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पशुओं में अपच: समाधान भी है जरूरी

लेखक-डा. नगेंद्र कुमार त्रिपाठी डा. एनके त्रिपाठी, वैज्ञानिक, पशुपालन, कृषि विज्ञान केंद्र, लखीमपुर खीरी

भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ ही पशुधन में भी प्रथम स्थान रखता है. पशुओं की देखभाल में पशुपालकों को अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पशुपालकों को पशु स्वास्थ्य की बेसिक जानकारी होना बहुत जरूरी है, जिस से उन में होने वाले साधारण रोगों को पशुपालक सम?ा सकें और उन का उचित उपचार किया जा सके. अपच दुधारू पशुओं में होने वाली एक ऐसी समस्या है, जो दुग्ध उत्पादन को कम कर पशुपालकों को माली नुकसान पहुंचाती है. गायों का प्रमुख पाचन अंग रूमेन है, जहां घास, भूसा, हरा चारा व दाना का माइक्रोबियल गतिविधि के कारण संशोधन होता है.

अपच की स्थिति में अधिक मात्रा में बिना पचा हुआ भोजन रूमेन में जमा हो जाता है, जिस के कारण रूमेन के काम करने की क्षमता और वहां उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी प्रभावित होते हैं. जब रूमेन सही तरीके से काम नहीं कर पाता है, तो जानवरों में इस के कारण अनेक तरीकों की समस्याएं जैसे हाजमा खराब होना, अफरा आदि उत्पन्न करती हैं. नतीजतन, उत्पादन क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है. अपच की समस्या सीधे डेरी फार्म की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है, इसलिए दुधारू पशुओं की सामान्य शारीरिक क्रिया व उत्पादन क्षमता में तालमेल बनाए रखने के लिए उन के भोजन व प्रबंधन में पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत होती है.

अपच के मुख्य कारण प्रबंधन खाने में अधिक मात्रा में दाना देने से पशुओं में अपच की समस्या आती है. कम गुणवत्ता वाला चारा खिलाना या अधिक मात्रा में दलहनी हरा चारा व नई पत्ती वाला हरा चारा खिलाना. खाद्यान्न के प्रकार में अचानक ही परिवर्तन होना. वातावरणीय कारण गरम वातावरण : अधिक तापमान का होना भी अपच का मुख्य कारण होता है.

नम हरा चारा : इस तरह का चारा मुख्यत: मानसून के समय मिलता है, जो पशुओं को खिलाने से उन में अपच की समस्या पैदा होती है. पशुकारक कारण ट्रांजिशन पीरियड (प्रसव अवस्था के पहले और बाद) : अधिक उम्र्र में सड़ागला खाना, एक ही करवट लेटे रहने और आंतों में रुकावट होने के कारण भी अपच की समस्या होती है. दुधारू गायों में आमतौर पर इस तरह का अपच होता है :

* अम्लीय अपच : रूमेन एसिडोसिस एक महत्त्वपूर्ण पोषण संबंधी विकार है. यह आमतौर पर उत्पादकता बढ़ाने के लिए अत्यधिक किण्वन योग्य भोजन खिलाने के कारण होता है. स्टार्च खिलाने से अत्यधिक किण्वन होने के कारण रूमेन में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है. ये बैक्टीरिया रूमेन में अधिक मात्रा में वोलेटाइल फैटी एसिड यानी वीएफए और लैक्टिक एसिड का उत्पादन करने लगते हैं, जिस के फलस्वरूप रूमेन एसिडोसिस और अपच की समस्या उत्पन्न होती है.

* क्षारीय अपच : अत्यधिक मात्रा में प्रोटीनयुक्त भोजन या गैरप्रोटीन नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ खाने से रूमेन एल्कालोसिस अथवा क्षारीय अपच की समस्या दुधारू पशुओं में देखी जाती है. इस रोग की विशेषता यह है कि रूमेन में अमोनिया अत्यधिक बनने लगता है, जिस के कारण आहार नाल संबंधी जैसे अपच, लिवर, किडनी, परिसंचरण तंत्र व तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी आने लगती है. * वेगस अपच : मूल रूप से यह विकार वेट्रल वेगस तंत्रिका को प्रभावित करने वाले घावों, चोट, सूजन या दबाव के परिणामस्वरूप होता है. यह समस्या मुख्य रूप से मवेशियों में देखी जाती है, परंतु कभीकभी भेड़ों में भी यह विकार देखा गया है. अपच से जुड़ी और भी समस्याएं रूमिनल एसिडोसिस : रूमेन के पीएच का कम हो जाना. रूमिनल एल्क्लोसिस : रूमेन के पीएच का अधिक बढ़ जाना. अफरा यानी गैस का पेट में रुक जाना.

अपच के लक्षण

* पशुओं का जुगाली कम करना.

* पशुओं में भूख की कमी.

* दूध का कम देना.

* डिहाइड्रेशन.

* पशु सुस्त हो जाता है और सूखा व सख्त गोबर करता है.

उपचार * पहचान होने पर सब से पहले इस के कारण का निवारण करना चाहिए, जैसे यदि खराब चारा हो, तो तुरंत बदल देना चाहिए या फिर पेट में कृमि हो, तो उपयुक्त कृमिनाशक दवा देनी चाहिए. * पेट की मालिश आगे से पीछे की ओर व खूंटे पर बंधे पशु को नियमित व्यायाम कराना चाहिए. * देशी उपचार हलदी, कुचला, अजवाइन, काली मिर्च, अदरक, मेथी, चिरायता, लौंग, पीपर इत्यादि का उपयोग पशु के वजन के हिसाब से किया जा सकता है. एलोपैथिक उपचार * फ्लूड उपचार यानी अपच से प्रभावित पशु को शरीर के अनुसार पर्याप्त मात्रा में डीएनएस, आरएल और एनएस देना चाहिए. * मैग्नीशियम हाईड्रोक्साइड 100-300 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी के साथ देना चाहिए. * मैग्नीशियम कार्बोनेट 10-80 ग्राम. * सोडियम बाई कार्बोनेट 1 ग्राम प्रति किलोग्राम भार के अनुसार दें. * विनेगर (सिरका) 5 फीसदी 1 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम भार के अनुसार देना चाहिए. * एंटीबायोटिक जैसे पेनिसिलीन, टायलोसीन, सल्फोनामाइड, टेट्रासाइकिलिन का उपयोग किया जा सकता है. साथ ही, एंटीहिस्टामिनिक (एविल, सिट्रीजिन) व बी. कौंप्लैक्स इंजैक्शन दिया जा सकता है. इन सभी एलोपैथिक दवाओं का उपयोग माहिर पशु डाक्टर की सलाह से किया जाना चाहिए.

अपच की रोकथाम * पशुओं को संपूर्ण मिश्रित भोजन खिलाएं. दाने व चारे को अलगअलग नहीं खिलाना चाहिए.

* पशुओं को रोज निर्धारित समय पर ही भोजन दें.

* साफ पानी ही पीने के लिए पशुओं को देना चाहिए.

* चारे में परिवर्तन धीरेधीरे तकरीबन 21 दिनों में करना चाहिए.

* भोजन के साथ कैल्शियम प्रोपिओनेट, सोडियम प्रोपिओनेट और प्रोपायलीनग्लायकोल आदि को ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में दिया जा सकता है.

* गरमी के मौसम में छायादार, हवादार और ठंडी जगह पर पशुओं को रखना चाहिए, ताकि उन में कम से कम गरमी का बुरा असर पड़े. अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष से संपर्क करें.

गर्भवती दुधारू पशुओं की देखभाल ज्यादातर दुधारू पशु ब्याने के 3 से 4 महीने के अंदर गर्भ धारण कर लेते हैं. गर्भ की शुरुआत में उन को कोई खास अतिरिक्त आहार देने की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन जब गर्भ की अवस्था 5 माह की हो जाती है, तो गर्भ में पल रहा भ्रूण अपने विकास अवस्था में पोषक तत्त्वों के लिए मां पर ही निर्भर करता है. दुधारू पशु को गर्भकाल के 5 महीने के बाद पोषक तत्त्वों की ज्यादा जरूरत पड़ती है. इस के लिए उसे जो दूध उत्पादन के लिए आहार दिया जा रहा था, उस के अतिरिक्त गर्भ के विकास के लिए 2 किलोग्राम अतिरिक्त दाना देना चाहिए. इस से गर्भ में पल रहे बच्चे का भलीभांति विकास होगा एवं जन्म के समय उस का वजन भरपूर होगा. इस की वजह से दुधारू पशु ब्यांत के बाद अच्छा दूध उत्पादन करेगा. यह भी ध्यान रखना होगा कि अगर आप दुधारू पशु से दूध उत्पादन ले रहे हैं,

तो डेढ़ से 2 माह पहले उस के दूध को सुखाना होगा, जिस से वह अपने स्वास्थ्य को फिर से अगले दूध उत्पादन के लिए तैयार कर ले. दुधारू पशु को कम से कम 5 किलोग्राम भूसे के साथ 20 से 25 किलोग्राम हरा चारा एवं 3 किलोग्राम दाना मिश्रण अवश्य देना चाहिए. दाने में चोकर एवं खली के साथसाथ 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर, जिस में कैल्शियम, फास्फोरस एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्व की भरपुर मात्रा हो, देनी चाहिए. अगर हरा चारा बिलकुल न मिल रहा हो, तो दाने की मात्रा 3 किलोग्राम से बढ़ा कर 5 किलोग्राम तक कर देनी चाहिए. गर्भवती पशु को ऊंचीनीची जगह से बचाना चाहिए एवं अन्य पशुओं से दूर रखना चाहिए, अन्यथा आपस में लड़ने की अवस्था में गर्भ को नुकसान पहुंचने का खतरा रहेगा. अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिकों से संपर्क करें या लेखक द्वारा दिए गए पते पर समस्या का समाधान करें.

तुम सिर्फ मेरी हो: प्यार और तकरार की अनकही कहानी

14 मई, 2017 की रात देवरिया जिले के थाना तलकुलहवा के गांव बघड़ा महुआरी का रहने वाला 42 साल का शरीफ अंसारी खाना खा कर लेटा था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उस ने मोबाइल उठा कर देखा तो नंबर जानापहचाना था. उस ने फोन रिसीव कर के बात की. उस के बाद उठ कर पत्नी से कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’

इतना कह कर शरीफ जिन कपड़ों में था, उन्हीं में घर से बाहर निकल गया. उस के जाने के बाद पीछेपीछे पत्नी जसीमा भी निकल गई. घर से निकलते समय जसीमा ने छोटे बेटे अजहरुद्दीन से वही कहा था, जो शरीफ ने घर से निकलते समय कहा था.

थोड़ी देर में लौट कर आने को कह कर गए पतिपत्नी पूरी रात लौट कर नहीं आए तो अब्बू की चिंता में अजहरुद्दीन और उस की पत्नी हसीना ने किसी तरह रात बिताई. सवेरा होते ही अजहरुद्दीन अब्बू की तलाश में निकल पड़ा. 8 बजे के करीब गांव से एक किलोमीटर दूर शाहपुर पुरैना नहर के पास शरीफ अंसारी की सिरकटी लाश मिली. इस के बाद बघड़ा गांव के दक्षिणी गंडक नदी के पास जसीमा की सिरकटी लाश मिली.

