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बंटी-भाग 3: क्या अंगरेजी मीडियम स्कूल दे पाया अच्छे संस्कार?

यह देख सुधा फूली नहीं समाती. उस के दिमाग में न जाने कैसे यह बात बैठ गई कि अंगरेजी में बात करने वाले बच्चों के कारण ही सोसाइटी में मांबाप की शान बनती है.

बदलाव तो बंटी में आ रहा था मगर यह केवल अंगरेजी के चंद शब्द बोलने तक ही सीमित नहीं था. बंटी के व्यवहार में आक्रामकता और उद्दंडता भी आ रही थी. किसी बात के लिए टोके जाना बंटी को अच्छा नहीं लगता था.

सुधा उस की हर चीज केवल इसलिए बरदाश्त कर रही थी क्योंकि वह अंगरेजी स्कूल के रंग में रंग रहा था. उस की जबान से अब कोई हलके किस्म की पंजाबी गाली नहीं निकलती थी. लेकिन इस का मतलब यह नहीं था कि बंटी गाली देना ही भूल गया था. यह बात अलग थी कि अब उस की दी हुई गाली सुधा की समझ में नहीं आती थी, क्योंकि अब वह अंगरेजी में ऐसी गालियां निकालना सीख गया जिस का मतलब समझना उस के लिए मुश्किल था.

गालियों का मतलब बंटी भी शायद नहीं समझता था, लेकिन उस को इतना जरूर मालूम होता था कि जो उस के मुख से निकल रहा है वह गाली है.

एक दिन जब रिमोट हाथ में ले कर बंटी टैलीविजन के चैनल से छेड़छाड़ कर रहा था तो सुधा ने उसे टोका और कहा, ‘‘बहुत हो गया बंटी, अब टैलीविजन बंद करो और अपना होमवर्क करो,’’ लेकिन बंटी ने उस की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और कार्टून चैनल देखता रहा.

सुधा ने अपनी बात दोहराई, लेकिन बंटी पर कोई असर नहीं हुआ.

दूसरी बार भी जब बंटी ने बात को अनसुना किया तो सुधा को गुस्सा आ गया. उस ने बंटी के हाथ से रिमोट छीना और चिल्ला कर बोली, ‘‘मैं क्या कह रही हूं, सुनाई नहीं दे रहा क्या?’’

सुधा का रिमोट छीनना और चिल्लाना बंटी को रास नहीं आया. उस के नथुने फूलने लगे और वह गुस्से से सुधा को घूरते हुए जोर से चीखा, ‘‘शटअप, यू ब्लडी बास्टर्ड.’’

 

अंगरेजी में दी गई बंटी की गाली के मतलब सुधा नहीं समझी थी इसलिए उस का तमाचा बंटी के गाल पर नहीं पड़ा. वह असहाय और बेबस नजरों से सुधीर को देखने लगी.

पत्नी की हालत पर गुस्से की बजाय सुधीर को तरस आता. वह पत्नी को यह नहीं बताना चाहता था कि बंटी की अंगरेजी में दी गई गाली पंजाबी में दी गई उस गाली से बेहतर नहीं थी जिस की वजह से उस ने एक दिन बंटी के गाल पर तमाचा मारा था.

कसक: क्यों अकेले ही खुश थी इंदु

GHKKPM: विराट की सच्चाई आएगी सामने , पाखी खोलेगी तीसरी औरत का राज

स्टार प्लस का पसंदीदा सीरियल गुम है किसी के प्यार में लोगों का खूब दिल पर राज कर रहा है, लगातार इस सीरियल में इतने ट्विस्ट आ रहे हैं कि लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा है, ऐसे में लोगों की एक्साइटमेंट बढ़ाकर रख दिया है.

बीते दिनों विराट और सवि विनायक को स्कूल लेकर जा रहे हैं, इतना ही नहीं वह सई को लेकर नराजगी जता रहे हैं, विराट  उनकी एक सुनने को तैयार नहीं है. आगे दिखाया जाएगा कि विराट पाखी से कहेगा कि स्कूल अच्छा है और इसलिए वह चाहता है कि सवि इसी स्कूल में पढ़ें.

 

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तभी पत्रलेखा उसे ताना मारती है कि उसे पहले क्यों नहीं समझ आई ये बात, पाखी उसपर विनायक की जिंदगी बर्बाद होने का आरोप लगाती है. वहीं विनायक जब सवि से बात करने आता है तो उसपर भी आरोप लगाती है, और खूब जोर से चिल्लाती है.

आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि पाखी सई को एक कैफे में मिलने के लिए बुलाएगी, जहां दोनों की मुलाकात होगी. वहीं वह सई से कहेगी कि वह सवि का सारा खर्चा उठाने के लिए तैयार है. लेकिन वह यहां से दूर लेकर जाए. जहां वह आराम से रहेगी, लेकिन आगे सई का क्या फैसला होगा वह तो अगले एपिसोड में पता चलेगा.

राखी सावंत ने यूलिया को कहा भाभी तो यूजर ने किया ये कमेंट

एक्टर राखी सावंत अपना 44वां जन्मदिन मना रही हैं, इस खास दिन पर लाखों लोग राखी सावंत को बधाई दे रहे हैं, वह अक्सर अपने बयानों और सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं.

वहीं राखी सावंत का एक डांस वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें यूलिया के साथ डांस करती नजर आ रही हैं, राखी के वायरल हो रहे वीडियो में लोगों ने सलमान खान के साथ राखी सावंत का कनेक्शन जोड़ा है.

राखी ने इंस्टाग्राम पर वीडियो शेयर कर लिखा है स्वीटहार्ट भाभी जिसे देखकर लोगों ने लगातार कमेंट करने शुरू कर दिए हैं, कुछ लोगों ने इस वीडियो के साथ में सलमान खान के साथ कनेक्शन जोड़ा है औऱ लिखा है कि सलमान खान भाई तो यूलिया भाभी.

 

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सलमान खान और यूलिया की खबरे अक्सर आती रहती है, वहीं एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है कि आपने तो सारी पोल खोल दी, एक यूजर ने लिखा है कि आपने तो एकदम क्लियर कर दिया है. इससे साफ हो रहा है कि सलमान खान बैचलर नहीं हैं.

वहीं कुछ लोगों ने सलमान खान को भी टैग कर दिया है, एक यूजर ने लिखा कि अब सब क्लियर हो गया है कि सलमान खान चोरी-चोरी चुपके -चुपके शादी रचा चुके हैं.

हिम्मत : सही दिशा दे पाने की सोच

आहुति -भाग 2 : नैनीताल में क्या हुआ था आहुति के साथ

यह मेरी दोस्त ‘आहुति वडालिया.’ 10वीं तक हम साथ पढ़े थे. अमृतसर में जब पापा की पोस्ंिटग हुई थी, तब हम साथ में पढ़ते थे. पक्की सहेलियां थीं हम. फिर पापा का तबादला हो गया और हम वहां से चले गए.’’ ‘‘आप दोनों बातें करिए, तब तक मैं थोड़ा सामान देख लेता हूं,’’ नितिन ने कहा और दूसरी दिशा में चल दिए. ‘‘पर, तू यहां कैसे आहुति? तेरी भी शादी हो गई क्या प्रथम से? क्या शादी के बाद तुम दोनों यहां शिफ्ट हो गए हो?’’ मैं ने उस की ओर घूमते हुए पूछा. वह थोड़ा सकते में आ गई. मेरे प्रश्न ने उस के चेहरे पर कठोर भाव ला दिए. ‘‘क्या बात है आहुति?’’ मैं ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा. ‘‘कुछ नहीं. मैं यहां अकेली ही रहती हूं,’’ उस ने रूखे स्वर में कहा. ‘‘क्यों? आंटी, अंकल और प्रथम?’’ ‘‘देख प्रियल, तू यहां मौज करने आई है तो घूम और एंजौय कर. ये फालतू की बातों से क्या लेनादेना,’’ उस ने टालते हुए कहा. ‘‘जिस बात से मेरी दोस्त का चेहरा मलिन हो जाए वह फालतू नहीं है.

बता, क्या हुआ है? सब कहां हैं?’’ मैं ने पूछा. इस से पहले वह कुछ कहती, वहां नितिन आ गए, ‘‘प्रियल, मां का फोन है.’’ आहुति ने मु?ो खींचते हुए कहा, ‘‘तू अभी और कितने दिन है नैनीताल में.’’ ‘‘ये ही चारपांच दिन और.’’ ‘‘तो ठीक है, अभी तू जा. कल दोपहर एक बजे यहीं आना, तब सारी बातें करेंगे और हो सके तो अकेले आना,’’ उस की आंखों में एक अलग सी आवश्यकता थी, भय था, संताप था जिसे देख मैं सिर्फ हां ही कर सकी. उस दिन घूमने में फिर मेरा मन कहां लगने वाला था? आहुति की आंखों में बु?ा हुई उदासी और एकाकीपन ने मु?ो अंदर से डरा दिया था. आखिर ऐसा क्या हुआ जो आहुति की चुलबुली मुसकान कहीं गुम हो गई. मु?ो आज भी याद है, स्कूल का वह पहला दिन.

