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रिश्तों का दर्द – भाग 4 : नीलू के मन में मां को लेकर क्या चल रहा था?

इस वक्त. बाबूजी किस से बात कर रहे हैं. कौन हो सकता है उन के कमरे में…? कौन है इतनी रात गए. बाबूजी किस से बातें कर रहे हैं? यह सब सोच रोमी दरवाजे से ?ांकने लगी, देखा, अंदर कुंवर प्रताप और बाबूजी में बातें चल रही थीं. एक पल को रोमी ने सोचा, लौट जाए, वैसे भी कुंवर प्रताप को देखते ही उस का खून खौल जाता है. मगर जैसे ही वह जाने को हुई, उस के कानों में आवाज टकराई, ‘‘क्या करता साली, मानती ही नहीं थी. बड़ी सावित्री बन रही थी. तुम्हारे भाई की ब्याहता हूं, छोड़ दो मु?ो…’’ एक पल को रोमी पत्थर हो गई मानो कोई भारी चीज उस के सिर पर दे मारी गई है. यह तो उस के बारे में चर्चा हो रही है. शायद, बाबूजी कुंवर प्रताप को डांट रहे हैं, यह सोच उस का मन जानने को इच्छुक हुआ.

‘‘अरे नालायक, तु?ा से किस ने कहा था पहली ही बार में मांस नोंचने को. अरे, जानता नहीं, वह परदेस रह आई है, नजाकत वाली बनती है, उस के मिजाज को सम?ा कर वैसा पासा फेंकना था. पहले उसे अपनी गिरफ्त में लेता, प्यार से बहलाताफुसलाता. तू ने तो पहली बार में जवानी का जोर दिखा दिया. सारा कियाधरा गुड़गोबर कर दिया. अब कोई और उपाय खोजना होगा.’’ ‘‘अब क्या करें?’’ ‘‘अरे, तू ठाकुरों की औलाद है. एक औरत भी काबू न हो पाई तु?ा से? प्यार से, प्यार से नहीं तो धिक्कार के… सम?ा रहा है न मेरी बात. अरे, एक विधवा को काबू करने में इतना सोच रहा है. ज्यादा सोच मत, मोम को पिघलने में ज्यादा देर नहीं लगती और फिर विदेश में रही है, ज्यादा ऊंचनीच का विचार वह भी न करेगी. सोच ले, अगर निकल गई न चिडि़या हाथ से, तो फिर बस… आधी जायजाद गई, सम?ा ले. अच्छा है नाग फन फैलाए, इस से पहले उसे कुचल देना चाहिए. पड़ी रहेगी घर में रखैल बन कर.

उस की भी जरूरत है… जवान है. कहीं और मुंह मारे, इस से तो यह घर क्या बुरा है. घर का माल घर में रहेगा.’’ ‘‘तुम को लगता है बाबूजी, वह मानेगी?’’ ‘‘अरे, मानेगी… मानेगी कैसे नहीं. तू क्या उसे नीलू सम?ो हुए है कि दो हाथ जमाए कि काबू में कर लिया. अरे, चार अक्षर पढ़ी है, देर से बात सम?ा आएगी. जरा प्यार से मना, मान जाएगी. जानती है विधवा का कोई ठौर नहीं. ये पांव की जूती रणवीर ने सिर चढ़ा ली है. सो, थोड़ी परेशानी तो होगी. ‘‘और जो फिर भी न हाथ आई, चुप्पी तोड़ी तो?’’ ‘‘तो क्या, घर के पिछवाडे़ दो गज जमीन की कमी नहीं. दोनों मांबेटी के लिए. एक तो बेटी पैदा की, रणवीर का कोई नाम लेवा भी नहीं जना, सोचेंगे दो गज जमीन उसी के नाम की. ऐसे कितनों को सुकून दिया है हम ने. क्या तू नहीं जानता. चुप्पी तोड़ेगी तो सजा तो भुगतनी ही होगी.’’

‘‘फिर लोग पूछेंगे, कहां गई बहू तो? ‘‘तो क्या, कह देंगे विदेश में कोई आशिक होगा जिस के संग भाग गई. कुल को कलंक लगा गई. अरे, जिंदा रहेगी तो हमारे लिए आफत ही पैदा करेगी.’’ छि:, इतनी गंदी बात कोई ससुर अपनी बहू के लिए कैसे कह सकता है. रोमी पत्थर हो गई बाबूजी का ऐसा घिनौना रूप… जिसे वटवृक्ष सम?ा उस की छांव में आश्रय की तलाश में आई थी वही नागफनी बन उसे लहूलुहान कर गया. उस ने कभी सपने में भी न सोचा था. कोई इस हद तक गिर सकता है उसे यकीन नहीं आ रहा. ऊंची हवेली में रहने वाले ठाकुरों का घिनौना सच आज रोमी के सामने था. रोमी किसी से कहती भी तो शायद कोई यकीन न करता. खुद उसे ही यकीन करने में कितना वक्त लगा कि बाप समान ससुर एक जरा सी दौलत की खातिर अपने ही मरे बेटे की स्मृतियों के साथ घृणित षड्यंत्र खेल रहा है और वह भाई समान देवर… कहते हैं कि भाई बायां हाथ होता है.

उस को खोना जीवन की आधी उपलब्धि को खोना है. मगर यहां तो आंखों पर दौलत का ऐसा मोटा चश्मा चढ़ा है कि मातम भी जश्न दिखाई दे रहा है उन्हें. उफ, वह तो सोच कर आई थी कि रणवीर के जाने के बाद उस के परिवार वाले अपने बेटे की इस निशानी को सिरआंखों पर बिठा कर रखेंगे. पिता का साया उठ -गया तो क्या कम से कम दादादादी, चाचाचाची का हाथ तो होगा उस के सिर पर. वहां पराई जमीं पर तो वह अपने संस्कार ही भूल जाए शायद. कितनी गलत थी उस की सोच तब. यहां तो मानो इंसानियत मर गई है उन की. आज दोनों मांबेटी की जान के लाले पड़ गए हैं. उस ने तो कभी दौलत की चाह भी न की थी. वह तो बस आश्रय तलाशने आई थी. मगर नहीं जानती थी कि जिस वृक्ष की अपनी जड़ें खोखली हों वह भला दूसरों को क्या पनाह देगा. उस ने सोच लिया, अब वह यहां नहीं रहेगी. सुबह उस ने अपना सामान समेटा और परी को गोद में ले कर अचानक घोषणा कर दी कि वह मायके जा रही है. वहीं से लंदन के लिए रवाना हो जाएगी. ठाकुर और कुंवर प्रताप सकते में थे.

यह स्क्रिप्ट तो उन के खेल में कहीं से कहीं तक न थी. अचानक कैसे हो गया यह सब. दोनों बापबेटे एकदूसरे का चेहरा देख रहे थे. चिडि़या जाल से भाग जाना चाहती थी. ठाकुर की नजरें कुंवर प्रताप को घूर रही थीं, कहीं इस ने ही फिर कोई ऊंचनीच तो नहीं कर दी. वहीं कुंवर प्रताप सोच रहा था उस ने तो अभी कुछ किया ही नहीं, फिर अचानक… रोमी एक हाथ में परी को थामे, दूसरे में एक अटैची लिए बाहर को निकल पड़ी. ठाकुर पुराना खिलाड़ी था, सम?ा गया, यह चिडि़या अब हाथ न आने की, सो उस ने आखिरी चाल चली, ‘‘बहू, जब तुम ने सोच ही लिया है जाने का तो ठीक है, चलो तुम्हें मायके तक छोड़ दें.’’ रोमी के कानों में रात ठाकुर के कहे शब्द गूंज रहे थे कि हवेली के पीछे दो गज जमीन की कमी नहीं. वह एकदम चीख कर बोली, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं. मैं बस से चली जाऊंगी. आप तकलीफ न करें.’’ और उस ने एक हाथ से सूटकेस और दूसरे हाथ में परी को थाम तेजी से बाहर आ गई. ठाकुर की आंखें अंगार बरसा रही थीं. एक मामूली सी औरत उन की शह को मात दे गई. क्या करें, कैसे बात को संभाला जाए, कोई सूरत नजर न आने पर ठाकुर बोला, ‘‘अरे कुंवर प्रताप, बहू अकेले जा रही है, जानता नहीं, आजकल रास्ते में कितने हादसे होते रहते हैं. चल कम से कम उसे बस में तो बैठा आएं.

दोनों घर से बाहर आए, तब तक रोमी औटो में बैठ चुकी थी. दोनों ने तेजी से उस का पीछा किया. रोमी ने देखा कार उस का पीछा कर रही है. वह सम?ा गई कि दोनों बापबेटे किसी भी हद तक जा सकते हैं. रोमी जल्द से जल्द बस स्टैंड पहुंच जाना चाहती थी. जैसेजैसे उन की कार रोमी के औटो के करीब आती जा रही थी, उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. वह परी को गोद में भींचे प्रकृति को याद कर रही थी. ‘‘भैया, जरा तेज चलाओ न. वह कार हमें ओवरटेक न कर पाए. भैया प्लीज, जल्दी चलिए न.’’ ‘‘कोशिश करता हूं मैडम.’’ आज ठाकुर साहब और कुंवर प्रताप सिंह रोमी को साक्षात यमदूत नजर आ रहे थे. यों मृत्यु को करीब देख उस की घबराहट बढ़ती जा रही थी. ड्राइवर ने औटो की रफ्तार तेज की ही थी कि सामने एक बड़ा सा ट्रक आ गया, ची..चर्र.. की आवाज के साथ एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए ड्राइवर ने औटो को टर्न किया. औटो ट्रक के दूसरी ओर जा पड़ा और तेज रफ्तार से औटो का पीछा करती ठाकुर की कार ट्रक में जा घुसी. प्रकृति का न्याय सामने था, उसे शायद आज दया आ गई बेबस मांबेटी पर. उन की जान लेने चले दोनों नरभक्षी स्वयं मौत के मुंह में चले गए थे. रोमी ने चैन की सांस ली. मगर परिवार के लिए दूसरा बड़ा हादसा था. दो माह के भीतर घर के तीनों मर्द चले गए.

गांव में गहरे शोक की लहर दौड़ गई. कोठी में गांव वालों की भीड़ जमा हो गई. लोग अफसोस कर रहे थे कि ‘‘इस घर को देखो, कोई मर्द नहीं. तीनतीन विधवाएं, मानो तीनों अभिशापित हों. कैसे संभालेंगीं खुद को?’’ पुरुष चाहे कितना ही निकम्मा क्यों न हो, समाज की आंखों में वही स्त्री का रक्षक होता है मगर कैसे सम?ाए रोमी उस समाज को कि यहां तो रक्षक ही भक्षक बने हुए थे. हम अपने ही घर में खुद को महफूज नहीं पा रही थीं. सभी इस हादसे के लिए प्रकृति को दोषी ठहरा रहे थे. रोमी, जो इस हादसे की चश्मदीद गवाह थी, जानती थी कि यह हादसा नहीं, न ही प्रकृति इस के लिए दोषी है. रोमी ही क्यों, घर की अन्य महिलाएं भी हादसे के पीछे छिपे कारण से भलीभांति परिचित थीं. आखिर वे भी बरसों से इस नर्क को ?ोल रही थीं. मगर घर की बिखरती लाज के डर से होंठों को सी लिया था, खामोश थीं क्योंकि जानती थीं कि ठाकुर या फिर कुंवर प्रताप उन्हें छोड़ेंगे नहीं.

