Download App

बच्चों को खूब भाया यूपी-112 का सेंटा

लखनऊ । कथीड्रल चर्च में यूपी-112 की पहल से सेंटा ने नागरिकों को पुलिस की सेवाओं के प्रति जागरुक किया. पुलिस रिस्पांस वीहिकल (पीआरवी) के साथ नागरिकों ने सेल्फ़ी ली. सेंटा ने बच्चों को उपहार बाँटा. क्रिसमस के मौक़े पर लखनऊ के हज़रतगंज स्थित कथीड्रल चर्च में नागरिकों के लिए 24 दिसम्बर की देर शाम यूपी-112 द्वारा जागरूकता कार्यक्रम किया गया। इस मौक़े पर सेंटा क्लॉस द्वारा यूपी-112 की योजनाओं और सेवाओं को कार्टून के माध्यम से बताया गया।

बच्चों को कॉमिक बुक के माध्यम से पुलिस विभाग की सेवाओं के बारे में जागरुक किया गया। इस मौक़े पर अपर पुलिस अधीक्षक यूपी-112  द्वारा लोगों को बताया गया कि सिर्फ़ पुलिस सम्बन्धी सहायता के लिए ही नहीं बल्कि आग लगने पर, मेडिकल सम्बन्धी सहायता के लिए और किसी आपदा के समय भी यूपी-112 से सहायता ली जा सकती है।

हाईवे या ट्रेन में सफ़र के दौरान भी नागरिकों को 112 द्वारा सहायता प्रदान की जाती है .कार्यक्रम में और बच्चों को सेंटा द्वारा उपहार भी प्रदान किया गया।

छोटी अनु की वजह से अनुज और अनुपमा में आएगी दरार

टीवी का मशहूर शो अनुपमा इन दिनों लगातार टीआरपी लिस्ट में बा हुआ है, हर दिन इस सीरियल में नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं, जिसे फैंस देखना पसंद करते हैं.इस सबसे शो की रेटिंग लगातार बढ़ती हुई नजर आ रही है.

कुछ वक्त पहले इस सीरियल की कहानी पाखी और अधिक की लव स्टोरी पर आकर रुक गई थी, लेकिन इस वक्त अनुज अनुपमा के इर्द गिर्द घूम रहा है, जिसमें अनुपमा और अनुज में इन दिनों अनबन होती नजर आ रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupamaa.show_1 (@anupama_show_1)

अनुपमा और अनुज में शाह परिवार  की वजह से दरार आ रही है, छोटी अनु को अनुपमा वक्त नहीं दे पा रही है. अनुपमा शाह परिवार में होती है जहां पर छोटी अनु को पैनिक अटैक आता है और वहां अनुज तो पहुंच जाता है लेकिन अनुपमा नहीं पहुंचती है.

जिस वजह से अनुज के मन में अनुपमा के खिलाफ कड़वाहट भर जाता है.

अनु ये कहकर रोने लगती है कि क्या अनुपमा उसकी मां नहीं है प्लीज सच बताओ जिसके बाद से अनुज अनुपमा को समझाने की कोशिश करता है कि शाह परिवार की वजह से अपना रिश्ता खराब मत करो.

वहीं आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अनुपमा और अनुज में शाह परिवार की वजह से अनबन हो जाएगी. अब आगे एपिसोड में दिखाया जाएगा कि कैसे अनुपमा इस मुसीबत से बाहर आएगी.

Bigg Boss 16 : प्रियंका की हरकतों के लिए सलमान खान ने डांटा, कहा- महानता की देवी

बिग बॉस 16 से अंकित गुप्ता बाहर हो चुके हैं लेकिन प्रियंका चहर चौधरी ने जो कदम उनके लिए उठाया है वो शायद अब तक किसी ने नहीं उठाया होगा इतने सालों में

सलमान खान ने पिछले दिनों प्रियंका की क्लास लगाई और उन्होंने उन्हें महानता की देवी कहा कि इतने सालों में ऐसा कोई कंटेस्टेंट नहीं आया है जिन्होंने ऐसा काम किया हो, लेकिन प्रियंका आप ऐसा किया हो लेकिन आप एकलौती हैं जो बिना अपने बारे में सोचें अंकित के बारे में इतना सोचा.

जब प्रियंका से सलमान खान ने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि मैं अपनी दोस्ती को खत्म नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने ऐसा किया, क्योंकि मैं अपनी पुरानी दोस्ती को खराब नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने ऐसा किया है.

दरअसल , प्रियंका ने अंकित को बचाने के लिए बटन नहीं दबाया है, जिसके बाद से प्रियंका को घरवाले भी पहले से ज्यादा अलग नजर से देखऩे लगे हैं, सलमान खान ने कहा कि इस महान देवी की पूजा करो. आगे सलमान ने कहा कि अगर आप किसी के बारे में इतना ज्यादा सोच रही है लेकिन अगर आपके साथ ऐसा कोई नहीं करेगा तो आपको कितनी तकलीफ होगी .

सलमान के इस बात पर प्रियंका ने कोई जवाब नहीं दिया. खैर घर में अंकित के जाने के बाद से खबर है की किसी नए सदस्य की एंट्री हो सकती है. खैर पूरे घरवालों को प्रियंका से सफाई चाहिए कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया.

 

मेरी उम्र 38 साल है मुझे अपने वैजाइना से स्मैल आती है, क्या मुझे डॉक्टर को दिखाना चाहिए?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल हैअविवाहित हूं. हमेशा तो नहीं लेकिन कभीकभी मुझे अपनी वैजाइना से स्मैल आती है. यूरिन के बाद वौश कर लेती हूं तो कोई गंध नहीं आती लेकिन वौश न करूं तो गंध आती है. क्या मुझेो डाक्टर को दिखाना चाहिए?

जवाब

अधिकतर लेडीज में यह देखा जाता है कि उन की वैजाइना से बदबू आती है. ऐसे में वे परेशान हो जाती हैं. इस में परेशान होने की जरूरत नहीं है. कई बार यह गंध पसीना और वैजाइनल डिस्चार्ज की वजह से भी हो सकती है. इसलिए इसे नौर्मल सम?ा जाना चाहिए.

वैजाइना को साफ करने के बाद यह समस्या दूर हो जाती है लेकिन कई मामलों में यह समस्या कोई बड़ी बीमारी की वजह से हो सकती है. अगर वैजाइना साफ करने के बाद भी स्मैल बनी रहती है तो ऐसी स्थिति में आप को तुरंत ही किसी गाइनीकोलौजिस्ट से जांच करवानी चाहिए.

यूनिफौर्म सिविल कोड: न यूनिफौर्म, न सिविल, न कोड, सिर्फ लौलीपौप होगा

विवाह, उत्तराधिकार और विवाह विच्छेद यानी तलाक के मसलों को हल करने के लिए यूनिफौर्म सिविल कोड को बनाने का शिगूफा लंबे समय से छोड़ा जा रहा है, जबकि इन मसलों को हल करने के लिए स्पैशल मैरिज एक्ट यानी विशेष विवाह कानून देश में 1954 से लागू है. ऐसे में यूनिफौर्म सिविल कोड की बात करना बेमानी है. जरूरत यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट को ही माना जाए और बाकी विवाह कानूनों की मान्यता खत्म कर दी जाए.

इस के बाद यूनिफौर्म सिविल कोड जैसे किसी कानून की जरूरत नहीं रहेगी. हाल के कुछ सालों में देश में जिस तरह से बिना किसी तैयारी के कानून बनाए और लागू किए जा रहे हैं उस से साफ यह लगता है कि यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी में भी कोई नया रास्ता नहीं होगा. मिसाल के तौर पर, कश्मीर में अनुच्छेद 370, कृषि कानून, सीएए यानी सिटिजन अमैंडमैंट एक्ट और एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर फौर सिटिजन को ले कर जिस तरह सरकार ने किया उस से स्पष्ट होता है कि यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी में न कुछ यूनिफौर्म होगा, न सिविल होगा, न कोड होगा बल्कि यह ढाक के तीन पात ही होगा. अगर यूनिफौर्म सिविल कोड बनता है तो उस में नया कुछ नहीं होगा. उस में सभी जातियों और धर्मों के विवाह कानून को जारी रखते हुए 2 बदलाव होंगे.

पहला, शादी के समय पहली पत्नी या पति या तो जिंदा न हो या दोनों के बीच कानूनन अलगाव हो चुका हो. दूसरा, तलाक या संबंध विच्छेद के बारे में यह कहा जाएगा कि इस का फैसला सिविल कोर्ट करेगी. जीएसटी को ले कर सरकार ने यही किया है. एक देश एक कानून के नाम पर जीएसटी कानून बना जिस में 10 तरह के अलगअलग नियम बना दिए गए. असल बात यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट में विवाह के लिए धार्मिक पक्ष को मान्यता नहीं दी गई है. इस की वजह से यूसीसी के जरिए इस कानून को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास किया जा रहा है. यूनिफौर्म सिविल कोड यूसीसी में विवाह के धार्मिक पक्ष को बचाने का काम होगा, सो, वह लौलीपौप बन कर रह जाएगा, यूनिफौर्म नहीं रहेगा.

जैसे, जीएसटी एक ही दर का एक टैक्स नहीं है. ऐसे में जरूरी यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट ही सब से उपयोगी होगा जिस में सभी जातियों और धर्मों के लिए एक सा नियमकानून होगा. यूसीसी को ले कर जिस तरह की कवायद उत्तराखंड की सरकार कर रही है उसे देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूसीसी के नाम पर सरकार क्या करने वाली है? 27 मार्च, 2022 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी बनाने के लिए 5 सदस्यीय समिति का गठन किया था.

समिति ने 6 माह के लंबे समय, चुनाव के कुछ समय पहले ही, के बाद यूसीसी पर रायशुमारी के लिए 8 सितंबर को वैबसाइट लौंच की. इस में लोगों से डाक और ईमेल के माध्यम से भी सु?ाव मांगे गए. इस समिति को लिखित रूप से मिले सु?ावों की संख्या भाजपा प्रचारतंत्र द्वारा लगभग साढ़े तीन लाख से ज्यादा बताई गई और दावा किया गया कि डाक, ईमेल और औनलाइन सु?ावों को मिला कर यह संख्या साढ़े चार लाख से ज्यादा है. लेकिन इन सु?ावों में क्या है, यह नहीं बताया गया. उस की अधिकृत साइट पर जो नंबर है वह 60,810 है. मुख्यमंत्री धामी ने समिति से 6 महीने में रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था. 6 माह में रिपोर्ट के नाम पर समिति केवल रायशुमारी के लिए वैबसाइट लौंच कर पाई. तय समय में यह समिति सरकार को रिपोर्ट नहीं दे पाई है.

