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Yrkkh: अक्षरा के लिए परेशान होगा अभिमन्यु रो रोकर होगा बुरा हाल?

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों काफी ज्यादा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. यह सीरियल सालों से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा है. बता दें कि इस सीरियल के ट्विस्ट और टर्न खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. लगातार इस सीरियल में ट्विस्ट आ रहे हैं.

इ दिनों अक्षरा और अभिमन्यु कई वर्षों बाद एक दूसरे से मिले हैं तो वह अपनी पुरानी यादों में खो गए हैं, तो वहीं अभिमन्यु को अपनी गलती का पछतावा हो गया है कि उसने अक्षरा पर गलत इल्जाम लगाए थें.लेकि अक्षरा उसे मांफ नहीं करती है. वह कहती है कि मैं इन दिनों काफी ज्यादा परेशान हूं.

 

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जिसके बाद से अभिमन्यु की हालत काफी ज्यादा ठीक नहीं लग रही है, आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अभिनव को अक्षरा और अभिमन्यु के बारे में सबकुछ पता चल जाएगा. इसके बाद अभिनव  अक्षरा को कहता है कि अबीर को अभिमन्यु के बारे में पता होना चाहिए. कि अबीर अभिमन्यु को बेटा है, लेकिन अक्षरा उसको इसके लिए मना करती है.

वह कहती है कि मेरी फैमली में सिर्फ तीन लोग है जिसमें आप अभीर और मैं हूं.यह बात सुनकर अभिनव खुश हो जाता है. इसके बाद वह अक्षु को खूब सझाता है लेकिन वह बात को मानने से इंकार कर देती है. क्या दूबारा अभिमन्यु अक्षरा को पा सकेगा जानने के लिए देखिए आने वाला अगला एपिसोड.

अक्लमंदी-भाग 3: नीलिमा मनीष को शादी के लिए परेशान क्यों कर रही थी?

कैरियर को बेहतर बनाने में कैसे वक्त निकल गया, नीलिमा को पता ही नहीं चला। वह 35 वर्ष की हो चुकी थी। हालांकि, इस भागमभाग में उस के मन में विवाह करने का कभी खयाल नहीं आया। अभी भी विवाह करने के प्रति बहुत ज्यादा गंभीर नहीं थी। उस का मानना था कि जब किसी से दिल मिलेगा तभी वह शादी करेगी। अरेंज्ड मैरिज के खिलाफ थी वह।

दिसंबर महीने में दशहरा मैदान में पुस्तक मेला लगा, जो 15 दिनों तक चलने वाला था। भोपाल में हर साल पुस्तक मेला लगता है। इस पुस्तक मेले में कवि सम्मेलन, मुशायरा, गायन, नाटक, विचारविमर्श, भाषण व वादविवाद प्रतियोगिता आदि कार्यक्रम रोज आयोजित किए जा रहे थे। इस साल कई कार्यक्रमों में मनीष को शिरकत करनी थी। एक दिन मुशायरा में वह बतौर शायर शामिल था। अपनी बारी आने पर मनीष ने गजल का मतला पढ़ना शुरू किया :
“हर बात पर सवाल करते हैं,
कुछ पूछो तो बवाल करते हैं…”

तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा वातावरण गुंजायमान था। इस शोर में भी मनीष को नीलिमा की आवाज साफसाफ सुनाई दे रही थी। अल्प समय में वह नीलिमा की आवाज को अच्छी तरह से पहचान गया था। काफी तेज आवाज में नीलिमा वाहवाह… कह रही थी।

कार्यक्रम खत्म होने के बाद मनीष घर जाने के लिए अपनी कार का दरवाजा खोल ही रहा था कि तभी नीलिमा आ गई। बोली,“सर, क्या थोड़ी देर रुक सकते हैं?”

“क्यों नहीं”, मनीष बोला।

नीलिमा ने फिर कहा,“सर, पास में ही एक कौफी हाउस है, बहुत अच्छी कौफी मिलती है वहां, क्या आप मेरे साथ 1 कप कौफी पीना पसंद करेंगे?”

“हां, क्यों नहीं, चलो चलते हैं”, मनीष ने कहा।

नीलिमा ने कौफी का और्डर दिया। साथ में वेटर को दो चीज सैंडविच और 1 बोतल पानी और 2 खाली गिलास भी लाने के लिए कहा। एकदूसरे का हाल पूछने के बाद वे कुछ देर तक देश में मीडिया की दशा और दिशा पर बात करते रहे। कुछ देर बाद मनीष नीलिमा से बात करने में सहज महसूस करने लगा। हालांकि, नीलिमा पहले से सहज थी। मनीष, संकोची और अंतर्मुखी था। वह तुरंत किसी के साथ सहज नहीं हो पाता था।

मनीष पत्रकारिता पढ़ने के दौरान के दिनों के बारे में नीलिमा को बताने लगा। उस ने कहा,“हमारे समय में होस्टल नहीं थे। मैं कोहेफिजा में बतौर पेइंगगेस्ट (पीजी) के रूप में रहता था, साइकिल से कालेज आताजाता था, साइकिल से ही मित्रों के साथ कभी भोजपुर, कभी भीमबेटका, कभी होशंगाबाद तो कभी भदभदा डैम चला जाता था। हमारे बैच वालों ने खूब मस्ती की। पढ़ाई के दौरान डा राकेश हमारे कोर्स डाइरैक्टर थे, वे मेरे संपर्क में आज भी हैं।”

नीलिमा ने पूछा,“सर, आप बैंक में कैसे आ गए? मैं ने सुना है कि पत्रकारिता करते समय भी लेख लिखने के मामले में आप अपने सहपाठियों से बहुत आगे थे?”

मनीष बोला,“इस की एक लंबी कहानी है।”

मनीष थोड़ी देर चुप रहा, मानो 25 साल पहले की यादों को फिर से एक जगह समेट रहा हो, फिर बोला,“मेरे समय तो अखबारों की नौकरी से जीवनयापन करना आसान नहीं था और टीवी चैनलों का पदार्पण उस कालखंड में नहीं हुआ था। कोई अखबार ₹1,800 मासिक वेतन देने की बात करता था तो कोई ₹2,000. अलबत्ता, 90 के दशक में भोपाल में नौकरी मिलने की बहुत ज्यादा संभावनाएं नहीं थीं और दिल्ली में इतने कम पैसों में जीविका चलाना मुमकिन नहीं था, फिर भी लगभग 5 सालों तक 2 राष्ट्रीय दैनिकों में काम किया, लेकिन जब आर्थिक मुश्किलें बहुत ज्यादा बढ़ गईं तो बैंक जौइन कर लिया।”

“आप के परिवार में कौनकौन हैं?” नीलिमा ने पूछा।

मनीष बोला,“मेरी 2 बेटियां हैं, बड़ी बेटी 10वीं में पढ़ती है, जबकि छोटी 9वीं में, पत्नी गृहिणी है।”

बातजीत करते हुए समय का पता ही नहीं चला। घड़ी देखी तो रात के 10 बज चुके थे। मनीष ने कहा,“अब हमें चलना चाहिए, काफी देर हो चुकी है।”

रविवार को सुबहसुबह श्रीमतीजी को मोतीचूर का लड्डू खाने का मन किया। मनीष को भी मोतीचूर के लड्डू बहुत पसंद थे। दोनों मियांबीवी को मोतीचूर के लड्डू खाने का चसका शिवपुरी में लगा था। शिवपुरी में बने मोतीचूर के लड्डू का स्वाद अद्भुत था। वैसे, भोपाल के मनीषा मार्केट में स्थित बृजवासी स्वीट्स में बने मोतीचूर के लड्डू भी बहुत स्वादिष्ठ होते हैं। बृजवासी स्वीट्स ठीक शाहपुरा झील के सामने था। शाहपुरा झील को छोटी झील भी कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक झील है। झील के चारों ओर मनोरम दृश्य है, जो राहगीरों का ध्यान अनायास ही अपनी तरफ खींच लेता है।

मनीष मोती चूर के लड्डू खरीद ही रहा था कि तभी नीलिमा भी वहां पहुंच गई। मनीष बोला,“अरे तुम, क्या लेना है?”

