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संदेशवाहक : शादी के बाद शिखा की जिंदगी में कैसे आया बदलाव?

नीरज से शिखा की शादी के समय महक अमेरिका गई हुई थी. जब वह लौटी, तब तक उन की शादी को 3 महीने बीत गए थे. अपनी सब से पक्की सहेली के आने की खुशी में शिखा ने अपने घर में एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया. शिखा ने पार्टी में नीरज के 3 खास दोस्तों और अपनी 3 पक्की सहेलियों को भी बुलाया.

जब करीब 9 बजे महक ने उन के ड्राइंगरूम में कदम रखा, तब तक सारे मेहमान आ चुके थे. शिखा और उस की सहेलियों के अलावा बाकी सब उस से पहली बार मिल रहे थे. उस पर पहली नजर डालते ही वे सब उस की सुंदरता देख कर मुग्ध हो उठे. ‘‘अति सुंदर’’, ये शब्द शिखा के पति नीरज के मुंह से निकले.

रवि, मोहित और विपिन की भी आंखें चमक उठीं और मुंह खुले के खुले रह गए. ‘‘शिखा, शादी कर के तो तू फिल्मी हीरोइन सी सुंदर हो गई है,’’ महक ने पहले शिखा को गले लगाया औैर फिर गोद में उठा कर 2 चक्कर भी लगा दिए.

फिर जब वह नीरज से भी गले लग कर मिली, तो शिखा ने उस के तीनों दोस्तों की आंखों में हैरानी के भावों को पैदा होते देखा. ‘‘जीजू, मसल्स तो बड़ी जबरदस्त बना रखी हैं,’’ महक ने बेहिचक नीरज के बाएं बाजू को दबाते हुए उस की तारीफ की, ‘‘लगता है तुम्हें भी मेरी तरह जिम जाने का शौक है. यू आर वैरी हैंडसम.’’

नीरज तो उसी पल से महक का फैन बन गया. उसे अपने सुंदर रंगरूप और मजबूत कदकाठी पर बहुत गुमान था. फिर महक रितु, गुंजन औैर नीमा से गले लग कर मिली. मोहित, रवि और विपिन से उस ने दोस्ताना अंदाज में हाथ मिलाया.

महक के पहुंचते ही पार्टी में जान पड़ गई थी. नीरज और उस के दोस्त उस की अदाओं के दीवाने हो गए थे. महक उन से यों खुल कर हंसबोल रही थी मानो उन्हें वर्षों से जानती हो. ‘‘बिना डांस के पार्टी में मजा नहीं आता,’’ उस के मुंह से इन शब्दों के निकलने की देर थी कि उन चारों ने फटाफट सोफा औैर मेज एक तरफ खिसका कर ड्राइंगरूम के बीच में डांस करने की जगह बना दी.

डांस कर रही महक का उत्साह देखते ही बनता था. उस ने नीरज और उस के तीनों दोस्तों के साथ जम कर डांस किया. ‘‘अरे, हम चारों भी इस पार्टी में शामिल हैं. हमारे साथ भी कोईर् खुशीखुशी डांस कर ले, यार,’’ गुंजन के इस मजाक पर सब ठहाका मार कर हंसे जरूर, पर उन चारों के आकर्षण का केंद्र तब भी महक ही बनी रही.

महक को किसी भी पुरुष का दिल जीतने की कला आती थी. उस की बड़ीबड़ी चंचल आंखों की चमक और दिलकश मुसकान में खो कर नीरज औैर उस के दोस्तों को समय बीतने का एहसास ही नहीं हो रहा था. ‘‘आज जीजू के पास हमारे लिए वक्त नहीं है. वैसे जब मिलते थे तो भंवरे की तरह हमारे इर्दगिर्द ही मंडराते रहते थे,’’ रितु की इस बात पर चारों सहेलियां खूब हंसीं.

‘‘आज मौका है, तो नीरज के बाकी दोस्तों से गपशप क्यों नहीं कर रही हो? ये अच्छे और काबिल लड़के फंसाने लायक हैं, सहेलियो,’’ शिखा ने उन्हें मजाकिया अंदाज में छेड़ा. ‘‘आज इन सब के पास महक के अलावा किसी और की तरफ देखने की फुरसत नहीं है,’’ अपनी बात कह कर नीमा ने ऐसा मुंह बनाया कि हंसतेहंसते उन सब के पेट में बल पड़ गए.

‘‘यह है वैसे हैरान करने वाली बात,’’ गुंजन ने सीरियस दिखने का नाटक किया, ‘‘महक से इन्हें कुछ नहीं मिलने वाला है, क्योंकि वह आज के बाद इन्हें भूल जाएगी और…’’ ‘‘किसी अगली पार्टी में होने वाली मुलाकात तक यह इन से कोई वास्ता नहीं रखेगी,’’ नीमा बोली.

‘‘हां, किसी अगली पार्टी में होने वाली मुलाकात में महक इन से फिर जम कर फ्लर्ट करेगी और पार्टी खत्म होते ही फिर इन्हें भुला देगी. लेकिन इन में से कोई भी इस के ऐसे व्यवहार से सबक नहीं सीखेगा. अगली मुलाकात होने पर ये फिर महक के इर्दगिर्द दुम हिलाते घूमने लगेंगे. है न यह हैरानी वाली बात?’’

‘‘और इधर हम इंतजार में खड़ी हैं,’’ नीमा ने नाटकीय अंदाज में गहरी सांस छोड़ी, ‘‘इन्हें अपना घर बसाना हो, तो हमारे पास आना चाहिए. इन के बच्चों की मम्मी बनने को हम तैयार हैं, पर इन बेवकूफों की दिलचस्पी हमेशा फ्लर्ट करने वाली महक जैसी औरतों में ही क्यों रहती है?’’

नीमा के अभिनय ने उस की सहेलियों को एक बार फिर जोर से हंसने पर मजबूर कर दिया. ‘‘शिखा, नीमा के इस सवाल का जवाब तू दे न. जीजू भी महक की तरह फ्लर्ट करने में ऐक्सपर्ट हैं. क्या तुझे उन की इस आदत पर कभी गुस्सा नहीं आता?’’ गुंजन ने मुसकराते हुए नीरज की शिकायत की.

‘‘मुझे तुम सब पर विश्वास है, इसीलिए मैं उन के तुम लोगों के साथ फ्लर्ट करने को अनदेखा करती हूं,’’ शिखा ने लापरवाही से कंधे उचकाते हुए जवाब दिया. ‘‘चल, हमारी बात तो अलग हो गई, लेकिन कल को जीजू किसी और फुलझड़ी के चक्कर में फंस गए, तब क्या करोगी?’’

‘‘मैं और नीरज उस फुलझड़ी का हुलिया बिगाड़ देंगे,’’ शिखा ने अपनी उंगलियां मोड़ कर पंजा बनाया और रितु का मुंह नोचने का अभिनय किया, तो उस बेचारी के मुंह से चीख ही निकल पड़़ी. ‘‘अब मैं चली खाना लगाने की तैयारी करने. तुम सब अपने जीजू और उन के दोस्तों को महक के रूपजाल से आजाद कराने की कोशिश करो,’’ शिखा हंसती हुई रसोईर्घर की तरफ बढ़ गई.

पार्र्टी का सारा खाना बाजार से आया था. सिर्फ बादामकिशमिश वाली खीर शिखा ने घर में बनाई थी. नीरज और उस के दोस्त महक का बहुत ज्यादा ध्यान रखे हुए थे. उस की प्लेट में कोईर् चीज खत्म होने से पहले ही इन के द्वारा पहुंचा दी जाती थी.

‘‘मुझे खीर नहीं आइसक्रीम खानी है,’’ खाना खत्म होने के बाद जब महक ने किसी बच्चे की तरह से मचलते हुए यह फरमाइश की, तो नीरज फौरन आइसक्रीम लाने को तैयार हो गया. ‘‘मुझे शाहजी की स्पैशल चौकोचिप्स खाने हैं,’’ महक ने उसे अपनी पसंद भी बता दी.‘‘यह शाहजी की दुकान कहां है?’’ नीरज बाहर जातेजाते ठिठक कर रुक गया.

‘‘मेरे फ्लैट के पास. किसी से भी पूछोगे, तो वह तुम्हें बता देगा.’’‘‘साली साहिबा, बहुत दूर जाना पड़ेगा पर तुम्हारी खातिर जरूर जाऊंगा. वैसे तुम गाइड बन कर मेरे साथ क्यों नहीं चलती हो?’’ ‘‘कैसे जाओगे?’’‘‘मोटरसाइकिल से.’’‘‘फास्ट ड्राइव करोगे?’’‘‘हवा से बातें करते चलूंगा.’’‘‘तो मैं चली जीजू के साथ बाइक राइड का आनंद लेने, दोस्तो,’’ महक खुशी से उछल कर खड़ी हुई और उन सब की तरफ हाथ हिलाने के बाद नीरज के साथ बाहर निकल गई.रास्ते में नीरज ने ऊंची आवाज में महक से कहा, ‘‘मेरा मन कौफी पीने को कर रहा है.’’

‘‘यहां कहीं अच्छी कौफी नहीं मिलती है,’’ महक उस के कान के पास मुंह ला कर चिल्लाई.‘‘तुम्हारे घर चलें?’’‘‘कौफी के चक्कर में ज्यादा देर हो जाएगी.’’‘‘तो हो जाने दो. कह देंगे कि पैट्रोल भरवाने चले गए थे और देर हो गई.’’महक ने कोई जवाब नहीं दिया, तो नीरज ने उस पर दबाव बनाया, ‘‘महक, मैं भी तो तुम्हारी आइसक्रीम खाने की फरमाइश को पूरा करने के लिए फौरन उठा खड़ा हुआ था. अब तुम भी 1 कप बढि़या कौफी पिला ही दो.’’

‘‘ठीक है,’’ महक का यह जवाब सुन कर नीरज के दिल की धड़कनें बढ़ती चली गईं.अपने फ्लैट में घुसते ही महक ने पहले किचन में जा कर कौफी के लिए पानी गरम होने को रखा और फिर बाथरूम में चली गई. उस के वहां से बाहर आने तक नीरज ने अपने मन की इच्छा पूरी करने की हिम्मत जुटा ली थी.

महक वापस रसोई घर में जाने लगी, तो नीरज उस का रास्ता रोक कर रोमांटिक लहजे में बोला, ‘‘तुम जैसी सुंदर और स्मार्ट लड़की के पीछे तो उस के चाहने वालों की लंबी लाइन होनी चाहिए. फिर मैं शिखा की इस बात को सच कैसे मान लूं कि तुम्हारा कोई प्रेमी नहीं है?’’‘‘जीजू, मेरे प्रेमी आतेजाते रहते हैं. मुझे शादी कभी नहीं करनी है, इसलिए स्थायी प्रेमी रखने का झंझट मैं नहीं पालती,’’ महक ने बेझिझक उस के सवाल का जवाब दे दिया.

‘‘क्या कभी इस बात से चिंतित नहीं होती हो कि जीवनसाथी के बिना भविष्य में खुद को कभी बहुत अकेली पाओगी?’’‘‘क्या अकेलेपन का एहसास जीवनसाथी पा लेने से खत्म हो जाता है, जीजू?’’‘‘शायद नहीं, पर जीवन में प्रेम के महत्त्व को तो तुम नकार नहीं सकती हो.’’

‘‘मेरा काम अस्थायी प्रेमियों से अच्छी तरह चल रहा है,’’ हंसती हुई महक रसोई में जाने लगी.नीरज ने अचानक उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘और पहली मुलाकात में प्रेम हो जाने के बारे में क्या कहती हो?’’‘‘यह खतरनाक बीमारी किसे लग गई है?’’ महक अजीब से अंदाज में मुसकराने लगी.

‘‘मुझे.’’‘‘तब इस सवाल का जवाब तुम्हें शिखा देगी, जीजू.’’‘‘उसे बीच में क्यों ला रही हो?’’‘‘क्योंकि वह मेरी बैस्ट फ्रैंड है, सर,’’ महक ने उस की आंखों में देखते हुए कुछ भावुक हो कर जवाब दिया.‘‘मैं भी तुम्हारा बैस्ट फ्रैंड बनना चाहता हूं,’’ नीरज ने अचानक उसे खींच कर अपनी बांहों के घेरे में कैद कर लिया.‘‘क्या मुझे पाने के लिए तुम शिखा को धोखा देने को तैयार हो?’’‘‘उसे हम कुछ पता ही नहीं लगने देंगे, स्वीटहार्ट.’’

‘‘पत्नियों को देरसवेर सब मालूम पड़ जाता है, जीजू.’’‘‘हम ऐसा नहीं होने देंगे.’’‘‘देखो, शिखा को पता लग ही गया न कि तुम उस की सहेली रितु के साथ 2 बार डिनर पर जा चुके हो और 1 फिल्म भी तुम दोनों ने साथसाथ देखी है. इस जानकारी को तो तुम शिखा तक पहुंचने से नहीं रोक पाए.’’

उस की बात सुन कर नीरज फौरन परेशान नजर आने लगा और उस ने महक को अपनी बांहों की कैद से आजाद कर दिया. उसे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि शिखा को उस के और रितु के बीच चल रहे अफेयर की जानकारी थी.‘‘न… न… सच को झुठलाने कीकोशिश मत करो, जीजू. जब तक मैं कौफी बना कर लाती हूं, तब तक ड्राइंगरूम में बैठ कर तुम इस नईजानकारी की रोशनी में पूरी स्थिति पर सोचविचार करो. अगर बाद में भी तुम्हारे मन में मेरा प्रेमी बनने की चाहत रही, तो हम इस बारे में चर्चा जरूर करेंगे,’’ महक ने मुसकराते हुए उसे ड्राइंगरूम की ओर धकेल दिया.

कुछ देर बाद महक ने थर्मस और ट्रे में रखे कपों के साथ ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, तो सोचविचार में डूबा नीरज चौंक कर सीधा बैठ गया.‘‘इतने सारे कप क्यों लाई हो?’’ उस के चेहरे का रंग उड़ गया.‘‘कौफी सब पिएंगे न, जीजू,’’ महक शरारती अंदाज में मुसकरा पड़ी.‘‘सब कौन?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त, शिखा और हम सहेलियां.’’‘‘वे यहां आ रहे हैं?’’‘‘मुझे नीमा ने फोन किया और जब मैं ने उसे बताया कि हम कौफी पीने जा रहे हैं, तो उन सब ने भी यहां आने का कार्यक्रम बना लिया. वे बस पहुंचने ही वाले होंगे.’’‘‘तुम ने मुझे फौरन क्यों नहीं बताई यह बात?’’ नीरज को गुस्सा आ गया.

‘‘उन सब का सामना करने से डर लग रहा है, जीजू? देखो, मैं तो बिलकुल सहज हूं,’’ महक की सहज मुसकान मानो नीरज का मजाक उड़ा रही थी.

