story in hindi
story in hindi
सवाल
मेरी जिंदगी में एक लड़का आया है जो मुझ से कम उम्र का है. वह मुझे बहुत चाहता है. वह मेरे पास मैथ्स की क्लासेज लेने आता था. धीरेधीरे हमारे बीच अजीब सा आकर्षण पैदा हुआ. मैं मानती हूं कि यह गलत है, क्योंकि मैं शादीशुदा हूं. मगर मैं स्वयं नहीं जानती कि ऐसा कैसे हो गया. आप ही बताएं, मैं क्या करूं?
जवाब
आप के और उस लड़के के बीच आकर्षण का पैदा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है. विपरीतलिंगी व्यक्ति के साथ जब आप समय बिताते हैं तो सहज ही आप के बीच ऐसा रिश्ता कायम हो सकता है. मगर इस रिश्ते को आप को अपने जीवन की गलती नहीं बनानी चाहिए.
आप का अपना परिवार है. यह संबंध परिवारों में तनाव पैदा कर सकता है. उस लड़के से आप कम से कम मिलें. उस के साथ सिर्फ हैल्दी फ्रैंडशिप का रिश्ता रखें.
कुछ महिलाएं इस वजह से भी अपने से कम उम्र के पुरुषों के प्रति आकर्षित हो जाती हैं क्योंकि वे अपने पति की बढ़ती उम्र, उदासीनता और सपाट रवैए से नाखुश रहने लगती हैं. यदि ऐसा है तो अपने पति से इस संदर्भ में बात करें. इस प्रकार का दिल का संबंध आमतौर पर तर्क व व्यावहारिकता नहीं देखता और नितांत प्राकृतिक है. आप अपराधबोध नहीं रखेंगी तो ज्यादा खुश रहेंगी.
ये भी पढ़ें…
कैसा था उस लड़की का खुमार
दरवाजा खुला. जिस ने दरवाजा खोला, उसे देख कर चंद्रम हैरान रह गया. वह अपने आने की वजह भूल गया. वह उसे ही देखता रह गया.
वह नींद में उठ कर आई थी. आंखों में नींद की खुमारी थी. उस के ब्लाउज से उभार दिख रहे थे. साड़ी का पल्लू नीचे गिरा जा रहा था. उस का पल्लू हाथ में था. साड़ी फिसल गई. इस से उस की नाभि दिखने लगी. उस की पतली कमर मानो रस से भरी थी.
थोड़ी देर में चंद्रम संभल गया, मगर आंखों के सामने खुली पड़ी खूबसूरती को देखे बिना कैसे छोड़ेगा? उस की उम्र 25 साल से ऊपर थी. वह कुंआरा था. उस के दिल में गुदगुदी सी पैदा हुई.
वह साड़ी का पल्लू कंधे पर डालते हुए बोली, ‘‘आइए, आप अंदर आइए.’’
इतना कह कर वह पलट कर आगे बढ़ी. पीछे से भी वह वाकई खूबसूरत थी. पीठ पूरी नंगी थी.
उस की चाल में मादकता थी, जिस ने चंद्रम को और लुभा दिया था. उस औरत को देखने में खोया चंद्रम बहुत मुश्किल से आ कर सोफे पर बैठ गया. उस का गला सूखा जा रहा था.
उस ने बहुत कोशिश के बाद कहा, ‘‘मैडम, यह ब्रीफकेस सेठजी ने आप को देने को कहा है.’’
चंदम ने ब्रीफकेस आगे बढ़ाया.
‘‘आप इसे मेज पर रख दीजिए. हां, आप तेज धूप में आए हैं. थोड़ा ठंडा हो जाइएगा,’’ कहते हुए वह साथ वाले कमरे में गई और कुछ देर बाद पानी की बोतल, 2 कोल्ड ड्रिंक ले आई और चंद्रम के सामने वाले सोफे पर बैठ गई.
चंद्रम पानी की बोतल उठा कर सारा पानी गटागट पी गया. वह औरत कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोलने के लिए मेज के नीचे रखे ओपनर को लेने के लिए झुकी, तो फिर उस का पल्लू गिर गया और उभार दिख गए. चंद्रम की नजर वहीं अटक गई.
उस औरत ने ओपनर से कोल्ड ड्रिंक खोलीं. उन में स्ट्रा डाल कर चंद्रम की ओर एक कोल्ड ड्रिंक बढ़ाई.
चंद्रम ने बोतल पकड़ी. उस की उंगलियां उस औरत की नाजुक उंगलियों से छू गईं. चंद्रम को जैसे करंट सा लगा.
उस औरत के जादू और मादकता ने चंद्रम को घायल कर दिया था. वह खुद को काबू में न रख सका और उस औरत यानी अपनी सेठानी से लिपट गया. इस के बाद चंद्रम का सेठ उसे रोजाना दोपहर को अपने घर ब्रीफकेस दे कर भेजता था. चंद्रम मालकिन को ब्रीफकेस सौंपता और उस के साथ खुशीखुशी हमबिस्तरी करता. बाद में कुछ खापी कर दुकान पर लौट आता. इस तरह 4 महीने बीत गए.
एक दोपहर को चंद्रम ब्रीफकेस ले कर सेठ के घर आया और कालबेल बजाई, पर घर का दरवाजा नहीं खुला. वह घंटी बजाता रहा. 10 मिनट के बाद दरवाजा खुला.
दरवाजे पर उस की सेठानी खड़ी थी, पर एक आम घरेलू औरत जैसी. आंचल ओढ़ कर, घूंघट डाल कर.
उस ने चंद्रम को बाहर ही खड़े रखा और कहा, ‘‘चंद्रम, मुझे माफ करो. हमारे संबंध बनाने की बात सेठजी तक पहुंच गई है. वे रंगे हाथ पकड़ेंगे, तो हम दोनों की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.
‘‘हमारी भलाई अब इसी में है कि हम चुपचाप अलग हो जाएं. आज के बाद तुम कभी इस घर में मत आना,’’ इतना कह कर सेठानी ने दरवाजा बंद कर दिया.
चंद्रम मानो किसी खाई में गिर गया. वह तो यह सपना देख रहा था कि करोड़पति सेठ की तीसरी पत्नी बांहों में होगी. बूढ़े सेठ की मौत के बाद वह इस घर का मालिक बनेगा. मगर उस का सपना ताश के पत्तों के महल की तरह तेज हवा से उड़ गया. ऊपर से यह डर सता रहा था कि कहीं सेठ उसे नौकरी से तो नहीं निकाल देगा. वह दुकान की ओर चल दिया.
सेठानी ने मन ही मन कहा, ‘चंद्रम, तुम्हें नहीं मालूम कि सेठ मुझे डांस बार से लाया था. उस ने मुझ से शादी की और इस घर की मालकिन बनाया. पर हमारे कोई औलाद नहीं थी. मैं सेठ को उपहार के तौर पर बच्चा देना चाहती थी. सेठ ने भी मेरी बात मानी. हम ने तुम्हारे साथ नाटक किया. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’ इस के बाद सेठानी ने एक हाथ अपने बढ़ते पेट पर फेरा. दूसरे हाथ से वह अपने आंसू पोंछ रही थी.
आर्थ्राइटिस को आम बोलचाल की भाषा में गठिया कहते हैं. शरीर के जोड़ रोजाना विभिन्न तरह के काम करते हैं और घुटने व कूल्हे खासतौर से पूरे शरीर का वजन उठाते हैं. घुटनों के जौइंट के बीच जैली जैसा एक तत्त्व होता है जिसे कार्टिलेज कहते हैं. यह कुशन या शौक अब्जौर्बर का काम करता है. समय के साथ या फिर किसी दुर्घटना में यह कार्टिलेज घिसना शुरू हो जाता है जिस से हड्डियां एकदूसरे के संपर्क में आ जाती हैं और आपसी रगड़ से उन में दर्द व अकड़न आ जाती है, इसे ही आर्थ्राइटिस कहते हैं.
क्या हैं लक्षण
आर्थ्राइटिस से पीडि़त व्यक्ति के जोड़ों में बहुत अधिक दर्द रहता है. अगर समय पर इलाज न करवाया जाए तो समय के साथ यह दर्द लगातार बढ़ता रहता है. गंभीर स्थिति में दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि मरीज के लिए रोजमर्रा के काम करना तक मुश्किल हो जाता है. कई मामलों में तो रोगी बिस्तर तक पकड़ लेता है.
कैसे होता है आर्थ्राइटिस
आर्थ्राइटिस होने के मुख्य कारण रोजमर्रा की जीवनशैली, रहनसहन, खानपान, पोषण युक्त आहार, शारीरिक व्यायाम या काम न करना और सही मुद्रा में न बैठना व उठना है. इस वजह से उम्र के साथसाथ हड्डियों और जोड़ों में घिसाव होने लगता है जिस से वे विकृत हो जाते हैं.
इस के अलावा जो लोग लगातार कई सालों तक एक ही प्रक्रिया को बारबार दोहराते हैं और उस प्रक्रिया में घुटनों के या किसी भी और जोड़ पर दबाव पडे़ तो उस से भी घुटने का प्रभावित होना स्वाभाविक है. इसीलिए तो ऐथलीट और दूसरे खिलाडि़यों को जोड़ों की समस्या से जूझना पड़ता है.