“मम्मी घी में बनी गरमगरम जलेबियां लाने के लिए बोली है”, नीलिमा ने कहा।

नीलिमा फिर बोली,“सर, अगर आप को देर नहीं हो रही है तो झील के किनारे थोड़ी देर बैठते हैं, तब तक जलेबियां भी बन जाएंगी।”

दोनों झील के किनारे एक पार्क के एक बेंच पर बैठ कर बातें करने लगे। मनीष ने कई नज्में नीलिमा को सुनाई। घंटों बीत गए बातचीत करतेकरते। इसी बीच, मनीष की छोटी बेटी श्रेया का फोन आ गया। वह फोन पर ही मनीष को डांटने लगी,“आप कहां हैं, हम लड्डू खाने का इंतजार कर रहे हैं और आप घूम रहे हैं। हमारी चिंता ही नहीं आप को…” श्रेया मनीष से कुछ ज्यादा ही मुंहलगी थी। मनीष बेटी का गुस्सा शांत करने के लिए कहा,“मैं पहुंचने ही वाला हूं,तुम दरवाजा खोल कर रखो।”

मनीष और नीलिमा की मिलने की आवृति धीरेधीरे बढ़ने लगी। कभी नीलिमा मनीष के होशंगाबाद रोड स्थित औफिस चली जाती थी तो कभी मनीष नीलिमा के औफिस पहुंच जाता था। कभी वे एमपी नगर में लंच करते थे तो कभी न्यू मार्केट के किसी रेस्टोरैंट में।

आहिस्ताआहिस्ता नीलिमा और मनीष नजदीक आने लगे। दोनों काफी खुल गए थे। दोनों अपने सुखदुख भी साझा करने लगे थे। नीलिमा मनीष के साथ कुछ ज्यादा ही सहज हो गई थी। वह मनीष को सर की जगह उस के नाम से पुकारने लगी। अब तो वह अपनी बात मनवाने के लिए जिद भी करने लगी थी।

नीलिमा के आगे मनीष कमजोर पड़ने लगता था। नीलिमा के सामने मनीष की एक भी नहीं चलती थी। मनीष को नीलिमा के सामने झुकना ही पड़ता था। नवंबर से फरवरी तक भोपाल का मौसम बहुत ही खुशगवार रहता है। मौसम का आनंद उठाने के लिए नीलिमा और मनीष शाम को अकसर बड़ी झील जाने लगे। कभीकभार वे भारत भवन भी चले जाते थे। दोनों को नाटक देखना बहुत पसंद था। घंटों झील की लहरों को निहाराना दोनों को अच्छा लगता था। झील के किनारे एक होटल कि रंजीत व्यंजन बहुत ही स्वादिष्ठ होते थे। वे कई बार होटल से डिनर कर के घर वापस लौटते थे।

मनीष की पत्नी सुधा ने एक बार हंसते हुए मनीष से पूछा भी था,“क्या डार्लिंग, आजकल घर आने में बहुत देर हो रही है, कोई इश्कविश्क का चक्कर तो नहीं है?”

मनीष ने मुसकराते हुए कहा था,“मुझ जैसे बूढ़े को कौन घास डालेगी?”

मनीष ने कहा,“तुम्हीं प्रोमोशन की रट लगाए हुए थी, अब भुगतो। बैंक में कितना काम होता है, तुम्हें मालूम ही है, आजकल काम बढ़ गया है, आगे आने वाले दिनों में मेरी मशरुफियत और भी बढ़ने वाली है।”

भारत भवन के बालकनी में मनीष और नीलिमा खड़े थे। चाचांद निकल आया था। नीलिमा बोली, “मनीष, आज चांदनी रात है, चलो झील में नौका विहार किया जाए। मनीष इस के लिए तुरंत राजी हो गया, क्योंकि भेड़ाघाट, जबलपुर में वह चांदनी रात में नौका विहार कर चुका था और उन बेहतरीन लमहों को वह आज भी बड़े शिद्दत के साथ याद करता है। मनीष उन यादगार पलों को फिर से जीना चाहता था, इसलिए वे दोनों घंटों नौका विहार करते रहे।

बात करने के क्रम में मनीष ने कहा,“मुझे एक बैंक शाखा के औचक निरीक्षण में पिपरिया जाना है।”

“यह तो बहुत अच्छी बात है, पंचमढ़ी पिपरिया से ज्यादा दूर नहीं है। क्यों न 2 दिनों के लिए हम पंचमढ़ी चलें,” नीलिमा ने कहा। मनीष नीलिमा के प्रस्ताव को मान लिया।

नीलिमा ने हाल ही में 7 सीटर एक कार ली थी, क्योंकि उसे परिवार के साथ घूमने का बहुत शौक था। रात में वह सिर्फ भुट्टा खाने के लिए सीहोर चली जाती थी, जबकि भोपाल से सीहोर की दूरी लगभग 40 किलोमीटर थी। नीलिमा बोली,“मैं अपनी गाड़ी से पंचमढ़ी चलूंगी, मेरी गाड़ी का इंजन बहुत ही पावरफुल है। पहाड़ पर चढ़ाई के लिए यह ठीक रहेगा…” मनीष राजी हो गया।

मनीष बोला,“मैं ने लंबी दूरी अपनी कार से कभी नहीं तय की है, इसलिए गाड़ी तुम चलाना।”

“ठीक है,” नीलिमा ने कहा।

भोपाल से पिपरिया तक मनीष ने गाड़ी ड्राइव की। उस के बाद ड्राइविंग की कमान नीलिमा ने संभाल ली। नीलिमा और मनीष की उम्र में 13 सालों का अंतर था। नीलिमा 35 वर्ष की थी, जबकि मनीष 49 का। सफर में दोनों युवा बन गए। तेज आवाज में गाने बज रहे थे। दोनों गुनगुना रहे थे। गाड़ी फुल स्पीड में थी। नीलिमा सैकड़ों सैल्फी ले चुकी थी। पत्नी को पता नहीं चले, इसलिए मनीष फोटो या सैल्फी लेने से परहेज कर रहा था। शाम होतेहोते दोनों पंचमढ़ी पहुंच गए।

पहले से ही एक रिसोर्ट उन्होंने आरक्षित कर रखा था। भले ही दोनों साथसाथ घूम रहे थे, लेकिन मनीष के दिल पर, दिमाग का कब्जा था। उस ने दोनों के लिए अलगअलग कमरे बुक करवाए थे। हालांकि, नीलिमा ने इस का विरोध किया था, लेकिन मनीष अड़ गया था अलगअलग कमरा बुक करने के लिए। उस ने नीलिमा को साफ तौर पर कह दिया था, इस बार मैं तुम्हारी बात नहीं मानूंगा।

सिंध व सतपुड़ा की सुंदर पहाड़ियों से घिरा पंचमढ़ी अपनी सुंदरता से सालों भर पर्यटकों को लुभाता है, लेकिन गरमियों के दौरान यहां सैलानियों का तांता लगा रहता है। यहां झरने भी हैं और किलोल करती नदी भी। पंचमढ़ी प्रवास के दौरान दोनों ने खूब मस्ती की।

नीलिमा मनीष को पसंद करने लगी थी, लेकिन दिल की बात जबान पर लाने में उसे डर लग रहा था। उसे इस बात की चिंता थी कि मनीष क्या सोचेगा, क्योंकि वह पहले से शादीशुदा था। फिर भी उसे मनीष के साथ वक्त बिताने में मजा आता था। वर्किंग डे में वह हर दिन मनीष से मिलती थी। छुट्टियों में भी वह बहाना कर के मनीष के घर चली जाती थी। मनीष की पत्नी सुधा खुले खयालों वाली थी। इसलिए नीलिमा का घर आना उसे असहज नहीं लगता था।

एक दिन दोनों भारत भवन में भारतेंदु हरिश्चंद्र की कहानी ‘अंधेरे नगरी’ का मंचन देख रहे थे। मध्यांतर में मनीष कुछ स्नैक्स ले कर आया। नीलिमा आज घर से मन बना कर आई थी कि वह अपने प्यार का इजहार मनीष के समक्ष जरूर करेगी। पौपकौर्न का पैकेट खत्म होने वाला था, फिर भी वह हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। बड़ी मुश्किल से नीलिमा ने मनीष से कहा,“मुझे एक बहुत जरूरी बात तुम से कहनी है।”

मनीष बोला,“कहो न…”

नीलिमा थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली,“कैसे कहूं, समझ में नहीं आ रहा है।”

“अरे कह भी दो, ज्यादा नहीं सोचो।”

नीलिमा बोली,“मनीष, मैं तुम से बेहद प्यार करती हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती हूं। मैं तुम से शादी करना चाहती हूं”, सकुचाती हुई नीलिमा ने कहा।

नीलिमा थोड़ी देर तक मनीष का चेहरा एकटक देखती रही, फिर बोली,“मुझे मालूम है कि तुम शादीशुदा हो, तुम्हारे बच्चे हैं और परिवार के प्रति जिम्मेदारियां भी हैं, लेकिन क्या करूं, मेरा दिल मानता ही नहीं है।”

नीलिमा की बात मनीष शांतचित हो कर सुनता रहा। उस के चेहरे पर विचलन के कोई भाव दिखाई नहीं दिए। वह काफी देर तक चुप रहा।

नीलिमा बोली,“क्या हुआ, क्यों शांत हो? कुछ तो कहो…”

काफी देर के बाद मनीष बोला,“मुझे पहले से एहसास था कि तुम मुझ से प्यार करने लगी हो, लेकिन मैं जान कर भी अनजान बना हुआ था, क्योंकि मैं भी तुम्हें पसंद करता हूं, मुझे भी तुम्हारे साथ रहना अच्छा लगता है, इसलिए मैं स्वार्थी बना हुआ था। मैं जानता था कि जिस दिन मैं या तुम प्यार का इजहार करेंगे, उसी दिन हम दोनों का मिलनाजुलना बंद हो जाएगा, इसलिए मैं चुप था। मैं तुम्हारे साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहता था।”

मनीष थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर बोला,“मेरे हिसाब से हमारे बीच का संबंध गलत नहीं है, लेकिन परिस्थितियां ऐसी हैं कि हम शादी नहीं कर सकते हैं। पत्नी और बच्चों के प्रति मेरी जो जिम्मेदारी है उस से मैं भाग नहीं सकता हूं।”

मनीष ने फिर कहा,“प्यार स्थाई नहीं होता है, यह परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। जिंदगी एक दिन की नहीं होती है, इस की यात्रा में कई उतारचढ़ाव आते हैं, दुनिया में बहुत कम युगल ऐसे मिलेंगे, जो ताउम्र एकसमान प्यार करते हैं। हो सकता है कि कुछ सालों बाद मैं भी तुम्हारी जगह किसी दूसरे से प्यार करने लगूं, इसलिए मुझे लगता है कि हमें दिल की जगह दिमाग की बात सुननी चाहिए और युगल की तरह मिलनाजुलना अब बंद कर देना चाहिए। संयम बरतने में ही हम दोनों की भलाई है, नहीं तो दोनों को नुकसान होगा, समय हर घाव को भर देता है, यह घाव भी वक्त बीतने के साथ भर जाएगा।”

नीलिमा, मनीष की बात सुन कर कुछ देर तक निशब्द बैठी रही, फिर भारी मन से निकास द्वार से बाहर निकल गई।

आउटसोर्सिंग : क्या सुबोध मुग्धा के सपनों को पूरी कर पाया?

