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Manohar Kahaniya: नफरत की आग में खाक हुए रिश्ते

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी शहर में एक बड़ी आबादी वाला मोहल्ला है पुरोहिताना. यह कोतवाली थाना अंतर्गत आता है. इसी मोहल्ले में गुड्डू खटीक अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी विनीता के अलावा एक बेटा करन तथा बेटी कोमल थी.

सरस्वती बालिका इंटर कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से मांबाप ने इजाजत नहीं दी.

कोमल के घर से 2 घर बाद 25 वर्षीय करन गोस्वामी का घर था. वह अपनी मां पिंकी तथा भाई रौकी के साथ रहता था. उस के पिता प्रेमपाल की मौत हो चुकी थी. करन प्राइवेट नौकरी करता था और ठाठबाट से रहता था.

पड़ोसी होने के नाते कोमल के भाई करन खटीक व करन गोस्वामी में दोस्ती थी. दोनों साथ उठतेबैठते और बोलतेबतियाते थे. करन गोस्वामी का दोस्त के घर आनाजाना लगा रहता था. करन गोस्वामी जब भी करन खटीक के घर जाता, उस की मुलाकात कोमल से भी होती थी. कभीकभार उस से बातचीत भी हो जाती थी.

बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा तो उन के दिलों में प्यार पनपने लगा. करन की आंखों के रास्ते कोमल उस के दिल में समा चुकी थी.

कोमल बनसंवर कर घर से निकलती थी. करन तिरछी नजरों से उसे रोज देखा करता था. उस की नजरों से ही पता चलता था कि वह उसे चाहता है. करन का तिरछी नजरों से निहारना कोमल को अच्छा लगता था. करन के प्यार का एहसास कोमल के दिल को छू गया था.

एक शाम कोमल बाजार जा रही थी, तभी सिंधिया तिराहे के पास करन गोस्वामी मिल गया. औपचारिक बातचीत के बाद करन ने कहा, ‘‘कोमल, मेरे मन में बहुत दिनों से एक बात घूम रही है. मौका न मिलने की वजह से वह बात मैं तुम से कह नहीं सका. आज मैं तुम से वह बात कह देना चाहता हूं. तुम मुझे हनुमान मंदिर के पास मिलो.’’

उस की बात सुन कर कोमल समझ रही थी कि वह क्या कहना चाहता है. फिर भी वह नासमझ बनते हुए बोली, ‘‘ऐसी क्या बात है करन, जो तुम मुझे अलग में बताना चाहते हो. फिर भी तुम कहते हो तो मैं हनुमान मंदिर के पास मिलती हूं.’’

कुछ देर बाद दोनों हनुमान मंदिर पहुंच गए. चबूतरे पर दोनों आमनेसामने बैठ गए. लेकिन करन की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अपने मन की बात उस से कहे. तभी कोमल बोली, ‘‘करन, तुम कुछ कहने के लिए मुझे यहां लाए थे. बताओ, क्या बात है?’’

करन ने हिम्मत जुटा कर उस की नजरों से नजरें मिला कर कहा, ‘‘कोमल, तुम मेरे दिल में रचबस गई हो. तुम्हारा यह सुंदर सलोना चेहरा हमेशा मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है. अब तुम्हारे बिना नहीं रहा जाता.’’

करन की बातें सुन कर कोमल चहक कर बोली, ‘‘करन, मैं भी तुम से प्यार करती हूं. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या कोमल?’’ करन ने मायूस हो कर पूछा.

कोमल गंभीर हो कर बोली, ‘‘करन, तुम जानते ही हो कि मेरी और तुम्हारी जाति अलग है. इस वजह से यह रिश्ता कभी नहीं हो सकता. अगर हम ने कोशिश की तो पूरा समाज हमारे खिलाफ हो जाएगा.’’

करन ने कोमल का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोमल, मैं तुम्हारे प्यार में पागल हूं. तुम्हारे लिए मैं किसी से भी टकराने को तैयार हूं.’’

करन का हौसला देख कर कोमल की हिम्मत बढ़ गई. उस ने मुसकराते हुए प्यार के इस रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी.

इस के बाद कोमल और करन का प्यार दिन दूना और रात चौगुना बढ़ने लगा. करन की आवाजाही भी दोस्त के घर

बढ़ गई. वह कोमल से फोन पर भी घंटों बतियाने लगा.

कोई काम न होने के बावजूद करन के आनेजाने से कोमल की मां विनीता को शक होने लगा. एक दिन करन ने कोमल के दरवाजे पर दस्तक दी तो उस की मां ने दरवाजा खोला. सामने करन को देख कर उस ने कहा, ‘‘करन, तुम्हारा हमारे यहां बेमतलब आनाजाना ठीक नहीं है. हमारे घर सयानी बेटी है, लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’’

करन समझ गया कि कोमल की मां विनीता को शक हो गया है, इसलिए वह वापस चला गया.

कोमल को मां का यह व्यवहार पसंद नहीं आया. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मम्मी, करन के साथ तुम्हें इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए था.’’

रात में कोमल ने करन को फोन किया कि मां ने उस के साथ जो किया, वह उसे अच्छा नहीं लगा. अब वह काफी परेशान है. करन ने उसे समझाया कि वह मिलने का कोई न कोई रास्ता निकाल लेगा, इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं.

अब वे देर रात को फोन पर बतियाने लगे थे. लेकिन एक दिन कोमल के भाई करन खटीक ने रात में कोमल को मोबाइल फोन पर बातें करते सुन लिया तो उस का माथा ठनका. करन ने उस के हाथ से मोबाइल छीन कर देखा तो वह जिस नंबर पर बात कर रही थी, वह उस के दोस्त करन गोस्वामी का था.

पहले तो उसे केवल शक था, पर अब विश्वास हो गया कि दोस्त ने उस के साथ दगा किया है.

करन गोस्वामी के प्रति उस के मन में नफरत पैदा होने लगी. सुबह को उस ने यह बात अपनी मां को बताई तो घर वालों की नजरें चौकस हो गईं. सभी कोमल पर निगाह रखने लगे.

लेकिन शायद उन्हें यह बात पता नहीं थी कि प्यार पर जितना पहरा बिठाया जाता है. वह उतना ही बढ़ता जाता है.

एक शाम विनीता बाजार से घर वापस आई तो घर पर कोमल नहीं थी. विनीता को समझते देर नहीं लगी कि कोमल करन से मिलने गई होगी. परेशान विनीता घर में चहलकदमी कर ही रही थी कि उस का बेटा करन खटीक आ गया. उसे जब पता चला कि बहन घर पर नहीं है तो वह उसे ढूंढने निकल गया.

ढूंढतेढूंढते वह प्राइमरी स्कूल के पीछे पहुंचा. वहां उस ने कोमल को करन गोस्वामी से बातें करते देखा. बहन को दोस्त के साथ देख उस का खून खौल उठा. उस ने लपक कर करन गोस्वामी का गिरेबान पकड़ लिया और गालियां देते हुए बोला, ‘‘मादर… तेरी मां की… तेरी ये हिम्मत कि मेरी इज्जत पर हाथ डाले.’’

करन गोस्वामी बोला, ‘‘दोस्त, मैं कोमल से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘दोस्त है, इसलिए आखिरी चेतावनी दे कर छोड़ रहा हूं. आइंदा फिर कभी इस से मिला तो मैं तुझे जिंदा ही जमीन में गाड़ दूंगा.’’ करन खटीक ने धमकाया.

इस के बाद वह बहन कोमल को घसीटता हुआ घर ले आया और मां से बोला, ‘‘संभालोे इसे, वरना ये जान से जाएगी.’’

भाई के इस व्यवहार से कोमल का मन बागी हो उठा. उस ने तय कर लिया कि वह करन के साथ ही ब्याह करेगी. उस की वजह से घर में तनाव रहने लगा. करन खटीक को लगा कि कहीं कोमल परिवार की बदनामी का कारण न बन जाए, इसलिए वह उस की शादी करने की सोचने लगा.

कोमल को जब पता चला कि उस के लिए रिश्ता तलाशा जा रहा है तो वह बागी हो गई.

अब कोमल की जिंदगी एकदम नीरस हो गई. कोमल की शादी के बारे में करन गोस्वामी को पता चला तो वह भी परेशान हो उठा. उस ने कोमल के भाई को फोन कर के कहा कि वह दोस्ती को रिश्ते में बदलना चाहता है.

तब करन खटीक ने उसे डांटते हुए कहा कि ऐसा हरगिज नहीं हो सकता. इस बारे में वह उसे आइंदा फोन न करे, वरना अच्छा नहीं होगा.

करन गोस्वामी ने अपने घर वालों को कोमल से शादी करने के लिए राजी कर लिया था, लेकिन कोमल के घर वाले नहीं मान रहे थे. कोमल का भाई व चाचा शादी का सख्त विरोध कर रहे थे. करन ने भी तय कर लिया था कि कुछ भी हो वह कोमल को नहीं भूल सकता.

इधर कोमल ने भी अपने घर वालों से साफ कह दिया था कि वह शादी करेगी तो करन से वरना कुंवारी ही रहेगी.

कोमल की इन बातों से विनीता सहम जाती. उसे डर सताने लगा कि कोमल ने यदि जान दे दी तो वह कहीं की नहीं रहेगी. अत: उस ने बेटी का विवाह उस के प्रेमी करन गोस्वामी के साथ करने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने अपने

बेटे करन खटीक को भी राजी कर लिया.

इस के बाद विनीता ने कोमल को विश्वास में ले कर कहा, ‘‘हम तेरी शादी अपनी बिरादरी में करना चाहते थे, पर तू इस के लिए तैयार नहीं है. तू करन गोस्वामी से शादी करना चाहती है न, हम तेरी खुशी के लिए तैयार हैं. हम ने तेरे भाई को भी राजी कर लिया है.’’

‘‘सच मां,’’ कह कर कोमल खुशी से उछल पड़ी. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे. उस ने घर वालों के राजी होने की जानकारी अपने प्रेमी करन को दी तो वह भी खुशी से झूम उठा. इस के बाद वह शादी की तैयारी में जुट गया.

इधर विनीता बेटी का विवाह गैरजाति के लड़के से करने को राजी तो हो गई थी, लेकिन उस के लिए यह आसान न था. कारण उस के देवर दिलीप, सनी व रविंद्र खटीक इस शादी का घोर विरोध कर रहे थे. उन्हें यह बरदाश्त ही न था कि उन की भतीजी कोमल की शादी गैरजाति के युवक से हो.

विनीता को डर था कि परिवार के लोग बेटी की शादी में बाधा पहुंचा सकते हैं, अत: उस ने कोमल की शादी उस की ननिहाल से करने का फैसला किया.

विनीता का मायका उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के अलीगंज गांव में था. उस ने अपने भाइयों को सारी बात बताई और मदद मांगी. तब उस के भाई परिस्थिति को समझ कर कोमल की शादी अपने घर से करने को राजी हो गए. शादी की तारीख 20 अप्रैल, 2022 तय हुई.

एक सप्ताह पहले ही विनीता अपनी बेटी कोमल व बेटे करन खटीक के साथ अलीगंज पहुंच गई और शादी की तैयारी में जुट गई. 20 अप्रैल को करन गोस्वामी भी अपने भाई रौकी व मां पिंकी के साथ अलीगंज पहुंच गया. यहां देर रात कोमल की शादी करन गोस्वामी के साथ हो गई.

21 अप्रैल, 2022 को कोमल, करन गोस्वामी की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. पुरोहिताना मोहल्ले में यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई कि कोमल ने करन गोस्वामी से शादी कर ली है. इस से खटीक परिवार में गुस्सा फूट पड़ा. परिवार के लोग अपने को अपमानित महसूस करने लगे और वे करन खटीक व उस की मां विनीता को कोसने लगे.

करन खटीक भी अपने को लज्जित महसूस करने लगा था. मोहल्ले के लोग उस पर फब्तियां कसते तो वह तिलमिला उठता था. उस के चाचा सनी, दिलीप व रविंद्र भी उसे धिक्कार रहे थे और उकसा भी रहे थे. करन खटीक का अब घर से निकलना दूभर हो गया था. उस के मन में अब बहन व उस के प्रेमी पति के प्रति नफरत की आग सुलगने लगी थी.