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खबर पा कर अजहरुद्दीन शाहपुर पुरैना नहर पर पहुंचा तो वहां काफी भीड़ जमा थी. हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से शरीफ की हत्या की थी. सिर काटने के साथ उस के दोनों हाथ भी काट कर अलग कर दिए थे. शरीफ की लाश से करीब 1 किलोमीटर दूर जसीमा की लाश पड़ी थी.

हत्यारे ने उस का भी सिर धड़ से अलग करने के साथ, उस का बायां हाथ, बायां वक्षस्थल और स्त्री अंग पर धारदार हथियार से वार किए थे. थोड़ी ही देर में इस हत्याकांड की खबर जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी.

जिस तरह से पतिपत्नी की हत्याएं की गई थीं, उस से साफ लग रहा था कि हत्यारे को मृतकों से काफी नफरत थी. सूचना पा कर शरीफ के सासससुर भी आ गए थे. दिल दहला देने वाली इस घटना की सूचना थाना तरकुलहवा के थानाप्रभारी राजाराम यादव को भी मिल चुकी थी.

सूचना मिलते ही वह भी सहयोगियों एसआई शैलेंद्र कुमार, भूपेंद्र सिंह, गुफरान अंसारी, वीरबहादुर सिंह, सिपाही राहुल सिंह, मनीष दुबे, प्रद्युम्न जायसवाल, रविशंकर श्रीवास्तव, कैलाशचंद्र यादव, दुर्गेश चौरसिया, श्यामनारायण पांडेय, देवव्रत यादव और अनुराग यादव के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे.

चलने से पहले उन्होंने इस घटना की सूचना एसपी का कार्यभार देख रहे एडीशनल एसपी चिरंजीवनाथ सिन्हा और सीओ (नगर) अजय सिंह को दे दी थी, इसलिए थोड़ी ही देर में ये अधिकारी भी घटनास्थल पर आ गए थे. जब इस बात की जानकारी गोरखपुर जोन के आईजी मोहित अग्रवाल और डीआईजी नीलाब्जा चौधरी को हुई तो ये अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल के निरीक्षण के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि घटना को कम से कम 3 लोगों ने मिल कर अंजाम दिया होगा. लेकिन अहम सवाल यह था कि हत्यारों ने इस तरह जघन्य तरीके से ये हत्याएं क्यों की थीं? आखिर हत्यारों से मृतकों की ऐसी क्या दुश्मनी थी?

पुलिस ने मृतकों के बेटे अजहरुद्दीन से उस की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी से दुश्मनी होने से साफ मना कर दिया. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने लौट कर राजाराम यादव ने मृतकों के छोटे बेटे अजहरुद्दीन की ओर से अपराध संख्या 106/2017 पर भादंवि की धरा 302 एवं 4/32 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी.

हत्यारों को पकड़ने के लिए चिरंजीवनाथ सिन्हा ने पुलिस की 3 टीमें गठित कीं. एक टीम की कमान उन्होंने खुद संभाली तो दूसरी टीम की कमान राजाराम यादव को सौंपी. तीसरी टीम क्राइम ब्रांच की थी. उसी शाम देवरिया के एसपी के रूप में राजीव मल्होत्रा को भेजा गया.

पूछताछ में अजहरुद्दीन ने बताया था कि रात 12 बजे के करीब किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद अब्बू थोड़ी देर में लौट आने की बात कह कर घर से निकल गए थे. अम्मी भी अब्बू के पीछेपीछे चली गई थीं. वह पूरी रात दोनों का इंतजार करता रहा, पर वे लौट कर नहीं आए. सुबह वह अम्मीअब्बू की तलाश में निकला तो उन की लाशें मिलीं.

फोन आने की जानकारी पा कर पुलिस ने मृतक शरीफ के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. घटना वाली रात 12 बजे के करीब उस के मोबाइल पर जो आखिरी फोन आया था, उस पर शरीफ की फोन करने वाले से करीब 1 मिनट बात हुई थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर उसी गांव के रहने वाले अरविंद प्रसाद का निकला.

पूछताछ में पता चला कि अरविंद और शरीफ दोनों गहरे मित्र थे. जंगल में लकड़ी काटने दोनों एक साथ जाया करते थे. इस के अलावा अरविंद गांव के बाहर अंडे की दुकान लगाता था. अरविंद और उस के छोटे भाई का शरीफ के घर काफी आनाजाना था. इस का मतलब था, दोनों परिवारों में संबंध काफी मधुर थे.

पुलिस को अरविंद पर शक हुआ तो संदेह के आधार पर पुलिस उसे और उस के छोटे भाई को हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए थाना तरकुलहवा ले आई. राजाराम यादव ने दोनों भाइयों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की. इस पूछताछ में अरविंद के भाई ने बताया कि अरविंद रात से ही काफी परेशान और बेचैन था. शायद उसी ने शरीफ और उस की पत्नी जसीमा की हत्या की है.

इस के बाद पुलिस और सख्त हो गई. इस के बावजूद अरविंद पुलिस को दाएंबाएं घुमाता रहा. लेकिन जब अरविंद को लगा कि पुलिस उसे छोड़ने वाली नहीं है तो उस ने शरीफ और उस की पत्नी जसीमा खातून की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पुलिस को दोनों हत्याओं की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

करीब 35 साल का अरविंद प्रसाद जिला देवरिया के थाना तरकुलहवा के गांव बघड़ा महुआरी में रहता था. उस के पिता रामदास प्रसाद उर्फ गेंदा प्राइवेट नौकरी करते थे. भाईबहनों में अरविंद सब से बड़ा था. उसे कोई नौकरी नहीं मिली तो उस ने गांव के बाहर अंडे की दुकान खोल ली. इस से उस का खर्च आसानी से निकल जाता था.

अरविंद की गांव के ही रहने वाले शरीफ अंसारी से खूब पटती थी. शरीफ मेहनतमजदूरी कर के परिवार को पाल रहा था. शरीफ और अरविंद रात में जंगल से चोरी से लकडि़यां काट कर भी बेचते थे. अरविंद की यारी शरीफ से हुई तो यह यारी घर की दहलीज लांघ कर कमरे के अंदर तक पहुंच गई.

अरविंद शरीफ के घर बेरोकटोक आताजाता था. इसी आनेजाने में अरविंद का दिल शरीफ की पत्नी जसीमा खातून पर आ गया. शरीफ के कहीं चल जाने पर अरविंद घंटों उस के घर बैठ कर जसीमा से बातें करने के साथ हंसीमजाक भी किया करता था. जसीमा को यह सब बहुत अच्छा लगता था. इसी का नतीजा था कि 4 बच्चों की मां होने के बावजूद जसीमा उस के प्यार में कैद हो गई.

इस के बाद अरविंद अपनी कमाई जसीमा पर लुटाने लगा. दोनों अपने इस संबंध से खुश थे, लेकिन उन के इस अवैध संबंधों की खुशबू गांव में फैली तो बात शरीफ अंसारी तक पहुंच गई. शरीफ को यह बात बड़ी बुरी लगी. अरविंद उस का दोस्त था. लेकिन उस ने दोस्ती में दगा की थी. उस ने पत्नी को ही नहीं, अरविंद को भी आड़े हाथों लिया. इतना ही नहीं, गुस्से में उस ने अरविंद को कई थप्पड़ जड़ कर पत्नी से दूर रहने को कहा.

इस के बाद अरविंद शरीफ के घर जाने की कौन कहे, उधर देखना भी बंद कर दिया. इसी तरह 6-7 महीने बीत गए. इस बीच अरविंद न शरीफ से मिला और न ही उस के घर गया. लेकिन परपुरुष की आदी हो चुकी जसीमा के गांव के अन्य पुरुषों से नाजायज संबंध बन गए. अरविंद से यह बात छिपी नहीं रही. जसीमा की इस बेवफाई से अरविंद चिढ़ गया.

एक दिन अरविंद शरीफ की नजरें बचा कर जसीमा से उस के घर जा कर मिला. उस ने उसे समझाया कि वह जो कर रही है, ठीक नहीं कर रही है. वह सिर्फ उस की है. उसे कोई देखे या छुए, उसे अच्छा नहीं लगता. पर जसीमा ने उस की एक नहीं सुनी और उसे खुद से दूर रहने को कहा. यही नहीं, उस ने कहा कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस की पति से शिकायत कर देगी.

फिर क्या था, अरविंद और चिढ़ गया. उस ने जसीमा से बदला लेने का निश्चय कर लिया. इस के लिए उस ने उस के पति शरीफ को विश्वास में लिया और अपनी गलती के लिए माफी मांग ली. शरीफ ने सारे गिलेशिकवे भुला दिए और उसे माफ कर दिया.

इस के बाद दोनों पहले जैसे दोस्त बन गए. अरविंद के मन में क्या चल रहा है, शरीफ को पता नहीं था. एक तीर से 2 निशाने साधने वाली बात सोच कर अरविंद ने शरीफ से उस की पत्नी के गैरमर्दों से संबंध वाली बात बता दी.

पहले तो शरीफ ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जल्दी ही जसीमा की सच्चाई उस के सामने आ गई. फिर तो उस ने जसीमा की जम कर खबर ली. लेकिन इस के बाद भी अरविंद अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ. उस ने दिल की बात जसीमा से कही तो उस ने उसे झिड़क कर भगा दिया.

जसीमा का जवाब सुन कर अरविंद ठगा सा रह गया. उस के मना करने से अरविंद का दिल टूट गया. अब वह ईर्ष्या की आग में जलने लगा. इसी ईर्ष्या ने उस के दिल में नफरत के बीज बो दिए. इस का नतीजा यह निकला कि उस ने शरीफ और उस की पत्नी को सजा देने का मन बना लिया.

इस की वजह यह थी कि शरीफ द्वारा की गई बेइज्जती वह अभी तक भुला नहीं पाया था. जसीमा से तो वह नाराज था ही. नफरत की आग में जल रहे अरविंद ने दोनों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

अरविंद ने दोनों को सबक सिखाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार उस ने 14 मई, 2017 की रात 12 बजे शरीफ को फोन कर के शाहपुर पुरैना के जंगल में लकड़ी काटने के लिए बुलाया. शरीफ अजहरुद्दीन से थोड़ी देर में लौटने को कह कर घर से निकल गया.

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अरविंद पूरी तैयारी के साथ आया था. उस के पास लकड़ी काटने वाला तेज धार वाला दाब था. थोड़ी देर में शरीफ उस के पास पहुंचा तो अरविंद ने उसे लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ने को कहा. शरीफ जैसे ही पेड़ पर चढ़ने के लिए आगे बढ़ा, पीछे से अरविंद ने पूरी ताकत से उस की गरदन पर दाब का वार कर दिया.

वार इतना जोरदार था कि उसी एक वार में शरीफ का सिर धड़ से कट कर अलग हो गया. बेइज्जती का बदला लेने के लिए अरविंद ने उस के दोनों हाथ और पैर काट कर अलग कर दिए. संयोग से तभी पति के पीछेपीछे जसीमा भी वहां पहुंच गई.