युवा भी अछूते नहीं
पहले आर्थ्राइटिस की समस्या केवल बुजुर्गों में ही देखने को मिलती थी लेकिन अब युवाओं को भी इस समस्या से जूझना पड़ रहा है. आजकल युवा वर्ग टैक्नोलौजी और सुविधाओं पर इतना ज्यादा निर्भर हो गए हैं कि शारीरिक परिश्रम करना कहीं पीछे रह गया है. बच्चों का भी यही हाल है. बच्चे इंटरनैट और टीवी पर ही समय बिताना पसंद करते हैं. खेलनाकूदना, पसीना बहाना या शारीरिक मेहनत करना बहुत कम देखने को मिलता है.
इस के अलावा युवाओं की अनियमित दिनचर्या, दिनभर डैस्क जौब, टैक्नोलौजी व मशीनों पर बढ़ती निर्भरता, शारीरिक व्यायाम न करने और पोषक खानपान न होने की वजह से आर्थ्राइटिस होने का रिस्क बढ़ जाता है.
गौरतलब है कि अगर मांसपेशियां मजबूत होंगी तो शारीरिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ेगा जिस से हमारे जोड़ संरक्षित रहते हैं. इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ पोषकतत्त्वों से युक्त खानपान का भी ध्यान रखना चाहिए.
क्या है इलाज
घुटने का इलाज उस की स्थिति के अनुसार ही किया जाता है. सर्जरी कराने की सलाह तभी दी जाती है जब दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाए कि रोजमर्रा के काम करने में तकलीफ होने लगे, घुटने में अकड़न और गतिशीलता न रहे, एक्सरे में गंभीर आर्थ्राइटिस या किसी भी प्रकार की विकृति नजर आए और अन्य इलाज जैसे कि दवाएं, फिजियोथैरेपी और नियमित व्यायाम कारगर साबित न हो रहे हों.
अकसर रोगी को शुरुआती स्टेज में दवाओं, फिजियोथैरेपी और नियमित व्यायाम से आराम देने की कोशिश की जाती है. शुरुआत में दर्द होने पर अकसर रोगी पेनकिलर दवाइयां लेते हैं. पेनकिलर दवाएं लेने से पहले डाक्टर से परामर्श लेना बहुत जरूरी है. कई बार मरीज खुद ही दवाएं ले लेते हैं जिस से उन्हें एलर्जी या अन्य कई समस्याएं हो सकती हैं.
अगर रोगी को लगातार दर्द (चलने, दौड़ने, घुटने टेकने और झुकने में दिक्कत, लंबे समय तक बैठने पर जौइंट में अकड़न, जौइंट में सूजन रहे तो उसे स्टेरौयड आदि के इंजैक्शन देने का परामर्श दिया जाता है. ये 2 से 6 महीने तक प्रभावी रहते हैं. ज्यादा समय तक पेनकिलर दवाएं लेना ठीक नहीं है. इस से किडनी और शरीर के अन्य अंगों पर दुष्प्रभाव जैसे कई साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं.
अगर आप को दर्द असहनीय हो रहा है और आप को टीकेआर यानी कि टोटल नी रिरप्लेसमैंट की सलाह दी गई है तो आप इस सर्जरी को ज्यादा समय तक न टालें क्योंकि घुटने की स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है.
(लेखक नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल के और्थोपैडिक्स विभाग के अतिरिक्त निदेशक हैं.)
आर्थ्राइटिस एवं जोड़ प्रत्यारोपण
कुछ गलतफहमियां
जोड़ों में तकलीफ होने के कारण कुरसी से उठने के लिए आप को दो बार सोचना पड़ता है, इस दर्द ने आप का चलनाफिरना मुहाल कर दिया है? क्या आप घुटनों में तकलीफ या नितंब में दर्द के कारण सुबह की सैर छोड़ देते हैं और निष्क्रिय होने के कारण आप का वजन बढ़ता जा रहा है? यदि ऐसा है तो भले ही आप अपनेआप को आर्थ्राइटिस के कटु अनुभव के साथ जिंदगी बिताने के लिए तैयार कर लें लेकिन आप का शरीर इस बात को नहीं मानेगा. लंबे समय तक शारीरिक गतिविधियां बंद रखने पर जीवन की गुणवत्ता और उत्पादनशीलता का स्तर गिरने के साथ ही आप में स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य समस्याएं भी घर करने लगेंगी. लिहाजा, आर्थ्राइटिस या जोड़ों संबंधी अन्य बीमारियों को अपने शरीर पर हावी न होने दें.
आर्थ्राइटिस एक ऐसी स्थिति है जब आप के जोड़ सूज जाते हैं, सख्त और लाल हो जाते हैं. इस वजह से चलनेफिरने में दिक्कत और इस से जुड़े स्वास्थ्य खतरे बढ़ने के साथ ही आप को अत्यंत कष्टकारी दौर से गुजरना पड़ता है. हालांकि आप को किसी भी जोड़ (या सभी जोड़ों) में आर्थ्राइटिस हो सकता है लेकिन इस का सब से ज्यादा असर नितंब और घुटनों पर पड़ता है.
कुछ मामलों में दवाओं के सहारे और जीवनशैली में बदलाव लाने से आर्थ्राइटिस पर काबू पाया जा सकता है लेकिन नौनसर्जिकल चिकित्सा से जब स्थिति नहीं सुधरती तो जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
यह विडंबना ही है कि पिछले एक दशक में मैडिकल टैक्नोलौजी में महत्त्वपूर्ण तरक्की होने के बावजूद लोग अभी भी जौइंट रिप्लेसमैंट जैसी सर्जिकल प्रक्रिया अपनाने से डरते हैं जबकि इस तरह की आधुनिक सर्जरी आप की सामान्य गतिविधि को पूरी तरह से सुचारू कर सकती है और जोड़ों की ताकत बढ़ा सकती है.
सर्जरी का फायदा उठाने के बारे में लोगों के मन में मौजूद गलतफहमियों के चलते वे सशंकित रहते हैं.
गलतफहमी 1 : जितना हो सके, जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी को टालते रहना ठीक है.
ऐसी स्थिति में डाक्टर की राय बहुत माने रखती है. कोई विशेषज्ञ ही तय कर सकता है कि मरीज को हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी करानी चाहिए या नहीं. दरअसल, जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी से बचते रहने से न सिर्फ मरीज की पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है बल्कि बहुत बाद में सर्जरी कराने से रिकवरी भी काफी मुश्किल से होती है. अमेरिकन एकेडमी औफ और्थोपैडिक सर्जन्स 1999 के मुताबिक, दिल की बीमारी, कैंसर या डायबिटीज की तुलना में आर्थ्राइटिस के कारण शारीरिक गतिविधियां ज्यादा सीमित हो जाती हैं. लंबे समय तक सर्जिकल चिकित्सा टालते रहने से बीमारियां और इन के लक्षण बढ़ने के साथ ही मरीज मोटापा और अन्य स्वास्थ्य तकलीफों से घिर जाता है.
गलतफहमी 2 : आर्थ्राइटिस बुढ़ापे से जुड़ी एक स्वाभाविक बीमारी है. आप को इस का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा.
पूरी दुनिया में लाखों लोग आर्थ्राइटिस की समस्या से जूझ रहे हैं और हर वर्ष पीडि़तों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. चिकित्सकीय सहायता पा चुके लोग स्वस्थ, उत्पादनशील जीवन जीने में सक्षम हैं. निश्चित तौर पर आर्थ्राइटिस शारीरिक दुर्बलता से जुड़ी बीमारी है लेकिन इसे बुढ़ापे की सामान्य दिक्कतें कभी नहीं कहा जा सकता. किसी भी उम्र में यह समस्या आने पर चिकित्सकीय सहायता जीवन की गुणवत्ता सुधारने में कारगर हो सकती है.
गलतफहमी 3 : कृत्रिम अंग आखिर कृत्रिम ही होते हैं और ये स्वाभाविक जोड़ों जैसा एहसास कभी नहीं दे सकते.
यह गलतफहमी जानकारी के अभाव के कारण ही पैदा होती है. लोगों को पता नहीं होता कि जौइंट रिप्लेसमैंट पद्धति में आमतौर पर असल में जोड़ नहीं बदले जाते हैं, उन्हें सिर्फ व्यवस्थित (घुटने का जोड़) किया जाता है. ठीकठाक घुटने से घुटने की हड्डियों के ऊपर कार्टिलेज का आवरण होता है लेकिन आर्थ्राइटिस से पीडि़त घुटने में हड्डियों के छोर को कवर करने वाले कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, इसी कारण हड्डियां आपस में रगड़ खाने लगती हैं.
सर्जरी के दौरान सिर्फ हड्डी के छोरों को क्रमबद्ध तरीके से घिस कर चिकना कर दिया जाता है और क्षतिग्रस्त हड्डी के छोर पर एक कैप डाल दिया जाता है ताकि हड्डियों के बजाय कृत्रिम और चिकने कैप ही आपस में रगड़ खाते रहें.
इस के अलावा, यदि जोड़ (नितंब के जोड़) को सचमुच बदलना पड़ जाए तो इस उन्नत रिप्लेसमैंट पद्धति में मैटेरियल और डिजाइन भी अच्छी क्वालिटी के होते हैं और प्रत्यारोपित जोड़ प्राकृतिक जोड़ों की तरह ही स्वाभाविक, आरामदेह और लचीले होते हैं. यदि किसी को सर्जरी कराने के बाद चलनेफिरने में कोई दिक्कत आती है तो इस से राहत पाने के लिए कुछ रिहैब थैरेपी (स्वास्थ्यलाभ के उपाय) भी मौजूद हैं.
गलतफहमी 4 : जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने के बाद सक्रिय जीवन जीना संभव नहीं होता है, खासकर व्यायाम, तैराकी और साइक्लिंग के दौरान दिक्कतें आती हैं.
