच भी था, यह मकान लगभग डेढ़ महीने से बंद पड़ा था.

रिचा ने पर्स से चाबी निकाल कर ताला खोला. मकान के अंदर का हाल भी बहुत बुरा था. बंद रहने के बावजूद सारी चीजें धूल से अंटी पड़ी थीं. नमी के कारण एक अजीब भी बदबू हवा में विराजमान थी.

मम्मीपापा को सोफे पर बिठा कर रिचा कुछ सोचने लगी. उस के मम्मीपापा तो जैसे गूंगे और बहरे हो गए थे. वे बिलकुल संज्ञाशून्य थे. आंखें खोईखोई थीं और वे सोफे पर गुड्डेगुडिय़ा की तरह अविचल बैठे हुए थे.

रिचा ने जल्दीजल्दी मम्मीपापा के कमरे की थोड़ीबहुत सफाई कर दी. फिर उन्हें उन के कमरे में बैठा कर बाई को फोन कर उसे जल्दी घर आने के लिए कहा. मम्मीपापा तब तक चुपचाप बैठे रहे.

‘‘पापा, आप अपने को संभालो, इतना सोचने से कोई फायदा नहीं. मम्मी आप लेट जाओ. मैं बाहर से दूधब्रैड ले कर आती हूं. तब तक बाई आ जाएगी. फिर आगे क्या करना है, सोचा जाएगा.’’

रिचा के बाहर जाने के बाद भी उस के मम्मीपापा वैसे ही निश्च्छल बैठे रहे, परंतु अंदर से वे दोनों ही बहुत अशांत थे. उन के हृदय में एक तूफान मचल रहा था. दिमाग में हाहाकार मचा हुआ था. वे समझ नहीं पा रहे थे, उन्हें किस पाप की सजा मिली थी. जीवन में उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जो उन्हें हवालात के सीखचों के पीछे पहुंचा सकता. फिर भी उन्हें सजा मिली थी, एक महीने तक वे पत्नी और बेटे के साथ जेल के अंदर रहे थे. आज जमानत पर छूट कर आए थे. बेटा अभी भी बंद था.

उन के दिमाग में एकजैसे विचार घुमड़ रहे थे-

रमाकांत और शारदा का दांपत्य जीवन बहुत सुखमय था. दोनों ही सरकारी सेवा में थे. संतानें भी 2 ही थीं. बड़ी बेटी रिचा की ग्रेजुएशन के बाद शादी कर दी थी. दामाद अभिनव एक अच्छी कंपनी में एक्जीक्यूटिव था. बेटी भी ससुराल में सुखी थी.

उन का बेटा प्रियांशु एमटैक करने के बाद नोएडा की एक कंपनी में अच्छी सैलरी पर नौकरी करने लगा था. कहीं कोई दुख और अभाव उन के जीवन में नहीं था. बेटे की नौकरी लगते ही उस के रिश्ते की बातें चलने लगी थीं. रमाकांत और शारदा अच्छी लडक़ी की तलाश में थे, परंतु शादी के पहले अच्छीबुरी लडक़ी का पता कहां चलता है.

प्रियांशु की शादी एक रिश्तेदार की बेटी अखिला से हो गई. परंतु जैसे बेटे की शादी के बाद से ही रमाकांत के सुखमय परिवार में राहुकेतु की कुदृष्टि पड़ गई. जिस लडक़ी को अच्छी बहू समझ कर वह घर में लाए थे, उस ने ससुराल की चौखट में कदम रखते ही अपना रूप दिखाना आरंभ कर दिया.

रमाकांत का परिवार बहुत शांतप्रिय था. घर का कोई भी सदस्य ऊंची आवाज में बात नहीं करता था, लड़ाईझगड़ा तो बहुत दूर की बात थी. परंतु बहू ने घर में आते ही घर के शांत माहौल को आग लगा दी. घर के अन्य सदस्य उस आग को बुझाने का प्रयत्न करते, परंतु अखिला हर घड़ी उस में ज्वलनशील पदार्थ डालती रहती थी.

अखिला को पता नहीं क्या परेशानी थी, कोईकोई समझ पा रहा था. घर के किसी काम में वह हाथ नहीं बंटाती थी. सारा दिन कमरे में पड़ी रहती थी. प्रियांशु के दफ्तर जाने के बाद भी वह अपने कमरे से कम ही निकलती थी. सास से नाकभौं सिकोड़ कर बात करती. शारदा बहुत समझदार और सहनशील महिला थीं. वे सोचतीं, बहू नए घर में आई है. नए लोग और नए माहौल में शायद समन्वय नहीं बिठा पा रही होगी. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

परंतु सबकुछ ठीक नहीं हुआ. अखिला ने साफसाफ कह दिया, वह घर के किसी काम में हाथ नहीं बंटाएगी.

