केंद्र सरकार या यों कहिए नरेंद्र मोदी के कहने पर भाजपाई राज्यपालों ने देशभर में विपक्षी दलों की सरकारों को तंग करने की मुहिम चला रखी थी. मई में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ व 4 अन्य जजों की सर्वसहमति से हुए 2 निर्णयों ने राज्यपालों को फटकारा है और उन की खुले शब्दों में भर्त्सना की है.
असल में तो यह लताड़ नरेंद्र मोदी को है क्योंकि उन के द्वारा तैनात किए गए दिल्ली के बैजल से ले कर सक्सेना तक सभी उपराज्यपाल अरविंद केजरीवाल की सरकार को तंग करने में लगे थे. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी को 3 बार विधानसभा चुनावों में और अब नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बुरी तरह हराया है जबकि हर बार भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा था. मोदी भाजपा को जिता नहीं सके तो उपराज्यपाल को विघ्न डालने के लिए लगा दिया जैसे विष्णु वामन अवतार बन कर राजा बलि के यहां पहुंचे थे. राज्यपाल वामन अवतार की तरह बेमतलब की मांगें कर रहे थे.
दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में सत्ता पलट में तब के राज्यपाल कोशियारी की जम कर खिंचाई की है. आशा तो थी कि सुप्रीम कोर्ट शिंदे सरकार को हटा देगी लेकिन चुनावों से एक साल पहले बेकार में उथलपुथल करने की जगह फैसला ऐसा दिया है कि शिंदे सरकार अब सूली पर अटकी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी की कमान शिंदे से छीन कर उद्धव ठाकरे को पकड़ा दी है जो चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे को दे दी थी.
राज्यपालों का गलत इस्तेमाल करना संविधान की हत्या करना है पर भारतीय जनता पार्टी तो शायद विश्वास करती है कि जैसे दुवासा ऋषि जब चाहें जो मांग कर सकते थे, वैसे ही भाजपा भी संविधान को तोड़मरोड़ सकती है. इंदिरा गांधी ने भी यह खूब किया था. कांग्रेस आमतौर पर राज्यपालों की अति पर चुप रहती है क्योंकि 40-50 साल जब पूरा राज कांग्रेसी प्रधानमंत्री के हाथों में था, राज्यपालों को विपक्षी सरकारों को हडक़ाने का काम दिया जाता है. अब डिग्री का फर्क है और राज्यपाल गैरभाजपा सरकारों में बंदूकधारी शिकारी की तरह शेर के शिकार में लगे रहते हैं. किसी भी भाजपा राज्य सरकार का राज्यपाल से कोई मतभेद नहीं है.
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