उसे देख कर अरविंद घबरा गया. पकड़े जाने के डर से उस ने उसी दाब से उसे भी मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद पहचान छिपाने के लिए उस ने उस का भी सिर धड़ से काट कर 1 किलोमीटर दूर गंडक नदी में ले जा कर फेंक दिया. साक्ष्य मिटाने के लिए जसीमा की लाश को उस ने ले जा कर पुरैना नहर के पास फेंका. इस के बाद गंडक नदी में खून साफ कर के घर लौट आया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने अरविंद को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. प्रेम और क्रोध में अंधे अरविंद ने जो किया, वह गलत था. अब उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है. लेकिन अब पछताने से क्या होगा? उस ने 2 लोगों की जान तो ले ही ली. अब उसे इस की सजा अवश्य मिलेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दुख में अटकना नहीं : नंदिता मयंक का बदलता रूप देखकर क्यों घबरा गई

मृत्यु को मात दे कर जब नंदिता घर लौटीं और मयंक का बदला रूप देखा तो उन को लगा, सारी मोहमाया, प्यार व विश्वास के अटूट बंधन दरक गए हैं. ऐसे में उन के जीवन में ऐसा क्या हुआ जिस ने उन्हें दुखों से सहज पार पाने की राह दिखाई?

नंदिता ने जल्दी से घर का ताला खोला. 6 बज रहे थे. उन का पोता यश स्कूल से आने ही वाला था. उन्होंने फौरन हाथमुंह धो कर यश के लिए नाश्ता तैयार किया, साथसाथ डिनर की भी तैयारी शुरू कर दी. उन के हाथ खूब फुरती से चल रहे थे, मन में भी ताजगी सी थी. वे अभीअभी किटी पार्टी से लौटी थीं. सोसायटी की 15 महिलाओं का यह ग्रुप सब को बहुत अपना सा लगता था. सब महिलाओं को महीने के इस दिन का इंतजार रहता था. ये सब महिलाएं उम्र में 30 से 40 के करीब थीं. नंदिता उम्र में सब से बड़ी थीं लेकिन उन की चुस्तीफुरती देखते ही बनती थी. अपने शालीन और मिलनसार स्वभाव के चलते वे काफी लोकप्रिय थीं.नंदिता टीचर रही थीं और अभीअभी रिटायर हुई थीं. योग और सुबहशाम की सैर ने उन्हें चुस्तदुरुस्त रखा हुआ था. उन के इंजीनियर पति का कुछ साल पहले देहावसान हुआ था. वे अपने इकलौते बेटे मयंक और बहू किरण के साथ रहती थीं.

किटी पार्टी से जब वे घर आती थीं, उन का मूड बहुत तरोताजा रहता था. सब से मिलना जो हो जाता था. किरण भी औफिस जाती थी. घर की अधिकतर जिम्मेदारियां नंदिता ने अपने ऊपर खुशीखुशी ली हुई थीं. मयंक और किरण शाम को आते तो वे रात का खाना तैयार कर चुकी होती थीं. किरण घर में घुसते ही चहकती, ‘‘मां, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है, आप ने तो सब काम कर लिया, कुछ मेरे लिए भी छोड़ देतीं.’’

मयंक हंसता, ‘‘किरण, क्या सास मिली है तुम्हें, भई वाह.’’

किरण नंदिता के गले में बांहें डाल देती, ‘‘सास नहीं, मां हैं मेरी.’’

बहूबेटे के इस प्यार पर नंदिता का मन खुश हो जाता, कहतीं, ‘‘सारा दिन तो अकेली रहती हूं, काम करते रहने से समय का पता नहीं चलता.’’

नंदिता का हौसला सब ने उन के पति की मृत्यु पर देख लिया था, उन के बेटेबहू का लियादिया स्वभाव किसी को पसंद नहीं आया था.

अपने पति की मृत्यु के बाद जब अगले महीने की किटी पार्टी में नंदिता आईं तो सब महिलाएं उन के दुख से दुखी व गंभीर थीं लेकिन उन्होंने अपनेआप को बहुत ही सामान्य रखा. सब महिलाओं के दिल में उन के लिए इज्जत और बढ़ गई. उन्होंने सब के चेहरे पर छाई गंभीरता को दूर करते हुए कहा, ‘‘तुम लोग याद रखना, सुख में भटकना नहीं और दुख में अटकना नहीं, जब सुख मिले उसे जी लो, दुख मिले उसे भी उतनी ही खूबी से जिओ, बिना किसी शिकायत के. उस का अंश, उस की खरोंचें मन पर न रहने दो. उस के परिणाम भी बड़ी हिम्मत से स्वीकार लो और सहज ही पार हो जाओ. जीवन का यही तो मर्म है जो मैं समझ चुकी हूं.’’

सब महिलाएं नम आंखों से उन्हें सुनती रहीं. स्वभाव से अत्यंत नम्र, सहनशील, शांत, स्वाभिमानी, अपनी अपेक्षा दूसरों के सुखों और भावनाओं का ध्यान रखने वाली, जितनी तारीफ करें उतनी कम. इतने सारे गुण इस एक में कैसे आ गए, यह सोच कई बार महिलाएं हैरान रह जातीं.

फिर उन में आए कुछ परिवर्तन सभी ने महसूस किए. वे अचानक सुस्त और बीमार रहने लगीं और जब वे किटी में भी नहीं आईं तो सब हैरान हुईं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, उन्हीं की बिल्ंिडग में रहने वाली रेनू और अर्चना उन्हें देखने गईं तो वे बहुत खुश हुईं, ‘‘अरे, आओ, आज कैसी रही पार्टी, लेटेलेटे तुम्हीं लोगों में मन लगा रहा आज तो मेरा.’’

उन्हें कई दिनों से बुखार था, उन के कई टैस्ट हुए थे, रिपोर्ट आनी बाकी थी. उन की तबीयत ज्यादा खराब हुई तो उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा. सब उन्हें देखने अस्पताल जाते रहे. वे सब को देख कर खुश हो जातीं.

उन की रिपोर्ट्स आ गईं. मयंक को बुला कर डा. गौतम ने कहा, ‘‘मि. मयंक, आप की मदर का एचआईवी टैस्ट पौजिटिव आया है, इंफैक्शन अब स्टेज-3 एड्स में बदल गया है जिस की वजह से उन के शरीर के कई अंग जैसे किडनी, बे्रन आदि प्रभावित हुए हैं.’’

मयंक अवाक् बैठा रहा, थोड़ी देर बाद अपने को संयत कर बोला, ‘‘मम्मी तो अपने स्वास्थ्य का इतना ध्यान रखती हैं, धार्मिक हैं,’’ फिर थोड़ा सकुचाते हुए बोला, ‘‘पापा भी कुछ साल पहले नहीं रहे, उन्हें यह बीमारी कहां से हो गई?’’

डा. गौतम गंभीरतापूर्वक बोले, ‘‘आप तो पढ़ेलिखे हैं, धर्म और एड्स का क्या लेनादेना? क्या शारीरिक संबंध ही एक जरिया है एचआईवी फैलने का और अब कब, क्यों, कैसे से ज्यादा जरूरी है कि उन की जान कैसे बचाई जाए? आज कई तरह के इलाज हैं जिन से इस बीमारी को रोका जा सकता है पर सब से जरूरी है उन्हें इस बारे में बताना जिस से वे खुद भी सारी सावधानियां बरतें और इलाज में हमारा साथ दें क्योंकि अब हमें उन्हें एड्स सैल में शिफ्ट करना पड़ेगा.’’

मयंक ने डा. गौतम को ही उन्हें बताने के लिए कहा. पता चलने पर नंदिता सन्न रह गईं. कुछ देर बाद मयंक आया तो मां से नजरें मिलाए बिना सिर नीचा किए बैठा रहा. नंदिता गौर से उस का चेहरा देखती रहीं, फिर अपने को संभालती हुई हिम्मत कर के बोलीं, ‘‘इतने चुप क्यों हो, मयंक?’’

‘‘मां, आप को यह बीमारी कैसे…’’

बेटे को सारी स्थिति समझाने के लिए स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने बताना शुरू किया, ‘‘तुम्हें याद होगा, तुम्हारे पापा का जब वह भयंकर ऐक्सिडैंट हुआ था तो उन्हें खून चढ़ाना पड़ा था. उस समय किसी को होश नहीं था और जिन लोगों ने ब्लड डोनेट किया था उन में से शायद किसी को यह बीमारी थी, ऐसा डाक्टरों ने बाद में अंदाजा लगाया था. तुम्हारे पापा उस दुर्घटना में उस समय तो बच गए लेकिन इस बीमारी ने उन के शरीर में तेजी से फैल कर उन की जान ले ली थी. मैं ने सब को यही बताया था कि उन का हार्टफेल हुआ है. मैं उन की मृत्यु को कलंकित नहीं होने देना चाहती थी.

‘‘तुम्हें याद होगा तुम भी उस समय होस्टल में थे और उन की मृत्यु के बाद ही घर पहुंचे थे. हमारा समाज ऊपर से परिपक्व दिखता है पर अंदर से है नहीं. एड्स को ले कर हमारा समाज आज भी कई तरह के पूर्वाग्रहों से पीडि़त है.’’

मयंक की आंखें मां का चेहरा देखतेदेखते भर आईं. वह उठा और चुपचाप घर लौट गया.

नंदिता को एड्स सैल में शिफ्ट कर दिया गया. वे सोचतीं यह बीमारी इतनी भयानक नहीं है जितना कि इस से बनने वाला माहौल. सब अपनेअपने दर्द से दुखी थे. उस वार्ड में 60 साल के बूढ़े भी थे और 18 साल के युवा भी. उस माहौल का असर था या बीमारी का, उन की हालत बद से बदतर होती जा रही थी. रोज किसी न किसी टैस्ट के लिए उन का खून निकाला जाता जिस में उन्हें बहुत कष्ट होता, कितनी दवाएं दी जातीं, कितने इंजैक्शन लगते, वे दिनभर अपने बैड पर पड़ी रहतीं. अब उन के साथ बस उन का अकेलापन था. वे रातदिन मयंक, किरण और यश से बात करने के लिए तड़पती रहतीं लेकिन बीमारी का पता चलने के बाद से किरण ने तो अस्पताल में पैर ही नहीं रखा था और अब मयंक कईकई दिन बाद आता भी तो खड़ेखड़े औपचारिकता सी निभा कर चला जाता.

नंदिता का कलेजा कट कर रह जाता, यह क्या हो गया था. उन्हें देखने सोसायटी से उन के ग्रुप की कोई महिला आती तो जैसे वे जी उठतीं. कुछ महिलाएं समय का अभाव बता कर कन्नी काट जातीं लेकिन कई महिलाएं उन से मिलने आती रहतीं. वे सब के हालचाल पूछतीं. किसी का मन होता जा कर मयंक और किरण से उन के हालचाल पूछें लेकिन दोनों का स्वभाव देख कर कोई न जाता. वैसे भी महानगर के लोगों को न तो ज्यादा मतलब होता है और न ही कोई आजकल अपने जीवन में किसी तरह का हस्तक्षेप स्वीकार करता है, खासकर मयंक और किरण जैसे लोग.

