आम आदमी पार्टी के दूसरे सब से बड़े नेता मनीष सिसोदिया की दिल्ली की शराब नीति में घोटाले के आरोप में गिरफ्तारी भले ही भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक हथियार हो पर इस से यह भी साबित होता है कि आम आदमी पार्टी की बेसिक वोट काटने की नीति कितनी गलत है. आम आदमी पार्टी उन राज्यों में पैर फैला रही है जहां कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है और कांग्रेस से थोड़े उचाट वोटरों को लुभा कर वह भारतीय जनता पार्टी को जितवा रही है. कांग्रेस इसीलिए आम आदमी पार्टी को भाजपा की बी टीम कहती है.

शराब के ठेकों के मामले में कुछ फेरबदल बेबात में किए गए थे, यह आम जनता को दिख रहा था. अचानक पूरे दिल्ली शहर में शराब की दुकानें जेवरों की दुकानों से ज्यादा चमचमाने लगी थीं. ऐसा लग रहा था कि इस धंधे में मोटी कमाई होने वाली है क्योंकि सुंदर शीशों, इंटीरियर डिजाइन वाली दुकानें पहले की गंदी, मैली लोहे की शैल्फों वाली दुकानों, जिन में लोहे के जाल में से शराब बेची जाती थी, से देखने में बेहतर थीं तो इस से बिक्री के साथ उन की कीमतें बढ़ना स्वाभाविक थी. शराब की बिक्री को इंटरनैशनल एयरपोर्टों की सजी दुकानों की तरह बनाने की कोई तुक नहीं थी.

शराब में पैसा सदा रहा है. राज्य हमेशा आम खाने की चीजों को फौर्मेट कर के उन के पानी को निकालने पर अपना नियंत्रण करते रहे हैं और लोगों से इसे टैक्स वसूलने का साधन बनाते रहे हैं. आबकारी कर पुराना है. शराब के अड्डे हमेशा से राजाओं की नजर में रहे और राज्य इन्हें हमेशा प्रोत्साहित करते रहे थे. शराबी प्रजा हर राज्य के लिए कई तरह से लाभदायक होती रही है. शराब का आदी विद्रोह नहीं करता. उस की अपनी माली हालत डांवांडोल रहती है. उस के पत्नी-बच्चे मस्त रहते हैं. वह मारपीट करता है, वह अच्छा सैनिक बनता है क्योंकि उसे घर से निकाल दिया जाता है और शराब पी कर मरने से नहीं डरता.

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