पापा की नौकरी के कारण उन का तबादला होता रहता था और ऐसे में मेरे लिए हर बार एक नई जगह जाना, वहां से परिचित होना और फिर एक अनजान बन कर किसी और शहर की ओर रुख कर लेना मुश्किल होता था. यह कारण था कि कभी मेरी कोई पक्की मित्रता नहीं बन पाई, क्योंकि जब तक मित्रता का बंधन गहरा होता तब तक अलविदा कहने का समय आ जाता. इसी शृंखला में एक बार फिर पापा का तबादला हुआ था, इस बार जगह थी अमृतसर और एक बार फिर मैं अनजानों के बीच अपनी जगह तलाशने की लड़ाई में जू?ाने लगी थी. कक्षा में अकेली, गुमसुम बैठी थी मैं कि तभी मेरे पास मुसकराती हुई आई थी आहुति. उस की स्वच्छंद मुसकराहट ने मु?ो भी अपने संकोचों से मुक्त कर दिया था. फिर क्या होना था? हमारी जोड़ी पूरे स्कूल में मशहूर हो गई थी. हमारा उठनाबैठना, गानाबजाना, पढ़ाई, मस्ती, सब साथ ही होता था. इस उछलकूद में कब एक बार फिर अलविदा कहने का वक्त आ गया, पता ही नहीं चला. पापा का फिर तबादला हो रहा था और इस बार सामान समेटना इतना आसान नहीं था, क्योंकि सामान से ज्यादा यादें और रिश्ते समेटने थे. मैं और आहुति एकदूसरे के गले मिल कर खूब रोए थे और वादा किया था कि चाहे जो हो जाए, हमारी दोस्ती पर आंच नहीं आएगी.

मैं पापामम्मी के साथ अमृतसर से मुंबई आ गई. हमें मुंबई आए कुछ महीने ही हुए होंगे कि आहुति का पत्र आया, जिस में लिखा था कि आंटी की तबीयत बहुत खराब है और डाक्टरों ने जवाब दे दिया है. पत्र पढ़ कर मैं बुरी तरह से बेचैन हो गई थी. आखिर आंटी ने मु?ो सदा बेटी की तरह स्नेह दिया था. खत मिलने के साथ ही मैं और मम्मी अपना सामान बांधने लगे पर हमारे पहुंचतेपहुंचते ही आंटी का शरीर शांत हो चुका था. कुछ दिन वहां रह कर हम आहुति और अंकल को ढांढ़स बंधाते रहे. मम्मी ने तो यहां तक प्रस्ताव दिया था कि आहुति हमारे संग मुंबई आ जाए पर अंकल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी. आखिर उन की भी बात सही थी, आंटी के जाने के बाद आहुति के अलावा उन का था ही कौन?

ऐसे में आहुति को खुद से दूर करना उन के लिए असंभव था पर क्या जीवनसाथी को खोने का दुख भी कम नहीं होता है? इसी दुख ने अंकल को धीरेधीरे एकाकीपन और फिर डिप्रैशन का शिकार बना दिया. आहुति के अगले कुछ महीनों के पत्रों में अंकल के डिप्रैशन का जिक्र बराबर बना रहा. हम जब भी फोन पर बात करते, अंकल के लिए उस की चिंता आंसुओं में फूट पड़ती. ऐसे में मैं खुद को बहुत असहाय महसूस करती. और फिर एक दिन उस का पत्र आया, ‘प्रिय प्रियल, यह बात मैं तुम्हें फोन पर ही बताना चाहती थी पर क्या करूं कि फोन ही खराब हो गया है.

 

मैं 44 वर्षीय विवाहित महिला हूं मेरे पति को सेक्स में रुचि नहीं हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 44 वर्षीय विवाहित महिला हूं. पति की सैक्स में बहुत रुचि है जबकि मेरी घटती जा रही है. मैं ने वियाग्रा के बारे में बहुत सुना है. क्या वियाग्रा मेरे लिए भी फायदेमंद साबित होगी?

जवाब

महिलाओं के लिए वियाग्रा फायदेमंद साबित नहीं होती. दरअसल महिलाओं में सहवास के कई चरण हैं- कामेच्छाल्यूब्रिकेशनप्रवेशक्लाइमैक्स.

इन 4 चरणों में कहीं भी गड़बड़ी हो तो उस का कारण ढूंढ़ कर उस का सही इलाज किया जा सकता है. वहीं पुरुषों में कामेच्छा के बाद प्रवेश के लिए प्राइवेट पार्ट में इरैक्शन का होना जरूरी है. अगर इरैक्शन ठीक से न आए तो वियाग्रा की गोली उसे ठीक करने में सहायता करती है. मिसाल के तौर परअगर किसी को 25 फीसदी इरैक्शन आया है तो यह गोली उसे बढ़ा कर 95 फीसदी तक आसानी से ले जा सकती है.

