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आकाश से भी ऊंचा : भाग 2

संजय ने रानो के ऊपर आने की पदचाप सुन ली थी. भाभी की बहन के रिश्ते से वह उस की साली लगती थी, इस से वह दिनरात उसे चिढ़ाता रहता था. उसे देखते ही वह पलट कर बोला, ‘‘आओ रानो, मेरे पास बैठो. लाओ, मैं तुम्हारे आंसू पोंछ दूं. बेचारी के आंसू पोंछने वाला ही कोई नहीं है.’’

संजय ने झटके से उस का हाथ पकड़ कर नीचे खींच लिया. झटके के कारण रानो उस के ऊपर जा गिरी. तभी वह हड़बड़ा कर संभल कर बैठ गई. फिर रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘मुझे नहीं अच्छा लगता संजय बाबू, ऐसा मजाक मुझ से मत किया करो. कोई देख ले, तो क्या कहे.’’

‘‘सही कहेगा कि जीजासाली में ठिठोली चल रही है.’’

वह उठने लगी तो संजय ने फिर हाथ पकड़ कर बैठा लिया.

‘‘अरे, बैठो न जरा,’’ कह कर वह शलभ की ओर इशारा करता हुआ बोला, ‘‘इन्हें पहचानती हो?’’

‘‘हां, बड़ी दीदी के देवर हैं,’’ कह कर उस ने हाथ जोड़ कर नमस्ते की तो शलभ ने हाथ जोड़ दिए.

‘‘सुना है आप गजलें बहुत अच्छा गाती हैं,’’ शलभ बोला.

‘‘ये संजय बाबू से ही सुना होगा. मैं तो बस यों ही थोड़ाबहुत गा लेती हूं.’’

‘‘स्वर बहुत मीठा है आप का. कल जरूर सुनूंगा.’’

‘‘और ये रो भी बहुत अच्छा लेती हैं, देखा न तुम ने?’’  संजय ने फिर कुरेदा, ‘‘अब जिस की नियति में रोना ही लिखा है वह तो रोएगा ही, हंसेगा कहां से.’’

रानो की आंखें फिर भर आईं. शलभ का अंतर कसक उठा.

संजय फिर बोला, ‘‘अरे रानो, कुदरत ने थोड़ी गलती ही तो कर दी. अगर तुम मुझ से 3 साल बड़ी न होतीं तो यकीन मानो, तुम्हें हंसाने को जबरन ब्याह लाता या फिर भगा ले जाता.’’

‘‘हटो, संजय, क्या तुम्हें इतना भी लिहाज नहीं कि कोई बैठा है. चाहे जैसा मजाक कर बैठते हो.’’

‘‘अच्छा चलो, यह बताओ, तुम ने बीए क्यों नहीं किया, घर में ही तो बैठी रहती हो?’’

‘‘कहां से कर लूं. किताबों और फीस के लिए ढेरों रुपए चाहिए. और फिर पढ़ाई के लिए समय भी.’’

‘‘क्या तुम्हारे बहनोई इतना भी नहीं कर सकते?’’ संजय के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘मेरे बहनोई ने तो बहुतकुछ कर दिया. पालपोस कर इंटर तक पढ़ा दिया. अब अपने बच्चों को भी तो देखेंगे. कोई लखपति तो हैं नहीं.’’

‘‘और एक लालची दूजिया के साथ फेरे भी दिलवा रहे थे. वह तो…’’

‘‘देखो संजय, फिर तुम…जिस के लिए मैं इधर आई वही…’’ आगे के शब्द वह नहीं कह पाई. साड़ी में मुंह छिपा कर रो पड़ी.

शलभ अब तक चुपचाप सुन रहा था. जब नहीं रहा गया तो बोल पड़ा, ‘‘क्या यार, तुम भी. जरा समय तो देखा करो. दुखी इंसान को और दुख देना. क्या मजाक है.’’

‘‘अरे शलभ, इस का बातबात पर रोना देख कर मजा आता है.’’

‘‘हांहां, किसी का घर जले और कोई कहे ताप लेने दो,’’ कहती हुई रानो उठ कर चल दी.

रानो को गए लगभग एक घंटा हो गया था. शलभ को नींद नहीं आ रही थी. तभी उसे पानी पीने की इच्छा हुई. वह नीचे गया.

आंगन के उस पार घड़े भरे रखे थे. कुछ औरतें फर्श पर सो रही थीं. रानो भभकती पैट्र्रोमैक्स उठा रही थी. शलभ को देखते ही शायद वह समझ गई कि वह पानी पीने आया है. पैट्रोमैक्स उठातेउठाते उस के हाथ रुक गए. मुड़ कर देखती हुई बोली, ‘‘क्या पानी पिएंगे आप?’’

तभी गैस का भभका उठा और हवा का झोंका रानो पर से गुजरता चला गया. नायलौन की साड़ी का लंबा पल्लू कब उड़ कर लौ से छू गया, रानो देख न पाईं, परंतु शलभ दमभर चीख कर दौड़ा, ‘‘आग…आग लग गई.’’

तभी सब की नजरें उधर ही उठ गईं. सारी औरतें हड़बड़ा करा चीखपुकार मचाती दौड़ीं.

‘‘साड़ी उतार फेंको, साड़ी उतार फेंको,’’ सब चीख पड़े पर जैसे वह सुन ही नही नहीं रही थी. शलभ ने विवेक से काम लिया. उस ने लपक कर साड़ी झटक कर दूर फेंक दी.

रानो हड़बड़ाई सी देखती खड़ी रह गई क्योंकि देखते ही देखते साड़ी राख के ढेर में बदल गई थी. सहसा जैसे उसे चेत आया. सब उसे घेरे पूछ रहे कि वह कहीं जली तो नहीं, परंतु रानो तो काठ सी सुन्न हो गई थी.

 

शलभ को खयाल आया कि वह हाथ से पल्लू की आग बुझा रही थी, सो, आगे बढ़ कर वह उस की हथेलियां उलटतापलटता बोला, ‘‘शुक्र है हथेलियां बच गईं.’’

तभी मानो रानो की चेतना लौटी, वह पेटीकोट-ब्लाऊज में खुद को देख कर शर्म से गड़ सी गई और हाथ छुड़ा कर कमरे में घुस गई.

