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Bigg Boss 16: शालीन की वजह से सुंबुल को आया पैनिक अटैक, देंखे वीडियो

सलमान खान का धमाकेदार शो बिग बॉस 16 लोगों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ा है, सुंबुल तौसीर खान और शालीन भनोट के बीच में इन दिनों लगातार लड़ाई झगड़ा होते रह रहा है. सुंबुल और शालीन पहले जितने अच्छे दोस्त थें अब  वह एक दूसरे के खिलाफ हो गए हैं.

शालीन सुंबुल के सामने तोड़फोड़ करने लगें जिसे देखकर सुंबुल को पैनिक अटैक आ गया, इस प्रोमो वीडियो को देखने के बाद से फैंस को शालीन पर गुस्सा आ रहा है, इतना ही नहीं उन्होंने टीना दत्ता और शालीन को घर से बाहर जाने की बात कही है.

 

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प्रोमो वीडियो में दिखाया गया है कि सलमान खान शालीन को सुंबुल से दूर रहने की बात करते हैं, सुंबुल समझाने की कोशिश करती हैं लेकिन टीना दत्ता उन्हें तंज कसते हुए कहती हैं कि लोग वहीं बोल रहे हैं जो सामने देख रहे हैं.

यह सब सुनने के बाद से सुंबुल को पैनिक अटैक आने शुरू हो जाते हैं, जिससे पूरे घरवाले सुंबुल की देखभाल में जुट जाते हैं.  सलमान खान इस बार शो में भड़के हुए नजर आने वाले हैं. वहीं एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है कि दूसरे पर इतना सवाल खड़ा करती थी, अब जब खुद के साथ हो रहा है तो इतना बुरा क्यों लग रहा है.

चुनाव आयोग पर प्रश्न चिन्ह, लोक तंत्र और नरेन्द्र मोदी

सच्चाई तो यह है कि अपने जन्म से लेकर के आज तक भारतीय जनता पार्टी के रवैया पर अगर शोध किया जाए तो यह देश जान जाएगा कि एक राजनीतिक पार्टी के रूप में भारतीय जनता पार्टी की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर कभी भी आस्था नहीं रही है. चुनाव में भाग लेने के लिए और सत्ता के शिखर पर पहुंचने के लिए भले ही भाजपा ने लोकतांत्रिक चोला पहन लिया हो मगर उसके के भीतर का सच बारंबार बाहर आते रहा है.

भाजपा नीत सरकार सरकार एक बार फिर उच्चतम न्यायालय के निशाने पर है. मामला है हाल ही में आनन-फानन में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति.
देश की सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर जो सुनवाई हो रही है और तथ्य सामने आ रहे हैं उसकी बिनाह पर यह कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग में नियुक्तियों के संदर्भ में नरेंद्र मोदी सरकार की गतिविधि संदेहास्पद है. आने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक ऐसा खेल खेले जाने की तैयारी है जिसके परिणाम स्वरूप लोकतंत्र की आवाज को दफ़न किए जाने की संभावना है.

हमें यह समझना चाहिए कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है वही यहां की लोकतांत्रिक संस्थाओं की संरचना कुछ इस तरह की गई है कि लोकतंत्र जिंदा रहे हमारे देश में कार्यपालिका की अपनी ड्यूटी है तो न्यायपालिका अपने आप में स्वतंत्र रूप से अपनी भूमिका निभाती है इसी तरह देश के चौथे खंभे के रूप में प्रेस अपना महत्व है और दायित्व भी जिसे हम बखूबी निभाते हुए देख रहे हैं. इसी तरह संवैधानिक संस्था के रूप में चुनाव आयोग का अपना महत्व है सत्ता की चकाचौंध में ऐसा खेल खेला जा सकता है जिससे चुनाव प्रभावित हो सकते हैं. आज देश में कुछ कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है इसका एक बड़ा उदाहरण गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव के दरमियान प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा 71000 नियुक्ति पत्र दिया जाना. जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय का यह काम नहीं है सच तो यह है कि इस गतिविधि पर अभी सुप्रीम कोर्ट की निगाह भी नहीं गई है और ना ही कोई जनहित याचिका प्रस्तुत हुई है. मगर गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव तो प्रश्न चिन्ह के साथ संपन्न हो रहे हैं.
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अरुण गोयल पर मेहरबां
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हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा खास तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति एक ऐसा मसला बन कर आज देश के सामने हैं जिसका जवाब देना नरेंद्र मोदी सरकार को भारी पड़ सकता है.

दरअसल, देश के उच्चतम न्यायालय ने “निर्वाचन आयुक्त” के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति में “जल्दबाजी’ पर सवाल उठाए गए है. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.अब उक्त पीठ ने सभी पक्षकारों को पांच दिन के भीतर छह पेज तक का संक्षिप्त नोट दाखिल का आदेश दे कर, फैसला सुरक्षित रख लिया है .

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति हृषिकेश राय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार शामिल हैं.अब यह पीठ तय करेगी कि देश में मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल बनेगा या नहीं .
इस संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पंजाब कैडर के पूर्व आइएएस अधिकारी अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त पद पर नियुक्ति से जुड़ी फाइल पीठ के समक्ष पेश की है. संविधान पीठ ने फाइल पढ़ने के बाद अरुण गोयल की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं .

पीठ ने केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटार्नी जनरल से कहा कि चुनाव आयोग ने पद की रिक्ति की घोषणा 15 मई को की थी. अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति वाली फाइल को 24 घंटे के अंदर ‘विद्युत की गति’ से मंजूरी दे दी गई. यह कैसा मूल्यांकन है? हम चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की साख पर सवाल खड़े नहीं कर रहे .

बल्कि नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं.एक ही दिन में फाइल को हरी झंडी कैसे मिल गई . यह पद 15 मई से खाली था. आप बताएं कि 15 मई से 18 नवंबर के बीच क्या हुआ.
देश की उच्चतम न्यायालय में उठ खड़ा हुआ यह प्रश्न आज देश का सवाल बन गया है और नरेंद्र मोदी सरकार से जवाब वह भी एक ईमानदार जवाब की अपेक्षा देश कर रहा है.
देश के महान लोकतंत्र को अगर बचाना है तो यह सवाल उसका जवाब अपरिहार्य है.

विंटर स्पेशल : सर्दियों में बनाएं मटर की कचौड़ी

मटर की कचौड़ी बहुत से जगहों पर बनाई जाती है. ज्यादातर लोग इसे सर्दियों में खाना पसंद करते हैं. तो आइए जानते हैं मटर की कचौड़ी कैसे बनाएं

समाग्री

  • हरी मटर
  • अदरक
  • हरी मिर्च
  • जीरा
  • हींग
  • नमक
  • लाल मिर्च
  • गरम मसाला
  • चाट मसाला

विधि

-हरी मटर को साफ करके उसे एक कप पानी में नमक डालकर उबाल लें. ऐसे पकाएं जिससे मटर का रंग हरा ही रहे. अब हरे मटर से पानी निकालकर रख दें.

-अब रही मिर्च से डंडल निकालकर उसे काट लें फिर अदरक को भी काट लें. अब एक नॉन स्टीक कड़ाही में तेल गर्म करें. अब उसमें जीरा डालें और कुछ सेकेंण्ड्स के लिए भूनें, फिर हींग डालें.

-अब आंच गरम करके उसमें अदरक और लहसून डालकर भूनें. अब उबली हुई मटर डालकर उसे अच्छे से भूनें. जब मटर भून जाएं तो उसे अच्छे से मसलें फिर उसमें सभी मसाले को मिक्स कर दें.

-अब एक बर्तन में आटा लें और उसे अच्छे से गुंथ लें. जब आटा गुंथ जाए तो उसकी छोटी-छोटी लोइया बना लें. जब लोइया बन जाएं तो उसमें मटर का पेस्ट अच्छे से मिक्स कर दें. फिर उसे पूरी की तरह गोल करके बना लें.

-अब एक कड़ाही में रिफाइन गर्म करें उसके बाद उसमें बनाई गई पूरी को डालकर अच्छे से तलें. अब इसकी कचौड़ी को आप किसी भी चटनी के साथ परोस सकते हैं.

मेरी शादी को 4 साल हो गए हैं लेकिन हमें संतान नहीं हो रहा है, मेरी पत्नी परेशान है मैं क्या करूं?