वह घर की बहू थी, नौकरानी नहीं. सब ने एकदूसरे का मुंह देखा और बिना कुछ बोले जैसे सबकुछ समझ गए. अखिला आलसी और कामचोर थी, परंतु अपने पेट के लिए तो कीड़ेमकोड़े और जानवर भी मेहनत करते हैं. अखिला को कब तक कोई बना कर खिला सकता था. इस के बाद भी सभी आशांवित थे कि अखिला एक दिन दुनियादारी का निर्वाह करेगी.

रमाकांत आदतन सवाल कम करते थे, परंतु शारदा ने प्रियांशु से पूछा, ‘‘बहू ऐसा क्यों कर रही है?’’

‘‘पता नहीं,’’ प्रियांशु ने मुंह लटका कर कहा.

‘‘बेटा, तुम उस के पति हो. उस के दिल को टटोल कर देखो. शादी में उस की भी मरजी थी. फिर क्यों घर में अशांति फैला रही है?’’

‘‘ठीक है, पता करूंगा,’’ कह कर उस ने बात को टाल दिया.

परंतु बात टली नहीं, बल्कि और बिगड़ती गई. अब रात में प्रियांशु के कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगी थीं. इन आवाजों में अखिला की आवाज ही प्रमुख होती. प्रियांशु का स्वभाव ऐसा नहीं था कि वह किसी से लड़ाई कर सकता. न उस के संस्कारों ने उसे मारपीट करना सिखाया था. फिर अखिला के चीखनेचिल्लाने का कारण क्या था?

रमाकांत और शारदा की समझ में कुछ न आता, परंतु उन के मन में भय पसरने लगा था. क्या प्रियांशु की अखिला के साथ शादी कर के उन्होंने कोई गलती की थी. परिवार में रोजरोज की कलह कोई अच्छी बात नहीं थी. सभी अवसादग्रस्त रहने लगे थे.

विजया- भाग 2: क्या हुआ जब सालों बाद विजय को मिला उसका धोखेबाज प्यार?

विजय और जया पहली मुलाकात के बाद अकसर मिलने लगे थे और उन्हें अंदरहीअंदर यह एहसास होने लगा था कि वे एकदूसरे की दोस्ती को शादी के बंधन में बदल देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था. दोनों प्राय: एक ही रैस्टोरैंट में नियत समय पर मिलते थे.

लगभग 1 वर्ष पूर्व की बात है. एक दिन जब जया मिलने आई तो वह कुछ परेशान सी लग रही थी. दोनों की निकटता कुछ ऐसी थी कि विजय को समझते देर नहीं लगी. उस ने जानने का प्रयास किया, लेकिन जया ने कुछ बताया नहीं. विजय से जया की उदासी देखी नहीं जा रही थी. बहुत दबाव देने पर जया ने बताया कि वह नई कंपनी खोलने की सोच रही थी. कुछ रुपए उस के पास थे और लगभग 20 लाख रुपए कम पड़ रहे थे.

जया ने बताया कि उस ने बैंक से लोन लेने का प्रयास किया, परंतु बिना सिक्यूरिटी के बैंक ने लोन देने से मना कर दिया था. विजय ने उस की परेशानी जान कर यह सलाह दी कि जो रुपए कम पड़ रहे हैं, उन्हें वह विजय से ले ले, परंतु जया तैयार नहीं हो रही थी. विजय के बहुत समझाने और जोर देने पर कि वह उधार समझ कर ले ले और बाद में ब्याज सहित लौटा दे. इस बात पर जया मान गई और विजय ने उसे 20 लाख रुपए दे दिए.

वास्तविक परेशानी तो रुपए लेने के बाद शुरू हुई. रुपए लेने के बाद जया अपनी कंपनी के काम में लग गई. दोनों का मिलनाजुलना भी थोड़ा कम हो गया. कई दिन बाद भी जब जया मिलने नहीं आई तो विजय ने उसे फोन लगाया, परंतु उस का मोबाइल बंद था. विजय ने सोचा शायद वह अपने काम में ज्यादा व्यस्त होगी, क्योंकि नईर् कंपनी खोलना और उसे चलाना आसान काम नहीं था, विजय को इस चीज का अनुभव था. उस ने 2-3 दिन बाद पुन: जया को फोन करने का प्रयास किया, परंतु उस का फोन बंद ही मिला. उस ने जया की कंपनी में संपर्क किया तो पता चला कि वह कंपनी से त्यागपत्र दे कर वहां से जा चुकी है. कहां गई, यह किसी को नहीं पता.