‘‘तुम कुछ पागल हो क्या? तुम ने यह क्यों बताया कि हम यहां हैं? हम फौरन यहां से निकल कर आइसक्रीम लेते हुए घर लौट जाते. तुम ने बेकार के झंझट में फंसा दिया,’’ नीरज बहुत परेशान और चिंतित नजर आ रहा था.

‘‘मैं तुम्हारे डर को समझ सकती हूं, लेकिन मैं शिखा को समझा दूंगी कि…’’‘‘तुम्हारे समझाने से वह कुछ नहीं समझेगी, औरतों से हंसनेबोलने की मेरी आदत के कारण वह तो वैसे ही मुझ पर शक करती है. तुम्हें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए था, महक.’’

‘‘इतना ज्यादा परेशान क्यों हो रहे हो, जीजू? हम जैसे फ्लर्ट करने के शौकीनों को ऐसी परिस्थितियों से नहीं डरना चाहिए. जाल फेंकते रहने से कभी न कभी तो शिकार फंसेगा ही. वह शिकार रितु हो, मैं होऊं या कोईर् और इस से क्या फर्क पड़ता है? शिखा तुम्हें छोड़ कर तो जाने से रही. जस्ट रिलैक्स, जीजू.’’

‘‘शटअप, मैं यहां से जा रहा हूं और मुझ से तुम भविष्य में कोई वास्ता मत रखना.’’नीरज उठा और हैलमेट उठा कर दरवाजे की तरफ चल पड़ा.‘‘जीजू, प्लीज रुको. मेरे हाथ की बनाई कौफी तो पीते जाओ.’’‘‘भाड़ में जाए कौफी.’’‘‘जीजू, मैं दोनों कप नहीं पी सकूंगी.’’

‘‘दोनों कप?’’ नीरज ठिठक कर पलटा तो उस ने महक को थर्मस उलटा कर के हिलाते देखा. सिर्फ 2 कपों में कौफी नजर आ रही थी. बाकी सब खाली रखे हुए थे.

‘‘तुम ने सिर्फ 2 कप कौफी बनाई है?’’ वह अचंभित नजर आ रहा था.‘‘हां जीजू, इस लाडली साली ने अपने जीजू से जो छोटा सा मजाक किया है, उस का बुरा मत मानना,’’ महक शरारती अंदाज में मुसकरा रही थी.‘‘यह छोटा मजाक था? मैं तुम्हारा गला घोंट दूंगा,’’ नीरज ने नाटकीय अंदाज में दांत पीसे.‘‘वैसा करने से पहले एक वादा तो कर लो, जीजू.’’‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि शिखा का सामना करने की बात सोच कर कुछ देर पहले तुम्हें जिस डर, चिंता और शर्मिंदगी के एहसास ने जकड़ा था, उसे तुम आजीवन याद रखोगे.’’‘‘बिलकुल याद रखूंगा, साली साहिबा. तुम ने तो आज मेरी जान ही निकाल दी थी,’’ निढाल सा नीरज सोफे पर बैठ गया.

‘‘मेरी जिंदगी में तो कोई जीवनसाथी आएगा ही नहीं, पर जीवनसाथी के होते हुए भी उस के दिल से दूर होने की पीड़ा तुम कभी नहीं भोगना चाहते हो, तो आज की रात का सबक न भूलना.’’‘‘शिखा की तरफ से एक संदेश मैं तुम्हें दे रही हूं. उसे पहले से अंदाजा था कि तुम मुझे अपने चक्कर में फंसाने की कोशिश जरूर करोगे. उस ने कहलवाया है कि वह तुम्हारी फ्लर्ट करने की आदत को तो बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अगर तुम ने किसी दूसरी औरत से सचमुच संबंध बनाने की मूर्खता भविष्य में कभी की, तो तुम उसे हमेशा के लिए खो दोगे.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद नीरज ने संजीदा स्वर में पूछा, ‘‘क्या हमारे यहां आने की बात तुम शिखा को बताओगी?’’‘‘तुम ही बताओ कि उसे बताऊं या नहीं?’’‘‘बता ही देना, नहीं तो मेरा संदेश उस तक कैसे पहुंचेगा.’’‘‘तुम भी मुझे अपना संदेशवाहक बना रहे हो? वाह,’’ महक हंस पड़ी.

‘‘शिखा से कह देना कि मैं उस के विश्वास को कभी नहीं तोड़ूंगा.’’‘‘वैरी गुड, जीजू,’’ महक खुश हो गई, ‘‘तुम्हारे इस फैसले का स्वागत हम कौफी पी कर करते हैं,’’ महक ने नीरज के हाथ में कौफी का कप पकड़ा दिया.‘‘चीयर्स फौर युअर हैप्पी होम,’’ महक की इस शुभकामना ने नीरज के चेहरे को फूल सा खिला दिया था.

Salman Khan की फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ के डायरेक्टर सिद्दीकी की हुई मौत, बॉलीवुड इंडस्ट्री को लगा झटका

Bodyguard Director Siddique Dies : बॉलीवुड एक्टर सलमान खान (Salman Khan) की फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ (Bodyguard) के निर्देशक सिद्दीकी (Siddique) का निधन हो गया है. 69 साल की उम्र में फेमस मलयालम डायरेक्टर ने दुनिया को अलविदा कह दिया. सिद्दीकी की मौत से मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ बॉलीवुड इंडस्ट्री को भी बड़ा झटका लगा है. फैंस सहित सेलेब्स भी सिद्दीकी की मौत से काफी दुखी हैं. हालांकि इस बीच श्रद्धांजलि देने का सिलसिला भी शुरु हो गया है. सिद्दीकी को साउथ से लेकर बॉलीवुड तक सभी बड़े स्टार्स श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

लिवर की समस्या से परेशान थे सिद्दीकी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते दिन सिद्दीकी को कार्डिएक अरेस्ट आया था, जिसके बाद उन्हें आनन-फानन में कोच्चि के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जहां उनकी हालात लगातार बिगड़ रही थी. इसके बाद उन्हें ईसीएमओ पर रखा गया, लेकिन मंगलवार को उनका (Bodyguard Director Siddique Dies) निधन हो गया. आपको बता दें कि सिद्दीकी को लिवर से जुड़ी समस्या थी. साथ ही उनका निमोनिया का भी इलाज चल रहा था.

सिनेमा को कई सुपरहिट फिल्में दी हैं सिद्दीकी ने

आपको बता दें कि सिद्दीकी ने अपने करियर की शुरुआत साल 1983 में आई फिल्म ‘फासिल’ में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर की थी. इसके बाद उन्होंने मलयालम सिनेमा को एक से बढ़कर एक कई सुपरहिट फिल्में दीं. हालांकि मलयालम के अलावा सिद्दीकी (Bodyguard Director Siddique Dies) ने हिंदी, तमिल और तेलुगू भाषाओं में आई कई फिल्मों का भी निर्देशन किया है.

उन्होंने सलमान खान (Salman Khan) और करीना कपूर की फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ को भी डायरेक्ट किया था, जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई थी.

गुनाह की राह में दो प्रेमी

सौरभ रस्तोगी अपनी पत्नी शैली के साथ बरेली के फतेहगंज (पश्चिमी) थाना क्षेत्र के माली मोहल्ले में रहता था. उस का अपना मकान था, जिस के निचले तल पर उन की सोनेचांदी की ज्वैलरी की दुकान थी. ऊपरी तल पर उस का निवास था.

सौरभ का नौकर विनोद फतेहगंज से लगभग 2 किलोमीटर दूर खिरका गांव में रहता था. वह काम कर के रोजाना अपने घर चला जाता था. 3 मई की सुबह 9 बजे विनोद सौरभ रस्तोगी के घर पहुंचा और सड़क पर खड़े हो कर उस ने सौरभ को कई आवाज लगाई. लेकिन ऊपर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. जबकि रोजाना उस की आवाज सुनते ही सौरभ बाहर झांकता और उसे देख कर दुकान खोलने के लिए चाबियां नीचे फेंक देता.

दुकान के बराबर से ही ऊपर जाने के लिए सीढि़यां थीं, जिस में आगे की ओर चैनल लगा था और उस के पीछे शटर. शटर और चैनल दोनों हमेशा अंदर से बंद रहते थे. शटर को थोड़ा खुला देख विनोद आश्चर्य में पड़ गया. क्योंकि सौरभ अगर सामने की दुकान पर चाय पीने भी जाता था तो शटर लौक कर के जाता था.

विनोद ने सौरभ के बारे में पड़ोस में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. उस ने संदेह वाली बात पड़ोसी को बताई तो उस ने ऊपर जा कर देखने को कहा. विनोद पूरा शटर खोल कर सीढि़यों के रास्ते प्रथम तल से होते हुए जब दूसरे तल पर पहुंचा तो सौरभ को हाथपैर बंधे हुए पड़े पाया. उसे उस हालत में देख कर ही लग रहा था कि वह जीवित नहीं है. विनोद घबरा कर उल्टे पैर वापस लौट आया.

नीचे आ कर उस ने पड़ोसी को पूरी बात बताई. उस की बात सुन कर जरा सी देर में पासपड़ोस के लोग एकत्र हो गए. पुलिस चौकी पास ही थी. विनोद ने इस मामले की सूचना पुलिस चौकी में दे दी. चौकी से अविलंब थाना फतेहगंज (पश्चिमी) को सूचना भेज दी गई.

15 मिनट में ही थाने के इंसपेक्टर देवेश सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस मकान के दूसरे तल पर पहुंची तो घर का सारा सामान बिखरा पड़ा मिला. सौरभ की हत्या कर दी गई थी और उस की लाश बेड पर पड़ी थी. उस की कनपटी पर गोली लगने का निशान था, साथ ही गरदन पर भी घाव था. लग रहा था, जैसे गोली कनपटी पर लगने के बाद गरदन से होती हुई बाहर निकली हो. गरदन पर किसी तेज धारदार चीज से काटे जाने का भी निशान था और गला कसे जाने के निशान भी साफ नजर आ रहे थे. इस का मतलब हत्यारे सौरभ को किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.

इंसपेक्टर देवेश सिंह ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में बरेली के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ और सीओ मीरगंज मनोज कुमार पांडेय भी फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट्स की टीम के साथ वहां पहुंच गए. एक्सपर्ट की टीम घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने में लग गई. टीम द्वारा अपना काम कर लिए जाने के बाद अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

करीब 20 गज के प्लौट में बने उस मकान के प्रथम तल पर किचन और बाथरूम के अलावा एक दीवान पड़ा था. यहीं पर सौरभ की दुकान का लौकर था, जिस में वह ग्राहकों द्वारा गिरवी रखे जाने वाले गहने और पैसा रखता था. दूसरे तल पर बना कमरा सौरभ का बेडरूम था. जबकि तीसरे व अंतिम तल पर टौयलेट था.

जिस बेडरूम में सौरभ की हत्या की गई थी, वह काफी कम जगह में बना था. एक बेड और एक टेबल के अलावा वहां एक अलमारी रखी थी. इतने सामान से ही पूरा कमरा भरा था. कमरे में रखी अलमारी खुली पड़ी थी और उस का सामान बाहर निकला पड़ा था. अलमारी का लौकर खुला था और बिलकुल खाली था. अलमारी और लौकर के लौक टूटे हुए थे. कमरे में टूटी हुई चूडि़यां पड़ी थीं. कांच का गिलास भी मेज के पास टूटा पड़ा था. गिलास के कांच का एक टुकड़ा खून से सना हुआ था. सौरभ का गला शायद उसी कांच से काटा गया था. सीढि़यों पर चाबी के कई गुच्छे पड़े मिले थे.

इसी बीच सूचना पा कर बरेली से सौरभ के पिता सुनील रस्तोगी व अन्य घर वाले आ गए. उन से पूछताछ करने पर पता चला कि गत दिवस 2 मई को सौरभ अकेला था. उस की पत्नी शैली 2 मई की सुबह नोएडा चली गई थी. उस दिन शुक्रवार होने की वजह से बाजार की साप्ताहिक छुट्टी थी. सुबह पत्नी को टे्रन में बैठाने के बाद सौरभ अपनी नानी की अंत्येष्टि में बछला गया था. उस की नानी की मौत भी 2 मई की सुबह हुई थी. नानी की अंत्येष्टि में वह गया तो था, लेकिन घर वालों के रोकने के बावजूद जल्दी चला आया था.

घटनास्थल के मुआयने और पूछताछ के बाद यह नतीजा निकला कि इस घटना को पुख्ता योजना बना कर अंजाम दिया गया था. हत्यारों कोे यह बात अच्छी तरह पता थी कि सौरभ घर पर अकेला है, उस की पत्नी शैली बाहर गई हुई है. इसीलिए घटना को अंजाम देने के लिए 2 मई की रात चुनी गई.

हालात बता रहे थे कि घर के अंदर दाखिल होने वाले को सौरभ अच्छी तरह जानता था. क्योंकि कोई भी व्यक्ति बाहर से घर के अंदर तब तक प्रवेश नहीं कर सकता था, जब तक अंदर मौजूद शख्स ताला न खोले. बाहर से ताला खोलना किसी भी तरह संभव नहीं था. सीढि़यों के पास शटर लगा था, जिस में अंदर से ताला पड़ा हुआ था. फिर सीढि़यां चढ़ने के बाद एक दरवाजा था, वह भी अंदर से बंद रहता था.

अगर किसी ने दरवाजा तोड़ने का प्रयास किया होता तो निशान जरूर मिलते. दरवाजों पर लगी कुंडियां सहीसलामत थीं. इस का मतलब था कि सौरभ ने ही अपने किसी परिचित को देख कर दरवाजे खोले होंगे और उसे ऊपर ले गया होगा. रात 9 बजे सौरभ ने विनोद को फोन कर के बुलाया था, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से वह नहीं आ सका था. इस के बाद ही किसी समय सौरभ की हत्या की गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने गहन जांचपड़ताल करने के बाद करीब एक बजे सौरभ की लाश पोस्टमार्टम के लिए बरेली स्थित मोर्चरी भेज दी. मौके पर मिले सौरभ के मोबाइल को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. घटनास्थल से पुलिस ने 2 बुलेट भी बरामद किए.

उधर सौरभ की पत्नी शैली को पति की मौत की खबर मिली तो वह देर शाम दिल्ली से वापस आ गई.

सौरभ के पिता सुनील रस्तोगी की लिखित तहरीर पर इंसपेक्टर देवेश सिंह ने अज्ञात लोगों के विरुद्ध भादंवि की धारा 394 और 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने सौरभ के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना वाली रात उस ने अंतिम काल अपनी पत्नी शैली को की थी. उस से पहले उस ने 9 बजे विनोद से बात की थी. इन दोनों काल से पहले सौरभ की बात एक अनजान नंबर पर भी हुई थी. उस नंबर पर उस दिन भी और उस के पहले दिन भी कईकई बार देर तक बातें की गई थीं.