इस में समिति से अधिक सरकार की गलती है. सरकार को यह समिति उत्तराखंड हाईकोर्ट के जस्टिस की अध्यक्षता में गठित करनी चाहिए थी. वह उत्तराखंड की जरूरतों को आसानी से सम?ा सकता और समिति का काम जल्द हो जाता. उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य जब यूसीसी समय पर नहीं बना पाए तो पूरे देश में इस का क्या हाल होगा, आसानी से सम?ा जा सकता है. इस समिति ने भी सु?ाव लेने के लिए बड़े कठिन नियम बना डाले. सु?ाव देने से पहले ही सु?ाव देने वाले को अपना पूरा कच्चा चिट्ठा देना था. खुद का नाम, मातापिता का नाम, ईमेल आईडी, पता, पते के प्रूफ की आईडी की कौपी, मोबाइल नंबर मांगा गया था और फिर ओटीपी भेज कर पुष्टि की गई.

कौन बेवकूफ इस सारी जहमत को इसलिए उठाएगा कि कोई दूसरा कैसे, कितनी शादियां करे. सु?ाव विवाह, तलाक, संपत्ति अधिकारों, विरासत, गोद लेनेदेने की प्रक्रिया और संरक्षण के अधिकारों के बारे में पूछे गए और हिंदुओं और मुसलिमों दोनों के कानूनों के बारे में सु?ाव मांगे गए. मजेदार बात यह है कि सु?ाव देने वाले का कच्चा चिट्ठा तो देसाई कमेटी ने मांगा पर देने वाले की धार्मिक संस्था का कच्चा चिट्ठा तक नहीं मांगा जबकि आग्रह सूचना में कहा गया है धार्मिक संस्था व राजनीति दल सु?ाव दें. धार्मिक संस्थाएं व राजनीतिक दल कल क्या करते हैं, यह कमेटी की पूछने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि यह कमेटी राजनीतिक हल्ला मचाने के लिए गठित की गई थी, किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए नहीं. उत्तराखंड ही नहीं, भाजपाशासित कई और राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी यह बात जोरशोर से उठाई गई. यही नहीं, इस को ले कर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘सीएए, धारा 370 और ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों के फैसले हो गए हैं, अब कौमन सिविल कोड की बारी है.’’ धारा 370 के बाद कश्मीर वैसा का वैसा और तीन तलाक के खिलाफ चंद मामले ही देशभर में दर्ज हुए हैं, जिस से साबित होता है कि दोनों कदम केवल कट्टर हिंदुओं को भरमाने के लिए ही हैं और यूसीसी भी वैसा ही है. इस कड़ी में अगला नाम गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का जुड़ गया. 29 अक्तूबर को मुख्यमंत्री ने कैबिनेट की बैठक में गुजरात में यूसीसी लागू करने के लिए एक समिति गठित करने का फैसला लिया. रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में समिति गठित कर दी गई. वहीं, हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इस का वादा किया कि विधानसभा चुनाव में जीत मिलने पर हिमाचल प्रदेश में यूसीसी को लागू किया जाएगा. इस के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जिस की सिफारिशों के आधार पर यूसीसी लागू किया जाएगा.

भाजपा के राज वाले 3 राज्य उत्तराखंड, गुजरात और हिमाचल में यूसीसी की बात केवल फाइलों तक ही सीमित है. चुनाव और कुछ खास मौकों पर एक तरह से भाजपा यूनिफौर्म सिविल कोड को ले कर हवा बनाती रहती है. सचाई यह है कि यूसीसी को ले कर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दिया था. इस में कहा गया कि केंद्र सरकार संसद में यूसीसी पर कोई कानून बनाने नहीं जा रही है. वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से यह याचिका दाखिल की गई थी जिस में उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेने, विवाह, तलाक, रखरखाव और गुजारा भत्ता को विनियमित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की गई थी. केंद्र सरकार को चाहिए कि यूसीसी की जगह पर नई कवायद करने के बजाय स्पैशल विवाह अधिनियम 1954 को समान रूप से सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य कर दे जिस से विवाह, जायदाद और उत्तराधिकार के मसले सुल?ाना आसान हो जाएगा. स्पैशल विवाह अधिनियम 1954 में वह सब है जो यूसीसी में जरूरत होगी और इस में पंडेपुजारी, मुल्ला, पादरी की जगह मजिस्ट्रेट ले लेते हैं.

यह धार्मिक गुर्गों को कतई स्वीकार न होगा. वास्तविकता में भाजपा क्यों नहीं लागू करना चाहती यूसीसी यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी लागू हो जाने से पूरे देश में शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे सभी सामाजिक मुद्दे धर्म और निजी कानून की जगह पर एकसमान कानून के हिसाब से तय होंगे. धर्म के आधार पर कोई अलग व्यवस्था नहीं होगी. इस का प्रभाव मुसलिम से कहीं अधिक हिंदुओं पर पड़ेगा. हिंदुओं में कुंडली मिलान से ले कर विवाह संपन्न कराने तक में ब्राह्मणों की व्यवस्था खत्म हो जाएगी. महिलाओं को समान अधिकार यानी बराबरी का दरजा मिल सकेगा. यही नहीं, हर तरह की समानता होने से जातीय विभेद कम होगा जिस से जाति और धर्म के नाम पर भाजपा की वोटबैंक की राजनीति असरदार नहीं रह जाएगी.

यही वे पेंच हैं जिन के कारण भाजपाई सरकार यूसीसी को ले कर कोई मसौदा नहीं बना पा रही है. वह यानी भाजपा केवल मुसलिम विरोध को हवा दे कर हिंदुओं को खुश रखने की कोशिश चुनावदरचुनाव करती है. यूसीसी भारतीय जनता पार्टी के मूल एजेंडे का प्रमुख हिस्सा है. भारतीय जनसंघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 1951 में की गई थी. उस के 3 मुख्य उद्देश्य थे. उन में कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना, अयोध्या में राममंदिर बनाना और देश में यूसीसी लागू करना. थोड़ी गहराई से देखा जाए तो यह एजेंडा भारतीय जनसंघ के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का है. 1984 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को केवल 2 सीटें मिलीं तो संघ ने भाजपा को अपने अनुसार चलने के लिए बाध्य कर दिया. संघ यानी आरएसएस को लग चुका था कि बिना हिंदुत्व के पार्टी का आगे बढ़ना संभव नहीं है. इस के बाद भाजपा को राममंदिर आंदोलन के लिए कमर कसनी पड़ी.

संघ को यह साफ लग रहा था कि बिना हिंदुत्व के भाजपा का जनाधार नहीं बढ़ेगा. राममंदिर की सीढि़यां चढ़ते हुए 5 साल के बाद भाजपा ने 1989 में लोकसभा चुनाव में वी पी सिंह को केंद्र में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया. केंद्र में सरकार का हिस्सा बनने के साथ ही साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में भाजपा ने अपनी सरकार बना ली. हिंदुत्व के मुद्दे पर मिली ताकत ने ही 1996 और 1998 में भाजपा ने सहयोगी दलों की मदद से केंद्र में सरकार बनाई. अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा की तरफ से देश के पहले प्रधानमंत्री बने. अटल सरकार सहयोगी दलों के साथ बनी थी, इस कारण वह आरएसएस के हिंदुत्व वाले एजेंडे को ले कर मुखर नहीं हो रही थी. आरएसएस का सारा दबाव यह था कि अटल सरकार अयोध्या में राममंदिर के लिए संसद में कानून बनाए. अटल बिहारी वाजपेयी जब इस के लिए तैयार नहीं हुए तो वहां से आरएसएस के मन में खटास आने लगी.

यही वजह थी कि 2004 के लोकसभा चुनाव में संघ और उस से जुड़े लोगों ने भाजपा को चुनाव जिताने में कोई मदद नहीं की. उस दौर के भाजपा के दोनों नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी संघ की नजर में अपना महत्त्व खो बैठे थे. लिहाजा, 10 साल भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई. 2009 के बाद भाजपा में नेताओं का पीढ़ी परिवर्तन शुरू हुआ. कट्टर हिंदू समर्थकों को पार्टी में महत्त्व दिया गया. भाजपा के तमाम मुलायम नेताओं को दरकिनार कर के कट्टर छवि रखने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया. इस के बाद संघ ने चुनाव जीतने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत से सरकार बनाई. 2017 में उत्तर प्रदेश में भी कट्टर छवि वाले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. संघ को इस बात की जल्दी थी कि उस के 3 प्रमुख मुद्दे पूरे हों. अयोध्या में राममंदिर बनाना, कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाना, साथ ही साथ राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक यानी सीएए पर काम करना यूसीसी बनाने की पहली सीढ़ी माना गया था पर जितनी आसानी से राममंदिर और अनुच्छेद 370 का मसला कानूनी दस्तावेजों में दिखा दिया गया यूसीसी को कानूनी बनाना उतना सरल नहीं. मसलन, यह भाजपा के लिए बैकफायर करेगा. इस कारण से यहां भाजपा फूंकफूंक कर अपने कदम रख रही है. भाजपा हर चुनाव के पहले इस की माला जपती है.

चुनाव खत्म होते ही भूलती है. प्रयोग के तौर पर उत्तराखंड और गुजरात में यह इस के मसौदे पर काम करते दिख रही है पर उस का यह काम पूरे बेमन से हो रहा है. चुनाव के बाद इसे बस्ते में डाल दिया जाएगा. विवाह बाजार और धर्म की दुकानदारी की रीढ़ है. सुप्रीम कोर्ट ने गेंद सरकार के पाले में डाली यूसीसी को ले कर कई जनहित याचिकाओं के याचिकाकर्त्ताओं ने विवाह, तलाक, भरणपोषण और गुजारा भत्ता (पूर्व पत्नी या पति को कानून द्वारा भुगतान किया जाने वाला धन) को विनियमित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की थी. याचिकाओं में तलाक के कानूनों के संबंध में विसंगतियों को दूर करने और उन्हें सभी नागरिकों के लिए एकसमान बनाने तथा बच्चों को गोद लेने एवं संरक्षकता के लिए समान दिशानिर्देश देने की मांग की गई थी.

न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले में केंद्र सरकार को कोई मार्गदर्शन नहीं दे सकता क्योंकि यह नीति का मामला है जिस का फैसला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को करना चाहिए. विधायिका को कानून पारित करने या वीटो करने की शक्ति है. विधि मंत्रालय ने विधि आयोग से सामान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और समुदायों को शासित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों की संवेदनशीलता, उन के गहन अध्ययन के आधार पर विचार करते हुए सिफारिशें करने का अनुरोध किया था. 21वें विधि आयोग ने अगस्त 2018 में परिवार कानून में सुधार शीर्षक से एक परामर्शपत्र जारी किया था लेकिन 21वें विधि आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में ही समाप्त हो गया. यूसीसी पूरे देश के लिए एकसमान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है. संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एकयूसीसी सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.

