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GHKKPM: क्या ऐश्वर्या को अनफॉलो किया आयशा ने!

सीरियल गुम है किसी के प्यार में एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा और आयशा सिंह के बीच इन दिनों लड़ाई चल रही है, जिस वजह से दोनों एक दूसरे को ऑनफॉलो कर दिए हैं इंस्टाग्रा पर. अगर सीरियल की बात करें तो इन दिनों सीरियल में काफी ज्यादा बदलाव लग रहा है.

सीरियल में पत्रलेखा का किरदार निभा रही ऐश्वर्या शर्मा इन दिनों टीवी शो खतरों के खिलाड़ी का हिस्सा हैं, जिस वजह से उन्होंने शो को बॉय बॉय बोल दिया है. हाल ही में ऐश्वर्या शर्मा और आयशा सिंह एक दूसरे को सोशल मीडिया पर ऑनफॉलो कर दिया है. जिस वजह से दोनों को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है.

 

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हाल ही में आयशा सिंह ने ऐश्वर्या को ऑनफॉलो करने को लेकर सोशल मीडिया पर बयान दिया है जो काफी ज्यादा वायरल हो रहा है, जब आयशा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं इस बारे में कोई बात नहीं करुंगी मैं इन दिनों अपने शूटिंग पर फोक्स कर रही हूं. अपने काम में काफी ज्यादा व्यस्त हूं. बता दें कि ऐश्वर्या शर्मा  इन दिनों कैपटाउन में हैं रोहित शेट्टी का शो खतरों के खिलाड़ी की शूटिंग में व्यस्त हैं.

आए दिन सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

त्याग की गाथा- भाग 3: पापा को अनोखा सबक

बेटे की डांट से बुरी तरह सहम गई साधना. पहला मौका था, जो बेटे ने उस को इतने तीखेपन से उत्तर दिया था. पराया नगर, पति से निराशा और तीखे वचन की यह कचोट. उस ने आंख में से कचरा निकालने का अभिनय किया, लेकिन आंसू अपना काम कर ही गए.

दीपू सहमता हुआ बोला, ‘‘मां, पापा को मैसेज नहीं मिला होगा. उन का मोबाइल खराब होगा.’’

चौंक कर देखा रज्जू ने क्रमश: दीपू का सहमापन और मां की आंखों में आंसू तो उस को अपने तीखे कथन पर बहुत ही क्षोभ हुआ, अत: इस बार नम्रता से बोला, ‘‘मां, आप इस कदर परेशान क्यों हैं? पापा स्टेशन नहीं आए तो क्या हुआ, हम टैक्सी कर के सीधे घर चलते हैं.’’

‘‘घर का पता कहां है, रज्जू?” साधना ने भारी मन से कहा. हमें तो उन्होंने हमेशा कहा कि वे टैंपेरेरी मकान में रह रहे हैं, 2-4 दिन में बदल लेंगे.

‘‘घर का पता कालेज से मिल जाएगा, मां,’’ रज्जू ने कहा. ‘‘चलिए, उठिए, हम पहले कालेज चलते हैं.’’

रज्जू को किसी तरह की शंका थी और इसलिए वह कालेज के औफिस में अकेला ही गया. बड़े बाबू भी अकेले ही थे. रज्जू की बात सुन कर वह बोले, ‘‘अच्छा तो आप भी डाक्टर श्रीकृष्ण शर्मा के बारे में ही पूछ रहे हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘उन के नाम कुछ पत्र और भी हैं,’’ बड़े बाबू ने कहा, ‘‘आप उन के रिश्तेदार हैं?’’

रज्जू ने स्वीकृति से सिर हिला दिया.

‘‘बाहर से आए हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘डाक्टर शर्मा से आप की मुलाकात गरमी की छुट्टियों के बाद ही संभव हो सकती है,’’ बड़े बाबू ने गंभीरता से कहा, ‘‘करीब दस दिन…’’

‘‘आप के पास उन के मकान का पता तो होगा ही,’’ बात काट कर बोला रज्जू.

‘‘हां, पता तो है, लेकिन वहां जाने से क्या फायदा, वह तो बाहर गए हैं.’’

‘‘बाहर, कहां?’’ रज्जू ने अधीरता से पूछा.

बड़े बाबू इस बार रहस्य से मुसकराते हुए बोले, ‘‘वह, मेरा मतलब डाक्टर शर्मा, शायद अपनी होने वाली पत्नी के साथ घूमनेफिरने कश्मीर गए हैं.’’

“होने वाली पत्नी. घूमनेफिरने… कश्मीर…”
रज्जू एकदम तकपका गया. उस को लगा, जैसे उस पर लगातार तीन बार वज्रपात हुआ है. प्रहार की मार से हतप्रभ हो कर वह सहमता हुआ बोला, ‘‘मैं पूछ रहा हूं डाक्टर शर्मा के बारे में, जो…जो..’’

‘‘हां, हां, डाक्टर श्रीकृष्ण शर्मा, जो भोपाल से आए हैं,’’ बड़े बाबू ने बात काट कर कहा, ‘‘इस कालेज में एक वही डाक्टर शर्मा हैं.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ रज्जू के मुंह से निकल पड़ा.

अनुभवी बड़े बाबू ने गंभीरता से कहा, ‘‘सबकुछ हो सकता है, बेटे, सबकुछ. समर्थ के लिए कोई बात मुश्किल नहीं, वरना कहां 40-45 के डाक्टर शर्मा और कहां 24-25 की प्रेमा श्रीवास्तव. लेकिन हो गया प्रेम, कौन रोकेगा… दोनों राजी तो क्या करेगा…’’

रज्जू का मन हुआ कि वह तत्काल दौड़ कर बाहर जाए और पति को देवता मानने वाली मां के समक्ष पिता के कृत्य की कथा चीखचीख कर कहे. लेकिन दौड़ना तो दूर, उस के पांव उठ तक नहीं रहे थे. उस ने अपनेआप को बहुत ही जज्ब किया, लेकिन वह समझ सकता था कि उस के पिता ने किस तरह इतने समय अकेले बिस्तरों पर गुजारे हैं. पर इस उम्र में जब बेटे शादी की तैयारी में हो, वे छोटी उम्र वाली लड़की के साथ… ‘नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते…’ वह बुदबुदाया.

