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दर्द आसना : आजर और जोया बचपन में क्यों लड़ा करते थे

‘तुम गई नहीं..?’’

‘‘कहां?’’

‘‘आजर भाई को देखने…’’

‘‘मैं क्यों जाऊं?’’‘‘घर के सब लोग जा चुके हैं लेकिन तुम हो कि अभी तक नहीं गई. आखिर वह तुम्हारे मंगेतर हैं.’’

‘‘मंगेतर…मंगेतर थे. लेकिन अब नहीं. एक अपाहिज मेरा मंगेतर नहीं हो सकता. मुझे उस की बैसाखी नहीं बनना.’’

वह आईने के सामने खड़ी बाल संवार रही थी और अपनी बहन के सवालों के जवाब लापरवाही से दे रही थी. जब बाल सेट हो गए तो उस ने आईने में खुद को नीचे से ऊपर तक देखा और पर्स नचाती हुई दरवाजे से बाहर निकल गई.

आजर के यहां का दस्तूर था कि रिश्ते आपस में ही हुआ करते थे. और शायद इसी रिवायत को जिंदा रखने के लिए मांबाप ने बचपन में उस का रिश्ता उस के चाचा की बेटी से तय कर दिया था.

आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था. जबकि जोया को मां के बेजा लाड़प्यार ने जिद्दी और खुदसर बना दिया था. शायद यही वजह थी कि दोनों साथसाथ खेलतेखेलते झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

उस दिन तो हद हो गई. आजर पुरानी कौपी का उधड़ा हुआ कवर लिए था. कवर पर कोई तसवीर बनी थी, शायद उसे पसंद थी. जोया की नजर पड़ गई, वह चिल्लाने लगी, ‘‘वह मेरा है…उसे मैं लूंगी.’’

आजर भी बच्चा था. बजाए उसे देने के दोनों हाथ पीछे करके छिपा लिए. वह चीखती रही, चिल्लाती रही यहां तक कि बड़े लोग आ गए.

‘‘तौबा है दफ्ती के टुकड़े के लिए जिद कर रही थी. अभी ये आजर के हाथ में न होता तो रद्दी होता. क्या लड़की है, कयामत बरपा कर दी.’’ बड़ी अम्मी बड़बड़ाईं और अपने बेटे आजर को ले कर चली गईं.

यूं ही लड़तेझगड़ते दोनों बड़े हो गए. बचपन पीछे छूट गया. दोनों उम्र के उस मुकाम पर थे, जहां जागती आंखें ख्वाब देखने लगती हैं. और जब आजर ने जोया की आंखों में देखा तो हया की लाली उतर आई.

नजर अपने आप झुकती चली गई. शायद उसे मंगेतर का मतलब समझ आ गया था. अब वह आजर की इज्जत करती, उस की बातों में शरीक होती, उस के नाम पर हंसती. घर वालों को इत्मीनान हो गया कि चलो सब कुछ ठीक हो गया है.

बड़ी अम्मी इन दिनों मायके गई हुई थीं और जब लौटीं तो उन के साथ एक दुबलीपतली सी लड़की थी. जिस की मां बचपन में गुजर चुकी थी. बाप ने दूसरी शादी कर ली थी. अब उस के भी 4 बच्चे थे. बेचारी कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती. बिस्तर पर जाती तो बिस्तर बिछाने का होश न रहता. पता नहीं कब सुबह हो जाती.

दादा से पोती की हालत देखी न जाती. दादा बड़ी अम्मी के रिश्ते के चचा थे, जब बड़ी अम्मी उन से मिलने गईं तो पोती का दुखड़ा ले कर बैठ गए.

‘‘अल्ला न करे किसी की मां मरे.’’ बड़ी अम्मी ने ठंडी सांस ली.

‘‘आप उसे हमारे साथ भेज दीजिए.’’ बड़ी अम्मी ने कुछ सोच कर कहा.

अंधा क्या चाहे दो आंखें, वह खुशीखुशी राजी हो गए. लेकिन बहू का खयाल आते ही उन की सारी खुशी काफूर हो गई. वह ले जाने देगी या नहीं. और जब नजर उठी तो वह दरवाजे में खड़ी थी. उस ने सारी बातें सुन ली थीं.

बड़ी अम्मी कब हारने वाली थीं. उन्होंने अपने तरकश से एक तीर छोड़ा, जो सही निशाने पर बैठा. उन्होंने हर महीने कुछ रकम भेजने का वादा किया और उसे अपने साथ ले आईं.

सना ने आते ही पूरा घर संभाल लिया था. इतना काम उस के लिए कुछ नहीं था. वह घर का काम आंखें बंद कर के कर लेती. उसे सौतेली मां के जुल्म व सितम से निजात मिल गई थी. अर्थात वह यहां आ कर खुश थी.

अगर कभी घर में गैस खत्म हो जाती तो लकडि़यों के चूल्हे पर सेंकी हुई सुर्खसुर्ख रोटियां और धीमीधीमी आंच पर दम की हुई हांडी की खुशबू फैलती तो भूख अपने आप लग जाती.

चाची की तरफ मातम बरपा होता. अरे गैस खत्म हो गई…अब क्या करें…भाभी सिलेंडर वाला आया क्या? फिर बाजार से पार्सल आते तब जा कर खाना नसीब होता.

और अगर कभी मिरची पाउडर खत्म हो जाता, सना साबुत मिर्च निकालती. सिलबट्टे पर पीस कर खाना तैयार कर देती. सालन देख कर अम्मी को पता चलता कि मिरची खत्म हो गई है.

और चाची की तरफ ऐसा होता तो जोया कहती, ‘‘न बाबा न मेरे हाथ में जलन होने लगती है. हया तुम पीस लो.’’ हया भी साफ मना कर देती.

सना तुम कौन हो…कहां से आई हो…सादगी की मूरत…वफा का पैकर…जिंदगी का आइडियल, सना तुम्हारी सना (तारीफ) किन लफ्जों में करूं. आजर का दिल बिछबिछ जाता. फिर उसे जोया का खयाल आता.

वह तो उस का मंगेतर है. कल को उस से उस की शादी हो जाएगी, फिर ये कशिश क्यों. मैं सना की तरफ क्यों खिंचा जा रहा हूं. अकसर तनहाई में वह उस के बारे में सोचता रहता.

आजर एक दिन लौंग ड्राइव से लौट रहा था. उस का एक्सीडेंट हो गया. अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये अपने पैरों पर नहीं चल सकेंगे.’’

सारा घर जमा था. सब का रोरो कर बुरा हाल था.

जब से आजर का एक्सीडेंट हुआ था, जोया ने अपने कालेज के दोस्तों से मिलना शुरू कर दिया था. आज भी वह तैयार हो कर किसी से मिलने गई थी. हया के लाख समझाने पर भी उस पर कोई असर न हुआ था.

आजर अस्पताल के बैड पर दोनों पैरों से माजूर लेटा हुआ था. हर आहट पर देखता, शायद वह आ जाए, जिस से दिल का रिश्ता जुड़ा है. वफा के सिलसिले हैं, जीने के राब्ते हैं, जो उस का मुस्तकबिल है, लेकिन दूर तक उस का कहीं पता न था.

एक आहट पर उस के खयालात बिखर गए. अम्मी आ रही थीं. उन के पीछे सना थी. अम्मी ने इशारा किया तो वह सामने स्टूल पर बैठ गई.

अम्मी रात का खाना ले कर आई थीं. आजर खाना खा रहा था और कनखियों से उसे देख रहा था. फुल आस्तीन की जंपर, चूड़ीदार पजामा, सर पर पल्लू डाले वह खामोश बैठी थी. काश! इस की जगह जोया होती, उस ने सोचा.

फिर जल्दी से नजरें झुका लीं. कहीं उस के चेहरे से अम्मी उस का दर्द न पढ़ लें. वह मुंह में निवाला रख कर चबाने लगा. जब खाने से फारिग हो गया तो अम्मी बरतन समेटने लगीं.

‘‘अम्मी, आप रहने दीजिए मैं कर लूंगी.’’ उस की महीनमहीन सी आवाज आई.

उस ने बरतन समेट कर थैले में रखे और खड़ी हो गई. जब वह बरतन उठा रही थी तो खुशबू का झोंका उस के पास से आया और आजर को महका गया. अम्मी उसे अपना खयाल रखने की हिदायत दे कर चली गईं.

आज आजर को डिस्चार्ज मिल गया था. बैसाखियों के सहारे जब वह अंदर आया तो अम्मी का कलेजा मुंह को आने लगा. लेकिन होनी को कौन टाल सकता है. सना आजर का पहले से ज्यादा खयाल रखती. बहरहाल दिन गुजरते रहे.

एक दिन देवरानीजेठानी दरम्यानी बरामदे में बैठी हुई थीं. देवरानी शायद बात का सिरा ढूंढ रही थी.

‘‘भाभी, हम आप से कुछ कहना चाहते हैं.’’ उन्होंने उन की आंखों में देखा.

‘‘जोया ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. वह आजर से रिश्ता नहीं करना चाहती, क्योंकि आजर तो…’’ उन्होंने जुमला अधूरा छोड़ दिया. वह जबान से कुछ न बोलीं और उठ कर चली आईं.

आजर ने नोटिस किया था, अम्मी बहुत बुझीबुझी सी रहती हैं. आखिर वह पूछ बैठा, ‘‘अम्मी क्या बात है, आप बहुत उदास रहती हैं.’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, जरा तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं जानता हूं आप क्यों परेशान हैं, जोया ने इस रिश्ते से मना कर दिया है.’’

अम्मी ने चौंक कर बेटे की तरफ देखा.

‘‘हां अम्मी, मुझे मालूम है. वह मुझे देखने तक नहीं आई. अगर रिश्ता नहीं करना था, तो न सही. लेकिन इंसानियत के नाते तो आ सकती थी, जिस का इंसानियत से दूरदूर तक वास्ता न हो, मुझे खुद उस से कोई रिश्ता नहीं रखना.’’

‘‘मेरे बच्चे…’’ अम्मी की आंखों से बेअख्तियार आंसू निकल पडे़. उन्होंने उसे गले से लगा लिया.

‘‘अम्मी मेरी शादी होगी…उसी वक्त पर होगी..’’ अम्मी ने उसे परे करते हुए उस की आंखों में देखा. जिस का अर्थ था अब तुझ से कौन शादी करेगा.

‘‘अम्मी, मैं सना से शादी करूंगा. सना मेरी शरीकेहयात बनेगी…मैं ने सना से बात कर ली है.’’ यह सुन कर अम्मी ने फिर उसे गले से लगा लिया.

शादी की तैयारियां होने लगीं. और जो वक्त जोया के साथ शादी के लिए तय था, उसी वक्त पर आजर और सना का निकाह हो गया. आजर को याद आया, एक बार जोया ने बातोंबातों में कहा था, शादी के बाद वह हनीमून के लिए स्विटजरलैंड जाएगी. आजर ने ख्वाहिश जाहिर की तो अम्मी ने उसे जाने की इजाजत दे दी.

आज वह हनीमून से लौट रहा था. सना अंदर दाखिल हुई तो कितनी निखरीनिखरी, कितनी खुश लग रही थी. फिर उस ने दरवाजे की ओर मुसकरा कर देखा, ‘‘आइए न…’’

इतने पर आजर अंदर दाखिल हुआ.

उसे देख कर अम्मी की आंखें हैरत से फैलती चली गईं. वह अपने पैरों पर चल कर आ रहा था.

‘‘बेटे, ये सब क्या है?’’ उन्होंने बढ़ कर उसे थाम लिया.

‘‘बताता हूं…पहले आप बैठिए तो सही.’’ उस ने दोनों बांहें पकड़ कर उन्हें बिठा दिया.

‘‘आप वालिदैन अपने बच्चों के फैसले तो कर देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि बड़े हो कर उन की सोच कैसी होगी. उन के खयालात कैसे होंगे. उन का नजरिया कैसा होगा.

‘‘और मुझे सच्चे दर्द आशना की तलाश थी. जिस के अंदर कुरबानी का जज्बा हो, एकदूसरे के लिए तड़प हो. …और ये सारी खूबियां मुझे सना में नजर आईं, इसलिए मैं ने डाक्टर से मिल कर एक प्लान बनाया.

