सौरभ रस्तोगी अपनी पत्नी शैली के साथ बरेली के फतेहगंज (पश्चिमी) थाना क्षेत्र के माली मोहल्ले में रहता था. उस का अपना मकान था, जिस के निचले तल पर उन की सोनेचांदी की ज्वैलरी की दुकान थी. ऊपरी तल पर उस का निवास था.
सौरभ का नौकर विनोद फतेहगंज से लगभग 2 किलोमीटर दूर खिरका गांव में रहता था. वह काम कर के रोजाना अपने घर चला जाता था. 3 मई की सुबह 9 बजे विनोद सौरभ रस्तोगी के घर पहुंचा और सड़क पर खड़े हो कर उस ने सौरभ को कई आवाज लगाई. लेकिन ऊपर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. जबकि रोजाना उस की आवाज सुनते ही सौरभ बाहर झांकता और उसे देख कर दुकान खोलने के लिए चाबियां नीचे फेंक देता.
दुकान के बराबर से ही ऊपर जाने के लिए सीढि़यां थीं, जिस में आगे की ओर चैनल लगा था और उस के पीछे शटर. शटर और चैनल दोनों हमेशा अंदर से बंद रहते थे. शटर को थोड़ा खुला देख विनोद आश्चर्य में पड़ गया. क्योंकि सौरभ अगर सामने की दुकान पर चाय पीने भी जाता था तो शटर लौक कर के जाता था.
विनोद ने सौरभ के बारे में पड़ोस में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. उस ने संदेह वाली बात पड़ोसी को बताई तो उस ने ऊपर जा कर देखने को कहा. विनोद पूरा शटर खोल कर सीढि़यों के रास्ते प्रथम तल से होते हुए जब दूसरे तल पर पहुंचा तो सौरभ को हाथपैर बंधे हुए पड़े पाया. उसे उस हालत में देख कर ही लग रहा था कि वह जीवित नहीं है. विनोद घबरा कर उल्टे पैर वापस लौट आया.
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