रिप्लेसमैंट सर्जरी से पूरी तरह रिकवर हो जाने के बाद कई ऐसी शारीरिक गतिविधियां हैं जिन्हें आप आसानी से जारी रख सकते हैं. प्रत्यारोपित जोड़ की मदद से तैराकी साइक्लिंग, सैर और इसी तरह की हलकीफुलकी गतिविधियों को बेझिझक अंजाम दिया जा सकता है. हालांकि जौगिंग, दौड़ या फुटबौल या टैनिस खेलने जैसी अधिक मेहनत वाली गतिविधियों से बचना चाहिए क्योंकि इन गतिविधियों से जोड़ों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है.
गलतफहमी 5 : जौइंट रिप्लेसमैंट सिर्फ बुजुर्गों को ही कराना चाहिए.
मैं ने महसूस किया है कि आर्थ्राइटिस जोड़ के सिर्फ इलाज कराने की अपेक्षा जौइंट रिप्लेसमैंट कराना लाइफस्टाइल को सुचारु बनाने में अधिक कारगर होता है. लेकिन कई बार युवा मरीज भी इस प्रकार के प्रभावी चिकित्सकीय उपाय को चुनने से कतराते हैं. सच तो यह है कि शुरुआती चरण में ही जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी न सिर्फ तीव्र और बेहतर रिकवरी सुनिश्चित करती है और सक्रिय जीवनशैली को अधिकतम स्तर पर बहाल करती है बल्कि निष्क्रियता से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याएं रोकने में मददगार भी होती है. लिहाजा, आप की उम्र कोई माने नहीं रखती, यदि आप के डाक्टर ने आप को जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने की सलाह दी है तो आप को निश्चिंत ही यह सर्जरी करा लेनी चाहिए.
(डा. राजीव के शर्मा, लेखक अपोलो अस्पताल में और्थोपेडिक स्पैशलिस्ट एवं जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन हैं.)
पड़ोसी हो या फिर कोई अपनी जानपहचान वाला, यदि हम से कभी रूठ जाए या फिर गलत बोल दे तो दिल तो दुखेगा ही, क्योंकि जिन से हमारा वास्ता आएदिन पड़ता है उन का नाराज होना व उन के व्यवहार में परिवर्तन हम पर प्रभाव डालता है. ऐसे में आप भी उन जैसा व्यवहार करने लगेंगे तो बात और बिगड़ेगी ही, इसलिए उस समय संयम से काम लेते हुए स्थिति को संभालें व आगे उन से डील करने में हमारे द्वारा बताए टिप्स अपनाएं :
अगर पड़ोसी जल्दी नाराज हो जाए
कुछ लोगों की हैबिट होती है कि वे चाहे दूसरों के साथ कितना भी मजाक कर लें, लेकिन जब कोई उन के साथ मजाक करता है तो उन्हें बरदाश्त नहीं होता और वे चिढ़ कर बात करना ही छोड़ देते हैं. ऐसे में आप भी उन से मजाक करना छोड़ दें, सिर्फ काम की बात ही करें और जब वे आप से मजाक करें तो उन्हें स्पष्ट शब्दों में कह दें कि हमारे रिलेशन में मिठास बनी रहे इसलिए थोड़ा डिस्टैंस जरूरी है.
आप का यूज करें
अपनी चीज देने से झट से मना कर देना और आप की चीज पूरे हक से मांग कर ले जाना मतलबीपन कहलाता है. यदि एकदो बार आप का परिचित आप के साथ ऐसा करे तो कोई बात नहीं, लेकिन जब आप को इस बात का एहसास हो जाए कि वह सिर्फ आप को यूज कर रहा है तो आप भी उसे मना करना सीखें.
पैसों का लेनदेन न करें
पैसों के लेनदेन में रिश्ते बहुत जल्दी खराब होते हैं. अगर आप का पड़ोसी भी आप से आएदिन पैसे उधार ले कर चला जाता है और आप उस से पैसे मांगने में शर्म या झिझक महसूस करते हैं व अंदर ही अंदर आप घुटते रहते हैं तो इस से अच्छा है कि साफ मना कर दें. कह दें कि इस तरह की चीजें हमारे घर में पसंद नहीं की जातीं. इस के बाद आगे से वह कभी आप से पैसे मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा.
हर जगह आप की बुराई करता हो
आप के मुंह पर इतना मीठा बोले जैसे आप से करीबी कोई हो ही न, लेकिन जब वही इंसान पीठ पीछे आप की बुराई करे तो दिल को चोट पहुंचती ही है. जब आप को दूसरे लोगों से पता चले कि वह व्यक्ति आप की बुराई करता फिरता है तो आप उन के सामने कोई प्रतिक्रिया न दें बल्कि अपने उस करीबी से डायरैक्ट बात करें. इस से उसे समझ आ जाएगा कि अगर उस ने अपना व्यवहार नहीं बदला तो बात बिगड़ सकती है.
Janhvi Kapoor : बॉलीवुड एक्ट्रेस जान्हवी कपूर और एक्टर वरुण धवन अपनी फिल्म ‘बवाल’ को लेकर खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. नितेश तिवारी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में लोगों को दोनों स्टार्स की एक्टिंग बहुत पसंद आई है. इसी कारण सोशल मीडिया पर भी लोग जान्हवी और वरुण की जमकर तारीफ कर रहे हैं. इतना ही नहीं, एक्ट्रेस जान्हवी कपूर (Janhvi Kapoor) के फैंस तो उनकी एक्टिंग की तुलना उनकी मां श्रीदेवी (sridevi) की फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में उनकी एक्टिंग से भी कर रहे हैं.
फैंस ने की निशा-शशि की तुलना
हाल ही में एक्ट्रेस जान्हवी कपूर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपने फैन क्लब में शेयर एक वीडियो साझा की है. इस वीडियो में फिल्म ‘बवाल’ से जान्हवी (Janhvi Kapoor) के किरदार निशा और फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से श्रीदेवी (sridevi) के किरदार शशि की झलकियां दिखाई गई हैं. दोनों की ज्यादातर झलकियां एक-दूसरे से बिल्कुल मैच हो रही हैं. इस वीडियो को देख एक्ट्रेस इमोशनल हो गई और उन्होंने इसके कमेंट में दिल को छू देने वाली बात लिखी.
वीडियो देख इमोशनल हो गई एक्ट्रेस
अभिनेत्री जान्हवी (Janhvi Kapoor) ने इस पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा, ‘मैं झूठ नहीं बोल रही, इसने मुझे रुला दिया. आप सभी को ढेर सारा प्यार, मेरा बैक बनने के लिए. मुझे सपोर्ट और प्यार देने के लिए और इस कोशिश के लिए कि मेरी मां (sridevi) मुझ पर प्राउड करें.’ आपको बता दें कि सोशल मीडिया पर अब ये वीडियो वायरल हो रहा है और लोग जान्हवी की जमकर तारीफ कर रहे हैं.
Tamannaah Bhatia Viral Video : एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया इन दिनों अपनी पर्सनल लाइफ के साथ-साथ प्रोफेशनल लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में बनी हुई हैं. वह लस्ट स्टोरीज 2 के अपने को-एक्टर विजय वर्मा को डेट कर रही है. वहीं हाल ही में उनका आइटम सॉन्ग कावाला भी रिलीज हुआ है जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. उनके फैंस को उनका ये गाना काफी पसंद आया है.
इस बीच सोमवार को तमन्ना एक इवेंट में पहुंची, जहां उनके एक फैन (Tamannaah Bhatia Viral Video) ने उनसे मिलने के लिए सिक्योरिटी बैरिकेड को ही तोड़ दिया.
तमन्ना ने मामले को किया शांत
दरअसल, बीते दिन एक्ट्रेस केरल में आयोजित एक इवेंट में गई थी, जिसका एक वीडियो (Tamannaah Bhatia Viral Video) सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो में देखा जा सकता है कि जब तमन्ना इवेंट से जा रही होती है तो तभी एकदम से उनका एक फैन सिक्योरिटी का बैरिकेड तोड़कर एक्ट्रेस की तरफ भागकर आता है और झट से उनका हाथ पकड़ लेता है.
इस बीच सिक्योरिटी गार्ड उस लड़के को पीछे करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वो तमन्ना से मिलने की जिद करता है. मामले को बढ़ते देख तमन्ना सिक्योरिटी गार्ड से कहती हैं कि उस लड़के को मिलने दो. फिर एक्ट्रेस उस फैन से हाथ मिलाती है और उसके साथ सेल्फी भी लेती हैं.
ट्रेडिशनल अवतार में नजर आई एक्ट्रेस
इस इवेंट (Tamannaah Bhatia Viral Video) में तमन्ना ट्रेडिशनल अवतार में नजर आई. उन्होंने पिंक और ग्रीन कलर की साड़ी पहन रखी थी, जिसमें वह बहुत सुंदर लग रही थी. इसके अलावा उन्होंने अपने लुक को टेंपल ज्वैलरी और लाइट मेकअप के साथ कंप्लीट किया था.
पप्पू प्रसाद को एक ही दुख है कि उस ने अब तक जंगल में जिंदा बाघ नहीं देखा. जंगलात की नौकरी करते हुए उसे 20 साल बीत गए लेकिन जंगल में विचरते हुए जिंदा बाघ नहीं देखा. बड़े साहब के साथ क्षेत्रीय दौरे के दौरान वनों का चप्पाचप्पा छान डाला लेकिन पशुराज से आमनेसामने मुलाकात अब तक नहीं हो पाई.