‘‘वह एक्सीडेंट झूठा था. मेरे पैर सहीसलामत थे. ये मेरा सिर्फ नाटक था, नतीजा आप के सामने है. जोया ने खुद इस रिश्ते से इनकार कर दिया. सना ने मुझ अपाहिज को कबूल किया. मैं सना का हूं, सना मेरी है.’’

जोया ने सारी बातें सुन ली थीं. उस का जी चाह रहा था सब कुछ तोड़फोड़ डाले.

लेखक: अशरफ खान

कैल्शियम और आपका दिल, क्या है रिश्ता, जाने यहाँ

मुंबई के 55 साल के राजेश के सीने में दर्द की शिकायत हुई पहले उन्हें लगा कि उनके पेट में गैस हुआ है, दवाई ली, लेकिन आराम नहीं. इसके बाद उन्होंनेडॉक्टर की सलाह ली, डॉक्टर ने अस्पताल जाने की सलाह दी, क्योंकि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. जांच से पता चला कि उनके हार्ट की धमनियों में खून का बहाव सही तरह से नहीं हो पा रहा है और उनके हार्ट में कई ब्लॉकेज है, गहन जांच के बाद जानकारी मिली कि उनके दिल की धमनियों में कैल्शियम की डिपोजिट हुआ है. उनका एंजियोप्लास्टी किया गया, जिसका खर्चा 3 लाख रुपये से कुछ अधिक था, हालांकि कंपनी से उनके नाम का इंश्योरेंस था,

इसलिए उन्हें पैसे की कोई समस्या नहीं हुई. इसके बाद से उन्हें कोई शिकायत नहीं है, केवल कुछ दवाइयों के सेवन के साथ वे एक अच्छी जिंदगी पिछले 5 साल से गुजार रहे है. इसके अलावा कुछ लोग आजकल व्हाट्सएप और टीवी पर आये विज्ञापनों से भी प्रभावित होकर डॉक्टर की बिना सलाह लिए दवाइयां लेने लगते है, उन्हें लगता है कि विटामिन की कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होती, जबकि विटामिन्स भी जरुरत के आधार पर ही लिया जाना चाहिए.

चालीस साल की उमा भी टीवी पर एक प्रोग्राम देखने के बाद कैल्शियम सप्लीमेंट्स लेना शुरू कर दिया था, लेकिन उन्होंने उसे लेना बंद कर दिया, क्योंकि उनकी दोस्त ने उन्हें एक व्हाट्सअप मेसेज भेजा कि कैल्शियम सप्लीमेंट्स लेने से दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. इस डर को दूर करते हुए डॉक्टर ने सुझाव दिया कि कैल्शियम सप्लीमेंट लेने से रक्त में कैल्शियम की मात्रा का सीधा संबंध हृदय रोग से है
या नहीं, इस बात का अभी तक शोध नहीं हो पाया है, लेकिन किसी भी दवाई को जरुरत के अनुसार ही लेने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और इसके लिए जांच जरुरी है.

क्या कहती है कि रिसर्च

इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिल की कंसलटेंट, कार्डियोलॉजी, डॉ प्रवीण कहाले कहते है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिए एक दिन में 400 से 500 मिलीग्राम कैल्शियम लेने की सिफारिश की है, जबकि अन्य गाइडलाइन्स में 50 और उससे अधिक उम्र के वयस्कों के लिए हर दिन 700-1200 मिलीग्राम कैल्शियम के पर्याप्त सेवन की सलाह दी गयी है. महिला को मैंने सलाह दी थी कि डॉक्टर द्वारा निर्धारित कैल्शियम सप्लीमेंट लेना हमेशा बेहतर होता है.

इसके अलावा कुछ एहतियात ऐसे व्यक्ति को लेने की जरुरत होती है. रोज़ के आहार से कैल्शियम पाने की कोशिश करनी चाहिए, मसलन व्यायाम करना, विटामिन के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां खाना, धूप में टहलना, ताकि पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल सकें और हड्डियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सप्लीमेंट्स लेन आदि है.

अतिरिक्त कैल्शियम का क्या है, स्वास्थ्य पर असर ?
इसके आगे डॉक्टर कहते है कि कैल्शियम एक आवश्यक मिनरल है, जो स्वस्थ हड्डियों और दांतों के निर्माण और रख-रखाव, मांसपेशियों के कार्य और नर्व ट्रांसमिशन सहित कई शारीरिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यही कैल्शियम अगर बहुत ज़्यादा हो जाएं, तो हृदय सहित हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. रक्तप्रवाह में कैल्शियम बहुत ज़्यादा हो जाने से वह धमनियों में जमा हो सकता है और उसके टुकड़े बन सकते हैं, जिससे धमनियां तंग और कठिन बन सकती हैं, इससे धमनियों से रक्त के बहने में बाधाएं पैदा हो सकती हैं, और हृदय में रक्त का प्रवाह कम हो सकता है. हृदय
रोग और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं की जोखिम बढ़ सकती है और गंभीर मामलों में सीने में दर्द, सांस की तकलीफ और यहां तक कि दिल का दौरा भी पड़ सकता है.

क्या है कैल्शियम डिपाजिट

हृदय में कैल्शियम जमा होना वृद्ध वयस्कों में, खास कर 60 वर्ष से ज़्यादा आयु के लोगों में अधिक होता है. परिवार में पहले किसी को हृदय रोग, उच्च  रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह है या धूम्रपान की आदत है, तो हृदय में कैल्शियम जमा होने से होने वाला खतरा और भी ज़्यादा बढ़ जाता है. हृदय में
कैल्शियम जमा होने का संबंध हृदय रोग के पारिवारिक इतिहास के साथ-साथ हेरेडिटरी फैक्टर के साथ भी जोड़ा जा सकता है.

जरुरत से अधिक न ले विटामिन्स
असल में शरीर में कैल्शियम बहुत ज़्यादा हो जाने से हाइपरकाल्सेमिया भी हो सकता है. इस स्थिति में शरीर में कैल्शियम बहुत ज़्यादा हो जाता है, जिससे मतली, उलटी, कमज़ोरी आदि तकलीफें हो सकती हैं. साथ ही बहुत ज़्यादा कैल्शियम का असर शरीर की आयरन और ज़िंक जैसे खनिजों को सोखने की
क्षमता पर भी पड़ सकता है. इससे शरीर में इन न्यूट्रिएंट्स की कमी महसूस
होने लगती है.

कैल्शियम सप्लीमेंट्स और आपका ह्रदय
ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम और उस पर इलाज के लिए पिछले कई दशकों से कैल्शियम सप्लीमेंट्स का उपयोग किया जा रहा है. ऑस्टियोपोरोसिस मेंहड्डियां नाजुक हो जाती हैं और उनमें फ्रैक्चर बहुत ही आसानी से होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. हालांकि ज़्यादातर लोगों को उनके रोज़ाना खान- पान को संतुलित रखने से ही पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मिल जाता है, लेकिन कुछ को कैल्शियम सप्लीमेंट्स लेने भी पड़ सकते हैं.

नहीं है कोई ठोस प्रमाण

कैल्शियम सप्लीमेंट्स का संबंध ह्रदय रोग और ह्रदय की धमनियों में प्लाक के जमा होने से है या नहीं, इसका अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिल पाया है. कई अध्ययनों में सुझाया गया है कि कैल्शियम सप्लीमेंट्स लेने से ह्रदय रोग का ख़तरा बढ़ सकता है. एक अध्ययन में पाया गया कि कैल्शियम सप्लीमेंट लेनेवाली महिलाओं में सप्लीमेंट नहीं लेने वाली महिलाओं की तुलना में हार्ट अटैक का खतरा 30 प्रतिशत अधिक था, एक दूसरे अध्ययन में पाया गया है कि कैल्शियम की खुराक कोरोनरी धमनियों में प्लाक पैदा होने की जोखिम को बढ़ा सकती है, जिससे हृदय रोग और अन्य हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.

इसके अलावा कोरोनरी धमनियों में कैल्शियम सप्लीमेंट और प्लाक पैदा होने के बीच की कड़ी के पीछे की सटीक क्रियाविधि अभी तक पूरी तरह से समझ में नहीं आई है. एक सिद्धांत बताता है कि रक्त प्रवाह में अतिरिक्त कैल्शियम धमनियों में जमा हो सकता है और प्लाक बना सकता है. दूसरा यह है कि कैल्शियम सप्लीमेंट कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करने की शरीर की क्षमता को प्रभावित कर सकती है, जिससे रक्तप्रवाह में कैल्शियम का स्तर बढ़ जाता है. इससे आर्टेरिअल वॉल्स को नुकसान पहुंचकर सूजन हो सकती है, इससे कोरोनरी धमनियों में प्लाक बन सकता है, लेकिन इस कड़ी की पुष्टि के लिए
अधिक शोध की आवश्यकता है.

करें सही डायग्नोसिस
डॉक्टर प्रवीण कहते है कि कोरोनरी कैल्शियम को स्कैन के द्वारा पता किया जाता है. इसके बाद इस टेस्ट में हृदय की धमनियों में कैल्शियम की मात्रा को मापने के लिए एक विशेष एक्स-रे मशीन का उपयोग किया जाता है. यदि स्कैन में कैल्शियम का उच्च स्तर दिखता है, तो यह संकेत दे सकता है कि
मरीज़ को हृदय रोग होने का खतरा ज़्यादा है.

डॉक्टर की लें सलाह
यदि आप कैल्शियम सप्लीमेंट लेते हैं, तो अपने डॉक्टर से हृदय रोग की जोखिम के बारे में बात करना जरुरी है और सप्लीमेंट्स को लेना जारी रखना चाहिए या नहीं, इसके बारे में सलाह अवश्य लें. कैल्शियम सेवन को बढ़ाने के लिए आहार या दूसरे पूरक तरीकों की सिफारिश भी कर सकते है, ताकि ह्रदय
रोग की जोखिम को कम किया जा सकें. ध्यान रखें कि आहार से कैल्शियम
पाना आपके कुल स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित और फायदेमंद होता है.

बदलें जीवनशैली                        
डॉक्टर आगे कहते है कि जीवन शैली में बदलाव लाकर और दवाइयां लेकर हृदय में कैल्शियम जमा होने की स्थिति को पलटा जा सकता है. आपके डॉक्टर आपको जीवन शैली में परिवर्तन लाने के कई उपयुक्त तरीकें बता सकते है.स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम, धूम्रपान न करना, स्वस्थ वज़न बनाए रखनाआदि से ह्रदय रोग की जोखिम को कम किया जा सकता है. स्टैटिन जैसीदवाइयां भी कैल्शियम जमा होने की गति को धीमा करने में मदद कर सकतीहैं. कुछ मामलों में, जमा कैल्शियम को हटाने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है.

कैल्शियम सप्लीमेंट हमेशा डॉक्टर की सलाह से लें, लेकिन यह जीवन शैली में बदलाव लाकर हृदय रोग और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं की रिस्क फैक्टर को कम करने में मदद मिल सकती है. किसी भी ह्रदय सम्बन्धी स्थिति की जल्द से जल्द डायग्नोसिस कर अपने नज़दीकी अस्पताल में जाना आवश्यक
होता है, जहां एक मज़बूत प्राथमिक देखभाल प्रणाली मौजूद हो. इसके अलावा केयर और चिकित्सा के लिए एक बहु-प्रतिभाशाली टीम का होना जरुरी है, ताकि इलाज सही हो.

धूप छांव सी जिंदगी : क्या पूरा हुआ सपना का ख्वाब ?

गांव की कच्ची सड़क पर अकेली चलतीचलती सपना के पैर अचानक रुक गए. उस ने पीछे गांव की ओर जाती टेढ़ीमेढ़ी, ऊबड़खाबड़ सड़क की ओर पलट कर एक नजर भर देखा और मन में एक दृढ़ निश्चय के साथ आगे शहर को जोड़ने वाली उस पक्की सड़क की ओर अपने कदम बढ़ा दिए.

गांव की वह पगडंडीनुमा ऊबड़खाबड़ सड़क आगे जा कर शहर की ओर जाने वाली उस पक्की चौड़ी सड़क में विलीन हो जाती थी. गांव की उस कच्ची सड़क की सीमा पर शहर की ओर जाने वाली पक्की सड़क के ठीक किनारे ईंटसीमेंट से बनी एक छोटी सी पुलिया थी, जो कि  जर्जर अवस्था में थी और जिस का एकमात्र उपयोग बस के लिए प्रतीक्षारत यात्रियों के बैठने के रूप में होता था और जहां शहर की ओर जाने वाली तमाम बसें कुछ मिनट के लिए आ कर रुका करती थीं.