इंसपेक्टर देवेश सिंह ने उस नंबर के बारे में विनोद से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह नंबर बरेली के थाना बहेड़ी के अंतर्गत आने वाले गांव जुआ जवाहरपुर की रहने वाली पूजा शर्मा का था. विनोद उस के बारे में इसलिए जानता था, क्योंकि सौरभ ने उसे भेज कर कई बार पूजा का मोबाइल रिचार्ज कराया था. इस से पुलिस को यह मामला अवैध संबंधों का लगा.

पुलिस ने पूजा के घर पर गिरफ्तारी के लिए दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिली. पता चला कि वह 19 अप्रैल को अपने प्रेमी राकेश गंगवार के साथ भाग गई थी. राकेश पड़ोस के गांव मोहम्मदपुर का रहने वाला था.

राकेश और पूजा का एक साथ भागना और पूजा का सौरभ से बराबर बात करना, इस बात की ओर इशारा करता था कि संभवत: उन दोनों ने ही मिल कर सौरभ की हत्या कर के लूट को अंजाम दिया था.

पुलिस ने उन्हें शीघ्र गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सुरागरसी पर लगा दिया. 7 मई की दोपहर को एक मुखबिर से इंसपेक्टर देवेश सिंह को सूचना मिली कि पूजा अपने प्रेमी राकेश के साथ इज्जत नगर रेलवे स्टेशन पर खड़ी है. यह खबर मिलते ही उन्होंने तुरंत वहां जा कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाने ला कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने सारा सच उगल दिया.

पूजा थाना बहेड़ी क्षेत्र के गांव जुआ जवाहरपुर निवासी रामवीर की बेटी थी. रामवीर खेतीकिसानी का काम करता था. उस का अपनी पत्नी कमला से अकसर वादविवाद होता रहता था, जोकि कभीकभी भयंकर रूप अख्तियार कर लेता था.

वादविवाद का कारण था कमला का महत्त्वाकांक्षी होना. उसे अपनी चादर के हिसाब से पैर पसारना नहीं आता था. उस के हाथ में जितना पैसा आता था, वह घर की जिम्मेदारियों के बजाय फिजूल के कामों में खर्च कर देती थी. 3 बच्चों की मां होने के बावजूद कमला को बनसंवर कर रहना पसंद था. इसी वजह से उस के खरचे ज्यादा बढ़े हुए थे. उस की फिजूलखर्ची को ले कर पतिपत्नी में प्राय: रोज झगड़ा होता था.

इस सब से तंग आ कर रामवीर ने कमला को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह अपने बच्चों के साथ अपने मायके बरेली के ही गांव मोहम्मदपुर आ गई. लेकिन जवान बेटी को घर में बैठे देख कुछ ही दिनों में मांबाप को चिंता होने लगी. उन्होंने किसी तरह दौड़भाग कर के उस की शादी जुआ जवाहरपुर के सेवानिवृत्त फौजी भूपराम शर्मा से कर दी. भूपराम सेवानिवृत्ति के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेतीबाड़ी करते थे. शादी के बाद कमला बच्चों के साथ अपनी इस ससुराल में रहने लगी.

समय के साथ कमला की बेटी पूजा जवान हो गई. वह बरेली के विशाल कन्या डिग्री कालेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. पूजा अपनी मां कमला से इसलिए नाराज रहती थी, क्योंकि उस ने दूसरा विवाह कर लिया था. इसी बात को ले कर मांबेटी में अकसर झगड़ा हो जाता था. कमला अपनी झगड़ालू बेटी से कम ही बोलती थी. पूजा के उग्र स्वभाव से कमला काफी डरती थी.

पूजा भी अपनी मां पर गई थी. उस के भी काफी ऊंचे ख्वाब थे, जिन्हें पूरा करने के लिए वह सहीगलत के चक्कर में भी नहीं पड़ना चाहती थी. ऐसी बातों में उस का दिमाग भी काफी तेज दौड़ता था.

पूजा अपनी ननिहाल मोहम्मदपुर जाती रहती थी. एक दिन वहीं पर उस की मुलाकात राकेश कुमार गंगवार से हुई. राकेश के पिता होरीलाल भी किसान थे. उस की 2 बड़ी बहनों का विवाह हो चुका था. राकेश उन दिनों बरेली कालेज में बीए द्वितीय वर्ष (प्राइवेट) की पढ़ाई कर रहा था. इस के अलावा वह पार्ट टाइम नौकरी भी करता था. राकेश का पूजा की ननिहाल में आनाजाना था. दोनों ने बीए के फार्म भी साथसाथ भरे थे.

पूजा के ननिहाल में रहते राकेश का आनाजाना बढ़ गया था. जब भी वह आता, उस की नजरें पूजा पर ही टिकी रहतीं. पूजा नासमझ तो थी नहीं कि उस की नजरों को नहीं पढ़ पाती. वह उस के दिल की बात बखूबी समझती थी. मोहब्बत का बीज जब दोनों ओर अंकुरित हो जाए तो एकदूसरे के करीब आने में वक्त नहीं लगता. धीरेधीरे पूजा राकेश से खुलती चली गई. वक्त के साथ दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर लिया. इस के बाद दोनों छिपछिपा कर एकदूसरे से मिलने लगे. जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का सपना लिए दोनों ने जल्दी ही अपने बीच की सारी दूरियां भी मिटा दीं.

राकेश और पूजा जहां प्यार के रास्ते पर बेफिक्र हो कर तेजी से आगे बढ़ रहे थे, वहीं उन दोनों के प्यार की बात गांव वालों से छिपी न रह सकी. जल्दी ही इस बारे में दोनों के घर वालों को भी पता चल गया.

राकेश और पूजा के प्यार के किस्से सुनसुन कर दोनों के परिजन तंग आ गए थे. इसी के मद्देनजर राकेश के घर वालों ने उस का रिश्ता बरेली के नवाबगंज कस्बे के एक सभ्रांत परिवार में तय कर दिया. वहीं पूजा के पिता भूपराम ने भी बेटी की शादी मीरगंज थाना क्षेत्र के गांव धनेली में पक्की कर दी.

इस से पूजा को अपने अरमान और ख्वाब बिखरते नजर आए. वह राकेश पर गांव छोड़ कर भागने का दबाव बनाने लगी. लेकिन राकेश इस के लिए तैयार नहीं था. इस पर पूजा ने उसे बलात्कार के आरोप में जेल भिजवाने की धमकी दी, तो उसे पूजा की बात माननी पड़ी.

20 अप्रैल, 2014 को पूजा की शादी होनी थी. लेकिन उस से पहले ही 19 अप्रैल को वह राकेश के साथ गांव से भाग गई. राकेश पूजा को ले कर अपने मामा ओमप्रकाश के घर जा पहुंचा, जो बरेली के थाना देवरनिया क्षेत्र के गांव जमुनिया में रहते थे.

वहीं पर दोनों ने विवाह कर लिया. लेकिन विवाह के बाद की जिंदगी की अच्छी शुरुआत के लिए पैसों की जरूरत थी. पूजा ने इस के लिए पहले से ही एक योजना बना रखी थी. उस ने अपनी योजना राकेश को बताई तो उसे पूजा की योजना अच्छी लगी. उस ने पूजा से वादा किया कि वह इस योजना में उस का हर तरह से साथ निभाएगा.

सुनील रस्तोगी बरेली स्थित फतेहगंज (पश्चिमी) के माली मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के मकान के निचले तल पर उस की ज्वैलरी शौप थी. अच्छी जगह दुकान होने की वजह से ग्राहक भी खूब आते थे. ज्वैलरी बेचने के अलावा सुनील गिरवीगांठ का भी काम करता था. उस के यहां आने वाले ग्राहकों की कोई कमी नहीं थी.

सुनील के परिवार में उस की पत्नी सीमा, एक बेटा सौरभ और 2 बेटियां वर्षा और दीपिका थीं. उन्होंने बेटियों के विवाह कर दिए थे. चार साल पहले सौरभ का विवाह भी बरेली के कस्बा सिरौली के मोहल्ला सीपरी निवासी शैली से हो गया था. उन दिनों सौरभ पिता के साथ दुकान पर बैठता था.

2 साल पहले सौरभ की मां का देहांत हो गया तो कुछ ही महीने बाद सौरभ के पिता सुनील ने दूसरा विवाह करने की ठान ली. इस विवाह का सौरभ व शैली के अलावा अन्य घर वालों ने भी काफी विरोध किया, लेकिन सुनील नहीं माने.

उन्होंने अखबारों में विवाह हेतु विज्ञापन दे दिया. जल्द ही मीरजापुर जनपद से उन के लिए एक विधवा महिला का रिश्ता आ गया. उस का एक बच्चा भी था. तमाम विरोधों के बाद सुनील ने विवाह कर लिया और घर से अलग हो कर उस महिला के साथ बरेली शहर स्थित किला थाना क्षेत्र के कूंचा मोहल्ले में रहने लगे.

पिता के बरेली जाने के बाद दुकान की पूरी जिम्मेदारी सौरभ पर आ गई. कह सकते हैं कि वह दुकान उसी की हो गई. पूजा की दूर के रिश्ते की एक नानी थी, जो सौरभ की दुकान पर अकसर खरीदारी करने जाती रहती थी. वह चूंकि काफी पुरानी ग्राहक थी, इसलिए सौरभ उस का खास ख्याल रखता था. एक बार पूजा भी अपनी नानी के साथ सौरभ की दुकान पर गई. नानी ने उस का परिचय सौरभ से करा कर कहा कि कभी यह कुछ खरीदने आए तो उसे उचित दाम पर ही ज्वैलरी दे देना.

पहली ही मुलाकात में सौरभ पूजा के दिमाग में चढ़ गया. वह अकसर उस की दुकान पर जाने लगी. एक दिन वह शाम के वक्त सौरभ की दुकान पर पहुंची तो वह दुकान बंद कर रहा था. सौरभ उसे ऊपर अपने मकान में ले गया और अपनी पत्नी शैली से मिलवाया.

बेडरूम में बिठा कर उस ने शैली से अपनी ज्वैलरी पूजा को दिखाने को कहा, जो उस ने हाल में ही बनवाई थी. दरअसल सौरभ सोच रहा था कि शैली की ज्वैलरी देख कर शायद पूजा को डिजाइन पसंद आ जाएं और वह वैसे ही डिजाइन की ज्वैलरी बनवाने का मन बना ले.

शैली एक अजनबी लड़की के सामने अपनी अलमारी खोल कर ज्वैलरी नहीं दिखाना चाहती थी, लेकिन सौरभ के कहने पर उसे बात माननी पड़ी. शैली की ज्वैलरी देख कर पूजा की आंखें चुंधिया गईं. ज्वैलरी के वजन और कीमत की सोच कर उस के मन में लालच आ गया.

उस दिन पूजा वहां से वापस तो लौट आई, लेकिन उस की आंखों के सामने वहीं ज्वैलरी नाचती रही. इस के बाद उस ने सौरभ से मुलाकातें बढ़ा दीं. मुलाकातें बढ़ी तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद दोनों की बातें होने लगीं.

पूजा को अपनी तरफ खिंचता देख सौरभ खुश था. उस का भी मन बहक गया. धीरेधीरे स्थिति यह आ गई कि सौरभ अपने नौकर विनोद को भेज कर पूजा का मोबाइल भी रिचार्ज कराने लगा.

राकेश के साथ भागने और शादी करने के बाद जब अच्छी जिंदगी के लिए पैसे की जरूरत महसूस हुई तो पूजा ने राकेश के साथ मिल कर सौरभ को लूटने की योजना बना ली.

इस के लिए उस ने मर्दों की कमजोरी वाला रास्ता अख्तियार किया. वह सौरभ से खुल कर प्रेम भरी बातें करने लगी. एक साथ तन्हा समय बिताने की बात हुई तो सौरभ ने मौके की तलाश शुरू कर दी.

सौरभ की पत्नी शैली की बच्चेदानी पर कुछ चर्बी थी, जिस वजह से गर्भ नहीं ठहर पा रहा था. उस का इलाज नोएडा के नीलकंठ अस्पताल में चल रहा था. डाक्टर गर्भाशय की चर्बी औपरेशन के जरिए हटाने की बात कर रहे थे. शैली को उसी औपरेशन के लिए नोएडा जाना था.

सौरभ को पूजा से एकांत में मिलने के लिए यह सही मौका लगा. इस के लिए उसे ऐसा इंतजाम करना था कि उसे शैली के साथ न जाना पड़े. इस के लिए उस ने काम का बहाना बना कर शैली को अपने नौकर जंगबहादुर की पत्नी के साथ नोएडा जाने के लिए मना लिया.

25 अप्रैल को शैली के जाने की योजना बन गई. सौरभ ने पूजा को फोन कर के उस से घर पर मिलने की बात भी बता दी, लेकिन ऐन वक्त पर किसी वजह से उस दिन शैली का जाना स्थगित हो गया. इस वजह से उस दिन सौरभ और पूजा नहीं मिल पाए.

2 मई को सुबह सौरभ शैली को नौकर की पत्नी के साथ ले कर बरेली जंक्शन गया और साढ़े 6 बजे दिल्ली जाने वाली आला हजरत एक्सप्रेस से उसे दिल्ली भेज दिया, वहां से उसे नोएडा जाना था. पत्नी को भेजने के बाद सौरभ ने 8 बजे सुबह फोन कर के पूजा को मिलने के लिए बुला लिया.

उस दिन शुक्रवार था और शुक्रवार को मार्केट की साप्ताहिक छुट्टी रहती थी, इसलिए उस दिन दुकान खोलने की भी मजबूरी नहीं थी. प्रोग्राम के हिसाब से सब कुछ ठीक था, लेकिन तभी सौरभ को नानी की मौत का समाचार मिला. मजबूरी थी, इसलिए न चाहते हुए उसे बेमन से कछला जाना पड़ा, जहां उस की नानी की अंत्येष्टि होनी थी.

वहां पर भी पूजा ने उसे 3-4 बार फोन किया. पूजा से एकांत में मिलने की तमन्ना सौरभ के सिर चढ़ कर बोल रही थी. अंत्येष्टि के बाद जब वह जाने लगा तो घर वालों और रिश्तेदारों ने उसे रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुका.

शाम लगभग साढ़े 6 बजे तक वह अपने घर पहुंच गया. उस ने घर पहुंचने की खबर पूजा को दे दी. इस के बाद पूजा राकेश के साथ बाइक पर बैठ कर सौरभ के घर के लिए चल दी. बाइक राकेश के मामा ओमप्रकाश की थी.

रात 8 बजे वह सौरभ के मकान से कुछ दूरी पर उतर गई और सौरभ के घर की तरफ चल दी. राकेश वहीं मार्केट में घूमने लगा. इसी बीच उस ने शराब पी और वहीं पास के एक बैंक्वेट हौल में हो रहे वैवाहिक समारोह में जा कर खाना खाया.

