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खोखली होती जड़ें : भाग 3, गलती पर पछतावा करते एक बेटे की कहानी

‘‘ठीक हो जाएगा सबकुछ, परेशान मत हो, सत्यम…मंदी कोई हमेशा थोड़े ही रहने वाली है…एक न एक दिन तुम दोबारा अमेरिका चले जाओगे…उसी तरह बड़ी कंपनी में नौकरी करोगे.’’मेरी बात में सांत्वना तो थी ही पर उन की स्वार्थपरता पर करारी चोट भी थी. मैं ने जता दिया था, जिस दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा तुम पहले की ही तरह हमें हमारे हाल पर छोड़ कर चले जाओगे.

सत्यम कुछ नहीं बोला, निरीह नजरों से मु?ो देखने लगा. मानो कह रहा हो, कब तक नाराज रहोगी. बच्चों का दाखिला भी उस ने दौड़भाग कर अच्छे स्कूल में करा दिया.‘‘इस स्कूल की फीस तो काफी ज्यादा है सत्यम…इस नौकरी में तू कैसे कर पाएगा?’’‘‘बच्चों की पढ़ाई तो सब से ज्यादा जरूरी है मम्मी…उन की पढ़ाई में विघ्न नहीं आना चाहिए. बच्चे पढ़ जाएंगे… अच्छे निकल जाएंगे तो बाकी सबकुछ तो हो ही जाएगा.’’वह आश्वस्त था…लगा सौरभ ही जैसे बोल रहे हैं. हर पिता बच्चों का पालनपोषण करते हुए शायद यही भाषा बोलता है…पर हर संतान यह भाषा नहीं बोलती, जो इतने कठिन समय में सत्यम ने हम से बोली थी. मेरा मन एकाएक कसैला हो गया. मैं उठ कर बालकनी में जा कर कुरसी पर बैठ गई.

भीषण गरमी के बाद बरसात होने को थी. कई दिनों से बादल आसमान में चहलकदमी कर रहे थे, लेकिन बरस नहीं रहे थे. लेकिन आज तो जैसे कमर कस कर बरसने को तैयार थे. मेरा मन भी पिछले कुछ दिनों से उमड़घुमड़ रहा था, पर बदरी थी कि बरसती नहीं थी.मन की कड़वाहट एकाएक बढ़ गई थी. 5 साल पुराना बहुत कुछ याद आ रहा था. सत्यम के आने से पहले सोचा था कि उस को यह ताना दूंगी…वह ताना दूंगी… सौरभ ने भी बहुत कुछ कहने को सोच रखा था पर क्या कर सकते हैं मातापिता ऐसा…वह भी जब बेटा अपनी जिंदगी के सब से कठिन दौर से गुजर रहा हो.एकाएक बाहर बूंदाबांदी शुरू हो गई. मैं ने अपनी आंखों को छुआ तो वहां भी गीलापन था. बारिश हलकीहलकी हो कर तेज होने लगी और मेरे आं

आंसू भी बेबाक हो कर बहने लगे. मैं चुपचाप बरसते पानी पर निगाहें टिकाए अपने आंसुओं को बहते हुए महसूस करती रही. तभी अपने कंधे पर किसी का स्पर्श पा कर मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो सत्यम खड़ा था… चेहरे पर कई भाव लिए हुए… जिन को शब्द दें तो शायद कई पन्ने भर जाएं. मैं ने चुपचाप वहां से नजरें हटा दीं. वह पास पड़े छोटे से मूढ़े को खिसका कर मेरे पैरों के पास बैठ गया.

कुछ देर तक हम दोनों ही चुप बैठे रहे. मैं ने अपने आंसुओं को रोकने का प्रयास नहीं किया.‘‘मम्मी, क्या मु?ो इस समय बच्चों को इतने बड़े स्कूल में नहीं डालना चाहिए था…मैं ने सोचा जो भी थोड़ीबहुत बचत है, उन की पढ़ाई का तब तक का खर्चा निकल जाएगा…हम तो जैसेतैसे गुजरबसर कर ही लेंगे, जब तक मंदी का समय निकलता है…क्या मैं ने ठीक नहीं किया, मम्मी?’’सत्यम ने शायद बातचीत का सूत्र यहीं से थामना चाहा, ‘‘आखिर, पापा ने भी तो हमेशा मेरी पढ़ाईलिखाई पर अपनी हैसियत से बढ़ कर खर्च किया.’’सत्यम के इन शब्दों में बहुत कुछ था. लज्जा, अफसोस…पिता के साथ किए व्यवहार से…व पिता के अथक प्रयासों व त्याग को महसूस करना आदि.‘‘तुम ने ठीक किया सत्यम, आखिर सभी पिता यही तो करते हैं, लेकिन अपने बच्चों को पालते हुए अपने बुढ़ापे को नहीं भूलना चाहिए.

वह तो सभी पर आएगा. संतान बुढ़ापे में तुम्हारा साथ दे न दे पर तुम्हारा बचाया पैसा ही तुम्हारे काम आएगा. संतान जब दगा दे जाएगी… मं?ाधार में छोड़ कर नया आसमान तलाशने के लिए उड़ जाएगी…तब कैसे लड़ोगे बुढ़ापे के अकेलेपन से. बीमारियों से, कदम दर कदम, नजदीक आती मृत्यु की आहट से…कैसे? सत्यम…आखिर कैसे…’’ बोलतेबोलते मेरा स्वर व मेरी आंखें दोनों ही आद्र हो गए थे.मेरे इतना बोलने में कई सालों का मानसिक संघर्ष था. पति की बीमारी के समय जीवन से लड़ने की उन की बेचारगी की कशमकश थी. अपनी दोनों की बिलकुल अकेली सी बीती जा रही जिंदगी का अवसाद था और शायद वह सबकुछ भी जो मैं सत्यम को जताना चाहती थी…कि जो कुछ उस ने हमारे साथ किया अगर इन क्षणों में हम उस के साथ करें…हर मातापिता अपनी संतान से कहना चाहते हैं कि जो हमारा आज है वही उन का कल है…लेकिन आज को देख कर कोई कल के बारे में कहां सोचता है, बल्कि कल के आने पर आज को याद करता है.सत्यम थोड़ी देर तक विचारशून्य सा बैठा रहा, फिर एकाएक प्रायश्चित करते हुए स्वर में बोला, ‘‘मम्मी, मु?ो माफ नहीं करोगी क्या?’’मैं ने सत्यम की तरफ देखा, वह हक से माफी भी नहीं मांग पा रहा था क्योंकि वह सम?ा रहा था कि वह माफी का भी हकदार नहीं है.

सत्यम ने मेरे घुटनों पर सिर रख दिया, ‘‘मम्मी, मेरे किए की सजा मु?ो मिल रही है. मैं जानता हूं कि मु?ो माफ करना आप के व पापा के लिए इतना सरल नहीं है फिर भी धीरेधीरे कोशिश करो मम्मी…अपने बेटे को माफ कर दो. अब कभी आप दोनों को छोड़ कर नहीं जाऊंगा…मु?ो यहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी…आप दोनों का बुढ़ापा अब अकेले नहीं बीतेगा…मैं हूं आप का सहारा…अपनी जड़ों को अब और खोखला नहीं होने दूंगा. जो बीत गया मैं उसे वापस तो नहीं लौटा सकता पर अब अपनी गलतियों को सुधारूंगा,’’ कह कर सत्यम ने अपनी बांहें मेरे इर्दगिर्द लपेट लीं जैसे वह बचपन में करता था.‘‘मु?ो भी माफ कर दो, मम्मी,’’ नीमा भी सत्यम की बगल में बैठती हुई बोली, ‘‘हमें अपने किए पर बहुत पछतावा है…पापा से भी कहिए कि वह हम दोनों को माफ कर दें. हमारा कृत्य माफी के लायक तो नहीं पर फिर भी हमें अपनी गलतियां सुधारने का मौका दीजिए,’’ कह कर नीमा ने मेरे पैर पकड़ लिए. दोनों बच्चे इस तरह से मेरे पैरों के पास बैठे थे.

सोचा था अब तो जीवन यों ही अकेला व बेगाना सा निकल जाएगा… बच्चे हमें कभी नहीं सम?ा पाएंगे पर हमारा प्यार जो उन्हें नहीं सम?ा पाया वह कठिन परिस्थितियां सम?ा गईं.‘‘बस करो सत्यम, जो हो गया उसे हम तो भूल भी चुके थे. जब तुम सामने आए तो सबकुछ याद आ गया. पर माफी मु?ा से नहीं अपने पापा से मांगो, बेटा… मां का हृदय तो बच्चों के गलती करने से पहले ही उन्हें क्षमा कर देता है,’’ कह कर मैं स्नेह से दोनों का सिर सहलाने लगी.सत्यम अपनी भूल सुधारने के लिए मेरे पैरों से लिपटा हुआ था.‘‘जाओ सत्यम, पापा अपने कमरे में हैं.

दोनों उन के दोबारा खुरचे घावों पर मरहम लगा आओ…मु?ो विश्वास है कि उन की नाराजगी भी अधिक नहीं टिक पाएगी.’’सत्यम व नीमा हमारे कमरे की तरफ चले गए. अकस्मात मेरा मन जैसे परम संतोष से भर गया था. बाहर बारिश पूरी तरह रुक गई थी, हलकी शीतल लालिमा चारों तरफ फैल गई थी जिस में सबकुछ प्रकाशमय हो रहा था.

औरत एक पहेली : भाग 3

उस पुरुष को पहचान कर मेरा रोंआरोंआ सिहर उठा था. पैरों तले जमीन खिसकती जा रही थी.

यह कोई और नहीं, मेरे भूतपूर्व पति सूरज थे. इन से वर्षों पहले मेरा तलाक हो चुका था. फिर मैं ने संदीप के साथ नई दुनिया बसा ली थी और संदीप को अपने अतीत से हमेशा अनभिज्ञ रखा था.

अब सूरज को देख कर मेरे कड़वे अतीत का वह काला पन्ना फिर से उजागर हो गया था, जिस की यादें मेरे मन की गहराइयों में दफन हो चुकी थीं.

वर्षों पहले मांबाप ने बड़ी धूमधाम से मेरा विवाह सूरज के साथ किया था. सूरज एक कुशल वास्तुकार थे. घर भी संपन्न था. विवाह के प्रथम वर्ष में ही मैं एक सुंदर, स्वस्थ बेटे की मां बन गई थी.