Valentine’s Special – कल हमेशा रहेगा : भाग 2

डा. साकेत अग्रवाल शायद उस की मजबूरी को भांप चुके थे. उन्होंने वेदश्री को ढाढ़स बंधाया कि वह पैसे की चिंता न करें, अगर सर्जरी जल्द करनी पड़ी तो पैसे का इंतजाम वह खुद कर देंगे. निष्णात डाक्टर होने के साथसाथ साकेत एक सहृदय इनसान भी हैं.

दरअसल, साकेत उम्र में वेदश्री से 2-3 साल ही बड़े होंगे. जवान मन का तकाजा था कि वह जब भी वेदश्री को देखते उन का दिल बेचैन हो उठता. वह हमेशा इसी इंतजार में रहते कि कब वह मानव को ले कर उस के पास आए और वह उसे जी भर कर देख सकें. न जाने कब वेदश्री डा. साकेत के हृदय सिंहासन पर चुपके से आ कर बैठ गई, उन्हें पता ही नहीं चला. तभी तो साकेत ने मन ही मन फैसला किया था कि मानव की सर्जरी के बाद वह उस के मातापिता से उस का हाथ मांग लेंगे.

उधर वेदश्री डा. साकेत के मन में अपने प्रति उठने वाले प्यार की कोमल भावनाओं से पूरी तरह अनभिज्ञ थी. वह अभिजीत के साथ मिल कर अपने सुंदर सहजीवन के सपने संजोने में मगन थी. उस के लिए साकेत एक डाक्टर से अधिक कुछ भी न थे. हां, वह उन की बहुत इज्जत करती थी क्योंकि उस ने महसूस किया था कि डा. साकेत एक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होने के साथसाथ नेक दिल इनसान भी हैं.

समय अपनी चाल से चलता रहा और देखते ही देखते डेढ़ वर्ष का समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला. एक दिन फोन की घंटी बजी तो अभिजीत का फोन समझ कर वेदश्री ने फोन उठा लिया और ‘हैलो’ बोली.

‘‘वेदश्रीजी, डा. साकेत बोल रहा हूं. मैं ने यह बताने के लिए आप को फोन किया है कि यदि आप मानव को ले कर कल 12 बजे के करीब अस्पताल आ जाएं तो बेहतर होगा.’’

साकेत चाहता तो अपनी रिसेप्शनिस्ट से फोन करवा सकता था, लेकिन दिल का मामला था अत: उस ने खुद ही यह काम करना उचित समझा.

‘‘क्या कोई खास बात है, डाक्टर साहब,’’ वेदश्री समझ नहीं पा रही थी कि डाक्टर ने खुद क्यों उसे फोन किया. उसे लगा जरूर कोई गंभीर बात होगी.

‘‘नहीं, कोई ऐसी खास बात नहीं है. मैं ने तो यह संभावना दर्शाने के लिए आप के पास फोन किया है कि शायद कल मैं आप को एक बहुत बढि़या खबर सुना सकूं, क्योंकि मैं मानव को ले कर बेहद सकारात्मक हूं.’’

‘‘धन्यवाद, सर. मुझे खुशी है कि आप मानव के लिए इतना सोचते हैं. मैं कल मानव को ले कर जरूर हाजिर हो जाऊंगी, बाय…’’ और वेदश्री ने फोन रख दिया.

वेदश्री की मधुर आवाज ने साकेत को तरोताजा कर दिया. उस के होंठों पर एक मीठी मधुर मुसकान फैल गई.

मानव का चेकअप करने के बाद डा. साकेत वेदश्री की ओर मुखातिब हुए.

‘‘क्या मैं आप को सिर्फ ‘श्री…जी’ कह कर बुला सकता हूं?’’ डा. साकेत बोले, ‘‘आप का नाम सुंदर होते हुए भी मुझे लगता है कि उसे थोड़ा छोटा कर के और सुंदर बनाया जा सकता है.’’

‘‘जी,’’ कह कर वेदश्री भी हंस पड़ी.

‘‘श्रीजी, मेरे खयाल से अब मानव की सर्जरी में हमें देर नहीं करनी चाहिए और इस से भी अधिक खुशी की बात यह है कि एशियन आई इंस्टीट्यूट बैंक से हमें मानव के लिए योग्य डोनेटर मिल गया है.’’

‘‘सच, डाक्टर साहब, मैं आप का यह ऋण कभी भी नहीं चुका सकूंगी,’’ उस की आंखों में आंसू उभर आए.

डा. साकेत के हाथों मानव की आंख की सर्जरी सफलतापूर्वक संपन्न हुई. परिवार के लोग दम साधे उस की आंख की पट्टी खुलने का इंतजार कर रहे थे.

सर्जरी के तुरंत बाद डा. साकेत ने उसे बताया कि मानव की सर्जरी सफल तो रही लेकिन उस आंख का विजन पूर्णतया वापस लौटने में कम से कम 6 महीने का वक्त और लगेगा. यह सुन कर उसे तकलीफ तो हुई थी लेकिन साथसाथ यह तसल्ली भी थी कि उस का भाई फिर इस दुनिया को अपनी स्वस्थ आंखों से देख सकेगा.

‘‘श्री…जी, मैं ने आप से वादा किया था कि आप को कभी नाउम्मीद नहीं होने दूंगा…’’ साकेत ने उस की गहरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मैं ने आप को दिया अपना वादा पूरा किया.’’

वेदश्री ने संकोच से अपनी पलकें झुका दीं.

‘‘फिर मिलेंगे…’’ कुछ निराश भाव से डा. साकेत ने कहा और फिर मुड़ कर चले गए.

उस दिन एक लंबे अरसे के बाद वेदश्री बिना किसी बोझ के बेहद खुश मन से अभिजीत से मिली. उसे तनावरहित और खुशहाल देख कर अभि को भी बेहद खुशी हुई.

‘‘अभि, कितने लंबे अरसे के बाद आज हम फिर मिल रहे हैं. क्या तुम खुश नहीं?’’ श्री ने उस का हाथ अपने हाथ में थाम कर ऊष्मा से दबाते हुए पूछा.

अगले भाग में पढ़ें-  वह जिंदा रहता भी तो शायद आजीवन अपाहिज बन कर रह जाता.

पौधों को रखे हरा भरा

आज हमारे चारों ओर बड़ेबड़े भवनों का निर्माण होता जा रहा है, तो उन्हीं बिल्डिंगों के आसपास छोटेबड़े लौन, फुलवारी, बालकौनियों, यहां तक कि छतों पर भी कुछ न कुछ उपाय कर के कुछ फूलों, फलों, सब्जियों, सजावटी लताओं के पौधों को भी लगाया जा रहा है.

कहींकहीं जिन के पास बड़े आवास हैं, वे लोग अपने आवास के चारों ओर की चारदीवारी के अंदर बची हुई जगहों को गृह वाटिका में बदल कर दैनिक उपयोग के लिए सब्जियों, फूलों और फलों को उगा रहे हैं.यह हकीकत है कि हम कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएं, हमारा पौधों के प्रति लगाव या कहें कि आकर्षण कम नहीं हो सकता है. मनुष्य की आवश्यकता और पेड़पौधों के आसपास रहने की आदत ने ही बागबानी की शुरुआत की है.

आजकल छोटे या बड़े कार्यालयों के बरामदे में रखने वाले और कम धूप में उग सकने वाले पौधे आसानी से मिल जाएंगे. मगर जितना ये पौधे हमें देखने में अच्छे लगते हैं, उतनी ही उन की देखरेख करने की भी आवश्यकता होती है. किसी भी गृह वाटिका में पौधों की वृद्धि, उत्पादन व सुंदरता पूरी तरह से वाटिका के प्रबंधन पर निर्भर करती है.

यदि दैनिक आवश्यकतानुसार फूल, फल व सब्जियां प्राप्त करने के लिए गृह वाटिका को बनाया गया है, तो हमें इस का प्रबंधन इस तरह करना चाहिए, जिस से कि कम लागत व कम से कम समय लगा कर अधिकतम उत्पादन को प्राप्त कर सकें. साथ ही, वे सुंदर व स्वच्छ भी बनी रहें. सुनियोजित रूप से गृह वाटिका का प्रबंधन कर के हम उस को हमेशा हराभरा बनाए रख सकते हैं, जिस के लिए हमें निम्नलिखित सु  झावों को अपनाने की आवश्यकता है :

मृदा का शुद्धीकरण

सब से पहले जो भी मृदा हम उपयोग के लिए ले रहे हैं, उस का शुद्धीकरण करने की आवश्यकता होती है, अन्यथा मृदा में रहने वाले अनेक प्रकार के हानिकारक कीट या कवक पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. जैसा कि देखा गया है कि गमलों, क्यारियों और नर्सरी के पौधों में सब से खतरनाक कवकजनित रोग तना सड़ने लगता है, जो पौधों की बढ़वार पूरी तरह से रोक देता है और पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं.

