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बलिदान: जसवीर ने अपनी मां के लिए खत क्यों लिखा ?

कंट्रोल रूम में छाई खामोशी वातावरण को अधिक गंभीर बना रही थी. सामने की दीवार पर एक नक्शा टंगा था. नक्शे के पास ही विंग कमांडर पंकज गंभीर मुद्रा में खड़े थे. सामने कुरसियों पर स्क्वैड्रन लीडर जसवीर, राजेश, दीपक और अमर बैठे थे. सभी की नजरें नक्शे पर टिकी थीं.

विंग कमांडर ने बड़ी सावधानी से धीरे से कहा, ‘‘तुम लोगों के पिछले रिकौर्ड से प्रभावित हो कर ही मैं ने आज तुम्हें बुलाया है. आज एक ऐसा कार्य तुम्हें सौंप रहा हूं जो हर हाल में पूरा होना चाहिए. इस काम को तुम में से कौन करेगा, यह निर्णय तुम्हें खुद लेना होगा. गुप्तचर विभाग के अनुसार, आज शाम 7 बजे सरगोधा एयरफील्ड पर एक गुप्त मीटिंग है, जिस में दुश्मन के कई सीनियर अफसर भाग ले रहे हैं. यदि उन की यह मंत्रणा सफलतापूर्वक पूरी हो गई तो हमें एक भयानक संकट का सामना करना पड़ेगा. इस से बचने का एक ही उपाय है, उस स्थान को मीटिंग शुरू होते ही ध्वस्त कर दिया जाए. 7 बजे मीटिंग शुरू होनी है इसलिए सवा 7 बजे वहां पर बमबार्डमैंट हो जानी चाहिए.’’

इस काम के लिए जसवीर तैयार हुआ. सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद और्डर मिलते ही उसे फ्लाइट लेनी थी. फिर सरगोधा हवाईअड्डे पर पहुंच कर उसे उस स्थान का पता लगाना था जहां मीटिंग थी. फिर बमबार्डमैंट.

उस के मस्तिष्क में कई सवाल कौंध रहे थे. वह देख रहा था, लगातार चलती हुई ऐंटी एयरक्राफ्ट तोपें और उड़ते हुए सेबर जैट. हां, इन्हीं के बीच तो उसे वह स्थान ढूंढ़ना है. ध्यान करते ही वह रोमांचित हो उठता और एक विशेष प्रकार की चमक उस की आंखों में आ जाती. उस ने दृढ़ संकल्प कर लिया था. वह अपने कार्य को पूरा कर के ही रहेगा.

एक बार फिर उस ने अपने प्लेन की जांच की. तत्पश्चात वह कैंटीन में एक कोने में जा कर बैठ गया और अपनी मां को खत लिखने लगा.

‘मां, जब तक यह पत्र तुम्हारे हाथों में पहुंचेगा, तुम्हारा बेटा उस सफर को तय कर चुका होगा जिस की तुम वर्षों से बाट जोह रही थी. जब से मैं एयरफोर्स में चुना गया, तुम मेरे विवाह के लिए लालायित थीं. तुम्हें आश्चर्य होगा, तुम्हारा बेटा आज खुद ही विवाह के लिए राजी हो गया है. मां, तुम्हारी होने वाली बहू के बारे में कई लोगों से सुना था पर विश्वास नहीं होता था कि वह इतनी गुणवान व रूपवती होगी. आज जब विश्वास हुआ है तो मैं उस के प्यार में इतना दीवाना हो गया हूं कि तुम से आज्ञा लिए बिना ही उस से विवाह कर रहा हूं. लेकिन मुझे आशा है, तुम्हें अपने पुत्र की पसंद पर पूर्ण विश्वास होगा. मैं तुम्हारी बहू को पाने के लिए इतना लालायित हो उठा हूं कि एक मिनट भी नहीं गंवाना चाहता. कहीं ऐसा न हो कि मौके का लाभ उठा कर उसे कोई और ब्याह कर ले जाए और मैं तरसती निगाहों से देखता रह जाऊं.

‘तुम्हारा बेटा,

‘जसवीर.’

लिफाफे में पत्र बंद करतेकरते एक बार जसवीर की उंगलियां कांप गईं. उस की आंखों के सामने पुरानी स्मृतियां उभरउभर कर आती और लुप्त हो जाती थीं. मां की सौम्य मूर्ति उभर रही थी. घर का खिलखिलाता वातावरण मस्तिष्क में कहीं कचोट रहा था. गली के कोने वाली पम्मी याद आ रही थी. जब वह दौड़ती हुई सीधी उस के कमरे में चली आती तो उसे कितना अच्छा लगता था. न मालूम क्यों, वह चाहता था कि पम्मी उस के पास बैठी रहे, ढेर सारी बातें करती रहे. छुट्टियों में वह जब भी घर जाता, पम्मी पहले से ही उस की प्रतीक्षा कर रही होती. जब वह अपनी फ्लाइट की कहानी सुनाता तो वह सहम जाती. तब पम्मी उसे बहुत अच्छी लगती और उस का दिल चाहता कि वह एक बार, सिर्फ एक बार पम्मी को… तभी कहीं दूर से टनटन की ध्वनि गूंज पड़ी. उसे लगा, जैसे उस के कर्तव्य की हुंकार कहीं दूर घाटियों में गूंज रही है. उस का मस्तिष्क शिथिल हो गया, वह सबकुछ भूल गया था. बस, याद रह गया था सरगोधा एयरफील्ड.

फिर उस के होंठों पर अजब मुसकान उभर आई. सहसा मुंह से निकला, ‘‘कमीनो… दिल्ली हड़पने के ख्वाब देखते हो…’’

अंधेरा घिरने लगा था. निशा शायद अकेले आने में घबराती थी इसलिए साथ सितारे ले कर आई थी. जसवीर प्लेन पर कदम रखतेरखते निशा के इस भय पर मुसकरा पड़ा. वह रहम खा कर रह गया उस पर. माइक्रोफोन कानों पर घरघराने लगा और पहिए हवाई पट्टी पर फिसलने लगे. प्लेन अपनी रफ्तार से अपनी मंजिल की ओर उड़ चला.

जसवीर के मन में विचार कौंध रहे थे. वह अर्जुन नहीं है जो अपनी सारी शक्ति एक पक्षी की आंख पर केंद्रित कर सकेगा. एक क्षण को भी वह अपनी संपूर्ण दृष्टि और सारी शक्ति उस स्थान को लोकेट करने में केंद्रित कर दे तो उड़ते सेबर और चलती गनें उस के अस्तित्व को ही शून्य में मिला देंगी. तो क्या उस का तीर आंख फोड़ने में असमर्थ रहेगा? एक क्षण के लिए घबराहट उस के चेहरे पर उभर आई और पसीने की बूदें माथे पर चमकने लगीं. नहीं, वह अर्जुन नहीं है.