नशे की हालत में उस ने बाइक एक स्थानीय पत्रकार अनवार खान की बाइक से भिड़ा दी. इस पर दोनों में काफी बहस हुई. राकेश अपनी बाइक वहीं खड़ी कर के वहां से चला गया. पत्रकार अनवार खान ने फतेहगंज (पश्चिमी) थाने को सूचना दी, जिस के बाद थाने से सिपाही वहां पहुंचे और राकेश की क्षतिग्रस्त बाइक को उठवा कर थाने ले गए.

दूसरी ओर पूजा सौरभ के घर पहुंची तो सौरभ ने खुद आ कर शटर खोला और उसे अपने साथ दूसरी मंजिल पर बने अपने बेडरूम में ले गया. कुछ देर दोनों के बीच बातें होती रहीं.

फिर सौरभ 2 गिलास और फ्रिज से फू्रटी की बोतल निकाल कर ले लाया. उस ने फू्रटी मेज पर रख दी. पूजा फू्रटी की बोतल उठा कर दोनों गिलासों में पलटने लगी. इसी बीच सौरभ टौप फ्लोर पर टौयलेट चला गया. पूजा ने मौके का फायदा उठा कर अपने पर्स में रखे ‘एटीवान’ की 2 टैबलेट का पिसा पाउडर निकाला और सौरभ के गिलास में डाल कर मिला दिया.

जब सौरभ टौयलेट से वापस आया तो पूजा ने एक गिलास उसे दे कर दूसरा गिलास अपने होंठों से लगा लिया और सिप करने लगी. सौरभ फ्रूटी पीते हुए टीवी खोल कर उस पर प्रोग्राम सेट करने लगा. करीब 20 मिनट बाद सौरभ बेहोश हो कर बेड पर लुढ़क गया. सौरभ के बेहोश होते ही पूजा ने राकेश को फोन कर के आने को कह दिया.

लगभग 11 बजे राकेश आया तो पूजा उसे शटर उठा कर अंदर ले आई. आने के बाद राकेश सौरभ को होश में लाने की कोशिश करने लगा. वह होश में आया तो राकेश ने 315 बोर का तमंचा तान कर सौरभ को पेट के बल लेटने की हिदायत दी. डर कर सौरभ पेट के बल लेट गया.

पूजा ने सौरभ के हाथ पीठ की तरफ ला कर अपने दुपट्टे से बांध दिए. साथ ही उस ने सौरभ के पैर भी उस की शर्ट से बांध दिए. इस के बाद राकेश ने अलमारी की चाबी मांगी तो सौरभ ने देने से इनकार कर दिया. इस पर राकेश ने उसे डराने के लिए तमंचे से एक हवाई फायर किया. उस ने एक बार फिर चाबी मांगी, लेकिन सौरभ ने चाबी देने से फिर मना कर दिया.

इस पर राकेश को गुस्सा आ गया और उस ने सौरभ की कनपटी पर तमंचे की नाल रख कर गोली मार दी जो कि गर्दन के पार होते हुए बाहर निकल गई. सौरभ ने उठने की कोशिश की, लेकिन हाथपैर बंधे होने के कारण वह गिर पड़ा. जिस से मेज पर रखा फू्रटी का गिलास टूट गया. उसी गिलास के टूटे कांच से राकेश ने सौरभ की गर्दन काटी. उस के बाद उस ने बेल्ट से उस का गला कस दिया, जिस से सौरभ की मौत हो गई.

सौरभ को मौत के घाट उतार कर राकेश और पूजा ने अलमारी का लौक तोड़ा और उस के अंदर बनी छोटी तिजोरी का लौक भी तोड़ कर उस में रखी 650 ग्राम ज्वैलरी और लगभग 4 हजार रुपए निकाल लिए.

यह सब करतेकरते रात का एक बज गया था. काम हो गया तो दोनों वहां से निकल आए. राकेश ने बाहर आ कर अपनी बाइक ढूंढ़ी, लेकिन बाइक नहीं मिली. बाइक सिपाही थाने ले गए थे. राकेश ने बैंक्वेट हौल के बाहर खड़ी एक बाइक में अपनी चाबी लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. उसी बाइक पर बैठ कर दोनों वहां से निकल गए.

राकेश के बहनबहनोई बरेली के भोजीपुरा थाने के चौपारा गांव में रहते थे. राकेश पूजा को साथ ले कर रात 3 बजे अपनी बहन के घर पहुंच गया. 2 दिन दोनों वहीं रुके. इसी बीच राकेश ने अपने घर जा कर लूटी गई ज्वैलरी और रुपए भैसों के बाड़े में चारा रखने वाली नांद के नीचे जमीन में छिपा दिए. लूट का माल ठिकाने लगा कर वह अपनी बहन के घर आ गया. फिर 5 मई को दोनों नैनीताल चले गए.

7 मई को दोनों वापस बरेली आए. इज्जतनगर रेलवे स्टेशन से वे बाहर आ कर खड़े ही हुए थे कि फतेहगंज (पश्चिमी) थाने के इंस्पेक्टर देवेश सिंह ने अपनी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने राकेश की निशानदेही पर चुराई गई साढ़े 6 सौ ग्राम ज्वैलरी और 4 हजार रुपए भी बरामद कर लिए. हत्या में प्रयुक्त बाइक पुलिस पहले ही बरामद कर चुकी थी. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

पूजा और राकेश गंगवार एकदूसरे को प्यार करते थे, यह गलत नहीं था. दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली, इसे भी गलत नहीं कहा जा सकता. लेकिन अपने प्यार को मंजिल देने के लिए जब वे गुनाह के रास्ते पर उतर गए तो अंजाम बुरा ही होना था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लगाम रहित सोशल प्लेटफौर्म

सोशल मीडिया प्लेटफौर्मों में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुक यूट्यूब और ट्विटर के बाद अब फेसबुक की कंपनी से ट्विटर जैसा थ्रैड्स भी जुड़ गया है. सोशल मीडिया आज मुख्य मीडिया से ज्यादा महत्त्व का हो गया है. मुसीबत यह है कि इन सब का कोई संपादक नहीं है, कोई यह नहीं देख रहा है कि लोग जो फौरवर्ड कर रहे हैं या लिख रहे हैं वह मतलब का है या नहीं, भ्रामक है या नहीं, झूठा है या सच्चा, उकसाता है या थोड़ा मनोरंजन करता है आदिआदि.

दरअसल, सोशल मीडिया सुलभ है, हाथ में ले कर एकदूसरे से बात करने के लिए बने मोबाइल पर यह मिल रहा है, इसलिए इसे जम कर देखा जा रहा है. वहीं, इस पर बकवास करने वालों की भीड़ इतनी बड़ी हो गई है कि सही व समझदारी की बात ढूंढना मुश्किल हो गया है.

दुनिया की सारी सरकारें आज सोशल मीडिया से भयभीत हैं क्योंकि इस ने चौराहों पर होने वाली गपों को एक क्षेत्र तक सीमित न रख कर दुनियाभर में फैला दिया है. इस से जहां सरकारों की पोल खोली जा रही है वहीं सरकारों के समर्थक जम कर अपना प्रचार कर रहे हैं और आमजन सरकारी झूठ को सच मानने लगे हैं.

जो काम कभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के लेखक-संपादक बड़ी गंभीरता और जिम्मेदारी से करते थे वही चीज आज नौसिखिए बिना आगेपीछा सोचे पोस्ट कर रहे हैं. सरकारों को उन मैसेजों की तो चिंता है जो सत्ता में बैठे नेताओं और जनता की परेशानियों पर खरीखोटी सुनाएं पर जो उन की झूठी बड़ाई करें या फालतू के लोगों के स्वास्थ्य, चमत्कारी उपायों, डरावने व घिनौने वीडियो पोस्ट करें उन की कोई चिंता नहीं है.

मार्क जुकरबर्ग का थैड्स एलन मस्क के ट्विंटर को नुकसान पहुंचा कर दोनों का बंटाधार कर दे, तो अच्छा है वरना सोशल मीडिया उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां यह सिर्फ लोगों को परियों की कहानियों सुनाने वाला रह गया है और उन्हें लगातार मानसिक दीवालिया बना रहा है. शातिर लोग पैसा बनाने या सिर्फ चख लेने के लिए जो बात सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, वे तर्क, तथ्य, विवेक से दूर हैं. वे लोगों की सोचनेसमझने की शक्ति को कुंद कर रही हैं.

इन पर कंट्रोल करना सरकार का काम नहीं है, लोगों का खुद का है. यदि समाज के समझदारी और विशेषज्ञों की जानकारी चाहिए तो सोशल मीडिया कभी काम का नहीं हो सकता क्योंकि इस में कौन सा तथ्य कहां से आया, कभी पता नहीं चल सकता. बाजार में मजमा लगा कर झूठी कहानियों के बल पर मर्दानगी की दवाएं बेचने वालों से भी बदतर है यह क्योंकि वहां एक शक्ल तो होती है. सोशल मीडिया पर न पता है, न सूरत है, न स्रोत है. लोग, बस, इस से भ्रमित हुए चले जा रहे हैं.

सोशल मीडिया से लाभ हो रहा है तो टैक्नोलौजी देने वाले प्लेटफौर्मों को, जो मनचाहे मुनाफे विज्ञापनों से कमा रहे हैं. लोग इन विज्ञापनों से भी वैसे ही बहकाए जा रहे हैं जैसे अपने धर्मगुरुओं और नेताओं के चमत्कारों के माध्यम से बहकाए जाते हैं.

कैक्टस के फूल : क्या विजय और सुषमा हमसफर बन पाए?

फोन आने की खबर पर सुषमा हड़बड़ी में पलंग से उठी और उमाजी के क्वार्टर की ओर लंबे डग भरती हुई चल पड़ी. कैक्टस के फूलों की कतार पार कर के वह लौन में कुरसी पर बैठी उमाजी के पास पहुंच गई.

‘‘तुम्हारे कजिन का फोन आया है, वह शाम को 7 बजे आ रहा है. उस के साथ कोई और भी आ रहा है इसलिए कमरे को जरा ठीकठाक कर लेना,’’ उमाजी के चेहरे पर मुसकराहट आ गई.

उमाजी के चेहरे पर आज जो मुसकराहट थी, उस में कुछ बदलाव, सहजता और सरलता भी थी. उमाजी तेज स्वर में बोली, ‘‘आज कोई अच्छी साड़ी भी पहन लेना. सलवारकुरता नहीं चलेगा.’’

बोझिल मन के साथ वह कब अपने रूम में पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला. एक बार तो मन में आया कि वह तैयार हो जाए, फिर सोचा कि अभी से तैयार होने से क्या फायदा? आखिर विजय ही तो आ रहा है.

कई महीने पहले की बात है, उस दिन सुबह वाली शटल टे्रन छूट जाने के बाद पीछे आ रही सत्याग्रह ऐक्सप्रैस को पकड़ना पड़ा था. चैकिंग होने की वजह से डेली पेसैंजर जनरल बोगी में लदे हुए थे. वह ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रही थी तभी टे्रन चल पड़ी. गेट पर खड़े विजय ने उस का हाथ पकड़ कर उसे गेट से अंदर किया था. उस ने कनखियों से विजय को देखा था. सांवले चेहरे पर बड़ीबड़ी भावुक आंखों ने उसे आकर्षित कर लिया था.

उस के बाद वह अकसर विजय के साथ ही औफिस तक की यात्रा पूरी करती. विजय राजनीति, साहित्य और फिल्मों पर अकसर बहस व गलत परंपराओं और कुरीतियों के प्रति नाराजगी प्रकट करता. विजय मेकअप से पुती औरतों पर अकसर कमैंट करता. इस बात पर वह सड़क पर ही उस से झगड़ा करती और फिर विजय के हावभाव देखती.

एक दिन सुबह ही वह उमाजी के क्वार्टर पर पहुंची और उन से फिरोजाबाद से मंगाई चूडि़यां मांगने लगी थी. ‘मैडम, आप ने कहा था कि रंगीन चूडि़यां तो आप पहनती नहीं हैं, आप के पास कई पैकेट आए थे, उन में से एक…’

‘अरे, तुझे चूडि़यों की कैसे याद आई? तू तो कहती थी कि साहब के सामने डिक्टेशन लेने में चूडि़यां बहुत ज्यादा खनकती हैं. एकदो पैकेट तो मैं ने आया मां की लड़की को दे दिए हैं, वह ससुराल जा रही थी पर तुझे भी एक पैकेट दे देती हूं.’

एक दिन उमाजी ने सुषमा से मुसकराते हुए पूछा, ‘तुम्हारे जिस कजिन का फोन आता है, उस से तुम्हारा क्या रिश्ता है?’

वह एकदम हड़बड़ा सी गई. उस ने अपने को संयत करते हुए कहा, ‘अशोक कालोनी में मेरे दूर के रिश्ते की आंटी हैं, उन का बेटा है.’

‘सीधा है, बेचारा,’ उमाजी मुसकराईं.

‘क्या मतलब आंटी? कैसे? मैं समझी नहीं,’ उस ने अनजान बनने की कोशिश की.

‘मैं ने फोन पर उस से तेज आवाज में पूछ लिया कि आप सुषमा से बात तो करना चाहते हैं पर बोल कौन रहे हैं, तो वह हड़बड़ा कर बोला, ‘मैं विजय सरीन बोल रहा हूं, मैं बहुत देर तक सोचती रही कि सरीन सुषमा गुप्ता का कजिन कैसे हो सकता है.’

‘ओह आंटी, आप को तो सीबीआई में होना चाहिए था. एक होस्टल वार्डन का पद तो आप के लिए बहुत छोटा है.’

उमाजी सुषमा में आए परिवर्तन को अच्छी तरह समझने लगी थीं. वे बेटी की तरह उसे प्यार करती थीं.

मुरादाबाद में सांप्रदायिक दंगे होने के कारण टे्रनों में भीड़ नहीं थी. एक दिन विजय उसे पेसैंजर टे्रन में मिल गया था. कौर्नर की सीट पर वह और विजय आमनेसामने थे. हलकी बूंदाबांदी होने से बाहर की तरफ फैली हरियाली मन को अधिक लुभा रही थी. सुषमा भी बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी.

‘आज तुम्हें देख कर करीना कपूर की याद ताजा हो रही है,’ विजय ने उस को देख कर कहा. उसे लगा कि विजय ने शब्द नहीं चमेली के फूल बिखेर दिए हों. उस ने एक नजर विजय की ओर डाली तो वह दोनों हाथ खिड़की से बाहर निकाल कर बरसात की बूंदों को अपनी हथेलियों में समेट रहा था.

वह उस से कहना चाहती थी कि विजय, तुम्हें एकपल देखने के लिए मैं कितनी रहती हूं. तुम से मिलने की खातिर बेचैन अलीगढ़, कानपुर, इलाहाबाद शटल को छोड़ कर सर्कुलर से औफिस जाती हूं और देर से पहुंचने के कारण बौस की झिड़की भी खाती हूं.

