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पोस्ट वर्कआउट ग्रूमिंग

युवकों को सिक्स पैक बनाने के लिए या फिर जिम जौइन करने के लिए सब से ज्यादा किसी ने प्रेरित किया है, तो वे हैं सलमान खान. आज यह नाम युवाओं में जनून बन चुका है. युवा अपने बिजी शैड्यूल में से वक्त निकाल कर जिम जाते हैं. यहां तक कि वे जबरदस्त ठंड में भी जिम जाना नहीं छोड़ते, जिस का नतीजा उन्हें कूल बौडी व यंग लुक के रूप में मिलता है. लेकिन जब ये युवा जिम से बाहर निकलते हैं तो इन का पूरा शरीर पसीने से तर होता है, जिस कारण इन से पसीने की बदबू आती है और बाल भी चिपचिपेनजर आते हैं.

नो मैटर, आप का फिजिक कितना ही अच्छा हो, लेकिन इस हालत में जब आप जिम से बाहर आते हैं तो पसीने से तरबतर नजर आते हैं, जिस से आप का पूरा व्यक्तित्व जीरो नजर आता है. ऐसे में कोई भी लड़की आप से इंप्रैस होना तो दूर, आप की तरफ देखना भी पसंद नहीं करेगी. आप टैंशन न लें, क्योंकि जब प्रौब्लम आती है तो उस का सौल्यूशन भी अवश्य होता है. ऐसे में हम आप को बताते हैं कि कैसे आप हौट बौडी के साथ हौट लुक को भी मैंटेन रख सकते हैं वह भी पोस्ट वर्कआउट से. बस, इस के लिए आप को कुछ गू्रमिंग प्रोडक्ट औैर केयर की जरूरत है.

पसीना

जब भी हम शारीरिक श्रम करते हैं तो उस से हमारी बौडी गरम हो जाती है. ऐसे में बौडी के तापमान को मैंटेन करने के लिए हमारे शरीर से पसीना निकलना शुरू होता है, जिस से शरीर धीरेधीरे ठंडा होने लगता है, लेकिन पोस्ट वर्कआउट स्टेज में भी आप की बौडी पसीना प्रोड्यूस करना जारी रखती है, अगर आप ने कोई भी कूलिंग एजैंट नहीं अपनाया तो यह प्रक्रिया जारी रहती है औैर इसीलिए वर्कआउट के बाद कोल्ड शावर लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन वर्कआउट के दौरान उत्पन्न हुई गंदगी, पसीना, धूल, कीटाणु को पूर्णतया शरीर से हटाने के लिए सिर्फ कोल्ड शावर, सोप का इस्तेमाल ही काफी नहीं होता, बल्कि आप को पोस्ट वर्कआउट शावर लेते वक्त शावर जैल यूज करने की आवश्यकता होती है. ये न सिर्फ अच्छे क्लींजिंग एजैंट  हैं बल्कि ये आप की बौडी के मौइश्चर लैवल को भी बनाए रखते हैं. इन से आप खुद को फ्रैश और ऊर्जावान भी महसूस करते हैं.

हेयर नोवोशन

वर्कआउट के तुरंत बाद ऐनर्जी लैवल हाई होता है, ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है, जिस की वजह से आप का चेहरा, बौडी, स्किन तुरंत लाल पड़ जाती है. बिलकुल ऐसा ही असर आप की स्कैल्प पर भी होता है, लेकिन बौडी स्किन की तरह स्कैल्प विजिबल नहीं होती और आप को स्कैल्प पर हुआ इफैक्ट नजर नहीं आता. यही कारण है कि जिम जाने वालों में यह कौमन हैबिट नजर आती है कि वे अपनी स्कैल्प को नजरअंदाज कर देते हैं, जिस कारण बालों का वौल्यूम, क्वालिटी, टैक्स्चर खराब होता जाता है, जो थोड़ी केयर करते भी हैं वे अपने पसीने, गंदगी में डूबे बालों को धोने के लिए रैगुलर फोम शैंपू ही यूज करते हैं.

लेकिन अगर आप को अपने बालों की हैल्थ अच्छी रखनी है तो फोम बैस्ड शैंपू, ऐंटी डैंड्र्रफ शैंपू या हेयर लौस शैंपू को पूरी तरह अवौइड करें, क्योंकि ये धूलमिट्टी हटाने के साथ ही बालों का नैचुरल औयल भी हटा देते हैं. इसलिए उपरोक्त शैंपू की जगह क्रीम बैस्ड शैंपू को अपनी जिम किट में जगह दें. यह आप के बालों के नैचुरल औयल और मौइश्चर को बालों में लौक कर देता है. यह न सिर्फ आप के बालों और स्कैल्प को हाइड्रैट रखता है बल्कि रफनैस और ड्राइनैस को दूर कर बालों को सिल्की ऐेंड सौफ्ट टच भी देता है, क्योंकि यह शैंपू के साथ कंडीशनर का काम भी करता है.

स्टाइल करैक्टली

वर्कआउट के बाद प्रौपर शावर लेने के बाद भी आप की बौडी का तापमान नौर्मल होने की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है यानी शावर के बाद भी तापमान नौर्मल से थोड़ा ऊपर ही रहता है. इस दौरान अगर आप ने अपने बालों की स्टाइलिंग के लिए गलत जैल जैसे हैवी ड्यूटी जैल या क्रीम इस्तेमाल की तो आप बिलकुल भी स्टाइलिश नजर नहीं आएंगे, क्योंकि ये आप के बालों को फ्लैट कर देंगे. इसलिए शैंपू के बाद कूल मोड पर रख कर हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करें. लेकिन अगर यह सुविधा उपलब्ध नहीं है तो आप ऐसे स्टाइलिंग प्रोडक्ट अपने जिम किट में रखें जो क्ले या वैक्स बेस्ड हों. नौर्मल हेयर जैल से ये बेहतर हैं. जैल गरमी से बह जाता है. इस के विपरीत क्ले आप के बालों को मजबूत पकड़ देता है, साथ ही आप के स्कैल्प की स्किन ब्रीद भी कर सकती है.

स्किन डीप नरिशमैंट

पोस्ट वर्कआउट शावरके बाद आप अपनी स्किन पर क्या औैर किस तरह के प्रोडक्ट अप्लाई करते हैं, इस पर ही आप का लुक निर्भर करता है कि आप कूल डूड नजर आते हैं या नहीं. यह तो आप ने जाना कि शावर के बाद भी आप की बौडी का तापमान थोड़ा बढ़ा हुआ रहता है. ऐसे में अगर आप हैवी, क्रीमी, मौइश्चराइजर अप्लाई करेंगे तो आप की बौडी हीट होने की वजह से आप को बेहिसाब पसीना आएगा. ऐसा लगेगा जैसे सूरज की तपन से आप रोस्ट हो रहे हैं और थिक बौडी लोशन यूज करेंगे तो शरीर पिघलता महसूस होगा. दोनों स्थितियों में आप लूजर नजर आएंगे. ऐसे में आप अपनी जिम किट में औयलफ्री, लाइट वेट मौइश्चराइजर व लोशन रखिए. इन को लगाने से स्किन पोर बंद नहीं होंगे और त्वचा आसानी से सांस ले सकेगी तथा ये लोशन आसानी से स्किन में अंदर तक समा जाएंगे.

मुझे एक लड़की पसंद है, लेकिन उसका पहले से बॉयफ्रेंड है, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 31 वर्षीय युवक हूं. कालेज टाइम में अफेयर हुआ जो 5 साल तक चला. फिर ब्रेकअप हो गया. जौब लगी तो वहां औफिस में साथ काम करने वाली लड़की से प्यार करने लगा लेकिन उस का पहले से बौयफ्रैंड था, इसलिए बात नहीं बनी.

जवाब

घरवाले शादी के लिए जोर देने लगे तो कई लड़कियां देखने के बाद एक लड़की पसंद आ गई. हमारा रोका भी हो गया. लेकिन 2 दिनों बाद फोन पर उस ने मुझे बताया कि उसे ड्रग्स लेने की आदत है. और इतनी ज्यादा ऐडिक्ट कि अब छोड़ना भी चाहे तो छोड़ नहीं सकती. घरवालों को भी पता चल गया. रिश्ता टूट गया. मुझे अब ऐसा लग रहा है कि मेरी जिंदगी में किसी का प्यार है ही नहीं. दिल टूट गया है. लगता है सब खत्म हो गया. समझ नहीं आ रहा कैसे उबारूं अपनेआप को इस स्थिति से? अफसोस है कि आप के प्यार को कभी मंजिल नहीं मिल पाई और अब शादी होने से पहले रिश्ता टूटने से आप खुद को संभाल नहीं पा रहे, जबकि ऐसी परिस्थिति में खुद को पौजिटिव रखने की जरूरत है.जो कुछ हुआ उसे अल्पकालिक मान कर चलें. कोई मेरा नहीं हो सकता. बस, यही मेरे लिए लास्ट लड़की थी, इस तरह की बातों को बिलकुल भी अपने मन के अंदर हावी न होने दें.