इस नफरत की आग में घी डालने का काम किया करन गोस्वामी व उस के घर वालों ने. शाम होते ही करन कोमल के साथ छत पर पहुंच जाता और वहां बैठ कर कोल्डड्रिंक पीता, खूब हंसहंस कर बातें करता और करन खटीक को देख कर हंसीठिठोली करता. करन का भाई रौकी व मां पिंकी भी उस का साथ देते.

खतरा भांप कर विनीता ने करन गोस्वामी को आगाह किया कि वह कोमल को साथ ले कर कहीं दूर चला जाए. यहां उन की जान को खतरा हो सकता है. इस पर करन गोस्वामी सीना तान कर बोला कि वह खतरों का खिलाड़ी है. उसे खतरों से खेलना और खतरों से निपटना अच्छी तरह आता है. वह किसी से डरने वाला नहीं है.

फिर अपनी बहन व उस के पति करन गोस्वामी को सबक सिखाने का फैसला करन ने कर लिया. करन खटीक ने अपने दोस्त गौरव व धर्मवीर को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

ये दोनों पुरोहिताना मोहल्ले के ही रहने वाले थे और अपराधी प्रवृत्ति के थे. करन खटीक ने इन्हीं दोनों की मदद से तमंचा तथा कारतूसों का भी इंतजाम कर लिया.

कोमल की शादी को अभी 5 दिन ही हुए थे. वह ससुराल में खुश थी. उसे विश्वास था कि शादी के बाद सब कुछ सामान्य हो गया है. भाई और चाचा लोगों का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया है. लेकिन यह उस की भूल थी. उसे क्या पता था कि नफरत की आग में रिश्ते खाक होने वाले हैं.

योेजना के तहत 26 अप्रैल, 2022 की शाम 4 बजे करन खटीक अपने चाचा दिलीप, सनी व रविंद्र के साथ छत के रास्ते अपनी बहन की ससुराल वाले घर में दाखिल हुआ.

कोमल उस समय कमरे में थी और पलंग पर लेटी थी. भाई व चाचा लोगों को देख कर वह समझ गई कि उन के इरादे नेक नहीं हैं. वह चीखती उस के पहले ही करन खटीक ने बहन कोमल के सीने में गोली दाग दी. कोमल पलंग पर ही लुढ़क गई.

गोली चलने की आवाज सुन कर करन गोस्वामी कमरे में आया तो करन खटीक ने उस पर भी गोली चला दी. वह भी फर्श पर गिर पड़ा और छटपटाने लगा. इसी समय करन गोस्वामी का भाई रौकी व मां पिंकी कमरे में आ गईं. करन खटीक व उस के चाचा सनी, रविंद्र व दिलीप उन दोनों पर टूट पड़े. उन्होंने तमंचे की बट से दोनों के सिर पर प्रहार किया फिर फायरिंग करते हुए भाग गए.

भागते हमलावरों को पड़ोसियों ने देखा, लेकिन उन्हें पकड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा सका. तड़ातड़ गोलियों की आवाज सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए थे. उन्हीं में से किसी ने थाना कोतवाली पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही कोतवाल अनिल कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल आ गए. घटनास्थल देख कर कोतवाल भी सन्न रह गए. पलंग पर 20-22 वर्षीया नवविवाहिता मृत पड़ी थी. उस के सीने में गोली दागी गई थी. फर्श पर एक युवक मूर्छित पड़ा था. उस की कनपटी में गोली लगी थी. एक अन्य युवक व अधेड़ महिला के सिर से खून बह रहा था. लेकिन वे दोनों होश में थे.

थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने महिला से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम पिंकी बताया. उस ने कहा कि पलंग पर मृत पड़ी युवती उस की बहू कोमल है. फर्श पर मूर्छित पड़ा उस का बड़ा बेटा करन गोस्वामी है तथा घायल छोटा बेटा रौकी है.

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने घायलों को तत्काल मैनपुरी के जिला अस्पताल में भरती करा दिया. चूंकि करन गोस्वामी की हालत नाजुक थी, अत: डाक्टरों ने उसे सैफई के मैडिकल कालेज रेफर कर दिया.

थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने इस वीभत्स कांड की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अशोक कुमार राय तथा सीओ (सिटी) अमर बहादुर सिंह घटनास्थल पर आ गए.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर मृतका कोमल के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पूछताछ के बाद एसपी अशोक कुमार राय ने कोतवाल अनिल कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह मुकदमा दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू करें. इसी के साथ उन्होंने सीओ (सिटी) अमर बहादुर सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित कर दी. सहयोग के लिये सर्विलांस टीम को भी लगा दिया.

एसपी के आदेश पर थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने मृतका के देवर रौकी की तरफ से करन खटीक, दिलीप, सनी, रविंद्र, गौरव व धर्मवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/307/452/147/308/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.

28 अप्रैल, 2022 की सुबह 4 बजे पुलिस टीम को पता चला कि मुख्य आरोपी करन खटीक अपने सहयोगियों के साथ सिंधिया तिराहे पर मौजूद है. शायद वह फरार होने के उद्देश्य से किसी गाड़ी के आने का इंतजार कर रहा है.

यह पता चलते ही पुलिस टीम घेराबंदी के लिए वहां पहुंच गई. पुलिस टीम को देखते ही लगभग आधा दरजन लोग भागने लगे. लेकिन टीम ने घेराबंदी कर 4 लोगों को पकड़ लिया, जबकि 2 पुलिस को चकमा दे कर भाग गए.

पकड़े गए युवकोें को थाना कोतवाली लाया गया. इन में एक आरोपी करन खटीक था, जबकि दूसरा उस का चाचा सनी खटीक था.

2 अन्य आरोपी गौरव व धर्मवीर थे, जो करन खटीक के दोस्त थे. फरार आरोपी दिलीप व रविंद्र थे. उन की जामातलाशी ली गई तो करन व सनी खटीक के पास से .315 बोर के 2 तमंचे बरामद हुए. जबकि गौरव व धर्मवीर के पास से 2-2 जिंदा कारतूस मिले.

चूंकि आरोपियों के पास से तमंचा व कारतूस बरामद हुए थे, अत: पुलिस ने उन के खिलाफ 3/25/27 आर्म्स ऐक्ट के तहत एक अन्य मुकदमा भी दर्ज कर लिया. पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ की गई तो उन्होंने सहज ही जुर्म कुबूल कर लिया.

पुलिस ने दर्ज मुकदमे के तहत करन खटीक, सनी, गौरव व धर्मवीर को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाल अनिल कुमार सिंह ने कोमल के हत्यारोपियों को पकड़ने और जुर्म कुबूल करने की जानकारी एसपी अशोक कुमार राय को दी, तो उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और मीडिया के समक्ष हत्या का खुलासा किया.

29 अप्रैल, 2022 को पुलिस ने आरोपी करन खटीक, सनी खटीक, गौरव व धर्मवीर को मैनपुरी कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. दिलीप तथा रविंद्र खटीक फरार थे.

कथा संकलन तक पुलिस उन की तलाश में जुटी थी. मृतका कोमल का पति करन गोस्वामी सैफई अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आहुति: नैनीताल में क्या हुआ था आहुति के साथ

वृंदा मिश्रा

Winter 2022: इन सर्दियों में अदरक से बनाएं ये 7 चीजें

अदरक का टौनिक

सामाग्री

अगर अदरक का रस 100 ग्राम हो, तब चीनी 350 ग्राम, साइट्रिक एसिड 7-8 ग्राम और पानी 1.5 लिटर. पानी और चीनी मिला लें. एक उबाल में अदरक रस भी मिला लें, फिर मिश्रण में एक उबाल आने दें.

विधि

ताजा अदरक की गांठों को सही तरह से पानी से धो लें और इस के बाद इन गांठों को कद्दूकस कर लें और रस निकाल लें.

साफ की हुई बोतल में डाल कर क्राउन कार्क लगा दें. उस के बाद बोतलों को उबलते पानी में 20-25 मिनट तक उपचारित करें.

अदरक एपीटाइजर

सामाग्री

अदरक एपीटाइजर बनाने के लिए अदरक का रस 400 मिलीलिटर, सेब का गूदा 1 किलोग्राम (सेब की जगह और फलों के गूदों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे खुमानी, नाशपाती, आड़ू वगैरह), 1.7 किलोग्राम नीबूवर्गीय फलों का रस 600 मिलीलिटर, साइट्रिक अम्ल 22 ग्राम के करीब इस्तेमाल करते हैं.

विधि

इसे तैयार करने के लिए सब से पहले चीनी की चाशनी लें और चाशनी को थोड़ा ठंडा होने पर ऊपर लिखित पदार्थ डाल दें और अच्छी प्रकार मिश्रण मिला दें.

परिरक्षित करने के लिए 15 ग्राम पोटैशियम सल्फाइड को थोड़े पानी में घोल कर एपीटाइजर और तैयार की हुई बोतलों में डाल कर ठीक तरह से ढक्कन लगा दें और ऊपर तक घोल भर दें.

जिंजरेल

सामाग्री

नीबू का रस एक बड़ा चम्मच, अदरक का रस 1/2 छोटा चम्मच, चीनी 2 बड़े चम्मच, यीस्ट 1/4 चम्मच छोटा, पानी 2 लिटर, नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बोतल में यीस्ट और चीनी डालें. अदरक के रस में नीबू का रस मिलाएं और स्लरी बनाएं. इसे बोतल में पानी डाल कर बंद करें. 24-28 घंटे गरम जगह पर रखें, तत्पश्चात फ्रिज में रखें.

अदरक का जूस

सब से पहले तो आप अदरक को अच्छे से धो कर साफ  कर लें और इसे छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें और फिर इन कटे हुए अदरक के टुकड़ों को मिक्सर से अच्छे से पीस लें.

फिर इस के जूस को किसी गिलास में निकाल लें और इस में ऊपर से शहद और थोड़ा सा नीबू निचोड़ लीजिए. अदरक का रोगनाशक आयुर्वेदिक जूस बन कर तैयार है.

अदरक का मुरब्बा

अदरक का मुरब्बा बनाने के लिए ताजा, मुलायम और रेशे वाले अदरक को छांट लें. इसे पानी में खुरच कर पूरी तरह घोल लें.

इस के बाद गांठों को टुकड़ों में काट कर गुदाई कर लें. गुदाई किए टुकड़ों को मलमल के कपड़े से बांध कर और उबलते हुए पानी में डाल कर 40-50 मिनट नरम होने तक रखें. नरम होने के बाद थोड़ा सुखा लें. आधा किलोग्राम चीनी में पानी मिला दें और इस घोल को उबालें.

अदरक के टुकड़ों को इसी चीनी के घोल में 10-15 मिनट तक पकाएं और ठंडा होने के लिए रातभर पड़ा रहने दें.

अगले दिन अदरक को चीनी के घोल में से निकाल लें और बची हुई चीनी की मात्रा को इस घोल में डाल दें और उबाल लें, ताकि यह गाढ़ा हो जाए और इस के बाद टुकड़ों को फिर से घोल में डाल दें. 4-5 दिन इसी तरह से रखें. उस के बाद टुकड़ों को निकाल कर चाशनी को और गाढ़ी कर दें, ताकि यह 70 फीसदी चीनी की मात्रा तक पहुंच जाए.

अदरक की कैंडी

कैंडी एक तरह का मुरब्बा है. पर इस में मुरब्बा बनाने के बाद टुकड़ों को निकाल कर चाशनी को और गाढ़ा करते हैं, ताकि चीनी की मात्रा 75 फीसदी तक पहुंच जाए और टुकड़ों को चाशनी में डाल कर 7-15 दिनों तक इसी प्रकार रखा जाता है, ताकि चाशनी पूरी तरह से टुकड़ों के अंदर चली जाए.