आंसू अपने स्वभाव से बाज नहीं आए. उस ने तत्क्षण गंभीरता से सोचा भी कि इस बुरी खबर को सुन कर उस की भावुक ममतामय, कोमल हृदय, मां का क्या हाल होगा? शायद ही वह इस धक्के को बरदाश्त कर सके. नहीं, वह मां को कुछ भी नहीं बताएगा. कुछ भी नहीं. कुछ सोच कर वह बोला, ‘‘श्रीमानजी, यह तो सब चलता ही है. आप तो उन के घर का पता भर दे दीजिए, मैं फिर कभी मुकालात कर लूंगा.’’

बड़े बाबू ने चिट पर पता लिख कर दे दिया.

रज्जू धीरेधीरे चल कर औफिस के बाहर आने लगा, तो उस को महसूस हुआ जैसे उस के पांवों तले की और आसपास दूर तक की जमीन गिलगिली होती जा रही है, जिस में उस का, मां का, भाईबहन का और पापा का समा जाना अवश्यंभावी है.

नहीं… नहीं… नहीं, वह किसी को भी असमय मरने नहीं देगा. नहीं, बल्कि पापा को मां के पास लौटा कर ही दम लेगा, चाहे उस को इस के लिए अपने प्राणों की बाजी ही क्यों न लगानी पड़े.

अनमनी चाल से रज्जू को वापस आता देख मां को थोड़ी चिंता हुई और तभी वह पास आ कर बोली, ‘‘क्या हुआ रज्जू, पापा का पता मिल गया?’’

रज्जू ने हंसते हुए कहा, ‘‘मां, जो होना चाहिए.’’ फिर रज्जू ने हंसते हुए ही कहा, ‘‘हम किसी होटल या धर्मशाला में ठहर जाएंगे. दिल्ली, आगरा देखेंगे और वापस भोपाल लौट जाएंगे.’’

‘‘भैया, टैक्सी वाले, हमें किसी भले होटल तक छोड़ दो.’’

दिल्ली, आगरा दिखा कर रज्जू भाईबहन के साथ मां को भोपाल रवाना कर चुका था और पापा को दलदल में से निकालने के लिए स्वयं बहाना कर के वहीं रुक गया था. खाली समय में उस के पास इधरउधर भटकने और योजनाएं बनाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था. वह पापा और प्रेमा श्रीवास्तव के लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. परिस्थितियों को देखते हुए उस ने यह निश्चय भी कर लिया था कि पापा यानी कृष्ण को पाने के लिए अगर उस को भी कीचड़ में पैठना पड़े तो वह इस में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं करेगा.

आखिर वह दिन आ ही गया.

हाथ में सूटकेस और सामने रज्जू को खड़ा पा कर, डाक्टर शर्मा हतप्रभ हो गए. प्रेमा श्रीवास्तव झटके से उठ कर एक तरफ खड़ी हो गई. प्रेमा की खूबसूरती देख कर रज्जू को बिजली का सा झटका लगा. प्रेमा भी एकटक रज्जू को घूरे जा रही थी. तभी डाक्टर शर्मा संभल कर बोले, ‘‘अरे, रज्जू, तुम? कब आए?’’

‘‘जी, बस चला ही आ रहा हूं,’’ रज्जू ने सूटकेस रख कर बैठते हुए कहा, ‘‘कई सप्ताहों से आप के मैसेज भी नहीं…’’

‘‘इधर बहुत ही व्यस्त रहे हम. मेरे पैरों की हड्डियां एक टैक्सी दुर्घटना में टूट गईं. हम दोनों कश्मीर जा रहे थे.”

रज्जू हंस कर बोला, ‘‘वह तो दिख ही रहा है.’’

‘‘हूं,’’ डाक्टर शर्मा ने कहा, ‘‘प्रेमा, एक कप चाय तो बना लाओ.’’

एक प्यार पड़ोस में- भाग 3

‘‘ये कायरों जैसी पत्रकारिता क्यों करते हो?’’

‘‘क्या… मतलब…’’

‘‘अरे, कहीं झगड़ा हो रहा है. एक व्यक्ति पिट रहा है और हम बजाय उसे बचाने के उस की रिपोर्टिंग करने बैठ जाते हैं. ’’

‘‘देखो, हमारा जो काम है, हमें वही करना चाहिए. ये फालतू बातें न सोचो और न ही मुझे सोचने पर मजबूर करो,’’ कमिल सुधा के तर्क से सहमत तो था, पर अपना नया सिरदर्द नहीं बढ़ाना चाह रहा था.

‘‘सोचना तो चाहिए… आप केवल पत्रकार ही नहीं हैं, एक कहानीकार भी हैं. कम से कम आप के दिल में तो संवेदना होनी चाहिए,’’ सुधा का स्वर गंभीर था.

‘‘वक्त आएगा तो हम वह भी कर के दिखा देंगे… अब चलो…’’ कमिल बात को ज्यादा आगे नहीं बढ़ाना चाह रहा था. वह जानता था कि सुधा कोमल स्वभाव की है. वह किसी को भी जरा सा दुखी देख कर खुद दुखी हो जाती है. पत्रकारिता के पेशे में दिनभर ऐसे दुखों और दुखियों से मिलते रहना पड़ता है. यदि वह यही सब करने बैठ जाए तो एक समाचार भी न बना पाए. वैसे तो अन्याय के खिलाफ जब भी वह लिखता, उस का लिखा दर्द से ओतप्रोत होता. संपादक भी बोलते,

‘‘वाह कमिल, कितना अच्छा लिखा है. सारा दर्द इस लेख में दिख रहा है.’’

पर, सुधा अभीअभी इस क्षेत्र में आई है. इस वजह से वह चाहती है कि हम सिर्फ लिखें नहीं, उस दर्द की दवा भी बनें.

‘कमिल को घर पर बुलाया गया है, अर्जेंट.’