किसी और की गलती के कारण खुद को तकलीफ न दें. अगर आप अपने को प्यार करना छोड़ देंगे, तो भला दूसरा आप से प्यार कैसे करेगा.किसी के साथ जीवनभर का सपना देखना और फिर उस को एक ही पल में खो देना दुखदायी होता है. ऐसे में तनहाई में हरगिज न रहें. अपनेआप को व्यस्त रखने के लिए दोस्तों से बात करें, अपनी रुचि की ऐक्टिविटी करें, अच्छी किताबें पढ़ें. दोस्तों के साथ ट्रिप प्लान करें.अपने अंदर का आत्मविश्वास खोने न दें, सो, अपने यकीन को कायम रखें. जो हुआ सो हुआ, यह मान कर खुद को नकारात्मक होने से बचाएं. इस बात को सहजता से स्वीकार कर लें, वरना यह बात आप को दर्द देती रहेगी.

पान खाए सैयां हमारो : शादी के लिए न करती युवती की कहानी

शाम के 6 बजे जब सब 1-1 कर घर जाने के लिए अपनाअपना बैग समेटने लगे तो सिया ने चोरी से एक नजर अनिल पर डाली. औफिस में नया आया सब से हैंडसम, स्मार्ट, खुशमिजाज अनिल उसे देखते ही पसंद आ गया था. वह मन ही मन उस के प्रति आकर्षित थी.

अनिल ने भी एक नजर उस पर डाली तो वह मुसकरा दी. दोनों अपनीअपनी चेयर से लगभग साथ ही उठे. लिफ्ट तक भी साथ ही गए. 2-3 लोग और भी उन के साथ बातें करते लिफ्ट में आए. आम सी बातों के दौरान सिया ने भी नोट किया कि अनिल भी उस पर चोरीचोरी नजर डाल रहा है.

बाहर निकल कर सिया रिकशे की तरफ जाने लगी तो अनिल ने कहा, ‘‘सिया, कहां जाना है आप को मैं छोड़ दूं?’’‘‘नो थैंक्स, मैं रिकशा ले लूंगी.’’‘‘अरे, आओ न, साथ चलते हैं.’’‘‘अच्छा, ठीक है.’’

अनिल ने अपनी बाइक स्टार्ट की, तो सिया उस के पीछे बैठ गई. अनिल से आती परफ्यूम की खुशबू सिया को भा रही थी. दोनों को एकदूसरे का स्पर्श रोमांचित कर गया. बनारस में इस औफिस में दोनों ही नए थे. सिया की नियुक्ति पहले हुई थी.

अचानक सड़क के किनारे होते हुए अनिल ने ब्रेक लगाए तो सिया चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’‘‘कुछ नहीं,’’ कहते हुए अनिल ने अपनी पैंट की जेब से गुटका निकाला और बड़े स्टाइल से मुंह में डालते हुए मुसकराया.‘‘यह क्या?’’ सिया को एक झटका सा लगा.‘‘मेरा फैवरिट पानमसाला.’’‘‘तुम्हें इस की आदत है?’’

‘‘हां, और यह मेरी स्टाइलिश आदत है, है न?’’ फिर सिया के माथे पर शिकन देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’‘‘तुम्हें इन सब चीजों का शौक है?’’‘‘हां, पर क्या हुआ?’’‘‘नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर वह चुप रही तो अनिल ने फिर बाइक स्टार्ट कर ली.धीरेधीरे यह रोज का क्रम बन गया. घर से आते हुए सिया रिकशे में आती, औफिस से वापस जाते समय अनिल उसे उस के घर से थोड़ी दूर उतार देता. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से खुलते गए.

अनिल का सिया के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. मौडर्न, सुंदर, स्मार्ट सिया को वह अपने भावी जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. कुछ ऐसा ही सिया भी सोचने लगी थी. दोनों को विश्वास था कि उन के घर वाले उन की पसंद को पसंद करेंगे.

अनिल तो सिया के साथ अपना जीवन आगे बढ़ाने के लिए शतप्रतिशत तय कर चुका था पर सिया एक पौइंट पर आ कर रुक जाती थी. अनिल की लगातार मुंह में गुटका दबाए रखने की आदत पर वह जलभुन जाती थी. कई बार उस ने इस से होने वाली बीमारियों के बारे में चेतावनी भी दी तो अनिल ने बात हंसी में उड़ा दी, ‘‘यह क्या तुम बुजुर्गों की तरह उपदेश देने लगती हो. अरे, मेरे घर में सब खाते हैं, मेरे मम्मीपापा को भी आदत है, तुम खाती नहीं न, इसलिए डरती हो. 2-3 बार खाओगी तो स्वाद अपनेआप अच्छा लगने लगेगा. पहले मेरी मम्मी भी पापा को मना करती थीं. फिर धीरेधीरे वे गुस्से में खुद खाने लगीं और अब तो उन्हें भी मजा आने लगा है, इसलिए अब कोई किसी को नहीं टोकता.’’

सिया के दिल में क्रोध की एक लहर सी उठी पर अपने भावों को नियंत्रण में रखते हुए बोली, ‘‘पर अनिल, तुम इतने पढ़ेलिखे हो, तुम्हें खुद भी यह बुरी आदत छोड़नी चाहिए और अपने मम्मीपापा को भी समझाना चाहिए.’’

‘‘उफ सिया. छोड़ो यार, आजकल तुम घूमफिर कर इसी बात पर आ जाती हो. हमारे मिलने का आधा समय तो तुम इसी बात पर बिता देती हो. अरे, तुम ने वह गाना नहीं सुना, ‘पान खाए सैयां हमारो…’ फिर हंसा, ‘‘तुम्हें तो यह गाना गाना चाहिए, देखा नहीं कभी क्या कि वहीदा रहमान यह गाना गाते हुए कितनी खुश होती हैं.’’‘‘वे फिल्मों की बातें हैं. उन्हें रहने दो.’’

अनिल उसे फिर हंसाता रहा पर वह उस की इस आदत पर काफी चिंतित थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अनिल की इस आदत को कैसे छुड़ाए.एक दिन सिया अपने मम्मीपापा और बड़े भाई राहुल से मिलवाने अनिल को घर ले गई. अनिल का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि देखने वाला तुरंत प्रभावित होता था. सब अनिल के साथ घुलमिल गए. बातें करतेकरते जब ऐक्सक्यूज मी कह कर अनिल ने अपनी जेब से पानमसाला निकाल कर अपने मुंह में डाला, तो सब उस की इस आदत पर हैरान से चुप बैठे रह गए.

अनिल के जाने के बाद वही हुआ जिस की उसे आशा थी. सिया की मम्मी सुधा ने कहा, ‘‘अनिल अच्छा लगा पर उस की यह आदत …’’ सिया ने बीच में ही कहा, ‘‘हां मम्मी, मुझे भी उस की यह आदत बिलकुल पसंद नहीं है. क्या करूं समझ नहीं आ रहा है.’’

थोड़े दिन बाद ही अनिल सिया को अपने परिवार से मिलवाने ले गया. अनिल के पापा श्याम और मम्मी मंजू अनिल की छोटी बहन मिनी सब सिया से बहुत प्यार से पेश आए. सिया को भी सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा. मंजू ने तो उसे डिनर के लिए ही रोक लिया. सिया भी सब से घुलमिल गई. फिर वह किचन में ही मंजू का हाथ बंटाने आ गई. सिया ने देखा, फ्रिज में एक शैल्फ पान के बीड़ों से भरी हुई थी.

‘‘आंटी, इतने पान?’’ वह हैरान हुई.‘‘अरे हां,’’ मंजू मुसकराईं, ‘‘हम सब को आदत है न. तुम तो जानती ही हो, बनारस के पान तो मशहूर हैं.’’‘‘पर आंटी, हैल्थ के लिए…’’‘‘अरे छोड़ो, देखा जाएगा,’’ सिया के अपनी बात पूरी करने से पहले ही मंजू बोलीं.किचन में ही एक तरफ शराब की बोतलों का ढेर था. वह वौशरूम में गई तो वहां उसे जैसे उलटी आने को हो गई. बाहर से घर इतना सुंदर और वौशरूम में खाली गुटके यहांवहां पड़े थे. टाइल्स पर पड़े पान के छींटों के निशान देखते ही उसे उलटी आ गई. सभ्य, सुसंस्कृत दिखने वाले परिवार की असलियत घर के कोनेकोने में दिखाई दे रही थी. ‘अगर वह इस घर में बहू बन कर आ गई तो उस का बाकी जीवन तो इन गुटकों, इन बदरंग निशानों को साफ करते ही बीत जाएगा,’ उस ने इन विचारों में डूबेडूबे ही सब के साथ डिनर किया.