फिर हमारी खुशियों पर एकाएक वज्रपात हुआ. एक सड़क दुर्घटना में सूरज की दोनों टांगों की हड्डियां टूट कर चूरचूर हो गई थीं. जान बचाने हेतु डाक्टरों को उन की टांगें काट देनी पड़ी थीं.

एक अपाहिज पति को मेरा मन स्वीकार नहीं कर पाया. मैं खिन्न हो उठी. बातबात पर लड़ने, चिड़चिड़ाने लगी. मन का असंतोष अधिक बढ़ गया तो मैं सूरज को छोड़ कर मायके  में जा कर रहने लगी थी.

मायके वालों के प्रयासों के बाद भी मैं ससुराल जाने को तैयार नहीं हो पाई तो सब ने मुझे दुखी देख कर मेरा तलाक कराने के लिए कचहरी में प्रार्थनापत्र दिलवा दिया. मैं सूरज से छुटकारा पा कर किसी समर्थ पूर्ण पुरुष से विवाह करने के लिए अत्यंत इच्छुक थी.

एक दिन हमेशा के लिए हमारा संबंधविच्छेद हो गया. कानून ने सूरज की विकलांगता के कारण हमारे बेटे विक्की को मेरी सुपुर्दगी में दे दिया.

विक्की की वजह से मेरे पुनर्विवाह में अड़चनें आने लगीं. बच्चे वाली स्त्री से विवाह करने के लिए कौन पुरुष तैयार हो सकता था. मेरे मायके वाले भी विक्की की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लादने के लिए तैयार नहीं हो पाए.

इन सब बातों की जानकारी हो जाने पर एक दिन सूरज की माताजी मेरे मायके आ पहुंचीं. उन्होंने रोरो कर विक्की को मुझ से ले लिया.

सूरज की माताजी प्रसन्न मन से वापस लौट आईं. मेरा बोझ हलका हो गया था. विक्की की जुदाई के गम से अधिक मुझे दूसरे विवाह की अभिलाषा थी.

एक दिन मेरा विवाह संदीप से संपन्न हो गया. हम दोनों का यह दूसरा विवाह था. संदीप विधुर थे. विवाह की पहली रात ही हम दोनों ने अपनेअपने अतीत को हमेशा के लिए भुला देने की प्रतिज्ञा कर ली थी.

फिर एक दिन मायके जाने पर मुझे मालूम हुआ कि सूरज की माताजी सूरज और विक्की को ले कर किसी अन्य शहर में चली गई हैं.

‘‘बैठो, रेखा. खड़ी क्यों हो? लगता है, मुझे अचानक देख कर हैरान रह गई हो. तुम ने तो समझ लिया होगा मैं कहीं मरखप गया होऊंगा.’’

‘‘नहीं, सूरज, ऐसा मत कहो. सभी को जीवित रहने का पूरापूरा अधिकार है,’’ मेरे मुंह से अचानक निकल गया और मैं एक कुरसी पर निढाल सी बैठ गई.

‘‘मेरे जीवित रहने का अधिकार तो तुम छीन कर ले गई थीं. रेखा, तुम छोड़ कर चली गईं तो मैं लाश बन कर रह गया था. अगर विनीता का सहारा नहीं मिलता तो मैं अब तक अवश्य मर चुका होता. आज विनीता की बदौलत ही मैं इतनी बड़ी फर्म का मालिक बना बैठा हूं.’’

बहुत प्रयत्न करने के बाद भी मेरे आंसू रुक नहीं पाए. मैं ने मुंह फेर कर रूमाल से अपना चेहरा साफ किया.

सूरज कहते जा रहे थे, ‘‘तुम्हें वह नर्स याद है जो मेरी देखभाल के लिए मां ने घर में रखी थी. वह शर्मीली सी छुईमुई लड़की विनी.’’

‘ओह, अब मैं समझी कि मुझे विनीताजी का चेहरा इतना जानापहचाना क्यों लग रहा था.’

‘‘तुम विनी को नहीं पहचान पाईं, परंतु विनी ने पहली बार देख कर ही तुम्हें पहचान लिया था. उस ने मुझे तुम्हारे बारे में, तुम्हारी आर्थिक स्थिति और रहनसहन के बारे में सभी कुछ बतला दिया था. मैं तुम्हारी यथासंभव सहायता करने के लिए तुरंत तैयार हो गया था. मेरे आग्रह पर विनीता ने कदमकदम पर तुम्हारी और तुम्हारे पति की मदद की थी.

‘‘मेरे पैर मौजूद होते तो मैं खुद चल कर तुम्हारे घर आता. तुम्हारे सामने दौलत के ढेर लगा कर कहता, ‘जितनी दौलत की आवश्यकता हो, ले कर अपनी भूख मिटा लो. तुम इसी वजह से मुझे छोड़ कर गई थीं कि मैं अपाहिज हूं. दौलत पैदा करने में असमर्थ हूं…तुम्हें पूर्ण शारीरिक सुख नहीं दे पाऊंगा…’’ कहतेकहते सूरज का गला भर आया था.

‘‘बस, रहने दो सूरज, मैं और अधिक नहीं सुन सकूंगी,’’ मैं रो पड़ी, ‘‘एक जहरीली चुभती हुई यादगार ही तो हूं, भुला क्यों नहीं दिया मुझे.’’

‘‘कैसे भुला पाता कि मेरे विक्की की तुम मां हो…’’

‘‘विक्की कहां है, सूरज? वह कैसा है, क्या मैं उसे देख सकती हूं,’’ मैं व्यग्र हो कर कुरसी से उठ कर खड़ी हो गई.

सूरज अपनेआप को संयत कर चुके थे, ‘‘विक्की यानी विकास से तुम विनीता के दफ्तर में मिल चुकी हो. वह विनीता के बराबर वाली कुरसी पर बैठ कर दफ्तर के कामों में उस का हाथ बंटाता है. अब वह एक प्रसिद्ध वास्तुकार है. तुम्हारे मकान का नक्शा उसी ने तैयार किया था.’’

‘‘सच, वही मेरा विक्की है,’’ हर्ष व उत्तेजना से मैं गद्गद हो उठी. मेरी आंखों के सामने वह गोरा, स्वस्थ युवक घूम गया, जिस से मैं कई बार मिल चुकी थी, बातें कर चुकी थी. मेरे मकान के मुहूर्त पर वह विनीता के साथ मेरे घर भी आया था.

अचानक मेरे मन में एक अनजाना डर उभर आया, ‘‘क्या विक्की जानता है कि मैं उस की मां हूं?’’

‘‘नहीं, वह उस मां से नफरत करता है जो उस के अपाहिज पिता को छोड़ कर सुख की तलाश में अन्यत्र चली गई थी. वह विनीता को ही अपनी सगी मां मानता है. जानती हो रेखा, वह मुझे कितना चाहता है, मेरे बिना भोजन भी नहीं करता.’’

‘‘सूरज, मेरी एक बात मानोगे.’’

‘‘कहो, रेखा.’’

‘‘विक्की से कभी मत कहना कि मैं उस की मां हूं. यही कहना कि विनीता ही उस की असली मां है,’’ रोती हुई मैं सूरज के कमरे से बाहर निकल आई.

जिस पौधे को मैं उजाड़ कर चली गई थी, विनीता ने उसे जीवनदान दे कर हराभरा कर दिया था, मैं सोचती रह गई कि स्वार्थी विनीता है या मैं. कितना गलत समझ बैठी थी मैं विनीता को. इस महान नारी ने 2 बार मेरा घर बसाया था. एक बार अपाहिज सूरज और मासूम बेसहारा विक्की को अपनाकर और दूसरी बार मेरा मकान बनवा कर.

मैं सीढि़यां उतर कर नीचे आ गई.

घर वापस लौटी तो मेरे चेहरे की उड़ी हुई रंगत देख कर बच्चे और संदीप सब सोच में पड़ गए. एकसाथ ही मुझ से कारण पूछने लगे. मैं ने एक गिलास पानी पिया और इत्मीनान से बिस्तर पर बैठ कर संदीप से कहने लगी, ‘‘सुनो, तुम विनीताजी के दफ्तर में जा कर उन्हें और उन के पूरे परिवार को रात के खाने के लिए आमंत्रित कर आओ. उन्होंने हमारे लिए इतना सब किया है, हमारा भी तो उन के प्रति कुछ फर्ज है.’’

बच्चे हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए. संदीप मेरी ओर ऐसे देखने लगे, जैसे कह रहे हों, ‘औरत सचमुच एक पहेली होती है. उसे समझ पाना असंभव है.’

GHKKPM Spoiler alert : पहली मुलाकात में ईशान को क्यों हुई सवि से नफरत?

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin New Twist : टीवी शो ‘गुम है किसी के प्यार में’ के मेकर्स ने नई कास्ट के चेहरों से पर्दा उठा दिया है. बीते एपिसोड में सवि और ईशान की मुलाकात दिखाई गई जो कि बेहद खराब रही. दरअसल ईशान और सवि की पहली मीटिंग से पहले सवि ने ईशान का नुकसान करवा दिया. वो भी रीवा के सामने जिससे ईशान सवि से नफरत करने लगा है.

किसने तोड़ा ईशान की कार का शीशा?

शो में आगे दिखाया जाता है कि कॉलेज जाने के लिए सवि लेट हो रही होती है, तभी ईशान और रीवा दोनों एक साथ कार में बैठ कर उसी रास्ते से गुजर रहे होते है. दोनों बात ही कर रहे होते हैं कि तभी उनकी कार का बैक वाला शीशा फूट जाता है. इसके बाद जल्दी से ईशान कार रोकता है और पीछे मुड़कर देखता है कि उसकी कार का शीशा कैसे टूटा. फिर दोनों कार से उतरते है और लोगों से पूछते है कि किसने ये हरकत की.

सवि को देख रीवा को क्यों आया गुस्सा?

आगे के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि सवि एक पेड़ के पीछे से बाहर निकल कर आती है और कहती है कि उसने कुछ बच्चों को यहां से भागते हुए देखा है, जिन्होंने ही ये हरकत की है. फिर वह बिना किसी से पूछे रीवा की सीट पर बैठ जाती है, जिसकी वजह से रीवा को पीछे बैठना पड़ता है. ये देख रीवा को बहुत गुस्सा आता है. हालांकि ये सब इतनी जल्दबाजी में होता है कि ईशान और रीवा उस वक्त सवि से कुछ नहीं कहते.