पुरुष प्रधान समाज ने नारी को अबला ही नहीं बल्कि अपनी साधिकार कामना पूर्ति का साधन माना है. दोनों का अंतिम संस्कार हो चुका था. आज कोठी में एक भयानक सा सन्नाटा था, जैसे एक तूफान आया और अपने साथ सब का चैन व सुकून लूट कर ले गया. रात कमरे में बैठी रोमी अपने लंदन के मित्रों को पत्र लिख रही थी कि वह अपनी प्रौपर्टी सेल करना चाहती है, अब उसे यहीं रहना है, इंडिया में. इस हादसे ने उसे न चाहते हुए भी विवश कर दिया है यहां रहने के लिए. मां के हालात तो पहले से ही अच्छे नहीं, इस हादसे के बाद क्या भरोसा कितने दिन निकाल पाएं? बची नीलू, जो आज तक अपने ही पति का विरोध न कर पाई. वह दुनिया की हवसभरी निगाहों का कैसे सामना कर पाएगी? रणवीर नहीं हैं तो उन की जगह अब उसे ही यह जिम्मेदारी निभानी है. नीलू और उस के बेटे की जिम्मेदारी आखिर उस की ही तो है. वह नहीं चाहती कि जिस दर्द से वह गुजरी है उस से नीलू भी गुजरे. आखिर, दर्द का ही सही, रिश्ता तो है उस का इस घर से.

मेरे चेहरे पर झांइयां हैं, इसे कम करने के लिए मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 35 वर्षीय महिला हूं. मेरे चेहरे पर बहुत झांइयां हैं. मैं ने कई उपाय कर लिए पर कोई फायदा नहीं हुआ. कोई घरेलू उपाय बताएं जिस से मेरे चेहरे की झांइयां कम हो जाएं?

जवाब

चेहरे पर झांइयां होने का कारण खानपान में पौष्टिक तत्त्वों की कमी के अलावा धूप में अधिक घूमना भी हो सकता है. आप अपने भोजन में आयरन की मात्रा अधिक से अधिक लें. हरी पत्तेदार सब्जियां भोजन में शामिल करें. इस के अलावा घरेलू उपाय के तौर पर सब को कद्दू कस कर के चेहरे पर लगाएं और फिर सूखने पर धो लें. अगर सेब न मिले तो केले का पैक भी चेहरे पर लगा सकती हैं. इस पैक को रोजाना चेहरे पर लगाएं. धीरे धीरे झांइयां हलकी पड़ जाएंगी.

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प्रदूषण, लगातार कंप्यूटर, स्मार्टफोन का इस्तेमाल और पोषण में कमी जैसे कारण आंखों में होने वाली समस्या के प्रमुख कारण हैं. इससे धुंधली नजर, आंखों में जलन और सिरदर्द जैसी परेशानियां होती हैं. इस खबर में हम आपके लिए कुछ ऐसी टिप्स बताएंगे जिन्हें अपना कर आप अपनी आंखों का तनाव दूर कर सकेंगे.

आंखों को दे रिलैक्स

पामिंग आंखों को रिलैक्स करने का सबसे आसान तरीका है. इस लिए आप दोनों हथेलियों को 10-15 मिनट तक धीरे-धीरे रगड़ें और आंखों पर रखे रहें. गर्म हथेलियों को आंखों की हर ओर हल्का हल्का सहलाते रहें.

झपकाएं पलकें

आंखों के तनाव को दूर करने का आसान तरीका है पलकों को झपकाना. तीन-चार सेकेंड्स तक लगातार पलकों को झपकाने से आंखों को काफी आराम मिलता है. जब आप लगातार टीवी देखते हैं, मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, तो आंखों के लिए ये तरीका बेहद जरूरी हो जाता है. इस लिए जरूरी है कि आप कुछ कुछ देर पर पलकें झपकाते रहें.

सांझ का भूला : भाग 3

सीता को इधर कुछ दिनों से अपनी एकांत जिंदगी नीरस लगने लगी थी. न कोई तीजत्योहार ढंग से मना पाती और न ही किसी सांस्कृतिक आयोजन में जा पाती. कहीं चली भी गई तो लोग उस से उस के परिवार के बारे में प्रश्न अवश्य पूछते थे. पड़ोसी भी उस से दूरी बनाए रखते थे.

एक दिन सीता ने अपने 2 पड़ोसियों की बातें सुन ली थीं :

‘‘मीना, तुम अपने यहां मत बुलाना. हमारे सुखी परिवार को उस की नजर लग जाएगी. पता नहीं, इतने बड़े फ्लैट में वह अकेली कैसे रहती है. जरूर इस में कोई खोट होगा, तभी तो इसे पूछने कोई नहीं आता है.’’

सीता यह संवाद सुन कर पसीना- पसीना हो गई थी.

दरवाजे की घंटी लगातार बज रही थी. सीता हड़बड़ा कर उठी. रात भर नींद नहीं आने के कारण शायद भोर में आंख लग गई. सीता की नौकरानी सुब्बम्मा आ गई थी. सुब्बम्मा जल्दीजल्दी सफाई का काम करने लगी. सीता ने दोनों के लिए कौफी बनाई.

‘‘अम्मां, मुझे बेटे के लिए एक पुरानी साइकिल लेनी है. बेचारा हर दिन बस से आताजाता है. बस में बड़ी भीड़ रहती है. तुम मुझे 600 रुपए उधार दे दो. मैं हर महीने 100-100 रुपए कर के चुका दूंगी,’’ सुब्बम्मा बरतन मलतेमलते कह रही थी.

‘‘लेकिन सुब्बम्मा, तुम्हारा बेटा तो तुम्हारी बात नहीं सुनता है. तुम्हें रोज 10 गालियां देता है. कमाई का एक पैसा भी तुम्हें नहीं देता…रोज तुम उस की सैकड़ों शिकायतें करती हो और अब उस के लिए कर्ज लेना चाहती हो,’’ सीता कौफी पीते हुए आश्चर्य से पूछ रही थी.

‘‘अरे, अम्मां, अपनों से ही तो हम कहासुनी कर सकते हैं. बेचारा बदनसीब मेरी कोख में जन्मा इसीलिए तो गरीबी का सारा दुख झेल रहा है. अच्छा खानाकपड़ा कुछ भी तो मैं उसे नहीं दे पाती हूं. बेटे के आराम के लिए थोड़ा कर्ज ले कर उसे साइकिल दे सकूं तो मुझे संतोष होगा. फिर मांबेटे में क्या दुश्मनी टिकती है भला…अब आप खुद का ही हाल देखो न. इन 7-8 महीनों में ही आप कितनी कमजोर हो गई हैं. अकेले में आराम तो खूब मिलता है पर मन को शांति कहां मिलती है?’’ सुब्बम्मा कपड़ा निचोड़ती हुई बोले जा रही थी.

‘‘सुब्बम्मा, तुम आजकल बहुत बकबक करने लगी हो. चुपचाप अपना काम करो,’’ सीता को कड़वा सच शायद चुभ रहा था.

‘‘अम्मां, कुछ गलत बोल गई हूं तो माफ करना. मैं आप का दुख देख रही हूं. इसी कारण कुछ मुंह से निकल गया. अम्मां,  मुझे रुपए कलपरसों देंगी तो अच्छा रहेगा. एक पुरानी साइकिल मैं ने देख रखी है. दुकानदार रुपए के लिए जल्दी कर रहा है,’’ सुब्बम्मा ने अनुनय भरे स्वर में कहा.

‘‘सुब्बम्मा, रुपए आज ही ले जाना. चलो, जल्दी काम पूरा करो. देर हो रही है,’’ सीता रसोईघर में चली गई.

सीता का मन विचलित होने लगा. ‘ठीक ही तो कहती है सुब्बम्मा. जगन्नाथ और बालकृष्णन को देखे बिना उसे कितना दुख होता है. पासपड़ोस में बेटेबहू की निंदा भी तो होती होगी. सास को घर से निकालने का दोष बहुओं पर ही तो लगाया जाता है. अपने पोतों से दूर रहना कितना दर्दनाक है. कुमार और मोहन दादी से बहुत प्यार करते हैं. आखिर परिवार से दूर रह कर अकेले जीवन बिताने में उसे क्या सुख मिल रहा है?

‘सुब्बम्मा जैसी साधारण महिला भी परिवार के बंधनों का मूल्य जानती है. परिवार से अलग होना क्या कर्तव्यच्युत होना नहीं है? परिवार में यदि हर सदस्य अपने अहं को ही महत्त्व देता रहे तो सहयोगपूर्ण वातावरण कैसे बनेगा?

‘बहू उस के वंश को आगे ले जाने वाली वाहिका है. बहू का व्यवहार चाहे जैसा हो, परिवार को विघटन से बचाने के लिए उसे सहन करना ही होगा. उस की भी मां, दादी, सास, सब ने परिवार के लिए जाने कितने समझौते किए हैं. मां को घर से निकलते देख कर जगन्नाथ को कितना दुख हुआ होगा?’ सीता रात भर करवट बदलती रही. सुबह होते ही उस ने दृढ़ निश्चय के साथ जगन्नाथ को फोन लगाया और अपने वापस घर आने की सूचना दी. सीता को मालूम था कि उसे बहू मोनिका के सौ ताने सुनने होंगे. अपने पुत्र जगन्नाथ का मौन क्रोध सहन करना पड़ेगा. बालकृष्णन और भाग्यलक्ष्मी भी उसे ऊंचनीच कहेंगे. सीता ने मन ही मन कहा, ‘सांझ का भूला सुबह को घर लौट आए तो वह भूला नहीं कहलाता.’

वही परंपराएं, भाग 3 : 50 साल बाद जवान की जिंदगी में क्या आया बदलाव ?

‘डार्लिंग, इस ने कभी मुझे बताया ही नहीं.’

‘एक जवान तुम्हें क्या बताएगा, तुम्हें पता होना चािहए कि तुम्हारी यूनिट में क्या हो रहा है? इतनी सर्दी है, अगर बीमार हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा?’

मेजर साहब कुछ नहीं बोले. मुझ से केवल इतना कहा कि मैं लाइन में जा कर सो जाऊं. कल वे इस का प्रबंध कर देंगे. कल उन्होंने मुझे मास्टर जी, सेना शिक्षा कोर का वह हवलदार जो जवानों की शिक्षा के लिए हर यूनिट में पोस्टेड होते हैं, के कमरे में ऐडजस्ट कर दिया.