अनुच्छेद 44 संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में से एक है. अनुच्छेद 44 का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की अवधारणा को मजबूत करना है. संयुक्त परिवार की संपत्ति का सिस्टम खत्म यूसीसी से हिंदुओं का उत्तराधिकार कानून भी प्रभावित होगा. हिंदू विवाह और उत्तराधिकार कानून बदल जाएंगे. इस कानून के लागू होने के बाद से एक ही कानून से पूरे देश के रहने वालों को काम करना पड़ेगा. हिंदुओं पर अधिक प्रभाव यूसीसी को ले कर किसी भी सरकार ने कोई नियम नहीं बनाया है. आमतौर पर भाजपा के समर्थक हिंदुओं को यह लगता है कि यूसीसी से केवल मुसलमानों का नुकसान होगा. वे 4 शादियां और मनमानी तरह से तलाक नहीं ले पाएंगे. वे यह भूल जाते हैं कि यूसीसी लागू होने से सब से बड़ा नुकसान हिंदुओं और उन में भी खासकर ब्राह्मणों को होगा. इस की वजह यह है कि इस कानून के बाद हिंदू रीतिरिवाजों से होने वाली शादी का महत्त्व खत्म हो जाएगा. ब्राह्मणों को हिंदू रीतिरिवाजों से होने वाली शादियों में ही सब से अधिक कमाई करने का मौका मिलता है. स्पैशल मैरिज एक्ट में शादी ही नहीं, कुंडली और तमाम तरह के दोष दूर करने से होने वाला लाभ बंद हो जाएगा और शादियों में रोड़े अटकाने वाले दलाल मजिस्ट्रेटों के दफ्तरों के सामने मंडराते रहेंगे जो हिंदू जोड़ों से कहते हैं कि वे बिना गवाह शादी करा देंगे.

क्या है यूनिफौर्म सिविल कोड यूनीफौर्म सिविल कोड यानी की अवधारणा का विकास भारत में तब हुआ जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिस में अपराधों, सुबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया गया. उस रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई. ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निबटने वाले कानूनों की संख्या में वृद्धि ने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को बनाने लिए बी एन राव समिति का गठन किया. इन सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में एक विधेयक को अपनाया गया. हालांकि मुसलिम, ईसाई और पारसी लोगों के लिए अलगअलग व्यक्तिगत कानून थे. कानून में समरूपता लाने के लिए विभिन्न न्यायालयों ने अकसर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को एक यूसीसी सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए. सामान नागरिक संहिता बनाने का अर्थ होगा कि कोई भी किसी भी धर्म वाले से खुलेआम शादी कर सकेगा.

1985 के शाह बानो प्रकरण और 1995 में सरला मुदगल मुकदमा चर्चा में रहा जोकि बहुविवाह के मामलों और उस से संबंधित कानूनों के बीच विवाद से जुड़ा हुआ था. यह तर्क दिया जाता है कि ट्रिपल तलाक और बहुविवाह प्रथा एक महिला के सम्मान तथा उस के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल व क्रिमिनल मामलों में एक यूसीसी का पालन करते हैं, जैसे भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882, भागीदारी अधिनियम 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 इंडियन पीनल कोड, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड आदि. राज्यों ने कई कानूनों में संशोधन किए हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है. गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां यूसीसी लागू है. यूसीसी का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है. हर नागरिक पर लागू होगा यूनिफौर्म सिविल कोड यूसीसी विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी. परिणामस्वरूप, समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों. इस से भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को बल मिलेगा. इस से धार्मिक प्रथाओं के आधार पर अलगअलग नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिए एकसमान कानून बन जाएगा. यूसीसी के लागू होते ही वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिस से उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निबटा जा सकेगा. पर, इस से पंडों, मौलवियों, पादरियों की दुकानें बंद हो जाएंगी क्योंकि यूसीसी में सारी शादियां या तो मजिस्ट्रेटों द्वारा की जाएंगी या केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा अधिकृत मैरिज अफसरों द्वारा. सभी धार्मिक शादियों को तो अवैध करना होगा. इस का प्रभाव विभिन्न समुदायों के रीतिरिवाजों पर पड़ेगा.

यह भी एक गलत धारणा है कि हिंदू एकसमान कानून द्वारा शासित होते हैं. उत्तर में निकट संबंधियों के बीच विवाह वर्जित है लेकिन दक्षिण में इसे शुभ माना जाता है. पर्सनल लौ में एकरूपता का अभाव मुसलमानों और ईसाइयों के लिए भी सही है. संविधान द्वारा नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्थानीय रीतिरिवाजों को सुरक्षा दी गई है. व्यक्तिगत कानूनों की अत्यधिक विविधता के चलते किसी भी प्रकार की एकरूपता लाना कठिन हो जाता है. देश के विभिन्न समुदायों को एक मंच पर लाना कठिन काम है. यूसीसी में आदिवासियों पर भी वही कानून लागू होगा जो दिल्ली के हिंदू शहरियों पर लागू होता है. सचाई यह है कि यूसीसी की मांग केवल सांप्रदायिकता की राजनीति के लिए की जाती है. समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे हिंदूवाद के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखता है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है. ऐसे में यूसीसी लागू करना मुश्किल ही नहीं बेहद मुश्किल है. यूसीसी का पुराना राग जब 1930 में जवाहरलाल नेहरू ने यूसीसी का समर्थन किया तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा इस का विरोध किया गया. यूसीसी का अर्थ एक धर्म और पंथ निरपेक्ष (सैक्युलर) कानून होता है.

जो सभी धर्म और पंथ के लोगों पर समानरूप से लागू होता है. विश्व के जिन देशों में यह कानून लागू है उन में अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बंगलादेश, मलयेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश हैं. भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं. हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लिए एक व्यक्तिगत कानून है, जबकि मुसलमानों और ईसाइयों के लिए अपनेअपने कानून हैं. मुसलमानों का कानून शरीयत पर आधारित है. अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं. भारत में यह विवाद ब्रिटिशकाल से ही चला आ रहा है. अंगरेज मुसलिम समुदाय के निजी कानूनों में बदलाव कर उस से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे. 1882 में हैस्ंिटग्स योजना में शरीयत कानून लागू हो गया था. समान नागरिकता कानून उस वक्त कमजोर पड़ने लगा जब सैक्यूलरों ने मुसलिम तलाक और विवाह कानून को लागू कर दिया.

1929 में, जमीयत अल उलेमा ने बाल विवाह रोकने के खिलाफ मुसलमानों को अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने की अपील की. इस बड़े अवज्ञा आंदोलन का अंत उस सम?ाते के बाद हुआ जिस के तहत मुसलिम जजों को मुसलिम शादियों को तोड़ने की अनुमति दी गई. क्या कहा था डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संविधान को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले डाक्टर बी आर अंबेडकर ने कहा, ‘‘मैं व्यक्तिगत रूप से सम?ा नहीं पा रहा हूं कि किसी धर्म और मजहब को यह विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार क्यों दिया जाना चाहिए कि वह लोगों के निजी, पारिवारिक मसले तय करे. ऐसे में तो धर्म जीवन के प्रत्येक पक्ष में हस्तक्षेप करेगा और विधायिका को उस क्षेत्र पर अतिक्रमण से रोकेगा. यह स्वतंत्रता हमें क्या करने के लिए मिली है? हमारी सामाजिक व्यवस्था असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी है. यह स्वतंत्रता हमें इसलिए मिली है कि हम इस सामाजिक व्यवस्था में जहां हमारे मौलिक अधिकारों के साथ विरोध है वहांवहां सुधार कर सकें.

’’ वे यूसीसी से सहमत थे. यूसीसी का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है. इस में नीतिनिर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा. सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार यूसीसी लागू करने की दिशा में केंद्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है. इस के बाद भी सरकारें इस को लागू करने से डर रही हैं. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता शब्द को इस में जगह दी गई. इस से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत के समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर किसी भी भेदभाव को समाप्त करना है. लेकिन वर्तमान समय तक यूसीसी के लागू न हो पाने के कारण भारत में एक बड़ा वर्ग अभी भी धार्मिक कानूनों की वजह से अपने अधिकारों से वंचित है. सामाजिक और राजनीतिक विरोध से उपजे सवाल यूनिफौर्म सिविल कोड को लागू करने में कदमकदम पर बड़ी चुनौतियां हैं. एक तरफ जहां अल्पसंख्यक समुदाय नागरिक संहिता को अनुच्छेद 25 का हनन मानता है,

वहीं इस के समर्थक यूसीसी की कमी को अनुच्छेद 14 का अपमान मानते हैं. सवाल उठता है कि क्या सांस्कृतिक विविधता से इस हद तक सम?ाता किया जा सकता है कि समानता के प्रति हमारा आग्रह क्षेत्रीय अखंडता के लिए ही खतरा बन जाए? क्या एक एकीकृत राष्ट्र को ‘समानता’ की इतनी जरूरत है कि हम विविधता की खूबसूरती की परवा ही न करें? दूसरी तरफ सवाल यह भी है कि अगर हम सदियों से अनेकता में एकता का नारा लगाते आ रहे हैं तो कानून में एकरूपता से आपत्ति क्यों? क्या एक संविधान वाले इस देश में लोगों के निजी मामलों में भी एक कानून नहीं होना चाहिए? मुसलिम विरोध से उपजा हिंदुत्व का समर्थन हिंदुत्व के समर्थक इस कानून का समर्थन सिर्फ इस वजह से कर रहे हैं क्योंकि मुसलिम इस का विरोध कर रहे हैं. मुसलिम समाज यूसीसी का विरोध करते संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देता है. वह कहता है कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है. इसलिए सभी पर समान कानून थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा.

मुसलिमों के मुताबिक उन के निजी कानून उन की धार्मिक आस्था पर आधारित हैं, इसलिए यूसीसी लागू कर उन के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए. मुसलिम विद्वानों के मुताबिक शरीया कानून 1400 साल पुराना है, क्योंकि यह कानून कुरान और पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं पर आधारित है. यह उन की आस्था का विषय है. मुसलिमों को लगता है कि उन की धार्मिक आजादी धीरेधीरे उन से छीनने की कोशिश की जा रही है. मुसलमानों का विरोध करते वक्त हिंदुत्व के समर्थक यह नहीं सम?ा पा रहे कि केवल मुसलिम ही नहीं, हिंदू कानून भी खत्म हो जाएंगे. हिंदू धर्म में विवाह को एक संस्कार माना जाता है, वहीं इसलाम, ईसाइयों और पारसियों के रीतिरिवाज भी अलगअलग हैं. लिहाजा हर वर्ग के विवाह और उत्तराधिकार कानून पर असर पड़ेगा. 1948 में हिंदू कोड बिल संविधान सभा में लाया गया तब देशभर में इस बिल का जबरदस्त विरोध हुआ था. बिल को हिंदू संस्कृति तथा धर्म पर हमला करार दिया गया था. सरकार इस कदर दबाव में आ गई कि तत्कालीन कानून मंत्री भीमराव अंबेडकर को पद से इस्तीफा देना पड़ा. यही कारण है कि कोई भी राजनीतिक दल यूसीसी के मुद्दे पर जोखिम नहीं लेना चाहता. औरतों को मिलने वाली आजादी पचेगी नहीं भाजपा को यूसीसी के लागू होने से धार्मिक आधार पर महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव और गैरबराबरी के भाव को रोका जा सकेगा. सब से बड़ी आजादी तो उन मुसलिम और हिंदू महिलाओं को मिल सकेगी जो बहुविवाह और हलाला जैसी प्रथाओं का शिकार होती हैं. किसी भी सामाजिक सुधार का प्रभाव धर्म पर पड़ता है. जब राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई थी तो उन का धार्मिक विरोध हुआ था.

