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भारत भूमि युगे युगे प्यार, पैसा और…

जब पौराणिक काल में खीर, कान के मैल और पसीने तक से बच्चे पैदा हो जाते थे तो कलियुग  में पोस्टकार्ड से क्यों नहीं हो सकते, बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने गया में इस बात को घुमाफिरा कर यों कहा कि गरीब दंपती एकदूसरे से प्यार करते हैं और साथ रहते हैं, इसलिए उन के बच्चे ज्यादा होते हैं जबकि अमीर पतिपत्नी अलगअलग शहरों में रहते हैं, इसलिए उन के बच्चे पोस्टकार्ड से हो जाते हैं जो नाजायज होते हैं. ‘गरीब संपर्क यात्रा’ के दौरान गया में उन्होंने इस नई थ्योरी को लौंच किया तो सवर्ण महिलाओं ने उन पर चढ़ाई कर दी.

ओशो भी इस सिद्धांत पर माथा पीट लेते और कहते यह कि जमाना अब ईमेल और एसएमएस का है. भड़ास असल में आर्थिक है जिस का अपना शारीरिक पहलू भी होता है. ज्योंज्यों पौराणिकवादी हल्ला मचाते हैं त्योंत्यों जीतनराम जैसे अनुभवी नेता न्यूटन की गति के तीसरे नियम की तरह प्रतिक्रिया देते उन की कमजोरियां उधेड़ कर उन्हें और बौखला देते हैं.

 यूपी में पुलिस बा

उत्तर प्रदेश में विपक्ष का होना न होना बराबर ही है, इसलिए यह जिम्मेदारी अब जिन गिनेचुने कलाकारों को ढोना पड़ रहा है, लोकगायिका नेहा सिंह राठौर उन में से एक हैं जो ‘यूपी में का बा…’ गा कर योगी सरकार की मनमानियां और नाकामियां उजागर करती रहती हैं.

ऐसा ही उन्होंने कानपुर हादसे पर किया तो पुलिस एक अदद चिथड़ा, जिसे नोटिस कहा जाता है, ले कर उन के द्वार पहुंच गई. शुक्र तो इस बात का रहा कि पुलिस बिना बुलडोजर गई नहीं तो सारी बा बा मिमियाहट में तबदील हो जाती और कोई चूं तक न करता.

पुलिस के सहारे राज कर रहे योगी के खिलाफ बोलना भी संगीन जुर्म है फिर नेहा तो गा रही थी जिस का मनोबल तोड़ने के लिए चलताऊ टोटका अपना कर साबित कर दिया गया कि महाराज को आलोचना पसंद नहीं. जिन्हें इस बात में शक है उन्हें मुनव्वर राणा का हश्र याद कर लेना चाहिए जो मुद्दत से कुछ बोले ही नहीं.

 इंसाफ के सिपाही

यह किसी घिसीपिटी पुरानी हिंदी फिल्म का नहीं, बल्कि 75 वर्षीय दिग्गज वकील व भूतपूर्व कांग्रेसी और अब सपा नेता कपिल सिब्बल के गैरराजनीतिक मंच का नाम है जिस के जरिए वे विपक्षी एकता का दुर्लभ सपना देख रहे हैं. सिब्बल दिग्गज इसलिए हैं कि वे एक पेशी का 15 लाख रुपए लेते हैं और कोई 200 करोड़ की उन की नैट वर्थ है. वे चाहें तो पूरे ऐशोआराम से बाकी जिंदगी गुजार सकते हैं लेकिन इस मंच के जरिए वे एक और दुर्लभ सपना देख रहे हैं.

दूसरा सपना नरेंद्र मोदी के विरोध का नहीं, बल्कि उन के सुधार का है जो कभी पूरा होगा, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं. फिर भी, बकौल गालिब, दिल को बहलाने खयाल अच्छा है. अब इस मुहिम के 2 ही नतीजे निकल सकते हैं. उन में से पहला और दूसरा यही है कि जल्द ही कानून के इस रखवाले के यहां भी ईडी जैसी किसी एजेंसी के चरण पड़ सकते हैं. तैयार रहें आप…

 फुस्स हुए विश्वास

जब कविताएं करने में खुद को असहाय और असमर्थ पाने लगे तो रोमैंटिक कवि कुमार विश्वास ने साहित्यिक वैराग्य का एक्सप्रैसवे चुनते रामकथा बांचना शुरू कर दिया. इस से उन्हें मोरारी बापू की तरह इतनी दौलत और शोहरत मिली कि वे अपनी हदें भूल गए. किसी मीनिया के तहत उन्होंने उज्जैन जैसी महा शिवनगरी में वामपंथियों को कुपढ़ और संघियों को अनपढ़ कह दिया. इधर वे तालियां बजने का इंतजार करते रहे और वहां भाजपाइयों ने विरोध में हाथ उठाना शुरू कर दिए तो उन्हें याद आया कि यह बंदर, भालुओं की नहीं, बल्कि भागवत सेना है. सो, झट एक वीडियो के जरिए उन्होंने क्षमा मांग ली.

बात हालांकि दमदार थी पर उस से भी दमदार साध्वी उमा भारती, जो कथावाचन में उन से सीनियर हैं, ने कहा, ‘कुमार, तुम्हारी बुद्धि विकृत है,’ तो कुमार साहब डर कर और डिप्रैस्ड हो कर ऐसे गायब हुए कि लगा कहीं सरयू किनारे न पहुंच गए हों. अब बहुत सा आत्मविश्वास इकट्ठा कर वे रामनवमी पर प्रगट हो सकते हैं.

 

फिल्म मिडिल क्लास लव को मिला एक स्टार

जो लोग खुद को मिडिल क्लास का मानते हैं उन के अंदर ही ललक होती है कि वे भी उच्चवर्ग के लोगों की तरह जीवन जिएं,अच्छा खाएंपिएं, गाड़ियों में घूमें, बगल में पैसे वाली खूबसूरत प्रेमिका हो.
खैर, सपने तो सपने होते हैं. सपने सब के सच नहीं होते, सिर्फ मेहनत कर जिंदगी में आगे बढ़ने वालों के ही सपने सच होते हैं. आज के युवा खुद को ‘मिडिल क्लोरोसिस’ जैसी खतरनाक बीमारी से ग्रसित मानते हैं. वे मिडिल क्लास की लाइफ से तंग आ जाते हैं. उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता कि उन की मिडिल क्लास फैमिली किनकिन परेशानियों से गुजर कर रही है.

यह फिल्म भी एक मिडिल क्लास युवक युधिष्ठिर उर्फ यूडी (प्रीत कमानी) की है जो कूल बनने के चक्कर में अपने दोस्तों तक के दिल तोड़ देता है. वह शहर के सब से महंगे कालेज में एडमिशन लेना चाहता है, जहां वह कोई पैसे वाली छात्रा को पटा कर प्रेमिका बना सके. उस का पिता किशनचंद शर्मा (मनोज पाहवा) खुद का चश्मा ठीक कराने में 200 रुपए तक खर्च नहीं करता. मां टिफिनों में खाना बनाबना कर लोगों को सर्व करती है. बड़ा भाई मां के खाना बनाने में मदद करता है. फिर भी उस का पिता डेढ़ लाख रुपए खर्च कर उस का बढ़िया कालेज में एडमिशन कराता है.

कहते हैं न, हर आदमी के पीछे औरत का हाथ होता है और हर मिडिल क्लास आदमी के पीछे उस का बेटा होता है जिसे वह रोज कंजूसी वाले टिप्स देता है. निर्देशिका रत्ना सिन्हा की यह फिल्म मिडिल क्लास की तमाम परतों और विडंबनाओं को दर्शाती है जिन से मिडिल क्लास के लोग गुजरते हैं.युधिष्ठिर जुगाड़ लगा कर किसी तरह मसूरी के महशूर कालेज तो पहुंच जाता है. कालेज में उस की मुलाकात कालेज की मशहूर लड़की सायशा ओबेराय (काव्या कापूर) से होती है, जिस से डेटकर वह वीआईपी टिकट जीत सकता है. मगर सायशा उसे बौयफ्रैंड बनाने के लिए शर्त रखती है. उसे आशा त्रिपाठी (ईशा सिंह) जैसी लड़की को डेट करना होगा, जिस से साइशा बहुत नफरत करती है.

कहानी में प्रेम त्रिकोण बनता है. कई घुमावदार इंसिडैंट्स होते हैं. आखिरकार, यूडी को यह समझ आ जाता है कि अपनों का साथ कितना जरूरी होता है. क्लाइमैक्स में वह सब के सामने अपनी गलतियां स्वीकार करता है और अपने मम्मीपापा के प्यार को एक्सप्रैस करता है.

निर्देशिका रत्ना सिन्हा प्रसिद्ध निर्देशक अनुभव सिन्हा की पत्नी है. उस की पहली फिल्म ‘शादी में जरूर आना’ थी. फिल्म ‘मिडिल क्लास लव’ में उस ने मिडिल क्लास की परेशानियों को हलकेफुलके अंदाज में पेश किया है. मध्यांतर से पहले की फिल्म धीमी गति में चलती है, मध्यांतर के बाद रफ्तार पकड़ती है.
फिल्म का निर्देशन साधारण है. नए कलाकार प्रभाव नहीं छोड़ते. कहानी प्रिडक्टिबल है. फिल्म को ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ का देसी वर्जन कह सकते हैं. फिल्म जिंदगी का आईना तो दिखाती है, मगर दिलों पर असर नहीं छोड़ पाती.