डिनर के बाद अनिल सिया को घर छोड़ आया. घर आने के बाद सिया के मन में कई विचार आ जा रहे थे. अनिल एक अच्छा जीवनसाथी सिद्ध हो सकता है, उस के घर वाले भी उस से प्यार से पेश आए पर सब की ये बुरी आदतें पानमसाला, शराब, सिगरेट के ढेर वह अपनी आंखों से देख आई थी. घर आ कर उस ने अपने मन की बात किसी को नहीं बताई पर बहुत कुछ सोचती रही. 2-3 दिन उस ने अनिल से एक दूरी बनाए रखी. सिया के इस रवैए से परेशान अनिल बहुत कुछ सोचने लगा कि क्या हुआ होगा पर उसे जरा भी अंदाजा नहीं हुआ तो शाम को घर जाने के समय वह सिया का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती कैंटीन में ले गया, वहां बैठ कर उदास स्वर में पूछा, ‘‘क्या हुआ है, बताओ तो मुझे?’’

सिया को जैसे इसी पल का इंतजार था. अत: उस ने गंभीर, संयत स्वर में कहना शुरू किया, ‘‘अनिल, मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूं, पर हम इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे.’’अनिल हैरानी से चीख ही पड़ा, ‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हें और तुम्हारे परिवार को जो ये कुछ बुरी आदतें हैं, मुझ से सहन नहीं होंगी, तुम एजुकेटेड हो, तुम्हें इन आदतों का भविष्य तो पता ही होगा. भले ही तुम इन आदतों के परिणामों को नजरअंदाज करते रहो पर जानते तो हो ही न? मैं ऐसे परिवार की बहू कैसे बनूं जो इन बुरी आदतों से घिरा है? आई एम सौरी, अनिल, मैं सब जानतेसमझते ऐसे परिवार का हिस्सा नहीं बनना चाहूंगी.’’

अनिल का चेहरा मुरझा चुका था. बड़ी मुश्किल से उस की आवाज निकली, ‘‘सिया, मैं तो तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’‘‘हां अनिल, मैं भी तुम से दूर नहीं होना चाहती पर क्या करूं, इन व्यसनों का हश्र जानती हूं मैं. सौरी अनिल,’’ कह उठ खड़ी हुई.अनिल ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘अगर मैं यह सब छोड़ने की कोशिश करूं तो? अपने मम्मीपापा को भी समझांऊ तो?’’

‘‘तो फिर मैं इस कोशिश में तुम्हारे साथ हूं,’’ मुसकराते हुए सिया ने कहा, ‘‘पर इस में काफी समय लगेगा,’’ कह सिया चल दी.आत्मविश्वास से सधे सिया के कदमों को देखता अनिल बैठा रह गया.आदतन हाथ जेब तक पहुंचा, फिर सिर पकड़ कर बैठा रह गया.

जन्मकुंडली का चक्कर : ग्रहों के फेर में फंसी लड़की की दास्तां

उस दिन सुबह ही मेरे घनिष्ठ मित्र प्रशांत का फोन आया और दोपहर को डाकिया उस के द्वारा भेजा गया वैवाहिक निमंत्रणपत्र दे गया. प्रशांत की बड़ी बेटी पल्लवी की शादी तय हो गई थी. इस समाचार से मुझे बेहद प्रसन्नता हुई और मैं ने प्रशांत को आश्वस्त कर दिया कि 15 दिन बाद होने वाली पल्लवी की शादी में हम पतिपत्नी अवश्य शरीक होेंगे.

बचपन से ही प्रशांत मेरा जिगरी दोस्त रहा है. हम ने साथसाथ पढ़ाई पूरी की और लगभग एक ही समय हम दोनों अलगअलग बैंकों में नौकरी में लग गए. हम अलगअलग जगहों पर कार्य करते रहे लेकिन विशेष त्योहारों के मौके पर हमारी मुलाकातें होती रहतीं.

हमारे 2-3 दूसरे मित्र भी थे जिन के साथ छुट्टियों में रोज हमारी बैठकें जमतीं. हम विभिन्न विषयों पर बातें करते और फिर अंत में पारिवारिक समस्याओं पर विचारविमर्श करने लगते. बढ़ती उम्र के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और बच्चों की शादी जैसे विषयों पर हमारी बातचीत ज्यादा होती रहती.

प्रशांत की दोनों बेटियां एम.ए. तक की शिक्षा पूरी कर नौकरी करने लगी थीं जबकि मेरे दोनों बेटे अभी पढ़ रहे थे. हमारे कई सहकर्मी अपनी बेटियों की शादी कर के निश्ंिचत हो गए थे. प्रशांत की बेटियों की उम्र बढ़ती जा रही थी और उस के रिटायर होेने का समय नजदीक आ रहा था. उस की बड़ी बेटी पल्लवी की जन्मकुंडली कुछ ऐसी थी कि जिस के कारण उस के लायक सुयोग्य वर नहीं मिल पा रहा था.

हमारे खानदान में जन्मकुंडली को कभी महत्त्व नहीं दिया गया, इसलिए मुझे इस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. एक बार कुछ खास दोस्तों की बैठक में प्रशांत ने बताया था कि पल्लवी मांगलिक है और उस का गण राक्षस है. मेरी जिज्ञासा पर वह बोला, ‘‘कुंडली के 1, 4, 7, 8 और 12वें स्थान पर मंगल ग्रह रहने पर व्यक्ति मंगली या मांगलिक कहलाता है और कुंडली के आधार पर लोग देव, मनुष्य या राक्षस गण वाले हो जाते हैं. कुछ अन्य बातों के साथ वरवधू के न्यूनतम 18 गुण या अंक मिलने चाहिए. जो व्यक्ति मांगलिक नहीं है, उस की शादी यदि मांगलिक से हो जाए तो उसे कष्ट होगा.’’

किसी को मांगलिक बनाने का आधार मुझे विचित्र लगा और लोगों को 3 श्रेणियों में बांटना तो वैसे ही हुआ जैसे हिंदू समाज को 4 प्रमुख जातियों में विभाजित करना. फिर जो मांगलिक नहीं है, उसे अमांगलिक क्यों नहीं कहा जाता? यहां मंगल ही अमंगलकारी हो जाता है और कुंडली के अनुसार दुश्चरित्र व्यक्ति देवता और सुसंस्कारित, मृदुभाषी कन्या राक्षस हो सकती है. मुझे यह सब बड़ा अटपटा सा लग रहा था.

प्रशांत की बेटी पल्लवी ने एम.एससी. करने के बाद बी.एड. किया और एक बड़े स्कूल में शिक्षिका बन गई. उस का रंगरूप अच्छा है. सीधी, सरल स्वभाव की है और गृहकार्य में भी उस की रुचि रहती है. ऐसी सुयोग्य कन्या का पिता समाज के अंधविश्वासों की वजह से पिछले 2-3 वर्ष से परेशान रह रहा था. जन्मकुंडली उस के गले का फंदा बन गई थी. मुझे लगा, जिस तरह जातिप्रथा को बहुत से लोग नकारने लगे हैं, उसी प्रकार इस अकल्याणकारी जन्मकुंडली को भी निरर्थक और अनावश्यक बना देना चाहिए.

प्रशांत फिर कहने लगा, ‘‘हमारे समाज मेें पढ़ेलिखे लोग भी इतने रूढि़वादी हैं कि बायोडाटा और फोटो बाद में देखते हैं, पहले कुंडली का मिलान करते हैं. कभी मंगली लड़का मिलता है तो दोनों के 18 से कम गुण मिलते हैं. जहां 25-30 गुण मिलते हैं वहां गण नहीं मिलते या लड़का मंगली नहीं होता. मैं अब तक 100 से ज्यादा जगह संपर्क कर चुका हूं किंतु कहीं कोई बात नहीं बनी.’’

मैं, अमित और विवेक, तीनों उस के हितैषी थे और हमेशा उस के भले की सोचते थे. उस दिन अमित ने उसे सुझाव दिया कि किसी साइबर कैफे में पल्लवी की जन्मतिथि थोड़ा आगेपीछे कर के एक अच्छी सी कुंडली बनवा लेने से शायद उस का रिश्ता जल्दी तय हो जाए.

प्रशांत तुरंत बोल उठा, ‘‘मैं ने अभी तक कोई गलत काम नहीं किया है. किसी के साथ ऐसी धोखाधड़ी मैं नहीं कर सकता.’’

