Download App

अनुज को फंसाने के लिए माया चलेगी ये चाल, भैरवी के पिता की होगी मौत

सीरियल अनुपमा में इन दिनों लगातार अनुज और अनुपमा की जिंदगी में काफी ज्यादा उथल-पुथल दिखाया जा रहा है, शो देखने वाले फैंस लगातार यह डिमांड कर रहे हैं कि अनुज और अनुपमा जल्दी से एक हो जाएं लेकिन कहानी में  हर वक्त नए-नए मोड़ आ रहे हैं.

इस वक्त का फायदा उठाते हुए माया लगातार अनुज से अपने प्यार का इजहार कर रही है, लेकिन अनुज उसे मना कर देता है, वह माया से कहता है कि मेरे दिल में माया के अलावा और कोई नहीं है. माया अपने जिद्द पर अड़ जाती है कहती है कि मैं तुम्हें पसंद करती हूं , तुम मेरी फिलिंग्स को नहीं समझ रहे हो, वह कहती है कि जैसे 26 साल पर आपको अनुपमा मिली है वैसे  ही आप मुझे मिलोगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupama (@anupama.love.anuj.maan1)

हालांकि ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होता है, बार- बार सीरियल में देखने को मिलेगा कि माया बार-बार अपने प्यार का इजहार करती नजर आती है, भैरवी के पिता की तबीयत खराब होती है वहीं भैरवी अपने पिता की जिम्मेदारी अनुपमा पर सौंप देती है. अनुपमा उसके पिता की जिम्मेदारी उठानेे की बात करती है, वहीं अनुपमा को कुछ देर में खबर मिलती है कि भैरवी के पिता की मौत हो गई है. इस खबर के सुनते ही वह टूट जाती है. रोने लगती.

YRKKH: मंजरी को पता चलेगा अबीर का सच, गोयनका हाउस में होगा हंगामा

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार नए-नए डामें देखने को मिल रहे हैं, सीरियल फैमली ड्रामा की वजह से चर्चा में बना हुआ है, कहानी में दिखाया जा रहा है कि अबीर का सच सभी को पता चल गया है.

सच पता चलने के बाद से वह अपना समय अबीर के साथ बीताना चाहता है, समर कैंप में भी अभिमन्यु और अबीर का बॉन्ड देखकर रूही परेशान होने लगी है. अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि रूही नाराज होकर कैंप का सामान तोड़ देती है, रूही कि इस हरकत से कैंप के सभी लोग परेशान हो जाते हैं,

रूही की इस हरकत से सभी लोग आरोही को सुनाने लगते हैं, लेकिन अक्षु अपनी मां का साथ देती नजर आती है वह कहती है कि तुमने अच्छा काम किया है, वह लोगों का मुंह बंद कर देती है. सीरियल में आगे देखने को मिलेगा कि रूही से अभि मांफी मांगता है.

दूसरी तरफ अभिनव भी आरोही को समझाते हुए नजर आता है कि वह उससे बहुत प्यार करता है, कहता है कि मैंने हमेशा उसकी बहन से उसका नाम सुना है अपने भाई का. आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अक्षरा अभिमन्यु को समझाते हुए नजर आती है.

Mother’s Day 2023: मैं लौट आया मां- भाग 3

‘यह बात सच है बेटा.’ ‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’ कह कर उस ने छवि की तरफ देखा. छवि की नजरें मिलीं और झुक गईं. ‘इस का मतलब मेरे मातापिता आप दोनों नहीं बल्कि चाचाचाची हैं और आप मेरे ताऊताई हैं.’ ‘नहीं बेटा, हम ही तेरे मातापिता हैं,’ छवि की आवाज भर्रा गई. उस ने रुद्र को अपने से लिपटाना चाहा पर रुद्र उसे झटका दे कर अपने कमरे में चला गया. नीरज और छवि अपनी जगह पर जड़वत खड़े रह गए. ‘अब क्या होगा…’ कहते हुए छवि रो पड़ी और आगे कहा, ‘इसीलिए मैं ने मना किया था.’ वह उस के कमरे की तरफ जाने को तत्पर हो गई. पर नीरज ने रोक लिया. ‘कब तक छवि, एक दिन यह तो होना ही था. उसे थोड़ा सोचनेसमझने का वक्त दो, थोड़ा स्थिर हो जाएगा तब समझाएंगे उसे. अपने जीवन का इतना बड़ा सच जानने के बाद उसे थोड़ा झटका तो लगेगा ही, पर मुझे विश्वास है, सब ठीक हो जाएगा.’ रुद्र्र रात तक कमरे से बाहर नहीं निकला तो रात को छवि उसे खाने के लिए बुलाने गई. रुद्र चुपचाप अपनी स्टडी टेबल पर बैठा हुआ था.

‘चलो बेटा, खाना खा लो,’ वह उस के सिर में हाथ फेरते हुए बोली.

‘मुझे नहीं खाना है,’ कह कर उस ने उस का हाथ झटक दिया. ‘रुद्र, इतना नाराज होना ठीक नहीं बेटा, आखिर ताऊताई या मातापिता में क्या फर्क है. हो तो तुम इसी परिवार के न, हमें तुम कितने प्रिय हो, तुम जानते हो रुद्र…’ ‘जब कोई फर्क नहीं तो आप ने मुझे ताऊताई बन कर ही प्यार क्यों नहीं किया, अपने स्वार्थ के लिए आप ने आज मेरे जीवन में इतना बड़ा भूचाल ला दिया और इतने सालों तक मुझ से इतना बड़ा सच छिपाया,’ कह कर वह एक झटके से उठ कर कमरे से बाहर निकल गया. छवि का हृदय तारतार हो गया. बारबार नियति उस का सबकुछ छीन लेती है. कई दिन गुजर गए. छवि और नीरज ने बहुत कोशिश की पर रुद्र का अबोला न टूटा. तीनों के बीच संवादहीनता की स्थिति आ गई थी. धीरेधीरे नीरज और छवि के सब्र का बांध भी टूटने लगा. एक दिन नीरज ने रुद्र से सीधे ही पूछ लिया, ‘आखिर तुम चाहते क्या हो रुद्र, ऐसा कब तक चलेगा, तुम्हारी पढ़ाई का भी नुकसान हो रहा है ऐसे में.’ ‘मुझे मुंबई जाना है अपने मातापिता के पास, वहीं रह कर पढ़ूंगा.’

‘क्या…?’ नीरज और छवि जैसे आसमान से गिर गए.

‘लेकिन रुद्र्र…’

‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं…’ वह दृढ़ता से बोला, ‘अगर आप ताऊताई बन कर ही प्यार करते, बेटा समझते तो क्या बिगड़ जाता? मैं अपने मातापिता से अलग नहीं होता, और मेरी जिंदगी में भी भूचाल नहीं आता.’ नीरज और छवि ने उसे बहुत समझाया और आखिर में उस के तर्कों के आगे नीरज ने हथियार डाल दिए. छवि को समझाया. ‘जाने दो उसे, छवि. रोके न रुकेगा वह. अगर हमें औलाद का सुख नहीं है तो वह नहीं मिलेगा. जबरदस्ती का भ्रम मत पालो, मैं उस के जाने का प्रबंध करता हूं और समर को सबकुछ बता देता हूं.’ छवि ने मौन स्वीकृति दे दी. नीरज ने रुद्र की फ्लाइट की टिकट बुक कर दी और समर को सबकुछ बता दिया. सबकुछ सुन कर समर और प्रिया भी दुखी हो गए. ‘ठीक है भैया, आप उसे भेज दीजिए. हम उसे समझाएंगे. मुझे विश्वास है सब ठीक हो जाएगा.’ रुद्र मुंबई चला गया. नीरज और छवि लुटेपिटे से रह गए. 2 महीने हो गए थे रुद्र को गए हुए. इस बीच न मुंबई से कोई फोन आया था न उन्होंने ही कोई संपर्क करने की कोशिश की थी. दोनों ने खुद को नियति के हाथों सौंप दिया था. जो भी होगा अब. यों तो रुद्र ने अब घर से पढ़ाई के लिए जाना ही था पर उस जाने में और इस जाने में फर्क था. हरसिंगार के पेड़ के नीचे बैठी छवि को बाहर का मौसम भी नहीं लुभा पा रहा था. 4 दिन बाद दीवाली थी पर उस ने कुछ भी तैयारी नहीं की थी और करे भी तो किस के लिए. तभी उसे नीरज अपनी तरफ आते हुए दिखे.