सपना जब उस पुल तक पहुंची, तो सूर्योदय हो चुका था. तकरीबन 1 घंटे से वह उस पुल पर बैठी बस की प्रतीक्षा कर रही थी. सुबह का हलकामीठा लालिमायुक्त प्रकाश अब आहिस्ताआहिस्ता तेज प्रखर रूप धारण कर चुका था. सामने सड़क के दूसरी ओर घने पेड़ों के झुरमुट के बीच से हो कर सूरज की झिलमिलाती तेज किरणें उस के चेहरे के साथ अठखेलियां कर रही थीं, किंतु वह किसी गहरे सोचविचार में डूबी हुई थी.  उस के कानों में रहरह कर उस के बाबू का वह स्वर गूंज उठता था, ’’मुझे तो अब इस लड़की का भी भरोसा नहीं.’’

“सपना… अरे ओ सपना, कहां मर गई छोरी… घंटेभर से आवाज लगा रही हूं तुझे. देख, तेरे बाबू के आने का टैम (टाइम) हो गया है. बित्तर (भीतर) बैठीबैठी ना जाने क्या कर रही है छोरी?‘’

सपना अपने कमरे में गुमसुम बैठी हुई है. मां के शब्द मानो उस के कानों से टकरा कर वापस चले जाते हों. मां की बातों का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. वह अपने कमरे में बैठी खिड़की के बाहर देखे जा रही है, बिलकुल खामोश वह किसी गहरी चिंता में मग्न गुमसुम सी बैठी हुई है.    पिता भी डांटडपट कर सुबह दुकान के लिए जा चुके थे. मां भी कहसुन कर, रोपीट कर रसोई के काम में जुट गई थी. सारे दिन अकेली घर का सारा काम संभालतेसंभालते अब उस का गुस्सा भी सातवें आसमान पर जा पहुंचा था.

सपना की मां ने कमरे के पास आ कर फिर आवाज लगाई, ‘’अरे ओ छोरी, घणा बेर (बहुत देर) से आवाज लगा रही हूं, सुनती क्यों नहीं? घर के लुगाइयों वाली चाल नहीं सीखेगी, ससुराल जा कर नाक कटाएगी के. इस के कारण आदमी की गालियां सुनो, लेकिन छोरी है कि जिद पकड़े बैठी है.‘’

‘’अरे, जाण दे उसन (जाने दो उसे),’’ तभी सपना के बाबू का क्रोधपूर्ण शब्द सपना के कानों में गूंजा, ‘’दो दिन में इस की अक्ल ठिकाने आ जाएगी, भूख लगेगी तो खुद ही कमरे के बाहर आ जाएगी, तुम क्यों बेकार में अपना खून जला रही है?”

“अरे, देखना तुम यह भी वही सब करेगी, जो इस की  बड़ी बहन ने किया था. मुझे तो इस का भी भरोसा नहीं,’’ पिता की आवाज सुन सपना अपने पलंग से उतर आई और दरवाजे से कान सटा कर मांबापू की बातें सुनने की कोशिश करती है.

उस का बापू उस की मां से कहता है, ‘’सुनीता का पता चल गया है, वह शहर में है. उसी लड़के के साथ… दोनों ने शादी कर ली है. आज ही कन्हैया बाबू का लड़का शहर से आया है. उसी ने उन दोनों को वहां पर देखा. अब यह भी कोई गलत कदम उठाए, उस से पहले इस की शादी करा देना ही उचित होगा.

“सच कहता हूं कि मुझे अब इस का भी भरोसा नहीं. आगे पढ़ने  की जिद किए बैठी है. कहां से लाऊंगा मैं इतना पैसा? शहर जा कर पढ़ना चाहती है, शहर की पढ़ाई में जानती भी है… कितना खर्चा आता है.”

“जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करा दें तो ही जा कर अपने मन को शांति मिलेगी, नहीं तो हर वक्त यही डर बना रहेगा कि जो कांड इस की बड़ी बहन ने किया वही सबकुछ यह भी न कर ले…’’

‘’तुम ठीक ही कहते हो सपना के बापू… जवान छोरी के मांबापू के कलेजे में तो डर हमेशा बना रहता है….‘’ सपना की मां ने भी उस के पिता का ही समर्थन किया.

अपने पिता के द्वारा कही गई ये बातें सपना के सीने में तीर की भांति लगती हैं, उस की नजर में उस वक्त अपने  ही मांबापू किसी दुश्मन से कम नहीं लग रहे थे. बहुत देर तक उदास बैठी वह जाने क्याक्या मन ही मन सोचती रही, और फिर अचानक उस ने अपने मन में एक दृढ़ निश्चय किया. उस ने तय किया कि अब वह अकेली ही शहर के लिए निकल जाएगी और  लौट कर वापस कभी नहीं आएगी. जिस घर में उस के मांबापू को ही उस पर भरोसा नहीं है, वह उस घर में कभी वापस नहीं आएगी. कम से कम वह तब तक वापस नहीं आएगी, जब तक वह योग्य नहीं बन जाती. और फिर अगले दिन ही सुबहसुबह वह अपने घर को छोड़ कर निकल पड़ती है. अपने गांव से तकरीबन 3 किलोमीटर की दूरी पैदल चलती हुई वह शहर की ओर जाने वाली इस पक्की सड़क तक आ पहुंचती है.

सड़क के किनारे बने उस छोटे से पुल पर बैठी हुई सपना अपनी ही धुन में खोई हुई थी. उस के चेहरे पर हलकी सी उदासी उभर आई थी, चिंता की कई परतें उस के मानसपटल पर उभर आती और फिर मिट जाती.

दिल्ली, दिल्ली की आवाज ने उसे जैसे  नींद से जगा दिया. वह एकदम से उठी और सामने खड़ी बस में जा बैठी. बस की ज्यादातर सीटें खाली थीं. वह खिड़की के किनारे वाली एक सीट पर जा बैठती है, बस चल पड़ती है.

‘’हैलो, हां, मैं पहुंच रही हूं, तुम मुझे लेने आ जाओगे ना,‘’ सपना ने अपने मोबाइल से किसी को फोन किया.

“हां, मैं आ जाऊंगा, तुम दिल्ली पहुंचने के एक घंटे पहले मुझे फोन कर देना. मैं वक्त पर पहुंच जाऊंगा,‘’ फोन की दूसरी तरफ से किसी ने जवाब दिया.

‘’और मेरे रहने का इंतजाम…’’

‘’वह भी हो जाएगा… तुम चिंता मत करो.‘’

सपना जब दिल्ली पहुंची, तो जितेंद्र उस के इंतजार में उसे खड़ा मिला. उस ने उसे देखते ही दूर से हाथ हिलाया और पास आ कर उस का सामान उठा कर  बाइक पर रख लिया और उस के साथ गर्ल्स होस्टल की ओर चल दिया.

‘’तो, आखिर तुम ने हिम्मत दिखा ही दी…’’ बाइक चलातेचलाते जितेंद्र ने सपना की ओर पीछे पलट कर देखा.

सपना चुप रही. उस ने खामोशी से बस पलकें उठा कर उस की ओर देख भर लिया.

‘’घर छोड़ने का निर्णय लेते वक्त तुम्हें डर नहीं लगा?

‘निर्णय लेना पड़ा… वरना बापू मेरी शादी करा देता,’’ तेज हवा के कारण दुपट्टे का एक सिरा सपना के चेहरे से आ चिपका था, जिसे चेहरे से हटाते हुए सपना ने जवाब दिया.

‘’मानना पड़ेगा तुम्हे… तुम्हें अपने बापू का भी डर नहीं लगा?”

“डर…? डर किस बात का…? मैं कोई गलत काम थोड़े ही करने जा रही हूं… कुछ बनने का उद्देश्य ले कर निकली हूं,” और बेफिक्री में सपना ने अपने कंधे को झटका दिया.

‘’तुम अपनी बताओ. तुम्हारा इस बार का रिजल्ट क्या आया?‘’ सपना ने अचानक ही विषय को बदलते हुए पूछ लिया.

‘’मैं इस बार भी असफल रहा…’’ जितेंद्र लापरवाही के साथ हंस पड़ा.

‘’इस बार भी, ऐसा कैसे?‘’ सपना ने आश्चर्यपूर्वक पूछा.

‘’तुम तो पिछले कई वर्षों से आईएएस की तैयारी कर रहे हो न….” और सपना की विस्मय से आंखें फैल गईं.

‘’अरे, मैं तो आईएएस की तैयारी बड़े जीजान से, कड़ी मेहनत के साथ हर साल करता हूं, परंतु हर बार ये यूपीएससी वाले क्वेश्चन ही कठिन सेट कर देते हैं…  दरअसल, मैं असफल नहीं होता, बल्कि यूपीएससी के क्वेश्चन ही कठिन पूछे जाते हैं,‘’ और दोनों हंस पड़ते हैं.

‘’ऐसे ही हंसती रहा करो… उदास अच्छी नहीं लगती,” जितेंद्र ने गर्ल्स होस्टल के गेट के बाहर बाइक खड़ी करते हुए कहा.

‘’सपना, ये रहा तुम्हारा कमरा. फिलहाल तो मैं ने किसी तरह जुगाड़ कर के 15 दिन के पैसे एडवांस में दे दिए हैं. आगे तुम्हें खुद ही इंतजाम करना होगा…’’ और फिर थोड़ा रुक कर जितेंद्र कहता है, ’’मैं तुम्हारे लिए पार्ट टाइम जौब खोजने में तुम्हारी मदद करूंगा.‘’

‘’थैंक यू जितेंद्र, तुम ने मेरी बहुत मदद की है सच में. मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी,’’ सपना ने कृतज्ञता भरे स्वर में कहा.

‘’कैसी बात कर रही हो? मैं तो खुद शर्मिंदा हूं कि मैं तुम्हारे लिए बस इतना ही कर पाया और दोस्ती के  बीच में यह अहसान जैसे शब्द कहां से आ गए?’’ जितेंद्र ने अधिकारपूर्वक डांट लगाई, तो सपना ने गंभीर होते हुए नजरें जमीन पर गड़ा दी.

‘’और फिर हम दोनों एक ही गांव से हैं. तो इस अनजान शहर में हम ही एकदूसरे के काम आएंगे ना…’’ जितेंद्र ने उसे समझाते हुए कहा.

सपना ने कोई जवाब नहीं दिया, बस चुपचाप खामोशी से जितेंद्र की ओर देखती रही.

जितेंद्र जब सपना को होस्टल के कमरे में छोड़ कर चलने को हुआ, तो सपना से बोला, ’’मैं चलता हूं अभी. कोचिंग की क्लास का समय हो रहा है. वैसे भी  तुम्हारे लिए यह शहर नया तो है नहीं. तुम पहले भी यहां आ चुकी हो. तुम्हारे लिए तो सबकुछ देखासमझा हुआ है. मेरे खयाल से तुम्हें कुछ खास परेशानी नहीं होनी चाहिए. और कुछ जरूरत पड़े तो मुझे फोन करना. वैसे, मेरा नंबर तो तुम्हारे पास है ही.’’

सपना ने सहमति में बस सिर हिला दिया.

जितेंद्र जब चला गया, तो वह सोच में पड़ गई. जितेंद्र ने अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर उस की मदद की है… अब वह और उस से मदद नहीं लेगी… क्या वह बिना उस की सहायता के कभी कुछ नहीं कर सकती? कम से कम वह अपने लिए इतनी कोशिश तो अवश्य करेगी कि पैसे के लिए अब और उस की मदद न लेनी पड़े, दिल्ली तो वह आ गई है, और अब उसे बस आगे का रास्ता तलाशना है. क्यों न वह अपने लिए कोई पार्ट टाइम जौब ही ढूंढ़ ले? लौट कर घर वापस जाने का तो अब वह सोच भी नहीं सकती. अकेली बैठेबैठे उसे और भी चिंता होने लगी.

होस्टल के उस कमरे में उस के अतिरिक्त और 2 लड़कियां रह रही थीं- प्रीति और नीलू. वैसे तो दोनों अकसर गायब ही रहती थीं. रात के ढाईढाई, तीनतीन बजे तक जाने कहांकहां  भटकती रहती और कभीकभी जब वे लौटती तो उन के साथ कोई न कोई लड़का जरूर होता. दोनों ही ड्रिंक लेती, सिगरेट पीती.