उस के बाद टुकड़ों को 5 मिनट तक चाशनी के साथ उबाल लें. फिर टुकड़ों में से चाशनी निथार कर उन्हें सुखा लें. सुखाने वाले यंत्र पर 50 सैंटीग्रेड तापमान पर सुखाएं या फिर खुली धूप में सुखा लें.

अदरक का पाक

सामाग्री

अदरक 450 ग्राम (अच्छे से धुला व कद्दूकस), दूध 1.5 किलोग्राम, चीनी 1.5 किलोग्राम, नारियल 200 ग्राम, बादाम 200 ग्राम, काली मिर्च 20 ग्राम, बड़ी इलायची 20 ग्राम ले कर एक कड़ाही में धीमी आंच पर दूध गरम करें.

विधि

दूध में उबाल आने पर इस में कद्दूकस किया अदरक डाल दें. कलछी से धीरेधीरे हिलाएं. कुछ देर बाद इस में बारीक कटे बादाम, घिसा हुआ नारियल और पिसी हुई काली मिर्च व बड़ी इलायची मिलाएं.

इस मिश्रण के गाढ़ा होने पर चीनी डाल कर दोबारा गाढ़ा होने तक धीरेधीरे चलाएं. अच्छे से पकने और गाढ़ा होने के बाद थोड़ा ठंडा होने पर किसी कांच या स्टील के बरतन में भर कर रख दें. सुबहशाम एकएक चम्मच दूध के साथ इसे लें.

दिसंबर महीने में खेती के काम

यह महीना खेती के लिहाज से काफी अहम है. उत्तर भारत में इस समय ठंड बढ़ जाती है. जिन किसानों ने गेहूं की अगेती किस्में बोई हैं और उन के खेत में खरपतवार गेहुंसा और जंगली जई उग आई हैं, ऐसी संकरी व चौड़ी पत्ती वाले दोनों खरपतवारों के नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फ्यूरान 75 फीसदी व मेट सल्फ्यूरान मिथाइल 5 फीसदी डब्ल्यूजी की 40 ग्राम मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. जिन किसानों ने गेहूं की समय से बोआई की है, वह गेहूं में नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा दें और 15-20 दिन के अंतराल से सिंचाई करते रहें.

समय से बोई गई गेहूं की फसल में शिखर जड़ विकास का समय होता है, इसलिए इस माह में बोआई के 21 दिन पूरे हो जाने पर फसल की सिंचाई से बिलकुल नहीं चूकना चाहिए, नहीं तो पैदावार में भारी गिरावट हो जाती है. अगर गेहूं की बोआई के 30 दिन बाद नीचे की तीसरी या चौथी पत्तियों पर हलके पीले धब्बे, जो बाद में बड़े आकार के हो जाते हैं, दिखाई पड़ रहे हैं, तो यह जस्ते की कमी के लक्षण हैं. इस स्थिति में तुरंत 0.7 फीसदी जिंक सल्फेट व 2.7 फीसदी यूरिया का घोल बना कर 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़कें, वरना पैदावार कम होने के साथसाथ फसल पकने में 10-15 दिन की देरी हो जाती है. जिन किसानों ने गेहूं की अभी तक बोआई नहीं की है, वह इस महीने के पहले पखवारे तक अवश्य पूरा कर लें.

इस के लिए गेहूं की उन्नतशील पछेती किस्मों का चयन करें, वहीं गेहूं की पछेती किस्मों की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. पछेती बोआई के लिए उन्नत किस्मों में सोनालिका, डब्ल्यूएस 291, एचडी 2285, सोनक, यूपी 2338, राज 3767, पीबीडब्ल्यू 373, पीबीडब्ल्यू 138 व टीएल 1210 शामिल हैं. गेहूं को बोने के पहले कार्बोक्सिन 37.5 फीसदी व थीरम 37.5 फीसदी का मिश्रण 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा के अनुसार बीजोपचार करें. देरी से गेहूं की बोआई करने वाले किसान बीज की बोआई जीरो टिलेज विधि से जीरो टिलेज मशीन से करें.

इस से गेहूं की खेती में लागत में कमी आने के साथ ही उपज में वृद्धि होती है और उर्वरक का उचित प्रयोग संभव हो पाता है. साथ ही, पहली सिंचाई में पानी न लगने के कारण फसल बढ़वार में रुकावट की समस्या नहीं रहती है. इस के अलावा गेहूं में खरपतवार में कमी आती है. जो किसान जौ की बोआई अभी तक नहीं कर पाए हैं, वह दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक पछेती किस्मों को बो दें. इस के लिए एक हेक्टेयर में 100 से 110 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. रबी सीजन में जो किसान सूरजमुखी की फसल बोना चाहते हैं, वह दिसंबर के आखिरी हफ्ते तक हर हाल में बोआई कर लें.

सूरजमुखी की उन्नत किस्में मौडर्न, बीएसएच 1, एमएसएच, सूर्या व ईसी 68415 हैं. शरदकालीन गन्ने में नवंबर के दूसरे पखवारे में सिंचाई न की गई हो, तो दिसंबर में सिंचाई कर के निराईगुड़ाई करें. गन्ने के साथ राई व तोरिया की सहफसली खेती में जरूरत के मुताबिक सिंचाई कर के निराईगुड़ाई करना लाभप्रद होता है. गेहूं के साथ सहफसली खेती में बोआई के 20-25 दिन बाद पहली सिंचाई करें. दिसंबर महीने में गन्ने की कटाई जोरों पर होती है. इस समय यह ध्यान दें कि कटाई जमीन की सतह के साथ करें और गन्ना मिलों की मांग के अनुसार करें. जिन किसानों ने तोरिया की फसल ली है, वह दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक पकी हुई फसल की कटाई कर लें.

इस के अलावा सरसों में दाने भरने की अवस्था में दिसंबर के पहले पखवारे में सिंचाई कर दें. पीली सरसों में भी फूल आने पर सिंचाई करें. जिन किसानों ने मटर की खेती की है, वे फसल में फूल आने से पहले एक हलकी सिंचाई कर दें. वहीं फसल में भभूतिया यानी पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक 80 फीसदी डब्ल्यूपी 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लिटर की दर से छिड़काव करें. इस की एक हेक्टेयर में 1.5 किलोग्राम मात्रा की जरूरत पड़ती है या फफूंदीनाशक फ्लुसिलाजोल 40 फीसदी ईसी की 120 मिलीलिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. जिन किसानों ने मसूर अभी तक नहीं बोई है, वह दिसंबर महीने में इस फसल की पछेती बोआई कर सकते हैं. इस के लिए 50-60 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है.

अलसी की बोई गई फसल में लीफ ब्लाइट और रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए 2 ग्राम इंडोफिल एम-45 या 3 ग्राम ब्लाईटौक्स को प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़कें. आलू की फसल लेने वाले किसान अगर तापमान के अत्यधिक कम होने और पाला पड़ने की संभावना हो, तो फसल में सिंचाई जरूर करें. इस फसल में अगर पछेती ?ालसा का प्रकोप दिखे, जो फफूंद से लगने वाली एक बीमारी है. इस बीमारी का प्रकोप आलू की पत्ती, तने व कंदों के साथसाथ सभी भागों पर होता है. फफूंदीनाशक दवा साईमोक्जिल 8 फीसदी व मैंकोजेब 64 फीसदी डब्ल्यूपी के मिश्रण की प्रति हेक्टेयर 1.5 किलोग्राम मात्रा के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर करें. इस के अलावा आलू की फसल में अगेती ?ालसा की दशा में मैंकोजेब 63 फीसदी डब्ल्यूपी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपी की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.

अगर आलू की फसल में पत्ती मुड़ने वाला रोग यानी पोटैटो लीफ रोल का प्रकोप दिखाई पड़ रहा है, तो एसिटामिप्रिड 20 फीसदी एसपी की 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर 1-2 छिड़काव दिसंबर महीने में करें. दिसंबर महीने में मशरूम की तैयार फसल को तोड़ने के बाद आकार के अनुसार उन की छंटनी कर लें और 3 फीसदी कैल्शियम क्लोराइड घोल से धोने के बाद साफ पानी से धोएं. इस के बाद धुले मशरूम को कपड़े पर फैला दें, ताकि अतिरिक्त पानी सूख जाए. फिर 250 ग्राम, 500 ग्राम के पैकेट बना कर सील कर दें और थैलियों में रख कर इसे रैफ्रिजरेटर में 7-8 दिन तक रख सकते हैं. ताजा मशरूम भी बाजार में आसानी से बिक जाती है. जिन किसानों ने प्याज की रोपाई नहीं की है, वह दिसंबर महीने के अंतिम हफ्ते तक प्याज की रोपाई जरूर कर दें. लाइन में 6 इंच व पौधों में 4 इंच की दूरी रखें. इस में 10 टन कंपोस्ट, पौना बोरा यूरिया, 2.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट व 1 बोरा म्यूरेट औफ पोटाश डालें और रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें.

मूली, शलजम, गाजर में मिट्टी चढ़ाएं, ताकि पैदावार अधिक हो. बाकी सब्जियों को 15-20 दिन में हलकी सिंचाई करते रहें और पौलीथिन सीट से ढक कर पाले से भी बचाएं. टमाटर व मिर्च में ?ालसा रोग से बचाव के लिए मैंकोजेब 63 फीसदी डब्ल्यूपी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपी की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. दिसंबर का महीना गुलाब के पौधों में काटछांट करने और गुड़ाई के लिए सही समय है. गुड़ाई के बाद गुलाब के तनों व जड़ों को धूप लगाने और कंपोस्ट देने से वसंत ऋतु में अच्छे फूल आते हैं. इस माह गुलाब के पौधों के तनों की कलम भी आसानी से लग जाती है. बाकी फूलों में जरूरत के अनुसार व देशी खाद, पानी व गुड़ाई देते रहें. पाले से पौधों को बचाएं. ग्लैडियोलस की फसल में जरूरत के अनुसार सिंचाई व निराईगुड़ाई करें. मुर?ाई टहनियों को निकालते रहें और बीज न बनने दें. दिसंबर का महीना बगीचों में खाद देने का होता है. इसलिए आम, नीबू व अनार के पौधों में गोबर की खाद 17 से 20 किलोग्राम प्रति पौधा प्रति वर्ष के हिसाब से दें.

5 साल या ऊपर के पौधों में 77 से 100 किलोग्राम प्रति पौधा दें. खाद देने के साथ गुड़ाई भी करें. नीबू में केंकर रोग की रोकथाम के लिए 20 मिलीग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लीन को 25 ग्राम कौपर सल्फेट के साथ 200 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. बेर में सफेद चूर्णी रोग दिखाई देने पर घुलनशील गंधक 400 ग्राम को 200 लिटर पानी में घोल कर पेड़ों पर छिड़कें. दिसंबर महीने में आड़ू के मिट्टीरहित पौधे लगाए जा सकते हैं. इस के लिए शरबती, सफेटा, मैचप्लेस, पलोरडासन किस्में उपयुक्त हैं. पौधों को रोपने के लिए 1 वर्गमीटर के गड्ढे खोदें और ऊपर की आधा मीटर मिट्टी में सड़ीगली देशी खाद बराबर मात्रा में मिला कर 20 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी डाल कर भर दें. पौधे लगाने से पहले गड्ढे को पानी से भरें और फिर मिट्टी डाल कर बराबर करने के बाद पेड़ लगाएं और पानी दें. पौधों में यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरेट औफ पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष की आयु के हिसाब से भी डालें.