इस रोग से बचने के लिए कैप्टान या थिरम को 5 ग्राम प्रति लिटर पानी के घोल का प्रयोग कवकनाशी के रूप में किया जा सकता है. यदि दीमक आदि का प्रकोप है, तो 2 से 4 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास को एक लिटर पानी में घोल कर लगभग 5 सैंटीमीटर गहराई तक की मिट्टी को तरबतर कर देने से दीमक नष्ट हो जाते हैं और हमारी पौधशाला कीटों व रोगों से सुरक्षित रहती है.

ऐसे करें बीजों की बोआई

गृह वाटिका में फूलों को सीधे बीज बो कर या पौधों की रोपाई द्वारा लगाया जाता है. हमेशा सीजन के अनुसार उगाने के लिए चयनित बीजों को किसी विश्वसनीय दुकान से ही लेना चाहिए. कुछ सब्जियां जैसे मटर, गाजर, मूली, शलजम, पालक, मेथी, बाकला, आलू, अदरक, हलदी और कुछ फूल जैसे हाली हार्ट, स्वीट पी आदि को निर्धारित समय पर तय दूरी पर बीज बो कर उगाया जाता है.

टमाटर, बैगन, मिर्च, गांठ गोभी, प्याज, फूलगोभी, पत्तागोभी आदि सब्जियों और अधिकांश मौसमी फूलों के बीज को पहले पौधशाला में उगाया जाता है, जिन में से बाद में स्वस्थ पौधों को क्यारियों में रोपा जाता है. इसलिए हो सके, तो उन के बीजों का उपचार भी कर लें.

कुछ पौधे ऐसे भी होते हैं, जो बरसात में खरपतवार की तरह हमें यहांवहां देखने को मिल जाते हैं, जैसे मकोय, भूमिआंवला, दूधीघास, अश्वगंधा, शतावर, तुलसी, दवनामरुआ, नागदोन, शंखपुष्पी आदि. इन की देखभाल के लिए कोई विशेष प्रबंध भी नहीं करना पड़ता. इसी तरह फलदार पेड़ों में भी पहले बीज या कलम से पौध तैयार करते हैं. बाद में उसे रोपण विधि से क्यारियों या वांछित स्थानों पर लगा देते हैं.

पौध प्रतिरोपण एक ऐसा उद्यान कार्य है, जिस में यदि पूरी सावधानी नहीं बरती गई, तो कभीकभी रोपे गए सारे पौधे नष्ट हो जाते हैं. पौध लगाते समय हम सभी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

* पौध लगाते समय यह जानकारी अवश्य रखनी चाहिए कि पौधे वांछित किस्म के ही हों.

* पौधे स्वस्थ व निरोगी होने चाहिए.

* उखाड़े गए पौधे की जड़ें ढक कर रखनी चाहिए. उखाड़ने के बाद उन की यथाशीघ्र रोपाई कर देनी चाहिए.

* पौधो को निर्धारित दूरी पर ही लगाया जाना चाहिए.

* पौध रोपाई करते समय कुछ पत्तियां तोड़ देनी चाहिए और यदि शाखाएं अधिक हों, तो कुछ शाखाएं भी तोड़ देनी चाहिए.

* रोपण सायंकाल के समय करना उत्तम रहता है. इस से पौधों को रात के ठंडे तापमान में स्थापित होने का समय मिल जाता है.

* लगाते समय पौधे की जड़ों के पास अधिक उर्वरक नहीं देना चाहिए और उर्वरकों को पानी में घोल कर मिट्टी में मिलाया जाना अधिक उपयोगी रहता है.

* रोपण के तुरंत बाद उस की जड़ों के आसपास की मिट्टी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए, ताकि जड़ क्षेत्र में हवा न रहे.

* रोपण के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, जिस से पौधों की जड़ें मिट्टी के संपर्क में आ जाएं और वे तुरंत भोजन प्राप्त करना आरंभ कर दें.

* पेड़ों के लिए गड्ढा आवश्यकता से अधिक गहरा नहीं बनाना चाहिए.

* रोपण के समय पौधा सीधा खड़ा रहना चाहिए और उस का पर्याप्त भाग मिट्टी में दबा रहना चाहिए.

नष्ट पौध का प्रतिस्थापन

और पौध के बीच की दूरी

कभीकभी यह देखा गया है कि किसी स्थान विशेष पर बीज अंकुरित नहीं हो पाते या रोपण के बाद कुछ पौधे नष्ट हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि उस खाली स्थान को समान किस्मों के पौधों से भरा जाए. यह कार्य जल्दी से जल्दी करना चाहिए क्योंकि, यदि देरी होगी तो पौधों की बढ़वार अनियमित हो जाएगी, जिस का उस पौधे की उपज पर बुरा असर पड़ेगा.

इस के लिए जैसे ही बीज अंकुरित हो जाएं, क्यारियों का निरीक्षण करना चाहिए और जिस स्थान पर पौधा नहीं है, वहां पर दोबारा से बीज की बोआई कर देनी चाहिए.

पौध से पौध के बीच की दूरी भिन्नभिन्न फसलों के लिए भिन्नभिन्न होती है. यदि पौधे अधिक दूरी पर लगाए जाते हैं, तो पैदावार में कमी आएगी और यदि पौधे कम दूरी पर लगाए जाते हैं, तो ज्यादा घने हो जाने से भी पैदावार में कमी आएगी, इसलिए निर्धारित दूरी पर ही पौधे लगाने चाहिए.

निराईगुड़ाई                     

पौधों की अच्छी बढ़वार व उपज के लिए गमलों और क्यारियों की सफाई जरूरी है. इस के लिए समय से निराईगुड़ाई करना चाहिए. इस के फलस्वरूप जड़ों को अपना कार्य करने में आसानी रहती है. फसल के साथ उगे अवांछित पौधे भी अन्य पौधों के साथसाथ जमीन से पोषक तत्त्व व पानी ले लेते हैं और पत्तियों तक प्रकाश के पहुंचने में भी बाधक बनते हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए समय पर निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए. निराईगुड़ाई करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

* पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए आरंभ में ही फसल के साथ उगे अन्य अनावश्यक पौधों को निकालने के लिए हलकी निराई करनी चाहिए.

* निराईगुड़ाई इस तरह करनी चाहिए कि पौधों की जड़ों को किसी तरह की हानि न पहुंचे.

* यदि खड़ी फसल में उर्वरक दिया जाता है, तो उस को जमीन में मिलाने के लिए निराईगुड़ाई करना जरूरी होता है और क्यारी की मिट्टी कड़ी हो जाने पर उसे भुरभुरी बनाने के लिए निराईगुड़ाई आवश्यक होती है.

* बरसात में जब खरपतवारों का प्रकोप अधिक होता है, तो भी निराईगुड़ाई करना जरूरी हो जाता है.

* बरसात में गुड़ाई करने के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिस से उन्हें पानी की अधिकता से बचाया जा सके.

* पौधशाला में निराई के लिए किसी कम चौड़ाई वाली और पतली खुरपी का प्रयोग करना चाहिए, जिस से पौधे को किसी तरह की हानि न पहुंचे.

मल्च (पलवार) लगाने की आवश्यकता 

परीक्षणों से पता चलता है कि फसलों में पलवार लगाने से सिंचाइयों की संख्या घट जाती है, खरपतवार कम होते हैं, पैदावार बढ़ती है व अन्य गुणों में भी बढ़ोतरी होती है. गृह वाटिका में भी पलवार का प्रयोग कर के उपरोक्त लाभ उठाए जा सकते हैं. विशेषकर उन गृह वाटिकाओं में, जहां ग्रीष्म काल में सिंचाई के साधन उपलब्ध न हों.

पलवार लगाने के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं :

* जमीन में उपलब्ध नमी को बचाने के लिए यदि क्यारियों में पलवार नहीं डाली गई, तो सूरज की तेज किरणें जमीन के सीधे संपर्क में आएंगी और नमी को तेजी से घटा देंगी.

* खरपतवारों की बढ़वार को रोकने के लिए पलवार समुचित मात्रा में डाली गई है, तो प्राय: खरपतवार में अंकुरण रुक जाता है.

* यदि कोई खरपतवार उगता भी है तो वह काफी कमजोर होता है. इस तरह पलवार के उपयोग में खरपतवार की समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिल सकता है.

* फलों को सड़ने से बचाने के लिए

भी इस का प्रयोग किया जाता है. यदि फल जमीन के संपर्क में आते हैं, तो वे सड़ना शुरू कर देते हैं.

* यदि भूमि में पलवार बिछा दी जाए, तो फल जमीन के सीधे संपर्क में नहीं आ पाते और सड़ने से बच जाते हैं.

* अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए कुछ सब्जियों में पलवार के प्रयोग किए गए हैं और यह देखा गया है कि उपज और गुणवत्ता दोनों में बढ़ोतरी हुई हैं.

पलवार के रूप में प्रयोग की जाने वाली सामग्री

पलवार के रूप में प्रयोग की जाने वाली सामग्री वानस्पतिक अवशेष वैसे तो क्षेत्र विशेष में उस की उपलब्धता के आधार पर निर्भर करती है, जैसे कि धान की सूखी पत्तियां (पुआल), गन्ने की सूखी पत्तियां, बांस की सूखी पत्तियां, नीम की सूखी पत्तियां, भूसा, लकड़ी का बुरादा, सूखी घास, मूंगफली के छिलके और कुछ जगहों पर अखबार, पौलीथिन आदि. क्षेत्र विशेष में मिलने वाली पलवार की सामग्री हमें आसानी से उपलब्ध और सस्ती भी मिल जाती है.