उस ने एक डाइव मारी और उड़ान नीचेनीचे करने लगा. पीछे छूट रही भारतीय सीमा को उस ने ललचाई नजरों से देखा. उस की आंखें भर आईं. सहसा उसे याद आया, किसी जमाने में अंगरेजों से लोहा लेने वाले भारतीय क्रांतिकारी गाया करते थे, ‘शहीदों की चिताओं पर…’

पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करते ही वह पूरी तरह से चौकन्ना हो गया. फ्लाइट करते समय पायलट के लिए स्वयं को दुश्मन के राडार की पकड़ से बचाए रखना एक बहुत कठिन परीक्षा होती है. राडार से बचने का एक ही उपाय है, फ्लाइट जितनी संभव हो सके उतनी नीचे की जाए. सामने पहाड़ी है, जरा सी असावधानी हुई नहीं कि प्लेन टुकड़ेटुकड़े हो कर दुश्मन को मारने के बजाय पायलट की ही जिंदगी ले बैठेगा… जसवीर यही सब अपने मन में समेटे उड़ान भर रहा था.

सरगोधा आने वाला था. कहींकहीं जानीपहचानी वस्तुएं दिखाई पड़ रही थीं. उस ने नक्शे का बहुत गहरा अध्ययन किया था. एकाएक आकाश में लाल गोले उभरने लगे. वह चौकन्ना हो गया. उस ने घड़ी देखी, वह सरगोधा एयरफील्ड पर था. गोले लगातार बरस रहे थे, नीचे से ऊपर की ओर दाएंबाएं, ऊपरनीचे.

किसी तरह जसवीर अपना प्लेन बचा रहा था और प्लेन को बचाने के साथसाथ वह अपने लक्ष्य को भी ढूंढ़ रहा था. उस की नजरें मीटिंग वाले स्थान को लोकेट करने में व्यस्त थीं, लेकिन अभी तक ऐसा कोई चिह्न दिखाई नहीं पड़ा था, जिस से उसे कुछ सहारा मिल सकता. अचानक गोलों की रफ्तार तेज हो गई. वे वृत्ताकार समूह में प्लेन को घेर कर तबाह करने की कोशिश में थे.

फिर गोलों की गति धीमी पड़ने लगी और एकाएक खामोशी छा गई. गोले बरसने बंद हो गए. शायद प्लेन उन की परिधि से बाहर था. अभी वह कुछ समझ पाता कि गोलों की खामोशी का कारण उसे तुरंत पता चल गया. कई सेबर उस के चारों ओर मक्खियों के समान भिनभिना रहे थे. सभी उस की ओर झपट्टा मारने की तैयारी में थे.

अभी तक मीटिंग वाले स्थान का पता नहीं चल सका था और वह बुरी तरह घिर चुका था. ऐसी हालत में बमबार्डमैंट करना उचित रहेगा? एक के बाद एक कई प्रश्न उस की आंखों में तैर रहे थे. तभी प्लेन को बचाने के लिए उस ने एक डाइव मारी और फिर एकदम मोड़ कर प्लेन को ऊपर को ले गया. बहुत खूबी से वह सेबरों की मार से बच रहा था.

अचानक उसे उस ऊंची इमारत का बुर्ज नजर आ गया जिस के ठीक पीछे मीटिंग चल रही थी. इतने सेबरों से घिरा होने के बावजूद उस के चेहरे पर खुशी झलक आई.

तभी उसे सुनाई पड़ा, ‘‘तुम चारों ओर से घेर लिए गए हो, बच नहीं सकते. बेहतरी इसी में है कि तुम समर्पण कर दो और यहीं उतर जाओ.’’

उस ने कुछ सोचा और फिर दृढ़प्रतिज्ञा करते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं स्वयं को समर्पित करता हूं. उतरने का रास्ता दिखाइए.’’

उसे संकेत प्राप्त होने लगे. 2 जैट उस के आगे, 2 पीछे, 2 दाएं, 2 बाएं चल रहे थे. वे बहुत धीमी गति से उतर रहे थे. जसवीर का मस्तिष्क बहुत तेजी से कुछ सोच रहा था. तभी उस के प्लेन के पिछले भाग से धुआं उठने लगा. जसवीर ने अपने ही प्लेन में आग लगा ली. सेबरचालक निश्चिंत हो गए कि उन का निशाना ठीक बैठा है और दुश्मन चाहे भी तो अब भाग नहीं सकता. उधर जसवीर खुश था कि उस का दांव बहुत ठीक बैठा है.

धुएं की कालिमा बढ़ रही थी. उस का प्लेन एक क्षण को डोला और यह क्या? सामने वाले दोनों सेबरों का संतुलन बिगड़ चुका था. वे तेजी से पृथ्वी की ओर जा रहे थे… जसवीर ने प्लेन घुमाया, दाएं वाले सेबर पर वार किया और तेजी से पीछे वाले सेबर पर निशाना साधा. दोनों जैट शोलों में बदल गए थे.

जसवीर का प्लेन लपटों में खेल रहा था और उस में भयंकर तेजी और फुरती आ गई थी. उस ने प्लेन में रखे सभी बमों के पिन निकाल लिए थे. किसी भी क्षण कोई भी बम फूट सकता था और उसे शून्यता में बिखेर सकता था. पांचों जैट उस पर लगातार वार कर रहे थे और वह बखूबी वार बचा रहा था. इस के बावजूद उस के चेहरे पर गहरी स्थिरता और दृढ़ता थी.

एकाएक उस के प्लेन ने गति पकड़ी और एक भयानक धमाका आकाश में चीत्कार कर गया. सारा आकाश धुएं से भर गया था. दूरदूर तक कहीं कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अगर कुछ दिखाई दे रहा था तो बुर्ज वाली उस ऊंची इमारत का वह पिछला भाग, जो आग में जल रहा था.

संपूर्ण सरगोधा गहरी खामोशी के आंचल में सिमट गया. संध्या की कालिमा और गहरी हो गई थी और पराजित दृष्टियां उस पर कुछ ढूंढ़ रही थीं. जहां से वह आया था.

आरएमएस का सार्टर पत्रों को छांटछांट निर्दिष्ट खानों में रखता हुआ गुनगुना रहा था, ‘‘मरते हुए शहीदों ने सबक यह सिखाया, जीना उन्हें क्या आए, मरना जिन्हें न आया.’’

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वृद्धों में एलर्जी की समस्या

एलर्जी होने का खतरा सिर्फ छोटे बच्चों या फिर किशोरावस्था में ही होने का नहीं होता बल्कि वृद्धावस्था, खासकर 70 वर्ष से ऊपर की अवस्था, में भी पहली बार एलर्जी की शिकायत हो सकती है. अमेरिकन कालेज औफ  एलर्जी, अस्थमा ऐंड इम्यूनोलौजी के एक अध्ययन में कहा गया है कि करीब 30 प्रतिशत वयस्कों, विशेषकर वृद्धों, में पहली बार नाक की एलर्जी होने का खतरा रहता है.

ऐसा होने के पीछे कई कारण हैं और एलर्जी वयस्कों में भी उतनी ही सामान्य है जितनी कि शिशुओं और बड़े होते बच्चों में. विशेषज्ञों की राय है कि ऐसा शारीरिक सक्रियता की कमी, कमजोर रोग प्रतिरोधकता, किसी बीमारी, मनोवैज्ञानिक वजह जैसे कि जीवनसाथी या किसी परिजन की मृत्यु, तनाव और चिंता आदि के चलते हो सकता है.

