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ऐसे बनाएं दलिया वेजिटेबल खिचड़ी

दलिया वेजिटेबल खिचड़ी पोषक तत्वों से भरपूर है. इसमें गाजर और गोभी का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे इसकी नूट्रिशनल, विटामिन और फाइबर की मात्रा और भी बढ़ गई है. तो चलिए जानते हैं, दालिया वेजिटेबल खिचड़ी की रेसिपी.

सामग्री

दलिया (1/2 कप)

मूंगदाल (1/2 कप)

मिक्स वेजिटेबल्स (1 कप, टुकड़ों में कटा हुआ गाजर, गोभी, फ्रेंच बीन्स, मटर)

कालीमिर्च (3)

लौंग (3)

दाल​चीनी स्टिक (1)

तेजपत्ता (1)

जीरा (कम मात्रा में)

प्याज (1/4 कप)

लाल​ मिर्च पाउडर (2 टी स्पून)

जीरा पाउडर (1 टी स्पून)

धनिया पाउडर (2 टी स्पून)

हल्दी पाउडर (एक चुटकी)

तेल (1 टी स्पून)

नमक (स्वादानुसार)

बनाने की वि​धि

दलिये को 6 से 8 घंटे के लिए भिगो दें, फिर इसका पानी निकालकर अलग कर लें.

एक प्रेशर कुकर में तेल डालकर गरम करें, इसमें कालीमिर्च, लौंग, दालचीनी, तेजपत्ता और जीरा डालकर चटकने दें.

इसमें प्याज और इसे हल्की नरम होने दें.

इसमें सब्जियां डालकर 2 से 3 मिनट के लिए भूनें.

इसमें दलिया, मूंग दाल, लाल मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर, हल्दी पाउडर और नमक डालकर अच्छी तरह मिला लें.

1/2 कप पानी डाले, अच्छे से मिलाकर इसमें उबाल आने दें.

खिचड़ी को प्रेशर कुकर में 10 मिनट के लिए पकने दें.

और इसे गर्मागर्म सर्व करें.

तलाक के बाद- भाग 2

Writer- VInita Rahurikar

एक दिन जब समीर ने बाजार से ताजा टिंडे ला कर अपने हाथ के मसाले वाले भरवां टिंडे बनाने का अनुरोध किया, तो सुमिता बुरी तरह बिफर गई कि वह अभी औफिस से थकीमांदी आई है और समीर उस से चूल्हे-चौके का काम करने को कह रहा है. उस दिन सुमिता ने न सिर्फ समीर को बहुत कुछ उलटासीधा कहा, बल्कि साफसाफ यह भी कह दिया कि वह अब और अधिक उस की गुलामी नहीं करेगी. आखिर वह भी इंसान है, कोई खरीदी हुई बांदी नहीं है कि जबतब सिर झुका कर उस का हुकुम बजाती रहे. उसे इस गुलामी से छुटकारा चाहिए.

समीर सन्न सा खड़ा रह गया. एक छोटी सी बात इतना बड़ा मुद्दा बनेगी, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. इस के बाद वह बारबार माफी मांगता रहा, पर सुमिता न मानी तो आखिर में सुमिता की खुशी के लिए उस ने अपने आंसू पी कर तलाक के कागजों पर दस्तखत कर के उसे मुक्त कर दिया.

पर सुमिता क्या सचमुच मुक्त हो पाई?

समीर के साथ जिस बंधन में बंध कर वह रह रही थी, उस बंधन में ही वह सब से अधिक आजाद, स्वच्छंद और अपनी मरजी की मालिक थी. समीर के बंधन में जो सुरक्षा थी, उस सुरक्षा ने उसे समाज में सिर ऊंचा कर के चलने की एक गौरवमयी आजादी दे रखी थी. तब उस के चारों ओर समीर के नाम का एक अद्भुत सुरक्षा कवच था, जो लोगों की लोलुप और कुत्सित दृष्टि को उस के पास तक फटकने नहीं देता था. तब उस ने उस सुरक्षाकवच को पैरों की बेड़ी समझा था, उस की अवहेलना की थी लेकिन आज…

आज सुमिता को एहसास हो रहा है उसी बेड़ी ने उस के पैरों को स्वतंत्रता से चलना बल्कि दौड़ना सिखाया था. समीर से अलग होने की खबर फैलते ही लोगों की उस के प्रति दृष्टि ही बदल गई थी. औरतें उस से ऐसे बिदकने लगी थीं, जैसे वह कोई जंगली जानवर हो और पुरुष उस के आसपास मंडराने के बहाने ढूंढ़ते रहते. 2-4 लोगों ने तो वक्तबेवक्त उस के घर पर भी आने की कोशिश भी की. वह तो समय रहते ही सुमिता को उन का इरादा समझ में आ गया नहीं तो…

अब तो बाजार या कहीं भी आतेजाते सुमिता को एक अजीब सा डर असुरक्षा तथा संकोच हर समय घेरे रहता है. जबकि समीर के साथ रहते हुए उसे कभी, कहीं पर भी आनेजाने में किसी भी तरह का डर नहीं लगा था. वह पुरुषों से भी कितना खुल कर हंसीमजाक कर लेती थी, घंटों गप्पें मारती थीं. पर न तो कभी सुमिता को कोई झिझक हुई और न ही साथी पुरुषों को ही. पर अब किसी भी परिचित पुरुष से बातें करते हुए वह अंदर से घबराहट महसूस करती है. हंसीमजाक तो दूर, परिचित औरतें खुद भी अपने पतियों को सुमिता से दूर रखने का भरसक प्रयत्न करने लगी हैं.

भारती के पति विशाल से सुमिता पहले कितनी बातें, कितनी हंसीठिठोली करती थी. चारों जने अकसर साथ ही में फिल्म देखने, घूमनेफिरने और रेस्तरां में साथसाथ लंच या डिनर करने जाते थे. लेकिन सुमिता के तलाक के बाद एक दिन आरती ने अकेले में स्पष्ट शब्दों में कह दिया, ‘‘अच्छा होगा तुम मेरे पति विशाल से दूर ही रहो. अपना तो घर तोड़ ही चुकी हो अब मेरा घर तोड़ने की कोशिश मत करो.’’

सुमिता स्तब्ध रह गई. इस के पहले तो आरती ने कभी इस तरह से बात नहीं की थी. आज क्या एक अकेली औरत द्वारा अपने पति को फंसा लिए जाने का डर उस पर हावी हो गया? आरती ने तो पूरी तरह से उस से संबंध खत्म कर लिए. आनंदी, रश्मि, शिल्पी का रवैया भी दिन पर दिन रूखा होता जा रहा है. वे भी अब उस से कन्नी काटने लगी हैं. उन्होंने पहले की तरह अब अपनी शादी या बच्चों की सालगिरह पर सुमिता को बुलावा देना बंद कर दिया. कहां तो यही चारों जबतब सुमिता को घेरे रहती थीं.

सुमिता को पता ही नहीं चला कि कब से उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. 4 साल हो गए उसे तलाक लिए. शुरू के साल भर तो उसे लगा था कि जैसे वह कैद से आजाद हो गई. अब वह अपनी मर्जी से रहेगी. पर फिर डेढ़दो साल होतेहोते वह अकेली पड़ने लगी. न कोई हंसनेबोलने वाला, न साथ देने वाला. सारी सहेलियां अपने पति बच्चों में व्यस्त होती गईं और सुमिता अकेली पड़ती गई. आज उसे अपनी स्वतंत्रता स्वावलंबन, अपनी नौकरी, पैसा सब कुछ बेमानी सा लगता है. अकेले तनहा जिंदगी बिताना कितना भयावह और दुखद होता है.

लोगों के भरेपूरे परिवार वाला घर देख कर सुमिता का अकेलेपन का एहसास और भी अधिक बढ़ जाता और वह अवसादग्रस्त सी हो जाती. अपनी पढ़ाई का उपयोग उस ने कितनी गलत दिशा में किया. स्वभाव में नम्रता के बजाय उस ने अहंकार को बढ़ावा दिया और उसी गलती की कीमत वह अब चुका रही है.

सोचतेसोचते सुमिता सुबकने लगी. खानाखाने का भी मन नहीं हुआ उस का. दोपहर 2 बजे उस ने सोचा घर बैठने से अच्छा है अकेले ही फिल्म देख आए. फिर वह फिल्म देखने पहुंच ही गई.

फिल्म के इंटरवल में कुछ चिरपरिचित आवाजों ने सुमिता का ध्यान आकर्षित किया. देखा तो नीचे दाईं और आनंदी अपने पति और बच्चों के साथ बैठी थी. उस की बेटी रिंकू चहक रही थी. सुमिता को समझते देर नहीं लगी कि आनंदी का पहले से प्रोग्राम बना हुआ होगा, उस ने सुमिता को टालने के लिए ही रिंकू की तबीयत का बहाना बना दिया. आगे की फिल्म देखने का मन नहीं किया उस का, पर खिन्न मन लिए वह बैठी रही.