‘‘मैं किसी को धोखा देने की बात नहीं कर रहा,’’ अमित ने उसे समझाना चाहा, ‘‘किसी का अंधविश्वास दूर करने के लिए अगर एक झूठ का सहारा लेना पड़े तो इस में बुराई क्या है. क्या कोई पंडित या ज्योतिषी इस बात की गारंटी दे सकता है कि वर और कन्या की कुंडलियां अच्छी मिलने पर उन का दांपत्य जीवन सफल और सदा सुखमय रहेगा?

‘‘हमारे पंडितजी, जो दूसरों की कुंडली बनाते और भविष्य बतलाते हैं, स्वयं 45 वर्ष की आयु में विधुर हो गए. एक दूसरे नामी पंडित का भतीजा शादी के महज  5 साल बाद ही एक दुर्घटना का शिकार हो गया. उस के बाद उन्होंने जन्मकुंडली और भविष्यवाणियों से तौबा ही कर ली,’’ वह फिर बोला, ‘‘मेरे मातापिता 80-85 वर्ष की उम्र में भी बिलकुल स्वस्थ हैं जबकि कुंडलियों के अनुसार उन के सिर्फ 8 ही गुण मिलते हैं.’’

प्रशांत सब सुनता रहा किंतु वह पल्लवी की कुंडली में कुछ हेरफेर करने के अमित के सुझाव से सहमत नहीं था.

कुछ महीने बाद हम फिर मिले. इस बार प्रशांत कुछ ज्यादा ही उदास नजर आ रहा था. कुछ लोग अपनी परेशानियों के बारे में अपने निकट संबंधियों या दोस्तों को भी कुछ बताना नहीं चाहते. आज के जमाने में लोग इतने आत्मकेंद्रित हो गए हैं कि बस, थोड़ी सी हमदर्दी दिखा कर चल देंगे. उन से निबटना तो खुद ही होगा. हमारे छेड़ने पर वह कहने लगा कि पंडितों के चक्कर में उसे काफी शारीरिक कष्ट तथा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा और कोई लाभ नहीं हुआ.

2 वर्ष पहले किसी ने कालसर्प दोष बता कर उसे महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध स्थान पर सोने के सर्प की पूजा और पिंडदान करने का सुझाव दिया था. उतनी दूर सपरिवार जानेआने, होटल में 3 दिन ठहरने और सोने के सर्प सहित दानदक्षिणा में उस के लगभग 20 हजार रुपए खर्च हो गए. उस के कुछ महीने बाद एक दूसरे पंडित ने महामृत्युंजय जाप और पूजाहवन की सलाह दी थी. इस में फिर 10 हजार से ज्यादा खर्च हुए. उन पंडितों के अनुसार पल्लवी का रिश्ता पिछले साल ही तय होना निश्चित था. अब एकडेढ़ साल बाद भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी.

मैं ने उसे समझाने के इरादे से कहा, ‘‘तुम जन्मकुंडली और ऐसे पंडितों को कुछ समय के लिए भूल जाओ. यजमान का भला हो, न हो, इन की कमाई अच्छी होनी चाहिए. जो कहते हैं कि अलगअलग राशि वाले लोगों पर ग्रहों के असर पड़ते हैं, इस का कोई वैज्ञानिक आधार है क्या?

‘‘भिन्न राशि वाले एकसाथ धूप में बैठें तो क्या सब को सूर्य की किरणों से विटामिन ‘डी’ नहीं मिलेगा. मेरे दोस्त, तुम अपनी जाति के दायरे से बाहर निकल कर ऐसी जगह बात चलाओ जहां जन्मकुंडली को महत्त्व नहीं दिया जाता.’’

मेरी बातों का समर्थन करते हुए अमित बोला, ‘‘कुंडली मिला कर जितनी शादियां होती हैं उन में बहुएं जलाने या मारने, असमय विधुर या विधवा होने, आत्महत्या करने, तलाकशुदा या विकलांग अथवा असाध्य रोगों से ग्रसित होने के कितने प्रतिशत मामले होते हैं. ऐसा कोई सर्वे किया जाए तो एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आ जाएगा. इस पर कितने लोग ध्यान देते हैं? मुझे तो लगता है, इस कुंडली ने लोगों की मानसिकता को संकीर्ण एवं सशंकित कर दिया है. सब बकवास है.’’

उस दिन मुझे लगा कि प्रशांत की सोच में कुछ बदलाव आ गया था. उस ने निश्चय कर लिया था कि अब वह ऐसे पंडितों और ज्योतिषियों के चक्कर में नहीं पड़ेगा.

खैर, अंत भला तो सब भला. हम तो उस की बेटियों की जल्दी शादी तय होने की कामना ही करते रहे और अब एक खुशखबरी तो आ ही गई.

हम पतिपत्नी ठीक शादी के दिन ही रांची पहुंच सके. प्रशांत इतना व्यस्त था कि 2 दिन तक उस से कुछ खास बातें नहीं हो पाईं. उस ने दबाव डाल कर हमें 2 दिन और रोक लिया था. तीसरे दिन जब ज्यादातर मेहमान विदा हो चुके थे, हम इत्मीनान से बैठ कर गपशप करने लगे. उस वक्त प्रशांत का साला भी वहां मौजूद था. वही हमें बताने लगा कि किस तरह अचानक रिश्ता तय हुआ. उस ने कहा, ‘‘आज के जमाने में कामकाजी लड़कियां स्वयं जल्दी विवाह करना नहीं चाहतीं. उन में आत्मसम्मान, स्वाभिमान की भावना होती है और वे आर्थिक रूप से अपना एक ठोस आधार बनाना चाहती हैं, जिस से उन्हें अपनी हर छोटीमोटी जरूरत के लिए अपने पति के आगे हाथ न फैलाना पड़े. पल्लवी को अभी 2 ही साल तो हुए थे नौकरी करते हुए लेकिन मेरे जीजाजी को ऐसी जल्दी पड़ी थी कि उन्होंने दूसरी जाति के एक विधुर से उस का संबंध तय कर दिया.

वैसे मेरे लिए यह बिलकुल नई खबर थी. किंतु मुझे इस में कुछ भी अटपटा नहीं लगा. पल्लवी का पति 30-32 वर्ष का नवयुवक था और देखनेसुनने में ठीक लग रहा था. हम लोगोें का मित्र विवेक, प्रशांत की बिरादरी से ही था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर प्रशांत ने ऐसा निर्णय क्यों लिया. उस ने उस से पूछा, ‘‘पल्लवी जैसी कन्या के लिए अपने समाज में ही अच्छे कुंआरे लड़के मिल सकते थे. तुम थोड़ा और इंतजार कर सकते थे. आखिर क्या मजबूरी थी कि उस की शादी तुम ने एक ऐसे विधुर से कर दी जिस की पत्नी की संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत हो गई थी.’’

‘‘यह सिर्फ मेरा निर्णय नहीं था. पल्लवी की इस में पूरी सहमति थी. जब हम अलगअलग जातियों के लोग आपस में इतने अच्छे दोस्त बन सकते हैं, साथ खापी और रह सकते हैं, तो फिर अंतर्जातीय विवाह क्यों नहीं कर सकते?’’

प्रशांत कहने लगा, ‘‘एक विधुर जो नौजवान है, रेलवे में इंजीनियर है और जिसे कार्यस्थल भोपाल में अच्छा सा फ्लैट मिला हुआ है, उस में क्या बुराई है? फिर यहां जन्मकुंडली मिलाने का कोई चक्कर नहीं था.’’

‘‘और उस की पहली पत्नी की मौत?’’ विवेक शायद प्रशांत के उत्तर से संतुष्ट नहीं था.

प्रशांत ने कहा, ‘‘अखबारों में प्राय: रोज ही दहेज के लोभी ससुराल वालों द्वारा बहुओं को प्रताडि़त करने अथवा मार डालने की खबरें छपती रहती हैं. हमें भी डर होता था किंतु एक विधुर से बेटी का ब्याह कर के मैं चिंतामुक्त हो गया हूं. मुझे पूरा यकीन है, पल्लवी वहां सुखी रहेगी. आखिर, ससुराल वाले कितनी बहुओं की जान लेंगे? वैसे उन की बहू की मौत महज एक हादसा थी.’’

‘‘तुम्हारा निर्णय गलत नहीं रहा,’’ विवेक मुसकरा कर बोला.