जब तक धर्म के भीतर की कुरीतियां खत्म नहीं होंगी, कोई सुधार नहीं हो सकता. हलाला और मुताह यानी कौन्ट्रैक्ट मैरिज जैसी कुरीतियों से बाहर निकलने के लिए धर्म का विरोध सहना पड़ेगा. किसी बदलाव को बहुत दिन रोका नहीं जा सकता. आज ईरान जैसे देश में परदाप्रथा का विरोध हो रहा है. इसी तरह कल जनता ही ऐसी कुप्रथाओं के खिलाफ खड़ी हो जाएगी. यूनीफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी का विरोध करने वालों का यह तर्क बेमानी है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. यदि चाहते हैं कि यूसीसी बने तो धार्मिक स्वतंत्रता का ध्यान रखा जाए. जबकि यूसीसी का अर्थ है- ‘भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एकसमान कानून चाहे वह किसी भी धर्म और जाति का क्यों न हो.’ यूसीसी में शादी, तलाक और जमीनजायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा. यूसीसी सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होने के लिए एक देश एक नियम का सा होगा.

पिता के दोस्त पर आया बेटी का दिल

रिश्तों को झकझोर कर रख देने वाली यह कहानी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले से जुड़ी हुई है.
मिर्जापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जमालपुर थाना, इसी थाने से 4 किलोमीटर की दूरी पर है जयपट्टी कलां गांव. इस गांव में वैसे तो सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन यहां पटेल, बियार और दलित बिरादरी के लोग ज्यादा हैं.

जमालपुर थाना क्षेत्र के जयपट्टी कलां गांव में संतोष कुमार भारती का परिवार रहता है. परिवार में पत्नी सोनी देवी, 2 बेटियां और एक बेटा वीरेंद्र कुमार हैं. मेहनतमजदूरी व थोड़ीबहुत बंटाई पर खेती ले कर संतोष अपने परिवार का भरणपोषण कर लेता था.अचानक एक दिन ऐसा आया कि संतोष कुमार भारती (47) अचानक से गायब हो गया. काफी खोजबीन के बाद भी जब कोई पता नहीं चला तो संतोष के बेटे वीरेंद्र कुमार ने जमालपुर थाने में पिता की गुमशुदगी दर्ज करवाई. यह बात मंगलवार 4 अक्तूबर, 2022 की है.गुमशुदगी दर्ज होते ही पुलिस ने संतोष कुमार की खोजबीन शुरू कर दी. एसएचओ मनोज कुमार संतोष के घर जा कर परिवार के लोगों से पूछताछ की. घर वालों ने उन्हें बताया कि वह सुबह दिशामैदान के लिए निकले थे.

दोपहर तक उन का पता न चलने पर परिवार के लोगों का रोरो कर बुरा हाल हो गया था तो दूसरी ओर गांव वाले भी संतोष के अचानक गायब होने को ले कर हैरान हो गए थे. गांव में तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थीं. जितने मुंह उतनी बातें होने लगी थीं.सभी लोग सुबह से ही खोजबीन कर थकहार चुके थे कि अचानक संतोष के बेटे वीरेंद्र कुमार का ध्यान अपने पिता के दोस्त रविंद्र गौड़ की तरफ गया तो वह बिना कोई समय गंवाए रविंद्र गौड़ के घर की ओर बढ़ चला.तभी रास्ते में उस का रविंद्र से सामना हो गया. रविंद्र को देख वीरेंद्र तपाक से पूछ बैठा ‘‘चाचा, मेरे पिताजी को आप ने देखा है क्या? सुबह से ही वह गायब हैं, शाम होने को है, लेकिन अभी तक उन का कोई पता नहीं चल सका है. ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ है.’’
वीरेंद्र अभी अपनी बात पूरी कर भी नहीं पाया था कि रविंद्र घबराई हुई आवाज में बोला, ‘‘ना ना.. न..नहीं, मैं ने तो नहीं देखा उन्हें. हो सकता हो कहीं गए हों.’’

रविंद्र इतना कहने के साथ नजरें छिपाने लगा था. रविंद्र के मुंह से इतना सुनने के बाद वीरेंद्र अपने घर की ओर लौटने तो लगा था, लेकिन न जाने क्यों उस के मन में विचार आया कि आखिरकार रविंद्र जो उस के पिता का लंगोटिया दोस्त है, वह घबराया हुआ क्यों है?मन में उठ रही आशंकाओं के हिलोरें जब शांत नहीं हुईं तो वीरेंद्र घर आने के बाद सीधे जमालपुर थाने पहुंच गया.थाने पहुंच कर उस ने अपने पिता की गुमशुदगी और पिता के दोस्त रविंद्र के बदले हुए व्यवहार के बारे में जानकारी देते हुए मन में उठ रही आशंकाओं के बारे में एसएचओ मनोज कुमार को अवगत कराया.

उस ने उन से गुजारिश की कि एक बार वह अपने स्तर से रविंद्र से पूछताछ करें तो शायद उस के पिता के बारे में कुछ जानकारी मिल जाए.वीरेंद्र की बात सुनने के बाद एसएचओ को भी कुछ लगा कि एक बार रविंद्र से पूछताछ कर लेने में क्या हर्ज है. इस के बाद बिना देर किए वह अपने हमराही जवानों के साथ रविंद्र गौड़ के घर पहुंच गए.वह घर पर ही मिल गया. रविंद्र से पूछताछ के दौरान उन्हें ऐसा कुछ लगा जैसे कि रविंद्र उन से जरूर कुछ छिपा रहा है. क्योंकि पूछताछ के दौरान न केवल उस की आवाज लड़खड़ा रही थी, बल्कि वह नजरें भी चुरा रहा था.

इंसपेक्टर मनोज कुमार रविंद्र गौड़ से सख्ती से कुछ पूछताछ करते कि इस के पहले ही मौके पर काफी संख्या में गांव वालों की जुटी भीड़ और पुलिस जवानों की नजर रविंद्र के पुराने शौचालय के अंडरग्राउंड टैंक के पास गई.वहां भारी मात्रा में गिट्टी आदि बिखरी हुई थी. लग रहा था जैसे गिट्टी पुराने टैंक में भी डाली गई हो. जिसे देख सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि यह सब कुछ समय पहले ही किया गया है.
एसएचओ मनोज कुमार ने रविंद्र गौड़ से पुराने शौचालय के पास बिखरी हुई गिट्टी के बारे में पूछा तो रविंद्र के माथे पर मानो पसीना नजर आने लगा. वह पसीने से न केवल तरबतर हो गया था, बल्कि थरथर कांपने भी लगा था. उस के मुंह से शब्द ही नहीं निकल पा रहे थे.

एसएचओ रविंद्र गौड़ को अपने साथ थाने ले आए. थाने में आते ही एसएचओ ने रविंद्र से दोबारा पूछताछ शुरू की. पहले तो रविंद्र उन्हें टालमटोल करते हुए गुमराह करने का प्रयास करने लगा. लेकिन जैसे ही उन्होंने अपना पुलिसिया अंदाज दिखाया तो वह टूट गया और रट्टू तोते की भांति सारी सच्चाई उगल दी.

रविंद्र गौड़ ने जो बताया उसे सुन कर सभी हैरान हो उठे. आननफानन में एसएचओ मनोज कुमार रविंद्र को ले कर उस के घर के पीछे पुराने शौचालय की टंकी के पास पहुंचे. फिर उस की निशानदेही पर उन्होंने शौचालय की टंकी से संतोष कुमार की लाश बरामद कर ली.रविंद्र ने उस की हत्या करने के बाद शौचालय के पुराने टैंक में लाश को छिपाने के बाद ऊपर से गिट्टियां डाल दी थीं, ताकि किसी को इस का पता न चल सके और शौचालय की बदबू में लाश होने का भी किसी को अंदाजा न हो.

लेकिन कहते हैं न कि अपराध ज्यादा दिन छिपाए नहीं छिपता है, उस का भांडा फूटता ही है. ऐसा ही कुछ रविंद्र के साथ भी हुआ. मौके पर रविंद्र के मकान के शौचालय के टैंक से गायब संतोष कुमार की लाश मिलने की खबर पूरे गांव में न केवल जंगल की आग की तरह फैल गई थी, बल्कि मौके पर मौजूद लोग भी आक्रोशित हो गए थे और उन्होंने रविंद्र व पुलिस पर पथराव कर दिया.इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज कर किसी तरह भीड़ को तितरबितर किया. पथराव में रविंद्र के अलावा एसआई रामज्ञान यादव, कांस्टेबल विपिन, सत्येंद्र, विजय, नीरज आदि भी घायल हो गए.

ग्रामीणों के उग्र तेवर देख पुलिस को न केवल मौके पर भारी संख्या में आसपास के थानों की पुलिस फोर्स और पीएसी बुलानी पड़ी, बल्कि कड़ी मशक्कत के बाद किसी प्रकार आरोपी रविंद्र को पुलिस कस्टडी में ले कर उसे व घायल पुलिस वालों को अस्पताल भिजवाया. जहां से उसे प्राथमिक उपचार के बाद ट्रामा सेंटर वाराणसी रेफर कर दिया गया था. जबकि पुलिसकर्मियों को प्राथमिक उपचार के बाद घर भेज दिया गया.
सूचना मिलने पर सीओ (चुनार) रामानंद राय, एएसपी (औपरेशन) महेश अत्री भी मौकामुआयना करने के साथसाथ मौके पर डटे रहे. कुछ घंटों बाद एसपी (मिर्जापुर) संतोष कुमार मिश्रा ने भी घटनास्थल का निरीक्षण करते हुए हालात के बारे में पूरी जानकारी हासिल की.

