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खलनायक: क्या हो पाई कविता और गौरव की शादी?

विवाह की 10वीं वर्षगांठ के निमंत्रणपत्र छप कर अभीअभी आए थे. कविता बड़े चाव से उन्हें उलटपलट कर देख रही थी. साथ ही सोच रही थी कि जल्दी से एक सूची तैयार कर ले और नाम, पते लिख कर इन्हें डाक में भेज दे. ज्यादा दिन तो बचे नहीं थे. कुछ निमंत्रणपत्र स्वयं बांटने जाना होगा, कुछ गौरव अकेले ही देने जाएंगे. हां, कुछ कार्ड ऐसे भी होंगे जिन्हें ले कर वह अके जाएगी.

सोचतेसोचते कविता को उन पंडितजी की याद आई जिन्होंने उस के विवाह के समय उस के ‘मांगलिक’ होने के कारण इस विवाह के असफल होने की आशंका प्रकट की थी. पंडितजी के संदेह के कारण दोनों परिवारों में उलझनें पैदा हो गई थीं. ताईजी ने तो अपने इन पंडितजी की बातों से प्रभावित हो कर कई पूजापाठ करवा डाले थे.

एकएक कर के कविता को अपने विवाह से संबंधित सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. कितना तनाव सहा था उस के परिवार वालों ने विवाह के 1 माह पूर्व. उस समय यदि गौरव ने आधुनिक एवं तर्कसंगत विचारों से अपने परिवार वालों को समझायाबुझाया न होता तो हो चुका था यह विवाह. कविता को जब गौरव, उस के मातापिता एवं ताईजी देखने आए थे तो सभी को दोनों की जोड़ी ऐसी जंची कि पहली बार में ही हां हो गई. गौरव के पिता नंदकिशोर का अपना व्यवसाय था. अच्छाखासा पैसा था. परिवार में गौरव के मातापिता, एक बहन और एक ताईजी थीं. कुछ वर्ष पूर्व ताऊजी की मृत्यु हो गई थी.

ताईजी बिलकुल अकेली हो गई थीं, उन की अपनी कोई संतान न थी. गौरव और उस की बहन गरिमा ही उन का सर्वस्व थे. गौरव तो वैसे ही उन की आंख का तारा था. बच्चे ताईजी को बड़ी मां कह कर पुकारते और उन्हें सचमुच में ही बड़ी मां का सम्मान भी देते. गौरव के मातापिता भी ताईजी को ही घर का मुखिया मानते थे. घर में छोटेबड़े सभी निर्णय उन की सम्मति से ही लिए जाते थे.

जैसा कि प्राय: होता है, लड़की पसंद आने के कुछ दिन पश्चात छोटीमोटी रस्म कर के रिश्ता पक्का कर दिया गया. इस बीच गौरव और कविता कभीकभार एकदूसरे से मिलने लगे. दोनों के मातापिता को इस में कोई आपत्ति भी न थी. वे स्वयं भी पढ़ेलिखे थे और स्वतंत्र विचारों के थे. बच्चों को ऊंची शिक्षा देने के साथसाथ अपना पूर्ण विश्वास भी उन्होंने बच्चों को दिया था. अत: गौरव का आनाजाना बड़े सहज रूप में स्वीकार कर लिया गया था. पंडितजी से शगुन और विवाह का मुहूर्त निकलवाने ताईजी ही गई थीं. पंडितजी ने कन्या और वर दोनों की जन्मपत्री की मांग की थी.

दूसरे दिन कविता के घर यह संदेशा भिजवाया गया कि कन्या की जन्मपत्री भिजवाई जाए ताकि वर की जन्मपत्री से मिला कर उस के अनुसार ही विवाह का मुहूर्त निकाला जाए. कविता के मातापिता को भला इस में क्या आपत्ति हो सकती थी, उन्होंने वैसा ही किया.

3 दिन पश्चात ताईजी स्वयं कविता के घर आईं. अपने भावी समधी से वे अनुरोध भरे स्वर में बोलीं, ‘‘कविता के पक्ष में ‘मंगलग्रह’ भारी है. इस के लिए हमारे पंडितजी का कहना है कि आप के घर में कविता द्वारा 3 दिन पूजा करवा ली जाए तो इस ग्रह का प्रकोप कम हो सकता है. आप को कष्ट तो होगा, लेकिन मैं समझती हूं कि हमें यह करवा ही लेना चाहिए.’’

कविता के मातापिता ने इस बात को अधिक तूल न देते हुए अपनी सहमति दे दी और 3 दिन के अनुष्ठान की सारी जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार कर ली. 2 दिन आराम से गुजर गए और कविता ने भी पूरी निष्ठा से इस अनुष्ठान में भाग लिया. तीसरे दिन प्रात: ही फोन की घंटी बजी और लगा कि कविता के पिता फोन पर बात करतेकरते थोड़े झुंझला से रहे हैं.

फोन रख कर उन्होंने बताया, ‘‘ताईजी के कोई स्वामीजी पधारे हैं. ताईजी ने उन को कविता और गौरव की जन्मकुंडली आदि दिखा कर उन की राय पूछी थी. स्वामीजी ने कहा है कि इस ग्रह को शांत करने के लिए 3 दिन नहीं, पूरे 1 सप्ताह तक पूजा करनी चाहिए और उस के उपरांत कन्या के हाथ से बड़ी मात्रा में 7 प्रकार के अन्न, अन्य वस्तुएं एवं नकद राशि का दान करवाना चाहिए. ताईजी ने हमें ऐसा ही करने का आदेश दिया है.’’

यह सब सुन कर कविता को अच्छा नहीं लगा. एक तो घर में वैसे ही विवाह के कारण काम बढ़ा हुआ था, जिस पर दिनरात पंडितों के पूजापाठ, उन के खानेपीने का प्रबंध और उन की देखभाल. वह बेहद परेशान हो उठी.  कविता जानती थी कि दानदक्षिणा की जो सूची बताई गई है उस में भी पिताजी का काफी खर्च होगा. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. लेकिन मां के चेहरे पर कोई परेशानी नहीं थी. उन्होंने ही जैसेतैसे पति और बेटी को समझाबुझा कर धीरज न खोने के लिए राजी किया. उन की व्यावहारिक बुद्धि यही कहती थी कि लड़की वालों को थोड़ाबहुत झुकना ही पड़ता है.

इस बीच गौरव भी अपनी और अपने मातापिता की ओर से कविता के घर वालों से उन्हें परेशान करने के लिए क्षमा मांगने आया. वह जानता था कि यह सब ढकोसला है, लेकिन ताईजी की भावनाओं और उन की ममता की कद्र करते हुए वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था. इसलिए वह भी इस में सहयोग देने के लिए राजी हो गया था, वरना वह और उस के मातापिता किसी भी कारण से कविता के परिवार वालों को अनुचित कष्ट नहीं देना चाहते थे.