इसके थोड़ी देर बाद ईशान कहता है, कहां हैं वो बच्चे? तभी सवि का कॉलेज आ जाएगा और वह कहती है, सॉरी मैंने आपसे झूठ कहा. मैं तो कॉलेज जाने के लिए लिफ्ट ढूंढ रही थी, क्योंकि कोई गाड़ी ही नहीं रोक रहा था. इसलिए गुलेल से मैंने आपकी कार का शीशा तोड़ दिया-सॉरी. ये सच जान कर ईशान और रीवा को बहुत गुस्सा आता है. वहीं आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि इन तीनों की जिंदगी में एक नया मोड़ आएगा. साथ ही रीवा को इंसिक्योरिटी ईशूज भी होने लगेंगे.

YRKKH Spolier alert : अबीर को खोने के बाद अक्षरा हुई बेहाल, देखें वीडियो

YRKKH Spolier alert : प्रणाली राठौड़ (Pranali Rathod) और हर्शद चोपड़ा (Harshad Chopda) स्टारर टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इस समय काफी मजेदार ट्रैक चल रहा है. शो में लंबे समय से अक्षरा और अभिमन्यु अपने बेटे अबीर की कस्टडी के लिए केस लड़ रहे हैं. हालांकि अब केस का फैसला आ गया है. बीते एपिसोड में दिखाया गया है कि कोर्ट ने अभिमन्यु के हक में अपना फैसला सुनाया है यानी अबीर अभिमन्यु के साथ रहेगा. वहीं अक्षरा हफ्ते में एक बार अबीर से मिल सकेगी.

कोर्ट (YRKKH Spolier alert) का ये फैसला सुनते ही अक्षरा बेसुध होकर जमीन पर बैठ जाती है. अक्षु की ये हालत देखकर अभिमन्यु के साथ-साथ बाकी घरवालें भी हैरान हो जाते हैं. इसके बाद अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अक्षरा की हालत और ज्यादा बिगड जाती है और वो पागलों जैसी हरकते करने लगती हैं.

कोर्ट के बाहर अक्षरा ने किया हंगामा

कोर्ट के फैसले के बाद अभिनव अक्षरा को संभालने की पूरी कोशिश करता है लेकिन अक्षु किसी की भी बात का जवाब नहीं देती और अपनी ही दुनिया में खोई रहती है. इसके बाद अभिनव अक्षरा के लिए पानी लेने जाता है. अक्षरा अभी भी अबीर के बारे में सोचती है. जहां अबीर उसे अपने सामने नजर आता है और वह उसके साथ फुटबॉल खेलती है. ये सोचते-सोचते वह सड़क पर निकल जाती है.

अक्षु (YRKKH Spolier) को ढूंढते हुए अभिनव भी वहां पहुंच जाता है. इसी समय अभिमन्यु भी अक्षरा को देखता है और तेज-तेज से उसका नाम चिल्लाने लगता है. अभिमन्यु की आवाज सुनते ही अक्षरा को होश आता है और वह सड़क पर गिर जाती है. जहां वह बार-बार अबीर का नाम चिल्लाते हुए कहती है क्यों उससे उसका बेटा छीन लिया गया.

घर का सामान क्यों तोड़ेगा कायरव?

इसके आगे देखने को मिलेगा कि अक्षरा के साथ-साथ गोयनका परिवार के सभी सदस्य भी परेशान होते हैं. हालांकि सब घर वापस पहुंच जाते है लेकिन अक्षरा बाकी सबके साथ घर नहीं आती, जिस वजह से कायरव बार-बार बड़े पापा को फोन करता है तभी मुस्कान की नजर दरवाजे पर पड़ती है. जहां वह मनीष और स्वर्णा का उदास चेहरा देखती है.

इसके बाद सब समझ जाते है कि कोर्ट का फैसला अभिमन्यु के हक में गया है. जब ये बात कायरव को पता चलती है तो वह घर का सारा सामान तोड़ने लगता है. वहीं दूसरी और सुरेखा बोलती है कि प्यार पर पैसा भारी पड़ ही गया. अभिमन्यु के पैसों की ताकत के आगे कोर्ट भी कुछ नहीं कर पाया. इसके बाद अक्षरा क्या करती है ये तो आने वाले एपिसोड (YRKkH Spolier alert) में ही पता चलेगा.

फेफड़ों को साफ व मजबूत बनाने के लिए अपनाएं ये 3 तरीके

Lungs Problem : आज के समय में पॉल्यूशन और स्मोकिंग की वजह से फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. रोजान कई लोगों की फेफड़ों की बीमारी के कारण जान जा रही है. इसके अलावा शरीर को स्वस्थ रखने के लिए फेफड़ों का हेल्दी व मजबूत रहना भी बहुत जरूरी है. तो चलिए जानते हैं 3 ऐसे उपायों के बारे में जिनका नित-नियम पालन करने से आप अपने फेफड़ों (lungs) को हेल्दी बना सकते हैं.

फेफड़ों की गंदगी को साफ करने के 3 तरीके

  • स्टीम

लंग्स (Lungs Problem) को मजबूत बनाने के लिए सोने से पहले स्टीम लेना काफी लाभदायक होता है. स्टीम, फेफड़ों के लिए सैनिटाइजर का काम करती है. इसके अलावा स्टीम लेने से फेफड़ों में जमी गंदगी भी साफ हो जाती है.

  • हल्दी वाला दूध

शरीर के लिए हल्दी वाला दूध काफी फायदेमंद होता है. दरअसल हल्दी में एंटीवायरल और एंटीफंगल गुणों की भरपूर मात्रा होती हैं, जिससे फ्लू और सर्दी-खांसी होने का खतरा कम हो जाता है. इसके अलावा इससे ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों में कफ (Lungs Problem) और साइनस जैसी तमाम समस्याओं में भी आराम मिलता है.

  • अनुलोम विलोम प्राणायाम

बता दें कि, प्रतिदिन प्राणायाम करने से शरीर को कई फायदे मिलते हैं. साथ ही इससे फेफड़ों (Lungs Problem) को मजबूती मिलती है, जिससे लंग्स आसानी से डिटॉक्स करता है. इसलिए बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक सभी को अनुलोम विलोम प्राणायाम करना चाहिए.

 

इश्क की राह में भटकी औरत

झारखंड के जिला सिंहभूम में एक तहसील है घाटशिला. इस तहसील का उपनगर मउभंडार ङ्क्षहदुस्तान कौपर लिमिटेड की वजह से प्रसिद्ध है. मउभंडार में जहां कौपर फैक्ट्री है, वहां पास में ही कौपर कालोनी है, जो वर्कर्स के लिए बनाई गई है. इस कालोनी से थोड़ा हट कर मउभंडार वक्र्स हौस्पिटल है, जो स्थानीय लोगों के लिए बनाया गया है.

सन 1979 में इस हौस्पिटल में एक डाक्टर तैनात था प्रभाकरण. उस की पत्नी डा. शांति भी उसी अस्पताल में तैनात थीं. इस डाक्टर दंपति को अस्पताल के प्रांगण में ही रहने के लिए बंगला मिला हुआ था. डाक्टर प्रभाकरण शक्लसूरत और व्यवहार से जितना असभ्य, बदमिजाज और क्रूर लगता था, डा. शांति अपने नाम के अनुरूप उतनी ही शांत स्वभाव की थीं. डा. प्रभाकरण और डा. शांति के 2 बच्चे थे, एक बेटा एक बेटी. दोनों बच्चे मोसाबनी कौनवेंट स्कूल में पढ़ रहे थे.

डा. प्रभाकरण असभ्य और बदमिजाज ही नहीं बल्कि दिलफेंक भी था. अस्पताल की किसी डाक्टर अथवा नर्स के साथ उस का चक्कर चलता रहता था. कई बार तो उस की प्रेम कहानियों की चर्चा अस्पताल से बाहर कालोनी तक पहुंच जाती थीं. यही वजह थी कि डा. शांति को पति की इन गलत हरकतों की वजह से कालोनी के लोगों की चुभती नजरों का सामना करना पड़ता था.

कई बार तो क्लब वगैरह में मुंहफट अफसर कह भी देते थे, ‘‘भाभीजी, डाक्टर साहब को नकेल डाल कर रखिए. इतनी काबिल और खूबसूरत पत्नी के होते हुए भी पता नहीं किसकिस नाले का पानी पीते रहते हैं.’’ डा. शांति अपमान का घूंट पीने के अलावा कुछ नहीं कर पाती थीं. अस्पताल की सभी लेडी डाक्टर और नर्सें एक जैसी नहीं थीं. कई बार डा. प्रभाकरण को किसी लेडी डाक्टर या नर्स के हाथों अपमानित भी होना पड़ता था. चीफ मैडिकल औफिसर डा. पुरुकायस्थ ने प्रभाकरण को कई बार समझाया भी था लेकिन इस का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

कड़वे मीठे अनुभवों के बीच जैसेतैसे जिंदगी गुजर रही थी, तभी डा. शांति के जीवन में तूफान बन कर आई हेमा. हेमा डा. प्रभाकरण की दूर के रिश्ते की बहन की बेटी थी और उस की नियुक्ति बतौर नर्स टाटा मेन हौस्पिटल टाटानगर में हुई थी. पूर्व में हेमा डा. प्रभाकरण से शादी के सपने देखा करती थी. दोनों के रिश्ते की बात भी चली थी, लेकिन प्रभाकरण ने हेमा का रिश्ता ठुकरा कर डा. शांति से प्रेम विवाह कर लिया था. उस समय हेमा बहुत रोई थी, उस की मां और बहन ने भी खूब हंगामा किया था.

मउभंडार हौस्पिटल से प्रतिदिन 2-3 मरीजों को एंबुलेंस से 30-35 किलोमीटर दूर टाटा हौस्पिटल टाटानगर भेजा जाता था. इस की वजह यह थी कि मउभंडार अस्पताल में पर्याप्त सुविधाएं नहीं थीं, गंभीर मरीजों को टाटा हौस्पिटल भेजना पड़ता था. हेमा टाटानगर स्थित टाटा हौस्पिटल के हौस्टल में रहती थी. शनिवार को वह अस्पताल की एंबुलेंस से मउभंडार आ जाती थी और सोमवार सुबह एंबुलेंस से ही टाटानगर लौट जाती थी. मउभंडार में वह डा. प्रभाकरण के बंगले पर ही ठहरती थी.