जाहिर है बुजुर्गों को ऐसे शारीरिक व मानसिक लक्षणों का ज्यादा सामना करना पड़ता है. यही वजह है कि वृद्धों को एलर्जी की शिकायत अपेक्षाकृत ज्यादा होती है. कई बार यह भी देखा गया है कि जैसेजैसे आयु बढ़ती है शरीर में भोजन की पहचान करने की क्षमता क्षीण होने लगती है. ऐसे में, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सुपाच्य भोजन और विषाक्त भोजन में भेद नहीं कर पाती और अच्छे भोजन के पहुंचते ही खतरे का संकेत दे देती है, जिस में एलर्जी जैसी प्रतिक्रिया भी एक है.

वृद्धों में एलर्जी की पहचान

बच्चों की तरह ही वयस्कों और वृद्धों में भी एलर्जी के सामान्य लक्षण नजर आते हैं जैसे कि नाक से द्रव बहने लगना, आंखों में जलन होना, छींकना और आंखें लाल हो जाना आदि. कुछ लोगों में मलत्याग के समय जलन, पेटदर्द, उलटी की इच्छा, चक्कर आना, सिरदर्द, सांस लेने में दिक्कत और नाक के जाम होने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं.

भोजन संबंधी एलर्जी : वृद्धों में सामान्यतया कुछ खास खाद्य पदार्थों, जैसे शैलफिश, पोल्ट्री अंडों और मूंगफली आदि से एलर्जी पाई जाती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि वृद्धावस्था में शरीर कुछ विशेष भोज्य पदार्थों में भेद नहीं कर पाता और श्वेत रक्त कणिकाओं को एकत्रित होने का संकेत दे बैठता है जिस से एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो जाती है.

नासाशोथ : इस अवस्था में वृद्धों में लगातार नाक बहने लगती है. ऐसा श्वसन प्रणाली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण होने, जुकाम होने, साइनस होने, किसी रसायन की मौजूदगी या हवा में तैरते प्रदूषकों के कारण हो सकता है. मौसम बदलने पर यह समस्या बढ़ जाती है.

अस्थमा : अकसर देखा गया है कि अधिक उम्र वाले लोग प्रदूषण, धूल और परागकणों के प्रति थोड़े संवेदनशील होते हैं. इन पदार्थों के संपर्क में आने पर इन में से कई को अस्थमा और सांस की ऐसी कुछ तकलीफें होने लगती हैं.

ताप एलर्जी : कम प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर शरीर के चलते वृद्धों में ताप से जुड़ी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, जैसे कि हीट स्ट्रोक या आघात. वृद्धों को जल्दी थकान, डिहाइड्रेशन या शरीर में पानी की कमी हो जाती है जो एलर्जी को जन्म दे देती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ संवेदनशीलता अत्यधिक बढ़ जाती है और ऐसे लोगों को त्वचा की एलर्जी हो जाती है.

एलर्जी से करें मुकाबला

अकसर ऐसा देखने में आया है कि बच्चों को कोई तकलीफ  होने पर तत्काल चिकित्सा उपलब्ध करा दी जाती है, जबकि वृद्धों के मामले में अकसर मर्ज पकड़ में नहीं आता और उन का गलत इलाज होने लगता है. कभीकभी तो चिकित्सक भी उन की एलर्जी के लक्षणों की अनदेखी कर जाते हैं. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि वृद्धों को एलर्जी से निबटना सिखाया जाए और उन के लक्षणों को देख कर जल्दी से जल्दी उन्हें चिकित्सा उपलब्ध कराई जाए. उन के चिकित्सा परीक्षण नियमित तौर पर होते रहने चाहिए, खासतौर पर एलर्जी का कोई लक्षण सामने आने पर. उन की एलर्जी को समझने के लिए स्क्रैच टैस्ट या एक रक्त परीक्षण सहायक हो सकता है.

यह भी अत्यावश्यक है कि वातावरण और घर की साफसफाई रखी जाए. घर में परागकणों या प्रदूषकों के प्रवेश के रास्ते बंद किए जाएं. एलर्जी कारक तत्त्वों को घर के वातावरण से पूरी तरह से हटा देना एक अच्छा उपाय हो सकता है. हाइपोएलर्जिक मैटीरियल और फर्नीचर का प्रयोग कर के भी वृद्धजनों की एलर्जी की समस्या को कम किया जा सकता है.

उम्र बढ़ने के साथ किस तरह की एलर्जी परेशान करेगी, यह पता लगाना तो मुश्किल है लेकिन बुजुर्गों को एलर्जी से बचाने के लिए एलर्जीकारक तत्त्वों को काबू में रख ही सकते हैं. एलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों की जैसे ही पहचान होती जाए, उन्हें वृद्धों से दूर रखा जाए. छोटे से छोटे लक्षण पर गौर कर के वृद्धों को एलर्जी की समस्या से बचाया जा सकता है.

(लेखिका पोर्टिया मैडिकल में एसोसिएट डायरैक्टर हैं.)

राहुल गांधी : चित भी मेरी पट भी मेरी

राहुल गांधी की संसद सदस्यता और उन के आवास को ले कर जिस तरह नरेंद्र मोदी की सरकार के समय घटनाक्रम देश ने देखा उसे हमेशा याद किया जाएगा. चाहे मोदी सरकार लाख पल्ला झाड़ते रहे मगर अपना दामन नहीं बचा सकती.

अब जब उच्चतम न्यायालय से राहुल गांधी की दोषसिद्धि का फैसला आ गया है इस निर्णय को स्वीकृति देने में लेटलतीफी की जा रही है. माना जा रहा है कि अदृश्य इशारे पर राहुल गांधी को जल्द संसद में ऐंट्री नहीं मिलने वाली है और इस सत्र को निकालने के फिराक में लोकसभा अध्यक्ष दिखाई दे रहे हैं.

सांसत में सरकार

मगर सच तो यह है कि राहुल गांधी के साथ जो दमन किया जा रहा है उस से देशभर में उन्हें संवेदना मिलने लगी है. हालत यह है कि अगर संसद में राहुल गांधी की ऐंट्री हो जाती है तो भी मोदी सरकार सांसत में है और नहीं होती है तो और भी ज्यादा बड़ा संदेश देश में फैलता चला जा रहा है.

कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी के लिए यह मामला गले में फंसी हड्डी के समान है जिसे केंद्र सरकार न निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है.

यही कारण है कि हमेशा मुखर रहने वाले शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने मोदी सरकार के रुख को देखते हुए दावा किया कि केंद्र सरकार राहुल गांधी से डरी हुई है और इसी वजह से उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद कांग्रेस नेता की लोकसभा की सदस्यता अभी तक बहाल नहीं की गई है.

उच्चतम न्यायालय ने ‘मोदी उपनाम’ को ले कर की गई कथित विवादित टिप्पणी के संबंध में 2019 में दायर आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाते हुए शुक्रवार को उन की लोकसभा की सदस्यता बहाल करने का रास्ता साफ कर दिया है.

संजय राउत ने कहा,”उन्हें संसद की सदस्यता से जिस तत्परता से अयोग्य ठहराया गया था, वह उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर रोक के बाद नहीं दिखाई दे रही है. 3 दिन बीत गए हैं, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अभी तक उन की सदस्यता को बहाल नहीं किया है.”

शिवसेना नेता ने दावा किया,”केंद्र सरकार राहुल गांधी से डरी हुई है जिस के कारण उन्हें अभी तक सांसद के रूप में बहाल नहीं किया गया है.”