‘‘छवि, तुम यहां बैठी हो और मैं तुम्हें सब जगह ढूंढ़ रहा हूं.’’ नीरज का स्वर सुन कर छवि की तंद्रा भंग हुई.

‘‘किसलिए?’’ छवि रिक्त भाव से बोली.

‘‘समर का फोन आया है कि वह परिवार सहित घर आ रहा है दीवाली पर.’’ ‘‘अच्छा,’’ छवि की आंखों की ज्योति पलभर के लिए प्रदीप्त हुई, फिर बुझ गई, ‘‘तो क्या करूं, क्या करने आ रहा है यहां, वहीं दीवाली मनाए अपने परिवार के साथ. उस का परिवार तो पूरा हो गया न.’’ ‘‘तुम भी न छवि, क्याक्या सोचती रहती हो, इस में उस की क्या गलती है. उठो, कुछ तैयारी करो, बहुत समय बाद दीवाली के मौके पर घर आ रहा है. घर में चलहपहल रहेगी, फिर रुद्र भी तो आएगा.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है अब,’’ छवि निर्विकार भाव से बोली.

‘‘छवि, प्लीज, तुम सिर्फ रुद्र की नहीं समर और मनु की भी मां समान हो, बाहर निकलो अपनी इस उदासी से.’’ आखिर छवि हलकीफुलकी तैयारी करने लगी. तैयारी करतेकरते सबकुछ अच्छे से ही कर लिया. दीवाली आई, समर परिवार सहित आया और साथ में रुद्र भी. छवि सब से बाहरी दिल से ही सही पर ठीक से मिली. रुद्र की तरफ उस ने देखा भी नहीं. मनु और रुद्र अब युवा थे. 2 सुदर्शन युवा बेटे हैं समर और प्रिया के. कितना सुदृढ़ सहारा है उन का. उस का हृदय कसक गया. क्या होगा उन का. कैसे काटेंगे बाकी की जिंदगी. सब के आने से घर में चहलपहल हो गई. अगले दिन दीवाली थी. सब अपनेअपने हिसाब से दीवाली की तैयारी कर रहे थे. मनु और रुद्र थे तो जाहिर है खूब पटाखे भी फूटने थे. प्रिया ने किचन की जिम्मेदारी ले ली. कई तरह के पकवान तैयार करा लिए. एकदो बार रुद्र सामने अकेले पड़ा पर वह निर्विकार रही. रुद्र के चेहरे को देख कर लग रहा था कि शायद वह कुछ कहना चाहता है पर छवि ने उसे मौका नहीं दिया. उस का दिल अब पूरी तरह से टूट चुका था. उस ने खुद को मजबूत कर लिया था. जो सुख उसे नियति नहीं देना चाहती उस के पीछे क्यों भागे. दीवाली के दिन सुबह से ही गहमागहमी थी. नीरज सबकुछ बिसरा कर परिवार के साथ मगन हो गए थे. लेकिन छवि खुद को सहज नहीं कर पा रही थी.

उस के हृदय में समर के प्रति भी हलकीफुलकी नफरत जन्म ले रही थी. उसे लग रहा था कि वे दोनों भी नियति के इस फैसले से खुश हैं. उन्हें उन का बेटा वापस मिल गया था. खुद के काम से निबट कर समर घर के नौकरोंचाकरों को उपहार देने लगा. सब को कुछ न कुछ देने के बाद समर और प्रिया उस के पास आए.

‘‘भाभी, इस दीवाली पर भी हम आप के लिए कुछ खास उपहार लाए हैं.’’ ‘‘मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा खास उपहार, पहले भी दीवाली पर तुम ने एक बार खास उपहार दिया था,’’ कह कर उस ने मुंह फेर लिया. ‘‘पर देखो तो भाभी, एक बार इधर तो देखो…’’ कह कर उस ने जबरदस्ती छवि का चेहरा अपनी तरफ करने की कोशिश की. ‘‘नहीं, अब मुझ में ताकत नहीं बची है समर, अब मुझे कोई धोखा नहीं चाहिए. मैं ऐसे ही ठीक हैं,’’ कह कर छवि फूटफूट कर रो पड़ी. तभी किन्हीं मजबूत बांहों ने उसे पीछे से लिपटा लिया. ‘‘मैं लौट आया, मां, हमेशा के लिए, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘रुद्र…’’ छवि ने पलट कर देखा. रुद्र की आंखें नम थीं. उस की आंखों में आश्चर्य तैर गया. ‘‘हां मां, मैं ने यह नहीं सोचा कि अगर आप ने मुझे ताऊताई न कह कर मातापिता के रूप में पालापोसा और प्यार दिया तो क्या फर्क पड़ गया. चाचाचाची मुझ से दूर थोड़े ही न हो गए. मेरा विश्वास करो मां, मैं अब आप दोनों को छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगा, पापा का सपना पूरा करूंगा.’’ ‘‘लेकिन…’’ उस ने उसी अविश्वासभरी नजरों से समर की तरफ देखा, जैसा उस ने तब देखा था जब समर और प्रिया ने पहली बार रुद्र को सौंपा था. ‘‘हां भाभी, मैं ने रुद्र को सबकुछ बताया और समझाया, इस बार मैं उसे आप को नहीं दे रहा हूं. बल्कि वह खुद अपने ममापापा के पास लौट आया है. वह आप दोनों को ही प्यार करता है मातापिता के रूप में. हमें नहीं, आप दोनों के लिए ही रोया है इन 2 महीनों में.’’

‘‘सच,’’ उस ने नीरज की तरफ देखा. नीरज ने उसे कंधे से थाम लिया. ‘‘अब गले लगाओ बेटे को छवि, अब सही माने में हम मातापिता बने हैं.’’ छवि ने रुद्र को कस कर गले लगा लिया और नीरज ने उन दोनों को, और समर ने तीनों की फोटो खींच ली. प्रिया ने गहरी सांस ली, ‘बस, अब यह परिवार कभी न बिखरे.’ इस दीवाली में सही माने में उन के घर दीये जगमगाए थे. बिना किसी अनजाने भय के खुशियां बिखरी थीं उन के घर में.

 

Mother’s Day 2023: मैं लौट आया मां- भाग 1

छवि को एकाएक घर के अंदर घुटन सी होने लगी. वह बाहर आ गई. बाहर का मौसम सुहाना था. रात में हुई भारी बरसात से हरसिंगार के झड़े हुए फूलों का गलीचा सा बिछा हुआ था. उसे हलका सा सुकून मिला. वह धीरेधीरे चलती हुई लंबेचौड़े लौन को पार कर चारदीवारी के पास खड़े हरसिंगार के पेड़ के नीचे रखी कुरसी पर बैठ गई. हरसिंगार झड़ रहा था. कुरसी पर बैठ कर वह अपनी शानदार कोठी और कोठी को घेरे हुए लंबेचौड़े प्रांगण को निहारने लगी. गर्व करने के लिए क्या नहीं है उस के पास, प्यार करने वाला पति और अथाह धनसंपत्ति, कई शहरों में फैला हुआ उन का कारोबार. लेकिन बस एक ही कमी थी उस के जीवन में. संतान का सुख नहीं था. 19 साल पहले का भी एक ऐसा ही दिन था. जिस दिन वह ऐसे ही हताश, उदास और निराश इसी जगह पर बैठी हुई थी. वह यादों में खो कर उस अधूरे सपने का छोर पकड़ने का प्रयास करने लगी. उस के पति नीरज 2 भाई थे. छोटा भाई समर नीरज से बहुत छोटा था. सास ने  समर का हाथ उस के हाथ में पकड़ा कर संसार से अलविदा कह दिया था. उस ने मां की तरह पाला समर को और समर ने भी उसे भाभी मां का सा सम्मान दिया. समर बड़ा हुआ तो उस ने भाई के व्यवसाय में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. मैनेजमैंट की पढ़ाई करने के बजाय उस ने मैडिकल लाइन में जाना चाहा. उस के डाक्टर बनने पर नीरज को कोई एतराज नहीं था. उन का विचार था जब समर डाक्टर बनेगा तो डाक्टर लड़की से उस की शादी कर देंगे और एक अच्छा बड़ा शानदार नर्सिंगहोम खोल देंगे दोनों के लिए.