पलवार लगाने की विधि

जहां पलवार लगानी हो, उस जगह पर क्यारियों की सफाई कर देनी चाहिए. एक हलकी सी सिंचाई करने के 2 दिन बाद पलवार की 5 से 10 सैंटीमीटर मोटी परत को पौधों के चारों ओर सभी खाली जगह पर बिछा देनी चाहिए. पलवार की मोटाई सभी जगह एकसमान रखनी चाहिए.

आजकल कई तरह की पौलीथिन का प्रयोग भी किया जाने लगा है, खासकर काली पौलीथिन, क्योंकि काली पौलीथिन सूरज की तेज किरणों को भूमि तक नहीं पहुंचने देती और भूमि का तापमान भी बढ़ने नहीं देती, जिस से नमी भी काफी दिनों तक बनी रहती है.

गृह वाटिका में लगाए गए पौधों को सहारा देना

लता वाली फसलों जैसे लौकी, तोरई, खीरा, करेला, अंगूर को सहारा देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि यदि उन्हें सहारा न दिया जाए, तो वे भूमि पर फैल जाती हैं और उन पर लगने वाली सब्जियां भूमि के संपर्क में आने के कारण पूर्णाकार तक पहुंचने से पहले ही सड़ने लगती हैं, खासकर लौकी, जो लता वाली सब्जियों में काफी लंबी होती है. इस में यह देखा गया है कि यदि पौधों को सुचारु ढंग से सहारा दिया जाए और फलों को लटकने का अवसर मिल जाए, तो वे फल लंबे, चिकने व सुंदर होते हैं. यदि इन पौधों को सहारा नहीं दिया जाता है, तो इन में जो फल लगते हैं, वे आकार में टेढ़ेमेढ़े होते हैं.

इसी तरह कुछ लता वाले पुष्प भी होते हैं, जैसे मनी प्लांट, अपराजिता, रंगून क्रीपर, माधवी लता आदि, जिन को सुचारु रूप से सहारा दिया जाना आवश्यक होता है. थोड़ा सा ही सहारा मिलने पर उन की बढ़वार भी सही होती है और फूलों की गुणवत्ता भी बनी रहती है. ज्यादातर इस तरह के पौधों को बागड़ के पास उगाया जाता है, जिस से कि यह बाद में बागड़ पर चढ़ जाए और अच्छी तरह से फैल जाए. डहेलिया, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी आदि में फूलों को सीधा रखने के लिए भी सहारा देना जरूरी होता है.

सहारा देने के लिए लकड़ी व बांस की बल्लियां, तार, डंडे, दीवार आदि प्रयोग किए जा सकते हैं. जहां जैसी सामग्री उपलब्ध हो, उसी के अनुसार प्रयोग किया जा सकता है. फूलों के लिए सुंदर दिखने वाले सहारे इस्तेमाल करने चाहिए. बांस को छील कर चिकनी बनाई हुई रंगरोगन लगी फट्टियां उपयुक्त रहती हैं.

फौर्मल पौधों के लिए सरकंडे की लकडि़यां अच्छी रहती हैं. डहेलिया व ग्लेडियोलस के लिए एक मजबूत लकड़ी पर्याप्त रहती है, जिस से पौधे के निकट जड़ों को बचाते हुए मिट्टी में गाड़ देना चाहिए. गुलदाउदी के पौधों को चारों ओर से कई लकडि़यां लगा कर एक घेरा सा बना दिया जाता है.

गृह वाटिका में लगे पौधों की कटाइछंटाई

गृह वाटिका में कुछ बहुवर्षीय पौधे भी लगाए जाते हैं, जिन्हें समयसमय पर कटाईछंटाई की आवश्यकता होती है. शोभाकारी   झाडि़यों, फलदार पेड़ों, फूलों (जैसे आम, नीबू, संतरा, अनार, अमरूद, कटहल, गुड़हल, गुलाब, मोंगरा आदि) और कुछ बहुवर्षीय सब्जियों (जैसे परवल, कुंदरू आदि) में कटाईछंटाई की आवश्यकता पड़ती है.

ज्यादातर पर्णपाती पौधों में कटाईछंटाई दिसंबर से मार्च माह तक की जाती है और सदाबहार पौधों में जूनजुलाई व फरवरीमार्च, दोनों मौसमों में की जाती है. गुलाब में कटाईछंटाई अक्तूबर माह के पहले सप्ताह में की जाती है. रोगग्रस्त, सूखी और अनावश्यक शाखाओं को देखते ही निकाल देना चाहिए. ऐसी शाखाओं को काटने के लिए तेज चाकू या सिकेटियर का प्रयोग किया जाना चाहिए.

गृह वाटिका के पौधों की सुरक्षा

गृह वाटिका की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है, जितनी कि उसे बनाना. अवांछित पशुपक्षियों के अलावा राहगीरों और छोटे बच्चों से भी गृह वाटिका के पौधों का बचाव करना पड़ता है.

यदि घर के चारों ओर पक्की चारदीवारी नहीं है, तो कांटेदार तार या उपयुक्त पौधों की बाढ़ की रोक लगा देनी चाहिए. बाढ़ कंटीले तारों के अलावा कुछ पेड़पौधों से भी की जाती है, जो कि देखने में सुंदर और फूल वाली भी होती हैं.

छोटी बाड़ के लिए नागदोन, कनेर, करौंदा आदि का प्रयोग किया जा सकता है. नागदोन के पौधे गहरे हरे, हलके हरे रंगों में आते हैं. कुछ पौधे थोड़ा हरापन लिए सफेद पत्ती के होते हैं, जो देखने में भी बहुत आकर्षक लगते हैं. इस का प्रयोग बवासीर, पेट की कृमि (कीड़े) को दूर करने के लिए भी किया जाता है.

इस बाड़ के बाहर की तरफ और बड़े कंटीले पौधे लगाए जा सकते हैं जैसे कि बौगैन्वेलिया. यह विभिन्न रंगों में तो आता ही है, कंटीला भी होता है. इसे लगाने से 3 काम होते हैं, एक तो बगीचा सुंदर लगता है, रोजाना फूल भी मिल जाते हैं और कंटीली बाड़ भी बनी रहती है.

बौगैन्वेलिया कई रंगों वाली पाई जाती है और काफी जगह को घेरती है और घनी भी होती है. यह यदि बेल की तरह चढ़ा दी जाए, तो

2-3 मंजिल तक भी फैल जाती है यदि यह काटछांट कर के रखी जाए, तो बाड़ की तरह भी काम करती है.

इसी तरह फल के मौसम में तोते आदि पक्षियों को भगाने के लिए किसी पेड़ से टिन आदि बांध कर घर के भीतर से ही उसे बीचबीच में हिला कर, ध्वनि उत्पन्न करने की व्यवस्था करनी चाहिए, जिस से इस प्रकार के नुकसान पहुंचाने वाले पक्षियों से बचा जा सके. यदि आवश्यक हो, तो जालीदार नैट का भी उपयोग किया जा सकता है, जिस से पक्षियों के आने की संभावना न के बराबर हो जाती है.

अपने प्रतिदिन के कार्यों में से यदि थोड़ा सा समय निकाल कर हम सभी अपनी गृह वाटिका में दे सकें, उस की उचित देखभाल करें, तो आप को खुशी के साथसाथ एक स्वस्थ वातावरण, रंगबिरंगे फूल, ताजा सब्जियां और मौसमी फल भी प्राप्त किए जा सकते हैं. सुनियोजित रूप से गृह वाटिका का प्रबंधन कर के हम उस को हमेशा हराभरा बनाए रख सकते हैं.

प्रो. सुमन प्रसाद मौर्य को मिली नई जिम्मेदारी

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में कार्यरत डा. सुमन प्रसाद मौर्य प्रोफैसर एवं अध्यक्ष मानव विकास एवं पारिवारिक अध्ययन को अधिष्ठाता परास्नातक एवं अध्ययन बनाया गया है. विश्वविद्यालय स्थापना के बाद यह पद किसी महिला प्रोफैसर को पहली बार मिला है.

डा. सुमन प्रसाद मौर्य ने मई, 1987 में सहायक प्राध्यापक गृह विज्ञान के रूप में पहली बार विश्वविद्यालय में कार्यभार ग्रहण किया था. प्रोफैसर के रूप में वे गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड में फरवरी, 2006 से 2009 तक रहीं. अधिष्ठाता गृह विज्ञान महाविद्यालय में वे वर्ष 2015 से 2019 तक आनदेकृ एवं प्रो.वि.वि., कुमारगंज में रहीं.

डा. सुमन प्रसाद मौर्य वर्ष 2005 से प्रोफैसर के पद पर कार्यरत हैं, जो विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफैसरों में से एक हैं.

डा. सुमन प्रसाद मौर्य ने बताया कि पद की गरिमा के सापेक्ष अपने कार्यकाल में छात्रछात्राओं के नैतिक, सामाजिक एवं चहुंमुखी विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगी और कुलपति द्वारा प्रारंभ किए गए ये नवाचारी, शिक्षा, शोध एवं प्रसार के कार्यों को और गतिशील बनाने का काम करती रहेंगी.