सवाल

हमारी शादी हुए 4 साल हो गए हैं. अभी हमारा कोई बच्चा नहीं है. वाइफ मुझ से संतुष्ट है. सैक्स को ले कर उस ने मुझसे कोई शिकायत नहीं की. अब वह बच्चा चाहती है. पता नहीं क्यों कभीकभी मुझे ऐसा लगता है कि मुझमें  में ही कमी है, तभी हमारा बच्चा नहीं हुआ अभी तक. क्या मुझे अपना टैस्ट करवाना चाहिए?

जवाब

आप को क्यों लगता है कि कमी आप में हैखैरअब तकनीक आ गई है कि आदमी नामर्द है या मर्दइस का सौ प्रतिशत टैस्ट हो सकता है. एक मशीन आती है जो पोर्टेबल फर्टिलिटी किट है. यह मर्दों को फैसिलिटी देती है कि वे गोपनीय तरीके से अपने स्पर्म क्वालिटी को मौनीटर कर सकते हैं. ऐसे ही हर मर्द को रात में दोतीन बार इरैक्शन होता है. इरैक्शन की स्ट्रैंग्थ और कितने समय तक वह रहामशीन में यह ब्योरा दर्ज हो जाता है. इस से यह पता चल जाता है कि नामर्दगी की वजह शारीरिक है कि नहीं. आप चाहें तो यह टैस्ट करवा सकते हैं.

मिसफिट पर्सन-भाग 3: जब एक नवयौवना ने थामा नरोत्तम का हाथ

रेलवे की तरह कई एअरलाइनें भी अब मासिक पास बनाती थीं. अकसर विदेश जाने वाले पैसेंजर ऐसे मासिक पास बनवा लेते थे. ज्योत्सना भी ऐसी ही पैसेंजर थी. वह महीने में कई दफा दुबई, सिंगापुर, बैंकौक चली जाती थी. सामान ले आती थी. पहले से अधिकारियों के साथ सैटिंग होने से माल सुविधापूर्वक एअरपोर्ट से बाहर निकल आता था. कभीकभी नरोत्तम जैसा अफसर होने से कोई पंगा पड़ जाता जिस से उस के एंप्लायर निबट लेते थे.

नरोत्तम घर पहुंचा. उस को देख उस की पत्नी रमा ने मुंह बिचकाया. फिर फ्रिज से पानी की बोतल निकाल उस के सामने रख दी. मतलब साफ था, खुद ही पानी गिलास में डाल कर पी लो.

नरोत्तम अपनी पत्नी के इस रूखे व्यवहार का कारण समझता था. वह घर में भी मिसफिट था. उस की पत्नी के मातापिता ने उस से अपनी बेटी का विवाह यह सोच कर किया था कि लड़का ‘कस्टम’ जैसे मलाईदार महकमे में है, लड़की राज करेगी. मगर बाद में पता चला कि लड़का सूफी या संन्यासी किस्म का था.

रिश्वत लेनादेना पाप समझता है, तो उन के अरमान बुझ गए. बढ़े वेतनों के कारण अब नौकरीपेशाओं का जीवनस्तर भी काफी ऊंचा हो गया था. घर में वैसे कोई कमी न थी. पतिपत्नी 2 ही लोग थे. विवाह हुए चंद महीने हुए थे. मगर ऊपर की कमाई का अपना मजा था. कस्टम अधिकारी की पत्नी और वह भी तनख्वाह में गुजारा करना पड़े. कैसा आदमी या पति पल्ले पड़ गया था. कस्टम जैसे महकमे में ऐसा बंदा कैसे प्रवेश पा गया था?

‘‘आज मल्होत्रा साहब शिफौन की साड़ी का पूरा सैट लाए हैं. हर महीने बंधेबंधाए लिफाफे भी पहुंच जाते हैं,’’ चाय का कप सैंटर टेबल पर रखते हुए रमा ने कहा.

रमा का यह रोज का ही आलाप था. मतलब साफ था कि उसे भी अन्य के समान रिश्वतखोर बन रिश्वत लेनी चाहिए.

ज्योत्सना अनेक बार कस्टम अधिकारी नरोत्तम के समक्ष आई. कई बार घोषित किया सामान सही निकला. कई बार सही नहीं निकला. पहले पकड़ा गया सामान मालखाने से किस तरह छूटता था, इस की कोई खबर नरोत्तम को नहीं हुई.

एक दिन नरोत्तम अपनी पत्नी को सैरसपाटे के लिए ले गया. वे एक रेस्तरां पहुंचे जहां बार भी था और डांसफ्लोर भी. पत्नी के लिए ठंडे का और अपने लिए हलके डिं्रक का और्डर दे बैठ गया.

सामने डांसफ्लोर पर अनेक जोड़े नाच रहे थे. थोड़ी देर बाद डांस का दौर समाप्त हुआ. एक जोड़ा समीप की मेज पर बैठने लगा. तभी नरोत्तम की नजर लड़की पर पड़ी. वह चौंक पड़ा. वह ज्योत्सना थी. ज्योत्सना ने भी उसे देख लिया. वह लपकती हुई उस की तरफ आई.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’

उस के इस बेबाक व्यवहार पर नरोत्तम सकपका गया. उस को हाथ मिलाना पड़ा.

‘‘साथ में कौन है?’’ नरोत्तम की पत्नी की तरफ हाथ बढ़ाते हुए ज्योत्सना ने कहा.

‘‘मेरी वाइफ है.’’

‘‘वैरी गुड मैच इनडीड,’’ शरारत भरे स्वर में ज्योत्सना ने कहा.

नरोत्तम इस व्यवहार का अपनी पत्नी को क्या मतलब समझाता. वह समझ गया कि ज्योत्सना खामखां उस के समक्ष आई थी. उस का मकसद उस की पत्नी को भरमाना था.

‘‘एंजौय हैंडसम, फिर मिलेंगे,’’ शोखी से मुसकराती वह अपनी मेज की तरफ बढ़ गई.

वेटर और्डर लेने आ गया. पत्नी गहरी नजरों से पति की तरफ देख रही थी. किसी तरह खाना खाया. ज्योत्सना चहकचहक कर अपने साथी के साथ खापी रही थी.

घर आते ही, जैसे कि नरोत्तम को आशा थी, रमा उस पर बरस पड़ी.

‘‘सामने बड़े सीधेसादे बनते हो. घर से बाहर हैंडसम बन चक्कर चलाते हो.’’

‘‘मेरा उस लड़की से चक्कर तो क्या परिचय भी नहीं है,’’ अपनी सफाई देते हुए नरोत्तम ने कहा.

‘‘चक्कर नहीं है, परिचय भी नहीं है, पर मिलने का ढंग तो ऐसा था मानो बरसों से जानते हो. एकांत स्थान होता तो शायद वह आप से लिपट कर चूमने लगती,’’ पत्नी ने हाथ नचा कर कहा.

नरोत्तम ने अपना सिर धुन लिया. वह बारबार कहता रहा कि हवाई अड्डे पर उस का अघोषित सामान पकड़ा था उसी से वह उस को जानती है. और अब जानबूझ कर मजे लेने के लिए ड्रामा कर रही थी. मगर पत्नी को कहां विश्वास करना था.

‘‘सर, नरोत्तम की वजह से कोई भी सहजता से काम नहीं कर पाता,’’ डिप्टी डायरैक्टर, कस्टम ने अपने बौस से कहा.

नरोत्तम को कोई भी विभाग अपने यहां लेने को तैयार नहीं था. एक तो उस का स्वभाव ही ऐसा था, दूसरे, उस के कर्म खोटे थे. वह जहां जाता वहां कोई न कोई पंगा हो जाता था.

कार्गो कौम्प्लैक्स, कस्टम विभाग में सुरक्षा महकमा समझा जाता था. इस विभाग में ऊपर की कमाई के अवसर काफी कम थे. नरोत्तम को इस विभाग में भेज दिया गया.

नरोत्तम कर्तव्यनिष्ठ अफसर था. उस को कहीं भी ड्यूटी करने में संकोच नहीं था.

एक रोज एक शिपमैंट की चैकिंग के दौरान एक पेटी मजदूर के हाथों से गिर कर टूट गई. पेटी में फ्रूट जूस की बोतलें भरी थीं. कुछ बोतलें टूट गईं. उन में से छोटीछोटी पाउचें निकल कर बिखर गईं. सब चौंक पड़े. नरोत्तम ने पाउचें उठा लीं और एक को फाड़ कर सूंघा. उन में सफेद पाउडर भरा था, जो हेरोइन थी.