समर डाक्टर भी बना और डाक्टर लड़की से उस की शादी भी हुई पर उस ने प्राइवेट प्रैक्टिस के बजाय मुंबई के एक बड़े हौस्पिटल से नौकरी का औफर स्वीकार कर लिया. दोनों पतिपत्नी को बुरा तो बहुत लगा लेकिन ये उदासी ज्यादा दिन नहीं रही. जल्दी ही समर की पत्नी श्रेया में मां बनने के लक्षण नजर आए और समय के साथ वह प्यारे से बेटे की मां बनी. छवि खुशीखुशी उस की जचगी पर गई पर बच्चा होते समय श्रेया की हालत बिगड़ गई और डाक्टर उसे बचा नहीं पाए. उन पर जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा. छवि तो जैसे बदहवास हो गई. बच्चे को संभाले या समर को. खैर, किसी तरह वह दुख की घड़ी भी निकली. समर ने खुद को काम में डुबो दिया और छवि ने खुद को नन्हे मनु के पालनपोषण में. मनु उसे ही मां समझता था. वह भी मनु को पालने में इतनी खो गई कि याद ही नहीं रहा कि मनु ने उस की कोख से जन्म नहीं लिया है. मनु 3 साल का होने वाला था. उस के स्कूल और समर के दूसरे विवाह की बातें एकसाथ घर में जोर पकड़ने लगीं. अपने निकट परिजनों की उपस्थिति में उन्होंने समर का दूसरा विवाह संपन्न किया. समर का दूसरा विवाह हुआ तो मानो दोनों पतिपत्नी के दिल से बहुत बड़ा बोझ उतर गया. छवि और नीरज ने यही सोचा कि अब वे मनु को बाकायदा कानूनन गोद ले सकते हैं और समर को भी अपनी दूसरी पत्नी के साथ निभाने में मनु की वजह से कोई अड़चन नहीं आएगी और उस की सूनी गोद भी भर जाएगी.

लेकिन उसे घोर आश्चर्य तब हुआ जब समर और प्रिया उसे अपने साथ मुंबई ले गए और वहीं उस का दाखिला करा दिया. छवि का हृदय तारतार हो गया. एक तो मनु का विछोह और दूसरा समर का बेगानापन. मनु उन से फोन पर बात करना भी चाहता पर समर ने तो जैसे बात करना ही बंद कर दिया. किसी तरह उस के बिना रहने की आदत डालने लगी. लेकिन नियति को तो अभी उस की गोद फिर भरनी थी. समर और प्रिया का बेटा हुआ. वह गुस्से में उस की जचगी पर नहीं गई. लेकिन ऐसा ही एक दिन था जब वह यहीं पर बैठी हुई आंसू बहा रही थी और पति नीरज ने उसे समर के परिवार सहित आने की सूचना दी थी.

‘अब क्यों आ रहा है वह यहां, क्या हमारे जख्मों पर नमक छिड़कने?’ वह गुस्से में बोली थी, ‘वहीं रहे अपने परिवार के साथ.’ ‘दीवाली मनाने आ रहा है. अपने घर नहीं आ सकता है क्या वह? यह घर उस का भी तो है,’ नीरज ने उसे समझाते हुए कहा. ‘उस  ने इस घर को अपना समझा ही कब, उसे पाला, उस के बच्चे को पाला. पर उस ने कभी अपना कर्तव्य नहीं निभाया,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी. ‘इतनी स्वार्थी न बनो, छवि, वह तुम्हें बहुत मानता है, तुम्हारा मां की तरह सम्मान करता है. उस ने मनु को हमें नहीं दिया तो जरूर उस के पीछे कोई कारण रहा होगा.’ वह चुप हो गई. नीरज कभी भी नकारात्मक नहीं सोचते थे. दीवाली पर समर परिवार सहित आया. मनु काफी बड़ा सा हो गया था. वह लगभग 2 साल बाद उसे देख रही थी. मनु अब उसे कम और प्रिया को ज्यादा पहचानने लगा था. छवि ने उसे बांहों में खींचना चाहा तो वह मचल कर प्रिया की तरफ भाग गया. अगले दिन दीवाली थी. दीवाली पर समर ने घर के नौकरचाकरों, ड्राइवरों, माली वगैरह को उपहारों से लाद दिया. सब के जाने के बाद समर और प्रिया उस के पास आए थे.

‘भाभी, मैं आप के लिए भी आप की पसंद का एक खास उपहार लाया हूं.’ सुन कर छवि ने मुंह फेर लिया. नाराज मत हो भाभी, देख तो लीजिए अपना उपहार,’ कह कर प्रिया ने अपना नवजात बच्चा उस की गोद में डाल दिया था. गोद में कोमल स्पर्श को पा कर उस ने चौंक कर देखा. नन्हा शिशु अपने नरम मुलायम होंठों से मुसकरा कर अपनी निर्दोष आंखों से उसे टुकुरटुकुर निहार रहा था.

‘यह क्या,’ वह एकाएक भावुक हो गई. ‘हां भाभी, यह आप का बेटा, यह बिलकुल आप का है. इसे हम ने आप के लिए ही जन्म दिया है, वरना हमारा तो एक बेटा था ही. इसे आप से कोई नहीं छीनेगा,’ समर बोला.

‘क्या, सचमुच?’ उस की अविश्वास से भरी आंखें सावनभादों बन गईं, ‘लेकिन फिर मनु.’ ‘भाभी, उस समय आप मेरी बात नहीं समझतीं, मनु को गोद देने से कल उसे पता चलता तो वह खुद को अनाथ महसूस करता. सोचता हम ने उसे पालना नहीं चाहा इसलिए उसे आप को गोद दे दिया. मां थी नहीं और पिता ने दूसरी शादी कर ली. वह हमें कभी माफ नहीं करता.’ छवि ने नन्हे को निहारा, तब तक नीरज भी पास खिसक आए, ‘नीरज…’ वह भर्राई आवाज में बोली थी, ‘देखो तो हमारा बेटा.’

मेरे बॉयफ्रेंड से मेरी लड़ाई होती है तो हर बार मैं ही झुकती हूं, इस बार वह झुके मैं यह चाहती हूं?

सवाल

मैं 24 वर्षीया हूं. मैं अपने बौयफ्रैंड से बहुत प्यार करती हूं. यही कारण है कि जब भी वह मुझसे नाराज होता हैउसे मनाने की पहल मैं ही करती हूं. हर बार मैं ही झुक जाती हूंजबकि कई बार मेरी गलती भी नहीं होती. इस बार मेरा और उस का झगड़ा हुआ है तो मैं चाहती हूं कि वह मेरी याद में तड़पे. मैं यह भी चाहती हूं कि इस बार वह पहले मेरे पास आए और मुझसे सौरी बोले. हमेशा मैं ही अपने को डाउन क्यों करूं. मेरी भी तो कुछ सैल्फ रिस्पैक्ट हैजिसे शायद मैं उस के प्यार से पागल हो कर साइड में रख देती हूं. इस बार ऐसा नहीं करूंगी मैं. अब आप ही बताएं मुझ क्या करना चाहिए कि वह मुझ याद करता हुआमुझ सौरी बोले और मेरे पास आ जाए?