अगले कई दिन औफिस में भी वह गुमसुम सी रही. उस की और समीर की पुरानी दोस्त और सहकर्मी कोमल कई दिनों से देख रही थी कि सुमिता उदास और बुझीबुझी रहती है. कोमल समीर को बहुत अच्छी तरह जानती है. तलाक के पहले कोमल ने सुमिता को बहुत समझाया था कि वह गलत कर रही है, मगर तब सुमिता को कोमल अपनी दुश्मन और समीर की अंतरंग लगती थी, इसलिए उस ने कोमल की एक नहीं सुनी. समीर से तलाक के बाद फिर कोमल ने भी उस से बात करना लगभग बंद ही कर दिया था, लेकिन आज सुमिता की आंखों में बारबार आंसू आ रहे थे, तो कोमल अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह सुमिता के पास जा कर बैठी और बड़े प्यार से उस से पूछा, ‘‘क्या बात है सुमिता, बड़ी परेशान नजर आ रही हो.’’

इस की क्या जरूरत है-भाग 3: अमित अपने परिवार और दोस्तों से क्यों कट रहा था?

रमाकांत और शिल्पा ने भोजन किया और एक लिफाफा ले कर अमित के पास गए. अमित ने लिफाफा देखते हुए कहा,”अंकल, यह क्या? इस की क्या जरूरत है. आप ने शायद व्हाट्सऐप पर निमंत्रण पत्रिका के नीचे लिखी हुई टिप्स ठीक से नहीं पढ़ी हैं, जिस में लिखा था कि कोई उपहार न लाएं. अगर कोई कुछ देना ही चाहें तो उस के लिए मैं ने अपने ‘गुगल पे अकाउंट’ की डिटैल्स लिखी है. अंकल, प्लीज यह लिफाफा आप रख लीजिए. मैं अब यह कैश कहां सभालूंगा। कल सुबह 4 बजे की फ्लाइट से मुझे दिल्ली जाना है. कंपनी के एक नए प्रोजैक्ट के लिए यूएस से आने वाले डैलिगेशन के साथ हमारी मिटिंग है.“

रमाकांत ने लिफाफा जेब के हवाले करते हुए कहा,”कोई बात नहीं, मैं लिफाफे की रकम ‘गुगल पे’ से तुम्हारे अकाऊंट में जमा करवा दूंगा.”

रमाकांत और शिल्पा ने भोजन किया फिर आलोक से मिल कर उसे दूसरे दिन अपने घर आने का निमंत्रण दिया और अमित से विदा लेने के लिए स्टेज पर चले गए. अमित अपने करीबी दोस्तों से घिरा हुआ था. रमाकांत को देखते ही अमित ने अपने दोस्तों को दूर होने का इशारा किया.

“अमित, हम अब निकलते हैं। विवाह की शुभकामनाएं और सुनो, हनीमून से लौटने के बाद अगर समय मिले तो दोनों एक दिन हमारे घर पर आना, हमें अच्छा लगेगा।”

“थैंक यू अंकल, फिलहाल तो हम दोनों बहुत बिझी हैं, हनीमून की भी अभी कोई प्लानिंग नहीं है. मैं कल दिल्ली जा रहा हूं और नेहा को कल ही कंपनी में प्रोजैक्ट का प्रेजैंटेशन देना है. जब समय मिलेगा तब हम आप के घर जरूर आएंगे,” कहता हुआ अमित फिर से दोस्तों की भीड़ में शरीक हो गया.

रमाकांत और शिल्पी वहां से रवाना हो गए. वक्त अपनी रफ्तार से बीत रहा था. करीब 2 साल तक फिर अमित गायब रहा, एक दिन अचानक उस ने रमाकांत को फोन किया,”अंकल, एक गुड न्यूज है, नेहा प्रैगनैंट है.”

“वाह, बधाई हो…” कहते हुए रमाकांत ने चुटकी ली,”अमित, यह काम भी औनलाइन क्या…” यह सुन कर अमित शरमाते हुए हंस पड़ा था.
फिर 5-6 महीनों के लिए अमित ‘आउट आफ रीच’ हो गया, ‘कवरेज एरिया’ से बाहर चला गया. जब कभी फोन लगता तो बीजी टोन ही सुनाई देती… रमाकांत ने सोचा कि वह हमेशा की तरह बिजी होगा…

एक दिन रमाकांत का बङी मुश्किल से फोन लगा, उन्होंने अमित को हिदायत देते हुए कहा,”अरे अमित, मैं कई दिनों से तुम्हें फोन लगाने की कोशिश कर रहा हूं पर तुम्हारा फोन ही नहीं लग रहा है। सुनो, एक जरूरी बात कहनी थी, अब अपने मम्मी और पापा को गांव से बुला लो, अब नेहा के पूरे दिन हो रहे हैं, वह घर में अकेली सब कैसे मैनेज करेगी. और इस समय औरत के पास एक औरत का होना बहुत जरूरी होता है.“

“इस की क्या जरूरत है अंकल, मैं ने एक बड़ी हैल्थ कंपनी का ‘हैलो डाक्टर औनलाइन पैकेज’ लिया है। इस की रेटिंग भी बहुत हाई है, जिस के तहत नेहा कभी भी और किसी भी वक्त वीडियो कौल कर के अपने डाक्टर से कंसल्ट कर सकती है फिर डिलीवरी होने तक पूरी जिम्मेदारी कंपनी की ही रहेगी.“

अमित ने रमाकांत को पैकेज की जानकारी देते हुए उन के अनुरोध को बड़ी सफाई से ठुकरा दिया. रमाकांत को बहुत ताज्जुब हो रहा था कि अमित भावनाशून्य हो रहा था। उसे अपने ही लोगों से रिश्ता रखने में न जाने क्यों परहेज है. अमित को अपनों से भी बिलकुल लगाव नहीं था, वह अपनी ‘औनलाइन’ दुनिया में ही खुश था मगर उसे यह पता नहीं था कि जिंदगी में रिश्तेदारों और दोस्तों की कितनी अहमियत होती है. मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वह अकेले नहीं जी सकता है. आनंदित जीवन जीने के लिए हमें किसी के साथ मिल कर ही जीना होता है. इंसान को हमेशा सामाजिक होने की सलाह दी जाती है ताकि जब कभी वह मुसीबतों में फंसता है तो लोग उसे महज शाब्दिक सांत्वना परोसने के बजाय वास्तव में उस की सहायता कर सकते हैं. अकेलापन एक बीमारी भी है जिस का सेहत पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है.

रमाकांत अतीत से वर्तमान में लौटे। उन की कार अस्पताल के सामने पहुंच चुकी थी. रमाकांत ने कार पार्क की और अस्पताल के भीतर गए। अमित रिसैप्शन पर ही उन का इंतजार कर रहा था। पसीने ने तरबतर चेहरा और आंसुओं से डबडबाती आंखें, रमाकांत को देखते ही वह फूटफूट कर रोने लगा,”अंकल, प्लीज नेहा को बचा लीजिए…”

रमाकांत ने कहा,”अमित, वह हैलो डाक्टर वाला महंगा पैकेज वगैरह…”

“अंकल, कुछ नहीं। सब बकवास साबित हुआ… जब नेहा की तबियत अचानक बहुत खराब हो गई तब कनैक्टिविटी की प्रौब्लम हो गई, किसी भी डाक्टर से कौंटैक्ट ही नहीं हो पा रहा था. इमरजैंसी लाइंस भी बिजी आ रही थी. आखिर मैं नेहा को अपनी गाड़ी में यहां ले कर आ गया। नेहा की गंभीर हालत देख कर डाक्टरों ने कहा कि केस बहुत सीरियस है. पहले अपने घर के किसी रिश्तेदार को बुलाने के लिए कहा, लेकिन मम्मी और पापा तो गांव में हैं. अपनी सोसायटी में हम दोनों का किसी से कोई वास्ता नहीं है, न मैं किसी को जानता हूं न ही कोई मुझे जानता है. नेहा का भी यही हाल है. इसलिए अंकल मैं ने आप को फोन लगाया। प्लीज, नेहा को बचा लीजिए…” कहते हुए उस ने छोटे बालक की तरह बिलखबिलख कर रोते हुए रमाकांत की गोद में अपना सिर रख दिया.

रमाकांत ने अमित की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा,”अमित बेटा, अब चिंता न करो, हम आ गए हैं। सब ठीक होगा… तुम यहीं रिसैप्शन में बैठो, मैं डाक्टर से बात करता हूं,” कहते हुए रमाकांत शिल्पा के साथ जल्दी से डाक्टर से मिलने चल दिए.

डाक्टर ने रमाकांत को नेहा की क्रिटीकल अवस्था के बारे में पूरी जानकारी देते हुए संभावित खतरे से अवगत कराया और 1-2 पेपर्स पर उन के हस्ताक्षर करवाए. शिल्पा ने डाक्टर से अनुरोध किया कि वह केवल 2 मिनट के लिए नेहा से मिलना चाहती है. डाक्टर के हां कहने पर शिल्पा तुरंत नेहा के पास गई और उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा,”नेहा बेटा, हम ने डाक्टर से बात कर ली है. डाक्टर ने आश्वस्त किया है कि डरने की कोई बात नहीं है. डाक्टर बहुत ही होशियार और अनुभवी हैं. बस कुछ ही देर में तुम्हारी गोद में एक प्यारा सा बच्चा आ जाएगा, हम भी उसे अपनी गोद में लेने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.“

शिल्पा ने देखा कि नेहा के आंखों में छिपा हुआ नीर आंसुओं की शक्ल में उस के गालों को भिगो रहा है। शिल्पा ने अपने रूमाल से उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा,”नेहा बेटा, हम हैं न…फिर चिंता किस बात की… चलो अब मुसकरा दो…”

नेहा के शुष्क अधरों पर हलकी सी मोहक मुसकरहाट फैलने लगी जिस ने उस के चेहरे पर अपना बसेरा बना चुकी भय की लकीरों को पलभर में गायब कर दिया… शिल्पा ने खुश हो कर उस का माथा चूमा और आईसीयू से बाहर आ गई.