मामला पहले पुलिस, फिर मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो के हवाले हो गया. शिपमैंट भेजने वाले निर्यातक की शामत आ गई. उस के बाद हर कंटेनर को खोलखोल कर देखा जाने लगा. निर्यात में देरी होने लगी. कई अन्य घपले भी सामने आ गए. कार्गो कौम्प्लैक्स भी अब निगाहों में आ गया.

जिस निर्यातक की शिपमैंट में नशीला पदार्थ पकड़ा गया था उस ने नरोत्तम को मारने के लिए गुंडेबदमाशों को ठेका दे दिया. नरोत्तम नया रंगरूट था. उस को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी मिला था और साथ ही सुरक्षा हेतु रिवौल्वर भी. एनसीसी कैडेट भी रह चुका था. वह दक्ष निशानेबाज था.

एक दिन वह ड्यूटी समाप्त कर अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ. मेन रोड पर आते ही उस के पीछे एक काली कार लग गई. बैक व्यू मिरर से उस की निगाहों में वह पीछा करती कार आ गई.

वह चौकस हो गया. उस ने कमर से बंधे होलेस्टर का बटन खोल दिया. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल रहा था. सड़क पर ट्रैफिक बढ़ रहा था. दफ्तरों से, दुकानों से घर लौटते लोग अपनेअपने वाहन तेजी से चलाते जा रहे थे.

कार लगातार पीछे चलती बिलकुल समीप आ गई. फिर साथसाथ चलने लगी. नरोत्तम ने देखा, कार में 4 आदमी सवार थे.

एक ने हाथ उठाया, उस के हाथ में रिवौल्वर थी. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल को एक झोल दिया. एक फायर हुआ, झोल देने से निशाना चूक गया. कार आगे निकल गई. उस ने फुरती से अपनी रिवौल्वर निकाली. निशाना साध कर फायर किया.

कार का पिछला एक पहिया बर्स्ट हो गया. कार डगमगाती हुई रुक गई. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल रोक कर सड़क के किनारे खड़ी कर दी. सड़क के किनारे थोड़ीथोड़ी दूरी पर बिजली के खंभे थे. उन के साथ कूड़ा डालने के ड्रम थे. वह लपक कर डम के पीछे बैठ गया. कार रुक गई. 4 साए अंधेरे में आगे बढ़ते उस की तरफ आए. रेंज में आते ही उस ने एक के बाद एक 3 फायर किए. 2 साए लहरा कर नीचे गिर पड़े. नरोत्तम फुरती से उठा और दौड़ कर पीछे वाले खंभे की ओट में जा छिपा.

जैसी उम्मीद थी वैसा हुआ. 2 रिवौल्वरों से ड्रम पर गोलियां बरसने लगीं. मगर नरोत्तम पहले से जगह छोड़ कर पीछे पहुंच गया था. उस ने निशाना साध गोली चलाई. एक साया हाथ पकड़ कर चीखा, फिर दोनों भाग कर कार की तरफ जाने लगे.

नरोत्तम मुकाबला खत्म समझ छिपने के स्थान से बाहर निकल आया. तभी भागते दोनों सायों में से एक मुड़ा और नरोत्तम पर फायर कर दिया. गोली नरोत्तम के कंधे पर लगी. वह कंधा पकड़ कर बैठ गया.

सड़क पर चलता ट्रैफिक लगातार होती गोलीबारी से रुक गया. टायर बर्स्ट हुई कार में बैठ कर चारों बदमाश भाग निकले. नरोत्तम पर बेहोशी छाने लगी. तभी 2 जनाना हाथों ने उसे थाम लिया. पुलिस की गाडि़यों के सायरन गूंजने लगे. नरोत्तम बेहोश हो गया.

नरोत्तम की आंख खुली तो उस ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के कंधे और छाती पर पट्टियां बंधी थीं. उस के साथ स्टूल पर उस की पत्नी बैठी थी. दूसरी तरफ उस के मातापिता और संबंधी थे.

होश में आने पर पुलिस उस का औपचारिक बयान लेने आई. नरोत्तम फिर सो गया. शाम को उस की आंख खुली तो उस ने अपने सामने ज्योत्सना को हाथ में छोटा फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा पाया.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’ मुसकराते हुए उस ने पूछा.

उस ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. वह यहां कैसे?

‘‘उस शाम संयोग से मैं आप के पीछेपीछे ही अपनी कार पर आ रही थी. मैं ने ही पुलिस को फोन किया था.’’

तब नरोत्तम को याद आया, बेहोश होते समय 2 जनाना हाथों ने उसे थामा था.

ज्योत्सना चली गई.

नरोत्तम 3-4 दिन बाद घर आ गया. उस का कुशलक्षेम पूछने बड़ेछोटे अधिकारी भी आए. ज्योत्सना भी हर शाम आने लगी. उस के यों रोज आने से उस की पत्नी का चिढ़ना स्वाभाविक था.

पतिपत्नी में बनती पहले से ही नहीं थी. नरोत्तम के ठीक होते पत्नी मायके जा बैठी. उस के मातापिता, दामाद के मिसफिट नेचर की वजह से पहले ही क्षोभ में थे और अब उस की इस खामखां की प्रेयसी के आगमन ने आग में घी का काम किया. पतिपत्नी में संबंधविच्छेद यानी तलाक की प्रक्रिया शुरू हो गई.

बौयफ्रैंड को कमीज के समान बदलने वाली ज्योत्सना को कड़क जवान नरोत्तम जांबाजी के कारण भा गया था. वह अब उस के यहां नियमित आने लगी.

असमंजस में पड़ा नरोत्तम इस सोचविचार में था कि त्रियाचरित्र को क्या कोई समझ सकता था? रिश्वतखोर न होने के कारण उस की पत्नी उस को छोड़ कर चली गई थी. और अब एक तेजतर्रार नवयौवना उस के पीछे पड़ गई थी. एक तरफ जबरदस्ती के प्यार का चक्कर था तो दूसरी तरफ उस की नियति. दोनों पता नहीं भविष्य में क्या गुल खिलाएंगे?

अग्रलेख: महिला सत्ताधारियों का नया दौर

आजाद खयालों वाली महिलाएं पुरुषों को हमेशा से खटकती रही हैं. जिन महिलाओं ने पुरुषों की इस चाल को सम?ा लिया वे उन के प्रभाव से निकलने में कामयाब रहीं और अब दुनियाभर में वे अपना दबदबा स्थापित कर रही हैं. दुनियाभर में औरत को हमेशा से पुरुष के अधीन रखा गया है. एक लड़की को उस के बचपन से यह बताया जाता है कि वह कोमल और कमजोर है. अकेली रहे तो असुरक्षित है. अपने बारे में लिया गया उस का फैसला गलत है. उसे बताया जाता है कि पिता, भाई, पति या बेटे के अधीन रह कर ही वह सुरक्षित है. हमेशा अपने घर के पुरुषों का कहा मानो.

उन के आदेशानुसार सारे कार्य करो. उन के साथ ही घर से बाहर जाओ. उन्हें जैसा पसंद है वैसा परिधान पहनो. वे जो खिलाएं वही खाओ. वे जितना कहें उतना पढ़ो. वे जो कहें वही पढ़ो. धर्म और संस्कारों की दुहाई दे कर लड़कियों को जिंदगीभर दायरे में रखने की कोशिश होती है असलियत यह है कि औरतों के प्रति यह चलन और ऐसा नजरिया दुनियाभर में है. दुनियाभर में औरत पुरुष के सर्विलांस में रहने को मजबूर है. वह क्या पहने, क्या काम करे, क्या खाए, क्या पढ़े, किस से मिले, क्या बात करे, कितना हंसे, कितना मुंह ढके, कितना तन ढके आदि सब पुरुषों के मनमुताबिक करना होता है.