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कोई जब भी नंदिता को देखने जाता तो लगता उन्हें कहीं न कहीं जीने की इच्छा थी, इसी इच्छाशक्ति के जोर पर वे बहुत तेजी से ठीक होने लगीं और 5 महीने बाद वे पूरी तरह से स्वस्थ और सामान्य हो गईं. वे बहुत खुश थीं. एक बड़ा युद्ध जीत कर मृत्यु को हरा कर वे घर लौट रही थीं पर वे यह नहीं जानती थीं कि इन 5 महीनों में सबकुछ बदल चुका था.

उन्हें घर लाते समय मयंक बहुत गंभीर था. नंदिता ने सोचा इतने दिनों से सब को असुविधा हो रही है, थोड़े दिनों में सब पहले की तरह ठीक हो जाएगा. वे जल्दी से जल्दी यश को देखना चाहती थीं और यश की वजह से किरण भी उन से नहीं मिलने आ पाई. उसे कितना दुख होता होगा. यही सब सोचतेसोचते घर आ गया. मयंक पूरे रास्ते चुप रहा था. बस, हांहूं करता रहा था.

मयंक ने ही ताला खोला तो वे चौंकी, ‘‘किरण नहीं है घर पर?’’

मयंक चुप रहा. उन का बैग अंदर रखा. नंदिता ने फिर पूछा, ‘‘किरण और यश कहां हैं?’’

‘‘मां, आप की बीमारी पता चलने के बाद किरण यश के साथ यहां नहीं रहना चाहती थी. हम लोगों ने किराए पर फ्लैट ले लिया है.’’

नंदिता को लगा, सारी मोहमाया, प्यार और विश्वास के बंधन एक झटके में टूट गए हैं, उन की सारी संवेदनाएं ही शून्य हो गईं. उदास, शुष्क, खालीखाली, विरक्त आंखों से मयंक को देखती रहीं, फिर चुपचाप हतप्रभ सी वेदना के महासागर में डूब कर बैठ गईं. वे एकाकी, मौन, स्तब्ध बैठी रहीं तो मयंक ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘मां, एक फुलटाइम मेड का प्रबंध कर दिया है, वह आने वाली होगी. आप को कोई परेशानी नहीं होगी और फोन तो है ही.’’

नंदिता चुप रहीं और मयंक चला गया.

लताबाई ने आ कर सब काम संभाल लिया. नंदिता के अस्पताल से घर आने का पता चलते ही उन की सहेलियां उन से मिलने पहुंच गईं. उन के घर का सन्नाटा महसूस कर के उन की आंखों की उदासी देख कर उन की सहेलियां जिन भावनाओं में डूबी थीं, उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे उन के पास और जहां शब्द हार मानते हैं वहां मौन बोलता है.

नंदिता सब के हालचाल पूछती रहीं और स्वयं को सहज रखने का प्रयत्न करते हुए मुसकराने लगीं, बोलीं, ‘‘तुम लोग मेरे अकेले रहने के बारे में मत सोचो, इस की भी आदत पड़ जाएगी, सब ठीक है और तुम लोग तो हो ही, मैं अकेली कहां हूं.’’

सब उन की जिंदादिली पर हैरान हुए फिर अपनीअपनी गृहस्थी में सब व्यस्त हो गए. उन का अपना नियम शुरू हो गया. सुबहशाम सैर करतीं, अपनी हमउम्र महिलाओं के साथ गार्डन में थोड़ा समय बिता कर अपने घर लौट जातीं. सब ने गौर किया था वे अब कभी भी अपने बेटेबहू, पोते का नाम नहीं लेती थीं.

कुछ समय और बीता. आर्थिक मंदी की चपेट में किरण की नौकरी भी आ गई और मयंक को औफिस की टैंशन के कारण उच्च रक्तचाप रहने लगा. उस की तबीयत खराब रहने लगी. छुट्टी वह ले नहीं सकता था. दवा की एक प्राइवेट कंपनी में सेल्स मैनेजर था, काम का प्रैशर था ही. दोनों के शाही खर्चे थे, कोई खास बचत थी नहीं. अभी तक नंदिता के साथ रहता आया था. नंदिता के पास अपनी जमापूंजी भी थी, पति द्वारा सुरक्षित भविष्य के लिए संजोया धन था जिस से वे आज भी आर्थिक रूप से सक्षम थीं. अब लताबाई फुलटाइम मेड की तरह नहीं, बस सुबहशाम आ कर काम कर देती थी. नंदिता ने अकेले रहने की आदत डाल ली थी.

किरण के मातापिता अपने बेटे के साथ अमेरिका में रहते थे. किरण अपने जौब के लिए भागदौड़ कर रही थी. यश की देखभाल उचित तरीके से नहीं हो पा रही थी. मयंक और किरण को नंदिता की याद आने लगी. अब उन्हें नंदिता की जरूरत महसूस हुई. वैसे भी नंदिता अब स्वस्थ हो चली थीं.

एक दिन दोनों यश को ले कर नंदिता के पास पहुंच गए. नंदिता के पास उन की कुछ सहेलियां बैठी हुई थीं. मयंक पहले चुपचाप बैठा रहा, फिर उन से धीरे से बोला, ‘‘मां, आप से कुछ अकेले में बात करनी है.’’

उन की सहेलियों ने उठने का उपक्रम किया तो नंदिता ने टोका, ‘‘ये सब मेरी अपनी हैं, मेरे दुखसुख की साथी हैं, जो कहना हो, कह सकते हो.’’

मयंक को संकोच हुआ, किरण सिर झुकाए बैठी थी, यश नंदिता की गोद में बैठ चुका था.

मयंक ने कहा, ‘‘मां, हम यहां आप के पास आ कर रहना चाहते हैं. हम से गलती हुई है, हमें माफ कर दो.’’

नंदिता ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘नहीं, अब तुम लोग यहां नहीं रहोगे.’’

मयंक सिर झुकाए अपनी परेशानियां बताता रहा, अपनी आर्थिक और शारीरिक समस्याओं को बताते हुए वह माफी मांगता रहा. सुषमा और अर्चना ने नंदिता के कंधे पर हाथ रख कर बात खत्म करने का इशारा किया तो नंदिता ने कहा, ‘‘नहीं सुषमा, इन्हें भी एहसास होना चाहिए कि परेशानी के समय जब अपने हाथ खींचते हैं तो जीवन कितना बेगाना लगता है, विश्वास नाम की चीज कैसे चूरचूर हो जाती है. मैं समझ चुकी हूं और सब से कहती हूं अपने बच्चों को पालते हुए अपने बुढ़ापे को नहीं भूलना चाहिए, वह तो सभी पर आएगा.

‘‘संतान बुढ़ापे में तुम्हारा साथ दे न दे पर तुम्हारा बचाया पैसा ही तुम्हारे काम आएगा. संतान जब दगा दे जाती है तब इंसान कैसे लड़ता है बुढ़ापे के अकेलेपन से, बीमारियों से, कदम दर कदम पास आती मौत की आहट से, कैसे? यह मैं ही जानती हूं कि पिछला समय मुझे क्या सिखा कर बीता है. मां बदला नहीं चाहती लेकिन हर मातापिता अपनी संतान से कहना चाहते हैं कि जो हमारा आज है वही उन का कल है लेकिन आज को देख कर कोई कल के बारे में कहां सोचता है बल्कि कल के आने पर आज को याद करता है,’’ बोलतेबोलते उन का कंठ भर आया.

कुछ पल मौन छाया रहा. मयंक और किरण ने हाथ जोड़ लिए, ‘‘हमें माफ कर दो, मां. हम से गलती हो गई.’’

यश ने चुपचाप सब को देखा फिर नंदिता से पूछा, ‘‘दादी, मम्मीपापा सौरी बोल रहे हैं? अब भी आप गुस्सा हैं?’’

नंदिता यश का भोला चेहरा देख कर मुसकरा दीं तो सब के चेहरों पर मुसकान फैल गई. सुषमा और अर्चना खड़ी हो गईं, मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘हम चलते हैं.’’

नंदिता को लगा जीवन का सफर भी कितना अजीब है, कितना कुछ घटित हो जाता है अचानक, कभी खुशी गम में बदल जाती है तो कभी गम के बीच से खुशियों का सोता फूट पड़ता है.

रिश्तों की कसौटी-भाग 1: क्यों दुखी थी सुरभी

‘‘अंकल, मम्मी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई क्या?’’ मां के कमरे से डाक्टर को निकलते देख सुरभी ने पूछा.

‘‘पापा से जल्दी ही लौट आने को कहो. मालतीजी को इस समय तुम सभी का साथ चाहिए,’’ डा. आशुतोष ने सुरभी की बातों को अनसुना करते हुए कहा.

डा. आशुतोष के जाने के बाद सुरभी थकीहारी सी लौन में पड़ी कुरसी पर बैठ गई.

2 साल पहले ही पता चला था कि मां को कैंसर है. डाक्टर ने एक तरह से उन के जीने की अवधि तय कर दी थी. पापा ने भी उन की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मां को ले कर 3-4 बार अमेरिका भी हो आए थे और अब वहीं के डाक्टर के निर्देशानुसार मुंबई के जानेमाने कैंसर विशेषज्ञ डा. आशुतोष की देखरेख में उन का इलाज चल रहा था. अब तो मां ने कालेज जाना भी बंद कर दिया था.

‘‘दीदी, चाय,’’ कम्मो की आवाज से सुरभी अपने खयालों से वापस लौटी.

‘‘मम्मी के कमरे में चाय ले चलो. मैं वहीं आ रही हूं,’’ उस ने जवाब दिया और फिर आंखें मूंद लीं.

सुरभी इस समय एक अजीब सी परेशानी में फंस कर गहरे दुख में घिरी हुई थी. वह अपने पति शिवम को जरमनी के लिए विदा कर अपने सासससुर की आज्ञा ले कर मां के पास कुछ दिनों के लिए रहने आई थी.

2 दिन पहले स्टोर रूम की सफाई करवाते समय मां की एक पुरानी डायरी सुरभी के हाथ लगी थी, जिस के पन्नों ने उसे मां के दर्द से परिचित कराया.

‘‘ऊपर आ जाओ, दीदी,’’ कम्मो की आवाज ने उसे ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया.

सुरभी ने मां के साथ चाय पी और हर बार की तरह उन के साथ ढेरों बातें कीं. इस बार सुरभी के अंदर की उथलपुथल को मालती नहीं जान पाई थीं.

सुरभी चाय पीतेपीते मां के चेहरे को ध्यान से देख रही थी. उस निश्छल हंसी के पीछे वह दुख, जिसे सुरभी ने हमेशा ही मां की बीमारी का हिस्सा समझा था, उस का राज तो उसे 2 दिन पहले ही पता चला था.

थोड़ी देर बाद नर्स ने आ कर मां को इंजेक्शन लगाया और आराम करने को कहा तो सुरभी भी नीचे अपने कमरे में आ गई.

चुनौतियां-भाग 5: गुप्ता परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे पूरा किया?

ट्रांजिट कैंप में यूनिफौर्म में ही रहना होता है. इसलिए मैं ने भी यूनिफौर्म पहन ली. बार गेट पर एक जवान खड़ा था. उस ने सैल्यूट किया और गेट खोल दिया. मैस हवलदार ने हमारा स्वागत किया.
कैप्टन संगीता ने मेरे लिए और अपने लिए एकएक पैग वाइन का और्डर दिया. जब वाइन आई तो कैप्टन साहिबा ने पूछा, ‘कुछ सनैक्स हैं?’ ‘हैं, मैम. आलू भुजिया और पनीर के पकौड़े.’
‘ ऐसा करो, 2 प्लेट पनीर के पकौड़े ले आओ.’ ‘इस में कुछ मिलाया जाता है?’ मैं ने पूछा.
‘हां, बीयर मिला सकती हो, पानी मिला सकती हो, लेकिन हम सोडा मिला कर पिएंगे.’