समीर आर्य और मनीष खुशलानी ने मसूरी की रमणीक लोकेशनों को फिल्माया है. हिमेश रेशमिया के संगीत में थोड़ाबहुत दम है. कुछ गाने अच्छे बन पड़े हैं.अभिनय की दृष्टि से नायक प्रीत कमानी ने आकर्षित किया है. मनोज पाहवा तो सदाबहार ऐक्टर है ही. दोनों नायिकाओं की ऐक्टिंग साधारण है. संवाद कहींकहीं अच्छे बन पड़े हैं. बीचबीच में बढ़िया कौमेडी भी की गई है.

GHKKPM: सई की जिंदगी तबाह करने आएगी ये हसीना, जानें आगे क्या होगा कहानी में

सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों लगातार नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं,खास बात यह है कि हर्षद अरोड़ा की एंट्री के बाद से यह शो और भी ज्यादा खास बन चुका है, दर्शकों को इन लोगों की जोड़ी खूब पसंद आ रही है,

वहीं खबर है कि शो में जल्द तारक मेहता फेम प्रिया अहूजा की एंट्री होने वाली है, प्रिया अहूजा एक जाना पहचाना चेहरा है. जो कि डॉक्टर सत्या की बहन का किरदार अदा कर सकती हैं.

 

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इसके अलावा वह शो में बतौर लावणी डांसर के तौर पर भी नजर आएंगी, उसकी एंट्री से सत्या और साई की लव स्टोरी में नया एंग्ल मिलेगा. जहां एक तरफ विराट सई की तरफ बढ़ रहा है वहीं पत्रलेखा सई के घर से बाहर करने का वकील का सहारा लेती नजर आ रही है.

वहीं दूसरी तरफ सई और सत्या की नोक -झोंक दोस्ती में बदलने वाली है, वहीं विराट सई के सामने हाथ जोड़कर कहता है कि वह सबकुछ छोड़कर नई शुरुआत करना चाहता है.

YRKKH: अक्षरा की याद में घर परिवार से अलग होगा अभिमन्यु, जानें आगे क्या होगा?

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है दर्शकों के बीच में चर्चा में बना हुआ है, इस सीरियल में रोज एक नया ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसे अक्षरा या अभिमन्यु सुलझाते हुए नजर आ रहे हैं, फैंस एक बार फिर से अक्षरा और अभिमन्यु को एक साथ देखना चाहते हैं लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है.

बीते एपिसोड में देखने को मिला था, कि अक्षरा अभिनव को जेल से निकलवा लेती है, वहीं अभिमन्यु शेफाली का साथ देते हुए मंजरी को एहसास दिलाता है कि मंजरी ने जो किया है अक्षरा के साथ वह काफी ज्यादा गलत किया है. वहीं अपकमिंग एपिसोड में आपको काफी ज्यादा बदलाव देखने को मिलेगा.

 

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अभिमन्यु पूरे घर में सबको बताता है कि पार्थ शेफाली के साथ मारपीट करता है,लेकिन शेफाली इस बात को लिए मना कर देती है कि ऐसा कुछ भी नहीं है, लेकिन शेफाली के चेहरे पर निशान साफ नजर आ रहा है कि शेफाली को पार्थ ने मारा है.

जिसके बाद काफी ज्यादा ड्रामा होता है और पार्थ को घर से निकाल दिया जाता है, सीरियल में आगे दिखाया जाएगा कि अभिनव और अक्षरा के बीच में सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा, अभिनव अक्षरा के नाम के आगे से जी हटा देगा.

यह सुनकर अक्षरा काफी ज्यादा खुश होगी, इसके बाद से अक्षरा को घर से बाहर कायरव दिखता है, जिसे देखते ही अक्षरा खुश हो जाएगी, कायरव सबसे मिलकर अबीर के लिए घर के अंदर मिलने जाता है, कायरव अंदर जाकर देखता है कि अक्षु अपनी जिंदगी में काफी ज्यादा खुश है, बहन को खुश देखकर वह भी काफी ज्यादा खुश हो जाता है.

भारत को औस्कर

सिनेमा जगत में प्रदान किए जाने वाले औस्कर पुरस्कार एक तरह के नोबेल पुरस्कार होते हैं. और इस साल 2 पुरस्कार भारत की फिल्म ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटूनाटू…’ और भारत की डौक्यूमैंट्री फिल्म ‘द एलिफैंट व्हिस्पर्स’ को मिलने से देश को बेहद खुशी हुई है. पहले ‘गांधी’ और ‘स्लमडौग मिलेनियर्स’ जैसी फिल्मों को औस्कर मिले पर वे विदेशियों द्वारा भारत में बनाई गई थीं. लेकिन ये दोनों पुरस्कार भारतीय कलाकारों की भारतीय तकनीक व कौशल के दिखाने वाले हैं जो बेहद खुशी की बात है.

‘नाटूनाटू…’ गाने की धुन, संगीत और उस के रिदम ने विश्वप्रसिद्ध गायिका रिहाना के गाने को पीछे छोड़ दिया. इसी तरह फिल्म ‘द एलिफैंट व्हिस्पर्स’ में सहज व सरल ढंग से हाथियों के बच्चों के साथ मानव का व्यवहार छू जाने वाला है.

भारतीय फिल्म जगत बहुत बड़ा है और अरबों की कमाई वाला है पर आमतौर पर आरोप लगता है कि यहां विदेशी फिल्मों को देख कर उन में देसी छौंके लगाए जाते हैं वरना हूबहू नक्ल होती हैं. इन आरोपों में दम है पर भारतीय फिल्म जगत अब दुनियाभर में पैर पसार रहा है और जैसेजैसे डबिंग तकनीक सुधर रही है, भारतीय फिल्मों का विदेशी बाजार बढ़ रहा है जहां उन्हें न केवल भूल भारतीयों द्वारा पसंद किया जा रहा है बल्कि विदेशियों द्वारा भी पसंद किया जा रहा है. चीन भारतीयों फिल्में का एक बड़ा बाजार बनता जा रहा है.

भारत चाहे गरीबों का बड़ा देश हो पर है बड़ा, यह इस फिल्म पुरस्कार का मिलना जताता है. औस्कर अब भारत में पहुंचने लगे हैं और हौलीवुड की इन पर मोनोपोली नहीं रह गई है. भारतीय कलाकार अब औस्कर पुरस्कारों में अक्सर नजर आने लगे हैं.

जरूरत यह है कि भारतीय फिल्में समाज को बदलने का काम करें. पिछले 5-7 सालों में कई प्रचारात्मक फिल्में बनी हैं जिन का उद्देश्य केवल सत्ता में जमीं पार्टी का गुणगान करना और भारत को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाना है. फिल्मों का मुख्य काम वह दिखाना होना चाहिए जो आज जनता न देख सके. फिल्मों को दर्शकों को गुदगुदाना ही नहीं चाहिए, उन्हें उत्तेजित भी कर देना चाहिए.

यह सही है कि यहां फिल्मों को ले कर राजनीतिक विवाद खूब खड़े किए जा रहे हैं, जैसे ‘पठान’ फिल्म को ले कर खड़े किए गए थे पर अंत में सब आपत्तियां बेबुनियाद साबित हुईं और फिल्म बौक्सऔफिस पर बुढिय़ाते हीरो के साथ भी बेहद सफल हुई. ‘नाटूनाटू…’ गाने वाली फिल्म हिंदी संस्करण में भी खूब चली थी, हालांकि, पुरस्कार उस के मूल तेलुगू गाने पर दिया गया है.

अंधविश्वास का भ्रमजाल

शुभम घर से कालेज जाने के लिए निकल ही रहा था कि पीछे से उस की पड़ोस वाली चाची ने टोक दिया, “अरे शुभम बेटा, कालेज जा रहो हो क्या?” चाची के टोक देने से शुभम एकदम से चिढ़ गया और कोई जवाब न दे कर चलता बना. लेकिन उस का मूड तो औफ हो ही चुका था. पूरे रास्ते वह यही सोचता रहा कि आज उस का पहला पेपर है और चाची ने पीछे से टोक दिया. कहीं कुछ अशुभ न हो जाए. कहीं पेपर खराब चला गया तो क्या करेगा वह. सिर्फ शुभम ही क्यों? ज्यादातर लोग इन सब बातों को मानते हैं. घर से निकलते समय किसी के पूछ लेने भर से कि कहां जा रहे हो? अकसर लोग चिढ़ जाते हैं. भले, उस वक्त वे वह कुछ न बोल पाते हों पर चेहरे पर खिन्नता के भाव स्पष्ट नजर आते हैं.

हमें अपने बड़ेबुजुर्गों से अकसर यह सुनने को मिलता है कि घर से निकलते वक़्त अगर कोई टोक दे तो अच्छा शगुन नहीं होता. बिल्ली रास्ता काट दे या कोई छींक दे तो बुरा होता है. ऐसे और भी बहुत से अंधविश्वास हैं जो लोगों के मुंह से या फिर घर के बड़ों द्वारा बताए गए हैं जो हमारे जेहन में घूमते हैं और हम यही सोचते हैं कि हो सकता है ये सच हों. अगर काली बिल्ली रास्ता काटे तो हम पीछे हट जाते हैं या थोड़ी देर रुक जाते हैं फिर चाहे औफिस के लिए देर ही क्यों न हो जाए. जाते समय कोई छींक दे तो हम रुक जाते हैं भले ही हमारी ट्रेन ही क्यों न छूट जाए.