विजय जब जया के घर गया तो पड़ोसियों ने बतया कि वह किसी और शहर में चली गई है, लेकिन कहां किसी को नहीं मालूम था. किराए का मकान था, अत: किसी ने ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया था.

विजय बहुत दुखी था. उसे रुपयों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी जया की. उसे जया से इस व्यवहार की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. जितना भी वह जया के विषय में सोचता, उतना ही बेचैन और दुखी हो जाता. दिन बीतते रहे और उस की बेचैनी बढ़ती गई. इसी बेचैनी में वह शराब भी पीने लगा था. व्यापार अलग से खराब हो रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह जया को कहां ढूंढ़े.

लेकिन विजय का व्यक्तित्व इतना कमजोर भी नहीं था कि वह टूट जाए. उस ने फिर से अपने व्यवसाय पर ध्यान देना शुरू किया और उसे पुन: वापस पटरी पर ले आया. परंतु शराब की लत उसे पड़ चुकी थी और वह रोज शाम को उसी रैस्टोरैंट में पहुंच जाता. जया को भूलना उस के लिए मुश्किल था. वह रोज शाम को शराब पीता और घर जाता. उस की छोटी बहन रमा उस से पूछती, परंतु वह कोई उचित जवाब नहीं दे पाता. रमा भी कई बार जया से मिल चुकी थी, बल्कि उस ने तो जया को मन ही मन अपनी होने वाली भाभी के रूप में स्वीकार भी कर लिया था.

रमा को जया स्वभाव से अच्छी लगी थी. उसे भी जया से ऐसे व्यवहार की कतई उम्मीद नहीं थी. उस ने कई बार भाई को समझाने की कोशिश भी की. उस ने कहा भी कि जया की जरूर कोई मजबूरी होगी, किंतु विजय पर कोई असर नहीं पड़ा.

शर्मिंदगी -भाग 1: जब उस औरत ने मुझे शर्मिंदा कर दिया

मै जब तक अफसर रहा, हमेशा ऐश के ही बारे में ही सोचता रहा. मेरा विश्वास, मेरा ईमान, मेरा धर्म और मेरी इंसानियत सब ऐशपरस्ती में डूबी रही. लेकिन एक घटना ने मुझे ऐसा शर्मिंदा किया कि जब भी वह घटना याद आती है, मैं सिहर उठता हूं. हुआ यह था कि मैं उस दिन पत्नी के बारबार कहने पर उस के साथ बाजार तक चला गया था.

मैं ने जैसे ही कार शौपिंग सेंटर के बाहर रोकी, मेरी कार के पास एक औरत आ कर खड़ी हो गई. मैं जैसे ही कार से उतरा, वह मेरी ओर लपकी. मेरे देखते ही देखते एकदम से झुक कर उस ने मेरे दोनों पैर पकड़ लिए.

‘‘अरे…अरे… कौन हो तुम, यह क्या कर रही हो. पीछे हटो.’’ मैं ने पीछे हटते हुए कहा.

‘‘क्या बात है बहन?’’ मेरी पत्नी ने पास जा कर उस औरत के कंधे पर हाथ रख कर पूछा.

औरत ने एक बार मेरी पत्नी की ओर देखा, उस के बाद दोनों हाथ जोड़ कर वह याचक दृष्टि से मेरी ओर देखने लगी. मुझे लगा, यह कोई मांगने वाली है. इस तरह के बाजारों में मांगने वाले घूमते भी रहते हैं. लेकिन यह औरत उन से एकदम अलग लग रही थी. उस ने साफसुथरी साड़ी बड़े सलीके से पहन रखी थी. उस ने आंखों तक घूंघट भी कर रखा था. देखने में भी ऐसी खूबसूरत थी कि किसी भी मर्द का दिल आ जाए.

अगर वह याचक दृष्टि के बजाए मुझे प्यार भरी दृष्टि से देख रही होती तो मैं बिना सोचसमझे उस पर मर मिटता. उस का चेहरा काफी आकर्षक था. रंग भी गोरा था. लेकिन पत्नी के साथ होने की वजह से चाह कर भी मैं उस की ओर ज्यादा देर तक नहीं देख सका था.

‘‘लो ये रख लो.’’ पत्नी की इस बात पर मैं चौंका. वह 5 रुपए का नोट उस औरत की ओर बढ़ाते हुए कह रही थीं, ‘‘इसे रख लो और हमें जाने दो.’’