सपना को यहां रहते हुए 10 दिन का समय बीत चुका था. अभी तक अपने लिए वह कोई काम नहीं खोज पाई थी. उसे अब अपने भविष्य को ले कर चिंता सताने लगी थी. गांव से जिस उद्देश्य को ले कर वह निकली थी, उस के लिए हौसले के साथसाथ पैसों की भी जरूरत थी. हौसला तो उस के पास था, पर जरूरत थी तो उस के अपने  खर्चों के लिए पैसों का जुगाड़ करना, जो कि बहुत मुश्किल होता जा रहा था. इस बीच उस के मन में कई दफा नीलू और प्रीति से मदद लेने के विचार भी उत्पन्न हुए, लेकिन कोई ठोस आलंबन न पा कर सूखी पंखुड़ियों के समान झड़ गए. उसे हर बार लगता  कि जिंदगी में जिन ऊंचाइयों को छूने का ख्वाब ले कर वह घर से निकली है, उस का रास्ता इतना समतल और सपाट तो नहीं हो सकता…

सामने चेयर पर बैठी नीलू एक के बाद एक सिगरेट सुलगाती जा रही थी. वह कुछ परेशान सी दिख रही थी. सपना बिस्तर पर बैठी हुई किसी किताब में नजरें जमाए हुई थी. किंतु बीचबीच में वह एकाध बार नजरें उठा कर नीलू को देख भर लेती, परंतु कुछ पूछने का साहस नहीं जुटा पाती. प्रीति अभी तक लौट कर नहीं आई थी.

सपना ने घड़ी देखी, रात के 12 बज रहे थे. सपना कुछ पूछना चाहती है, किंतु फिर भी चुप रह जाती है, क्योंकि वह जानती है कि इस वक्त उस से कुछ भी पूछना निरर्थक है. उस से कुछ भी  पूछने का मतलब है किसी न किसी विवाद की शुरुआत. तो बेहतर है कि चुप ही रह जाए.

कुछ देर तक पन्ने पलटने के बाद वह किताब को अपने पास की टेबल पर रख देती है और बिस्तर पर आंखें मूंद कर चुपचाप लेट जाती है.

‘’हेल विद हिम…‘’ सपना के कानों में जब नीलू की झुंझलाहट भरी यह तेज आवाज पड़ी, तो वह अचानक बिस्तर से उठ बैठी. सामने देखा तो नीलू और प्रीति में किसी बात पर जोरदार बहस चल रही थी.

प्रीति कब कमरे में आई, उसे पता ही नहीं लगा. शायद उस वक्त वह काफी गहरी नींद में थी.

‘’नाराज मत हो यार. मैं तो बस इतना पूछ रही थी कि रोहित के साथ तेरा अफेयर कैसा चल रहा है? देख, वह  लड़का अपने बहुत काम का है. ले चल छोड़, नहीं पूछती अब,‘’ और फिर दोनों लड़कियां खुद ही खामोश हो जाती हैं. दोनों के बीच बहुत देर तक चुप्पी छाई रहती है.

सपना ने  देखा कि टेबल पर दोनों के ड्रिंक का गिलास पड़ा हुआ है और बोतल आधी खाली पड़ी हुई है.

‘अभी इन दोनों के बीच बोलने का कोई फायदा नहीं है… ये दोनों ऐसे ही लड़तीझगड़ती हैं, चीखतीचिल्लाती हैं, खुद ब खुद शांत हो जाएंगी…’ सपना ने सोचा और अपने कानों को दोनों हथेलियों से ढक कर पुनः सोने की चेष्टा करने लगी.

‘’जस्ट शटअप प्रीति, डोंट बी सिली यार.‘’

‘’बस इतनी सी तो बात है.‘’

‘’बस, इतनी सी बात लगती है तुझे.‘’

‘’हां. और नहीं तो क्या?‘’

सपना बिस्तर पर लेटेलेटे ही आंखें खोल कर उन दोनों लड़कियों की ओर देखती है, ‘’जाने कौन सी बात पर ये दोनों रात के तीसरी पहर पंचायत किए बैठी हैं…’’ सपना ने यह बात बेहद धीमी आवाज में अपनेआप से कही थी, क्योंकि उस के द्वारा कहे गए ये शब्द उस के दोनों होंठों के बीच ही कहीं दब कर रह गए थे.

अगले दिन दोपहर को जब सपना लंच कर के कमरे में लौटी तो देखा कि दोनों ही लड़कियां प्रीति और नीलू बेसुध सोई पड़ी थीं, और कुछ समय बाद एकदम से उठी और तैयार हो कर कहीं बाहर जाने के लिए निकल पड़ी.

सपना के मन में आया कि क्यों ना आज जितेंद्र से अपने लिए कहीं काम खोजने की वह बात करे. आज तो उस की छुट्टी भी होगी. उस के पास जो भी पैसे थे, अब एकएक कर खर्च हो गए थे. उस के लिए अभी कोई भी छोटामोटा काम चलेगा.

उस ने जितेंद्र के नंबर पर फोन किया. नंबर बिजी आ रहा था. सपना चेयर पर बैठी कुछ सोचती रही और फिर पास के टेबल से 2 दिन पुराने अखबार को उठा कर उस के पेज पलटने लगती है. उस की नजर अखबार में छपे एक कौलम पर ठहर गई, ‘’वृद्धाश्रम के लिए एक महिला अटेंडेंट की जरूरत है… इच्छुक इस पते पर संपर्क करें.‘’ नीचे फोन नंबर और पता दिया हुआ था.

सपना ने मोबाइल में सर्च किया दिया हुआ पता उस गर्ल्स होस्टल से 40 मिनट की दूरी पर था. उस ने नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

अचानक कमरे के दरवाजे के खटखटाने की आवाज सुन वह दरवाजे की ओर बढ़ी. सपना ने जैसे ही दरवाजा खोला, एक छरहरे  बदन का सांवला सा लड़का कमरे के अंदर दाखिल हो गया. लड़के ने अंदर आने से पहले सपना की इजाजत लेनी जरूरी नहीं समझी. बड़े ही बेबाकी के साथ सामने की कुरसी खींच कर वह  बैठ जाता है.

सपना उस युवक से कुछ पूछती, उस से पहले ही वह युवक स्वयं ही अपना परिचय देने लगा, ‘’मैं, तेजप्रताप, प्रीति का दोस्त. और आप…?” सपना अचकचा कर उस युवक का चेहरा देखने लग जाती है.

युवक ने सपना के जवाब का कोई इंतजार नहीं किया. वह खुद ही बोल पड़ता है, ‘’आप नई आई हैं.” और सिगरेट सुलगाते हुए पुनः वह युवक सवाल करता है, ‘’कब तक आएगी? कुछ बता कर गई है प्रीति?”

“नहीं, मुझे कुछ नहीं पता.”

“खैर, कोई नहीं. मैं यहीं उस का इंतजार कर लूंगा, जब तक कि वह आ नहीं जाती.”

वह युवक खुद ही सवाल करता और खुद ही उस का उत्तर भी देता जाता…  उस के लिए सपना की उपस्थिति, अनुपस्थिति, सहमति, असहमति मानो जैसे इन सब का कोई मतलब ही ना हो.

अचानक कमरे में दाखिल हुए इस घुसपैठिए की उपस्थिति अब सपना के लिए बेहद असहज हो रही थी, ’’आप प्रीति को फोन कर के पूछ क्यों नहीं लेते कि वह कब तक आएगी?” सपना ने नाराजगी प्रकट की.

उस युवक ने सपना के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और वहीं बैठेबैठे सिगरेट का धुआं हवा में उड़ेलता रहा… उस ने अब अपनी दृष्टि सपना के चेहरे पर टिका दी थी.

सपना के लिए यह सब बहुत ही असहज हो रहा था. वह उठ कर उस कमरे से बाहर जाने के लिए उठ खड़ी होती है कि तभी प्रीति कमरे में दाखिल होती है.

प्रीति ने सपना को कमरे से बाहर जाते देखा तो उस के कंधे पर अपना हाथ रख उसे रोकते हुए कहा, ‘’तुम बाहर कहां जा रही हो? ‘’

‘’तेज, मीट दिस प्रिटी गर्ल सपना.”

‘’सपना, मीट माय फ्रेंड तेजप्रताप.‘’

‘’वैरी प्लीज्ड टु मीट यू,‘’ सपना ने तेजप्रताप के बढ़े हुए हाथ से हाथ मिलाया और अनिच्छापूर्वक मुसकराने की कोशिश में होंठ फैला दिए…

‘’सपना, यह यहां के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन के इकलौते बेटे हैं. इन की करोड़ों की प्रोपर्टी है. ये तुम्हारे बहुत काम आ सकते हैं.‘’

‘’माफ कीजिएगा, मुझे एक जरूरी फोन करना है,” सपना दरवाजे की ओर बढ़ जाती है.

‘’अरे, आप क्यों जा रही हैं, बैठिए ना प्लीज,‘’ तेजप्रताप ने सपना के कंधे को अपने हाथों से दबाते हुए कहा, तो सपना ने बड़ी ही बेरुखी के साथ अपने कंधे पर रखे गए हाथ को झटक दिया.

सपना कमरे से बाहर निकल आती है. सपना के कमरे से बाहर जाते ही वह युवक प्रीति को अपनी  बांहों में भर लेता है, और बड़ी बेसब्री के साथ उस के माथे, गालों और होंठों पर चुंबन की बौछार लगा देता है.

लेकिन प्रीति ने उसे मना करने के बजाय उस के गले में अपनी बांहें डाल दीं और उसे उतने ही प्यार से प्यार के लिए उकसाने लगती है.

सपना के बाहर जाते ही उस युवक ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और प्रेमोन्मत्त हो कर दोनों एकदूसरे को आगोश में भर लेते हैं…

सपना होस्टल के बाहर लगे गार्डन की बेंच पर आ कर बैठ जाती है, तभी उसे जितेंद्र का फोन आता है.

‘’हैलो, तुम ने फोन किया था मुझे…‘’

‘’हां, किया था.‘’

‘’सौरी, तुम्हारा फोन उठा नहीं सका.”

‘’हां, कहो, क्या बात है? कहीं कोई किसी तरह की परेशानी तो नहीं है?‘’

‘’नहीं, लेकिन क्या कल तुम मेरे साथ एक जगह चल सकोगे?‘’

‘’कहां चलना है…’’

‘’मैं ने अपने लिए एक नौकरी तलाश की है. वहीं चलना है. मैं तुम्हें वहां का एड्रेस व्हाट्सप्प पर भेज रही हूं.‘’

‘’अरे, यह तो कोई वृद्धाश्रम है.‘’

‘’मालूम है.’’

‘’क्या तुम कर पाओगी यह सब?‘’

‘’क्यों नहीं, किसी बुजुर्ग की सेवा ही तो करनी है. तुम चिंता मत करो. मुझे कोई परेशानी नहीं होगी. मुझे तुम्हारी बस इतनी मदद चाहिए कि तुम मुझे वहां तक पहुंचा दो और वहां से होस्टल छोड़ जाने का काम कर दो. इतना कर सको, तो बहुत मेहरबानी.”

‘’कैसी बातें करती हो? इस में मेहरबानी जैसी कोई बात नहीं. मैं तुम्हारे लिए इतना तो कर ही सकता हूं. ओके. तो कल मिलते हैं ना?’’

‘’ठीक है तब, कल मैं समय पर आ जाऊंगा.‘’

‘’ओके.‘’

जितेंद्र से फोन पर बातें करने के बाद जब सपना कमरे की ओर जाती है, तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद पाती है. उस ने दरवाजा बाहर से खटखटाया, तो करीब 5-10 मिनट बाद तेजप्रताप अपनी कमीज के बटन ठीक करते हुए दरवाजा खोलता है. उसे ऐसी अवस्था में देख कर सपना अपने पैर दरवाजे से पीछे की ओर खींच लेती है.

तेजप्रताप के वहां से चले जाने के बाद वह कमरे में दाखिल होती है. बिस्तर पर चादर ओढ़ प्रीति अर्धनग्न अवस्था में नशे की हालत में पड़ी हुई थी. उसे ऐसी अवस्था में देख सपना का मन उस के प्रति घृणा से भर जाता है.