लोकसभा अध्यक्ष और संवैधानिक संकट

दरअसल, राहुल गांधी के प्रकरण में नरेंद्र मोदी सरकार यह कह सकती है कि इस में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और यह सच भी है. आज सब से बड़ा दांव लगा हुआ है लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की निष्पक्ष छवि पर. उन के निर्णय से राहुल गांधी संसद में आ सकते हैं और देश में यह संदेश पहुंच जाएगा कि न्यायालय का सम्मान किया जा रहा है. मगर जिस तरह राहुल गांधी के मामले में फैसला आने के बाद टालमटोल का रवैया जारी है और आगे भी यह बना रहता है तो इस का खमियाजा लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला को ही उठाना पड़ेगा.

एक निष्पक्ष लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उन की छवि तारतार होने की संभावना है क्योंकि लोकसभा अध्यक्ष होने के नाते उन का यह कर्तव्य है कि वह राहुल गांधी के प्रकरण में तत्काल फैसला लें.

दुनिया देख और समझ रही है

आज देश और दुनिया की निगाहें लोकसभा सचिवालय पर टिकी हैं, जब वह (सचिवालय) संभवतया, ‘मोदी उपनाम’ मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर उच्चतम न्यायालय की ओर से लगाई गई रोक को स्वीकार करेगा और उन की संसद सदस्यता बहाल करने के संबंध में फैसला करेगा.

वहीं, लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और राज्यसभा में दिल्ली सेवा विधेयक पर अगले हफ्ते होने वाली चर्चा के मद्देनजर संसद के मौनसून सत्र के आखिरी सप्ताह के हंगामेदार रहने के आसार हैं. इस में अगर राहुल गांधी शामिल हो जाएंगे तो संसद का माहौल ही बदल जाने की संभावना है.

यदि लोकसभा के सदस्य के तौर पर राहुल को अयोग्य ठहराने का फैसला रद्द किया जाता है, तो कांग्रेस की प्राथमिकता होगी कि अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान गांधी विपक्ष की ओर से अहम वक्ता की भूमिका निभाएं.

उच्चतम न्यायालय ने ‘मोदी उपनाम’ को ले कर की गई कथित टिप्पणी के संबंध में 2019 में दायर आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाते हुए शुक्रवार को उन की लोकसभा की सदस्यता बहाल करने का रास्ता दिखा दिया है.

जानबूझ कर देरी

यहां महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि ओम बिरला ने कहा कि उन्हें उच्चतम न्यायालय के आदेश का अध्ययन करने की आवश्यकता है. सवाल यह भी है कि जब गुजरात की निचली अदालत से फैसला आया तो आननफानन में फैसला ले लिया गया जबकि कानून के जानकारों के दृष्टिकोण से अगर राहुल गांधी अपील में जा रहे थे तो लोकसभा सचिवालय को यह जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी और अब देश के महाअदालत यानि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद जो लेटलतीफी की जा रही है उस से संवैधानिक संकट खड़े होने की पूरी संभावना है.

Sushant Singh Rajput के हमशक्ल को देख हैरान हुई राखी सावंत, कहा- बदला लेने वापस आए

Sushant Singh Rajput lookalike : बॉलीवुड के उभरते सितारे यानी सुशांत सिंह राजपूत की मौत को 2 साल हो चुके हैं लेकिन लोगों के दिलों में वो आज भी जिंदा है. उनके फैंस अक्सर सोशल मीडिया पर उनको याद कर उनकी फोटो और वीडियो शेयर करते रहते हैं. हालांकि इस बार सुशांत सिंह राजपूत नहीं बल्कि उनका हमशक्ल सुर्खियां बटोर रहा है. दिवंगत एक्टर सुशांत के हमशक्ल (Sushant Singh Rajput lookalike) की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिस पर लोग जमकर कमेंट कर रहे हैं. वही इस वीडियो पर बॉलीवुड की ड्रामा क्वीन राखी सावंत ने भी रियेक्ट किया है.

एक्ट्रेस राखी सावंत (rakhi sawant) हमेशा से ही सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय की बात करती रही है. उन्हें कई बार सोशल मीडिया पर एक्टर की वकालत कर न्याय की मांग करते देखा गया है.

विरल भयानी ने शेयर की वीडियो

आपको बता दें कि सेलिब्रिटी फोटोग्राफर विरल भयानी ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के हमशक्ल (Sushant Singh Rajput lookalike) का वीडियो शेयर किया है. सुशांत के हमशक्ल का नाम डोनिम अयान है, जिनकी शक्ल एक्टर से काफी मिलती-जुलती है.

जानें क्या कहा राखी सावंत ने ?

इस वीडियो को देखने के बाद सभी लोग दंग हैं क्योंकि वीडियो में जो व्यक्ति दिखाई दे रहा है वह हूबहू सुशांत की तरह दिखता है. एक्ट्रेस राखी सावंत (rakhi sawant) ने भी इस वीडियो पर कमेंट किया है. उन्होंने लिखा ‘वह बदला लेने के लिए वापस आए हैं, कर्म’.

वहीं सुशांत के फैंस भी अपनी खुशी जाहिर कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘ओ माई गॉड, इतना सिमिलर. अब एक्टर सुशांत सिंह की कमी महसूस नहीं होगी.’ एक और यूजर ने लिखा, ‘इस वीडियो (Sushant Singh Rajput lookalike) को देखने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि भगवान जी ने सुशांत को वापस भेज दिया हैं.’

YRKKH: अभिनव को मारने के लिए अभिमन्यु ने बनाया प्लान! अक्षरा को मिला सबूत

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert :  छोटे पर्दे का शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों काफी मजेदार ट्रैक चल रहा है. सीरियल के करंट ट्रैक की बात करें तो आज दिखाया जाएगा कि बिरला और गोयनका परिवार अभिनव का बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए पिकनिक पर गए हुए हैं. बर्थडे सेलिब्रेशन की पूरी प्लानिंग अभिमन्यु (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier) खुद करता है लेकिन इस बीच अभिनव के साथ एक हादसा हो जाएगा जिससे कहानी में नया ट्विस्ट आएगा.

अभिमन्यु करेगा अभिनव की तारीफ

आज दिखाया जाएगा कि अभिनव (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert) के बर्थडे पर बिरला और गोयनका परिवार दोनों साथ में लंच करते हैं. इसी बीच बारी-बारी से सभी लोग अभिनव के साथ का अपना स्पेशल मोमेंट शेयर करते हैं. अभिमन्यु भी अभिनव की तारीफ करता है. इसके बाद दिखाया जाएगा कि जब सभी लोग अभिनव की बर्थडे पार्टी की तैयारियां करते हैं तो तब अक्षरा और अभिमन्यु के बीच बहस हो जाती है और अभिनव उनकी सारी बातें सुन लेता है. लेकिन वह दोनों को शांत कराता है, जिससे दोनों की बहस वहीं खत्म हो जाती है.

अक्षरा को महसूस होगी घबराहट

इसके आगे दिखाया जाएगा कि अबीर अभिनव को अपने साथ गेमिंग जोन में ले जाना चाहता है लेकिन अभिमन्यु अभिनव को अपने साथ ले जाता है. जब अभिनव अभिमन्यु के साथ जाता है तो पहले उसकी घड़ी अक्षु की साड़ी में अटक जाती है और फिर अभिनव को जोर से ठोकर लगती है. इससे अक्षरा को घबराहट होती है.