इसलिए यह गोली पुरुषों के लिए फायदेमंद हैमहिलाओं के लिए नहीं. अगर आप की सैक्स में रुचि घट रही है तो इस का मानसिक कारण भी हो सकता हैशारीरिक कारण भी. इस की जड़ तक जा कर इलाज किया जा सकता है. सैक्सोलौजिस्ट के पास जाएं और अपनी समस्या उसे बताएं.

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मैं प्रैग्नैंट हूंस्तनों का आकार बढ़ने लगा है. ब्रा पहनने में मु?ो दिक्कत महसूस होने लगी हैइसलिए ब्रा पहननी छोड़ दी है. लेकिन इस से मेरी ब्रैस्ट ढीली तो नहीं हो जाएगी. क्या डिलीवरी के बाद ब्रैस्ट पहले वाला आकार ले लेंगे?

स्वाभाविक है कि गर्भावस्था में ब्रैस्ट का आकार भी बढ़ता है. ऐसे में ब्रा का न पहनना उन्हें ढीला बना देगा. ऐसे समय में आप को परफैक्ट ब्रा का चुनाव करना पड़ेगा.

आप चाहें तो एडजस्टेबल स्ट्रैप वाली ब्रा खरीद सकती हैं क्योंकि गर्भावस्था की हर तिमाही में ब्रैस्ट के साइज में बढ़ोतरी होती है. इसलिएएडजस्टेबल स्ट्रैप में आप को आराम रहेगा.

गर्भावस्था के दौरान मैटरनिटी ब्रा अच्छा औप्शन है. मैटरनिटी ब्रा विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ही ध्यान में रख कर तैयार की गई है. इस में उन के लिए अलग डिजाइन और सौफ्ट कौटन कपड़े का चुनाव किया जाता है. इन्हें इस तरह से तैयार किया जाता है कि प्रैग्नैंसी के दौरान स्तनों की सूजनदर्द से आप को आराम मिल सके और आप दिनभर इसे पहन सकें. हांरात को सोते समय ब्रालैस सोना ही आप के लिए ज्यादा सुविधाजनक रहेगा.  ?

‘‘मार्शल आर्ट इंसान को आत्म सुरक्षा देने के साथ ही उन्हे चुस्त दुरूस्त व तरोताजा रखता है.’’ -राजू दास

सिनेमा जगत में एक्षन प्रधान रोमांचक फिल्मों का सदैव बोलबाला रहा है.एक्षन फिल्में देखना बच्चों  से लेकर बड़ों तक सभी देखना पसंद करते हैं.इसी के चलते एक्षन  फिल्मों में अब एक्षन मास्टर यानी कि एक्षन निर्देशकों की महत्ता बढ़ गयी है.क्योंकि अब एक्षन के नाम पर भी हर फिल्म में कुछ नए तरह का एक्षन परोसा जाना अनिवार्य हो गया है.जब से बाॅलीवुड में टाइगर श्राफ व विद्युत जामवाल जैसे एक्षन स्टारों का दबदबा बढ़ा है.तब से बाॅलीवुड में मार्शल आर्ट में महारत रखने वाले एक्षन निर्देशकों की भी मांग बढ़ी है.

ऐसे ही एक्षन मास्टरों में सर्वाधिक चर्चित नाम है- राजू दास,जिन्होने टाइगर श्राफ को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देकर एक्षन स्टार बनने योग्य बनाया. हाल ही में एक्षन निर्देशक राजू दास से मुलाकात हुई..प्रस्तुत है एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश…

आपकी अब तक की यात्रा कैसी रही?

-मुझे बचपन से ही मार्शल आर्ट सीखने का शौक रहा है.पर बचपन में मुझे यह मौका नहीं मिल पा रहा था.लेकिन मैं जैसे ही कुछ बड़ा हुआ,तो मैने घर वालों से कहा कि मुझे कराटे सीखना है.मगर मेरे घर वालों ने कोई रूचि नहीं ली.कुछ और बड़ा होने पर मैने हाथ पांव मारे और कराटे व मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेनी शुरू की.12 साल की उम्र में मैने मार्शल आर्ट सीखना शुरू कर दिया था.उस वक्त तक मुझे यह भी नहीं पता था कि  आर्ट मार्शल क्या होता है? मार्षल आर्ट कैसे किया जाता है.कितने तरह का मार्षल आर्ट होता है? मार्शल आर्ट की जरुरतें क्या है? उससे पहले मैने सिर्फ यह शब्द सुने थे.मैने ब्रूसली की फिल्मों में यह देखा था और मेरे दिमाग मंे आ गया था कि मुझे मार्शल आर्ट में पारंगत होना है.खैर,हमने अवसर मिलने पर कई जगहों से मार्शल आर्ट सीखा.