इस के बाद पुलिस ने वीरेंद्र कुमार की तरफ से रविंद्र के खिलाफ आईपीसी की धारा 302/201/120बी और 3(2)(वी) एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.रविंद्र गौड़ से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के बेटे गौतम गौड़ (19) और मृतक की बेटी सुमन (20) को भी गिरफ्तार कर लिया.एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने 6 अक्तूबर, 2022 को पुलिस लाइन सभागार में मीडिया से बातचीत के दौरान मामले का खुलासा करते हुए बताया कि संतोष कुमार भारती की हत्या में उस की सगी बेटी सुमन, उस के प्रेमी रविंद्र प्रसाद गौड़ और रविंद्र के बेटे गौतम गौड़ का हाथ है. यानी 40 वर्षीय रविंद्र प्रसाद गौड़ मृतक की बेटी सुमन से प्यार करता था.

प्रैसवार्ता में तीनों आरोपियों ने संतोष कुमार की हत्या करने की बात स्वीकार करते हुए उस की हत्या से जुड़ी जो कहानी बताई, वह हर किसी को सोचने पर मजबूर कर रही थी.रिश्तों की बुनियाद को झकझोर कर रख देने वाली वह खौफनाक कहानी कुछ इस प्रकार है—उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के जयपट्टी कलां गांव निवासी संतोष कुमार भारती (47) का अपना एक भरापूरा परिवार था. परिवार में बीवी, एक बेटे सहित 2 बेटियां थीं.बात आज से कोई 30 साल पहले की है. जयपट्टी कलां गांव में रविंद्र प्रसाद गौड़ अलीनगर, जनपद चंदौली से आ कर बस गया था. उस ने यहां गांव में एक आटा चक्की लगा ली. इस के साथ ही उस ने झाड़फूंक का भी काम शुरू कर दिया.

गांव में कारोबार और आमदनी बढ़ने के साथ रविंद्र गौड़ ने पैसे का लेनदेन भी शुरू कर दिया था. वक्तजरूरत पड़ने पर वह लोगों की मदद कर दिया करता था. बदले में वह सूद वसूला करता था. इस से उस क ी पहचान गांव में और भी मजबूत हो गई थी.आटा चक्की पर आतेजाते समय रविंद्र की मुलाकात संतोष कुमार से हो गई थी. इस के बाद उन दोनों की दोस्ती भी गहरी हो गई थी, क्योंकि दोनों शराब पीने के लती थे. सो दोनों की खूब पटने लगी थी.

रविंद्र संतोष के घर भी आनेजाने लगा था. खानेपीने से ले कर वक्तजरूरत पड़ने पर वह संतोष की गाहेबगाहे मदद भी कर दिया करता था.संतोष के घर बराबर आनेजाने के दौरान रविंद्र न केवल उस के पूरे परिवार से घुलमिल गया था, बल्कि संतोष के परिवार पर रविंद्र की बुरी नजर भी टिक गई थी. खासकर के वह संतोष की पत्नी सोनी के प्रति बुरा भाव रखने लगा था, लेकिन इस में जब वह सफल नहीं हो पाया तो उस ने अपनी आंखें संतोष की सयानी होती बेटी सुमन पर गड़ा दी थीं.

20 वर्षीया सुमन उम्र के ऐसे पड़ाव पर पहुंच चुकी थी, जिस के गदराए हुए बदन को देख कर रविंद्र अपना आपा खो बैठता था. लेकिन उसे ऐसा कोई अवसर नहीं मिल पा रहा था जब वह अपने मन की बात सुमन से कह सके. अपनी उम्र से आधी उम्र की बेटी समान सुमन को पाने की ख्वाहिशों में वह इस कदर पागल और दीवाना हो गया था कि अकसर संतोष के घर किसी न किसी बहाने पहुंच जाया करता था.
कभी पानी के बहाने तो कभी अन्य बहानों के जरिए वह सुमन को छू लिया करता था. पहले तो सुमन उसे नजरअंदाज करती रही, क्योंकि वह उसे चाचा कहती थी. सुमन उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुकी थी, जो हर इशारों और स्पर्श को समझ सकती थी.

एक दिन की बात है, घर में आटा न होने पर सुमन रविंद्र की आटा चक्की पर आटा लेने के लिए पहुंच गई थी, जहां संयोग से रविंद्र ही अकेला था.आटा लेने के दौरान जैसे ही सुमन नीचे की ओर झुकी थी कि उस का गदराया हुआ बदन और उस के उभारों को देख कर रविंद्र के तनबदन में मानो आग सी लग गई.
आटा देने के बहाने उस ने सुमन के हाथों को अपने हाथों में थाम लिया, लेकिन सुमन झट से उस का हाथ झटक कर हंसते हुए अपने घर को लौट गई थी.रविंद्र की हर हरकत सुमन के दिमाग में घूमती रही और वह मंदमंद मुसकराती रही. उसे लगने लगा था कि रविंद्र उस की ओर आकर्षित है.
इशारों ही इशारों और हाथों के स्पर्श से शुरू हुआ प्रेम प्रसंग का यह खेल अब छिपछिप कर मिलने तक पहुंच चुका था. दोनों की मोबाइल पर काफी देर तक बातें भी होने लगी थीं.

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता है. कुछ ऐसा ही रविंद्र और सुमन के साथ भी हुआ. रविंद्र जहां अकसर संतोष के घर आ धमकता था तो सुमन भी आटा इत्यादि के बहाने रविंद्र की चक्की पर पहुंच जाया करती थी.भले ही सुमन रविंद्र से आधे उम्र की थी, लेकिन उन दोनों की हरकतों के चर्चे अब पूरे गांव में होने लगे थे.

आखिरकार होते भी क्यों न, रविंद्र शराबी होने के साथसाथ मनचला भी था. गांव की महिलाओं को वह बुरी नजरों से देखता था, जिस से औरतें उसे अय्याश कहा करती थीं.गांव में रविंद्र और सुमन को ले क र होने वाले चर्चे की कानोंकान खबर जब संतोष और उस के परिवार के लोगों को हुई तो वे भी सकते में पड़ गए.
एक रात संतोष की पत्नी सोनी ने पति से कहा, ‘‘ऐ जी सुन रहे हैं, अब हमारी बेटी सुमन सयानी हो गई है. रविंद्र का हमारे घर आनाजाना हमें भी बुरा लगता है. गांव के लोग तो उलटीसीधी बातें कर ही रहे हैं. क्यों न कोई अच्छा सा घरवर देख कर बिटिया की शादी कर हम गंगा नहा लें.’’

मां और पिता के बीच हो रही इस बातचीत को सुमन ने भी उस रात सुन लिया था. और जैसे ही सुबह हुई, उस ने चुपके से मोबाइल से रविंद्र को यह बात बता दी.उसी दिन शाम ढलने के बाद दिशामैदान जाने के बहाने खेतों की ओर निकली सुमन रविंद्र से मिली और बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘आप जल्दी से कुछ करो नहीं तो पापा हमारी शादीतय कर देंगे, फिर हम दोनों नहीं मिल पाएंगे.’’सुमन की बात पूरी हो पाती, इस के पहले ही रविंद्र उसे अपनी बाहों में भर कर सीने से लगाते हुए बोला, ‘‘नहीं जानू, ऐसा मैं हरगिज नहीं होने दूंगा. तुम्हारे पिता कुछ करें, उस के पहले ही मैं कुछ सोचता हूं.’’

‘‘…तो सोचिए, कब सोचेंगे, जब पिताजी हमारी शादी पक्की कर देंगे तब?’’ इतना कह कर सुमन रविंद्र से लिपट गई थी.सुमन को गले लगा कर रविंद्र उस का माथा चूमते हुए बोला, ‘‘आज सोच कर बताता हूं.’’
इतना कह कर वह अपने घर लौट गया और सुमन अपने घर की ओर लौट आई.घर लौटने के बाद रविंद्र ने संतोष को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने की ठान ली. अपनी इस योजना से उस ने सुमन को भी अवगत करा दिया. अपने से ज्यादा उम्र के पिता समान प्रेमी के कहने पर सुमन भी इस योजना का हिस्सा बन गई.इस के बाद रविंद्र अपनी योजना को अंजाम देने के लिए मौके की तलाश में जुट गया. आखिरकार वह दिन भी करीब आ गया.

4 अक्तूबर, 2022 की सुबह संतोष जब दिशामैदान से घर लौट रहा था तभी रविंद्र ने संतोष को चाय पीने के बहाने अपने घर बुला लिया. रविंद्र की गहरी साजिश से अंजान संतोष रविंद्र के घर पहुंच गया. संतोष जैसे ही रविंद्र के घर गया तो मौका मिलने पर रविंद्र ने उस के सिर पर लोहे की रौड से हमला कर उस की हत्याकर दी.संतोष की हत्या करने के बाद रविंद्र ने अपने बेटे गौतम की मदद से शव को घर के पीछे पुराने शौचालय के टैंक में छिपा दिया. किसी को पता न चल सके, इसलिए वहां ढेर सारी गिट्टी भी डाल
दी थी.

टैंक में लाश छिपा कर रविंद्र बेफिक्र हो गया था. वह संतोष के गायब होने के बाद पुलिस और उस के परिवार की गतिविधियों पर नजर गड़ाए हुए था. लेकिन उस का यह राज ज्यादा दिनों तक छिप नहीं सका और आखिरकार वह अपने ही बुने हुए जाल में फंस कर पुलिस के हत्थे चढ़ गया.उस की निशानदेही पर पुलिस ने वारदात में प्रयुक्त लोहे की रौड (गैंती) बरामद कर ली.बहरहाल, घटना का खुलासा होने के बाद पुलिस ने मृतक की बेटी सुमन, उस के प्रेमी रविंद्र गौड़ और और उस के बेटे गौतम गौड़ को संतोष कुमार भारती की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर आवश्यक काररवाई के बाद सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज
दिया गया.

दूसरी ओर एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने संतोष कुमार भारती की हत्या का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल सीओ (चुनार) रामानंद राय, एसएचओ (जमालपुर) मनोज कुमार की टीम को
10 हजार रुपए का पुरस्कार दे कर पीठ थपथपाई.हत्यारोपी रविंद्र गौड़ की करतूतों की जहां पूरे गांव में खूब थूथू हो रही थी तो वहीं पिता की हत्या के आरोप में जेल की सलाखों तक पहुंची बेटी की करतूतों को ले कर भी उस के घरपरिवार के लोग शर्मसार हैं.

जिस बेटी को ब्याह कर उस के जीवन को संवारने का सपना मांबाप ने पाल रखा था, वह तो चकनाचूर हुआ ही, मां की मांग का सिंदूर भी उजड़ गया.

भगवन, तेरी कृपा बरसती रहे

मुद्दा: हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई

मैडिकल पढ़ाई का कचरा हिंदी की आड़ ले कर किए जाने का विमोचन हो चुका है. भगवा गैंग नहीं चाहता कि अब और काबिल डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक पैदा हों क्योंकि उस का काम तो अर्धशिक्षितों से चलता है. इस फैसले के चलते मैडिकल की डिग्री हलकी होने जा रही है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस की कोई पूछपरख नहीं रह जाएगी. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मरजी से राज्य के मैडिकल कालेजों में प्रथम वर्ष से पढ़ाई अब हिंदी में होगी. इस बाबत छात्रों ने कोई आंदोलन नहीं किया था, कोई धरना प्रदर्शन नहीं किया था.