लेखिका-डा. पूर्णिमा सिंह सिकरवार

मुसाफिर -भाग 1: कैसे एक ट्रक डाइवर ने चांदनी की इच्छा पूरी की

गर्भवती चांदनी को रहरह कर पेट में दर्द हो रहा था. इसी वजह से उस का पति भीमा उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराने ले गया. उस ने लेडी डाक्टर से बड़ी चिरौरी कर जैसेतैसे एक पलंग का इंतजाम करवा लिया. नर्स के हाथ पर 10 रुपए का नोट रख कर उस ने उसे खुश करने का वचन भी दे दिया, ताकि बच्चा पैदा होने के समय वह चांदनी की ठीक से देखभाल करे.

चांदनी के परिवार में 4 बेटियां रानी, पिंकी, गुडि़या और लल्ली के अलावा पति भीमा था, जो सीधा और थोड़ा कमअक्ल था. भीमा मरियल देह का मेहनती इनसान था. ढाबे पर सुबह से रात तक डट कर मेहनत से दो पैसे कमाना और बीवीबच्चों का पेट भरना ही उस की जिंदगी का मकसद था. जब कभी बारिश के दिनों में तालतलैया में मछलियां भर जातीं, तब भीमा की जीभ लालच से लार टपकाने लगती थी और वह जाल ले कर मछली पकड़ने दोस्तों के साथ घर से निकल पड़ता था.

गांव में मजदूरी न मिलने पर वह कई बार दिहाड़ी मजदूरी करने आसपास के शहर में भी चला जाता था. तब चांदनी अकेले ही सुबह से रात तक ढाबे पर रहती थी.

गठीले बदन और तीखे नाकनक्श की चांदनी 30 साल की हो कर भी गजब की लगती थी. जब वह ढाबे पर बैठ कर खनकती हंसी हंसती, तो रास्ता चलते लोगों के सीने में तीर से चुभ जाते थे. कितने तो मन न होते हुए भी एक कप चाय जरूर पी लेते थे.

अस्पताल में तनहाई में लेटी चांदनी कमरे की दीवारों को बिना पलक झपकाए देख रही थी. उसे याद आया, जब एक बार मूसलाधार बारिश में उस के गांव भगवानपुर से आगे 4 मील दूर बहती नदी चढ़ आई थी. सारे ट्रक नदी के दोनों तरफ रुक गए थे. तकरीबन एक मील लंबा रास्ता ट्रकों से जाम हो गया था.

तब न कोई ट्रक आता था, न जाता था. सड़क सुनसान पड़ी थी. इस कारण चांदनी का ढाबा पूरी तरह से ठप हो चुका था. वह रोज सवेरे ग्राहक के इंतजार में पलकपांवड़े बिछा कर बैठ जाती, पर एकएक कर के 5 दिन निकल गए और एक भी ग्राहक न फटका था. बोहनी तो हुई ही नहीं, उलटे गांठ के पैसे और निकल गए थे.

उस की डायरी- भाग 3: आखिर नेत्रा की पर्सनल डायरी में क्या लिखा था

वर्षगांठ वाला पन्ना पढ़ कर शिशिर नेत्रा के लिए थोड़ा नरम पड़ गया था, लेकिन घर में रोजरोज होने वाली कलह का व्याख्यान पढ़ कर उसे फिर से गुस्सा आने लगा. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उस ने नेत्रा को अनगिनत दुख दिए हैं. नेत्रा ने अपनी डायरी में बड़ी ही चालाकी से शिशिर को खलनायक व खुद को पीडि़त अबला नारी साबित कर रखा था और उस की चालाकी की इंतहा तो देखो, उस ने अपने प्रेमी के विषय में एक शब्द भी नहीं लिखा था.

शिशिर लगभग पूरी डायरी पढ़ चुका था. उस ने 2-3 पन्नों के बाद उस घटना का वर्णन पाया जब उस ने नेत्रा को उस के प्रेमी के साथ रैस्तरां में देखा था.

‘आहा… मैं जिस पृष्ठ को ढूंढ़ रहा था, वह आखिरकार मिल ही गया,’ शिशिर ने खुशीखुशी पढ़ना शुरू किया.

‘शिशिर,

‘आज आप ने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया, वह भी रैस्तरां में सब के सामने. मैं कितना रोईगिड़गिड़ाई, पर आप ने मेरी एक भी बात न सुनी और इन सब की वजह क्या थी? यह कि आप ने मुझे किसी पराए आदमी के साथ आधुनिक वस्त्र पहने रैस्तरां में कौफी पीते हुए देखा. आप ने इतने लोगों के सामने मुझे अपशब्द कहे, चरित्रहीन और पता नहीं क्याक्या. क्या आप को मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है?

‘तकरीबन 3 वर्षों के साथ के दौरान क्या आप मुझे इतना भी नहीं समझ पाए हैं? शिशिर, वह व्यक्ति मेरा प्रेमी नहीं है. वे विद्युत सर हैं, जो मुझे आप के अनुसार आधुनिकता के सांचे में ढलने में मेरी सहायता कर रहे हैं. आप को हमेशा मुझ से शिकायत रहती थी न, कि मैं आधुनिक कपड़े नहीं पहनती हूं, फर्राटेदार इंग्लिश नहीं बोलती हूं व मुझ में इतना भी सलीका नहीं है कि रैस्तरां में कांटेछुरी से किस प्रकार खाते हैं. आप की इन्हीं सब शिकायतों को दूर करने के लिए मैं ने विद्युत सर और उन की पत्नी दामिनी मैम की ग्रूमिंग क्लासेज में जाने का निर्णय लिया. आज जींसटौप पहन कर रैस्तरां में विद्युत सर के साथ कौफी पीना मेरा धोखा नहीं था, बल्कि मेरी परीक्षा थी.

‘मैं तो आप को सरप्राइज देना चाहती थी, पर आप ने तो मुझे ही सरप्राइज दे दिया.

‘शादी की वर्षगांठ वाले दिन आप की सहकर्मी व दोस्त मुग्धा ने मुझे इन कक्षाओं के बारे में बताया था? विद्युत सर उस के करीबी मित्र हैं. उन का फोन नंबर भी मुग्धा ने ही मुझे दिया था. 1-2 बार मुलाकात होने के बाद हम दोनों के बीच में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई है. अभी उन्होंने मुझे आप को इस बारे में कुछ भी बताने से मना किया है, क्योंकि आप को मेरा अपने दोस्तों के साथ मेलजोल बढ़ाना पसंद नहीं है पर खुद को आप के अनुसार ढाल लेने के बाद ही हम दोनों आप को सब सच बताने वाले थे. मेरी आज की परीक्षा के बारे में मुग्धा को सब पता है. मैं ने उसी का दिया जींसटौप पहन रखा था. आज सुबह ही तो मेरी उस से बात हुई है. मैं ने उस से कहा है कि आप को सब बता दे. मेरी नहीं, पर शायद उस की बातों पर आप को भरोसा हो जाए.’

शिशिर को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने दोबारा उस पन्ने को पढ़ा, लेकिन उस पर अब भी वही लिखा था. मुग्धा और नेत्रा सहेलियां थीं? और नेत्रा ग्रूमिंग क्लासेस जाती थी? उस का सिर चकरा रहा था. मुग्धा ग्रूमिंग क्लासेज व परीक्षा के बारे में सब जानती थी? लेकिन मुग्धा ने ही तो उसे उस दिन उस रैस्तरां में मीटिंग के लिए भेजा था. यह सब क्या हो रहा था उस के साथ? क्या वह जो सोच रहा था वह सच था? यदि मुग्धा सब जानती थी तो उस ने उसे कुछ बताया क्यों नहीं?

नहीं, जो कुछ भी नेत्रा ने लिखा है, सब झूठ है. नेत्रा से मिले धोखे के बाद मुग्धा ने ही तो उसे संभाला था. तलाक के समय भी मुग्धा एक सच्चे दोस्त, हमदर्द की तरह उस के साथ खड़ी रही थी.

मुग्धा के इसी निस्वार्थ प्रेम ने शिशिर को उस से प्रेम करने पर विवश कर दिया था. ऐसा हो ही नहीं सकता कि मुग्धा ने उस से सच छिपाया हो.

नेत्रा ने अपनी जलन व स्वार्थ में यह सब अनापशनाप लिखा होगा.  उस औरत ने एक दिन भी उसे सुखशांति से कहां रहने दिया था. शिशिर का मन किया कि अभी इस डायरी को जला कर राख कर दे. लेकिन उस ने ऐसा किया नहीं, क्योंकि अभी आगे के कुछ पन्ने पढ़ने बाकी थे और वह यह देखना चाहता था कि नेत्रा किस हद तक झूठ बोल सकती थी.

उस ने आगे पढ़ना शुरू किया. उस में शिशिर के घर छोड़ कर होटल में रहने का जिक्र था, जो कि सच था. नेत्रा को रंगे हाथों पकड़ने के बाद वह घर छोड़ कर होटल में रहने लगा था.

आगे भी कुछ पन्नों पर नेत्रा ने वही दुखड़ा रोया था कि किस प्रकार शिशिर ने उस की कोई बात सुने बिना तलाक के कागज उसे भिजवा दिए थे.

