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पंच परमेश्वर पर भाजपा का “फंदा”

यह आज का कठोर सच है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उनकी सरकार का एक ही लक्ष्य है सभी “संवैधानिक संस्थाओं” को अपने पाकेट में रख लेना और अपने मनोनुकूल देश को चलाना. किसी भी तरह के विरोध को नेस्तनाबूत कर देना.

देश के संविधान की शपथ लेकर सत्ता में आए भारतीय जनता पार्टी के यह चेहरे‌ ऐसा प्रतीत होता है वस्तुतः संविधान पर आस्था नहीं रखते, जिस तरह इन्होंने अपने भाजपा के संगठन में उदार चेहरों को हाशिए पर डाल दिया है वही स्थिति यहां भी कायम करना चाहते हैं. यह देश को उस दिशा में ले जाना चाहते हैं जो बहुत कुछ पाकिस्तान और तालिबान की है. यही कारण है कि अब कार्यपालिका, विधायिका के साथ चुनाव आयोग, सूचना आयोग को लगभग प्रभाव में लेने के बाद यह उच्चतम न्यायालय अर्थात न्यायपालिका को भी अपने मनोनुकूल बनाने के लिए बड़े ही उद्दंड रूप में सामने आ चुकी है.

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा राष्ट्रीय स्वयं संघ से अनुप्राणित होती है जो देश की आजादी और देश को संजोने के लिए अपने प्राण देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,भगत सिंह, डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे नायकों के विचारधारा से बिल्कुल उलट है. और जब कोई विपरीत विचारधारा सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होती है तो वह लोकतंत्र पर विश्वास नहीं करती बल्कि तानाशाही को अपना आदर्श मानकर आम लोगों की भावनाओं को कुचल देना चाहती है और अपने विरोधियों को नेस्तनाबूद.
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कोलोजियम से कष्ट है
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आज सबसे ज्यादा कष्ट केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार को उच्चतम न्यायालय के कोलोजियम सिस्टम से है. भाजपा के नेता या भूल जाते हैं कि जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी अथवा अन्य दल तब भी यही सिस्टम काम कर रहा था क्योंकि यही आज की स्थिति में सर्वोत्तम है इसे बदलकर अपने अनुरूप करने की कोशिश देश हित में लोकतंत्र के हित पर नहीं है. कांग्रेस ने सोमवार को केंद्र सरकार पर न्यायपालिका पर कब्जा करने के लिए उसे डराने और धमकाने का आरोप लगाया है कांग्रेस पार्टी ने यह आरोप केंद्रीय कानून किरण रिजीजू की ओर से प्रधान न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ को लिखे उस पत्र के मद्देनजर लगाया, जिसमें रिजीजू ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कालेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है.

रिजीजू ने प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग करते हुए कहा है कि इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही लाने में मदद मिलेगी. इस पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘ उपराष्ट्रपति ने हमला बोला. कानून मंत्री ने हमला किया. यह न्यायपालिका के साथ सुनियोजित टकराव है, ताकि उसे धमकाया जा सके और उसके बाद उस पर पूरी तरह से कब्जा किया जा सके.’ उन्होंने कहा कि कालेजियम में
सुधार की जरूरत है, लेकिन यह सरकार उसे पूरी तरह से अधीन करना चाहती है. यह उपचार न्यायपालिका के लिए विष की गोली है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस मांग को बेहद खतरनाक करार दिया। उन्होंने ट्वीट किया -” यह खतरनाक है. न्यायिक नियुक्तियों में सरकार का निश्चित तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.” भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा इतनी अलोकतांत्रिक है कि वह न तो विपक्ष चाहती है और ना ही कहीं कोई विरोध अवरोध यही कारण है कि सत्ता में आने के बाद वह सारे राष्ट्रीय चिन्ह और धरोहर जो स्वाधीनता लड़ाई से जुड़ी हुई है अथवा कांग्रेस पार्टी से उन्हें धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है इसके साथ ही सबसे खतरनाक स्थिति है कि आज सत्ता बैठे हुए देश के जनप्रतिनिधि देश की संवैधानिक संस्थाओं को सुनियोजित तरीके से कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं और चाहते हैं कि यह संस्था हमारी जेब में रहे हम जो चाहे वही होना चाहिए यह हमने देखा है कि किस तरह चाहे वह राष्ट्रपति हो अथवा उपराष्ट्रपति अथवा राज्यपालों की नियुक्तियां भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ऐसे चेहरों को इन कुर्सियों पर बैठा रही है जो पूरी तरह अनुकूल है. एक बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष कहो ना उतना ही जरूरी है जितना कि देश को गति देने के लिए सत्ता मगर अब यह प्रयास किया जा रहा है कि विपक्ष खत्म कर दिया जाए और संवैधानिक संस्थाओं को अपने पॉकेट में रख कर देश को एक अंधेरे युग और ढकेल दिया जाए जहां हम जो चाहे वही अंतिम सत्य हो.

लाडो का पीला झबला : परिवार और प्यार की कहानी

सुबह सुबह ही शाहिस्ता ने सोहेल से कहा, ‘‘आज वक्त निकाल कर अपने लिए नई पतलून ले आइए. अब तो रफू के धागे भी जवाब दे चुके हैं.’’ सोहेल ने बड़ी बुलंद आवाज में कहा, ‘‘बेगम का हुक्म सिरआंखों पर. आज तो दिन भी बाजार का.’’

हर जुमेरात पर शहर के छोर पर नानानानी पार्क के पास वाली सड़क पर बाजार लगता था. सोहेल ने जल्दीजल्दी अपना काम खत्म कर के बाजार का रुख कर लिया. दिमाग में हिसाब चालू था. 2 ईद गुजर चुकी थीं, उसे खुद के लिए नया जोड़ा कपड़ा लिए हुए. इस बार 25 रुपए बचे हैं, महीने के हिसाब से… पूरे 12 किलोमीटर चलने के बाद बाजार आ ही गया. शाम बीतने को थी. अंधेरा हो चुका था. बाजार ट्यूबलाइट और बल्ब की रोशनी से जगमगा रहा था.

सोहेल ने अपनी जेब की गहराई के मुताबिक दुकान समझी और यहांवहां नजर दौड़ाने लगा. अचानक उस की नजर एक तरफ सजे हुए झबलों पर पड़ी. नीले, लाल, हरे, पीले और बहुत से रंग. दुकानदार ने सोहेल को कुछ पतलूनें दिखाईं. मोलभाव शुरू हुआ. 20 रुपए की पतलून तय हुई.

सोहेल ने पूछा, ‘‘भाई, बच्चों के वे रंगबिरंगे झबले कितने के हैं?’’ दुकानदार ने कहा, ‘‘25 के 3. कोई मोलभाव नहीं हो पाएगा इस में.’’सोहेल ने जेब से पैसे निकाले और 3 झबले ले लिए. 12 किलोमीटर चल के घर आतेआते रात काफी हो चली थी.

घर का दरवाजा खटखटाते ही शाहिस्ता ने दरवाजा तुरंत खोला, मानो वह दरवाजे से चिपक कर ही खड़ी थी. सोहेल ने पूछा, ‘‘हमारी लाडो सो गई क्या?’’

 

शाहिस्ता ने जवाब दिया, ‘‘वह तो कब की सो गई. मैं तो तुम्हारी नई पतलून का इंतजार कर रही थी.’’ सोहेल ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘बेगम, आप का इंतजार और लंबा हो गया.’’

शाहिस्ता ने पैकेट खोला और उस में से निकले 3 झबले. उस ने बिना कुछ कहे खाना निकालना सही समझा. खाना लगा कर उस ने सिलाई मशीन में तेल डाला, काला धागा निकाला और पुरानी पतलून को रफू करने लगी.