मार्शल आर्ट सीखने की शुुरूआत कहां से हुई?

-कलकत्ता से ही हुई.मेरे मार्शल आर्ट सीखने की शुरूआत तो कलकत्ता से ही हुई.पर हमारी ज्यादातर ट्रेनिंग गुजरात व नागलैंड में संपन्न हुई.इसके अलावा कानपुर व लखनउ में भी थोड़ी षिक्षा हुई.उसके बाद चीन जाकर भी मैने कुछ वर्कषाॅप किए.गुजरात के मेरे गुरू गजानंद राजपूत जी हैं. नागालैंड में तो मार्षल आर्ट के कई लीजेंड लोगों से सीखने का अवसर मिला.कानपुर में अरविंद जी से मैने सीखा.लखनउ में मेरे शिक्षक पांडे जी थे.वास्तव में कलकत्ता में मार्शल आर्ट की बेसिक ट्रेनिंग लेने के बाद मैं मुंबई आ गया था.यहां काम करके पैसा कमाता था और फिर कुछ दिन के लिए आगे की शिक्षा लेने के लिए गुजरात या नागालैंड निकल जाता था.मैने मार्शल आर्ट के कई कम्पटीशन में हिस्सा लिया.कई अवार्ड जीते.

अलग अलग लोगो से आप मार्शल आर्ट में क्या नया सीखते रहे?

-हर शिक्षक के सिखाने में कुछ तो अंतर रहा.मार्शल आर्ट में कई फार्म हैं.कलकत्ता में मैने टायकोंडे की ट्रेनिंग हासिल की थी.कानपुर में कराटे सीखा.गुजरात में राजपूत से घिसू सीखा.फिर नागालैंड में कंगफॅूं सीखा.अलग अलग शिक्षकों से सीखते हुए मेरा ज्ञान व आत्मविश्वास बढ़ता रहा.मैने कुछ वर्कशाॉच चीन में जाकर किए.बचपन मे मुझे पता ही नहीं था कि कलारीपट्टू मूलतः हमारे देश का है.अब जब यह सच पता चला, तो मुझे गर्व की अनुभूति होती है.कुंुगफू वास्तव में कलारी पट्टू ही है.पूरे विष्व में मार्शल आर्ट के जितने भी फार्म हैं,उन सभी का एक ही मकसद है-आत्मसुरक्षा और आत्म अनुषासन.यही बात मैं लोगों को भी सिखाता हॅूं.

खुद मार्शल आर्ट सीखते सीखते आपने लोगों को कब सिखाना शुरू किया?

-अब तो मैं एक्षन मास्टर /निर्देशक के रूप में कार्य कर रहा हॅूं.मगर एक्षन मास्टर बनने से पहले मेरा लंबा संघर्ष रहा है.आप भी अच्छी तरह से जानते है कि बौलीवुड में काम मिलना आसान नही होता है.मैंतो कलकत्ता से मुंबई आया हूं, और फिल्म इंडस्ट्री में मैं किसी को जानता ही नहीं था.ऐसे में एक्षन निर्देशक के रूप में भला मुझे कौन काम देता? क्योंकि इस काम में खतरा है और सभी सुरक्षा की बात पहले सोचते हैं.इसके अलावा मुझे मुंबई में रहने के लिए रोज के खर्च भी जुटाने थे.तो मैं सोच रहा था कि कुछ तो काम किया जाए.ऐसे ही दौर में अचानक मेरे सामने मार्षल आर्ट सिखाने का विकल्प आ गया.