मेजर साहब, 2 वर्षों तक मेरे कमांडिंग अफसर रहे और दोनों वर्ष मैं ने उन को सर्टीफिकेट ला कर दिखाए. वे और मेमसाहब बहुत खुश हुए, कहा, कितनी कठिनाइयां आएं, अपनी पढ़ाई को मत छोड़ना. उसे पूरा करना. फिर मैं लद्दाख में पोस्ट हो गया परंतु मुझे उन की बात हमेशा याद रही.

मैं ने कुछ जवानों को वरदी में देखा. उन के बाजू पर वही फौरमेशन साइन लगा हुआ था जो उस समय मैं लगाया करता था. इतने वर्षों बाद भी यह डिवीजन यहीं था. मैं ने सोचा कि फिर तो मेरी पहली यूनिट भी यहीं होगी. मैं ने साथ आए संतरी से वर्कशौप के बारे में पूछा. ‘‘हां, सर, वह यहीं है, थोड़ा आगे जा कर संगरूर रोड पर है. अब वह ब्रिगेड वर्कशौप कहलाती है.’’ मैं ने ड्राइवर से कार पीछे मोड़ कर मेन सड़क पर ले जाने के लिए कहा. वही संगरूर रोड है. संतरी को धन्यवाद के साथ बैरियर पर छोड़ दिया.

कार धीरेधीरे चल रही थी. थोड़ी दूर जाने पर मुझे वर्कशौप का टैक्टीकल नंबर और फौरमेशन साइन दोनों दिखाई दे गए. जिस ओर ऐरो मार्क लगा था, मैं ने कार को उस ओर ले जाने के लिए कहा. गेट से पहले ही मैं ने कार रुकवा दी. नीचे उतरा. कार को एक ओर पार्क करने के लिए कह कर मैं पैदल ही गेट की ओर बढ़ा. संतरी बड़ी मुस्तैदी से खड़ा था. मेरे पांव जमीन पर नहीं लग रहे थे. रोमांचित था कि जिस यूनिट से मैं ने अपना सैनिक जीवन शुरू किया, 65 की लड़ाई देखी, अपनी पढ़ाई की शुरुआत की, उसी गेट पर खड़ा हूं.

संतरी मेरी ओर आकर्षित हुआ, ‘‘जी, सर?’’ गेट पर खड़े संतरी की यही ड्यूटी होती है कि यूनिट के अंदरबाहर जाने वाले हर एक से पूछे कि वह कहां जा रहा है, उसे क्या चाहिए. मैं ने उसे अपना आईकार्ड दिखाया और कहा कि मैं टीएसएस, टैक्नीकल स्टोर सैक्शन के अफसर से मिलना चाहता है. संतरी ने मुझे सैल्यूट किया और कहा, ‘‘सर,

1 मिनट रुकिए, मैं पूछता हूं.’’

‘‘वैसे कौन हैं, ओआईसी, टीएसएस?’’

‘‘सर, कैप्टन धवन साहब हैं.’’

‘‘मेरी बात करवा देना.’’

संतरी ने बात की और फोन मेरी ओर बढ़ा दिया, ‘‘मैं कैप्टन धवन, कहिए?’’

‘‘जयहिंद कैप्टन साहब. मैं एक्स ले. कर्नल साहनी बोल रहा हूं. यह मेरी पहली यूनिट है. मैं ने 1963 में ट्रेनिंग के बाद इसे जौइन किया था, जब यह यूनिट बबीना में थी. 65 की लड़ाई के बाद हम यहीं आ गए थे.’’

‘‘सर, आप संतरी को फोन दें.’’ मैं ने उसे फोन दिया और थोड़ी देर बाद मैं कैप्टन धवन साहब के सामने बैठा था. ‘‘सर, आप कहते हैं, यह आप की पहली यूनिट है. आप उन अफसरों के नाम भी सही बता रहे हैं जिन की कमांड में आप ने काम किया था. आप अफसर कब बने?’’

मैं ने धवन साहब को भी आईकार्ड दिखाया, मैं रैंक से अफसर बना था. जब विभाग ने इंवैंटरी कंट्रोल अफसरों की वैकेंसी निकाली थी. मैं मैट्रिक पास कर के सेना में आया था. मेरा ट्रेड स्टोरकीपर सिगनल था. मैं ने अपनी पढ़ाई भी यहीं से शुरू की. तब मेजर पी एम मेनन कमांडिंग अफसर थे. मैं ने प्रैप और फर्स्ट ईयर यहीं से की. सैकंड और फाइनल ईयर दिल्ली रहते हुए किया. एमए हिंदी से तब किया जब अंबाला की एक वर्कशौप में पोस्ट हुआ.

मेरी सारी पढ़ाई ईएमई वर्कशौपों पर रही. इंवैंटरी कंट्रोल अफसरों की वैकेंसी निकली तो मैं अंबाला की आर्ड वर्कशौप में था. मेजर लक्ष्मी नारायण पांडे मेरे औफिसर कमांडिंग थे. वे मेरी पढ़ाई के बारे में जानते थे. एक वर्कशौप में मैं उन के साथ था. उन्होंने मुझे बुलाया और इस के लिए एप्लाई करवाया. कमांड हैडक्वार्टर से उसे क्लियर भी करवाया.

मेरा एसएसबी तक का रास्ता साफ हो गया. पर मेरी एक मुश्किल थी. मैं अच्छी अंगरेजी लिख तो सकता था परंतु बोलने का प्रवाह अच्छा न था. मेजर साहब ने कहा, इस का प्रबंध भी हो जाएगा. मेजर साहब ने जाने कहांकहां बात की. एसएसबी परीक्षा से 3 महीने पहले मुझे स्टेशन वर्कशौप, दिल्ली में टैंपरेरी ड्यूटी पर भेजा और एस एन दासगुप्ता कालेज में अंगरेजी का प्रवाह बनाने की कोचिंग दिलाई. मजे की बात यह थी कि मैं पहली बार में सैलेक्ट हो गया और अफसर बना.

मेरी पढ़ाई और अफसर बनना सब ईएमई पर निर्भर रहा. मैं आज भी मेजर पी एम मेनन और मेजर लक्ष्मी नारायण पांडे को याद करता हूं. मैं उन को कभी भूल ही नहीं पाया.’’

‘‘हां, सर, आगे बढ़ने वालों की हर कोई मदद करता है. यहां अब भी कईर् जवान अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं और उन्हें पूरी सुविधाएं दी जा रही हैं.’’

इतने में एक सूबेदार साहब आए और कैप्टन साहब से बोले, ‘‘सर, लीव पार्टी चली गई है. सब को रात का डिनर और सुबह का नाश्ता साथ में दे दिया गया.’’

‘‘तो यह परंपरा आज भी कायम है. मेजर पी एम मेनन ने इसे शुरू किया था. उन को कहीं से पता चला था कि ट्रेन में जवानों को बेहोश कर के लूट लिया गया है. तब से आदेश दे दिया गया कि छुट्टी जाने वाले जवानों को रास्ते के लिए इतना खाना दे दिया जाए कि उन के घर पहुंचने तक समाप्त न हो,’’ मैं ने खुश हो कर बताया.

सचमुच इतने समय से चली आ रही यह परंपरा आश्चर्य उत्पन्न करती है. मेरा यहां आना ही एक आश्चर्य था. यदि भाषा विभाग, पंजाब मुझे पुरस्कृत न करता तो मैं 50 वर्षों बाद भी इस शहर में न आ पाता. उस से भी आश्चर्य की बात यह थी कि इतने लंबे अंतराल के बाद भी इस यूनिट का यहां मिलना.

‘‘सर, आप जानते हैं, आज कौन सा दिन है?’’ कैप्टन धवन साहब ने पूछा.

‘‘जी, हां, आज हमारा रेजिंग डे है.’’

‘‘हां, सर, इसी उपलक्ष्य में आज रात को बड़ा खाना है. आप हमारे मुख्य अतिथि होंगे. आप देखेंगे, इतने वर्षों बाद भी भारतीय सेना में वही सद्भावनाएं हैं, वही परंपराएं हैं, वही अनुशासन है, वही बड़े खाने हैं, वही देश के प्रति समर्पण है, एक शाश्वत निर्झर बहने वाले झरने की तरह.’’ रात को बड़े खाने के बाद जब होटल पहुंचा तो मन के भीतर यह बात दृढ़ थी कि आज भी भारतीय सेना हर तरह से विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना है.

15 अगस्त स्पेशल : औपरेशन, भाग 3

कौफी पीने के बाद थोड़ा आगे बढ़े तो डाक्टर निकुंज मिल गए. ‘‘मेजर साहब, अपने डाक्टर सारांश का जवाब पढ़ना नहीं चाहेंगे,’’ यह कहते हुए उन्होंने डाक्टर सारांश का पत्र मेजर के सामने कर दिया.

मेजर बलदेव ने एक सांस में ही पत्र पढ़ लिया था. डाक्टर सारांश ने प्रस्ताव तो मंजूर किया था मगर शर्त यह रखी थी कि अस्पताल कश्मीर के रामबन इलाके में ही बने, जहां मैडिकल सुविधाएं न के बराबर हैं. लोगों को इलाज के लिए श्रीनगर या जम्मू जाना पड़ता है.

‘‘डाक्टर सारांश ने एक तरह से हमारी पेशकश ठुकरा दी है. मगर मैं हार मानने वाला नहीं हूं. मैं काउंसिल से अस्पताल वहीं बनाने की सिफारिश करूंगा, जहां डाक्टर सारांश चाहते हैं,’’ डा. निकुंज ने कहा.

मेजर बलदेव कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि इस पर वे क्या प्रतिक्रिया दें. एक पल उन्होंने सोचा और कहा, ‘‘डाक्टर निकुंज, मेरी एक राय है. आप इस बात को यहीं खत्म कर दें. काउंसिल में अधिकतर विदेशी हैं, मैं नहीं चाहता कि अपने देश का नाम नीचे हो.’’

‘‘यह कैसी बातें कर रहे हैं मेजर साहब. इस से तो हमारे देश का नाम ऊंचा होगा. डाक्टर सारांश को भी वह सम्मान मिलेगा जिस के वे सही माने में हकदार हैं.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं मगर आप भी एक भारतीय हैं. माना कि आप बरसों से यहां बसे हुए हैं मगर हमारे देश की कार्यप्रणाली को नहीं भूले होंगे. माना कि बदलाव आ रहा है मगर अभी भी बहुतकुछ पहले जैसा ही है, समय लगेगा. आप का प्रस्ताव बरसों दफ्तरों के चक्कर लगाता रहेगा. फाइलें इधर से उधर घूमती रहेंगी. राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच खेल शुरू हो जाएगा. विरोधी दल सियासत करेंगे. जम्मू और कश्मीर के खास दर्जे पर चर्चा होगी. सबकुछ होगा मगर अस्पताल का प्रोजैक्ट पास नहीं होगा. सोचिए, क्या गुजरेगी डाक्टर सारांश पर और क्या सोचेंगे आप के विदेशी साथी और सहयोगी.’’

‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं,’’ डाक्टर निकुंज ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘‘सिर्फ एक डाक्टर सारांश के आगे आने से काम नहीं चलेगा. आवश्यकता है कि सरकार के मंत्री और सरकारी कर्मचारी दोनों ही अपनी सोच को बदलें. तभी सही मानों में बदलाव आएगा. बहुत जरूरी है कि देश में वीआईपी कल्चर, लालफीताशाही और जिम्मेदारी से दाएंबाएं होने का खेल सरकारी दफ्तरों से खत्म हो. तभी विदेशों में हमारी छवि और लोगों की हमारे बारे में सोच बदलेगी. वे हमें गंभीरता से लेंगे.’’

डाक्टर सारांश का हवाई जहाज जब दिल्ली पहुंचा तो उन के स्वागत के लिए कई लोग हवाई अड्डे पर मौजूद थे. भीड़ में सब से आगे मंत्री महोदय और मैडिकल डाइरैक्टर थे. उन के चेहरों पर कुटिल मुसकान अभी भी मौजूद थी.

फांसी लगाने से लेकर अंतिम संस्कार तक की Nitin Desai ने की थी प्लानिंग, हुआ खुलासा

Nitin Desai Death : बीते दिन यानी 2 अगस्त 2023 को आर्ट डायरेक्टर नितिन चंद्रकांत देसाई ने अपने खालापुर स्थित स्टूडियो में सुसाइड कर ली थी. उनकी अचानक से हुई मौत ने पूरी बॉलीवुड इंडस्ट्री को हिला दिया है. हालांकि अब तक उनकी (Nitin Desai) आत्महत्या करने के पीछे के सटीक कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन पुलिस को अब इस संबंध में एक लेटर और एक वीडियो रिकॉर्डिंग मिली है.

बेटे को दी थी रिकॉर्डिंग की हिंट

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पता चला है कि ‘नितिन (Nitin Desai) ने फांसी लगाने से लेकर अंतिम संस्कार तक की प्लानिंग कर रखी थी. जिस रात उन्होंने फांसी लगाई थी, उससे एक दिन पहले उन्होंने सिक्योरिटी से स्टूडियो की सारी चाबियां ले लीं थी और अपने बेटे से कहा था कि उन्हें स्टूडियो में अकेला छोड़ दें क्योंकि उन्हें कुछ जरूरी काम करना है.’ इसके बाद उन्होंने अपने बेटे को गेट तक छोड़ा और उससे अगली सुबह करीब साढ़े आठ बजे तक स्टूडियो आने को कहा. साथ ही उससे कहा कि, ‘वो मेरी एक रिकॉर्डिंग वीडियो देखे, जो उसे स्टूडियो नंबर 10 में मिलेगी.”

जानें कैसे लगाई फांसी

आपको बता दें कि, आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई (Nitin Desai Death) ने मराठी पावूल पढ़ते पुढे, स्टूडियो नंबर 10 के सेट पर फांसी लगाई थी. पुलिस की जांच में पता चला है कि “उन्होंने सबसे पहले रस्सी के साथ एक धनुष और तीर खींचा. फिर धनुष और तीर पर एक सीढ़ी रखी और खुद को लटका लिया.”

रिकॉर्डिंग में किन-किन बातों का किया गया जिक्र

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बताया जा रहा है कि “सुसाइड करने से पहले नीतिन (Nitin Desai Death) ने अपनी एक वीडियो रिकॉर्डिंग की थी, जिसमें उन्होंने एनडी स्टूडियो को उनसे दूर न करने का जिक्र किया है. साथ ही ये भी कहा कि उनका अंतिम संस्कार उनके स्टूडियो नंबर 10 में ही किया जाए.” हालांकि जांच में पता चला है कि नीतिन लंबे समय से आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे थे और उन पर करीब 252 करोड़ रुपए का कर्ज था.

कई बड़ी फिल्मों में किया था काम

आपको बता दें कि नितिन चंद्रकांत देसाई (Nitin Desai) ने मुंबई के बाहरी इलाके खालापुर तालुका में अपना एक विशाल स्टूडियो खोला था जहां जोधा अकबर सहित कई बड़ी फिल्मों की शूटिंग हुई है. वहीं बॉलीवुड में उन्हें ‘लगान’ और ‘देवदास’ जैसे प्रोजेक्ट के लिए जाना जाता हैं.

इसके अलावा उनकी एक एनडीज़ आर्ट वर्ल्ड नामक कंपनी भी थी. जो थीम रेस्तरां, होटल, शॉपिंग मॉल, एंटरटेनमेंट सेंटर्स और ऐतिहासिक स्मारकों की प्रतिकृतियों को मेंटेन करने के साथ-साथ उन्हें बनाए रखना और ओपरेट करना जैसी कई सुविधाएं और सर्विश प्रोवाइड करवाती थी.

कमीशन- भाग 3

चाय आ गई थी और उस के साथ बिस्कुट भी. उन्होंने मुझे बड़े अदब से चाय पेश की और मुझ से बातें भी करते रहे. बोले, ‘‘चेक ले कर ही जाइएगा दीयाजी. हो सकता है कि थोड़ी देर लग जाए. बहुत खुशी होती है न कुछ करने का पारिश्रमिक पा कर.’’

और तब मैं सोच रही थी कि शायद अब यह मतलब की बात करें कि बदले में मुझे उन्हें कितना कमीशन देना है. मैं तो बिलकुल ही तैयार बैठी थी उन्हें कमीशन देने को. मगर मुझ से उन्होंने उस का कुछ जिक्र ही नहीं किया. मैं ने ही कहा, ‘‘सर, मैं तो आकाशवाणी पर बस प्रोग्राम करना चाहती हूं. बाकी पारिश्रमिक या पैसे में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है. मेरी रचनात्मक प्रवृत्ति का होना ही कुदरत की तरफ से दिया हुआ मुझे सब से बड़ा तोहफा है जो हर किसी को नहीं मिलता है. सर, यह यहां मेरा पहला प्रोग्राम है. आप ही की वजह से यह मुझे मिला है. यह मेरा पहला पारिश्रमिक मेरी तरफ से आप को छोटा सा तोहफा है क्योंकि जो मौका आप ने मुझे दिया वह मेरे लिए अनमोल है.’’

कहने को तो मैं कह गई, लेकिन डर रही थी कि कहीं वे मेरे कहे का बुरा न मान जाएं. सब तरह के लोग होते हैं. पता नहीं यह क्या सोचते हैं इस बारे में. कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर दी मैं ने अपनी बात कहने में. मेरे दिलोदिमाग में विचारों का मंथन चल ही रहा था कि वे कह उठे, ‘‘दीयाजी, आप सही कह रही हैं, यह लेखन और यह बोलने की कला में माहिर होना हर किसी के वश की बात नहीं. इस फील्ड से वही लोग जुड़े होने चाहिए जो दिल से कलाकार हों. मैं समझता हूं कि सही माने में एक कलाकार को पैसे आदि का लोभ संवरण नहीं कर पाता. आप की ही तरह मैं भी अपने को एक ऐसा ही कलाकार मानता हूं. मैं भी अच्छे घर- परिवार से ताल्लुक रखता हूं, जहां पैसे की कोई कमी नहीं. मैं भी यहां सिर्फ अपनी रचनात्मक क्षुधा को तृप्त करने आया हूं. आप अपने पारिश्रमिक चेक को अपने घर पर सब को दिखाएंगी तो आप को बहुत अच्छा लगेगा. यह बहुत छोटा सा तोहफा जरूर है, लेकिन यकीन जानिए कि यह आप को जिंदगी की सब से बड़ी खुशी दे जाएगा.’’

उन की बात सुन कर मैं तो सचमुच अभिभूत सी हो गई. मैं तो जाने क्याक्या सोच कर आई थी और यह क्या हो रहा था मेरे साथ. सचमुच कुछ कह नहीं सकते किसी के भी बारे में, कहीं के भी बारे में. हर जगह हर तरह के लोग होते हैं. एक को देख कर दूसरे का मूल्यांकन करना निरी मूर्खता है. जब हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं तो…यह तो मेरा वास्ता कुछ ऐसे शख्स से पड़ा, कहीं वह मेरी इसी बात का बुरा मान जाता तो. सब शौक रखा रह जाता आकाशवाणी जाने का.

घर आ कर अंकल को यह सब बताया तो उन्हें भी मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ. मम्मीपापा तो यूरोप भ्रमण पर चले गए थे. उन से बात नहीं हो पा रही थी जबकि मैं कितनी बेचैन हो रही थी मम्मी को सबकुछ बताने को.

अब तो कई बार वहां कार्यक्रम देने जा चुकी हूं. कभी कहानी प्रसारित होती है तो कभी वार्ता. बहुत अच्छा लगता है वहां जा कर. मुझे एकाएक लगने लगा है कि जैसे मैं भी कितनी बड़ी कलाकार हो गई हूं. शान से रिकार्डिंग करने जाती हूं और अपने शौक को यों पूरा होते देख खुशी से फूली नहीं समाती. अपने दोस्तों के दायरे में रिश्तेदारों में, अगलबगल मेरी एक अलग ही पहचान बनने लगी है और इन सब के लिए मैं दिल से अंकल की कृतज्ञ थी, जिन्होंने अपने अतीत के इतने कड़वे अनुभव के बावजूद मेरी इतनी मदद की.

इस बीच मम्मीपापा भी यूरोप घूम कर वापस आ गए थे. कुछ सोच कर एक दिन मैं ने मम्मी और पापा को डिनर पर अपने यहां बुला लिया. जब से हम ने यह घर खरीदा था, बस, कभी कुछ, कभी कुछ लगा रहा और मम्मीपापा यहां आ ही नहीं पाए थे. अंकल से धीरेधीरे, बातें कर के मेरा शक यकीन में बदल गया था कि मम्मी और अंकल अतीत की एक कड़वी घटना के तहत एक ही सूत्र से बंधे थे.

मम्मी को थोड़ा हिंट मैं ने फोन पर ही दे दिया था, ताकि अचानक अंकल को अपने सामने देख कर वे फिर कोई बखेड़ा खड़ा न कर दें. कुछ इधर अंकल तो बिलकुल अपने से हो ही गए थे, सो उन्हें भी कुछ इशारा कर दिया. एक न एक दिन तो उन लोगों को मिलना ही था न, वह तो बायचांस यह मुलाकात अब तक नहीं हो पाई थी.