सोहेल ने खाना खाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘लाडो के ऊपर पीला झबला तो बड़ा ही खूबसूरत लगेगा. क्यों शाहिस्ता…’’ शाहिस्ता ने दांतों से धागा काटते हुए कहा, ‘‘लो, तुम्हारी पतलून फिर से तैयार हो गई.’’

हार : इस खेल में कौन हारा और कौन जीता

आबादी इतनी बढ़ गई है कि सड़क के दोनों किनारों तक शनीचरी बाजार सिमट गया है. चारों ओर मकान बन गए हैं. मजार और पुलिस लाइन के बीच जो सड़क जाती है, उसी सड़क के किनारे शनीचरी बाजार लगता है. तहसीली के बाद बाजार शुरू हो जाता है, बल्कि कहिए कि तहसीली भी अब बाजार के घेरे में आ गई है.

शनीचरी बाजार के उस हिस्से में केवल चमड़े के देशी जूते बिकते हैं. यहीं पर किशन गौशाला का दफ्तर भी है. अकसर गौशाला मैनेजर की झड़प मोचियों से हो जाती है. मोची कहते हैं कि उन के पुरखे शनीचरी बाजार में आ कर हरपा यानी सिंधोरा, भंदई, पनही यानी जूते बेचते रहे. तब पूरा बाजार मोचियों का था. जाने कहां से कैसे गौसेवक यहां आ गए. अगर सांसद के प्रतिनिधि आ कर बीचबचाव न करते तो शायद दंगा ही हो जाता.

लेकिन सांसद का शनीचरी बाजार में बहुत ही अपनापा है इसलिए मोचियों का जोश हमेशा बढ़ा रहता है. अपनापा भी खरीदबिक्री के चलते है. सांसद रहते दिल्ली में हैं, मगर हर महीने तकरीबन 25-30 जोड़ी खास देशी जूते, जिसे यहां भंदई कहा जाता है, दिल्ली में मंगाते हैं.

भंदई के बहुत बड़े खरीदार हैं सांसद महोदय. मोची तो उन्हें पहचानते ही नहीं, क्योंकि वे खुद तो आ कर भंदई नहीं खरीदते, पर उन के लोग भंदई खरीद कर ले जाते हैं.

गौशाला चलाने वाले भी सांसद का लिहाज करते हैं. आखिर उन्हीं की मेहरबानी से गौशाला वाले नजदीक की बस्ती जरहा गांव में 20 एकड़ जमीन जबरदस्ती कब्जा सके थे.

किशन गौशाला शहर के करीब बसे जरहा गांव में है. इस गौशाला में सांसद कई बार जा चुके हैं. पहले गौशाला वालों ने 10 एकड़ जमीन गांव के किसानों से खरीदी. वहां कुछ गायों को रखा. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन एक कार्यक्रम हुआ था, जिस में सांसद चीफ गैस्ट बने थे. सरपंच के दोस्तों ने दही लूटने का कमाल दिखाया, फिर अखाड़े का करतब हुआ.

गांव वाले बहुत खुश हुए कि चलो गांव में गौमाता के लिए एक ढंग का आसरा तो बना. सांसद ने उस दिन गांव के मोचियों को भी इस समारोह में बुलाया. जरहा गांव शहर से सट कर बसा है. गौशाला का दफ्तर शहर में है और गौशाला है जरहा गांव में.

दफ्तर के पास जरहा गांव, बोरिद, अकोली के मोची चमड़े का सामान बेचने शनिवार को आते हैं, पर बाकी दिन वे गांव में भंदई बनाते हैं. जाने कब से यह सिलसिला इसी तरह चल रहा है.

लेकिन जब से सांसद भोलाराम भंदई खरीद कर दिल्ली ले जाने लगे हैं, तभी से मोचियों का कारोबार कुछ नए रंग पर आ गया है. ऊपर से सांसद ने अपनी सांसद निधि से जरहा गांव में मोची संघ के लिए पिछले साल 3 लाख रुपए दिए थे. वे गांवगांव में अलगअलग मंचों के लिए सांसद निधि से खूब पैसे देते हैं, मगर इन दिनों मंचों की धूम है.

इस इलाके में दलितों की तादाद ज्यादा?है, इसलिए सांसद अपने हिसाब से अपना भविष्य पुख्ता करते चल रहे हैं. मोची मंचों का भी लगातार फैलाव हो रहा है, तो गौशाला का भला हो रहा है.

गौशाला के कर्ताधर्ता सब दूसरे राज्य के हैं. वे शहर के जानेमाने कारोबारी हैं. सब ने थोड़ाथोड़ा पैसा लगा कर 10 एकड़ जमीन ले ली और किशन गौशाला खोल कर गांव में घुस गए. वहां 2 दुकानें भी अब इसी तबके की खुल गई हैं. एक स्कूल भी जरहा गांव में चलता है, जिसे किशनशाला नाम दिया गया है.

इस स्कूल में सभी टीचर सेठों के  जानकार लोग हैं. सांसद सेठों और मोचियों में बराबर से इज्जत बनाए हुए हैं. सब को पार लगाते हैं, चूंकि सब उन्हें पार लगाते हैं.

लेकिन इधर जब से बाबरी मसजिद ढही है, जरहा गांव में दूसरा दल भी हरकत में आ गया है. सेठ सांसद के विरोधी दल को पसंद करते हैं. जिले में 2 ही झंडे असर में हैं, तिरंगा और भगवा. 2 ही चिह्न यहां पहचाने जाते हैं, पंजा और कमल.

गौप्रेमी सभी सेठ कमल पर विराजने वाली लक्ष्मी मैया के भगत हैं, वहीं मोची, लुहार, धोबी, कुम्हार, कुर्मी,  तेली, इन्हीं जातियों की तादाद इस इलाके में ज्यादा है, इसीलिए आजादी के बाद कांग्रेस को भी इलाके के लोगों ने अपना समर्थन दिया. लेकिन जब से बाबरी मसजिद को ढहा कर जरहा गांव का नौजवान गांव लौटा है, कमल की नई रंगत देखते ही बन रही है.

लेकिन सांसद भोलाराम परेशान नहीं होते. वे जानते हैं कि सेठों को इस लोक पर राज करने के लिए धंधा प्यारा है और परलोक सुधारने के लिए है ही किशन गौशाला. दोनों के फायदे में है कि वे कभी भोलाराम का दामन न छोड़ें.

ये भोलाराम भी कमाल के आदमी हैं. एक बड़े किसान के घर में पैदा हुए. मैट्रिक पास कर आगे पढ़ना चाहते थे, लेकिन उन के पिताजी ने पैरों में बेड़ी पहनाने की ठान ली.

शादी की सारी तैयारी हो गई, लेकिन बरात निकलने के ठीक पहले दूल्हा अचानक ही गायब हो गया और प्रकट हुआ दिल्ली में. यह बात साल 1946 की है. सालभर में भोलाराम ने दिल्ली के एक बडे़ अखबार में अपने लिए जगह बना ली.

भोलाराम दल के लोग तो चुनाव के समय रोरो कर यह भी बताते हैं कि भोलारामजी तब रिपोर्टिंग के लिए गांधीजी की अंतिम प्रार्थना सभा में भी गए थे. नाथूराम ने जब गोलियां चलाईं, तो गांधीजी ‘हे राम’ कह कर भोलारामजी की गोद में ही गिरे थे.

भोलाराम के खास लोग तो यह भी कहते हैं कि भोलारामजी का खून से सना कुरता आज भी गांधी संग्रहालय में हैं. जिसे देखना हो दिल्ली जा कर देख आए.

इलाके के लोगों में वह कुरता देखने की कभी दिलचस्पी नहीं रही. भोलाराम लगातार आगे बढ़ते गए और दिल्ली में एक नामी पत्रकार हो गए.

