निहारिका अपने भाई के साथ चेन्नई गई तो उसे अपनी बचपन की दोस्त स्वरूपिनी मिली. अपनी दोस्ती की याद में जिस टौय कार को इन दोनों ने इतने साल संजो कर रखा था उस का राज वर्षों बाद खुला. क्या था वह राज? मैं यानी निहारिका दिल्ली में रहती हूं और यहां एक कंपनी में काम करती हूं. 2 साल ही हुए हैं मु?ो नौकरी मिले हुए. पहले के एक साल कोरोना के चलते मैं वर्क फ्रौम होम कर रही थी.

अब एक साल से मु?ो रोजाना औफिस आना पड़ता है. यों तो मु?ो अपना काम बहुत पसंद है पर आजकल इस में मेरा मन नहीं लग रहा. आज भी बड़े बेमन से औफिस आई और अपनी सीट पर बैठ गई. मन तो लग नहीं रहा था, बस, ऐसे ही थोड़ाबहुत काम कर के लंचटाइम तक का वक्त गुजारा. लंच होते ही मैं खुश हो गई कि चलो आधा दिन तो निकल गया, तभी मेरे भैया का फोन आ गया. वे नोएडा में रहते हैं. वे मेरे सगे भाई नहीं हैं. मेरी मौसी के बेटे हैं पर प्यार मु?ा से सगी बहन से भी ज्यादा करते थे. मैं ने फोन उठाया और बातें करतेकरते पूरा लंच ब्रेक ही खत्म होने को आया. फोन रखते हुए भैया ने पूछा, ‘‘सुन छोटी, मैं अगले हफ्ते चेन्नई जा रहा हूं.

वहां कुछ काम है. तू अगर इतनी बोर हो रही है तो चल मेरे साथ. काम खत्म होने के बाद मैं तु?ो चेन्नई घुमा दूंगा. वैसे भी अगले हफ्ते वीकैंड के साथ फ्राइडे का भी औफ है. पहले दिल्ली आ कर तु?ो ले लूंगा, फिर साथ में चलेंगे. फ्राइडे मौर्निंग जाएंगे, सनडे इवनिंग तु?ो घर पर छोड़ दूंगा.’’ ‘‘भैया, चलना तो मैं भी चाहती हूं पर मम्मीपापा पता नहीं मानेंगे या नहीं. यहीं आसपास की बात होती तो कोई बात नहीं. चेन्नई थोड़ी दूर है और आप तो जानते ही हैं कि वे मेरी कितनी ज्यादा चिंता करते हैं.’’ ‘‘उन से तो मैं ने पहले ही बात कर ली है, छोटी. वे मान गए हैं,’’ भैया ने कहा. ‘‘थैंक्यू सो मच, भैया तो फिर अगले हफ्ते चलते हैं.’’ उस रात को जब मैं अपने घर की बालकनी में खड़ी थी, तब ही उस का ध्यान आया.

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