रमाकांत के कहने पर अमित ने अपने मातापिता को फोन कर के सारी घटना बता दी और उन्हें तत्काल मुंबई रवाना होने के लिए कह दिया। कुछ ही देर में नेहा को औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. अमित की आंखों से आंसुओं की धारा फिर बहने लगी। रमाकांत ने उसे गले लगाते हुए कहा,”अमित, अब समझ में आया न कि हमारी जिंदगी में रिश्तेदारों और दोस्तों की कितनी अहमियत होती है. जिंदगी में सबकुछ औनलाइन नहीं होता है। रिश्तेदार और दोस्त औनलाइन नहीं मिलते हैं.

“अगर फेसबुक पर तुम्हारे 2 हजार दोस्त हैं तो इस का कोई मतलब नहीं है. मुसीबत में जो तुम्हारे साथ होता है वह ही सच्चा दोस्त होता है. औनलाइन दोस्त कब औफलाइन हो जाएंगे कुछ कह नहीं सकते. लैपटौप, टैबलेट, मोबाइल, टीवी से थोड़ी दूरी बनाओ और इंसानों से नजदीकी बढ़ाओ. उन की खुशियों में भले ही शरीक न हों पर दुख की घड़ी में उन के पास दौड़ कर जाओ. रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताओ, उन से बातें करो, अपने सुखदुख शेयर करो, यही तो असली जिंदगी है.

“अमित, वरचुअल जीना छोड़ो और ऐक्चुअल में जीना सीखो… जिस तरह बगीचा खूबसूरत फूलों से गुलजार होता है उसी तरह मनुष्य की जिंदगी भी रिश्तेदारों एवं दोस्तों के साथ रखे जाने वाले मधुर संबंधों से गुलजार होती है.“

“हां, अंकल, अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैं अपनी जिंदगी में बहुत ही बड़ी भूल करने जा रहा था,” कहते हुए अमित फिर फूटफूट कर रोने लगा.

“अमित, रोना बंद करो, अब भी देर नहीं हुई है. सुबह का भूला शाम को घर लौटता है तो भूला नहीं कहलाता है. तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है, यह बहुत बड़ी बात है. अब हम सब मिल कर कुदरत से नेहा और उस के होने वाले बच्चे की कुशलता के लिए कामना करते हैं. डाक्टर पूरी कोशिश कर रहे हैं. सभी के लिए 1-1 पल अब एक युग के समान प्रतीत हो रहा था उन की नजरें औपरेशन थिएटर की लाल बत्ती पर टिकी हुई थी.

करीब 2 घंटे के बाद बच्चे के रोने की तेज आवाज आई तो तीनों के मुरझाए हुए चेहरे एकाएक खुशी से खिल उठे.

डाक्टर ने बाहर आ कर मुसकराते हुए कहा,”बधाई हो अमित, तुम बेटी के बाप बन गए हो. डोंट वरी…बोथ आर फाइन ऐंड आऊट औफ डैंजर…”

अमित की आंखों में अफसोस के भावों के साथसाथ खुशी की चमक स्पष्ट दिखाई दे रही थी.

इस की क्या जरूरत है-भाग 1: अमित अपने परिवार और दोस्तों से क्यों कट रहा था?

रात में करीब सवा 2 बजे रमाकांत के मोबाइल की घंटी बजी. 65 वर्षीय रमाकांत ने कमरे की बिजली जला कर मोबाइल देखा, मोबाइल की स्क्रीन पर अमित का नाम आ रहा था,”हैलो… अमित… क्या बात है, सब ठीक तो है न?“ रमाकांत ने घबराते हुए पूछा.

“अंकल, नेहा को अभीअभी हौस्पिटल में ऐडमिट किया है. डाक्टर ने घर के किसी बड़े आदमी को बुलाने के लिए कहा है,” अमित ने भर्राए गले से कहा.

रमाकांत ने अपनी पत्नी शिल्पा को उठाया और 5 मिनट में तैयार हो कर हौस्पिटल के लिए रवाना हो गए. चारों तरफ खामोशी पसरा हुआ था. लैंपपोस्टों की रोशनी ने सड़कों पर दूर तक पीली चादरें बिछा दी थीं मानो किसी आयोजन से पहले विशाल मैदान में पीले रंग की दरियां बिछाई गई हों. सड़कें बिलकुल वीरान थीं। रमाकांत जिस गति से कार चला रहे थे उतनी ही गति से अतीत की यादें उन के स्मृतिपटल पर किसी फिल्म के दृश्यों की तरह अंकित हो रही थी…

अमित उन के बहुत ही घनिष्ठ मित्र आलोक का इकलौता बेटा, बचपन से ही होशियार और होनहार। आलोक और मोहिनी ने अमित के कैरियर के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था. कुछ समय तक तो आलोक और मोहिनी की दुनिया अमित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थी. आलोक के दोस्त अकसर उस पर यह फिकरा कसते थे,”आलोक, अमित के अलावा और भी जहां है… कुएं का मेंढक मत बनो.”

अमित के सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने और एमबीए करने तक आलोक प्रसाद सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हो गए थे. कुछ ही दिनों के बाद अमित को एक मल्टीनैशनल कंपनी में शानदार पैकेज मिल गया. अमित की ऊंची उड़ान से आलोक और मोहिनी बेहद खुश थे. अमित उन के सपनों को साकार कर रहा था, अब वे अमित के लिए बहू की तलाश में जुट गए ताकि समय रहते उस का विवाह कर के वे सामाजिक दायित्व से नजात पा कर अपने गांव में सुकून से रहने के लिए चले जाएं.

वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था. अमित की नौकरी को 1 वर्ष पूरा हो रहा था. अमित के मोटे पैकेज से आलोक और मोहिनी की दुनिया बदलने लगी. बोरीवली में स्थित अपना छोटा फ्लैट बेच कर वे अंधेरी के एक पौश इलाके में आलीशान फ्लैट में रहने के लिए आ गए, पुरानी कार की जगह नई और महंगी कार आ गई… सबकुछ तेजी से बदल रहा था. खुशियां और सुखसुविधाएं आलोक के परिवार में सुनामी की तरह शिरकत कर रही थी.

आलोक और मोहिनी संसाररूपी सागर में खुशियों की लहरों का आनंद लूटने में इतने मशगूल हो गए थे कि उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला कि इस विशाल सागर से वे एक तरफ हो गए हैं और अमित किसी दूसरी ओर बहुत दूर निकल गया है. उस की दुनिया लैपटौप और मोबाइल में सिमट कर रह गई है। मीटिंग, प्रोजैक्ट, टारगेट आदि उस की जिंदगी के अभिन्न अंग बन गए हैं. आलोक और मोहिनी को पता ही नहीं चलता था कि अमित कब औफिस जाता है और कब घर लौटता है. छुट्टी के दिन भी वह अपने कमरे से बाहर नहीं आता था.

एक दिन आलोक और मोहिनी ने अमित से उस के विवाह की बात छेड़ी तो वह उन पर बरस पड़ा,”ओह, पापा, आप किस दुनिया में जी रहे हैं, अभी तो मेरा कैरियर शुरू हुआ है। फिलहाल शादी के बारे में सोचने का भी वक्त नहीं है मेरे पास.”

अमित का दोटूक जवाब सुन कर आलोक और मोहिनी अपना सा मुंह ले कर रह गए. इस के बाद दोनों ने कभी भी अमित से इस विषय में कोई बात नहीं की.

कुछ ही दिनों के बाद दोनों ने अपने गांव जाने का निर्णय ले लिया. आलोक और मोहिनी वैसे भी पिछले 40 सालों से मुंबई में रह रहे थे, फिर दोनों ने रिटायरमैंट के बाद अपने पैतृक गांव में शिफ्ट होने का प्लान भी बनाया था. आलोक और मोहिनी अपने पैतृक गांव में हमेशा के लिए शिफ्ट होने से पहले 1-2 बार गांव में जा कर अपना मकान ठीक करवा कर आ गए थे.

करीब 2 महीनों के बाद आलोक और मोहिनी ने मुंबई को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. रमाकांत और शिल्पा ने दोनों को भारी मन से विदा किया। सभी की आंखों से आंसु बह रहे थे.

रमाकांत का इस घर से करीब 30-35 सालों से पुराना रिश्ता था. रमाकांत ने आलोक को आश्वस्त किया कि वह अमित की चिंता न करें वह बीचबीच में इस तरफ आता रहेगा. आलोक और मोहिनी के गांव चले जाने के बाद अमित पर कोई असर नहीं पड़ा। वैसे भी अमित अपनी दुनिया में ही मशगूल रहता था. आलोक के मुंबई से जाने के बाद रमाकांत 1-2 बार अमित से मिलने उस के घर गया था मगर अमित से मुलाकात हो नहीं पाई.