अभिनव के लिए अभिमन्यु  लाएगा शराब

इसके बाद अभिमन्यु (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert) अभिनव को बताता है कि उसने उसके लिए कसौली से एक स्पेशल शराब मंगवाई है जो बात मुस्कान सुन लेती है. फिर अभिनव और अभिमन्यु शराब की बोतल को लेकर पहाड़ी पर जाते हैं. जहां अभिनव तो शराब पीता है लेकिन अभिमन्यु शराब को नीचे गिरा देता है फिर दोनों अपने मन की बात एक दूसरे से करते हैं.

उसके बाद कहानी में नया मोड़ आएगा और दिखाया जाएगा कि अभिनव की मौत हो जाती है जिसके लिए सब अभिमन्यु को जिम्मेदार मानते हैं. लेकिन हकीकत में क्या अभिमन्यु ने ही अभिनव को खाई से धक्का दिया है? इसका सच तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा.

अभिनेता अन्नू कपूर की असंवेदनशीलता या बड़बोलापन

इन दिनों पूरे देश में लोग बढ़ती हुई महंगाई की लगातार चर्चा कर रहे हैं. लोग इस बात से परेशान हैं कि टमाटर 200 रुपए किलो से ज्यादा के भाव में बिक रहा है. मगर अन्नू कपूर की नजर में कहीं कोई महंगाई नहीं है.

अभिनेता, निर्देशक, निर्माता व रेडियो जौकी अन्नू कपूर की प्रतिभा का कोई सानी नहीं. अभिनेता अन्नू कपूर ने वर्ष 1994 में फिल्म ‘अभय’ का निर्देशन कर स्वर्ण कमल और राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया था.

वर्ष 1979 से फिल्मों में कदम रखने वाले अन्नू कपूर अब तक सौ से भी अधिक फिल्मों में यादगार किरदार निभा कर अपनी अलग पहचान रखते हैं. उन्हें संगीत की भी अच्छी समझ है. वह कई वर्ष तक ‘जीटीवी’ पर संगीत कार्यक्रम ‘अंताक्षरी’ का संचालन कर चुके हैं.

अन्नू कपूर ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें फिल्म, साहित्य सहित हर विषय की काफी जानकारी है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अन्नू कपूर एक खास विचारधारा के साथ जुड़ कर कुछ अजीब सी बातें करने लगे हैं.

इन दिनों वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय की बायोपिक फिल्म में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का किरदार निभाते हुए काफी शोहरत बटोर रहे हैं, तो वहीं वह निर्माता सुरेश गोंडालिया व निर्देशक इरशाद खान की 18 अगस्त को प्रदर्शित फिल्म ‘नौनस्टौप धमाल’ को ले कर सुर्खियों में हैं. हाल ही में इस फिल्म के ट्रेलर को लौंच किया गया. उसी अवसर पर फिल्म के अपने किरदार के साथ कई मुद्दों पर अन्नू कपूर ने लंबी बात की.

मंहगाई की बात छेड़ते हुए अन्नू कपूर ने खुद कहा, ‘‘जहां तक बात की जा रही है कि इन दिनों महंगाई बहुत बढ़ी है, तो यह बातें बकवास है. हम ने पहले भी चुनाव आने पर महंगाई बढ़ने की बातें बहुत सुनी हैं. हमारे दादा के मुंह से भी मैं ने यही सुना था कि महंगाई बहुत ज्यादा है, जबकि उन दिनों आठ आने किलो घी मिलता था. हमेशा चुनाव के समय लोग महंगाई का रोना रोते हैं. यह सब बकवास बात है. अभी कोरोना की महामारी से पूरा विश्व गुजरा है. भारत भी गुजरा है. 130 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में महामारी में न जाने कितने लोगों को खोया है. पैसे का नुकसान हो गया. काम नहीं है जी… धंधा बंद हो गया. सब यही रो रहे हैं. इस के बावजूद कोरोना के समय कार की बिक्री 35 प्रतिशत ज्यादा हुई है. तो फिर महंगाई कहां है? यह सब चुनाव के स्टंट होते हैं, जो कि चलते रहते हैं. इन पर ध्यान नहीं देना चाहिए. हमारे हिंदुस्तान में बहुत पैसा है. एकएक झोंपड़े से कम से कम आधाआधा किलो सोना निकलेगा.’’

इतना ही नहीं, सपनों की बात करते हुए पिछले दिनों सुबह आत्महत्या करने वाले कला निर्देशक नितिन देसाई को श्रृद्धांजलि देते हुए अन्नू कपूर ने जो कहा, उस से भी लोग सहमत नहीं हैं. अन्नू कपूर ने कहा, ‘‘हमारी फिल्म इंडस्ट्री के बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति आर्ट डायरैक्टर नितिन देसाई चले गए, उन्होंने सपने बहुत बड़ेबड़े देखे थे. ईश्वर उन की आत्मा को शांति दे.’’

फैक्ट्री यूनियन सा ब्रिक्स

यूरोप और अमेरिका जब कुछ कमजोर पड़ रहे थे और भारत, रूस, चीन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका चमकने लगे थे, ब्रिक्स संगठन का गठन किया गया था और उम्मीद थी कि ये देश अमेरिका व यूरोप का आर्थिक मुकाबला कर सकेंगे.

अफसोस है कि ये सभी देश अपनीअपनी राजनीति का शिकार होने लगे हैं. चीन की गति कोविड के बाद धीमी पड़ गई है और अमेरिका ने उस का आर्थिक वायकौट शुरू कर दिया है. रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर के आफत मोल ले ली. भारत में नरेंद्र मोदी की पार्टी की हिंदूमुसलिम भेदभाव नीति से बहुत से देश भयभीत हैं. साउथ अफ्रीका के नेता करप्शन केसों में फंस रहे हैं. ब्राजील में भी राजनीति आर्थिक विकास पर हावी होने लगी है.

इन नेताओं की एक बड़ी भूल यह थी कि उन्होंने सोचा था कि यूरोप और अमेरिका सदा ही इन के खरीदार बने रहेंगे. इन्हें यह एहसास नहीं था कि इन देशों में लोकतंत्र की जड़ें तो गहरी है हीं, मानसिक आजादी का खून भी हर नस में बहता है. इस के मुकाबले ब्रिक्स देशों में एक तरह की तानाशाही ही है. वहां सत्ता में बने रहना ही नेताओं का काम है और इस के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं. इन सब देशों में नई सोच और नए विचारों पर सरकारी पहरा है. वे मानव विकास के मूलमंत्र, नए प्रयोग करने की क्षमता में विश्वास नहीं रखते. इन देशों के हर नेता को लगता है कि सोचने की आजादी का अर्थ है सरकार के खिलाफ सोचने की आजादी और ये जोड़तोड़ कर के चाहे हवाईजहाज, रौकेट, एटमबंद बना लें पर ये मौलिक शोध नहीं करते. इन सब का समाज बेहद दकियानूसी है.