डा. प्रभाकरण रंगीनमिजाज आदमी था, डा. शांति की गैरमौजूदगी का लाभ उठा कर उस ने हेमा से संबंध बना लिए थे. जब डा. शांति घर में नहीं होती थी तो प्रभाकरण और हेमा इस का जम कर लाभ उठाते थे. डा. शांति को अपने घर में हेमा की मौजूदगी अच्छी नहीं लगती थी. इस की वजह यह कि उन्हें पति की फितरत अच्छी तरह मालूम थी. लेकिन वह चाह कर भी इसलिए कुछ नहीं कर पाती थीं क्योंकि हेमा उन के ससुराल पक्ष से थी. जिस दिन हेमा मउभंडार आई होती थी, उस दिन डा. प्रभाकरण नाइट ड्यूटी पर रहता था. काम सिखाने का बहाना कर के वह हेमा को भी साथ रखता था.

जब हेमा और प्रभाकरण की कहानियां सार्वजनिक होने लगीं तो डा. शांति हेमा के मउभंडार आने पर आपत्ति करने लगीं. लेकिन प्रभाकरण पर हेमा के मादक और मांसल शरीर का नशा छाया हुआ था. हेमा को ले कर डा. प्रभाकरण और डा. शांति के बीच अकसर झगड़े और हाथापाई होती थी, जिस की आवाजें बंगले के बाहर तक सुनाई देती थीं. सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाले नौकरचाकर भी बंगले की कहानी खूब चटकारे ले कर सुनाते थे. यह अलग बात है कि उन सब की सहानुभूति डा. शांति के साथ रहती थी. जैसेतैसे दिन गुजर रहे थे कि एक दिन खबर आई कि डा. शांति का ट्रांसफर खेतड़ी कौपर प्रोजेक्ट में हो गया है. चूंकि कालोनी छोटी थी इसलिए इस बात को फैलने में देर नहीं लगी. महीने भर के अंदर ही डा. शांति अपने दोनों बच्चों के साथ खेतड़ी चली गईं और वहां पर वक्र्स हौस्पिटल जौइन कर लिया. इस के पीछे डा. पुरुकायस्थ का हाथ था. दरअसल ऐसा कर के उन्होंने अपनी मानवता का भरपूर परिचय दिया था.

लेकिन डा. शांति के जाने के बाद प्रभाकरण ने अपनी पत्नी के डा. पुरुकायस्थ के साथ झूठेअवैध संबंध की कहानी सुनानी शुरू कर दी. जबकि पत्नी और बच्चों के जाने के बाद वह खुद और भी ज्यादा धूर्त हो गया था. अब उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. हेमा का टाटा अस्पताल से मउभंडार आनाजाना पूर्ववत चलता रहा. हेमा की पोङ्क्षस्टग मउभंडार वक्र्स हौस्पिटल में हो जाए इस के लिए प्रभाकरण कलकत्ता औफिस में हर तरह से जुगाड़ बैठा रहा था. इसलिए अब हेमा ज्यादा दिन मउभंडार में ही रहा करती थी. शांति के चले जाने के बाद प्रभाकरण और हेमा ने निर्लज्जता की सारी सीमाओं को पार कर दिया था. टाटा अस्पताल का हौस्टल छोड़ कर वह मउभंडार में ही रहने लगी थी. ड्यूटी के लिए अब वह मउभंडार से ही हौस्पिटल की एंबुलेंस से टाटानगर आनाजाना करने लगी थी. डा. शांति के जाने, हेमा और प्रभाकरण के साथसाथ रहने की बातें धीरेधीरे पुरानी पडऩे लगी थीं.

प्रभाकरण और हेमा जल्दी ही केरल जा कर शादी करेंगे. इस के लिए प्रभाकरण ने डा. शांति को तलाक का नोटिस भेजा है, जैसी बातें लोगों को अकसर सुनने को मिलती रहती थीं. लेकिन कालोनी वालों को यह सब सुननेजानने में अब कोई दिलचस्पी नहीं थी. इसी बीच अफवाह फैली कि अब डा. प्रभाकरण की नजर डा. शांति की जगह पर आई डा. मधु करकेट्टा पर है. उसे रिझाने के लिए वह उस के आगेपीछे घूम रहा है. प्रभाकरण संथाली सौंदर्य डा. मधु करकेट्टा का उपासक बन गया है, यह जानकारी मिलते ही हेमा किसी घायल नागिन की तरह फुफकार उठी. आए दिन दोनों के चीखनेचिल्लाने की आवाजें हौस्पिटल परिसर में गूंजने लगीं. ऐसी बातों को फैलाने में सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाले ही हवा देते थे. मउभंडार हौस्पिटल में हेमा की नियुक्ति होना निश्चित हो गया था कि अचानक हेमा केरल चली गई. उसे केरल के किसी हौस्पिटल में अच्छी नौकरी मिल गई थी. यह बात प्रभाकरण ने लोगों को खुद बताई थी. हेमा के जाने के ठीक एक महीने बाद उस के पिता और भाई उसे समझाबुझा कर केरल ले जाने के लिए मउभंडार आए. लेकिन हेमा वहां नहीं थी. जब प्रभाकरण ने उन्हें बताया कि हेमा एक महीने पहले ही वहां से चली गई है तो उन्हें आश्चर्य हुआ. हेमा केरल पहुंची ही नहीं थी.

वहां उसे कोई नौकरी मिलने वगैरह की कोई बात भी उन के सामने नहीं आई थी. उस ने केरल आने की खबर भी नहीं दी थी. सोचने वाली बात यह थी कि हेमा केरल नहीं गई तो कहां गई? अगर प्रभाकरण ने उसे केरल जाने वाली ट्रेन में बैठाया तो फिर वह रास्ते में गायब कैसे हो गई, जैसे कितने ही सवाल मुंह बाए खड़े थे. प्रभाकरण की झूठीसच्ची बातों ने उसे शक के घेरे में डाल दिया था. फिर भी उन दोनों ने 2 दिनों तक हौस्पिटल के डाक्टर, नर्स से ले कर सारे कर्मचारियों से हेमा के बारे में पूछताछ की. लेकिन सब का एक ही जवाब था कि पिछले एक महीने से उसे किसी ने नहीं देखा. हर ओर से निराश हो कर वे दोनों टाटा मेन हौस्पिटल जमशेदपुर भी गए, पर हेमा का कुछ पता नहीं लग सका. वे लोग दुखी और निराश हो कर लौट तो गए, लेकिन 2 हफ्ते बाद ही केरल पुलिस हेमा के लापता होने के संदर्भ में पूछताछ करने के लिए मउभंडार आ पहुंची.

लेकिन डा. प्रभाकरण डा. करकेट्टा के साथ दीर्घा बीच गया हुआ था. जब 2 दिन तक प्रभाकरण नहीं लौटा तो पुलिस टीम दीर्घा पहुंची और प्रभाकरण को ढूंढ़ निकाला. पूछताछ के दौरान वह एक ही बात दोहराता रहा कि हेमा को उस ने केरल जाने वाली गाड़ी में चढ़ा दिया था. हेमा कहां गई उसे कुछ नहीं पता. निराश हो कर पुलिस वापस तो लौट गई लेकिन अभी प्रभाकरण की मुश्किलें कम नहीं हुई थीं. उस साल इतनी बारिश हुई थी कि स्वर्णरेखा नदी का उफान बहुत ही उन्मादी और भयानक हो गया था.

इतना भयानक कि नदी का पानी कौपर फैक्टरी के गेट तक आ पहुंचा था. ऐसा लग रहा था कि पूरी कालोनी ही जल निमग्न हो जाएगी. बहुत सारे बहे हुए मृत जानवरों की लाशें बह कर आ गई थीं और कालोनी में दुर्गंध पैदा कर रही थीं. प्रभाकरण के घर से भी बहुत बदबू आ रही थी. इसी बीच केरला पुलिस सादे कपड़ों में फिर से मउभंडार आ पहुंची. उस ने हौस्पिटल में ही प्रभाकरण को जा घेरा. सब की मौजूदगी में जब प्रभाकरण के बंगले को तलाशी के लिए खोला गया तो मारे दुर्गंध के लोगों को नाक पर रूमाल रखने पड़े. जिस कमरे से भयानक दुर्गंध आ रही थी, उस में टीन का एक बक्सा रखा हुआ था. पानी उस बक्से में से बह कर बाहर आंगन में आ कर नाली में मिल रहा था. पुलिस ने जैसे ही बक्से को खोला, वहां खड़े लोगों की रूह कांप उठी. बक्से में टुकड़ों में कटी हेमा की लाश नमक और एसिड में रखी हुई थी. थोड़ा हिलाते ही उस के चेहरे से मांस अलग हो गया. उस भयानक दृश्य को देखने के लिए हजारों की भीड़ एकत्र हो गई. सारे सबूतों के साथ पुलिस प्रभाकरण को ले कर जमशेदपुर के टाटा पुलिस स्टेशन ले गई. जहां उस ने अपना गुनाह कबूल लिया. उस ने जो बताया वह क्रूरता की पराकाष्ठा तो थी ही साथ ही मउभंडार वक्र्स हौस्पिटल के मैनेजमैंट की लापरवाही का भी शर्मनाक नमूना था.

हेमा के दर्दनाक अंत की कहानी सुन कर सभी हतप्रभ रह गए. प्रभाकरण से हेमा गर्भवती हो गई थी. वह प्रभाकरण पर जल्द से जल्द शादी कर लेने के लिए प्रभाकरण पर दबाव डाल रही थी. जबकि उस की बातों पर गौर करने के बजाय प्रभाकरण डा. करकेट्टा के साथ रंगरेलियां मना रहा था. एक दिन हेमा टाटा हौस्पिटल से जल्दी घर लौट आई. घर में प्रभाकरण के साथ डा. मधु करकेट्टा को देख कर वह क्रोध में चिल्लाने लगी. उस ने डा. करकेट्टा को धक्का देते हुए गेट से बाहर कर दिया और प्रभाकरण को खुले शब्दों में चेतावनी दी, ‘‘मुझे शांति मत समझना जो तुम्हारी रंगरेलियों की वजह से बुजदिल की तरह मुंह छिपा कर कहीं चली जाऊंगी. केरल से मां और नानी को बुला कर पूरे मउभंडार के लोगों के सामने तुम्हारी उस अय्याशी के परिणाम के बारे में बताऊंगी जो मेरे पेट में पल रहा है.