अकसर विजय उस से मिलने होस्टल भी आ जाता था. उसे भी रविवार और छुट्टी के दिन उस का बेसब्री से इंतजार रहता था. अकसर रूटीन में वह रविवार को ही कमरा साफ करती थी, पर जब उसे मालूम होता कि विजय आ रहा है तो विशेष तैयारी करती. अपने लिए वह इतनी आलसी हो जाती थी कि मौर्निंग टी भी स्टेशन पहुंच कर टी स्टौल पर पीती. विजय के जाने के बाद जो सलाइस बच जाती उन्हें भी नहीं खाती. उसे या तो चूहे खा जाते या फिर माली के लड़के को दे देती, जिन्हें वह दूध में डाल कर बड़े चाव से खाता.

एक दिन विजय ने सुषमा के सारे सपने तोड़ दिए थे. डगमगाते कदमों से वह रूम तक आया और ब्रीफकेस को पटक कर पलंग पर लेट गया. शराब की दुर्गंध पूरे कमरे में फैल गई थी. उस ने उठ कर दरवाजे पर पड़ा परदा हटा दिया था.

उसे आज विजय से डर सा लगा था, जबकि वह उस के साथ नाइट शो में फिल्म देख कर भी आती रही है.

‘सुषमा, तुम जैसी खूबसूरत और होशियार लड़की को अपना बनाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. उस दिन ट्रेन में पहले मैं चढ़ा था, मैं जानता था कि चलती टे्रन में चढ़ने के लिए तुम्हें सहारे की जरूरत होगी. उस दिन तुम्हें सहारा दे कर मैं ने आज तुम्हें अपने पास पाया,’ विजय ने लड़खड़ाती जबान से बोला.

उस ने सोचा था कि अपने सपनों को भरने के लिए उस ने गलत रंगों का इस्तेमाल कर लिया है. उस का चुनाव गलत साबित हुआ है. उस दिन सुषमा एक लाश बनी विजय को देखती रही थी. चौकीदार की सहायता से उस की मोटरसाइकिल को अंदर खड़ा करवा कर उसे ओटो से उस के घर के बाहर तक छोड़ आई थी. सुबह विजय चुपके से चौकीदार से मोटरसाइकिल मांग कर ले गया था.

अगले दिन उमाजी ने सुषमा को एक माह के अंदर होस्टल खाली करने का नोटिस दे दिया था. वह नोटिस ले कर मिसेज शर्मा के पास गई और उन के गले लग कर फफकफफक कर रो पड़ी थी. उमाजी ने नोटिस फाड़ दिया था.

विजय से मिलने में उस की कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी. उस ने अब लेडीज कंपार्टमैंट में आनाजाना शुरू कर दिया था. अगर वह स्टेशन पर मिल भी जाता तो हल्का सा मुसकरा कर हैलो कह देती. उस का सुबह उठने से ले कर रात सोने तक का कार्यक्रम एक ढर्रे पर चलने लगा था.

सुषमा की नीरसता से भरी दिनचर्या उमाजी से देखी नहीं गई. एक दिन उमाजी ने उसे चाय पर बुलाया, ‘सुषमा, नारी विमर्श और नारी अधिकारों की चर्चाएं बहुत हैं पर आज भी समाज में पुरुषों का डोमिनेशन है. इसलिए बहुत कुछ इग्नोर करना पड़ता है और तू कुछ ज्यादा ही भावुक है. अपनी जिंदगी को प्रैक्टिकल बना कर खुश रहना सीखो.

‘शराब को ले कर ही तो तुम्हारे अंकल से मैं लड़ी थी. 2 दिन बाद ही एक विमान दुर्घटना में उन की मौत हो गई. आज भी उस बात का मुझे दुख है.’

अचानक स्मृतियों की शृंखला टूट गई. सुषमा ने देखा कि गेट पर उमाजी खड़ी थीं. उन के हाथ में रात में खिले कैक्टस के फूल के साथ ही पिंक कलर की एक साड़ी थी.

‘‘आंटीजी, आप ने मुझे बुला लिया होता,’’ सुषमा को पता है कि पिंक कलर विजय को पसंद है.

‘‘जाओ, इस साड़ी को पहन लो.’’

साड़ी पहन कर जैसे ही सुषमा कमरे में आई तो उसे उमाजी के साथ एक और भद्र महिला दिखीं. उमाजी ने परिचय कराया, ‘‘यह तुम्हारे कजिन विजय की मम्मी हैं.’’

‘‘सुषमा, मेरा बेटा बहुत नादान है. तुम तो बहुत समझदार हो. उस के लिए तुम से मैं माफी मांगने आई हूं. तुम दोनों की स्मृतियों के हर पल को मैं ने महसूस किया, क्योंकि तुम्हारे से हुई हर मुलाकात का ब्योरा वह मुझे देता था. जिस रात तुम ने उसे घर तक छोड़ा है, उस रात वह मेरे गले लग कर बहुत रोया था. तुम उस के जीवन में एक नया परिवर्तन ले कर आई हो,’’ विजय की मम्मी ने सुषमा के चेहरे से नजरें हटा कर उमाजी की ओर डालीं, ‘‘उमाजी ने तुम तक पहुंचने में हमारी बहुत मदद की है. मैं तुम्हें अपनी बहू बनाना चाहती हूं, क्योंकि मेरे बेटे के उदास जीवन में अब तुम ही रंग भर सकती हो. यह साड़ी में उसी की पसंद की तुम्हारे लिए लाई हूं.’’

‘‘सुषमा, हर बेटी को विदा करने का एक समय आता है. विजय ने तुम्हें एक अंगूठी दी थी, तुम ने उसे कहीं खो तो नहीं दिया है.’’

‘‘नहीं आंटी, वह ट्रंक में कहीं नीचे पड़ी है,’’ सुषमा ने ट्रंक खोल कर अंगूठी निकाली तथा सड़क की ओर खुलने वाली खिड़की को खोल दिया.

सुषमा ने देखा, बाहर मोटरसाइकिल पर विजय बैठा था. उमाजी और विजय की मम्मी ने एकसाथ आवाज दी, ‘‘विजय, ऊपर आ जा. इस अंगूठी को तो तू ही पहनाएगा,’’ सुषमा को लगा जैसे उस के सपने इंद्रधनुषी हो गए हैं.

नाक का प्रश्न : संगीता ने संदीप को कौन सा बहाना दिया?

डाकिए से पत्र प्राप्त होते ही संगीता उसे पढ़ने लगी. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस की भृकुटियां तन गईं.

पास ही बैठे संगीता के पति संदीप ने पूछा, ‘‘किस का पत्र है?’’

संगीता ने बुरा मुंह बनाते हुए उत्तर दिया, ‘‘तुम्हारे भाई, कपिल का.’’

‘‘क्या खबर है?’’

‘‘उस ने तुम्हारी नाक काट दी.’’

‘‘मेरी नाक काट दी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तुम्हारे भाई ने नए मौडल की नई कार खरीद ली है और उस ने तुम्हें पचमढ़ी चलने का निमंत्रण दिया है.’’

‘‘तो इस में मेरी नाक कैसे कट गई?’’

‘‘तो क्या बढ़ गई?’’ संगीता ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा.

संदीप ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘इस में क्या शक है? घर में अब 2 कारें हो गईं.’’

‘‘तुम्हारी खटारा, पुरानी और कपिल की चमचमाती नई कार,’’ संगीता ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा.

संदीप ने पहले की तरह ही शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘बिलकुल. दोनों जब साथसाथ दौड़ेंगी, तब लोग देखते रह जाएंगे.’’

‘‘तब भी तुम्हारी नाक नहीं कटेगी?’’ संगीता ने खीजभरे स्वर में पूछा.

‘‘क्यों कटेगी?’’ संदीप ने मासूमियत से कहा, ‘‘दोनों हैं तो एक ही घर की?’’

संगीता ने पत्र मेज पर फेंकते हुए रोष भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारी बुद्धि को हो क्या गया है?’’

संगीता के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय संदीप अपने भाई का पत्र पढ़ने लगा. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उधर संगीता की पेशानी पर बल पड़ गए.

पत्र पूरा पढ़ने के बाद संदीप चहका, ‘‘कपिल ने बहुत अच्छा प्रोग्राम बनाया है. बूआजी के यहां का विवाह निबटते ही दूल्हादुलहन के साथ सभी पचमढ़ी चलेंगे. मजा आ जाएगा. इन दिनों पचमढ़ी का शबाब निराला ही रहता है. 2 कारों में नहीं बने तो एक जीप और…’’

संगीता ने बात काटते हुए खिन्न स्वर में कहा, ‘‘मैं पचमढ़ी नहीं जाऊंगी. तुम भले ही जाना.’’

‘‘तुम क्यों नहीं जाओगी?’’ संदीप ने कुतूहल से पूछा.

‘‘सबकुछ जानते हुए भी…फुजूल में पूछ कर मेरा खून मत जलाओ,’’ संगीता ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.

संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम अपना खून मत जलाओ, उसे बढ़ाओ. चमचमाती कार में बैठ कर पचमढ़ी में घूमोगी तो खून बढ़ जाएगा.’’

‘‘मेरा खून ऐसे नहीं बढ़ेगा.’’

‘‘तो फिर कैसे बढ़ेगा?’’

‘‘अपनी खुद की नए मौडल की कार में बैठने पर ही मेरा खून…’’

‘‘वह कार क्या हमारी नहीं है?’’ संदीप ने बात काटते हुए पूछा.

संगीता ने खिन्न स्वर में उत्तर दिया, ‘‘तो तुम बढ़ाओ अपना खून.’’

‘‘हां, मैं तो बढ़ाऊंगा.’’

इसी तरह की नोकझोंक संगीता एवं संदीप में आएदिन होने लगी. संगीता नाक के प्रश्न का हवाला देती हुई आग्रह करने लगी, ‘‘अपनी खटारा कार बेच दो और कपिल की तरह चमचमाती नई कार ले लो.’’

संदीप अपनी आर्थिक स्थिति का रोना रोते हुए कहने लगा, ‘‘कहां से ले लूं? तुम्हें पता ही है…यह पुरानी कार ही हम ने कितनी कठिनाई से ली थी?’’

‘‘सब पता है, मगर अब कुछ भी कर के नहले पर दहला मार ही दो. कपिल की नाक काटे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा.’’

‘‘उस की ऊपर की आमदनी है. वह रोजरोज नईनई चीजें ले सकता है. फिलहाल हम उस की बराबरी नहीं कर सकते, बाद में देखेंगे.’’

‘‘बाद की बाद में देखेंगे. अभी तो उन की नाक काटो.’’

‘‘यह मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘तो मैं बूआजी के यहां शादी में भी नहीं जाऊंगी.’’

‘‘पचमढ़ी भले ही मत जाना, बूआजी के यहां शादी में जाने में क्या हर्ज है?’’

‘‘किस नाक से जाऊं?’’

‘‘इसी नाक से जाओ.’’

‘‘कहा तो, कि यह तो कट गई. कपिल ने काट दी.’’

‘‘यह तुम्हारी फुजूल की बात है. मन को इस तरह छोटा मत करो. कपिल कोई गैर नहीं है, तुम्हारा सगा देवर है.’’

‘‘देवर है इसीलिए तो नाक कटी. दूसरा कोई नई कार खरीदता तो न कटती.’

‘‘तुम्हारी नाक भी सच में अजीब ही है. जब देखो, तब कट जाती है,’’ संदीप ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

बूआजी की बिटिया के विवाह की तिथि ज्योंज्यों नजदीक आने लगी त्योंत्यों नई कार के लिए संगीता का ग्रह बढ़ने लगा. वह संदीप को सचेत करने लगी, ‘‘देखो, मैं नई कार के बिना सच में नहीं जाऊंगी बूआजी के यहां. मेरी बात को हंसी मत समझना.’’

ऐसी चेतावनी पर संदीप का पारा चढ़ जाता. वह झल्ला कर कहता, ‘‘नई कार को तुम ने बच्चों का खेल समझ रखा है क्या? पूरी रकम गांठ में होने पर भी कार हाथोंहाथ थोड़े ही मिलती है.’’

‘‘पता है मुझे.’

‘‘बस, फिर फुजूल की जिद मत करो.’’

‘‘अपनी नाक रखने के लिए जिद तो करूंगी.’’

‘‘मगर जरा सोचो तो, यह जिद कैसे पूरी होगी? सोचसमझ कर बोला करो, बच्चों की तरह नहीं.’’

‘‘यह बच्चों जैसी बात है?’’

‘‘और नहीं तो क्या है? कपिल ने नई कार ले ली. तो तुम भी नई कार के सपने देखने लगीं. कल वह हैलिकौप्टर ले लेगा तो तुम…’’

‘‘तब मैं भी हैलिकौप्टर की जिद करूंगी.’’

‘‘ऐसी जिद मुझ से पूरी नहीं होगी.’’

‘‘जो पूरी हो सकती है, उसे तो पूरी करो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यही कि नई कार नहीं तो उस की बुकिंग तो करा दो ताकि मैं नातेरिश्ते में मुंह दिखाने लायक हो जाऊं.’’

कपिल की तनी हुई भृकुटियां ढीली पड़ गईं. उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. वह बोला, ‘‘तुम सच में अजीब औरत हो.’’

संगीता ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘हर पत्नी अजीब होती है. उस के पति की नाक ही उस की नाक होती है. इसीलिए पति की नाक पर आई आंच वह सहन नहीं कर पाती. उस की यही आकांक्षा रहती है कि उस के पति की नाक ऊंची रहे, ताकि वह भी सिर ऊंचा कर के चल सके. इस में उस का स्वार्थ नहीं होता. वह अपने पति की प्रतिष्ठा के लिए ही मरी जाती है. तुम पत्नी की इस मानसिकता को समझो.’’

संगीता के इस कथन से संदीप प्रभावित हुआ. इस कथन के व्यापक संदर्भों ने उसे सोचने पर विवश किया. उस के भीतर गुदगुदी सी उठने लगी. नाक के प्रश्न से जुड़ी पत्नी की यह मानसिकता उसे बड़ी मधुर लगी.

इसी के परिणामस्वरूप संदीप ने नई कार की बुकिंग कराने का निर्णय मन ही मन ले लिया. उस ने सोचा कि वह भले ही उक्त कार भविष्य में न खरीद पाए, किंतु अभी तो वह अपनी पत्नी का मन रखेगा

संगीता को संदीप के मन की थाह मिल न पाई थी. इसीलिए वह बूआजी की बिटिया के विवाह के संदर्भ में चिंतित हो उठी. कुल गिनेगिनाए दिन ही अब शेष रह गए थे. उस का मन वहां जाने को हो भी रहा था और नाक का खयाल कर जाने में शर्म सी महसूस हो रही थी.