जवाब

आप ठीक सोच रही हैं. आप का बौयफ्रैंड आप को टेकन फौर ग्राटेंड’ ले रहा है. ?ागड़े में यदि गलती उस की है तो उसे सौरी बोलना चाहिए. खैरइस बार अपनी याद दिलानाउसे इस बात का एहसास दिलाने का एक अच्छा तरीका है कि वह आप को खो सकता है. कुछ तरीके आप आजमा कर देखिए. दूर रहने से एकदूसरे को मिस करने का एहसास होता है. कुछ दिनों के लिए कौल करना और टैक्स्ट भेजना बंद कर दें और बात पर ब्रेक लगा दें.

पहले उस के टैक्स्ट का इंतजार करें. आप का बौयफ्रैंड इस बात से परेशान होगा कि आप उसे टैक्स्ट मैसेज भी क्यों नहीं भेज रही हैं. उसे थोड़ा परेशान होने दें ताकि वह देखे कि आप सिर्फ उस का इंतजार नहीं कर रही हैं. इस के बाद वापस उस का मैसेज आने से जितना समय लगेआप भी इतना समय ले कर जवाब देना शुरू कर दें.

अपने फ्रैंड्स के साथ मजे करें. उसे दिखाएं कि आप को अच्छा समय बिताने के लिए उस की जरूरत नहीं है. मजे करते हुए सोशल मीडिया पर अपनी फोटो पोस्ट करें. आप को देख कर वह तुरंत आप के बारे में सोचेगा. आप की पिक्चर्स उसे यह भी बताएंगी कि आप उस पर रोने के बजाय जिंदगी का लुत्फ उठा रही हैं. हालांकि एक दिन में केवल एक ही पिक्चर पोस्ट करें ताकि उसे यह न लगे कि आप मूव औन कर चुकी हैं.अपना शैड्यूल भर लें ताकि आप के पास उस के लिए समय न हो. उसे याद दिलाएं कि आप फ्री नहीं हैं. उस के सोशल मीडिया पोस्ट इग्नोर करें. कोई भी रिऐक्शनरी कमैंट न करें ताकि उसे आप की अनुपस्थिति का एहसास हो. जब वह देखेगा कि आप रिऐक्ट ही नहीं कर रही हैं तब उसे याद आएगा कि आप के रिऐक्ट करने पर उसे कितना स्पैशल फील हुआ करता था.अपना खयाल रखें. आप का अच्छा दिखना उसे अच्छा महसूस कराएगा कि आप को खोना सही डिसीजन नहीं होगा.

उस के साथ की किसी अच्छी याद वाली एक फोटो पोस्ट करें. पुरानी यादें आप के रिश्ते के बारे में अच्छी भावनाओं को फिर से जगा सकती हैं. चाहें तो उस के साथ में एंजौय किए किसी एक्सपीरियंस के बारे में बात कर या लिख भी सकते हैं.

जब वह कान्टैक्ट करेतब अच्छे से पेश आएं. आप की अच्छाई उसे आप के पास ले जाएगी. लेकिन आखिर एक जरूरी बात न भूलें कि यदि आप रिश्ते को ठीक करना चाहते हैं तो आप दोनों को माफी मागंनी होगी.

आप दोनों अभी यंग हैं. लड़ाई-झगड़े पर नहींअपनी आगे आने वाली जिंदगी पर फोकस करें तो अच्छा रहेगाजो आप दोनों को मिल कर साथ बितानी है.

इन खास टिप्स से घर की सजावट करके बिजली के बिल मे कर सकती है बचत

इन दिनों आधे से अधिक लोगों की ये शिकायत रहती  है कि उनके घर का बिजली  बिल बहुत ज्यादा आ रहा है. ऐसा हो भी क्यों न साल 2020 में अधिकतर लोग घरों के अंदर बंद थे और देश में जगह-जगह लॉकडाउन था. ऐसा हो सकता है कि आप ऐसे तरीकों की खोज में हों जिनसे आपके घर का बिजली बिल कम आए और आपके घर में बाकी काम काज पर भी असर न हो. देखिए देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी और ह्यूमिडिटी का माहौल है तो पंखे और एसी आदि तो इस्तेमाल करना ही होगा, लेकिन घर में बेहतर लाइटिंग कैसे हो जिससे बिजली के बिल का बचत हो.

1.    घर में नेचुरल लाइट का साधन बढ़ाये

घर में नेचुरल लाइट को बढ़ाना बिजली बचाने का सबसे अच्छा साधन हो सकता है. सबसे पहले तो आप वेंटिलेशन और लाइटिंग के सभी सोर्स के पास से हर तरह के भारी फर्नीचर को हटा दें. ताकि सन लाइट पूरे कमरे में फैले साथ ही पर्दे का रंग हल्का रखे गाढ़ा रंग नेचुरल लाइट को आने से रोकता है. आप घर में कितने भी ट्यूबलाइट लगा लें पर नेचुरल लाइट का असर बहुत ज्यादा होता है.
यदि घर में रौशनदान आदि में जाली लगी हुई है तो उसे समय समय पर साफ करती रहे एवं की खिड़कियों के साथ भी यही करें, साथ ही कोशिश करें कि घर का दरवाज़ा थोड़ी देर के लिए खुला रखें ताकि हवा और लाइट दोनों घर के अंदर आएं.  घर के दीवारों पर कुछ रिफ्लेक्टिव वॉल स्टिकर्स लगा लें जिससे नेचुरल लाइट घर में आएगी और रिफ्लेक्टिव स्टिकर्स की मदद से पूरे कमरे में फैलेगी.

2. एलईडी लाइट्स का इस्तेमाल करें
आप घर में लो एनर्जी वाली एलईडी लाइट्स का इस्तेमाल करें साथ ही कमरों में नाइटलैम्प वाली एलईडी लाइट्स लगवाएं ये एनर्जी भी बचाएंगी और अगर रात में किसी काम के लिए उठना पड़े तो आपको बड़ी लाइट जलाने की जरूरत नहीं होगी. इसके अलावा, किचन, ड्राइंग रूम, बेडरूम और बाथरूम के लिए भी आप एलईडी लाइट्स का इस्तेमाल कर सकती हैं. आप अपने रूम के डेकोर व दीवार के रंग के हिसाब से लाइट चुन सकती हैं साथ ही अगर बड़ा रूम है तो आप दो अपोजिट दीवारों पर एलईडी ट्यूबलाइट्स लगा सकती हैं. अगर छोटा है तो एलईडी बल्ब से काम चल जाएगा.

3.   कमरो में डेकोरेटिव लाइट्स का करें इस्तेमाल

आप घर के कमरो में फेयरी टेल लाइट्स लगा सकती जो  बहुत उपयोगी साबित हो सकता है. इस तरह के लाइट कर्टेन्स (लाइट वाले पर्दे) कमरों में भरपूर रौशनी  देते हैं और साथ ही साथ बिजली का बिल भी बचाते हैं. इस तरह के पर्दे बहुत खूबसूरत लगते हैं और ये 1000 रुपए के बजट में आसानी से आ जाते हैं. ऐसे में आप पूरे घर में लाइट्स जलाने की जगह इन पर्दों को ही लगा सकती हैं. क्योंकि ये पर्दे पूरी दीवार पर लगाए जा सकते हैं इसलिए ये बहुत ही आकर्षक लगते हैं और पूरे कमरे में रौशनी देते हैं.

4.  रोशनी के लिए टास्क लाइट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

रीडिंग लैम्प या स्टडी टेबल लाइटिंग बहुत ज्यादा कारगर साबित हो सकती है. अगर आपकी आदत है रात में बहुत सारा काम करने और पढ़ने की तो पूरे घर की लाइट्स जलाए बिना आप सिर्फ रीडिंग लैम्प्स की मदद से अपने काम के साथ पढ़ सकती हैं. ऐसे ही अगर रात में लैपटॉप पर काम करना है तो यूएसबी लाइट्स का इस्तेमाल करें जो आपकी बहुत मदद करेंगी. वर्क फ्रॉम होम के चलते नाइट शिफ्ट कर रहे लोगों के लिए ये बहुत उपयोगी साबित हो सकती है.

