रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के छत्ते में हाथ डाल तो दिया पर अब पछता रहे हैं. वैसे यह हर तानाशाह के साथ होता हैखासतौर पर उस के साथ जो धर्म के पंडेपुजारियों के सामने लोटता है. पुतिन ने भी यूक्रेन पर हमला मास्को में और्थोडौक्स चर्च के महंत कुरील के उकसाने पर किया था.

अब रूस 3 लाख नए सैनिक भरती करने के लिए जनता की कमाई खर्च करना शुरू कर रहा है. विशाल रूस के गांवों में लाखों नौजवान ऐसे हैं जो पुतिन के भक्त भी हैं और पैसेपैसे को तरसते हैं. उन्हें सेना की सुरक्षित नौकरी और यूक्रेन व दूसरे देशों में लूट व बलात्कार करने का लालच सेना में भरती के लिए आकर्षित करेगा ही.

अफसोस यह है कि 1917 के बाद

70 सालों के युद्धों के बाद भी रूसी यह सम?ा नहीं पाए हैं कि नाजीकैपिटलिस्टएग्रेसर जैसी गालियों से अपनी जनता को बहकाना आसान है लेकिन इस से कुछ मोटा हासिल नहीं होता.

सोवियत संघ के विघटन के बाद बचे रूस ने खासी उन्नति कर ली क्योंकि पश्चिमी देश अपनी तकनीक और पैसा ले कर आए थे और गरीब कम्यूनिस्ट सोवियत जनता को अपनी कुशलता दिखाने का मौका मिला था.

रूसी नेता व्लादिमीर पुतिन के छोटे से यूक्रेन पर भाषण वैसे ही होते हैं जैसे हमारे यहां बहुसंख्यक हिंदू कट्टर नेता मुसलमानों के खिलाफ देते हैं. तिल का ताड़ बना कर लोगों को एक देश या जमात के खिलाफ उकसाया जाता है. रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर के अपनी अर्थव्यवस्था भी चौपट कर दी और विश्वभर में अपनी नाक कटा ली. पश्चिमी देशों को एक होना पड़ा. यहां तक कि नरेंद्र मोदी भी यह कहने को मजबूर हो गए कि वे रूस के साथ पूरे मन के साथ नहीं हैं.

रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत अब बहुत दूर नहीं क्योंकि पूरा यूरोपअमेरिकाजापानकोरिया सब यूक्रेन को भरपूर सैनिक सामग्री दे रहे हैं. यूक्रेनी जानते हैं कि युद्ध के बाद देश को फिर से बनाने में उन्हें भरपूर सहायता मिलेगी. यह युद्ध रूस को हमेशा के लिए बेचारा बना देगा और यूक्रेन को लोकतंत्रदेशप्रेम व स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने वाला एक अद्भुत छोटा पर महान देश. क्या भारत इस से कुछ सीखेगा?

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