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जी-20 : नाम बड़े और दर्शन छोटे

दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन में 20 देशों के मुखिया यानी देशों के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति शामिल हुए लेकिन उस से कुछ ठोस निकला हो, इस में संदेह है. संयुक्त बयान जारी किया गया पर इस में दुनिया का सब से बड़ा हौटस्पौट यूक्रेन को अनदेखा करना पड़ा क्योंकि रूस और चीन इस बारे में कतई सुनने को तैयार नहीं थे.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तो आए ही नहीं और उन्होंने अनजाने से प्रधानमंत्री ली कियांग को भेज दिया जबकि रूस के विदेश मंत्री और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन केवल स्क्रीन के जरिए टैलीलिंक से आए. इस तरह के सम्मेलनों में जब सब देशों के मुखिया और उन के बड़े मंत्री/अधिकारी एक हौल में बैठे हों, उम्मीद की जाती है कि वे आपस में कुछ नए नायाब फैसले लेंगे जो दुनिया में शांति पैदा करेंगे, रिफ्यूजियों की समस्या को हल करेंगे, देशों की सरकारों को अपने ही नागरिकों के साथ कुव्यवहार को रोकेंगे, बढ़ते क्लाइमेट चेंज की चुनौती से निबटेंगे, युद्धों और गृहयुद्धों को रोकेंगे आदिआदि.

अफसोस पिछले सम्मेलनों की तरह यह सम्मेलन भी ऐसा कुछ नहीं कर पाया और सब खा/पी कर दिल्ली की जमीन को छू कर चले गए. विश्वगुरु बनने का सपना नरेंद्र मोदी जो पाले हुए हैं, कोई काम नहीं आया और जैसे पिछले शिखर सम्मेलन, जो छोटे देश इंडोनेशिया के पर्यटन स्थल बाली में हुआ था, की तरह एक बिना धारदार वक्तव्य के साथ समाप्त हो गया.

भारतीय जनता पार्टी ने बहुत कोशिश की थी कि वह इस सम्मेलन को 2024 के चुनावों के लिए भुनाए पर धर्मोर्दी (धर्म+मोदी) मीडिया के लगातार गुणगान के बावजूद नए भक्त बने हों, इस में शक है. यह सारा तमाशा दिल्ली तक सिमट कर रह गया. दिल्ली में भी थोड़ी लिपाईपुताई हुई और होर्डिंग लगे, देशों के झंडे लगे वरना ऐसा कुछ नहीं हुआ कि दिल्ली वाले फूल कर कुप्पा हुए हों कि मोदीजी की अध्यक्षता के कारण अब वे वर्षों साफसुथरी दिल्ली का आनंद ले सकेंगे.

आजकल दुनिया के नेता आपस में मिलने तो बहुत लगे हैं और जी-20, जी-7, ब्रिक्स, असियान, नाटो जैसे शिखर सम्मेलन होते रहते हैं जिन में काफी नेता मिलते रहते हैं पर इस से दुनिया एक नहीं हो पा रही जबकि दुनिया की सीमाओं पर कंटीले तारों की लाइनें ऊंची और चौड़ी होती जा रही हैं. हर देश अपनी अंदरूनी नीति में दखल को नापसंद करने लगा है.

पश्चिमी देशों को जो बढ़त पहले अपनी अमीरी, अपने बलबूते मिली थी उस से वे देशों को अब खरीद नहीं पा रहे क्योंकि शिक्षा व तकनीक ने नाइजीरिया जैसे गरीब देश में अफ्रीकी अरबपति पैदा कर लिए हैं और कोई देश निल तो कोई खनिजों के कारण मालामाल हो रहा है और उसे दूसरे देश की सुनने की जरूरत नहीं है.

जी-20 की मेजबानी व अध्यक्षता अब बेमतलब की रह गई है क्योंकि भारत में आए सब देशों के नेताओं और उन के अधिकारियों की निगाहें तो मणिपुर व नूंह जैसे मामलों, परदों को लगा कर ढकी गई गंदगी व गरीबी पर थीं.

अफसोस यह है कि जी-20 के मेहमानों के आगमन के समय भी नरेंद्र मोदी अपनी कट्टर हिंदूवादी सोच को छोड़ नहीं पाए और उन्होंने राष्ट्रपति द्वारा जो खाने का निमंत्रण सभी को भिजवाया उस में इंग्लिश में भी प्रैसिडैंट औफ रिपब्लिक औफ भारत लिखवाया. जी-20 के मौके पर दुनिया को एक करने की बात करने वाले मौन रह गए जबकि इस मौके पर इंडिया और भारत का भेद सिखाने बैठ गए. जी-20 बिना किसी विवाद के समाप्त हो, उस का मौका उन्होंने आने ही नहीं दिया और खुद ही ने राजा व प्रजा के बीच एक और झड़प की शुरुआत कर दी.

ऐसे में देशों के आपसी झंझटों को वे सुलझाने में सफल होंगे, इस में संदेह है क्योंकि वे तो देश में निरर्थक झंझट पैदा कर के वोट पाने की कोशिश में लगे रहते हैं और जी-20 में भी उन्होंने यह मौका नहीं छोड़ा. उन्होंने जी-20 को केवल अपना कार्यक्रम बना डाला जिस में विपक्षी दलों को तो छोड़िए, उन के अपने दल के लोग भी सक्रिय नहीं थे. कुछ को चुप रह कर बैठने के निमंत्रण मिले, बस.

World Suicide Prevention Day पर आमिर खान की बेटी ने दी सलाह, देखें वीडियो

Ira khan Viral Video : हर साल 10 सितंबर को ‘वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे’ यानी ‘आत्महत्या रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है. इस दिन लोगों को आत्महत्या के प्रति जागरुक किया जाता है, जिस कारण वह आत्महत्या जैसा कोई गंभीर कदम नहीं उठाए. हालांकि बावजूद इसके देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. आम जनता से लेकर बॉलीवुड सेलेब्स और कई बार तो उनके बच्चे भी इतना परेशान हो जाते हैं कि मौत को गले लगा लेते हैं.

बॉलीवुड एक्टर आमिर खान की बेटी ”आइरा खान” भी डिप्रेशन जैसे खतरनाक मेंटल स्टेटस से गुजरी थी. हालांकि अब वह इससे बाहर आ चुकी है और अब वो इस तरह की परेशानियों से जूझ रहे लोगों की मदद करती हैं. इसके लिए उन्होंने (Ira khan Viral Video) एक फाउंडेशन का भी गठन किया है.

जानें क्या कहा आइरा ने?

बीते दिन ‘विश्व आत्यहत्या रोकथाम दिवस’ (World Suicide Prevention Day) के मौके पर ”आइरा” को एक बार फिर लोगों को जागरूक करते देखा गया. इस बार उनका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वीडियो में देखा जा सकता है कि वो आत्महत्या के रोकथाम के उपायों के बारें में बता रही हैं.

सबसे पहले आइरा (Ira khan Viral Video) कहती हैं, ‘जिन लोगों को आत्महत्या का विचार आता है उनको सबसे पहले बहुत डर लगता है. उनको लगता है कि वो अपनी बात किसी को बता नहीं सकते हैं.’ इसी के आगे उन्होंने कहा, ‘लेकिन अगर आप इस बारे में उनसे पूछोगे तो उनको एहसास होता है कि कोई है जो डरेगा नहीं. अगर मैं कहूं कि यह विचार मेरे मन में है. बहुत सारे लोगों को लगता है कि अगर मैं बोलूंगा या बोलूंगी तो यह विचार उनके मन में आ जाएगा, पर ऐसा नहीं होता है. किसी को भी इस बारे में बात करने से डरने की जरूरत नहीं है.’

2021 में आयरा ने बनाया था फाउंडेशन

आपको बताते चलें कि जब से आइरा खान, डिप्रेशन (World Suicide Prevention Day) से बाहर निकली है तभी से वह मेंटल हेल्थ को लेकर लोगों के बीच जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं. इसके लिए उन्होंने साल 2021 में अगस्तू फाउंडेशन का भी गठन किया था, जिसके जरिए वह औपचारिक तौर पर डिप्रेशन में जूझ रहे लोगों की मदद करती हैं.

सिनेमा में आए बदलाव पर फूटा Naseeruddin Shah का गुस्सा, पूछे तीखे सवाल

Naseeruddin Shah : हिन्दी सिनेमा के बेहतरीन एक्टर्स में से एक नसीरुद्दीन शाह हमेशा से ही अपने बेबाक बयानों के चलते सुर्खियों में रहे हैं. वहीं अब हाल ही में उन्होंने फिर से कुछ ऐसा बोल दिया, जिसके कारण वो खबरों में आ गए है.

दरअसल बीते दिनों वो अपने डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘मैन वुमन मैन वुमन’ का प्रचार कर रहे थे. इस दौरान मीडिया से बात करते हुए उन्होंने अपनी पूरी भड़ास निकाली है.

डायरेक्शन से क्यों दूर थे एक्टर?