लेखिका- Suchitra Agrahari  

शरीफा-भाग 1 : आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब वह पछता रही थी?

“यह क्या फजल, तुम आज फिर यह शरीफे की पेटी उठा ले आए,” डाइनिंग टेबल पर बैठ लैपटौप पर औफिस का काम कर रही निकिता ने झुंझलाते हुए कहा.

“तुम्हें पता है न मुझे शरीफा बहुत पसंद है, फिर क्यों बारबार कहती हो,” फजल ने उसी तैश में आ कर जवाब दिया.

पास ही डाइनिंग टेबल पर बैठा फजल कांटे की नोंक से शरीफे की एकएक आंख का भेदन कर बड़े इतमीनान से उठाता, फिर मुंह में डालता, उस के ऊपर का मांसल हिस्सा चूसता और उस के बीज को वहीं थूक देता. बीज चिकने होने की वजह से उचट कर कमरे में यहांवहां फैल जाते.

“मैं तो कहता हूं कि तुम भी खाओ तो तुम्हें भी मजा आने लगेगा. बड़ी अजीब चीज है यह शरीफा. इस का एकएक अंग कितना लाजवाब है,” फजल के चेहरे पर अजीब से भाव थे.

“मुझे नहीं खाना, तुम्हें ही मुबारक. मगर इतना तो सोचो, खाने का भी सलीका होता है फजल, तुम पास में कोई डिस्पोजल रख उस में बीज डाल सकते हो… यह क्या बात हुई कि पूरे कमरे में फैला दो. आखिर साफ मुझे ही करना पड़ता है. तंग आ गई हूं तुम्हारे इस शरीफे के शौक से. अरे, खाओ तो कम से कम इनसानों की तरह.”

“हां, बताओ… कैसे होता है इनसानों की तरह खाना,” कहते हुए फजल ने कुटिल मुसकान फेंकते हुए पेटी से एक शरीफा उठाया और निकिता के मुंह में जबरन ठूंसने लगा, जिस से शरीफा फूट गया. कुछ निकिता के चेहरे पर फैल गया, बाकी बचा उस के कपड़ों पर.

“फजल, यह क्या बदतमीजी है…?” निकिता गुस्से में चिल्लाई, “मैनर्स नाम की कोई चीज नहीं है तुम में,” निकिता ने गुस्से में आ कर कहा और बदहवासी में उठने को हुई तो धक्का लगने से उस के लैपटौप का वायर खिंच जाने से वह जमीन पर गिर पड़ा.

उस समय तो आननफानन ही निकिता उठ कर बाथरूम की ओर चल दी. अपनी हालत देख उसे अपनी बुद्धि पर अफसोस हो रहा था, यह क्या कर लिया उस ने अपनी जिंदगी के साथ…

मांबाबा ने कितने अरमानों से उसे पढ़ाया था, इस काबिल बनाया कि वह अपना भलाबुरा सोच सके, पहचान सके इस दुनिया को, दुनिया के लोगों को, खड़ी हो सके अपने पैरों पर, ताकि उसे भविष्य में किसी के आगे नाहक झुकना न पड़े, शर्मिंदगी न झेलनी पड़े. मगर क्या वाकई उन की बेटी दुनिया की अच्छाईबुराई को पहचान सकी…? क्या वाकई उसे इनसानों के चेहरे पढ़ना आया…? बिलकुल नहीं, आता तो आज वह जन्म देने वाले मातापिता को छोड़ इस बहुरुपिए फजल के साथ न आती.

कितना समझाया था मां ने,
चिरोरी की थी, “बेटी, न ही वह हमारी कौम का है और न ही तुम उसे और उस के खानदान के बारे में कुछ जानती हो. फिर उस की और हमारी कौम में जमीनआसमान का अंतर है.”

“मां, किस दुनिया में रहती हो, जो तुम ये कौमवौम की बातें ले बैठी हो? जानती हो, सदियों पहले जोधा और अकबर, सलीम और मानबाई, महाराणा सांगा और मेहरुन्निसा, महाराजा छत्रसाल और रूहानीबाई को भूल गईं. वह बाजीराव मस्तानी की कहानी…”

 

ऐसे बनाएंगे भरवां करेला, तो सभी लेंगे चटकारे

करेले का नाम सुनते ही लोग टेढ़े-मेढ़े मुंह बनाने लगते हैं. करेला खाने में जितना कड़वा लगता है. उससे कहीं ज्यादा हमारे शरीर के लिए फायदेमंद हैं. यह औषधियों से भरपूर है. करेला खाने से कई तरह की बीमारी से दूर रहते हैं. आइए जानते हैं करेला भर्ता को आसान तरीके से बनाना.

सामग्री

करेला

ऑयल

नमक

हरी मिर्च

प्याज

तीन उबले आलू

लाल मिर्च

धनिया पाउडर

जीरा पाउडर

हल्दी

गरम मसाला

सौंफ पाउडर

अनारदाना

विधि−

भरवां करेला बनाने के लिए आप सबसे पहले करेले को छीलकर बीच में से काट लें.

-ध्यान रखें कि आपको इसे सिर्फ एक साइड से स्लिट करना है. इसके बाद आप इसमें से बीज निकाल दें.

-अब आप एक कड़ाही में थोड़ा पानी डालें और गर्म करें. जब पानी हल्का गर्म हो जाए तो इसमें करेले डाल दें फिर उबालें. अब इसे पानी में से निकालें और प्लेट में रखकर नमक डाल दें

-अब एक पैन में ऑयल डालें और इसमें हरी मिर्च और प्याज डालकर भूनें. जब तक प्याज भुनकर तैयार हो रही है, तब तक करेले की स्टफिंग तैयार कर लें.

-इसके लिए आप तीन उबले हुए आलू को मैश करें और इसमें नमक, लाल मिर्च, धनिया पाउडर, जीरा पाउडर, हल्दी, गरम मसाला, सौंफ पाउडर डालकर अच्छी तरह मिक्स करें.

-अब आप करेले को हाथ से निचोड़कर उसका अतिरिक्त पानी निकाल लें और फिर उसमें स्टफिंग भरें.

-इस रह आप सारे करेले तैयार कर लें. अब आप भुने हुए प्याज को एक बाउल में निकाल लें. वहीं पैन में दोबारा ऑयल डालें और फिर उसमें भरवां करेले डालकर पलट−पलटकर फ्राई करें. जब यह अच्छी तरह फ्राई हो जाए तो इसके उपर भुनी प्याज व दो चम्मच दही डालें.

-अब आखिरी में आप इसमें थोड़ा अनारदाना, लाल मिर्च, हल्दी पाउडर और गरम मसाला डालकर हल्के हाथों से मिक्स करें.

-आपके भरवां करेले बनकर तैयार है. इसे बनाने वालों का कहना है कि अगर इस तरह से करेले बनाए जाएं तो फिर कभी भी आपको करेले से चिढ़ नहीं होगी. बल्कि आप इसे बार−बार बनाना चाहेंगे.

मेरे घर के सामने : कैसे उड़ा हमारा दिन का चैन

मेरे घर के सामने एक कम्युनिटी हाल है, या अगर यों कहें कि कम्युनिटी हाल के सामने मेरा घर है तो भी घर की भौगोलिक स्थिति में कोई अंतर नहीं आएगा. कम्युनिटी हाल के सामने मेरा घर होना ही मेरी सब से बड़ी मुसीबत है. इस कम्युनिटी हाल में आएदिन ब्याहशादी, अन्य समारोह और पार्टियां आयोजित होती रहती हैं.

पर एक मुसीबत और भी है, वह यह कि मेरे घर के आंगन में एक आम का पेड़ भी है. बस, यों ही समझिए कि करेला और नीम चढ़ा जैसी स्थिति है. शुभकार्य हो और उस में आम के पत्तों का तोरण न बांधा जाए ऐसा हो ही नहीं सकता. कम्युनिटी हाल के सामने घर के आंगन में प्रवेशद्वार पर ही आम का पेड़ हो, इस का दर्द सिर्फ वही भुक्तभोगी जान सकता है जिस का घर कम्युनिटी हाल के सामने हो.