वह मन ही मन  सोचती है कि इस समाज में कितनी ही ऐसी लड़कियां हैं, जो अपनी इज्जत, अपनी प्रतिष्ठा, अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ती हैं. उन्हें इतनी स्वतंत्रता नहीं मिलती कि वह अपने जीवन में किसी लक्ष्य को हासिल कर सकें, तो वहीं दूसरी ओर ऐसी भी लड़कियां हैं, जो अपने परिवार द्वारा दिए गए स्वतंत्रता का दुरुपयोग करती हैं. अपनी इज्जत का सरेआम व्यापार करती हैं. पता नहीं, इन के मांबाप पर इन के ऐसे कृत्यों का क्या प्रभाव पड़ता होगा?

सपना एक बेहद घृणापूर्ण दृष्टि उस की ओर डालती है, और अपना चेहरा दूसरी ओर दीवार की तरफ कर बिस्तर पर लेट जाती है, आंखें मूंद कर वह सोने का प्रयत्न करती है.

वह वृद्धाश्रम शहर की भीड़भाड़ वाले इलाके में तन्हा, बेबस, लाचार और अपने ही बच्चों के द्वारा ठुकराए गए मांबाप के लिए बना था, जो कि अमीर, गरीब, शिक्षित, अशिक्षित सभी तरह की औलादों के मांबाप का एकमात्र आश्रय स्थल था. ये बुजुर्ग अपने जीवन के तमाम अनुभवों से गुजर कर जीवन के अंतिम पड़ाव में अब जीवन की कठोरतम और क्रूरतम सचाई से रूबरू हो रहे थे. यहां पर वे, ‘’जीवन का एकमात्र सत्य दुख है,’’ इस कथन से साक्षात्कार हो रहे थे…

सपना को वहां काम करते हुए अब एक महीने से भी अधिक समय बीत चुका था. सपना उस आश्रम की साफसफाई से ले कर वृद्ध महिलाओं को नहलानेधुलाने का सारा काम बड़े ही लगन से करती. धीरेधीरे वह यहां रहने वाले प्रायः सभी बुज़ुर्गों की चहेती बन गई थी. सभी उस से बेहद प्यार करते. उन बुजुर्गों में तो कुछ ऐसे भी थे, जो कि सिर्फ सपना के हाथों से ही खाना पसंद करते.

सपना को इस काम से मिलने वाले पैसे इतने अधिक तो नहीं थे, परंतु इतना कम भी नहीं था कि उस का गुजारा ना हो सके. वह जितनी मेहनत से वहां के काम करती, उतनी ही लगन से अपनी पढ़ाई भी कर रही थी. आश्रम में भी वह थोड़ाबहुत समय अपने पढ़ने के लिए निकाल लेती. उसी आश्रम में एक और वृद्ध महिला थी, जो कि अकसर खामोश रहती. सपना ने कई बार उन से बातें करने की कोशिश की, लेकिन वह ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी.

काम के बीच जब भी थोड़ा समय मिलता, सपना उन के पास वाले कोने में बैठ कर पढ़ने  लगती, क्योंकि वही एक ऐसा कोना था, जो उसे पढ़ने के लिए उपयुक्त लगता.

एक दिन सपना वहां बैठी कुछ पढ़ रही थी, कुछ याद करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बीच में कहीं अटक जाती, तभी उस के कानों में कुछ शब्द किसी के सुनाई पड़े, ‘’ए डिस्ट्रिब्युशन   इज सेड़ टु बी स्क्यूड… ‘’ सपना ने पलट कर देखा, तो वह वृद्ध महिला उसी की ओर देख रही थी.

“आप यह सब जानती हैं?” सपना ने आश्चर्यपूर्वक पूछा.

‘’हां, मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी मे हेड औफ द डिपार्टमेंट रही हूं, कितनों को मैं ने पीएचडी कराया है?” उस वृद्ध महिला की आंखें यह कहते हुए छलछला आई थीं. उन की आंखों में आंसू भर आए थे.

उन्होंने आगे अपनी कहानी सपना को बताई, ‘’मेरा बेटा और बहू लंदन में जा कर बस गए. बेटी की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गई. पति की मृत्यु के बाद बच्चों ने भी मेरा हाल नहीं पूछा.  अब किसी तरह जीवन का अंतिम समय इस वृद्धाश्रम में काट रही हूं. जीवन की कितनी सांसें बची हुई हैं, किसे पता?”

सपना को पता चला कि वह वृद्ध महिला, जिन का नाम शकुंतला है, नहीं, अब वह उस के लिए डाक्टर शकुंतला मैम थीं. वे कैंसर से पीड़ित हैं, लास्ट स्टेज में हैं.

सपना मन ही मन सोचती है, ये जिंदगी भी अजीब खेल खेलती है. सपना का मन उस वृद्ध महिला के प्रति अपार श्रद्धा और करुणा से भर आया था. बहुत दिल लगा कर वह उन की सेवा करती. वह उस के लिए शकुंतला मैम बन चुकी थीं, जो उस की पढ़ाई में भी मदद करती. पढ़ते वक्त उसे जहां कहीं भी कठिनाई होती, उस की शकुंतला मैम  उस की मदद कर देती. अकसर उसे होस्टल लौटने में देरी हो जाती, क्योंकि काम के बाद वह शकुंतला मैम से पढ़ाई में भी थोड़ी मदद ले लेती. होस्टल से बिलकुल सुबह वह निकल आती.

इधर नीलू होस्टल छोड़ कर जा चुकी थी और प्रीति किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो चुकी थी. उसे अकसर ही बुखार रहता. सपना ने नोटिस किया कि प्रीति अकसर थकीथकी सी रहती है और कभीकभी उसे खांसी भी आती.

एक दिन सुबहसुबह जब वह आश्रम के लिए निकल रही थी, तो उस ने देखा कि वह बारबार खांसे जा रही थी. उस के पूछने पर उस ने कहा कि वह किसी डाक्टर से अपना इलाज करा रही है. दवा भी ले रही है. उसी दिन दोपहर में उसे मालूम हुआ कि प्रीति को अस्पताल में एडमिट किया गया है.

सपना ने सोचा, वृद्धाश्रम से शाम को लौटते वक्त वह प्रीति से मिलने अस्पताल जाएगी, लेकिन उस दिन उस की शकुंतला मैम की तबीयत भी काफी खराब थी और वह उन्हें ऐसी हालत में बिलकुल भी अकेली नहीं छोड़ सकती थी.

वह पूरे समय शकुंतला मैम की सेवा करती रही. जरा देर के लिए भी यदि उस की आंखें लगती, वह  फौरन उठ कर बैठ जाती. कभी उन के पैर दबाती, तो कभी उन के माथे को बड़े प्यार से सहलाती. डाक्टर ने भी कह रखा था कि अब उन का अंतिम समय चल रहा है.

सपना का मन उस दिन बहुत दुखी था. उस की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे. अचानक उस ने अपनी हथेलियों पर प्यार भरे स्पर्श को महसूस किया. उस ने भीगी पलकों से उस ओर देखा, तो शकुंतला मैम उसे बड़े प्यार से देख रही थीं. उन्होंने उसे अपने तकिए के नीचे से चाबी निकाल कर थमाई और कहा कि सामने वह उन की अलमीरा है. उस में एक छोटा सा बौक्स है. कपड़े में लपेट कर रखा हुआ है. वह उसे ला कर दे.

सपना ने सवाल भरी नजरों से उन की ओर देखा. तब वे धीमे से मुसकराते हुए बेहद प्यार से उस के चेहरे को छू कर बोलीं, “तुम लाओ तो सही, एक बेहद जरूरी काम रह गया है.”

सपना उठी और वह बौक्स ला कर उन के पास रख दिया. उन्होंने कहा, “इसे खोलो.”

सपना ने बौक्स खोल कर उन के आगे बढ़ाया, तो वो तकिए के सहारे बैठ गईं और कांपते हुए हाथों से 10 लाख रुपए का एक चेक साइन कर सपना की हथेली पर रखते हुए बोलीं, “तुम ने मेरी सगी औलाद से भी बढ़ कर सेवा की है, यह मेरे पूरे जीवन की जमापूंजी है, इसे तुम मेरा प्यार और आशीर्वाद समझ कर रख लेना. खूब मन लगा कर पढ़ना. मेरा आशीर्वाद, मेरा प्यार हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा…” और उन्होनें अपनी आंखें मूंद लीं.

सपना ने महसूस किया कि उस की शकुंतला मैम की हथेली अचानक काफी ठंडी हो गई है. उस ने गीली पलकों से उन के चेहरे की ओर देखा. उन का चेहरा बिलकुल शांत तकिए पर पड़ा हुआ था.

सपना की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा और उस का सिर उन के प्रति अपार श्रद्धा में झुक गया.

राइटर- गायत्री ठाकुर 

कुहरा छंट गया -भाग 1 : पल्लवी क्यों तलवार की धार पर क्यों चलना

जगनीत टंडन

कमरे के बोझिल वातावरण से बचने के लिए पलक कौफी बनाने की गरज से रसोई में चली आई. ट्रे बाहर ले जाने से पहले उस ने दरवाजे की ओट से बाहर झांक कर देखा तो पाया कि पल्लवी शून्य में खोई हुई थी. उस की आंखों में गहन चिंता की लकीरें थीं.

“मम्मी, कौफी,” पलक ने कप पल्लवी की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

“ओह,” तंद्रा भंग हुई पल्लवी की. उस ने धीरे से कप थामा और टेबल पर रखती हुई पलक से बोली, “यह कैसा फैसला है, पलक. कैसे तुम एक अनजान लड़के के साथ अकेली उस के फ्लैट में रह सकती हो?”

“अनजान नहीं, मम्मी, हम पिछले 8 महीनों से एकदूजे को जानते हैं. यहां उस के पापा की फैक्ट्री की एक ब्रांच है, आयुष वही संभालता है. मेरी सहेली निशा के जन्मदिन की पार्टी में मेरी उस से मुलाकात हुई थी. यह फ्लैट भी उस का है. पेपर्स खत्म होने के बाद ही मैं यहां आ कर रहने लगी हूं.

“मम्मी, मैं यहीं जौब भी करना चाहती हूं. उस के प्यार ने मुझे हिम्मत दी है, तभी कल रात मैं आप लोगों को फोन करने की हिम्मत जुटा सकी.”

“पलक, बस, अब बहुत हो गया. जानती हो न उदित को, तुम्हारा यह फैसला उन्हें कभी मंजूर नहीं होगा. जब से घर में इस बात का पता चला है तब से एकदम घोंटू सन्नाटा पसरा हुआ है वहां.

“अपनी दादी का व्यवहार समझती हो न, मौनव्रत धारण कर चुकी हैं वे. और उदित की नजरों में तो मैं हमेशा की तरह दोषी करार दे दी गई हूं.”

पलक पल्लवी की ओर निहारती व कौफी के घूंट भरती हुई उस की बात सुन रही थी.

“मम्मी, पापा को मेरा यह फैसला क्यों मंजूर होगा जब उन्हें मैं ही मंजूर न थी.”

यह बात सुनकर पल्लवी ने उदास नजरों से पलक को देखा.

“यह फैसला मैं ने बहुत सोचसमझ कर लिया है बल्कि मुझे यह कहना चाहिए कि हम दोनों ने. आप जब पिछली बार आई न, तभी मैं ने आप को इस बारे में बताने की कोशिश की थी पर तब आप के पास टाइम ही नहीं था मेरी बात सुनने का.”

“मैं गीता की सगाई के लिए आई थी. तुम से मिली ही कितनी देर के लिए थी मैं. शाम की ट्रेन से तो वापसी थी मेरी.”

“चलिए मम्मी, कोई बात नहीं. अच्छा, तब आप ने आयुष को देखा था न?”

“बेटा, मेरे इस तरह एक नजर देखने से क्या होगा और फिर कोई तुम उस से शादी तो कर नहीं रही. यह लिवइन रिलेशनशिप में रहना…शादी के बिना तुम किसी लड़के के साथ अकेली कैसे रह सकती हो. इस मौडर्न जमाने के तौरतरीके के काबिल अभी हम नहीं हुए बेटा. मेरी बात मानो, वापस होस्टल में रहो और खुद को दी गई आजादी का नाजायज फायदा मत उठाओ.”

“मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कोई गलत काम नहीं कर रही. शादी के बाद अगर रिश्ते में विश्वास, संयम और समझदारी की कमी रह जाए तो एकदूसरे को दोषी मान कर और समय को जिम्मेदार ठहराते हुए सारी उम्र एक उलझाऊ रिश्ते को बोझ की तरह खींचने से तो अच्छा है कि पहले ही एकदूसरे को परख लिया जाए.”