लेकिन अभी एक और प्रहार बाकी था. किसी ने यह भी बता दिया था कि इस अनुष्ठान के पश्चात कन्या का एक झूठमूठ का विवाह बकरे या भेड़ से करवाना जरूरी है क्योंकि मंगल की जो कुदृष्टि पूजा के बाद भी बच जाएगी, वह उसी पर पड़ेगी. उस के पश्चात कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से होगा और उन का वैवाहिक जीवन संपूर्ण रूप से निष्कंटक हो जाएगा.  ताईजी यह संदेश ले कर स्वयं आई थीं. उस समय कविता घर पर नहीं थी. जब वह आई और उस ने यह बेहूदा प्रस्ताव सुना तो बौखला उठी. उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे. पहली बार उस ने गौरव को अपनी ओर से इस में सम्मिलित करने का सोचा.

उस ने गौरव से मिल कर उसे सारी बात बताई. गौरव की भी वही प्रतिक्रिया हुई, जिस की कविता को आशा थी. वह सीधा घर गया और अपने परिवार वालों को अपना निर्णय सुना डाला, ‘‘यदि आप इन सब ढकोसलों को और बढ़ावा देंगे या मानेंगे तो मैं कविता तो क्या, किसी भी अन्य लड़की से विवाह नहीं करूंगा और जीवन भर अविवाहित रहूंगा. मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता, आप की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता, नहीं तो मैं पूजा करने की बात पर ही आप को रोक देता. लेकिन अब तो हद ही हो गई है. आप लोगों को मैं ने अपना फैसला सुना दिया है. अब आगे आप की इच्छा.’’

ताईजी का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें तो यही चिंता खाए जा रही थी कि कविता के ‘मांगलिक’ होने से गौरव का अनिष्ट न हो, लेकिन गौरव उन की बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहा था. उस का कहना था, ‘‘यह झूठमूठ का विवाह कर लेने से कविता का क्या बिगड़ जाएगा?’’  उधर कविता को भी गौरव ने यही पट्टी पढ़ाई थी कि तुम पर कैसा भी दबाव डाला जाए, तुम टस से मस न होना, भले ही कितनी मिन्नतें करें, जबरदस्ती करें, किसी भी दशा में तुम अपना फैसला न बदलना. भला कहीं मनुष्यों के विवाह जानवरों से भी होते हैं. भले ही यह झूठमूठ का ही क्यों न हो.

कविता तो वैसे ही ताईजी के इस प्रस्ताव को सुन कर आपे से बाहर हो रही थी. उस पर गौरव ने उस की बात को सम्मान दे कर उस की हिम्मत को बढ़ाया था. साथ ही गौरव ने यह भी बता दिया था कि उस के मातापिता को कविता बहुत पसंद है और वे इन ढकोसलों में विश्वास नहीं करते. इसलिए ताईजी को समझाने में उस के मातापिता भी सहायता करेंगे. वैसे ताईजी को यह स्वीकार ही नहीं होगा कि गौरव जीवन भर अविवाहित रहे. वे तो न जाने कितने वर्षों से उस के विवाह के सपने देख रही थीं और उस की बहू के लिए उन्होंने अच्छे से अच्छे जेवर सहेज कर रखे हुए थे.

लेकिन पुरानी रूढि़यों में जकड़ी अशिक्षित ताईजी एक अनजान भय से ग्रस्त इन पाखंडों और लालची पंडितों की बातों में आ गई थीं. गौरव ने कविता को बता दिया था कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा और अगर फिर भी ताईजी ने स्वीकृति न दी तो दोनों के मातापिता की स्वीकृति तो है ही, वे चुपचाप शादी कर लेंगे.

कविता को गौरव की बातों ने बहुत बड़ा सहारा दिया था. पर क्या ताईजी ऐसे ही मान गई थीं? घर छोड़ जाने और आजीवन विवाह न करने की गौरव द्वारा दी गई धमकियों ने अपना रंग दिखाया और 4 महीने का समय नष्ट कर के अंत में कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया.

कविता एक भरपूर गृहस्थी के हर सुख से संपन्न थी. धनसंपत्ति, अच्छा पति, बढि़या स्कूलों में पढ़ते लाड़ले बच्चे और अपने सासससुर की वह दुलारी बहू थी. बस, उस के वैवाहिक जीवन का एक खलनायक था, ‘मंगल ग्रह’ जिस पर गौरव की सहायता एवं प्रोत्साहन से कविता ने विजय पाई थी. कभीकभी परिवार के सभी सदस्य मंगल ग्रह की पूजा और नकली विवाह की बातें याद करते हैं तो ताईजी सब से अधिक दिल खोल कर हंसतीं. काफी देर से अकेली बैठी कविता इन्हीं मधुर स्मृतियों में खोई हुई थी. फोन की घंटी ने उसे चौंका कर इन स्मृतियों से बाहर निकाला.

फोन पर बात करने के बाद उस ने अपना कार्यक्रम निश्चित किया और यही तय किया कि अपने सफल विवाह की 10वीं वर्षगांठ का सब से पहला निमंत्रणपत्र वह आज ही पंडितजी को देने स्वयं जाएगी, ऐसा निर्णय लेते ही उस के चेहरे पर एक शरारत भरी मुसकान उभर आई.

ऐतिहासिक कहानी- भाग 2 : राजा और नर्तकी की प्रेम कथा

मुसकराहट में वशीकरण है, नेत्रों में मदिरा की मस्ती है, पलकों की चिलमन से परखने की कला है, तब तक रूपसौंदर्य के भ्रमर उस पर न्यौछावर होते रहेंगे.

प्यार में बंध गई नूरी बेगम

उसे याद है कि नूरी के रूप में पहली बार जब वह अपने माहुरी पैरों में घुंघरुओं को बांध कर, झीने आसमानी चमकते परिधान में भरी महफिल में साजिंदों के वाद्ययंत्रों की स्वरलहरियों और थापों के बीच उपस्थित हुई थी, तब ऐसा लगा था कि नीलगगन में कोई आकाशगंगा अवतरित हो गई हो. महफिल में आए सभी लोगों की निगाहों पर मानों पक्षाघात सा हो गया. उस के अनिंद्य सौंदर्य पर तरहतरह की उपमाओं की बौछारें होने लगीं. उस दिन उस ने वही सब कुछ किया था, जो उसे सिखाया गया था.

अब उस की हर रात पिछली बीती रात से कहीं अधिक खुशनुमा होती, क्योंकि उस की दिलकश अदा के मुजरों की अदायगी और बानगी, उस के पैरों की थिरकन और खंजर जैसे नेत्रों के तीखे कटाक्ष तथा उस की एकएक भावमुद्रा और अंगप्रत्यंगों में बिजली सी चमक पैदा करती थी. उस के कामोद्ïदीपन युक्त दहकते शरीर की ऊष्णता से अपने को तृप्त करने की उत्कंठा में

पुराने आशिक मिजाज चेहरों के साथ रोज कुछ नए चेहरे भी महफिल में मौजूद होते और उस की एकएक अदा पर रुपयों और अशर्फियों व आभूषणों की बौछार करते थे. जब इस सब के बदले में कृतज्ञता यापन के लिए बाअदब कोर्निश करता हुआ उस का दाहिना हाथ उठा कर माथे को स्पर्श करता तो लोग उस की इस रस्म अदायगी की नजाकत पर मर मिटते थे. उन की फिकरेबाजी से कक्ष गूंज उठता था.

लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी नूरी अपना पाक दामन बड़ी ही चतुराई और सूझबूझ से बचाती चली गई. प्रत्येक के साथ वह ऐसी आत्मीयता से पेश आती कि हर व्यक्ति यही सोचता कि नूरी उसी की है, केवल उसी की है. पर पंडित शिव नारायण मिश्र इन सब में बड़े भाग्यशाली रहे कि नूरी से उन्हें वह सब कुछ मिल गया, जो अन्य लोग अपना सब कुछ लुटाने के बाद भी न पा सके.

संभवत: जहां एक ओर पंडितजी के निश्छल प्रेम ने नूरी के हृदय में श्रद्धा व विश्वास पैदा किया, वहीं दूसरी ओर वह अपने को पंडितजी के इस एहसान से भी दबी हुई मानती थी कि उन्होंने ही अपने प्रभाव से तवायफी कोठे से कांचमहल में ला कर बैठाया था, जहां उस की शोहरत आसमानी ऊंचाइयों को छूने में कामयाब रही और उस पर धन की वर्षा हुई.

नूरी बेगम दिलोजान से पंडित शिवनारायण के लिए समर्पित हो गई. उस के हृदय में पंडितजी के प्रेम व समर्पण की भावना का बीज अंकुरित हो कर वटवृक्ष की भांति संपूर्ण हृदय पटल पर छा गया. पंडित शिव नारायण मिश्र को नूरी के पास आने की पूरी स्वतंत्रता थी. उन के ऊपर न नूरी की ओर से ही कोई पाबंदी थी और न ही नूरी की खाला की तरफ से ही कोई पाबंदी थी

और न ही नूरी की तरह उस की खाला भी पंडितजी के एहसान को तहेदिल से भूली थी.

खाला भी नूरी की तरह पंडितजी के एहसान को तहेदिल से बहुत मानती थी, क्योंकि नूरी के कदमों पर धनदौलत के ढेर लगाने का मुख्य आधार वह कांचमहल ही था, जहां रात के रंगीन उजाले में सोने की चमक चमका करती थी.

शिवनारायण नूरी बेगम के हो चुके थे मुरीद

पंडित शिवनारायण जयपुर के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक सम्मानीय परिवार वाले व्यक्ति थे. उन का राजदरबार से संबंध जुड़ा हुआ था. राजा प्रताप सिंह के अलावा समस्त दरबारी तथा सामंतगण, ठाकुर, जागीरदार सभी उन का यथेष्ठ सम्मान किया करते थे.

वे विद्वता में अपना कोई सानी नहीं रखते थे. वे श्री लक्ष्मी से शोभायमान व सभी प्रकार की संपन्नता से पूर्ण थे. गौरवर्ण, तेज व ओज से युक्त, सुंदर और हृदयाकर्षक कदकाठी वाले व्यक्तित्व के वे धनी व्यक्ति थे. बड़ीबड़ी नीली आंखों, घनी भौंहों व मूछों से उन के व्यक्तित्व में और अधिक चुंबकीय आकर्षण आ गया था. इन सब से परे थी पंडितजी की सम्मोहिनी वाणी और उन के बात करने का सुंदर ढंग.

 

इन्हीं सब बातों ने नूरी के हृदय में एक स्थाई स्थान बना लिया था. पंडित शिव नारायण रात की महफिल के अलावा जब भी समय मिलता अथवा जब उन का चित्तमलीन होता, तब वे उस मलीनता को मिटाने के लिए नूरी के ही पास आते. नूरी के व्यक्तिगत अलंकृत कक्ष में उस के समीप में बैठते, लेटते, बतियाते.

उन्हें कविता व शायरी का भी शौक था, इसलिए बातों के सिलसिले में ही कभीकभी शेर या पूरी गजल तथा कविता वगैरह एकांत में सुना दिया करते थे.

नूरी वह रात कभी नहीं भूली थी, जब पंडितजी ने नूरी के द्वारा मुजरे गाए जाने के पहले नूरी व उस की खाला से मुसकराते हुए कहा था, “जब तक साजिंदे सुरताल मिला रहे हैं, तब तक इस खूबसूरत नाजनीन की खिदमत में रंगीन खयालों में डूबी हुई गजल के चंद शेर पेश करने की इजाजत चाहता हूं.”

महफिल में उपस्थित बेसब्र लोगों को पंडितजी के इस बेमौके की भैरवी अच्छी नहीं लगी. उन में से कुछ तो बोल ही पड़े थे,

“पंडितजी क्या झड़े में कूड़ा फैला रहे हो.”

कोई कह उठा था, “पंडितजी, नूरी के हुस्न की स्याही से अब दिल के कागज पर शायरी भी करने लगे हैं. वाह क्या बात है?’

लेकिन नूरी, जो समयसमय पर पंडितजी के द्वारा कहे गए शेरों के अंदाजेबयां से बाखूबी परिचित हो गई थी, ने बड़े ही शायराना अंदाज में पंडितजी से आग्रह किया, “पंडितजी, जरूर सुनाइए. महफिल की रौनक में चारचांद लग जाएंगे.”

नूरी की सहमति पर सारे आगंतुकों की जबान बंद हो गई. उन की नजरें फिर पंडितजी पर केंद्रित हो गईं. पंडितजी ने तब नूरी की तरफ देख कर बड़े ही नाजुक मिजाज में कहा, “हां, तो बेगम साहिबा, सुनिए. दिली जज्बात हैं. उम्मीद है, इन जज्बातों को आप की पसंदगी हासिल होगी.”

नूरी ने भी कहा, “इरशाद फरमाइए, पंडितजी. फरमाइए.”

पंडितजी ने तरन्नुम में गजल का मुखड़ा पेश किया, “ऐसी चली हवा कि गुलिस्तां महक गए, पी तो नहीं थी, फिर भी कदम बहक गए.”

नूरी सुनते ही खुश हो कर मुसकराते हुए बोली, “वाह क्या बात है?’

महफिल में भी फब्तियों के स्वर गूंज उठे, “पंडितजी, अपनी हकीकत पेश कर रहे हैं.”

नूरी का कोकिल कंठ चहक उठा, “हां पंडितजी. आगे शेर पढि़ए.”

कक्ष में सामूहिक आवाज गूंज उठी, “हां, जरूर, जरूर.”