एक बात जो शिशिर को खटक रही थी, वह यह थी कि नेत्रा ने बारबार इस बात का जिक्र किया था कि उस ने कई बार मुग्धा से प्रार्थना की थी कि वह शिशिर को सच बता दे, लेकिन मुग्धा उस की मदद नहीं कर रही है. इस के बाद वाले पन्ने पर नेत्रा ने अपने मातापिता के मुंबई आने व तलाक की प्रक्रिया शुरू होने का वर्णन किया था. उस ने मुग्धा के बारे में लिखना अचानक बंद कर दिया था. शायद झूठ लिखतेलिखते थक गई थी. पन्ने के ऊपर तारीख पढ़ कर शिशिर को याद आया कि उसे यह बात बहुत अजीब लगी थी कि इतना रोनाधोना करने के बाद व शिशिर से बात करने की कई कोशिशें करने के बाद नेत्रा ने तलाक को रोकने के प्रयास एकदम बंद क्यों कर दिए थे. वह बिना कुछ कहेसुने तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर कर के उस के जीवन से चुपचाप कैसे चली गई थी. ऐसे लग रहा था मानो उस ने हालात के आगे घुटने टेक दिए थे.

इसी उधेड़बुन में शिशिर डायरी के आखिरी पन्ने पर पहुंच गया. आखिरी पन्ना तलाक के दिन लिखा गया था. उस दिन जब नेत्रा हमेशा के लिए उस के घर और जिंदगी से चली गई थी.

‘प्रिय शिशिर,

‘आज मैं आप को हर बंधन से मुक्त कर के हमेशा के लिए आप से दूर जा रही हूं. कल सुबह तड़के ट्रेन से मां और पापा के साथ वापस चली जाऊंगी. उस के बाद क्या करूंगी, अभी कुछ सोचा नहीं है. आज अदालत में आप को आखिरी बार देखा. जीभर कर देखा और सोचा कि क्या आप वाकई में मेरे प्रेम, समर्पण और विश्वास को पाने के योग्य थे? 3 सालों तक आप की बेरुखी देख कर भी मैं हमेशा यह उम्मीद करती रही कि एक न एक दिन आप बदल जाएंगे. मैं मूर्ख हूं न, आप से एकतरफा प्यार करती रही. मैं ने आप को सच बताने की और इस तलाक को रोकने की अनगिनत कोशिशें कीं. मुझे लगता था कि आप को सच बताने से आप की गलतफहमी दूर हो जाएगी. बस, इसीलिए मैं मुग्धा से बारबार मिन्नतें करती थी कि वह आप को सच बता दे. लेकिन उस दिन जब मुग्धा मुझ से मिलने आई, उस दिन मुझे एहसास हुआ कि दरअसल, गलतफहमी में तो मैं खुद जी रही थी.

अदाणी जी : यह राष्ट्रवाद क्या है?

जिस तरह भारत के बड़े रूपए पैसे वाले,चाहे अदाणी हो या अंबानी, की संपत्ति बढ़ती चली जा रही है और दुनिया के सबसे बड़े पूंजीपतियों की गिनती में इनको शुमार किया जाने लगा है, उससे यह संकेत मिलने लगा था कि कहीं ना कहीं तो दो और दो पांच है.

भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई कंपनी देखते ही देखते आगे, आगे, और आगे बढ़ती चली जाए. जबकि उसकी जमीनी हालात कमजोर है. सिर्फ देश की सरकार के प्रमुख अर्थात प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के साथ गलबहियां डालने से आप देश में तो अपना वर्चस्व दिखा और बता सकते हैं. मगर दुनिया में आप अपना ढोल भला कैसे बजा सकते हैं?

जी हां! अदाणी समूह के साथ ऐसा तो होना ही था देश की सत्ता के आशीर्वाद से स्थानीय एजेंसियों को आप आंख बंद करने के लिए मजबूर कर सकते हैं और यह दिखा सकते हैं कि आप रूपए पैसों के मामले में दुनिया भर में आगे निकल रहें हैं. आप नीतियां भी बदल सकते हैं आप बड़ी बड़ी बेशकीमती चीजों को अपने हाथ में भी ले सकते हैं चाहे वह रेलवे हो या फिर एयर इंडिया या फिर देश की नवरत्न कंपनियां भी आप देखते ही देखते अपने समूह में मिला सकते हैं, मगर दुनिया के आंखों में धूल झोंकना संभव नहीं है इस सच्चाई को तो आपको मानना पड़ेगा. मगर इसे नहीं मानते हुए अगर आपकी कमीज पर काले दाग हैं और उसे आप देश से जोड़ देते हैं राष्ट्र भक्ति से जोड़ते हैं राष्ट्रवाद से जोड़ते हैं तो यह कदापि उचित नहीं कहा जा सकता. दरअसल, हमारे देश में आजकल राष्ट्रवाद का बड़ा चलन चल रहा है जब भी किसी बड़े आदमी पर कोई उंगली उठाता है तो देशभक्ति और राष्ट्रवाद सामने आ जाते हैं और आवाज को खामोश करने का प्रयास किया जाता है.

जिसमें कई दफा सफलता भी मिलती है . यह नहीं होना चाहिए. पहले ऐसा नहीं था . जब से भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्वयं संघ नीत सत्ता देश में कुर्सी पर आई है ऐसा ही कुछ तमाशा चल रहा है. जिसे देश बड़े ही गंभीरता से देख रहा है और आने वाले समय में इस प्रहसन से पर्दा भी उठेगा. _________ खुलने लगी पोल तो भारत पर हमला ! ‌_________

दर असल, हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी समूह की कंपनियों के शेयर भाव में गड़बड़ी संबंधी अपनी रिपोर्ट को ‘भारत पर सोचा-समझा हमला’ बताने वाले अदाणी समूह के द्वारा हाल ही में लगाए आरोप को खारिज करते हुए दो टूक कहा – “धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता है.”

हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रपट में अडाणी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. जिसके बाद देश की राजनीति और आर्थिक तंत्र में हड़कंप मच गया. इसके बाद समूह की कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में भारी गिरावट आई है और तीन कारोबारी दिनों में ही इन कंपनियों का मूल्यांकन 70 अरब डालर तक घट चुका है.और जैसा कि होता है स्वभाविक मानसिकता के तहत आरोपों का खंडन तो करना था, अडाणी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के इन आरोपों के जवाब में को 413 पृष्ठों का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया और इसमें सारे आरोपों को नकारते हुए कहा गया था कि हिंडनबर्ग ने न सिर्फ एक कंपनी समूह बल्कि भारत पर भी सोचा – समझा हमला किया है. अडाणी समूह की इस प्रतिक्रिया पर हिंडनबर्ग रिसर्च ने जवाब देते कहा उसकी रिपोर्ट को भारत पर हमला बताना गलत है.इस निवेश शोध फर्म ने कहा, ‘हमारा मत है कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है जिसका भविष्य भी रोमांचित करने वाला है. इसी के साथ हमारी यह राय भी है कि खुद को भारतीय ध्वज में लपेटने वाले अडाणी समूह की ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को पीछे धकेला जा रहा है. ‘

हिंडनबर्ग रिसर्च ने साफ साफ कहा, ‘एक धोखाधड़ी आखिर धोखाधड़ी ही है, भले ही इसे दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार शख्स ने ही किया हो. अडाणी ने यह दावा भी किया है कि हमने प्रतिभूति एवं गड़बड़ी और लेखे-जोखे की हेराफेरी में शामिल रहा है.इसके साथ ही उसने अडाणी समूह से 88 सवालों पर जवाब भी मांगे थे. समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. अडाणी समूह ने कहा था कि यह रिपोर्ट एक कृत्रिम बाजार बनाने की कोशिश है ताकि उसके शेयरों के दाम नीचे लाकर अमेरिका की कंपनियों को वित्तीय लाभ पहुंचाया जा सके. समूह ने यह भी कहा था कि यह रिपोर्ट गलत तथ्यों पर आधारित और गलत मंशा से जारी की गई है.

विदेशी मुद्रा कानूनों का खुला उल्लंघन किया है. ऐसे किसी भी कानून के बारे में अडाणी समूह के न बता पाने के बावजूद हम अडाणी इस गंभीर आरोप को सिरे से नकारते हैं.’ इसके साथ ही उसने कहा कि विदेशों में फर्जी कंपनियां बनाकर अपने शेयरों के भाव चढ़ाने संबंधी आरोपों पर अडाणी समूह के पास सीधे एवं पारदर्शी जवाब नहीं हैं. इस तरह हिंडनबर्ग रिसर्च अपनी निवेश शोध रिपोर्ट में किए गए दावों पर कायम है.

इस रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने कहा था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडाणी समूह दशकों से शेयरों के भाव में गड़बड़ी और लेखा-जोखा में हेरफर है. सारी बातों को पढ़ समझकर आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि आखिरकार अदानी समूह दुनिया में कैसे आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है और उसके लिए दो और दो पांच करने से भी उसे कोई गुरेज नहीं है.