अब जोहनसबर्ग, साउथ अफ्रीका में हुई शिखर बैठक में सिर्फ शब्दों के, कुछ और नहीं कहा गया. युद्ध क्षेत्र के अस्त्रों की बात हों, इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी की या क्लाइमेंट चेंज की बात हो, इन देशों में कुछ नया नहीं हो रहा. ये मिल कर ब्रिक्स को यूरोप, अमेरिका को कोसने का संगठन बना रहे हैं जिस से यूरोप, अमेरिका की सेहत को कोई असर नहीं पड़ने वाला.

जहां अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 70 हजार डौलर है, जरमनी की 65 हजार डौलर, इंगलैंड की 50 हजार डौलर वहीं ब्रिक्स देशों के आम आदमियों की प्रति व्यक्ति आय 2 हजार डौलर (भारत) 1,500 डौलर (चीन) तक ही सीमित है. हर साल ब्रिक्स देशों का आम आदमी अमीर देशों के आम आदमी से पिछड़ता जा रहा है. ऐसे में ब्रिक्स संगठन की हैसियत एक बड़ी फैक्ट्री की यूनियन से ज्यादा नहीं है.

 

फ्लौप गैंग : अमेरिका से साची को किसने किया था फोन?

मुंबई के मलाड इलाके के एक बार में बैठा वीर और उस का गैंग शराब के नशे में टुन्न हो कर अचानक से परम ज्ञानी बन गया था. बार के मालिक सनी अरोड़ा का दिमाग घूम रहा था. वह कई बार अपने वेटर्स को इशारे कर चुका था कि अब पेमेंट करवा ले. नशे में टुन्न हो कर अकसर यह गैंग बिना पैसे दिए ही बार से निकल जाता था, टोकने पर कहता, ‘अरे, पा जी, कल फिर आएंगे, सालों के ग्राहक हैं, कल ले लेना.’

सनी इन सब से पंगा भी नहीं लेना चाहता था. बेकार के लोग थे. सब के सब दिनरात फ़ालतू के हंगामे करते. अभी तो कुछ दिनों से यह गैंग कुछ ज़्यादा ही शेर हो गया था. एक लोकल छुटभैया नेता के साथ ज़रा सा उठनाबैठना क्या हुआ, गैंग के सातों लड़के अपनेआप को कोई बहुत बड़ा गैंगस्टर समझने लगे थे.

वेटर बिल की ट्रे ले कर वीर की टेबल पर रख आया और दूर जा कर खड़ा हो गया. वीर के साथी उमेश ने बिल देखा, ‘अरे यार, 7 हज़ार रुपए का बिल है. इतने पैसे किस के पास हैं?’

सब का नशा अचानक उतर गया. वीर ने चारों तरफ नज़र डाली. कोने की टेबल पर एक युवा जोड़ा अपनी बातों में खोया हुआ था. वीर बहकते क़दमों से उन की तरफ बढ़ा. युवा जोड़ा उसे देख कर चौंका, सहमा. वीर ने दादागीरी से पूछा, “क्या नाम है? यहां क्या कर रहे हो?”

लड़का तुरंत अकड़ से बोला, “तुम से मतलब?”

“हां, है मतलब. चल बता, यहां क्या कर रहा है?”

“जिस काम से सब यहां आते हैं, वही कर रहा हूं.”

“मुझ से जबान चलाएगा, जानता नहीं, मैं कौन हूं?”

“होगा कोई, नहीं जानता.”

“मेरे एक फोन से अंदर बंद हो जाएगा, लड़की की बदनामी अलग से होगी.”

“पर इस बार में तो हम पहले भी आए हैं.”

इतने में उमेश ने पीछे से आ कर वीर से कहा, “क्या भाई, क्या हुआ? नेता जी को फोन करूं क्या? कोई मुश्किल है?”

“हां, यार, आजकल ये लड़कालड़की लोग समाज का माहौल खराब करने पर तुले हैं. ऐ लड़की, ऐ लड़के, तेरा नाम क्या है?”

“मैं रमेश, यह आयशा.”

“ओफ्फो, तुम लोग ये सब कर कर के देश का बेड़ा गर्क करने पर क्यों तुले हो? तुम लोगों के घरवालों ने यही संस्कार दिए हैं? दूसरी जाति के लोगों के साथ क्यों उठतेबैठते हो? भाई, अपनीअपनी जात के साथ यह सब मस्ती, प्यारव्यार, एंजौय किया करो. चलो, अब चुपचाप हमारा बिल भी दे दो, नहीं तो बुरी तरह फंसोगे.”

आयशा की तो इतनी देर में डर के कारण हालत खराब हो चुकी थी. वीर और उस का पूरा गैंग रमेश और आयशा को जैसे घेर कर खड़ा हो गया था.

सनी समझ चुका था कि वह बीच में बोला, तो गड़बड़ हो जाएगी. छोटीछोटी बातों में राजनीति इतनी अंदर तक घुस चुकी है कि 2 लोग अपनी मरजी से चाह कर भी शांति से साथ बैठ नहीं सकते. धर्म प्रेम का दुश्मन बन चुका है. ये लोग क्या कभी समझ पाएंगे कि प्यार कभी जाति, धर्म पूछ कर नहीं हो सकता.

आयशा ने रमेश को इशारा किया कि पैसे दे कर यहां से निकल लेना चाहिए. रमेश ने वीर को घूरते हुए अपना वौलेट टटोला, कार्ड निकाल कर अपना और वीर के गैंग का बिल दिया और आयशा का हाथ पकड़ कर वहां से निकल गया. वीर ने अपने फ़र्ज़ी कौलर ऊपर किए और वहां से निकल गया.

बाहर आ कर सब लोग रोड के एक किनारे खड़े हो गए. सचिन ने वीर से कहा, “क्या बात है, बौस, मजा आ गया. आप ने तो डरा कर उन से अपना बिल ही भरवा लिया. बढ़िया मुरगा पकड़ा. लड़की डर गई थी.”

“क्यों न डरती? हिंदूमुसलिम लड़कालड़की जहां दिखे, डरा दो, उन पर हावी हो जाओ. आजकल तो यह सब से बढ़िया टाइमपास चल रहा है. नेता जी ने भी कहा है, यह टौपिक सदाबहार है. अभी इसी के दिन हैं. कहीं भी कोई गंभीर मुद्दा उठाने की ज़रूरत नहीं है, बस, हर बात में कोशिश करनी है कि घूमफिर कर हिंदूमुसलिम की बात पर शोर मचा देना है. कुछ गड़बड़ हुई तो वे संभाल लेंगे. कोई डरने की बात नहीं है.”

थोड़ी देर बाद गैंग के सब लोग अपनेआप को शाबाशी देते हुए अपनेअपने घर चले गए.

वीर ग्रेजुएट था. पर आगे की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी उस की. न नौकरी कर के किसी मेहनत करने के मूड में था वह. पिता गोपाल एक फैक्ट्री में काम करते थे. मां सीता बेहद धार्मिक विचारों की महिला थीं, उन्होंने ही बेटे के अंदर ब्राह्मण होने के दर्प के ऐसे बीज बोए थे कि आज वीर हर इंसान को अपने से नीचे समझता था.