पप्पू प्रसाद के दिवंगत पिता हरिहर प्रसाद वन विभाग में वनरक्षक थे. 16 साल की उम्र में ही पितृवियोग हो जाने पर पप्पू की मां नाबालिग पप्पू को ले कर वन विभाग के बड़े साहब के पास जा कर बोली, ‘‘साहब, अब हमारे घर में रोटी कमाने वाला कोई नहीं रह गया. इस बालक के प्रति आप को कृपा करनी ही होगी.’’
पप्पू की मां बहुत रोई. रोती हुई मां का हाथ पकड़ कर खड़े बेचारे नाबालिग पप्पू को देख कर बड़े साहब की मेमसाहिबा ने उसे वन विभाग में नौकरी दिलाने के लिए बड़े साहब से सिफारिश की.
बड़े साहब ने कहा, ‘‘बच्चा अभी छोटा है, फिलहाल यह लड़का दैनिक मजदूर के तौर पर खलासी का कार्य करता रहे, समय आने पर पक्का कर दिया जाएगा.’’
तभी से पप्पू प्रसाद बड़े साहब के घर पर खलासी का काम करता आ रहा है. जब कभी बड़े साहब जंगल के निरीक्षण के लिए दौरा करते पप्पू साहब का सामान ले कर जीप की पीछे वाली सीट पर बैठ कर साथ जाता था.
पप्पू के पिता हरिहर प्रसाद जब जीवित थे तब वे वनरक्षक चौकी पर सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ ही रहते थे. पप्पू बचपन में हिरण, खरगोश, लोमड़ी, सियार, नील गाय वगैरह देखा करता था. तब भेडि़यों से जंगल के लोग बहुत डरेडरे रहते थे. रात में भेडि़यों की आवाज से सभी लोग भयभीत होते थे क्योंकि पालतू जानवरों के साथसाथ कभीकभी भेडि़ए छोटे बच्चों को भी पकड़ कर ले जाते थे. शाम होते ही हर आंगन में आग जलाई जाती थी और बच्चों को कमरे के अंदर बंद कर दिया जाता था. पप्पू ने इस प्रकार डरावने माहौल में बचपन बिताया था.
जंगल में बाघ तो देखा नहीं, लेकिन पप्पू ने बाघ के बारे में बहुत कुछ सुना था कि जंगल का ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो बाघ से डरता न हो. हर वन्यप्राणी की कोशिश यही रहती है कि बाघ से किस प्रकार बचा रहे. पप्पू ने यह भी जाना कि बाघ जब भी जंगल में घूमताफिरता है तब जंगल के अन्य पशुपक्षी अलगअलग तरह की त्रासदी भरी आवाज निकाल कर एकदूसरे को सचेत किया करते हैं ताकि जंगल के निरीह वन्यजीव अपना और अपने छोटेछोटे बच्चों का बचाव करने का प्रयास कर सकें.
बड़े साहब का खलासी होने के बाद पप्पू प्रसाद की योगेन यादव के साथ दोस्ती हुई. योगेन यादव व्याघ्र संरक्षण परियोजना में वनरक्षक था. योगेन यादव से पप्पू प्रसाद को जानकारी मिली कि जंगल में बाघों की संख्या बहुत कम हो चुकी है. पप्पू की सम?ा में नहीं आया कि सब से शक्तिशाली बाघ का विनाश कैसे हो रहा है? आएदिन तो सुनाई देता है कि गांव में पालतू पशुओं को बाघ मार देता है. बडे़ साहब बहुत परेशान रहते हैं.
एक दिन पप्पू प्रसाद ने बड़े साहब के साथ जंगल में गश्त करते वक्त नदी के किनारे एक मरे हुए बाघ को देखा. बाघ की हड्डियां, उस के नाखून, दांत और जननेंद्रिय निकाल कर कोई ले गया था. आंख, दांत, हड्डीविहीन मरे हुए बाघ को देख कर पप्पू को नहीं लगा कि बाघ बहुत शक्तिशाली प्राणी है.
मरे पशुराज की हालत देख कर पप्पू को दुख हो रहा था. बगल में खड़े योगेन यादव से उस ने फुसफुसा कर पूछा, ‘‘बाघ की ऐसी हालत किस ने बनाई?’’
योगेन धीरे से बोला, ‘‘इस के पीछे बहुत बड़ा गिरोह है,’’ इतना कह कर वह चुप हो गया, क्योंकि मरे बाघ की जांच पड़ताल के लिए नापजोख चल रही थी. पप्पू ने देखा कि मरे बाघ के सामने वाले बाएं पैर का पंजा लोहे के बनाए फंदे में फंसा हुआ था. पंजे का आधे से ज्यादा हिस्सा कट कर फंदे के दोनों फलक के बीच में मजबूती से कसा हुआ था. असहाय बाघ के पैर में फंसे फंदे को निकालने की कोशिश का सुबूत नजदीक की जमीन पर पंजों की निशानी के रूप में था.
गांव वालों से पूछताछ करने पर जानकारी मिली कि कुछ दिन पहले एक बाघ अपने जख्म से रात भर कराहता रहा जिस की आवाज गांव वालों को सुनाई दी. जांचपड़ताल का नतीजा यह निकला कि शिकारी तस्करों ने बाघ के आनेजाने के रास्ते पर लोहे का फंदा छिपा कर रखा था, उस में उस का पैर फंस गया. फंदे में फंसे पैर की तीव्र पीड़ा से बाघ रात भर आर्तनाद करता रहा. बाद में घाव विषाक्त हो जाने से उस की मृत्यु हो गई.
पप्पू सोचने लगा कि तस्कर शिकारी कितने नृशंस हैं कि बाघ जैसे निर्भीक जानवर को निर्ममता से मारते हैं. उस की सम?ा में यह नहीं आया कि बाघ की हड्डियों, दांतों, नाखूनों तथा जननेंद्रिय को किस ने तथा क्यों निकाला होगा?
जांचपड़ताल में शाम हो चुकी थी. जांचदल के साथ पप्पू वन विश्रामगृह में वापस आया. रात को खाने के लिए योगेन यादव के यहां निमंत्रण था. वहां पर पप्पू ने यह बात छेड़ी, ‘‘मरे हुए बाघ की हड्डियों, दांतों को किस ने निकाला होगा?
योगेन यादव ने निराशा भरे भाव से कहा, ‘‘तस्कर शिकारियों ने.’’
फिर गले में भरी खराश को निकालते हुए योगेन ने बताना शुरू किया, ‘‘बाघ तस्कर बडे़ ही शातिर होते हैं. वे लोग बंजारों के रूप में जंगल के किनारे डेरा डालते हैं और सरल वनवासियों से बाघों के बारे में सूचना जमा करते हैं. समुचित जानकारी के बाद वे बाघ के आवागमन के रास्ते पर लोहे का फंदा बिछा कर या बंदूक की गोली से उन का शिकार करते हैं.’’
बीच में पप्पू ने फिर पूछा, ‘‘बाघों की हड्डियों, दांतों, नाखूनों एवं जननेंद्रिय क्यों निकाली जाती हैं?’’
योगेन यादव ने उदासी भरी आवाज में बताया, ‘‘यही तो सब से बड़ी विडंबना है. विदेशों में यह माना जाता है कि बाघ की हड्डियां, नाखून, दांत तथा जननेंद्रिय शक्ति से भरे रहते हैं और इन सब से बनी शक्तिवर्धक दवाएं पीने से आदमी भी बाघ की तरह जोशीले, शक्तिशाली एवं बलवान हो जाएंगे. वहां बाघों की हड्डी, चमड़ा आदि का बहुत बड़ा बाजार है. शिकारी तस्कर पैसा कमाने के लिए मरे हुए बाघ की खाल, हड्डियां आदि चोरी से विदेशों में भेजते हैं.’’
पप्पू यह सुन कर अचंभित हो गया. बाघ जैसे शक्तिशाली जीव के प्रति उस को दया आने लगी. दूसरे दिन सुबह जब बड़े साहब की जीप में पीछे बैठ कर पप्पू वापस जा रहा था तब उस के दिल में यह विचार आया कि बाघ को चोरीछिपे मारने वाले तस्कर तो बाघ से भी ज्यादा बुद्धिमान एवं बलवान हैं. तब उन तस्करों की हड्डियों आदि अंगप्रत्यंगों से अधिक शक्तिशाली दवा बनाने की सोच मनुष्य के दिमाग में क्यों नहीं आई.
उस बार भी विषादग्रस्त पप्पू का मन जिंदा बाघ न दिखाई पड़ने पर खेद से भर गया.
एक दिन बड़े साहब के पास खबर आई कि गांव के जंगल की सीमा पर चरवाहे के छप्पर के नजदीक एक मरा बाघ मिला है. बड़े साहब तुरंत घटना की तफतीश करने के लिए निकल पड़े. जीप में पीछे बैठे पप्पू को लगा कि शायद इस बार मरे बाघ के साथसाथ वह एक जिंदा बाघ का भी दर्शन कर ले. दिनभर जीप से चलने के बाद बड़े साहब जब मरे बाघ के पास पहुंचे तब पप्पू प्रसाद ने देखा कि योगेन यादव पहले से ही वहां पहुंच चुका था और बाघ के मरने से संबंधित सूचनाएं जमा कर चुका था.
योगेन यादव के अनुसार बाघ ने कुछ दिन पहले चरवाहों की एक भैंस को मार डाला था. गांव वाले चरवाहों ने मृत भैंस के मांस में विषाक्त पदार्थ डाल कर बाघ को मार डाला. पप्पू को यह जानकारी मिली कि बाघ एक बार शिकार करने के बाद कई दिन तक घूमफिर कर उसी शिकार को खाता रहता है. बाघ की इस आदत के बारे में चरवाहों को अच्छी तरह जानकारी थी. गांव वालों ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया.