एक दिन इंदिरा गांधी ने उन्हें इस इलाके का सांसद बना दिया. इस इलाके के लोग नेताओं की बात नहीं टालते.

इंदिरा गांधी ने पहली चुनावी सभा में कहा, ‘‘यह इलाका भोलेभाले लोगों का है. यहां भोलाराम ही सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं.’’

इंदिरा गांधी से आशीर्वाद ले कर भोलाराम भी उस दिन जोश से भर गए. उन्होंने मंच पर ही कहा, ‘‘इंदिरा गांधी की बात हम सभी को माननी है. अगर विरोधियों के भालों से बचना है, तो भोले को समर्थन जरूर दीजिए.’’

भोले और भाले का ऐसा तालमेल इंदिरा गांधी को भी भा गया. उन्होंने मुसकरा कर भोलाराम को और अतिरिक्त अंक दे दिया.

तब से लगातार 5 बार भोलाराम ही यहां के सांसद बने. वे इलाके के बड़े लोगों की बेहद कद्र करते हैं, इसीलिए भोलाराम की बात भी कोई नहीं टालता.

महीनाभर पहले शनीचरी बाजार में हंगामा मच गया. हुआ यह कि भोलाराम अपने टोपीधारी विशेष प्रतिनिधि के साथ बाजार आए. चैतराम मोची की दुकान बस अभी लगी ही थी कि दोनों नेता उस के आगे जा कर खड़े हो गए.

चैतराम ने इस से पहले कभी भोलाराम को देखा भी नहीं था. वह केवल साथ में आए गोपाल दाऊ को पहचानता था.

गोपाल दाऊ ने ही चैतराम को भोलाराम का परिचय दिया. खादी का कुरतापाजामा और गले में लाल रंग का  गमछा.

भोलाराम तकरीबन 70 बरस के हैं, मगर चेहरा सुर्ख लाल है. चुनाव जीतने के बाद उन का सूखा चेहरा लाल होता गया और वे 2 भागों में बंट गए.

भोलाराम दिल्ली में रहते तो सूटबूट पहनते. गले में लाल रंग का गमछा तो खैर रहा ही. दिल्ली में रहते तो दिल्ली वालों की तरह खातेपीते, लेकिन अपने संसदीय इलाके में मुनगा, बड़ी, मछरियाभाजी, कांदाभाजी ही खाते.

अपने इलाके में भंदई पे्रमी सांसद भोलाराम को सामने पा कर चैतराम को कुछ सूझा नहीं. भोलाराम ने उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

चैतराम ने भोलाराम के पैरों में अपने हाथों की बनी भंदई रख दी. भंदई छत्तीसगढ़ी सैंडल को कहते हैं. मोची गांव में मरे मवेशियों के चमड़े से इसे बनाते हैं. सूखे दिनों की भंदई अलग होती है, जबकि बरसाती भंदई अलग बनती है.

अपने हाथ की बनी भंदई पहने देख भोलाराम के सामने चैतराम झुक गया. भोलाराम ने कहा, ‘‘भाई, मुझे पता लगा है कि तुम्हीं मुझे भंदई बना कर देते हो, इसलिए मिलने चला आया. इस बार 100 जोड़ी भंदई चाहिए.’’

‘‘100 जोड़ी…’’ चैतराम का मुंह खुला का खुला रह गया.

भोलाराम ने कहा, ‘‘हां, 100 जोड़ी. दिल्ली में अपने दोस्तों को तुम्हारे हाथ की भंदई बहुत बांट चुका हूं. इस बार विदेशी दोस्तों का साथ होने वाला है.

‘‘मैं जब भी विदेश जाता हूं, तो वहां भंदई पर सब की नजर गड़ जाती है. सोचता हूं कि इस बार एकएक जोड़ी भंदई उन्हें भेंट करूं. बन जाएगी न?’’

चैतराम ने पूछा, ‘‘कब तक चाहिए मालिक?’’

‘‘2 महीने में.’’

‘‘2 महीने में… मालिक?’’

‘‘हांहां, 2 महीने में तुम्हें देनी है. मैं खुद आऊंगा तुम्हारे गांव में भंदई ले जाने के लिए.’’

‘‘मालिक, गांवभर के सारे मोची मिलजुल कर बनाएंगे. मैं गांव जा कर सब को तैयार करूंगा.’’

‘‘तुम जानो तुम्हारा काम जाने. मुझे तो भंदई चाहिए बस.’’

इतना सुनना था कि पास में दुकान लगाए उसी गांव के 2 और मोची एकसाथ बोल पड़े, ‘‘दाऊजी, आप की मेहरबानी से सब ठीकठाक है. हम सब मिल कर बना देंगे भंदई.

‘‘मगर मालिक, ये गौशाला वाले गांव में 20 एकड़ जमीन पर कब्जा कर के बैठ गए हैं. पिछले 2 साल से यहां के किसान अपने जानवरों को रिश्तेदारों के पास पहुंचाने लगे हैं.

‘‘हुजूर, यह जगह जानवरों के चरने के लिए थी, मगर सेठ लोगों ने घेर कर कब्जा कर लिया है.

‘‘2 साल से हम सब लोग फरियाद कर रहे हैं, पर कोई सुनता ही नहीं. अब आप आ गए हैं, तो कुछ तो रास्ता निकालिए. छुड़ाइए गायभैंसों के लिए उस 20 एकड़ जमीन को. गौशाला के नाम से सेठ लोग गाय के चरने की जगह को ही लील ले गए साहब. अजब अंधेर है.’’

भोलाराम को इस बेजा कब्जे की जानकारी तो थी, मगर वे यही सोच रहे थे कि सेठ लोग सब संभाल लेंगे. यहां तो पासा ही पलट सा गया है. भंदई का शौक अब उन्हें भारी पड़ रहा था. फिर भी उन्होंने चैतराम को पुचकारते हुए कहा, ‘‘मैं देख लूंगा. तुम लो ये एक हजार रुपए एडवांस के.’’

‘‘इस की जरूरत नहीं है मालिक,’’ हाथ जोड़ कर चैतराम ने कहा.

‘‘रख लो,’’ भोलाराम ने कहा.

चैतराम ने रखने को तो अनमने ढंग से एक हजार रुपए रख लिए, मगर सौ जोड़ी भंदई बना पाना उसे आसान नहीं लग रहा था.

गांव जा कर उस ने अपने महल्ले के लोगों को इकट्ठा किया. 4 लोगों ने 25-25 जोड़ी भंदई बनाने का जिम्मा ले लिया. चैतराम का जी हलका हुआ.

लेकिन सेठों को भी खबर लग गई कि गांव के मोची किशन गौशाला का विरोध सांसद भोलाराम से कर रहे थे. वे बहुत भन्नाए. उन्होंने गांव के अपने पिछलग्गू सरपंच, पंच और कुछ खास लोगों से बात की और गांव में बैठक हो गई. सरपंच ने मोची महल्ले के लोगों के साथ गांव वालों को भी बुलवाया.

सरपंच ने कहा, ‘‘देखो भाई, आज की बैठक बहुत खास है. गाय की वजह से बैठी है यह सभा.’’

चैतराम ने कहा, ‘‘मालिक, गाय का चारागाह सब गौशाला वाले दबाए बैठे हैं. चारागाह नहीं रहेगा, तो गौधन की बढ़ोतरी कैसे होगी?’’

चैतराम का इतना कहना था कि बाबरी मसजिद तोड़ने गई सेना में शामिल हो कर लौटे जरहा गांव का एकलौता वीर सुंदरलाल उठ खड़ा हुआ. उस ने कहा, ‘‘वाह रे चैतराम, तू कब से हो गया गौ का शुभचिंतक?’’