पंडितजी ने आगे का शेर पढ़ा, “आने का जिन के था, मुद्ïदत से इंतजार, महफिल में जब वो आए तो शोले दहक गए.”

अब की बार इस शेर पर नूरी के विस्फारित नेत्र पंडितजी के मुख पर जा कर स्थिर हो गए. अपनी प्रशंसा की पराकाष्ठा सुन कर वाणी जैसे अवरुद्ध हो गई, लेकिन महफिल के सारे लोग इस शेर पर झूम उठे और उन के मुख से निकल पड़ा, “वाह पंडितजी, क्या बात है? हम सब लोगों के दिल की हकीकत ही बिलकुल पेश कर के रख दी है. मजा आ गया. हां, आगे कहिए.”

 

Mother’day spl.फैमिली प्लानिंग से पहले फाइनेंशियल प्लानिंग: ए गाइड टू मैटरनिटी इंश्योरेंस

मदर्स डे नजदीक है, और यह मैटरनिटी इंश्योरेंस के महत्व पर विचार करने का एक अच्छा समय है। परिवार शुरू करना एक रोमांचक और खुशियों से भरा सफर हो सकता है लेकिन यह अलग-अलग वित्तीय चुनौतियों को भी लेकर आता है। गर्भावस्था और नवजात शिशु की देखभाल का खर्च, मेडिकल खर्च आपकी वित्तीय जिम्मेदारियों में महत्वपूर्ण रूप से इजाफा कर सकती है। इसलिए परिवार की योजना बनाने से पहले अपनी फाइनेनंशियल प्लानिंग करना आवश्यक है, और इस योजना के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक मैटरनिटी इंश्योरेंस को अपनी फाइनेन्शियल प्लानिंग में शामिल करना।

सिद्धार्थ सिंघल, बिजनेस हेड – हेल्थ इंश्योरेंस, पॉलिसीबाजार.कॉम का कहना है कि-
मैटरनिटी इंश्योरेंस
मैटरनिटी इंश्योरेंस एक प्रकार की हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी है जो गर्भावस्था और डिलीवरी से जुड़े चिकित्सा खर्चों को कवर करती है। इसमें आमतौर पर डिलीवरी के पहले की देखभाल, डिलीवरी और डिलीवरी के बाद की देखभाल के लिए कवरेज शामिल होता है। पॉलिसी के आधार पर, यह अन्य स्वास्थ्य सेवाओं को भी कवर कर सकती है, जैसे स्तनपान संबंधी परामर्श और नवजात शिशु की देखभाल आदि।
आंकड़ों के अनुसार, एक स्टैंडर्ड या सी-सेक्शन डिलीवरी की लागत 50,000 रुपये से लेकर 70,000 रुपये तक हो सकती है। अगर आप मेट्रो शहर में रहते हैं तो यह लागत 1 लाख या उससे भी अधिक हो सकती है । गर्भावस्था के दौरान डिलीवरी के पहले और डिलीवरी के बाद के खर्चों के साथ संयुक्त होने पर कुल मेडिकल खर्च एक औसत परिवार के लिए बहुत अधिक वित्तीय बोझ डाल सकती है। इसके अतिरिक्त, भले ही यह कॉर्पोरेट हेल्थ इंश्योरेंस द्वारा कवर किया गया हो, लेकिन हर साल हेल्थ केयर इन्फलेशन में हो रही वृद्धि के कारण यह राशि पर्याप्त नहीं होगी। कई ऐसी योजनाएं पहले से ही उपलब्ध हैं जो 2 लाक रूपये तक का मैटरनिटी कवरेज प्रदान करती है।

आपके हेल्थ इंश्योरेंस में मैटरनिटी बेनिफिट का चयन करने से आप और आपका परिवार इन खर्चों से सुरक्षित रहेगा। मैटरनिटी इंश्योरेंस प्लान को खरदीने से पहले इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना बहुत ही जरूरी है।

वेटिंग पीरियड को ध्यान में रखें
आपको वेटिंग पीरियड या पॉलिसी के प्रभावी होने और कवरेज शुरू होने से पहले की अवधि पर विचार करना चाहिए। यह ध्यान रखना जरूरी है कि अगर आप पहले से ही गर्भवती हैं तो आपको कवर नहीं किया जाएगा। इस ऐड-ऑन को खरीदने का सबसे अच्छा समय तब होता है जब आप शादी करते हैं, या अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को रिन्यू करते समय। वेटिंग पीरियड बीमाकर्ता के अनुसार अलग-अलग होता है, जो 9 महीने से लेकर कुछ सालों तक होता है। ऐसी कई योजनाएं हैं, जिन्होंने मैटरनिटी कवरेज के लिए वेटिंग पीरियड को 2-4 साल से घटाकर 9 महीने कर दिया है। अगर आपकी कोई मौजूदा स्थिति है जो आपकी गर्भावस्था को कठिन बना सकती है, तो सुनिश्चित करें कि आपकी पॉलिसी इसे कवर करती है या अतिरिक्त कवरेज प्रदान करती है।

मैटरनिटी इंश्योरेंस पॉलिसियों के दो मुख्य प्रकार:
• स्टैंडअलोन मैटरनिटी इंश्योरेंस: इस प्रकार का इंश्योरेंस विशेष रूप से बच्चे के जन्म से संबंधित मेडिकल खर्चों को कवर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और यह किसी अन्य हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़ा नहीं है।

• हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ मैटरनिटी कवरेज: ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी अपने प्रस्तावों के हिस्से के रूप में मैटरनिटी कवरेज का कुछ रूप प्रदान करती हैं। हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि पेश किया गया कवरेज आपके लिए पर्याप्त है, पॉलिसी में लिखे गए सभी नियमों की सावधानीपूर्वक समीक्षा करना आवश्यक है।

मैटरनिटी इंश्योरेंस के लाभ
कई इंश्योरेंस प्रोवाइडर्स ने सोच-समझकर युवा जोड़ों के लिए मैटरनिटी पॉलिसी बनाई हैं। उदाहरण के लिए, कुछ योजनाएं 2 लाख रुपये से लेकर 2 करोड़ रुपये तक की इंश्योरेंस राशि की पेशकश करती हैं, जिसमें डिलीवरी से लेकर 30-90 दिनों तक के लिए मैटरनिटी से संबंधित अस्पताल में भर्ती, कानूनी, गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति, टीकाकरण, एम्बुलेंस शुल्क और प्रसव से शिशु की लागत के लिए एक विशेष राशि निर्धारित होती है। इसके अलावा इसका सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि ज्यादातर इंश्योरेंस कैरियर्स सभी नेटवर्क अस्पतालों में कैशलेस क्लेम सेटलमेंट की पेशकश करते हैं।
इसके अतिरिक्त, धारा 80D के तहत एक वित्तीय वर्ष के अंदर यह 25000 रुपये तक का टैक्स बेनिफिट प्रदान करता है।