इसी दौरान योगेन यादव को एकांत में मिलने पर पप्पू ने पूछा, ‘‘गांव वाले ऐसी स्थिति में बाघ को मारते क्यों हैं? क्या उन को जानकारी नहीं है कि हमारे देश की धरोहर इन बाघों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है?’’
योगेन ने हंसतेहंसते कहा, ‘‘भैया, बाघ की संख्या कम हो या बढ़े इस से गरीब चरवाहों को क्या लेनादेना? उन के रोजगार के सीमित साधनों में से एक भैंस का मर जाना कितना नुकसानदेह है, यह बात उन के सिवा और कोई नहीं सम?ा सकता.’’
पप्पू प्रसाद के मन में यह सुन कर विषाद छा गया. उस को लगा कि जिस दर से बाघों की संख्या कम होती जा रही है उस को देखते हुए अब जीवित बाघ का दर्शन नामुमकिन है.
बड़े साहब के साथ मुख्यालय वापसी के समय पप्पू के मन में आया कि क्यों न बाघ परियोजना की आय से ग्रामीण गरीबों को जोड़ा जाए जिस से उन को अपने जंगलों में रह रहे बाघों के प्रति लगाव हो, लेकिन वह तो महज एक चपरासी है. उस की बात कौन सुनेगा?
एक बार तो जंगल के बीचोंबीच रेल लाइन के ऊपर एक बाघिन और उस के 2 बच्चे टे्रन से कट कर मरने की जांच में बड़े साहब के साथ पप्पू भी जंगल गया था. दरअसल, अंगरेजों के समय में जंगल से लकड़ी ढोने के लिए यह रेल लाइन बनाई गई थी जो बाद में वनवासी यात्रियों के लिए इस्तेमाल होने लगी. अब हर वर्ष रेलगाड़ी से कुचल कर कई जंगली जानवर मर जाते हैं. योगेन यादव ने यह भी बताया कि टे्रन के आनेजाने और इंजन की आवाज से जंगली जानवरों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और इस का उन की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है.
एक बार बड़े साहब के परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए जीप में पीछे बैठ कर पप्पू जंगल गया. उस पार्टी में बड़े साहब के साथ उन का बेटा और मेमसाहिबा भी थीं. यह तय हुआ कि हाथी पर सवार हो कर बड़े साहब, मेमसाहिबा और उन का बेटा दलदली क्षेत्र में जाएंगे. बड़े साहब के बेटे को संभालने के लिए पप्पू को भी हाथी पर जाने का मौका मिला.
इस प्रकार घूमतेघूमते कब दिन ढल गया किसी को पता ही नहीं चला. सूर्यास्त के वक्त हाथी के महावतों के बीच में कुछ शोर सा उठा. फुसफुसाहट से पप्पू को पता चला कि दलदली बेंत के जंगल के बीच कोई बाघ लेटा है. सभी लोग हाथियों पर बैठ कर सांस थामे बाघ के दर्शन के लिए प्रतीक्षा करने लगे. हाथियों को भी बाघ के नजदीक होने का आभास हुआ. वे बारबार अपनी सूंड ऊंची कर हवा में बाघ की गंध पा कर उस की मौजूदगी का एहसास करने लगे.
पप्पू के लिए समस्या यह थी कि बाघ हाथी के सामने की ओर छिपा था. बड़े साहब और मेमसाहिबा सामने बैठी थीं. बाघ का स्पष्ट रूप से दर्शन हो नहीं सकता था. जब सभी लोग बाघ के बारे में फुसफुसा रहे थे तभी पप्पू ने इधरउधर ?ांका, क्योंकि वह बाघ दर्शन का यह अवसर कतई खोना नहीं चाहता था. उधर शाम की वेला थी. सूर्यास्त हो चुका था. निशब्द अंधकार धीरेधीरे छा रहा था. कोई उपाय न देख कर पप्पू हाथी पर खड़ा हो गया. तब बेंतों के जंगलों में एक पूंछ हिलती हुई दिखाई दी. पप्पू के खड़े होते ही बड़े साहब ने जोर से धमकी दी और पूरी पार्टी वापस चल दी. धमकी से आहत पप्पू ने अपने मन को भरोसा दिया, ‘‘जंगल के अंधेरे में चेहरा छिपा कर जो जीव अपने अस्तित्व का संकेत पूंछ हिला कर देता है उसी का नाम बाघ है.’’
सत्ता में बने रहने के लिए हिंदू बनाम ईसाई खाई को युद्धक्षेत्र में बदल कर न केवल मणिपुर के ट्राइबल कुकी और नागाओं को एक गलत संदेश दिया गया है बल्कि मैतेई हिंदुओं ने आग जलाजला कर गरीब मणिपुर की रहीसही अर्थव्यवस्था को भी चौपट कर दिया है. अब स्थिति कंट्रोल से बाहर निकल गई है. यह कहना कि यहां तो चीनी, म्यांमारी, देशद्रोही, अलगाववादी सक्रिय हैं, बेमानी बात है और सच को छिपाने की साजिश है.
जहां मणिपुर के निवासी सारे देश में काम करने निकले हुए हैं और अब अपने परिवारों व अपनी सुरक्षा के प्रति भयभीत हैं वहीं दूसरों राज्यों से गए मणिपुर में काम कर रहे या पढ़ रहे लोग भी परेशान हैं. मणिपुर के विश्वविद्यालयों में बहुत से छात्र दूसरे राज्यों से हैं और अब वे या तो वहां फंसे हुए हैं या निकल आए तो गुजरते बुरे दिनों की वजह से कैरियर पर पड़ते असर से वे सब चिंतित हैं.
दिक्कत यह है कि सरकार की चेष्टा इस समस्या को हल करने की नहीं, बल्कि उस की वीभत्स खबरें छिपाने की है. यूरोपियन यूनियन की पार्लियामैंट और ब्रिटिश पार्लियामैंट में आरोप लगाया गया है कि 60 हजार लोगों के घर और 100 से ज्यादा चर्च जला दिए गए हैं. मणिपुरी जहां भी हैं, अब अपने परिवारों के प्रति चिंतित हैं और देशभर के लोगों के संबंधी जो मणिपुर में हैं वे भी चिंतित हैं.
अखंड भारत का सपना दिखाने वाले, जो भारत आज हाथ में है, उसे ही हाथों से फिसलने देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. धर्म की सत्ता के नाम यानी हिंदुत्व के नाम पर वहां भी किसी भी तरह का विवाद शुरू किया जा सकता है. गोवा के भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री खुलेआम कह रहे हैं कि वे पुर्तगाली राज का नामोनिशान मिटा देना चाहते हैं, जिस का असली अर्थ है कि वे गोवा के ईसाई समुदाय को खदेड़ देना चाहते हैं या उन की पहचान मिटा देना चाहते है. गोवा में तेजी से मंदिर निर्माण किया जा रहा है. यही मणिपुर में करने का प्रयास है कि जो पूजापाठी नहीं वह डर कर रहे.
देशभर के मुसलमानों को तो कभी लव जिहाद, कभी गौरक्षा, कभी धर्मांतरण, कभी यूनिफौर्म सिविल कोड के नाम पर डराया जाता रहा है, अब छोटेछोटे गोवा, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश जैसे पौकेटों में भी दीवारें खड़ी की जा रही हैं ताकि दीवार के उस पार जो मारा जाए, जलाया जाए वह कहीं किसी को दिखे नहीं.
हमारे समाज में हमेशा दलितों, अछूतों, पिछड़ों के अलग टोले बने रहते थे जिन में वे जानवरों की तरह रहते थे. मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में कोई फैल कर रहता रहे और वह ऊंची हिंदू जाति का न हो, यह आज बहुतों को स्वीकार नहीं है.
महिलाओं को पीछे और नीचे रखे जाने की मानसिकता या साजिश अब घर, परिवार और समाज से विस्तार लेते कौर्पोरेट जगत में भी किस तरह आ गई है, इस का ब्योरा 17 मई को एक दिलचस्प सर्वे रिपोर्ट में उजागर हुआ. औनलाइन कैरियर और नियुक्ति सलाहकार फर्म ‘मौन्स्टर’ के इस सर्वे में बताया गया है कि देश में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 27 फीसदी कम तनख्वाह मिलती है. आईटी सैक्टर, जिस में तेजी से युवतियां शिक्षित हो कर आ रही हैं, में तो यह अंतर 34 फीसदी का है. इस रिपोर्ट में सिर्फ आंकड़े ही नहीं दिए गए हैं, बल्कि इस की वजहें भी बताई गई हैं.
नौकरियों में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि नियोक्ता मानते और जानते हैं कि महिलाएं नौकरी के दौरान बच्चों की परवरिश के लिए छुट्टियां लेती हैं और दूसरे सामाजिक, सांस्कृति कारण भी उन्हें प्रभावित करते हैं. रिपोर्ट का संदेश साफ है कि महिलाएं तमाम दावों के बाद भी दोयम दरजे की हैं और यह लैंगिक भेदभाव हर जगह और हर क्षेत्र में है. ऐसे में महिला सशक्तीकरण और बराबरी के राग के माने क्या हैं, यह समझना मुश्किल नहीं रह गया है. इस की इकलौती वजह पुरुष प्रधान समाज और पुरुषोचित्त अहं है जो प्रदर्शित होने में कोई लिहाज नहीं करता.