इस फैसले से मैडिकल की पढ़ाई हिंदी में पढ़ने और पढ़ाने वाले दोनों भौचक हैं कि ‘हे राम यह क्या हो गया.’ भौचक आम लोग भी हैं और दवा बेचने वाले कैमिस्ट भी कि सीएम साहब तो कमाल पर कमाल किए जा रहे हैं क्योंकि डाक्टरों को भी शिवराज सिंह ने निर्देश दिए हैं कि वे दवाइयों वाला परचा यानी प्रिसक्रप्शन हिंदी में लिखें और शुरू में आरएक्स की जगह श्री हरि लिखें. कुछ डाक्टरों ने प्रयोग के तौर पर इस हिदायत पर अमल भी कर डाला तो उन के लिखे परचे सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए जिन का खासा मजाक हिंदी में मैडिकल की पढ़ाई की तरह उड़ रहा है. सरकारी गंभीरता लाने के लिए बीती 16 अक्तूबर के सारे अखबारों में एक पेज के रंगीन विज्ञापन पर करोड़ों रुपए खर्चे गए.

इस विज्ञापन में लिखा गया था कि- देश में पहली बार हिंदी की मैडिकल की पढ़ाई का शुभारंभ, प्रथम वर्ष की हिंदी पुस्तकों का विमोचन माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री भारत सरकार अमित शाह के मुख्य आतिथ्य में. विज्ञापन के दाईं ओर मैडिकल की 3 हिंदी किताबें मुसकरा रही थीं जिन के नाम हिंदी टाइप में थे- ‘मैडिकल बायो कैमिस्ट्री’, ‘एनाटौमी’ और ‘मैडिकल फिजियोलौजी.’ किताबों की बाईं तरफ एक फोटो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुसकराता फोटो चस्पां था. विमोचन भाषण में अमित शाह पूरे जोश से बोले कि आज का दिन शिक्षा के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा. 8 क्षेत्रीय भाषाओं में भी तकनीकी और मैडिकल की पढ़ाई की घोषणा भी अमित शाह ने की. इधर इस दिन प्रदेशभर के सरकारी कालेजों को निर्देश थे कि भले ही इतवार हो लेकिन पूरे स्टाफ और छात्रों का आना कंपलसरी है. जैसे चुनाव के वक्त में मतदाताओं को कंबल, स्वैटर, कुकर, साड़ी और नकदी व शराब जैसे आइटमों का अर्पणतर्पण कर वोट लिए जाते हैं, समोसे, पोहे का लालच उस का मिनी एडिशन था.

इधर सोशल मीडिया से ले कर सड़कोंचौराहों तक यह बहस परवान चढ़ने लगी थी कि मैडिकल की पढ़ाई हिंदी में कैसे मुमकिन है और इस का तुक क्या? यह आस्था और तर्क की लड़ाई थी जिस में आस्था सूत्र क्रमांक एक मोदी है तो मुमकिन है कि आगे सारे तर्क ढह गए. क्या हैं तर्क आस्था से कुछ भी साबित किया जा सकता है या नहीं, इस से परे मध्य प्रदेश में चर्चा आम रही कि क्या भाषा से वैचारिक और शैक्षणिक दरिद्रता दूर की जा सकती है? इस सवाल का जवाब लोग, खासतौर से भक्त, चाह कर भी भाषा के हक में नहीं दे पाए. हर कोई बेचारगी से मैडिकल शिक्षा का बंटाधार होते देख रहा है. इस पीड़ा को सोशल मीडिया पर सा?ा भी किया गया. आलोक पुतुल नाम के एक यूजर ने ट्वीट किया- ‘‘एक हिंदी होती है लड़की घास पर घूम रही है एक और हिंदी होती है तरुणी तृण पर विचरण कर रही है एक और हिंदी है जिस में मध्य प्रदेश में चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई होने वाली है.’’

आलोक ने बाकायदा सुबूत भी पेश किया कि यह पढ़ाई कैसे होगी. उन्होंने लंग्स के चैप्टर का यह हिस्सा शेयर किया, ‘‘लंग्स (रुहृत्रस्) या पल्मोज (क्करुरूहृहृश्वस्) रेस्पिरेशन (क्त्रश्वस्क्कढ्ढक्त्र्नञ्जढ्ढहृहृ) के प्रिंसिपल और्गेंस (क्कक्त्रढ्ढहृष्टढ्ढक्क्नरु हृक्त्रत्र्नहृस्) हैं.’’ ऐसे दोतीन वाक्य और पढ़ कर किसी का भी सिर वैसे ही घूम और चकरा सकता है जैसे दक्षिण भारत के किसी शहर में तमिल, तेलुगु, कन्नड़ या मलयालम के शब्द पढ़ कर किसी हिंदीभाषी का ज्ञान पनाह मांगने लगता है. एक यूजर प्रेम प्रकाश ने ट्वीट किया- ‘‘नई हिंदी तो कमाल की है. गर्ल्स आर घूमिंग औन द ग्रास.’’ शुभम दीक्षित ने चुटकी ली, गर्ल ग्रास पर घूम रही है. परम नाम के यूजर ने लिखा, ‘‘हिंदी प्रेम में सब सत्यानाश कर देंगे बेवकूफ नेतामंत्री.’’

मनोज अरोरा ने भविष्य के हिंदी डाक्टरों की भाषा कुछ यों बताई,

‘‘एक हिंदी माध्यम चिकित्सक : देखिए, आप के हृदय की धमनियां वसा की अधिकता के कारण संकुचित हो गई हैं, इसलिए शल्य चिकित्सा कर के रक्त प्रवाह को सुचारु करना होगा. हरि बोल.’’ इस हंसीमजाक से परे सुशील यादव ने मुद्दे की बात लिखी कि भाजपा ने सोच रखा है कि बस प्रत्येक स्तर पर छात्रों का बंटाधार करना है. सुशील की बात को विस्तार दिया राजकुमार स्वामी ने यह कहते कि हमारे देश में मेरे जैसे मूर्खों की कोई कमी नहीं है और भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जिसे मूर्खों को भी मूर्ख बनाने में महारत हासिल है. लंग्स को इंग्लिश (द्यह्वठ्ठद्दह्य) के बजाय हिंदी में पढ़ने से क्या राष्ट्रवादी बनते हैं. अलग और नया क्या भगवा गैंग नहीं चाहता कि अब और काबिल डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक पैदा हों क्योंकि उस का काम तो अर्धशिक्षित कांवडि़यों से चलता है.

ये लोग तो किसी काम के नहीं, लिहाजा पढ़ाई में भी टांग फंसाओ जिस से डाक्टर जब डिग्री ले कर निकले तो इलाज के दौरान मरीज से वही कहे जो ट्वीट में मनोज अरोरा ने बताया है. इतना जरूर होना तय है कि नया डाक्टर मैडिकल भाषा में मरीज को नहीं सम?ा पाएगा. उस की हालत वैसी ही होगी जैसे इंग्लिश स्कूलों में पढ़ रहे हिंदीभाषी बच्चों की होती है कि न तो वे इंग्लिश ढंग से बोल और लिख पाते और न ही हिंदी. पर यहां एक और बड़ा गड़बड़?ाला है जिस में हिंदी के नाम पर छात्रों को तकनीकी उच्चारण भर रटने को कहा जा रहा है.

मसलन, पैंक्रियाज हिंदी में लिख लो, उस की स्पैलिंग याद न कर पाओ तो कोई बात नहीं. इस से दिक्कत यह होगी, भोपाल के एक प्राइवेट मैडिकल कालेज में 5वां सैमेस्टर पढ़ रहे सुयश बताते हैं, कि छात्र फिर शायद ही कभी पैंक्रियाज की स्पैलिंग याद कर पाएगा और इसे हिंदी में भी सही नहीं लिख पाएगा. यही छात्र जब डाक्टर बन कर यदि सैमिनारों में विदेश जाएगा, रिसर्च पेपर लिखेगा, थीसिस लिखेगा तो इंग्लिश में लिखने में उसे पैंक्रियाज की स्पैलिंग कौन बताएगा क्योंकि उस ने इंग्लिश के पैंक्रियाज को नहीं पढ़ा. हिंदी के पैंक्रियाज को पढ़ा है. साफ है कि तकनीकी शब्द हिंदी में पढ़ने से खुद छात्रों को कई दुश्वारियां ?ोलना पड़ेंगी और सरल कुछ नहीं होगा. नीट की तैयारी कर रहे अथर्व चौहान की मानें तो अब सभी छात्र 12वीं तक इंग्लिश मीडियम से पढ़ कर आ रहे हैं, इसलिए उन की इंग्लिश अच्छी होती है.

वे इस उम्मीद के साथ एमबीबीएस में दाखिला लेते हैं कि कालेज की पढ़ाई के दौरान उन की इंग्लिश और सुधरेगी. भोपाल के पीपल्स मैडिकल कालेज से डाक्टरी की डिग्री 3 साल पहले ले चुकी आकांक्षा एक नामी अस्पताल में सेवाएं दे रही हैं. उन के मुताबिक, मैडिकल में आने वाला किसी भी परिवेश, मसलन शहरी हो या देहाती (जो कि न के बराबर आते हैं) के छात्र कालेज में आ कर 2-3 महीने में मैडिकल पढ़ाई के कठिन शब्द, जिन्हें आप वैज्ञानिक या टैक्निकल कह रहे हैं, सम?ाने लगता है और धड़ल्ले से उन की स्पैलिंग भी लिखने लगता है. यही किसी भी मैडिकल छात्र का सब से कठिन समय होता है. इस के बाद उसे पढ़ाई में कोई दिक्कत पेश नहीं आती. अब ऐसे में हिंदी थोपी जाना छात्रों को कन्फ्यूज ही करेगा, जिस से वे पिछड़ेंगे क्योंकि तमाम मैडिकल साहित्य और किताबें इंग्लिश में हैं.

सरकार की मंशा मैडिकल की पढ़ाई में इंग्लिश की अहमियत कम करने की नहीं है? दरअसल मैडिकल की डिग्री की अहमियत कम करने की साजिश रची जा रही है. यह एजेंडा सौ साल से हिंदू महासभाइयों का भी रहा है. शिवराज सिंह चौहान इसी पुरातनी एजेंडे के तहत मैडिकल की पढ़ाई में हिंदी लाए हैं. उन के मौजूदा आका और पूर्वज दोनों इस फैसले से खुश हैं और अब तो सभी भाजपा शासित राज्यों में यही होता दिख रहा है. बचपन से ही आरएसएस से जुड़े होने के नाते शिवराज सिंह भी बेहतर जानते होंगे कि आरएसएस के दिग्गजों का अधिकतर साहित्य इंग्लिश में रचा गया है. उन का हिंदीप्रेम महज एक दिखावा और छलावा है. गुरुजी के नाम से मशहूर संघ के दूसरे सरसंघ संचालक एम एस गोलवलकर की किताब ‘बंच औफ थौट्स’ यानी विचारों का गुच्छा जो हिंदूवादियों के लिए श्रीमदभगवद्गीता से कम नहीं, इंग्लिश में है. इस किताब का मकसद यह था कि संघ के काम, गतिविधियां आम लोगों तक पहुंचें.