वास्तव में मैं मुंबई के लोखंडवाला इलाके के गार्डेन में रोज मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस किया करता था.वहीं एक दिन एक युवक मुझे मिला,उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उसे सिखा सकता हॅूं? तो मैंने उसे सिखाया.धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग मुझसे मार्शल आर्ट सीखने के लिए आने लगे.मैं आज भी सीखता हॅूं.मार्शल आर्ट इतना बड़ा आर्ट फार्म है,जिसे पूरी जिंदगी सीखें तो भी कम है.मैने टाइगर श्राफ,विक्रांत मैसे,रजत टोकस,कहकषां सहित कुछ फिल्मी संतानों को भीमार्शल आर्ट सिखाया.कुछ चर्चित टीवी सीरियलों के कलाकारों को भी ट्रेनिंग दी.धीरे धीरे पूरी फिल्म इंडस्ट्री में यह खबर फैल गयी कि मैं बेहतरीन मार्शल आर्ट शिक्षक हॅूं.मैने काॅंटिलों प्रोडक्षन व सागर फिल्मस के सीरियलों के कलाकारों को कई वर्षांं तक मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दी.मैने कुछ गुजराती व भोजपुरी फिल्मों में मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दी.इतना ही नहीं पहले मैंने सीरियलों व फिल्मों में दूसरे एक्षन मास्टरों के साथ फाइटर के रूप में काम करना शुरू किया.उसके बाद मैं सहायक एक्षन निर्देशक बना.अब तो बतौर स्वतंत्र एक्षन निर्देशक काम कर रहा हॅूं.

आपने अब तक किन किन कलाकारों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दी है..?

-यूं तो मैने कम से कम पचास ऐसे कलाकारों को मार्षल आर्ट की ट्रेनिंग दिया है,जो कि इन दिनों फिल्म व टीवी सीरियलों में अभिनय कर रहे हैं.मैं कुछ कलाकारों के नाम बताना चाहॅूंगा.इनमें से पहला नाम टाइगर श्राफ का है.मैंने कई वर्ष तक ट्रेनिंग दी.मैं उस वक्त टाइगर श्राफ को ट्रेनिंग देता था,जब उसे कोई नही जानता था.वह बहुत अच्छा लड़का है और वह बहुत मेहनत करके सीखता था.आज वह अपनी मेहनत के बल पर ही इस मुकाम तक पहुॅचा है.हम टाइगर श्राफ को रंजीत के जुहू वाले बंगले पर ट्रेनिंग दिया करता था.उस वक्त टाइगर श्राफ के साथ ही रंजीत के बेटे जीवा व डैनी डेनजोंग्पा के बेटे रिन्जिंग डेनजोंग्पा बाद को रंजीत के बंगले में ट्रेनिंग दिया करता था.बाद में जीवा व रिन्जिंग ने ट्रेनिंग लेनी छोड़ दी थी, मगर टाइगर श्राफ लेते रहे और तब मैने उन्हें लोखंडवाला में ट्रेनिंग दी.लेकिन ‘हीरोपंती’ के बाद टाइगर श्राफ ने अपनी एक अलग टीम बना ली और उनसे ट्रेनिंग लेना शुरू किया. पर टाइगर श्राफ से मेरा अभी भी मिलना जुलना होता रहता है.

इसके अलावा मैने टीवी सीरियल ‘‘ससुराल सिमर का’’ की अभिनेत्री दीपिका कक्कड़ को लंबे समय तक ट्रेनिंग दी.उनके पति व अभिनेता सोहेब इब्राहिम को भी ट्रेनिंग दी.वास्तव में एक बार उन्हे एक एक्षन सीन करना था,जो कि वह कर नहीं पाए.तब उन्हे अहसास हुआ कि यह तो गलत है.उसके बाद उन्होने मेरी तलाश की और मुझसे मार्शल आर्ट सीखना शुरू किया.सोएब इब्राहिम अभी भी मुझसे ट्रेनिंग ले रहे हैं.

रितिक रोशन की एक फिल्म आयी थी-‘‘कहो ना प्यार है’’.उसमें उनके छोटे भाई का किरदार अभिषेक शर्मा ने निभायी थी.वह आज भी मेरा स्टूडेंट है.इसी तरह जब सागर फिल्मस के साथ मैं काम कर रहा था,तब विक्रांत मैसे को मैने ट्रेनिंग दी थी.मैं उन्हें अभी भी वर्सोवा ट्रेनिंग  देने जाता हॅूं.वह वर्सोवा में ही रहते हैं.उनकी पत्नी काभी मैं मार्षल आर्ट की  ट्रेनिंग रहा हॅूं. टीवीमें तो सैकड़ों कलाकार हैं,जिन्हे मैं ट्रेनिंग दे रहा हॅूं या ट्रनिंग दे चुका हॅूं.एक लड़का ताहा षाह है,जिसके कैरियर की शुरूआत श्रृद्धा कपूर के साथ फिल्म ‘लव का द एंड’ से हुई थी.उसके बाद से तो ताहा षाह कई फिल्में कर चुके हैं.अब तो वह काफी एक्षन करता है.

जब आपने टाइगर श्राफ को ट्रेनिंग दी थी,तब पता था कि वह अभिनेता बनने वाला है?