24 वर्षीय सौफ्टवेयर इंजीनियर विकास का कहना है, ‘“सूर्यग्रहण के दिन बुरे ग्रहों को दूर करने के लिए हम भिखारियों को अनाज दान करते हैं ताकि बुरे ग्रहों का प्रभाव दूर हो जाए. इस सूर्यग्रहण में भी जब हम भिखारियों को अनाज दान करने गए, हालांकि, इस में मेरी मरजी शामिल नहीं थी, बल्कि अपनी मां के कहने पर मुझे ऐसा करना पड़ा. लेकिन जब मैं भिखारियों को भीख दे रहा था तब किसी ने मेरी जेब काट ली. तब मुझे लगा मां की बात न मान कर अगर मैं भिखारियों को भीख न देता तो आज मेरी जेब न कटती.’”

26 वर्षीय आर्किटैक्ट मौली एक बड़े शहर में रहती है और आधुनिक जीवन जीती है. लेकिन फिर भी वह पुराने रीतिरिवाजों व परंपराओं को मानती है. नवरात्र, शिवरात्रि, सावन, जो भी हिंदू व्रत त्योहार आते हैं, वह सब रखती है. पूछने पर कि उसे पता भी है इन परंपराओं के पीछे की क्या कहानी है और यह कैसे शुरू हुई थी? क्यों यह व्रत-उपवास किया जाता है? उस पर वह हंसती हुई कहती है कि अब शुरू से मां-दादी को करतेदेखती आई हूं तो मैं भी कर रही हूं. इस में हर्ज ही क्या है.

अधिकांश युवा जोर दे कर कहते हैं कि वे अंधविश्वासों में विश्वास नहीं करते हैं लेकिन फिर भी उन के साथ चलते हैं. कुछ अपने मातापिता की खातिर ऐसा करते हैं तो कुछ लोगों के दबाव में या दूसरों की देखादेखी ऐसा करते हैं. कालेज के दौरान मीनाक्षी नवरात्र का व्रत रखती है. कहती है कि वह ऐसा इसलिए करती है क्योंकि उस के सारे दोस्त उस समय उपवास कर रहे होते हैं, तो वह भी कर लेती है.

मनोविश्लेषक इस का श्रेय अपनेपन की चाह को देते हैं. लेकिन अधिकांश अंधविश्वासों का मूलकारण भय ही रहता है. पौराणिक कथाओं के विशेषज्ञ देवदत्त पटनायक का कहना है कि, ‘भविष्य को नियंत्रित करने की हमारी इच्छा से अंधविश्वास पैदा होता है. वे हम से ऐसे काम करवाते हैं जिन्हें हम तर्कसंगत रूप से समझने में सक्षम नहीं हो सकते.’

वैसे, आजकल के युवा काफी मौडर्न और शिक्षित हो चुके हैं लेकिन अंधविश्वास के मामले में वे भी पीछे नहीं हैं. आजकल के युवा न्यूईयर भी मना लेते हैं, दोस्तों के साथ गोवा के ट्रिप पर भी चले जाते हैं और अपनी मां के कहने पर मंदिरों में मत्था भी टेक आते हैं. उन का आश्रमों और मैडिटेशन सैंटरों में जाना भी एक फैशन बन चुका है क्योंकि तर्क ताक पर रखा जा चुका है.

जब बात युवाओं की नौकरी या शादी की आती है तो वे ज्योतिष और पंडितों के टोटके और उपायों पर भरोसा करने से भी नहीं हिचकते हैं. लाइफ में कुछ भी मुसीबतें आईं, जैसे कि लव मैरिज के लिए पेरैंट्स नहीं मान रहे हैं, या फिर सालों से बेरोजगार बैठा है तो उसे अपनी कुंडली में दोषग्रह की आशंका होने लगती है और जिस के उपाय के लिए वह बाबाओं के चक्कर लगाने लगता है.

आप को जान कर आश्चर्य होगा कि युवा अपने पुराने प्रेम को वापस पाने, तलाक को रोकने, पार्टनर को वश में करने के लिए भी ज्योतिष के टोटके और उपायों की मदद लेने के बारे में सोचते हैं. लेकिन आजकल के पंडेपुजारियों ने लोगों की परेशानियों को अपना बिजनैस बना लिया है. लोगों की परेशानी का हल निकले न निकले, पर इन बाबाओं की जेबें जरूर गरम हो जाती हैं.

युवा क्रिकेटर भी अंधविश्वासी

 युवा क्रिकेटर शुभम गिल अपने हर मैच के दौरान मैदान पर अपने साथ लाल रूमाल रखते हैं. उन का मानना है कि लाल रूमाल रखने से वे मैदान पर बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं. कभीकभी खिलाड़ी मैदान में अच्छे प्रदर्शन के लिए तरहतरह के हथकंडे और अंधविश्वासों पर भरोसा करते हैं. कुछ खिलाड़ी अपने साथ एक निश्चित रंग और नंबर रखना पसंद करते हैं जबकि कुछ अपनी पसंदीदा चीजें अपने पास रखना पसंद करते हैं ताकि वे असुरक्षित महसूस न करें और इन तरकीबों से अच्छा प्रदर्शन कर सकें.

20 साल की निधि (बदला हुआ नाम) अंधविश्वास पर बहुत विश्वास करती है. उस के मोबाइल पर जब धर्म से जुड़ा कोई भी मैसेज आता है और उस पर लिखा होता है कि अगर आप ने एक मिनट के अंदर 20 लोगों को यह मैसेज फौरवर्ड कर दिया तो आज आप को कोई खुशखबरी सुनने को मिलेगी. बिना देर किए वह अपने दोस्तोंरिशतेदारों को वह मैसेज फौरवर्ड कर देती है.

निधि का कहना है, ‘“मुझे पता है, यह मेरा अंधविश्वास है. लेकिन इस में बुराई भी क्या है. हो सकता है खुशखबरी मिल भी जाए. इसलिए आजमाने में हर्ज ही क्या है? मैं इस तरह के मेल ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजती हूं.”’ एक छात्र का कहना है कि जब वह साईं बाबा का ताबीज पहनता है तो आश्वस्त रहता है कि परीक्षा में वह पास हो जाएगा.

क्या आप राक्षस जैसी बातों पर विश्वास करते हैं? आप पूरे विश्वास के साथ कहेंगे, कोई राक्षसवाक्षस नहीं होता, ये सब फालतू की बातें हैं. लेकिन भूत पर आप एक मिनट सोचेंगे जरूर कि भूत होता है. शायद डर भी जाएंगे. भूतों के अस्तित्व पर न केवल पिछड़े समाज में, बल्कि विकसित और सभ्य पश्चिमी देशों में चर्चा होती है. साहित्य में हो या फिल्मों में, भूतों को जगह दी गई है. भूतों को ले कर कई फिल्में भी बनी हैं. हम कहते हैं कि राक्षस जैसी बातें अंधविश्वास हैं लेकिन भूत जैसी बातों पर बड़े विश्वास के साथ बात करते हैं.

अंधविश्वास है क्या?

अंधविश्वास एक ऐसा विश्वास है जिस का कोई उचित कारण नहीं होता है. हमारे घरपरिवार में बचपन से ही हमें अंधविश्वास के घेरे में ऐसे पालपोस कर बड़ा किया जाता है कि बड़े हो कर हम उन्हीं का अक्षरश: पालन करते हैं. शुभअशुभ जैसी बातें हमारे दिमाग में इतनी गहरी बैठ जाती हैं कि कोई काम करने से पहले हम सोचते हैं कि यह काम हम आज करें या कल. किस दिन कौन से रंग के पकड़े पहनने हैं, कौन से दिन बालदाढ़ी नहीं बनवाना चाहिए, कौन से दिन नौनवेज नहीं खाना चाहिए आदि सब बातें बचपन से ही दिमाग में बैठा दी जाती हैं और जो पीढ़ीदरपीढ़ी आगे बढ़ता जाता है.

अंधविश्वास अकसर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान एंव कमजोर मानसिकता के लोगों में देखने को मिलता है. जीवन में असफल रहे लोग अकसर अंधविश्वास में विश्वास रखने लगते हैं और ऐसा मानते हैं कि इन अंधविश्वासों को मानने और इन पर चलने से ही शायद वे सफल हो जाएं. कुछ अंधविश्वास ऐसे हैं जो परंपरागत नहीं होते बल्कि धर्म के ठेकेदारों द्वारा फैलाए गए भ्रम होते हैं जिन में पीढ़ीदरपीढ़ी फंसती चली जाती है.

अंधविश्वास को मिलता बढ़ावा

बात इसी महीने की 26 तारीख की है. अमेरिका की एक फ्लाइट 37 हजार फुट की ऊंचाई पर उड़ रही थी, तभी उस फ्लाइट में सवार एक 34 साल की महिला, एलोम एगबेग्निनौ, अचानक से फ्लाइट का दरवाजा खोलने लगी. जब उसे ऐसा करने से एक शख्स ने रोका तो उस ने उस की जांघ को काट लिया और फ्लोर पर अपना सिर पीटने लगी. फ्लाइट अटेंडैंट ने जब उस से पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रही है, तो महिला ने जवाब दिया कि उसे ऐसा करने के लिए जीसस ने कहा. अब बताइए, इसे अंधविश्वास नहीं तो और क्या कहेंगे?