1966 में लिखी इस किताब को तब चंद इंग्लिश जानने वाले ही सम?ा पाए थे. इसी तरह विनायक दामोदर सावरकर ने भी अपने लेखन में इंग्लिश का इस्तेमाल ज्यादा किया है. शायद इसलिए कि ब्रिटिश शासक उन के ज्ञान का लोहा मानते देश छोड़ जाएं. और तो और, 2 भागों में उन की जीवनी लिखने वाले विक्रम संपत ने भी ‘इकौज फ्रौम अ फौरगोटन पास्ट’ और ‘अ कंटेस्टेड लिगैसी’ किताबें इंग्लिश में लिखीं और ये महज 2 और 4 साल पहले ही प्रकाशित हुई हैं. इंग्लिश में हिंदू एकता का सपना देखने वाले इन कट्टरपंथियों का दोहरापन तो उस वक्त भी उजागर हुआ था जब आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और गोलवलकर की जिंदगी पर आधारित कौमिक्स ‘अमर चित्रकथाएं’ का प्रकाशन इंग्लिश में शुरू किया गया था. बाद में भी हेडगेवार की जिंदगी से ताल्लुक रखती किताबें इंग्लिश में छपीं. मध्य प्रदेश सरकार ने तो यह भी तय कर लिया है कि एमबीबीएस के प्रथम वर्ष के छात्रों को कोलकाता मैडिकल कालेज से मैडिकल की पढ़ाई इंग्लिश में करने वाले डाक्टर हेडगेवार की जीवनी भी पढ़ाई जाए.

शायद ही कोई बता पाए कि एक हिंदूवादी नेता की जीवनी की इलाज में क्या उपयोगिता है या होगी. हिंदी में मैडिकल की पढ़ाई के होहल्ले में यह बात भी दब कर रह गई कि इन छात्रों को पौराणिक काल के एक वैद्य सुश्रुत की जानकारी देने को भी हिंदी पाठ्यक्रम उच्च समिति पहली ही बैठक में प्रस्ताव पास कर चुकी है. इसे एलोपैथी के आयुर्वेदीकरण के तौर पर भी देखा जाना चाहिए. मुमकिन है अगले सालों में चरक सुषेण और अश्विनी कुमारों सहित बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण भी इन किताबों में दिखाई दें.

तब मैडिकल की पढ़ाई और इलाज के माने नीम हकीमी ही रह जाएंगे. बात जहां तक हिंदी में पढ़ाई की कठिनाइयों की है तो इस पर भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज के एक सीनियर प्रोफैसर नाम उजागर न करने की शर्त पर कहते हैं, ‘‘हम कैसे इन्हें हिंदी में पढ़ाएंगे जब कि हम खुद पढ़ाई वाली हिंदी नहीं जानते. हिंदी हमारे व्यवहार और बोलचाल की भाषा है, पढ़ाई और व्यवसाय की नहीं है और नई किताबों में है क्या, वही उच्चारण अकेला है. इस से कुछ हासिल होने वाला नहीं. हम इस बेतुके फैसले से हैरान और निराश हैं. यह एक बेकार का प्रोपगंडा है जिस का उड़ता मखौल सीएम को देखना हो तो कभी वेश बदल कर कैंपस या होस्टल आ जाएं. उन्हें ज्ञान प्राप्त हो जाएगा कि मैडिकल की डिग्री कितनी हलकी होने जा रही है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस की कोई पूछपरख नहीं रह जाएगी.’’ परचे के चर्चे इन प्रोफैसर साहब के मुताबिक, असल दिक्कत तो तब पेश आएगी जब ये हिंदी वाले डाक्टर परचे भी हिंदी में लिखेंगे, जिन्हें पढ़ने में कैमिस्ट को पसीने छूट जाने हैं क्योंकि उन्होंने ऐसी हिंदी नहीं पढ़ी है.

पैरासिटामोल तो बहुत कौमन दवा हो गई है लेकिन मेटामार्फिन से बनी दवाइयां अभी आम नहीं हुई हैं और न कभी होंगी क्योंकि उन की रेंज बहुत बड़ी है. यही हाल एंटीबायोटिक्स का है. हिंदी मीडियम में पढ़े डाक्टर उन के ब्रैंड नेम कैसे लिखेंगे जो हजारों में होते हैं. कई दवाओं के नामों में बहुत बारीक अंतर होता है. ऐसे में एक अक्षर या मात्रा की गलती मरीज को भारी पड़ सकती है. परचे के शुरू में श्री हरि लिखे जाने पर भी लोगों ने एतराज जताया कि यह तो हद है, कोई मुसलमान, ईसाई, जैन या बौद्ध डाक्टर क्यों श्री हरि लिखे, उसे भी अपने आराध्य का नाम लिखने की छूट होनी चाहिए और फिर यह भी एक बेतुकी और पूर्वाग्रही बात है कि देवीदेवताओं का नाम लिखा जाए. इस से किसी को कोई फायदा नहीं. भगवान के नाम से परचा लिखना डाक्टरों की काबिलीयत पर उंगली उठाना है. इस से तो अच्छा है कि बीमारों को अस्पताल के बजाय मंदिरों में ले जाया जाए. हरि एक ?ाटके में ठीक कर देंगे.

पहले की नाकामी से न सीखी सरकार मैडिकल क्षेत्र में मध्य प्रदेश सरकार ने हिंदी बैल्ट के वोटरों को लुभाने के लिए हिंदी में पढ़ाई शुरू कर दी है पर उम्मीद नहीं कि परिणाम अच्छे आएंगे क्योंकि इस से पहले वह इंजीनियरिग की पढ़ाई को हिंदी में करा कर असफल परिणाम भोग चुकी है. उस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा और उस पूरे अभियान की हवा निकल गई. हुआ यह कि हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए छात्र ही इच्छुक नहीं हुए. इसी साल प्रस्तावित 150 हिंदी इंजीनियरिंग सीटों में से 5 फीसदी से भी कम सीटें हिंदी माध्यम के लिए भर पाईं. यह निराशाजनक आंकड़ा रहा. यहां तक कि शिक्षक भी टैक्निकल विषय को हिंदी में पढ़ाने के तरीके से चिंतित नजर आए.

शिक्षकों और शिक्षा प्रशासकों में यह भावना है कि इंजीनियरिंग विषयों को हिंदी में पढ़ाने का कदम जल्दबाजी में उठाया गया. पुस्तकों का अनुवाद तो किया गया पर अधिकांश शिक्षक परेशान हैं क्योंकि उन्होंने इंग्लिश माध्यम में अपनी डिग्री प्राप्त की है. कुल मिला कर फर्स्ट ईयर के लिए 20 इंजीनियरिंग किताबों का हिंदी में अनुवाद किया गया जिन में यूजी कक्षाओं के लिए 9 और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए 11 किताबें शामिल हैं. मध्य प्रदेश सरकार अपनी नाकामियों से सीखने को तैयार नहीं. अब मैडिकल को ले कर फिर से वही हल्ला मचाया गया है. 16 अक्तूबर से राज्य में एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में शुरू तो हो गई पर अब देखा जाना है कि हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई में कितने छात्र दिलचस्पी दिखाते हैं क्योंकि इस से पहले इंजीनियरिंग क्षेत्र में सरकारी कोशिशों की हार सब देख ही चुके हैं.

एनर्जैटिक अफसर: सरकारी अफिसर को लेकर क्या सलाह दी थी

सरकारी दफ्तरों में काम करने का अपना ही मजा है और आजकल तो हम जैसे क्लर्कों के पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे. आखिर नए आए साहब ने खुद के साथ हमें भी तो सरकारी माल उड़ाने की खुली छूट दे रखी है. जिस तरह पुलिस को किस्मकिस्म के चोरों से वास्ता पड़ता है, उसी तरह मु?ो भी सरकारी नौकरी में किस्मकिस्म के अफसरों से वास्ता पड़ा है पर उन सब में से आज भी मु?ो कोई याद है तो बस, एक वे. अन्य का तो औफिस में होना या न होना एकजैसा था. बहुत कम ऐसे अफसर होते हैं जो सचमुच औफिसों में काम करने आते हैं और जातेजाते मेरे जैसों के जेहन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं. वाह, क्या साहब थे वे. उन के चेहरे पर साहबी का क्या नूर था.

आज भी जब उन को याद करता हूं तो कलेजा मुंह को नहीं, मुंह से बाहर आ जाता है. तब उसे मुंह के रास्ते फिर उस की जगह बैठाना पड़ता है. आज भी उन के हौसले को दाद दिए नहीं रह पाता. कितने निडर, कितने साहसी. मानो उन के ऊपर तक संबंध न हों बल्कि ऊपर तक वे ही हों. जो कर दिया, सो कर दिया. कोई उन से पूछने वाला नहीं, कोई उन से जू?ाने वाला नहीं. कई बार तो उन की निडर हरकतें देख कर ऐसा लगता था जैसे वे हर जन्म में साहब ही बने हों. जिस के पास जन्मजन्म का अफसरी अनुभव हो वही ऐसे बोल्ड काम कर सकता है, मित्रो. उन के चेहरे से ही नहीं, उन के रंगढंग से ही नहीं, उन के तो अंगअंग से ही साहबी टपकती थी.

उन के आगे शेष तो अफसरी के नाम पर कलंक थे. जब वे हमारे औफिस में तबादला हो कर आए तो उन के आने से पहले ही यह खबर आ गई कि वे बहुत एनर्जैटिक हैं, बहुत शक्तिशाली हैं, बहुत फुर्तीले हैं, बहुत दिलेर हैं, बहुत भूखे शेर हैं, बहुत साहसी हैं, बहुत दुस्साहसिक हैं, बहुत जोरदार हैं, गजब के चिड़ीमार हैं… और भी पता नहीं क्याक्या. तब ऐसे बहुआयामी अफसर को देखने के लिए मन अधीर हो उठा था. अब आएगा मजा ऐसे अफसर के साथ काम करने का, नहीं तो आज तक तो बस जितने भी अफसरों से पाला पड़ा, उन्होंने सरकारी बजट पर फूंकफूंक कर ही कदम रखवाए. सरकारी बजट मनमाफिक किसी ने फूंकने न दिया. मित्रो, वह सरकारी पैसा ही क्या जो मनमाफिक फूंका न जाए. उन के जौइन करने के बाद उन की एक ?ालक पाते ही सचमुच उन में उस से भी अधिक गुण पाए जो उन के आने से पहले औफिस में आ विराजे थे. वे तो अपने गुणों से भी दस कदम आगे थे.