वैसे तुम्हारी रंगीनमिजाजी की बात सभी जानते हैं. उस चुड़ैल डाक्टरनी का तो मैं गला दबा कर खून पी जाऊंगी. तुम ने जल्द से जल्द शादी नहीं की तो मैं पुलिस के पास जा कर तुम्हारी करतूत के बारे में बताऊंगी.’’ उस वक्त उस की चीखें बाहर तक सुनाई पड़ रही थीं. हेमा की धमकियों से प्रभाकरण को बहुत गुस्सा आया. फिर भी उस ने सौरी कहते हुए हेमा से क्षमा मांग ली और जल्दी ही शादी करने की बात कह कर उसे आश्वस्त कर दिया. इस घटना के 2 हफ्ते बाद ही एक रात उस ने हेमा को कोल्डङ्क्षड्रक में नींद की दवा डाल कर पिला दी और उसी रात उस ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी. प्रभाकरण के अमानवीय कृत्य का अंत यहीं तक नहीं हुआ. उस ने आपरेशन थिएटर से तेज धार वाले औजार ला कर हेमा की लाश के टुकड़े किए और एक बड़े बक्से में रख कर नमक और एसिड डाल दिया. इस काम में डा. करकेट्टा ने उस का साथ दिया. प्रभाकरण अगर चाहता तो हेमा की लाश के टुकड़ों को एकएक कर के बड़ी आसानी से फैक्टरी गेट तक उफनती हुई स्वर्णरेखा नदी के पानी में फेंक सकता था, जो उस के बंगले से सौ कदम दूरी पर ही था. लेकिन घर में इतने दुस्साहसी काम को अंजाम देने वाला प्रभाकरण ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

पहाड़ी नदी की उफनती धारा ने हाथियों तक को बहा दिया था. कहते हैं कि गुनाह सिर चढ़ कर बोलता है, शायद इसी डर से प्रभाकरण ऐसा नहीं कर सका या फिर उचित समय का इंतजार करता रहा जो कभी नहीं आया. अपने बंगले में वह यदाकदा ही जाता था. ज्यादा समय वह हौस्पिटल में ही गुजारता था. वहीं की कैंटीन में वह खातापीता था. प्रभाकरण के बंगले की नाली से बदबूदार पानी निकलने पर भी कोई सोच तक नहीं सका कि घर के अंदर लाश के टुकड़े सड़ रहे हैं. क्योंकि ऐसी किसी को उम्मीद नहीं थी. पुलिस ने हेमा के पिता और भाई को टाटानगर बुलवाया और पूरी घटना से अवगत कराते हुए उन्हें हेमा की लाश के टुकड़े सौंप दिए. रोतेबिलखते हुए उन्होंने अपने केरल समाज के अनुसार हेमा की अंत्येष्टि टाटानगर में ही कर दी. हेमा को रिश्तों में बेवफाई की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी थी.

सच ही कहते हैं स्त्रियां ही स्त्रियों की दुश्मन होती है. शांति एवं उस के बच्चों का अधिकार छीनने की कीमत हेमा को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी थी. जहां मर्द की अय्याशी ढकीछिपी रह जाती है वहीं स्त्री की कोख उस के गुनाह से सारे परदे उठा देती है. यही सब से बड़ा अंतर है स्त्रीपुरुष के दुष्कर्म करने में. पुलिस कस्टडी में प्रभाकरण को केरल ले जाया गया, वहां उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. डा. करकेट्टा को डा. पुरुकायस्थ और हौस्पिटल मैनेजमैंट ने किसी तरह पैरवी कर के बचा लिया था.

गैस पर खाना बनाने का जोखिम

भारत में बढ़ते रसोई गैस के दामों के चलते कई गरीब परिवार फिर से खाना पकाने के
पारंपरिक ईंधनों का रुख कर रहे हैं. ये ईंधन स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक भी हैं. जब
आप किचन में होती हैं तो आप का ध्यान केवल खाना बनाने पर होता है. आप गैस सिलैंडर
और चूल्हे पर जरा भी ध्यान नहीं देतीं और अपने काम में लग जाती हैं.

आजकल गैस सिलैंडर फटने से होने वाले हादसों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.

आलम यह है कि एक सप्ताह के भीतर राजधानी में 2 हादसे हुए. इन में एक घटना में तो
एक व्यक्ति की जान ही चली गई. हरियाणा के पानीपत में एक घर में सिलैंडर लीक होने
की वजह से फट गया. इस से पूरा घर आग की चपेट में आ गया. उस वक्त घर के अंदर
पतिपत्नी और 4 बच्चे मौजूद थे.

आग इतनी तेजी से फैली कि सभी बैड पर पड़ेपड़े ही कंकाल हो गए. उन्हें अंदर से बाहर
निकलने या शोर मचाने तक का मौका नहीं मिला. इसी तरह राजस्थान के बीकानेर में एक
प्रोग्राम के दौरान सिलैंडर फट गया और आग लग गई. इस की चपेट में आईं 5 महिलाएं बुरी
तरह झुलस गईं. उन में से एक महिला की मौके पर ही मौत हो गई.

आखिर सिलैंडर फट क्यों जाता है और इस से कैसे बचा जा सकता है. महिलाओं के लिए यह
बहुत बड़ा खतरा है क्योंकि वे ही ज्यादातर किचन में रहती हैं. इस के लिए सिलैंडर इस्तेमाल
करते हुए हम क्या लापरवाही बरतते हैं, इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
अकसर किचन में सिलैंडर इस्तेमाल करते हुए आप ज्यादातर ये लापरवाही करती हैं:

● सिलैंडर जब खत्म होने लगता है तो उस को टेढ़ा करके इस्तेमाल करती हैं. ऐसा कभी न
करें.

● गैस सिलैंडर के पास ही कैरोसिन, कुकिंग औयल जैसी चीजें रखती हैं. इन सब चीजों को
सिलैंडर से दूर रखें.

● गैस चूल्हा कभीकभी जमीन पर रख कर इस्तेमाल करती हैं. चूल्हे को सिलैंडर से कम से
कम 6 इंच ऊपर जरूर रखना चाहिए.

● कई महिलाएं लाइटर की जगह माचिस का इस्तेमाल करती हैं और गैस औन करने के बाद
माचिस जलाती हैं जिस से आग लगने का खतरा बढ़ जाता है.

● खाना बनाते समय सिल्क या सिंथैटिक जैसे कपड़े पहने रहती हैं जिन में आसानी से आग
लग सकती है.

● नियमित रूप से सिलैंडर, चूल्हा, स्टोव और पाइप की जांच नहीं करातीं, वही पुराना
इस्तेमाल किए जाती हैं जिस से खतरे और बढ़ जाते हैं.

● ऐसी जगह पर गैस रख कर इस्तेमाल करती हैं जहां वैंटिलेशन की सुविधा ठीक नहीं होती.
इस से गैस बाहर नहीं निकल पाती जिस से आग लगने के खतरे और बढ़ जाते हैं.

अब दूसरा सवाल यह उठता है कि आखिर गैस सिलैंडर फटता क्यों है. इस के 2 मुख्य
कारण हैं:

● हर रसोई गैस सिलैंडर पर एक एक्सपायरी डेट भी लिखी होती है जिस को अकसर लोग
नहीं देखते हैं. एक्सपायरी के बाद भी बिना जांच कराए सिलैंडर इस्तेमाल किया जाते हैं. ऐसे
में उस के फटने का खतरा बना रहता है. इसलिए गैस सिलैंडर की एक्सपायरी डेट जरूर चैक
कर के ही इस्तेमाल करें.

● एक सिलैंडर की लाइफ आमतौर पर 10 साल होती है. सिलैंडर के हैंडल के नीचे की पट्टी
पर एक कोड जैसे ए-23, बी-23 लिखा होता है. यही सिलैंडर की एक्सपायरी डेट होती है. इस
में एल्फाबेट ए-जनवरी से मार्च, बी-अप्रैल से जून, सी-जुलाई से सितंबर और डी-अक्टूबर से
दिसंबर का सिंबल है. एल्फाबेट के आगे लिखा नंबर उस साल को दर्शाता है जिस में कि आप
का सिलैंडर एक्सपायर हो जाएगा.

● अगर आप घर पर एक एक्सट्रा सिलैंडर भरा कर रखना चाहती हैं तो चैक कर लें कि कहीं
वह एक्सपायर तो नहीं हो गया है.

● जब सिलैंडर की गैस कम हो जाए या वह लीक करने लगे तो चूल्हे की आग पाइप के
रास्ते सिलैंडर तक पहुंच सकती है. इस से सिलैंडर ब्लास्ट होने का खतरा और बढ़ जाता है.

अगर गैस लीकेज की बात कन्फर्म हो जाए तो इन बातों का रखें ध्यान:

● रैगुलेटर और बर्नर के सभी नौब तुरंत बंद कर दें. पैनिक न करें और वैंटिलेशन के लिए
सभी खिड़कीदरवाजे खोल दें.

● सभी फ्लेम्स, कैंडल्स, लैंप, अगरबत्ती आदि बुझा दें और सिलैंडर पर सेफ्टी कैप लगा दें.

● जहां गैस लीक हो रही है वहां कोई इलैक्ट्रिकल अप्लायंस और स्विच का इस्तेमाल न करें
और तुरंत इमरजैंसी सर्विस को मदद के लिए बुलाएं.

● अगर गैस लीक होने की वजह से सिलैंडर में आग लग गई है तो घबराएं नहीं. इस से
स्थिति और खतरनाक हो जाएगी. याद रखें, सिलैंडर में आग लगने के बाद भी हमारे पास
करीब 10 से 15 मिनट का समय बचाव के लिए होता है. आप तुरंत एक कंबल को गीला
कर के सिलैंडर पर लपेट दें. इस से आग बुझ जाएगी और आप सुरक्षित रहेंगी.

गैस पर खाना बनाना सेहत से खिलवाड़

पहले खाना कोयले के चूल्हे या लकड़ी पर बनाया जाता था. उस खाने की मिठास ही कुछ
और होती थी. अब कुकिंग गैस पर बने खाने की मिठास वह नहीं रही. दूसरे, वैज्ञानिकों का
कहना है कि कुकिंग गैस पर खाना बनाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है.

आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब कुकिंग गैस का विकल्प खोजने का वक्त आ
गया है क्योंकि लगातार ऐसे सुबूत सामने आ रहे हैं कि खाना बनाने का यह तरीका सेहत
और पर्यावरण दोनों के लिए ठीक नहीं है.