सुंदरलाल का इतना कहना था कि चैतराम के साथ उस के महल्ले के सभी लोग उठ खड़े हुए. उस ने कहा, ‘‘मालिक हो, मगर बात संभल कर नहीं कर सकते. हम मरे हुए गायभैंसों का चमड़ा उतारते हैं, आप लोग तो जीतीजागती गाय की जगह दबाने वालों के हाथों खेल गए.’’

ऐसा सुन कर सुंदरलाल सिटपिटा सा गया. तभी भोलाराम दल के एक जवान रामलाल ने कहा, ‘‘राजनीति करो, मगर धर्म बचा कर. आदिवासियों को गाय बांटने का झांसा तुम लोग देते हो और गांव की जमीन, जिस में गाएं चरती थीं, उसे पैसा ले कर बाहर से आए सेठों को भेंट कर देते हो.’’

सुंदरलाल ने कहा, ‘‘100 जोड़ी भंदई के लिए गायों को जहर दे कर मरवाओगे क्या…?’’

उस का इतना कहना था कि ‘मारोमारो’ की आवाज होने लगी और लाठीपत्थर चलने लगे. गांव में यह पहला मौका था, जब बैठक में लाठियां चल रही थीं.

3 मोचियों के सिर फट गए. चैतराम का बायां हाथ टूट गया. अखबार में खबर छप गई. सांसद भोलाराम ने जरहा गांव का दौरा किया. उन्होंने मोचियों से कहा, ‘‘तुम लोग एकएक घाव का हिसाब मांगने का हक रखते हो. यह गुंडागर्दी नहीं चलेगी. मैं सब देख लूंगा.’’

भाषण दे कर जब भोलाराम अपनी कार में बैठ रहे थे, तभी उन्हीं की उम्र के एक आदमी ने उन्हें आवाज दे कर रोका. भोलाराम ने पूछा, ‘‘कहो भाई?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘भोला भाई, अब आप न भोले हैं, न भाले हैं. मैं पहले चुनाव से आप का संगी हूं. जहां भाला बनना चाहिए, वहां आप भोला बन जाते हैं. जहां भोला बनना चाहिए, वहां भाला, इसलिए सबकुछ गड्डमड्ड हो गया.‘‘भाई मेरे कोई जिंदा गाय की राजनीति कर रहा है, तो कोई मरी हुई गाय की चमड़ी का चमत्कार बूझ रहा है. हैं दोनों ही गलत. मगर हमारी मजबूरी है कि 2 गलत में से एक को हर बार चुनना पड़ता है. इस तरह हम ही हर बार हारते हैं.’’

मुहरे-भाग 2 : विपिन के लिए रश्मि ने कैसा पैंतरा अपनाया

विपिन ने भी कहा, ‘‘अरे छोड़ो, कैंटीन में खा लेंगे सब.’’ जानती हूं विपिन को घर का खाना ही ले जाना पसंद है. उम्र बढ़ने की बात से मुझे गुस्सा तो आता है, चिढ़ती भी बहुत हूं पर प्यार भी तो करती हूं न उन्हें. अत: मैं उन्हें देख कर मुंह फुलाए हुए अपनी नाराजगी प्रकट करते घर से निकलने लगी, तो विपिन मुसकरा उठे. वे भी जानते हैं कि मेरा गुस्सा क्षणिक ही होता है.

हम तीसरी मंजिल पर रहते हैं. मैं सीढि़यों से ही उतरती हूं. ज्यादा सामान होता है तभी लिफ्ट में आती हूं. पनीर ले कर लौट रही थी तो देखा लिफ्ट नीचे ही थी. कोई लिफ्ट में जा रहा था. मैं भी यों ही लिफ्ट में आ गई. साथ खड़े लड़के ने लिफ्ट में 7वीं मंजिल का बटन दबाया. मैं पता नहीं किन खयालों में थी कि तीसरी मंजिल का बटन दबाना ही भूल गई. दिमाग में विपिन की उम्र की बातें ही चल रही थीं न. जब अचानक लगा कि ऊपर जा रही हूं तो हड़बड़ा कर स्टौप का बटन दबा दिया. लिफ्ट रुक गई. आजकल कुछ गड़बड़ चल रही थी.

साथ खड़ा लड़का शालीनता से बोला, ‘‘क्या हुआ मैम?’’ मैं झेंप गई. कहा, ‘‘सौरी, गलती से कर दिया. मुझे तीसरी मंजिल पर जाना था.’’

बटनों से छेड़छाड़ करने पर लिफ्ट 7वीं मंजिल पर बढ़ गई. हमारी लिफ्ट दरवाजों वाली नहीं है, चैनल वाली है, खुली है तो मुझे जरा ठीक लगता है. मैं ने अब उस लड़के पर नजर डाली. 26-27 साल का होगा. वह 7वीं मंजिल पर लिफ्ट से बाहर निकल कर मुसकराया तो आदतन मैं भी मुसकरा दी. मैं ने फिर 3 वाला बटन दबाया और अपने फ्लोर पर पहुंच मुसकराती हुई घर में घुसी. तीनों मेरा ही वेट कर रहे थे.

शाश्वत बोला, ‘‘अरे वाह, पनीर मिल गया?’’ मैं ने हंसते हुए ‘हां’ कहा तो विपिन ने कहा, ‘‘कितनी अच्छी लग रही हो हंसते हुए.’’

मैं मुसकराते हुए ही लिफ्ट में हुई गड़बड़ बताने लगी तो विपिन कुछ गंभीर हो गए. मैं मन ही मन हंसी. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा लड़का था.’’

‘‘इतनी जल्दी पता चल गया तुम्हें कि अच्छा लड़का था?’’ विपिन बोले. ‘‘हां, मुझे जल्दी पता चल जाता है,’’ कहते हुए मुझे मजा आया.

वे बोले, ‘‘ध्यान रखा करो, यार… कहां था तुम्हारा ध्यान?’’ मैं मुसकराती रही. 3-4 दिन बाद मैं शाम की सैर से लौट रही थी. वही लड़का फिर मुझे मिल गया. हमारी हायहैलो हुई, बस. 2 दिन बाद मैं फिर सब्जी ले कर लौट रही थी तो वह लिफ्ट में साथ हो गया. उस ने मेरे कुछ कहे बिना लिफ्ट तीसरी मंजिल पर रोक दी. मैं थैंक्स कह बाहर आ गई.

मैं ने उस रात डिनर करते हुए सब को बताया, ‘‘अरे, आज वह लिफ्ट वाला लड़का भी मेरे साथ ही आया तो उस ने खुद ही तीसरी मंजिल पर लिफ्ट रोक दी.’’

विपिन के चेहरे पर जो भाव आए, उन्हें देख कर मुझे मन ही मन शरारत सूझ गई. मैं ने कई बातें एकसाथ सोच लीं. फिर भोलेपन से पूछा, ‘‘क्या हुआ विपिन? क्या सोचने लगे?’’

वान्या और शाश्वत आराम से खाना खाते हुए हमारी बातें सुन रहे थे. विपिन ने कहा, ‘‘यह फिर कहां से लिफ्ट में मिल गया?’’

‘‘तो क्या हुआ, वह तो मुझे अकसर कहीं न कहीं टकरा ही जाता है… जब एक बिल्डिंग में रहते हैं तो सामना तो होगा ही न.’’ विपिन और मैं डिनर के बाद घूमने जाते हैं. उस दिन भी गए तो वह लड़का किसी से फोन पर बात कर रहा था.. मैं ने उसे देख कर जानबूझ कर हाथ हिला दिया. उस ने भी जवाब दिया.

विपिन ने कहा, ‘‘यह कौन है?’’ ‘‘वही लिफ्ट वाला.’’

बेचारे हायहैलो पर क्या बोलते, उस समय तो चुप ही रहे. घर आ कर जानबूझ कर बच्चों के सामने बोले, ‘‘आज तुम्हारी मम्मी का लिफ्ट वाला दोस्त देखा मैं ने.’’ बच्चे हंसे तो मैं भी मुसकरा दी, ‘‘अरे छोड़ो, कहां से दोस्त होगा वह मेरा, बच्चा है, मेरी उम्र देखो… इस उम्र में उस की उम्र का मेरा क्या दोस्त बनेगा?’’