जब एक मीडियाकर्मी ने उनसे (Naseeruddin Shah) सवाल किया कि, डायरेक्टर के रूप में आपको वापसी करने में 17 का लंबा वक्त क्यों लगा? तो इस पर नसीरुद्दीन शाह ने कहा, ‘मैं इतनी खराब फिल्म को बनाने के सदमे से उबर रहा था. यह वैसी फिल्म नहीं बनी, जैसे कि मैंने सोचा था. कहानी लिखने के लिहाज से या फिर फिल्म बनाने के लिहाज से मैं उस वक्त सही स्थिति में नहीं था. लेकिन उस समय मैंने सोचा था कि अगर मैं सभी बेहतरीन एक्टर्स को एक साथ इकट्ठा कर लूं तो वह अच्छा परफॉर्म करेंगे. मुझे लगा कि यह एक अच्छी स्क्रिप्ट है पर बाद में मुझे इस बात का एहसास हुआ कि इस स्क्रिप्ट में कुछ खामियां थी. खासतौर पर बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान की कहानी में.’

इसी के साथ नसीरुद्दीन ने ये भी कहा कि, ‘एक्टर्स के योगदान को छोड़कर, ये मेरे लिए बड़ी निराशा की बात थी. हालांकि मैं इस सबकी जिम्मेदारी भी लेता हूं. फिर उसके बाद मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दूसरी फिल्म भी बनाऊंगा क्योंकि इसमें कड़ी मेहनत लगती है.’

नसीरूद्दीन ने इस तरह निकाला अपना गुस्सा

इसके अलावा नसीरुद्दीन शाह से जब ये पूछा गया कि क्या बॉलीवुड में फिल्मों को बनाने का मोटिव बदल गया है? तो इस पर एक्टर (Naseeruddin Shah) ने जवाब दिया, ‘हां! अब आप जितने ज्यादा अंधराष्ट्रवादी होंगे, आप उतने ही ज्यादा लोगों के बीच फेमस होंगे, क्योंकि यही इस देश पर शासन कर रहा है.’ इसी के साथ उन्होंने कहा, ‘आज के समय में अपने देश से प्यार करना ही काफी नहीं है बल्कि इसके बारे में ढोल पीटना और काल्पनिक दुश्मन पैदा करना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि इन लोगों को ये एहसास नहीं है कि वह जो कर रहे हैं वो बहुत ही हानिकारक है.’

नसीरुद्दीन ने क्यों नहीं देखी कश्मीर फाइल्स?

वहीं जब एक्टर से ये सवाल किया गया कि, ‘गदर 2’ और ‘कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्में कैसे चल रहीं हैं? तो इस पर उन्होंने कहा, ‘केरल स्टोरी और गदर 2 जैसी फिल्में मैंने नहीं देखी है, लेकिन मुझे ये पता है कि वो किस बारे में हैं. ये परेशान करने वाली बात है कि कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्में इतनी हिट हो रही हैं.’

इसी के आगे उन्होंने (Naseeruddin Shah) कहा, ‘जबकि सुधीर मिश्रा, अनुभव सिन्हा की बनाई गई फिल्में हैं और हंसल मेहता, जो कि अपने समय की सच्चाई को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, वो लोगों को नजर नहीं आती. लेकिन यह जरूरी है कि ये तमाम फिल्ममेकर हिम्मत न हारें और लोगों के बीच कहानियां सुनाते रहें.’

एक्टर ने भावी पीढ़ी को दी चेतावनी

इसी के साथ अभिनेता (Naseeruddin Shah) ने ये भी कहा कि, ‘वो भावी पीढ़ी के लिए ज़िम्मेदार होंगे. आज से सौ साल बाद लोग भिड़ देखेंगे और गदर 2 भी देखेंगे. साथ ही ये भी देखेंगे कि कौन हमारे समय की सच्चाई को दिखाता है? क्योंकि फिल्म ही एकमात्र जरिया होता है जो ऐसा कर सकती है. हालांकि ये भयावह है कि जहां फिल्म निर्माताओं को ऐसी फिल्में बनाने में शामिल किया जाता है, जो सभी गलत चीजों को दिखाती हैं. इसके अलावा बिना किसी वजह के दूसरे समुदायों को नीचा भी दिखाते हैं.’

उपचुनाव 2023 : ‘एनडीए’ पर भारी पड़ा ‘इंडिया’

6 राज्यों के 7 विधानसभा उपचुनावों के मैच में ‘इंडिया’ गठबंधन का पलड़ा भारी रहा है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में हुएये चुनाव इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैंक्योंकिये4 विधानसभाओं और 2024 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले हुएहैं. एक तरह से ये चुनावपूर्व सर्वे जैसे हैं जिनसे जनता के मूड का अंदाजा लगाया जा सकता है. 7 विधानसभाओंके ये चुनाव उस समय हुए जब ‘इंडिया’ गठबंधन की तीसरी मीटिंग मुंबई में हो रही थी और केंद्र की मोदी सरकार ने जवाबी हमला करते हुए ‘वन नेशन, वन इलैक्शन’ और ‘इंडिया बनाम भारत’ जैसे शिगूफे छेड़ रखे थे.

‘इंडिया’ गठबंधन और ‘एनडीए’ के बीच यह पहला सीधा मुकाबला थाजिसका रोमांच किसी भी 20-20 क्रिकेट मैच जैसा ही था. इसका परिणाम ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में 4-3 से गया. एनडीए की अगुआ भाजपा को उत्तराखंड और त्रिपुरा की जिन 3सीटों पर विजय मिली भी, वे बहुत छोटे राज्य थे. इसके मुकाबले ‘इंडिया’ गठबंधन ने उत्तर प्रदेश, झारखंड, केरल, और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में चुनाव जीता. जहां की जीत के अलग माने हैं.

7 विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की घोसी में समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह, डुमरी झारखंड में जेएमएम की बेबी देवी, धनपुर और बक्सनगर त्रिपुरा में भाजपा के बिदूं देबनाथ और तफ्फजल हुसैन, बागेश्वर उत्ताखंड में भाजपा की पार्वती दास, पुथिपल्ली केरल में यूडीएफ के चांडी उम्मेन और धूपगुडी पश्चिम बंगाल में टीएससी के निर्मल चंद्र राय ने जीत हासिल की.

भारतीय जनता पार्टी दलबदल, सीबीआई और ईडी जैसे हथियारों से बारबार विपक्षी नेताओं को डराने का काम करती है. इन उपचुनावों ने भाजपा के इस डर को खत्म कर दिया है. पश्चिम बंगाल में धूपगुडी सीट भाजपा के कब्जे में थी. यहां विपक्ष का कोई साझा उम्मीदवार नहीं था. भाजपा और टीएमसी के साथ वामपंथी दलों ने कांग्रेस के समर्थन से अपना उम्मीदवार खड़ा किया था. ऐसे में विपक्ष की ताकत घटी हुई थी. इसके बाद भी जीत टीएमसी को मिली.

केरल में यूडीएफ के उम्मीदवार चांडी उम्मेन पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के बेटे हैं. वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उनके साथ पैदल चले थे. केरल में भाजपा का कोई प्रभाव नहीं है. इसके बाद भी चांडी उम्मेन को परेशान करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी कि जिससे चांडी उम्मेन डर जाएं. लेकिन वे डरे नहीं और अपने पिता से भी बड़ी जीत हासिल की. चांडी उम्मेन की ही तरह उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा ने भी साबित कर दिया कि डर के आगे जीत है.

उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट पर भाजपा ने सपा के विधायक दारा सिंह चौहानको तोड़ा, अपनी तरफ मिलाया और उनको विधानसभा का उपचुनाव लड़ा दिया. दारा सिंह को चुनाव जिताने के लिए अपने बुलडोजर मुख्यमंत्री, 2 डिप्टी सीएम, 2दर्जन मंत्री और सैकड़ों कार्यकर्ताओं को चुनावप्रचार में उतार दिया. इसके बाद जब फैसला आया तो भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा को न केवल हार मिली बल्कि उसके वोट भी कम हो गए जबकि उसके मुकाबले समाजवादी पार्टी को जीत भी मिली और उसके वोट भी बढ़ गए.

2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 86 हजार 210 वोट मिले थे. उपचुनाव में ये घटकर 81 हजार 623 रह गए जबकि समाजवादी पार्टी को 2022 में 1 लाख 8 हजार 431 वोट मिले थे जो उपचुनाव में बढ़ कर 1 लाख 24 हजार 295 हो गए. भाजपा के जो वोट घटे, वह यह बता रहाहै कि उस से हर जाति और धर्म का मोहभंग हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा की नीतियां है जो जनता को परेशान कर रही हैं. इनमें महंगाई, बेरोजगारी, जाति और धर्म की लड़ाई, तानाशाही, संविधान और सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग जैसे मसले प्रमुख हैं.

भाजपा का सवर्णो और ऊंची जातियों की पार्टी कहा जाता है. घोसी की सीट पर भाजपा ने ओबीसी नेता दारा सिंह चौहान को टिकट दिया था. वर कई बार विधायक और सांसद रह चुके हैं. यहां सपा ने ठाकुर वर्ग के सुधाकर सिंह को टिकट दिया था. सवर्ण ने भाजपा को नकार कर सपा को वोट दिया. सपा को मिले वोट बताते हैं कि हर जाति और धर्म के लोगों का वोट उसे मिला, इसकी सबसे बड़ी वजह भाजपा से उन की नाराजगी थी.