 

अभिनय : नाटक रंग लाया जीजाजी का

रात 9.30 बजे विवेक ने मान्यता को फोन कर के कहा, “दीदी, मैं अब अर्चना के साथ नहीं रह सकता. मैं ने उस के साथ निभाने की बहुत कोशिश की, परंतु अब और बरदाश्त नहीं होता. मैं उसे 2-4 दिन में ही ‘तलाक’ देने की सोच रहा हूं…”

“परंतु विवेक, अभी 5 दिन बाद ही तो तुम दोनों की शादी की 8वीं सालगिरह है…”

“मुझे अब कुछ नहीं सुनना दीदी. और प्लीज, आप इस सब के बीच में पड़ कर अपना टाइम बरबाद मत करो. मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही यह फैसला किया है,” कह कर विवेक ने फोन रख दिया.

मान्यता, विवेक से 4 साल बड़ी थी. उस की शादी 15 साल पहले अनुज के साथ हुई थी. अनुज का लखनऊ में एडवरटाइजिंग एजेंसी का कारोबार था. कंप्यूटर डिजाइनर की डिगरी होने के कारण मान्यता भी दिन में एक बार 2-3 घंटे अनुज के औफिस में जा कर उस का काम देखती थी. वह खुद भी काफी इनोवेटिव आइडिया देती थी, जिस से उन की एडवरटाइजिंग एजेंसी लखनऊ की सब से प्रतिष्ठित एडवरटाइजिंग एजेंसी कहलाती थी. उन की एजेंसी में एड देना यानी सफलता की गारंटी माना जाता था.

अनुज और मान्यता के 2 बेटे थे. अक्षज 8वीं जमात में और अक्षया 5वीं जमात में थे. उन का एक सुखी परिवार था. वे चारों लखनऊ की पौश कालोनी गोमती नगर में बड़े से बंगले में रहा करते थे.

विवेक की बात सुन कर मान्यता को रातभर नींद नहीं आई. हालांकि वह विवेक से महज 4 साल ही बड़ी थी, परंतु वह और उस के पति अनुज विवेक और उस की पत्नी अर्चना को अपने बच्चों की तरह ही प्यार करते थे.

मान्यता की बात सुन कर अनुज भी काफी दुखी हुए.
हालांकि विवेक और अर्चना ने प्रेम विवाह किया था, पर दोनों सजातीय थे और विवेक भी कानपुर में ही सरकारी कंपनी एचएएल में काम करता था, इसलिए दोनों परिवारों ने हंसीखुशी इस विवाह को मंजूरी दे दी थी.

अर्चना भी बहुत समझदार थी. उस ने पूरे घर को अपने प्यार से बांध रखा था. वह मान्यता और अनुज की बहुत इज्जत करती थी. बेटे पुष्कर के जन्म के 2 साल बाद से ही अर्चना ने भी एक निजी कान्वेंट स्कूल में बतौर शिक्षिका ज्वाइन कर लिया. पिताजी तो अर्चना को इतना पसंद करते थे कि उन्होंने मृत्यु से पूर्व अपनी वसीयत में अपना पुश्तैनी घर अर्चना के नाम ही कर दिया था. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, तो पता नहीं किस की नजर लग गई.

मान्यता को तो अपनी मां के जरीए ही उन दोनों के बीच पिछले 6 महीने से जारी खटपट का पता चल रहा था, परंतु इसे पतिपत्नी के बीच सामान्य सी बात समझ कर मान्यता ने इस बात में ज्यादा दखल देना उचित नहीं समझा, पर बात इतनी बिगड़ जाएगी कि उन दोनों के तलाक की नौबत आ जाए, सोच कर मान्यता उलझन में थी.

पूरा मामला जानने के लिए मान्यता ने सुबह जब मां को फोन किया, तो मां ने भी विवेक की साइड लेते हुए मान्यता को अर्चना के बारे में बहुत बुराभला कहा.

मां कह रही थी कि बहूरानी के पर निकल आए हैं. स्कूल से घर आ कर सिर्फ मोबाइल फोन और टीवी में लगी रहती है. थोड़ाबहुत काम निबटाने के बाद बेटे पुष्कर की पढ़ाई कराने में ही पूरी रात निकाल देती है. उस ने अब हम लोगों की तरफ ध्यान देना भी कम कर दिया, इसलिए जब पिछले हफ्ते उस के भाईभाभी यहां आए थे, तो विवेक ने उन को कुछ रिस्पौंस नहीं दिया. उन के जाने के बाद से ही बात बिगड़तेबिगड़ते तलाक तक आ पहुंची है.

मान्यता ने अपनी मां से कहा कि वह इस मामले में नहीं पड़ेगी, और उस ने फोन रख दिया.

मान्यता ने सारी बात अनुज से विस्तार से कही, जिस पर कुछ सोच कर उस ने मोबाइल पर अर्चना और विवेक को फोन कर के कहा कि वह एक नया एडवरटाइजिंग प्रोजैक्ट 2 दिन बाद शुरू कर रहा है, जिस के लिए उस ने उन दोनों को आमंत्रित किया है.

अर्चना और विवेक ने संकोच के कारण अपने जीजाजी अनुज को औपचारिक रूप से हामी भर दी, पर मन ही मन निश्चित किया कि वह कुछ बहाना बना कर टाल देंगे.
परंतु 2 दिन बाद ही अनुज ने सुबहसुबह उन दोनों को लाने के लिए ड्राइवर के साथ अपनी इनोवा गाड़ी कानपुर भेज दी.

अब घर में गाड़ी आने के कारण विवेक ने मां से आग्रह किया कि वह चली जाएं, पर मां ने साफ मना कर दिया कि वह पुराने खयालों की है, बेटीदामाद के घर का पानी भी नहीं पी सकती, मजबूरन विवेक और अर्चना ने पुष्कर के साथ 2 दिन का सामान साथ ले कर लखनऊ जाने का फैसला किया. वो दोनों खाली गाड़ी लौटा कर अपने जीजाजी का अपमान करने की हिम्मत नहीं कर सकते थे.

रास्ते में ही विवेक और अर्चना ने जरूरी कार्य के नाम पर अपनेअपने औफिस से 2 दिन की छुट्टी ले ली.

चूंकि उन दोनों ने पहले से कोई तैयारी नहीं की थी, इसलिए उन्होंने लखनऊ पहुंच कर घर जाने के पहले ही फल, मिठाइयां, पुष्प गुच्छ और उपहार रास्ते में ही ले लिए.

दीदी के घर पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि घर में पूजा हो रही थी. जीजाजी और दीदी को प्रणाम कर विवेक अपने भांजे और भांजी से खेलने में व्यस्त हो गया. अर्चना ने विवेक को इशारे से पहले उपहार और पुष्प गुच्छ दे कर अभिवादन करने को कहा.

अनुज ने विवेक और अर्चना का जिंदादिली से स्वागत किया. विवेक और अर्चना को लगा कि शायद दीदी ने जीजाजी को हमारे तलाक की बात नहीं बताई होगी. इसलिए वह दोनों उस घर में समझदार पतिपत्नी का अभिनय करने लगे.

लंच कर के जीजाजी ने विवेक और अर्चना का सामान एक बैडरूम में शिफ्ट कर दिया.

जब अनुज कुछ काम से औफिस चले गए, तो विवेक और अर्चना को लगा कि शायद अब मान्यता दीदी हम से हमारे तलाक के मुद्दे पर बात करेंगी.

परंतु यह क्या, वह तो अर्चना को साथ ले कर रसोईघर में कुछ काम करतेकरते बातें कर रही थी. उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि मान्यता दीदी अनुज जीजाजी की बुराई कर रही थीं.

वह बोली, “सालभर बाद उन का साला और सरहज आए हैं, तो क्या छुट्टी ले कर इतना वक्त नहीं दे सकते थे, पर नहीं, उन को घर की तो कोई चिंता ही नहीं है.”

अर्चना ने कहा, “नहीं दीदी, हो सकता है कि उन्हें कोई जरूरी काम हो. देखना, वह जल्दी ही घर आ जाएंगे.”

इस के बाद विवेक, अर्चना और मान्यता बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त हो गए.

रोज शाम को 7 बजे तक घर आ जाने वाले अनुज का जब रात 8 बजे तक भी कोई फोन न आया, तो मान्यता ने अनुज को फोन किया.

अनुज ने कहा कि वह बिजनैस मीटिंग में रहेगा, डिनर भी उन्हीं के साथ करेगा, आप लोग खाना खा लो.

मान्यता का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, काहे की बिजनैस मीटिंग, दोस्तों के साथ पीने बैठ गए होंगे. कोई फिक्र ही नहीं हम सब की, अब तुम लोगों के साथ समय निकालना था कि दोस्तों के साथ जाना ज्यादा जरूरी था.

किसी तरह अर्चना ने मान्यता को समझाया कि हो सकता है कि कोई मीटिंग हो, फिर हम कोई बाहर के लोग तो हैं नहीं, कल साथ में डिनर कर लेंगे.

रात 11.30 बजे जब अनुज घर आए तो मान्यता और अर्चना बच्चों के साथ अपनेअपने बैडरूम में सोने चली गई थी. विवेक ड्राइंगरूम में जीजाजी की प्रतीक्षा कर रहा था.

दरवाजा खोलते ही विवेक को अनुज के मुंह और कपड़ों से शराब की बदबू आई. अनुज बड़बड़ा रहा था, ‘तुम्हारी बहन क्यों नहीं आई दरवाजा खोलने? मेरी कोई कद्र नहीं करती. मैं तलाक दे दूंगा उसे,’ कहतेकहते विवेक की मदद से गिरतेपड़ते अनुज अपने बैडरूम पहुंचा.