वैसे तो कुकिंग गैस को ले कर चिंताएं काफी पहले से जताई जा रही थीं लेकिन हाल ही में
हुए एक शोध के बाद इस बात पर बहस तेज हो गई है कि कुकिंग गैस कितनी खतरनाक हो
सकती है.

ताजा अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका में बच्चों को दमे का रोग होने में कुकिंग गैस से
होने वाले उत्सर्जन की बड़ी भूमिका रही है. इस अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका में
बच्चों में दमा होने के जितने मामले हैं उन में से हर 8 में से एक मामले में वजह गैस स्टोव
से हुआ उत्सर्जन है.

कुकिंग गैस सेहत के लिए खतरनाक है क्योंकि इस से कई तरह के प्रदूषक तत्त्वों का उत्सर्जन
होता है. दरअसल, जब आप गैस जलाती हैं तो असल में आप मीथेन गैस को जला रही होती
हैं जिस से जहरीले यौगिक बनते हैं.

कुकिंग गैस में मीथेन मुख्य अवयव होता है जो जलने पर गरमी पैदा करता है. इस से
नाइट्रोजन और औक्सीजन मिल कर नाइट्रो औक्साइड बनते हैं जो आप को दमा और अन्य
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं.

पर्यावरण के लिए खतरा

कुकिंग गैस जलाना पर्यावरण के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है. 2022 में एक अध्ययन
में कहा गया था कि अमेरिका में गैस स्टोव से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है वह 5 लाख
कारों से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है. इसीलिए अब वैज्ञानिक कुकिंग गैस का विकल्प
खोज रहे हैं.

इंडक्शन चूल्हे और बिजली के चूल्हों को इस के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि
इंडक्शन चूल्हों में इलैक्ट्रोमैग्नेटिक प्रभाव से गरमी पैदा की जाती है और इसे कुकिंग गैस के
सब से सक्षम विकल्प के रूप में देखा जाता है. हालांकि वैज्ञानिक बिजली के चूल्हों को ले कर
कुछ सशंकित हैं क्योंकि ज्यादातर बिजली उत्पादन कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों को जला कर
ही किया जाता है. इसलिए अक्षय ऊर्जा से पैदा की जा रही बिजली को ही एक बेहतर
विकल्प माना जा रहा है.

ग्लोबल बर्डेन औफ डिजीज स्टडी 2019 के मुताबिक, हर साल वायु प्रदूषण के चलते भारत में 6 लाख से ज्यादा मौतें होती हैं. उज्ज्वला जैसी योजनाओं के चलते इस में सुधार की आशा थी
लेकिन रसोई गैस के ऊंचे दामों से यह आशा धूमिल हुई है. अब भी 30 फीसदी भारतीय घर
बायोमास जैसे लकड़ी, कोयला और गोबर के उपलों पर ही निर्भर हैं. अन्य 24 फीसदी
एलपीजी के साथ इन ईंधनों का उपयोग भी करते हैं. आशा है भविष्य में वैज्ञानिक और भी
सुरक्षित रसोई घर बनाने में नए शोध करेंगे.

शिक्षा नगरी कोटा सहमी छात्रों की आत्महत्याओं से

राजस्थान का कोटा शहर शिक्षागरी के रूप में विख्यात है. इस ने देश को एक से बढ़ कर एक
डाक्टर्स और इंजीनियर्स दिए हैं. यह मैडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए एक बड़ा
गढ़ है. कोटा में सफलता का स्ट्राइक रेट 30 फीसदी से ऊपर रहता है और इंजीनियरिंग व
मैडिकल की प्रतियोगी परीक्षाओं में टौप 10 में से कम से कम 5 छात्र कोटा के ही रहते हैं
लेकिन कोटा से जुड़ा एक और सच भी है जो बेहद भयावह है और हतोत्साहित करने वाला
भी. कोटा में एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो नाकाम हो जाते हैं और उन में से कुछ
ऐसे होते हैं जो अपनी असफलता बरदाश्त नहीं कर पाते व आत्महत्या जैसा घातक कदम
उठा लेते हैं.

कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा
रहा है और इसीलिए यह शहर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है. यहां शिक्षा सीखने
का नहीं, सपनों के कारोबार का जरिया बन गई है.

कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं. आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग
व मैडिकल कालेजों में पढ़ने वाले छात्र बड़ीबड़ी कंपनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोड़ कर
यहां कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने आ रहे हैं, क्योंकि यहां तनख्वाह कई गुना ज्यादा है. अकेले
कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी स्टूडैंट छात्रों को पढ़ा रहे हैं.

एक सर्वे के मुताबिक, ‘कोटा कोचिंग सुपर मार्केट’ का सालाना टर्नओवर 1,800 करोड़ रुपए
का है. कोचिंग सैंटर्स सरकार को अनुमानित सालाना 100 करोड़ रुपए से अधिक टैक्स के

तौर पर देते हैं. देश के तमाम नामीगिरामी संस्थानों से ले कर छोटेमोटे 200 कोचिंग संस्थान
यहां चल रहे हैं, जो प्रवेशपरीक्षा की तैयारी करा रहे हैं.

आज यहां लगभग डेढ़ से दो लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं. सालाना फीस 2
से 3 लाख रुपए के अलावा कमरा, पीजी आदि सब महंगा है. ऊपर से इतनी भीड़ और पढ़ाई
का तनाव. गौरतलब है कि कोटा में कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि के साथसाथ
आत्महत्याओं के ग्राफ में भी तेजी से वृद्धि हो रही है.

कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़ 4 जिलों में 4 साल में 53 से 55 बच्चों ने सुसाइड किया. इन में
से 99 फीसदी आत्महत्याएं कोटा में हुईं. सरकारी रिपोर्ट में सामने आया कि हर 15
आत्महत्याओं में 2 छात्राएं और 13 छात्र हैं. यानी, खुदकुशी करने वालों में 87 प्रतिशत लड़के
और 13 प्रतिशत लड़कियां हैं.

कोटा में वर्ष 2022 में एक माह में 9 स्टूडैंट्स की मौत हो चुकी है. अन्य वर्षों में एवरेज
11-12 बच्चों की मौत आत्महत्या से होती थी लेकिन इस वर्ष सभी रिकौर्ड टूट गए और 22
बच्चों ने मौत को गले लगा लिया. हड़कंप तो उस दिन मच गया जब एक ही दिन में 3
बच्चों ने आत्महत्या कर ली. इन बच्चों में राजस्थान से बाहर के बच्चों की संख्या ज्यादा है.

इंजीनियरिंग और मैडिकल कालेजों में नामांकन कराने के लिए होने वाली प्रवेशपरीक्षाओं की
तैयारी करने के लिए देशभर से हर साल करीबन 2 लाख छात्र कोटा आते हैं और यहां के
विभिन्न निजी कोचिंग सैंटरों में दाखिला ले कर तैयारी में लगे रहते हैं. चिंता की बात यह है
कि एंट्रेस टैस्ट पास करने के दबाव में पिछले कुछ वर्षों में काफी छात्रों ने आत्महत्याएं की हैं
जिस के लिए अत्यधिक मानसिक तनाव को कारण माना जा रहा है. लेकिन कोटा में बढ़ रही
आत्महत्या की घटनाओं के पीछे कुछ दूसरे चौंकाने वाले कारण भी सामने आए हैं. आइए,
इन कारणों की पड़ताल करते हैं.

कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई के दबाव का है माहौल

2 साल पहले आत्महत्या करने वाली एक कोचिंग छात्रा के सुसाइड नोट में कुछ और बातें
सामने आई थीं. अपने सुसाइड नोट में उस ने लिखा था कि सरकार को कोचिंग संस्थानों को
बंद कर देना चाहिए क्योंकि इन से बच्चों को तनाव मिल रहा है.
कोचिंग संस्थान भले ही बच्चों पर दबाव न डालने की बात कह रहे हों लेकिन कोटा के
प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में तैयारी करने वाले बच्चे दबाव महसूस न करें, ऐसा संभव नहीं.
कोचिंग में प्रतिदिन डेढ़डेढ़ घंटे की 3 क्लास लगती हैं. 5 घंटे कोचिंग में ही चले जाते हैं.
कभीकभी तो सुबह 5 बजे कोचिंग पहुंचना होता है तो कभी कोचिंग वाले अपनी सुविधानुसार
दोपहर या शाम को क्लास के लिए बुलाते हैं. एक तय समय नहीं होता जिस कारण एक
छात्र के लिए अपनी दिनचर्या के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है.

पर्याप्त नींद की कमी ले जाती है डिप्रैशन में

कोटा में हर बच्चा आंखों में भविष्य के सुनहरे सपने ले कर जाता है और ये सपने उस की
नींद उड़ा देते हैं. रातभर जागजाग कर पढ़ाई करना उन की क्षमता को कम करता है जबकि
उन की उदासी को बढ़ा देता है. अच्छी नींद न लेने की वजह से वे बेहतर महसूस नहीं कर
पाते और धीरेधीरे डिप्रैशन की तरफ बढ़ने लगते हैं. जब यह स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर हो
जाती है तो अच्छी नींद कोसों दूर हो जाती है और ऐसे में कोचिंग संस्थानों के हेक्टिक
शैशेड्यूल कोढ़ में खाज का काम करते हैं और बच्चे उत्तरोत्तर डिप्रैशन के भंवर में फंसे जाते
हैं.

दूसरी ऐक्टिविटीज के लिए नहीं मिल पाता समय

छात्र अपने मनोरंजन की गतिविधियों के लिए निश्चित समय निर्धारित ही नहीं कर पाते,
जिस से उन पर तनाव हावी होता है. बच्चे अपना मूड फ्रैश नहीं कर पाते. ज्यादा से ज्यादा
उन के पास एक मोबाइल होता है जिस का इस्तेमाल वे अपने मन को बहलाने के लिए करते
हैं लेकिन मन को बहलाने के बजाय मोबाइल उन के मन को भटकाता है. स्पोर्ट्स और
एंटरटेनमैंट की जो ऐक्टिविटीज उन के लिए सही हैं, उन से वे नहीं जुड़ पाते और मोबाइल व
सोशल मीडिया का जाल उन्हें डिप्रैशन के चंगुल में डाल देता है जिस का नतीजा आत्महत्या
के रूप में सामने आता है.