बहिष्करण
ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेसं पॉलिसी आमतौर पर बांझपन उपचार के खर्च को कवर नहीं करती हैं। हालांकि, नए जमाने और विकसित हेल्थ इंश्योरेसं पॉलिसी ने आईवीएफ उपचारों के लिए कवरेज की पेशकश शुरू कर दी है। कवरेज का स्तर प्रत्येक बीमाकर्ता के अनुसार अलग-अलग होता है, इसलिए पॉलिसी खरीदते समय यह ध्यान देना जरूरी है की आपकी पॉलिसी के अंदर क्या कवर किया जाता है और क्या नहीं।
साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप परिवार शुरू करने के लिए वित्तीय रूप से तैयार हैं, अपने फाइनेन्शियल प्लानिंग को जल्दी शुरू करना आवश्यक है। एक कॉम्प्रिंहेंसिव वित्तीय फाइनेन्शियल प्लानिंग बनाकर जिसमें मैटरनिटी इंश्योरेंस शामिल है, आप अपने माता-पिता बनने के सफर को मन की शांति के साथ शुरू कर सकते है।

द केरला स्टोरी एक्ट्रेस ने एक्सीडेंट के बाद सोशल मीडिया पर दिया ये अपडेट

बॉलीवुड एक्ट्रेस अदा शर्मा इन दिनों लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं, अब इसी बीच एक्ट्रेस को लेकर बड़ी खबर आ रही है, 14 मई को अदा शर्मा और डॉयरेक्टर सुदीप्तो का एक्सीडेंट हो गया था, इस एक्सीडेंट में अदा शर्मा को काफी ज्यादा चोट लग गई थी, जिस वजह से लोग काफी ज्यादा परेशान थें.

हाल ही में अदा शर्मा ने अपने सोशल मीडिया पर अपना हेल्थ अपडेट दिया है, एक्ट्रेस ने बताया है कि मैं बिल्कुल ठीक हूं, हमारे एक्सीडेंट की खबर मिलते ही लोग परेशान हो गए थें,फैंस लगातार कमेंट करने शुरू कर दिए थें.  अदा शर्मा के ट्विट पर फैंस खूब कमेंट कर रहे हैं.

 

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उन्होंने बताया है कि मैं बिल्कुल ठीक हूं, कोई गंभीर बात नहीं है, लेकिन आप लोगों ने हमारा ध्यान रखा उसके लिए धन्यवाद. वहीं अदा शर्मा के पोस्ट पर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा कि बताने के लिए धन्यवाद आपकी बहुत चिंता हो रही थी. वहीं दूसरे यूजर ने लिखा कि प्रभू आपकी रक्षा करें. बता दें कि द केरल स्टोरी फिल्म के आने के बाद से अदा शर्मा काफी ज्यादा मशहूर हो गई है. वह लोगों के बीच छाने लगी हैं. फैंस उनकी एक्टिंग को काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

YRKKH : अबीर और अभिमन्यु को दूर करने की कोशिश करेगी आरोही, मंजरी होगी नाराज

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार नए-नए ड्रामा देखने को मिल रहे हैं, जबसे आरोही को अबीर का सच पता चला है वह परेशान हो गई है. उसे डर हो गया है कि कहीं अबीर की वजह से अक्षरा और अभि एक न हो जाए.

जिस वजह से आए दिन अबीर और अभि को अलग को करने की प्लानिंग करती नजर आ रही है, उसे समझ नहीं नहीं आ रहा है कि ऐसा क्या करें जिससे अबीर और अभी अलग हो जाएं, हालांकि उसके इस प्लानिंग की भनक घर वालों को लग गई है.

जैसे ही इस बात का पता मंजरी को लगता है वह बहुत ज्यादा परेशान हो जाती है, वह आरोही से गुस्से से बात करने लगती है. दरअसल अभि अबीर के लिए सबसे महंगा जूता लेकर आता है इस बात से अबीर खूब खुश हो जाता है. घर वाले भी काफी ज्यादा खुश नजर आते हैं.लेकिन आरोही को यह बात रास नहीं आता है.वह परेशान हो जाती है.

वह दोनों को अलग करने के बारे में सोचने लगती है , जिसकी खबर मंजरी तक पहुंचती है. मंजरी इस खबर के आते ही आरोही से बात करने जाती है, हालांकि आरोही इस बात से इंकार कर देती है.

आकाश से भी ऊंचा : भाग 3

‘‘अरे ऊषा, तेरे देवर ने आज इस घर की लाज रख ली, वरना आज मुंह दिखाने लायक न रहते,’’ भाभी के आगे मां से ले कर सारी औरतें शलभ की तारीफ कर रही थीं. ऊपर से मर्द भी नीचे उतर आए थे. सभी शलभ की सूझबूझ की तारीफ कर रहे थे.

शलभ पानी पी कर ऊपर आ गया. नीचे वही चर्चा हो रही थी. रानो कमरे में से बाहर ही नहीं निकली थी. इधर शलभ के सामने बारबार रानो का सांचे में ढला तन तथा घबरायाबौखलाया चेहरा नाच रहा था.

दूसरे दिन यही चर्चा बाहर तक फैल चुकी थी, परंतु रानो पता नहीं क्यों शलभ का शुक्रिया अदा करने तक नहीं आई.

शलभ अनमना सा बैठक में पड़ा था.

‘‘अरे, अभी सोए नहीं क्या.’’ संजय बैठक में घुसते ही बोला.

‘‘नहीं, अभी नहीं. हां, एक बात बताओ, रानो कैसी है. हाथ तो नहीं जले उस के.’’

‘‘बिलकुल ठीक है.’’

‘‘फिर वह आई क्यों नहीं? उस ने तो शुक्रिया भी अदा नहीं किया. मैं तो इसी फिक्र में था कि…’’

‘‘वह बहुत शर्मीली है. बिना साड़ी के तुम्हारे सामने खड़ी रही थी, सो शरम के मारे मरी जा रही है. तुम्हारी बातें करतेकरते कई बार रोमांचित हो गई. कह रही थी कि वे न बचाते तो साड़ी के साथ मैं भी खाक हो जाती. आना चाह कर भी आ नहीं पा रही है. पर हां, तुम खुद ही चल कर पूछ लो न. यहां बेकार में बोर हो रहे हो. छोटी दीदी सहित घर की सारी लड़कियां हैं वहां. उसी से पूछिएगा कि शुक्रिया अदा करने क्यों नहीं आई और दंड में गजलें भी सुन लेना,’’ कहता हुआ संजय उस की बांह पकड़ कर घसीटता हुआ ले गया.

 

कमरे में 8-10 लड़कियां बैठी थीं. संजय ने वहीं ले जा कर शलभ की बांह छोड़ी और बोला, ‘‘रानो, देखो शलभ क्या कह रहे हैं, कह रहे हैं कि मैं ने ऐसी एहसानफरामोश लडक़ी जीवन में कभी नहीं देखी जो शुक्रिया अदा करने भी न आए. जिस ने जीवनदान दिया उस को धन्यवाद बोल कर तुम ने सूरत तक भी नहीं दिखलाई.’’