घोसी इस माने में भी अहम है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश में है. जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां योगी आदित्यनाथ का पहरा है. उनका पैर अंगद के पैर जैसा माना जा रहा है. भाजपा को लगता है कि उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव में उसको 80 में से 80सीटों पर जीत मिलेगी. घोसी ने प्रदेश के मूड को बता दिया है. यहां अंगद का पैर उखड़ सकता है और भाजपा की नाव डूब सकती है.

घोसी में ‘इंडिया’ गठबंधन का भी टैस्ट हो गया. गठबंधन की यूपी में अगुआ सपा ने चुनाव लड़ा. कांग्रेस और लोकदल ने समर्थन किया. नतीजा ‘इंडिया’ के पक्ष में गया. मायावती ने भी अपना दांव चल दिया. भाजपा को लग रहा था कि बसपा के चुनाव न लड़ने से दलित वोट भाजपा को चला जाएगा. मायावती ने अपने लोगों को यह संदेश दिया कि वे अपना वोट नोटा को दें. इसके बाद दलित वोट कम हुआ. घोसी के घमासान में कई दलों को अलगअलग संदेश मिल गएहैं, देखना है कौन किस तरह से इस संदेश को पढ़ता है.

इन चुनावों के बाद भाजपा के दलबदल, ईडी और सीबीआई का डर विपक्षी दलों के बीच से निकल गया है. जनता गुस्से में भी है और एकजुट भी है. यह आने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में उलटपलट करने वाले संकेत हैं. ‘मोदी, शाह और योगी’ की तिकड़ी की रणनीति फेल हो सकती है. इससे विपक्षी दलों में आत्मविश्वास भरा है.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव कहते हैं, ‘घोसी उपचुनाव में सपा और इंडिया गठबंधन प्रत्याशीकी जीत ने भाजपा के घमंड को तोड़ने के साथ 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणाम का संकेत भी दे दिया है. हमारी जीत सकारात्मक राजनीति की जीत और सांप्रदायिक नकारात्मक राजनीति की हार है.’

सरकार मस्त, ‘शिक्षा मौडल’ ध्वस्त

आजकल हर जगह जी-20 सम्मेलन की चर्चा है. दिल्ली दुलहन की तरह सजाई गई पर दिल्ली वालों के लिए 8 से 10 सितंबर के बीच लौकडाउन जैसे हालात रहे. स्कूल, दफ्तर, मौल, बाजार सहित कई चीजें ऐसी हैं जो इन दिनों बंद रहीं. 8 सितंबर को सुबह 5 बजे से 10 सितंबर को रात 11:59 बजे तक नई दिल्ली का पूरा क्षेत्र ‘नियंत्रित क्षेत्र-I’ माना गया, एक तरह का कर्फ्यू एरिया.

चलो, इतना बड़ा आयोजन है और अगर इस से देश को आगे बढ़ने में मदद मिलनी थी तो लोग यह सोच कर थोड़ीबहुत परेशानी झेल भी गए कि इस से नई पीढ़ी को रोजगार पाने के बेहतर अवसर मिलेंगे.

पर नई पीढ़ी किस हाल में है, यह जानने की फुरसत किस सत्ताधारी खादीधारी को है, यह नहीं दिखाई दे दिया. जी-20 सम्मेलन के ठाठ से अंगड़ाई लेती दिल्ली से राजस्थान के कोटा की दूरी तकरीबन 500 किलोमीटर है और वहां जो कोचिंग संस्थानों के या दूसरे तमाम होस्टलों के कमरों की छत पर लटके लेटैस्ट तकनीक से बने ‘ऐंटी सुसाइड फैन’ भी छात्रों को खुदकुशी करने से रोक नहीं पा रहे हैं, तो जान लीजिए कि दिल्ली के जी-20 सम्मेलन के सारे तामझाम फुजूल हैं.

रविवार, 27 अगस्त, 2023 को कोटा में 2 बच्चों ने पढ़ाई के बोझ तले दब कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली. एक बिहार के रोहतास जिले का लाड़ला आदर्श राज था तो दूसरा महाराष्ट्र के पिछड़े जिले लातूर का रहने वाला अविष्कार संभाजी कासले. पहला महज 18 साल का था और दूसरा तो अभी 16 साल का ही हुआ था.

चिट्ठी में छिपा दर्द

जान देने वाले एक छात्र की लिखी आखिरी चिट्ठी के अंश देखिए :

‘अभिनव मेरे भाई, तुम कभी कोटा न आना. मैं नहीं चाहता कि तुम भी मेरी तरह दिमागी रूप से परेशान हो जाओ. मैं यहां सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई करता हूं. अकेला हो गया हूं. मोबाइल है नहीं, तो कई दिनों से यह लैटर लिख रहा हूं. जब मौका मिल पाया था तब भेजा.

‘अभिनव, तुम पेंटिंग बनाओ. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करो. हो सकता है कि तुम को घर बैठे ही कहीं से और्डर आ जाएं. तुम बहुत बड़े आर्टिस्ट बन जाओ.

‘अंत में मांपापा, एक बात आप से बताना भूल गया. भूला नहीं शायद हिम्मत नहीं जुटा पाया. पिछले हफ्ते एक टैस्ट हुआ था, पापा. 50 मार्क्स का था. मैं 35 नंबर ला पाया, जो क्लास में सब से कम थे. सब के नंबर अच्छे थे. कोचिंग वाले बोले कि मार्कशीट घर जाएगी. शायद अब तक पोस्ट भी हो गई होगी, लेकिन उस से पहले मैं आप सभी से माफी मांग रहा हूं. मांपापा, आप का सपना अब अभिनव पूरा करेगा. मैं उस लायक नहीं बना.

‘अभिनव, तुम रोना नहीं. बस, यह सोच लेना भैया का सपना भी तुम को पूरा करना है.

‘अलविदा.’

राजस्थान के कोटा को आईआईटी और नीट के इम्तिहान को क्रैक करने का हब माना जाता है. यह अपनी पढ़ाई के लिए इतना ज्यादा मशहूर है कि ‘कोटा मौडल’ की चर्चा दुनियाभर में होती है. यही वजह है कि कोटा में हर साल उच्च शिक्षा की तैयारी करने के लिए आने वाले छात्रों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

साल 2021-22 में यहां 1,15,000 छात्र कोचिंग के लिए पहुंचे थे, तो वहीं 2022-23 में यह तादाद बढ़ कर 1,77,439 हो गई थी. साल 2023-24 में यह आंकड़ा 2,05,000 तक पहुंच गया है. कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री की कुल नैटवर्थ तकरीबन 5,000 करोड़ रुपए है. यहां 3,000 से ज्यादा होस्टल, 1,800 मैस और 25,000 पीजी कमरे हैं.

कहने का मतलब है कि कोटा में पढ़ाई के संसाधन इतने ज्यादा मजबूत हैं कि ‘कोटा मौडल’ अपनेआप में एक मिसाल बन गया है, जहां छात्रों के लिए शानदार कोचिंग सैंटर, पढ़ाने के लिए उम्दा टीचर, एक से बढ़ कर एक लाइब्रेरी, पढ़ने की लाजवाब सामग्री… और भी न जाने क्याक्या मुहैया है. इस सब से छात्रों को यह लगने लगता है कि जो कोटा से पढ़ लेगा वह डाक्टर या इंजीनियर तो बन ही जाएगा.

लेकिन इसी ‘कोटा मौडल’ का एक भयावह रूप भी है. इस साल वहां 24 छात्र पढ़ाई और मानसिक दबाव में अपनी जान दे चुके हैं. हालात इतने बदतर हो रहे हैं कि वहां कोचिंग संस्थानों और होस्टलों में ‘ऐंटी सुसाइड फैन’ लगाने के आदेश जारी होने के बाद भी रविवार, 27 अगस्त, 2023 को 4 घंटे के भीतर 2 छात्रों ने अपनी जान दे दी थी.

आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2015 में 17 छात्रों ने सुसाइड किया, जबकि साल 2016 में 16, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4 और 2022 में 15 छात्रों ने अपनी जान दे दी.

दरअसल, कोटा का एजुकेशन सिस्टम अब हर तरह से फेल होता नजर आ रहा है. यहां का मैनेजमैंट चरमरा गया लगता है और छात्रों को इनसान कम, फीस भरने का एटीएम ज्यादा समझा जाने लगा है.