उन के मुंह से निकल ही गया, ‘‘इतनी उम्र कहां हो गई तुम्हारी?’’ मैं ने चौंकने का अभिनय किया, ‘‘अच्छा? उम्र नहीं हो गई मेरी?’’

विपिन को कुछ न सूझा तो मुझे बहुत मजा आया. उस रात सोने लेटी तो विपिन के आज के चेहरे के भाव पर हंसी आ रही थी. आजकल उम्र की छेड़छाड़ से मुझे कितना परेशान कर रखा है. मुझे तो अब शरारत सूझ ही चुकी थी. जानती हूं मेरी इस शरारत के आगे विपिन टिक नहीं पाएंगे. पर अब सोच रही हूं कि मैं उन के इस मजाक पर इतना चिढ़ती क्यों हूं… स्त्री हूं न… उम्र की बात पर दिल जरा कमजोर पड़ ही जाता है. कौन स्त्री नहीं चाहती हमेशा यंग बने रहना, पर जब मैं मन से स्वयं को यंग और ऐनर्जेटिक महसूस करती हूं तो मैं हर समय यह नहीं सुनना चाहती कि मेरी उम्र हो रही है.

कभी कहीं दर्द हो गया तो उम्र का मजाक, कभी कुछ भूल गई तो उम्र… नहीं सुनना होता मुझे ये सब. अरे, मजाक कुछ और भी तो हो सकते हैं न. उम्र के मजाक और वह भी एक स्त्री से… घोर अपराध. अगले 10-15 दिन मैं ने नोट किया कि अकसर मेरे सैर से लौटने के समय वह लिफ्ट वाला लड़का मुझे नीचे मिलता और मेरे साथ ही लिफ्ट में प्रवेश कर जाता. मेरे दिल ने कहा, यह संयोग नहीं हो सकता. वह जानबूझ कर ऐसा करने लगा है. कभी कोई अन्य व्यक्ति लिफ्ट में होता तो बस मुसकरा देता वरना थोड़ीबहुत बात करता.

मुझे 2-3 बार उस ने यह भी कहा कि मैम, यू आर लुकिंग नाइस. एक दिन उस ने लिफ्ट में मुझ से कहा, ‘‘मैम, मैं प्रशांत, बहुत दिनों से आप का नाम भी जानना चाह रहा था, प्लीज बताएं’’ इतने में तीसरी मंजिल आ गई थी लिफ्ट से निकलते हुए मैं ने कहा, ‘‘रश्मि.’’

उस ने ऊपर जाते हुए ‘‘बाय, मैम’’ कहा. मैं जब अपना नाम बता रही थी वान्या अपने घर का दरवाजा खोल कर बाहर आ रही थी, उस ने मेरा अपना नाम बताना सुन लिया था.’’ पूछा, ‘‘मम्मी, किसे अपना नाम बता रही थीं?’’

‘‘लिफ्ट वाले लड़के को.’’ वान्या ने जिस तरह मुझे देखा उस पर मैं खुल कर हंसी.

‘‘पता नहीं किसकिस से बातें करती रहती हैं आप… अच्छा, मैं नोटबुक लेने जा रही हूं. अभी आई.’’ डिनर के समय वान्या ने कहा, ‘‘मम्मी, मैं आप को बताना भूल गई. मेरी शर्ट के बटन लगा देंगी अभी?’’

‘‘हां, पर सूई में धागा डाल दो प्लीज. चश्मा लगा कर भी मुझ से धागा नहीं लगाया जाता है.’’

विपिन को एक और मौका मिल गया. बोले, ‘‘हां अब धीरेधीरे चश्मे का नंबर बढ़ेगा ही.’’ ‘‘क्यों पापा, नंबर क्यों बढ़ेगा?’’ वान्या ने पूछा.

‘‘अरे भई, उम्र के साथ नजर भी कमजोर होती है न.’’ ‘‘पापा अभी इतनी उम्र भी नहीं हुई है मम्मी की… आप ने अभी मम्मी के जलवे नहीं देखे… पड़ोस के लड़के नाम पूछते घूमते हैं.’’

वान्या के कहने के ढंग पर मैं खुल कर हंसी. हम चारों में बेहद शानदार दोस्ती है. हमारे युवा बच्चे हमारे दोस्त हैं, हम एकदूसरे के साथ हंसीमजाक, छेड़छाड़ करते हैं. बस मैं उम्र के मजाक पर गंभीर हो जाती हूं.

विपिन ने पूछा, ‘‘कौन भई?’’ ‘‘लिफ्ट वाला लड़का आज मम्मी से इन का नाम पूछ रहा था.’’

‘‘क्यों? उसे क्या करना है इन के नाम का?’’ मैं ने बहुत ही भोलेपन से कहा, ‘‘जाने दो, बच्चा है… उम्र देखो मेरी.’’

‘‘इतनी भी उम्र नहीं हो रही तुम्हारी.’’ मैं ने फिर हैरानी से आंखें फाड़ी, ‘‘अच्छा?’’ विपिन झेंप गए तो मुझे बड़ी खुशी हुई.

हमारी सोसायटी में स्वीपर सुबह 8 बजे कूड़ा लेने आ जाते हैं. जब वान्या

 

माता पिता में टकराव हो तो मध्यस्थ बनें

आज अभिभावक बच्चों के लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा है इन तमाम बातों का ध्यान रखते हैं, लेकिन इस के बावजूद कई बार पेरैंट्स ऐसी गलती कर जाते हैं, जिस से बच्चे बहुत प्रभावित होते हैं. जैसे अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाने के कारण वे बच्चों के सामने ही झगड़ने लगते हैं. वे इस बात से भी अनजान रहते हैं कि इन हरकतों का बच्चों पर क्या असर पड़ेगा.

पहले संयुक्त परिवार में पतिपत्नी के बीच ऐसी घटनाएं कम ही होती थीं और अगर होती भी थीं तो समझौता करवाने के लिए कोई न कोई घर का बड़ा सदस्य रहता था. वर्तमान समय में बढ़ते एकल परिवार में घरेलू क्लेश आम बात हो गई है. ऐसे में किशोर हो रहे बच्चों की भूमिका निर्णायक हो गई है. कई बच्चे मध्यस्थता करते हुए मांबाप को समझा भी रहे हैं.

ऐसा ही एक उदाहरण हमारे पड़ोस में रहने वाली मिसेज रमा और उन के पति रमेश का है. उन में अकसर झगड़ा होता रहता था. इस की वजह थी रमेश का बहुत ज्यादा गुटखा खाना. रमा झगड़ा सिर्फ पैसों की बरबादी के कारण ही नहीं बल्कि उन के स्वास्थ्य की चिंता के कारण भी करती थीं. उन का बेटा शुरू से यह देखता आ रहा था. बचपन में तो उसे कुछ समझ नहीं आता था. उसे लगता था मम्मी, पापा से हर समय यों ही झगड़ती रहती हैं लेकिन जब वह बड़ा हुआ तो उसे समझ आया कि मम्मी सही हैं.

ऐसे में उस ने पापा को समझाने के लिए एक तरीका निकाला और कहा कि पापा मेरे दोस्त के पापा बहुत ज्यादा तंबाकू खाते हैं, जिस के कारण ग्रुप में सभी उस का मजाक उड़ाते हैं. यदि उन्होंने आप को भी तंबाकू खाते हुए देख लिया तो वे मुझे भी चिढ़ाएंगे.