सोडा आया. दोनों ने अपनेअपने गिलास भर लिए. धीरेधीरे पीने लगीं. मन के भीतर गिल्ट भी फील हुआ कि जिस चीज को आज तक हाथ नहीं लगाया, उसे पी रही हूं. मां, बाऊ जी देखेंगे तो जाने क्या सोचें. पर सेना के वातावरण में ऐसा करना आवश्यक है. सर्द इलाके में जा रही हूं, वहां तो इस के बिना रहा ही नहीं जा सकता. ट्रेनिंग में बताया गया था. ‘गिल्ट फील कर रही हो?’

कैप्टन संगीता ने मेरे मन की बात पढ़ ली थी. मैं ने हां में सिर हिलाया.‘पहली बार मुझे भी ऐसा ही फील हुआ था. पर अब नहीं होता है. जब माइनस में तापमान जाएगा तब यह वाइन नहीं, रम का सहारा लेना पड़ेगा. तब भी सर्दी नहीं जाएगी. धीरेधीरे सब पता चल जाएगा. हम ने ऐसा प्रोफैशन चुना है जो आज तक केवल पुरुष चुनते आए थे. हम किसी से कम नहीं हैं, यही तो चुनौती है. कुछ मत सोचो. ड्रिंक का लुत्फ लो.’

कैप्टन साहिबा को थोड़ाथोड़ा नशा चढ़ने लगा था. मुझे भी सरूर आने लगा था. कैप्टन साहिबा ने एक पैग और पिया. मैं ने महसूस किया, मेरे लिए एक ही पैग बहुत था. सच में बहुत अच्छा लग रहा था. गुप्ता खानदान की लड़की ने आज वह कर दिखाया जो आज तक खानदान में किसी ने नहीं किया था. खाना लग चुका था. दोनों ने खाना खाया और अपने कमरे में लौट आईं. अभी 9 बजे थे. इतनी जलदी सोने का कोई मतलब नहीं था. कैप्टन संगीता थोड़ा अलग हट कर मोबाइल पर किसी से बात करने में व्यस्त हो गई थीं. मैं ने भी अपनी वर्कशौप के एडयूडैंट को सुबह की फ्लाइट की डिटेल दे दी थी. उस ने कहा, ‘एयरपोर्ट पर समय पर गाड़ी पहुंच जाएगी. वह आप को ट्रांजिट कैंप ले जाएगी और स्टैंप लगवा कर वर्कशौप ले आएगी.’

‘ठीक है, सर. गुड नाइट,’ कहा और मोबाइल बंद कर दिया.रात के 10 बजने वाले थे. कमरे में जा कर दोनों ने मच्छरदानी लगाई, नाइट ड्रैस पहनी और मच्छरदानी में घुस गईं. मैं बिस्तर पर पड़ते ही सो गई. कैप्टन संगीता कब सोई, पता नहीं चला.सुबह 3 बजे मैस ब्वाय चाय ले कर आया तो हम जागे. फ्रैश हुए. 4 बजे से पहले ही यूनिफौर्म पहन कर तैयार हो गईं. जो जवान हमें एयरपोर्ट पर लगेज जमा कराने तक साथ जाने वाला था, उस ने आ कर हमारे बैडहोल्डाल बांध दिए. ठीक 4 बजे स्टेशन वैगन आई और हम एयरपोर्ट के लिए चल दिए.

आधे घंटे में हम एयरपोर्ट पर पहुंच गए, एयर इंडिया की फ्लाइट पर लगेज जमा करवाया. साथ आए जवान के लिए कैप्टन संगीता से पूछा कि इस को कुछ देना है.‘नहीं, यह उन की डयूटी में आता है.’
‘अच्छा मैम, हम चलते हैं. आप की यात्रा शुभ हो.’ सैल्यूट किया और चला गया.हम सिक्योरिटी चैक के लिए लाइन में लग गए. तभी एक सीआईएसएफ का जवान आया, हम दोनों को सैल्यूट किया और कहा, ‘मैम, आप दोनों अगले गेट से चैक करवाएं. वहां सीआईएसएफ की महिला कांस्टेबल खड़ी थी. उन्होंने सारा सामान स्क्रीनिंग के लिए मशीन में रखवा दिया. सामान क्या था, लेह एयरपोर्ट पर पहनने के लिए कोटपारका, कैप बल्कलावा और मोबाइल था.

चैक के बाद हम दोनों वीआईपी लौंज में रिफ्रैशमैंट के लिए चले गए. वहां कैप्टन संगीता ने ब्रैडमक्खन लिया और मैं ने केवल चाय, ब्रैड पकौड़ा लिया. आधा घंटा वहीं बैठे. बाद में हम बोर्डिंग के लिए चल दिए.
बोर्डिंग के बाद मैं ने अपने एडयूडैंट को संदेश भेजा. उन्होंने बैस्ट औफ जर्नी कहा और कहा कि समय पर गाड़ी एयरपोर्ट पर पहुंच जाएगी.6 बज कर 5 मिनट पर प्लेन उड़ा और ठीक एक घंटे बाद प्लेन ने लेह एयरपोर्ट पर लैंड किया. बताया गया पहले स्टाफ उतरेगा, फिर यात्री. बाहर का तापमान 4 डिग्री है, सभी यात्री कैप और गरम कपड़े पहन कर बाहर निकलें. अपना मोबाइल नौर्मल मोड पर कर लें. मोबाइल नौर्मल मोड पर करते ही अंजान नंबर से घंटी बजी.

मैं ने कहा, ‘यस.’‘जयहिंद, मैम. मैं हवलदार किशन सिंह बोल रहा हूं, आप के लिए गाड़ी ले कर आया हूं. मेरे साथ आप के लिए डिटेल सहायक भी है, मैम. हम आप को सामान वाली जगह पर मिलेंगे. आप के केवल 2 ही नग हैं?’‘यस, 2 ही नग हैं. एक काला बड़ा बौक्स, दूसरा बैडहोल्डाल. दोनों पर मेरा नाम लिखा है, लै. नीरजा गुप्ता.’

‘जी, मैम. हम दोनों नग ट्रौली पर रख कर आप को सामान मिलने वाली जगह पर मिलेंगे.’
‘मुझे 15-20 मिनट लग जाएंगे,’ कह कर मैं ने मोबाइल बंद कर दिया. प्लेन से उतरते ही सर्दी का एक जबरदस्त झोंका आया. हवा बहुत तेज चल रही थी. जल्दी से मैं और कैप्टन संगीता सामने लगी बस में बैठ गए. दोनों ने कोटपारका का हुड सिर के ऊपर कर लिया था जिस से हवा सीधे मुंह पर नहीं लग रही थी. दूसरे यात्रियों ने भी ऐसा ही किया था. कुछ जवान इकोनौमी कलास से उतर कर बस में आए थे.
थोड़ी देर में बस ने हमें गेट के पास उतारा. एयरपोर्ट के अंदर सर्दी कम थी. मैं ने सिर से हुड उतार दिया. जब मैं और कैप्टन संगीता सामान मिलने वाली जगह पर पहुंचीं, मुझे अपने जवानों को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई थी. मेरा सामान ले कर दोनों ट्रौली के पास खड़े थे. उन्होंने भी मुझे पहचान लिया था. ईएमई की महिला अफसर केवल मैं ही थी. दोनों ने मुझे सैल्यूट किया. कैप्टन संगीता के लिए भी गाड़ी आ गई थी. उन्होंने मुझ से हाथ मिला और तुरंत अपने जवानों के साथ चली गईं.

मैं जब गाड़ी में बैठने लगी तो मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘ पहले ट्रांजिट कैंप, फिर अपनी यूनिट.’
‘जी, मैडम.’ ड्राइवर ने पहले सैल्यूट किया फिर वह अपनी सीट पर बैठा. सेना की यही परंपरा है, जब कोई अफसर गाड़ी में बैठता है तो पहले उसे सैल्यूट किया जाता है, फिर ड्राइवर गाड़ी चलाने के लिए अपनी सीट पर बैठता है.

 

YRKKH: अक्षरा को भूल आरोही के साथ नए रिश्ते की शुरुआत करेगा अभिमन्यु

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है कि कहानी लगातार लोगों को अपने नए- नए ट्विस्ट से आकर्षित किया हुआ है शायद यहीं वजह है की यह सीरियल पिछले 14 साल से टीआरपी में बना हुआ है. इन दिनों  अक्षरा उदयपुर जाने की तैयारी कर रही हैं.

वहीं मंजरी चाहती है कि अभिमन्यु की शादी आरोही से हो, अब सीरियल में बहुत बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. अक्षरा परेशान होकर अपने परिवार को याद करेगी तो अभिनव कहेगा कि जिस तरह से मैं बिना परिवार का बड़ा हुआ हूं उसी तरह से मेरा बेटा भी बिना परिवार का बड़ा होगा.

 

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इस बात को सुनकर अक्षरा उदयपुर जाने का फैसला कर लेती है,जिसे जानते ही अभिर काफी ज्यादा खुश हो जाता है, वहीं दूसरी तरफ बिरला हाउस में काफी ज्यादा हंगामा होता हुआ नजर आ रहा है, बीते एपिसोड में दिखाया गया है कि रूही का खूब मजाक बनता है कि उसके पापा नहीं है जिसके बाद से रूही परेशान होकर पार्टी से घर आ जाती है.

वह घर आकर अभिमन्यु से कहती है कि वह उसके असली पापा बन जाए तो इस पर मंजरी काफी ज्यादा खुश होती नजर आती है और घर वाले भी अभिमन्यु और आरोही की शादी की बात करने लगते हैं.

जब अभिमन्यु और आरोही की शादी होगी उसी वक्त अक्षरा भी वापसी करेगी लेकिन क्या अभिमन्यु आरोही से शादी करके खुश रहेगा या नहीं जानने के लिए अगले एपिसोड़ का वेट करना होगा.

अक्लमंदी: नीलिमा मनीष को शादी के लिए परेशान क्यों कर रही थी?

कभी कभी ऐसा भी-भाग 2 : पूरबी के साथ आखिर क्या हुआ

उस की बात सुन कर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, मगर मैं अकेली कर भी क्या सकती थी. हर जगह हर कोने में यही सब चल रहा है एक भयंकर बीमारी के रूप में, जिस का कोई इलाज कम से कम अकेले मेरे पास तो नहीं है. 300 रुपए ले कर चालान की परची नहीं काटने वाले ये लोग रुपए अपनीअपनी जेब में ही रख लेंगे.

मुझ में ज्यादा समझ तो नहीं थी लेकिन यह जरूर पता था कि जिंदगी में शार्टकट कहीं नहीं मारने चाहिए. उन से पहुंच तो आप जरूर जल्दी जाएंगे लेकिन बाद में लगेगा कि जल्दबाजी में गलत ही आ गए. कई बार घर पर भी ए.सी., फ्रिज, वाशिंग मशीन या अन्य किसी सामान की सर्विसिंग के लिए मेकैनिक बुलाओ तो वे भी अब यही कहने लगे हैं कि मैडम, बिल अगर नहीं बनवाएंगी तो थोड़ा कम पड़ जाएगा. बाकी तो फिर कंपनी के जो रेट हैं, वही देने पड़ेंगे.