जबकि पुरुषों के लिए ऐसे कोई नियम दुनिया में कहीं भी नहीं हैं. पुरुष औरत के पैर में पड़ी वह जंजीर है जो उस को खुले आसमान में उड़ने से रोकती है. लेकिन इस जंजीर को तोड़ कर जो औरतें आगे बढ़ीं, आज दुनिया उन के हुनर, काबीलियत और नेतृत्व की कायल है. जिन औरतों ने पुरुषसत्ता को दरकिनार कर अपने जीवन के फैसले खुद लिए, उन के नाम आज चमक रहे हैं. दुनिया का नेतृत्व करने वाली, राजनीति में ऊंचे पदों पर पहुंचने वाली अधिकांश औरतें वे हैं जिन के सिर पर कोई पुरुष अपने आदेशों की चाबुक लिए नहीं खड़ा है, जिन्होंने पुरुषों की मौजूदगी और प्रभाव को स्वीकार नहीं किया. रेडियोधर्मिता पर गहन शोध करने वाली और नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक मैरी क्यूरी से ले कर इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी तक और मदर टेरेसा, सरोजिनी नायडू, अमृता प्रीतम, इंदिरा गांधी, ममता बनर्जी व प्रियंका चोपड़ा जैसी महिलाओं की एक लंबी फेहरिस्त है,

जिन्होंने पुरुषसत्ता के दबाव को ?ाटक कर अपने फैसलों और अपनी इच्छा के मुताबिक अपने व्यक्तित्व को गढ़ा. फ्रांसीसी वैज्ञानिक मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी को रेडियोएक्टिव तत्त्व रेडियम की खोज के लिए नोबेल पुरुस्कार मिला. क्यूरी के पिता ने उन को एक सीमित शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति दी थी. वे नहीं चाहते थे कि वे बहुत ज्यादा पढ़ें. मगर उन्होंने पुरुष समाज द्वारा औरतों पर थोपे गए इस प्रतिबंध को नहीं माना और छिपछिपा कर उच्चशिक्षा प्राप्त की. उन की बहन ने उन की आर्थिक मदद की और वे भौतिकी एवं गणित की पढ़ाई के लिए पेरिस चली गईं. पिता के प्रभाव से मुक्त होने के बाद क्यूरी ने अपने जीवन के सारे फैसले खुद लिए. उन्होंने फ्रांस में डाक्टरेट पूरा करने वाली और पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफैसर बनने वाली पहली महिला होने का गौरव पाया.

रेडियम की खोज ने उन्हें अमर कर दिया. अमेरिकी नागरिक समानता अधिकार के लिए लड़ने वाली रोजा लुईज मक्काली पार्क्स को दुनिया मदर औफ फ्रीडम मूवमैंट के नाम से जानती है. 1955 की बात है. उस वक्त दक्षिण अमेरिकी प्रांत अलाबामा में नस्लभेद अपने चरम पर था. ब्लैक महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को बंदी बना कर उन का लगातार शोषण किया जाता था. उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं था. गोरे जिस रास्ते पर चलते, उस पर ब्लैक अपना पैर नहीं रख सकते थे. पानी के नल और बस की सीट तक बंटी हुई थीं. इस नस्लीय हिंसा और भेदभाव वाले समय में ही डिपार्टमैंटल स्टोर में काम करने वाली ब्लैक महिला रोजा पार्क्स ने एक दिन बस से सफर करते वक्त एक गोरे व्यक्ति के लिए अपनी सीट से उठने से इनकार कर दिया. इस पर बस के ड्राइवर ने पुलिस बुला ली और रोजा पार्क्स को दोषी करार दिया गया. उन पर 10 डौलर का जुर्माना लगाया गया और अलग से 4 डौलर की कोर्ट फीस भी देनी पड़ी. लेकिन रोजा पार्क्स के विरोध ने यह सुनिश्चित कर दिया कि ब्लैक्स की स्थिति जो अमेरिका में थी उस के खिलाफ वे आवाज उठाएंगी. रोजा पार्क्स ने अमेरिका में समानता की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया.

नस्लभेद के खिलाफ कानून को चुनौती दी, जिस ने दूसरे लोगों को भी अन्याय और भेदभाव का विरोध करने के लिए प्रेरित किया. रोजा का अकेले का विद्रोह सब का बन गया. यह नागरिक आंदोलन लगभग एक साल चला और अंत में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट को यह आदेश देना पड़ा कि ब्लैक नागरिक बस या ट्रेन में कहीं भी बैठ सकते हैं, उन्हें गोरों के लिए सीट छोड़ने की जरूरत नहीं है. नस्लभेद के खिलाफ उठ खड़े होने का फैसला रोजा का अपना फैसला था, जिस ने अमेरिका में नस्लभेद और रंगभेद के खिलाफ एक क्रांति उत्पन्न कर दी. पुरुषसत्ता के दबाव से निकल कर सामाजिक कार्यक्षेत्र में अपने लिए जगह बनाना महिलाओं के लिए हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रहा है. देश की संसद, जिसे लैंगिक रूप से संवेदनशील और पुरुषसत्ता से आजाद होना चाहिए, में भी महिलाओं को पुरुषसत्ता और गैरबराबरी का सामना करना पड़ता है. लेकिन शिक्षा ने महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में बड़ी मदद की है. पढ़ीलिखी महिलाएं आज चुनावों में शामिल हो कर नेतृत्व संभालने के लिए आगे बढ़ रही हैं.

साल 1951-52 में जहां राजनीति में औरतों की भागीदारी 5 फीसदी थी, वैश्विक स्तर पर अब यह भागीदारी लगभग 26 फीसदी है. हालांकि भारत की आबादी की तुलना में राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत कम है. आजादी के 75 वर्ष बाद भी महिलाओं का राजनीति में प्रतिनिधित्व और नेतृत्व निराशाजनक कहा जाएगा क्योंकि वे पुरुषों की तुलना में नीचे के स्तरों पर ही कार्यरत होती हैं. उन को नेतृत्व की बागडोर नहीं दी जाती है. भारत में इंदिरा गांधी के 16 साल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी निराशाजनक है. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति में तो उन की स्थिति सेवादार से ज्यादा नहीं होती. ग्राम प्रधान के पद पर चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें संचालन का हक नहीं मिलता. उन के नाम को सामने रख कर पति, पिता, भाई, बेटा या ससुर ही प्रधानी करते दिखाई देते हैं. समाज में पुरुषसत्ता भयानक रूप से व्याप्त है.

अधिकतर वंशानुगत संभ्रांत परिवार की महिलाएं ही राजनीति में टिकती हैं जो उच्चशिक्षा प्राप्त और आर्थिक रूप से मजबूत होती हैं. वे महिलाएं ज्यादा कामयाब हैं जो अविवाहित हैं क्योंकि उन के सपनों के पंखों को बांधने वाला मर्द उन के इर्दगिर्द नहीं है. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिन्डा अर्डन हों या इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी, इन महिलाओं ने अपने नेतृत्व कौशल से वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता हासिल कर पितृसत्ता को चुनौती दे कर यह सिद्ध किया है कि महिलाएं कुशल नेतृत्व करने में सक्षम हैं. ब्रिटेन, जरमनी, अमेरिका, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी महिलाएं पितृसत्ता को चुनौती देती दिख रही हैं. वे महिलाओं के हक और शोषण के खिलाफ एकसाथ मिल कर आवाज उठा रही हैं. मारग्रेट थैचर ब्रिटिश राजनीतिज्ञ मारग्रेट हिल्डा थैचर 20वीं शताब्दी में सब से लंबी अवधि (1979-1990) के लिए यूनाइटेड किंगडम की प्रधानमंत्री रहीं. एक सोवियत पत्रकार ने उन्हें ‘आयरन लेडी’ की उपाधि दी, एक ऐसा उपनाम जो उन की असंबंध राजनीति और नेतृत्व शैली से जुड़ा हुआ था. प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने ऐसी नीतियां लागू कीं, जिन्हें थैचरवाद के रूप में जाना गया. मारग्रेट थैचर के फैसले हमेशा पुरुष मानसिकता के प्रभाव से मुक्त रहे. वे पुरुषों की सोच को अपने ऊपर हावी नहीं होने देती थीं.

यही वजह है कि उन में इतिहास को बदलने का दम था. आजादी की उन की अवधारणा के सिर्फ 3 पहलू थे, व्यक्तिगत, राजनीतिक और आर्थिक. जब कभी 10, डाउनिंग स्ट्रीट में 11 साल के उन के राज के दौरान किसी भी तरह की आजादी को कोई चुनौती मिली, उन्होंने कदम पीछे नहीं हटाए. ग्रैंथम के एक परचून वाले की लड़की जब ब्रिटेन की सब से ज्यादा साल तक राज करने वाली पहली महिला प्रधानमंत्री बनी तब देश में राज करने के हालात नहीं थे. राजनीति स्टालिनवादी रु?ान के वामपंथियों और यथास्थितिवादी दक्षिणपंथियों के चंगुल में फंसी हुई थी. दोनों सिरों पर पुरुषों का प्रभुत्व था. मगर थैचर ने उन को मात देते हुए पार्टी में जीत हासिल की. सत्ता में लेडी थैचर के आक्रामक व्यक्तित्व ने एक ऐसी विचारधारा की तमाम चीजों को छिन्नभिन्न कर डाला जो समाज में पारंपरिक चीजों का उत्सव मनाने की आदी थी. इंदिरा गांधी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी, साहस और संघर्ष की प्रतीक और करिश्माई व्यक्तित्व की धनी देश की पहली और इकलौती प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पुरुषसत्ता के मद में चूर लोग ‘गूंगी गुडि़या’ के नाम से पुकारते थे. लेकिन बाद में इंदिरा गांधी को 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त देने के बाद उन्हें आयरन लेडी कहा जाने लगा.