विवेक को अनुज जीजाजी का यह व्यवहार बहुत ही बुरा लगा.

अपने कमरे में आ कर विवेक ने देखा कि अर्चना अभी सोई नहीं थी. उस ने उसे इशारे से कहा कि जीजाजी ड्रिंक कर के आए हैं.

यह देख अर्चना बुरी तरह सहम गई. उस ने भय के मारे विवेक के हाथ मजबूती से पकड़ लिए थे. भले ही अर्चना और विवेक के संबंध खराब चल रहे थे, परंतु विवेक ने कभी इस तरह शराब पी कर अर्चना के बारे में कोई गालीगलौज नहीं की थी.

दूसरे दिन सुबह जब विवेक और अर्चना चाय पीने के लिए डाइनिंगरूम गए तो देखा कि अनुज जीजाजी और मान्यता दीदी में जोरजोर से बहस चल रही थी.

मान्यता दीदी अनुज जीजाजी को कल के व्यवहार पर बोली, तो वह भड़क उठे थे. अनुज जीजाजी गुस्से में बिना खाएपिए ही औफिस निकल गए.
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किसी तरह टेंशन के बीच उन लोगों ने दोपहर का लंच किया. मान्यता दीदी अभी भी दुखी होने के कारण बैडरूम में सो रही थी, इसलिए अर्चना ने ही उस के दोनों बच्चों अक्षज और अक्षया को शाम को स्नेक्स आदि कराया.

उस भरेपूरे घर का माहौल पूर्णतः बोझिल हो रहा था.
आज गुस्से में न तो मान्यता दीदी ने जीजाजी को फोन किया कि कब तक आ रहे हो, और न ही जीजाजी का कोई फोन आया.

रात 10.30 बजे तक जब जीजाजी नहीं आए, तो उन चारों ने बच्चों के साथ मिल कर डिनर किया.

जीजाजी के इस तरह समय पर न आने से मान्यता दीदी बहुत आहत हुई थी. वह रहरह कर बोल रही थी कि इस तरह सहन करने से अच्छा है कि मैं अनुज को तलाक दे कर वापस कानपुर चली आऊं.

उन की बात सुन कर विवेक और भी सहम गया था.

विवेक के सहमे हुए चेहरे को देख कर मान्यता फीकी सी हंसी दे कर बोली, “घबराने की जरूरत नहीं भाई, मैं वहां तुम पर बोझ नहीं रहूंगी.”

विवेक रोआंसा होते हुए बोला, “नहीं दीदी, आप तो मेरे साथ सारी जिंदगी रह सकती हो. बस ये भांजे और भांजी बिना जीजाजी के कैसे रहेंगे, सोच कर दुखी हो रहा था.”

अर्चना ने बीच में ही टोक कर कहा, “दीदी, हफ्तेपंद्रह दिन के लिए मायके जाना अलग बात होती है, और तलाक ले कर तो एक दिन भी नहीं गुजर सकता. लोगों की सवालियां निगाहें आप को बहुत परेशान करेंगी. मेरे हिसाब से एक बार हम सब मिल कर जीजाजी को समझाते हैं. ऐसी छोटीमोटी बातें तलाक तक नहीं पहुंचनी चाहिए.”

मान्यता दीदी ने पूछा, “अरे, तुम दोनों भी तो वैसे ही कम परेशान हो क्या? और मैं आ कर वहां क्या करूंगी? अच्छा, तुम दोनों की ऐसी क्या वजह थी कि तुम दोनों तलाक लेना चाहते हो?”

अर्चना ने कहा, “आप दोनों की बीच बढ़ी इतनी दूरियों को देख कर तो लगता है कि हमारे बीच ऐसी कोई बड़ी वजह ही नहीं थी, जिस के आधार पर हम तलाक लेने की बात कर रहे थे.
बस शायद ये मुझे टाइम नहीं दे पा रहे और न मैं इन्हें, इसलिए थोड़ा मनमुटाव बढ़ गया था. मैं विवेक और मां से अपने बरताव के लिए माफी मांगती हूं.”

विवेक ने भी कहा, “मुझे भी तुम्हारे भैयाभाभी को वक्त देना था. आज 2 दिन में ही मुझे समझ आ गया कि उन दोनों को कितना बुरा लगा होगा. अब आगे से मुझ से अनजाने में भी कोई ऐसी गलती नहीं होगी.”

विवेक ने आगे कहा, “हम ने सिर्फ 2 दिन की ही छुट्टी ली थी. कल हमें सुबह जल्दी ही कानपुर निकलना होगा. हम अपना सामान पैक कर लेते हैं.”

उन दोनों को जीजाजी की प्रतीक्षा करतेकरते रात 11.45 हो चुके थे. विवेक को डर था कि शायद आज भी अनुज जीजाजी इसी प्रकार कल की तरह शराब पी कर आएंगे और अर्चना व बच्चों के सामने बखेड़ा न खड़ा कर दे, इसलिए विवेक जल्दी ही उन सब को बैडरूम में जाने का आग्रह कर रहा था.

अभी वे लोग अपने बैडरूम पहुंचे ही थे कि तभी डोरबेल बजती है. किसी अनहोनी की आशंका से विवेक ने मान्यता दीदी और उन के बच्चों को भी उन के बैडरूम में सोने के लिए भेज दिया.

विवेक ने सोच रखा था कि यदि आज भी अनुज जीजाजी कल की तरह शराब पी कर आए और कोई तमाशा किया, तो वह उन्हें बोल देगा कि आप मान्यता दीदी को अकेला मत समझना. मैं कल ही उन को अपने साथ कानपुर ले जा रहा हूं.

विवेक धड़कते दिल से दरवाजा खोलता है. वह देखता है कि अनुज जीजाजी एक हाथ में केक बौक्स और एक हाथ में पुष्प गुच्छ ले कर मुसकराते हुए अंदर आते हैं, जैसे कि कोई बात ही न हुई हो.

अनुज जीजाजी ने विवेक को कहा कि वह अर्चना को ले कर आए, और स्वयं मान्यता को आवाज देने लगे.

विवेक जब तक अर्चना को ले कर ड्राइंगरूम में आता है, मान्यता भी वहां आ जाती है और केक ओपन कर के विवेक और अर्चना को केक काटने को बोलती है. तुम दोनों को शादी की सालगिरह की बहुत शुभाशीर्वाद.

अनुज भी मुसकराते हुए उन दोनों को पुष्प गुच्छ और साथ लाया उपहार दे कर कहते हैं, “मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि तुम दोनों ने तलाक लेने जैसा निकृष्ट विचार त्याग दिया है. हर पतिपत्नी के बीच शादी के कुछ सालों बाद छोटीमोटी खटपट तो होती रहती हैं. उन को भी दिनचर्या की बातों में ही भूल जाना चाहिए.

“और हां, मैं तुम्हारी बहन मान्यता को बहुत प्यार करता हूं और उसे कोई तलाक नहीं दे रहा हूं,” कह कर वे हंसने लगे.

मान्यता भी विवेक के ठगे से चेहरे को देख कर जोर से हंस पड़ी और बोली, “यदि मैं तुम दोनों को बातों से समझाने की कोशिश करती तो शायद तुम दोनों मेरे सामने हां करते, पर तुम दोनों के बीच मन का दुराव कभी दूर नहीं होता, इसलिए हम दोनों ने यह सब प्लानिंग कर के तुम दोनों को उस माहौल में विचार करने के लिए छोड़ दिया.

“मुझे खुशी है कि तुम और अर्चना दोनों ने समझदारी से काम लिया. अब वादा करो कि तुम दोनों के बीच यदि झगड़ा हो तो उसे आपसी समझदारी से दूर करोगे.

अर्चना और विवेक आत्मग्लानि से सिर झुका कर खड़े थे. उन की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे.
तभी अनुज ने कहा कि विवेक तुम्हें समझाने के चक्कर में अब दोबारा उस देशी दारू की दुकान नहीं जाने वाला मैं.

जीजाजी की बात सुन कर सभी खिलखिला कर हंस दिए.

आखिर किसी की शादीशुदा जिंदगी पटरी पर लाने के लिए उन दोनों का अपनी शादीशुदा जिंदगी के पटरी से उतरने का “अभिनय” करना काम कर गया था.

दूसरे दिन उसी इनोवा से विवेक और अर्चना बेटे पुष्कर के साथ कानपुर की ओर जा रहे थे.

रास्ते भर गिरता पानी उन दोनों के दिलों में जमी गर्द धो रहा था. अर्चना विवेक के कंधे पर सिर रख कर बेफिक्री से सो रही थी. उस की आंखों की कोर से बहती अश्रुधारा बता रही थी कि अब उस के मन में कोई क्लेश शेष नहीं है.

Holi Special: सोने का पिंजरा- भाग 2

“नहीं, मतलब जौब तो करूंगी ही करूंगी मैं. लेकिन अगर पति बहुत पैसे वाला हो तो पैसा जोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी न मुझे, समझ. आराम से उड़ाऊंगी और क्या,” दीप्ति हंसी और बोली, “सोच रही हूं इस बार मेरे मनमुताबिक कोई अच्छा लड़का मिले तो हां कर दूंगी शादी के लिए.”

“ये ले, अब तुझ जैसी काबिल और सुंदर लड़की को अच्छे लड़के की क्या कमी. खुद तेरे औफिस में ही तुझ पर कई मरने वाले हैं. लेकिन तू ही है कि किसी को घास नहीं डालती,” बोल कर कनक हंसी.