श्रेयस हमेशा यह रास्ता अपनाने को मना करते हैं. कहते हैं कि थोड़े लालच की वजह से यह शार्टकट ठीक नहीं. अरे, यथोचित ढंग से बिल बनवाओ ताकि कोई समस्या हो तो कंपनी वालों को हड़का तो सको. वह आदमी तो अपनी बात से मुकर भी सकता है, कंपनी छोड़ कर इधरउधर जा भी सकता है मगर कंपनी भाग कर कहां जाएगी. इतना सब सोच कर मैं ने कहा, ‘‘नहीं, आप चालान की रसीद काटिए. मैं पूरा जुर्माना भरूंगी.’’

मेरे इस निर्णय से उन दोनों के चेहरे लटक गए, उन की जेबें जो गरम होने से रह गई थीं. मुझे उन का मायूस चेहरा देख कर वाकई बहुत अच्छा लगा. तभी मन में आया कि इनसान चाहे तो कुछ भी कर सकता है, जरूरत है अपने पर विश्वास की और पहल करने की.

वैसे तो श्रेयस के साथ के कई अफसर यहां थे और पापा के समय के भी कई अंकल मेरे जानकार थे. चाहती तो किसी को भी फोन कर के हेल्प ले सकती थी लेकिन श्रेयस के पीछे पहली बार घर संभालना पड़ रहा था और अब तो नईनई चुनौतियों का सामना खुद करने में मजा आने लगा था. ये आएदिन की मुश्किलें, मुसीबतें, जब इन्हें खुद हल करती थी तो जो खुशी और संतुष्टि मिलती उस का स्वाद वाकई कुछ और ही होता था.

पूरा जुर्माना अदा कर के आत्म- विश्वास से भरी जब थाने से बाहर निकल रही थी तो देखा कि 2 पुलिस वाले बड़ी बेदर्दी से 2 लड़कों को घसीट कर ला रहे थे. उन में से एक पुलिस वाला चीखता जा रहा था, ‘‘झूठ बोलते हो कि उन मैडम का पर्स तुम ने नहीं झपटा है.’’

‘‘नाक में दम कर रखा है तुम बाइक वालों ने. कभी किसी औरत की चेन तो कभी पर्स. झपट कर बाइक पर भागते हो कि किसी की पकड़ में नहीं आते. आज आए हो जैसेतैसे पकड़ में. तुम बाइक वालों की वजह से पुलिस विभाग बदनाम हो गया है. तुम्हारी वजह से कहीं नारी शक्ति प्रदर्शन किए जा रहे हैं तो कहीं मंत्रीजी के शहर में शांति बनाए रखने के फोन पर फोन आते रहते हैं. बस, अब तुम पकड़ में आए हो, अब देखना कैसे तुम से तुम्हारे पूरे गैंग का भंडाफोड़ हम करते हैं.’’

एक पुलिस वाला बके जा रहा था तो दूसरा कालर से घसीटता हुआ उन्हें थाने के अंदर ले जा रहा था. ऐसा दृश्य मैं ने तो सिर्फ फिल्मों में ही देखा था. डर के मारे मेरी तो घिग्गी ही बंध गई. नजर बचा कर साइड से निकलना चाहती थी कि बड़ी तेजी से आवाज आई, ‘‘मैडम, मैडम, अरे…अरे यह तो वही मैडम हैं…’’

मैं चौंकी कि यहां मुझे जानने वाला कौन आ गया. पीछे मुड़ कर देखा. बड़ी मुश्किल से पुलिस की गिरफ्त से खुद को छुड़ाते हुए वे दोनों लड़के मेरी तरफ लपके. मैं डर कर पीछे हटने लगी. अब जाने यह किस नई मुसीबत में फंस गई.

‘‘मैडम, आप ने हमें पहचाना नहीं,’’ उन में से एक बोला. मुझे देख कर कुछ अजीब सी उम्मीद दिखी उस के चेहरे पर.

‘‘मैं ने…आप को…’’ मैं असमंजस में थी…लग तो रहा था कि जरूर इन दोनों को कहीं देखा है. मगर कहां?

‘‘मैडम, हम वही दोनों हैं जिन्होंने अभी कुछ दिनों पहले आप की गाड़ी की स्टेपनी बदली थी, उस दिन जब बीच रास्ते में…याद आया आप को,’’ अब दूसरे ने मुझे याद दिलाने की कोशिश की.

उन के याद दिलाने पर सब याद आ गया. इस गाड़ी की वजह से मैं एक नहीं, कई बार मुश्किल में फंसी हूं. श्रेयस ने यहां से जाते वक्त कहा भी था, ‘एक ड्राइवर रख देता हूं, तुम्हें आसानी रहेगी. तुम अकेली कहांकहां आतीजाती रहोगी. बाहर के कामों व रास्तों की तुम्हें कुछ जानकारी भी नहीं है.’ मगर तब मैं ने ही यह कह कर मना कर दिया था कि अरे, मुझे ड्राइविंग आती तो है. फिर ड्राइवर की क्या जरूरत है. रोजरोज मुझे कहीं जाना नहीं होता है. कभीकभी की जरूरत के लिए खामखां ही किसी को सारे वक्त सिर पर बिठाए रखूं. लेकिन बाद में लगा कि सिर्फ गाड़ी चलाना आने से ही कुछ नहीं होता. घर से बाहर निकलने पर एक महिला के लिए कई और भी मुसीबतें सामने आती हैं, जैसे आज यह आई और आज से करीब 2 महीने पहले वह आई थी.

उस दिन मेरी गाड़ी का बीच रास्ते में चलतेचलते ही टायर पंक्चर हो गया था. गाड़ी को एक तरफ रोकने के अलावा और कोई चारा नहीं था. बड़ी बेटी को उस की कोचिंग क्लास से लेने जा रही थी कि यह घटना घट गई. उस के फोन पर फोन आ रहे थे और मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करूं. गाड़ी में दूसरी स्टेपनी रखी तो थी लेकिन उसे लगाने वाला कोई चाहिए था. आसपास न कोई मैकेनिक शौप थी और न कोई मददगार. कितनी ही गाडि़यां, टेंपो, आटोरिक्शा आए और देखते हुए चले गए. मुझ में डर, घबराहट और चिंता बढ़ती जा रही थी. उधर, बेटी भी कोचिंग क्लास से बाहर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. श्रेयस को फोन मिलाया तो वह फिर कहीं व्यस्त थे, सो खीझ कर बोले, ‘अरे, पूरबी, इसीलिए तुम से बोला था कि ड्राइवर रख लेते हैं…अब मैं यहां इतनी दूर से क्या करूं?’ कह कर उन्होंने फोन रख दिया.

कुछ बदल रहा है : मनु अकेला क्यों रहता था

अंतिम भाग

पूर्व कथा

सुनीता भारत में बसे बेटे मनु से जब भी शादी की बात करतीं तो वह टाल जाता. विदेश में रहते हुए ही सुनीता उस की शादी के लिए कई भारतीय अखबारों और वेबसाइट पर उस की शादी का विज्ञापन देती हैं.

पिछली बार फोन पर बात करते हुए सुनीता मनु को चेतावनी देती हैं कि हमारे दिल्ली आने पर उसे शादी करनी पड़ेगी. पर मनु की ऊलजलूल बातें सुन कर सुनीता और परेशान हो जाती हैं.

10 साल से मनु अकेला भारत में रह रहा था. विदेश मंत्रालय में कार्यरत होने के कारण पति का तबादला होता रहता था, जिस के कारण वह बच्चों को पढ़ाई के लिए भारत भेज देती हैं. अब सुनीता की ख्वाहिश है कि बेटा शादी कर के घर बसा ले.

फोन पर बेटे की बातें सुन कर शर्मा दंपती जल्द ही दिल्ली आ जाता है. मनु उन्हें लेने एअरपोर्ट जाता है. घर की साफसफाई देख कर सुनीता मनु से पूछती हैं तो पति पंकज उस की गर्लफ्रेंड सेंनली के बारे में बताते हैं. सुनीता के पूछने पर मनु कहता है कि दोनों साथ पढ़ते थे. अगले दिन बेटी तुला भी दिल्ली आ जाती है.

सुनीता मनु को सेंनली से मिलाने के लिए कहती हैं. सेंनली जब आती है तो उसे देख कर वह चौंक जाती हैं. उस के टूटीफूटी हिंदी बोलने पर सुनीता और भी चिढ़ जाती हैं. सभी लोगों को सेंनली की मेहमाननवाजी में व्यस्त देख कर सुनीता को जलन होने लगती है. और अब आगे…

बहू के रूप में सेंनली से मिल कर सुनीता को कोई खुशी नहीं हुई. बेटे की शादी को ले कर उन के मन में जितने सपने थे सब पर पानी फिर गया था, उस पर बेटी के बौयफ्रेंड की तसवीर देख कर रहीसही कसर भी पूरी हो गई. पंकज को तो अपने बच्चों की पसंद पर नाज था पर सुनीता विदेश में रह कर भी अपने पुराने खयालों को नहीं छोड़ पाईं. पढि़ए नलिनी शर्मा की एक रोचक कहानी.

गतांक से आगे…

नानी, तुला व पंकज से स्नेह से मिलते हुए सेंनली ने विदा ली. सुनीता को बस, दूर से ही उस ने हाथ जोडे़. मनु उसे टैक्सी स्टैंड तक छोड़ने चला गया.

सेंनली के जाने के बाद सुनीता अपनी जगह से हिलीं. सब से पहले अपने पति पर बिफरीं, ‘‘मुझे तो लड़की बिलकुल पसंद नहीं आई और तुम उस की फोटो पर फोटो खींचने में लगे थे.’’

‘‘अरे भई, अपने आफिस से जल्दी छुट्टी ले कर यह कह कर आया हूं कि लड़के की सगाई करनी है. वहां लोग पूछेंगे तो कुछ फोटो वगैरह तो उन्हें दिखानी ही पड़ेंगी.’’

‘‘और तुला, तेरे लिए भाई की गर्लफें्रड की खबर कोई नई खबर तो नहीं थी, तू शायद बहुत पहले से उसे जानती है.’’

‘‘मम्मी, आप जानने की बात कह रही हैं. मैं तो जब भी बंगलौर, भाई के पास जाती हूं, हम तीनों एकसाथ खूब घूमते हैं, रेस्तरां में जाते हैं, पिक्चर देखते हैं…’’

‘‘हम क्या मर गए थे जो तू ने भी हमें नहीं बताया?’’

‘‘भाई की प्राइवेट लाइफ मैं आप दोनों के साथ क्यों डिस्कस करूं,’’ तुला तुनक कर बोली, ‘‘भाई खुद ही बताए तो ठीक है वरना मैं क्यों…’’

प्राइवेट लाइफ. यह छोटेछोटे बच्चे कब इतने बड़े हो गए कि इन की जिंदगी अपनी निजी जिंदगी बन गई, जिस में मातापिता का हस्तक्षेप भी गवारा नहीं है. सहसा उन के दिमाग में कुछ कौंधा. बेटी से वह बोलीं, ‘‘तुला, अब तू भी बता दे कि कहीं तेरा तो किसी से कोई चक्कर वगैरह नहीं है?’’