“अच्छा, ऐसे और कितने रिश्तों को परखोगी? और अंत में जिसे अपनाओगी उस के लिए क्या बचेगा तुम्हारे पास…दिल, दिमाग और शरीर सभी से तो रिक्त हो चुकी होगी.” उस की बात सुन कर पल्लवी कुछ उत्तेजित सी हो उठी थी.

“मम्मी, अपने जीवनसाथी के चुनाव के लिए कोई लाइन लगाने की जरूरत नहीं है मुझे.

लेखक-जगनजीत रंजन

Mother’s Day 2023: मां की शादी- भाग 2

‘‘ये बच्चियां बहुत भोली हैं. अपने भोलेपन से कुछ सोचती हैं एवं बोलती हैं.’’

‘‘मेरा मानना है कि कोनी ने जो वर्णन किया था, आप उस से अधिक प्रशंसा के योग्य हैं,’’ उन्होंने कहा.

मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा.

‘‘गार्डन और घर बहुत सुंदर है तथा तुम ने सजाया भी बहुत सुंदर है,’’ मैं ने कोनी की प्रशंसा करते हुए कहा.

‘‘आंटी, इस तारीफ के हकदार तो पापा हैं. उन्हें भी आप की तरह घर की साजसज्जा में बहुत दिलचस्पी है.’’

कोनी ने कौफी, समोसे, रसगुल्ले काफी कुछ हमारे लिए तैयार कर रखा था. दोनों दोस्त औफिस के काम के बहाने अपनीअपनी प्लेट ले कर सरक लीं. जब काफी देर तक नहीं लौटीं, तो मुझे बेहद आश्चर्य हो रहा था कि ये दोनों लड़कियां, हम दोनों को क्यों ज्यादा से ज्यादा एकसाथ छोड़ने का प्रयास कर रही हैं. सारा माहौल ही मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था. मैं ने समीरा को फोन कर के बुलाया. वह हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मा, फोन कर के क्यों बुला लिया. यहीं पर तो थी, आ जाती थोड़ी देर में.’’

‘‘तुम मुझे अकेली छोड़ कर क्यों चली जाती हो. तुम दोनों भी यहीं हमारे साथ बैठो.’’

‘‘ओह, मम्मा, अकेली कहां हैं, अंकल तो हैं न आप के साथ.’’

‘‘लगता है आप की मम्मा को मेरी कंपनी पसंद नहीं आ रही है. ये काफी शांत एवं गंभीर स्वभाव की हैं,’’ कोनी के पापा ने कहा.

‘‘अब आज्ञा दीजिए हम चलते हैं,’’ मैं ने विदा लेने हेतु कहा.

‘‘आंटी, अभी रुकिए, आज डिनर हमारे साथ लीजिए,’’ कोनी ने तत्परता से कहा.

‘‘आज माफी चाहती हूं, बेटा. डिनर फिर कभी,’’ मैं ने उठते हुए कहा.

रात को सोते समय समीरा ने मेरी राय लेते हुए कहा, ‘‘मम्मा, अंकल अच्छे हैं न?’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन अंकल, बेटा?’’

‘‘ओह मम्मा, आज आप कोनी के पापा से मिली हैं न, उन्हीं के बारे में पूछ रही हूं.’’

‘‘ओह, मुझे खयाल ही नहीं रहा, आने के बाद मैं ने उन के बारे में कुछ सोचा भी नहीं, अच्छे ही हैं.’’

‘‘हां मम्मा, अंकल बहुत अच्छे हैं. मैं जब भी उन के घर जाती हूं, मेरा बहुत खयाल रखते हैं.’’

‘‘अच्छी बात है बेटा, खैर छोड़ ये सब बातें, यह बता कि सार्थक का प्रोजैक्ट बढि़या चल रहा है न?’’

‘‘हां मम्मा, हो सकता है प्रोजैक्ट समय से पहले ही पूरा हो जाए तब वह पहले ही इंडिया लौट आएगा.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी खबर है. अब तो सार्थक का फोन आने ही वाला होगा. मैं सोती हूं, गुडनाइट बेटा.’’ इतने में सोमू का फोन बज उठा. सार्थक का फोन आ चुका था. 2 दिनों बाद मैं कालेज से लौट कर, कौफी, स्नैक्स ले कर टीवी के सामने बैठी ही थी कि सोमू का फोन आया, ‘‘मम्मा, मैं 6 बजे तक घर पहुंच जाऊंगी. मेरी फ्रैंड रीतू भी आ रही है मेरे साथ.’’

‘‘अच्छी बात है, बेटा.’’

‘‘मम्मा, आप मेरी पसंद की गहरे नीले रंग की साड़ी पहन कर तैयार रहना.’’

‘‘अरे बेटा, वह मेरे घर पर आ रही है. मुझे उस के घर थोड़े जाना है, जो मैं सजधज कर तैयार हो जाऊं. अरे, घर पर एक मम्मी जैसे रहती है, वैसे रहती हूं.’’

‘‘ओह मम्मा, प्लीज मेरा मन रख लो,’’ सोमू ने आग्रह करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, खाने में कुछ खास बनाना है?’’

‘‘नहीं मम्मा, मैं ने पिज्जा और कोल्डडिं्रक और्डर  कर दिया है. वह मेरे पहुंचने के बाद ही पहुंचेगा. आप तो बस तैयार हो जाओ.’’

‘‘चल, ठीक है बेटा, मैं कोशिश करती हूं.’’ मुझे थोड़ी खीझ सी हो रही थी सोमू के व्यवहार पर. इस लड़की को क्या हो गया है. यह मेरी साजशृंगार के लिए क्यों परेशान होने लगी है.

6 बजे सोमू अपनी सहेली रीतू के साथ पहुंच गई थी. साथ ही, मेरे हमउम्र, रीतू के सर्जन भैया भी आए थे. सोमू ने सभी से मेरा परिचय करवाया. हम सभी ने साथसाथ पिज्जा का आनंद लिया. दोनों दोस्त कोल्डडिं्रक के साथ औफिस के काम के बहाने दूसरे कमरे में चली गईं.

रह गए मैं और रीतू के सर्जन भैया. वे अपने बारे में खुद ही बताने लगे, ‘‘दो बेटियां हैं मेरी. दोनों की मां 15 साल पहले गुजर गई थीं. मातापिता की भूमिका निभाते हुए दोनों का पालनपोषण किया. उन्हें उच्चशिक्षा दिलवाई. अब दोनों अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं.’’

‘‘आप ने बहुत अच्छा किया. बेटियों का समय से विवाह कर, घरगृहस्थी में बांध दिया.’’

‘‘वह तो ठीक है. मैं ने बेटियों के कारण दूसरा विवाह नहीं किया. किंतु अब अकेलापन बहुत खटकता है, घर काटने को दौड़ता है.’’

मैं ने सुझाव देते हुए कहा, ‘‘आप स्वयं को व्यस्त रखिए, कभीकभी बेटियों से उन के घर जा कर मिल आया कीजिए. मन तो लगाना ही होता है. वरना वह तो उदास हो जाता है. मैं जरा दोनों सहेलियों को देख कर आती हूं.’’ सोमू के कमरे में दोनों सहेलियां गपशप में मस्त थीं. मैं ने रीतू का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम दोनों भी हमारे साथ ही बैठो.’’ उन के जाने के बाद सोमू दोचार इधरउधर की बातों के बाद बोली, ‘‘मम्मा, रीतू के भैया बहुत बड़े सर्जन हैं. उन का अपने क्षेत्र में बहुत नाम है.’’

नीलकंठ – भाग 1 : अकेलेपन का दंश

“ऋतु, एक बुरी खबर है,” सुबहसुबह मां ने फोन पर कहा.

“क्या हुआ मां? सब ठीक तो है न?” ऋतु घबराते हुए बोली.

“शुक्र है बेटी, बिगड़तेबिगड़ते सब ठीक हो गया.”

“पहेलियां न बुझाओ मां, सीधेसीधे बताओ कि बात क्या है? मेरा दिल बैठा जा रहा है.”

“बेटी, वह नीलकंठ…” कहते हुए मां की आवाज कुछ पल को गले में ही रुंध गई.

“क्या हुआ नीलकंठ को?” मां को यों खामोश देख ऋतु टोकते हुए बोली.

“उस ने सुसाइड करने की कोशिश की. वह तो अच्छा था कि समय से देख लिया उस के दोस्त ने और बचा लिया.”

“मगर, यह सब कब और कहां हुआ…? क्या वह घर आया था?”

“घर कहां बेटी, वहीं होस्टल में…” कहते हुए मां ने तो फोन रख दिया. ऋतु उलझ गई अतीत के गलियारों में.

बेचारा नीलकंठ, जाने क्या लिखा है उस की जिंदगी में. कहने को तो पड़ोसी सूरज काका और निर्मला काकी का बेटा है वह, मगर बचपन में कुछ वक्त साथ बिताया है उस ने नीलकंठ और रानू के साथ. गांव के घरों में बड़ेबड़े आंगनों के बीच कच्ची सी दीवार ही तो थी दोनों के घरों के बीच, मगर रिश्ते कच्चे नहीं थे. एक हंसताखेलता परिवार था. न जाने किस बात की सजा मिल रही है.

सूरज काका भोले के भक्त थे. जब रानू के बाद बेटे का जन्म हुआ, तो उन्होंने भोले की कृपा मान उस का नाम नीलकंठ रखा. पर अगर वे तब जानते कि नीलकंठ के हिस्से गरलपान ही लिखा होता है, तो शायद यह नाम कभी न रखते.

कैसे चहकचहक कर कहता नीलकंठ, “ऋतु दीदी, देखो मेरा घोड़ा कैसे तिगड़कतिगड़क चलता है.”

कभी वह अपनी नकली पिस्तौल हाथ में ले काठ के घोड़े पर बैठ कहता, “देखना दीदी, बड़ा हो कर न मैं घोड़े की सवारी कर दुश्मनों को यों ठांयठांय मार गिराऊंगा.”

कभी सैल्यूट करते हुए सेना का अफसर, तो कभी पायलट बन जाता. अपनी छोटीछोटी आंखों में कितने बड़ेबड़े सपने संजो रखे थे उस ने… उन सपनों को पूरा करने का सामर्थ्य भी उस में दिखाई दे रहा था. पर जिंदगी के एक हादसे ने उस के सारे सपने चूरचूर कर अर्श से खदेड़ कर फर्श पर ऐसा ला पटका कि उस के जीवन की संभावनाओं को ही समाप्त कर दिया.

वह दिन सूरज काका के परिवार पर मानो काल बन कर आया. हां, काल ही कहूंगी… जिस ने उस घर के हर सदस्य के प्राण हर लिए… सब जीवित हैं, मगर मरे समान. सांसें लेते हुए पलप्रतिपल मरना कितना तकलीफदेह होता है कोई उन से पूछे. जीवन में दूरदूर तक कोई उल्लास नहीं, न ही चेहरे पर कोई खुशी. घर की दीवारें भी मानो मुसकराना भूल गई हों.

मुझे एक युवक तंग कर रहा है, उसके पास मेरे कुछ फोटो हैं, जिनसे वह मुझे ब्लैकमेल कर रहा है मैं क्या करूं?

सवाल

मुझे एक युवक तंग कर रहा है. उस के पास मेरे कुछ फोटो हैं, जिन से वह मुझे और मेरे घर वालों को ब्लैकमेल कर रहा है. मैं क्या करूं? वह मुझ से जबरदस्ती शादी करना चाहता है पर मैं उस से शादी नहीं करना चाहती. वह मुझे कहता है कि अगर मैं ने उस से शादी नहीं की तो वह मुझे बदनाम कर देगा, प्लीज, मेरी हैल्प कीजिए?

जवाब

आप के पत्र से यह तो साफ है कि वह युवक सही नहीं है, लेकिन यह नहीं पता चला कि उस के पास आप के फोटोग्राफ कैसे पहुंचे और वह आप के पीछे क्यों पड़ा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप का उस के साथ पहले अफेयर रहा हो और ब्रेकअप के बाद वह आप को न छोड़ना चाह रहा हो.