रमेश अपने बेटे को बहुत प्यार करते थे. उन पर उस की बात का असर हुआ, साथ ही उन्हें यह भी एहसास हुआ कि यदि मैं ने अपनी गलती को नहीं सुधारा तो मेरा बेटा भी मुझे देख कर इन चीजों का सेवन करना शुरू कर सकता है और तब मैं उसे किस मुंह से रोकूंगा. बेटे के समझाने के बाद उन्होंने तंबाकू खाना धीरेधीरे बंद कर दिया.

वैसे मातापिता के झगड़ों में ज्यादातर बच्चे मूकदर्शक ही बने रहते हैं. घर में झगड़ा होने पर कई बच्चे या तो अपने कमरे में बंद हो जाते हैं या झगड़ा बढ़ जाने पर रोने लगते हैं या फिर खासकर लड़के अपने दोस्तों के यहां चले जाते हैं, जबकि ऐसी स्थिति में किशोर मातापिता के बीच मध्यस्थ बन सकते हैं.

चाणक्य का भी कहना है कि जब बच्चा 15 वर्ष से बड़ा हो जाता है तो उस के साथ मित्रवत व्यवहार रखना चाहिए. यही बात मातापिता के झगड़े सुलझाने में भी सहायक हो सकती है. दोस्ताना तरीके से किशोर या किशोरी दोनों ही मातापिता को समझा सकते हैं कि वे जिस बात पर लड़ रहे हैं वह मामूली सी बात है. समझाने पर पेरैंट्स भी भलीभांति बात को समझते हैं.

मेरी एक परिचित अकसर छोटीछोटी बातों पर गुस्सा हो जाती थीं. यह बात उन की बेटी देखती थी. एक बार उस ने अपनी मां को समझाया कि मम्मी आप हर बात पर रिऐक्ट क्यों करती हैं. कई बार पापा उस सिचुएशन में नहीं होते कि आप की बात का सही तरीके से जवाब दे पाएं. ऐसे में वे आप की बातों को सही तरह से नहीं समझ पाते हैं और स्थिति बिगड़ जाती है, आप थोड़ा धैर्य रख कर फिर अपनी बात किया करें.

बेटी की बात सुन कर मां को भी लगा कि शायद मेरी हर बात को कहने की जल्दबाजी और अपेक्षित परिणाम न आ पाने की वजह से लड़ाई की नौबत आ जाती है. ऐसे ही पिता यदि गलत हैं तो उन्हें भी इस तरह से समझाया जा सकता है.

लड़कियां रिश्तों को सामान्य बनाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. मां कई बार बड़ी होती बच्चियों के साथ जिंदगी की दूसरी पारी खेलती हैं. लड़कियों को भी देखना चाहिए कि मां ने हमारी परवरिश में अपना क्या कुछ खो दिया है. वे उसे फिर से पाने में मदद कर सकती हैं. मां को उन की पसंद के कार्यों में व्यस्त कर कुछ रचनात्मक वातावरण बनाया जा सकता है.

व्यक्ति जब काम में व्यस्त हो जाता है तो फिर छोटीछोटी बातें रिश्तों को खराब नहीं करतीं उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है.

हमारे एक रिश्तेदार पेशे से डाक्टर थे और पत्नी स्कूल में प्रिंसिपल थीं. पत्नी चूंकि नौकरी करती थीं तो उन्हें परिवार में किसी का आना अच्छा नहीं लगता था. उन का मानना था कि इस से उन का रूटीन बिगड़ जाता है. इस बात को ले कर कई बार घर में तनाव की स्थिति पैदा हो जाती थी.

एक दिन लड़की ने अपनी मां को यही कहा कि अगर एक दिन भैया और मैं भी इतने स्वार्थी हो जाएंगे और आप लोगों का आना भी पसंद नहीं करेंगे तब आप को कैसा लगेगा. आप का रूटीन कभीकभी बिगड़ भी गया तो क्या फर्क पड़ जाएगा. आप के मेहमानों को पसंद न कर पाने से हम लोगों में भी सोशल लाइफ जीने की आदत नहीं बन पाएगी. तब मां को अपनी गलती समझ आई. उस दिन के बाद से उन के घर में रिश्तेदार भी आने लगे, जो काफी समय से रूठे हुए थे.

ऐसे ही एक लड़का पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाता था. उस की दिक्कत घर में छोटीछोटी बातों को ले कर फैली अशांति थी. चाह कर भी वह पढ़ नहीं पा रहा था. स्कूल में जब प्रिंसिपल ने पेरैंट्स से शिकायत की तो उन्होंने अपने बच्चे को डांट लगाई. इस पर उस बच्चे ने कहा कि आप लोगों के झगड़े के कारण ही मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता. यदि आप झगड़ना बंद कर देंगे तो मेरा भविष्य बन जाएगा. जब बच्चे ने यह बात अपने मातापिता से कही तो उन्हें अपनी गलती समझ आई. बच्चे यदि ऐसे अशांत माहौल से प्रभावित हो रहे हैं तो मर्यादा में रह कर उन्हें निसंकोच पेरैंट्स से बात करनी चाहिए ताकि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो.

इसी तरह एक बच्ची ने शराब के आदी अपने पिता से सिर्फ यह कहा कि पापा आप को मैं अपनी शादी में देखना चाहती हूं. मेरा कन्यादान आप ही के हाथों हो. यह बात पिता को झकझोर गई और उन्होंने शराब पीना छोड़ दिया.

इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि यदि किशोर बच्चे वाकई समझदारी से काम लें तो घर में अमनचैन आ सकता है.

 

राखी सावंत की मदद के लिए आगे आएं मुकेश अंबानी, एक्ट्रेस की मां की हालत है खराब

एक्ट्रेस राखी सावंत की जिंदगी में इन दिनों बहुत कुछ चल रहा है, एक तरफ कई दिनों से अपनी शादी को लेकर चर्चा में हैं तो वहीं दूसरी तरफ इन दिनों अपनी मां की बीमारी से काफी ज्यादा परेशान चल रही हैं. राखी सावंत की मां काफी ज्यादा बीमार हैं.

राखी की मां को ब्रैन कैंसर हैं जिस वजह से वह कई दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं तो वहीं राखी सावंत भी कई दिनों से लोगों की मदद की गुहार लगा रही हैं. राखी सावंत को अब मदद करने के लिए मुकेश अंबानी आगे आए  हैं. मुकेश अंबानी राखी के मां के अस्पताल का खर्चा उठा रहे हैं.

 

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एक रिपोर्ट में राखी सावंत ने खुद इस बात का खुलासा किया है कि मुकेश अंबानी जी का आभार है वह मेरी मां के अस्पताल का खर्चा उठा रहे हैं. जिसका एहसान मैं कभी नहीं चुका पाउंगी. राखी ने बताया कि मेरी मां की हालत ऐसी हो गई है कि वह मुझे पहचान भी नहीं पा रही हैं.

राखी ने बताया कि उनकी मां की आधी बॉडी पैरालाइजड हो गई है, जिस वजह से वह खाना भी नहीं खा पा रही हैं. इससे पहले राखी सावंत ने कुछ समय पहले अपनी शादी की अनाउंसमेंट की थी, जिसके बाद से राखी को कुछ परेशानियों का भी सामना करा पड़ा था, खैर अब राखी की शादी शुदा जिंदगी सही चल रही है.

अक्षय कुमार-ट्विंकल खन्ना की शादी को हुए 22 साल , कपल ने शेयर किया रोमांटिक फोटो

बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार के लिए 17 जनवरी का दिन काफी यादगार है, इसी दिन इन्होंने अपने जीवन की नई शुरुआत एक्ट्रेस ट्विंकल खन्ना के साथ किया था. अब ये कपल 22 वीं वेडिंग एनीवर्सी मना रहा है. साल 2001 में अक्षय और ट्विकल ने एक दूसरे से शादी किया था.

