आदत के मुताबिक उस दिन भी सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले अपूर्वा ने अपना स्मार्टफोन उठा कर जैसे ही व्हाट्सऐप खोला तो खुद को एक और नए ग्रुप में जुड़ा देख कर ?ाल्ला उठी लेकिन जैसे ही उस ने ग्रुप का नाम देखा तो सुखद आश्चर्य से भर उठी. ग्रुप का नाम था ‘स्वीट कजिन्स’.

ग्रुप में कुल 6 मैंबर थे जिन में से 3 के नंबर तो उस के पास नाम से सेव थे. आदित्य उस का भाई, अनामिका और अंबर उस के बड़े पापा के बच्चे जो उम्र में उस से थोड़े बड़े थे. बाकी 2 को उस ने डीपी देख कर पहचाना कि अरे, यह तो लालिमा है जबलपुर वाली बूआ की बेटी और यह नेहा है इंदौर वाली बूआ की बेटी, जो आजकल यूएस की एक बड़ी कंपनी में जौब कर रही है.

ग्रुप की एडमिन लालिमा थी जिस ने अंगरेजी में अपने वैलकम मैसेज में लिखा था, ‘‘इस नए ग्रुप में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. यह कितने हैरत की बात है कि हम इस पीढ़ी के लोग ढंग से एकदूसरे को जानते तक नहीं जबकि हमारे पेरैंट्स ने लंबा वक्त साथ गुजारा है और उन में अभी तक पहले सी ही बौंडिंग व ताजगी है. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब मम्मी, मामा लोग की, मामियों की और विदिशा वाले अपने पुश्तैनी घर की चर्चा न करती हों. नानीनाना की बात करते तो कभीकभी वे भावुक होते रो भी पड़ती हैं.

‘‘इस ग्रुप को बनाने का एक बड़ा मकसद हमारे पेरैंट्स के रिश्ते की मजबूती व उन के स्नेह और यादों को फिर से जिंदा कर हमारे बीच वह आत्मीय परिचय कायम रखना है जो उन की जिंदगी का अटूट हिस्सा है और हमें विरासत में मिला है. मैं उम्मीद करती हूं कि जल्द ही हम एकदूसरे के इतने नजदीक आ जाएंगे कि जब कभी किसी फंक्शन में मिलें तो पूरी अनौपचारिकता, आत्मीयता, जिंदादिली और प्यार से मिलें. मु?ो लगता है कि हमारे पेरैंट्स को इस से उतनी ही खुशी मिलेगी जितना कि कभी एकदूसरे से बिछड़ते वक्त उन्हें दुख हुआ होगा. उन के पास तो कई यादें हैं लेकिन हमारे पास तो वह भी नहीं हैं. यूं तो हम एकदूसरे को नाम से जानते हैं बचपन में मिले भी हैं. संभव है इस ग्रुप के कुछ मैंबर बाद में कभी मिले हों पर अब सैटल होने के बाद मिलने का लुत्फ ही अलग होगा.’’

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