-जी हाॅ! यह पता था.लेकिन वह इतना बड़ा कलाकार बन जाएगा,यह नही पता था.टाइगर श्राफ अभिनेता बनने के लिए ही तैयारी कर रहा था.

टाइगर श्राफ की पहचान एक एक्षन स्टार के रूप में होती है.इसमें मार्शल आर्ट का कितना योगदान है?

-इसमें मार्शल आर्ट का योगदान अस्सी प्रतिशत है.उनके कैरियर में मार्शलआर्ट का अस्सी प्रतिशत योगदान है.

आप कलाकारों को मार्षल आर्ट की देनेे में काफी व्यस्त थे.तो फिर आपने एक्षन मास्टर यानी कि एक्षन निर्देशक बनने की बात क्यों सोची?

-इसे आप ईश्वर प्रदत्त मान लीजिए.यह इंडस्ट्री  है,जहां  हर इंसान को अचानक से मौके मिलते हैं.मुझे सीरियल का नाम याद नहीं आ रहा है,पर मैं कमल साहनी के  सीरियलके कलाकारों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दे रहा था.एक दिन निर्देशक ने मुझसे कहा कि यह एक एक्षन सीन है,क्या मैं इसे निर्देषित कर दॅूंगा.

तो मैंने कर दिया था.तब पहली बार मेरे दिमाग में एक्षन निर्देशक बनने का ख्याल आया था.वास्तव में जब उस सीरियल के लिए मैने एक्षन दृष्य निर्देषित किया था,तो निर्देशक को मेरा काम काफी पसंद आया.उन्होने इस बात का जिक्र दूसरे निर्देशक से किया,तो फिर जब उसे जरुरत पड़ी,तो उसने मुझे बुलाया. इस तरह मेरे पास एक्षन निर्देशन का काम आता जा रहा है.मैंने संदली सिन्हा की एक फिल्म के लिए एक्षन निर्देशक के रूप में काम किया.फिर मैने बच्चन जी जैसे फाइट मास्टर के साथ काम किया.जैसे जैसे काम करते हुए मेरे अंदर आत्म विश्वास आता गया.तब मैने एक्षन मास्टर बनने के  लिए कुछ स्टडी कर खुद को तैयार किया.मैने कुछ फाइट मास्टरों के साथ काम करते हुए भी काफी कुछ सीखा.फिर हर इंसान की अपनी अलग क्रिएटीविटी होती है.

मुझे सबसे पहले गोपाल मास्टर जी ने ‘सागर फिल्मस’ के सीरियल में स्वतंत्र रूप से एक्षन निर्देषित करने के लिए भेजा था.जब मैं वहां पहुॅचा,तो वहां पर एक निर्देशक थे,उन्होने कह दिया कि मैं राजू के साथ काम नही करुंगा,यह तो एकदम नए हैं.तब गोपाल मास्टर ने उनसे कहा कि कभी आप भी तो नए थे.तब आपको भी किसी ने मौका दिया था.मैने उनसे कहा कि आप मुझे काम करने का अवसर दीजिए,आपको अच्छा न लगे,तो मत करवाइएगा.खैर,उन्होने मौका दिया.वह सारे एपीसोड हिट हो गए.उसके बाद से वह निर्देशक मेरे फैन हो गए. और हम काम करते गए.

फिर जब मैं डेली सोप वाले सीरियल ‘‘पृथ्वीराज चैहाण’’,‘धर्मवीर’,‘महावीर हनुमान’,‘साई बाबा’,‘दुर्गा’ कर रहा था,तब तीन युनिट काम कर रही थी.और हम एक सीरियल से दूसरे सीरियल में घूमते रहते थे.सागर फिल्मस के वडोदरा के स्टूडियो में हमने चार वर्ष तक एक्षन डायरेक्टर के रूप में काम किया.इस दौरान हमने काफी कुछ सीखा.

किसी फिल्म या सीरियल के लिए एक्षन सीन निर्देषित करने से पहले क्या आप स्क्रिप्ट पढ़ना जरुरी समझते हैं?

-ऐसा जरुरी नही है.पर निर्देशक हमें पूरा दृष्य सुनाता है.उस दृष्य की पृष्ठभूमि के बारे में बताता है.हम कहानी व सिच्युएशन को समझते हैं.सिच्युएशन के अनुसार हम पंचेस वगैरह के बारे में तय करते हैं.अभी मैं एक फिल्म ‘‘लाॅरी’’ के लिए एक्षन दृष्य निर्देषित करने वाला हॅूं.जिसमें लड़की के माता पिता को गुंडों ने एक कमरे में कैद कर रखा है.अब लड़की अपने माता पिता को छुड़ाने जाती है.तो हमें यह तय करना है कि लड़की की इंडस्ट्री कैसे होगी.उसमें लड़की कमाल कैसे दिखेगी.पूरी सराउंडिंग के आधार पर योजना बनाएंगे.हमारे अपने फाइटर तो सभी प्रोफेशनल होते हैं.