और मेरा उन लोगों को सचेत करना ठीक ही रहा. मम्मी अंकल को देखते ही पहचान गईं पर कुछ कहा नहीं, लेकिन अपना मुंह दूसरी तरफ जरूर फेर लिया. डिनर के दौरान अंकल ने ही हाथ जोड़ कर मम्मी से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप से माफी मांगने का मौका इस तरह से मिलेगा, कभी सोचा भी नहीं था. अपने किए की सजा अपने लिए मैं खुद ही तय कर चुका हूं. मुझे सचमुच अफसोस था कि मैं ने अपने अधिकार, अपनी पोजीशन का गलत फायदा उठाया. अब आप मुझे माफ करेंगी, तभी समझ पाऊंगा कि मेरा प्रायश्चित पूरा हो गया. यह एक दिल पर बहुत बड़ा बोझ है.’’

मम्मी ने पहले पापा को देखा, फिर मुझे. हम दोनों ने ही मूक प्रार्थना की उन से कि अब उन्हें माफ कर ही दें वे. मम्मी भी थोड़ा नरम पड़ीं, बोलीं, ‘‘शायद मैं भी गलत थी अपनी जगह. समय के साथ चल नहीं पाई. जरा सी बात का इतना बवंडर मचा दिया मैं ने भी. हम से ज्यादा समझदार तो हमारे बच्चे हैं, जिन की सोच इतनी सुलझी हुई और व्यावहारिक है,’’ मम्मी ने मेरी तरफ प्रशंसा से देखते हुए कहा. फिर बोलीं, ‘‘अब सही में मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं है. मेरी बेटी की इतनी मदद कर के आप ने मेरा गुस्सा पहले ही खत्म कर दिया था. अब माफी मांग कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए. दीया की तरह मेरा भी प्रोग्राम वहां करवा सकते हैं क्या आप? मैं आप से वादा करती हूं कि अब कुछ गड़बड़ नहीं करूंगी.’’

मम्मी ने माहौल को थोड़ा सा हल्काफुल्का बनाने के लिए जिस लहजे में कहा, उसे सुन हम सभी जोर से हंस पडेें.

Gadar 2 के प्रमोशन के लिए बॉर्डर पर पहुंचे सनी देओल, जवानों के साथ किया डांस

Gadar 2 : हिन्दी सिनेमा की कई ऐसी फिल्में है, जिनको रिलीज हुए बेशक कई साल हो गए है, लेकिन आज भी ये फिल्में लोगों की आंखों में आंसू ला देती है. इसी में से एक है सनी देओल की ‘गदर: एक प्रेम कथा’. इस फिल्म  को रिलीज हुए 22 साल हो चुके हैं, लेकिन तारा सिंह और सकीना की कहानी आज भी लोगों के दिल-दिमाग में जिंदा है.

‘गदर: एक प्रेम कथा’ की अपार सफलता के बाद मेकर्स इसके आगे की कहानी को ‘गदर 2’ (Gadar 2) में दिखाएंगे, जिसका ट्रेलर भी रिलीज किया जा चुका है. दर्शकों को इसका ट्रेलर काफी पसंद आया है और ये फिल्म 11 अगस्त को बड़े पर्दे पर रिलीज होगी. गदर 2 के प्रमोशन के लिए सनी देओल (Sunny Deol) सबसे पहले जवानों के बीच पहुंचे.

तनोट बॉर्डर पहुंचे तारा सिंह

दरअसल बॉलीवुड एक्टर सनी देओल ने फिल्म ‘गदर 2’ (Gadar 2) के प्रमोशन की शुरुआत राजस्थान के लोंगेवाला के तनोट बॉर्डर से की है. उन्होंने यहां जवानों के साथ समय बिताया और ‘मैं निकला गड्डी लेकर…’ गाने पर डांस भी किया. इसके अलावा एक्टर (Sunny Deol) ने जवानों के साथ पंजा भी लड़ाया. साथ ही भारतीय सेना के वेपेन्स और टैंक के साथ तस्वीर क्लिक करवाई.

सनी देओल ने इंस्टाग्राम पर शेयर की फोटोज

आपको बता दें कि एक्टर (Sunny Deol) ने जवानों के साथ अपनी ये तस्वीरें खुद अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की है. फोटो में देखा जा सकता है कि वो यहां तारा सिंह (Gadar 2) के अवतार में आए. उन्होंने ब्राउन पठानी के साथ ब्राउन पगड़ी पहन रखी है.

अपनी फोटो के कैप्शन में सनी ने लिखा, सीमा सुरक्षा बल, लोंगेवाला राजस्थान में अपने दोस्तों के साथ #Gadar2 का प्रमोशन शुरू किया. ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी और उन सभी बहादुर शहीदों को याद करता हूं जिन्होंने लोंगेवाला की लड़ाई लड़ी और इतिहास लिखा. ऐसे ऐतिहासिक स्थान पर अपने बहादुरों के साथ रहना और प्यार साझा करना हमेशा एक जबरदस्त अहसास होता है. धन्यवाद @bsf_india जय हिन्द!

ऐसे नहीं चलता काम- भाग 3

मेरा मन बिलकुल नहीं था. मन तो अरुण में टंगा था. फिर भी अनिच्छापूर्वक उठना पड़ा. झोंपड़ी के एक किनारे ही रसोई थी. अल्युमुनियम, स्टील, तामचीनी और लकड़ी के भी ढेर सारे बरतन करीने से रखे हुए थे. एक तरफ 2 बड़े ड्रम थे, जिन में पीने का पानी था. सरकारी कृपा से नागालैंड के हर गांव में और कुछ पहुंचे, न पहुंचे, बिजली और पानी की सप्लाई ठीकठाक है. कुछ छोटे पीपों में कुचले हुए बांस के कोंपल भरे थे. उन के उपर करीने से बोतलें सजी थीं, जिन में बांस की कोंपलों का ही रस निकाल कर रखा हुआ था.

नागा समाज अपनी रसोई में तेलमसालों की जगह इन्हीं बांस के कोंपलों के खट्टे रसों का उपयोग करता है, यह बात अरुण ने एक दिन बताई थी. एक तरफ चूल्हे में आग जल रही थी, जिस पर बड़ी सी केतली में पानी खदक रहा था. बुढ़िया ने एक अलग बरतन में कप से पानी नाप कर डाला और चूल्हे के दूसरी तरफ चढ़ा दिया. अब मैं ने ध्यान दिया. चूल्हे के ऊपर मचान बना कर लकड़ियां रखी थीं. और इन दोनों के बीच लोहे के तारों में गूंथे गए मांस के टुकड़े रखे थे. मेरा मन अजीब सा होने लगा था.

बुढ़िया सब को चाय देने लगी थी. वह एक प्लेट में बिस्कुट भी निकाल लाई थी और खाने के लिए बारबार आग्रह कर रही थी. उस का वात्सल्य देख मेरा मन भर आया और प्लेट पकड़ ली. बुजुर्ग अब खुद ही अपने बारे में बताने लगे थे- “मैं यहां का गांव का बूढ़ा (मुखिया) हूं. 3 बेटे और एक बेटी है. बेटी की शादी हो गई. एक बेटा गोहाटी में टीचर है और दूसरा डिमापुर में एक औफिस में क्लर्क है. तीसरा मोकोकचुंग के एक कालेज में पढ़ाई करता है. आज ही वह आया है. मगर अभी जंगल गया हुआ है. आता ही होगा अब. अच्छा, तुम्हारा आदमी क्या करता है?”

“वे मोकोकचुंग कालेज में प्रोफैसर हैं.”

“अच्छा, तो वह टीचर है,” बुढ़ा बुदबुदाया, “और तुम क्या करती है?”

“मैं,” मैं इस तनाव में भी हंस पड़ी, “मैं तो घर पर रहती हूं.”

तब तक डाक्टर आ गया था. हम सभी उठ खड़े हुए. अरुण की जांच करने के बाद उस ने अरुण को एक इंजैक्शन लगाने की तैयारी करने लगा. इंजैक्शन लगते ही अरुण कुनमुनाया. चेहरे पर बेचैनी के कुछ लक्षण उभरे. फिर वह शांत दिखने लगा था. डाक्टर बंगाली था. फिर भी धाराप्रवाह आओ भाषा बोल रहा था. सारी बात उसी में हो रही थी. इसलिए मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था. बस, यही आभास हुआ कि अरुण की दशा देख सभी चिंतित हैं. अरुण को चारपाई समेत बाहर निकाल अस्पताल पहुंचा दिया गया.

अस्पताल क्या था, बस, एक साफसुथरी झोंपड़ी थी, जिस में दवाएं रखी थीं. सफेद परदे का पार्टीशन दे कर चारेक चारपाइयां बिछी थीं. उसी में से एक पर अरुण को लिटा दिया गया. अरुण की बेहोशी पूरे ढाई घंटे बाद टूटी थी. बड़ी तकलीफ के साथ उस ने आंखें खोलीं. मैं उस पर झुक आई.

बाहर खुसरपुसर चल रही थी. अचानक बूढ़ा हिंदी में बोला, “डाक्टर, मेरा खून चढ़ा दो.”

“नहीं जी,” डाक्टर ने जवाब दिया, “बुढ़े का रक्त नहीं चढ़ाया जा सकता. इस के लिए तो किसी जवान का ही खून चाहिए होता है.”

अब वह मुझ से अरुण का ब्लडग्रुप पूछने लगा. मैं ने उसे बताया. उस ने अरुण का रक्त चैक करने के बाद कहा, “यू आर राइट, मैडम.”

“आप मेरा खून इन्हें चढ़ा दीजिए, सर,” मैं बोली, “शायद यह मैच कर जाए.”

“हमलोग के रहते तुम यह काम कैसे कर सकता है. बस्ती में इतना सारा लोग है. किसी न किसी का जरूर मैच कर जाएगा.”

भीड़ में से कई युवक आगे बढ़ आए थे. डाक्टर एकएक कर उन का ब्लड चैक कर नकारता जा रहा था. मेरी बेचैनी बढ़ती जाती थी. अचानक वहां एक युवक प्रकट हुआ. बुजुर्ग दंपती से जाने क्या उस की बात हुई. और अब उस ने अपना हाथ बढ़ा दिया था.

उस का ब्लड ग्रुप अरुण के ब्लड ग्रुप से मैच कर गया था.

बुढ़ा मुझ से मुखातिब हो कर बोला, “यह मेरा बेटा कुमजुक आओ है. यह तुम्हारे हसबैंड के कालेज में ही पढ़ता है और इन्हें जानता है. अच्छी बात, उस का खून उस से मिल गया है. अब वह उसे खून देगा. तुम बेकार डरता था.”

मैं उन लोगों के प्रति कृतज्ञता से भर उठी.

आधेक घंटे में कुमजुक आओ के शरीर से खून निकल कर अरुण के शरीर में पहुंच चुका था. अरुण का चेहरा अब तनावरहित और स्थिर था. ब्लड देने के बाद भी कुमजुक आओ के चेहरे पर एक दिव्य चमक सी थी. मैं उस सुदर्शन युवक को देखती रह गई.