घर मतलब जबलपुर, जहां उस के मम्मीपापा रहते हैं. वह इस अर्जेंट शब्द पढ़ घबरा गया था. सुधा ने हिम्मत दी थी और उस की तैयारी कर उसे ट्रेन में बिठा दिया था. घर में कमिल के तिलक समारोह की तैयारियां चल रही थीं. मां ने बलाएं लीं और पिताजी उसे देख मुसकरा दिए. दादाजी उसे उंगली पकड़ कर ले गए थे बगीचे की ओर.

‘‘देख कम्मू… तेरा रिश्ता मैं ने तय किया है. अगर तुझे कोई आपत्ति हो, तो अभी बता देना… संकोच नहीं करना.’’

‘‘वैसे तो दादाजी मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर, मैं अभी इस के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं.’’

कमिल के सामने सुधा का चेहरा बारबार आजा रहा था. हालांकि उस के और सुधा के बीच कोई प्यार का रिश्ता नहीं था, पर कुछ तो ऐसा था, जिस की डोर से दोनों एकदूसरे से बंधे थे.

सुधा के पिताजी ने सुधा के लिए एक लड़के को पसंद किया था और उस के ऊपर ही जिम्मेदारी दी थी सुधा को पसंद कराने की.

कमिल के जबलपुर जाने से पहले सुधा ने कमिल से सवाल कर लिया था, ‘‘कमिल, आप जानते हैं कि पतिपत्नी के रिश्ते में एक अहसास होना आवश्यक है. एकदूसरे को समझने का भाव होना जरूरी है. क्या आप को लगता है कि मैं इस अनजान लड़के को पसंद कर उस से शादी कर लूं और फिर जीवनभर रिश्ते को ढोती रहूं?’’

‘‘सदियों से ऐसा होता आ रहा है… ये फालतू बातें न करो और लड़के को पसंद कर लो…’’

‘‘अगर तुम्हारे लिए किसी अनजानी लड़की का रिश्ता आएगा, तो तुम क्या करोगे…?” उस ने प्रश्नवाचक निगाहों से कमिल को घूरा. वह समझ गया था कि सुधा इस रिश्ते से सहमत नहीं है और उस के पिताजी को बता दिया था.

आज कमिल के सामने भी वही दृश्य दोहराया जा रहा था.

‘‘सच बात तो यह है दादाजी कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहता.’’

‘‘किसी को पसंद करते हो?’’ दादाजी ने स्पष्ट ही पूछ लिया था. कमिल के पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था.

‘‘दादाजी, मैं वापस जा रहा हूं. अब मम्मी और पापा को संभालने की जिम्मेदारी आप की है,’’ कह कर कमिल बगैर मम्मीपापा से बात किए लौट आया था.

कमिल को यों एक ही दिन में लौटते देख सुधा ने प्रश्न किया था, ‘‘क्यों…? क्या हुआ…? जल्दी लौट आए. मैं तो सोच रही थी कि आप को आने में 2-4 दिन जरूर लगेंगे,’’ पर कमिल ने उस की कोई बात का जवाब नहीं दिया.

सुधा को कमिल गांव नहीं ले जाना चाह रहा था. एक रिपोर्टिंग करनी थी. गांव की नदी में एक मगरमच्छ पहुंच गया था, जो ग्रामीणों को निगल रहा था. गांव छोटा था और गांव वालों के पास पानी के लिए दूसरा संसाधन भी नहीं था. उन्हें नदी से ही पानी भरना

पड़ता और उस में ही निस्तार करना पड़ता. मगरमच्छ अब तक 2 महिलाओं सहित 3 लोगों को अपना ग्रास बना चुका था. कमिल को इस की कवरेज के लिए जाना था. सुधा जबदस्ती साथ हो ली. दोपहर खत्म होने को आई थी. मगरमच्छ नदी के किनारे आराम से बैठा अपने भोजन का इंतजार कर रहा था.

कमिल मगरमच्छ के ये शौट ले चुका था, तभी उस ने मगरमच्छ को एक बच्चे के पीछे भागते देखा.

देखते ही देखते मगरमच्छ ने बच्चे को अपने जबड़े में फंसा लिया. बच्चे की मां के चीत्कार की आवाज से सारा वातावरण गूंज गया.

कमिल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, तभी उस ने सुधा को मगरमच्छ के करीब जाते देखा.

कमिल उसे आवाज लगाता, इस के पहले ही वह मगरमच्छ के करीब पहुंच चुकी थी. मगरमच्छ बच्चे को छोड़ सुधा की तरफ लपक रहा था.

सारा घटनाक्रम इस तेजी से हो रहा था कि कमिल को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह सुधा और बच्चे दोनों को बचाना था.

‘‘तुम कायरों की तरह पत्रकारिता करते हो?’’ सुधा के कहे वाक्य कमिल के कानों में गूंज रहे थे. वह तेजी से मगरमच्छ की ओर लपका. मगरमच्छ ने जैसे ही उसे देखा, वह सुधा को छोड़ उस की ओर आगे बढ़ा.

कमिल उस के ज्यादा नजदीक था. उस का जबड़ा खुला और कमिल के पैर उस के जबड़े में फंस गए.

शोर सुन कर ग्रामीण भी आ गए थे. सुधा के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह एक छोटी लाठी से ही मगरमच्छ को मार रही थी. कमिल के पैर उस के जबड़े में और अंदर की ओर धंसते जा रहे थे. ग्रामीणों ने कुल्हाड़ी से प्रहार करना शुरू कर दिया. कुछ देर तक तो वह इन प्रहारों को झेलता रहा. जब वह ज्यादा घायल हो गया, तो उस ने कमिल को छोड़ दिया और स्वयं पानी की ओर भाग गया. कमिल के पैर पूरी तरह घायल हो चुके थे.

अस्पताल में इलाज के दौरान कमिल के पैरों को काटना पड़ा था. वह अपाहिज हो चुका था. मां का रोतेरोते बुरा हाल था.

‘‘काश, तू उस दिन ऐसे नहीं लौटता…’’ मां बोलीं. कमिल मौन था.