“अरे, तू भी क्या बोल रही है,” दीप्ति झेंप गई. लेकिन कनक को पता है कि कैसे औफिस में सब उस से दो बातें करने को तरसते हैं. पर दीप्ति ही है कि किसी को भाव नहीं देती. और वो जिगर तो दीवाना ही है इस का. दीप्ति को खुश करने के लिए जाने वह कैसेकैसे स्वांग रचता है. अकसर वह अपने घर से अपनी मां के हाथों का बना थेपला, बटाटा बड़ा, भजिया और जाने क्याक्या गुजराती डिश ले कर आता ताकि दीप्ति खा कर उस की तारीफ करे. वह तरसता कि दीप्ति एक बार उस की बाइक के पीछे आ कर बैठ जाए, तो उस की बाइक धन्यधन्य हो जाए. लेकिन दीप्ति थी कि उसे जरा भी भाव नहीं देती थी. वैसे, वह उसे क्यों भाव देने लगी क्योंकि एक तो वह उस से एक पोस्ट नीचे था और दूसरा, दोनों अलगअलग जाति से थे. जहां दीप्ति राजपूत घराने की लड़की थी वहीं जिगर खांटी गुजराती परिवार से थी. दोनों का कहीं से भी मेल नहीं था. न खानपान में और न ही बातविचार में. बस, एकसाथ एक ही औफिस में काम करने से क्या वह उसे पसंद करने लगेगी…

लेकिन बेचारा जिगर उसे खुश करने के लिए खूब स्मार्ट बन कर औफिस आता. भले ही उस के कपड़े सस्ते होते थे, पर धुले और प्रैस किए होते थे और जिन पर वह कस कर परफ्यूम छिड़क कर औफिस आता था. लेकिन उस के सस्ते से परफ्यूम की महक से दीप्ति का सिर भारी हो जाता था जब वह उस के पास से हो कर गुजरता तो. जिगर के पापा नहीं थे, इसलिए मांबहन और बुड्ढी दादी की ज़िम्मेदारी उसी पर थी तो बेचारा कहां से महंगेमहंगे कपड़े और परफ्यूम खरीदता अपने लिए. खैर, जो भी हो, पर दीप्ति चाहती थी कि उस का लाइफपार्टनर उस की फील्ड से अलग का हो. कोई बड़ा अधिकारी, या बहुत बड़ा बिजनैसमैन हो ताकि उस की ज़िंदगी मजे से गुजरे.

“ओ हो, तो कोई पैसे वाला मुरगा चाहिए तुझे, जो रोज सोने का अंडा दे, है न!” कनक ने चुटकी ली.

“हां यार, ऐसा ही कुछ ताकि ज़िंदगी में स्ट्रगल न करना पड़े मुझे. वैसे, रिश्ते तो कई आए मेरे लिए पर मुझे कोई खास जंचा नहीं,” दीप्ति ने आज अपने मन की बात कनक के सामने खोल कर रख दिया कि वह अपने लिए कैसा जीवनसाथी चाहती है. एक लंबी सांस खींचती हुई दीप्ति फिर बोली, “काश, हमारा भी समय आयुषी जैसा होता, तो कितना अच्छा होता.”

“कौन, अपनी आयुषी?” कनक बोली.

“अरे हां, हमारे कालेज की दोस्त आयुषी. याद नहीं हम उस की शादी पर भी गए थे. कितना इतरा रही थी वह अपनी शादी पे. हां, भई, इतराए भी क्यों न. इतने बड़े और पैसे वाले घराने में शादी जो हुई है उस की. और उस पर भी उस का पति अपने मांबाप का एकलौता बेटा है. सो, सबकुछ तो उस का भी हुआ न. और एक मैं… इतनी पढ़लिख कर भी गधा-मजूरी कर रही हूं, बौस की डांट खा रही हूं,” दीप्ति बोल ही रही थी की उस का फोन घनघना उठा. हैदराबाद से उस की मां का फोन था. पूछ रही थी कि दीप्ति ठीक तो है? दीप्ति की मां फोन पर उस का हालचाल लेती रहती थी.

“मां का फोन था. चिंता कर रही थी,” कनक की तरफ देखती हुई दीप्ति बोली, तो वह कहने लगी कि “हां, मां हैं न, बच्चों की चिंता होती ही है.”

“हूं, सो तो है,” दीप्ति ने सिर हिलाया फिर बोली, “जानती है, कल मैं ने आयुषी को उस के पति के साथ ‘कीया’ गाड़ी में कहीं जाते देखा. क्या ठाठ हैं उस के. करोड़पति पति कम ड्राइवर.” यह बोल कर वह हंसी.

“हां, याद क्यों नहीं होगा. बल्कि हम तो अकसर मिलते रहते हैं,” कनक बोली, “पढ़ने में कितनी होशियार थी वह. याद है न, क्लास में किसी भी प्रश्न का जवाब सब से पहले वही देती थी. 12वीं में पूरे स्कूल में वही एक टौप आई थी. उसे टीचर बनने का बहुत शौक था. तभी तो उस ने ‘बीए’ करने के बाद ‘बीएड’ किया. लेकिन क्या फायदा हुआ इतनी पढ़ाई का? आखिरकार हाउसवाइफ ही बन कर रह गई न. वही घर, बच्चे, पति की देखभाल करो और क्या.”

“अब जरूरत भी क्या है उसे जौब करने की इतना मालदार पति जो मिल गया उसे. अब देख न, हम साथ में बड़े हुए, पढ़े और वह कहां से कहां पहुंच गई और हम वही, ढाक के तीन पात… सुबह बैग उठा कर औफिस भागो और शाम में हांफतेथकते घर पहुंचो,” बोल कर दीप्ति ठहाके लगा कर हंसी, तो कनक को मुसकराना पड़ा. “क्या हुआ, तू ऐसे चुप क्यों हो गई? मैं ने कुछ गलत कहा क्या?”

“नहीं, लेकिन…” एक गहरी सांस लेते हुए कनक ने बात अधूरी छोड़ दी फिर थोड़ा सीधे हो कर बैठती हुई बोली, “कभीकभी आंखों देखा और कानों सुना सच नहीं होता, डियर. तुम ने उसे उस के पति के साथ ‘कीया’ गाड़ी में घूमते देख कर सोच लिया कि वह दुनिया की सब से खुश लड़की है लेकिन तुझे शायद नहीं पता कि उस की लाइफ में क्याकुछ चल रहा है. एक रोज उस ने ही बताया था मुझे कि वह अपनी शादी से खुश नहीं है.”

“अच्छा!” दीप्ति ने हैरानी से कहा.

“हां यार, बेचारे उस के मांबाप ने अपनी एकलौती बेटी की शादी में अपनी सारी जमापूंजी यह सोच कर लगा दी कि इतने बड़े बिजनैसमैन के एकलौते बेटे से उस की शादी हो रही है, तो बेटी उम्रभर सुखी रहेगी, उसे कभी किसी बात का दु:ख नहीं होगा. यहां तक कि उन्होंने लड़के वालों की सारी शर्तें भी मान ली थीं.”

“शर्तें, कैसी शर्तें?” दीप्ति ने पूछा.

 

बिग बॉस 16 खत्म होने के बाद फराह खान ने दी पार्टी, सुंबुल नहीं आईं नजर

बिग बॉस 16 का अंत हो चुका है इस शो को अपा विनर मिल चुका है, सिंगर एमसी स्टेन इस शो के विनर बने हैं. लोगों के लंबे इंतजार के बाद से इस शो को विनर मिल ही गया.

बिग बॉस 16 में मौजूद सभी कंटेस्टेंट अपना बेहतर टॉस्क करने की कोशिश कर रहे थें, शो के खत्म होने के बाद साजिद खान की बहन फराह खान ने एक पार्टी दिया है जिसमें बिग बॉस के कुछ कंटेस्टेंट शिरकत लेने पहुंचे है.

 

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फराह खान इस बार बिग बॉस 16 को काफी सालों बाद होस्ट कर रही हैं, हालांकि वह हर सीजन में किसी न किसी वजह से घर में आती रहती हैं. इस सीजन में वह साजिद खान का साथ देने आईं हैं. उसी वक्त उन्होंने अपने घर पर पार्टी में इंवाइट कर दिया था.

फराह कि पार्टी में बिग बॉस का हर एक कंटेस्टेंट नजर आया. सभी शो में जमकर नाचते दिखें. इस पार्टी में निमृत अपने खास दोस्त  शिव ठाकरे के साथ पहुंची.गोल्डन कलर का ड्रेस पहनकर निमृत बिजलियां गिरा रही हैं.

 

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बिग बॉस की मांडली की तरह इस पार्टी की भी एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें, साजिद, एमसी स्टेन,अब्दुरोजिक,  निमृत और शिव ठाकरे एक साथ नजर आएं.इस पार्टी में सुंबुंल तौकीर खान की कमी रही.

एक्स वाइफ की शादी की खबर पर शालीन ने दिया ये बयान

बिग बॉस 16 के कंटेस्टेट शालीन भनोट 19 हफ्ते तक बिग बॉस के घर में समय बिताने के बाद से बाहर आ गए हैं, इसके बाद से लगातर वह कई इंटरव्यू दे चुके हैं, हालांकि घर से बाहर आने के बाद शालीन भनोट को जो सबसे ज्यादा झटका लगने वाली खबर मिली है.