उन्होंने जौइन करते ही मेरी काबिलीयत को सूंघ लिया था जैसे कुत्ता किसी बम को सूंघ लेता है. तब वे शतप्रतिशत आश्वस्त हो गए कि पूरे औफिस में उन के काम का कोई बंदा है तो केवल मैं ही. शेष तो यहां घास काटने वाले हैं, साहब की थाली का बचा चाटने वाले हैं. जौइन करते ही उन्होंने मु?ो अपनी केबिन में सादर बुलाया. मु?ो सिर से पांव तक निहारने के बाद बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. तुम मु?ो पा कर धन्य हुए और मैं तुम्हें पा कर धन्य हुआ.’’ ‘‘यह तो हम दोनों का परम सौभाग्य है, सर. सोने की पहचान जौहरी ही तो कर सकता है.’’ ‘‘गुड, खूब जमेगा रंग जब मिल कर काम करेंगे मैं, तुम और तीसरा कोई नहीं. हम औफिस को बहुत आगे तक ले जाएंगे.’’

‘‘बस सर, आप की कृपा रहनी चाहिए मु?ा पर. फिर देखिए, औफिस को कहां ले जाता हूं. आप हुकुम कीजिए सर.’’ ‘‘तो पहले मेरी कुरसीटेबल नई लाइए. और हां, ये परदे भी सारे बदल दीजिए. मु?ो इस रंग के परदों से नफरत ही नहीं, सख्त नफरत है. औफिस के लिए नई क्रौकरी लाइए. मेरे औफिस के सारे सोफे बदलवाइए. औफिस में नया पेंट करवाइए, शेड मैं बता दूंगा. उस शेड के दीवारों पर होने से औफिस में पौजिटिव एनर्जी का संचार होता है. और हां, सब से पहले मेरे आवास का सारा सामान बदलवाइए. वहां मेरे लिए कितने नौकर रखे हैं?’’ ‘‘सर, 2 हैं.’’

‘‘औफिस में कितने चपरासी और चौकीदार हैं?’’ ‘‘मु?ो छोड़ 10, सर.’’ ‘‘तो उन में से 5 मेरे आवास पर भेज दीजिए अभी. वहां टौयलेट कितने हैं?’’ ‘‘2, सर.’’ ‘‘वहां 2 की जगह 4 बनवाइए ताकि टौयलेट आने पर हमें परेशान न होना पड़े, क्योंकि साहब परेशान तो…’’ ‘‘पर सर…’’ ‘‘क्या औफिस में बजट की तंगी है? अपनी सरकार है. डौंट वरी, किसकिस प्रोजैक्ट में कितना बचा है ठिकाने लगाने को?’’ ‘‘सर, औफिस में कुल 5 प्रोजैक्ट हैं. 4 प्रोजैक्ट का पैसा तो लगभग खत्म हो चुका है पर एक प्रोजैक्ट का एक भी पैसा उन्होंने छुआ भी नहीं था.’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘क्योंकि इस प्रोजैक्ट में खाने का स्कोप नहीं था.’’ ‘‘स्कोप तो कहीं भी नहीं होते, दोस्त, निकालने पड़ते हैं. उस में कितना पैसा है?’’ ‘‘सर, यही कोई 20 लाख रुपए.’’ ‘‘गुड, तो ऐसा करो, उस प्रोजैक्ट का सारा पैसा मेरे आवास पर लगा दो.

और हां, काम उसी को देना जो कमीशन सब से अधिक दे. जिस मिशन में कमीशन न हो, उसे मैं सपने में भी हाथ नहीं लगाता.’’ ‘‘पर सर…’’ ‘‘जवाब हम देंगे. तुम फिक्र न करो. हम हैं न. और हां, खुद की भी कोई चाहीअनचाही जरूरत हो तो उसे भी बे?ि?ाक… खुश रहा करो यार और हमारे पास गाड़ी कौन सी है?’’ ‘‘जिप्सी, सर.’’ ‘‘कब का मौडल है?’’ ‘‘2012 का, सर.’’ ‘‘ओह, नो. इतनी पुरानी गाड़ी, देखो, कुछ और करने से पहले लग्जरी मौडल का केस बना कर मंत्रीजी को भेजो. मेरे बच्चे स्कूल छोटी गाड़ी में बिलकुल नहीं जाते. सरकारी माल अपना सम?ा करो यार. यही ईमानदारी है. सरकारी अफसर को खुल कर जीना चाहिए. खुल कर जियो और खुल कर जीने दो.

यही है सरकारी नौकरी का रास्ता. अपनी तो लाइफ का मोटो यही है दोस्त, बाकी तुम जानो. हमारी तो जनता को समर्पित मामूली सी सेवा बस इतनी भर है.’’ ‘‘जी सर, आप सचमुच ग्रेट हो, सर,’’ यह कह कर मैं ने उन के चरण छू लिए. सेवानिवृत्त होने के बाद भी इस एनर्जैटिक अफसर की स्मृति को शतशत नमन है.

विंटर स्पेशल : ऐसे रखें अपनी त्वचा का ख्याल

मौसम के साथ त्वचा की आवश्यकताएं भी बदल जाती है. सर्दियों में चलने वाली सर्द हवाएं हमारी त्वचा से नमी छीन कर उसे रुखा और बेजान बना देती है. ऐसे में त्वचा को खुश्की से बचाने व उसे कमनीय बनाए रखने के लिए हमें अपनी त्वचा का खास खयाल रखना जरूरी है.

अपनाएं ये उपाय

सर्दियों मे धूप बहुत भली लगती है. इससे शरीर को विटामिन-डी भी मिलता है, परंतु धूप में मौजूद अल्ट्रा वायलेट किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचाती है, जिससे त्वचा खुश्क होने लगती है और रंग भी सांवला हो जाता है, इसलिए धूप में जाने से पहले सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल अवश्य करें.

दिन में दो बार क्लीजिंग मिल्क से त्वचा की सफाई करें, इसके बाद किसी अच्छे मौइस्चराइजिंग साबुन या फेस वाश से चेहरे धोएं. मौइस्चराइजिंग साबुन त्वचा को अतिरिक्त नमी प्रदान करेगा. ध्यान रखें कि सर्दियों में साबुन से चेहरा न धोएं. इससे चेहरे पर रूखापन बढ़ जाएगा.

आंखों के चारों ओर की त्वचा पर मुंह धोने के बाद किसी अच्छी कंपनी की अंडर आई क्रीम का इस्तेमाल करें. सर्दियों में आई जैल की बजाय अंडर आई क्रीम ही उपयुक्त होगी.

सर्दियों में होंठों की सुरक्षा के लिए वैसलीन या किसी अच्छे लिपबाम का प्रयोग करें. आजकल बाजार में मौइस्चराइजरयुक्त लिपस्टिक मौजूद है, आप इनका भी इस्तेमाल कर सकती हैं, इनसे होंठ मुलायम रहते हैं.

रात को सोने से पहले बादाम के तेल, क्रीम या फिर किसी नरिशिंग क्रीम से चेहरे की मालिश करें. रात को सोते समय नारियल या जैतून के तेल से हाथों व पैरों के खुले हिस्से पर मालिश करें. हर किस्म की त्वचा पर इन दिनों मालिश जरूरी है.

त्वचा की देखभाल

इस मौसम में त्वचा की नियमित देखभाल जरूरी है. सप्ताह में दो बार नीचे दिए गए फेस पैक लगाएं. ये हर किस्म की त्वचा के लिए लाभकारी है.

एक चम्मच बेसन, आधा चम्मच हल्दी और एक चम्मच मलाई में कुछ बूंदें रोगन की डालें. दूध मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. चेहरा साफ कर इसे लगाएं. बीस मिनट बाद धो दें.

एक चम्मच ओटमील, कुछ बूंद नींबू का रस और तीन चम्मच दूध मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. इसे चेहरे व गर्दन पर लगाएं. पंद्रह मिनट के बाद पानी से साफ कर लें.

एक अंडे की जर्दी, एक चम्मच दूध का पाउडर, एक चम्मच सूजी, एक चम्मच शहद और दही मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बनाएं. चेहरे पर लगाकर सुखाएं, फिर मलकर धो ले.

एक चम्मच शहद मे एक चम्मच दूध डालकर अच्छी तरह मिलाएं. चेहरे एवं गलें पर लगाएं. सूखने पर धो दें.

त्वचा अधिक खुश्क हो तो फेस पैक लगाने से पहले चेहरे पर कुछ बूंद बादाम के तेल की लगा लें और साथ ही फेस पैक हटाने के बाद मौइस्चराइजर लगाना न भूलें.

गर्म ठंडे जल से स्नान करें

पहले गर्म जल से स्नान करना चाहिए. इसके बाद ठंडे जल से स्नान करने से त्वचा व महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों को उत्तेजना प्राप्त होती है. सर्दियों के मौसम में इस तरह के स्नान के बेहद ही फायदे हैं. पहले गर्म फिर ठंडे जल स्नान से फोस्ट बाइट, थर्मल अटिकिरीया,एटोपिक डरमेटाइटिस में बहुत लाभ मिलता है.

सर्दी के कारण पूरे शरीर पर खुश्की आ जाती है. इससे बचने के लिए नहाने के पानी में दो चमच गिल्सरीन या कुछ बूंदें नारियल के तेल की डाल दें. नहाने के बाद शरीर पर कोई अच्छा बौडी लोशन लगाएं. इससे त्वचा खुश्क नहीं होगी. इन दिनों शरीर पर पाउडर का इस्तेमाल न करें.

त्वचा को कोमल व कांतिमय बनाने के लिए घर पर ही बनाएं यह मौइस्चराइजर

¾ कप गुलाबजल में ¼ छोटा चम्मच गिल्सरीन, 1 छोटा चम्मच सिरका और एक चौथाई छोटा चम्मच शहद मिलाकर बोतल में भरकर रख लें. इसे नियमित रूप से क्लीजिंग के बाद लगाएं.

एक बड़ी चम्मच मिल्क क्रीम में कुछ बूंद गिल्सरीन, एक चौथाई चम्मच कैस्टर औयल और कुछ बूंद गुलाबजल अच्छी तरह मिलाएं. इसे रोजाना रात में सोने से पहले चेहरे, गर्दन व हाथों में लगाएं और सुबह ठंडे पानी से चेहरा साफ कर लें.

इन उपायों के अलावा सर्दियों मे हरी सब्जियों और ताजे फलों को अपने भोजन में अवश्य शामिल करें. इसके अलावा सूखे मेवे एवं मूंगफली का भी सेवन करें. दिनभर में कम से कम 7 से 8 ग्लास पानी पिये. ये आपकी त्वचा को चमक प्रदान करता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें