सरकारी सेंध प्रैस, सोशल मीडिया, टीवी मीडिया, संसद, चुनाव आयोग, ह्यूमन राइट्स आयोग, टैक्स संस्थाओं, सीबीआई व दूसरी जांच एजेंसियों आदि को पूरी तरह काबू में ले कर अब भाजपा सरकार को इन पर रोकटोक लगा सकने वाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता को काबू में करने की जल्दबाजी लग रही है. सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में कलीजियम पद्धति से नए जजों के नाम चुनने की आजादी पर रोक लगाने के लिए छुटभैए छोड़ दिए गए हैं जो अनापशनाप बयानों से न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कलीजियम सिस्टम से नियुक्तियां कर के न्यायपालिका को राजनीतिबाजों से बचने के लिए एक सुदृढ़ किला बना लिया था पर अब सरकार मनचाहे जजों की नियुक्ति करने के लिए उस किले को तोड़ने में लगी हुई है. प्रैस, सोशल मीडिया, टीवी न्यूज चैनलों, संसद, चुनाव आयोग, सीबीआई की तरह न्यायपालिका को भी सरकारी बुलडोजरों से भयभीत रखने का यह सरकार का षड्यंत्र है. अब सोशल मीडिया, कानून मंत्री व उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से केंद्र की भाजपा सरकार ‘कलीजियम सिस्टम’ पर सुप्रीम कोर्ट के साथ बहस को ले कर सड़कों तक उतर आई है और उसे उसी तरह ध्वस्त करने की तैयारी कर रही है जिस तरह भीड़ ले जा कर मसजिद तोड़ी गई थी.

जनता के सामने कलीजियम सिस्टम को खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है. 1993 के बाद पहली बार पूरे देश में बड़े स्तर पर कलीजियम सिस्टम चर्चा का विषय बन गया है. सरकार समर्थक लोग तर्क देते हैं कि भारत के अलावा कलीजियम सिस्टम किसी और देश में नहीं है. वे अमेरिका की तुलना में भारत की न्याय व्यवस्था को कमतर आंकते हैं. यह सही है पर कलीजियम पद्धति के कारण ही भारत की अदालतें मानवाधिकार को ले कर अमेरिका सहित बहुत देशों की अदालतों से अधिक संवेदनशील हैं. महिलाओं के गर्भपात कानून के आईने में देखें तो तसवीर साफ नजर आती है.

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