‘‘मां, अतुल हिंदू है…और हमारी तरह ब्राह्मण भी,’’ वह ऐसे बोली जैसे समान जाति का होना कुछ कम हतप्रभ होने वाली बात हो.

सुनीता ने खामोश पति की तरफ देखा. क्या कहें वह अपने जवान बच्चों के बारे में.

‘‘यह अतुल…क्या तेरे साथ पढ़ रहा है?’’ पंकज ने बात का सूत्र पकड़ा.

‘‘1 साल मुझ से सीनियर है,’’ तुला शर्माते हुए बोली, फिर झट से उठी, अपना पर्स टटोला व एक फोटो निकाल कर उन की तरफ बढ़ा दिया. सुनीता व पंकज शर्मा दोनों काफी देर तक फोटो को निहारते रहे. लड़का रंगरूप में उन की लड़की से बीस ही था, उन्नीस नहीं.

‘‘पर बेटा, यह तुम पढ़ाई के वक्त लड़कों के चक्कर में…’’ सुनीता बेटी पर झुंझलाईं.

‘‘पढ़ाई भी हो रही है. सेकंड ईयर के अपने बैच में मेरी पोजीशन ऐसे ही तो नहीं आई है.’’

सुनीता की मां बीच में बड़बड़ाईं, ‘‘अब ज्यादा लागलपेट व नखरे मत करो. खुद तो दोनों विदेश में रहते हो और यहां बच्चों को अकेला छोड़ा हुआ है. बच्चे करेंगे ही अपनी मनमानी.’’

‘‘मां, अगर हम यहां दिल्ली में रहते भी तो क्या बच्चे हमारे साथ रहते? एक बंगलौर में रहता है और दूसरा हैदराबाद में. यहां कितने मांबाप के जवान बच्चे उन के साथ रहते हैं?’’

मनु जब सेंनली को छोड़ कर आया तो सुनीता उस से तरहतरह के प्रश्न पूछ कर सेंनली से उस की घनिष्ठता का जायजा लेने लगीं.

‘‘वह बंगलौर में तेरे घर से कितनी दूरी पर रहती है? उस का आफिस तेरे आफिस से कितनी दूर है? कितना तुम परस्पर मिलते हो? कहां मिलते हो? कैसे मिलते हो? एक छत के नीचे कभी अकेले में…’’

‘‘ओहो मम्मी… इस तरीके से मत कुरेदो. अपने बेटे को कुछ सांस तो लेने दो,’’ तुला चिल्लाई.

मां, पति व बेटी ने मिल कर सुनीता को समझाया कि सेंनली चाहे किसी भी प्रदेश की हो और किसी भी धर्म की हो, मनु की पसंद है. उन के बीच की घनिष्ठता पता नहीं किस हद तक है. उन की भलाई इसी में है कि चुपचाप उन के रिश्ते को स्वीकार कर लें और डेनमार्क जाने से पहले कुछ टीका वगैरह कर के अपनी तरफ से उसे होने वाली बहू का दरजा दे दें. बुझे मन से सुनीता मान गईं. विकल्प अधिक नहीं था.

सेंनली को फिर आमंत्रित किया गया. इस बार वह तनछुई साड़ी में     आई थी और माथे पर बिंदी भी लगाए हुए थी.

असमी ब्यूटी सुंदर लग रही थी. उस का चीनी जैसा रंगरूप सुनीता को रहरह कर अखर रहा था.

पंकज ने अंगरेजी में गंभीरता- पूर्वक सेंनली से बातें कीं. उस के राज्य के बारे में पूछा. उस के परिवार के बारे में पूछा. उस ने बताया कि उस का परिवार मूलत: असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों से घिरा तटवर्ती शहर माजूली का है. वहां उन का पुश्तैनी घर अब भी है और उस के दादादादी वहीं रहते हैं. पर उस के मातापिता नौकरी के सिलसिले में गुवाहाटी बस गए थे. 2 साल हुए पिता एक हादसे में गुजर गए. मां एक आफिस में क्लर्क हैं. 2 छोटी बहनें व 1 छोटा भाई अभी पढ़ ही रहे हैं. छोटा भाई मात्र 12 साल का है.

हालांकि सेंनली ने खुल कर कुछ कहा नहीं पर सुनीता व पंकज समझ गए कि सेंनली पर अपने परिवार की थोड़ी जिम्मेदारी है.

पंकज ने सुनीता को इशारा किया तो वह उठी और भीतर के कमरे में आ कर अलमारी से सोने का सैट निकाला जो वह कोपनहेगन से साथ ले कर आई थीं, इस इरादे से कि अगर सब ठीकठाक रहा तो होने वाली बहू को पहना देंगी. पर बहू की शक्ल देख कर उन का मन इस तरह खट्टा हो रखा था कि पूरे सैट के बजाय सिर्फ एक अंगूठी ही उसे पहनाने के लिए निकाली, जैसे एक औपचारिकता अदा करनी हो.

सेंनली को टीका लगाया और अंगूठी उसे पहना दी. सेंनली भी अपनी कुछ तैयारी के साथ आई थी. शायद मनु ने उसे फोन पर पहले ही बता दिया हो. उस ने अपने बैग से असमी सिल्क की हलके हरे रंग की सुंदर सी साड़ी निकाली, साथ में असम चाय के कुछ पैकेट और सुनीता को आदरपूर्वक थमा दिए. पंकज शर्मा ने फिर कुछ तसवीरें खींचीं. कुछ पोज बने. सेंनली को घेर कर सभी की वीडियो फिल्म बनी और सेंनली चली गई.

मगर उन सभी से विदा लेते वक्त सेंनली मुसकराते हुए बोली, ‘‘भाषा कोई भी हो, भाव समझ में आने चाहिए. पर मैं बंगलौर जाते ही कोई हिंदी भाषी स्कूल ज्वाइन करूंगी और हिंदी सीखूंगी. देखना…आप से अगली मुलाकात होने पर मैं फर्राटे से हिंदी में बात करूंगी.’’

सुनीता व पंकज 1 महीने के लिए भारत आए थे. भारत आने के एक नहीं कई मकसद हुआ करते थे, सो सेंनली से ध्यान हटा कर वे अपने रिश्तेदारों से मिले, जरूरी खरीदारी की, अपने शहर के डाक्टरों से अपने शरीर के कुछ परीक्षण करवाए, नए चश्मे बनवाए, बीकानेर वाले के यहां जा कर जायकेदार भारतीय स्नैक्स खाए.

10 दिन मातापिता के साथ रह कर तुला हैदराबाद चली गई थी. बेटीदामाद के जाने के दिन करीब आने पर मां भी अपने बेटे के पास लौट गईं. मनु आखिरी दिन तक उन के साथ बना रहा. उन्हें दिल्ली शहर में इधर से उधर घुमाता रहा.

1 माह का समय पलक झपकते ही बीत गया और फिर एक शाम सुनीता व पंकज कोपनहेगन जा रहे प्लेन पर बैठे हुए थे. मनु उन्हें एअरपोर्ट तक छोड़ने आया था. अगले रोज वह भी बंगलौर वापस लौट रहा था. दोनों में से किसी ने उस से नहीं पूछा कि उस का शादी को ले कर क्या विचार है.

हवाईजहाज ने जब उड़ान भरी और हिंदुस्तान की धरती उस ने छोड़ी तो सुनीता लंबी सांस भरते हुए पति से बोलीं, ‘‘दोनों बच्चों ने अपने साथी खुद ही तलाश कर लिए. हमारी तो उन्हें जरूरत ही नहीं रही.’’

पंकज बोले, ‘‘मनु की गर्लफें्रड को देख कर तो मुझे भी थोड़ा अफसोस हुआ है पर तुला के बौयफें्रड को ले कर सच कहूं तो मैं बहुत खुश हूं. अरे, लड़की अगले साल पढ़ाई पूरी कर रही है. कहां मैं उस के लिए लड़का खोजता? उस ने खुद ही खोज कर हमारा काम हलका कर दिया.’’

भारत जाने से पहले सुनीता अपने घर की एक चाबी शीतल श्रीनिवासन को दे आई थी ताकि उन के न रहने पर शीतल घर में लगाए पौधों को पानी दे सकें और उन की डाक वगैरह चैक कर सकें. उन के पहुंचने से पहले ही दूध व ब्रेड वगैरह खरीद कर शीतल ने फ्रिज में रख दिए थे.

इस तरह का सहयोग दोनों परिवारों के बीच स्वत: ही कायम हो गया था. वह विदेशी भूमि पर थे. यहां न भाईबहन, न मातापिता, न नजदीकी रिश्तेदार, सिर्फ एक भारतीय ही दूसरे भारतीय की मदद करता है. सुनीता ने घर पहुंचते ही उसे फोन लगाया. वह बड़े मनसूबे बांध कर भारत गई थीं. उस से कह कर गई थीं कि अगर सबकुछ ठीक रहा था तो भारत 2-4 महीने के लिए टिक जाएंगी. बेटे की शादी कर के ही लौटेंगी.

‘‘आप भी पंकजजी के साथ वापस आ गईं?’’ शीतल श्रीनिवासन ने सुनीता की आवाज सुन कर हतप्रभ हो पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘बेटे की शादी का क्या हुआ?’’

‘‘बहू को अंगूठी पहना आए हैं.’’

‘‘अरे, बधाई हो. आप इतनी अच्छी खबर इतने दुखी मन से क्यों सुना रही हो?’’

‘‘वह लड़की असम की ईसाई है. चाइनीज जैसी दिखती है.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ शीतल ने कहा, ‘‘दिल मिलने चाहिए. अच्छा, आप का खाना वगैरह…’’

‘‘खाना हम प्लेन में खा चुके हैं.’’

‘‘अच्छा, आप कल दोपहर लंच पर हमारे घर आइए. संडे है, आराम से बैठेंगे, बातें करेंगे.’’

दूसरे दिन भारत से लाए बीकानेर वाले की मिठाई का डब्बा और सेंनली की फोटो व वीडियो फिल्म ले कर वे दोपहर में उन के घर पहुंच गए. शीतल व उस के पति ने बड़ी दिलचस्पी से उन की होने वाली बहू की तसवीरों को निहारा. उन के बेटे की पसंद की दाद दी, ‘‘इस तरह की शादियां हमारे देश में होनी चाहिए. अब नई पीढ़ी के लोग ही ऐसी अंतरजातीय शादियां रचा कर हिंदुस्तान से जातिधर्म के भेदभाव को दूर कर सकेंगे. सदियों से पृथक हुई जातियां एकदूसरे से ऐसे ही जुड़ेंगी, परस्पर एकीकरण करेंगी.’’