इंदिरा गांधी राजनीति के आसमान में तब चमकीं जब न सिर पर पिता का साया रहा और न पति का. इन दोनों के रहते वे राजनीति से दूर ही रहीं. लेकिन जब पिता और पति दोनों ही नहीं रहे तो इंदिरा गांधी ने खुद फैसले लेने शुरू किए और उन की कार्यशैली ने उन के व्यक्तित्व को ऐसा करिश्माई रूप दिया कि वे कालांतर में देशदुनिया की लोकप्रिय जननेता बन गईं. वे दूरदृष्टा तो थी हीं, चिंतन में दृढ़निश्चय, त्वरित निर्णय क्षमता जैसे गुण भी थे उन में. राजनीति की बिसात पर वे सिर्फ अपने मन की सुनती थीं और खुद सारे फैसले लेती थीं. इंदिरा गांधी को उन के दृढ़ संकल्पी व्यक्तित्व और कठोर निर्णयों के लिए जाना जाता है. उन्होंने 2 बार देश की सत्ता संभाली. 1969 में उन्होंने बैंकों और तेल कंपनियों का सरकारीकरण कर के देश के उद्योगपतियों को चुनौती दी थी. उन्होंने धर्मनिरपेक्षता व समानता के आधार पर भारत को विश्व में शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित किया.

गरीब देश होते हुए भी परमाणु परीक्षण कर दुनिया को यह आभास कराया कि भारत के वैज्ञानिक तकनीक के किसी मामले में पीछे नहीं हैं. गौर कीजिए, यदि इंदिरा गांधी न होतीं तो क्या बंगलादेश बन सकता था? क्या सिक्किम का भारत में विलय हो सकता था? क्या श्रीलंका की हिंसक बगावत काबू में की जा सकती थी? क्या खालिस्तान आंदोलन की कमर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सैनिक हमला किए बिना तोड़ी जा सकती थी. फिरकापरस्त ताकतों और सांप्रदायिक हिंसा को समाप्त करने के लिए उन्होंने अथक संघर्ष किया और देश की एकता व अखंडता की मजबूती के लिए अपना बलिदान दिया. ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के एक निम्नमध्य श्रेणी के बंगाली परिवार में जन्मी ममता बनर्जी की ताकत और नेतृत्व क्षमता का सामना बड़ेबड़े राजनेता नहीं कर पा रहे हैं. बंगाल की शेरनी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी ने 9 वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो दिया था.

बहुत कम उम्र में उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी उठाई. समाज के दबाव में वे कभी नहीं रहीं और परिवार से संबंधित, छोटे भाईबहनों से संबंधित और खुद से संबंधित सारे फैसले उन्होंने स्वयं लिए. कोलकाता में जोगमाया देवी कालेज से इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से इसलामी इतिहास में मास्टर की उपाधि उन्होंने प्राप्त की. ममता ने कोलकाता के श्री शिक्षायतन कालेज से शिक्षा में डिग्री और कोलकाता के जोगेश चंद्र चौधरी लौ कालेज से कानून की डिग्री हासिल की है. उन्होंने विवाह नहीं किया. राजनीति में उन का प्रवेश बहुत ही कम उम्र में हुआ था, जब वे स्कूल में ही थीं. वे राज्य की कांग्रेस (आई) पार्टी में शामिल हो गईं और पार्टी एवं अन्य राजनीतिक समूहों में अलगअलग पदों पर सेवा प्रदान की. उन्होंने बहुत तेजी से राजनीतिक सीढि़यां चढ़ीं. 1976 से 1980 तक वे महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं. 1997 में कांग्रेस से अलग हो कर ममता ने अपनी नई पार्टी अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ममता रेल मंत्री बनीं. बाद में उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया.

बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुआई वाली वाम मोरचा सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल में उद्योगों को किसानों की जमीन देने के लिए किसानों और कृषि विशेषज्ञों की जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ 20 अक्तूबर, 2005 को ममता ने सक्रिय रूप से विरोध प्रदर्शन किया. अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और एसयूसीआई के गठबंधन ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2011 में 227 सीटों पर जीत दर्ज की और 34 वर्ष से सत्ता पर काबिज वाम मोरचा सरकार को पटखनी दे कर 20 मई, 2011 को ममता बनर्जी बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. उस के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. आज अमित शाह बारबार कोलकाता का तख्ता पलटने की साजिशें करते नजर आ रहे हैं पर ममता के जबरदस्त नेतृत्व के आगे उन की दाल नहीं गल रही है.

सोनिया गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी का स्वनिर्मित व्यक्तित्व राजनीति की बिसात पर बड़ेबड़े धुरंधरों को धूल चटा चुका है. वे भले इंदिरा गांधी की बहू और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी थीं, लेकिन उस वक्त वे राजनीति से बहुत दूर अपने बच्चों को पालने में मशगूल थीं. फिर वक्त ने करवट ली. पहले सास और उस के बाद पति के बलिदान ने उन्हें ?ाक?ार कर रख दिया. पार्टी को डूबने से बचाने के लिए वे उठ खड़ी हुईं. उन्होंने राजनीति में कदम रखा तो लोगों को लगा कि पार्टी में मौजूद पुराने घाघ नेता उन्हें अपने हाथों की कठपुतली बना लेंगे, लेकिन अपने दिल की सुनने वाली और खुद फैसले लेने का साहस रखने वाली सोनिया गांधी ने एकएक नेता को ऐसा साधा कि सब उन के आगे नतमस्तक हो गए. विरोधियों ने उन की कमजोर हिंदी को मुद्दा बनाया, उन के विदेशी मूल को उछाला, उन पर परिवारवाद का आरोप जबतब लगाया.

यही नहीं, पार्टी के नेताओं ने उन पर हावी होने की भी कोशिश की, मगर दृढ़ निश्चयी सोनिया गांधी को उन के फैसलों से डिगा पाना कभी संभव नहीं हुआ. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन का कार्यकाल पार्टी के इतिहास में सब से लंबा कार्यकाल है. 2004 और 2009 में केंद्र में सरकार बनाने में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई और आज भी वे कांग्रेस की बागडोर मजबूती से थामे हुए हैं. जियोर्जिया मेलोनी इटली में जियोर्जिया मेलोनी की जीत ने दुनियाभर के उदारवादियों की नींद उड़ा दी है. मुसोलिनी की प्रशंसक 45 वर्षीया मेलोनी समलैंगिक और ट्रांसजैंडर अधिकारों और गर्भपात के अधिकार पर लगातार सवाल उठाती रही हैं. वे परंपरागत पारिवारिक मूल्यों की वकालत करती हैं. ये तमाम बातें दुनियाभर के धुर दक्षिणपंथी नेताओं का भी एजेंडा हैं. हाल के समय में मेलोनी की पार्टी ब्रदर्स औफ इटली पार्टी की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है. हाल के मतदान में एकचौथाई मतदाताओं ने उन का समर्थन किया है.

मेलोनी 1992 में नव फासीवादी राजनीतिक दल इटालियन सोशल मूवमैंट की युवा शाखा, यूथ फ्रंट में शामिल हुई थीं. बाद में वे नैशनल अलायंस के छात्र आंदोलन, स्टूडैंट ऐक्शन की राष्ट्रीय नेता बनीं. 1998 से 2002 तक वे रोम प्रांत की काउंसलर रहीं, बाद में एएन की यूथ ऐक्शन की अध्यक्ष बनीं. 2008 में उन्हें बर्लुस्कोनी कैबिनेट में युवा मंत्री नियुक्त किया गया. वे इस पद पर साल 2011 तक काबिज रहीं. 2012 में उन्होंने ब्रदर्स औफ इटली नाम की पार्टी की स्थापना की और 2014 में इस की अध्यक्ष बन गईं. 2018 के इटली के आम चुनाव के बाद उन्होंने 18वीं संसद में विपक्षी नेता के तौर पर भूमिका अदा की. उन के भाषण और कार्य ने आम लोगों के मन में उन की पार्टी का विशेष स्थान बनाने में बड़ी भूमिका अदा की. प्रधानमंत्री ड्रैगी के कार्यकाल में ब्रदर्स औफ इटली एकमात्र विपक्षी पार्टी थी. यही कारण है कि 2022 के आम चुनाव में जियोर्जिया मेलोनी की ब्रदर्स औफ इटली पहले स्थान पर रही. जियोर्जिया मेलोनी को घोर दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी इटैलियन राजनेता माना जाता है.