शालीन भनोट की एक्स वाइफ दलजीत कौर दूसरी शादी करने जा रही हैं, दलजीत कौर शादी के बाद से केन्या शिफ्ट हो जाएंगी, एक इंटरव्यू में जब शालीन भनोट से पूछा गया कि दलजीत कौर की शादी के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे तो उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि भगवान उनका भला करें.

 

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पिछले महीने दलजीत ने बिजनेस मैन निखिल पटेल संग सगाई का एलान किया था, बता दें कि ये शादी नेपाल में हुई थी, आगे उन्होंने बताया था कि वह अपने पति और बेटे के साथ केन्या शिफ्ट हो जाएंगी.हालांकि उनका कहना है कि वह पिता से मिलवाने के लिए बेटे जेडन को भारत लेकर आया करेंगी.मार्च में निखिल और दलजीत कौर शादी करने जा रहे हैं.

दलजीत और शालीन की बात करें तो दोनों की मुलाकात साल 2006 में हुई थी, दोनों ने कुलवधू सीरियल में साथ में काम किया था. जिसके 3 साल बाद वह दोनों शादी के बंधन में बंध गए थें. साल 2015 में घरेलू हिंसा का आरोप लगाकर वह दोनों एक दूसरे से अलग हो गए थें.

बता दें कि शालीन भनोट की जर्नी को दलजीत कौर ने काफी ज्यादा सपोर्ट किया था.

Valentine’s Special – कल हमेशा रहेगा : भाग 1

‘‘अभि, मैं आज कालिज नहीं आ रही. प्लीज, मेरा इंतजार मत करना.’’

‘‘क्यों? क्या हुआ वेदश्री. कोई खास समस्या है?’’ अभि ने एकसाथ कई प्रश्न कर डाले.

‘‘हां, अभि. मानव की आंखों की जांच के लिए उसे ले कर डाक्टर के पास जाना है.’’

‘‘क्या हुआ मानव की आंखों को?’’ अभि की आवाज में चिंता घुल गई.

‘‘वह कल शाम को जब स्कूल से वापस आया तो कहने लगा कि आंखों में कुछ चुभन सी महसूस हो रही है. रात भर में उस की दाईं आंख सूज कर लाल हो गई है.

आज साढ़े 11 बजे का डा. साकेत अग्रवाल से समय ले रखा है.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ चलूं?’’ अभि ने प्यार से पूछा.

‘‘नहीं, अभि…मां मेरे साथ जा रही हैं.’’

डा. साकेत अग्रवाल के अस्पताल में मानव का नाम पुकारे जाने पर वेदश्री अपनी मां के साथ डाक्टर के कमरे में गई.

डा. साकेत ने जैसे ही वेदश्री को देखा तो बस, देखते ही रह गए. आज तक न जाने कितनी ही लड़कियों से उन की अपने अस्पताल में और अस्पताल के बाहर मुलाकात होती रही है, लेकिन दिल की गहराइयों में उतर जाने वाला इतना चित्ताकर्षक चेहरा साकेत की नजरों के सामने से कभी नहीं गुजरा था.

वेदश्री ने डाक्टर का अभिवादन किया तो वह अपनेआप में पुन: वापस लौटे.

अभिवादन का जवाब देते हुए डाक्टर ने वेदश्री और उस की मां को सामने की कुरसियों पर बैठने का इशारा किया.

मानव की आंखों की जांच कर डा. साकेत ने बताया कि उस की दाईं आंख में संक्रमण हो गया है जिस की वजह से यह दर्द हो रहा है. आप घबराइए नहीं, बच्चे की आंखों का दर्द जल्द ही ठीक हो जाएगा पर आंखों के इस संक्रमण का इलाज लंबा चलेगा और इस में भारी खर्च भी आ सकता है.

हकीकत जान कर मां का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. वेदश्री मम्मी को ढाढ़स बंधाने का प्रयास करती हुई किसी तरह घर पहुंची. पिताजी भी हकीकत जान कर सकते में आ गए.

वेदश्री ने अपना मन यह सोच कर कड़ा किया कि अब बेटी से बेटा बन कर उसे ही सब को संभालना होगा.

मानव जैसे ही आंखों में चुभन होने की फरियाद करता वह तड़प जाती थी. उसे मानव का बचपन याद आ जाता.

उस के जन्म के 15 साल के बाद मानव का जन्म हुआ था. इतने सालों के बाद दोबारा बच्चे को जन्म देने के कारण मां को शर्मिंदगी सी महसूस हो रही थी.  वह कहतीं, ‘‘श्री…बेटा, लोग क्या सोचेंगे? बुढ़ापे में पहुंच गई, पर बच्चे पैदा करने का शौक नहीं गया.’’

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‘‘मम्मा, आप ऐसा क्यों सोचती हैं.’’ वेदश्री ने समझाते हुए कहा, ‘‘आप ने मुझे राखी बांधने वाला भाई दिया है, जिस की बरसों से हम सब को चाहत थी. आप की अब जो उम्र है इस उम्र में तो आज की आधुनिक लड़कियां शादी करती दिखाई देती हैं…आप को गलतसलत कोई भी बात सोचने की जरूरत नहीं है.’’

गोराचिट्टा, भूरी आंखों वाला प्यारा सा मानव, अभी तो आंखों में ढेर सारा विस्मय लिए दुनिया को देखने के योग्य भी नहीं हुआ था कि उस की एक आंख प्रकृति के सुंदरतम नजारों को अपने आप में कैद करने में पूर्णतया असमर्थ हो चुकी थी. परिवार में सब की आंखों का नूर अपनी खुद की आंखों के नूर से वंचित हुआ जा रहा था और वे कुछ भी करने में असमर्थ थे.

‘‘वेदश्रीजी, कीटाणुओं के संक्रमण ने मानव की एक आंख की पुतली पर गहरा असर किया है और उस में एक सफेद धब्बा बन गया है जिस की वजह से उस की आंख की रोशनी चली गई है. कम उम्र का होने के कारण उस की सर्जरी संभव नहीं है.’’

15 दिन बाद जब वह मानव को ले कर चेकअप के लिए दोबारा अस्पताल गई तब डा. साकेत ने उसे समझाते हुए बताया तो वह दम साधे उन की बातें सुनती रही और मन ही मन सोचती रही कि काश, कोई चमत्कार हो और उस का भाई ठीक हो जाए.

‘‘लेकिन उचित समय आने पर हम आई बैंक से संपर्क कर के मानव की आंख के लिए कोई डोनेटर ढूंढ़ लेंगे और जैसे ही वह मिल जाएगा, सर्जरी कर के उस की आंख को ठीक कर देंगे, पर इस काम के लिए आप को इंतजार करना होगा,’’ डा. साकेत ने आश्वासन दिया.

वेदश्री भारी कदमों और उदास मन से वहां से चल दी तो उस की उदासी भांप कर साकेत से रहा न गया और एक डाक्टर का फर्ज निभाते हुए उन्होंने समझाया, ‘‘वेदश्रीजी, मुझे आप से पूरी हमदर्दी है. आप की हर तरह से मदद कर के मुझे बेहद खुशी मिलेगी. प्लीज, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिएगा, ये बात मैं दिल से कह रहा हूं.’’

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‘‘थैंक्स, डा. साहब,’’ उसे डाक्टर का सहानुभूति जताना उस समय सचमुच अच्छा लग रहा था.

मानव की आंख का इलाज संभव तो था लेकिन दुष्कर भी उतना ही था. समय एवं पैसा, दोनों का बलिदान ही उस के इलाज की प्राथमिक शर्त बन गए थे.

पिताजी अपनी मर्यादित आय में जैसेतैसे घर का खर्च चला रहे थे. बेटे की तकलीफ और उस के इलाज के खर्च ने उन्हें उम्र से पहले ही जैसे बूढ़ा बना दिया था. उन का दर्द महसूस कर वेदश्री भी दुखी होती रहती. मानव की चिंता में उस ने कालिज के अलावा और कहीं आनाजाना कम कर दिया था. यहां तक कि अभि जिसे वह दिल की गहराइयों से चाहती थी, से भी जैसे वह कट कर रह गई थी.

अगले भाग में पढ़ें- उस के होंठों पर एक मीठी मधुर मुसकान फैल गई.