सुधा किंकर्तव्यविमूढ़ थी. उस ने दादाजी को बोला था, ‘‘दादाजी, मैं कमिल के बगैर नहीं रह सकती. मैं उस के साथ शादी करूंगी और सारा जीवन उस की देखभाल करूंगी. आप आशीर्वाद दें.’’

दादाजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से सुधा के मातापिता को देखा था. उन्होंने सहमति में सिर हिला दिया था.

शादी के बाद भी वे दिन उसी किराए के कमरे में रह रहे थे. सुधा ने कमिल का हाथ पकड़ कर पहली बार बोला था, ‘‘आई लव यू कमिल.’’

कमिल मुसकरा कर रह गया था.

एक्सपर्ट से जाने बीमारियों से दूर रहने के लिए 5 टिप्स

इंसान के लिए सबसे कीमती होता है उसका स्वास्थ्य आज के भागदौड़ भरे युग में खराब जीवनशैली के कारण हम अस्वस्थ रहने लगे हैं। इन सबके कारण हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं बीमारियों से दूर रहने के लिए हमे अपना ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि इंसान के लिए सबसे कीमती होता है उसका स्वास्थ्य यदि स्वास्थ्य सही हो तो इंसान सब कुछ हासिल कर सकता है। यदि अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में हम कुछ बातों का ख्याल रखें तो ऐसे में हम एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। तो आइए जाने न्यूट्रीशनिस्ट, डायटीशियन और फिटनेस एक्सपर्ट मनीशा चोपड़ा से अपने शरीर को बीमारियों से दूर रखने के लिए कुछ टिप्स।

टिप्स 1: मौसमी सब्जियां और फलों का सेवन करें
वैसे तो कई सब्जियां और फल पूरे साल मौजूद रहे हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं को खाना जरूरी है जो चल रहे मौसम के लिहाज से उपयुक्त हों। स्वस्थ और ताजा भोजन हासिल करने की कोशिश करें। आप इस मौसम के लिहाज से अनुकूल टमाटर, बेरी, आम, तरबूज, खरबूज, आलू बुखारा, अजवायन, नारंगी आदि जैसे फलों और सब्जियों पर ध्यान दे सकते हैं।

टिप्स 2: पूरे दिन पर्याप्त पानी पीएं
पानी पीना और इस मानसून के सीजन में शरीर में नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है। सुनिष्चित करें कि स्वयं को ताजगी महसूस कराने के प्रयास में हर दिन कम से कम 8-10 गिलास पानी पीएं। यदि संभव हो, तो कम ठंडा पानी पीएं, क्योंकि ज्यादा ठंडा पानी पीने से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

टिप्स 3: नियमित रूप से व्यायाम करें
व्यायाम हमारे शरीर के लिए बेहद ज़रूरी है। हमे अनेक बीमारियों से बचाये रखता है इसलिए अपने शरीर को बीमारियों से दूर करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना बहुत आवश्यक है।

टिप्स 4: कोल्ड ड्रिंक के बजाय ताजा फलों का जूस पीएं
बहुत से ऐसे लोग हैं जो ज्यादा प्यास का अनुभव महसूस करते हैं और अक्सर अपनी प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक पीना पसंद करते हैं। लेकिन ऐसे ठंडे पेय आपके शरीर को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए, अपनी प्यास बुझाने के प्रयास में कोल्ड ड्रिंक के बजाय ताजा फलों के रस का इस्तेमाल करें। ये कोल्ड ड्रिंक के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद हैं और इनसे आपका स्वस्थ और फिट रह सकता है।

टिप्स 5: स्वस्थ शरीर के लिए स्वच्छता बनाए रखें
जैसा कि आप जानते हैं, स्वस्थ शरीर के लिए स्वच्छता जरूरी है। यह सुनिष्चित करें कि क्या आप जो भोजन या पेय पदार्थ ले रहे हैं, वह स्वच्छ और ताजा है। आपका शरीर घर या रेस्तरां में गंदे बर्तनों की वजह से बैक्टीरियल इंफेक्शन का शिकार हो सकता है। इसलिए हमेशा यह सुनिष्चित करें कि खाने से पहले और बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं। इसके अलावा, अपने चेहरे को समय समय पर धोते रहें।

नए संसद भवन पर सुलगते सवाल

यह सरकार विशेषरूप से केंद्र सरकार के लिए भूलनेबिसरने वाली बात नहीं बल्कि सतर्कता का संकेत है. कुदरत ने बता दिया कि आज के नए विशाल निर्माण में सावधान रहना कितना आवश्यक है और वह इसलिए भी क्योंकि दिल्ली भूकंप के केंद्र में है। यह क्षेत्र 2 विशाल टैक्टोनिक प्लेटों की सीमा पर स्थित होने के कारण बारबार भूकंप की संभावना रखता है.

आखिर हुआ क्या

उस दिन 28 मई की देर शाम को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा निर्मित और विगत वर्ष सिर्फ 7 माह पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किए गए उज्जैन में तेज आंधी के चलते महाकाल लोक कौरिडोर में स्थापित मूर्तियां तिनके की तरह गिर कर टूट गईं. एक ही दिन घटित यह 2 घटनाएं अनेक सवाल देश के समक्ष ले कर खडी हैं, जिस का जवाब जितनी जल्दी मिल जाए देश के लिए अच्छा है.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के बाद अभी तक बहुत कुछ नया बनवा चुके हैं और भविष्य में योजना भी होगी. मगर जिस तरह तेजी से निर्माण होते हैं उस से कहीं न कहीं कुछ खामियां रह जाती हैं जो थोड़े से समय या बाद में विकराल रूप धारण कर सकते हैं. महाकाल उज्जैन कौरिडोर का उदाहरण बहुत छोटा सा है जिस में जनहानि नहीं हुई है मगर यह घटना एक संकेत है कि इस तरह निर्माण कार्यों में खामी है. अगर ऐसा ही अन्य निर्माण कार्यों में भी पाया गया, घटित हुआ तो आने वाले समय में छोटीबड़ी जनहानि भी हो सकती है जो देश के लिए दुखद होगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक सोचनीय विषय.