जैसे ही मेजबान कम्युनिटी हाल किराए पर ले कर अपना मंगलकार्य शुरू करता है, उस के कुछ देर बाद ही प्रभात वेला में मेरे दरवाजे की घंटी बजती है. संपन्न घर के कोई सज्जन या सजनी विनम्रता से पूछते हैं, ‘‘आप को कष्ट दिया. कुछ आम के पत्ते मिल सकेंगे क्या? बेटी की शादी है, मंडप में तोरण बांधना है. और सब सामान तो ले आए, पर देखिए, कैसे भुलक्कड़ हैं हम कि आम के पत्ते तो मंगाना ही भूल गए.’’

शायद उन्हें आम का पेड़ देख कर ही आम के पत्तों का तोरण बांधने की सूझती है. इनकार कैसे करना चाहिए, यह कला मुझे आज तक नहीं आई. हर बार यही होता है कि जरूरत से ज्यादा पत्ते तोड़ लिए जाते हैं. इन में से कुछ पत्ते मेरे साफसुथरे आंगन में इधरउधर बिखर कर बेमौसमी पतझड़ का आनंद देते हैं और कुछ पत्ते मेरे घर से कम्युनिटी हाल तक ले जाने में सड़क पर लावारिस से गिरते जाते हैं. जिन के घर विवाह हो रहा है, उन को इस की कोई चिंता नहीं होती. पर मुझे तो ऐसा महसूस होता है जैसे कोई मेरा रोमरोम मुझ से खींच कर ले जा रहा है. पर अपना यह दर्द मैं किस से कहूं? कैसे कहूं?

और यह तो इस दर्द की शुरुआत है. उस के बाद बड़ी देर तक ‘‘हैलो, माइक टेस्टिंग, हैलो’’ की मधुर ध्वनि के बाद फिल्मी गीतों के रिकार्ड पूरे जोर से बजने शुरू हो जाते हैं. उस पर तुर्रा यह कि माइक्रोफोन के भोंपू का मुंह हमेशा मेरे घर की ओर ही रहता है. ऐसा लगता है जैसे कि यह बहरों की बस्ती है. अगर धीमी आवाज में रिकार्ड बजता रहे तो हमें कैसे मालूम पड़ेगा कि सामने कम्युनिटी हाल में आज विवाह समारोह है? इस के बाद हमें दिन भर घर के अंदर भी एकदूसरे से चीख- चिल्ला कर बातचीत करनी पड़ती है, तभी एकदूसरे को सुनाई पड़ेगा.

इन रिकार्डों ने मेरे बच्चों की पढ़ाई का रिकार्ड बिगाड़ कर रख दिया है. धूमधाम और दिखावे के लिए ये लोग खूब खर्च करते हैं. पर एक बचत वे अवश्य करते हैं. पता चला कि इन सब के बिजली वाले इतने चतुर हैं कि इन की बचत के लिए बिजली का कनेक्शन गली के खंभे से ही लेते हैं ताकि कम्युनिटी हाल के मीटर के अनुसार बिजली का खर्च उन्हें नाममात्र ही अदा करना पड़े.

फिर आती है नगरनिगम की पानी की गाड़ी, जो ठीक मेरे घर के सामने आ कर खड़ी हो जाती है. इस गाड़ी से पानी अंदर पंडाल में पहुंचाने के प्रयत्न में जो पानी बहता है, वह ढलान के कारण मेरे आंगन में इकट्ठा हो जाता है. बस, सावनभादों सा सुहावना कीचड़भरा वातावरण बन जाता है. और फिर इस कीचड़ से सने पैरों के घर में आने के कारण घर का हर सदस्य मेरे कोप का भाजन बनता है. अकसर गृहयुद्ध छिड़ने की नौबत आ जाती है.

सामने शामियाने में जब भट्ठियां सुलगाई जाती हैं तब उन का धुआं हवा के बहाव के कारण बिन बुलाए मेहमान की तरह सीधा मेरे ही घर का रुख करता है. हवा भी मुझ से ऐसे समय न जाने किस जनम का बैर निकालती है. वनस्पति घी की मिठाई की खुशबू और तरहतरह के मसालों की महक से घर के सारे सदस्यों के नथने फड़क उठते हैं. परिणामस्वरूप सब की पाचन प्रणाली में खलबली मच जाती है.

आएदिन इस कम्युनिटी हाल में होने वाले ऐसे भव्य भोजों की खुशबू के कारण अब मेरे परिवार को मेरे हाथों की बनाई रूखीसूखी गले नहीं उतरती. रोज यही उलाहना सुनने को मिलता है, ‘‘क्या तुम ऐसा खाना नहीं बना सकतीं जैसा कम्युनिटी हाल में बनता है? कब तक ऐसा घासफूस जैसा खाना खिलाती रहोगी?’’ अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि सामने कम्युनिटी हाल में होने वाले समारोहों को बंद करा दूं या यह घर ही बदल लूं?

इस तरह सारा दिन तेज स्वर में बज रहे फूहड़ फिल्मी रिकार्डों से कान पकने लगते हैं और पकवानों की खुशबू से नाक फड़कती है. जैसेतैसे दिन गुजर जाता है. शाम को बरात आने का (यदि लड़की की शादी हो तो) या बरात विदा होने का (यदि लड़के की शादी हो तो) समय होता है, दिन भर में दिमाग की नसें तड़तड़ाने और कानों की फजीहत करने में जो कसर रह गई थी, उसे ये बैंडबाजे वाले पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. ऐन दरवाजे पर डटे हुए बैंडमास्टर अपनी सारी ताकत लगा कर बैंड बजा रहे हैं.

कुछ ही देर में कुछ नई उम्र की फसलें लहलहा कर डिस्को और भंगड़ा का मिलाजुला नृत्य करने लगती हैं. फिर तो ऐसा लगने लगता है जैसे बैंड वालों और नृत्य करने वालों के बीच कोई प्रतियोगिता चल रही है. नोट पर नोट न्योछावर होते हैं. यह क्रम बड़ी देर तक चलता है. मैं यही सोचती हूं कि कितना अच्छा होता अगर ये कान कहीं गिरवी रखे जा सकते. मैं अपने डाक्टर को कैसे बताऊं कि मेरे रक्तचाप बढ़ने का कारण मेरा मोटापा नहीं, बल्कि मेरे घर के सामने कम्युनिटी हाल का होना है. पर मैं जानती हूं कि इस तथ्य पर कोई विश्वास नहीं करेगा.

बड़ी मुश्किल से बरात आगे रेंगती है. गाढ़े मेकअप में सजीसंवरी कुंआरियों और सुहागनों की फैशन परेड और उन के चमकीले और भड़कीले गहनों व कपड़ों की नुमाइश देख कर मेरी पत्नी के हृदय पर सांप तो क्या अजगर लोटने लगता है. हाय, कित्ती सुंदरसुंदर साडि़यां हैं सब के पास, नए से नए फैशन की. अब की बार पति से ऐसी साड़ी की फरमाइश जरूर करूंगी, चाहे जो भी हो जाए. और देखो तो सही सब की सब गहनों से कैसी लदी हुई हैं.

मेरी दूरबीन जैसी आंखें एकएक के गहनों और कपड़ों की बारीकियां परखने लगती हैं. उस कांजीवरम साड़ी पर मोतियों का सेट कितना अच्छा लग रहा है. उस राजस्थानी घाघरा चोली पर यह सतलड़ी सोने का हार कितना फब रहा है. और झीनीझीनी शिफान की साड़ी पर हीरों का सेट पहने वह महिला तो बिलकुल रजवाड़ों के परिवार की सी लग रही है. पर कौन जाने ये हीरे असली हैं या नकली.