कोटा के कोचिंग सिस्टम के अपने ही कायदे बने हुए हैं. वे 9वीं क्लास से ही आईआईटी और नीट के लिए कोर्स शुरू कर देते हैं. वहां एक साल में एक बच्चे के रहने का खर्च तकरीबन ढाई लाख रुपए के आसपास का है. एक से डेढ़ लाख रुपए कोचिंग की फीस है. इस के अलावा बच्चों के दूसरे तमाम खर्चे भी होते हैं. सबकुछ जोड़ कर देखें तो एक साल में एक बच्चे पर तकरीबन 4 लाख रुपए तक भी खर्च हो जाते हैं.

सरकार है कठघरे में

अभी हम ने जिस ‘कोटा मौडल’ का पोस्टमार्टम किया है, वहां सरकार से ज्यादा कोटा के कोचिंग संस्थान और बच्चों के मांबाप ही कुसूरवार नजर आ रहे हैं, पर इन हालात की जड़ में सरकार की वे योजनाएं हैं जो शिक्षा का व्यावसायीकरण करने की जिम्म्मेदार हैं. कोटा में बच्चों की मौत में गुनाहगार के तौर पर सरकार को कठघरे में खड़ा होना चाहिए था, पर उसे तो कोचिंग संस्थानों और मांबाप ने बाइज्जत बरी कर दिया है.

ऐसा नहीं है कि पहले देश में प्राइवेट शिक्षा का चलन नहीं था, पर अपने समय में कांग्रेस ने खूब सरकारी स्कूल और कालेज बनवाए थे. वहां शिक्षा का स्तर भी बहुत अच्छा था और अब भी है, पर पिछले कुछ वर्षों से देश में शिक्षा का जो निजीकरण हुआ है, उस से देश में एक असंतुलन सा बढ़ गया है.

आप भगवाई चश्मा पहन कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नीतियों में कितनी भी कमियां निकाल दीजिए, पर जिस तरह उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों और वहां की पढ़ाई का स्टैंडर्ड बढ़ाया है, वह तारीफ के काबिल है.

पर यह सफलता ऊंट के मुंह में जीरा है. कड़वी सचाई तो यह है कि शिक्षा अपनेआप में विभाजन पैदा करने का एक माध्यम बन गई है. एक अमीर मातापिता के बच्चे को अच्छी शिक्षा मिलेगी और गरीब मातापिता का बच्चा बुनियादी शिक्षा भी नहीं पा सकता है.

कोढ़ पर खाज यह है कि सरकार के बढ़ावे पर प्राइवेट स्कूलों, कालेजों, यूनिवर्सिटियों की देश में बाढ़ सी आ गई है और शिक्षण संस्थानों को चलाना एक लाभदायक व्यवसाय बन गया है. सरकारी शिक्षण संस्थानों में कम सीटें होती हैं तो मजबूरी के चलते छात्र प्राइवेट शिक्षा संस्थानों में दाखिला लेते हैं, जहां वे अपने लाभ के अनुसार छात्रों से फीस लेते हैं.

देश में हर साल 12वीं पास करने वाले छात्रों की तादाद 1 करोड़ से ज्यादा है. साल 2022 में 1 करोड़, 43 लाख बच्चे 12वीं के ऐग्जाम में बैठे थे और उन में से 1 करोड़, 24 लाख बच्चे पास हो गए थे. अब सरकार के पास क्या इन 1 करोड़, 24 लाख बच्चों को आगे मुफ्त या कम खर्च के हिसाब से पढ़ाई जारी रखने का इंफ्रास्ट्रक्चर है? नहीं है.

सरकारें इन बच्चों की बातें ही नहीं करती हैं, क्योंकि देश चलाने वाले अब बिलकुल नहीं चाहते कि ज्यादातर गरीब तबके के ये सब छात्र पढ़लिख कर अमीरों की बराबरी कर लें, इसलिए डाक्टरी की ऊंची पढ़ाई में सिर्फ 8,500 सीटें सरकारी मैडिकल कालेजों में हैं. प्राइवेट कालेजों में और 47,415 सीटें हैं, जिन में खर्च लाखों का है. इंजीनियरिंग कालेजों में सरकारी कालेजों की 15,53,809 सीटें हैं पर आईआईटी जैसे इंस्टीट्यूटों की सीटें मुश्किल से 10,000-12,000 हैं जहां फीस 10-15 लाख रुपए तक होती है.

आर्ट्स स्ट्रीम की बात करते हैं. मान लो किसी सरकारी कालेज में पूरे साल की फीस 15,000 रुपए है तो प्राइवेट कालेज में यह फीस एक लाख सालाना से भी ज्यादा हो सकती है. चूंकि ये संस्थान शहर से थोड़ा दूर होते हैं तो वहां होस्टल आदि में रहने का खर्च डेढ़ से 2 लाख रुपए सालाना तक पड़ जाता है. अगर कोई प्रोफैशनल कोर्स कर रहा है तो कम से कम 10 लाख से 15 लाख रुपए का खर्च आ सकता है. पर वहां की समस्या ही दूसरी है. वहां के ज्यादातर छात्र हिंदी लिखने में तकरीबन सिफर होते हैं और इंगलिश भी उन की माशाअल्लाह होती है.

सरकार की गलत नीतियों का असर है कि हर राज्य में जितने भी प्राइवेट शिक्षा संस्थान हैं, वे ज्यादातर नेताओं या उन के नातेरिश्तेदारों के हैं. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कई साल पहले एक मुद्दा उठाते हुए कहा था कि जनता को पता चलना चाहिए कि पूरे देश में कितने प्राइवेट स्कूल नेताओं के हैं और किनकिन स्कूलों के बोर्ड में नेता और अफसर हैं.

उन्होंने यह भी कहा था कि हम शिक्षा के निजीकरण को तो नहीं रोक सकते, लेकिन अगर हम इस के सामने सरकारी शिक्षा की क्वालिटी और उपलब्धता बेहतर कर दें तो यह अपनेआप कम होने लगेगा, यानी, अब हमें बड़ी लाइन खींचनी है. इस के लिए हमें जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी. स्कूल में, क्लास में क्वालिटी एजूकेशन का माहौल तैयार करना पड़ेगा.

मनीष सिसोदिया ने यह भी कहा था कि हमारे कई सरकारी स्कूलों में एकएक क्लासरूम में 100-100 बच्चों को बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ती है. हमें व्यवस्था करनी है कि हर क्लासरूम में ज्यादा से ज्यादा 40 बच्चे हों, तभी लोगों का भरोसा सरकारी स्कूलों के प्रति बढ़ेगा. और हम ऐसा कर रहे हैं. जब हम सरकारी स्कूलों के बच्चों के अंदर वही आत्मविश्वास भर पाएंगे जैसा आत्मविश्वास भरने का दावा प्राइवेट स्कूल वाले करते हैं, तब लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों की जगह सरकारी स्कूलों में भेजना शुरू करेंगे.

अगर भारत के संविधान की बात करें तो अनुच्‍छेद 21-क सरकार को निर्देशित करता है कि शिक्षा मौलिक अधिकार है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह राज्य में 6 से 14 वर्ष के आयु समूह में सभी बच्‍चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करे, जिस के लिए सरकार ने सरकारी स्कूल खुलवाए भी हैं. पर पिछले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बिगड़ गया है. शिक्षा माफिया ने राजनीतिक और सरकारी तंत्र से गठजोड़ कर नियोजित ढंग से सरकारी स्कूलों की कमर तोड़ दी है, ताकि इन की दुकान चलती रहे.

वर्तमान सरकार दावा करती है कि पिछले 9 साल में देश में सड़कों का जाल बिछ गया है, हाईवे ही हाईवे दिखाई देने लगे हैं, पर सवाल है कि उन पर चलेगा कौन? बड़ीबड़ी गाड़ियों  वाले ही न? पर उन साइकिल वालों का क्या होगा जो देश की रीढ़ की हड्डी हैं? वे जो कारखानों, मिलों और बड़ीबड़ी इंडस्ट्री में मेहनतकश हैं, क्या वे इन सड़कों से कोई फायदा ले पाएंगे? एकदम न के बराबर. अगर वे और उन के होशियार बच्चे डाक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखते हैं, तो इस में गलत क्या है? उन्हें सस्ती शिक्षा क्यों नहीं दे पाती है सरकार?

दरअसल, सरकार की नीयत ही नहीं है कि गरीब का बच्चा ऊंचे दर्जे का हाकिम बन जाए. भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तो एजेंडा ही यह है कि वंचित समाज ‘मंदिर बनाओ’ अभियान में ही बिजी रहे. वह उन का परमानैंट कारसेवक बन जाए, जिसे एक आवाज पर सड़क पर उतार दिया जाए बवाल मचाने के लिए. तभी तो जब जी-20 सम्मेलन हुआ,तब दिल्ली से आम आदमी नदारद हो गया और किसी नूंह दंगे जैसी साजिश रचने की जरूरत ही नहीं पड़ी.

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