हृष्टपुष्ट खिलाड़ियों का सा बदन, जिस पर कहीं अतिरिक्त चरबी का नाम नहीं था. हिंदी फिल्मों के हीरो समान करीने से कटे, संवारे केश. हंसता हुआ चेहरा, जिस में दुग्धधवल दंतपंक्तियां मोती सी आभा बिखेर रही थीं. उस की अधखुली, स्वप्निल सी आंखों में न जाने कैसा तेज और निश्छलता थी, कि वह कांतिमय हो रहे थे.

बैड से उठते ही उस ने हाथपैर फेंके और सीधा खड़ा हो गया. डाक्टर ने उसे कुछ दवाएं और हिदायतें दीं, जिन्हें हंसते हुए स्वीकार कर लिया. फिर अपने पिता को दवाएं देते हुए मुझ से बोला, “अब सर बिलकुल ठीक हो जाएंगे. सर बहुत अच्छे हैं. एकदम ह्यूमरस नेचर. पढ़ाते भी बहुत अच्छा हैं. दोस्तों की तरह मिलते हैं हम से. आप चिंता न करें. आप यहां आईं, तो इस हालत में. खैर, कोई बात नहीं. चलिए, मैं आप को अपना गांव घुमा दूं.”

शाम ढलने तक मैं उस के साथ सारा गांव घूम चुकी थी. मुझे जरा भी यह एहसास तक नहीं हुआ कि मुझे भी चोट लगी है. उलटे, अब मैं प्रफुल्लित सी महसूस कर रही थी. कुमजुक बातबात में ठहाके लगता, हंसता. उस के पास बातों का पिटारा था. आओ जाति की सभ्यतासंस्कृति के संबंध में अनेक बातें बताईं. विज्ञान का विद्यार्थी होने के बावजूद उस में इतिहास-भूगोल-समाज विज्ञान की गहरी समझ थी. उस ने गांव के कई युवकयुवतियों से मुझे मिलवाया. फिर कुछ घरों में भी ले गया. घर में रखे प्राचीन सामान के बारे में विस्तार से जानकारी भी दी. यही नहीं, वह दुभाषिए समान बातों की व्याख्या भी करता. एक घर के बाहर कोई आधेक दर्जन खोपड़ियां टंगी थीं. उन्हें देख मैं सिहर उठी.

पूर्वोत्तर प्रदेशों में रात जल्द ढलती है. सो, रात होते ही हम वापस लौट चले थे. अरुण अस्पताल से वापस कुमजुक के घर शिफ्ट कर दिया गया था. और अभी भी सो रहा था. चाय पीने के बाद भी कुमजुक देर तक मेरे साथ बात करता रहा. दाव-भाला से ले कर लकड़ी-बेंत आदि से बने टोकरी-बास्केट और बरतनों के बारे में बताता रहा. उस की वर्णनात्मक पटुता को देख मैं विस्मित थी. जैसे कोई दादीनानी अपने नातीपोतों को कोई प्राचीन लोककथाएं सुना रहा हो.

अचानक उस की मां आ कर बोली कि अरुण की नींद टूट गई है और मुझे याद कर रहा है.

अरुण अब स्वस्थ दिख रहा था. हमें देखते ही वह बोला, “अरे कुमजुक, तुम यहां कैसे?”

“यह तो मेरा ही घर है, सर,” वह हंस कर बोला, “समय का बात कि आप हमारे घर पर हैं. गांव वालों ने आप की जीप को ऐक्सिडैंट करते देख लिया था. मेरे फादर आप को घर ले आए.”

“इन का शुक्रिया अदा करो, अरुण,” मैं बोल पड़ी, “इन्होंने ही तुम्हें अपना खून दिया है. अब तुम्हारी धमनियों में इन्हीं का खून दौड़ रहा है.”

“शुक्रिया कैसा. यह तो अपना ड्यूटी था. अपने गेस्ट को सेफ्टी देना अपना काम है.”

हम सभी हंस पड़े. वातावरण काफी सहज और सुखद हो गया था. तभी कुमजुक की मां खाने के लिए पूछने आ गई थी. कुमजुक बोला, “माफ करेंगे मैडम, हम नागा लोग शाम को ही खाना खा लेते हैं. वैसे, आप लोगों के लिए तो अलग से ही व्यवस्था करनी होगी.”

“नहींनहीं, रहने दो,” मैं बोल उठी, “परेशान होने की जरूरत नहीं. आप लोगों के अनुसार ही हमें भी चलना है.”

आधेक घंटे बाद कुमजुक वापस आया, तो उस के हाथ में 2 थालियां थीं. उन में चावल, सब्जी और उबले अंडे थे. थालियों को टेबल पर रखते हुए वह बोला, “मैं ने इन्हें अलग से स्टोव पर खास आप लोगों के लिए पकाया है. आराम से खाना खाओ.”

अरुण तो अपनी अशक्तता के कारण नहीं के बराबर ही कुछ खा पाया. बमुश्किल मैं ने उसे अंडे खिलाए. अनिच्छा होने के बावजूद मैं ने भोजन किया. फिर अरुण की बगल में पड़ी चारपाई पर पड़ रही. मगर आंखों में नींद कहां थी. पूरा गांव सन्नाटे और अंधेरे में डूबा था. कुमजुक आओ से इतना सबकुछ जानसमझ लेने के बावजूद कुछ अजीब सा लग रहा था. एक बार फिर मन न जाने कहांकहां भटकने लगा था.

इन्हीं भटकावों के बीच कब आंख लग गई, पता नहीं. अचानक शोरगुल सुन कर नींद खुल गई. मन में भांतिभांति की आशंकाएंकुशंकाएं घुमड़ने लगीं. खिड़की में लगे शीशे से बाहर झांक कर देखा. कुछ लोग दौड़तेभागते नजर आए. अनेक टौर्च की रोशनियां जलबुझ रही थीं. एक झुंड वरदीधारियों का भी दिखा. ये कौन हो सकते हैं. अभी सोच ही रही थी कि दरवाजे पर दस्तक पड़ने लगी.

दरवाजा खुलते ही आधेक दर्जन वरदीधारी अंदर घुस आए थे. अंदर घुसते ही वे यहांवहां बिखर कर कुछ खोजने लगे थे. एक कड़कती आवाज गूंजी, “घर में कौनकौन है?”

“मैं हूं और मेरी वाइफ और छोटा बेटा है. 2 गेस्ट भी हैं,” बुजुर्ग सर्द आवाज में बोल रहे थे, “रास्ते में उन का ऐक्सिडैंट हो गया था. हम उन्हें यहां उठा लाये थे.”

“मुझे इस घर की तलाशी लेनी है,” वही स्वर उभरा, “पक्की सूचना मिली है कि…”

“तो ले लो न.”

धड़ाधड़ सामान इधरउधर किए जाने लगे. एक तरह से फेंके जाने लगे. नागा समाज इतना सहज, सरल है कि उस के पास छिपाने को कुछ नहीं. बेहयाई के साथ सामान बिखेर दिए गए थे. अब वह सैन्य अफसर मेरे सामने खड़ा था- “आप यहां कैसे? कौन हैं आप?”

“मैं दिव्या हूं. ये मेरे पति अरुण हैं और मोकोकचुंग कालेज में प्रोफैसर हैं. हमारी जीप ऐक्सिडैंट कर गई थी.”

“क्या सुबूत है?”

मैं ने अरुण के वौयलेट से उस का परिचयपत्र निकाल कर दिखाया.

“जीप का क्या नंबर था?”

अरुण ने कराहते हुए जीप का नंबर बताया. तभी एक जवान आ कर बोला, “ठीक कहता है. इसी नंबर की एक जीप रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त मिली थी.”

तभी दूसरी तरफ से एक अन्य जवान कुमजुक आओ को पकड़ लाया था. आते ही बोला, “यह देखिए सर, हम ने उसे पकड़ लिया, जिस की हमें तलाश थी.”

कुमजुक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह चिल्ला रहा था, “छोड़ो, छोड़ो मुझे. मैं ने क्या किया है?”

“क्या किया है,” अफसर उसे घुड़क रहा था, “पकड़े गए, तो चालाकी दिखाते हो. कहां रहे 22 दिनों तक?”

“सर, यह आप क्या कह रहे हैं,” अरुण आवेश में आ कर बोला, “यह मेरे मोकोकचुंग कालेज का स्टूडैंट है. मैं इसे अच्छी तरह से जानता हूं. यह कोई गलत काम कर ही नहीं सकता. बड़ी बात यह कि पिछले डेढ़ माह से यह नियमित कालेज आता रहा है. संभव है, इस की मिलतीजुलती शक्लसूरत वाले किसी अन्य की तलाश हो आप को. सभी तो एकजैसे ही दिखते हैं. वह कोई और होगा.”

“देखिए, आप मुझे मत सिखाइए. यह भाषणबाजी कालेज में ही चले तो बेहतर. हमें आदमी पहचानने की ट्रेनिंग मिली है. हम गलती कर ही नहीं सकते. आखिर आर्मीवाले हैं हम. कोई सिविलियन नहीं, समझे जनाब,” अफसर रंज स्वरों में कह रहा था, “इस को बचाने के चक्कर में आप भी फंस जाएंगे, तो होश ठिकाने आ जाएगा.”

“इस ने कल शाम ही इन्हें रक्तदान किया है,” मैं बोल पड़ी, “अभी अशक्त है. थोड़ी इंसानियत भी दिखाइए. ऐसी हालत में आप इसे नहीं ले जा सकते.”

“आप होती कौन हैं हमें अपने काम से रोकने वाली,” अफसर ने मुझे घुड़का, तो मैं सहम गई. कुमजुक आओ को बेड़ी पहनाते वक्त मैं ने फिर मिन्नत की. अफसर बोला, “देखिए, हम कुछ नहीं जानते. अब आर्मी कैंप में ही सचझूठ का पता चलेगा. मैं आप से बहस नहीं करना चाहता. मैं भी देश का ही काम कर रहा हूं.”

“ऐसे आप देश का करते रहे काम, तो हो चुका देश का कल्याण,” अरुण व्यंग्य से बोला, “अपराधी पकड़ पाएंगे या नहीं, पता नहीं. मगर दस अपराधी जरूर तैयार कर जाएंगे.”

“देखिए मिस्टर प्रोफैसर,” अफसर एकदम से अरुण के सिरहाने आ खड़ा हुआ, “मुझे बकवास एकदम पसंद नहीं है. चुपचाप पड़े रहिए.”

बुजुर्ग दंपती पत्थर के बुत जैसे बन कर रह गए थे. गांव में विचित्र सी शांति छा गई थी. और मैं आर्मीवालों के साथ बंदी बनाए गए कुमजुक आओ को जाते हुए देख रही थी.