इस खास मौके पर अक्षय कुमार ने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालते हुए लिखा है कि दो इंम्परफेक्ट लोग 22 साल से एक साथ हैप्पी एनीवर्सरी टीना. इस पोस्ट पर लगातार लाइक और कमेंट आ रहे हैं. वहीं टीना दत्ता ने भी एक फोटो शेयर किया है इंस्टाग्राम पर जिसमें एक कार्ड नजर आ रहा जिसमें हैप्पी एनीवर्सरी लिखा है तो वहीं एक पर महिला बनी हुई है.

 

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ट्विंकल खन्ना ने लिखा है कि सिर्फ वहीं मुझे कार्ड दिलवा सकता था, 2 दसक से ज्यादा हो गए हमें साथ रहते हुए, ऐसा लगता है यह हमारी दूसरी सालगिरह है. हमने ऐसी लाइफ बनाई है, जिसमें परिवार , दोस्त और कुछ गोल्डफीश जिसमें हमारी स्वतंत्रता है. इसमें ज्यादा लोगों की जरुरत नहीं है आप एक दूसरे के साथ मस्त हो.

गौरतलब है कि अक्षय और ट्विंकल के 2 बच्चे हैं,आरव और नितारा दोनों बच्चों के साथ में अक्षय कुमार काफी ज्यादा एंजॉय करते नजर आते हैं. अ

जिंदगी की राह : रंजना और दीपक से क्यों दूर हो गई दीप्ति?

फार्म एन फूड अवार्ड ने किसानों का बढ़ाया हौसला

फार्म एन फूड पत्रिका देश के किसानों को न केवल खेतीकिसानी से जुड़ी जानकारी मुहैया कराती है, बल्कि आम बोलचाल की भाषा में यह पत्रिका खेतीबारी की नई तकनीकी, बागबानी, पशुपालन, कुक्कुटपालन, मत्स्यपालन, डेरी व डेरी उत्पाद, फूड प्रोसैसिंग, खेती वगैरह से जुड़ी मशीनों सहित खेत से बाजार सहित ग्रामीण विकास और किसानों की सफलता की कहानियों और अनुभवों को अन्नदाता किसानों तक अपने लेखों और समाचारों के जरीए पहुंचाने का काम करती रही है.

यही वजह है कि इस पत्रिका का प्रसार देश में तेजी से बढ़ रहा है और खेती में रुचि रखने वाले पाठकों की तादाद में भी तेजी से इजाफा हो रहा है. पिछले 2 सालों से जब देश और दुनिया कोरोना के कहर से जू?ा रही थी, उस दशा में भी ‘फार्म एन फूड’ ने किसानों का साथ नहीं छोड़ा है, क्योंकि यह पत्रिका किसानों को प्रिंट और डिजिटल दोनों ही में खेतीबारी से जुड़ी तकनीकी जानकारियां देने का काम कर रही है. इतना ही नहीं, यह पत्रिका न केवल लेखों के जरीए किसानों की मददगार बनी हुई है, बल्कि समयसमय पर उन का सम्मान कर के किसानों के प्रयासों और अनुभवों को लोगों की नजर में लाने का काम करती रही है. इसी क्रम में किसानों के सम्मान के लिए पिछले कई सालों से फार्म एन फूड अवार्ड का आयोजन उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में किया जाता रहा है.

इस बार यह आयोजन मध्य प्रदेश के सतना जिले के चित्रकूट में राज्य स्तरीय फार्म एन फूड एग्री अवार्ड के नाम से किया गया, जिस के आयोजन में जल योद्धा के नाम से मशहूर उमाशंकर पांडेय ने मुख्य सहयोगी की भूमिका निभाई. किसान बने कार्यक्रम का अहम हिस्सा 15 दिसंबर, 2021 को मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित चित्रकूट के कामदगिरी मुख्य द्वार स्थित सभागार में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश से आए तकरीबन 100 किसानों का जमावड़ा गवाह बना और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले किसानों को सम्मानित किया गया. इस मौके पर मुख्य अतिथि मदन दास ने कहा कि पानी और शुद्ध पर्यावरण जीवन की मूलभूत आवश्यकता है.

अधिकांश पानी प्रदूषित हो गया है. पर्यावरण अशुद्ध हो गया है. उन्होंने यह भी कहा कि किसान अन्नदाता है, स्वराज्य का मुखिया है. हमें किसानों के लिए, उन की आवश्यकताओं के लिए तैयार रहना चाहिए. हमारा देश ऋषि और कृषि प्रधान देश है. मैं दिल्ली प्रैस को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने चित्रकूट में राज्य स्तरीय पुरस्कार दे कर किसानों को सम्मानित किया है. किसानों का सम्मान करना गौरव की बात है. महोबा नगरपालिका के चेयरमैन, प्रतिनिधि सौरभ तिवारी ने कहा कि किसान राजाओं का राजा है. जय जवान जय किसान ही असली भारत है. वहीं युवा किसान नेता गणेश विश्व ने कहा कि भारत की खुशहाली का रास्ता खेत और खलिहान से हो कर गुजरता है. जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार के जल योद्धा सम्मान से सम्मानित किसान पैरोकार उमाशंकर पांडेय ने कहा कि धरती पर हर किसी को सीना तान कर चलने का अधिकार है.

वह किसान है. धरती से धनधान्य पैदा करने वाले किसान को ही धरतीपुत्र कहा गया है. किसानों को हीनभावना त्याग कर अपने पूर्वजों की भांति राष्ट्र और समाज के लिए सदैव नवाचार करते रहना चाहिए. किसान अरविंद ने कहा कि किसान पलायन को रोकना होगा. वहीं किसान कल्लू यादव ने कहा कि सरकार और समाज को किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए, ताकि अच्छे बीज मिलें, समय पर पानी मिले और बाजार का सही भाव मिले. खेतीबारी और जड़ीबूटी के जानकार ओपी मिश्र ने कहा कि आज जब किसानों के लिए खेतीबारी से जुड़े साहित्य का अभाव हो गया है, ऐसे में फार्म एन फूड पत्रिका द्वारा आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग कर किसानों के लिए लेखों के जरीए जानकारियों का खजाना खोल दिया है.

उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि फार्म एन फूड अवार्ड पा कर यह पता चला कि अगर किसान उन्नत तकनीकी का उपयोग करे तो वह कभी भी घाटे में नहीं रहेगा. उन्होंने इस तरह के आयोजन को बेहद सराहनीय कदम बताते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन से किसानों का मनोबल बढ़ता है. बस्ती जिले से आए प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र ने कहा कि वे पिछले 30 वर्षों से भी अधिक समय से दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं के नियमित पाठक रहे हैं. दिल्ली प्रैस ने देश के हर तबके को ध्यान में रख कर पत्रिकाएं निकाली हैं.

उस ने समाज को एक नई दिशा देने का काम किया है. उन्होंने कहा कि वे साल 2009 से फार्म एन फूड पत्रिका के नियमित पाठक हैं. इस पत्रिका में जितने सारगर्भित ढंग से किसानों के लिए जानकारियां दी जाती हैं, वह खेतीबारी से जुड़ी किसी अन्य पत्रिका में आज तक पढ़ने को नहीं मिलीं. किसान विजेंद्र बहादुर पाल ने कहा कि किसान तभी प्रगति कर सकता है, जब वह आधुनिक तकनीक और उन्नत कृषि प्रणाली का उपयोग करे. इस के लिए सरकार भी तमाम योजनाएं संचालित कर रही है. किसान इन योजनाओं का लाभ ले कर घाटे की खेती से उबर सकते हैं.