बूआजी के यहां जाने के एक रोज पूर्व तक संदीप इस मामले में तटस्थ सा बने रहने का अभिनय करता रहा एवं संगीता की चुनौती की अनसुनी सी करता रहा. तब संगीता अपने हृदय के द्वंद्व को व्यक्त किए बिना न रह सकी. उस ने रोंआसे स्वर में संदीप से पूछा, ‘‘तुम्हें मेरी नाक की कोई चिंता नहीं है?’’

‘‘चिंता है, तभी तो तुम्हारी बात मान रहा हूं. तुम अपनी नाक ले कर यहां रहो. मैं बच्चों को अपनी पुरानी खटारा कार में ले कर चला जाऊंगा. वहां सभी से बहाना कर दूंगा कि संगीता अस्वस्थ है,’’ संदीप ने नकली सौजन्य से कहा.

‘‘तुम शादी के बाद पचमढ़ी भी जाओगे?’’ संगीता ने भर्राए स्वर में पूछा.

‘‘अवश्य जाऊंगा. बच्चों को अपने चाचा की नई कार में बैठाऊंगा. तुम नहीं जाना चाहतीं तो यहीं रुको और यहीं अपनी नाक संभालो.’’

संगीता भीतर ही भीतर घुटती रही. कुछ देर की चुप्पी के बाद उस ने विचलित स्वर में पूछा, ‘‘बूआजी बुरा तो नहीं मानेंगी?’

‘‘बुरा तो शायद मानेंगी? तुम उन की लाड़ली जो हो.’’

‘‘इसीलिए तो..?’’

संदीप ने संगीता के इस अंतर्द्वंद्व का मन ही मन आनंद लेते हुए जाहिर में संजीदगी से कहा, ‘‘तो तुम भी चली चलो?’’

‘‘कैसे चलूं? कपिल ने राह रोक दी है.’’

‘‘हमारी तरह नाक की चिंता छोड़ दो.’’

‘‘नाक की चिंता छोड़ने की सलाह देने लगे, मेरी बात रखने की सुध नहीं आई?’’

‘‘सुध तो आई, मगर सामर्थ्य नहीं है.’’

‘‘चलो, रहने दो. बुकिंग की सामर्थ्य तो थी? मगर तुम्हें मेरी नाक की चिंता हो तब न?’’

‘‘तुम्हारी नाक का तो मैं दीवाना हूं. इस सुघड़, सुडौल नाक के आकर्षण ने ही…’’

संगीता ने बात काटते हुए किंचित झल्लाहटभरे स्वर में कहा, ‘‘बस, बातें बनाना आता है तुम को. मेरी नाक की ऐसी ही परवा होती तो मेरी बात मान लेते.’’

‘‘मानने को तो अभी मान लूं. मगर गड्ढे में पैसे डालने का क्या अर्थ है? नई का खरीदना हमारे वश की बात नहीं है.’’

‘‘वे पैसे गड्ढे में न जाते. वे तो बढ़ते और मेरी नाक भी रह जाती.’

‘‘तुम्हारी इस खयाली नाक ने मेरी नाक में दम कर रखा है. यह जरा में कट जाती है, जरा में बढ़ जाती है.’

इस मजाक से कुपित हो कर संगीता ने रोषभरे स्वर में कहा, ‘‘भाड़ में जाने दो मेरी नाक को. तुम मजे से नातेरिश्ते में जाओ, पचमढ़ी में सैरसपाटे करो, मेरी जान जलाओ.’’

इतना कहतेकहते वह फूटफूट कर रो पड़ी. संदीप ने अपनी जेब में से नई कार की बुकिंग की परची निकाल कर संगीता की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘रोओ मत, यह लो.’’

संगीता ने रोतेरोते पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘तुम्हारी नाक,’’ संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हांहां, तुम्हारी नाक, देखो.’’

परची पर नजर पड़ते ही संगीता प्रसन्न हो गई. उस ने बड़ी मोहक दृष्टि से संदीप को निहारते हुए कहा, ‘‘तुम सच में बड़े वो हो.’’

‘‘कैसा हूं?’’ संदीप ने शरारती लहजे में पूछा.

‘‘हमें नहीं मालूम,’’ संगीता ने उस परची को अपने पर्स में रखते हुए उत्तर दिया

दूसरा भगवान : धर्म से किस तरह हार गए डाक्टर रंजन?

डाक्टर रंजन के छोटे से क्लिनिक के बाहर मरीजों की भीड़ थी. अचानक लाइन में लगा बुजुर्ग धरमू चक्कर खा कर गिर पड़ा. डाक्टर रंजन को पता चला. वे अपने दोनों सहायकों जगन और लीला के साथ भागे आए.

डाक्टर रंजन ने धरमू की नब्ज चैक की और बोले, ‘‘इन्हें तो बहुत तेज बुखार है. जगन, इन्हें बैंच पर लिटा कर माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रखो,’’ समझा कर वे दूसरे मरीजों को देखने लगे.

वहां से गुजरते पंडित योगीनाथ और वैद्य शंकर दयाल ने यह सब देखा, तो वे जलभुन गए.

‘‘योगी, यह छोकरा गांव में रहा, तो हमारा धंधा चौपट हो जाएगा. हमारे पास दवा के लिए इक्कादुक्का लोग ही आते हैं. इस के यहां भीड़ लगी रहती है,’’ भड़ास निकालते हुए वैद्य शंकर दयाल बोला.

‘‘वैद्यजी, आप सही बोल रहे हैं. अब तो झाड़फूंक के लिए मेरे पास एकाध ही आता है,’’ पंडित योगीनाथ ने भी जहर उगला.

उन के पीछेपीछे चल रहे पंडित योगीनाथ के बेटे शंभूनाथ ने उन की बातें सुनीं और बोला, ‘‘पिताजी, आप चिंता मत करो. यह जल्दी ही यहां से बोरियाबिस्तर समेट कर भागेगा. बस, देखते जाओ.’’

शंभूनाथ के मुंह से जलीकटी बातें सुन कर उन दोनों का चेहरा खिल गया. हरिया अपने बापू किशना को साइकिल पर बिठाए पैदल ही भागा जा रहा था. किशना का चेहरा लहूलुहान था.

वैद्य शंकर दयाल ने पुकारा, ‘‘हरिया, ओ हरिया. तू ने खांसी के काढ़े के उधार लिए 50 रुपए अब तक नहीं दिए. भूल गया क्या?’’

‘‘वैद्यजी, मैं भूला नहीं हूं. कई दिनों से मुझे दिहाड़ी नहीं मिली. काम मिलते ही पैसे लौटा दूंगा. अभी मुझे जाने दो,’’ गिड़गिड़ाते हुए हरिया ने रास्ता रोके वैद्य शंकर दयाल से कहा. किशना दर्द से तड़प रहा था.

‘‘शंभू, तू इस की जेब से रुपए निकाल ले.’’

‘‘वैद्यजी, रहम करो. बापू को दिखाने के लिए सौ रुपए किसी से उधार लाया हूं,’’ हरिया के लाख गिड़गिड़ाने के बाद भी पिता के कहते ही शंभूनाथ ने रुपए निकाल लिए.

डाक्टर रंजन आखिरी मरीज के बारे में दोनों सहायकों को समझा रहे थे.

‘‘डाक्टर साहब, मेरे बापू को देखिए. इन की आंख फूट गई है.’’

‘‘हरिया, घबरा मत. तेरे बापू ठीक हो जाएंगे,’’ हरिया की हिम्मत बढ़ा कर डाक्टर रंजन इलाज करने लगे.

बेचैन हरिया इधरउधर टहल रहा था कि तभी वहां जगन आया, ‘‘हरिया, तेरे बापू की आंख ठीक है. चल करदेख ले.’’

इतना सुनते ही हरिया अंदर भागा गया. ‘‘आओ हरिया, दवाएं ले आओ. शुक्र है आंख बच गई,’’ डाक्टर रंजन बोले. सबकुछ समझने के बाद हरिया ने डाक्टर रंजन को कम फीस दी, फिर हाथ जोड़ कर वैद्यजी वाली घटना सुनाई.

डाक्टर रंजन भौचक्के रह गए. ‘‘डाक्टर साहब, काम मिलते ही मैं आप की पाईपाई चुका दूंगा,’’ हरिया ने कहा. जगन और लीला लंच करने के लिए अपनेअपने घर चले गए. डाक्टर रंजन अकेले बैठे क्लिनिक में कुछ पढ़ रहे थे, तभी वहां दवाएं लिए हुए सैल्समैन डाक्टर रघुवीर आया, ‘‘डाक्टर साहब, मैं आप की सभी दवाएं ले आया हूं. कुछ दिनों के लिए मैं बाहर जा रहा हूं. जरूरत पड़ने पर आप किसी और से दवा मंगवा लेना,’’ बिल सौंप कर वह चला गया.

‘‘मैं जरा डाक्टर साहब के यहां जा रही हूं,’’ नेहा की बात सुन कर मां चौंक गईं.

‘‘क्या हुआ बेटी, तुम ठीक तो हो?’’

‘‘मां, मैं बिलकुल ठीक हूं. मेरा नर्सिंग का कोर्स पूरा हो गया है. घर में बोर होने से अच्छा है कि डाक्टर साहब के क्लिनिक पर चली जाया करूं. वहां सीखने के साथसाथ कुछ सेवा का मौका भी मिलेगा. पिताजी ने इजाजत दे दी है. तुम भी आशीर्वाद दे दो.’’

मां ने भी हामी भर दी. नेहा चली गई. डाक्टर रंजन के साथ अजय और शंभू गपशप मार रहे थे.

‘‘आज हम दोनों बिना पार्टी लिए नहीं जाएंगे,’’ अजय बोला.

‘‘नोट छाप रहे हो. दोस्तों का हक तो बनता है,’’ शंभू की बात सुन कर डाक्टर रंजन गंभीर हो गए. चश्मा मेज पर रखा, फिर बोले, ‘‘मेरी हालत से तुम वाकिफ हो. मैं जिन गरीब, लाचारों का इलाज करता हूं, उन से दवा की भी भरपाई नहीं होती. मैं ने बचपन में अपने मांबाप को गरीबी और बीमारियों के चलते तिलतिल मरते देखा है, इसलिए मैं इन के दुखदर्द से वाकिफ हूं.’’

‘‘क्या रोनाधोना शुरू कर दिया? मैं पार्टी दूंगा. चलो शहर. मैं डाक्टर रंजन की तरह छोटे दिल वाला नहीं,’’ शंभू बोला.

डाक्टर रंजन चुप रहे. तभी वहां नेहा दाखिल हुई. ‘‘आओ नेहा, सब ठीक तो है?’’ डाक्टर रंजन के पूछने पर नेहा ने आने की वजह बताई. ‘‘कल से आ जाना,’’ डाक्टर रंजन बोले.

‘‘ठीक है सर,’’ कह कर नेहा वहां से चल दी.

‘‘नेहा, ठहरो. डाक्टर साहब पार्टी दे रहे हैं,’’ शंभू ने टोका.

‘‘आप एंजौय करो. मैं चलती हूं,’’ कह कर नेहा चल दी.

‘‘शंभू, जलीकटी बातें मत करो,’’ अजय ने समझाया.

‘‘डाक्टर क्या पार्टी देगा? चलो, मैं देता हूं,’’ शंभू की बात रंजन को बुरी लगी. वे बोले, ‘‘तेरी अमीरी का जिक्र हरिया भी कर रहा था.’’

इतना सुनते ही शंभू के तनबदन में आग लग गई, ‘‘डाक्टर हद में रह, नहीं तो…’’ कह कर शंभू वहां से चला गया. अजय हैरान होते हुए बोला, ‘‘तुम दोनों क्या बक रहे हो? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

वैद्य शंकर दयाल भागाभागा पंडित योगीनाथ के पास गया. पुराने मंदिर का पुजारी त्रिलोकीनाथ भी वहीं था. ‘‘मुझे अभीअभी पता चला है कि डाक्टर की दुकान ग्राम सभा की जमीन पर बनी है और खुद सरपंच ने जमीन दी है.’’

वैद्य शंकर दयाल की बात सुन कर वे दोनों उछल पड़े. पंडित योगीनाथ बोला, ‘‘इस में हमारा क्या फायदा है?’’ ‘‘डाक्टर को भगाने की तरकीब मैं बताता हूं… वहां देवी का मंदिर बनवा दो.’’

‘‘सुनहरा मौका है. नवरात्र आने वाले हैं,’’ वैद्य शंकर दयाल की हां में हां मिलाते हुए त्रिलोकीनाथ बोला.

‘‘वैद्यजी, तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’ ‘‘सब सोहबत का असर है,’’ पंडित योगीनाथ से तारीफ सुन कर वैद्य शंकर दयाल ने कहा.

‘‘नेहा डाक्टर के साथ कहां जा रही है. अच्छा, यह तो सरपंच की बेटी के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगा है,’’ बड़बड़ाते हुए शंभू दयाल ने शौर्टकट लिया.

‘‘चाची, नेहा कहां है?’’ घर में घुसते ही शंभू ने पूछा.

‘‘क्या हुआ शंभू?’’ सुनते ही नेहा की मां ने पूछा.

शंभू ने आंखों देखी मिर्चमसाला लगा कर बात बता दी. मां को बहुत बुरा लगा. उन्होंने नेहा को पुकारा, ‘‘नेहा बेटी, यहां आओ.’’

नेहा को देख कर शंभू के चेहरे का रंग उड़ गया. ‘‘मेरी बेटी पर लांछने लगाते हुए तुझे शर्म नहीं आई,’’ मां ने शंभू को फटकार कर भगा दिया. ‘तो वह कौन थी?’ सोचता हुआ शंभू वहां से चल दिया.

पंडित योगीनाथ, त्रिलोकीनाथ और वैद्य शंकर दयाल सरपंच उदय प्रताप से मिलने गए. ‘‘श्रीमानजी, आप इजाजत दें, तो हम वहां देवी का मंदिर बनवाना चाहते हैं. बस, आप जमीन का इंतजाम कर दें,’’ त्रिलोकीनाथ बोले.

सरपंच बोले, ‘‘हमारी सारी जमीन गांव से दूर है और ग्राम सभा की जमीन का टुकड़ा गांव के आसपास है नहीं,’’ झट से पंडित योगीनाथ ने डाक्टर वाली जमीन की याद दिलाई. त्रिलोकीनाथ ने भी समर्थन किया.

‘‘उस जमीन के बारे में पटवारी से मिलने के बाद बताऊंगा,’’ सरपंच उदय प्रताप की बात सुन कर वे सभी मुसकराने लगे. डाक्टर रंजन, नेहा, जगन और लीला एक सीरियस केस में बिजी थे, तभी वहां अजय आया, ‘‘रंजन, गांव में बातें हो रही हैं कि इस जगह पर देवी का मंदिर बनेगा और तुम्हारा क्लिनिक यहां से हटेगा.’’

‘‘तुम जरा बैठो. मैं अभी आता हूं,’’ कह कर डाक्टर रंजन मरीजों को देखने में बिजी हो गए. फारिग हो कर वे अजय के पास आए. नेहा, जगन और लीला भी वहीं आ गए.