अमरूद में फलमक्खी रोग के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से पानी में घोल बना कर फल परिपक्वता के पूर्व 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव करें. प्रभावित फलों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए. बगीचे में फलमक्खी के वयस्क नर को फंसाने के लिए फैरोमौन ट्रैप लगाने चाहिए. आंवला की तुड़ाई के उपरांत फलों को बावस्टीन (0.1 फीसदी) से उपचारित कर के भंडारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है. आम के पौध में कीट नियंत्रण के लिए किसान बागों की गहरी जुताई, गुड़ाई करें और कीटों को पौधों पर चढ़ने से रोकने के लिए मुख्य तने पर भूमि से 50-60 सैंटीमीटर चौड़ी पट्टी को तने के चारों ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध दें, जिस से कीट ऊपर न चढ़ सकें. इस से बचाव के लिए दिसंबर माह में एक पखवारे के अंतराल पर 2 बार क्लोरोपायरीफास चूर्ण भी प्रति पेड़ के हिसाब से पौधों पर बुरकाव करें. इस के बाद भी अगर कीट पौधे पर चढ़ जाएं, तो क्विनालफास अथवा डायमेथोएट का पानी में घोल बना कर पौधों पर बुरकाव करें.

दिसंबर माह में फलों की तुड़ाई होती है. संक्रमित गिरे हुए फल को उठा कर एक बालटी में डुबो कर रखें. तुड़ाई के बाद हलकी छंटाई शाखाओं की कटी हुई सतहों पर कौपर औक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी 100 ग्राम प्रति 250 मिलीलिटर को पानी में मिला कर प्रूनिंग के बाद डालें. दिसंबर महीने में हुई ताजा बर्फबारी सेब के लिए लाभदायक होती है. इस से सेब के बगीचों को नमी मिलती है. वैज्ञानिक सलाह के अनुसार उपयुक्त समय पर बगीचों का प्रबंधन करें और सही वक्त पर खाद डालें. दिसंबर में रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं. ऐसे में दिसंबर की बर्फबारी सेब के पौधों के लिए खुराक का काम करती है. पौधों को 12 सौ से 16 सौ घंटे तक कड़क ठंड की जरूरत रहती है. चिलिंग आवर्स पूरे होते हैं, तो अगले सेब सीजन में पैदावार अच्छी होने की उम्मीद जगती है.

दिसंबर महीने में किन्नू की कुछ प्रजातियों की तुड़ाई करना जरूरी है. किन्नू के फल जब उचित आकार और आकर्षक रंग में आ जाएं, तो किन्नू तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. ध्यान रखें कि किन्नू की सही समय पर तुड़ाई करना जरूरी है, क्योंकि समय से पहले या देरी से तुड़ाई करने से फलों की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. किन्नू के फलों की तुड़ाई के बाद फलों को साफ पानी से धोएं और फिर क्लोरिनेटड पानी को प्रति लिटर पानी में मिला कर बनाए घोल में फलों को भिगो दें. इस के बाद फलों को छांव में सुखाएं और फिर डब्बों में पैक करें. पशु से जुड़े पशुपालक पशुओं का आहार संतुलित व नियंत्रित हो, इस के लिए दिन में 2 बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारापानी देना चाहिए. इस से पाचन क्रिया ठीक रहती है और बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है. पशु का आहार सस्ता, साफ, स्वादिष्ठ और पाचक हो. चारे में एकतिहाई भाग हरा चारा और दोतिहाई भाग सूखा चारा होना चाहिए. पशु को जो आहार दिया जाए, उस में विभिन्न प्रकार के चारेदाने मिले हों.

चारे में सूखा व सख्त डंठल नहीं हो, बल्कि ये भलीभांति काटा हुआ और मुलायम होना चाहिए. इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो और इसे पका कर या भिगो कर व फुला कर देना चाहिए. दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए, बल्कि इसे धीरेधीरे और थोड़ाथोड़ा कर के बदलना चाहिए. पशुओं को उस की जरूरत के मुताबिक ही आहार देना चाहिए, कम या ज्यादा नहीं. नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ कर लेना चाहिए. गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ व भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए. इस महीने पशुओं का ठंड से बचाव करें. वयस्क व बच्चों को पेट के कीड़ों की दवा पिलाएं. साथ ही, खुरपका व मुंहपका रोग का टीका लगवाएं. हरे चारे के लिए बोई गई जई और बरसीम की कटाई करें. इस के बाद 25-30 दिन के अंतराल से कटाई करते रहें.

भूमि सतह से 5-7 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर कटाई करें. कटाई के फौरन बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए. मछलीपालक दिसंबर महीने में मछलियों की वृद्धि और तालाब में उपलब्ध भोजन की जांच करते रहें. अगर मछलियों में रोग के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, तो तालाब में सब से पहले 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूने का प्रयोग करें. उस के 15 दिन बाद 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पोटैशियम परमेगनेट (लाल दवा) का प्रयोग करें. जो लोग मधुमक्खीपालन से जुड़े हैं, उन्हें सर्दी से बचाने के लिए विशेष सजगता बरतनी पड़ती है. ऐसे में मधुमक्खीपालकों को टाट की बोरी की 2 तह बना कर आंतरिक ढक्कन के नीचे बिछा देनी चाहिए. इस से मौनगृह का तापमान एकसमान गरम बना रहता है. इस के अलावा मधुमक्खियों के प्रवेश द्वार को छोड़ कर पूरे बक्से को पौलीथिन से ढक देना चाहिए. साथ ही, मधुमक्खियों के डब्बों को फूल वाली फसल के नजदीक रखना चाहिए,

जिस से कम समय में अधिक से अधिक मकरंद और पराग एकत्र किया जा सके. अंडा देने वाली मुरगियों को लेयर फीड दें और सीप का चूरा भी दें. बरसीम का हरा चारा भी थोड़ी मात्रा में दे सकते हैं. चूजों को ठंड से बचाने के लिए पर्याप्त गरमी की व्यवस्था करें. ठ्ठ – लेख में कीटनाशक व रसायन डा. प्रेम शंकर, विशेषज्ञ फसल सुरक्षा, कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती द्वारा सु?ाए गए हैं. आर्गेनिक खेती और देशी बीज का प्रशिक्षण संपन्न पिछले दिनों अजय सिंह राजपूत, क्षेत्रीय निदेशक, नागपुर, महाराष्ट्र, भारत सरकार के निर्देशन में एक कार्यशाला आयोजित की गई, जिस में आर्गेनिक खेती और देशी बीजों का प्रशिक्षण दिया गया. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रकाश सिंह रघुवंशी ने किसानों को जैविक खेती और उन्नत बीज उत्पादन का प्रशिक्षण दिया. 2 बार राष्ट्रपति से सम्मानित हो चुके किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी ने अब तक 300 से अधिक प्रजाति विकसित की हैं, ने कहा कि गेहूं की नई किस्म कुदरत 8 विश्वनाथ किसी वरदान से कम नहीं है. उन्होंने ही इस प्रजाति को विकसित किया है.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि गेहूं की कुदरत 8 विश्वनाथ का पौधा छोटा यानी बौना होता है. इस किस्म की बाली की लंबाई तकरीबन 9 इंच (तकरीबन 20 सैंटीमीटर) होती है और ऊंचाई 90 सैंटीमीटर. इस का दाना मोटा व चमकदार होता है. इस किस्म के पौधे मौसम के घटतेबढ़ते तापमान को सहने की क्षमता रखते हैं. यह किस्म 110-115 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. उन्होंने आगे कहा कि यह देशी बीज है, जिस से किसान बीज से बीज भी बना सकते हैं. एक एकड़ में तकरीबन 30 क्विंटल उपज प्राप्त हो जाती है. बोआई का उचित समय 10 जनवरी तक है.

इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र के तकरीबन 200 किसानों ने प्रशिक्षण में हिस्सा लिया. प्रकाश सिंह रघुवंशी ने वहां आए सभी किसानों को 100 ग्राम कुदरत 8 विश्वनाथ के बीज पैकेट मुफ्त में बांटे. एक पैकेट से किसान तकरीबन 20 किलोग्राम बीज उत्पादन कर लेगा. यदि कोई किसान उन के द्वारा विकसित नई किस्म कुदरत 8 विश्वनाथ के देशी बीज मंगवाना चाहता है या बोआई करना चाहता है, तो वह प्रकाश सिंह रघुवंशी के मोबाइल नंबर 9598246411 या 9839253974 पर बात कर सकते हैं या कुदरत कृषि अनुसंधान संस्थान, ताडि़या, जक्खिनी, वाराणसी -221305 पर संपर्क कर के बीज मंगा सकते हैं.

मीडिया: न्यूज चैनल नहीं, धार्मिक चैनल

आज मुख्यधारा के अधिकतर न्यूज चैनल जनता के हितों की खबरें दिखाने की जगह धर्म और सत्ता पक्ष का प्रचार करने में जुटे हैं. यह बिना सरकार, नेताओं और पूंजीपतियों के संभव नहीं. ऐसा कर के वे देश के लोकतंत्र को खाई में धकेलने का काम ही कर रहे हैं. 11 अक्तूबर, 2022 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में महाकाल मंदिर में जय महाकाल मंदिर के श्रीमहाकालेश्वर मंदिर कौरिडोर’ का उद्घाटन करने गए थे. इस को खबरिया चैनलों ने ‘श्री महाकाल लोक’ के रूप में स्थापित करने का काम किया. यह भी बताया गया कि इस कौरिडोर के बनने से पर्यटकों की संख्या में बड़ा बदलाव हुआ है.

‘न्यूज 24’ ने कौरिडोर के लोकापर्ण कार्यक्रम को ‘मोदी के महादेव’ नामक टाइटल के साथ दिखाया. 20 मिनट के इस प्रसारण में एंकर पूजा ने महाकाल की पूजा, इतिहास और प्रभाव के साथ मंत्र और आरती के साथ दर्शकों को मोदी की पूजापाठ को दिखाया. ‘जी न्यूज’ ने ‘महाकाल के मंदिर में पीएम मोदी’ नाम से 15 मिनट का कार्यक्रम दिखाया. इस में मोदीमय हो कर एंकर ने लोगों से बात की. ‘जी न्यूज’ ने ही अपने दूसरे कार्यक्रम ‘मोदी का जय महाकाल’ नामक कार्यक्रम दिखाया. इसी तरह से ‘न्यूज नेशन’ ने ‘मोदी का महाकाल कौरिडोर’ का प्रसारण किया. 10 मिनट के इस कार्यक्रम में मोदी महात्मय का विवरण किया गया. वे कितने धार्मिक हैं यह बताया गया. ‘इंडिया न्यूज’ ने ‘पीएम मोदी इन महाकाल’ नाम से लाइव प्रसारण किया. 30 मिनट के इस प्रसारण में भव्य महाकाल, दिव्य महाकाल और मोदी का जिक्र हुआ. ‘इंडिया न्यूज’ पर ही दूसरा कार्यक्रम ‘महाकाल में बाबा के भक्त’ का प्रसारण किया गया. एक ही समाचार को अलगअलग ‘टाइटल’ और ‘थंबनेल’ बना कर पूरेपूरे दिन दिखाया गया. समाचारों की जगह सासबहू के सीरियल की तरह इस को दोदो दिन तक खींचने का काम किया गया.

इस की वजह से दर्शक यह सम?ा नहीं पा रहे थे कि यह न्यूज पहले दिखाई जा चुकी है या नई दिखाई जा रही है. यात्रा से 2 दिनों पहले और 2 दिनों बाद तक खबर दिखाने वाले चैनलों को देख कर यह सम?ा नहीं आ रहा था कि यह खबर दिखाने वाले चैनल हैं या बाबाओं का प्रवचन करने वाले चैनल. पूजा, आरती और पूरे विधिविधान का प्रसारण किया जा रहा था. मोदी, केदारनाथ और बद्रीनाथ का माहात्म्य 22 अक्तूबर, 2022 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दीवाली के पहले केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर थे. इस को ले कर यात्रा एक सप्ताह पहले से खबरिया चैनलों ने धार्मिक चैनलों की तरह से खबरों के कार्यक्रम दिखाने शुरू कर दिए. प्रधानमंत्री के दौरे की वीडियो फुटेज एएनआई न्यूज एजेंसी से ले कर अपने संवाददाताओं के साथ केदारनाथ मंदिर से सामने से 3-3 घंटे की लाइव कवरेज दिखाने की पूरी होड़ सी लगी रही. प्रधानमंत्री ने किसी भी चैनल से बात नहीं की.