समीक्षा करनी चाहिए

पिछले साल अक्तूबर में ही नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक कौरिडोर परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन किया था और इतनी जल्दी देखते ही देखते यह दुखद घटना का सामने आना हमें सतर्कता और सुरक्षा का संदेश दे रहा है. जहां तक नए संसद भवन का सवाल है राष्ट्रीय और जनहित में हम केंद्र सरकार से अपेक्षा करते हैं कि इस घटना के परिप्रेक्ष्य में संसद भवन निर्माण के उद्घाटन की जल्दबाजी में कहीं सुरक्षा के मानदंड पीछे न छूट जाए, इस की समीक्षा एक दफा जरूर कर लेनी चाहिए.
क्योंकि सवाल है अति संवेदनशील संसद भवन का जहां माननीय सांसद बैठ कर देश का भविष्य तय करेंगे.

लोग कुछ भी कहें, बड़ीबड़ी बातें कर लें, मगर यह है हमारे देश के निर्माण की सचाई। हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं कि जिस भव्यता और करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद सरकार के संरक्षण में निर्माण होता है आगे उसी में ध्वंस नजर आता है.

महाकाल उज्जैन के कौरिडोर का यह उदाहरण संसद भवन पर भी सवाल खड़े करने का जनमानस को मौका दे गया है और शंका प्रकट की जा रही है कि जिस तरह आननफानन में सिर्फ ढाई साल के भीतर नए संसद भवन का निर्माण हो गया है, इस में भी ऐसी ही कोई छोटीबड़ी दुर्घटनाएं घटित हो गईं तो देश को कितनी बड़ी क्षति पहुंच सकती है, इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.

क्यों खङे हो रहे सवाल

सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं कि जिस शुभ घड़ी में 28 मई, रविवार को संसद भवन का उद्घाटन हुआ उसी दिन शाम अचानक तूफानी हवाओं के चलते महाकाल लोक में बनी मूर्तियों को नुकसान हुआ है. इन में से कई मूर्तियां जमीन पर गिर गईं तो कई मूर्तियों के हाथ और सिर टूट गए. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि रविवार होने के चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालु महाकाल लोक पहुंचे हुए थे. हालांकि, राहत की बात यह है कि इतने नुकसान के बाद भी किसी को चोट नहीं आई.

दरअसल, 10 से 25 फीट ऊंची ये मूर्तियां लाल पत्थर और फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक से बनी हैं. इन पर गुजरात की एमपी बाबरिया फर्म से जुड़े गुजरात, ओडिशा और राजस्थान के कलाकारों ने कारीगरी की है. 7 माह पूर्व देश के सब से महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियत शक्ति के केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्तूबर, 2022 को उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के नए परिसर ‘महाकाल लोक’ का लोकार्पण किया था जिस के बाद देशविदेश से लगातार श्रद्धालु महाकाल लोक को निहारने पहुंचते हैं. लेकिन यहां हुए गुणवत्ताहीन निर्माण की पोल खुल गई. इसलिए नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को इस संदर्भ में संज्ञान लेना चाहिए और एक जांच टीम बना कर संपूर्ण कार्य योजना विशेषरूप से संसद भवन की समीक्षा की जानी चाहिए।

सवाल यह है कि जिस परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री करते हों वहां अगर खामियां दिखें, भ्रष्टाचार हो और आने वाले समय में कोई दुर्घटना घटित हो जाए तो सीधेसीधे यह प्रधानमंत्री पद के सम्मान पर प्रश्नचिन्ह है और देशभर में इस का संदेश नकारात्मकता से भरा हुआ ही प्रसारित होगा.

ऐसे में नए संसद भवन की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं जिस के जवाब जितनी जल्द देश को मिल जाए उतना ही अच्छा है.

मैं अपनी कामेच्छा को संतुष्ट करने के लिए हस्तमैथुन करती हूं, कहीं मैं कुछ गलत तो नहीं कर रही हूं?

सवाल

मैं 19 वर्षीय युवती हूं. 4 सालों से एक युवक से प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है, यह उस के हावभाव और व्यवहार से लगता है. हम दोनों ने अभी तक एकदूसरे से कभी बात नहीं की. उसे देख कर मैं बहुत उत्तेजित हो जाती हूं. उस के साथ संबंध बनाने की तीव्र इच्छा होती है. मैं अपनी कामेच्छा को संतुष्ट करने के लिए हस्तमैथुन करती हूं. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं और यह भी बताएं कि क्या मैं सामान्य हूं? कहीं मैं कुछ गलत तो नहीं कर रही?

जवाब

यानी आप 15 वर्ष की उम्र से उसे प्यार करने का दम भरने की बात कर रही हैं. किशोरावस्था में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है. यह सिर्फ यौनाकर्षण है न कि प्यार. जहां तक उक्त शख्स के हावभाव या व्यवहार से आप अनुमान लगा रही हैं कि वह आप से प्यार करता है तो यह आप की खुशफहमी भी हो सकती है. बिना एकदूसरे से बात किए, एकदूसरे को जानेसमझे, अपने प्यार का इजहार किए, यह मान लेना कि वह आप से प्यार करता है, बिलकुल व्यावहारिक नहीं है. आप को अपने बारे में भी कोई पूर्वाग्रह नहीं पालना चाहिए. आप बिलकुल सामान्य हैं. हस्तमैथुन द्वारा अपनी यौनोत्तेजना को शांत करना गलत नहीं है.

हाई लिविंग लो थिकिंग का जमाना

आज का यूथ लग्जरी जीवन जीने में विश्वास करता है. उसे लगता है कि अगर पैसा है तो हर सुखसुविधा खरीदी जा सकती है, खुद की फ्रैंड्स में पैठ जमाई जा सकती है, समाज में अपनी अलग पहचान बनाई जा सकती है, जब चाहे पैसे फैंक कर कोई भी काम निकलवाया जा सकता है. भले ही उन्हें पैसे कमाने व लग्जरी जीवन जीने के चक्कर में अपनों से दूर होना पड़े, वे इस से भी पीछे नहीं रहते, जबकि असल में उन की ऐसी सोच सही नहीं है. क्योंकि आज भले ही पैसों की इंपौर्टेंस कही अधिक बढ़ गई है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि जहां अपने काम आ सकते हैं, वहां पैसा नहीं. इसलिए पैसों की अंधीदौड़ में इस कदर न बह जाएं कि जीवन में कभी अपनों का साथ ही हासिल न हो.