“मुझे मोकोकचुंग कालेज जाना ही होगा” अरुण उठते हुए बोला, “कल ही कुमजुक की अटेंडेंस शीट की प्रति जमा कर उसे छुड़ाना है.”

मगर वह अपनी अशक्तता की वजह से निढाल हो बिछावन पर गिर पड़ा. हम सभी उसे संभालने में लग लिए.

बुलाया शादी के लिए मार दी गोली

सुबह के 10 बज रहे थे. सोमवार का दिन होने की वजह से सड़कों पर कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. पटना के मीठापुर का भी वही हाल था. सड़कों पर भीड़भाड़ की वजह से गाड़ियां सरकसरक कर चल रही थीं. उसी भीड़ में एक औटो भी हौर्न बजाता हुआ आगे निकलने की कोशिश में लगा था.

उस में एक लड़की बैठी थी, जो औटो ड्राइवर से बारबार जल्दी से जल्दी पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन पर पहुंचाने को कह रही थी. लेकिन भीड़ की वजह से औटो आगे बढ़ नहीं पा रहा था. औटो में बैठी लड़की कभी अपनी घड़ी देखती तो कभी औटो से सिर बाहर निकाल कर पीछे की ओर देखती.

जैसे ही औटो चाणक्य लौ यूनिवर्सिटी के पास पहुंचा, एक सफेद रंग की बुलेट मोटरसाइकिल पीछे से आ कर औटो के साथसाथ चलने लगी. उस पर 2 युवक सवार थे. उन्हें देख कर लड़की घबरा गई और उस ने ड्राइवर से औटो भगाने को कहा.

लेकिन भीड़ की वजह से औटो ड्राइवर औटो भगा नहीं सका. इसी बीच मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे युवक ने पिस्तौल निकाली और औटो में बैठी लड़की को लक्ष्य बना कर 4 गोलियां दाग दीं.

लड़की पर गोलियां दाग कर मोटरसाइकिल सवार जिस तरह पीछे से आराम से आए थे, उसी तरह आराम से आगे बढ़ गए. उन्हें रोकने की कोई हिम्मत भी नहीं कर सका. गोलियां लगने से लड़की चीखी तो औटो ड्राइवर ने औटो रोका और लड़की की मदद करने के बजाय वह औटो ही छोड़ कर भाग गया.

गोलियां चलने से बाजार में अफरातफरी मच गई थी. लोग दुकानें बंद करने लगे थे. थोड़ी देर में अफरातफरी थमी तो लोगों को पता चला कि औटो में बैठी लड़की पर गोलियां चलाई गई थीं. वह अभी भी उसी में घायल पड़ी है. कुछ लोगों ने तुरंत उसे अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

पुलिस को सूचना दी गई. पहले पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद अस्पताल गई. शिनाख्त के लिए लड़की के पर्स और बैग की तलाशी ली गई तो उन में से मिले कागजातों से पता चला कि लड़की का नाम सृष्टि जैन था. वह इंदौर के स्नेहनगर की रहने वाली थी. वह गो एयर की फ्लाइट से दिल्ली से पटना आई थी और मीठापुर के मणि इंटरनेशनल होटल में ठहरी थी.

उसे फ्लाइट से दिल्ली जाना था, लेकिन उस ने फ्लाइट का टिकट कैंसिल करा कर पटना से इंदौर जाने के लिए पटनाइंदौर एक्सप्रैस का टिकट करवाया था. सुबह 10 बजे वह होटल छोड़ कर औटो से पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन जा रही थी, तभी रास्ते में उसे गोली मार दी गई थी.

इस के बाद 11 बजे के करीब उस की मां ममता जैन ने सृष्टि के मोबाइल पर फोन कर के पता करना चाहा कि क्या वह ट्रेन में बैठ गई है तो किसी पुलिस वाले ने फोन रिसीव कर के उन्हें बताया कि सृष्टि को गोली मार दी गई है और वह अस्पताल में है.

जिस समय सृष्टि को गोली मारी गई थी, औटो ड्राइवर राजकपूर सिंह औटो छोड़ कर भाग गया था. पुलिस ने उस के औटो में लिखे पुलिस कोड जे-647 से उस का मोबाइल नंबर और पता ले कर उसे फोन किया. वह परसा बाजार के पूर्वी रहीमपुर गांव का रहने वाला था. थाने आने पर औटो ड्राइवर राजकपूर सिंह से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि लड़की पर गोली चलाए जाने के बाद वह काफी डर गया था. वह उस लड़की को ले कर स्टेशन जा रहा था, तभी चाणक्य लौ यूनिवर्सिटी के पास बुलेट मोटरसाइकिल से 2 लड़के आए और उन में से पीछे बैठे लड़के ने लड़की को गोली मार दी थी. गोली मार कर वे करबिगहिया की ओर गए थे.

पुलिस ने जब सृष्टि के पिता सुशील जैन से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि शादी डौटकौम पर 20 दिनों पहले उन की छोटी बेटी शगुन ने मृतका सृष्टि का प्रोफाइल डाला था. बिहार का कोई लडक़ा उसे पसंद आ गया था तो वह उसी से मिलने पटना आई थी.

जब सृष्टि की बहन शगुन से पूछताछ की गई तो उस ने बताया था कि शादी डौटकौम पर सृष्टि का प्रोफाइल देख कर पटना के रजनीश की ओर से उस के लिए विवाह का प्रस्ताव आया था. रजनीश सृष्टि को अपने घर वालों से मिलवाना चाहता था, इसीलिए उस ने सृष्टि को पटना बुलवाया था.

रजनीश ने ही सृष्टि के लिए फ्लाइट का टिकट भी भेजा था और पटना में ठहरने के लिए होटल का भी इंतजाम किया था. सुबह 11 बज कर 35 मिनट पर वह पटना पहुंची थी और मणि इंटरनेशनल होटल के कमरा नंबर 106 में ठहरी थी.

उसी दिन दोपहर 2 बज कर 10 मिनट पर रजनीश सिंह ने अपने दोस्त राहुल के साथ उसी होटल में कमरा नंबर 107 बुक कराया था. होटल के रजिस्टर में उस ने अपने पिता का नाम राजेश्वर प्रसाद सिंह और पता राघौपुर, जिला वैशाली लिखा था.

सभी होटल से निकल गए थे, लेकिन कुछ देर बाद सृष्टि होटल लौट आई थी और इस बार वह कमरा नंबर 103 में ठहरी थी. उस ने होटल मैनेजर को बताया था कि उस का टिकट कंफर्म नहीं हुआ, इसलिए वह वापस आ गई थी.

एक बार फिर रजनीश अपने दोस्त राहुल के साथ होटल पहुंचा और सीधे सृष्टि के कमरे में गया. होटल के मैनेजर राजकुमार के अनुसार, इस बार रजनीश सृष्टि के कमरे पर गया तो दोनों के बीच किसी बात को ले कर बहस होने लगी. जल्दी ही इस बहस ने तल्खी का रूप ले लिया.

इस कहासुनी में सृष्टि बारबार कह रही थी कि अब वह उस के पीछे नहीं आएगा. जबकि रजनीश उसे धोखेबाज कह रहा था. उस का कहना था कि उस ने उस के 1 लाख रुपए ठग लिए हैं.

रजनीश से मिलने के बाद सृष्टि ने अपने घर वालों को फोन कर के बताया था कि रजनीश उसे ठीक आदमी नहीं लगता. उस के पास पिस्तौल भी है, जिसे ले कर वह घूमता है. वह एयरपोर्ट पर भी पिस्तौल ले कर आया था. वह ऐसे आदमी से कतई विवाह नहीं करेगी, बाकी बातें वह इंदौर लौट कर बताएगी.

सृष्टि की मां ममता जैन ने बताया था कि रजनीश ने उन से भी फोन पर मीठीमीठी बातें की थीं. वापस आने के लिए सृष्टि को फ्लाइट पकड़ने के लिए एयरपोर्ट पर गई थी, लेकिन फ्लाइट नहीं मिली. इस के बाद उस ने पटनाइंदौर एक्सप्रैस से लौटने का टिकट लिया था.

सृष्टि के पिता सुशील जैन मूलरूप से राजस्थान के उदयपुर के रहने वाले थे. 4 साल पहले ही वह इंदौर आ कर रहने लगे थे. यहां वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी ममता जैन के अलावा 2 बेटियां, बड़ी सृष्टि और छोटी शगुन थी.

सृष्टि ने उदयपुर से एमबीए किया था, जबकि शगुन 12वीं में पढ़ रही थी. उन का परिवार इंदौर के स्नेहनगर में रहता था. इस के पहले वह खातीवाला टैंक में अनमोल पैलेस में फ्लैट नंबर 402 में रहते थे.

इंदौर की कई कंपनियों में काम करने के बाद सृष्टि दिल्ली में इंडिया बुल्स कंपनी में टीम लीडर के पद पर काम कर रही थी. पिछले महीने उस ने यह नौकरी छोड़ दी थी और दूसरी कंपनी में नौकरी पाने की कोशिश कर रही थी. नौकरी छोडऩे के बाद सृष्टि इंदौर आ कर मांबाप के साथ रह रही थी.

लाश के निरीक्षण के दौरान पुलिस ने देखा था सृष्टि के हाथ पर ‘आर एस’ अक्षर का टैटू बना था, जिस से अंदाजा लगाया कि यह ‘रजनीश सृष्टि’ लिखा है. उस के दूसरे हाथ पर ‘सम लव वन, सम लव यू, आई लव यू, दैट इज यू’ लिखा था.

पुलिस ने होटल के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवा कर चेक की तो उस में सृष्टि से जुड़ी कई बातें सामने आईं. फ्लाइट न मिलने पर जब वह होटल लौटी तो उस की मुलाकात बंगलुरु के रहने वाले सुरेश रेड्डी से हुई. फुटेज में वह होटल के रिसैप्शन काउंटर के पास वाले सोफे पर रेड्डी के साथ बैठी हुई दिखाई दे रही थी.

सृष्टि ने रेड्डी के साथ सैल्फी लेने की बात कही तो पहले तो उस ने मना कर दिया. बातचीत में सृष्टि ने उसे बताया था कि वह इंदौर से पटना आई है. वह एक मोबाइल फोन खरीदना चाहती है, वह चल कर खरीदवा दे. इस के बाद रेड्डी उसे औटो से बाजार ले गया था. रेड्डी अपनी कंपनी के काम से पिछले 15 दिनों से उस होटल में ठहरा था.

फुटेज से यही लगता था कि 24 जनवरी को सृष्टि और रेड्डी की मुलाकात थोड़ी ही देर में दोस्ती में बदल गई थी. होटल से निकलने के बाद उन्होंने 10 हजार रुपए का मोबाइल फोन खरीदा था. मोबाइल का बिल रेड्डी के नाम से बना था. इस के बाद दोनों नाइट शो फिल्म देख कर देर रात होटल लौटे थे. होटल स्टाफ ने भी पुलिस को उन के देर से लौटने की बात बताई थी.