अंधविश्वासपूर्ण मान्यताओं की जड़ें केवल अशिक्षित वर्ग में ही व्याप्त नहीं है, बल्कि शिक्षित वर्ग में भी फैली हुई हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफैसर हरवंशजी मुखिया का कहना था कि यह एक भ्रामक विचार है कि शिक्षित वर्ग अधिक विवेकपूर्ण व तर्कसंगत होता है और अशिक्षित वर्ग अंधविश्वास में अधिक यकीन रखता है.

अंधविश्वास विकासशील देश ही नहीं, अपितु विकसित देशों में भी देखने को मिल जाएगा. अंधविश्वास लोगों के मन में डर पैदा करता है. यह अंधविश्वास नहीं तो और क्या है कि कहीं भगवान बीमार पड़ रहे हैं, तो कहीं ज्यादा आम खाने से भगवान की तबीयत बिगड़ जाती है और कहीं तांत्रिक विद्या के लिए बलि चढ़ाई जाती है. सब से ज्यादा दुखी करने वाली बात तो यह है कि देश के भविष्य कहे जाने वाले युवावर्ग भी जब अंधविश्वास जैसे बातों पर भरोसा करते हैं तो वे आगे चल कर देश और राष्ट्र के लिए क्या ही करेंगे.

 अंधविश्वास का जन्म

हमारी संस्कृति में भय और कुछ जगहों पर कट्टरपंथी सोच के कारण पाखंड भी देखने को मिलता है. जब किसी चीज का वैज्ञानिक आधार ज्ञात नहीं था, तो धर्मशास्त्रियों ने उन के विचारों को पुष्ट करने के लिए धर्म से जोड़ देते थे.

ऐसे समय में जब कुछ लोग शास्त्र को पढ़ सकते थे, शास्त्रों की गलत व्याख्या करने की प्रथा ने संस्कृति के भीतर अंधविश्वास को जन्म दिया. हमारी कई संस्कृतियां ऋगवैदिक काल और पूर्व की सभ्यता के बाद से हैं. लेकिन क्या उस समय के वेदों और समकालीन ग्रंथों पर भी अंधविश्वास का बोझ था? नहीं था.

इसलिए यह मान कर चलिए की सभी अंधविश्वासों की शुरुआत मध्य में परिवर्तित हुए कई व्यवहारों से हुई थी. हालांकि, हमारे समाज में देखे गए अंधविश्वास किसी भी वैदिक ग्रंथ में नहीं पाए जाते हैं. प्राचीन शास्त्रों में कहीं नहीं कहा गया है कि अगर कोई बिल्ली चलते समय रास्ता काट जाए तो वह अशुभ होता है. एक बच्चे को जन्म के बाद 8 साल तक जाति और धर्म का बोझ नहीं उठाना पड़ता है लेकिन ज्योंज्यों वह बड़ा होता जाता है, उस के अंदर धर्मजाति का बोध होने लगता है.

अंधविश्वास पर न करें विश्वास

अंधविश्वास का मतलब है किसी पर आंख मूंद कर विश्वास करना. अपने बुद्धिविवेक को ताले में बंद कर जब आप किसी के बताए रास्ते पर चलते हैं तो वह आप को प्रगति के बजाय विनाश के रास्ते पर ले जाता है. जब आप अपना रिमोट कंट्रोल दूसरों के हाथों में देते हैं तो वह उसे अपने तरीके से इस्तेमाल करता है.

अंधविश्वास की शिक्षा आप को इतने विश्वास के साथ दिलाई जाती है कि आप को वही सही लगता है. लेकिन बाद में जब आप उन के जाल में फंस जाते हैं तो फिर बाहर निकलने का रास्ता नहीं सूझता. आज भी गांवों में बेरोजगार युवक अंधविश्वास के भंवर में फंस कर तंत्रमंत्र को रोजगार की सीढ़ी बना रहे हैं.

कुछ युवा रोजीरोजगार के चक्कर में आसानी से ठगों के जाल में फंस कर अंगूठी, कीमती पत्थर, मूंगा मोती अपनी उंगलियों में धारण कर लेते हैं इस उम्मीद से कि कोई चमत्कार होगा. आज इंसान चांद पर बसने की सोच रहा है, इस के बावजूद देश का बड़ा वर्ग अंधविश्वास के चंगुल में आसानी से फंसा हुआ है तो यह अफसोस की ही बात है कि इस में पढेलिखे युवा भी शामिल हैं.

युवाओं को काल्पनिक और अंधविश्वास से बचने की जरूरत है. उन्हें भ्रामक कल्पना करने वाला और अंधविश्वासी हरगिज नहीं होना चाहिए. जिस वस्तु का कोई अस्तित्व न हो, ऐसी वस्तु पर विश्वास करना ही अंधविश्वास कहलाता है. आज कहीं न कहीं अधिकांश युवा पीढ़ी अपनी दिमागी तर्कशक्ति का उपयोग करने में असमर्थ है. यही वजह है कि वह पूरी तरह से अंधविश्वास की जड़ों में जकड़ी हुई है. कुछ युवा वास्तविक जीवन से ज्यादा काल्पनिक जीवन जीना पसंद करते हैं.

यदि हमें किसी विषय के बारे में पता नहीं है और लोगों की सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर के उसे करते चले जाते हैं तो वह हमारी अशिक्षा या अज्ञानता ही है. आखिर कौन सी किताब में लिखा है कि दही खा कर बाहर निकलने से काम में सफलता मिलती है? या तावीज पहनने से हम परीक्षा में पास हो जाएंगे? फिर तो कोई पढ़ाई ही न करे और दही व तावीज से काम चला कर अच्छे नंबरों से पास होता रहे.

यह जान लीजिए की अंधविश्वास में घिरे लोग कभी खुश नहीं हो सकते. इसलिए शिक्षा के साथसाथ पहले अपनेआप में ज्ञान का प्रकाश फैलाइए और तर्कहीन बातों से दूर रहिए. सचाई जाने बिना किसी भी बात पर भरोसा न करें. हर बात के बारे में वास्तविकता क्या है, यह जानने की कोशिश करें. लोगों से तर्क करिए. तभी आप का वास्तविक विकास और उत्थान शुरू होगा.

खुद की मेहनत पर करें विश्वास

युवा जोश और हौसले का दूसरा नाम है. युवाओं को आगे बढ़ कर अंधविश्वास जैसी कुरीतियों का बहिष्कार करना चाहिए. लोगों को इस के बारे में जागरूक करना चाहिए. ताकि, पीढ़ीदरपीढ़ी चली आ रही इस खोखली परंपरा को जड़ से खत्म किया जा सके. युवाओं को अपने साथ इस काम के लिए और भी लोगों को जोड़ना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जागरूक हो सकें.

रहें हमेशा सकारात्मक

नकारात्मक और नकारा जैसे लोग अंधविश्वास पर ज्यादा विश्वास करते हैं. पैसे वाले पढ़ेलिखे, सुखसुविधाओं में जीने वाले लोग भी अंधविश्वास पर भरोसा कर तांत्रिक पूजा करवाते हैं ताकि उन का यह वैभव उन से छिन न जाए. गरीब तबके के लोग इसलिए टोनाटोटका और जादुई शक्ति जैसी बातों पर विश्वास करते हैं ताकि उन की जिंदगी में वह सब आ जाए जिस की उन्हें चाह है. लेकिन ठगे दोनों जाते हैं.

महंगाई और धार्मिक यात्राओं ने बिगाड़ा ‘बचत का गणित’

भारत में महंगाई अब चर्चा का विषय नहीं रह गया है. जब भी किसी वस्तु के दाम बढ़ते है, अखबारों में सिंगल कौलम खबर छप जाती है. जो खबर कम, सूचना अधिक होती है. 1 मार्च, 2023 को सुबह के अखबारों से पता चला कि केंद्र सरकार ने घरेलू रसोई गैस की कीमत में 50 रुपए बढ़ा दिया है. सरकार ने इस तरह से जनता को होली का उपहार दिया. होली से पहले आम जनता को महंगाई का तगड़ा झटका लगा. पहले त्योहारों के समय सरकार जनता को राहत देने वाले काम करती थी. 14.2 किलोग्राम के रसोई गैस सिलैंडर को 50 रुपए महंगा कर दिया गया. दिल्ली में इस की कीमत 1,103 रुपए हो गई. हर शहर में इस की कीमत बढ़ गई.

घरेलू गैस के साथ ही साथ कमर्शियल सिलैंडर के दाम भी बढ़ा दिए गए. 19 किलोग्राम वाले कमर्शियल सिलैंडर के दाम में 350.50 रुपए का बड़ा इजाफा किया गया. इस के बाद दिल्ली में इस की कीमत 1,769 रुपए से बढ़ कर 2,119.5 रुपए, मुंबई में 1,721 रुपए की जगह 2,071.5 रुपए, कोलकाता में रेट 1,870 रुपए से बढ़ कर 2,221.5 रुपए और चेन्नई में 1,917 रुपए के बजाय 2,268 रुपए हो गई. इस का असर बाजार में बिकने वाली खानेपीने की चीजों पर पडा. होली में सब से अधिक खोया प्रयोग में आता है. इस का उपयोग गुझिया बनाने में किया जाता है. जो खोया मार्च के पहले 3 सौ रुपए किलो मिलता था, गैस की कीमत बढ़ने के बाद 4 सौ से  अधिक कीमत का हो गया.

केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा घरेलू रसोई गैस और कमर्शियल गैस सिलैंडर के दामों में वृद्धि को कांग्रेस ने देश की आम जनता पर गहरी चोट बताया. उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष व पूर्व सांसद बृजलाल खाबरी के नेतृत्व में कांग्रेसी लोगों ने प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय से निकल कर विधानसभा पर विरोध प्रदर्शन किया. पुलिस प्रशासन ने उन्हें विधानसभा जाने से रोक दिया. जिस के विरोध में कांग्रेसजन धरने पर बैठे.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने कहा कि जब से देश एवं प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें सत्ता में आई हैं, महंगाई अपने चरमोत्कर्ष पर है. रोज ही खाद्य वस्तुओं आटा, दाल, सरसों के तेल इत्यादि के दाम बढ़ रहे है. केंद्र की मोदी सरकार को देश की आम जनता की कोई परवा नहीं है. वह अपने पूंजीपति मित्रों को लाभ पहुंचाने की दिशा में कार्य कर रही है जो कि देश की भोलीभाली जनता पर सीधा कुठाराघात है.

कांग्रेस जिलाध्यक्ष वेद प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी सदैव जनहितों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाते हुए सदन से ले कर सड़क तक संघर्षरत रही है. कांग्रेस घरेलू गैस के दामों में हुई अप्रत्याशित वृद्धि का सख्त विरोध करती है. यदि सरकार जल्द से जल्द बढ़े हुए दामों को वापस नहीं लेती है तो कांग्रेस पार्टी अपने प्रदर्शन का और भी अधिक उग्र स्वरूप प्रदान करेगी. प्रदर्शन में बड़ी संख्या में कांग्रेसी कार्यकताओं ने हिस्सा लिया. कांग्रेस ने जो प्रदर्शन किया वह अखबारों की छोटी सी खबर बन कर रह गया. इस की वजह यह है कि जनता महंगाई से परेशान है पर उस में सरकार के प्रति कोई गुस्सा नहीं है.

महंगाई बढ़ने के कारण
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दोहरे संकट से जूझ रही है. महंगाई और तेजी से गिरते रुपए ने अर्थव्यवस्था को मुश्किल में डाल दिया है. देश में बीते जून में खुदरा महंगाई दर 7.01 फीसदी थी. यह अभी भी आरबीआई की अधिकतम सीमा यानी 6 फीसदी से अधिक है. दूसरी ओर डौलर की तुलना में रुपए में तेज गिरावट जारी है. डौलर महंगा होने से भारत का आयात और महंगा होता जा रहा है और इस से घरेलू बाजार में चीजों के दाम भी बढ़ रहे हैं. हाल में जो महंगाई बढ़ी है उस में पैट्रोलडीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का बड़ा हाथ है.

ऐसे दौर में जब महंगाई लगातार बढ़ती जा रही, उस पर सरकार ने कई जरूरी चीजों पर जीएसटी बढ़ाने का फैसला किया. यह लोगों पर महंगाई की दोहरी मार है. जब जीएसटी की शुरुआत की गई थी तब एवरेज न्यूट्रल रेट 12 फीसदी रखने की बात हुई थी. लेकिन राजनीतिक कारणों से कई राज्यों ने यह मांग रखी कि यह रेट कम होना चाहिए. इसलिए कुछ जरूरी चीजों पर कोई जीएसटी नहीं लगाया गया और कुछ चीजों पर पांचदस फीसदी टैक्स लगाया गया. लेकिन इस से सरकार का राजस्व घटने लगा. जीएसटी बढने से जो राजस्व बढ़ा दिखाई दे रहा है वह जनता पर बोझ के कारण बढ़ा है.

महंगाई ने रोके जरूरी काम
महंगाई के असर से हर चीज की कीमत दोगुनी हो गई है. फल, सब्जियां या किराने का सामान खरीदते हैं तो 1,500 रुपए का बिल बन जाता है. परिवार में लोगों की इच्छाएं बढ़ने लगी हैं. लखनऊ की रहने वाली शालिनी श्रीवास्तव कहती हैं, ‘हमारे परिवार में बच्चे और बुजुर्ग दोनों हैं. इसलिए हम बहुत ज्यादा कटौती नहीं कर सकते. हमें अच्छे खाने और फलसब्जियों की जरूरत होती है. फल और सब्जियों के बढ़ते दाम चिंता का कारण बन गए हैं. हम पहले हर त्योहार में लोगों को मिठाई और जरूरत का सामान देते थे लेकिन इस साल महंगाई के कारण यह बड़ी संख्या में नहीं हो पा रहा है. पैट्रोल, डीजल और गैस के बढ़ते दामों को देख कर कोई अलग खर्च करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है.’

बढ़ती महंगाई के कारण लोगों ने कई जरूरी कामों को रोक दिया है. इन में सब से बड़ा कारण बचत का है. बैंकों के बचत खाते में पैसा जमा होता था. घरेलू खर्च से कटौती कर के बैंकों में पैसा रखा जाता था. कई बार महिलाएं अपने पास नकदी भी बचा कर रखती थीं. नोटबंदी के समय औरतों की इस जमा बचत को ले कर तमाम तरह की बातें हुई थीं. अब महिलांए यह बचत नहीं कर पा रही हैं. शालिनी श्रीवास्तव कहती हैं, ‘आज बढ़ती महंगाई में रसोई के खर्च पूरे ही नहीं हो रहे हैं. ऐसे में बचत की बात तो लोग सोच ही नहीं सकते.’

रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने अपने मार्जिनल कास्ट औफ फंड्स बेस्ड लैंडिंग रेट यानी कर्ज की दरों में 10 बेसिस पौइंट या 0.10 फीसदी की बढ़ोतरी की है. बैंक के अनुसार, नई एमसीएलआर दर 1 मार्च, 2023 से लागू कर दी गई है. इस के चलते अब बैंक से होम लोन, पर्सनल लोन और औटो लोन समेत सभी तरह के कर्ज महंगे हो जाएंगे. इन तमाम कारणों से बचत कम हो गई है.

एक तरफ महंगाई के कारण लोगों की बचत कम हो रही है दूसरी तरफ वे अपनी मेहनत की कमाई धार्मिक स्थलों के पर्यटन व कथाप्रवचनों को सुनने के लिए चढावे में भेंट चढ़ा दे रहे हैं. लोगों को कई तरह से इस के लिए लुभाने का काम होता है. इस में सरकार और टीवी चैनलों का बहुत बड़ा रोल है. वे इन चीजों का इतना महिमामंडन करते हैं कि लोगों को लगता है कि यहां नहीं गए तो जीवन बेकार है. इस में उलझ कर धार्मिक पर्यटन और कथाप्रवचन में चढ़ावा बचत से भी अधिक जरूरी लगने लगता है. बचत का पैसा बैंकों में न जा कर धार्मिक यात्राओं में खर्च हो जाता है.

बढ़ रहा धार्मिक पर्यटन
महंगाई के बाद भी धार्मिक पर्यटन बढ़ रहा है. धार्मिक स्थलों पर जाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. धार्मिक पर्यटन स्थलों की चमक बढ़ रही है. केंद्र सरकार इस को ही दिखा कर बता रही है कि देश तरक्की की राह पर चल रहा है. सरकार धार्मिक पर्यटन के सहारे ही अपना खजाना भर रही है. धार्मिक पर्यटन पहले के मुकाबले काफी महंगा हो गया है. सरकार लोगों को लुभाने के लिए यहां नएनए लालच देती जा रही है. धार्मिक पर्यटन स्थलों में जाने से सरकार को 2 तरह के लाभ हो रहे हैं- एक, उस का हिंदुत्व का चुनावी मुददा प्रभावी बना हुआ है, दूसरे, उस का और मंदिरों का खजाना भी भर रहा है. टीवी चैनलों के प्रचारप्रसार से प्रभावित लोग अपनी बचत को धार्मिक पर्यटन स्थलों में घूमने पर खर्च कर रहे हैं.

केंद्र सरकार ने काशी विश्वनाथ, मथुरा, केदारनाथ, चारधाम यात्रा, महाकाल और अयोध्या में राममंदिर जैसे धार्मिक स्थलों का विकास कर के उन का ऐसा महिमामंडन किया कि हर कोई वहां जाने लगा. देश में ऐसे अनगिनत मंदिर और तीर्थस्थल हैं जिन से लाखोंकरोड़ों लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं. आस्था और राजनीति के साथसाथ तीर्थस्थलों का एक अर्थशास्त्र भी होता है. 250 साल बाद काशी विश्वनाथ धाम का कायाकल्प हुआ. जिस के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर 3 हजार स्क्वायर फुट से बढ़ कर 5 लाख स्क्वायर फुट में फैल गया है. अब मंदिर परिसर में 75 हजार श्रद्धालु आ सकते हैं. इतनी अधिक संख्या में लोग यहां आएंगे तो उन की बचत का पैसा बैंकों में न जा कर मंदिरों और पूजापाठ में ही तो खर्च होगा.

मंदिर और दूसरे तीर्थस्थलों के बारे में आम धारणा यही है कि इस से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है और पर्यटन को बढ़ावा. अब यह पूरा सच नहीं रह गया है. स्थानीय दुकानदार केवल वस्तुएं बेचने का काम करते हैं. इस के बदले उन को एक तय रकम मिलती है. इस का बड़ा लाभ उन लोगों की जेब में जा रहा है जो इन को बनाते हैं. आज मंदिरों के पास की दुकानों में बिकने वाला हर सामान बाहर से मंगाया जाता है. इस में बड़ी संख्या में गुजरात से तैयार माल आता है. जिन में फोटो, मूर्तियां और मूर्तियों को पहनाए जाने वाले कपड़े व सजावटी सामान होता है. देश की जीडीपी में 2.32 प्रतिशत हिस्सेदारी धार्मिक यात्राओं से मिलने वाले पैसे की होती है. 55 प्रतिशत हिंदू धार्मिक यात्राएं करते हैं. भारत में सब से ज्यादा सैलानी तीर्थस्थल जाते हैं.