औरत बिना रुपए लिए पीछे हट गई.  पत्नी ने कई बार कहा तो उस ने हाथ जोड़ कर इनकार में सिर हिला दिया और याचक दृष्टि से मुझे इस तरह ताकती रही, जैसे कह रही हो कि मेरी हालत पर दया करो. मुझे लगा कि शायद वह भीख मांगने का नया तरीका है. शायद वह 5 रुपए से ज्यादा चाहती है.

इसलिए मैं ने उसे दुत्कारने वाले अंदाज में कहा, ‘‘हट सामने से, तुम जैसे लोगों को एक पैसा नहीं देना चाहिए. यह नहीं कि जो मिल रहा है, उसे ले कर हट जाएं.’’

ननद की मेंहदी में दीपिका ने किया खूब डांस, शोएब भी दिखे साथ

टीवी एक्टर शोएब इब्राहिम की बहन शबा इब्राहिम शादी करने जा रही हैं, और शबा की शादी उनके होमटाउन मौदहा से हो रहा है, उनकी शादी के लिए पूरा परिवार मौदहा पहुंचा है.

बीती रात सभी लोग सबा के हल्दी बारात में शामिल होते नजर आ रहे हैं. पूरा परिवार मिलकर धूममचा रहा है. दीपिका कक्कड़ शबा की बरात में जमकर ठुमके लगाती नजर आ रही हैं. वीडियो में दीपिका कक्कड़ और शोएब इब्राहिम मैचिंग आउटफिट पहने नजर आ रहे हैंं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shoaib Ibrahim (@shoaib2087)

वायरल हो रहे वीडियो में शोेएब और दीपिका का अंदाज लोगों को खूब पसंद आ रहा है. यही वजह है इस वीडियो ने हिलाकर रख दिया है. इसके साथ ही शोएब के पूरे रिश्तेदार भी जश्म मनाते नजर आ रहे हैं.

दरअसल , शबा जिस लड़के के साथ निकाह करने जा रही है वह दोनों काफी लंबे समय से एक दूसरे को जानते हैं.  यह शादी सभी घर वालों की पसंद से हो रही है. शबा इब्राहिम भी अपने भईया और भाभी की तरह ब्लॉगर हैं, उन्हें भी ब्लॉक करना अच्छा लगता है. उन्होंने अपनी शादी की डिटेल अपने ब्लॉग के जरिए अपने सभी फैंस को दिए थें. सबा इब्राहिम की शादी के लिए फैंस अभी से उन्हें बधाइयां दे रहे हैं.

Manohar Kahaniya: खूनी हुई जज की बेटी की मोहब्बत

एडवोकेट सुखमनप्रीत सिंह उर्फ सिप्पी सिद्धू एक राष्ट्रीय निशानेबाज ही नहीं बल्कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एम.एस. सिद्धू के पोता थे. सिद्धू को पास में ही रहने वाली हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस सबीना सिंह की एकलौती बेटी कल्याणी सिंह से प्यार हो गया था. उन के प्यार पर घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं था. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि…

मां, ब्रेकअप क्यों न करा -भाग 3 : डायरी पढ़ छलका बेटी का दर्द

‘‘अब निराश किया हो या खुशी दी हो, मैं नहीं जानता. या तो तुम ही मन्नू को यहां आने के लिए ‘न’ कह दो, वरना मुझे कहना पड़ेगा.’’

‘‘वह तो खुद ही जीवनमृत्यु की लड़ाई लड़ रहा है. हम भी उस से किनारा कर लेंगे तो यह निराशा उसे और भी अधिक तोड़ देगी?’’

‘‘किसी को तोड़ने या जोड़ने का ठेका मैं ने नहीं किया है. या तो तुम मन्नू का साथ दे लो या फिर मेरे साथ रह लो. फैसला तुम्हारा है,’’ भाई साहब का स्वर ऊंचा हो गया था.

“उफ्फ, यह व्यवहार करते हैं भाई साहब सुमनजी के साथ. दंग रह गई थी मैं यह सुन कर. कितनी ओछी मानसिकता है? पुरुषों का दोहरापन एक बार फिर देखने को मिला था. बाहरी तौर पर इतने व्यवहारकुशल और मिलनसार भाई साहब… भाभी की मनोदशा की अवहेलना कर कितना गलत व्यवहार कर रहे थे उन के साथ.” मैं दरवाजे से धीमे कदमों से ही वापस घर पहुंच गई थी.