वहीं उस से 2 साल छोटी बहन साची स्टडी लोन ले कर अपना अच्छा कैरियर बनाने अमेरिका गई हुई थी. वह इस घर के माहौल से बिलकुल अलग थी. बाहर के माहौल और अच्छी शिक्षा के कारण उस की सोच बहुत खुली हुई थी. वीर और उस के विचार कभी मेल नहीं खाए थे. वीर को अपने भविष्य के लिए यह ज़्यादा आसान लगा था कि किसी नेता का हाथ सिर पर रहेगा तो बिना मेहनत किए खर्चापानी चलता रहेगा. गोपाल तो कई बार इस बात से नाराज़ रहते थे पर सीता बेटे को कुछ न कहतीं.

वीर को कहीं भी ज़रा सा भी अंदाजा होता कि कोई लड़कालड़की अकेले बैठे हैं और दोनों में से कोई किसी और जाति का है तो वह जो शोर मचा कर उन पर हावी होता कि वे बेचारे चुपचाप वहां से जाने में ही अपनी भलाई समझते. ऐसे कई बार वीर उन से अच्छीखासी रकम झटक लेता. आजकल जो माहौल है, ऐसे में लगभग हर जोड़ा अपनी जान बचा कर वहां से हटने में ही अपनी खैर समझता. कई बार वीर डराने के लिए चाक़ू भी निकाल लेता, कभी फोन निकाल कर वीडियो बना कर वायरल करने की धमकी देता. सब को पता है, धर्म के नाम पर आज किसी को भी डरायाधमकाया जा सकता है.

रात को सब सोने को लेट ही रहे थे कि साची का फोन आया. वह बहुत खुश थी. उस ने बताया, “जिस कंपनी में जौब का फाइनल इंटरव्यू दिया था, वहां से मेल आ गया है. मां, पापा, बढ़िया जौब मिल गया है.”

सब बहुत खुश हुए. वीर ने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है. चल, अब जब आएगी तो अच्छे लड़के ढूंढ कर रखता हूं तेरे लिए. अब तेरी शादी करते हैं.”

साची चिढ़ गई, “मुझ से बड़े हो, पहले खुद कर लो.”

“नहीं, पहले तेरे लिए लड़का ढूंढूंगा अपनी कास्ट का.”

साची मुसकराई, “चलो, बाय, भाई. अब आप से क्या ही कहूं. फिलहाल आप की बात पर बस हंसी ही आ रही है.”

साची ने हंसते हुए फोन रख दिया. वीर झल्लाया, “मां, मुझे आप की बेटी की हंसी समझ नहीं आई. लड़का देखो इस के लिए. वैसे तो मुझे अपनी बहन पर पूरा भरोसा है पर ज़माना बहुत खराब है.”

दो महीने ऐसे और बीते. वीर और उस का गैंग सड़कछाप गुंडई करते रहे. सारे लड़के वीर को हीरो बना कर रखते. एक लड़का चिराग, जो अभी 20 साल का ही था, वीर का बहुत बड़ा फैन था, एक दिन कहने लगा, “मैं ने अपनी मां को आप के बारे में बताया, भाई, तो घरवाले बोले, ‘बस, वीर भाई जैसे लोग ही अपना धर्म बचा कर रखेंगे. वीर भाई जैसे लोग हों तो धर्म कभी खतरे में नहीं पड़ सकता. भाई, आप के घरवाले कितने लकी हैं.”

वीर खुश हुआ, बोला, “हां, मेरी बहन अमेरिका में पढ़ती है. अब उस के लिए मुझे लड़का ढूंढना है. वह चाहे जितना बाहर रह ले, उस की शादी मेरी मरजी से ही होगी.”

एक दिन वीर घर पर ही था. गोपाल देर से आने वाले थे. उस ने अपने साथियों को घर ही बुला लिया था. नेता जी ने एक रैली में लोग इकट्ठे करने का काम दिया था. वैलेंटाइन डे भी आने वाला था. इस दिन तो वह शेर बन कर पार्कों, होटलों में युवा जोड़ों का शिकार किया करता था. उन से खूब पैसे ऐंठता था. उस के पास अच्छाख़ासा पैसा हो जाता था. इस गैंग का काम ही यह हो गया था- लोगों को परेशान करना और उन से पैसे लेना, फिर खानापीना. बस, यही उन की जिंदगी थी.

तभी साची की वीडियोकौल आई, “भाई, मां को भी बुला लो जल्दी. पापा से बात हो गई है.’

साची के चहकते स्वर पर वीर ने मां को आवाज़ दी. पूरा गैंग सुन तो रहा था पर कुछ किनारे था. सीता भी आ गईं. साची की खिली सी आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी, “मां, सौरी. मैं ने समीर से शादी कर ली. मुझे अपनी इस ख़ुशी में भाई का ड्रामा नहीं चाहिए था. समीर और मैं इंडिया आ कर आप सब से मिलना चाहते हैं, इसलिए किसी भी टाइम मुंबई पुलिस वैरिफिकेशन करने आती ही होगी. समीर को वीज़ा मिल जाए तो आते हैं.” सब को जैसे करंट लगा, लगना ही था. वीर गुर्राया, “समीर कौन है?”

“पाकिस्तानी मुसलिम.”

“क्या?”

“हां, भाई, पापा को कोई प्रौब्लम नहीं है. समीर काफी पढ़ालिखा इंसान है और बहुत अच्छा जौब करता है.”

“यह नहीं हो सकता. मैं यह होने नहीं दूंगा.”

“क्या नहीं होने दोगे, भाई. अब तो सब हो चुका.”

इतने में डोरबेल हुई. वीर ने दरवाजा खोला. पीछे से पूरा गैंग भी आ कर खड़ा हो गया. सब ने झांक कर देखा कि कौन है. पुलिस की यूनिफौर्म में एक रोबदार व्यक्ति खड़ा था, “किसी समीर ने इंडियन एंबैसी में वीज़ा के लिए अप्लाई किया है, एड्रेस वैरिफिकेशन के लिए आए हैं.”

वीर हांहूं करता रहा. पूछताछ कर के पुलिस का आदमी चला गया. सीता एक चेयर पर अपना सिर पकड़ कर बैठी थीं. फ्लौप गैंग का चेहरा देखने लायक था. फ्लौप गैंग के फ्लौप भाई को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. दीवार पर अपना सिर मार ले या दहाड़े मारमार कर रोए.

छाती में इन्फेक्शन, बरतें सावधानी

टीबी का इन्फैक्शन, न्यूमोनिया आदि को हम ऐसे भूल रहे हैं कि जैसे हमारे देश से इन सब कलंकित बीमारियों को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया गया हो. हम शायद यह नहीं जानते कि इन बीमारियों की देश में होने वाली अकाल मौतों में बड़ी भूमिका होती है. खासकर, टीबी का इन्फैक्शन देश में महामारी की तरह फैल रहा है. आश्चर्य की बात यह है कि हम उस के प्रति पूरी तरह से सचेत नहीं है. ऐसा लगता है कि टीबी का इन्फैक्शन हमारी जिंदगी का एक हिस्सा बन चुका है जो हमारे शरीर से मुलाकात करने यदाकदा आता रहता है.

भारत जैसे विकासशील देश में छाती के इन्फैक्शन के कारणों में न्यूमोनिया दूसरे नंबर पर आता है. अगर समय रहते न्यूमोनिया को नियंत्रण में न लाया गया तो मरीज को भयानक परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इस के अलावा, छाती में और भी कई तरह के इन्फैक्शन होते हैं जो फेफड़े को तबाह कर के रख देते हैं.