रिपोर्ट जारी होने के ठीक दूसरे दिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में परिवार परामर्श केंद्र के 2 अनुभवी सलाहकार आफताब अहमद और रीता तुली चुनिंदा मीडियाकर्मियों को अनौपचारिक बातचीत में उदाहरणों सहित बता रहे थे कि आजकल के युवा कम पढ़ीलिखी, घरेलू टाइप की पत्नी चाहने लगे हैं. इन में डाक्टर, इंजीनियर और पायलट भी शामिल हैं. ऐसा क्यों, इस की वजह भले ही ये दोनों यह बताएं कि एकल परिवार के बजाय संयुक्त परिवारों का रिवाज बनाए रखने के लिए शादी के इच्छुक उम्मीदवार ऐसा कर रहे हैं लेकिन बात की तह में जाएं तो एक पहलू यह भी समझ आता है कि ये युवा, बराबरी की या किसी भी लिहाज से बड़ी, पत्नी से थर्राने लगे हैं, बात फिर चाहे शिक्षा की हो, आमदनी की हो या उम्र या कद की हो. वे अपने से किसी भी लिहाज से बड़ी पत्नी नहीं चाहते क्योंकि वह उन से न दबती है और न ही ज्यादतियां बरदाश्त करती है.
क्या युवतियां या पत्नियां इस की परवा कर रही हैं, तो इस सवाल का जवाब भी बेहद साफ है कि नहीं कर रहीं क्योंकि वे अपनी अहमियत समझने लगी हैं और आत्मनिर्भर होने का आत्मविश्वास उन में नजर आने लगा है. इस के बाद भी सुखद बात यह है कि वे अपनी स्त्रियोचित जिम्मेदारियों से नहीं भागतीं पर स्वतंत्र निर्णय लेने लगी हैं. यही बदलते परिवारों व समाज का वह पहलू है जिसे ले कर पति व पुरुष खासे चिंतित और परेशान हैं कि अब पहले की तरह महिलाओं को कठपुतली की तरह नचाया नहीं जा सकता. उलटे, वे कई दफा ऐसे हैरतअंगेज फैसले ले कर सनसनी मचा देती हैं जिन से सारे षड्यंत्र कोने में रखे नजर आते हैं.
इस तरफ लोगों का ध्यान उस वक्त गया था जब हिंदी फिल्मों की 2 नायिकाओं ने अपने से कम उम्र युवकों से शादी की थी. बौलीवुड की 41 वर्षीया अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने लास एंजलिस में वहीं के निवासी व पेशे से फाइनैंशियल एनालिस्ट जौन गुडइनफ से 28 फरवरी को शादी कर ली. इस खबर में चौंका देने वाली इकलौती बात यह थी कि जौन प्रीति से उम्र में 10 साल छोटा है. इस शादी पर चर्चा, जो उम्र के अंतर को ले कर रही, खत्म हो पाती, इस के हफ्तेभर बाद ही दूसरी अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने भी प्रीति के नक्शेकदम पर चलते हुए, अपने से 9 साल छोटे युवक से शादी कर सब को हैरानी में डाल दिया. उर्मिला का पति मोहसिन अख्तर कश्मीरी व्यवसायी और शौकिया मौडल है.
फिल्म इंडस्ट्री और उद्योग जगत में ऐसी बेमेल शादियां होना हैरत की बात नहीं है लेकिन प्रीति और उर्मिला की शादियों से इस बात की चर्चा आम लोगों में हुई कि पति का उम्र में बड़ा होना अनिवार्यता या बाध्यता क्यों है. इस सवाल का तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है, सिवा इस के कि ऐसा तो सदियों से होता चला रहा है जो हमारी संस्कृति और समाज की बनावट का हिस्सा व रिवाज या परंपरा है. हां, आम लोग यानी मध्यवर्गीयों में से ऐसे उदाहरण अपवादस्वरूप ही मिलते हैं जिन में पत्नी उम्र में पति से बड़ी हो. आमतौर पर पति की उम्र पत्नी से 4-5 साल या इस से कुछ ज्यादा होती है. इस परंपरा के पीछे कोई स्पष्ट धार्मिक कारण नहीं है, न ही कोई वैज्ञानिक तर्क है. ‘चूंकि ऐसा होता आ रहा है इसलिए हम ऐसा करते हैं या करेंगे’ की मानसिकता इस के पीछे है जिस के कई नुकसान भी हैं.
पर प्रीति जिंटा और उर्मिला मातोंडकर ने इस मानसिकता का पालन नहीं किया और ‘प्यार किया तो डरना क्या’ की तर्ज पर अपने से कम उम्र युवकों से शादी कर डाली. इन शादियों से ताल्लुक रखता एक सच यह भी है कि प्रचलित मान्यताओं और धारणाओं में बदलाव इन्हीं सैलिब्रिटीज के जरिए, भले ही धीरेधीरे आएं लेकिन आते जरूर हैं. बात चाहे फैशन की हो, खानपान की हो या फिर व्यक्तिगत व सामाजिक मामलों की, लोग अपने रोलमौडल्स का अनुसरण जरूर करते हैं.
उम्र की साजिश
पुरुष प्रधान समाज में नियम, कायदे, कानून भी पुरुष ही तय करते आए हैं. इस में हमेशा पुरुषों ने अपनी सहूलियत देखी है और दबदबा बनाए रखा है. महिलाओं को हर स्तर पर पीछे व नीचे रखा जाना, इस साजिश का ही हिस्सा है.
पति उम्र में बड़ा हो, इस रिवाज के पीछे एक सीधा सा मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि पत्नी उम्र में छोटी होगी तो बगैर किसी चूंचपड़ के पति का सम्मान करती रहेगी. वैसे, महिलाओं को तरहतरह से पति की इज्जत करने को मजबूर किया जाता ही रहा है. समाज में बहुतकुछ आधुनिकता आ जाने के बाद भी पति को ही पत्नी का सहारा माना जाता है, पत्नी कभी पति का सहारा नहीं मानी गई. रिश्ता कोई भी हो, उस में छोटी उम्र वाले बड़ों का आदर करने को मजबूर किए जाते रहे हैं. यह हर्ज की बात नहीं लेकिन पति व पत्नी के मामले में साफ समझ आता है कि छोटी उम्र की पत्नी हमेशा पति का लिहाज करती रहे, इसलिए यह नियम बनाया गया.
जब भी किसी वैवाहिक रिश्ते की बात चलती है तो जाति के बाद जो चीज सब से पहले देखी जाती है वह उम्र है. अगर लड़की एक दिन भी बड़ी है तो बात आगे नहीं बढ़ पाती. जबकि लड़की अगर एकाध या 2 साल बड़ी हो तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता है लेकिन यह पुरुषोचित अहम ही है जो बराबरी की या बड़ी लड़की को पत्नी के रूप में स्वीकार करने में हिचकिचाता है.
हर लिहाज से हो छोटी
पति को देवता या भगवान का दरजा दिलाने के पीछे पुरुषों की मंशा यही रही है कि न केवल उम्र में बल्कि पत्नी हर बात में छोटी हो जिस से वह हीनता महसूस करते हुए उस की ज्यादतियां, मनमानी और अत्याचार सहन करती रहे. उम्र के बाद शिक्षा पर गौर किया जाता है कि कहीं पत्नी, पति से ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं, अगर है तो रिश्ता नकारने की एक बड़ी वजह आज भी यह है. अब हालांकि मानसिकता थोड़ी बदली है लेकिन वह बजाय शिक्षा के आमदनी के इर्दगिर्द लिपटी नजर आती है. ज्यादा शिक्षित लड़की रोब झाड़ेगी, इस डर के चलते
90 के दशक तक लोग ज्यादा पढ़ीलिखी पत्नी या बहू लाने से कतराते थे. यह एक अहम वजह है जिस के चलते महिलाएं सदियों तक पारिवारिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ी रहीं. पहले लोग लड़कियों को हाईस्कूल और उस के बाद मुश्किल से ग्रेजुएशन तक पढ़ाते थे लेकिन जब जागरूकता आई तो कुछ इस तरह आई कि अब तमाम लोग लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना चाहते हैं जिस से वे आत्मनिर्भर बनी रहें और दांपत्य में दरार आए तो जीवनयापन के लिए पति या दूसरे किसी पुरुष की मुहताज न रहें.
इस बदलाव के बाद भी रिश्ता तय करते वक्त यह बात प्रमुखता से देखी जाती है कि पत्नी, पति से बहुत ज्यादा शिक्षित न हो. अब अधिकांश युवा प्राइवेट जौब में हैं, लिहाजा सरकारी नौकरियों का वर्गीकरण खत्म सा हो चला है, पर उस की जगह पगार ने ले ली है. हालांकि यह भी आजकल दांपत्य विवादों की बड़ी वजह है जब पत्नी यह कहती नजर आती है कि मैं भी कमाती हूं. यहां तक तो पति एक बार बरदाश्त कर जाता है लेकिन जब पत्नी यह धौंस दे कि मैं तुम से ज्यादा कमाती हूं तो बात बिगड़ने लगती है. पतिपत्नी विवाद की वजह कुछ भी हो, पत्नी ही क्यों गुनहगार ठहराई जाती है, इस का जवाब ढूंढ़ने के लिए कहीं जाने या किसी से पूछने की जरूरत नहीं क्योंकि उस की हैसियत दोयम दरजे की पहले से ही तय है.
उम्र और शिक्षा के बाद तीसरी बड़ी चीज कद है जो पत्नियों का कम ही होता है. रिश्ते की तीसरी शर्त यह है कि पत्नी कद में छोटी हो यानी छोटे होने और हीनता का चौतरफा एहसास उसे कराने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया है. जब एक परफैक्ट कपल की कल्पना की जाती है तो पत्नी की लंबाई पति के कंधों पर आ कर थम जाती है.
