रेखा ने जैसे ही चटनी को चखा वैसे ही उस के मन में कई प्रश्नों ने घर कर लिया, यह चटनी, यह तो बिलकुल वैसी ही है जैसी सुरुचि शांता ताई को बताया करती और फिर वह बनाती थी. वही रंग, वही स्वाद. ऐसा कैसे हो सकता है, कोई इतनी नकल कैसे कर सकता है.