1. देखादेखी बढ़ा लग्जरी लाइफ जीने का चलन

आज युवा अधिकांश चीजें देखादेखी ही खरीदते हैं. उन्हें लगता है कि उन के फ्रैंड के पास महंगा मोबाइल फोन है जिस के फीचर्स उन के फोन से कही अधिक हैं तो वे भी बिना सोचेसमझे वैसा ही फोन और कई बार तो उस से भी महंगा फोन खरीद लेते हैं, जबकि वे ऐसा करते वक्त एक बार भी यह नहीं सोचते कि इस की उन्हें जरूरत है भी या नहीं. उन का देखादेखी इस तरह चीजें खरीदना सही नहीं है क्योंकि वे अपनी ऐसी सोच के कारण भविष्य के लिए कुछ जमा नहीं कर पाते, जिस से भविष्य में पछतावे के सिवा उन के पास कुछ नहीं रहता.

2. जल्दी पैसा कमाने की चाह

आज वे जल्दी ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए स्टेप बाई स्टेप चलना नहीं, बल्कि शौटकर्ट रास्ता अपनाना पसंद करते हैं, भले ही ऐसा रास्ता कांटों से भरा हुआ ही क्यों न हो. उन्हें तो हर हाल में जल्दी पैसा कमाना होता है. इस के लिए वे गलत काम करने में भी पीछे नहीं रहते. उन की इस के पीछे ऐसी सोच होती है कि चाहे रास्ता कैसा भी हो पैसा तो हाथ में आ ही रहा है और इस से उन की सारी हाई डिमांड्स भी पूरी हो रही हैं.

3. खुद को रिच दिखाने के लिए

भले ही अंदर से कितने भी खोखले क्यों न हो, लेकिन फिर भी सब के सामने यह जताने की कोशिश करना कि हम कितने रिच हैं, इस के लिए वे महंगे ब्रैंडेड कपड़े, घड़ी, परफ्यूम वगैरा खरीदने पर हजारों रुपया पानी की तरह बहाते हैं. भले ही चीजें खरीदने के लिए उन्हें पापा की डांट का भी सामना क्यों न करना पड़े, लेकिन वे इस में भी पीछे नहीं रहते क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन का स्टेटस डाउन हो.

4. गर्लफ्रैंड पर इंप्रैशन जमाने के लिए

चाहे खुद की पौकेट में कुछ हो या न हो, लेकिन गर्लफ्रैंड पर तो हर सूरत में इंप्रैशन झाडऩा ही है, जिस के लिए वे उसे लंच या डिनर करवाने के लिए अपनी सारी पौकेटमनी तक उड़ा देते हैं और उसे महंगे गिफट्स देने के लिए पापा से उधार मांगने में भी पीछे नहीं रहते. क्योंकि उन का पूरा फोकस सिर्फ गर्लफ्रैंड के सामने खुद को रिच शो करना जो होता है.

5. खुद की कमी छिपाने के लिए

पता है कि वे प्रैजेंटटेबल नहीं है, उन में ढेर सारी कमियां हैं और उन्हीं को छिपाने के लिए वे हाई लिविंग स्टाइल में जीना पसंद करते हैं ताकि उन की कमियों पर परदा पड़ सके. इस चक्कर में वे यह नहीं सोचते कि अगर आज बिना सोचेसमझे इस कदर पैसा बरबाद करेंगे तो उन का कल सुरक्षित नहीं हो पाएगा.

6. ज्यादा कमाई भी रीजन

कम उम्र में ज्यादा इनकम होने के कारण वे लग्जरी जीवन जीने में विश्वास करने लगे हैं, जिस से अब उन्हें कुछ भी खरीदने से पहले सोचने की जरूरत नहीं पड़ती.

1. फ्यूचर सिक्योर नहीं होता

देखादेखी पैसे की बरबादी करने से या खुद को ऐडवांस दिखाने के चक्कर में उन का फ्यूचर सिक्योर नहीं हो पाता, जिस का एहसास उन्हें जब होता तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, ऐसे में पछतावे के सिवा उन के हाथ कुछ नहीं लगता.

2. जल्दी पैसा कमाने के लिए गलत रास्ता

रातोंरात अमीर बनने का ख्वाब देखने वाले आज के यूथ जल्दी पैसा कमाने के लिए शौर्टकट रास्ता अपनाने में भी पीछे नहीं रहते, जिस से कई बार गलत हाथों में पडऩे के कारण उन की पूरी जिंदगी बरबाद हो जाती है.

3. नौलेज को इंपौर्टेंस नहीं देते

पैसों की दुनिया में खोने के कारण वे ये भूल जाते हैं कि हर जगह पैसा ही काम नहीं आता बल्कि नौलेज से वे अच्छेअच्छों के छक्के उड़ा सकते हैं. लेकिन वे इस चक्कर में नौलेज में जीरो होने के कारण हर जगह हंसी के पात्र बनते हैं, जो उन की नैगेटिव पर्सनैलिटी को दर्शाता है.

4. रिसपैक्ट नहीं मिलती हमेशा

अपने बारे में ही सोचते रहने के कारण वे न घरपरिवार में और न समाज में रिसपैक्ट पा पाते हैं जिस से न कोई उन की फीलिंग को समझ पाता है और न वे औरों की, जो सही नहीं है. इसलिए भले ही आप खुद को आज के जमाने में ढालें लेकिन हाई लिविंग में जीने के कारण अपनी पर्सनैलिटी को नैगेटिव न बनाएं.

नए तेवर में कांग्रेस

कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद से राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने अपनी नीतियों में बड़े बदलाव किए हैं. इस में सब से प्रमुख बात यह रही की जहां अबतक कांग्रेस बीजेपी पर सूटबूट के साथ 2 मित्रों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए सरकार पर निशाना साधती थी, वहीं अब कांग्रेस आम जनता और दलितों की बात करते नजर आ रही है.