‘‘रंजन, मुझे थोड़ी सी जानकारी है कि इस जगह पर देवी का मंदिर बनेगा. कुछ दान देने वालों ने सीमेंटईंट वगैरह का इंतजाम भी कर दिया है. 1-2 दिन बाद ही काम शुरू हो जाएगा.’’

अजय की बात सुन कर नेहा बोली, ‘‘मैं ने तो ऐसी कोई बात घर पर नहीं सुनी.’’

‘‘तुम जानते हो, मैं दूसरे गांव से यहां आ कर अपनी दुकान में बिजी हो जाता हूं. तुम अपने मरीजों में बिजी रहते हो. न तुम्हारे पास समय है, न मेरे पास,’’ कह कर अजय डाक्टर रंजन को देखने लगे.

तभी वहां दनदनाता हुआ शंभूनाथ आया, ‘‘डाक्टर, तुम गांव के भोलेभाले लोगों को बहुत लूट चुके हो. अब अपना तामझाम समेट कर यह जगह खाली करो. यहां मंदिर बनेगा,’’ जिस रफ्तार से वह आया था, उसी रफ्तार से जहर उगल कर चला गया. सभी हक्केबक्के रह गए.

कुछ देर बाद डाक्टर रंजन बोले, ‘‘नेहा, तुम मरीजों को देखो. मैं सरपंचजी से मिलने जाता हूं. आओ अजय,’’ वे दोनों वहां से चले गए.

‘‘पिताजी, समय खराब मत करो. मंदिर बनवाना जल्दी शुरू करवा दो. मैं डाक्टर को हड़का कर आया हूं. सरपंच के भी सारे रास्ते बंद कर देता हूं,’’ शंभूनाथ ने पंडित योगीनाथ, वैद्य शंकर दयाल और पुजारी त्रिलोकीनाथ को समझाया.

‘‘सरपंच को तुम कैसे रोकोगे,’’ वैद्य शंकर दयाल ने पूछा.

‘‘वह सब आप मुझ पर छोड़ दो. जल्दी से मंदिर बनवाना शुरू करवा दो,’’ तीनों को समझाने के बाद शंभूनाथ वहां से चला गया.

‘‘सरपंचजी, आप किसी तरह हमारे क्लिनिक को बचा लो.’’

‘‘रंजन, मैं पूरी कोशिश करूंगा, क्योंकि उस जमीन के कागजात अभी तैयार नहीं हुए हैं. मैं कल कागजात पूरे करवा देता हूं,’’ डाक्टर रंजन को सरपंच उदय प्रताप ने भरोसा दिलाते हुए कहा.

रात में मंदिर बनाने का सामान आया. ट्रक और ट्रैक्टरों ने उलटासीधा लोहा, ईंट वगैरह सामान उतारा. जगह कम थी. टक्कर लगने से क्लिनिक की बाहरी दीवार ढह गई. सुबह डाक्टर रंजन ने यह सब देखा, तो वे दंग रह गए. नेहा, जगन, लीला शांत थे.

तभी पीछे से अजय ने डाक्टर रंजन के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘इस समय हम सिर्फ चुपचाप देखने के सिवा कुछ नहीं कर सकते हैं.

‘‘मैं ने इस सिलसिले में शंभूनाथ से बात की, तो वह बोला कि मैं कुछ नहीं कर सकता,’’ कह कर अजय चुप हो गया.

जेसीबी, ट्रैक्टर वगैरह मैदान को समतल कर रहे थे. जेसीबी वाले ने जानबूझ कर क्लिनिक की थोड़ी सी दीवार और ढहा दी. ‘धड़ाम’ की आवाज सुन कर सभी बाहर आए.

‘‘डाक्टर साहब, गलती से टक्कर लग गई. आज नहीं तो कल यह टूटनी है,’’ बड़ी बेशर्मी से जेसीबी ड्राइवर ने कहा. सभी जहर का घूंट पी कर रह गए.

शंभूनाथ ने पुजारी त्रिलोकीनाथ से कहा, ‘‘पुजारीजी, सब तैयारी हो चुकी है. आप बेफिक्र हो कर मंदिर बनवाना शुरू कर दो. मेरे एक दोस्त ने, जो विधायक का सब से करीबी है, विधायक से थाने, तहसील, कानूनगो को फोन कर के निर्देश दिया है. उस जमीन पर सिर्फ मंदिर ही बने. अब हमारा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है.’’

सारी बातें सुनने के बाद पुजारी त्रिलोकीनाथ खुश हो गए. डाक्टर रंजन और अजय बहुत सोचविचार के बाद थाने गए. थानेदार ने जमीन के कागजात मांगे. कागजात न होने के चलते रिपोर्ट दर्ज न हो सकी. दोनों बुझे मन से थाने से निकल आए.

सरपंच उदय प्रताप पटवारी और कानूनगो से मिले, ‘‘आप किसी तरह से डाक्टर के क्लिनिक के कागजात आज ही तैयार कर दो. बड़ी लगन और मेहनत से डाक्टर रंजन गांव वालों की सेवा कर रहे हैं. कृपया, आप मेरा यह काम कर दो,’’ सरपंच की सुनने के बाद उन दोनों ने असहमति जताई. सरपंच उदय प्रताप को बड़ा दुख हुआ.

दोनों की नजर तहसील से बाहर आते उदय प्रताप पर पड़ी. उन की चाल देख डाक्टर रंजन और अजय समझ गए कि काम नहीं हुआ. ‘‘काम नहीं हुआ क्या सरपंचजी,’’ डाक्टर रंजन ने पूछा.

‘‘नहीं. बस एक उम्मीद बची है. विधायक साहब से मिले लें,’’ सरपंच उदय प्रताप का सुझाव दोनों को सही लगा. तीनों उन से मिलने चल दिए.

नेहा, जगन, लीला वगैरह बड़ी बेचैनी से तीनों के आने का इंतजार कर रहे थे. ‘‘डाक्टर साहब, हम आखिरी बार कह रहे हैं कि क्लिनिक खाली कर दो, नहीं तो सब इसी में दब जाएगा,’’ शंभूनाथ की चेतावनी सुन कर वे तीनों बाहर आए. शंभूनाथ वहां से जा चुका था.

विधायक का दफ्तर बंद था. घर पहुंचे, तो गेट पर तैनात पुलिस ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया. थकहार कर उदय प्रताप, अजय और डाक्टर रंजन गांव आ गए.

मंदिर की नींव रख दी गई थी. प्रसाद बांटा जा रहा था. जयकारे गूंज रहे थे.

‘‘पंडितजी ने मंदिर के लिए सही जगह चुनी है. उन्होंने गांव के लिए सही सोचा,’’ एक बुजुर्ग ने योगीनाथ की तारीफ करते हुए कहा.

तीनों के जानपहचान वाले डाक्टर रंजन को कोस रहे थे. कुछ गालियां दे रहे थे.

‘‘चोर है, गरीबों को लूट रहा है, नकली दवाएं देता है, पानी का इंजैक्शन लगा कर पैसे बना रहा है, पंडितजी इस को सही भगा रहे हैं,’’ एक आदमी बोला. एक आदमी सरपंच को भी बुराभला कह रहा था, ‘‘अब की इसे वोट नहीं देंगे, यह डाक्टर के साथ मिल कर गांव को लूट रहा है.’’

कुछ ही लोग सरपंच और डाक्टर रंजन के काम को अच्छा कह रहे थे. सरपंच उदय प्रताप डाक्टर रंजन के क्लिनिक के बाहर खड़े थे. नेहा, जगन, लीला और अजय भी वहीं मौजूद थे.

‘‘बेटे, जगह खाली करने के सिवा अब और कोई चारा नहीं है. गांव के भोलेभाले लोग पंडित योगीनाथ, वैद्य शंकर दयाल और पुजारी त्रिलोकीनाथ के मकड़जाल में फंस चुके हैं. हमारी सुनने वाला कोई नहीं. कोर्ट के चक्कर में फंसने से भी कोई हल नहीं निकलेगा,’’ सरपंच की बात सुन कर डाक्टर रंजन मायूस हो गए.

बहुत देर बाद डाक्टर रंजन ने पूछा, ‘‘फिर, मैं क्या करूं?’’

सरपंच उदय प्रताप बोले, ‘‘बेटे, गांव के नासमझ लोगों पर मंदिर बनवाने का भूत सवार है. इन्हें डाक्टररूपी दूसरे भगवान से ज्यादा जरूरत पत्थररूपी भगवान की चाह है. इन लोगों को हम जागरूक नहीं कर सकते. इन्हें सिर्फ इन का जमीर, इन की अक्ल ही जागरूक कर सकती है. हम हार चुके हैं रंजन, हम हार चुके हैं.’’

मायूस हो कर सरपंच उदय प्रताप वहां से चले गए. सभी मिल कर क्लिनिक खाली करने लगे. डाक्टर रंजन शांत खड़े थे.

सांझ का भूला

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मैं एक लड़के को ट्यूशन देती हूं, अब मैं उसके साथ फिजिकल रिलेशन बनाना चाहती हूं. मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी जिंदगी में एक लड़का आया है जो मुझ से कम उम्र का है. वह मुझे बहुत चाहता है. वह मेरे पास मैथ्स की क्लासेज लेने आता था. धीरेधीरे हमारे बीच अजीब सा आकर्षण पैदा हुआ. मैं मानती हूं कि यह गलत है, क्योंकि मैं शादीशुदा हूं. मगर मैं स्वयं नहीं जानती कि ऐसा कैसे हो गया. आप ही बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब
आप के और उस लड़के के बीच आकर्षण का पैदा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है. विपरीतलिंगी व्यक्ति के साथ जब आप समय बिताते हैं तो सहज ही आप के बीच ऐसा रिश्ता कायम हो सकता है. मगर इस रिश्ते को आप को अपने जीवन की गलती नहीं बनानी चाहिए.

आप का अपना परिवार है. यह संबंध परिवारों में तनाव पैदा कर सकता है. उस लड़के से आप कम से कम मिलें. उस के साथ सिर्फ हैल्दी फ्रैंडशिप का रिश्ता रखें.

कुछ महिलाएं इस वजह से भी अपने से कम उम्र के पुरुषों के प्रति आकर्षित हो जाती हैं क्योंकि वे अपने पति की बढ़ती उम्र, उदासीनता और सपाट रवैए से नाखुश रहने लगती हैं. यदि ऐसा है तो अपने पति से इस संदर्भ में बात करें. इस प्रकार का दिल का संबंध आमतौर पर तर्क व व्यावहारिकता नहीं देखता और नितांत प्राकृतिक है. आप अपराधबोध नहीं रखेंगी तो ज्यादा खुश रहेंगी.

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कैसा था उस लड़की का खुमार

दरवाजा खुला. जिस ने दरवाजा खोला, उसे देख कर चंद्रम हैरान रह गया. वह अपने आने की वजह भूल गया. वह उसे ही देखता रह गया.

वह नींद में उठ कर आई थी. आंखों में नींद की खुमारी थी. उस के ब्लाउज से उभार दिख रहे थे. साड़ी का पल्लू नीचे गिरा जा रहा था. उस का पल्लू हाथ में था. साड़ी फिसल गई. इस से उस की नाभि दिखने लगी. उस की पतली कमर मानो रस से भरी थी.

थोड़ी देर में चंद्रम संभल गया, मगर आंखों के सामने खुली पड़ी खूबसूरती को देखे बिना कैसे छोड़ेगा? उस की उम्र 25 साल से ऊपर थी. वह कुंआरा था. उस के दिल में गुदगुदी सी पैदा हुई.

वह साड़ी का पल्लू कंधे पर डालते हुए बोली, ‘‘आइए, आप अंदर आइए.’’

इतना कह कर वह पलट कर आगे बढ़ी. पीछे से भी वह वाकई खूबसूरत थी. पीठ पूरी नंगी थी.

उस की चाल में मादकता थी, जिस ने चंद्रम को और लुभा दिया था. उस औरत को देखने में खोया चंद्रम बहुत मुश्किल से आ कर सोफे पर बैठ गया. उस का गला सूखा जा रहा था.

उस ने बहुत कोशिश के बाद कहा, ‘‘मैडम, यह ब्रीफकेस सेठजी ने आप को देने को कहा है.’’

चंदम ने ब्रीफकेस आगे बढ़ाया.

‘‘आप इसे मेज पर रख दीजिए. हां, आप तेज धूप में आए हैं. थोड़ा ठंडा हो जाइएगा,’’ कहते हुए वह साथ वाले कमरे में गई और कुछ देर बाद पानी की बोतल, 2 कोल्ड ड्रिंक ले आई और चंद्रम के सामने वाले सोफे पर बैठ गई.

चंद्रम पानी की बोतल उठा कर सारा पानी गटागट पी गया. वह औरत कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोलने के लिए मेज के नीचे रखे ओपनर को लेने के लिए झुकी, तो फिर उस का पल्लू गिर गया और उभार दिख गए. चंद्रम की नजर वहीं अटक गई.

उस औरत ने ओपनर से कोल्ड ड्रिंक खोलीं. उन में स्ट्रा डाल कर चंद्रम की ओर एक कोल्ड ड्रिंक बढ़ाई.

चंद्रम ने बोतल पकड़ी. उस की उंगलियां उस औरत की नाजुक उंगलियों से छू गईं. चंद्रम को जैसे करंट सा लगा.

उस औरत के जादू और मादकता ने चंद्रम को घायल कर दिया था. वह खुद को काबू में न रख सका और उस औरत यानी अपनी सेठानी से लिपट गया. इस के बाद चंद्रम का सेठ उसे रोजाना दोपहर को अपने घर ब्रीफकेस दे कर भेजता था. चंद्रम मालकिन को ब्रीफकेस सौंपता और उस के साथ खुशीखुशी हमबिस्तरी करता. बाद में कुछ खापी कर दुकान पर लौट आता. इस तरह 4 महीने बीत गए.

एक दोपहर को चंद्रम ब्रीफकेस ले कर सेठ के घर आया और कालबेल बजाई, पर घर का दरवाजा नहीं खुला. वह घंटी बजाता रहा. 10 मिनट के बाद दरवाजा खुला.

दरवाजे पर उस की सेठानी खड़ी थी, पर एक आम घरेलू औरत जैसी. आंचल ओढ़ कर, घूंघट डाल कर.

उस ने चंद्रम को बाहर ही खड़े रखा और कहा, ‘‘चंद्रम, मुझे माफ करो. हमारे संबंध बनाने की बात सेठजी तक पहुंच गई है. वे रंगे हाथ पकड़ेंगे, तो हम दोनों की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.

‘‘हमारी भलाई अब इसी में है कि हम चुपचाप अलग हो जाएं. आज के बाद तुम कभी इस घर में मत आना,’’ इतना कह कर सेठानी ने दरवाजा बंद कर दिया.