खुद से लंबी पत्नी शायद ही कोई पति चाहे क्योंकि वह नहीं चाहता कि पत्नी किसी भी लिहाज से उस से ऊंची दिखे. इस चलन के पीछे भी कोई सटीक तर्क या धार्मिक मान्यता नहीं है जिन से समाज संचालित होता है. यानी ज्यादा उम्र वाली, ज्यादा शिक्षित और बड़े कद वाली पत्नी अपवादस्वरूप ही मिलती है. इन में से भी अधिकांश ने प्रेमविवाह किया होता है. लेकिन समाज उन्हें आसानी से स्वीकार नहीं करता. उलटे, उन का मजाक बना कर इतना उपेक्षित और परेशान कर देता है कि वे लगभग अलगथलग पड़ जाते हैं.
भोपाल की एक 45 वर्षीया प्रौफेसर ने 3 साल पहले अपने से उम्र में 11 साल छोटे पुरुष से विवाह किया था तो घरपरिवार और समाज में उन का काफी विरोध हुआ था लेकिन उन्होंने भी प्रीति जिंटा और उर्मिला मातोंडकर की तरह किन्हीं बातों या आलोचना की परवा नहीं की थी. उन का दांपत्य हालांकि ठीकठाक चल रहा है लेकिन उन की मानें तो वे सोसाइटी से कट सी गई हैं लेकिन संतुष्ट और सुखी हैं और अब धीरेधीरे सामाजिक सक्रियता बढ़ रही है. उम्र में छोटे पति के साथ कहीं आनेजाने में शुरू में हिचक होती थी जो अब खत्म हो रही है. इन प्रोफैसर के मुताबिक, इस में कोई असमान्यता या असहजता उन्हें महसूस नहीं होती. पति को भी शिकायत नहीं क्योंकि वे उन का पूरा सम्मान करती हैं.
संभ्रांत परिवार की ये प्रोफैसर मानती हैं कि उन्होंने एक अलग फैसला लिया था जिस पर हर कोई चौंका था लेकिन प्यार तो प्यार है. जातपांत, ऊंचनीच कुछ नहीं देखता, हो गया तो हो गया.
इन्हें है परेशानी
प्रेम विवाह कैसे भी हों, पंडों की दुकानदारी खराब करते हैं जिन का कारोबार जन्मपत्री मिलाना और शादी से जुड़ी दूसरी रस्मों से चलता है. इसलिए वे अपने यजमानों यानी ग्राहकों को मशवरा देते रहते हैं कि शादी अपनी जातिबिरादरी और बराबरी वालों मे करना ही ठीक रहता है.
जाहिर है जो प्रेमविवाह करेगा या करता है उसे इन पंडोंपुजारियों की जरूरत नहीं रहती. इस कारोबार में एक ग्राहक के गिरफ्त या हाथ से जाने का मतलब होता है आने वाले कल में कइयों का जाना और ऐसा हो भी रहा है. नई पीढ़ी धड़ल्ले से लवमैरिज कर रही हैं जिस से घाटा इन पंडोंपुरोहितों का हो रहा है. लिहाजा, ये प्रेमविवाह करने वालों को हतोत्साहित करने का कोई मौका नहीं चूकते.
दूसरी परेशानी कट्टरवादियों और परंपरावादियों को होती है जो शादियों के नियमों को ले कर धार्मिक पूर्वाग्रह के शिकार हैं और बेमेल शादियों पर कटाक्ष करते रहते हैं. ये लोग चाहते हैं कि सामाजिक माहौल धर्ममय बना रहे, इस में स्वार्थ इन के भी होते हैं. जहां भी जब भी कोई धार्मिक परंपरा टूटती है तो ये खीझ उठते हैं कि देखो, धर्म का हृस हो रहा है जो परिवार, समाज और देश के लिए ठीक नहीं और पनप रही संस्कारहीनता हमें गर्त की ओर ढकेल रही है.
लेकिन बदलाव अशुभ कैसे हैं, इस बाबत इन के पास कोई दलील नहीं होती. ये लकीर के फकीर चाहते हैं कि जो धर्म ने तय कर रखा है उस का पालन होते रहना चाहिए. यही वे लोग हैं जो पुरुष प्रधान समाज की अवधारणा के हिमायती हैं और मानते हैं कि पति पत्नी से श्रेष्ठ है क्योंकि धर्म ने उसे देवता और भगवान का दरजा दिया है.
औरतों को शोषक और लगभग गुलाम बनाए रखने के नियम अब आम लोगों के गले की हड्डी बनते जा रहे हैं जिन्हें वे न निगल पा रहे हैं न ही उगल पा रहे हैं. ऐसे में उर्मिला और प्रीति की कम उम्र पति से शादियां सुखद बदलाव की आहट हैं. ये कइयों की रोलमौडल हैं.
सशक्तीकरण और स्वतंत्रता के हर एक के अपने माने हैं. कुछ लोग मानते हैं कि औरत को अब बराबरी का दरजा मिल चुका है क्योंकि उसे अब गाउन और नाइटी पहनने से नहीं रोका जा रहा. वह कार चला रही है और अपनी मरजी से घूमफिर रही है वगैरावगैरा.
दरअसल, ये वे लोग हैं जो नारी स्वतंत्रता और अधिकारों का और ज्यादा विस्तार नहीं चाहते, इसलिए पतिपत्नी की उम्र, कदकाठी, आमदनी और शिक्षा के कमज्यादा होने के मुद्दे पर खामोश रहते हैं जिस से इस से हो रहे नुकसानों पर किसी का ध्यान न जाए.
ये हैं नुकसान
भोपाल की एक गृहिणी वंदना दवे की मानें तो नुकसान यह है कि अब विवाहयोग्य लड़कियों को आसानी से लड़के नहीं मिल रहे. वजह, उन का ज्यादा शिक्षित होना और शादी के पहले कैरियर बनाने की चाहत है. लड़कियां अब पुरुषों पर विश्वास न करते हुए आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं. 25 साल की होतेहोते पढ़ाई पूरी करने के बाद वे जौब करती हैं और एक बार नौकरी में आ जाएं तो उसे छोड़ पाना उन के लिए मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जब लड़कियों की उम्र 30 साल के लगभग होने को आती है तो बात बिगड़ने लगती है. अगर बाकी सब बातें ठीकठाक हों और मैच कर रही हों पर लड़का उम्र में लड़की से एक महीना भी छोटा हो तो अभिभावक रिश्ता करने में हिचकिचाते हैं क्योंकि उन में परंपराओं का विरोध करने की हिम्मत नहीं होती, हालांकि वे जानते हैं कि इस से कोई अनिष्ट नहीं होने वाला और न ही भावी युगल का कोई अहित होगा.
लेकिन बात वही है, वंदना कहती हैं कि चूंकि नियम चला आ रहा है इसलिए चलने दिया जाए, हम ही क्यों किसी रस्म को तोड़ें. इस से लड़कियों की उम्र और बढ़ती जाती है, फिर मन मार कर ऐरेगैरे लड़के से शादी करना पड़ती है जिस की कीमत लड़की को शादी के बाद चुकानी पड़ती है.
पत्नी अगर 1-2 साल बड़ी होगी तो कौन सी आफत आ जाएगी, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं, फिर भले ही उस की उम्र 35-40 की होने के बाद उस का हाथ किसी तलाकशुदा या विधुर के हाथ में देना पड़े. यह उस की भावनाओं के साथ ज्यादती नहीं तो क्या है?
अच्छी बात यह है कि आजकल की युवतियों की पैनी नजर इन हालात पर है. भोपाल के एक बैंक में कार्यरत 28 वर्षीय रिया कहती हैं कि इन झंझटों से नजात पाने का इकलौता तरीका लवमैरिज है. और अब वे पहले से ज्यादा हो भी रही हैं इन का ज्यादा विरोध अभिभावक भी नहीं कर पा रहे क्योंकि लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं और अपने फैसले खुद लेने लगी हैं. शादी एक नाजुक और संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए उन्हें इस की इजाजत मिलने लगी है पर सलाह यह मिलती है कि छोटी जाति में मत करना और भावी पति अगर हर लिहाज से बड़ा हो तो हम मंजूरी दे देंगे. इस के बाद भी न मानो तो आगे निभाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है. यानी आ रहे बदलाव भी शर्तों से लदे हैं इसलिए बहुत ज्यादा सुखद या युवाओं का पक्ष लेते नहीं हैं जिस में उन्हें नसीहतें अपने जोखिम पर शादी करने की दी जाती है.
इन बदलावों के बाद भी तकरीबन 70 फीसदी शादियां अरैंज्ड ही हो रही हैं यानी मांबाप तय कर रहे हैं जिन की बड़ी परेशानी लड़की की बढ़ती उम्र है. क्योंकि लड़की पहले की तरह 18-20 की उम्र में शादी करने को तैयार नहीं और अब मांबाप भी ऐसा नहीं चाहते पर यह जरूर चाहते हैं कि लड़का उम्र, शिक्षा और कद में बड़ा हो.
जाहिर है यह पुरुषों के बुने सामाजिक जाल में फंसे रहने जैसी बात है जिस में पत्नी छोटेपन के एहसास तले दबी, छटपटाती रहती है और ज्यादतियों का विरोध नहीं कर पाती. ऐसे में प्रीति जिंटा और उर्मिला मातोंडकर ने एक रास्ता दिखा दिया है जिस में न उम्र की सीमा है न धर्म, जाति का बंधन है. उलटे, हिम्मत है और मियां बीवी दोनों राजी हैं तो जिंदगी अपनी मरजी से जीने का मैसेज भी है.