मेनोपॉज़ के बाद पैप स्मीयर और जाँच : सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार, भारतीय महिलाओं में कैंसर के हर पाँच मामलों में से एक सर्वाइकल कैंसर (गर्भग्रीवा का कैंसर) का मामला होता है। अनुमान है कि 30 वर्ष से 50 वर्ष आयुवर्ग में लगभग 160 मिलियन भारतीय महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर का ख़तरा है।

भारत में देखा गया है कि अधिकाँश महिलाएँ जब तक उनका कैंसर आगे बढ़ चुका होता है, तब तक इलाज नहीं करातीं और इसके कारण स्वास्थ्यलाभ एवं उपचार, दोनों मुश्किल हो जाता है। अनेक महिलाएँ नियमित रूप से सामान्य जाँच नहीं कराती हैं, जबकि ऐसा करने से शुरुआती चरणों में सर्वाइकल कैंसर का या कुछ असामान्यताओं का पता चल सकता है। इसके पीछे पेडू की जाँच (पेल्विक एग्जामिनेशन) कराने में संकोच एक बड़ा कारण है।

मनीषा तोमर, वरिष्ठ परामर्शदाता प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि- शुरुआती चरण में सर्वाइकल कैंसर में कोई स्पष्ट लक्षण नजर नहीं आते हैं। जब कैंसर काफी आगे बढ़ चुका होता है तभी इसके लक्षण दिखने शुरू होते हैं। सर्वाइकल कैंसर के लक्षण दूसरी बीमारियों के समान लग सकते हैं, जिसके कारण स्थिति और ज्यादा जटिल हो जाती है। सर्वाइकल कैंसर को रोकने का सबसे कारगर तरीका है किसी असामान्य अवस्था का जल्दी पता लगाने के लिए नियमित जाँच कराना और समय रहते इलाज शुरू करना। महिलाओं को, जब तक डॉक्टर अन्यथा कुछ नहीं बताएँ, मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति) के बाद भी अपनी नियमित जाँच कराना बंद नहीं करना चाहिए। कैंसर की जाँच का प्राथमिक उद्देश्य है कैंसर से सम्बंधित मौतों को और कैंसर के शिकार होने वाले लोगों की संख्या को कम करना.आइए, हम उन विधियों को समझें जिसमें कैंसर की रोकथाम या शीघ्र पहचान की जा सकती है।

पैप स्मीयर जाँच – यह जाँच क्यों ज़रूरी है?
शीघ्र पता चल जाने से सर्वाइकल कैंसर ठीक हो सकता है। कैंसर-पूर्व रोग जो सर्वाइकल कैंसर का रूप ले सकते हैं, उन्हें पता करने का सबसे बढ़िया तरीका है पैप स्मीयर जाँच। पैप स्मीयर जाँच गर्भाशय (सर्विक्स) की कोशिकाओं में बदलाव का पता लगाती है। इस जाँच से सर्वाइकल कैंसर या रोगों के संकेत मिलते हैं जो आगे चल कर कैंसर में बदल सकते हैं। जाँच के दौरान नमूने के लिए गर्भाशय से कोशिकाएँ निकाली जाती हैं। यह गायनेकोलॉजिकल जाँच के तहत एक बाईमैन्युअल पेल्विक एग्जाम (पेडू की दोनों हाथ से जाँच) के साथ-साथ बार-बार की जाती है।

किसी तरह की कैंसर-पूर्व अवस्था का पता लगाने और उनका इलाज करने के लिए नियमित रूप से पैप जाँच और ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जाँच कराकर सर्वाइकल कैंसर को रोका जा सकता है। इसकी रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीन लेना एक और तरीका है। 9 वर्ष से 26 वर्ष के बीच की लड़कियाँ और महिलाएँ एचपीवी वैक्सीन ले सकती हैं। लड़कियों को यौन क्रिया आरम्भ करने के पहले एचपीवी वैक्सीन दिया जाए, तो यह सबसे प्रभावकारी माना जाता है।

मुझे कब-कब जाँच करानी चाहिए?
21 वर्ष से 65 वर्ष तक की महिलाओं के लिए हर तीन साल पर सामान्य जाँच करानी की सलाह दी जाती है। 30 वर्ष की आयु के बाद हर पाँच वर्षों पर एचपीवी टेस्‍ट के साथ पैप टेस्‍ट या सिर्फ एचपीवी टेस्‍ट कराया जा सकता है।

क्या मुझे मेनोपॉज़ के बाद भी जाँच करानी चाहिए?
अगर आप मेनोपॉज़ के दौर से गुजर रही है, या मेनोपॉज़ हो चुका है, तब भी आपको पैप या एचपीवी टेस्‍ट कराना चाहिए। जिन महिलाओं ने किसी गैर-कैंसर व्याधि के लिए गर्भाशय पूरा काट कर निकलवा लिया है और उनका कैंसर-पूर्व पैप जांच का कोई इतिहास नहीं है, वैसी महिलाएँ अपने चिकित्सीय इतिहास या ह्यूमन पैपिलोमा वायरस होने के जोखिम के आधार पर जाँच बंद कर सकती हैं। 65-70 वर्ष की आयु होने पर महिलाएँ जांच कराना छोड़ सकती हैं, बशर्ते कि कम से कम लगातार तीन बार सामान्य पैप टेस्‍ट हुए हों और पिछले दस वर्षों में पैप टेस्‍ट में कोई असामान्यता नहीं पाई गई हो।

उपर्युक्त के अलावा, निम्नलिखित चीजों से सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम में मदद मिलती है :
किशोरावस्था के अंतिम वर्षों या बाद तक प्रथम यौन सम्भोग करने से परहेज,
यौन क्रियाओं में सहयोगी की संख्या कम रखना,
अनेक लोगों से सहवास करने वाले व्यक्ति के साथ सम्भोग करने से परहेज,
जननांग में गाँठ (जेनिटल वार्ट्स) या अन्य चिन्ह दर्शाने वाले व्यक्ति के साथ सम्भोग से परहेज,
धूम्रपान छोड़ना।

मैं 36 साल का हूं, सेक्स के दौरान मैं बहुत जल्दी ढीला पड़ जाता हूं, मुझे कोई बीमारी तो नहीं है?

सवाल

मैं 36 साल का हूं. मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं. सेक्स के दौरान मैं बहुत जल्दी ढीला पड़ जाता हूं. क्या मुझे कोई बीमारी तो नहीं है?

जवाब

आप को कोई बीमारी नहीं है. हर वक्त इस बारे में न सोचें. जब भी सेक्स का मूड बने, तो देर तक फोरप्ले करने के बाद ही हमबिस्तरी करें. फोरप्ले का मतलब होता है एकदूसरे को चूमना चाटना और नाजुक अंगों को सहला कर जोश में लाना.

वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाए रखने में सेक्‍स का बहुत अहम स्‍थान होता है. लेकिन, कई जोड़े इसका भरपूर आनंद नहीं उठा पाते. वजह, वे इसे सिर्फ शारीरिक जरूरत भी ही मानते हैं, नतीजतन जल्‍द ही उनकी सेक्‍स लाइफ बोरियत से भर जाती है.

बेहद भागमभाग वाली जिंदगी और काम की थकान भी सेक्‍स से दूरी एक बड़ी वजह बनती जाती है. सेक्‍स के प्रति उदासीनता का असर उनके वैवाहिक रिश्‍तों पर भी पड़ता है. जरूरत होती है सेक्‍स को रोचक और रोमांचक बनाए रखने की जरूरत होती है. और इस रोचकता को बनाए रखने में फोरप्‍ले बहुत महत्त्‍वपूर्ण होता है. फोरप्ले से न सिर्फ सेक्‍स संबंधों में नवीनता आती है, बल्कि रिश्‍ते भी मजबूत बनते हैं.

सेक्स तभी संपूर्ण माना जाता है जब दोनों को पूर्ण आनंद मिले. इसके लिए सबकी बड़ी जरूरत है आपके संबंधों में मधुरता का होना. यहां इस बात का ध्‍यान रखना भी जरूरी है कि आप सेक्‍स को महज शारीरिक जरूरत भर की चीज न समझें, बल्कि इसका भरपूर लुत्‍फ उठाएं. और इस लुत्‍फ के लिए सेक्स से पहले और बाद में फोरप्ले किया जा सकता है. जल्दबाजी या सिर्फ शरीर की जरूरत को पूरा करने के लिए हडबडाहट में कुछ मिनटों बाद मुंह फेरकर सो जाने से आपकी पत्नी या पार्टनर के मन में सेक्स के प्रति अरूचि पैदा हो जाती है.

काम क्रीडा स्त्री और पुरूष दोनों के मन में उत्साह जगाने का काम करती है. फोरप्ले से स्त्री और पुरूष दोनों की कामग्रंथियां खुलकर पूरी तरह से क्रियाशील हो जाती है. यह भी साबित हो चुका है कि पुरुष महिलाओं की अपेक्षा जल्‍दी उत्तेजित हो जाते हैं. महिलाओं को उत्तेजित होने के लिए सही माहौल, समय और कामक्रीडा की जरूरत होती है. स्त्री के उत्तेजित होने के समय को पुरूष अपने फोरप्ले से मेंटेन कर सकता है.

काम क्रीडा या फोरप्ले के जरिए स्‍त्री में काम भावना को बढ़ाया जा सकता है. पुरूष यदि चाहे तो स्त्री को फोरप्ले के माध्यम से ही चरम तक पहुंचा सकता है. औरतों की सेक्स चेतना बेहद गहरी और मानसिक होती है. औरतों चाहती हैं कि सेक्स के बाद भी उसका पार्टनर उसे तब तक जकडे रहे जब तक वह खुद तृप्त न हो जाए. ऐसा करने से स्त्री को अपार चरम सुख व संतुष्टि मिलती है. अत: पुरूष को सेक्स के बाद भी फोरप्ले करना चाहिए. फोरप्ले को अपनी सेक्स लाइफ में शामिल कीजिए और देखिए किस तरह से आपकी पार्टनर पूरी तरह से आपकी हो जाएगी और आपके संबंध मजबूत हो जाएंगे.

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