पुलिस सूत्रों के अनुसार, सृष्टि के मोबाइल फोन के मेमोरी कार्ड से पुलिस को कुछ आपत्तिजनक वीडियोज मिले थे, लेकिन पुलिस इस बारे में कुछ नहीं बता रही है. मेमोरी कार्ड से पता चलता है कि सृष्टि विवाहित थी. लेकिन वह औनलाइन साथी की तलाश में थी.

रजनीश की तरह सृष्टि ने भी अपने प्रोफाइल में खुद के बारे में गलत जानकारियां दी थीं. सृष्टि के परिवार वालों ने पुलिस को बताया था कि उदयपुर में पढ़ाई के दौरान ही सृष्टि ने प्रेमविवाह कर लिया था, लेकिन वह शादी कुछ समय बाद ही टूट गई थी और सृष्टि ने अपने पति से तलाक ले लिया था.

सोचने वाली बात यह है कि अगर रजनीश से सृष्टि की पहले से जानपहचान नहीं थी तो किसी अजनबी के बुलाने पर वह इंदौर से पटना कैसे चली गई? रजनीश सृष्टि के पड़ोस वाले कमरे में ही रात में ठहरा था.

लेकिन यह बात उस ने अपने घर वालों को नहीं बताई थी. दोनों के बीच कहीं पहले से तो कोई रिश्ता नहीं था? आखिर रजनीश बारबार सृष्टि पर एक लाख रुपए ठगने का आरोप क्यों लगा रहा था? केवल विवाह के प्रस्ताव ठुकराने से कोई किसी लड़की की हत्या क्यों करेगा?

सृष्टि की हत्या के 8 दिनों बाद, सृष्टि के हत्यारे रजनीश को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. वह अपनी पत्नी और  दोनों बच्चों के साथ कंकड़बाग में अपने किसी रिश्तेदार के यहां गया था, तभी पुलिस ने उसे पकड़ लिया था. पुलिस को उस के वहां आने की जानकारी पहले से थी, इसलिए सादे लिबास में वहां पुलिस वालों को तैनात कर दिया गया था. उस के आते ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया था. वह पटना से हो कर दिल्ली भागने की फिराक में था.

पूछताछ में रजनीश ने पुलिस को बताया था कि सृष्टि उसे ब्लैकमेल करने लगी थी. लोगों को ब्लैकमेल करना उस की आदत में शुमार था. इस काम में उस का परिवार भी उस का साथ देता था. पुरुषों को फंसा कर वह रुपए ऐंठती थी. यहां आ कर उस ने उस से गहने खरीदने को कहा था.

सृष्टि के बारबार बदलते बातव्यवहार से ही रजनीश को उस पर शक हो गया था, जिस से उस ने गहने खरीदने से मना कर दिया था, इसी बात से सृष्टि उस से नाराज हो गई और होटल में ही उस से बहस करने लगी, जो जल्दी तल्खी में बदल गई. बात ज्यादा बढ़ी तो वह रजनीश को गालियां देने लगी.

इस के बाद सृष्टि ने अपना सामान उठाया और अकेली ही औटो से स्टेशन की ओर चल पड़ी. रजनीश के पास पिस्तौल थी ही, उस ने देखा कि सृष्टि उसे धोखा दे कर जा रही है तो उस ने बुलेट से जा कर रास्ते में उसे गोली मार दी.

राघौपुर के वीरपुर बरारी टोला का रहने वाला रजनीश किसान राजेश्वर प्रसाद सिंह का बेटा है. पुलिस ने उस के गांव वाले घर पर छापा मारा तो वहां से 7.65 बोर की गोलियों के 6 खोखे मिले हैं. रजनीश की 13 साल पहले किरण सिंह से शादी हुई थी. उस के 2 बच्चों में बड़ा बेटा प्रियांशु 12 साल का और छोटा बेटा कुणाल 9 साल का है.  रजनीश की गिरफ्तारी से किरण काफी परेशान है. उस का कहना है कि उस के पति किडनी के मरीज हैं, अगर उन्हें समयसमय पर दवाएं नहीं दी गईं तो उन की जान जा सकती है.

किरण ने दिल्ली के अपोलो हौस्पिटल में अपनी किडनी दान की थी. दूसरी किडनी रजनीश के बड़े भाई अनिल ने दी थी, जिस की वजह से उसे दिन में 3 बार दवा खानी पड़ती है. पीने के लिए उसे मिनरल वाटर दिया जाता है.

सृष्टि के पिता का कहना है कि रजनीश पुलिस को बेमतलब की कहानियां गढ़ कर सुना रहा है. हत्या को ले कर भी वह पुलिस को बरगला रहा है. सृष्टि की मां का कहना है कि किसी अनजान लड़की से 5-10 दिनों की बातचीत में रजनीश ने ढाई लाख रुपए से ज्यादा उस पर कैसे और क्यों खर्च कर दिए?

4 जनवरी को सृष्टि की बहन शगुन ने उस की शादी का प्रोफाइल शादी डौटकौम वेबसाइट पर डाला था. उस के 10 दिनों बाद रजनीश की ओर से शादी का प्रस्ताव आया था. रजनीश ने बताया था कि उस के पिता की मोटरसाइकिल की एजेंसी है, जिस का सालाना कारोबार 70-80 लाख रुपए का है. अपने बारे में उस ने बताया था कि वह आईपीएस की तैयारी कर रहा है. उस के इसी प्रोफाइल और प्रस्ताव के बाद ही सृष्टि उस से मिलने पटना आई थी.

पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रजनीश की तरह सृष्टि ने भी शादी के वेबसाइट पर अपने बारे में गलत जानकारियां दे रखी थीं. उस ने पहले विवाह और तलाक के बारे में बिलकुल नहीं बताया था. रजनीश तो गलत था ही, सृष्टि भी अपने बारे में गलत जानकारी दे कर दोबारा शादी की फिराक में थी.

पुलिस पूछताछ में रजनीश ने सृष्टि की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. उस ने सृष्टि से हुई जानपहचान के बारे में पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार, उस ने सृष्टि पर काफी रुपए खर्च कर दिए थे. इस के बाद भी वह उस से और कई चीजें खरीदने को कह रही थी. इस से उसे लगा कि यह काफी खर्चीली है. अब तक वह उस से करीब 2 लाख रुपए खर्च करवा चुकी थी.

रजनीश ने सृष्टि के पास एक नया मोबाइल फोन देखा, जिस में सृष्टि ने सुरेश रेड्डी के साथ सैल्फी ले रखी थी. वह फोटो देख कर उस के दिल को काफी गहरी ठेस लगी. रजनीश की अपनी पत्नी से बिलकुल नहीं पटती थी, इसीलिए वह दूसरी शादी के बारे में सोच रहा था.

पहली नजर में सृष्टि रजनीश को बहुत अच्छी लगी थी, जिस से उस ने उस से विवाह करने का मन बना लिया था. विवाह के बाद वह उस के साथ दिल्ली में रहना चाहता था. लेकिन जब वह उस की ऊलजुलूल मांगों को पूरी नहीं कर सका तो सृष्टि ने उस से विवाह करने से मना कर दिया था.

पुलिस को दिए अपने बयान में रजनीश ने बताया था कि सृष्टि की हत्या कर के वह मीठापुर से सीधा अनीसाबाद होते हुए हाजीपुर चला गया था. रास्ते में महात्मा गांधी पुल से उस ने अपना मोबाइल फोन, टैबलेट और पिस्तौल का लाइसेंस गंगा नदी में फेंक दिया था. इसी के साथ अपनी बुलेट मोटरसाइकिल को नाव पर रख कर गंगा नदी के बीच में डुबो दिया था. इस के बाद वह हाजीपुर, वैशाली और पटना में ठिकाने बदलबदल कर समय गुजारता रहा.

रजनीश के बड़े भाई अनिल सिंह ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि रजनीश की किडनी ट्रांसप्लांट कराई गई है, जिस से वह शारीरिक रूप से काफी कमजोर है. ऐसे में वह किसी की हत्या कैसे कर सकता है? उसे दिन में 4 बार दवाइयां खानी पड़ती हैं और मिनरल वाटर पीना पड़ता है.

ट्रांसपोर्टर का कारोबार करने वाले अनिल का कहना है कि तबीयत खराब रहने की वजह से रजनीश गांव पर ही ब्याज पर रुपए देने  का काम करता था. उसे हत्या के इस मामले में फंसाया गया है. बहरहाल, रजनीश पुलिस की गिरफ्त में है और सृष्टि की मौत हो चुकी है. सृष्टि के पिता इस हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.

पुलिस का कहना है कि रजनीश के तार किडनी बेचने वाले गिरोह से जुड़े हो सकते हैं. शादी के बहाने रजनीश ने अपहरण की नीयत से सृष्टि को पटना बुलाया था, लेकिन उस से बातचीत के बाद सृष्टि को कुछ खतरा महसूस हुआ तो उस ने वापस जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन वह लौट नहीं पाई, क्योंकि रजनीश को उस से खतरा था.

रजनीश पहले भी एक बच्चे के अपहरण के मामले में जेल जा चुका है. वैशाली के थाना जोरावरपुर में उस पर अपहरण का केस दर्ज है. कुछ दिनों पहले ही वह जमानत पर छूटा था. अगवा किए गए बच्चे का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. पुलिस जांच में पता चला है कि बच्चे का अपहरण किडनी निकालने के मकसद से किया गया था.

जांच के बाद पुलिस ने उस का खाता सील कर दिया था, जिस में 90 लाख रुपए जमा थे. उस के घर से फरजी स्टांप और कई सरकारी अफसरों की मुहरें बरामद हुई थीं. रजनीश खुद भी 2 बार किडनी ट्रांसप्लांट करवा चुका है.

पुलिस यह पता कर रही है कि जिस डाक्टर ने उस की किडनी ट्रांसप्लांट की थी, कहीं रजनीश उस डाक्टर या अस्पताल के साथ मिल कर किडनी बेचने का रैकेट तो नहीं चला रहा था?

पुलिस को जानकारी मिली है कि सृष्टि ने दिल्ली में किसी डाक्टर के यहां भी काम किया था. हो सकता है रजनीश की किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान उन की जानपहचान हुई हो? दोनों के बीच रुपयों को ले कर होटल में हुई बहस कहीं किडनी खरीदबिक्री के रैकेट से तो नहीं जुड़ी थी?

रजनीश भी पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में ही रह रहा था और किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों को किडनी मुहैया कराने की दलाली का काम करने लगा था. इस काम से उस ने काफी पैसे कमाए थे. वह जब भी अपने गांव वीरपुर आता था, दोस्तों पर खूब पैसा खर्च करता था. लेकिन सृष्टि के पिता का कहना है कि सृष्टि और रजनीश की पहले से जानपहचान और प्रेम प्रसंग की बात बिलकुल गलत है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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