प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ने 13 राज्यपालों को ताश के पत्तों की तरफ फेंट दिया कुछ इस तरह की मानो तुरुप के पत्ते हों, संविधान में राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है उसकी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति और गरिमा होती है. मगर धीरे-धीरे यह पद आज गरिमाहीन हो चुका हैं और केंद्र सरकार को अपने मालिक की तरह देखता है और हुक्म बजाता है. इन सभी राज्यपालों में सबसे बड़ा नाम है उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति नजीर का.

जिन्हें केंद्र ने आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना करके मानो एक तोहफा दिया है. न्यायमूर्ति नजीर अयोध्या भूमि विवाद, ‘तीन तलाक' और 'निजता के अधिकार' को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले कई बड़े फैसलों को हिस्सा रहे. वे कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे, जिन्होंने 2016 में 1,000 रुपए और 500 रुपए के नोट चलन से बाहर किए जाने से लेकर सरकारी नौकरियों एवं दाखिलों में मराठों के लिए आरक्षण और उच्च सरकारी अधिकारियों की भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तक कई मामलों पर फैसले सुनाए . लोकतांत्रिक देश में इस बात पर अब बहस होनी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति या संवैधानिक पदों पर बैठे विभुतियों को क्या राज्यपाल जैसा या अन्य कोई पद जिसमें वेतन और अन्य सुविधाएं मिलती हैं लेना उचित है. क्या इस नजीर से देश में न्यायाधीशों को अन्य को प्रभावित करने का चलन और ज्यादा नहीं हो जाएगा. दरअसल,राज्यपालों की ताजा नियुक्ति में कई राज्यों में विभिन्न समीकरणों को भी ध्यान में रखा गया है. और यह नियुक्तियां आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अधिक की गई है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...