खैर, कारण क्या है आप अच्छी तरह जानती हैं. बहरहाल, अगर वह आप को तंग करता है या आप के घर वालों को आप के फोटो दिखा कर ब्लैकमेल करता है तो आप बिना झिझक अपने घर वालों को पहले तो सारी हकीकत बताएं, कभीकभी एकतरफा प्यार में पड़ कर भी युवक ऐसा करते हैं इसलिए उस के पेरैंट्स से अपने पेरैंट्स के साथ जा कर मिलें और उन्हें हकीकत से अवगत करवाएं. अगर फिर भी बात न बने तो पुलिस का सहारा ले सकती हैं. यकीन मानिए, वह आप का पीछा छोड़ देगा.

गर्मी में बिना AC-कूलर के रखें घर को ठंडा

गर्मियां शुरू हो चुकी है ऐसे में बाहर से लेकर घर के अंदर भी टेंपरेचर एक दम हाई होता है, तो ऐसे में घर के अंदर ठंडक बनी रहे इसके लिए क्या किया जाए? तो आइए आज हम आपको कम खर्च और कुछ सिंपल ट्रिक से घर को ठंडा और आरामदायक बनाने का तरीका बताते है। जिससे आपका घर ठंडा भी होगा और बिजली का बिल जेब भी ढिली नहीं करेगा।

घर में साफ-सफाई के साथ सामान कम करें

आप अगर 2 बेडरूम फ्लैट या 3 बेडरूम फ्लैट में रहते है, तो लाजमी है की आपका सारा सामान उन्हीं कमरों में होगा। तो ऐसे में सबसे पहले ये करना है की जो भी सामान आपको लगता है की आपके जरूरत की नहीं है तो उन्हें सबसे पहले बाहर निकाले, या फिर स्टोर रूम में एडजस्ट करें। जब आप किसी रूम में ज्यादा सामान रखते है तो ऐसे में रूम में सामान ज्यादा होने की वजह से गर्मी बढ़ जाती है। इसके बाद आपको साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना है, क्योकि घर जितना साफ होगा उतना ठंडा रहेगा।

खिड़की-दरवाजे को करें बंद

गर्मियों में घर के अंदर गर्म हवा के जिम्मेवार सबसे ज्यादा खिड़की-दरवाजें होते है। तो ऐसे में आप सुबह 10 बजे के बाद खिड़की और दरवाजों को बंद रखें, जबतक जरूरत ना हो इन्हें खोलकर ना रखें। क्योकि खिड़की दरवाजों की वजह से घर के अंदर गर्म हवा के साथ ही गर्माहट बढ़ती है।

खिड़की पर लगाए खसखस की शीट

खिड़की से गर्माहट को कम करने के लिए आप वहां खसखस की शीट का भी इस्तेमाल कर सकते है। जिससे जब भी लगे की घर गर्म हो रहा है इसको पानी से गिला कर दें। जिसके बाद ये ठंडी हवा देगा।

बालकनी और घरों में लगाए पौधे

बालकनी छोटी हो या बड़ी, वहां कुछ ऐसे पौधे लगाएं जो ठंडक देंगे। इसके साथ ही आप घरों में ऐसे पौधों का इस्तेमाल करें जो आपके घर को ठंडा रखें और हवादार भी। इसके अलावा बालकनी में ग्रीन नेट शेड का भी इस्तेमाल कर सकते है क्योकि हरा रंग पूरे माहौल को ठंडा रखता है और इससे धूप का प्रभाव भी कम रहता है।

घर में कॉटन के कपड़ों का इस्तेमाल

गर्मियों में घर के अंदर कॉटन या लीनन के पर्दों और बेडशीट का इस्तेमाल करें। इससे घर में हवा आने में मदद मिलती है और गर्मी नहीं लगती।

एग्जॉस्ट का इस्तेमाल

गर्मियों में घर के अंदर एग्जॉस्ट का इस्तेमाल बेहद जरूरी है। ये अंदर की गर्म हवा को बाहर फेंकता हौ और घर को ठंडा रखने में मदद करता है। आप घर के किचन में एग्जॉस्ट को चलाकर रखिए ताकि गर्मी हवा के साथ साथ बाहर निकलती रहे।

रात में घर रूम को ठंडा रखने का तरीका

अगर आप चाहते है की रात में आपका रूम ठंडा रहे तो इसके लिए आप एक बड़े बर्तन में बर्फ भरकर रूम में रख दें। इससे कुठ देर में ही रूम काफी ठंडा हो जाएगा। साथ ही अगर आपके घर में टेबल फैन हो तो आप इस बर्तन को फैन के सामने भी रख सकते है। इससे फैन से ठंडी हवा पूरे घर को ठंडा कर देगी।

सोलो ट्रैवलर: मस्ती करें, महफूज रहें

आजकल जब हम कहीं घूमने की बात करते हैं तो इंगलिश के 2 शब्द बहुत ज्यादा सुनाई देते हैं ‘सोलो ट्रैवलिंग.’ इस का सीधा सा मतलब है अकेले भ्रमण, बिना किसी संगीसाथी के. यह समय के साथसाथ युवाओं, खासकर महिलाओं में काफी पौपुलर हुआ है. हिंदी फिल्म कलाकार आशुतोष राणा ने इसी भ्रमण शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि ‘भ्रमण मात्र घूमना ही नहीं, ऐसे घूमना जो हमारे भ्रम का निवारण कर सके.’ यह भ्रम उस जगह के बारे में भी हो सकता है और खुद को जानने की जिज्ञासा भी शांत करता है.

जब यह भ्रमण अकेले करना हो तो आप अपनी मरजी के मालिक होते हैं. एक महिला के तौर पर खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत करने में सोलो ट्रैवलिंग बहुत ज्यादा फायदेमंद रहती है, क्योंकि ऐसे सफर में जो मन आए वही करो, जिस होटल में रुकने का मन हो, वहीं रुको, जो खाने का मन हो, वही खाओ. मतलब बिंदास जियो.

किसी सोलो ट्रैवलर महिला को अपने सफर से बहुतकुछ सीखने को मिलता है, क्योंकि वह अपने सारे फैसले खुद करती है. अच्छा हो या बुरा फैसला चूंकि उस का होता है, इसलिए वह एक तरह से आत्मनिर्भर होने की तरफ अपने कदम बढ़ाती है. वह अनजान लोगों से मिलती है, बातचीत करती है तो उस की स्पीकिंग स्किल बढ़ जाती है.

सब से बड़ी बात यह कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में सोलो ट्रैवलिंग के दौरान खुद से रूबरू होने का मौका मिलता है. आप के सोचने का दायरा बढ़ता है और अपनी कमजोरियों से लड़ने की हिम्मत आती है.

इस बारे में एक सोलो ट्रैवलर शांभवी ने बताया, ‘‘बात 2009 की है. मैं कोलकाता में कालेज में पढ़ती थी. तब मु?ो अमृतसर के पास एक गांव जाना था. मेरे बाकी सारे दोस्त चले गए थे. बाद में मैं अकेली गई थी. वह अलग ही अनुभव था, क्योंकि वहां मु?ो अपना भी ध्यान रखना था और अपने सामान पर नजर बनाए रखनी थी. ट्रेन से उतरने के बाद कैब कैसे लेनी है, पता पूछ कर मंजिल तक खुद ही पहुंचना था, यह सब मैं ने अकेले ही किया था.

‘‘इस के बाद तो मैं अमूमन अकेली ही ट्रैवल करने लगी थी. जहां तक पहली सोलो ट्रिप की बात है तो मैं कोलकाता के समुद्री तटों पर गई थी. पहले ट्रेन से गई, फिर रिकशा वाले ने एक जगह छोड़ा और उस के बाद मैं दूध वाली गाड़ी में बैठ कर समुद्रीतट तक गई, क्योंकि कोलकाता में छुट्टी का मतलब है कि वहां सभी छुट्टी पर होते हैं.

‘‘आम लोगों की यह राय होती है कि जब कोई पैसे कमाने लग जाता है तब वह इंडिपैंडैंट हो जाता है पर मैं ऐसी लड़कियों को जानती हूं जो नौकरी करने के बाद भी पूरी तरह मैंटली इंडिपैंडैंट नहीं हैं. ट्रैवल से आप को वह इंडिपैंडैंस मिलती है, जिस में आप अलगअलग तरह के कल्चर से रूबरू होते हैं.

‘‘हम से पहले वाली जेनरेशन, खासकर महिलाएं तो कभी ज्यादा ट्रैवल करती ही नहीं थीं. तब की महिलाओं के घर के काम ही नहीं खत्म होते थे. 5-6 साल में कहीं चली गईं तो चली गईं वरना उन के घर के काम ही नहीं निबटते थे. उन के लिए ट्रैवल लग्जरी था.

‘‘जहां तक मैं ने जानासम?ा है, ट्रैवलिंग से आप को दुनियाजहान की जानकारी मिलती है. अलगअलग लोगों के डेली रूटीन के बारे में पता चलता है, उन के खानपान को जाननेसम?ाने का मौका मिलता है. उदाहरण के तौर पर अगर आप पहाड़ों पर जाते हैं तो वहां चीजों को इस्तेमाल करने से पहले उन की वैल्यू का पता चलता है. पानी भी बचाबचा कर पीना पड़ता है. ट्रैवल करने से आप को चीजें मैनेज करने की सम?ा आती है.

‘‘जब आप कहीं जाते हैं तो समस्याएं सामने आती ही हैं. सब से ज्यादा तो ठहरने की जगह का सोचना पड़ता है. अगर आप कम बजट के चलते होम स्टे में रुकना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि वह सरकार से सर्टिफाई हो. एक और बड़ी समस्या साफ टौयलेट की है, जो महिलाओं को बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. मु?ो खुद कई बार इन्फैक्शन हुआ है. सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. साथ ही, महिलाओं के लिए पुलिस द्वारा कंप्लेंट सैंटर बना देने चाहिए.

‘‘महिलाओं को अपनी सेफ्टी का खुद भी ध्यान रखना चाहिए. वे अपने बैग में पेपर स्प्रे, मल्टीपर्पज नेल कटर आदि जरूर रखें. ट्रैवलिंग के रूल्स को जरूर फौलो करें. जिस जगह जा रही हैं, वहां के रहनसहन को नजरअंदाज कर के ऐसे कपड़े न पहनें कि आप को बेवजह की दिक्कत आ जाए.

‘‘एक बार मैं राजस्थान में सोलो ट्रैवलिंग कर रही थी. जोधपुर पहुंचने पर पता चला कि वहां से आगे की बस तो रात को मिलेगी, जबकि मैं सुबह ही वहां थी. एक दिन पूरा बरबाद होने की सोच कर मैं परेशान थी कि वहां एक अंकल ने मेरी समस्या पूछी. मैं ने उन्हें अपने प्लान के बारे में बताया कि मेरा तो वापसी में जोधपुर देखने का प्लान था, क्योंकि मेरी होटल बुकिंग वैसी ही थी तो वे बोले कि अगर तुम लड़का होतीं तो मैं रैंट पर बाइक दे देता.

‘‘यह सुन कर मैं खुश हो गई. उन्हें अपना ड्राइविंग लाइसैंस दिखाया और बाइक मांगी. वे हैरान रह गए कि एक लड़की उन से बाइक रैंट पर मांग रही है पर चूंकि वे कह चुके थे, इसलिए उन्होंने मु?ो बाइक दी. वह एक खास तरह का ऐक्सपीरियंस था.’’

इन बातों का रखें खयाल

आप जिस जगह अकेली जा रही हैं, वहां का ट्रैवल का प्लान जरूर बनाएं, जिस में जाने का साधन, रहने की जगह, खानापीना शामिल होता है. अनजान जगह पर सस्ते साधन के बजाय अगर महंगी टैक्सी भी करनी पड़े तो हिचकिचाएं नहीं. होटल आदि की बुकिंग भी उस में मिलने वाली सुविधाओं के हिसाब से करें. सोलो ट्रैवलिंग का मतलब यह नहीं है कि हर जगह पैसे बचाने पर जोर दिया जाए, बल्कि आप की सिक्योरिटी ज्यादा अहम है.

घूमने से पहले यह चैक कर लें कि आप की जेब कितनी भारी है. महिलाओं को मनी मैनेजमैंट की अच्छी जानकारी होती है पर उन्हें एक बात का खास खयाल रखना चाहिए कि सस्ते के चक्कर में ऐसी जगह न ठहर जाएं, जहां लेने के देने पड़ जाएं.