‘‘नहींनहीं, यह तो मैं ने नहीं कहा. हां, याद जरूर किया था,’’ शलभ बैठते हुए बोला. तब तक वहां घर के कुछ और लडक़ेलड़कियां इकट्ठे हो आए थे.

शलभ ने देखा कि उसे देखते ही रानो का चेहरा सुर्ख हो उठा. रात में तो वह ठीक से देख नहीं पाया था, अब दिन के उजाले में जैसे उस की नजर उस पर नहीं ठहर रही थी. घने काले खुले केशों के बीच जैसे पूर्णिमा का आसन्न चांद आकाश पर उतर रहा हो. यह लडक़ी क्या सिर्फ किसी विधुर के लायक ही है. कैसी विडंबना है यह.

 

ऐतिहासिक कहानी- भाग 1 : राजा और नर्तकी की प्रेम कथा

राजस्थान को सैकड़ों साल पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था. राजपूताना अर्थात राजपूतों की आनबान और शान का एक आदर्श प्रतीक. शरणागतों की रक्षा में अपने को सदैव बलिदान करने में अग्रणी रहने वाला प्रेरणा का एक स्रोत.

स्वतंत्रता की दीपशिखा को सतत प्रज्ज्वलित रखने वाला एक अप्रतिम पावन तीर्थ. शौर्य व पराक्रम की साक्षात प्रतिमूर्ति.

इसी जयपुर नगर में स्थित है देश का प्रसिद्ध जौहरी बाजार, जो जवाहरातों और उन के कला पारखी जौहरियों के नाम पर अपनी एक अलग ही साख रखे हुए है. इसी जौहरी बाजार में ही सांगानेरी दरवाजे के पास कांच की सुंदर पच्चीकारी के कारण प्रसिद्ध ‘कांचमहल’है. इस भव्य महल को लगभग 200 साल पहले नूरी बेगम ने आ कर अपने रूपसौंदर्य एवं सारंगी के तारों की झंकृत कर्णप्रिय मनमोहक झंकार, तबले की थापों की संगत और पैरों में बंधे हर घुंघरू की मदमाती थिरकन और मधुर स्वर लहरियों की गूंज से और भी अधिक रंगीन व आकर्षण का केंद्र बिंदु बना दिया था.

नूरी बेगम मूलरूप से कहां की थी, किस की औलाद थी, यह किसी आशिकमिजाज आगंतुक ने कभी जानने की कोशिश नहीं की, लेकिन वह स्वयं इतना अवश्य जानती थी कि परिस्थितियों और बेगम बनने के प्रलोभन में उसे शाही महल या शानदार कोठी नहीं मिली, बल्कि दुर्भाग्य ने दिया उसे कोठा. लेकिन उसे वह दिन अच्छी तरह से याद है, जब अन्य कुंवारी लड़कियों

की तरह अपनी अनियारी आंखों में समाए अनेक स्वप्नों और हृदय में प्यार भरे अरमानों के सुंदर महल की कल्पना की वह नींव ढहा दी गई थी, जिस पर प्यार व हसरतों का सुंदर महल खड़ा होना था. आंखों में समाए सजीले सुखद सपनों की डोली, कोठे की परंपरा ने बुरी तरह से ऐसे फेंक दी कि सारे सपने कांच के टुकड़ों की तरह बिखर कर रह गए और उन कांच के टुकड़ों

पर ही फिर उसे पैरों में घुंघरू बांधने को विवश होना पड़ा.

उस की देह से लज्जा व संकोच का आवरण कोठे की चहारदीवारी में ही हट गया था. उसे सिखाया गया कि लज्जा का आवरण उस के घूंघट में है, जिस की चक्रव्यूही संरचना के अंदर ही उसे अपने नैनों के तीखे प्रहारों से हर चाहने वाले के हृदय का छेदन करना है और ये प्रहार जितने हृदय को तड़पाने वाले होंगे, उतने ही धनदौलत, हीरेजवाहरात, सोनेचांदी के ऊंचे ढेर लगेंगे.

शोहरत, कामयाबी आसमानी बुलंदी की ऊंचाई तक पहुंचेगी और उस की शानोशौकत किसी महल की महारानी से कम न होगी.

उसे अपनी देह को सहीसलामत रखना है, क्योंकि जब तक उस के पास गदराया बदन और यौवन है, रूप और सौंदर्य की पराकाष्ठा के रूप में समुद्र के ज्वार सा सुंदर सलोना, मनभावन आकर्षण है, देह में लता जैसा लचीलापन व कोमलता है.

रिश्तों का सच -भाग 3 : क्या दोनों के मन की गांठें कभी खुल सकीं

चंद्रिका को साथ आया देख दीदी पहले तो हैरत में पड़ीं, फिर खिल उठीं. शायद पिछली बार के कटु अनुभवों ने उन्हें भयभीत कर रखा था. स्टेशन पर चंद्रिका को भी देख एक पल में सारी शंकाएं दूर हो गईर्ं. वे खुशी से पैर छूने को झुकी चंद्रिका के गले से लिपट गईं.

रवि सोच रहा था, इतनी अच्छी तरह से तो वह घर में भी कभी नहीं मिली थी. ‘‘किस सोच में डूब गए?’’ दीदी का खिलखिलाता स्वर उसे गहरे तक खुशी से भर गया. सामान उठा वह आगेआगे चल दिया. चंद्रिका और दीदी पीछेपीछे बतियाती हुई आ रही थीं.

खाने की मेज पर भी रवि कम बोल रहा था. चंद्रिका ही आग्रह करकर के दीदी को खिला रही थी. हर बार चंद्रिका के अबोलेपन की स्थिति से शायद माहौल तनावयुक्त हो उठता था, इसीलिए दीदी अब जितनी सहज व खुश लग रही थीं, उतनी पहले कभी नहीं लगी थीं. खाने के बाद वह उठ कर अपने कमरे में आ गया. वे दोनों बहुत देर तक वहीं बैठी बातों में जुटी रहीं. कुछ देर बाद चंद्रिका कमरे में आ कर दबे स्वर में बोली, ‘‘यहां क्यों बैठे हो? जाओ, दीदी से कुछ बातें करो न.’’

‘‘तुम हो न, मैं कुछ देर सोऊंगा…’’ कहतेकहते रवि ने करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. रात के खाने की तैयारी में चंद्रिका का हाथ बंटाने के लिए दीदी भी रसोई में ही आ गईं. रवि टीवी खोल कर बैठा था.

‘‘रवि की तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ रसोईघर से आता दीदी का स्वर सुन रवि के कान चौकन्ने हो गए. पलभर की खामोशी के बाद चंद्रिका का स्वर उभरा, ‘‘नहीं तो, आजकल औफिस में काम अधिक होने से ज्यादा थक जाते हैं, इसलिए थोड़े खामोश हो गए हैं. आप को बुरा लगा क्या?’’