सेना के रिटायर्ड व प्रगतिशील किसान अमित विक्रम त्रिपाठी ने दिल्ली प्रैस की पत्रिका फार्म एन फूड के प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि मीडिया द्वारा किसानों के लिए इतने बड़े स्तर पर आयोजन फार्म एन फूड के किसानों के विकास के समर्पण की प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है. सम्मानित हुए कृषि वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र, थरियांव, फतेहपुर के वैज्ञानिक डा. जितेंद्र सिंह एवं डा. साधना वैश को कृषि क्षेत्र में किए गए उपलब्धिपूर्ण कामों के लिए राज्य स्तरीय फार्म एन फूड एग्री अवार्ड से सम्मानित किया गया. फतेहपुर के किसानों के प्रोत्साहन के लिए प्रदान किया गया.

वैज्ञानिक डा. जितेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में किसानों के बीच उपलब्धिपूर्ण कामों के साथ पहचान बनाने और बुंदेलखंड में कृषि विकास के स्थायीकरण की मुहिम पर साल 2005 से 2012 तक लगातार किसानों के साथ काम करने व 8 तकनीकी मौडल, जो किसानों को आत्मनिर्भर व स्वावलंबी बनाने का मौडल है, को गांव व किसानों के बीच स्थापित करने के लिए यह अवार्ड दिया गया.

इस मौके पर उन्होंने कहा कि उन के मौडल गांव पाराबन्नोबेगम, बबेरु बांदा की उपलब्धि को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के कुलपति, निदेशक व फैकल्टी ने स्वयं देखा है. उन्होंने बताया कि मौडल गांव की सफलता की कहानी को आईसीएआर की वैबसाइट पर भी देखा जा सकता है. उन्होंने यह भी बताया कि इस अवार्ड से पूर्व भी खेतीबारी के लिए किए जा रहे कामों के लिए उन्हें बुंदेलखंड गौरव अवार्ड 2018 व आयुक्त चित्रकूट धाम मंडल, बांदा द्वारा प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि जल योद्धा उमाशंकर पांडेय व प्रगतिशील किसान, जिन्होंने गांव और खेत में लाभकारी खेती के मौडल स्थापित किए हैं, उन के कामों के चलते यह अवार्ड मिला. गृह विज्ञान की वैज्ञानिक डा. साधना वैश को महिला सशक्तीकरण, पोषण सुरक्षा और मूल्य संवर्धन के क्षेत्र में किए जा रहे कामों के लिए फार्म एन फूड एग्री अवार्ड दे कर सम्मानित किया गया.

इस मौके पर उन्होंने सभी किसानों के साथ ही फार्म एन फूड और दिल्ली प्रैस समूह का आभार व्यक्त किया. किसानों की सफलता व अनुभवों का आदानप्रदान आकर्षण का केंद्र रहे फार्म एन फूड अवार्ड में प्रगतिशील किसानों द्वारा अपने कृषि उत्पाद और नवाचारों के बारे में जानकारी दी गई. कार्यक्रम में आए किसानों को किसान राम मूर्ति मिश्र ने जैविक खेती की जानकारी दी और बताया कि किसान जैविक विधि से खेती कर के न केवल लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि डेढ़ से दोगुना आमदनी भी ले सकते हैं. चित्रकूट के किसानों ने औषधीय खेती से आमदनी बढ़ाने के टिप्स दिए और बताया कि उन्होंने किस तरह से चित्रकूट में औषधीय खेती करने वाले किसानों को बिचौलियों के चंगुल से नजात दिला कर उन की आमदनी को दोगुना किया है. किसान बने फार्म एन फूड के वार्षिक ग्राहक फार्म एन फूड द्वारा किसानों के लिए आयोजित किए गए कार्यक्रम में आए तकरीबन 100 किसानों को दिल्ली प्रैस की तरफ से इस पत्रिका की सैंपल कौपी मुफ्त उपलब्ध कराई गई.

पत्रिका में छपे ज्ञानवर्धक लेखों को पढ़ कर कई किसान पत्रिका की विशेष स्कीम के तहत वार्षिक ग्राहक भी बने. इस मौके पर किसानों का कहना था कि खेतीबारी से जुड़ी इतनी अच्छी पत्रिका के ग्राहक बन उन्हें देशभर के किसानों और कृषि विशेषज्ञों के अनुभवों और सु?ावों के बारे में घर बैठे जानकारी मिलेगी. इतना ही नहीं, कई किसानों का कहना था कि पत्रिका के रजिस्टर्ड डाक से मिलने के कारण उन्हें शहर तक पत्रिका के लिए भागदौड़ से भी छुटकारा मिल जाएगा.

पुरस्कार पा कर खिले चेहरे डा. जितेंद्र सिंह, कृषि वैज्ञानिक, डा. साधना वैश, वैज्ञानिक (गृह विज्ञान), उमाशंकर पांडेय, जलग्राम जखनी, बांदा, गणेश प्रसाद मिश्र, ओम प्रकाश मिश्र (हर्बल मैडिसनल प्लांट ऐक्सपर्ट), डा. शिव प्रेम याज्ञिक (क्षेत्रीय इतिहासकार, बुंदेलखंड क्षेत्र, कर्बी), विजेंद्र बहादुर पाल, बस्ती, अमित विक्रम त्रिपाठी, बस्ती, राहुल अवस्थी (जैविक किसान, कृषि सलाहकार) बांदा, अखिलेश्वर सिंह (फूलों की खेती) बांदा, सीए अंकित अग्रवाल, अरविंद चतुर्वेदी, गंगा प्रसाद पांडेय, रामकुमार शुक्ल, सुरेखा (कृषि व समाज कार्य), अरविंद छिरौलिया,

अंबिका प्रसाद यादव (गनीवा फार्म कुरिया), रामकेश यादव, श्रवण कुमार पांडेय, संजय कुमार यादव, रामबाबू मिश्रा, देवनाथ अवस्थी, गणेश प्रसाद मिश्र, शिवसागर सिंह राजपूत, महेश कुमार मिश्र, सौरभ तिवारी, ललित कुमार पांडेय, संतोष त्रिपाठी, महानंद सिंह पटेल, अमरनाथ सिंह पटेल, चंदन सिंह पटेल, रामराज सिंह, सचिन तुलसा त्रिपाठी (कृषि पत्रकार) को पुरस्कार मिले.

मेरे एक लड़के से शारीरिक संबंध हैं लेकिन अब वह घर वालों की मरजी से शादी कर रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 22 वर्षीय  युवती हूं. मुझे फेसबुक पर एक युवक की फ्रैंड रिक्वैस्ट आई वह काफी हैंडसम युवक था, सो मैं ने उस से दोस्ती कर ली. फिर हमारी रोज बातचीत होने लगी. बातोंबातों में सैक्स की बातें भी होने लगीं, हम दोनों मिलने भी लगे और शारीरिक संबंध भी बने, लेकिन अब जबकि उस लड़के ने मुझ से शादी का वादा किया था वह घर वालों की मरजी से शादी कर रहा है. मैं उस के बिना नहीं रह सकती. मैं क्या करूं?

जवाब

फेसबुक पर अकसर दोस्ती होती है औैर ऐसे संबंधों के बाद धोखा मिलता है. यह आजकल आम बात है, यह जानते हुए भी आप ने जो कदम बढ़ाया वह जिंदगी भर का जोखिम लिया है. आगे भी भविष्य में आप के लिए ऐसा प्रेमी दुखदायी रहेगा. अपनी भावनाओं पर काबू रखें और उस से बिलकुल नाता तोड़ लें.

अपने आप को अन्य कामों में बिजी रखेंगी तो उसे भूल पाएंगी. फिर सोचसमझ कर अपनी जिंदगी को जीएं. ऐसे जालसाजों से सदा बच कर रहें. उस से उस की शादी के बाद भी मिलने की कोशिश न करें, वह आप का दोहन ही करेगा, आप की भावनाओं का फायदा ही उठाएगा. इस समय आप की थोड़ी सी समझदारी आप को जिंदगी भर का सुकून प्रदान करेगी.

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