‘‘भैया, आज तुम ने एक अनहोनी बचा ली. सच, अगर तुम न आते तो हम सब तो कुछ कर ही न पाते. दिमाग ही काम हीं कर रहा था कि क्या करें. रानो की जान बचा कर हम सब को भी भारी कलंक से बचा लिया, नहीं तो क्या होता. कोर्ट, कचहरी, पुलिस…सब रंग में भंग.’’

 

आकाश से भी ऊंचा-भाग 1: क्या रानो को अपना बना पाया शलभ

आधी रात बीतने के बावजूद शलभ की आंखों में नींद नहीं थी. शादी के घर में आधी तो क्या, पूरीपूरी रात जागरण हो जाता है, फिर मई की चढ़ती गरमी, ऊपर से बिजली बिना घर. शोरगुल हो ही रहा था.

थोड़ी ही देर में ढोलक की थाप के साथ ही बंसी सा मधुर स्वर गूंजा, ‘‘अरे सुन बाबुल मोरे, काहे को ब्याही विदेश…’’

शलभ ने नजदीक लेटे संजय की ओर देखा, वह आंखें मीचे पड़ा था. आंखें अलसाई थीं. ढोलक की थाप ने नींद उचटा दी थी.

‘‘संजय, कौन गा रहा है यह? बहुत मीठा स्वर है.’’

‘‘भाभी की चचेरी बहन रानो और मेरी भतीजी सुधा गा रही हैं. रानो गजलें बहुत अच्छी गाती है.’’

‘‘आई कहां से है?’’

‘‘हमीरपुर से.’’

‘‘रानो की शादी हो चुकी है क्या?’’

‘‘नहीं. एक तो मात्र इंटर तक पढ़ी है, दूसरे बहनबहनोई के पास कुछ देनेलेने को नहीं है.’’

‘‘क्या मांबाप नहीं हैं?’’

‘‘नहीं, कोई नहीं है. न भाई न अन्य कोई. एकमात्र बड़ी बहन रामेश्वरी के ऊपर निर्भर है. जब यह छोटी ही थी, तभी मांबाप मर गए थे.’’

गाना इतना मधुर था कि शलभ का मन बारबार उधर ही खिंच रहा था.

शलभ बड़े भाई की ससुराल आया था भाभी की बहन की शादी पर. भैया यदि बीमार न होते तो वह न आता. उस की 2 माह की छुट्टियां चल रही थीं, लिहाजा न चाहते हुए भी उसे आना पड़ा था.

एक तो प्रचंड गरमी, ऊपर से बिना बिजली का देहात. यहां आ कर वह पछता रहा था. कहां घर में सारे साधन, कहां यह फुंकता कसबा.

अब नींद शलभ की आंखों से कोसों दूर थी. नीचे से दूसरे गीत के बोल सुनाई पड़ रहे थे. लय की कडिय़ां थरथराती ऊपर आ रही थीं, ‘‘तनिक ठहरो तो बाबूजी डोला, बन्नी करे पुकार बन्नो मेरी लाड़ली…’’

तभी किसी के सिसकने की आवाज आने लगी. एकाएक ढोलक की थाप और गीत का स्वर थम गया. भाभी की बहन, जिस की शादी हो रही थी, भावावेश में आ कर मां की गोद में सिर डाले फूटफूट कर रो रही थी.

तभी रामेश्वरी बोली, ‘‘आग लगे तेरे गीत में रानो, तुझे कब अक्ल आएगी. क्यों गाई री बन्नी. देखती नहीं, इस के बोल बरछे से कलेजे में लगते हैं.’’

‘‘लो, तुम भी हद करती हो, रामेश्वरी. तुम्हीं सब ने तो जबरन उस से गवाया, अब ऊपर से उसे डांट रही हो. बन्नी तो होती ही ऐसी है.’’ कोई दूसरी बोली, ‘‘जिया, पर आजकल की पढ़ीलिखी, सयानी लड़कियां कहां रोती हैं इतना. खुशीखुशी डोली में चढ़ कर बैठ जाती हैं.’’

‘‘पर उमा तो 15 दिन से रो रही है, उस में रानो का क्या दोष भला. उसे वैसे ही डांट रही हो.’’

‘‘क्या करूं, जिया, जब मन कुढ़ता है तो ऐसे ही डांट देती हूं, फिर बाद में भले ही पछता लेती हूं. 2 साल हो गए जब दरवाजे से बरात लौट गई. यह लडक़ी मुझे दुश्मन सी दिखती हैं. ऐसे ग्रह ले कर जन्मी है कि होते ही तो मांबाप सिरा गए. एक बड़ा भाई था वह भी नहीं रहा. मैं ले आई तो यहां भी इस के ग्रहों ने रंग दिखाया. 3 बेटियों के बाद बेटे का मुंह देख पाई हूं. अब चारचार लड़कियों की चिंता खाए जा रही है. जैसेतैसे दुजिया वर जुटा पाए थे कि वे भी दहेज के पीछे भाग खड़े हुए. तब से कहीं भी बात नहीं बन पा रही है.’’

‘‘तो इस में रानो का क्या दोष?’’

‘‘यही तो इस की नियति है, है न?’’

‘‘अरे, धत, किस के कब दिन फिर जाएं. रूप और गुण में तो नंबर एक है तुम्हारी बहन. देखो, अब मैं तलाश में रहूंगी अच्छे लडक़ों की.’’

रानो अपने आंसू पोंछती हुई ऊपर चली गई.

 

अथ से इति तक -भाग 1 : सिनेमाघर के सामने प्रांजली को देखकर मां रुक क्यों गई?

‘‘चल न शांता, बड़ी अच्छी फिल्म लगी है ‘संगीत’ में. कितने दिन से घर से बाहर गए भी तो नहीं हैं…इन के पास तो कभी समय ही नहीं रहता है,’’ पति के कार्यालय तथा बच्चों के स्कूल, कालेज जाते ही शुभ्रा अपनी सहेली शांता के घर चली आई. ‘‘आज नहीं शुभ्रा, आज बहुत काम है. फिर मैं ने राजेश्वर को बताया भी नहीं है. अचानक ही बिना बताए चली गई तो न जाने क्या समझ बैठें,’’ शांता ने टालने का प्रयत्न किया. ‘‘लो सुनो, अरे, शादी को 20 वर्ष बीत गए, अब भी और कुछ समझने की गुंजाइश है?

ले, फोन उठा और बता दे भाईसाहब को कि तू आज मेरे साथ फिल्म देखने जा रही है.’’ ‘‘तू नहीं मानने वाली…चल, आज तेरी बात मान ही लेती हूं, तू भी क्या याद करेगी,’’ शांता निर्णयात्मक स्वर में बोली. निर्णय लेने भर की देर थी, फिर तो शांता ने झटपट पति को फोन किया. बेटी प्रांजलि के नाम पत्र लिख कर खाने की मेज पर फूलदान के नीचे दबा दिया और आननफानन में तैयार हो कर घर की चाबी पड़ोस में देते हुए दोनों सहेलियां बाहर सड़क पर आ गईं. ‘‘अकेले घूमनेफिरने का मजा ही कुछ और है. पति व बच्चों के साथ तो सदा ही जाते हैं, पर यह सब बड़ा रूढि़वादी लगता है. अब देखो,

केवल हम दोनों और यह स्वतंत्रता का एहसास, मानो हर आनेजाने वाले की निगाह हमें सहला रही हो,’’ शुभ्रा चहकते हुए बोली. ‘‘पता नहीं, मेरी तो इतनी उलटीसीधी बातें सोचने की आदत ही नहीं है,’’ शांता ने मुसकरा कर टालने का प्रयत्न किया. ‘‘अच्छा शांता, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ समय के लिए हमारी किशोरावस्था हमें वापस मिल जाए. फिर वही पंखों पर उड़ते से हलकेफुलके दिन, सपनीली पलकें लिए झुकीझुकी आंखें…’’ शुभ्रा, अपनी ही रौ में बोलती चली गई.

‘‘शुभ्रा, हम सड़क पर हैं. माना कि तुझे कविता कहने का बड़ा शौक है, पर कुछ तो शर्म किया कर…अब हम किशोरियां नहीं, अब हम किशोरियों की माताएं हैं. कोई ऐसी बातें सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’ शांता ने उसे चुप कराने के लिए कहा. ‘‘तू बड़ी मूर्ख है शांता, तू तो किशोरा- वस्था में भी दादीअम्मां की तरह उपदेश झाड़ा करती थी, अब तो फिर भी आयु हो गई, पर एक राज की बात बताऊं?’’ ‘‘क्या?’’ ‘‘कोई कह नहीं सकता कि तेरी 17-18 वर्ष की बेटी है,’’ शुभ्रा मुसकराई. ‘‘शुभ्रा, तू कभी बड़ी नहीं होगी, यह हमारी आयु है, ऐसी बातें करने की?’’ ‘‘लो भला, हमारी आयु को क्या हुआ है…विदेशों में तो हमारे बराबर की स्त्रियां रास रचाती घूमती हैं,’’ शुभ्रा ने शरारत भरा उत्तर दिया. इस से पहले कि शांता कोई उत्तर दे पाती, आटोरिकशा एक झटके के साथ रुका और दोनों सहेलियां वास्तविकता की धरती पर लौट आईं.

गिद्ध-भाग 1 : समाज के गिद्धों से बचने के लिए माही ने क्या किया ?

माही को सिंगापुर से आए हुए 15 दिन हो गए थे. शुरू के कुछ दिन माही को लग रहा था कि कर्ण उस के पीछेपीछे भागा हुआ आएगा. मगर जब 5 दिन बाद भी कर्ण का न कोई मैसेज आया और न ही फोन तो माही का माथा ठनका.

माही ने कर्ण को मैसेज किया,’तुम्हें क्या, मेरे होने या न होने से कोई फर्क नही पड़ता है…’

जवाब में कर्ण का मैसेज आया,’अपनी मरजी से गई हो अपनी मरजी से ही आना होगा…’

माही गुस्से में बिलबिला उठी. गुस्से में उस ने कर्ण को फोन लगाया,”तुम तो कहते थे कि मेरे बिना तूम जी नहीं सकते हो… मैं 15 दिनों से अपने घर पर हूं मगर तुम ने तो मुझे फोन ही नहीं किया.”

कर्ण गुस्से में बोला,” तुम मुझे अकेला छोड़ कर अपने पापा के घर आ गई थी। अगर तुम मुंबई के बजाय गाजियाबाद आतीं तो मैं तुम्हारी बात समझ सकता था। मगर तुम ने अपने घर की बात अब अपने मम्मीपापा के घर तक पहुंचा दी है। तुम ने तो अपने सात फेरों का जरा भी मान नहीं रखा है। आज भी तुम्हारे लिए अपने घर का मतलब तुम्हारे मम्मीपापा का घर ही है…”

माही के अहंकार को ठेस पहुंच गई. उस ने भी गुस्से में कह दिया,”ठीक है, ऐसी शादी से तो अच्छा अलग हो
जाना है.”

कर्ण पहले ही अपनी नईनवेली पत्नी के नखरों से परेशान था. इसलिए फोन रखते हुए बोला,”जैसी तुम्हारी मरजी.”

माही का मन कसैला हो उठा. मतलब कर्ण उन दोनों के बीच हुई हर छोटीबड़ी बात को अपने दिल से लगा
कर रखता है. माही गुस्से में कर्ण को कौल करने लगी. मगर कर्ण ने कौल नहीं उठाया. कुछ देर बाद माही ने गुस्से में कर्ण को ब्लौक कर दिया था. अब कर्ण न उसे मैसेज कर पाएगा और न ही फोन.

उधर कर्ण को माही का यस बचपना बिलकुल भी पसंद नहीं था. अगले दिन कर्ण ने माही को कितनी बार फोन किया मगर माही ने गुस्से में नहीं उठाया. कर्ण ने भी गुस्से में माही को ब्लौक कर दिया.

माही के मम्मीपापा को समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? आखिरकार माही के पापा ने कर्ण के पापा को फोन लगाया मगर कर्ण के पापा ने भी कहा,”भाई साहब, ऐसी बात फोन पर नही होती है. आप एक बार गाजियाबाद आ जाएं. हम मिल कर बात कर सकते हैं.”

मगर माही ने अपने मम्मीपापा को जाने नहीं दिया क्योंकि माही के अनुसार कर्ण के मम्मीपापा लड़के
वाले के अहंकार होने के कारण उन से बात नहीं करना चाहते हैं और उन्हें घर पर बुला रहे हैं.

बच्चा होने के बाद से मेरे पति का मन सेक्स में नहीं लगता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरा 5 महीने का बेबी है. मेरी उम्र 31 साल है. मेरे पति और मेरे बीच में वैसे तो सब ठीकठाक है लेकिन बेबी होने के बाद से मेरा सैक्स में मन नहीं लगता है. कहने का मतलब है, मैं सैक्स को एंजौय नहीं करती जैसे पहले करती थी. ध्यान बेबी में ही लगा रहता है. इस कारण पति भी मुझे ज्यादा फ़ोर्स नहीं करते लेकिन बुझेबुझे से रहते हैं. मैं ऐसा जानबूझ कर नहीं कर रहीपता नहीं क्यों अंदर से ही इच्छा नहीं होतीसब कहते हैं कि बच्चा होने के बाद पतिपत्नी और नजदीक आ जाते हैं लेकिन मेरे साथ तो उलटा ही हो रहा है. पति मुझ से दूर हो रहे हैं. मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा हैप्लीज मुझे बताइएमैं क्या करूं?

जवाब

आप जैसा बता रही हैं उसे देखते हुए लग रहा है ये सब आप में लिविडो की कमी के कारण है. टेस्टोस्टेरौन आदि हार्मोनों का स्तर कामेच्छा को प्रभावित करता है. कामेच्छा शरीर के स्वास्थ्य की स्थिति पर भी निर्भर है. आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद महिलाएं लिविडो की कमी महसूस करती हैं. एक बच्चे का जन्म जितना खूबसूरत और प्यारा होता है उतना ही जन्म देने वाली महिला की सेहत के लिए यह मुश्किल भी होता है क्योंकि इस दौरान महिलाएं तनावनींद की कमी और तरहतरह की शारीरिक समस्याओं से गुजरती हैं. ये सभी फैक्टर लिविडो की कमी का कारण बनते हैं. इस के साथ ही मां बनते जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं जिस की वजह से खुदबखुद सैक्स ड्राइव में कमी देखने को मिलती है.

ऐसा आप के साथ ही नहींकई महिलाओं के साथ ऐसा होता है क्योंकि बच्चे के बारे में वे बहुत ज्यादा स्ट्रैस लेना शुरू कर देती हैं. छोटे बच्चों के साथ कुछ न कुछ तो लगा ही रहता है लेकिन आजकल हर तरह का इलाज और बढ़िया से बढ़िया दवाइयां व बच्चों की केयर का हर तरह का सामान बाजार में उपलब्ध है. जिस से बच्चे का लालनपोषण बहुत अच्छे से होता है. बच्चे के पीछे पति को एवौयड करना समझदारी नहीं.

बच्चे की देखभाल में पति भी तो आप का साथ देते ही होंगे. आप खुद कह रही हैं कि पति आप को ज्यादा फ़ोर्स नहीं करते. सो, साफ जाहिर है कि वे भी आप की स्थिति को समझ रहे हैं. लेकिन आप खुद को थोड़ा नौर्मल रखने की कोशिश कीजिए. बच्चे से फुरसत मिले तो वह वक्त पति को दीजिए. पति को खुश रखना भी तो आप की जिम्मेदारी है. पति को खुश रखेंगी, तो वे भी आप को खुश रखेंगेताली दोनों हाथ से बजती है. इसलिए खुश रहिएसबकुछ जल्दी ही सामान्य हो जाएगा.

 

अपारदर्शी सच : तनुजा और मनीष के बीच कैसा खालीपन था

रात के 11 बज चुके थे. तनुजा की आंखें नींद और इंतजार से बोझिल हो रही थीं. बच्चे सो चुके थे. मम्मीजी और मनीष लिविंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे. तनुजा का मन हो रहा था कि मनीष को आवाज दे कर बुला ले, लेकिन मम्मी की उपस्थिति के लिहाज के चलते उसे ठीक नहीं लगा. पानी पीने के लिए किचन में जाते हुए उस ने मनीष को देखा पर उन का ध्यान नहीं गया. पानी पी कर भी अतृप्त सी वह वापस कमरे में आ गई.

बिस्तर पर बैठ कर उस ने एक नजर कमरे पर डाली. उस ने और मनीष ने एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रख कर इस कमरे को सजाया था.

हलके नीले रंग की दीवारों में से एक पर खूबसूरत पहाड़ी, नदी से गिरते झरने और पेड़ों की पृष्ठभूमि से सजी पूरी दीवार के आकार का वालपेपर. खिड़कियों पर दीवारों से तालमेल बिठाते नैट के परदे, फर्श से छत तक की अलमारियां, तरहतरह के सौंदर्य प्रसाधनों से भरी अंडाकार कांच की ड्रैसिंगटेबल, बिस्तर पर साटन की रौयल ब्लू चादर और टेबल पर सजा महकते रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता. उसे लगा, सभी मनीष का इंतजार कर रहे हैं.

तनुजा की आंख खुली, तब दिन चढ़ आया था. उस का इंतजार अभी भी बदन में कसमसा रहा था. मनीष दोनों हाथ बांधे बगल में खर्राटे ले कर सो रहे थे. उस का मन हुआ, उन दोनों बांहों को खुद ही खोल कर उन में समा जाए और कसमसाते इंतजार को मंजिल तक पहुंचा दे. लेकिन घड़ी ने इस की इजाजत नहीं दी. फुरफुराते एहसासों को जूड़े में लपेटते वह बाथरूम चली गई.

बेटे ऋषि व बेटी अनु की तैयारी करते, सब का नाश्ताटिफिन तैयार करते, भागतेदौड़ते खुद की औफिस की तैयारी करते हुए भी रहरह कर एहसास कसमसाते रहे. उस ने आंखें बंद कर जज्बातों को जज्ब करने की कोशिश की, तभी सासुमां किचन में आ गईं. वह सकपका गई. उस ने झटके से आंखें खोल लीं और खुद को व्यस्त दिखाने के लिए पास पड़ा चाकू उठा लिया पर सब्जी तो कट चुकी थी, फिर उस ने करछुल उठा लिया और उसे खाली कड़ाही में चलाने लगी. सासुमां ने चश्मे की ओट से उसे ध्यान से देखा.

कड़ाही उस के हाथ से छूट गई और फर्श पर चक्कर काटती खाली कड़ाही जैसे उस के जलते एहसास उस के जेहन में घूमने लगे और वह चाह कर भी उन्हें थाम नहीं पाई.

एक कोमल स्पर्श उस के कंधों पर हुआ. 2 अनुभवी आंखों में उस के लिए संवेदना थी. वह शर्मिंदा हुई उन आंखों से, खुद को नियंत्रित न कर पाने से, अपने यों बिखर जाने से. उस ने होंठ दबा कर अपनी रुलाई रोकी और तेजी से अपने कमरे में चली गई.

बहुत कोशिश करने के बावजूद उस की रुलाई नहीं रुकी, बाथरूम में शायद जी भर रो सके. जातेजाते उस की नजर घड़ी पर पड़ी. समय उस के हाथ में न था रोने का. तैयार होतेहोते तनुजा ने सोते हुए मनीष को देखा. उस की बेचैनी से बेखबर मनीष गहरी नींद में थे.

तैयार हो कर उस ने खुद को शीशे में निहारा और खुद पर ही मुग्ध हो गई. कौन कह सकता है कि वह कालेज में पढ़ने वाले बच्चों की मां है? कसी हुई देह, गोल चेहरे पर छोटी मगर तीखी नाक, लंबी पतली गरदन, सुडौल कमर के गिर्द लिपटी साड़ी से झांकते बल. इक्कादुक्का झांकते सफेद बालों को फैशनेबल अंदाज में हाईलाइट करवा कर करीने से छिपा लिया है उस ने. सब से बढ़ कर है जीवन के इस पड़ाव का आनंद लेती, जीवन के हिलोरों को महसूस करते मन की अंगड़ाइयों को जाहिर करती उस की खूबसूरत आंखें. अब बच्चे बड़े हो कर अपने जीवन की दिशा तय कर चुके हैं और मनीष अपने कैरियर की बुलंदियों पर हैं. वह खुद भी एक मुकाम हासिल कर चुकी है. भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति है जो उस के चेहरे, आंखों, चालढाल से छलकती है.

मनीष उठ चुके थे. रात के अधूरे इंतजार के आक्रोश को परे धकेल एक मीठी सी मुसकान के साथ उस ने गुडमौर्निंग कहा. मनीष ने एक मोहक नजर उस पर डाली और उठ कर उसे बांहों में भर लिया. रीढ़ में फुरफुरी सी दौड़ गई. कसमसाती इच्छाएं मजबूत बांहों का सहारा पा कर कुलबुलाने लगीं. मनीष की आंखों में झांकते हुए तपते होंठों को उस के होंठों के पास ले जाते शरारत से उस ने पूछा, ‘‘इरादा क्या है?’’ मनीष जैसे चौंक गए, पकड़ ढीली हुई, उस के माथे पर चुंबन अंकित करते, घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इरादा तो नेक ही है, तुम्हारे औफिस का टाइम हो गया है, तुम निकल जाना.’’ और वे बाथरूम की तरफ बढ़ गए.

जलते होंठों की तपन को ठंडा करने के लिए आंसू छलक पड़े तनुजा के. कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही उपेक्षित, अवांछित. फिर मन की खिन्नता को परे धकेल, चेहरे पर पाउडर की एक और परत चढ़ा, लिपस्टिक की रगड़ से होंठों को धिक्कार कर वह कमरे से बाहर निकल गई.

करीब सालभर पहले तक सब सामान्य था. मनीष और तनुजा जिंदगी के उस मुकाम पर थे जहां हर तरह से इतमीनान था. अपनी जिंदगी में एकदूसरे की अहमियत समझतेमहसूस करते एकदूसरे के प्यार में खोए रहते.

इस निश्चितता में प्यार का उछाह भी अपने चरम पर था. लगता, जैसे दूसरा हनीमून मना रहे हों जिस में अब उत्सुकता की जगह एकदूसरे को संपूर्ण जान लेने की तसल्ली थी. मनीष अपने दम भर उसे प्यार करते और वह पूरी शिद्दत से उन का साथ देती. फिर अचानक यों ही मनीष जल्दी थकने लगे तो उसी ने पूरा चैकअप करवाने पर जोर दिया.

सबकुछ सामान्य था पर कुछ तो असामान्य था जो पकड़ में नहीं आया था. वह उन का और ध्यान रखने लगी. खाना, फल, दूध, मेवे के साथ ही उन की मेहनत तक का. उस की इच्छाएं उफान पर थीं पर मनीष के मूड के अनुसार वह अपने पर काबू रखती. उस की इच्छा देखते मनीष भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते लेकिन वह अतृप्त ही रह जाती.

हालांकि उस ने कभी शब्दों में शिकायत दर्ज नहीं की, लेकिन उस की झुंझलाहट, मुंह फेर कर सो जाना, तकिए में मुंह दबा कर ली गई सिसकियां मनीष को आहत और शर्मिंदा करती गईं. धीरेधीरे वे उन अंतरंग पलों को टालने लगे. तनुजा कमरे में आती तो मनीष कभी तबीयत खराब होने का बहाना बनाते, कभी बिजी होने की बात कर लैपटौप ले कर बैठ जाते.

कुछकुछ समझते हुए भी उसे शक हुआ कि कहीं मनीष का किसी और से कोई चक्कर तो नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है जो व्यक्ति शाम होते ही उस के आसपास मंडराने लगता था वह अचानक उस से दूर कैसे होने लगा? लेकिन उस ने यह भी महसूस किया कि मनीष अब भी उस से प्यार करते हैं. उस की छोटीछोटी खुशियां जैसे सप्ताहांत में सिनेमा, शौपिंग, आउटिंग सबकुछ वैसा ही तो था. किसी और से चक्कर होता तो उसे और बच्चों को इतना समय वे कैसे देते? औफिस से सीधे घर आते हैं, कहीं टूर पर जाते नहीं.

शक का कीड़ा जब कुलबुलाता है तब मन जितना उस के न होने की दलीलें देता है उतना उस के होने की तलाश करता. कभी नजर बचा कर डायरी में लिखे नंबर, तो कभी मोबाइल के मैसेज भी तनुजा ने खंगाल डाले पर शक करने जैसा कुछ नहीं मिला.

उस ने कईकई बार खुद को आईने में निहारा, अंगों की कसावट को जांचा, बातोंबातों में अपनी सहेलियों से खुद के बारे में पड़ताल की और पार्टियों, सोशल गैदरिंग में दूसरे पुरुषों की नजर से भी खुद को परखा. कहीं कोई बदलाव, कोई कमी नजर नहीं आई. आज भी जब पूरी तरह से तैयार होती है तो देखने वालों की नजर एक बार उस की ओर उठती जरूरी है.

हर ऐसे मौकों पर कसौटी पर खरा उतरने का दर्प उसे कुछ और उत्तेजित कर गया. उस की आकांक्षाएं कसमसाने लगीं. वह मनीष से अंतरंगता को बेचैन होने लगी और मनीष उन पलों को टालने के लिए कभी काम में, कभी बच्चों और टीवी में व्यस्त होने लगे.

अधूरेपन की बेचैनी दिनोंदिन घनी होती जा रही थी. उस दिन एक कलीग को अपनी ओर देखता पा कर तनुजा के अंदर कुछ कुलबुलाने लगा, फुरफुरी सी उठने लगी. एक विचार उस के दिलोदिमाग में दौड़ कर उसे कंपकंपा गया. छी, यह क्या सोचने लगी हूं मैं? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती. मेरे मन में यह विचार आया भी कैसे? मनीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, प्यार का मतलब सिर्फ यही तो नहीं है. कितना धिक्कारा था तनुजा ने खुद को लेकिन वह विचार बारबार कौंध जाता, काम करते हाथ ठिठक जाते, मन में उठती हिलोरें पूरे शरीर को उत्तेजित करती रहीं.

अतृप्त इच्छाएं, हर निगाह में खुद के प्रति आकर्षण और उस आकर्षण को किस अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, वह यह सोचने लगी. संस्कारों के अंकुश और नैसर्गिक प्यास की कशमकश में उलझी वह खोईखोई सी रहने लगी.

उस दिन दोपहर तक बादल घिर आए थे. खाना खा कर वह गुदगुदे कंबल में मनीष के साथ एकदूसरे की बांहों में लिपटे हुए कोई रोमांटिक फिल्म देखना चाहती थी. उस ने मनीष को इशारा भी किया जिसे अनदेखा कर मनीष ने बच्चों के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया. वे नासमझ बन तनुजा से नजरें चुराते रहे, उस के घुटते दिल को नजरअंदाज करते रहे. वह चिढ़ गई. उस ने जाने से मना कर दिया, खुद को कमरे में बंद कर लिया और सारा दिन अकेले कमरे में रोती रही.

तनुजा ने पत्रपत्रिकाएं, इंटरनैट सब खंगाल डाले. पुरुषों से जुड़ी सैक्स समस्याओं की तमाम जानकारियां पढ़ डालीं. परेशानी कहां है, यह तो समझ आ गया लेकिन समाधान? समाधान निकालने के लिए मनीष से बात करना जरूरी था. बिना उन के सहयोग के कोई समाधान संभव ही नहीं था. बात करना इतना आसान तो नहीं था.

शब्दों को तोलमोल कर बात करना, एक कड़वे सच को प्रकट करना इस तरह कि वह कड़वा न लगे, एक ऐसी सचाई के बारे में बात करना जिसे मनीष पहले से जानते हैं कि तनुजा इसे नहीं जानती और अब उन्हें बताना कि वह भी इसे जानती है, यह सब बताते हुए भी कोई आक्षेप, कोई इलजाम न लगे, दिल तोड़ने वाली बात पर दिल न टूटे, अतिरिक्त प्यारदेखभाल के रैपर में लिपटी शर्मिंदगी को यों सामने रखना कि वह शर्मिंदा न करे, बेहद कठिन काम था.

दिन निकलते गए. कसमसाहटें बढ़ती गईं. अतृप्त प्यास बुझाने के लिए वह रोज नए मौकेरास्ते तलाशती रही. समाज, परिवार और बच्चे उस पर अंकुश लगाते रहे. तनुजा खुद ही सोचती कि क्या इस एक कमी को इस कदर खुद पर हावी होने देना चाहिए? तो कभी खुद ही इस जरूरी जरूरत के बारे में सोचती जिस के पूरा न होने पर बेचैन होना गलत भी तो नहीं. अगर मनीष अतृप्त रहते तो क्या ऐसा संयम रख पाते? नहीं, मनीष उसे कभी धोखा नहीं देते या शायद उसे कभी पता ही नहीं चलने देते.

निशा उस की अच्छी सहेली थी. उस से तनुजा की कशमकश छिपी न रह सकी. तनुजा को दिल का बोझ हलका करने को एक साथी तो मिला जिस से सहानुभूति के रूप में फौरीतौर पर राहत मिल जाती थी. निशा उसे समझाती तो थी पर क्या वह समझना चाहती है, वह खुद भी नहीं समझ पाती थी. उस ने कई बार इशारे में उसे विकल्प तलाशने को कहा तो कई बार इस के खतरे से आगाह भी किया. कई बार तनुजा की जरूरत की अहमितयत बताई तो कई बार समाज, संस्कार के महत्त्व को भी समझाया. तनुजा की बेचैनी ने उस के मन में भी हलचल मचाई और उस ने खुद ही खोजबीन कर के कुछ रास्ते सुझाए.

धड़कते दिल और डगमगाते कदमों से तनुजा ने उस होटल की लौबी में प्रवेश किया था. साड़ी के पल्लू को कस कर लपेटे वह खुद को छिपाना चाह रही थी पर कितनी कामयाब थी, नहीं जानती. रिसैप्शन पर बड़ी मुश्किल से रूम नंबर बता पाई थी. कितनी मुश्किल से अपने दिल को समझा कर वह खुद को यहां तक ले कर आई थी. खुद को लाख मनाने और समझाने पर भी एक व्यक्ति के रूप में खुद को देख पाना एक स्त्री के लिए कितना कठिन होता है, यह जान रही थी.

अपनी इच्छाओं को एक दायरे से बाहर जा कर पूरा करना कितना मुश्किल होता है, लिफ्ट से कमरे तक जाते यही विचार उस के दिमाग को मथ रहे थे. कमरे की घंटी बजा कर दरवाजा खुलने तक 30 सैकंड में 30 बार उस ने भाग जाना चाहा. दिल बुरी तरह धड़क रहा था. दरवाजा खुला, उस ने एक बार आसपास देखा और कमरे के अंदर हो गई. एक अनजबी आवाज में अपना नाम सुनना भी बड़ा अजीब था. फुरफुराते एहसास उस की रीढ़ को झुनझुना रहे थे. बावजूद इस के, सामने देख पाना मुश्किल था. वह कमरे में रखे एक सोफे पर बैठ गई, उसे अपने दिमाग में मनीष का चेहरा दिखाई देने लगा.

क्या वह ठीक कर रही? इस में गलत क्या है? आखिर मैं भी एक इंसान हूं. अपनी इच्छाएं, अपनी जरूरतें पूरी करने का हक है मुझे. मनीष को पता चला तो?

कैसे पता चलेगा, शहर के इस दूसरे कोने में घरऔफिस से दसियों किलोमीटर दूर कुछ हुआ है, इस की भनक तक इतनी दूर नहीं लगेगी. इस के बाद क्या वह खुद से नजरें मिला पाएगी? यह सब सोच कर उस की रीढ़ की वह सनसनाहट ठंडी पड़ गई, उठ कर भाग जाने का मन हुआ. वह इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती. मनीष, मम्मी, बच्चे, जानपहचान वाले, रिश्तेदार सब की नजरों में वह नहीं गिर सकती.

वेटर 2 कौफी रख गया. कौफी की भाप के उस पार 2 आंखें उसे देख रही थीं. उन आंखों की कामुकता में उस के एहसास फिर फुरफुराने लगे. उस ने अपने चेहरे से हो कर गरदन, वक्ष पर घूमती उन निगाहों को महसूस किया. उस के हाथ पर एक स्पर्श उस के सर्वांग को थरथरा गया. उस ने आंखें बंद कर लीं. वह स्पर्श ऊपर और ऊपर चढ़ते बाहों से हो कर गरदन के खुले भाग पर मचलने लगा. उस की अतृप्त कामनाएं सिर उठाने लगीं. अब वह सिर्फ एक स्त्री थी हर दायरे से परे, खुद की कैद से दूर, अपनी जरूरतों को समझने वाली, उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखने वाली.

सहीगलत की परिभाषाओं से परे अपनी आदिम इच्छाओं को पूरा करने को तत्पर वह दुनिया के अंतिम कोने तक जा सकने को तैयार, उस में डूब जाने को बेचैन. तभी वह स्पर्श हट गया, अतृप्त खालीपन के झटके से उस ने आंखें खोल दीं. आवाज आई, ‘कौफी पीजिए.’

कामुकता से मुसकराती 2 आंखें देख उसे एक तीव्र वितृष्णा हुई खुद से, खुद के कमजोर होने से और उन 2 आंखों से. होटल के उस कमरे में अकेले उस अपरिचित के साथ यह क्या करने जा रही थी वह? वह झटके से उठी और कमरे से बाहर निकल गई. लगभग दौड़ते हुए वह होटल से बाहर आई और सामने से आती टैक्सी को हाथ दे कर उस में बैठ गई. तनुजा बुरी तरह हांफ रही थी. वह उस रास्ते पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

दोनों ओर स्थितियां चरम पर थीं. दोनों ही अंदर से टूटने लगे थे. ऐसे ही जिए जाने की कल्पना भयावह थी. उस रात तनुजा की सिसकियां सुन मनीष ने उसे सीने से लगा लिया. उस का गला रुंध गया, आंसू बह निकले. ‘‘मैं तुम्हारा दोषी हूं तनु, मेरे कारण…’’

तनु ने उस के होंठों पर अपनी हथेली रख दी, ‘‘ऐसा मत कहो, लेकिन मैं करूं क्या? बहुत कोशिश करती हूं लेकिन बरदाश्त नहीं कर पाती.’’

‘‘मैं तुम्हारी बेचैनी समझता हूं, तनु,’’ मनीष ने करवट ले कर तनुजा का चेहरा अपने हाथों में ले लिया, ‘‘तुम चाहो तो किसी और के साथ…’’ बाकी के शब्द एक बड़ी हिचकी में घुल गए.

वह बात जो अब तक विचारों में तनुजा को उकसाती थी और जिसे हकीकत में करने की हिम्मत वह जुटा नहीं पाई थी, वह मनीष के मुंह से निकल कर वितृष्णा पैदा कर गई.

तनुजा का मन घिना गया. उस ने खुद ऐसा कैसे सोचा, इस बात से ही नफरत हुई. मनीष उस से इतना प्यार करते हैं, उस की खुशी के लिए इतनी बड़ी बात सोच सकते हैं, कह सकते हैं लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएगी? क्या ऐसा करना ठीक होगा? नहीं, कतई नहीं. उस ने दृढ़ता से खुद से कहा.

जो सच अब तक संकोच और शर्मिंदगी का आवरण ओढ़े अपारदर्शी बन कर उन के बीच खड़ा था, आज वह आवरण फेंक उन के बीच था और दोनों उस के आरपार एकदूसरे की आंखों में देख रहे थे. अब समाधान उन के सामने था. वे उस के बारे में बात कर सकते थे. उन्होंने देर तक एकदूसरे से बातें कीं और अरसे बाद एकदूसरे की बांहों में सो गए एक नई सुबह में उठने के लिए.

Summer Special: गरमी में खाएं जामुन से बनी ये 3 टेस्टी डिश

गर्मी के मौसम में जामुन खाना बेहद लाभदायक होता हैं ऐसे में अगर आप चाहें तो जामुन का कई तरह से डिश बनाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं, तो आइए जानते हैं कैसे बनाएं इसे.

जामुन का स्क्वैश

सामग्री :

जामुन का रस 1 लिटर,

साइट्रिक एसिड 20 ग्राम,

पोटैशियम मेटाबाइसल्फाइट 1 ग्राम,

चीनी 1 किलोग्राम,

पानी 200 मिलीलिटर.

बनाने की विधि :

काले रंग वाली जामुन को धो कर हाथ से उन की गुठली निकाल दें. गूदे को थोड़े समय के लिए गरम पानी में डाल कर कपड़े में बांध कर रस निकाल लें. चीनी को पानी में मिला कर उबलने के लिए स्टेनलैस स्टील के बरतन में रख कर आग में पकाएं, फिर साइट्रिक एसिड डालें.

जब चीनी का मैल ऊपर तैरने लगे, तब उस को छलनी या कपड़े से बांध कर अलग कर दें. चाशनी ठंडी होने पर तैयार जामुन का रस मिला दें. अब आधी कटोरी स्क्वैश ले कर उस में सोडियम बेंजोएट डाल कर भलीभांति मिला दें. साफ और सूखी बोतलों में भर कर मोम लगा दें, ताकि उस में हवा न जा सके. बोतल को सूखे और ठंडे स्थान पर रखें.

  1. जामुन का सिरका

सामग्री

जामुन का रस 1 किलोग्राम,

खमीर टिकिया

बनाने की विधि :

जामुन का सिरका काफी लोकप्रिय है. इस को बनाने के लिए जामुन के रस में चीनी मिला दें. फिर खमीर की टिकिया को अच्छी तरह पीस कर और घोल कर पूरे जामुन के रस में मिलाएं. अब रस को किसी मिट्टी के बरतन में रख कर ढक दें. एल्कोहल बनने तक इंतजार करें. जब पूरा एल्कोहल बन जाए तो उस में कच्चा सिरका मिलाएं, फिर उस के एल्कोहल को एसिटिक एसिड में बदलने तक इंतजार करें. जब सिरके में खुशबू आने लगे, तब साफ और सूखी कीटाणुरहित बोतल में भर दें.

  1. जमुकोला

जामुन का स्वादिष्ठ पर जमुकोला कोल्ड ड्रिंक की तरह तैयार किया जाता है, जो काफी सस्ता और पौष्टिक होता है.

सामग्री

जामुन का रस 1.50 ग्राम,

चीनी 100 ग्राम,

पानी 500 ग्राम,

साइट्रिक एसिड 2 ग्राम

बनाने की विधि :

अच्छे पके हुए जामुन ले कर और धो कर मसल लें. इस मिश्रण को एक बार उबाल लें, फिर बीज अलग कर के गूदे को छलनी से छान लें. फिर छने हुए रस में चीनी और साइट्रिक एसिड डाल कर अच्छी तरह घुल जाने तक मिलाएं. उस के बाद इस मिश्रण को कपड़े से छान लें, फिर जामुन का रस मिला कर बोतल में भर कर ठंडे पानी में मिला कर सेवन करें.

पढ़ाई टैंशन नहीं बने पैशन

सीबीएसई की 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम घोषित होने से पहले छात्रों के साथसाथ मातापिता की धड़कनें भी तेज गति से चल रही थीं, मानो परिणाम छात्रों का नहीं मातापिता का आ रहा हो. आखिरकार वह क्षण भी आ गया जब परिणाम घोषित हो गए. कुछ छात्रों व अभिभावकों के चेहरे पर जहां खुशी की लहर दौड़ गई वहीं कुछ छात्र मनमुताबिक परिणाम न आने पर निराशा में डूब गए और 2 छात्राओं ने तो खराब रिजल्ट आने पर जान तक दे दी.

दरअसल, आज कंपीटिशन के तेजी से बढ़ते दौर में अभिभावकों ने बच्चों द्वारा अच्छे अंक लाने को अपना प्रैस्टिज इश्यू बना लिया है जिस के चलते कई बार बच्चे डिप्रैशन तक में चले जाते हैं और आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम भी उठा लेते हैं.

अभिभावक यह चाहते हैं कि उन का बच्चा हर कंपीटिशन में खरा उतरे. इस के लिए वे अपने बच्चों पर कई तरह के जायज और नाजायज प्रैशर बनाए रखते हैं. मांबाप अकसर यह कहते सुने जाते हैं कि फलाने का बेटा कितना पढ़ता है, हर परीक्षा में 90 प्रतिशत से ऊपर अंक लाता है. कोई मम्मी अपने बेटे से कहती है कि देखो, पड़ोस वाली आंटी का बेटा इतना अच्छा गाता है कि टीवी के रिऐलिटी शो में हिस्सा ले रहा है, तुम कुछ करते ही नहीं हो. कोई पिता अपने बेटे से यह कहते सुना जाता है कि किसी भी हाल में इस साल तुम्हें आईआईटी के टैस्ट में पास होना ही है वरना औफिस में दोस्तों के बीच मेरी नाक कट जाएगी.

मगध विश्वविद्यालय के प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि आज की भागमभाग जिंदगी में अभिभावक के पास बच्चों के लिए वक्त नहीं है. बच्चा कब स्कूल जाता है, कब आता है, स्कूल में क्या पढ़ता है, पढ़ाई में कैसा है, उस की दिलचस्पी किस चीज में है, वह क्या बनना चाहता है, किस सब्जैक्ट को पढ़ना उसे भाता है, इन सब बातों को जानने और समझने की फुरसत मातापिता के पास नहीं है. वे केवल बच्चों की मार्क्सशीट पर अच्छे अंक देखना चाहते हैं. इस के लिए वे अपने बच्चों पर हर तरह का प्रैशर बनाने से नहीं चूकते. हालांकि इस का बच्चों पर उलटा और काफी बुरा असर पड़ता है.

बच्चों को बेहतर पढ़ाई का माहौल मुहैया कराने की चिंता और सोच ज्यादातर पैरेंट्स के पास नहीं है. बच्चे कैसे बेहतर पढ़ाई करें या कैसे अपनी हौबी को डैवलप करें, यह कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को नहीं बताता. बच्चे को सही राह दिखाना अभिभावक का ही काम है. अगर बच्चा टैलैंटेड है और उसे सही राह दिखाई जाए तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता. बच्चों का एनजीओ चलाने वाले डा. दिवाकर तेजस्वी का मानना है कि आज कंपीटिशन के दौर में बच्चों में कंपीटिशन और खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने का भाव जगा कर ही उन की मानसिक और शारीरिक क्षमता को विकसित किया जा सकता है, लेकिन इस के लिए अभिभावक को ऊटपटांग और अव्यावहारिक तरीके नहीं अपनाने चाहिए.

पटना के डीएवी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाला छात्र मयंक कहता है कि वह बचपन से पढ़ाई में अच्छा था और उस के पैरेंट्स ने अच्छे अंक लाने और हौबी को निखारने के लिए कभी कोई दबाव नहीं बनाया. उन लोगों ने अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया और घर पर पढ़ाई का बेहतर माहौल दिया, जिस से उस की पढ़ाईलिखाई मजबूत होती गई. न्यू ऐरा पब्लिक स्कूल की पिं्रसिपल नीना कुमार कहती हैं कि कंपीटिशन से बच्चों में प्रथम आने की भावना जागती है. उन्होंने कहा कि बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने के साथसाथ माता और पिता को चाहिए कि बच्चों के आसपास के माहौल और उन के स्वास्थ्य पर भरपूर ध्यान दें. स्वस्थ बच्चा ही पढ़ाई के साथ हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है.

बच्चे ही देश का भविष्य हैं उन के वर्तमान को सुधारनाबनाना जरूरी है. यह काम पैरेंट्स और टीचर्स के हाथों में है. हर मांबाप दबाव के बजाय बच्चों को प्यार, दुलार और सहयोग का वातावरण मुहैया कराएं तो वे निश्चित रूप से जीवन के हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल करेंगे और अच्छे इंसान भी बन सकेंगे.

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