कुछ नया कर रहे हैं?

-मैं हर दिन मार्शल आर्ट और एक्षन को लेकर कुछ नया सीखने का प्रयास करता रहता हॅूं.लाॅक डाउन के वक्त मैने नए जो कैमरा आए हैं,उसे देखते हुए कुछ नई तकनीकी सीखी है.तो अब मैं जो भी एक्षन दृष्य निर्देषित करुंगा,वह अलग तरह का होगा.मैने न्यूयार्क फिल्म अकादमी से भी ट्रेनिंग ली है.अभी जो नया रोबोट कैमरा आया है,उसको लेकर भी मैने ट्रेनिंग ली.अब तक हमारे देश में होता यह है कि जब कोई बड़ा व अलग तरह का एक्षन दृष्य फिल्माना हो तो विदेषों से एक्षन मास्टर /निर्देशक बुलाए जाते हैं अथवा दक्षिण से बुलाए जाते हैं.मैंने अपने आपको इस स्तर पर तैयार किया है कि हमारे फिल्मकारों को विदेश से एक्षन मास्टर बुलाने की जरुरत न पड़े.वह मुझे एक मौका देकर देखो मेरी सोच व स्टाइल भी अलग है.मैने हर फार्म के मार्शल आर्ट सीखे हैं, कई वर्षों का अनुभव है.इसलिए मैं ज्यादा बेहतर व नई तकनीक के साथ एक्षन दृष्य निर्देषित करने में सक्षम हॅूं.मैने कैमरा ब्लाॅक,कैमरा ट्कि, षाॅट कैसे ब्लाॅक किया जाए और उसे किस तरह से फिल्माया जाए,यह सब सीखा है.

किसी इंसान को मार्शल आर्ट कब सीखना चाहिए.इसके फायदे क्या हैं?

-मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग किसी भी उम्र में ली जा सकती है.मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग हर इंसान के लिए फायदेमंद होती है.मार्षल आर्ट इंसान को आत्म सुरक्षा देने के साथ ही उन्हे चुस्त दुरूस्त व हमेशा तरोताजा रखता है.इससे इंसान के आत्म विश्वास में बढ़ोतरी होती है.उसके अंदर अनुशासन आ जाता है.इसी के साथ वह दूसरों की रक्षा करने में भी सक्षम हो जाता है.मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग इंसान के अंदर के घमंड को चकनाचूर कर देती है.इसमें जाति या लिंग भेद वगैरह नही है.न ही किसी तरह की कोई प्रतिस्पर्धा है.मार्षल आर्ट का मकसद आत्म अनुषासन व दूसरों का सम्मान करते हुए षांति बनाा रखना है.

 

दुबई में बैन हुई उर्फी जावेद, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान

उर्फी जावेद किसी न किसी वजह से चर्चा में बनी रहती हैं,ज्यादातर  वह अपने फैशन सेंस की वजह से चर्चा में बनी रहती हैं, लेकिन इस बार उर्फी जावेद किसी और कारण से चर्चा में बनी हुईं हैं, उर्फी जावेद को इस बार यूएई में बैन कर दिया गया है.

इस बात की जानकारीखुद उर्फी जावेद ने अपने एक पोस्ट के जरिए दी हैं, उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरी शेयर किया है , जिसमें उन्होंने बताया है कि वह अरब देशों में नहीं जा पाएंगी, उन्हें बैन कर दिया गया है, क्योंकि यूएई में एक नया रूल आया है जिसमें सरनेम नहीं लगाने वाले लोगों को बैन किया जा रहा है, और उर्फी के पासपोर्ट पर सिंगल नाम है इसलिए उन्हें बैन किया जा रहा है.

 

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बीते दिनों ही उर्फी जावेद ने अपने सरनेम में बदलाव किया था urfi से उन्होंने uorfi किया है, जिससे सोशल मीडिया पर ही नहीं सरकारी दस्तावेज पर भी बदलाव हुए हैं. बता दें कि यह रूल यूएई ने उनलोगों के लिए बनाया है जो वीजिंटिंग वीजा या फिर टेंपरोरी वीजा बनवाते हैं.

यानी जो कुछ दिनों के लिए अरब कंट्री घूमने जाते हैं उनके लिए यह वीजा बना हुआ है. खैर देखते हैं कि उर्फी इस घटना के बाद से अपने नाम में बदलाव करवाती हैं कि नहीं.

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