इन बरातनियों के गहनों और कपड़ों में उलझी हुई मैं बड़ी देर तक अपने होश खोए रहती हूं. मेरे घर के सामने कम्युनिटी हाल होने का यह सब से हृदयविदारक पहलू है. जैसेजैसे बरात आगे बढ़ती है, देसीविदेशी परफ्यूम की झीनीझीनी लपटें आआ कर मेरी खिड़की से टकराने लगती हैं और इस खुशबू में रचबस कर मैं एकदूसरे ही लोक में पहुंच जाती हूं.

बरात आ जाने के बाद तो कम्युनिटी हाल में चहलपहल, दौड़भाग तथा चीखपुकार और बढ़ जाती है. उपहारों के पैकेट थामे, सजेसंवरे दंपती एक के बाद एक चले आते हैं. उन के स्कूटर, मोटर आदि मेरे घर के सामने ही खड़े किए जाते हैं. घर में आनेजाने के लिए मार्ग बंद हो जाता है. और मेरा घर किसी टापू सा लगने लगता है.

कुछ जोड़े ऐसे भी हैं जिन्हें मैं ने इस कम्युनिटी हाल में होने वाले हर समारोह में शामिल होते देखा है. वे इन समारोहों में आमंत्रित रहते हैं या नहीं, पर उन के हाथों में एक लिफाफा अवश्य रहता है. वे इस लिफाफे को वरवधू को थमाते हैं या नहीं, यह तो वे ही जानें. मैं तो बस, इतना जानती हूं कि वे हमेशा तृप्त हो कर डकार लेते हुए रूमाल से मुंह पोंछते बाहर निकलते हैं.

लिफाफे में 11 रुपए रख कर, सूट पहन कर, सजसंवर कर किसी भी विवाह समारोह में जा कर छक कर भोजन कर के आना तो किसी होटल में जा कर भोजन करने से काफी सस्ता पड़ता है. कन्या पक्ष वाला यह समझता है कि बरातियों में से कोई है और वर पक्ष समझता है कि यह कन्या पक्ष का आमंत्रित है. ऐसे में उन्हें कोई यह पूछने नहीं आता कि ‘‘श्रीमान आप यहां कैसे पधारे?’’

मेरे घर की ऊपरी मंजिल से इस कम्युनिटी हाल का पिछला दरवाजा बहुत अच्छी तरह दिखाई देता है. वहां का आलम कुछ निराला ही रहता है. जैसे मिठाई देखते ही उस पर मक्खियां भिनभिनाने लगती हैं, वैसे ही कहीं शादीब्याह के समारोह होते देख मांगने वाले, परोसा लेने वाले पहले से ही इकट्ठे हो जाते हैं. इन के साथ ही गाय, सूअर, कुत्ते आदि भी अपनी क्षुधा शांति के लिए पिछले दरवाजे पर ऐसे इकट्ठे होते हैं मानो उन सब का सम्मेलन हो रहा हो.

हर पंगत के उठने के बाद जब पत्तलदोनों का ढेर पिछवाड़े फेंका जाता है, उस के बाद वहां इनसान और जानवर के बीच जूठी पत्तलों के लिए हाथापाई और छीनाझपटी का जो दृश्य सामने आता है उसे देख कर इनसानियत और न्याय पर से विश्वास उठ जाता है.

यह दृश्य देखे बगैर कोई विश्वास नहीं कर सकता कि लोग जूठन पर भी कितनी बुरी तरह टूट सकते हैं. उस के लिए मरने और मारने पर उतारू हो जाते हैं. गाय की पूंछ मरोड़ कर या उसे सींगों से धकिया कर और कुत्तों को लतिया कर उन के मुंहमारी हुई जूठी पत्तलों में से खाना बटोर कर अपनी टोकरी में रखने में इनसान को कोई हिचक नहीं, कोई शर्म नहीं. घर ले जा कर शायद वह इसी जूठन को अपने परिवारजनों के साथ बैठ कर चटखारे ले कर खाएगा.

गृहस्वामी या ब्याहघर का प्रमुख केवल 2 ही जगह मिल सकता है, या तो प्रमुख द्वार पर, जहां वह सजधज कर हर आमंत्रित का स्वागत करता है या पिछवाड़े के दरवाजे पर जहां वह हाथों में मोटा डंडा लिए जूठन पर मंडराते जानवरों और इनसानों को एकसाथ धकेलता है. साथ ही जूते, हलवाई व उस के साथ आए कारीगरों पर निगाह रखता है.

जैसेजैसे विवाह समारोह यौवन पर आता है कुछ बराती सुरा की बोतलें खोलने के लिए लालायित हो जाते हैं. बरातों में जाना और पीना तो आजकल एक तरह से विवाह का आवश्यक अंग माना जाने लगा है. कुछ ब्याहघरों में, जहां सुरापान की अनुमति नहीं मिलती है, उन के बराती अंदर कम्युनिटी हाल में बोतलें ले कर मेरे ही घर की ओट ले कर नीम अंधेरे में बैठ कर यह शुभकार्य संपन्न करते हैं.

मैं जानती हूं कि जैसेजैसे यह सुरा अपना रंग दिखाएगी, वैसेवैसे उन की वाणी मुखर होती जाएगी. उन की वाणी मुखर हो उस के पहले ही मुझे अपनी खिड़कियां और दरवाजे सब बंद कर के अंदर दुबक जाना पड़ता है.

वह जमाना गया, जब बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना हुआ करता था. परंतु मेरे घर की तरह ही जिस का घर कम्युनिटी हाल के सामने हो, वह बेगानी शादी में अब्दुल्ला कैसे बन सकता है? वैसे विवाह संपन्न होने के बाद जब घरबाहर के सब लोग विदा हो जाते हैं, तो वे कभी सफाई करवाने का कष्ट नहीं करते. उस से जो सड़ांध उठती है, उस से अब्दुल्ला तो क्या हर अड़ोसीपड़ोसी दीवाना हो जाता है.

दूसरे दिन ब्याह निबटा कर जब सारा कारवां गुजर जाता है, तब मैं भी ऐसी ही शांति की सांस लेती हूं जैसे कि मैं अपनी ही बेटी का ब्याह कर के निवृत्त हुई हूं.

खुशियों का समंदर : भाग 1

सूरत की सब से बड़ी कपड़ा मिल के मालिक सेठ लालचंद का इकलौता बेटा अचानक भड़के दंगे में मारा गया. दंगे में यों तो न जाने कितने लोगों की मौत हुई थी पर इस हाई प्रोफाइल ट्रैजडी की खबर से शहर में सनसनी सी फैल गई थी. गलियों में, चौक पर, घरघर में इसी दुर्घटना की चर्र्चा थी. फैक्टरी से घर लौटते समय दंगाइयों ने उस की गाड़ी पर बम फेंक दिया था. गाड़ी के साथ ही नील के शरीर के भी चिथड़े उड़ गए थे. कोई इसे सुनियोजित षड्यंत्र बता रहा था तो कोई कुछ और ही. जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं. जो भी हो, सेठजी के ऊपर नियति का बहुत बड़ा वज्रपात था. नील के साथ उस के मातापिता और नवविवाहिता पत्नी अहल्या सभी मृतवत हो गए थे. एक चिता के साथ कइयों की चिताएं जल गई थीं.

घर में चारों ओर मौत का सन्नाटा फैला हुआ था. 3 प्राणियों के घर में होश किसे था कि एकदूसरे को संभालते. दुख की अग्नि में जल रहे लालचंद अपने बाल नोच रहे थे तो उन की पत्नी सरला पर रहरह कर बेहोशी के दौरे पड़ रहे थे. अहल्या की आंखों में आंसुओं का समंदर सूख गया था. जिस मनहूस दिन से घर से अच्छेखासे गए नील को मौत ने निगल लिया था, उस पल से उस ने शायद ही अपनी पलकों को झपकाया था. उसे तो यह भी नहीं मालूम कि नील के खंडित, झुलसे शरीर का कब अंतिम संस्कार कर दिया गया. सेठजी के बड़े भाई और छोटी बहन का परिवार पहाड़ से आ गए थे, जिन्होंने घर को संभाल रखा था. फैक्टरी में ताला लग गया था.