मंदिर और तीर्थस्थल आस्था से जुड़े होते हैं, जिस के कारण लोग दिल खोल कर खर्च करते हैं. भारत में कारोबार और शिक्षा के लिए टूर करने से दोगुना लोग तीर्थयात्रा करते हैं. धार्मिक यात्राओं पर भारतीयों के इस खर्च को देखते हुए ही सरकार धार्मिक यात्राओं को बढ़ाने की जीतोड़ कोशिश कर रही है. मंदिरों का कायाकल्प और उस का प्रचार करने का मुख्य कारण यह है कि आप की जेब का पैसा बचत के रूप में बैंक में न जा कर मंदिरों के पूजापाठ और चढ़ावा में चला जाए.

बढ़ रही धार्मिक पर्यटन की योजनाएं
धार्मिक पर्यटन को बढ़ाने के लिए तीर्थयात्रा के लिए लगातार नईनई योजनाएं सरकार बनाने का काम कर रही है. इन में प्रमुख हैं- रामायण सर्किट, चारधाम रोड प्रोजैक्ट, बुद्ध सर्किट, केदारधाम का कायाकल्प, बद्रीधाम का कायाकल्प, जम्मूकश्मीर में मंदिरों का जीर्णोद्धार, अयोध्या में राम के जीवनदर्शन के लिए सरकार ने रामायण सर्किट बनाया. साथ ही, चारधाम रोड प्रोजैक्ट भी तैयार किया गया है. बुद्ध सर्किट को भी सरकार ने और मजबूत बनाया है. इस के अलावा केदारधाम  और बद्रीधाम का भी कायाकल्प हो चुका है. यही नहीं, जम्मूकश्मीर में सरकार करीब 50 हजार मंदिरों का जीर्णोद्धार कर रही है.

अयोध्या से काशी विश्वनाथ तक रामायण यात्रा के लिए टूर पैकेज तैयार किया गया. आईआरसीटीसी के रामायण सर्किट यात्रा के जरिए अब अयोध्या से ले कर काशी विश्वनाथ तक के दर्शन कर सकते हैं. इस टूर पैकेज के जरिए यात्रियों ने अयोध्या में राम से जुड़े धार्मिक स्थलों के दर्शन किए. 18 दिनों की यह यात्रा 18 नवंबर से शुरू हुई थी. सिंगल यात्री का खर्च 68 हजार रुपए था. टूर पैकेज 17 रात और 18 दिन का था. यात्रा का टूर सर्किट दिल्ली, अयोध्या, जनकपुर, सीतामढ़ी, बक्सर, वाराणसी, प्रयागराज,चित्रकूट, नासिक, हम्पी, रामेश्वरम, भद्राचलम, दिल्ली था. इस टूर पैकेज में यात्री अपने कंफर्ट के हिसाब से कंफर्ट क्लास और सुपीरियर क्लास की यात्रा चुन सकते हैं जिस का खर्च अलग था.

कंफर्ट क्लास का किराया प्रति व्यक्ति 68,980 रुपए देने होंगे. जबकि डबल शेयरिंग के लिए यात्रियों को प्रति व्यक्ति 59,980 रुपए का भुगतान करना था. 5 साल से 11 साल तक के बच्चों के लिए 53,985 रुपए प्रति चाइल्ड भुगतान करना था. सुपीरियर क्लास में सिंगल औक्युपेसी के लिए यात्रियों को प्रति व्यक्ति 82,780 रुपए खर्च करने पड़े. डबल शेयरिंग पर प्रति व्यक्ति यात्रियों को 71,980 रुपए खर्च करने पड़े. एक तरह से सरकार धार्मिक पर्यटन स्थलों तक लोगों को ले जाने के लिए हर तरह के काम कर रही है जिस से आप की जेब का पैसा निकल कर दूसरी जेबों में चला जाए. इन धार्मिेक स्थलों का प्रचार करने का जिम्मा टीवी के खबर दिखाने वाले चैनलों ने ले लिया.

मंदिरों के महिमामंडन में जुटे चैनल
11 अक्टूबर, 2022: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में महाकाल मंदिर में ‘जय महाकाल मंदिर के श्रीमहाकालेष्वर मंदिर कौरिडोर’ का उद्घाटन करने गए थे. इस को खबरिया चैनलों ने ‘श्री महाकाल लोक’ के रूप में स्थापित करने का काम किया. यह भी बताया गया कि इस कौरिडोर के बनने से पर्यटकों की संख्या में बड़ा बदलाव हुआ है. ‘न्यूज 24’ ने कौरिडोर के लोकापर्ण कार्यक्रम को ‘मोदी के महादेव’ नामक टाइटल के साथ दिखाया. 20 मिनट के इस प्रसारण में एंकर पूजा ने महाकाल की पूजा, इतिहास और प्रभाव के साथ मंत्र और आरती के साथ दर्शकों को मोदी की पूजापाठ को दिखाया.
‘जी न्यूज’ ने ‘महाकाल के मंदिर में पीएम मोदी’ नाम से 15 मिनट का कार्यक्रम दिखाया. इस में मोदीमय हो कर एंकर ने लोगों से बात की. ‘जी न्यूज’ ने ही अपने दूसरे कार्यक्रम ‘मोदी का जय कहाकाल’ नामक कार्यक्रम दिखाया गया. इसी तरह से ‘न्यूज नेशन’ ने ‘मोदी के महाकाल कौरिडोर’ भव्य विशाल का प्रसारण किया गया. 10 मिनट के इस कार्यक्रम में मोदी माहात्मय का विवरण किया गया. वे कितने धार्मिक हैं, यह बताया गया. ‘इंडिया न्यूज’ ने ‘पीएम मोदी इन महाकाल’ नाम से लाइव प्रसारण किया. 30 मिनट के इस प्रसारण में भव्य महाकाल, दिव्य महाकाल और मोदी का जिक्र हुआ. ‘इंडिया न्यूज’ पर ही दूसरा कार्यक्रम ‘महाकाल में बाबा के भक्त’ का प्रसारण किया गया.

एक ही समाचार को अलगअलग ‘टाइटल‘ और ‘थंबनेल’ बना कर पूरेपूरे दिन दिखाया गया. समाचारों की जगह सासबहू के सीरियल की तरह इस को दो दिनों तक खींचने का काम किया गया. इस की वजह से दर्शक यह समझ नहीं पा रहे थे कि यह न्यूज पहले दिखाई जा चुकी है या नई दिखाई जा रही है. यात्रा से 2 दिनों पहले और 2 दिनों बाद तक खबर दिखाने वाले चैनलों को देख कर यह समझ नहीं आ रहा था कि ये खबर दिखाने वाले चैनल हैं या बाबाओं का प्रवचन करने वाले. पूजा, आरती और पूरे विधिविधान का प्रसारण किया जा रहा था.

22 अक्टूबर, 2022: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दीवाली के पहले केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर थे. इस को ले कर एक सप्ताह पहले से खबरिया चैनलों ने धार्मिक चैनलों की तरह से खबरों के कार्यक्रम दिखाने शुरू कर दिए. प्रधानमंत्री के दौरे की वीडियो फुटेज एएनआई न्यूज एजेंसी से ले कर अपने संवाददाताओं के साथ केदारनाथ मंदिर से सामने से 3-3 घंटे की लाइव कवरेज दिखाने की होड़ सी लगी रही. मोदी ने किसी भी चैनल से बात नहीं की, इस के बाद भी चैनल के रिपोटर्र ने मंदिर के पुजारियों, पंडों और संतों से बात करते हुए पूजा विधि से ले कर उस के प्रभाव तक का पूरा खाका खींचने का काम किया. प्रधानमंत्री की इस कवरेज को टुकड़ोंटुकड़ों में अलगअलग कार्यक्रम बना कर भी दिखाया गया. हर चैनल का एकजैसा ही हाल था.

‘एबीपी न्यूज’ ने ‘बाबा केदारनाथ की शरण में पीएम मोदी’ नाम से 30 मिनट का एक कार्यक्रम पेश किया. इस में केदारनाथ के महाभारत काल से महत्त्व की चर्चा के साथ ही साथ पूजा और मंदिर का पूरा धार्मिक प्रसारण किया गया. ‘जी न्यूज’ ने 19 मिनट की लाइव कवरेज ‘मोदी के महादेव’ में अपने संवाददाता अमित प्रकाश से बातचीत के साथ कई धार्मिक लोगों से बात की. जिस से पूरा प्रसारण समाचार की जगह पर धार्मिक चैनल का सा लग रहा था. ‘एबीपी न्यूज’ में ही ‘मोदी के नाथ’ नाम से अलग प्रसारण भी किया गया. यह मोदी की केदारनाथ यात्रा की तैयारी को ले कर तैयार किया गया था.

‘न्यूज लाइव’ ने 15 मिनट के अपने कार्यक्रम ‘बद्रीनाथ धाम रवाना हुए पीएम मोदी’ का प्रसारण किया और ब्रदीनाथधाम का पूरा धार्मिक विवरण पेश किया. इसी कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि नरेंद्र मोदी की यह दूसरी बद्रीनाथ धाम की यात्रा है. ‘न्यूज इंडिया’ ने अपने कार्यक्रम ‘मोदी का भक्ति पर्व’ में एंकर अनुपमा झा ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 6 बार केदारनाथ धाम की यात्रा है. 30 मिनट कह कवरेज में यह बताया गया कि मोदी पूजा के बाद किस से मिलेगे, किस गुफा में ध्यान लगाएंगे, कितनी देर तक ध्यान में रहेंगे.

23 अक्टूबर, 2022: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामलला की पूजा और दीपउत्सव में हिस्सा लिया. यहां भी खबरिया चैनलों ने खबर कम और धर्म का माहात्म्य अधिक बताया. दीपउत्सव में 17 लाख दीये जलाने का विश्व रिकौर्ड बनाया गया. रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले कलाकारों को रूस से खासतौर पर बुलवाया गया था. भगवान के पहनावे में उन के विमान को अयोध्या की धरती पर उतारा गया. भगवान का स्वरूप मान कर उन सब की आरती की गई. राष्ट्रवाद की बात करने वालों से किसी ने यह नहीं पूछा कि विदेशी कलाकारों में ही राम का स्वरूप क्यों दिखा?

‘इंडिया टीवी’ ने ‘अयोध्या दीपउत्सव में मोदी’ नाम से अपना कार्यक्रम पेश किया. इस लाइव प्रसारण में अयोध्या की पूरी कवरेज दिखाई गई. ‘इंडिया टीवी’ ने ही ‘मोदी चले अयोध्या’ कार्यक्रम भी पेश किया. ‘इंडिया टीवी’ ने ‘अयोध्या में रामराज्य’ के टाइटल से भी प्रसारण किया. इस को 1990 के मोदी के राममंदिर आंदोलन भी भूमिका से शुरू किया गया. यह बताया गया कि मोदी का सपना कैसे साकार हुआ. अयोध्या को सनातन धर्म से जोड़ कर बताया गया कि यह मोदी की पूजा की सफलता है. मोदी ने मंदिर निर्माण देखा और मुख्यमंत्री को इस को भव्य बनाने के निर्देश दिए.

‘आर भारत’ ने ‘अयोध्या से विहंगम कवरेज’ पेश किया. इस में ‘पीएम मोदी इन अयोध्या में’ लाइव दिखाया गया. यह बताया गया कि मोदी ने केवल दर्शन ही नहीं किए, मंदिर में दान भी दिया. मंदिर निर्माण की तैयारियों से ले कर किसकिस तरह से पीएम मोदी रुचि ले रहे है, इस का सविस्तार विवरण पेश किया गया. रामकथा पार्क के बारे में बताया गया. ‘न्यूज 18’ ने ‘राम जानकी मंदिर में योगी’ नाम से भी कार्यक्रम पेश किया. ‘न्यूज 18’ ने ‘पीएम ने की रामलला की पूजा’ टाइटल से पूरी पूजा को दिखाया. ‘जी न्यूज’ ने ‘अयोध्या के विकासपथ पर मोदी का महामंथन’ नाम से कवरेज किया.

कथा, प्रवचनों और कथावाचकों का महिमामंडन
टीवी चैनलों ने केवल मंदिर ही नहीं, मंदिर और धर्म की बात करने वालों का भी भरपूर प्रचार किया. इन में सब से बड़ा उदाहरण बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री का है. पंडित धीरेंद्र शास्त्री और उन के जैसे तमाम कथावाचक सनातन धर्म का प्रचार कथा और प्रवचन से करते हैं. इस से लोगों में धर्म की भावना तेज होती है. जो लोग मंदिरों तक नहीं जा पाते वे इन कथाओं और प्रवचनों को सुनने को हजारोंलाखों की संख्या में जाते हैं. इन का महिमामंडन करने के लिए कुछ टीवी चैनल बागेश्वर धाम तक गए तो कुछ ने लाइव शो आयोजित किया. इंडिया टीवी के रजत शर्मा ने ‘आपकी अदालत’ में धीरेंद्र शास्त्री को बुला कर उन का महिमामंडन किया.

एबीपी की एंकर रूबिका लियाकत धीरेंद्र शास्त्री से मिलने बागेश्वर धाम तक गईं. धीरेंद्र शास्त्री ने उन को ही हिंदू धर्म में शामिल होने का प्रस्ताव दे दिया. दोनों ही एकदूसरे की तारीफ करते रहे. करीब एक घंटे के इस शो के छोटेछोटे हिस्से यूट्यूब के जरिए लोगों तक पहंचाए जा रहे हैं. इंडिया टीवी के रजत शर्मा ने ‘आपकी अदालत’ में धीरेंद्र शास्त्री से सवालजवाब करने के लिए पूरा ड्रामा रच रखा था जिस में जज भी थे और जनता भी. एकदूसरे की तारीफ करते यह भी एक घंटे का शो टैलीकास्ट किया गया.

धीरेंद्र शास्त्री का महिमामंडन करने वालों में एबीपी और इंडिया टीवी के साथ ही साथ और भी तमाम चैनल आगे थे. आज तक में सुधीर चौधरी और श्वेता सिंह ने अपने शो में इन के कामों को दिखाया. जी न्यूज पर दीपक चौरसिया ने धीरेंद्र शास्त्री का महिमामंडन किया. जनवरीफरवरी माह में सब से अधिक कवरेज धीरेंद्र शास्त्री को मिली. इन चैनलों के ये शो इतने अधिक हैं कि इन का सही अनुमान लगाना मुश्किल है. कथा प्रवचनों से भी धार्मिक भावनाओं को बढ़ाने का काम होता है. तीर्थस्थलों की ही तरह यहां भी जेब का पैसा चढ़ावे की भेंट चढ़ जाता है. जो पैसा बैंकों में जमा होता, भविष्य में लोगों के काम आता, वह महंगाई और चढ़ावे की भेंट चढ़ रहा है.

अमरूद की बागबानी: कम समय में अच्छा मुनाफा

अमरूद ऐसा फल है, जो देश के ज्यादातर हिस्सों में पाया जाता है. गुणों की भरमार वाले इस फल की तुलना सेब से की जाती है. अमरूद की बागबानी न केवल आसानी से हो जाती है, बल्कि इस के जरीए अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है. अमरूद का उत्पादन देश में सब से ज्यादा उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में होता है. अमरूद की बागबानी सभी तरह की जमीन पर की जा सकती है.

वैसे, गरम और सूखी जलवायु वाले इलाकों में गहरी बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती है. उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित ऐतिहासिक खुशरूबाग में बना ‘औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र’ अमरूद की न केवल पौध तैयार करता है, बल्कि वहां इच्छुक लोगों को अमरूद की बागबानी का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. वहां के इलाहाबाद सफेदा और सरदार अमरूद खासतौर पर मशहूर हैं. वहां अमरूद की एक और उन्नत किस्म ललित को भी तैयार किया गया है. यह गुलाबी और केसरिया रंग लिए होता है. इस की पैदावार दूसरे अमरूदों के मुकाबले 24 फीसदी ज्यादा होती है. गुलाबी आभा, मुलायम बीज व अधिक मिठास वाले अमरूदों की पैदावार हर कोई वैज्ञानिक तरीके से कर सकता है.

पौधारोपण अमरूद का पेड़ 2 साल बाद ही फल देना शुरू कर देता है. यदि शुरुआत में ही पेड़ की देखरेख अच्छी तरह से हो जाए, तो 30-40 सालों तक अच्छा उत्पादन मिल सकता है. देश में अमरूद के पौधे ज्यादातर बीजों के द्वारा तैयार किए जाते हैं, लेकिन माना जाता है कि इस से पेड़ों में भिन्नता आ जाती है. इसलिए अब वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार किए जाने पर जोर दिया जा रहा है. कलमी अमरूद के पौधे जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने में पौध रोपण के लिए मुनासिब माने जाते हैं. सिंचित इलाकों में पौधरोपण फरवरी व मार्च के महीनों में भी किया जा सकता है.

अमरूद के पौधों को 5×5 मीटर या 6×6 मीटर की दूरी पर लगाया जाना ज्यादा लाभकारी होता है. अमरूद के छोटे पेड़ों की सिंचाई अच्छी होनी चाहिए, जिस से कि जहां जड़ें हों, वहां की मिट्टी को नम रखा जा सके. पेड़ बड़े होने के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. खाद व उर्वरक पौधा लगाते समय प्रति गड्ढा तकरीबन 20 किलोग्राम गोबर की खाद डालनी चाहिए. इस के बाद आगे बताए अनुसार हर साल खाद डालनी चाहिए.

पहला साल : गोबर की खाद 15 किलोग्राम, यूरिया 250 ग्राम, सुपर फास्फेट 375 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 500 ग्राम डालें.

दूसरा साल : गोबर की खाद 30 किलोग्राम, यूरिया 500 ग्राम, सुपर फास्फेट 750 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 200 ग्राम डालें.

तीसरा साल : गोबर की खाद 45 किलोग्राम, यूरिया 750 ग्राम, सुपर फास्फेट 1125 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 300 ग्राम डालें.

चौथा साल : गोबर की खाद 60 किलोग्राम, यूरिया 1050 ग्राम, सुपर फास्फेट 1500 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 400 ग्राम डालें.