चंद्रम मानो किसी खाई में गिर गया. वह तो यह सपना देख रहा था कि करोड़पति सेठ की तीसरी पत्नी बांहों में होगी. बूढ़े सेठ की मौत के बाद वह इस घर का मालिक बनेगा. मगर उस का सपना ताश के पत्तों के महल की तरह तेज हवा से उड़ गया. ऊपर से यह डर सता रहा था कि कहीं सेठ उसे नौकरी से तो नहीं निकाल देगा. वह दुकान की ओर चल दिया.

सेठानी ने मन ही मन कहा, ‘चंद्रम, तुम्हें नहीं मालूम कि सेठ मुझे डांस बार से लाया था. उस ने मुझ से शादी की और इस घर की मालकिन बनाया. पर हमारे कोई औलाद नहीं थी. मैं सेठ को उपहार के तौर पर बच्चा देना चाहती थी. सेठ ने भी मेरी बात मानी. हम ने तुम्हारे साथ नाटक किया. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’ इस के बाद सेठानी ने एक हाथ अपने बढ़ते पेट पर फेरा. दूसरे हाथ से वह अपने आंसू पोंछ रही थी.

ताकि आफत न बने गठिया

आर्थ्राइटिस को आम बोलचाल की भाषा में गठिया कहते हैं. शरीर के जोड़ रोजाना विभिन्न तरह के काम करते हैं और घुटने व कूल्हे खासतौर से पूरे शरीर का वजन उठाते हैं. घुटनों के जौइंट के बीच जैली जैसा एक तत्त्व होता है जिसे कार्टिलेज कहते हैं. यह कुशन या शौक अब्जौर्बर का काम करता है. समय के साथ या फिर किसी दुर्घटना में यह कार्टिलेज घिसना शुरू हो जाता है जिस से हड्डियां एकदूसरे के संपर्क में आ जाती हैं और आपसी रगड़ से उन में दर्द व अकड़न आ जाती है, इसे ही आर्थ्राइटिस कहते हैं.

क्या हैं लक्षण

आर्थ्राइटिस से पीडि़त व्यक्ति के जोड़ों में बहुत अधिक दर्द रहता है. अगर समय पर इलाज न करवाया जाए तो समय के साथ यह दर्द लगातार बढ़ता रहता है. गंभीर स्थिति में दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि मरीज के लिए रोजमर्रा के काम करना तक मुश्किल हो जाता है. कई मामलों में तो रोगी बिस्तर तक पकड़ लेता है.

कैसे होता है आर्थ्राइटिस

आर्थ्राइटिस होने के मुख्य कारण रोजमर्रा की जीवनशैली, रहनसहन, खानपान, पोषण युक्त आहार, शारीरिक व्यायाम या काम न करना और सही मुद्रा में न बैठना व उठना है. इस वजह से उम्र के साथसाथ हड्डियों और जोड़ों में घिसाव होने लगता है जिस से वे विकृत हो जाते हैं.

इस के अलावा जो लोग लगातार कई सालों तक एक ही प्रक्रिया को बारबार दोहराते हैं और उस प्रक्रिया में घुटनों के या किसी भी और जोड़ पर दबाव पडे़ तो उस से भी घुटने का प्रभावित होना स्वाभाविक है. इसीलिए तो ऐथलीट और दूसरे खिलाडि़यों को जोड़ों की समस्या से जूझना पड़ता है.

युवा भी अछूते नहीं

पहले आर्थ्राइटिस की समस्या केवल बुजुर्गों में ही देखने को मिलती थी लेकिन अब युवाओं को भी इस समस्या से जूझना पड़ रहा है. आजकल युवा वर्ग टैक्नोलौजी और सुविधाओं पर इतना ज्यादा निर्भर हो गए हैं कि शारीरिक परिश्रम करना कहीं पीछे रह गया है. बच्चों का भी यही हाल है. बच्चे इंटरनैट और टीवी पर ही समय बिताना पसंद करते हैं. खेलनाकूदना, पसीना बहाना या शारीरिक मेहनत करना बहुत कम देखने को मिलता है.

इस के अलावा युवाओं की अनियमित दिनचर्या, दिनभर डैस्क जौब, टैक्नोलौजी व मशीनों पर बढ़ती निर्भरता, शारीरिक व्यायाम न करने और पोषक खानपान न होने की वजह से आर्थ्राइटिस होने का रिस्क बढ़ जाता है.

गौरतलब है कि अगर मांसपेशियां मजबूत होंगी तो शारीरिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ेगा जिस से हमारे जोड़ संरक्षित रहते हैं. इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ पोषकतत्त्वों से युक्त खानपान का भी ध्यान रखना चाहिए.

क्या है इलाज

घुटने का इलाज उस की स्थिति के अनुसार ही किया जाता है. सर्जरी कराने की सलाह तभी दी जाती है जब दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाए कि रोजमर्रा के काम करने में तकलीफ होने लगे, घुटने में अकड़न और गतिशीलता न रहे, एक्सरे में गंभीर आर्थ्राइटिस या किसी भी प्रकार की विकृति नजर आए और अन्य इलाज जैसे कि दवाएं, फिजियोथैरेपी और नियमित व्यायाम कारगर साबित न हो रहे हों.

अकसर रोगी को शुरुआती स्टेज में दवाओं, फिजियोथैरेपी और नियमित व्यायाम से आराम देने की कोशिश की जाती है. शुरुआत में दर्द होने पर अकसर रोगी पेनकिलर दवाइयां लेते हैं. पेनकिलर दवाएं लेने से पहले डाक्टर से परामर्श लेना बहुत जरूरी है. कई बार मरीज खुद ही दवाएं ले लेते हैं जिस से उन्हें एलर्जी या अन्य कई समस्याएं हो सकती हैं.

अगर रोगी को लगातार दर्द (चलने, दौड़ने, घुटने टेकने और झुकने में दिक्कत, लंबे समय तक बैठने पर जौइंट में अकड़न, जौइंट में सूजन रहे तो उसे स्टेरौयड आदि के इंजैक्शन देने का परामर्श दिया जाता है. ये 2 से 6 महीने तक प्रभावी रहते हैं. ज्यादा समय तक पेनकिलर दवाएं लेना ठीक नहीं है. इस से किडनी और शरीर के अन्य अंगों पर दुष्प्रभाव जैसे कई साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं.

अगर आप को दर्द असहनीय हो रहा है और आप को टीकेआर यानी कि टोटल नी रिरप्लेसमैंट की सलाह दी गई है तो आप इस सर्जरी को ज्यादा समय तक न टालें क्योंकि घुटने की स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है.

(लेखक नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल के और्थोपैडिक्स विभाग के अतिरिक्त निदेशक हैं.)

आर्थ्राइटिस एवं जोड़ प्रत्यारोपण

कुछ गलतफहमियां

जोड़ों में तकलीफ होने के कारण कुरसी से उठने के लिए आप को दो बार सोचना पड़ता है, इस दर्द ने आप का चलनाफिरना मुहाल कर दिया है? क्या आप घुटनों में तकलीफ या नितंब में दर्द के कारण सुबह की सैर छोड़ देते हैं और निष्क्रिय होने के कारण आप का वजन बढ़ता जा रहा है? यदि ऐसा है तो भले ही आप अपनेआप को आर्थ्राइटिस के कटु अनुभव के साथ जिंदगी बिताने के लिए तैयार कर लें लेकिन आप का शरीर इस बात को नहीं मानेगा. लंबे समय तक शारीरिक गतिविधियां बंद रखने पर जीवन की गुणवत्ता और उत्पादनशीलता का स्तर गिरने के साथ ही आप में स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य समस्याएं भी घर करने लगेंगी. लिहाजा, आर्थ्राइटिस या जोड़ों संबंधी अन्य बीमारियों को अपने शरीर पर हावी न होने दें.

आर्थ्राइटिस एक ऐसी स्थिति है जब आप के जोड़ सूज जाते हैं, सख्त और लाल हो जाते हैं. इस वजह से चलनेफिरने में दिक्कत और इस से जुड़े स्वास्थ्य खतरे बढ़ने के साथ ही आप को अत्यंत कष्टकारी दौर से गुजरना पड़ता है. हालांकि आप को किसी भी जोड़ (या सभी जोड़ों) में आर्थ्राइटिस हो सकता है लेकिन इस का सब से ज्यादा असर नितंब और घुटनों पर पड़ता है.

कुछ मामलों में दवाओं के सहारे और जीवनशैली में बदलाव लाने से आर्थ्राइटिस पर काबू पाया जा सकता है लेकिन नौनसर्जिकल चिकित्सा से जब स्थिति नहीं सुधरती तो जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.

यह विडंबना ही है कि पिछले एक दशक में मैडिकल टैक्नोलौजी में महत्त्वपूर्ण तरक्की होने के बावजूद लोग अभी भी जौइंट रिप्लेसमैंट जैसी सर्जिकल प्रक्रिया अपनाने से डरते हैं जबकि इस तरह की आधुनिक सर्जरी आप की सामान्य गतिविधि को पूरी तरह से सुचारू कर सकती है और जोड़ों की ताकत बढ़ा सकती है.

सर्जरी का फायदा उठाने के बारे में लोगों के मन में मौजूद गलतफहमियों के चलते वे सशंकित रहते हैं.

गलतफहमी 1 : जितना हो सके, जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी को टालते रहना ठीक है.

ऐसी स्थिति में डाक्टर की राय बहुत माने रखती है. कोई विशेषज्ञ ही तय कर सकता है कि मरीज को हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी करानी चाहिए या नहीं. दरअसल, जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी से बचते रहने से न सिर्फ मरीज की पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है बल्कि बहुत बाद में सर्जरी कराने से रिकवरी भी काफी मुश्किल से होती है. अमेरिकन एकेडमी औफ और्थोपैडिक सर्जन्स 1999 के मुताबिक, दिल की बीमारी, कैंसर या डायबिटीज की तुलना में आर्थ्राइटिस के कारण शारीरिक गतिविधियां ज्यादा सीमित हो जाती हैं. लंबे समय तक सर्जिकल चिकित्सा टालते रहने से बीमारियां और इन के लक्षण बढ़ने के साथ ही मरीज मोटापा और अन्य स्वास्थ्य तकलीफों से घिर जाता है.

गलतफहमी 2 : आर्थ्राइटिस बुढ़ापे से जुड़ी एक स्वाभाविक बीमारी है. आप को इस का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा.

पूरी दुनिया में लाखों लोग आर्थ्राइटिस की समस्या से जूझ रहे हैं और हर वर्ष पीडि़तों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. चिकित्सकीय सहायता पा चुके लोग स्वस्थ, उत्पादनशील जीवन जीने में सक्षम हैं. निश्चित तौर पर आर्थ्राइटिस शारीरिक दुर्बलता से जुड़ी बीमारी है लेकिन इसे बुढ़ापे की सामान्य दिक्कतें कभी नहीं कहा जा सकता. किसी भी उम्र में यह समस्या आने पर चिकित्सकीय सहायता जीवन की गुणवत्ता सुधारने में कारगर हो सकती है.

गलतफहमी 3 : कृत्रिम अंग आखिर कृत्रिम ही होते हैं और ये स्वाभाविक जोड़ों जैसा एहसास कभी नहीं दे सकते.

यह गलतफहमी जानकारी के अभाव के कारण ही पैदा होती है. लोगों को पता नहीं होता कि जौइंट रिप्लेसमैंट पद्धति में आमतौर पर असल में जोड़ नहीं बदले जाते हैं, उन्हें सिर्फ व्यवस्थित (घुटने का जोड़) किया जाता है. ठीकठाक घुटने से घुटने की हड्डियों के ऊपर कार्टिलेज का आवरण होता है लेकिन आर्थ्राइटिस से पीडि़त घुटने में हड्डियों के छोर को कवर करने वाले कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, इसी कारण हड्डियां आपस में रगड़ खाने लगती हैं.

सर्जरी के दौरान सिर्फ हड्डी के छोरों को क्रमबद्ध तरीके से घिस कर चिकना कर दिया जाता है और क्षतिग्रस्त हड्डी के छोर पर एक कैप डाल दिया जाता है ताकि हड्डियों के बजाय कृत्रिम और चिकने कैप ही आपस में रगड़ खाते रहें.

इस के अलावा, यदि जोड़ (नितंब के जोड़) को सचमुच बदलना पड़ जाए तो इस उन्नत रिप्लेसमैंट पद्धति में मैटेरियल और डिजाइन भी अच्छी क्वालिटी के होते हैं और प्रत्यारोपित जोड़ प्राकृतिक जोड़ों की तरह ही स्वाभाविक, आरामदेह और लचीले होते हैं. यदि किसी को सर्जरी कराने के बाद चलनेफिरने में कोई दिक्कत आती है तो इस से राहत पाने के लिए कुछ रिहैब थैरेपी (स्वास्थ्यलाभ के उपाय) भी मौजूद हैं.

गलतफहमी 4 : जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने के बाद सक्रिय जीवन जीना संभव नहीं होता है, खासकर व्यायाम, तैराकी और साइक्लिंग के दौरान दिक्कतें आती हैं.

रिप्लेसमैंट सर्जरी से पूरी तरह रिकवर हो जाने के बाद कई ऐसी शारीरिक गतिविधियां हैं जिन्हें आप आसानी से जारी रख सकते हैं. प्रत्यारोपित जोड़ की मदद से तैराकी साइक्लिंग, सैर और इसी तरह की हलकीफुलकी गतिविधियों को बेझिझक अंजाम दिया जा सकता है. हालांकि जौगिंग, दौड़ या फुटबौल या टैनिस खेलने जैसी अधिक मेहनत वाली गतिविधियों से बचना चाहिए क्योंकि इन गतिविधियों से जोड़ों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है.

गलतफहमी 5 : जौइंट रिप्लेसमैंट सिर्फ बुजुर्गों को ही कराना चाहिए.

मैं ने महसूस किया है कि आर्थ्राइटिस जोड़ के सिर्फ इलाज कराने की अपेक्षा जौइंट रिप्लेसमैंट कराना लाइफस्टाइल को सुचारु बनाने में अधिक कारगर होता है. लेकिन कई बार युवा मरीज भी इस प्रकार के प्रभावी चिकित्सकीय उपाय को चुनने से कतराते हैं. सच तो यह है कि शुरुआती चरण में ही जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी न सिर्फ तीव्र और बेहतर रिकवरी सुनिश्चित करती है और सक्रिय जीवनशैली को अधिकतम स्तर पर बहाल करती है बल्कि निष्क्रियता से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याएं रोकने में मददगार भी होती है. लिहाजा, आप की उम्र कोई माने नहीं रखती, यदि आप के डाक्टर ने आप को जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने की सलाह दी है तो आप को निश्चिंत ही यह सर्जरी करा लेनी चाहिए.

(डा. राजीव के शर्मा, लेखक अपोलो अस्पताल में और्थोपेडिक स्पैशलिस्ट एवं जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन हैं.)           

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