पिछले 4 दशकों में भारतीय पुरुषों व महिलाओं की औसत आयु में निश्चित रूप से वृद्धि तो हुई है पर भारतीय बुजुर्गों को अपने जीवन के अंतिम वर्ष बहुत जर्जर स्थिति में गुजारने पड़ते हैं. यह सोचने की बात है कि आखिर भारत के लोग अंतिम दिनों में सेहतमंद जिंदगी क्यों नहीं गुजार पाते? जब महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला तो पत्रकार उन के पास प्रतिक्रिया लेने पहुंचे. पत्रकारों ने उन से पूछा, ‘आप को खुशी हुई?’ उन्होंने कहा, ‘सच बताऊं तो कुछ खास नहीं.’

पत्रकारों ने हैरानी से पूछा, ‘क्यों?’ महादेवी वर्मा ने कहा, ‘अगर जवानी में मिलता तो इस का कोई लुत्फ लेती, घूमतीफिरती, पैसे खर्च करती लेकिन इस का मेरे लिए क्या अर्थ है. अब तो मैं बस उस की संख्या बढ़ाने के लिए जिंदा हूं. जबकि सच यह है कि खुद को ढो रही हूं.’ यह 1986 की बात है. मगर बुढ़ापे और सेहत को ले कर अभी भी कुछ खास फर्क नहीं हुआ. इस में कोई दोराय नहीं कि आजादी के बाद से अब तक के समय अंतराल को देखें तो आम भारतीयों की औसत आयु में 15 से 18 साल तक का इजाफा हुआ है. लेकिन जहां तक सेहत का सवाल है, इस में कुछ खास फर्क नहीं हुआ यानी उम्र तो बढ़ गई है लेकिन सेहतमंद उम्र का औसत तकरीबन अभी भी उतना ही है,

जितना दशक पहले हुआ करता था. जानीमानी रिसर्च वैबसाइट मैक्रोट्रैंड्स औसत आयु दर निकालती है. इस के अनुसार भारत में 2023 में औसत आयु दर 70.42 वर्ष है. यह दर पिछले साल 2022 के अनुपात में 0.33 प्रतिशत से अधिक है. 2022 में भारत की औसत आयु दर 70.19 वर्ष थी जो 2021 में 69.96 थी और 2020 में 69.73 वर्ष थी. यूनाइटेड नैशन की रिपोर्ट कहती है कि 2050 तक भारत की औसत आयु दर 81.3 वर्ष हो जाएगी. सालदरसाल भारत में औसत आयु दर में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन भारतीय बुजुर्गों को अपने जीवन के अंतिम वर्ष बहुत जर्जर स्थिति में गुजारने पड़ते हैं. अगर विकसित देशों से तुलना की जाए तो भारतीयों की औसत आयु में इजाफा भी कुछ विशेष नहीं है क्योंकि जिन रोगों से भारत में मौत का खतरा अधिक रहता है उन्हीं रोगों से दूसरे देशों में लोग बच जाते हैं. मतलब यह कि अगर सरकारी नीतियां सही हों तो आसानी से हिंदुस्तानियों की उम्र में भी इजाफा हो सकता है और अकाल मौतों में भी कमी आ सकती है. साथ ही, जीवन के अंतिम वर्षों को भी सेहतमंद बनाया जा सकता है.

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