‘‘अरे नहीं, इस में बुरा मानने की क्या बात है? वैसे भी तुम्हारा साथ ज्यादा भला लग रहा है. पहली बार ऐसा लग रहा है कि अपने मायके आई हूं. मां तो थीं नहीं, जिन से यहां आने पर मायके का एहसास होता. पिताजी और भाई का मानदुलार था तो, पर असली मायके का एहसास तो मां या भौजाई के प्यार और मनुहार से ही होता है.’’

‘‘दीदी, मुझे माफ कर दीजिए,’’ चंद्रिका ने हौले से कहा, ‘‘मैं ने आप के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया…’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है, हम ने तुम्हें अवसर ही कहां दिया था कि तुम अपना अच्छा या बुरा व्यवहार सिद्ध कर सको. खैर छोड़ो, इस बार जैसा सुकून मुझे पहले कभी नहीं मिला,’’ दीदी का स्वर संतुष्टिभरा था.

टीवी के सामने बैठे रवि का मन भी दीदी की खुशी और संतुष्टि देख चंद्रिका के प्रति प्यार और गर्व से भर उठा था. सुबह उस के उठने से पहले ही दीदी और चंद्रिका उठ कर काम के साथसाथ बातों में व्यस्त थीं. रात भी रवि तो सो गया था, वे दोनों जाने कितनी देर तक एकसाथ जागती रही थीं. जाने उन के अंदर कितनी बातें दबी पड़ी थीं, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. रवि को एक बार फिर अपनी मूर्खता पर पछतावा हुआ. बिस्तर से उठ कर वह औफिस जाने की तैयारी में लग गया.

‘‘कहां जा रहे हो?’’ शीशे के सामने बाल संवार रहे रवि के हाथ अचानक चंद्रिका को देख रुक गए. ‘‘औफिस.’’

‘‘दीदी आई हैं, फिर भी?’’ चंद्रिका की हैरानी वाजिब थी. दीदी के लिए रवि पहले पूरे वर्ष की छुट्टियां बचा के रखता था. जितने भी दिन वह रहतीं, वे उन्हें घुमानेफिराने के लिए छुट्टियां ले कर घर बैठा रहता था. ‘‘छुट्टी क्यों नहीं ले लेते? हम सब घूमने चलेंगे,’’ चंद्रिका जोर देते हुए बोली.

‘‘नहीं, इस बार छुट्टियां बचा रहा हूं, शरारतभरी नजर चंद्रिका के चेहरे पर डालता हुआ रवि बोला.’’ ‘‘क्यों?’’ चंद्रिका के सवाल के जवाब में उस ने उसे अपने पास खींच लिया, ‘‘क्योंकि इस बार मैं तुम्हें मसूरी घुमाने ले जा रहा हूं. अभी छुट्टी ले लूंगा, तो बाद में नही मिलेंगी.’’

चंद्रिका की आंखें भीग उठी थीं, शायद वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि रवि की जिंदगी और दिल में उस के लिए भी इतना प्यार छिपा हुआ है. अपने को संभाल आंखें पोंछती वह लाड़भरे स्वर में बोली, ‘‘मसूरी जाना क्या दीदी से अधिक जरूरी है? मुझे कहीं नहीं जाना, तुम्हें छुट्टी लेनी ही पड़ेगी.’’

‘‘अच्छा, ऐसा करता हूं, सिर्फ आज की छुट्टी ले लेता हूं,’’ वह समझौते के अंदाज में बोला. ‘‘लेकिन इस के बाद जितने भी दिन दीदी रहेंगी, तुम्हीं उन के साथ रहोगी.’’

‘‘मैं, अकेले?’’ चंद्रिका घबरा रही थी, ‘‘मुझ से फिर कोई गलती हो गई तो?’’ ‘‘तो क्या, उसे सुधार लेना. मुझे तुम पर पूरा विश्वास है,’’ मन ही मन सोचता जा रहा था रवि, ‘मैं भी तो अपनी गलती ही सुधार रहा हूं.’

वह रवि की प्यार और विश्वासभरी निगाहों को पलभर देखती रही, फिर हंस कर बोली, ‘‘अच्छा, अब छोड़ो, चल कर कम से कम आज की पिकनिक की तैयारी करूं.’’ दीदी पूरे 15 दिनों के लिए रुकी थीं, चंद्रिका और उन के बीच संबंध बहुत मधुर हो गए थे. इस बार पिताजी भी अधिक खुश नजर आ रहे थे. दीदी के जाने का दिन ज्योंज्यों नजदीक आ रहा था, चंद्रिका उदास होती जा रही थी.

आखिरकार, जीजाजी के बुलावे के पत्र ने उन के लौटने की तारीख तय कर दी. दौड़ीदौड़ी चंद्रिका बाजार जा कर दीदी के लिए साड़ी और जीजाजी के लिए कपड़े खरीद लाई थी. तरहतरह के पापड़ और अचार दीदी के मना करने के बावजूद उस ने बांध दिए थे. शाम की ट्रेन थी. चंद्रिका दीदी के साथ के लिए तरहतरह की चीजें बनाने में व्यस्त थी. रवि सामान पैक करती दीदी के पास आ बैठा. दीदी ने मुसकरा कर उस की तरफ देखा, ‘‘अब तुम कब आ रहे हो चंद्रिका को ले कर?’’

‘‘आऊंगा दीदी, जल्दी ही आऊंगा,’’ बैठी हुई दीदी की गोद में वह सिर रख लेट गया था, ‘‘तुम नाराज तो नहीं हो न?’’ ‘‘किसलिए?’’ उस के बालों में हाथ फेरती हुई दीदी एकाएक ही उस की बात सुन हैरत में पड़ गईं.

‘‘मैं तुम्हारे साथ पहले जितना समय नहीं बिता पाया न?’’ रवि बोला. ‘‘नहीं रे, बल्कि इस बार मैं यहां जितनी खुश रही हूं, उतनी पहले कभी नहीं रही. चंद्रिका के होते मुझे किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं हुई. एक बात बताऊं, मुझे बहुत डर लगता था. तेरे इतने प्यार जताने के बाद भी लगता था, मेरा भाई मुझ से अलग हो जाएगा. कभीकभी सोचती, शायद मेरे आने की वजह से ही चंद्रिका और तुम्हारे बीच झगड़ा होता है. तुझे देखने के लिए मन न तड़पता तो शायद यहां कभी आती ही नहीं.

‘‘चंद्रिका के इस बार के अच्छे व्यवहार ने मुझे एहसास दिलाया है कि भाई तो अपना होता ही है, पर भौजाई को अपना बनाना पड़ता है, क्योंकि वह अगर अपनी न बने तो धीरेधीरे भाई भी पराया हो जाता है. आज मैं सुकून महसूस कर रही हूं. चंद्रिका जैसी अच्छी भौजाई के होते मेरा भाई कभी पराया नहीं होगा. इस सब से भी बढ़ कर पता है, उस ने क्या दिया है मुझे?’’ ‘‘क्या?’’