इस के बाद भी चैनल के रिपोर्टर ने मंदिर के पुजारियों, पंडों और संतों से बात करते हुए पूजा विधि से ले कर उस के प्रभाव तक का पूरा खाका खींचने का काम किया. प्रधानमंत्री की इस कवरेज को टुकड़ोंटुकड़ों में अलगअलग कार्यक्रम बना कर भी दिखाया गया. इस में उदाहरण के लिए कुछ चैनलों के विश्लेषण दिखे. वैसे, हर चैनल का एकजैसा ही हाल था. ‘एबीपी न्यूज’ ने ‘बाबा केदारनाथ की शरण में पीएम मोदी’ नाम से 30 मिनट का एक कार्यक्रम पेश किया. इस में केदारनाथ के महाभारत काल से महत्त्व की चर्चा के साथ ही साथ पूजा और मंदिर का पूरा धार्मिक प्रसारण किया गया.

‘जी न्यूज’ ने 19 मिनट की लाइव कवरेज ‘मोदी के महादेव’ में अपने संवाददाता अमित प्रकाश से बातचीत के साथ कई धार्मिक लोगों से बात की, जिस से पूरा प्रसारण समाचार की जगह पर धार्मिक चैनल सा लग रहा था. ‘एबीपी न्यूज’ में ही ‘मोदी के नाथ’ नाम से अलग प्रसारण भी किया गया. यह मोदी की केदारनाथ यात्रा की तैयारी को ले कर तैयार किया गया था. ‘न्यूज लाइव’ ने 15 मिनट के अपने कार्यक्रम ‘बद्रीनाथ धाम रवाना हुए पीएम मोदी’ का प्रसारण किया और ब्रदीनाथ धाम का पूरा धार्मिक विवरण पेश किया. इसी कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि नरेंद्र मोदी की यह दूसरी बद्रीनाथ धाम की यात्रा है. ‘न्यूज इंडिया’ के अपने कार्यक्रम ‘मोदी का भक्ति पर्व’ में एंकर अनुपमा ?ा ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 6 बार केदारनाथ धाम की यात्रा की है.

30 मिनट के कवरेज में यह बताया गया कि मोदी पूजा के बाद किस से मिलेंगे, किस गुफा में ध्यान लगाएंगे, कितनी देर तक ध्यान में रहेंगे. अयोध्या में मोदीयोगी उत्सव 23 अक्तूबर, 2022 : उत्तर प्रदेश के अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामलला की पूजा और दीपउत्सव में हिस्सा लिया. यहां भी खबरिया चैनलों ने खबर कम और धर्म का महत्त्व अधिक बताया. दीपउत्सव में 17 लाख दीये जलाने का विश्व रिकौर्ड बनाया गया. रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले कलाकारों को रूस से खासतौर पर बुलवाया गया था. भगवान के पहनावे में इन का विमान अयोध्या की धरती पर उतारा गया. भगवान का स्वरूप मान कर इन की आरती की गई. राष्ट्रवाद की बात करने वालों से किसी ने यह नहीं पूछा कि विदेशी कलाकारों में ही राम का स्वरूप क्यों दिखा? ‘इंडिया टीवी’ ने ‘अयोध्या दीपउत्सव में मोदी’ नाम से अपना कार्यक्रम पेश किया. इस लाइव प्रसारण में अयोध्या की पूरी कवरेज दिखाई गई.

‘इंडिया टीवी’ ने ही ‘मोदी चले अयोध्या’ कार्यक्रम भी पेश किया. ‘इंडिया टीवी’ ने ‘अयोध्या में रामराज्य’ के टाइटल से भी प्रसारण किया. इस को 1990 के मोदी के राममंदिर आंदोलन की भूमिका से शुरू किया गया. यह बताया गया कि मोदी का सपना कैसे साकार हुआ. अयोध्या को सनातन धर्म से जोड़ कर बताया गया कि यह मोदी की पूजा की सफलता है. मोदी ने मंदिर निर्माण देखा और मुख्यमंत्री को इस को भव्य बनाने के निर्देश दिए. ‘आर भारत’ ने ‘अयोध्या से विहंगम कवरेज’ पेश की. इस में ‘पीएम मोदी इन अयोध्या’ को लाइव दिखाया गया. यह बताया गया कि मोदी ने केवल दर्शन ही नहीं किए, मंदिर में दान भी दिया. मंदिर निर्माण की तैयारियों से ले कर किसकिस तरह से पीएम मोदी रुचि ले रहे हैं, इस का सविस्तार विवरण पेश किया गया. रामकथा पार्क के बारे में बताया गया. ‘न्यूज 18’ ने ‘राम जानकी मंदिर में योगी’ नाम से भी कार्यक्रम प्रसारण पेश किया.

‘न्यूज-18’ ने ‘पीएम ने की रामलला की पूजा’ टाइटल से पूरी पूजा को दिखाया. ‘जी न्यूज’ ने ‘अयोध्या के विकासपथ पर मोदी का महामंथन’ नाम से कवरेज किया. अक्तूबर माह में धार्मिक कवरेज की धूम अक्तूबर माह में खबरिया चैनलों में खबरों की जगह पर धर्म पूरी तरह से छाया रहा. इस माह के त्योहारों में जो कवरेज दिखाई गई उस में महंगाई, बेरोजगारी, डेंगू जैसी बीमारियां और गुजरात में मोरबी पुल हादसे जैसी खबरों को वह जगह नहीं मिल पाई जो धार्मिक कार्यक्रमों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महाकाल, केदारनाथ और अयोध्या की कवरेज को मिली. एक समय प्रवचन वाले धार्मिक चैनल अलग होते थे और खबर दिखाने वाले चैनल अलग. आज के दौर में खबर दिखाने वाले चैनल धार्मिक चैनलों से अधिक धर्म का प्रचार कर रहे है. इस के अलगअलग कारण हैं.

प्राइम टाइम यानी रात 8 बजे से 10 बजे तक के समय का 90 फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री मोदी के नाम रहता है. चैनल उन को महाभारत और रामायण काल से जोड़ते हैं. हर चैनल पर वहीवही बातें अलगअलग एंकरों द्वारा बताई जाती हैं. अगर रिमोट से चैनल बदलबदल कर देखें तो बातें वही होती हैं. बस, बताने वालों के चेहरे बदले दिखते हैं. अक्तूबर माह में कई त्योहार भी होते हैं तो उन के बहाने भी खबरिया चैनलों पर धार्मिक प्रवचन जारी रहते हैं. बुद्विजीवी नहीं धार्मिक चेहरे न्यूज के रूप में जो बहस या डिबेट होती हैं, उन के विषय भी धार्मिक होते हैं. उन में वाराणसी का ज्ञानवापी मसला सब से प्रमुख रहा. इस की आड़ में तमाम डिबेट में मथुरा का नाम भी सामने आता रहा. अगर यहां कुछ नया नहीं मिला तो पाकिस्तान-भारत, जनसंख्या और नागरिकता संशोधन कानून को ले कर होने वाली बहस को धार्मिक रूप दे दिया जाता है. कुल मिला कर खबर दिखाने वाले ये चैनल खबर कम, धर्म का प्रचार अधिक करते हैं. डिबेट में पहले बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री लोगों को हिस्सा लेने के लिए बुलाया जाता था लेकिन धर्म का प्रचार बढ़ने के बाद डिबेट में धार्मिक चेहरों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है. पार्टियों और निजी जीवन में हर तरह की गतिविधियां करने वाले एंकर लोगों को धर्म की राह पर चलने की इस तरह से शिक्षा देते जैसे वे खुद इस पर चलते हों. धार्मिक कवरेज करने वाले कई एंकर तो अपना हुलिया भी धार्मिक बना लेते हैं, जिस से वे एंकर कम, पुजारी अधिक नजर आने लगते हैं.

खबरिया चैनलों का काम खबरें दिखाना होता है लेकिन वे खबर कम, प्रवचन अधिक करने लगे हैं. राजनीतिक वजहों से बदली रणनीति अचानक खबर दिखाने वाले चैनलों ने अपना हुलिया कैसे और क्यों बदला, इस को देखें तो पता चलता है इस की वजहें कुछ और हैं. खबर दिखाने वाले इन चैनलों को चलाने के लिए जिस बजट की जरूरत होती है वह बिना सरकार, नेताओं और पूंजीपतियों के बिना संभव नहीं है. 2014 के बाद देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया. देश पर धार्मिक विचारधारा हावी होने लगी. इस विचारधारा के प्रचारप्रसार के लिए खबरिया चैनलों का भी सहारा लिया गया. इस का व्यापक असर देखने को मिला. 2014 के बाद देश में बेरोजगारी, महंगाई, खराब अर्थव्यवस्था किसी चुनाव का मुद्दा नहीं बनी. देश का पूरा चुनावी माहौल धर्म के चारों तरफ घूमने लगा.

2017 में जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए, उस के पहले नोटबंदी, जीएसटी और कर सुधार के कई नए कानून लागू हो चुके थे. जनता उन से त्राहित्राहि कर रही थी. सभी यह मान रहे थे कि भाजपा चुनाव जीत नहीं पाएगी. अगर जीत भी गई तो बिना किसी सहयोगी के सरकार नहीं बना पाएगी. चुनावी माहौल धर्म के तरफ मोड़ने का काम शुरू हो गया. नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे दब गए. भाजपा बहुमत से चुनाव जीत गई. धर्म को और चमकदार बनाए रखने के लिए भाजपा ने अपने नेताओं को दरकिनार कर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में धर्म के रथ का ही सहारा लिया गया. धर्म की चमक को बढ़ाने लिए अनुच्छेद 370, नागरिकता संशोधन कानून और राममंदिर निर्माण की दिशा में काम किया गया. इस बीच पूरे देश में कोरोना जैसी महामारी हुई. इस से लगा कि अब भाजपा की हार तय है.

इस के बाद 2022 में देश के सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए. कोरोना जैसी त्रासदी का शिकार होने के बाद भी लोगों ने भाजपा को वोट दिया और योगी आदित्यनाथ ने दोबारा यूपी के सीएम बन कर इतिहास रच दिया. इस से यह बात साफ हो गई कि धर्म का मुद्दा सफल है. इस मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए देश के बड़े मंदिरों के कायाकल्प करने की योजना तैयार की गई. इस योजना को जनजन तक पहुंचाने के लिए खबरिया चैनलों को धार्मिक चैनल बनाना जरूरी था. सामने लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत को सुनिश्चित करने का रोडमैप यही है कि धर्म का मुद्दा प्रभावी बना रहे. जनता को केवल और केवल मंदिरों की चमक दिखे, उस का ध्यान महंगाई, बेरोजगारी, खराब अर्थव्यवस्था, अस्पतालों में मरते लोगों की तरफ न जाए.

खबरिया चैनलों ने जो धार्मिक माहौल देश के सामने रख दिया है उस में विपक्ष भी चकाचौंध हो कर रह गया है. वह भी मोदी और भाजपा को घेरने के बजाय नोट पर लक्ष्मीगणेश की फोटो लगाने की वकालत कर के खुद को धर्म का रक्षक बताने लगे हैं. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी जनेऊ पहनने लगे हैं. ढह गया चौथा स्तंभ संविधान ने पत्रकारिता को लोकतंत्र में चौथे स्तंभ की संज्ञा दी थी. इस को ताकत देने का काम जनता पर छोड़ दिया था. राज और सरकार चलाने वालों ने ‘लोकतंत्र के चौथे स्तंभ’ को पंगु करने का काम किया. जनता ने उस को ताकत नहीं दी. लिहाजा, पत्रकारिता सरकार के रहमोकरम पर निर्भर हो गई.