वे शुरू से ही गर्भपात, इच्छामृत्यु, सेम सैक्स मैरिज जैसी मांगों का विरोध करती रही हैं. जियोर्जिया को नाटो समर्थक नेता माना जाता है. हालांकि वे यूक्रेन पर आक्रमण से पहले रूस के साथ अच्छे संबंधों के पक्ष में भी थीं लेकिन चुनावप्रचार के दौरान उन्होंने खुल कर यूक्रेन का समर्थन किया और उसे हथियार भेजने की बात भी कही. जेसिन्डा अर्डन न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिन्डा अर्डन ने अपने नेतृत्व कौशल से वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता हासिल कर पितृसत्ता को चुनौती दे कर यह सिद्ध किया है कि महिलाएं कुशल नेतृत्व करने में सक्षम हैं. ब्रिटेन, जरमनी, अमेरिका, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी महिलाएं पुरुषसत्ता को चुनौती देती दिख रही हैं. दुनियाभर में युवा महिलाएं जिस मुखरता से चुनावी प्रक्रिया में शामिल हो रही हैं, उस से पुरुषसत्ता की जड़ें हिलने तो लगी हैं मगर उस की आवृत्ति अभी कम है क्योंकि अधिकांश महिलाओं के पीछे पुरुष खड़े हैं जो उन्हें अपनी मरजी के मुताबिक काम करने से रोकने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. आज भले भारत में चुनिंदा संसद में महिला मंत्रियों, सांसदों, विधानसभा में महिला विधायकों को देख कर यह अंदाजा लगाया जा रहा हो कि देश में महिलाओं का सशक्तीकरण हो चुका है लेकिन महिलाओं की इतनी बड़ी आबादी के मुकाबले में आज भी महिलाओं का राजनीति में नेतृत्व और भागीदारी में मामूली योगदान है. बात भारत की राजनीतिक परिदृश्य की करें तो साल 1963 से देश में केवल 16 महिलाएं मुख्यमंत्री बनीं. देश आज तक केवल एक महिला प्रधानमंत्री के शासन में रहा.

महिलाओं को राजनीति में सफल रूप से भागीदारी न करने देने का कारण धार्मिक कट्टरता और सामाजिक सोच है. भारतीय राजनीति की बागडोर हमेशा से पुरुषों के हाथों में रही है. भारत का इतिहास इस बात का भी गवाह है कि आज तक महिलाओं की राजनीति में भूमिका को ले कर उन्हें राजनीतिक दलों से बहुत कम सहयोग मिला है. राजनीतिक दल महिला भागीदारी को सुनिश्चित करने के प्रश्न पर मौन हैं क्योंकि इस से पुरुष राजनीतिज्ञ को अपने विशेषाधिकारों के कम या समाप्त हो जाने का भय होता है. यही कारण है कि वे महिला आरक्षण बिल को ले कर भी उत्साह नही दिखाते, जो 1994 से प्रस्तावित है. पुरुषसत्तात्मक समाज में अधिकांश पुरुषों को खुद से कामयाब महिलाएं खटकती हैं. खासतौर पर तब जब राजनीतिक दुनिया में सदियों से पुरुषों का ही दबदबा रहा है. ऐसे में आगे निकलती महिलाओं को नीचा दिखाना, उन के कपड़े, बोलचाल का अंदाज, शिक्षा, बच्चों की संख्या, उन के निजी जीवन जीने के ढंग पर सवाल खड़ा करना और उन के चरित्र पर लांछन लगाना सब से आसान तरीका है. इन आक्षेपों से महिलाएं विचलित हो जाती हैं, उन का मनोबल डगमगा जाता है और वे समाज के बनाए दायरों में सिमट जाती हैं. लेकिन जिन महिलाओं ने पुरुषों की इस चाल को सम?ा लिया वे उन के प्रभाव से निकलने में भी कामयाब रहीं और उन्होंने अपनी क्षमताओं का लोहा भी मनवाया.

आज के दौर की महिलाएं पुरुष के समकक्ष ही नहीं, बल्कि कई क्षेत्रों में तो वे पुरुष के वर्चस्व को चुनौती भी दे रही हैं. अपनी मेहनत और काबीलियत के बल पर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. लेकिन पितृसत्तात्मक समाज ने आज भी उन्हें अपने से कमतर आंकना नहीं छोड़ा है. पुरुष प्रधान समाज, जो महिलाओं का दमनशोषण करना अपना शौक सम?ाता रहा है, इस बात को सहन नहीं कर पा रहा है कि दबीकुचली महिलाएं अपने अधिकारों के लिए बोलने लगी हैं, आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं हैं, अपने कार्यकौशल और काबीलियत से उन से ऊपर ओहदे पर काम कर रही हैं आदिआदि. ऐसे में अपनी स्थिति को सुधारने के लिए यह जरूरी है कि महिलाएं पुरुष वर्चस्व को ही नकार दें और उसे चुनौती दें. पितृसत्तात्मक समाज की सोच को बदलने के लिए खुद महिलाओं को मेहनत करनी होगी, बंधन तोड़ कर आगे आना होगा, लड़ना होगा, घर में भी, समाज में भी और राजनीति में भी. तभी एक स्वतंत्र इकाई के रूप में वे अपने को स्थापित कर पाएंगी. ऊपर से ले कर निचले तबके तक मांओं को अपनी बेटियों का उत्साहवर्धन करना होगा. उन की नेतृत्व शक्ति को जगाना होगा.

उन में यह आत्मविश्वास भरना होगा कि उन में अपने घर, समाज, संगठन या देश का नेतृत्व करने की ताकत है. हर सास को चाहिए कि वह बहू के साथ गृहयुद्ध में न लगी रहे, घरेलू हायहाय किचकिच में महिलाशक्ति को क्षीण न करे बल्कि बहू के हाथ में पावर दे, उसे उत्साहित करे कि घर के फैसलों में वह अपनी राय पूरी ताकत से रखे. ?सास अगर बहू की राय का समर्थन करेगी तो घर के किसी पुरुष की हिम्मत न होगी उस के फैसले को पलटने की. सरकार महिला सशक्तीकरण का चाहे कितना ही ढोल पीटे, महिला सशक्तीकरण तब तक संभव नहीं होगा जब तक मां अपनी बेटी को और सास अपनी बहू को सशक्त बनाने में उन की मदद न करेंगी.

विजया- भाग 3: क्या हुआ जब सालों बाद विजय को मिला उसका धोखेबाज प्यार?

इस बात को लगभग 1 वर्ष हो चुका था, परंतु विजय की दिनचर्या नहीं बदली. वह अभी भी रोज शाम को उस रैस्टोरैंट में जरूर जाता, जैसे उसे लगता कि आज जया कहीं से वहां आ जाएगी.

एक दिन वह जब अंदर बैठ कर रोज की भांति कुछ खापी रहा था, तो उसे ऐसा महसूस हुआ कि जया उस रैस्टोरैट के द्वार पर खड़ी हो. वह तुरंत उठा और बाहर निकला. उस ने इधरउधर देखा, परंतु जया उसे कहीं नहीं दिखी. परेशान हो कर वापस लौटा और बाहर खड़े गार्ड से पूछा, ‘‘क्या कोई मैडम यहां आई थी?’’

गार्ड ने बताया, ‘‘एक मैडम टैक्सी रुकवा कर अंदर आई और फिर तुरंत बाहर निकल कर उसी टैक्सी से चली गई.’’

विजय सोच में पड़ गया कि अगर वह जया थी तो क्या करने आई थी और क्यों उस से बिना मिले, बिना कुछ कहे चली गई? गार्ड ने यह भी बताया था कि मैडम उस के बारे में पूछ रही थी कि क्या साहब रोज शाम को यहां आते हैं? गार्ड की बात सुन कर विजय ने अनुमान लगा लिया था कि वह निश्चित रूप से जया ही थी.

उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि जया वहां क्या करने आई थी, शायद यह

देखने आई थी कि मैं जिंदा भी हूं या नहीं. उस का मन कड़वाहट से भर गया, उस के मुंह से निकला कि विश्वासघाती, धोखाबाज. यह सामान्य मानव स्वभाव है कि जब वह किसी के बारे में जैसा सोचता है, उस के संबंध में वैसी ही धारणा भी बन जाती है.

यही सब सोचते हुए वह घर पहुंच गया. प्राय: वह बाहर से शराब पी कर ही घर लौटता था, रमा उसे खाना दे कर चुपचाप अपने रूम में चली जाती थी. मगर आज रमा ने विजय को कुछ अधिक ही परेशान देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, आप इतने परेशान क्यों हो?’’

न चाहते हुए भी विजय ने गुस्से में जया को बुराभला कहते हुए सारी बात रमा को बता दी.

उस की बात और गुस्से को देख कर रमा सिर्फ इतना ही बोली, ‘‘भैया, जया भाभी ऐसी नहीं है… जरूर कोई मजबूरी होगी.’’

‘‘मत कहो उसे भाभी, उस के लिए मेरे मन में कोई जगह नहीं है,’’ विजय गुस्से से बोला. फिर कुछ सोच कर उस ने जया को फोन लगाया. उस का मोबाइल आज बंद नहीं था, परंतु जया ने फोन उठाया नहीं. विजय ने कई बार किया, परंतु उस ने फोन उठाया नहीं. विजय गहरी सोच में डूब गया.

अगले दिन पुन: अपनी रोज की तरह वह फिर उसी रैस्टोरैंट में जाने को तैयार था. आज तो वह अपने औफिस भी नहीं गया था, जब वह घर से निकलने लगा तो रमा भी साथ चलने की जिद करने लगी, परंतु उस ने मना कर दिया, भला वह उस के सामने कैसे शराब पी सकता था. पता नहीं रोज शाम को उस के कदम स्वत: ही उस रैस्टोरैंट की ओर उठ जाते और वह यंत्रचालित सा वहां पहुंच जाता.

रैस्टोरैंट पहुंच कर वह अपनी निर्धारित टेबल पर पहुंचा ही कि सुखद

आश्चर्य से भर उठा, क्योंकि वहां पहले से ही सामने वाली कुरसी पर जया विराजमान थी. खुशी, दुख, अवसाद, घृणा और आश्चर्य जैसी भावनाएं जब एकसाथ किसी मनुष्य के अंदर उत्पन्न होती हैं तो सहसा वह कुछ भी नहीं बोल पाता. बस वह जया को एकटक घूरे जा रहा था. उस ने महसूस किया कि जया पहले से थोड़ी कमजोर हो गई है, परंतु उस की सुंदरता, चेहरे के आकर्षण और व्यक्तित्व में कोई कमी नहीं आई थी.

जया ने ही पहल की, ‘‘कैसे हो विजय?’’

विजय कुछ नहीं बोल पाया. इस बीच वेटर रोज की तरह विजय का खानेपीने का सामान ला कर रख गया था, जिसे देख कर जया बोली, ‘‘सुनो, इसे हटाओ और 2 कोल्ड ड्रिंक ले कर आओ और सुनो आज से ये सब बंद.’’

वेटर चुपचाप सब उठा कर ले गया. विजय अभी भी भरीभरी आंखों से जया को घूरे जा रहा था.

जया ही फिर बोली, ‘‘कुछ तो बोलो विजय, कैसे हो.’’

विजय अब भी चुप ही था.

‘‘अच्छा पहले यह अपनी अमानत वापस ले लो, पूरे 20 लाख ही हैं,’’ और एक बैग विजय की ओर बढ़ा दिया.

‘‘रुपए किस ने मांग थे?’’ विजय भर्राए गले से बोला, ‘‘तुम इतने दिन कहां थीं, कैसी थीं?’’ वह इतना ही बोल पाया.

‘‘विजय,’’ जया एक गहरी सांस भर कर बोली. उस के चेहरे पर दर्द की वेदना साफ दिखाई पड़ रही थी,’’ सुनो विजय मैं तुम्हारी अपराधी अवश्य हूं, परंतु मैं ने आज तक किसी को कुछ नहीं बताया कि मैं कहां थी, क्यों थी?’’

जया थोड़ी देर के लिए रुकी, फिर बोलना शुरू किया, ‘‘वास्तव में मुझे तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था, लेकिन तुम से रुपए लेने के बाद मैं इस स्थिति में नहीं थी कि तुम से कुछ कहूं. तुम से पैसे लेने के बाद मैं ने अपनी कंपनी का काम शुरू किया, काम अभी प्रारंभिक अवस्था में ही था कि अचानक मां की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई. मैं कंपनी का काम भी ठीक से नहीं कर पा रही थी. अंत में मुझे कंपनी का काम बीच में ही छोड़ना पड़ा. मां के इलाज में तुम से लिए रुपए और मेरे खुद के रुपए खर्च हो गए, काफी रुपए नई कंपनी के प्रयास में पहले ही खर्च हो चुके थे, परंतु खुशी सिर्फ इस बात की है कि मैं ने मां को बचा लिया.’’

विजय बोला, ‘‘तुम इतनी परेशान थीं, तो तुम ने मुझे क्यों याद नहीं किया? क्या तुम मुझे अपना नहीं समझती हो या तुम्हें मेरी याद ही नहीं आई? मांजी तो अब ठीक हैं न?’’

जया बोली, ‘‘हां अब ठीक हैं और रही तुम्हारी याद आने की बात, तो याद नहीं आती तो मैं आज यहां क्यों होती. रुपए खत्म हो रहे थे, परंतु जिंदगी तो चलानी ही थी. मैं ने यहां से दूर दूसरे बड़े शहर में नौकरी के लिए आवेदन किया. मेरे पुराने रिकौर्ड को देख कर मुझे नई कंपनी में सहायक डाइरैक्टर की जौब मिल गई. लगभग 1 वर्ष के कठिन परिश्रम के द्वारा ये रुपए एकत्र करने के बाद मैं तुम से मिलने का साहस जुटा पाई हूं. इन के बिना मेरा जमीर तुम से मिलने की इजाजत नहीं दे रहा था.’’

‘‘जया तुम ने इतना कुछ अकेले क्यों सहा? क्या तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं था या तुम मुझे अपना ही नहीं समझती हो?’’ विजय का गला भर्रा गया था और उस ने जया का हाथ थाम लिया था.

जया की आंखें भी भर आई थीं. बोली, ‘‘अपना न समझती तो यहां होती?’’

तभी विजय बोला, ‘‘अच्छा बताओ मांजी कहां हैं?’’

‘‘मैं यहीं एक होटल में मांजी के साथ रुकी हूं,’’ जया ने जवाब दिया, ‘‘थोड़ी कमजोर हैं, लेकिन अब स्वस्थ हैं.’’

‘‘बताओ घर होते हुए भी मांजी को होटल में रखा है. बताओ यह कहां का अपनापन है?’’ विजय उलाहना भरे स्वर में बोला.

‘‘कुछ सोच कर मैं ने तुम्हें नहीं बताया… मन में बहुत सारी उलझनें थीं,’’ जया मुसकरा कर बोली.

‘‘क्या उलझनें थीं? शायद तुम सोच रही थीं कि अगर मैं ने शादी कर ली होगी तो? अगर तुम नहीं मिलतीं तो मैं ने सोच लिया था कि मैं शादी ही नहीं करूंगा,’’ विजय बोला.

‘‘मुझे माफ कर दो विजय, मैं तुम्हारी गुनहगार हूं, मैं ने तुम्हें बहुत कष्ट पहुंचाया है,’’ कह कर जया ने विजय के कंधे पर अपना सिर रख दिया.

विजय ने धीरे से उस का सिर सहलाया, दोनों की आंखें भर आई थीं. कुछ

देर मूर्तिवत खड़े रहे. फिर अचानक विजय ने जया को अलग किया, ‘‘अरे, यह तो बताओ कि मेरी अमानत तो वापस ले आई हो, परंतु उस का ब्याज कौन देगा?’’

‘‘अरे भैया ब्याज में तो भाभी खुद आ गई हैं,’’ अचानक रमा की आवाज सुन कर दोनों चौंक पड़े. पता नहीं कब वह भी वहां आ गई थी. दोनों एकदूसरे से बातचीत में इस कदर खोए हुए थे कि उन का ध्यान उधर गया ही नहीं.

जया ने आगे बढ़ कर रमा को गले लगा लिया.

‘‘अच्छा जया बहुत हुआ, अब तुम अपने घर चलो, अब तुम्हें नौकरी के लिए कहीं नहीं जाना. पहले हम लोग होटल चलेंगे… मांजी को साथ लाएंगे, फिर घर तुम्हारा, कंपनी तुम्हारी और यह परिवार हमारा,’’ विजय बोला.

विजय की बात सुन कर तीनों हंस पड़े और फिर रमा की खुशियों से परिपूर्ण आवाज गूंज उठी, ‘‘आज से विजय भैया और जया भाभी अलग नहीं रहेंगे, अब दोनों साथसाथ विजया बन कर रहेंगे, क्यों भाभी है न?’’

रमा की बात पर तीनों हंस पड़े.

लूट का जरिया: फसल व पशु बीमा योजना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में मोदी सरकार ने साल 2016 में 7,000 करोड़ रुपए, साल 2017 में 9,000 करोड़ रुपए व साल 2018 में 13,000 करोड़ रुपए बजट दिया था. इतना ही राज्य सरकारों ने दिया था. मतलब, सरकार की तरफ से 3 साल में कुल 58,000 करोड़ रुपए दिए गए. किसानों के खातों से जो हफ्तावसूली हुई है, वह इस की 30 फीसदी है मतलब 19,000 करोड़ रुपए से ज्यादा. कुलमिला कर 77,000 करोड़ रुपए बीमा कंपनियों को दे दिए गए. बीमा कंपनियों से फसल क्षति होने वाले कुल किसानों में से 20 फीसदी किसानों को मुआवजा मिला था.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ साल 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरे साल भी बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को लूटने का काम जारी रहा. देश के 3.74 करोड़ किसानों से 3,027 करोड़ रुपए बीमा हफ्ता वसूली, केंद्र सरकार द्वारा 9,000 करोड़ रुपए और राज्य सरकार द्वारा 9,000 करोड़ रुपए मिला कर कुल 21,027 करोड़ रुपए फसल बीमा कंपनियों को प्राप्त हुए. कंपनियों के द्वारा 8,724 करोड़ रुपयों के दावे अनुमोदित किए गए, लेकिन केवल 4,276 करोड़ रुपए ही किसानों को भुगतान किए गए. साल 2018-19 चुनावी वर्ष था. किसानों ने इस दौरान हंगामा मचाया, तो कुल प्रीमियम 29,693 करोड़ रुपए के मुकाबले कंपनियों ने 28,464 करोड़ रुपए का किसानों को क्लेम जारी कर दिया था.

फिर वही लूट शुरू. साल 2019-20 में 32,340 करोड़ रुपए के मुकाबले 26,413 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया. साल 2020-21 में 31,861 करोड़ के प्रीमियम के मुकाबले 17,931 करोड़ रुपए किसानों को मुआवजे के रूप में बांटे. पिछले साल 2021-22 की अंतरिम रिपोर्ट में सामने आया कि कंपनियों ने 18,944 करोड़ रुपए प्रीमियम लिया, लेकिन महज 7,557 करोड़ रुपए किसानों को क्लेम बांटे. इस क्लेम को लेने के लिए किसानों को कई जगह धरनाप्रदर्शन करने पड़े. तो कुलमिला कर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चहेती बीमा कंपनियों पर धन लुटाने का जरीया बन कर रह गई.

गौरतलब है कि 13 जनवरी, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) शुरू करते हुए दावा किया था कि यह योजना उन किसानों पर प्रीमियम का बोझ कम करने में मदद करेगी, जो अपनी खेती के लिए कर्ज यानी लोन लेते हैं और खराब मौसम से उन की रक्षा भी करेगी, जिस हिसाब से बीमा कंपनियां किसानों व सरकार से मिलने वाली प्रीमियम राशि से अपने खजाने भर रही हैं, उस से ऐसा नहीं लगता कि यह योजना किसानों के हित के लिए लागू की गई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएमएफबीवाई शुरू करते समय यह भी दावा किया था कि इस योजना में बीमा दावे के निबटान की प्रक्रिया को तेज और आसान बनाने का निर्णय लिया गया है

, ताकि किसानों को फसल बीमा योजना के संबंध में किसी परेशानी का सामना न करना पड़े, लेकिन सरकार के इस दावे की पोल इसी से खुल रही है कि योजना शुरू हुई तब से ले कर अब तक एक बार भी किसानों को क्लेम का भुगतान एक साल से पहले नहीं किया गया. बीमा कंपनियों की लूट की इस गणित को महज एक साधारण उदाहरण से समझा जा सकता है. मसलन, ग्वार प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल बारानी किसान से राशि ली जाती है 864 रुपए और सरकार सब्सिडी के रूप में बीमा कंपनी को 5,661 रुपए जमा कराती है. कुल योग हुआ 6,525 रुपए. इसी प्रकार, मोंठ प्रति हेक्टेयर किसान से राशि ली जाती है 633 रुपए, वहीं सरकार सब्सिडी देती है बीमा कंपनी को 4,752 रुपए. कुल योग हुआ 5,385 रुपए. इस हिसाब से बीमा कंपनी के खाते में जमा हो रही है मोटी राशि और किसान व सरकार ब्याज अलग से दे रहे हैं, जबकि बीमा कंपनियां जमा राशि पर ब्याज भी कमा रही हैं.

सौ फीसदी फसल खराब होने पर मोटेतौर पर प्रति हेक्टेयर 40,000 रुपए के लगभग बीमा राशि लौटाई जाती है, परंतु गिरदावरी रिपोर्ट/फसल क्रौप कटिंग/बीमा कंपनी के एजेंट व कृषि विभाग के भ्रष्ट अधिकारी, कुलमिला कर किसान की फसल खराब होने पर 33 फीसदी तक ले आते हैं. किसान को अपनी व सरकार द्वारा दी गई राशि भी मुश्किल से वापस मिल पाती है. अगर 1-2 साल फसल के खराब होने की क्षेत्र विशेष में स्थिति पैदा नहीं होती है, तो बीमा कंपनियां मालामाल हो जाती हैं. ठ्ठ पशु बीमा पर भी लूट गायों की लंपी स्किन बीमारी की आपदा को फसल बीमा की तरह पशु बीमा को भी अपनी चहेती कंपनियों के लिए अवसर के रूप में शुरू कर दिया गया है. भैंस का बीमा 1,105 रुपए व गाय का बीमा 880 रुपए तय किया गया है. इस में 70 फीसदी प्रीमियम केंद्र व राज्य सरकार उठाएगी व 30 फीसदी किसानों को भरना होगा.

जब सारे प्रीमियम का भुगतान केंद्र, राज्य व किसान मिल कर भर रहे हैं, तो बीमा कंपनी के रूप में बिचौलिए की जरूरत क्यों है? किसान से निश्चित प्रीमियम खुद सरकार लें और एक किसान कोष में डाल दें. जब किसान को मुआवजे की जरूरत पड़े, तो केंद्र व राज्य अपना हिस्सा उस फंड में जमा करवा कर किसानों को वितरित कर दें. जब सारा काम पटवारी व तहसीलदार को ही करना है और मुआवजा उस के मुताबिक सरकारी बैंक को बांटना है, तो निजी बीमा कंपनी की जरूरत कहां है?

कुलमिला कर ये बीमा योजनाएं सरकारी सिस्टम को किनारे कर के चहेतों को पूंजी लुटाने का जरीया हैं. लंपी स्किन बीमारी में मरी गायों के कारण जो किसानों का नुकसान हुआ है, उस से बच कर लूट का तरीका ईजाद कर लिया गया है. दूसरी तरफ, गौशालाओं को दिए जा रहे अनुदान को बंद कर के किसानों को सीधा भुगतान किया जाता है, तो ये गौरखशालाएं लूट के अड्डे नहीं बनतीं. चौतरफा लूट किसानों की ही हो रही है, राहत योजनाएं लुटेरी गैंग के हवाले हैं और किसानों को मांगने वाला कह कर बदनाम किया जाता है. किसानों व पशुपालकों को सहारा देने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पशु बीमा योजना बीमा कंपनियों के लिए कमाई का अच्छा जरीया बनी हुई हैं. इन योजनाओं का फायदा जहां किसानों को मिलना चाहिए, वहां ये योजनाएं बीमा कंपनियों को मालामाल कर रही हैं.

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