‘‘मेरा मायका, जो मुझे पहले कभी नहीं मिला था. चंद्रिका ने मुझे वह सब दे दिया है,’’ दीदी की आंखें बरस उठी थीं, ‘‘चंद्रिका ने यह जो एहसान मुझ पर किया है, इस का कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगी.’’ ‘‘खाना तैयार है,’’ चंद्रिका कब कमरे में आई, पता ही न चला. लेकिन उस की भीगीभीगी आंखें बता रही थीं कि वह बहुतकुछ सुन चुकी थी. गर्व से निहारती रवि की आंखों में झांक चंद्रिका बोली, ‘‘कैसे भाई हो, पता नहीं, आज सुबह से दीदी ने कुछ नहीं खाया. चलो, खाना ठंडा हो रहा है.’’

दीदी को ट्रेन में बिठा रवि उन का सामान व्यवस्थित करने में लगा हुआ था. चंद्रिका दीदी के साथ ही बैठी उन्हें दशहरे की छुट्टियों में आने के लिए मना रही थी. हमेशा उतरे मुंह से वापस होने वाली दीदी का चेहरा इस बार चमक रहा था. ट्रेन की सीटी की आवाज के साथ ही रवि ने कहा, ‘‘उतरो चंद्रिका, ट्रेन चलने वाली है.’’

चंद्रिका दीदी से लिपट गई, ‘‘जल्दी आना और जाते ही पत्र लिखना.’’ ‘‘अब पहले तुम दोनों मेरे घर आना,’’ भीगी आंखों के साथ दीदी मुसकरा रही थीं.

उन के नीचे उतरते ही ट्रेन ने सरकना शुरू कर दिया. ‘‘दीदी, पत्र जरूर लिखना,’’ दोनों अपनेअपने रूमाल हिला रही थीं. ट्रेन गति पकड़ स्टेशन से दूर होती जा रही थी. चंद्रिका ने पलट कर रवि की तरफ देखा. रवि की गर्वभरी आंखों को निहारती चंद्रिका की आंखें भी चमक उठी थीं.

पाकिस्तान : इमरान खान के साथ क्या वही होगा?

पाकिस्तान में ताजा घटनाक्रम जिस तरह से सामने आया है- ऐसा प्रतीत होता है मानो इतिहास अपने आप को एक बार फिर दोहरा रहा है. पाकिस्तान की राजनीति और तासीर कुछ ऐसी है कि आजादी के बाद से अब तक वहां लोकतंत्र सिर्फ नाम के लिए ही रहा है . देश की हालात लगातार बद से बदतर होते जा रहे हैं लोगों का जीवन दूभर है मगर राजनीति और सेना में बैठे हुए चुनिंदा लोग पाकिस्तान को अपने स्वार्थ के कारण लगातार बर्बाद और कमजोर करते आ रहे हैं.

इसी परिप्रेक्ष्य में मंगलवार 9 मई 2023 को पाकिस्तान में जो घटना क्रम सारी दुनिया ने घटित होते देखा , किस तरह पूर्व प्रधानमंत्री और देश की सबसे लोकप्रिय शख्सियत इमरान खान को गृह मंत्रालय के अधीन रेंजर्स ने कालर से पकड़कर घसीटते हुए जेल वाहन में डाल दिया. और उसके बाद पाकिस्तान का इस्लामाबाद हो या लाहौर जलने लगा महिलाएं सड़कों पर आ गई शासन विवश दिखाई देने लगा लोगों की भीड़ लूटमार करने लगी आगजनी होने लगी,

ऐसा लगने लगा मानो शासन नाम की कोई चीज ही पाकिस्तान में नहीं है. कई जगह गोलियां चल गई यहां तक की लगभग 15 लोगों की मौत खबर आ चुकी है. और जैसा कि पाकिस्तान की न्यायालय से अपेक्षा थी- हाई कोर्ट से देर रात फैसला आ गया की गिरफ्तारी विधिक रुप से सही है. यह बताता है कि इस तरह से ना और सरकार के दबाव में न्यायालय काम कर रही है. यह सारा मजारा बता रहा है कि इमरान खान सिर्फ एक चेहरा है उनके साथ भी पाकिस्तान में अब फिर वही होगा जो पहले कभी जुल्फिकार अली भुट्टो और कुछ अन्य शख्सियतों के साथ हुआ था.

_____ दुनिया मौन क्यों है _____ 70 वर्षीय इमरान खान देश की सेना पर कथित तौर पर अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप लगा चुके हैं. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) पार्टी की वरिष्ठ नेता शिरीन मजारी के अनुसार, लाहौर से संघीय राजधानी इस्लामाबाद आए पार्टी अध्यक्ष खान अदालत एक बायोमेट्रिक प्रक्रिया से गुजर रहे थे, तभी रेंजर्स ने कांच की खिड़की को तोड़ दिया और वकीलों एवं इमरान खान के सुरक्षा कर्मचारियों की टाई करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, एक सच यह भी है कि जबसे इमरान खान प्रधानमंत्री पद से हटाए गए हैं जहां वे एक तरह से आक्रमक रहे हैं वही यह भी माना जा रहा था कि इमरान खान को आखिरकार सरकार और सेना जेल के सींखचों में डालेगी ही.

क्योंकि इमरान खान का जहां जनाधार बेहतर स्थिति में है वही कुछ शक्तियां नहीं चाहती कि इमरान खान देश का नेतृत्व संभाले और जहां लोकतंत्र नहीं होगा बंदूक की नोक पर सत्ता पर कब्जा किया जाएगा वहां इमरान खान जैसे लोगों के साथ जो हो रहा है वही होता देखने के लिए दुनिया विवश है. पाकिस्तान जिस तरह से आज जलता हुआ दिखाई दे रहा है वह एक सबक है कि जब किसी देश में लोकतंत्र को ग्रहण लग जाता है तो देश के हालात कुछ कुछ ऐसे ही हो जाते हैं इसलिए दुनिया की बड़ी संस्थाओं ताकतों को चाहिए कि वह संप्रभुता के नाम पर सिर्फ देखते न रहें खामोश न रहे .

यह कतई उचित नहीं है और ऐसे मसलों पर कुछ एक सकारात्मक दृष्टिकोण तो अपनाना ही चाहिए ताकि दुनिया के किसी देश में भी पाकिस्तान जैसी पुनरावृत्ति ना हो. मुख़्तसर यह कहा जा सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान अब लंबे समय तक जेल में रहेंगे और उन्हें कानून से कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. पाकिस्तान एक बार फिर चौराहे पर खड़ा है और और लोकतंत्र छटपटाता हुआ दिखाई दे रहा है.

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