सरकार ने अपने रहमोकरम की कीमत कुछ इस कदर वसूल की कि जिस से चौथा स्तंभ ढह गया. वह सरकार की रोटी देख कर दुम हिलाने लगा है. उस ने जनता के हित की जगह पर सरकार के हित को देखना और उस को लाभ पहुंचाना शुरू कर दिया है. जिस का विस्तार रूप यह है कि जो सरकार दिखाना और सम?ाना चाहती है वह जनता देख और सम?ा रही है. इस का सब से बड़ा नुकसान यह है कि वोट देने के लिए जनता अपने मुद्दे को भूल कर सरकार की उस चमक में फंस रही है जो खबरिया चैनल दिखा रहे हैं. जनता टीवी और मोबाइल पर दीपउत्सव, केदारनाथ और महाकाल की चमक में खोई है. उसे मोरबी के टूटे पुल, डेंगू में मर रहे मरीजों की परवा ही नहीं है. वह भूल गई कि नोटबंदी और तालाबंदी में क्या हुआ? उसे यह भी नहीं पता कि उस के घर में बेटाबेटी बेरोजगार भटक रहे हैं.

निजीकरण की आंधी जेब काट रही है. पैंशन और सुरक्षा खत्म हो गई है. उस को यह सम?ाया जा रहा है कि सब समय की बात है. जैसे कर्म पूर्वजन्म में किए हैं वही भोग रहे हैं. यह खतरनाक है. जनता की आंखों पर धर्म की पट्टी बंधी है. वह आपस में धार्मिक आधार पर बंट चुकी है. उस को साथ रहने की जगह, आपस में ?ागड़ने की शिक्षा दी जा रही है. इस में चौथे स्तंभ की भूमिका सब से अधिक विवादास्पद है. जो कुछ लोग सच बयान करने का काम कर रहे हैं, उन की आवाज को बंद करने, दबाने और उन को अप्रासंगिक बनाने का काम किया जा रहा है. जनता भी सोने के हिरन को देख कर चकाचौंध है. वह यह भूल चुकी है कि सोने के हिरन के कारण ही सीता का हरण हुआ था. वह धार्मिक मृगमरीचिका से बाहर निकलने को तैयार नहीं है.

बच्चों को खूब भाया यूपी-112 का सेंटा

लखनऊ । कथीड्रल चर्च में यूपी-112 की पहल से सेंटा ने नागरिकों को पुलिस की सेवाओं के प्रति जागरुक किया. पुलिस रिस्पांस वीहिकल (पीआरवी) के साथ नागरिकों ने सेल्फ़ी ली. सेंटा ने बच्चों को उपहार बाँटा. क्रिसमस के मौक़े पर लखनऊ के हज़रतगंज स्थित कथीड्रल चर्च में नागरिकों के लिए 24 दिसम्बर की देर शाम यूपी-112 द्वारा जागरूकता कार्यक्रम किया गया। इस मौक़े पर सेंटा क्लॉस द्वारा यूपी-112 की योजनाओं और सेवाओं को कार्टून के माध्यम से बताया गया।

बच्चों को कॉमिक बुक के माध्यम से पुलिस विभाग की सेवाओं के बारे में जागरुक किया गया। इस मौक़े पर अपर पुलिस अधीक्षक यूपी-112  द्वारा लोगों को बताया गया कि सिर्फ़ पुलिस सम्बन्धी सहायता के लिए ही नहीं बल्कि आग लगने पर, मेडिकल सम्बन्धी सहायता के लिए और किसी आपदा के समय भी यूपी-112 से सहायता ली जा सकती है।

हाईवे या ट्रेन में सफ़र के दौरान भी नागरिकों को 112 द्वारा सहायता प्रदान की जाती है .कार्यक्रम में और बच्चों को सेंटा द्वारा उपहार भी प्रदान किया गया।

छोटी अनु की वजह से अनुज और अनुपमा में आएगी दरार

टीवी का मशहूर शो अनुपमा इन दिनों लगातार टीआरपी लिस्ट में बा हुआ है, हर दिन इस सीरियल में नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं, जिसे फैंस देखना पसंद करते हैं.इस सबसे शो की रेटिंग लगातार बढ़ती हुई नजर आ रही है.

कुछ वक्त पहले इस सीरियल की कहानी पाखी और अधिक की लव स्टोरी पर आकर रुक गई थी, लेकिन इस वक्त अनुज अनुपमा के इर्द गिर्द घूम रहा है, जिसमें अनुपमा और अनुज में इन दिनों अनबन होती नजर आ रही है.

 

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अनुपमा और अनुज में शाह परिवार  की वजह से दरार आ रही है, छोटी अनु को अनुपमा वक्त नहीं दे पा रही है. अनुपमा शाह परिवार में होती है जहां पर छोटी अनु को पैनिक अटैक आता है और वहां अनुज तो पहुंच जाता है लेकिन अनुपमा नहीं पहुंचती है.

जिस वजह से अनुज के मन में अनुपमा के खिलाफ कड़वाहट भर जाता है.

अनु ये कहकर रोने लगती है कि क्या अनुपमा उसकी मां नहीं है प्लीज सच बताओ जिसके बाद से अनुज अनुपमा को समझाने की कोशिश करता है कि शाह परिवार की वजह से अपना रिश्ता खराब मत करो.

वहीं आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अनुपमा और अनुज में शाह परिवार की वजह से अनबन हो जाएगी. अब आगे एपिसोड में दिखाया जाएगा कि कैसे अनुपमा इस मुसीबत से बाहर आएगी.

Bigg Boss 16 : प्रियंका की हरकतों के लिए सलमान खान ने डांटा, कहा- महानता की देवी

बिग बॉस 16 से अंकित गुप्ता बाहर हो चुके हैं लेकिन प्रियंका चहर चौधरी ने जो कदम उनके लिए उठाया है वो शायद अब तक किसी ने नहीं उठाया होगा इतने सालों में

सलमान खान ने पिछले दिनों प्रियंका की क्लास लगाई और उन्होंने उन्हें महानता की देवी कहा कि इतने सालों में ऐसा कोई कंटेस्टेंट नहीं आया है जिन्होंने ऐसा काम किया हो, लेकिन प्रियंका आप ऐसा किया हो लेकिन आप एकलौती हैं जो बिना अपने बारे में सोचें अंकित के बारे में इतना सोचा.

जब प्रियंका से सलमान खान ने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि मैं अपनी दोस्ती को खत्म नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने ऐसा किया, क्योंकि मैं अपनी पुरानी दोस्ती को खराब नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने ऐसा किया है.

दरअसल , प्रियंका ने अंकित को बचाने के लिए बटन नहीं दबाया है, जिसके बाद से प्रियंका को घरवाले भी पहले से ज्यादा अलग नजर से देखऩे लगे हैं, सलमान खान ने कहा कि इस महान देवी की पूजा करो. आगे सलमान ने कहा कि अगर आप किसी के बारे में इतना ज्यादा सोच रही है लेकिन अगर आपके साथ ऐसा कोई नहीं करेगा तो आपको कितनी तकलीफ होगी .

सलमान के इस बात पर प्रियंका ने कोई जवाब नहीं दिया. खैर घर में अंकित के जाने के बाद से खबर है की किसी नए सदस्य की एंट्री हो सकती है. खैर पूरे घरवालों को प्रियंका से सफाई चाहिए कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया.

 

मेरी उम्र 38 साल है मुझे अपने वैजाइना से स्मैल आती है, क्या मुझे डॉक्टर को दिखाना चाहिए?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल हैअविवाहित हूं. हमेशा तो नहीं लेकिन कभीकभी मुझे अपनी वैजाइना से स्मैल आती है. यूरिन के बाद वौश कर लेती हूं तो कोई गंध नहीं आती लेकिन वौश न करूं तो गंध आती है. क्या मुझेो डाक्टर को दिखाना चाहिए?

जवाब

अधिकतर लेडीज में यह देखा जाता है कि उन की वैजाइना से बदबू आती है. ऐसे में वे परेशान हो जाती हैं. इस में परेशान होने की जरूरत नहीं है. कई बार यह गंध पसीना और वैजाइनल डिस्चार्ज की वजह से भी हो सकती है. इसलिए इसे नौर्मल सम?ा जाना चाहिए.

वैजाइना को साफ करने के बाद यह समस्या दूर हो जाती है लेकिन कई मामलों में यह समस्या कोई बड़ी बीमारी की वजह से हो सकती है. अगर वैजाइना साफ करने के बाद भी स्मैल बनी रहती है तो ऐसी स्थिति में आप को तुरंत ही किसी गाइनीकोलौजिस्ट से जांच करवानी चाहिए.

यूनिफौर्म सिविल कोड: न यूनिफौर्म, न सिविल, न कोड, सिर्फ लौलीपौप होगा

विवाह, उत्तराधिकार और विवाह विच्छेद यानी तलाक के मसलों को हल करने के लिए यूनिफौर्म सिविल कोड को बनाने का शिगूफा लंबे समय से छोड़ा जा रहा है, जबकि इन मसलों को हल करने के लिए स्पैशल मैरिज एक्ट यानी विशेष विवाह कानून देश में 1954 से लागू है. ऐसे में यूनिफौर्म सिविल कोड की बात करना बेमानी है. जरूरत यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट को ही माना जाए और बाकी विवाह कानूनों की मान्यता खत्म कर दी जाए.

इस के बाद यूनिफौर्म सिविल कोड जैसे किसी कानून की जरूरत नहीं रहेगी. हाल के कुछ सालों में देश में जिस तरह से बिना किसी तैयारी के कानून बनाए और लागू किए जा रहे हैं उस से साफ यह लगता है कि यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी में भी कोई नया रास्ता नहीं होगा. मिसाल के तौर पर, कश्मीर में अनुच्छेद 370, कृषि कानून, सीएए यानी सिटिजन अमैंडमैंट एक्ट और एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर फौर सिटिजन को ले कर जिस तरह सरकार ने किया उस से स्पष्ट होता है कि यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी में न कुछ यूनिफौर्म होगा, न सिविल होगा, न कोड होगा बल्कि यह ढाक के तीन पात ही होगा. अगर यूनिफौर्म सिविल कोड बनता है तो उस में नया कुछ नहीं होगा. उस में सभी जातियों और धर्मों के विवाह कानून को जारी रखते हुए 2 बदलाव होंगे.

पहला, शादी के समय पहली पत्नी या पति या तो जिंदा न हो या दोनों के बीच कानूनन अलगाव हो चुका हो. दूसरा, तलाक या संबंध विच्छेद के बारे में यह कहा जाएगा कि इस का फैसला सिविल कोर्ट करेगी. जीएसटी को ले कर सरकार ने यही किया है. एक देश एक कानून के नाम पर जीएसटी कानून बना जिस में 10 तरह के अलगअलग नियम बना दिए गए. असल बात यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट में विवाह के लिए धार्मिक पक्ष को मान्यता नहीं दी गई है. इस की वजह से यूसीसी के जरिए इस कानून को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास किया जा रहा है. यूनिफौर्म सिविल कोड यूसीसी में विवाह के धार्मिक पक्ष को बचाने का काम होगा, सो, वह लौलीपौप बन कर रह जाएगा, यूनिफौर्म नहीं रहेगा.

जैसे, जीएसटी एक ही दर का एक टैक्स नहीं है. ऐसे में जरूरी यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट ही सब से उपयोगी होगा जिस में सभी जातियों और धर्मों के लिए एक सा नियमकानून होगा. यूसीसी को ले कर जिस तरह की कवायद उत्तराखंड की सरकार कर रही है उसे देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूसीसी के नाम पर सरकार क्या करने वाली है? 27 मार्च, 2022 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी बनाने के लिए 5 सदस्यीय समिति का गठन किया था.

समिति ने 6 माह के लंबे समय, चुनाव के कुछ समय पहले ही, के बाद यूसीसी पर रायशुमारी के लिए 8 सितंबर को वैबसाइट लौंच की. इस में लोगों से डाक और ईमेल के माध्यम से भी सु?ाव मांगे गए. इस समिति को लिखित रूप से मिले सु?ावों की संख्या भाजपा प्रचारतंत्र द्वारा लगभग साढ़े तीन लाख से ज्यादा बताई गई और दावा किया गया कि डाक, ईमेल और औनलाइन सु?ावों को मिला कर यह संख्या साढ़े चार लाख से ज्यादा है. लेकिन इन सु?ावों में क्या है, यह नहीं बताया गया. उस की अधिकृत साइट पर जो नंबर है वह 60,810 है. मुख्यमंत्री धामी ने समिति से 6 महीने में रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था. 6 माह में रिपोर्ट के नाम पर समिति केवल रायशुमारी के लिए वैबसाइट लौंच कर पाई. तय समय में यह समिति सरकार को रिपोर्ट नहीं दे पाई है.

