प्राइवेट कोचिंग देने वाली कंपनियां अपना बड़ा आकार ले रही हैं. कुछ तो इतनी बड़ी हो गई हैं कि उन्होंने दूसरे सैक्टर की कई कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया. कोचिंग सैंटर्स का व्यापार इस कदर फैल चुका है कि शिक्षा महंगी होती जा रही है और पेरैंट्स व छात्रों के सपने टूटते जा रहे हैं. कैसे, पेश है रिपोर्ट. पांच साल के अतुल्य की मां का सपना है कि वह अपने बेटे को डाक्टर बनाएगी, इसलिए स्कूल के अलावा उसे अभी से ट्यूशन लगा रखी है जहां उसे किताबों से भरे भारीभरकम बैग के साथ 2 घंटे ट्यूशन में बैठ कर पढ़ना पड़ता है, जबकि पहले से वह स्कूल में 5 घंटे पढ़ कर आ चुका होता है.

यह रोज की बात है, कोई एकदो दिन की नहीं. लेकिन स्कूल व ट्यूशन की पढ़ाई के बाद भी अतुल्य को मुश्किल से 30 तक ही गिनती आती है और इंग्लिश के अक्षरों को पढ़ते समय ‘क्यू’ पर अटक जाता है. यह स्कूल और ट्यूशन की भीषण पढ़ाई तब तक उस के साथ चलेगी जब तक कि वह 12वीं पास करने के बाद प्रीमैडिकल नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरैंस टैस्ट नहीं दे देता. केवल अतुल्य ही अकेला ऐसा बच्चा नहीं है जो कम उम्र में ही स्कूल/ट्यूशन के बो?ा तले दबा जा रहा है, बल्कि आज मातापिता अपने 3-4 साल की बहुत छोटी उम्र के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ने को भेजते हैं.

बचपन से ही बच्चों के दिमाग में ट्यूशन वाला फार्मूला बैठा दिया जाता है कि अगर वह ट्यूशन नहीं जाएगा तो दूसरे बच्चों से पीछे रह जाएगा, फेल हो जाएगा. किसी अच्छे कालेज में उस का एडमिशन नहीं हो पाएगा और फिर वह बड़ा आदमी कैसे बनेगा? एक प्राइवेट कंपनी में मार्केटिंग का काम करने वाले शिवशंकर यादव कहते हैं कि वे अपने बेटे आयुष को कक्षा 3 से ही ट्यूशन क्लास भेज रहे हैं जिस से उस की पढ़ाई की नींव मजबूत रहे. आयुष इस कड़ाके की ठंड में भी अपनी ट्यूशन क्लास के लिए निकल जाता है और फिर उधर से ही स्कूल चला जाता है. आयुष के पापा का कहना है कि उन्होंने अपने बेटे का एडमिशन सीबीएसई बोर्ड के स्कूल में कराया है और 4 हजार रुपए प्रतिमाह स्कूल की फीस जमा करते हैं. 2 हजार रुपए कोचिंग के लिए अलग से देते हैं.

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