दूसरे स्टूडैंट के साथ तुलना भी है एक बड़ा कारण

सामान्यतया 50-60 बच्चों का एक बैच होता है जिस में शिक्षक और छात्र का तो इंटरैक्शन
हो ही नहीं पाता. अगर एक छात्र को कुछ समझ न भी आए तो वह इतनी भीड़ में पूछने में
भी संकोच करता है. जो बच्चे बहुत ज्यादा वोकल और ऐक्टिव होते हैं, वे अपनेआप को
ज्यादा एक्सपोज कर पाते हैं.
ऐसे में कम बोलने वाले और झिझक रखने वाले बच्चे डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं. शिक्षक
भी पर्सनली हरेक स्टूडैंट से नहीं जुड़ पाते और बच्चा खुद को अकेला महसूस करता है.
विषय को ले कर उस की जिज्ञासाएं शांत नहीं हो पातीं और धीरेधीरे उस पर दबाव बढ़ता
जाता है. ऐसे ही अधिकांश छात्र आत्महत्या करते हैं.

परिवार से दूर रह कर पढ़ना ले जाता है डिप्रैशन में
यह तो कोई भी मातापिता ही नहीं चाहते कि उन का बच्चा डिप्रैशन का शिकार हो और
आत्महत्या जैसा कदम उठा ले. सब को अपना बच्चा प्यारा होता है लेकिन जब बच्चे अपने
परिवार से दूर रहते हैं तो पेरैंट्स दूर से ही उन का सपोर्ट कर पाते हैं. उन्हें वैसा मोटिवेशन
नहीं मिल पाता जो साथ रह कर मिलता है. परिवार से यह दूरी उन के लिए नैगेटिविटी ले कर
आती है.

दोस्ती के बजाय प्रतिस्पर्धा का होता है माहौल
कोटा का सब से भयावह सच यह है कि वहां पर कोई किसी का दोस्त नहीं होता. सब येन
केन प्रकारेण सक्सैस पाना चाहते हैं. ऐसे में जब कोई बच्चा खुद को छला हुआ महसूस
करता है तो वह परेशान हो जाता है. उसे दोस्ती के माने ही समझ में नहीं आते और वह
खुद को अकेला महसूस करने लगता है. ऐसी स्थिति में जब तक उसे सच्चे दोस्तों और
परिवार का साथ न मिले, वह सकारात्मक सोच नहीं पाता और उसे आत्महत्या के खयाल
आने लगते हैं.

प्यार में धोखा भी है आत्महत्या का कारण

बच्चे पहली बार घर से बाहर निकलते हैं, वे उम्र के नाजुक दौर होते हैं, फ्रीडम मिलती है
और पैसा भी. ऐसे में कई बच्चे भटक जाते हैं, कई प्यार के चक्कर में पड़ जाते हैं. एक
अध्ययन में सामने आया है कि कोटा में होने वाले सुसाइड में एक बड़ा प्रतिशत लव अफेयर
से जुड़ा होता है.
प्यार के चक्कर में बच्चे पढ़ाई से दूर हो जाते हैं और पेपर नजदीक आते ही डिप्रैशन में आ
जाते हैं या रिजल्ट के बाद क्या मुंह दिखाएंगे, यह सोच उन्हें सुसाइड की ओर धकेलती है.
ऐसे में गिल्टी फील होती है और बच्चा सुसाइड कर लेता है. कोटा में ‘नीट’ की तैयारी करने
वाले 18 वर्षीय छात्र ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली. उस ने अपनी प्रेमिका के साथ
ब्रेकअप और पढ़ाई के बढ़ते दबाव के चलते यह कदम उठाया.
छात्र के कमरे से एक ‘नोट’ बरामद हुआ जिस में उस ने लिखा था कि पढ़ाई और ‘ब्रेकअप’ के
कारण वह तनाव में था. कुमार ने अपने नोट में लिखा कि वह परेशान था क्योंकि एक
लड़की ने उस की भावनाओं के साथ खेला था और पढ़ाई के चलते मानसिक दबाव और बढ़
गया था, सो, वह दबाव का सामना करने में असमर्थ हो गया.

मातापिता से ज्यादा बाहर वालों के तानों का डर
स्टूडैंट्स ने जब खुल कर बताना शुरू किया तो सब से पहले यह बात सामने आई कि
अधिकांश स्टूडैंट अपने घरपरिवार में रोजाना बात करते हैं. पेरैंट्स का पहला सवाल यही होता
है कि पढ़ाई कैसी चल रही है, फिर उस के बाद वे पूछते हैं कि कैसे हो, खाना ठीक मिल रहा
है या नहीं, टैंशन मत लेना, ठीक से सोना, गलत संगत में मत चले जाना, वगैरहवगैरह.
बच्चों ने यह भी बताया कि घर का प्रैशर कम होता है. कोई भी मातापिता अपने बच्चे को
खोना नहीं चाहते. इसलिए वे कहते हैं, ठीक है अगर नीट या आईआईटी क्लीयर हो जाए तो
ठीक, वरना दूसरा औप्शन देखेंगे. लेकिन दूसरी ओर बाहर वाले ताने मारते हैं और जीना
हराम कर देते हैं.

वीकली टैस्ट का रिजल्ट बढ़ाता है सब से ज्यादा प्रैशर
कोटा में पढ़ने वाले बच्चे बताते हैं कि कोचिंग में एडमिशन के बाद कुछ ही दिन अच्छा नहीं
लगता लेकिन जब धीरेधीरे पढ़ाई में मन लगने लगता है तो प्रैशर भी बढ़ने लगता है.
रविवार को होने वाले टैस्ट बता देते हैं कि आप किस पोजिशन पर हो और यह बात सीधे
एक ऐप के जरिए पेरैंट्स तक भी पहुंचती है.

लाखों बच्चों के पेरैंट्स हर हफ्ते यह जान लेते हैं कि उन का बच्चा आगे बढ़ पाएगा या नहीं
और यहीं से पढ़ाई का हाईप्रैशर शुरू हो जाता है. कम नंबर आते ही कहा जाता है, क्या कर
रहे हो, कितना पैसा लगाया है तुम पर. उस के बाद जब दूसरा रविवार आता है तो पेपर फिर
दिया जाता है और फिर यदि नंबर कम आए तो प्रैशर बढ़ता चला जाता है और टैस्ट दर
टैस्ट यही सिलसिला चलता है तो बच्चे तनाव का शिकार हो जाते हैं.

क्या है सरकारी नजरिया
सरकार ने माना कि कोटा में बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं की वजह कोचिंग संस्थानों की
दोषपूर्ण कार्यप्रणाली, इंटरनल टैस्ट, प्रेमप्रसंग, ब्लैकमेलिंग और अभिभावकों की महत्त्वाकांक्षा
है. इन घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए इस राज्य के विधानसभा सत्र में राजस्थान
कोचिंग इंस्टिट्यूट कंट्रोल एंड रेग्युलेशन-2023 बिल लाया जाएगा.

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Story in Hindi

पापा जल्दी आ जाना : भाग 3, पापा से मुलाकात को तरसती बेटी की कहानी

‘तो तुम आफिस जाने के बाद मेरी जासूसी करते रहते हो.’

‘मु?ो कोई शौक नहीं है. वह तो मेरा एक दोस्त वहां घूम रहा था. मु?ो चिढ़ाने के लिए उस ने तुम्हारा फोटो खींच लिया…बस, यही दिन रह गया था देखने को…मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं यह सब नहीं होने दूंगा.’

‘तो क्या कर लोगे तुम…’

‘मैं क्या कर सकता हूं यह बात तुम छोड़ो पर तुम्हारी इन गतिविधियों और आजाद विचारों का निकी पर क्या प्रभाव पड़ेगा कभी इस पर भी सोचा है. तुम्हें यही सब करना है तो कहीं और जा कर रहो, सम?ां.’

‘क्यों, मैं क्यों जाऊं. यहां जो कुछ भी है मेरे घर वालों का दिया हुआ है. जाना है तो तुम जाओगे मैं नहीं. यहां रहना है तो ठीक से रहो.’

और उसी गरमागरमी में पापा ने अपना सूटकेस उठाया और बाहर जाने लगे. मैं पीछेपीछे पापा के पास भागी और धीरे से कहा, ‘पापा.’

वह एक क्षण के लिए रुके. मेरे सिर पर हाथ फेर कर मेरी तरफ देखा. उन की आंखों में आंसू थे. भारी मन और उदास चेहरा लिए वह वहां से चले गए. मैं उन्हें रोकना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव और आंखें देख कर मैं डर गई. मेरे बचपन की शोखी और नटखटपन भी उस दिन उन के साथ ही चला गया. मैं सारा समय उन के वियोग में तड़पती रही और कर भी क्या सकती थी. मेरे अपने पापा मु?ा से दूर चले गए.

एक दिन मैं ने पापा को स्कूल की पार्किंग में इंतजार करते पाया. बस से उतरते ही मैं ने उन्हें देख लिया था. मैं उन से लिपट कर बहुत रोई और पापा से कहा कि मैं उन के बिना नहीं रह सकती. मम्मी को पता नहीं कैसे इस बात का पता चल गया. उस दिन के बाद वह ही स्कूल लेने और छोड़ने जातीं. बातोंबातों में मु?ो उन्होंने कई बार जतला दिया कि मेरी सुरक्षा को ले कर वह चिंतित रहती हैं. सच यह था कि वह चाहती ही नहीं थीं कि पापा मु?ा से मिलें.

मम्मी ने घर पर ही मु?ो ट्यूटर लगवा दिया ताकि वह यह सिद्ध कर सकें कि पापा से बिछुड़ने का मु?ा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा तो मम्मी ने मु?ो होस्टल में डालने का फैसला किया.

इस से पहले कि मैं बोर्डिंग स्कूल में जाती, पता चला कि पापा से मिलवाने मम्मी मु?ो कोर्ट ले जा रही हैं. मैं नहीं जानती थी कि वहां क्या होने वाला है, पर इतना अवश्य था कि मैं वहां पापा से मिल सकती हूं. मैं बहुत खुश हुई. मैं ने सोचा इस बार पापा से जरूर मम्मी की जी भर कर शिकायत करूंगी. मु?ो क्या पता था कि पापा से यह मेरी आखिरी मुलाकात होगी.

मैं पापा को ठीक से देख भी न पाई कि अलग कर दी गई. मेरा छोटा सा हराभरा संसार उजड़ गया और एक बेनाम सा दर्द कलेजे में बर्फ बन कर जम गया. मम्मी के भीतर की मानवता और नैतिकता शायद दोनों ही मर चुकी थीं. इसीलिए वह कानूनन उन से अलग हो गईं.