इस में समिति से अधिक सरकार की गलती है. सरकार को यह समिति उत्तराखंड हाईकोर्ट के जस्टिस की अध्यक्षता में गठित करनी चाहिए थी. वह उत्तराखंड की जरूरतों को आसानी से सम?ा सकता और समिति का काम जल्द हो जाता. उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य जब यूसीसी समय पर नहीं बना पाए तो पूरे देश में इस का क्या हाल होगा, आसानी से सम?ा जा सकता है. इस समिति ने भी सु?ाव लेने के लिए बड़े कठिन नियम बना डाले. सु?ाव देने से पहले ही सु?ाव देने वाले को अपना पूरा कच्चा चिट्ठा देना था. खुद का नाम, मातापिता का नाम, ईमेल आईडी, पता, पते के प्रूफ की आईडी की कौपी, मोबाइल नंबर मांगा गया था और फिर ओटीपी भेज कर पुष्टि की गई.

कौन बेवकूफ इस सारी जहमत को इसलिए उठाएगा कि कोई दूसरा कैसे, कितनी शादियां करे. सु?ाव विवाह, तलाक, संपत्ति अधिकारों, विरासत, गोद लेनेदेने की प्रक्रिया और संरक्षण के अधिकारों के बारे में पूछे गए और हिंदुओं और मुसलिमों दोनों के कानूनों के बारे में सु?ाव मांगे गए. मजेदार बात यह है कि सु?ाव देने वाले का कच्चा चिट्ठा तो देसाई कमेटी ने मांगा पर देने वाले की धार्मिक संस्था का कच्चा चिट्ठा तक नहीं मांगा जबकि आग्रह सूचना में कहा गया है धार्मिक संस्था व राजनीति दल सु?ाव दें. धार्मिक संस्थाएं व राजनीतिक दल कल क्या करते हैं, यह कमेटी की पूछने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि यह कमेटी राजनीतिक हल्ला मचाने के लिए गठित की गई थी, किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए नहीं. उत्तराखंड ही नहीं, भाजपाशासित कई और राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी यह बात जोरशोर से उठाई गई. यही नहीं, इस को ले कर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘सीएए, धारा 370 और ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों के फैसले हो गए हैं, अब कौमन सिविल कोड की बारी है.’’ धारा 370 के बाद कश्मीर वैसा का वैसा और तीन तलाक के खिलाफ चंद मामले ही देशभर में दर्ज हुए हैं, जिस से साबित होता है कि दोनों कदम केवल कट्टर हिंदुओं को भरमाने के लिए ही हैं और यूसीसी भी वैसा ही है. इस कड़ी में अगला नाम गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का जुड़ गया. 29 अक्तूबर को मुख्यमंत्री ने कैबिनेट की बैठक में गुजरात में यूसीसी लागू करने के लिए एक समिति गठित करने का फैसला लिया. रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में समिति गठित कर दी गई. वहीं, हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इस का वादा किया कि विधानसभा चुनाव में जीत मिलने पर हिमाचल प्रदेश में यूसीसी को लागू किया जाएगा. इस के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जिस की सिफारिशों के आधार पर यूसीसी लागू किया जाएगा.

भाजपा के राज वाले 3 राज्य उत्तराखंड, गुजरात और हिमाचल में यूसीसी की बात केवल फाइलों तक ही सीमित है. चुनाव और कुछ खास मौकों पर एक तरह से भाजपा यूनिफौर्म सिविल कोड को ले कर हवा बनाती रहती है. सचाई यह है कि यूसीसी को ले कर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दिया था. इस में कहा गया कि केंद्र सरकार संसद में यूसीसी पर कोई कानून बनाने नहीं जा रही है. वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से यह याचिका दाखिल की गई थी जिस में उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेने, विवाह, तलाक, रखरखाव और गुजारा भत्ता को विनियमित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की गई थी. केंद्र सरकार को चाहिए कि यूसीसी की जगह पर नई कवायद करने के बजाय स्पैशल विवाह अधिनियम 1954 को समान रूप से सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य कर दे जिस से विवाह, जायदाद और उत्तराधिकार के मसले सुल?ाना आसान हो जाएगा. स्पैशल विवाह अधिनियम 1954 में वह सब है जो यूसीसी में जरूरत होगी और इस में पंडेपुजारी, मुल्ला, पादरी की जगह मजिस्ट्रेट ले लेते हैं.

यह धार्मिक गुर्गों को कतई स्वीकार न होगा. वास्तविकता में भाजपा क्यों नहीं लागू करना चाहती यूसीसी यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी लागू हो जाने से पूरे देश में शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे सभी सामाजिक मुद्दे धर्म और निजी कानून की जगह पर एकसमान कानून के हिसाब से तय होंगे. धर्म के आधार पर कोई अलग व्यवस्था नहीं होगी. इस का प्रभाव मुसलिम से कहीं अधिक हिंदुओं पर पड़ेगा. हिंदुओं में कुंडली मिलान से ले कर विवाह संपन्न कराने तक में ब्राह्मणों की व्यवस्था खत्म हो जाएगी. महिलाओं को समान अधिकार यानी बराबरी का दरजा मिल सकेगा. यही नहीं, हर तरह की समानता होने से जातीय विभेद कम होगा जिस से जाति और धर्म के नाम पर भाजपा की वोटबैंक की राजनीति असरदार नहीं रह जाएगी.

यही वे पेंच हैं जिन के कारण भाजपाई सरकार यूसीसी को ले कर कोई मसौदा नहीं बना पा रही है. वह यानी भाजपा केवल मुसलिम विरोध को हवा दे कर हिंदुओं को खुश रखने की कोशिश चुनावदरचुनाव करती है. यूसीसी भारतीय जनता पार्टी के मूल एजेंडे का प्रमुख हिस्सा है. भारतीय जनसंघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 1951 में की गई थी. उस के 3 मुख्य उद्देश्य थे. उन में कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना, अयोध्या में राममंदिर बनाना और देश में यूसीसी लागू करना. थोड़ी गहराई से देखा जाए तो यह एजेंडा भारतीय जनसंघ के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का है. 1984 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को केवल 2 सीटें मिलीं तो संघ ने भाजपा को अपने अनुसार चलने के लिए बाध्य कर दिया. संघ यानी आरएसएस को लग चुका था कि बिना हिंदुत्व के पार्टी का आगे बढ़ना संभव नहीं है. इस के बाद भाजपा को राममंदिर आंदोलन के लिए कमर कसनी पड़ी.

संघ को यह साफ लग रहा था कि बिना हिंदुत्व के भाजपा का जनाधार नहीं बढ़ेगा. राममंदिर की सीढि़यां चढ़ते हुए 5 साल के बाद भाजपा ने 1989 में लोकसभा चुनाव में वी पी सिंह को केंद्र में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया. केंद्र में सरकार का हिस्सा बनने के साथ ही साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में भाजपा ने अपनी सरकार बना ली. हिंदुत्व के मुद्दे पर मिली ताकत ने ही 1996 और 1998 में भाजपा ने सहयोगी दलों की मदद से केंद्र में सरकार बनाई. अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा की तरफ से देश के पहले प्रधानमंत्री बने. अटल सरकार सहयोगी दलों के साथ बनी थी, इस कारण वह आरएसएस के हिंदुत्व वाले एजेंडे को ले कर मुखर नहीं हो रही थी. आरएसएस का सारा दबाव यह था कि अटल सरकार अयोध्या में राममंदिर के लिए संसद में कानून बनाए. अटल बिहारी वाजपेयी जब इस के लिए तैयार नहीं हुए तो वहां से आरएसएस के मन में खटास आने लगी.

यही वजह थी कि 2004 के लोकसभा चुनाव में संघ और उस से जुड़े लोगों ने भाजपा को चुनाव जिताने में कोई मदद नहीं की. उस दौर के भाजपा के दोनों नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी संघ की नजर में अपना महत्त्व खो बैठे थे. लिहाजा, 10 साल भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई. 2009 के बाद भाजपा में नेताओं का पीढ़ी परिवर्तन शुरू हुआ. कट्टर हिंदू समर्थकों को पार्टी में महत्त्व दिया गया. भाजपा के तमाम मुलायम नेताओं को दरकिनार कर के कट्टर छवि रखने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया. इस के बाद संघ ने चुनाव जीतने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत से सरकार बनाई. 2017 में उत्तर प्रदेश में भी कट्टर छवि वाले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. संघ को इस बात की जल्दी थी कि उस के 3 प्रमुख मुद्दे पूरे हों. अयोध्या में राममंदिर बनाना, कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाना, साथ ही साथ राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक यानी सीएए पर काम करना यूसीसी बनाने की पहली सीढ़ी माना गया था पर जितनी आसानी से राममंदिर और अनुच्छेद 370 का मसला कानूनी दस्तावेजों में दिखा दिया गया यूसीसी को कानूनी बनाना उतना सरल नहीं. मसलन, यह भाजपा के लिए बैकफायर करेगा. इस कारण से यहां भाजपा फूंकफूंक कर अपने कदम रख रही है. भाजपा हर चुनाव के पहले इस की माला जपती है.

चुनाव खत्म होते ही भूलती है. प्रयोग के तौर पर उत्तराखंड और गुजरात में यह इस के मसौदे पर काम करते दिख रही है पर उस का यह काम पूरे बेमन से हो रहा है. चुनाव के बाद इसे बस्ते में डाल दिया जाएगा. विवाह बाजार और धर्म की दुकानदारी की रीढ़ है. सुप्रीम कोर्ट ने गेंद सरकार के पाले में डाली यूसीसी को ले कर कई जनहित याचिकाओं के याचिकाकर्त्ताओं ने विवाह, तलाक, भरणपोषण और गुजारा भत्ता (पूर्व पत्नी या पति को कानून द्वारा भुगतान किया जाने वाला धन) को विनियमित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की थी. याचिकाओं में तलाक के कानूनों के संबंध में विसंगतियों को दूर करने और उन्हें सभी नागरिकों के लिए एकसमान बनाने तथा बच्चों को गोद लेने एवं संरक्षकता के लिए समान दिशानिर्देश देने की मांग की गई थी.

न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले में केंद्र सरकार को कोई मार्गदर्शन नहीं दे सकता क्योंकि यह नीति का मामला है जिस का फैसला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को करना चाहिए. विधायिका को कानून पारित करने या वीटो करने की शक्ति है. विधि मंत्रालय ने विधि आयोग से सामान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और समुदायों को शासित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों की संवेदनशीलता, उन के गहन अध्ययन के आधार पर विचार करते हुए सिफारिशें करने का अनुरोध किया था. 21वें विधि आयोग ने अगस्त 2018 में परिवार कानून में सुधार शीर्षक से एक परामर्शपत्र जारी किया था लेकिन 21वें विधि आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में ही समाप्त हो गया. यूसीसी पूरे देश के लिए एकसमान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है. संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एकयूसीसी सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.