4 दशक पहले लालचंद अपनी सारी जमापूंजी के साथ बिजनैस करने के सपने लिए इस शहर में आए थे. बिजनैस को जमाना हथेलियों पर पर्वत उतारना था, पर लालचंद की कर्मठता ने यह कर दिखाया. बिजनैस जमाने में समय तो लगा पर अच्छी तरह से जम भी गया. जब मिल सोना उगलने लगी तो उन्होंने एक और मिल खोल ली. शादी के 10 वर्षों बाद उन के आंगन में किलकारियां गूंजी थीं. बेटा नील के बाद दूसरी संतान की आशा में उन्होंने अपनी पत्नी का कितना डाक्टरी इलाज, झाड़फूंक, पूजापाठ करवाया, पर सरला की गोद दूसरी बार नहीं भरी. नील की परवरिश किसी राजकुमार की तरह ही हुई. और होती भी क्यों न, नील मुंह में सोने का चम्मच लिए पैदा जो हुआ था. नील भी बड़ा प्रतिभाशाली निकला. अति सुंदर व्यक्तित्व और अपनी विलक्षण प्रतिभा से सेठजी को गौरवान्वित करता. वह अहमदाबाद के बिजनैस स्कूल का टौपर बना. विदेशी कंपनियों से बड़ेबड़े औफर आए पर सेठजी का अपना बिजनैस ही इतना बड़ा था कि उसे कहीं जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी.

पिछले साल ही लालचंद ने अपने मित्र की बेटी अहल्या से नील की शादी बड़ी धूमधाम से की थी. अपार सौंदर्य और अति प्रतिभाशालिनी अहल्या के आने से उन के महल जैसे विशाल घर का कोनाकोना सज गया था. बड़े ही उत्साह व उमंगों के साथ सेठजी ने बेटेबहू को हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड भेजा था. जहां दोनों ने महीनाभर सोने के दिन और चांदी की रातें बिताई थीं. अहल्या और नील पतिपत्नी कम, प्रेमी और प्रेमिका ज्यादा थे. उन दोनों के प्यार, मनुहार, उत्साह, उमंगों से घर सुशोभित था. हर समय लालचंद और सरलाजी की आंखों के समक्ष एक नन्हेमुन्ने की आकृति तैरती रहती थी.

दादादादी बनने की उत्कंठा चरमसीमा पर थी. वे दोनों सारी लज्जा को ताक पर रख कर अहल्या और नील से अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए गुजारिश किया करते थे. प्रत्युत्तर में दोनों अपनी सजीली मुसकान से उन्हें नहला दिया करते थे. ये कोई अपने हाथ की बात थोड़े थी. उन की भी यही इच्छा थी कि एकसाथ ही ढेर सारे बच्चों की किलकारियों से यह आंगन गूंज उठे. पर प्रकृति तो कुछ और जाल बिछाए बैठी थी. पलभर में सबकुछ समाप्त हो गया था.

कड़कती बिजली गिर कर हंसतेखेलते आशियाने को क्यों न ध्वंस कर दे, लेकिन सदियों से चली आ रही पत्थर सरीखी सामाजिक परंपराओं को निभाना तो पड़ता ही है. मृत्यु के अंतिम क्रियाकर्म की समाप्ति के दिन सरला अपने सामने अहल्या को देख कर चौंक गई. शृंगाररहित, उदासियों की परतों में लिपटे, डूबते सूर्य की लाली सरीखे सौंदर्य को उन्होंने अब तक तो नहीं देखा था. सभी की आंखें चकाचौंध थीं. कैसे और कहां रख पाएगी ऐसे मारक सौंदर्य को. इसे समाज के गिद्धों की नजर से कैसे बचा पाएगी. अपने दुखों की ज्वाला में इस सदविधवा के अंतरमन में गहराते हाहाकार को वह कैसे भूल गई थी. उस की तो गोद ही उजड़ी है पर इस का तो सबकुछ ही नील के साथ चला गया. ‘‘उठिए मां, हमारे दुखों के रथ पर चढ़ कर नील तो आ नहीं सकते. इतने बड़े विध्वंस से ही हमें अपने मृतवत जीवन के सृजन की शुरुआत करनी है,’’ कहती हुई सरला को लालचंद के पास ले जा कर बैठा दिया. दोनों की आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को वह अपनी कांपती हथेलियों से मिटाने की असफल चेष्टा करती रही.

नील की जगह अब लालचंद के साथ अहल्या फैक्टरी जाने लगी थी. उस ने बड़ी सरलता से सबकुछ संभाल लिया. उस ने भले ही पहले नौकरी न की हो पर एमबीए की डिगरी तो थी ही उस के पास. सरला और लालचंद ने भी किसी तरह की रोकटोक नहीं की. अहल्या के युवा तनमन की अग्नि शांत करने का यही उपाय बच गया था. लालचंद की शारीरिक व मानसिक अवस्था इस काबिल नहीं थी कि वे कुछ कर सकें. नील ही तो सारी जिम्मेदारियों को अब तक संभाले हुए था. फैक्टरी की देखभाल में अहल्या ने दिनरात एक कर दिया. दुखद विगत को भूलने के लिए उसे कहीं तो खोना था. लालचंद और सरला भले ही अहल्या का मुंह देख कर जी रहे थे, पर उन के इस दुख का कोई किनारा दृष्टिगत नहीं हो रहा था. एक ओर उन दोनों का मृतवत जीवन और अनिद्य सुंदरी युवा विधवा अहल्या तो दूसरी तरफ उन की अकूत संपत्ति, फैला हुआ व्यापार और अहल्या पर फिसलती हुई लोगों की गिद्ध दृष्टियां. तनमन से टूटे वे दोनों कितने दिन तक जी पाएंगे. उन के बाद अकेली अहल्या किस के सहारे रहेगी.

समाज की कुत्सित नजरों के छिपे वार से उस की कौन रक्षा करेगा. इस का एक ही निदान था कि वे अहल्या की दूसरी शादी कर दें. लेकिन सच्चे मन से एक विधवा को अपनाएगा कौन? उस की सुंदरता और उन की दौलत के लोभ में बहुत सारे युवक तैयार तो हो जाएंगे पर वे कितनी खुशी उसे दे पाएंगे, यह सोचते हुए उन्होंने भविष्य पर सबकुछ छोड़ दिया. अभी जख्म हरा है, सोचते हुए अहल्या के दुखी मन को कुरेदना उन्होंने ठीक नहीं समझा. ऐसे ही समय बीत रहा था. न मिटने वाली उदासियों में जीवन का हलका रंग प्रवेश करने लगा था. फैक्टरी के काम से जब भी लालचंद बाहर जाते, अहल्या साथ हो लेती. काम की जानकारी के अलावा, वह उन्हें अकेले नहीं जाने देना चाहती थी. सरला ने भी उसे कभी रोका नहीं क्योंकि अब तो सभीकुछ अहल्या को ही देखना था. शिला बनी अहल्या के जीवन में खुशियों के रंग बिखर जाएं, इस के लिए दोनों प्रयत्नशील थे.

एक विधवा के लिए किसी सुयोग्य पात्र को ढूंढ़ लेना आसान भी नहीं था. सरला के चचेरे भाई आए तो थे मातमपुरसी के लिए पर अहल्या के लिए अपने बेटे के लिए सहमति जताई तो दोनों ही बिदक पड़े. इन के कुविख्यात नाटे, मोटे, काले, मूर्ख बेटे की कारगुजारियों से कौन अनजान था. पिछले साल ही पहाड़ की किसी नौकरानी की नाबालिग बेटी के बलात्कार के सिलसिले में पुलिस उसे गिरफ्तार कर के ले गई थी पर साक्ष्य के अभाव में छूट गया था. इन लोगों की नजर उन की अकूत संपत्ति पर थी, इतना तो लालचंद और सरला समझ ही गए थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें