‘तुम ने नीना और नेहा दोनों को  ही बहुत बिगाड़ दिया है. इतनी देर हो गई है लेकिन अभी तक घर नहीं लौटी हैं. जमाना खराब है और ये दोनों इतनी रात तक बाहर रहती हैं. तुम्हारा तो डर ही नहीं है उन्हें,’’ चिंतित स्वर में उर्मिला ने अपने पति से कहा तो वे हंसते हुए बोले, ‘‘तुम नाहक ही फिक्र करती हो, वे हमारी बेटियां नहीं, बेटे हैं.’’

‘‘बेटे नहीं हैं, इसीलिए तो यही सब कह कर तुम ने उन को इतनी छूट दे रखी है. उन्हें बेटे की तरह पाला अवश्य है हम ने पर यह मत भूलो कि वे हैं तो बेटियां ही.’’

‘‘मेरी बेटियां एकदम बोल्ड हैं. मु?ो उन की चिंता नहीं है.’’ ‘‘बोल्ड ही नहीं, वे गुस्सैल भी तो हैं,’’ उर्मिला बोलीं.

तभी नीना और नेहा आ गईं और अपने दिनभर के किस्से अपने पापा को सुनाने लगीं. उन की बातें सुन कर लग रहा था कि उन के पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो रहा है. उर्मिला ने उन्हें कुछ कहना चाहा तो वे एकदम भड़क गईं, ‘‘क्या है मां आप को. हर समय टोकती रहती हो. फ्रैंड्स के साथ पिकनिक पर गए थे, देर तो लगनी ही थी. अब मेरा मूड औफ मत करो,’’ नीना जोर से चिल्लाई.

‘‘और क्या, पापा कुछ कहते हैं कभी. आप को उन से कुछ सीखना चाहिए,’’ नेहा भी कहां चुप रहने वाली थी.

उर्मिला परेशान सी अंदर चली गईं, लेकिन वे अपनी बेटियों के व्यवहार से बहुत कुपित थीं. उन्हें इसी बात का डर था कि वे दोनों आगे चल कर अपने वैवाहिक जीवन या नौकरी में कैसे एडजस्ट कर पाएंगी. उन का गुस्सा और बातबात पर भड़क उठना उन के जीवन में परेशानियां खड़ी कर सकता था. उन की जिद कहीं गलत फैसले लेने को मजबूर न कर दे, यह डर उन्हें हमेशा सताता रहता था.

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