35 साल की शीतल मेहरा ने खुद वेनू श्रीनिवासन से प्रेम विवाह किया था. वह पंजाबी थीं और वेनू दक्षिण भारतीय. 5 साल पहले वे शादी कर के मुंबई से कोपनहेगन आए थे. वेनू एक प्रतिष्ठित शिपिंग कंपनी में साफ्टवेयर प्रोफेशनल था. शीतल भी कोपनहेगन बिजनेस स्कूल से 2 साल का कोर्स कर के संयुक्त राष्ट्र की एक शाखा में नौकरी करने लगी थी. उन की 2 साल की प्यारी सी बच्ची भी थी. सुनीता शीतल के लिए बड़ी बहन जैसी और उस की बच्ची के लिए मौसी जैसी थीं.

एक दिन जब सुनीता, शीतल के साथ बैठी थीं, मन के ऊहापोह उस के सामने जाहिर करते हुए बोलीं, ‘‘शीतल, तुम मुझ से काफी छोटी हो. आजकल के जवान बच्चों के नए तौरतरीके मुझ से बेहतर समझती हो. तुला ने भी अपने लिए एक लड़का पसंद कर लिया है और मनु तो उस लड़की से पता नहीं कब से जुड़ा है…कहीं उन के बीच यौन घनिष्ठता…’’

‘‘आप को लगता नहीं कि भारतीय पुराने रीतिरिवाजों को अब थोड़ा बदलना चाहिए. आजकल आप की तरह 17-18 साल में तो लोगों की शादी नहीं होती. समाज में शादी की उम्र बढ़ रही है और लड़केलड़कियां प्यूबर्टी जल्दी हासिल कर रहे हैं. फिर टीवी, फिल्में व इंटरनेट का खुलाव…ऐसे में मातापिता अपने बच्चों से यह उम्मीद लगाएं कि उन के बच्चे 30-35 साल तक बिना सेक्स के रहें… मैं तो समझती हूं कि मातापिता स्वयं ही अपने बच्चों को उचित यौन शिक्षा दे कर उन्हें समझा दें ताकि उन के मन में बेवजह कोई गलत धारणा न पनपे, वे गलत राहों में न पड़ें.’’

‘‘शीतल…तुम्हारा भी वेनू से प्रेम काफी वर्षों तक चला था…उस दौरान कभी तुम दोनों के बीच…’’

एक पल के लिए शीतल ने सुनीता को निहारा. उन के प्रश्न को तौला. फिर बोली, ‘‘वैसे तो यह मेरा निजी मामला है पर आप की मनोस्थिति को समझते हुए बता देती हूं कि हां, हमारे बीच शादी से पहले कई बार सेक्स हुआ था. हमारे घर वाले हमारी शादी के पक्ष में नहीं थे क्योंकि हम अलगअलग जातियों के थे. शुरू के 2 साल तक तो हम ने अपने पर संयम रखा, फिर एक बार हम अपने किसी फें्रड के घर अकेले में मिले और वहां… फिर न तो कोई झिझक रही और न संयम ही…’’

सुनीता सोचने लगी कि शीतल व वेनू एक आदर्श व समर्पित पतिपत्नी हैं. वे डेनमार्क में बसे एक ऐसे भारतीय युगल हैं जिस पर हर किसी भारतीय को गर्व है.

‘‘सुनीताजी, आप का बेटा मनु एक परिपक्व व पढ़ालिखा लड़का है. आप बेवजह की शंकाएं पाल कर टेंशन मत लीजिए.’’

अगर ऐसे मित्र मिल जाएं जो मन का बोझ हलका कर दें तो चाहिए ही क्या…सुनीता ने अपना मोबाइल उठाया. सीधे भारत बेटे को फोन मिलाया. पहले उस से कुछ इधरउधर की बातें कीं, फिर उस से चुहल करते हुए बोलीं, ‘‘तू अपनी सेंनली से मिल कर अपनी शादी की कोई तारीख तय कर के हमें बता दे. हम पहुंच जाएंगे तेरी शादी में भारत…’’

विटामिन की कमी हो सकती है जानलेवा

देश के नागरिकों में विटामिन डी की कमी महामारी का रूप लेती प्रतीत हो रही है. तकरीबन 90 फीसदी आबादी विटामिन डी की कमी से पीडि़त है. देश के सभी हिस्सों में भरपूर मात्रा में धूप होने के बावजूद इतनी अधिक आबादी में विटामिन डी की कमी पाई जाना हैरानी का विषय है. विटामिन डी, जिसे विटामिन धूप भी कहा जाता है, धूप में बैठने से प्राप्त हो जाता है. यह शरीर में होमियोस्टेसिस को संतुलित रख कर हड्डियों को अच्छी सेहत देता है और कई बीमारियों से बचाने में मदद करता है. इस की कमी के प्रतिकूल प्रभावों के साथसाथ इस के हमारी सेहत पर दूरगामी प्रभाव भी होते हैं. विटामिन डी की कमी होने के चलते दिल के रोग, डायबिटीज और कैंसर जैसे रोग भी हो सकते हैं. देश में इस की कमी नवजात बच्चों से ले कर किशोरों, बालिगों, बड़ी उम्र के लोगों और महिला व पुरुषों में एकसमान पाईर् जा रही है. इस के साथ ही, अब गर्भवती महिलाओं और कामकाजी युवाओं में भी यह कमी पाईर् जाने लगी है.

लक्षण

भारतीयों में इस की कमी के कई कारण पाए जाते हैं, जैसे : 

भारतीय चमड़ी की टोन : 

मिलेनिन की कमी से चमड़ी की धूप सोखने की क्षमता कम हो जाती है, इसलिए गहरे रंग के भारतीयों को गोरे लोगों के मुकाबले 20 से 40 गुना ज्यादा धूप सेंकनी पड़ती है.

धूप से बचने की सोच : 

बहुत से लोग ऐसे हैं जिन का रंग साफ है, वे यह सोचते हैं कि वे ज्यादा सुंदर दिखते हैं. इस मानसिकता के चलते लोग तीव्र धूप के समय बाहर निकलने से कतराते हैं या अत्यधिक एसपीएफ वाले सनस्क्रीन लोशन लगाते हैं. लोग बच्चों को बाहर धूप में खेलने के लिए भी नहीं भेजते, घर के अंदर ही खेलने के लिए उत्साहित करते हैं. फिर भी अगर किसी को बाहर जाना पड़े तो वह अपनेआप को पूरी तरह से ढक लेता है. इस तरह धूप से कतराने की वजह से शरीर में विटामिन डी की अत्यधिक कमी हो जाती है.

शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता : 

विटामिन डी आमतौर पर पशुओं से मिलने वाले खाद्य पदार्थों में पाया जाता है, जिन में डेयरी उत्पाद, अंडे, मछली आदि शामिल हैं. लेकिन ज्यादातर भारतीय शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता देते हैं, जिस वजह से विटामिन डी की कमी होने की संभावना रहती है.

तनावपूर्ण कामकाजी माहौल : 

बढ़ते कामकाजी दबाव और प्रतिस्पर्धा के माहौल में युवा पीढ़ी में विटामिन डी की कमी पाई जाती है. इस का मुख्य कारण बंद केबिनों में पूरा दिन बैठ के घंटों काम करना है, जिस वजह से वे लंबे समय तक धूप से दूर रहते हैं.

तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता :

तकनीक के फायदों के साथ इस के नुकसान भी होते हैं. युवा अपने दोस्तों के साथ धूप में फुटबाल के मैदान में खेलने का मजा नहीं ले पाते. या तो वे पूरे दिन घर के अंदर बैठ कर वीडियो गेम खेलते हैं या फिर पूरे दिन टीवी के सामने बैठे रहते हैं. मनोरंजन के लिए तकनीक पर इतनी अधिक निर्भरता बच्चों को धूप से दूर रखती है और उन में विटामिन डी की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है.

विटामिन डी फोर्टिफिकेशन के लिए राष्ट्रीय नीति न होना : 

पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में फूड फोर्टिफिकेशन की कोई नीति नहीं है. अमेरिका और कनाडा में लागू फोर्टिफिकेशन कार्यक्रम को काफी सफलता मिली है. यूएसए में दूध की फोर्टिफिकेशन 1930 से लागू है, जबकि विटामिन डी की फोर्टिफिकेशन स्वैच्छिक है. फोर्टिफिकेशन का अर्थ किसी उपचार में मौजूद तत्वों की मात्रा से है. जरूरत से ज्यादा फोर्टिफिकेशन न हो, इसलिए इस पर सख्ती से नियंत्रण किया जाता है. यूएस में बिकने वाले ज्यादातर दूध में विटामिन डी मिलाया जाता है. पनीर और पनीरयुक्त उत्पादों को भी फोर्टिफिकेशन की मान्यता प्राप्त है. कुछ कंपनियां नाश्ते के उत्पादों दलिया, सोया दूध, राइस मिल्क और संतरे के जूस में विटामिन डी कैल्शियम के साथ डालती हैं. इस तर्ज पर अगर भारत में राष्ट्रीय नीति लागू की जाए तो यह इस महामारी को काबू करने में मदद कर सकती है.

अस्वस्थ खानपान आदतें : 

औद्योगिकीकरण की वजह से लोगों में माइक्रोन्यूट्रिंएंट्स ग्रहण करने में कमी आ गई है, क्योंकि खाद्य उद्योग पूरी तरह से नमक, चीनी, सब्जियों की वसा और रिफाइंड अनाज पर निर्भर करता है, जो विटामिन और खनिज पदार्थों के बहुत ही कम गुणवत्ता के स्रोत हैं. जो लोग अपना पूरा पोषण इन्हीं उत्पादों से लेते हैं उन की पोषक तत्त्वों की प्रतिदिन की आवश्यक खुराक उन्हें मिल नहीं पाती, जिन में विटामिन डी की कमी भी शामिल है.

अज्ञानता व उपेक्षा

यह बीमारी जांच के दायरे में बहुत कम आ पाई है. इस की वजहें हैं :

लोगों को विटामिन डी की कमी से होने वाले खतरों के बारे में पता ही नहीं है.

डाक्टर मरीजों को विटामिन डी के महत्त्व के बारे में जागरूक ही नहीं करते हैं.

लोग छोटीमोटी थकावट और दर्द को बहुत गंभीरता से नहीं लेते और उन का इलाज आम दुकानों पर उपलब्ध दर्दनिवारक गोलियों से कर लेते हैं. लेकिन जो बात उन्हें नहीं पता, वह यह है कि मामूली थकान और दर्द विटामिन डी की कमी की वजह से होते हैं.

इस बीमारी के स्पष्ट लक्षण पता न होने की वजह से इस की जांच नहीं हो पाती. लोगों में इस बात की जानकारी की भी कमी है कि विटामिन डी की कमी से सिर्फ हड्डियों पर ही नहीं, संपूर्ण सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है. नतीजतन, विटामिन डी की कमी को हलके में नहीं लेना चाहिए. इस के कई तुरंत प्रभाव और कई दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव सेहत पर पड़ते हैं. इस के चलते कई जानलेवा बीमारियां जैसे कैंसर, दिल की बीमारियां और डायबिटीज के होने की संभावना बढ़ जाती है. इस कमी को जागरूकता फैलाने व सेहतमंद जीवनशैली अपनाने, फोर्टिफिकेशन की राष्ट्रीय नीति बनाने और सप्लीमैंटेशन के जरिए काबू में किया जा सकता है.

(लेखक मुंबई के सैफी अस्पताल में एंडोक्राइनोलौजिस्ट, डायबिटोलौजिस्ट और मैटाबोलिक स्पैशलिस्ट हैं.)

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