समय रहते छाती के इन्फैक्शन को नियंत्रण में न लाया गया तो भयंकर परिणाम घटित हो सकते हैं. टीबी के इन्फैक्शन का अगर समय पर पूरी तरह से खात्मा न किया गया तो एक तरह से यह इन्फैक्शन स्वयं ही लाइलाज हो जाएगा और टीबी की कोई दवा असर करना बंद कर देगी. दूसरी बात यह है कि टीबी का इन्फैक्शन फेफड़े को धीरेधीरे नष्ट कर देगा. तब एक फेफड़ा खोने के अलावा आप के पास कोई विकल्प न बचेगा. इस तरह से अगर न्यूमोनिया के इन्फैक्शन को नियंत्रित न किया गया तो छाती में मवाद बन जाएगा. यह मवाद आप के फेफडे़ व आप की जान दोनों के लिए घातक सिद्घ होगा. फेफड़े का हिस्सा नष्ट होगा, साथ ही जान से भी हाथ धोना पड़ेगा.

क्यों होता है इन्फैक्शन

छाती में इन्फैक्शन होने के लिए जहां एक ओर कुपोषण यानी स्वस्थ व संतुलित आहार का अभाव होता है वहीं दूसरी तरफ दूषित वातावरण के कारण हवा में कीटाणुओं की भरमार होती है. इस के साथसाथ लोगों की आधुनिक व व्यायाम रहित जीवनशैली, पूर्ण निद्रा का अभाव व तनावग्रस्त मानसिकता भी इन्फैक्शन के कारण बनते हैं. कई और कारण हैं जैसे मादक द्रव्यों व शराब का प्रतिदिन सेवन, बीड़ीसिगरेट का प्रचलन और अनियंत्रित व अनियमित भोजन. इन सब का मिलाजुला असर फेफड़ों को चौपट कर रहा है. लोग यह नहीं समझते कि फेफड़ों को भी औक्सीजनयुक्त शुद्घ हवा की सख्त जरूरत होती है.

इस के अभाव में फेफडे़ कभी स्वस्थ नहीं रह पाते हैं अगर फेफड़ों को हर सांस के साथ औक्सीजन की मात्रा कम मिलेगी तो फेफड़े इन्फैक्शन के चपेट में आ जाएंगे.

छाती के इन्फैक्शन को समय रहते नियंत्रित न किया गया तो फेफड़े के चारों ओर पानी का जमाव होना शुरू हो जाता है. यह छाती में टीबी के इन्फैक्शन की शुरुआत है. अगर इस पानी को छाती से समय रहते न निकाला गया और टीबी के इन्फैक्शन को नियंत्रित न किया गया तो छाती में मवाद बनने की संभावना प्रबल हो जाती है और औपरेशन की जरूरत पड़ती है. आप को चाहिए कि समय रहते किसी थोरेसिक सर्जन यानी चैस्ट स्पैशलिस्ट से तुरंत परामर्श लें और उन की निगरानी में इलाज कराए.

चोट भी इन्फैक्शन का कारण

पसली के फै्रक्चर व छाती की चोट की भी छाती के इन्फैक्शन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. देश में अकसर देखा गया है कि छाती में चोट लगने व पसली टूट जाने पर उस का सही इलाज नहीं हो पाता है. ऐसा छाती की चोट से घायल व्यक्ति के परिवार वालों की अज्ञानता तथा अस्पतालों में थोरेसिक सर्जन की अनुलब्धता के चलते होता है. लोग यह नहीं समझते कि पसली टूटने या चटकने पर अकेले हड्डी ही नहीं टूटती बल्कि छाती के अंदर स्थित फेफड़े भी जख्मी हो जाते हैं और इन जख्मी फेफड़ों को अपनी कार्यशीलता को फिर से प्राप्त करने के लिए विशेष इलाज की जरूरत होती है. इस के लिए इस अवस्था में एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन व एक अत्याधुनिक आईसीयू, कृत्रिम सांस सयंत्र (वैंटीलेटर) व क्रिटिकल केयर महकमे की आवश्यकता होती है. छाती की चोट से घायल मरीजों के परिवार वालों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अस्पताल में घुसने से पहले उस में इन सब सुविधाओं की उपलब्धता है या नहीं.

यह बात अच्छी तरह समझ लें कि छाती की चोट में हुआ इन्फैक्शन जानलेवा हो सकता है. छाती की चोट में फेफड़े के चारों ओर खून जमा होने और फिर उस में मवाद पड़ने का हमेशा खतरा बना रहता है. सही इलाज के अभाव में छाती की चोट के बाद पनपा इन्फैक्शन फेफडे़ को आंशिक रूप से नष्ट कर देता है.

इन्फैक्शन होने पर क्या करें

छाती में इन्फैक्शन की आशंका है और आप के फैमिली डाक्टर उसे हफ्ते या

10 दिनों में कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं, समस्या दिनपरदिन बढ़ती जा रही है तो आप तुरंत अनुभवी सर्जन से परामर्श लें और उन की निगरानी में जरूरी जांचें व प्रभावी इलाज करवाएं. शुरुआती दिनों में छोटे औपरेशन यानी छाती में एक नली डाल कर समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है.

कुछ जरूरी जांचें

छाती के इन्फैक्शन में चैस्ट एक्सरे, छाती का एचआरसीटी स्कैन व कभीकभी एमआरआई स्कैन की भी जरूरत पड़ती हैं. कभीकभी छाती की सीटी एंजियोग्राफी की आवश्यकता भी बन पड़ती है. इसलिए छाती के इन्फैक्शन से पीडि़त मरीज के परिवार वालों को चाहिए कि हमेशा ऐसे अस्पतालों में जाएं जहां इन सब जांचों की सुविधा हो और एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन की चौबीसों घंटे उस अस्पताल में उपलब्धता हों.

इलाज के तरीके

फेफड़ों के इन्फैक्शन को सब से पहले दवाओं से नियंत्रित किया जाता है. जब छाती में इन्फैक्शन के कारण पानी या मवाद इकट्ठा हो जाता है तो उसे छाती में नली डाल कर निकाला जाता है. यह बड़ा कारगर उपाय है. इस छोटे से इलाज में अनावश्यक देरी फेफड़े को आंशिक या पूर्ण क्षति पहुंचा देती है. अगर एक तरफ के फेफड़े का एक हिस्सा या पूरा हिस्सा इन्फैक्शन के कारण पूर्णरूप से नष्ट हो चुका है तो तुरंत उसे किसी अनुभवी थोरेसिक सर्जन से निकलवा दें, अन्यथा फेफड़े का स्वस्थ हिस्सा या दूसरी तरफ का स्वस्थ फेफड़ा भी इन्फैक्शन की चपेट में आ जाएगा, और जानलेवा जटिलताएं पैदा हो जाएंगी. निष्कर्ष यह है कि छाती के इन्फैक्शन के मरीज सही समय पर सही अस्पताल व सही डाक्टर से प्रभावी ढंग से इलाज कराएं वरना पैसे व समय की बरबादी तो होगी ही, साथ ही जान से भी हाथ धोना पड़ेगा.

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