इस की शुरुआत कांग्रेस ने हिमाचल से की जहां सब से पहले पार्टी ने पुरानी पैंशन स्कीम की बात करते हुए हिमाचल की जनता के दिल में जगह बनाई और जीत दर्ज की. इस के बाद कर्नाटक में कांग्रेस ने अहिंदा कार्ड खेला और दलित, मुसलिम और पिछड़ों की बात करते हुए राज्य में अच्छे वोटों से जीत हासिल की.

चौंकाने वाला ऐलान

इस से पहले राहुल गांधी मोदी सरकार पर अडानीअंबानी का नाम ले कर आक्रामक रहे, लेकिन जमीन पर पार्टी को उस का कोई फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा था. राफेल मामले को ले कर कांग्रेस के आरोपों पर भी जनता पर कोई असर पड़ता नजर नहीं आ रहा था. यही वजह है कि कांग्रेस अब पूंजीवाद, अडानीअंबानी जैसे मुद्दों को छोड़ अब आरक्षण, मुसलिम उत्पीड़न के साथ दलितों की बात कर रही है.

हाल ही में यूपी कांग्रेस की बैठक में ऐलान किया गया कि पार्टी जातीय जनगणना कराने और ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की मांग को ले कर आंदोलन करेगी. कांग्रेस का यह ऐलान बेहद चौंकाने वाला था, क्योंकि इस से पहले पार्टी ऐसे मुद्दों पर ज्यादात्तर चुप्पी साधना ही पसंद करती थी. लेकिन अब जातीय जनगणना और ओबीसी की बात कर कांग्रेस अब नए तेवर में नजर आ रही है.

अमेरिका में राहुल क्या बोले

इस का एक और उदाहरण राहुल गांधी के 6 दिवसीय अमेरिका दौरे में देखने को मिल रहा है जहां राहुल गांधी बीजेपी और आरएसएस पर हमला करते हुए संविधान पर चोट की बात कर रहे हैं. इस के अलावा राहुल ने अपने पहले दिन की बातचीत में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और गरीबों की बात करते हुए कहा कि आज भारत इन के लिए सही जगह नहीं रह गई है.

राहुल ने अमेरिका में बातचीत के दौरान कहा,”आज भारत में मुसलिम खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है, क्योंकि उन के साथ सब से ज्यादा ज्यादती की जा रही है और मैं गारंटी से कह सकता हूं कि मेरे सिख, ईसाई, दलित और आदिवासी भाई भी ऐसा महसूस कर रहे होंगे.”

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

राजनीतिक जानकारों का मानना है की राहुल गांधी और कांग्रेस के ये बयान पार्टी की नई रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि अबतक अडानीअंबानी और अमीरों की सरकार वाली बात पर जनता कांग्रेस के साथ जुड़ नहीं पा रही थी.

जातिवादी हकीकत दिखाते मीठे अंगूर बन गई कटहल

ओटीटी पर रिलीज हुई फिल्म ‘कटहल’ जातिवाद पर कड़ा प्रहार करती है. फिल्म शुरू होने से पहले लगा था कि यह उत्तर प्रदेश या बिहार की राजनीति पर बनने वाली आम सी हलकी फिल्म होगी पर इस की गंभीरता इसे देखने बाद समझ आती है.

इस फिल्म में बारीकी से बताया गया है कि कैसे हमारे सिस्टम की नसनस में जातिवादी और गरीबविरोधी भावना भरी पड़ी है. हंसीठट्ठे और हलकी कौमेडी के साथ यह फिल्म सामाजिक संदेश देने का काम बखूबी करती है. कटहल के नाम पर फिल्म ‘अंगूर’ बन गई सी लगती है.

फिल्म की मुख्य किरदार एक महिला है जो बसोर जाति से है. बसोर जाति के लोग अतीत से बांस से बने उत्पादों को बनाते रहे हैं. इन्हें दलित जाति में गिना जाता है जो उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश से संबंधित हैं. इस लिहाज से निर्देशक यशोवर्धन मिश्रा की तारीफ तो बनती है कि उन्होंने ऐसे समय किसी दलित नायिका को लीड लेने का विचार किया जब लगभग सभी फिल्मों में ऊंची जातियों के नायकनायिकाएंही दिखाए जा रहे हैं.

फिल्म में प्रशासनिक सिस्टम पर भी कटाक्ष किया गया है, जैसे हमारे देश की पुलिस नेताओंके दबाव में रहती है. अगर किसी गरीब की बच्ची गुम हो जाए या जवान बेटी को कोई उठा ले तो पुलिस उसे ढूंढनेमें उतनी मेहनत और संसाधन खर्च नहीं करती. मगर वहीं किसी वीवीआईपी या मंत्री की भैंस, कुत्ता या कटहल चोरी हो जाए तो पूरा पुलिस महकमा उसे ढूंढने में लग जाता है, भले ही प्रशासन के इस पर लाखों रुपए खर्च क्यों न हो जाएं.

ओटीटी पर रिलीज हुई ‘कटहल’ यानी जैकफ्रूट इसी तरह की फिल्म है. फिल्म में माननीय विधायक (मुन्नालाल पटेरिया) के बगीचे में पेड़ पर लगे 15-15 किलो के विदेशी प्रजाति के 2 कटहल चोरी हो जाते हैं. विधायक पटेरिया को मंत्री बनना है, जिस के लिए वे प्रदेश के सीएम को इंप्रैस करने के लिए कटहल का अचार भेजना चाहते हैं. समस्या यह है कि यही कटहल चोरी हो गए हैं. मामला हाईप्रोफाइल बन जाता है. कटहल को ढूंढने की जिम्मेदारी पुलिस अफसर महिमा बसोर को दी जाती है.

