सरकारी दफ्तरों में काम करने का अपना ही मजा है और आजकल तो हम जैसे क्लर्कों के पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे. आखिर नए आए साहब ने खुद के साथ हमें भी तो सरकारी माल उड़ाने की खुली छूट दे रखी है. जिस तरह पुलिस को किस्मकिस्म के चोरों से वास्ता पड़ता है, उसी तरह मु?ो भी सरकारी नौकरी में किस्मकिस्म के अफसरों से वास्ता पड़ा है पर उन सब में से आज भी मु?ो कोई याद है तो बस, एक वे. अन्य का तो औफिस में होना या न होना एकजैसा था. बहुत कम ऐसे अफसर होते हैं जो सचमुच औफिसों में काम करने आते हैं और जातेजाते मेरे जैसों के जेहन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं. वाह, क्या साहब थे वे. उन के चेहरे पर साहबी का क्या नूर था.
आज भी जब उन को याद करता हूं तो कलेजा मुंह को नहीं, मुंह से बाहर आ जाता है. तब उसे मुंह के रास्ते फिर उस की जगह बैठाना पड़ता है. आज भी उन के हौसले को दाद दिए नहीं रह पाता. कितने निडर, कितने साहसी. मानो उन के ऊपर तक संबंध न हों बल्कि ऊपर तक वे ही हों. जो कर दिया, सो कर दिया. कोई उन से पूछने वाला नहीं, कोई उन से जू?ाने वाला नहीं. कई बार तो उन की निडर हरकतें देख कर ऐसा लगता था जैसे वे हर जन्म में साहब ही बने हों. जिस के पास जन्मजन्म का अफसरी अनुभव हो वही ऐसे बोल्ड काम कर सकता है, मित्रो. उन के चेहरे से ही नहीं, उन के रंगढंग से ही नहीं, उन के तो अंगअंग से ही साहबी टपकती थी.