धीरेधीरे मैं ने स्वयं को सम?ा लिया कि पापा अब मु?ो कभी नहीं मिलेंगे. उन की यादें समय के साथ धुंधली तो पड़ गईं पर मिटी नहीं. मैं ने महसूस कर लिया कि मैं ने वह वस्तु हमेशा के लिए खो दी है जो मु?ो प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थी. रहरह कर मन में एक टीस सी उठती थी और मैं उसे भीतर ही भीतर दफन कर लेती.

पढ़ाई समाप्त होने के बाद मैं ने एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर ली. वहीं पर मेरी मुलाकात संदीप से हुई, जो जल्दी ही शादी में तबदील हो गई. संदीप मेरे अंत:स्थल में बैठे दुख को जानते थे. उन्होंने मेरे मन पर पड़े भावों को सम?ाने की कोशिश की तथा आश्वासन भी दिया कि जो कुछ भी उन से बन पड़ेगा, करेंगे.

हम दोनों ने पापा को ढूंढ़ने का बहुत प्रयत्न किया पर उन का कुछ पता न चल सका. मेरे सोचने के सारे रास्ते आगे जा कर बंद हो चुके थे. मैं ने अब सबकुछ समय पर छोड़ दिया था कि शायद ऐसा कोई संयोग हो जाए कि मैं पापा को पुन: इस जन्म में देख सकूं.

घड़ी ने रात के 2 बजाए. मु?ो लगा अब मु?ो सो जाना चाहिए. मगर आंखों में नींद कहां. मैं ने अलमारी से पापा की तसवीर निकाली जिस में मैं मम्मीपापा के बीच शिमला के एक पार्क में बैठी थी. मेरे पास पापा की यही एक तसवीर थी. मैं ने उन के चेहरे पर अपनी कांपती उंगलियों को फेरा और फफक कर रो पड़ी, ‘पापा तुम कहां हो…जहां भी हो मेरे पास आ जाओ…देखो, तुम्हारी निकी तुम्हें कितना याद करती है.’

एक दिन सुबह संदीप अखबार पढ़तेपढ़ते कहने लगे, ‘जानती हो आज क्या है?’

‘मैं क्या जानूं…अखबार तो आप पढ़ते हैं,’ मैं ने कहा.

‘आज फादर्स डे है. पापा के लिए कोई अच्छा सा कार्ड खरीद लाना. कल भेज दूंगा.’

‘आप खुशनसीब हैं, जिस के सिर पर मांबाप दोनों का साया है,’ कहतेकहते मैं अपने पापा की यादों में खो गई और मायूस हो गई, ‘पता नहीं मेरे पापा जिंदा हैं भी या नहीं.’

‘हे, ऐसे उदास नहीं होते,’ कहतेकहते संदीप मेरे पास आ गए और मु?ो अंक में भर कर बोले, ‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम ने उन्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. अखबारों में भी उन का विवरण छपवा दिया पर अब तक कुछ पता नहीं चला.’

मैं रोने लगी तो मेरे आंसू पोंछते हुए संदीप बोले थे, ‘‘अरे, एक बात तो मैं तुम को बताना भूल ही गया. जानती हो आज शाम को टेलीविजन पर एक नया प्रोग्राम शुरू हो रहा है ‘अपनों की तलाश में,’ जिसे एक बहुत प्रसिद्ध अभिनेता होस्ट करेगा. मैं ने पापा का सारा विवरण और कुछ फोटो वहां भेज दिए हैं. देखो, शायद कुछ पता चल सके.’?

‘अब उन्हें ढूंढ़ पाना बहुत मुश्किल है…इतने सालों में हमारी फोटो और उन के चेहरे में बहुत अंतर आ गया होगा. मैं जानती हूं. मु?ा पर जिंदगी कभी मेहरबान नहीं हो सकती,’ कह कर मैं वहां से चली गई.

मेरी आशाओं के विपरीत 2 दिन बाद ही मेरे मोबाइल पर फोन आया. फोन धर्मशाला के नजदीक तपोवन के एक आश्रम से था. कहने लगे कि हमारे बताए हुए विवरण से मिलताजुलता एक व्यक्ति उन के आश्रम में रहता है. यदि आप मिलना चाहते हैं तो जल्दी आ जाइए. अगर उन्हें पता चल गया कि कोई उन से मिलने आ रहा है तो फौरन ही वहां से चले जाएंगे. न जाने क्यों असुरक्षा की भावना उन के मन में घर कर गई है. मैं यहां का मैनेजर हूं. सोचा तुम्हें सूचित कर दूं, बेटी.

‘अंकल, आप का बहुतबहुत धन्यवाद. बहुत एहसान किया मु?ा पर आप ने फोन कर के.’

मैं ने उसी समय संदीप को फोन किया और सारी बात बताई. वह कहने लगे कि शाम को आ कर उन से बात करूंगा फिर वहां जाने का कार्यक्रम बनाएंगे.

‘नहीं संदीप, प्लीज मेरा दिल बैठा जा रहा है. क्या हम अभी नहीं चल सकते? मैं शाम तक इंतजार नहीं कर पाऊंगी.’

संदीप फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘ठीक है, आता हूं. तब तक तुम तैयार रहना.’

कुछ ही देर में हम लोग धर्मशाला के लिए प्रस्थान कर गए. पूरे 6 घंटे का सफर था. गाड़ी मेरे मन की गति के हिसाब से बहुत धीरे चल रही थी. मैं रोती रही और मन ही मन प्रार्थना करती रही कि वही मेरे पापा हों. देर तो बहुत हो गई थी.

हम जब वहां पहुंचे तो एक हालनुमा कमरे में प्रार्थना और भजन चल रहे थे. मैं पीछे जा कर बैठ गई. मैं ने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं और उस व्यक्ति को तलाश करने लगी जो मेरे वजूद का निर्माता था, जिस का मैं अंश थी. जिस के कोमल स्पर्श और उदास आंखों की सदा मु?ो तलाश रहती थी और जिस को हमेशा मैं ने घुटन भरी जिंदगी जीते देखा था. मैं एकएक? चेहरा देखती रही पर वह चेहरा कहीं नहीं मिला, जो अपना सा हो.

तभी लाठी के सहारे चलता एक व्यक्ति मेरे पास आ कर बैठ गया. मैं ने ध्यान से देखा. वही चेहरा, निस्तेज आंखें, बिखरे हुए बाल, न आकृति बदली न प्रकृति. वजन भी घट गया था. मु?ो किसी से पूछने की जरूरत महसूस नहीं हुई. यही थे मेरे पापा. गुजरे कई बरसों की छाप उन के चेहरे पर दिखाई दे रही थी. मैं ने संदीप को इशारा किया. आज पहली बार मेरी आंखों में चमक देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए.

भजन समाप्त होते ही हम दोनों ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और सामने कुरसी पर बिठा दिया. मैं कैसे बताऊं उस समय मेरे होंठों के शब्द मूक हो गए. मैं ने उन के चेहरे और सूनी आंखों में इस उम्मीद से ?ांका कि शायद वह मु?ो पहचान लें. मैं ने धीरेधीरे उन के हाथ अपने कांपते हाथों में लिए और फफक कर रो पड़ी.

‘पापा, मैं हूं आप की निकी…मु?ो पहचानो पापा,’ कहतेकहते मैं ने उन की गर्दन के इर्दगिर्द अपनी बांहें कस दीं, जैसे बचपन में किया करती थी. प्रार्थना कक्ष के सभी व्यक्ति एकदम संज्ञाशून्य हो कर रह गए. वे सब हमारे पास जमा हो गए.

पापा ने धीरे से सिर उठाया और मु?ो देखने लगे. उन की सूनी आंखों में जल भरने लगा और गालों पर बहने लगा. मैं ने अपनी साड़ी के कोने से उन के आंसू पोंछे, ‘पापा, मु?ो पहचानो, कुछ तो बोलो. तरस गई हूं आप की जबान से अपना नाम सुनने के लिए…कितनी मुश्किलों से मैं ने आप को ढूंढ़ा है.’

‘यह बोल नहीं सकते बेटी, आंखों से भी अब धुंधला नजर आता है. पता नहीं तुम्हें पहचान भी पा रहे हैं या नहीं,’ वहीं पास खड़े एक व्यक्ति ने मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा.

‘क्या?’ मैं एकदम घबरा गई, ‘अपनी बेटी को नहीं पहचान रहे हैं,’ मैं दहाड़ मार कर रो पड़ी.

पापा ने अपना हाथ अचानक धीरेधीरे मेरे सिर पर रखा जैसे कह रहे हों, ‘मैं पहचानता हूं तुम को बेटी…मेरी निकी… बस, पिता होने का फर्ज नहीं निभा पाया हूं. मु?ो माफ कर दो बेटी.’

बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपना संतुलन बनाए रखा था. अपार स्नेह देखा मैं ने उन की आंखों में. मैं कस कर उन से लिपट गई और बोली, ‘अब घर चलो पापा. अपने से अलग नहीं होने दूंगी. 15 साल आप के बिना बिताए हैं और अब आप को 15 साल मेरे लिए जीना होगा. मु?ा से जैसा बन पड़ेगा मैं करूंगी. चलेंगे न पापा…मेरी खुशी के लिए…अपनी निकी की खुशी के लिए.’

पापा अपनी सूनी आंखों से मु?ो एकटक देखते रहे. पापा ने धीरे से सिर हिलाया. संदीप को अपने पास खींच कर बड़ी कातर निगाहों से देखते रहे जैसे धन्यवाद दे रहे हों.

उन्होंने फिर मेरे चेहरे को छुआ. मु?ो लगा जैसे मेरा सारा वजूद सिमट कर उन की हथेली में सिमट गया हो. उन की समस्त वेदना आंखों से बह निकली. उन की अतिभावुकता ने मु?ो और भी कमजोर बना दिया.

‘आप लाचार नहीं हैं पापा. मैं हूं आप के साथ…आप की माला का ही तो मनका हूं,’ मु?ो एकाएक न जाने क्या हुआ कि मैं उन से चिपक गई. आंखें बंद करते ही मु?ो एक पुराना भूला बिसरा गीत याद आने लगा :

‘सात समंदर पार से, गुडि़यों के बाजार से, गुडि़या चाहे ना? लाना…पापा जल्दी आ जाना.’

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