इस फिल्म में सान्या मलहोत्रा ने महिमा बसोर की भूमिका निभाई है. फिल्म में कई मौकों पर जातिवाद पर कटाक्ष किया गया है. छानबीन करने के दौरान महिमा बसोर के पैर विधायक पटेरिया के घर मेंबिछी महंगी कालीन पर पड़ जाते हैं. अब पटेरिया तिलमिला जाते हैं और महिमा को लताड़ते हुए पीछे हटने को कहते हैं, साथ ही, अपनी पत्नी से कालीन में गंगाजल छिड़कने को कह देते हैं.

महिमा केस की छानबीन करती है तो उसे पता चलता है कि विधायक के घर से माली गायब है. शक माली पर जाता है.माली जब मिलता है तो पता चलता है कि उस की खुद की किशोरी बेटी घर से गायब हो गई है.यहां एक घटना घटित होती है. जब वह थाने में माली को बैठने को कहती है तो माली जमीन पर बैठ जाता है. फिर महिमा उसे कुरसी पर बैठने को कहती है.

महिमा बसोर अब चिंता में आ जाती है कि कटहल ढूंढना जरूरी है या माली की बेटी. इस बीच, उसे पता चलता है कि ऐसी कई लड़कियां हैं जो लापता हो जाती हैं जिन्हें कोई ढूंढ ही नहीं रहा, और ये सारी गरीब, दलितों व अल्पसंख्यकों की लड़कियां हैं. वह दिमाग लगाती है और अनाउंस कर देती है कि माली की बेटी ने ही कटहल चुराया है ताकि पुलिस अब माली की बेटी को ढूंढने लग जाए.

इस बीच, कई घटनाक्रम हैं जो काफी गंभीर हैं, जैसे माली की बेटी को ढूंढते हुए पुलिस जब छानबीन करती है तो, चूंकि लड़की नीची जाति से होती है तो कहा जाता है कि उस के लक्षण ठीक नहीं हैं, गुटखा खाती थी, फटी जीन्स पहनती थी.

फिल्म में पैरलर लवस्टोरी भी है. महिमा बसोर अपने कलीग कांस्टेबल सौरभ द्विवेदी से प्यार करती है. सौरभ चूंकि ऊंची जाति से है और बसोर नीची से तो सौरभ के परिवार वाले शादी के लिए राजी नहीं, ऊपर से बसोर उस से रैंक मेंआगे है.महिमा एक जगह सौरभ से कहती है, ‘हम दोनों के बीच की दीवार मैं हर बार तोड़ने की कोशिश करती हूं लेकिन तुम हो कि उस में 2-3 ईंट जोड़ ही देते हो.

जांच में महिमा को एक बाहुबली हलवाई (रघुवीर यादव) के बारे में पता चलता है. वह ऐसी फरार लड़कियों को खरीदने का काम करता है और उन्हें आगे बेच देता है. महिमा उस हलवाई के प्रतिष्ठान पर छापा मारती है. माली की बेटी को उस बाहुबली ने 15 हजार रुपए में खरीदा था. वहां खूब मारधाड़ होती है. हलवाई को गिरफ्तार कर लिया जाता है.

फिल्म के क्लाइमैक्स में अदालत में जज महोदया चोरी हुई कटहलों की कीमत मंडी से पता कराती हैं तो पता चलता है कि इन 15-15 किलो के 2 कटहलों की कीमत 12 रुपए प्रतिकिलो है यानी कि 360 रुपए. जज महोदया की यह टिप्पणी कि 360 रुपए के कटहलों के लिए प्रशासन ने हजारों रुपए स्वाहा कर डाले. तो ऐसी है हमारे सिस्टम की बदहाली की कहानी.

फिल्म में किरदार बहुत बढ़िया से लिखे गए हैं, जैसे कांस्टेबल मिश्रा जी हैं जिन की बेटी की शादी होनी है लेकिन दहेज़ में देने वाली उन की गुलाबी रंग की नैनो कार चोरी हो गई है. इस के अलावा एक दूसरी महिला कांस्टेबल है जिस का पति जिला कोर्ट में जज है. उस के ऊपर घर के कामों को करने की जिम्मेदारी है. उस का पति उस के काम को कम ही आंकता है.

इन सब के बीच सब से ज्यादा लाइमलाइट लेने वाले यूट्यूब चैनल चलाने वाले अनुज पत्रकार (राजपाल यादव) हैं. वे चतुर किस्म के हैं. हर छोटी खबर को सनसनी बनाने पर तुले रहते हैं. एक जगह उन एक डायलौग है कि, ‘“धक्का काहे मार रहे हो, चौथे खंबे को गिरा दोगे क्या?’” अनुज के किरदार में राजपाल जमा है. उसे दलित लड़कियों की खबर चलाने के मामले में द्रोह के केस में जेल हो जाती है.

फिल्म में अमीरगरीब, ऊंचीनीची जाति इन सबके भेददिखाते हुए बिलकुल नाजायज नहीं लगती. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे खुद को समाज का स्वयंभू समझने वाला तबका अपनी जाति की अकड़ और घमंड अब भी साधे हुए है. पटेरिया है जो सत्ता तक पहुंचा है और जातीय घमंडसे लबालब है. मिश्रा जो कि गरीब है और रीतिनीति से परेशान है पर जातीयता का भाव उस में भी है. गांव के सवर्ण की दलितों के प्रति घृणा वाली ही नजर है. प्रेमी द्विवेदी है जो जातिवाद नहीं मानता पर उसे मिले उच्चजातीय संस्कार ऐसे हैं कि वह निचलों की भावनाओं को भी नहीं समझ पा रहा.

फिल्म की इस कहानी में कुछ कमियां भी हैं. पुलिस सिस्टम में एक कांस्टेबल प्रमोशन पा कर सीधे सब इंस्पैक्टर नहीं बन सकता. सान्या मलहोत्रा ने इंस्पैक्टर के रोल में बढ़िया अभिनय किया है. विजयराज छोटे रोल में है, मगर दमदार है. अन्य कलाकार साधारण हैं. फिल्म में सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रहार किया गया हैजहां समर्थ आदमी के कटहल चोरी होने पर उस की सुनवाई है वहीं गरीब आदमी की बेटी के गुम होने पर भी कोई सुनवाई नहीं है.

गीतसंगीत साधारण है. कहानी और पटकथा और मेहनत मांगती है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.

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