Valentine’s Special: स्वच्छंदता का दूसरा नाम है वैलेंटाइन डे

वैलेंटाइंस डे के खिलाफ हर साल 14 फरवरी के दिन तथाकथित संस्कृति और धर्म के ठेकेदार संगठन मोरल पुलिसिंग के लिए एंटी रोमियो मिशन पर निकल पड़ते हैं. वे वैलेंटाइंस डे का मतलब भले न समझें लेकिन युवाओं को इस से दूर रहने का फरमान ऐसे सुनाते हैं मानो वैलेंटाइंस डे मनाते ही किसी तरह का कोई पतन हो जाएगा, संस्कृति को जंग लग जाएगा,रोमांस से देश का आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक विकास थम जाएगा. यदि कोई वाकई प्रेम का उत्सव मनाना चाहे तो उस में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

बंदिशें तोड़ सीखें प्यार की जबान

यूथ को इन धार्मिक और कट्टर बंदिशों की परवा न करते हुए दिल की सुननी चाहिए. प्यार, स्वच्छंदता और सौहार्द के उत्सव वैलेंटाइंस डे को दिल खोल कर मनाना चाहिए. फैस्टिवल कोई भी हो, किसी भी देश का हमें तो उसे उस की उन्मुक्त शैली और सकारात्मकता के लिए मनाना चाहिए. जब तक यूथ अपने दिल की करना और सुनना शुरू नहीं करेगा, उसे अपने जीवन का लक्ष्य नहीं दिखेगा क्योंकि उस का संबंध भी दिल से है. वैलेंटाइंस अगर प्यार की भाषा समझाता है, तो इस में हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

जिन देशों में यूथ को लव के बजाय हथियार की भाषा समझाई जाती है उन देशों की हालत खस्ता है. वहां का युवा बंदूक लिए आतंकी संगठनों से ट्रेनिंग ले रहा है. वह दोस्त, कैरियर और परिवार से दूर कुछ मौकापरस्त लोगों की बातों से ब्रेनवाश्ड हो कर अपनी जवानी में हिंसा और आतंक के शोले भर रहा है. अगर वैलेंटाइंस जैसे फैस्टिवल हर जगह मनाए जाने लगें तो युवाओं को गुमराह होने से रोका जा सकेगा. जिन युवा दिलों में एक बार प्रेम के बीज अंकुरित हो जाते हैं वहां फिर हिंसा की गुंजाइश नहीं रह जाती.

जोरजबरदस्ती का प्यार नहीं वैलेंटाइन

आजकल प्यार और एकतरफा प्यार के बीच एक महीन सी सीमारेखा रह गई है जबकि दोनों के बीच जमीनआसमान का फर्क है. प्यार तो दोनों युवा दिलों की आपसी रजामंदी, पसंद और प्रेम से होता है. लेकिन आजकल के युवा एकतरफा प्यार को भी वैलेंटाइन से जोड़ कर देखते हैं. वे किसी से प्यार करते हैं और बिना उस की मरजी जाने उसे अपना वैलेंटाइन बना देते हैं. और जब लड़कियां मना करती हैं तो इन का एकतरफा प्यार हवस, हिंसा और जनून की हद पार कर उन पर एसिड अटैक व रेप की विकृत शक्ल में सामने आता है.

ऐसी ही एक घटना गुजरात में हुई थी. वहां के भावनगर शहर में एकतरफा प्रेम में पागल युवक ने 3 सगी बहनों व एक बच्ची पर एसिड फेंक कर आत्महत्या कर ली थी. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़े  बताते हैं कि सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 2014-15 में 97 एसिड अटैक के मामले सामने आए, जिन में से सिर्फ 4 में ही सजा हो पाई. पश्चिम बंगाल के 78 मामलों में से सिर्फ 1 में ही अपराधी को सजा मिली. अन्य राज्यों की स्थिति भी अच्छी नहीं है. प्रेम में जोरजबरदस्ती नहीं इकरार होता है.

कैरियर और शिक्षा न हो इग्नोर

युवाओं को कैरियर, एजुकेशन को अहमियत देते हुए प्यार और दोस्ती को भी तरजीह देनी जरूरी है. दोनों के बीच संतुलन बहुत जरूरी है. कंपीटिशन के इस दौर में युवाओं के सिर पर तमाम तरह की भारीभरकम जिम्मेदारियां लाद दी गई हैं. पेरैंट्स चाहते हैं कि उन का बच्चा भी स्कूल या सोसायटी के सब से होशियार बच्चे की तरह न सिर्फ पढ़ाई में अव्वल आए बल्कि खेलकूद और अन्य क्षेत्रों में भी बैस्ट परफौर्म करे. इतनी ऐक्सपेक्टेशंस के बोझ तले दबा युवा न तो अपने दिल की सुन पाता है और न ही अपने रचनात्मक कार्यों के लिए समय निकाल पाता है. नतीजतन, तनाव और अकेलेपन का शिकार हो कर कभी वह आत्महत्या जैसा कदम उठता है तो कभी अपने हिंसक व्यवहार से समाज को सकते में डाल देता है.

ऐसे में हमारे समाज और देश में वैलेंटाइंस डे जैसे मौके की अहमियत और भी बढ़ जाती है. इस रोमांटिक फैस्ट के बहाने युवा कालेज, स्कूल और अपनी सोसायटी में एकदूसरे से अपने प्यार, दोस्ती और अपनत्व का इजहार कर लेते हैं और आपसी रिश्तों को सकारात्मक दिशा की ओर ले जाते हैं. पढ़ाई के साथसाथ अगर यूथ रोमांस भी कर लेता है तो इस में बुराई क्या है. हमारा समाज जिस तरह से युवाओं को कट्टरता व सामाजिक भेदभाव की खाई में धकेलना चाह रहा है, उस से उन्हें ऐसे ही रूमानी त्योहार बचा सकते हैं.

हर दिन हो वैलेंटाइंस डे

सिर्फ 14 फरवरी को रस्मी तौर पर वैलेंटाइंस डे मना कर खानापूर्ति करने के बजाय युवा इस फैस्ट की फिलौसफी को भी समझेंगे तो उन के लिए हर दिन वैलेंटाइन डे होगा. यह मान कर न चलें कि वैलेंटाइंस डे  सिर्फ गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड के लिए ही होता है. यह तो रिलेशनशिप में रूमानियत की बात करता है. 2 दोस्त भी वैलेंटाइन डे मना सकते हैं, जरूरी नहीं है कि केवल रूमानी प्रेम की ही अभिव्यक्ति हो. मातापिता, भाईबहन और टीचरस्टूडैंट्स भी वैलेंटाइंस डे के जरिए अपने पारस्परिक प्रेम, आदर व सद्भाव को जाहिर कर सकते हैं.

प्यार तो दुनिया का सब से खूबसूरत एहसास है, जो 2 दिलों में होता है और यह भी जरूरी नहीं कि यह प्यार सिर्फ पतिपत्नी या प्रेमीप्रेमिका का ही हो. प्यार तो हर रूप में प्यारा होता है. अगर आप का पार्टनर आप से सच्चा प्यार करता है तो उस के लिए वैलेंटाइन डे कोई माने नहीं रखता. हर दिन आप के लिए वैलेंटाइंस डे हो सकता है.

प्यार के लिए उपहार जरूरी नहीं

गिफ्ट का लेनदेन आपसी संबंधों, जेब और इच्छा पर निर्भर करता है, यह कोई रस्मी दबाव नहीं होना चाहिए कि आप अपनी गर्लफ्रैंड, दोस्त या हसबैंड को वैलेंटाइंस डे के दिन कोई महंगा तोहफा दे कर ही अपने प्यार का इजहार करें. गिफ्ट तो सिंबौलिक होते हैं. संबंधों में गर्माहट तो आपसी समझ, परस्पर सम्मान से आती है. दिखावे के नाम पर अपनी भावनाओं और प्यार को बाजार के महंगे गिफ्ट वाले तराजू से न तोलें.

ऐसा बिलकुल नहीं है कि वैलेंटाइंस डे निकल जाने के बाद आप का प्यार खत्म हो जाएगा. जो बात एक चौकलेट से कही जा सकती है उस के लिए चौकलेट के बड़े और महंगे बौक्स की जरूरत नहीं. दरअसल, प्यार में कोई सौदा नहीं होता.

प्यार बांटते चलो

यंग जेनरेशन को 14 फरवरी का जितनी बेसब्री से इंतजार रहता है उतनी बेताबी शायद किसी और दिन के लिए नहीं होती. प्रेम का उत्सव व प्यार का त्योहार वैलेंटाइन डे सिर्फ प्यार को एकदूसरे तक सीमित रखना नहीं सिखाता है. नफरत और हिंसा से भरे इस समाज, दुनिया को भी प्यार की भाषा सिखाना असल मानो में वैलेंटाइन डे मनाना होगा.

आज हर कोई तनाव, हिंसा, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, लालच, साजिश, अकर्मण्यता, धार्मिक रूढि़यों, अंधविश्वास, चमत्कार और शौर्टकट के जाल में उलझा है, समाज से जैसे प्रेम शब्द गायब ही हो गया है. अगर वैलेंटाइंस डे मनाना है तो समाज में भी प्यार की भावना का संचार करना होगा ताकि सारी युवा जाति, धर्म और ऊंचनीच की बेडि़यां तोड़ कर एक स्वस्थ समाज में स्वस्थ प्यार का संचार करे. तब होगा   वैलेंटाइंस डे का असली सैलिब्रेशन.

ऐसे हुई वैलेंटाइन की शुरुआत

वैलेंटाइन डे की शुरुआत के बारे में कहा जाता है कि यह फैस्टिवल अमेरिका में संत वेलेटाइन की याद में मनाया जाता है. इस की शुरुआत सब से पहले अमेरिका में हुई फिर इंगलैंड और इस के बाद धीरेधीरे यह दिन समूचे विश्व में मनाया जाने लगा. अलगअलग देशों में इसे अलगअलग नाम से जाना जाता है.

भारत में वैलेंटाइन डे की शुरुआत 1992 से हुई. 1969 में कैथोलिक चर्च ने कुल 11 सैंट वैलेंटाइन के होने की पुष्टि की. उन के सम्मान में 14 फरवरी को पर्व मनाए जाने की घोषणा की गई. वैलेंटाइन डे एक सप्ताह तक मनाया जाना वाला पर्व है, जिस की शुरुआत 7 फरवरी से होती है और अलगअलग दिन यह अलग नाम से मनाया जाता है.

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