बाद की स्थिति
भोपाल की ही एक व्यववसायी रितु कालरा का मानना है कि औरत जल्द बूढ़ी होती है लेकिन यह कल की बात है जब उस पर 4-6 बच्चे पैदा करने की अनिवार्यता और जिम्मेदारी लाद दी जाती थी. अब स्थिति विपरीत है, औरतें स्वस्थ और सौंदर्य के प्रति सजग हैं, इसलिए मर्दों की बराबरी से बूढ़ी होती हैं और जो पति से पहले बूढ़ी दिखती हैं, इस की जिम्मेदार वे खुद हैं जो फिटनैस पर ध्यान नहीं देतीं.
40 पार की उर्मिला मातोंडकर और प्रीति जिंटा 20-25 साल बाद अपने पतियों के सामने कैसे दिखेंगी, यह सवाल भी कम दिलचस्प नहीं. इन की तुलना अगर थोड़े पुराने फिल्मी जोड़ों से की जाए तो अंदाजा यह लगाया जा सकता है कि ये पतियों के बराबर ही बूढ़ी दिखेंगी.
धर्मेंद्र, जितेंद्र और अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता अपनी पत्नियों के मुकाबले ज्यादा बूढ़े और झुर्रियों भरे चेहरे वाले दिखने लगे हैं. इन के बाद की पीढ़ी के अभिनेता अभिषेक बच्चन, शाहरुख खान, अक्षय कुमार और सन्नी देओल भी अपनी पत्नियों के मुकाबले, चाहे वे एक्ट्रैस हों या न हों, उम्रदराज दिखते हैं तो उर्मिला और प्रीति का फैसला सटीक है जिस से लगता है कि कम उम्र का पति हर्ज की बात किसी भी लिहाज से नहीं.
साफ दिख रहा है कि एक उम्र के बाद महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा के लिए पति की जरूरत महसूस होने लगती है और बड़ी उम्र के चलते मां बनने की इच्छा भी कम होने लगती है. ऐसे में वे ऐसा पति चाहती हैं जो उन की इच्छाओं का सम्मान करे और लगता ऐसा है कि उम्र और दूसरे मामलों में छोटा पति जल्द समझौता कर लेता है.
पुराने समय से भारतीय ललनाओं के सौंदर्य उपादानों में जो सोलह शृंगार प्रचलित हैं उन में महावर का खास महत्त्व है. कहावत है कि महावर लगे कोमल चरणों से सुंदरियां जब अशोक के वृक्ष पर चरणप्रहार करती थीं तब उस पर कलियां खिलने से वसंत का आगमन होता था. सौंदर्य उपादानों में महत्त्वपूर्ण ‘महावर’ नई पीढ़ी के लिए सिंधु घाटी की सभ्यता के समान अजायबघर की वस्तु बन गई है.
सादा जीवन और उच्च विचार भारतीय संस्कृति की परंपरा समझी जाती थी परंतु आधुनिकता की अंधी दौड़ एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम में वह परिभाषा कब बदल गई, मैं नहीं जानती.
आज ब्यूटीपार्लर में किया गया सौंदर्योपचार, नुची हुई तराशी भौंहें, वस्त्रों से मेल खाती अधरों की लिपिस्टिक व नेलपालिश, कटे लहराते बाल, जीन्सटौप या अन्य आधुनिक वस्त्राभूषण, नाभिकटिदर्शना साड़ी एवं पीठप्रदर्शना या सर्वांग प्रदर्शना ब्लाउज, वस्त्रों से मेल खाते पर्स एवं ऊंची एड़ी की चप्पलें, फर्राटे से अंगरेजी में वार्त्तालाप या बन कर बोलते हुए मातृभाषा हिंदी का टांगतोड़ प्रदर्शन अब सुशिक्षित, संभ्रांत स्त्री की परिभाषा बन गया है.
भारतीय वेशभूषा बिंदी, चूड़ी, लंबी चोटी, जूड़ा, महावर, बिछुआ एवं सलीके से साड़ी पहनना आदि, जिन्हें कभी संभ्रांत घर की गृहिणी की गरिमा माना जाता था, अब अपनी ऊंचाई से गिर कर अशिक्षा एवं निम्न वर्ग तथा निम्न स्तर का पर्याय समझे जाने लगे हैं. ऐसी भारतीय वेशभूषा में सज्जित युवतियां ‘बहिनजी’ कहला कर उपहास की पात्र बन जाती हैं. उस पर हिंदी में बातचीत करना, यह तो आधुनिक समाज में ठेठ देहातीपन की निशानी है.
मुझे इस बदलाव का प्रत्यक्ष अनुभव तब हुआ जब नवंबर में दिल्ली में ‘एस्कोर्ट्स हार्ट सेंटर’ में एंजियोग्राफी के लिए भरती होना पड़ा. उस के पहले ही मैं दीवाली मनाने अपनी सास के पास गांव मानीकोठी गई थी. गांव की परंपरा के अनुसार त्योहार पर जब सब सुहागिनें महावर लगवा रही थीं तो मुझे भी बुलाया गया. मन ही मन मैं आशंकित थी कि अस्पताल जाने के पहले महावर लगवाऊं या नहीं.
अपनी सास की इच्छा का आदर करने के लिए मैं ने महावर लगवा लिया. एंजियोग्राफी से पहले अस्पताल का ही पायजामा एवं गाउन पहनना पड़ा. मैं ने बाल खोल कर केवल चोटी बना ली एवं मेकअप करने की आवश्यकता नहीं समझी. जब मैं मेज पर लेटी थी तो वहां का डाक्टर मेरे पैरों में लगे महावर को देख कर चौंक पड़ा. पैरों के समीप पहुंच कर उस ने रंग को छू कर देखा. उंगलियों से कुरेद कर बोला, ‘‘यह क्या लगा है?’’
‘‘महावर है,’’ मैं ने कहा.
‘‘क्यों लगाया है?’’ उस ने प्रश्न किया.
‘‘मेरी सास गांव में रहती हैं. दीवाली पर उन के आग्रह पर मैं ने लगवाया था.’’
पैरों में लगा महावर, सर में चोटी, मेकअपविहीन चेहरा और हिंदी में मेरा बातचीत करना…अब क्या कहूं, उक्त डाक्टर को मैं नितांत अशिक्षित गंवार महिला प्रतीत हुई. क्षणभर में ही उस का मेरे प्रति व्यवहार बदल गया.
‘‘माई, कहां से आई हो?’’
मैं ने चौंक कर इधरउधर देखा… यह संबोधन मेरे लिए ही था.
‘‘माई, सीधी लेटी रहो. तुम कहां से आई हो?’’ मेरे पैरों को उंगली से कुरेदते हुए उस ने दोबारा प्रश्न किया.
अनमने स्वर से मैं ने उत्तर दिया, ‘‘लखनऊ से.’’
‘‘माई, लखनऊ तो गांव नहीं है,’’ वह पुन: बोला.
‘‘जी हां, लखनऊ गांव नहीं है, पर मेरी सास गांव में रहती हैं,’’ मैं ने डाक्टर को बताया.
कहना न होगा कि पैरों में महावर लगाना, बाल कटे न रखना, मेकअप न करना और मातृभाषा के प्रति प्रेम के कारण हिंदी में वार्त्तालाप करना उस दिन उस अंगरेजीपसंद डाक्टर के सामने मुझे अशिक्षित एवं ठेठ गंवार महिला की श्रेणी में पेश कर गया, जिस का दुष्परिणाम यह हुआ कि डाक्टर ने मुझे इतना जाहिल, गंवार मान लिया कि मुझे मेरी रिपोर्ट बताने के योग्य भी नहीं समझा.
कुछ साल पहले भी मुझे एक बार एस्कोर्ट्स में ही एंजियोग्राफी करानी पड़ी थी पर तब के वातावरण एवं व्यवहार में आज से धरतीआकाश का अंतर था.
अगले दिन जब मैं अपनी रिपोर्ट लेने गई तो कायदे से साड़ी पहने और लिपिस्टिक आदि से सजी हुई थी. डाक्टर साहब व्यस्त थे, अत: मैं पास की मेज पर रखा अंगरेजी का अखबार पढ़ने लगी. जब डाक्टर ने मुझे बुलाने के लिए मेरी ओर दृष्टि उठाई तो मेरे हाथ में अखबार देख कर उन का चौंकना मेरी नजरों से छिपा नहीं रहा. उन्होंने ध्यान से मेरी ओर देखा और बोले, ‘‘यस, प्लीज.’’
‘‘मेरी एंजियोग्राफी कल हुई थी, मेरी रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली है,’’ मैं ने भी अंगरेजी में उन से प्रश्न किया.
आश्वस्त होने के लिए मेरे पेपर्स को डाक्टर ने एक बार फिर ध्यान से देखा और प्रश्न किया, ‘‘क्या नाम है आप का?’’
‘‘नीरजा द्विवेदी,’’ उत्तर देने पर उन्होंने पुन: प्रश्न किया, ‘‘आप कहां से आई हैं?’’
डाक्टर ने इस बार ‘माई’ का संबोधन इस्तेमाल न करते हुए मुझे ‘मैडम’ कहते हुए न सिर्फ रिपोर्ट मुझे सौंप दी बल्कि निकटता बढ़ाते हुए रिपोर्ट की बारीकियां बड़े मनोयोग से समझाईं.
अब मैं इसी ऊहापोह में हूं कि ‘महावर’ से ‘माई’ कहलाने में भलाई है या लिपिस्टिक और नेलपालिश से ‘मैडम’ कहलाने में.