अनुच्छेद 44 संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में से एक है. अनुच्छेद 44 का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की अवधारणा को मजबूत करना है. संयुक्त परिवार की संपत्ति का सिस्टम खत्म यूसीसी से हिंदुओं का उत्तराधिकार कानून भी प्रभावित होगा. हिंदू विवाह और उत्तराधिकार कानून बदल जाएंगे. इस कानून के लागू होने के बाद से एक ही कानून से पूरे देश के रहने वालों को काम करना पड़ेगा. हिंदुओं पर अधिक प्रभाव यूसीसी को ले कर किसी भी सरकार ने कोई नियम नहीं बनाया है. आमतौर पर भाजपा के समर्थक हिंदुओं को यह लगता है कि यूसीसी से केवल मुसलमानों का नुकसान होगा. वे 4 शादियां और मनमानी तरह से तलाक नहीं ले पाएंगे. वे यह भूल जाते हैं कि यूसीसी लागू होने से सब से बड़ा नुकसान हिंदुओं और उन में भी खासकर ब्राह्मणों को होगा. इस की वजह यह है कि इस कानून के बाद हिंदू रीतिरिवाजों से होने वाली शादी का महत्त्व खत्म हो जाएगा. ब्राह्मणों को हिंदू रीतिरिवाजों से होने वाली शादियों में ही सब से अधिक कमाई करने का मौका मिलता है. स्पैशल मैरिज एक्ट में शादी ही नहीं, कुंडली और तमाम तरह के दोष दूर करने से होने वाला लाभ बंद हो जाएगा और शादियों में रोड़े अटकाने वाले दलाल मजिस्ट्रेटों के दफ्तरों के सामने मंडराते रहेंगे जो हिंदू जोड़ों से कहते हैं कि वे बिना गवाह शादी करा देंगे.

क्या है यूनिफौर्म सिविल कोड यूनीफौर्म सिविल कोड यानी की अवधारणा का विकास भारत में तब हुआ जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिस में अपराधों, सुबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया गया. उस रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई. ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निबटने वाले कानूनों की संख्या में वृद्धि ने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को बनाने लिए बी एन राव समिति का गठन किया. इन सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में एक विधेयक को अपनाया गया. हालांकि मुसलिम, ईसाई और पारसी लोगों के लिए अलगअलग व्यक्तिगत कानून थे. कानून में समरूपता लाने के लिए विभिन्न न्यायालयों ने अकसर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को एक यूसीसी सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए. सामान नागरिक संहिता बनाने का अर्थ होगा कि कोई भी किसी भी धर्म वाले से खुलेआम शादी कर सकेगा.

1985 के शाह बानो प्रकरण और 1995 में सरला मुदगल मुकदमा चर्चा में रहा जोकि बहुविवाह के मामलों और उस से संबंधित कानूनों के बीच विवाद से जुड़ा हुआ था. यह तर्क दिया जाता है कि ट्रिपल तलाक और बहुविवाह प्रथा एक महिला के सम्मान तथा उस के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल व क्रिमिनल मामलों में एक यूसीसी का पालन करते हैं, जैसे भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882, भागीदारी अधिनियम 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 इंडियन पीनल कोड, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड आदि. राज्यों ने कई कानूनों में संशोधन किए हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है. गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां यूसीसी लागू है. यूसीसी का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है. हर नागरिक पर लागू होगा यूनिफौर्म सिविल कोड यूसीसी विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी. परिणामस्वरूप, समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों. इस से भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को बल मिलेगा. इस से धार्मिक प्रथाओं के आधार पर अलगअलग नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिए एकसमान कानून बन जाएगा. यूसीसी के लागू होते ही वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिस से उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निबटा जा सकेगा. पर, इस से पंडों, मौलवियों, पादरियों की दुकानें बंद हो जाएंगी क्योंकि यूसीसी में सारी शादियां या तो मजिस्ट्रेटों द्वारा की जाएंगी या केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा अधिकृत मैरिज अफसरों द्वारा. सभी धार्मिक शादियों को तो अवैध करना होगा. इस का प्रभाव विभिन्न समुदायों के रीतिरिवाजों पर पड़ेगा.

यह भी एक गलत धारणा है कि हिंदू एकसमान कानून द्वारा शासित होते हैं. उत्तर में निकट संबंधियों के बीच विवाह वर्जित है लेकिन दक्षिण में इसे शुभ माना जाता है. पर्सनल लौ में एकरूपता का अभाव मुसलमानों और ईसाइयों के लिए भी सही है. संविधान द्वारा नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्थानीय रीतिरिवाजों को सुरक्षा दी गई है. व्यक्तिगत कानूनों की अत्यधिक विविधता के चलते किसी भी प्रकार की एकरूपता लाना कठिन हो जाता है. देश के विभिन्न समुदायों को एक मंच पर लाना कठिन काम है. यूसीसी में आदिवासियों पर भी वही कानून लागू होगा जो दिल्ली के हिंदू शहरियों पर लागू होता है. सचाई यह है कि यूसीसी की मांग केवल सांप्रदायिकता की राजनीति के लिए की जाती है. समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे हिंदूवाद के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखता है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है. ऐसे में यूसीसी लागू करना मुश्किल ही नहीं बेहद मुश्किल है. यूसीसी का पुराना राग जब 1930 में जवाहरलाल नेहरू ने यूसीसी का समर्थन किया तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा इस का विरोध किया गया. यूसीसी का अर्थ एक धर्म और पंथ निरपेक्ष (सैक्युलर) कानून होता है.

जो सभी धर्म और पंथ के लोगों पर समानरूप से लागू होता है. विश्व के जिन देशों में यह कानून लागू है उन में अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बंगलादेश, मलयेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश हैं. भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं. हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लिए एक व्यक्तिगत कानून है, जबकि मुसलमानों और ईसाइयों के लिए अपनेअपने कानून हैं. मुसलमानों का कानून शरीयत पर आधारित है. अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं. भारत में यह विवाद ब्रिटिशकाल से ही चला आ रहा है. अंगरेज मुसलिम समुदाय के निजी कानूनों में बदलाव कर उस से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे. 1882 में हैस्ंिटग्स योजना में शरीयत कानून लागू हो गया था. समान नागरिकता कानून उस वक्त कमजोर पड़ने लगा जब सैक्यूलरों ने मुसलिम तलाक और विवाह कानून को लागू कर दिया.

1929 में, जमीयत अल उलेमा ने बाल विवाह रोकने के खिलाफ मुसलमानों को अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने की अपील की. इस बड़े अवज्ञा आंदोलन का अंत उस सम?ाते के बाद हुआ जिस के तहत मुसलिम जजों को मुसलिम शादियों को तोड़ने की अनुमति दी गई. क्या कहा था डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संविधान को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले डाक्टर बी आर अंबेडकर ने कहा, ‘‘मैं व्यक्तिगत रूप से सम?ा नहीं पा रहा हूं कि किसी धर्म और मजहब को यह विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार क्यों दिया जाना चाहिए कि वह लोगों के निजी, पारिवारिक मसले तय करे. ऐसे में तो धर्म जीवन के प्रत्येक पक्ष में हस्तक्षेप करेगा और विधायिका को उस क्षेत्र पर अतिक्रमण से रोकेगा. यह स्वतंत्रता हमें क्या करने के लिए मिली है? हमारी सामाजिक व्यवस्था असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी है. यह स्वतंत्रता हमें इसलिए मिली है कि हम इस सामाजिक व्यवस्था में जहां हमारे मौलिक अधिकारों के साथ विरोध है वहांवहां सुधार कर सकें.

’’ वे यूसीसी से सहमत थे. यूसीसी का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है. इस में नीतिनिर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा. सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार यूसीसी लागू करने की दिशा में केंद्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है. इस के बाद भी सरकारें इस को लागू करने से डर रही हैं. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता शब्द को इस में जगह दी गई. इस से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत के समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर किसी भी भेदभाव को समाप्त करना है. लेकिन वर्तमान समय तक यूसीसी के लागू न हो पाने के कारण भारत में एक बड़ा वर्ग अभी भी धार्मिक कानूनों की वजह से अपने अधिकारों से वंचित है. सामाजिक और राजनीतिक विरोध से उपजे सवाल यूनिफौर्म सिविल कोड को लागू करने में कदमकदम पर बड़ी चुनौतियां हैं. एक तरफ जहां अल्पसंख्यक समुदाय नागरिक संहिता को अनुच्छेद 25 का हनन मानता है,

वहीं इस के समर्थक यूसीसी की कमी को अनुच्छेद 14 का अपमान मानते हैं. सवाल उठता है कि क्या सांस्कृतिक विविधता से इस हद तक सम?ाता किया जा सकता है कि समानता के प्रति हमारा आग्रह क्षेत्रीय अखंडता के लिए ही खतरा बन जाए? क्या एक एकीकृत राष्ट्र को ‘समानता’ की इतनी जरूरत है कि हम विविधता की खूबसूरती की परवा ही न करें? दूसरी तरफ सवाल यह भी है कि अगर हम सदियों से अनेकता में एकता का नारा लगाते आ रहे हैं तो कानून में एकरूपता से आपत्ति क्यों? क्या एक संविधान वाले इस देश में लोगों के निजी मामलों में भी एक कानून नहीं होना चाहिए? मुसलिम विरोध से उपजा हिंदुत्व का समर्थन हिंदुत्व के समर्थक इस कानून का समर्थन सिर्फ इस वजह से कर रहे हैं क्योंकि मुसलिम इस का विरोध कर रहे हैं. मुसलिम समाज यूसीसी का विरोध करते संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देता है. वह कहता है कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है. इसलिए सभी पर समान कानून थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा.

मुसलिमों के मुताबिक उन के निजी कानून उन की धार्मिक आस्था पर आधारित हैं, इसलिए यूसीसी लागू कर उन के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए. मुसलिम विद्वानों के मुताबिक शरीया कानून 1400 साल पुराना है, क्योंकि यह कानून कुरान और पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं पर आधारित है. यह उन की आस्था का विषय है. मुसलिमों को लगता है कि उन की धार्मिक आजादी धीरेधीरे उन से छीनने की कोशिश की जा रही है. मुसलमानों का विरोध करते वक्त हिंदुत्व के समर्थक यह नहीं सम?ा पा रहे कि केवल मुसलिम ही नहीं, हिंदू कानून भी खत्म हो जाएंगे. हिंदू धर्म में विवाह को एक संस्कार माना जाता है, वहीं इसलाम, ईसाइयों और पारसियों के रीतिरिवाज भी अलगअलग हैं. लिहाजा हर वर्ग के विवाह और उत्तराधिकार कानून पर असर पड़ेगा. 1948 में हिंदू कोड बिल संविधान सभा में लाया गया तब देशभर में इस बिल का जबरदस्त विरोध हुआ था. बिल को हिंदू संस्कृति तथा धर्म पर हमला करार दिया गया था. सरकार इस कदर दबाव में आ गई कि तत्कालीन कानून मंत्री भीमराव अंबेडकर को पद से इस्तीफा देना पड़ा. यही कारण है कि कोई भी राजनीतिक दल यूसीसी के मुद्दे पर जोखिम नहीं लेना चाहता. औरतों को मिलने वाली आजादी पचेगी नहीं भाजपा को यूसीसी के लागू होने से धार्मिक आधार पर महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव और गैरबराबरी के भाव को रोका जा सकेगा. सब से बड़ी आजादी तो उन मुसलिम और हिंदू महिलाओं को मिल सकेगी जो बहुविवाह और हलाला जैसी प्रथाओं का शिकार होती हैं. किसी भी सामाजिक सुधार का प्रभाव धर्म पर पड़ता है. जब राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई थी तो उन का धार्मिक विरोध हुआ था.

जब तक धर्म के भीतर की कुरीतियां खत्म नहीं होंगी, कोई सुधार नहीं हो सकता. हलाला और मुताह यानी कौन्ट्रैक्ट मैरिज जैसी कुरीतियों से बाहर निकलने के लिए धर्म का विरोध सहना पड़ेगा. किसी बदलाव को बहुत दिन रोका नहीं जा सकता. आज ईरान जैसे देश में परदाप्रथा का विरोध हो रहा है. इसी तरह कल जनता ही ऐसी कुप्रथाओं के खिलाफ खड़ी हो जाएगी. यूनीफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी का विरोध करने वालों का यह तर्क बेमानी है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. यदि चाहते हैं कि यूसीसी बने तो धार्मिक स्वतंत्रता का ध्यान रखा जाए. जबकि यूसीसी का अर्थ है- ‘भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एकसमान कानून चाहे वह किसी भी धर्म और जाति का क्यों न हो.’ यूसीसी में शादी, तलाक और जमीनजायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा. यूसीसी सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होने के लिए एक देश एक नियम का सा होगा.

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