आप अगर पहली बार सोलो ट्रैवल पर जा रही हैं तो उस इलाके के बारे में पहले अपनी रिसर्च पूरी कर लें. वहां के लोगों, रहनसहन, मौसम और विकटताओं को अच्छी तरह से सम?ा लें.

आप जितने समय के लिए घूमने जा रही हैं, उसी के हिसाब से कपड़े और दूसरी चीजों को पैक कर लें. बैग में फालतू का सामान हमें रास्ते में दिक्कत दे सकता है. मस्ती करने जा रही हैं तो कुली कतई न बनें.

अकेले खाना खाने की आदत डाल लें पर अगर कहीं कोई दूसरा ग्रुप मिल गया है और उस से जानपहचान हो जाती है तो मिल कर खाना खाने से पैसे की बचत हो सकती है.

द्य अपने साथ कुछ डौक्यूमैंट्स जैसे आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस आदि जरूर रखें. इन की जरूरत होटल से ले कर होम स्टे, फ्लाइट और कई व्यू पौइंट्स पर भी पड़ सकती है. ओरिजिनल कौपी के साथ ही आप इन की फोटो कौपी भी करवा लेंगी तो बेहतर रहेगा.

आप जिस जगह घूम रही हैं अगर वहां का मैप भी साथ रखेंगी तो अच्छा रहेगा. लोकल पुलिस थाने के बाहर वहां के स्टाफ के नाम के साथ मोबाइल नंबर भी लिखा होता है. उस का फोटो खींच कर अपने मोबाइल फोन में रख सकती हैं. पुलिस को अपने ट्रिप की जानकारी देने में भी कोई बुराई नहीं है.

आप का होटल, होस्टल धर्मशाला आदि ऐसी किसी जगह पर न हो, जहां आनेजाने के लिए ट्रांसपोर्ट मिलना मुश्किल हो. यह भी देख लें कि आप के कमरे का ताला और फोन सही तरीके से काम कर रहे हों. यह चैक करना न भूलें कि कमरे या वाशरूम में किसी तरह का छिपा कैमरा न लगा हो.

यात्रा के दौरान अजनबी लोगों के साथ बहुत ज्यादा फ्रैंडली न हों. अपने बारे में ज्यादा जानकारी देने से भी बचें. अगर कोई जानकारी लेनी हो तो आसपास की दुकानों और ट्रांसपोर्ट वालों से पूछना बेहतर रहेगा.

अपनी सुरक्षा के मद्देनजर आप अपनी पूरी डिटेल, जैसे किस रूट से किस ट्रांसपोर्टेशन से जा रही हैं, कहां ठहरेंगी, यह सब किसी अपने खास रिश्तेदार, दोस्त को दे कर जाएं. उन से कुछ घंटों के भीतर मोबाइल फोन से संपर्क बनाए रखें और अपने मोबाइल की जीपीआरएस लोकेशन औन रखें.

अगर आप को सफर के दौरान उलटी आने, सिरदर्द या मोशन सिकनैस की समस्या हो तो संबंधित दवा अपने साथ रख लें. एक फर्स्टएड बौक्स आप के बैग में रहना चाहिए.

आप जिस भी जगह जा रही हों, कोशिश करें कि दिन के उजाले में ही पहुंच जाएं. इस से आप अपने होटल तक आसानी से पहुंच सकती हैं और बाजार से जरूरत का सामान भी खरीद सकती हैं.

अपने साथ मोबाइल चार्जर, टौर्च और बैटरी, ईयर फोन, स्पीकर, ऐक्सट्रा शू और सौक्स, रेनकोट आदि ले जाना न भूलें.

अपना ट्रैवल इंश्योरैंस करा लें, नशे से दूर रहें, सुबह जल्दी उठें, हैल्दी खाना खाएं, कोई किताब साथ रखें.

महिलाओं को अपने बैग में एक ऐसी किट जरूर रखनी चाहिए जिस में पैड्स, पेपर सोप आदि रखे हों. कोरोनाकाल में अगर आप कहीं जा रही हैं तो फेसमास्क और सैनिटाइजर भी जरूर रखें.

द्य अगर आप को मेकअप करने का शौक है तो आप एक पाउच में छोटा बौडी लोशन, सीरम, सनस्क्रीन, लिप बाम, लिपस्टिक, काजल आदि रख सकती हैं. सब से ज्यादा जरूरी अपने चेहरे पर मुसकान बनाए रखें.

सेहत को सुधारे सहजन

सहजन या ड्रमस्टिक (वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा) के बारे में हम सभी जानते हैं. इसे सीजना, सुरजना, शोभाजन, मरूगई, मरूनागाई, इंडियन हौर्सरैडिश आदि नामों से भी जाना जाता है. सहजन पूरे भारत में सुगमता से पाया जाने वाला पेड़ है. सहजन के पत्ते, फूल, फलियां, बीज, छाल आदि सभी का किसी न किसी रूप में प्रयोग होता है.

भारत में सहजन का उपयोग दक्षिण भारत में सांभर एवं सब्जी के रूप में किया जाता है. दक्षिणी भारत में सालभर फली देने वाले सहजन के पेड़ होते हैं, जबकि उत्तर भारत में ये साल में एक बार ही फली देते हैं. सहजन में पोषक तत्त्व, जैसे प्रोटीन, आयरन, बीटा कैरोटीन, अमीनो अम्ल, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीशियम, विटामिन ‘ए’, ‘सी’ और ‘बी’ कौंप्लैक्स की अधिकता होने के कारण इसे कुपोषण को रोकने एवं इस के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. सहजन अत्यंत गुणकारी और पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण सुपरफूड के नाम से भी जाना जाता है. सहजन के पेड़ को कटिंग या बीच द्वारा बड़ी आसानी से घर के आसपास पार्क या बड़े गमलों में लगाया जा सकता है.

सहजन का प्रसंस्करण * सहजन की पत्तियों में आयरन, रेशा, विटामिन ‘ए’ एवं प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसलिए पत्ती को सुखाने के उपरांत पाउडर बना कर उस से फलों एवं सब्जियों का पौष्टिक जूस बनाना. * इस की पत्तियों के पाउडर को सलाद में नमक व सलाद मसाले के साथ प्रयोग करना. * फलियों का सांभर एवं सब्जी के रूप में प्रयोग करना. * पत्तियों को जूस के रूप में प्रयोग करना. * फूल की सब्जी. * सहजन की फलियों का पाउडर. * पत्तियों एवं फलियों के सत को निकाल कर विभिन्न फलों में मिला कर उत्पाद बनाना. बीज सहजन के बीज से पानी को शुद्ध कर के पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस के बीज को पाउडर के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है.

पानी के साथ घुल कर यह एक प्रभावी प्राकृतिक क्लोरीफिकेशन एजेंट बन जाता है. यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरियारहित करता है, बल्कि पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है. जीवविज्ञान के नजरिए से यह जल मानवीय उपयोग के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है. पत्तियां सहजन की पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, आयरन, पोटैशियम, कौप्लैक्स मैगनीशियम, विटामिन ‘ए’ ‘सी’ और ‘बी कौप्लैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो खून की कमी एवं कुपोषण को दूर करने में सहायक है. इस के अलावा सहजन के बीज के आटे को बच्चे के कुपोषण को दूर करने के लिए भी खिलाया जा सकता है.

यह एक अच्छा हैल्थ सप्लीमैंट है.

* सहजन में शुगर के स्तर को संतुलित रखने की क्षमता होती है. यह डायबिटीज से लड़ने में मदद करता है.

* चयापचय (मैटाबोलिज्म) को ठीक रखने के लिए सहजन के तत्त्वों का सेवन बेहतर माना गया है. यह पाचन क्रिया को सही रखने में मददगार है.

* सहजन की पत्ती का काढ़ा गठिया, साइटिका, पक्षाघात, वायु विकार में शीघ्र लाभ देता है.

* मोच आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बना कर उस में थोड़ा सा सरसों का तेल डाल कर आंच पर पकाएं और फिर मोच के स्थान पर लगाएं. इस से शीघ्र लाभ होता है.

* सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालने एवं उलटीदस्त रोकने के काम में आता है.

* इस की पत्तियों को पीस कर लगाने से घाव एवं सूजन ठीक हो जाती है.

* इस की पत्तियों के रस से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है.

* सहजन विटामिन ए का बेहतरीन स्रोत है. यह आंखों को स्वस्थ रखता है. छाल

* सहजन की छाल में शहद मिला कर पीने से वात व कफ शांत हो जाता है.

* सहजन की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं और दर्द में आराम मिलता है. * इस के पेड़ की छाल का प्रयोग गोंद बनाने में किया जाता है.

* जड़ का काढ़ा, सेंधा नमक व हींग के साथ पीने से मिरगी के दौरों में लाभकारी होता है.

* सहजन की छाल का काढ़ा हींग व सेंधा नमक डाल कर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है. फूल * इस के ताजा फूलों का प्रयोग हर्बल टौनिक बनाने में किया जाता है.

* सहजन के फूल हृदय रोगों व कफ रोगों में उपयोगी होते हैं.

फलियां * इस की सब्जी खाने से पुराने से पुराना गठिया, जोड़ों का दर्द, वायु, संचार, वात रोग में लाभ होता है.

* सहजन की सब्जी खाने से गुरदे और मूत्राशय की पथरी कट कर निकल जाती है. सहजन में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम और प्रोटीन पाया जाता है. इस में दूध की तुलना में 4 गुना कैल्शियम और दोगुना प्रोटीन होता है. प्राकृतिक रूप से इस में मौजूद मैगनीशियम शरीर में कैल्शियम को आसानी से पचाने में मदद करता है. इस में पाया जाने वाला जिंक खून की कमी को पूरा करने में सहायक होता है.

अत: सहजन की खेती के लिए किसानों को प्रेरित करना चाहिए. सहजन बिना ज्यादा लागत एवं मेहनत के आय का एक बहुत बढि़या साधन हो सकता है. ठ्ठ सहजन के विभिन्न भागों के औषधीय गुण भाग औषधीय गुण बीज पीड़ानाशक, एलर्जीनाशक, जीवाणुरोधी, मूत्रवर्धक औषधि, विषाणुरोधी. बीज गिरी दमारोधी, जलन या प्रदाहरोधी. फली एवं बीज रक्तचाप. पत्ती अल्सररोधी, अतिगलगं्रधिता, फंगसरोधी, मधुमेह रोधी, हाईपोलिपिडेमिक आदि. जड़ कैंसररोधी, प्रदाहकरोधी, पीड़ानाशक. फूल प्रतिवातौषधि, कीटाणुरोधी. छाल पीड़ानाशक, जर्मनाशक. फोलियस दूध बढ़ाने वाला.

सहजन की पत्ती (ताजी, सूखी एवं पाउडर) बीज एवं फलियों में पोषक तत्त्वों की मात्रा पोषक तत्त्व ताजी सूखी पत्ती का बीज फली पत्ती पत्ती पाउडर ऊर्जा (कैलोरी) 92.2 329.0 205.0 – 26.0 प्रोटीन (ग्राम) 6.7 29.4 27.1 35.97 2.5 वसा (ग्राम) 1.7 5.2 2.3 38.67 0.1 काब्रोहाइड्रेट (ग्राम) 12.5 41.2 38.2 8.67 3.7 रेशा (ग्राम) 0.9 12.5 19.2 2.87 4.8 विटामिन बी-1 (मिग्रा.) 0.06 2.02 2.64 0.06 0.05 विटामिन बी-2 (मिग्रा.) 0.05 21.3 20.5 0.06 0.07 विटामिन बी-2 (मिग्रा.) 0.08 7.6 8.2 0.2 0.2 विटामिन सी (मिग्रा.) 220.0 15.8 17.3 4.5 120 विटामिन ई (मिग्रा.) 448.0 10.8 113.0 751.0 – कैल्शियम (मिग्रा.) 440.0 2185.0 2003.0 45.0 30.0 मैगनीशियम (मिग्रा.) 42.0 448.0 368.0 63.5 24.0 फास्फोरस (मिग्रा.) 70.0 252.0 204.0 75.0 10.0 पोटैशियम (मिग्रा.) 259.0 1236.0 1324.0 – 110 कौपर (मिग्रा.) 0.07 0.49 0.57 5.20 3.1 लोहा (मिग्रा.) 0.85 25.6 28.2 – 5.3 सल्फर (मिग्रा.) – – 870 0.05 137

लेखक-डा. दीपाली चौहान, वैज्ञानिक, गृह विज्ञान, कृषि विज्ञान केंद्र

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