पांचवां साल : गोबर की खाद 75 किलोग्राम, यूरिया 1300 ग्राम, सुपर फास्फेट 1875 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 500 ग्राम डालें. ज्यादा अच्छा होगा कि पेड़ की आयु के अनुसार हर पेड़ के लिए खाद को 2 भागों में बराबर बांट लें. इस का आधा भाग जून में व आधा भाग अक्तूबर में तने से 1 मीटर दूर चारों ओर डालने के साथ ही सिंचाई भी कर दें.

फसल में और्गैनिक दवाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है. कटाई, छंटाई और सधाई शुरू में पेड़ों को मजबूत ढांचा देने के लिए सधाई की जानी चाहिए. यह देखना चाहिए कि मुख्य तने पर जमीन से लगभग 90 सैंटीमीटर ऊंचाई तक कोई शाखा न हो. इस ऊंचाई पर मुख्य तने से 3 या 4 प्रमुख शाखाएं बढ़ने दी जाती हैं. इस के बाद हर दूसरे या तीसरे साल ऊपर से टहनियों को काटते रहना चाहिए, जिस से पेड़ की ऊंचाई ज्यादा न बढ़े. यदि जड़ में कोई फुटाव निकले, तो उसे भी काटते रहना चाहिए. फसल प्रबंधन व तोड़ाई पेड़ के पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद साल में अमरूद की 2 फसलें प्राप्त होती हैं. एक फसल बरसात के दौरान व दूसरी जाड़े के मौसम में प्राप्त होती है.

बरसात के मौसम में ज्यादा उपज प्राप्त होती है, पर इस के फल घटिया होते हैं. छेदक कीट भी उन्हें नुकसान पहुंचा देते हैं. व्यापार के लिहाज से जाड़े की फसल को ज्यादा महत्त्व दिया जाना चाहिए. पेड़ों की देखरेख और समय पर खादपानी देने से ज्यादा पैदावार प्राप्त की जा सकती है. यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि उपज की मात्रा किस्म, जलवायु व पेड़ की उम्र पर निर्भर करती है. पूरी तरह तैयार पेड़ से सीजन में तकरीबन 400 से 600 तक फल प्राप्त हो जाते हैं. अमरूद की तोड़ाई थोड़ी सी डंठल व कुछ पत्तों सहित कैंची से करनी चाहिए. तोड़ाई एकसाथ नहीं, बल्कि 2-3 बार में करनी चाहिए.

आधे पके अमरूदों को तोड़ना ठीक रहता है. प्रमुख रोग अमरूद की फसल में सब से ज्यादा खतरनाक उकठा रोग माना जाता है. एक बार बाग में इस का संक्रमण होने से कुछ सालों में पूरे बाग को नुकसान पहुंच जाता है. ऐसी जगह पर दोबारा अमरूद का बाग नहीं लगाना चाहिए. इस बीमारी से शाखाएं और टहनियां एकएक कर के ऊपरी भाग से सूखने लगती हैं और नीचे की तरफ सूखती चली जाती हैं. एक समय ऐसा भी आता है, जब पूरा पेड़ ही सूख जाता है. इस बीमारी से बचने के लिए ये उपाय जरूर करने चाहिए :

* जैसे ही पेड़ में रोग के लक्षण दिखाई दें, तो उस पेड़ को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

* बाग को साफसुथरा रखें, खरपतवार न रहने दें.

* बाग में ज्यादा पानी होने पर उस की निकासी का इंतजाम करें.

* हरी और कार्बनिक खाद का इस्तेमाल करें. संक्रमण अमरूद के बाग में फल गलन या टहनीमार रोग का संक्रमण भी हो जाता है. नतीजतन, बनते हुए फल छोटे, कड़े व काले रंग के हो जाते हैं. इस रोग के सब से ज्यादा लक्षण बारिश के मौसम में पकते हुए फलों पर दिखाई पड़ते हैं. फल पकने वाली अवस्था में फलों के ऊपर गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में बीच में धंसे हुए स्थान पर नारंगी रंग की फफूंद हो जाती है. डालियों पर संक्रमण होने पर डालियां पीछे से सूखने लगती हैं.

इस रोग के होने पर डालियों को काट कर 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड के घोल का छिड़काव करना चाहिए. फल लगने के दौरान 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें. कीट नियंत्रण बरसाती फसल पर फलमक्खियां सब से ज्यादा मंडराती हैं. मादा मक्खी फलों में छेद कर देती है और छिलके के नीचे अंडे देती है. इस के इलाज का तरीका यही है कि मक्खी से ग्रसित फलों को जमा कर के नष्ट कर दें.

मक्खियों को मारने के लिए 500 लिटर मैलाथियान 50 ईसी, 5 किलोग्राम गुड़ या चीनी को 500 मिलीलिटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें. अगर प्रकोप बना रहता है, तो छिड़काव 7 से 10 दिनों के अंतर पर दोहराएं. छाल सूंड़ी अमरूद के पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाला एक और कीट है, छाल खाने वाली सूंड़ी. यह कीट आमतौर पर दिखाई नहीं देता, पर जहां पर टहनियां अलग होती हैं, वहां पर इस का मल व लकड़ी का बुरादा जाल के रूप में दिखाई देता है.

इस का हमला सब से ज्यादा पुराने पेड़ों पर होता है. सालभर में इस की एक ही पीढ़ी होती है, जो जूनजुलाई महीने से शुरू होती है. इलाज के तौर पर संक्रमित शाखाओं में कीट द्वारा बनाए गए छेदों में डाईक्लोरोवास (नुवान) में डुबोई रूई के फाहों को किसी तार की सहायता से डाल दें और सुराख को गीली मिट्टी से ढक दें. यह काम फरवरीमार्च माह में करना चाहिए. दूसरे उपाय के तौर पर, सितंबरअक्तूबर माह में 10 मिलीलिटर मोनोक्रोटोफास (नुवाक्रोन) या 10 मिलीलिटर मिथाइल पैराथियान (मैटासिड) को 10 लिटर पानी में मिला कर सुराखों के चारों ओर की छाल पर लगाएं.

बाग का रखरखाव बरसात के बाद ही ज्यादातर पेड़ों के ऊपर से पत्तियां पीली होने लगती हैं व पेड़ों की शाखाएं एक के बाद एक सूखने लगती हैं. इसलिए रखरखाव किया जाना चाहिए. दिसंबर से फरवरी माह के दौरान पेड़ों में काटछांट करने के बाद पर्याप्त मात्रा में नए कल्ले बनते हैं. इन कल्लों के फैलाव व विकास के लिए मईजून माह में प्रबंधन किया जाना चाहिए. इस से जाड़े में फसल अच्छी होती है. इसी प्रकार मई माह में काटछांट कर ठीक किए गए पेड़ों से निकलने वाले कल्लों का प्रबंधन अक्तूबर माह में किया जाना चाहिए. ऐसा करने से बरसात में फसल अच्छी होती है.

फलाहार के लिए ऐसे बनाए साबूदाना वड़ा और पूड़ी

फलहार में अगर आपको कुछ अलग खाने का मन है तो आप ऐसे में साबूदाना वड़ा बना सकते हो, तो आइए जानते हैं  इसे बनाने की रेसिपी.

सामग्री:

– साबूदाना (1 कप 200 ग्राम )

– उबले हुए आलू (2)

– भुना हुआ मूंगफली पाउडर (1/2 कप)

– अदरक लहसुन पेस्ट (1 चम्मच)

– जीरा पाउडर (1 चम्मच)

– हरी मिर्च (2)

– धनिया पत्ता (1/2 कप)

– नमक (1/2 चम्मच स्वादानुशार)

– निम्बू रस (1/2 चम्मच)

– तेल (तलने के लिए)

साबूदाना वड़ा बनाने की विधि:-

– सबसे पहले साबूदाने को पानी में डालकर तीन घंटे के लिए फूलने के लिए छोड़ दें.

– अब उसे छान लें और उसमे उबले हुए आलू को स्मैश करके डाल दें, और भुने हुए मूंगफली के पाउडर को भी डाल दें.

– फिर उसमे अदरक लहसुन पेस्ट, जीरा पाउडर, हरी मिर्च, धनिया पता, स्वाद अनुशार नामक और नींबू का रस डाल दें.

– फिर उसे अच्छे से मिलायें और उसका एक लोई बना कर तैयार करें.

– तेल गरम होने के बाद उसमे साबूदाने की लोई से छोटी छोटी टिक्की बना कर तेल में डाल दें और उसे मध्यम आंच पे तलें.

– जब टिक्की पाक जाए और भूरी हो जाए तो उसे टिस्सु पेपर पे निकाल लें और हमारी साबूदाना वड़ा बनकर तैयार हो गयी.

साबूतदाना पूरी 

सामग्री

एक कटोरी साबूदाना (भीगा हुआ)

1 कटोरी सिंघाड़े का आटा

दो उबले आलू

दो बारीक कटी हरी मिर्च

थोड़ा-सा हरा धनिया बारीक कटा हुआ

सेंधा नमक

काली मिर्च पावडर

थोड़ा-सा तेल

विधी

आलू को मैश कर सिंघाड़े के आटे में मिला लें. बाकी सभी वस्तुएं भी आटे में डालकर अच्छी तरह मिला लें.

थोड़ा पानी डालकर आटे जैसा गूंथ लें. अब हाथ पर पानी लगाकर छोटी-छोटी लोई तोड़कर पूड़ी का आकार दें.

अब तवे को चिकना करें. पूरी को इस पर पराठे जैसा तल लें.

जब पूरी अच्छी तरह सिंक जाए तो इसे दही के साथ पेश करें.

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