घर का अशांत माहौल देख कर मैं यहां आना तो नहीं चाहती थी, लेकिन सुमनजी कितनी अकेली पड़ गई हैं, यह सोच कर दूसरे ही दिन उन के पास आने के लिए मजबूर हो गर्ई थी.

उसी वक्त भाभी का शिवपुरी से फोन आया था. ‘‘दीदी, इन की कीमोथैरेपी के लिए हम परसों… ग्वालियर आ रहे हैं.’’

‘‘मन्नू की तबीयत कैसी है? पापामम्मी कैसे हैं?’’ की औपचारिक बातें करने के बाद उन्होंने अपनी भाभी से कहा, ‘‘सुधा, हम लोग कल केरल की यात्रा के लिए निकल रहे हैं. मन्नू की कीमो समय पर होना जरूरी है. इसलिए तुम आना. कीमोथैरेपी कराने के बाद वहीं अस्पताल में रुक जाना या कोई कमरे की व्यवस्था देख लेना.’’

‘‘दीदी, आप जा रही हैं तो क्या हुआ, आप अपने घर की चाभी सुमित्रा दीदी को देती जाइएगा, हम उन से ले लेंगे,’’ सुधा ने आसान रास्ता सुझाया था.

‘‘सुधा, वह क्या है न कि सुमित्रा दीदी भी अपने देवर के बेटी की शादी में गई हुई है. इस बार मैनेज कर लो, बाद में देखते हैं,’’ कह कर फोन काट दिया था सुमन ने.

फोन रख कर फूटफूट कर रो पड़ी थी सुमन. यह सिला दिया है मुझे शर्माजी ने सारी जिंदगी के समर्पण का. अपनी सारी उम्र खपा दी मैं ने यहां. देवर, ननदों की शादी, सासससुर की सेवा, कहीं कोई कसर नहीं रहने दी. अब भाई इतनी गंभीर स्थिति में है और मैं उसे अकेला छोड़ दूं. बहुत जिद्दी हैं शर्माजी.

अगर मैं जिद में मम्मीपापा और मन्नू की सेवा के लिए शिवपुरी चली गर्ई तो सारी जिंदगी की सेवा को तिलांजलि दे कर वह मुझ से संबंध भी खत्म कर लेंगे.

सब से बड़ी बात तो यह है सुमित्रा दी कि मैं खुद को बहुत ही अपमानित महसूस कर रही हूं. हम जिसे सम्मान दे रहे हैं, उन से समर्पण भी तो चाहते हैं. मैं इन्हें भरपूर सम्मान दे रही हूं, और बदले में…? वे स्वयं तो सहयोग करने के लिए हैं ही नहीं. मुझे भी वहां से तोड़ने के लिए कोशिश कर रहे हैं.

“सच कहूं दी, तो अब इन के साथ रहने का मन भी नहीं कर रहा. मैं क्यों इन की मनुहार करती रहूं, आगेपीछे घूमती रहूं. केवल इसलिए कि सात फेरे लिए हैं. इस बंधन को इन्होंने किस तरह से स्वीकार किया. केवल मुझ पर हुकूमत करने के लिए, इन के परिवार के लिए मैं हमेशा तत्पर रही. और जब मेरे परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूटा तो मैं इन के हाथों की चाभी की गुड़िया बन कर बस यहीं की हो कर रह जाऊं, मेरी भावनाएं, मेरे रिश्ते इन से तो जुड़ ही नहीं पाए और मुझे भी दूर करने का प्रयास है.

“मैं ने कभी खुद को इतना कमजोर नहीं समझा. लगता था, सबकुछ ठीक हो जाएगा. बेटा वहां परेशान है. मन करता था कि नानानानी और मामा की माली मदद के लिए मैं उसे कहूं. लेकिन, जानती हूं कि मेरे कहने पर वह कर तो देगा, लेकिन अभी करना उस के लिए मुश्किल ही होता.

“कभीकभी तो मुझे लगता है कि पुरुष प्रधानता की मानसिकता ही, अमन और बहू के तलाक का कारण बन रही है. लगता है, शर्माजी की तरह पुरुष प्रधानता का दंभ उसे अनुवांशिक रूप से मिला है, मेरे लिए संस्कार वहां भी हार गए हैं.

“हालांकि विदेश में दोनों अकेले हैं, लेकिन वैचारिक मतभेद तलाक तक पहुंच गए. मैं स्वयं नौकरी करती हूं. लेकिन मेरी पाईपाई पर शर्माजी का अधिकार है. वह मेरे पैसे को भी हमारा पैसा कह कर मेरे भाई की मुश्किल घड़ी में खर्च करने पर एहसान जता रहे हैं.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें