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Elvish Yadav का इवेंट हुआ रद्द, 1 लाख से ज्यादा लोग हुए थे शामिल

Elvish Yadav Event : बॉलीवुड एक्टर सलमान खान (Salman Khan) का फेमस रियलिटी शो ‘बिग बॉस ओटीटी 2’ (Bigg Boss OTT 2) अपने आखिरी दौर में पहुंच चुका है. सिर्फ चार दिन बाद शो के विनर के नाम से पर्दा उठ जाएगा. फिलहाल विनर बनने की रेस में एल्विश यादव, अभिषेक मल्हान, पूजा भट्ट, मनीषा रानी और बेबिका आगे चल रहे हैं. सभी कंटेस्टेंट जनता का दिल जीतने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि घर के बाहर कंटेस्टेंट के घरवाले भी अपने-अपने बच्चे को विनर बनाने के लिए जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. इसी कड़ी में एल्विश यादव (Elvish Yadav Event) के परिवार वालों ने भी उनके लिए एक इवेंट का आयोजन किया था, लेकिन अब उस इवेंट को रद्द करना पड़ा है.

‘बिग बॉस खबरी’ ने ट्वीट कर दी जानकारी

दरअसल एल्विश यादव के लिए आयोजित इस इवेंट में एक लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हो गए थे, जिसको देखते हुए इवेंट (Elvish Yadav Event) को कैंसिल कर दिया गया है. इस बात की जानकारी ‘बिग बॉस खबरी’ (Bigg Boss Khabri) ने ट्वीट कर दी है. ‘बिग बॉस खबरी’ ने ट्वीट कर लिखा, “भारी भीड़ की वजह से एल्विश यादव का इवेंट रद्द कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि इस इवेंट में 1 लाख से अधिक लोग इकट्ठा हो गए थे. कई लोग सड़कों पर भी आ गए थे जिसके कारण इवेंट को रद्द करना पड़ा.”

14 अगस्त को स्ट्रीम होगा शो का ग्रैंड फिनाले

इस बार ‘बिग बॉस ओटीटी 2’ (Bigg Boss OTT 2) 17 जून से शुरू हुआ था, जिसमें करीब 13 कंटेस्टेंट्स ने भाग लिया था. लेकिन अब घर में केवल 5 कंटेस्टेंट एल्विश, (Elvish Yadav) अभिषेक, पूजा भट्ट, मनीषा और बेबिका बचे हैं. आपको बता दें कि शो का ग्रैंड फिनाले जियो सिनेमा पर 14 अगस्त को रात 9 बजे से स्ट्रीम होगा.

YRKKH Spoiler : आरोही के फैसले से क्या बच जाएगी अभिनव की जान ?

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert : सीरियल “ये रिश्ता क्या कहलाता है” में इस समय खूब सारा ड्रामा देखने को मिल रहा है. इस बात पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है कि अभिनव की मौत होगी या नहीं. वहीं आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि डॉक्टर्स बार-बार कहते हैं कि अभिनव की कंडीशन क्रिटिकल है, जिसे सिर्फ और सिर्फ अभिमन्यु संभाल सकता है. लेकिन अक्षरा और मुस्कान, अभिमन्यु को अभिनव के पास जाने भी नही देती. उन्हें लगता है कि अभिमन्यु ने अभिनव की जान लेनी की कोशिश की है.

किसी को नहीं होगा मुस्कान की बात पर यकीन

कल के एपिसोड (YRKKH Spoiler) में दिखाया गया था कि मुस्कान, अभिमन्यु को अभिनव के पास जाने नहीं देती है. वहीं आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि मुस्कान, अभिमन्यु का कॉलर पकड़कर उसे धकेलती है. ये देख अक्षरा और कायरव हैरान रह जाते हैं और उस पर गुस्सा करते हैं. लेकिन मुस्कान बार-बार कहती है कि वो अभिमन्यु को अभिनव के पास नहीं जाने देगी, क्योंकि अभिमन्यु ने जानबूझकर अभिनव को खाई में धक्का दिया है. हालांकि कोई भी मुस्कान की बात पर यकीन नहीं करता है.

बड़े पापा की बात सुन हैरान हो जाएगी अक्षरा 

इसी बीच बड़े पापा (YRKKH Spoiler) की एंट्री होती है. बड़े पापा सभी से कहते हैं कि उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा है, कि अभिमन्यु, अभिनव को खाई में धक्का देता है. ये बात सुनकर सभी हैरान हो जाते हैं. आगे मुस्कान कहती है कि, उसने देखा था कि अभिमन्यु अभिनव को शराब पिलाने के लिए पहाड़ी पर लेकर जाता है. इसके बाद आरोही, अभिमन्यु से सवाल करती है कि, ‘क्या तुम शराब के नशे में ऑपरेशन करने वाले थे?’ तभी सुरेखा कहेंगी, ‘अभिमन्यु को देखकर ये साफ-साफ पता चल रहा है कि अभी उसने शराब नहीं पी रखी है.’

अभिमन्यु को गिरफ्तार करेगी पुलिस

इसके बाद सभी लोग अभिमन्यु (YRKKH Spoiler) पर इल्जाम लगाएंगे, लेकिन मंजरी बार-बार सबको समझाने की कोशिश करती है कि अभिमन्यु कभी भी ऐसा नहीं कर सकता है. इसके बाद दिखाया जाएगा कि अक्षरा अभिमन्यु को खरीखोटी सुनाएगी. वहीं कायरव पुलिस को फोन कर देगा, जिसके बाद कुछ ही समय में पुलिस वहां आती है और अभिमन्यु को अभिनव की हत्या करने के इल्जाम में गिरफ्तार कर अपने साथ लेकर जाती है.

आरोही लेगी ये फैसला

हालांकि पुलिस स्टेशन जाने से पहले अभिमन्यु, अक्षरा से सवाल करेगा कि, ‘क्या उसे भी यही लगता है कि उसने ही अभिनव (YRKKH Spoiler) का खून किया है?’ अक्षरा, अभिमन्यु के किसी भी सवाल का जवाब नहीं देती है. इसके बाद पुलिस, अभिमन्यु को पुलिस स्टेशन लेकर चली जाएगी. वहीं आरोही, किसी दूसरे हार्ट सर्जन का इंतजाम करती है, जिससे अभिनव की जान बच सकें. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही हैं कि अभिनव की जान बच सकती है.

राहुल को राहत

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले ने एक बार फिर साफ किया है कि देश की निचली अदालतों में न्याय कैसा मिलता है. गुजरात के सूरत शहर में स्थित जिले की अदालत के एक मजिस्ट्रेट ने जिस तरह से राहुल के एक रैली में बयान कि, सारे मोदी- नीरव मोदी, ललित मोदी वगैरह चोर क्यों हैं, पर भारतीय जनता पार्टी
के एक विधायक की अवमानना यानी डिफामेशन अर्जी पर 2 साल की सजा सुनाई, वह चौंकाने वाली थी.

जहां इस तरह के मामले 10 साल तक पड़े रहते हैं, वैस्ट सूरत कोर्ट के न्यायिक मजिस्ट्रेट बी एच कपाड़िया ने 16 जुलाई, 2019 को 13 अप्रैल की रैली में दिए गए कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण पर मामला संज्ञान में लिया और 23 मार्च, 2023 को उन्हें अपराधी घोषित कर दिया वह भी अधिकतम 2 साल की सजा देने के साथ, जबकि राहुल गांधी ने शिकायत करने वाले पूर्णेश मोदी का नाम तक नहीं  लिया था और जिन के नाम लिए थे उन की ओर से कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई थी. जज महोदय ने अपील के लिए जेल से तो जमानत दे थी पर अपराध पर स्टे नहीं लगाया.

उच्च न्यायालय में यह सुनवाई जुलाई 2023 में शुरू हुई और 4 अगस्त को गुजरात, जहां से नरेंद्र मोदी और अमित शाह लोकसभा सांसद है, के उच्च न्यायालय ने राहुल गांधी की पुनर्याचिका को ठुकरा दिया. न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक ने अहमदाबाद स्थित हाईकोर्ट में कहा कि कोई कारण नहीं बनता कि निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाई जाए.

ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट बी एच कपाड़िया ने 2 साल की जो सुनाई वह अप्रत्याशित थी क्योंकि शिकायतकर्ता का नाम तक राहुल गांधी ने नहीं लिया था. यह सजा इंडियन पीनल कोड की डिफामेशन की धारा के एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत किसी दलित समुदाय को अपशब्द कहने जैसी है पर उस में भी शिकायत उस व्यक्ति को करनी होती है जिसे अपशब्द कहा गया हो. कई मामले दायर हुए हैं जिन में दूसरों ने भी शिकायत की है मगर उन में सजा यदाकदा ही होती है. वैसे, अपमानजनक टिप्पणी से होने वाली प्रतिष्ठा की हानि पर 2 साल की सजा  अपनेआप में सही नहीं लगती और अब तो सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा भी दी है.

निचली अदालतों के मजिस्ट्रेटों के पास भारत में वही अधिकार हैं जो सुप्रीम कोर्ट के जज के पास हैं. जब तक अपील न हो, सब से निचली अदालत का फैसला पत्थर की लकीर होता है पर जिस तरह निचली अदालतों के फैसलों को पलटा जाता है, उस से साफ है कि निचली अदालतों के फैसले पूरी तरह तार्किक नहीं होते. देश की न्याय व्यवस्था की जड़ में यह सब से बड़ी कड़ी है पर अफसोस कि यह सब से कमजोर कड़ी है. जैसे, ‘जौली एलएलबी’ फिल्म में दिखाया गया था.

निचली अदालतों में मामले वर्षों लटके रहते हैं और जज स्थानीय लोगों से प्रभावित न होते हों, यह माना नहीं जा सकता. हाल के सालों में न्यायालय परिसर और उन में जजों को रहने की व्यवस्था बनने लगी है जो एक अच्छी बात है. वहीं, जब तक पहले जज को ही जनता अंतिम जज न मान ले, न्याय व्यवस्था को
मजबूत नहीं माना जा सकता.

निचली अदालतों के फैसले ऐसे होने चाहिए कि ऊपरी अदालतों को उन में न राजनीति या भेदभाव की गंध आए और न अधकचरेपन की. ट्रायल कोर्ट सही फैसले दें जिन्हें चुनौती दी जाए तो कुछ न हो, तभी देश की न्याय व्यवस्था ठीक होगी.

राहुल गांधी को मिली सजा के बाद सभी को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट राहत देगी. ऐसी उम्मीद, दरअसल, निचली अदालतों पर भरोसा न रहना जताती है. ट्रायल कोर्ट के फैसलों के बाद अपील केवल तब नहीं होती जब सजा पाने वाले के पास वकीलों को देने के लिए पैसे नहीं होते. देश में कानून व्यवस्था की यह स्थिति
ठीक नहीं है.

एक्सपर्ट से जानें क्या होते हेपेटाइटिस के लक्षण, परीक्षण और बचाव

हेपेटाइटिस एक ऐसी संक्रामक समस्या है, जिसकी वजह से लिवर प्रभावित होता है. हेपेटाइटिस वायरल संक्रमणों का एक समूह है, जो मुख्य रूप से हमारे लिवर को प्रभावित करता है.
हेपेटाइटिस संक्रमण विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे ए, बी, सी, डी और ई. यह सभी संक्रमण के विभिन्न प्रकार हैं, जो लिवर को अलग तरह से प्रभावित कर सकता है.

डॉ. विज्ञान मिश्रा, लैब प्रमुख, न्यूबर्ग डायग्नोस्टिक्स बता रहे हैं हेपेटाइटिस के लक्षण, परीक्षण और बचाव-

हेपेटाइटिस के लक्षण क्या हैं?

हेपेटाइटिस के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षणों में थकान महसूस होना, स्किन का रंग पीला पड़ना (पीलिया), पेट में दर्द, बीमार जैसा महसूस होना और बुखार इत्यादि हैं. हालांकि, कुछ लोगों में हेपेटाइटिस के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे में स्थिति गंभीर होने की संभावना रहती है.

हेपेटाइटिस का कैसे होता है परीक्षण?

हेपेटाइटिस की जांच करने के लिए आमतौर डॉक्टर ब्लड टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. इस ब्लड टेस्ट में आपके शरीर से थोड़ा सा ब्लड लिया जाता है, जिसका लैब में परीक्षण किया जाता है. इस परीक्षण में पता लगाने की कोशिश कि जाती है कि आपके ब्लड में हेपेटाइटिस का संक्रमण है या नहीं, अगर है तो यह किस प्रकार का है.

  1. हेपेटाइटिस ए टेस्ट : इस परीक्षण में एंटीबॉडी की तलाश की जाती है और पता लगाया जाता है कि आपको पहले संक्रमण हुआ था या किसी तरह का टीका लगाया गया था या नहीं.
  2. हेपेटाइटिस बी : इस टेस्ट के जरिए ब्लड में विशिष्ट सतह एंटीजन और एंटीबॉडी की जाती है. यदि ब्लड में एंटीजन पाया जाता है, तो डॉक्टर आपको कुछ अन्य टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं.
  3. हेपेटाइटिस सी : इस परीक्षण में वायरस के प्रति एंटीबॉडी की जांच की जाती है और यदि वायरस सकारात्मक है, तो इस स्थिति में डॉक्टर संक्रमण की पुष्टि करने के लिए एक और परीक्षण कराने की सलाह दी जा सकती है.
  4. विंडो पीरियड : आपके लिए ये जानना जरूरी है कि हेपेटाइसिस के कुछ टेस्ट में संक्रमण का तुरंत पता लगाना मुश्किल हो जाता है, ऐसी स्थिति को “विंडो पीरियड” कहा जाता है. इसलिए अगर आप हाल ही में किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं, तो कुछ सप्ताह बाद ही हेपेटाइटिस की जांच कराएं.

कैसे करें बचाव?

कुछ प्रकार के हेपेटाइटिस के लिए टीके उपलब्ध हैं, जैसे हेपेटाइटिस ए और बी के लिए। इन वैक्सीनेशन के जरिए हेपेटाइसिस से बचाव किया जा सकता है। अन्य स्थिति में आपको डॉक्टर से अपने स्थिति के बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए.

सावधान रहें, कहीं रिश्तों से दूर न कर दे दोस्ताना

आजकल युवाओं में अपने सगे रिश्तों को दरकिनार कर दोस्तोंसहेलियों को महत्त्व देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. यह सच है कि दोस्ती का रिश्ता बेमिसाल होता है और अगर समझदारीपूर्वक निभाया जाए तो जीवनपर्यंत बना रहता है. किंतु खेद इस बात का है कि आज हम अपने इर्दगिर्द इकट्ठे हो गए कुछ चेहरों को ही अपना मित्र मानने लगे हैं और इन मात्र दिखावटी और टाइमपास मित्रों के लिए न केवल अपनों की अनेदेखी कर रहे हैं, बल्कि अपनों के प्रति निभाने वाली जिम्मेदारियों से भी मुंह मोड़ते जा रहे हैं.

अवंतिका अपने बेटे की जन्मदिन पार्टी का आमंत्रण देने के लिए रिश्तेदारों की सूची तैयार कर रही थी तो उसे देख कर बेटा पलाश बोल पड़ा, ‘‘अरे अम्मी, ये इतने रिश्तेदारों की सूची क्यों तैयार कर रही हैं? क्या करना है सब को बुला कर? मैं इस बार अपना बर्थडे अपने दोस्तों के साथ मनाऊंगा.’’

‘‘दोस्तों को तो हम हर साल बुलाते हैं, इस साल भी बुलाएंगे पर तुम रिश्तेदारों को बुलाने से क्यों मना कर रहे हो?’’

अवंतिका ने आश्चर्य से पूछा. इस पर पलाश ने कहा, ‘‘मम्मी, रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं. उन के बीच मैं बोर हो जाता हूं. इस बार अपना बर्थडे मैं केवल अपने दोस्तों के साथ किसी मौल या रैस्टोरैंट में ही सैलिब्रेट करूंगा.’’

दोस्त हमारे रिश्तेदार तुम्हारे

पलाश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर अवंतिका खामोश हो गई. ‘रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं’ यह वाक्य काफी देर तक उस के कानों में गूंजता रहा और वह सोचती रही कि क्या अब बच्चों की दुनिया सिर्फ उन के दोस्तों तक ही सिमट कर रह जाएगी? बच्चों को चाची, बूआ, मौसी, भाभी जैसे रिश्तों से कोई लेनादेना नहीं रह गया है? अब वे केवल हमारे रिश्तेदार हैं?

दिल्ली की सुमन ने जब अपनी भतीजी से जोकि दिल्ली में ही किसी कंपनी में जौब करती है से पूछा कि वह न्यू ईयर पर अपने घर बनारस जा रही है या नहीं? तो उस ने जवाब दिया कि वह नहीं जा रही है, क्योंकि अगले ही महीने उस की एक सहेली का जन्मदिन है और इस बार वे सारी सहेलियां उस का जन्मदिन मनाने शिमला जाने वाली हैं. अत: अगर उस ने न्यू ईयर पर छुट्टी ले ली तो फिर सहेली के जन्मदिन में जाने के लिए उसे छुट्टी नहीं मिल पाएगी. इसलिए उस ने न्यू ईयर पर घर जाने का विचार त्याग दिया. यह सुन कर सुमन को क्रोध तो बहुत आया पर उस ने कहा कुछ नहीं, उस के सामने अपने भैयाभाभी का चेहरा घूम गया कि वे कितनी उत्सुकता से त्योहार पर बेटी के घर आने का इंतजार कर रहे हैं पर उस के न आने की खबर सुन कर वे कितने मायूस हो जाएंगे.

विरोधाभास क्यों

युवाओं के अलावा विवाहित महिलाओं और पुरुषों में भी आजकल पारिवारिक सदस्यों को दरकिनार कर तथाकथित दोस्तोंसहेलियों को अहमियत देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. मैं अपनी एक पड़ोसिन की शादी की 25वीं सालगिरह में जब पहुंची तो वहां मौजूद लोगों में केवल सहेलियों और पड़ोसियों को देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और मैं उन से पूछ बैठी कि तुम्हारा कोई रिश्तेदार नजर नहीं आ रहा है?

तब उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम लोग किसी रिश्तेदार से कम हो क्या? यार जितनी मस्ती हम दोस्तों के साथ मिल कर कर रहे हैं उतनी क्या रिश्तेदारों के साथ हो पाती है? उन्हें बुलाती तो हजार समस्याएं होतीं. पहले तो उन्हें 1-2 दिन ठहराने और खिलानेपिलाने की व्यवस्था करनी पड़ती. पूरा समय आवभगत में लगा रहना पड़ता. उस के बाद तरहतरह के नखरे उठाने पड़ते वे अलग.’’

दोस्तों की अहमियत कितनी

मैं मन ही मन सोचने लगी कि इतनी बड़ी खुशी, लाखों का खर्च और इस खुशी में शरीक होने के लिए किसी अपने को कोई आमंत्रण नहीं. यह कैसा समय आ गया है? बिना पारिवारिक सदस्यों के कोई खुशी मनाने से अच्छा तो न ही मनाओ.

सारिका ने अपनी सोसायटी में किट्टी जौइन की. शुरूशुरू में उसे वहां नईनई सखियों के साथ बैठना और उन से बातें करना बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगी कि उसे बहुत अच्छी सहेलियां मिल गई हैं. लेकिन धीरेधीरे उस ने देखा कि उस की उन कथित सहेलियों के लिए अपनों से ज्यादा किट्टी पार्टी में शामिल होने वाली सहेलियों की अहमियत है.

सारिका ने देखा कि एक दिन उस की एक किट्टी मैंबर आयशा किट्टी में नहीं पहुंची. उस ने मैसेज भेजा था कि उस की सास की तबीयत खराब हो गई है, इसलिए वह नहीं आ पाएगी. सारिका यह देख हैरान रह गई कि आयशा के साथ सहानुभूति जताने और फोन कर के उस की सास का हाल पूछने के बजाय किट्टी में उस के खिलाफ बातें होने लगीं कि अरे, उस की सास तो रोज ही बीमार रहती है, यह तो किट्टी में न आने का एक बहाना है. आयशा आना चाहती तो दवा दे कर आ जाती.

धीरेधीरे सारिका यह नोट करने लगी कि उस की किट्टी से किस तरह महिलाएं अपने परिवारजनों की उपेक्षा कर के पहुंचती हैं और फिर उस बात को इस तरह बताती हैं जिस से यह सिद्घ हो सके कि उस की नजर में सहेलियों की अहमियत कितनी ज्यादा है जिन से मिलने वह अपने परिवारजनों से झूठ बोल कर आ गई.

सिक्के का दूसरा पहलू

दोस्त बनाना और दोस्ती करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन दोस्तों के आगे परिवारजनों की उपेक्षा व उन की अनदेखी करना बहुत ही घातक है. हमारे आसपास दोस्तों की भीड़ भले ही नजर आए पर उन में सच्चा दोस्त एक भी हो यह कहना बहुत मुश्किल होता है. दोस्तों के साथ बैठना हंसनाहंसाना, समय व्यतीत करना अच्छा तो लगता है पर क्या इन चीजों से वे हमारे इतने अपने हो जाते हैं कि उन के आगे रिश्तों का महत्त्व नगण्य कर दिया जाए?

मोबाइल, व्हाट्सऐप और फेसबुक की आदी दुनिया के इस दौर में मित्रों की एक फौज तैयार कर लेना बहुत आसान हो गया है. घर बैठे दिनरात उन से चटरपटर करते रहने से मन में यह गलतफहमी बन जाती है कि हम बहुत अच्छे मित्र बन चुके हैं और फिर वही मित्र अपने सच्चे हितैषी लगने लगते हैं. जबकि हकीकत यह है कि ऐसे मित्र खुशियों में तो बहुत बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, किंतु जब कभी मित्रता की कसौटी पर खरा उतरने का समय आता है तब टांयटांय फिस हो जाते हैं. दुखपरेशानी के समय में ऐसे मित्र 2-4 दिन तो साथ देते हैं, पर उस के बाद रिश्तेदारों का ही मुंह ताकने लगते हैं कि कब वे आएं और उन्हें छुट्टी मिले.

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शादी के बाद : रजनी के मातापिता क्या उससे परेशान थे?

रजनी को विकास जब देखने के लिए गया तो वह कमरे में मुश्किल से 15 मिनट भी नहीं बैठी. उस ने चाय का प्याला गटागट पिया और बाहर चली गई.

रजनी के मातापिता उस के व्यवहार से अवाक् रह गए. मां उस के पीछेपीछे आईं और पिता विकास का ध्यान बंटाने के लिए कनाडा के बारे में बातें करने लगे. यह तो अच्छा ही हुआ कि विकास कानपुर से अकेला ही दिल्ली आया था. अगर उस के घर का कोई बड़ाबूढ़ा उस के साथ होता तो रजनी का अभद्र व्यवहार उस से छिपा नहीं रहता. विकास तो रजनी को देख कर ऐसा मुग्ध हो गया था कि उसे इस व्यवहार से कुछ भी अटपटा नहीं लगा.

रजनी की मां ने उसे फटकारा, ‘‘इस तरह क्यों चली आई? वह बुरा मान गया तो? लगता है, लड़के को तू बहुत पसंद आई है.’’

‘‘मुझे नहीं करनी उस से शादी. बंदर सा चेहरा है. कितना साधारण व्यक्तित्व है. उस के साथ तो घूमनेफिरने में भी मुझे शर्म आएगी,’’ रजनी ने तुनक कर कहा.

‘‘मुझे तो उस में कोई खराबी नहीं दिखती. लड़कों का रूपरंग थोड़े ही देखा जाता है. उन की पढ़ाईलिखाई और नौकरी देखी जाती है. तुझे सारा जीवन कैनेडा में ऐश कराएगा. अच्छा खातापीता घरबार है,’’ मां ने समझाया, ‘‘चल, कुछ देर बैठ कर चली आना.’’

रजनी मान गई और वापस बैठक में आ गई.

‘‘इस की आंख में कीड़ा घुस गया था,’’ विकास की ओर रजनी की मां ने बरफी की प्लेट बढ़ाते हुए कहा.

रजनी ने भी मां की बात रख ली. वह दाएं हाथ की उंगली से अपनी आंख सहलाने लगी.

विकास ने दोपहर का खाना नहीं खाया. शाम की गाड़ी से उसे कानपुर जाना था. स्टेशन पर उसे छोड़ने रजनी के पिताजी गए. विकास ने उन्हें बताया कि उसे रजनी बेहद पसंद आई है. उस की ओर से वे हां ही समझें. शादी 15 दिन के अंदर ही करनी पड़ेगी, क्योंकि उस की छुट्टी के बस 3 हफ्ते ही शेष रह गए थे और दहेज की तनिक भी मांग नहीं होगी.

रजनी के पिता विकास को विदा कर के लौटे तो मन ही मन प्रसन्न तो बहुत थे परंतु उन्हें अपनी आजाद खयाल बेटी से डर भी लग रहा था कि पता नहीं वह मानेगी या नहीं.

पिछले 3 सालों में न जाने कितने लड़कों को उसे दिखाया. वह अत्यंत सुंदर थी, इसलिए पसंद तो वह हर लड़के को आई लेकिन बात हर जगह या तो दहेज के कारण नहीं बन पाई या फिर रजनी को ही लड़का पसंद नहीं आता था. उसे आकर्षक और अच्छी आय वाला पति चाहिए था. मातापिता समझा कर हार जाते थे, पर वह टस से मस न होती. उस रात वे काफी देर तक जागते रहे और रजनी के विषय में ही सोचते रहे कि अपनी जिद्दी बेटी को किस तरह सही रास्ते पर लाएं.

अगले दिन रात को तार वाले ने जगा दिया. रजनी के पिता तार ले कर अंदर आए. तार विकास के पिताजी का था. वे रिश्ते के लिए राजी थे. 2 दिन बाद परिवार के साथ ‘रोकने’ की रस्म करने के लिए दिल्ली आ रहे थे. रजनी ने सुन कर मुंह बिचका दिया. छोटे बच्चों को हाथ के इशारे से कमरे से जाने को कहा गया. अब कमरे में केवल रजनी और उस के मातापिता ही थे.

‘‘बेटी, मैं मानता हूं कि विकास बहुत सुंदर नहीं है पर देखो, कनाडा में कितनी अच्छी तरह बसा हुआ है. अच्छी नौकरी है. वहां उस का खुद का घर है. हम इतने सालों से परेशान हो रहे हैं, कहीं बात भी नहीं बन पाई अब तक. तू तो बहुत समझदार है. विकास के कपड़े देखे थे, कितने मामूली से थे. कनाडा में रह कर भी बिलकुल नहीं बदला. तू उस के लिए ढंग के कपड़े खरीदेगी तो आकर्षक लगने लगेगा,’’ पिता ने समझाया.

‘‘देख, आजकल के लड़के चाहते हैं सुंदर और कमाऊ लड़की. तेरे पास कोई ढंग की नौकरी होती तो शायद दहेज की मांग इतनी अधिक न होती. हम दहेज कहां से लाएं, तू अपने घर की माली हालत जानती ही है. लड़कों को मालूम है कि सुंदर लड़की की सुंदरता तो कुछ साल ही रहती है और कमाऊ लड़की तो सारा जीवन कमा कर घर भरती है,’’ मां ने भी बेटी को समझाने का भरसक प्रयास किया.

रजनी ने मातापिता की बात सुनी, पर कुछ बोली नहीं. 3 साल पहले उस ने एम.ए. तृतीय श्रेणी में पास किया था. कभी कोई ढंग की नौकरी ही नहीं मिल पाई थी. उस के साथ की 2-3 होशियार लड़कियां तो कालेजों में व्याख्याता के पद पर लगी हुई थीं. जिन आकर्षक युवकों को अपना जीवनसाथी बनाने का रजनी का विचार था वे नौकरीपेशा लड़कियों के साथ घर बसा चुके थे. शादी और नौकरी, दोनों ही दौड़ में वह पीछे रह गई थी.

‘‘देख, कनाडा में बसने की किस की इच्छा नहीं होती. सारे लोग तुझ को देख कर यहां ईर्ष्या करेंगे. तुम छोटे भाईबहनों के लिए भी कुछ कर पाओगी,’’ पिता ने कहा.

रजनी को अपने छोटे भाईबहनों से बहुत लगाव था. पिताजी अपनी सीमित आय में उन के लिए कुछ भी नहीं कर सकते थे. वह सोचने लगी, ‘अगर वह कनाडा चली गई तो उन के लिए बहुतकुछ कर सकती है, साथ ही विकास को भी बदल देगी. उस की वेशभूषा में तो परिवर्तन कर ही देगी.’ रजनी मां के गले लग गई, ‘‘मां, जैसी आप दोनों की इच्छा है, वैसा ही होगा.’’

रजनी के पिता तो खुशी से उछल ही पड़े. उन्होंने बेटी का माथा चूम लिया. आवाज दे कर छोटे बच्चों को बुला लिया. उस रात खुशी से कोई न सो पाया.

2 सप्ताह बाद रजनी और विकास की धूमधाम से शादी हो गई. 3-4 दिन बाद रजनी जब कानपुर से विकास के साथ दिल्ली वापस आई तब विकास उसे कनाडा के उच्चायोग ले गया और उस के कनाडा के आप्रवास की सारी काररवाई पूरी करवाई.

कनाडा जाने के 2 हफ्ते बाद ही विकास ने रजनी के पास 1 हजार डालर का चेक भेज दिया. बैंक में जब रजनी चेक के भुगतान के लिए गई तो उस ने अपने नाम का खाता खोल लिया. बैंक के क्लर्क ने जब बताया कि उस के खाते में 10 हजार रुपए से अधिक धन जमा हो जाएगा तो रजनी की खुशी की सीमा न रही.

रजनी शादी के बाद भारत में 10 महीने रही. इस दौरान कई बार कानपुर गई. ससुराल वाले उसे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत ही खुशहाल और अमीर थे. कभी भी उन्होंने रजनी को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि उस के मातापिता साधारण स्थिति वाले हैं. रजनी का हवाई टिकट विकास ने भेज दिया था. उसे विदा करने के लिए मायके वाले भी कानपुर से दिल्ली आए थे.

लंदन हवाई अड्डे पर रजनी को हवाई जहाज बदलना था. उस ने विकास से फोन पर बात की. विकास तो उस के आने का हर पल गिन रहा था.

मांट्रियल के हवाई अड्डे पर रजनी को विकास बहुत बदला हुआ लग रहा था. उस ने कीमती सूट पहना हुआ था. बाल भी ढंग से संवारे हुए थे. उस ने सामान की ट्राली रजनी के हाथ से ले ली. कारपार्किंग में लंबी सी सुंदर कार खड़ी थी. रजनी को पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि यह कार उस की है. वह सोचने लगी कि जल्दी ही कार चलाना सीख लेगी तो शान से इसे चलाएगी. एक फोटो खिंचवा कर मातापिता को भेजेगी तो वे कितने खुश होंगे.

कार में रजनी विकास के साथ वाली सीट पर बैठे हुए अत्यंत गर्व का अनुभव कर रही थी. विकास ने कर्कलैंड में घर खरीद लिया था. वह जगह मांट्रियल हवाई अड्डे से 55 किलोमीटर की दूरी पर थी. कार बड़ी तेजी से चली जा रही थी. रजनी को सब चीजें सपने की तरह लग रही थीं. 40-45 मिनट बाद घर आ गया. विकास ने कार के अंदर से ही गैराज का दरवाजा खोल लिया. रजनी हैरानी से सबकुछ देखती रही.

कार से उतर कर रजनी घर में आ गई. विकास सामान उतार कर भीतर ले आया. रजनी को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना आलीशान घर उसी का है. उस की कल्पना में तो घर बस 2 कमरों का ही होता था, जो वह बचपन से देखती आई थी. विकास ने घर को बहुत अच्छी तरह से सजा रखा था. सब तरह की आधुनिक सुखसुविधाएं वहां थीं. रजनी इधरउधर घूम कर घर का हर कोना देख रही थी और मन ही मन झूम रही थी.

विकास ने उस के पास आ कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज की शाम हम बाहर मनाएंगे परंतु इस से पहले तुम कुछ सुस्ता लो. कुछ ठंडा या गरम पीओगी?’’ विकास ने पूछा.

रजनी विकास के करीब आ गई और उस के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आज की शाम बाहर गंवाने के लिए नहीं है, विकास. मुझे शयनकक्ष में ले चलो.’’

विकास ने रजनी को बांहों के घेरे में ले लिया और ऊपरी मंजिल पर स्थित शयनकक्ष की ओर चल दिया.

मैं एक औरत से 2 साल से प्यार करता हूं, लेकिन कल मैंने उसे उसके देवर के साथ देख लिया, अब मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक औरत से 2 साल से प्यार कर रहा हूं. उस का पति नहीं है. एक दिन मैं ने उसे उस के देवर के साथ देख लिया, तब से मुझे उस से नफरत हो गई है. वह कहती है कि मैं उसे न छोड़ूं. आप बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

आप को शादीशुदा औरत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. आप को उस से प्यार नहीं है, आप बस उस का फायदा उठा रहे थे. उस का देवर भी मौके का फायदा उठा रहा है. बेहतर होगा कि आप उस से दूर रहें.

प्लेन से मुंबई से दिल्ली तक के सफर में थकान जैसा तो कुछ नहीं था पर मां के ‘थोड़ा आराम कर ले,’ कहने पर मैं फ्रैश हो कर मां के ही बैडरूम में आ कर लेट गई. भैयाभाभी औफिस में थे. मां घर की मेड श्यामा को किचन में कुछ निर्देश दे रही थीं. कल पिताजी की बरसी है. हर साल मैं मां की इच्छानुसार उन के पास जरूर आती हूं. मैं 5 साल की ही थी जब पिताजी की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. भैया उस समय 10 साल के थे. मां टीचर थीं. अब रिटायर हो चुकी हैं.

25 सालों के अपने वैवाहिक जीवन में मैं सुरभि और सार्थक के जन्म के समय ही नहीं आ पाई हूं पर बाकी समय हर साल आती रही हूं. विपिन मेरे सकुशल पहुंचने की खबर ले चुके थे. बच्चों से भी बात हो चुकी थी.

मैं चुपचाप लेटी कल होने वाले हवन, भैयाभाभी और अपने इकलौते भतीजे यश के बारे में सोच ही रही थी कि तभी मां की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, ‘‘ले तनु, कुछ खा ले.’’

पीछेपीछे श्यामा मुसकराती हुई ट्रे ले कर हाजिर हुई.

मैं ने कहा, ‘‘मां, इतना सब?’’

‘‘अरे, सफर से आई है, घर के काम निबटाने में पता नहीं कुछ खा कर चली होगी या नहीं.’’

मैं हंस पड़ी, ‘‘मांएं ऐसी ही होती हैं, मैं जानती हूं मां. अच्छाभला नाश्ता कर के निकली थी और प्लेन में कौफी भी पी थी.’’

मां ने एक परांठा और दही प्लेट में रख कर मुझे पकड़ा दिया, साथ में हलवा.

मायके आते ही एक मैच्योर स्त्री भी चंचल तरुणी में बदल जाती है. अत: मैं ने भी ठुनकते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं इतना नहीं खाऊंगी और हलवा तो बिलकुल भी नहीं.’’

मां ने प्यार भरे स्वर में कहा, ‘‘यह डाइटिंग मुंबई में ही करना, मेरे सामने नहीं चलेगी. खा ले मेरी बिटिया.’’

‘‘अच्छा ठीक है, अपना नाश्ता भी ले आओ आप.’’

‘‘हां, मैं लाती हूं,’’ कह कर श्यामा चली गई.

हम दोनों ने साथ नाश्ता किया. भैया भाभी रात तक ही आने वाले थे. मैं ने कहा, ‘‘कल के लिए कुछ सामान लाना है क्या?’’

‘‘नहीं, संडे को ही अनिल ने सारी तैयारी कर ली थी. तू थोड़ा आराम कर. मैं जरा श्यामा से कुछ काम करवा लूं.’’

दोपहर तक यश भी आ कर मुझ से लिपट गया. मेरे इस इकलौते भतीजे को मुझ से बहुत लगाव है. मेरे मायके में गिनेचुने लोग ही तो हैं. सब से मुधर स्वभाव के कारण घर में एक स्नेहपूर्ण माहौल रहता है. जब आती हूं अच्छा लगता है. 3 बजे तक का टाइम कब कट गया पता ही नहीं चला. यश कोचिंग चला गया तो मैं भी मां के पास ही लेट गई. मां दोपहर में थोड़ा सोती हैं. मुझे नींद नहीं आई तो मैं उठ कर ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी. इतने में डोरबैल बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला, श्यामा पास में ही रहती है. वह दोपहर में घर चली जाती है. शाम को फिर आ जाती है.

पोस्टमैन था. टैलीग्राम था. मैं ने उलटापलटा. टैलीग्राम मेरे नाम था. प्रेषक के नाम पर नजर पड़ते ही मुझे हैरत का एक तेज झटका लगा. मेरी हथेलियां पसीने से भीग उठीं. अनिरुद्ध. मैं टैलीग्राम ले कर सोफे पर धंस गई.

हमेशा की तरह कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया था अनिरुद्ध ने, ‘‘तुम इस समय यहीं होगी, जानता हूं. अगर ठीक समझो तो संपर्क करना.’’

पता नहीं कैसे मेरी आंखें मिश्रित भावों की नमी से भरती चली गई थीं. ओह अनिरुद्ध. तुम्हें आज 25 साल बाद भी याद है मेरे पिताजी की बरसी. और यह टैलीग्राम. 3 दिन बाद 164 साल पुरानी टैलीग्राम सेवा बंद होने वाली है. अनिरुद्ध के पास यही एक रास्ता था आखिरी बार मुझ तक पहुंचने का. मेरा मोबाइल नंबर उस के पास है नहीं, न मेरा मुंबई का पता है उस के पास. तब यहां उन दिनों घर में भी फोन नहीं था. बस यही आखिरी तरीका उसे सूझा होगा. उसे यह हमेशा से पता था कि पिताजी की बरसी पर मैं कहीं भी रहूं, मां और भैया के पास जरूर आऊंगी और उस की यह कोशिश मेरे दिल के कोनेकोने को उस की मीठी सी याद से भरती जा रही थी.

अनिरुद्ध… मेरा पहला प्यार एक सुगंधित पुष्प की तरह ही तो था. एक पूरा कालखंड ही बीत गया अनिरुद्ध से मिले. वयसंधि पर खड़ी थी तब मैं जब पहली बार मन में प्यार की कोंपल फूटी थी. यह वही नाम था जिस की आवाज कानों में उतरने के साथ ही जेठ की दोपहर में वसंत का एहसास कराने लगती. तब लगता था यदि परम आनंद कहीं है तो बस उन पलो में सिमटा हुआ जो हमारे एकांत के हमसफर होते, पर कालेज के दिनों में ऐसे पल हम दोनों को मुश्किल से ही मिलते थे. होते भी तो संकोच, संस्कार और डर में लिपटे हुए कि कहीं कोई देख न ले. नौकरी मिलते ही उस पर घर में विवाह का दबाव बना तो उस ने मेरे बारे में अपने परिवार को बताया.

फिर वही हुआ जिस का डर था. उस के अतिपुरातनपंथी परिवार में हंगामा खड़ा हो गया और फिर प्यार हार गया था. परंपराओं के आगे, सामाजिक नियमों के आगे, बुजुर्गों के आदेश के आगे मुंह सिला खड़ा रह गया था. प्यार क्या योजना बना कर जातिधर्म परख कर किया जाता है या किया जा सकता है? और बस हम दोनों ने ही एकदूसरे को भविष्य की शुभकामनाएं दे कर भरे मन से विदा ले ली थी. यही समझा लिया था मन को कि प्यार में पाना जरूरी भी नहीं, पृथ्वीआकाश कहां मिलते हैं भला. सच्चा प्यार तो शरीर से ऊपर मन से जुड़ता है. बस, हम जुदा भर हुए थे.

उस की विरह में मेरी आंखों से बहे अनगिनत आंसू बाबुल के घर से विदाई के आंसुओं में गिन लिए गए थे. मैं इस अध्याय को वहीं समाप्त समझ पति के घर आ गई थी. लेकिन आज उसी बंद अध्याय के पन्ने फिर से खुलने के लिए मेरे सम्मुख फड़फड़ा रहे थे.

टैलीग्राम पर उस का पता लिखा हुआ था, वह यहीं दिल्ली में ही है. क्या उस से मिल लूं? देखूं तो कैसा है? उस के परिवार से भी मिल लूं. पर यह मुलाकात हमारे शांतसुखी वैवाहिक जीवन में हलचल तो नहीं मचा देगी? दिल उस से मिलने के लिए उकसा रहा था, दिमाग कह रहा था पीछे मुड़ कर देखना ठीक नहीं रहेगा. मन तो हो रहा था, देखूंमिलूं उस से, 25 साल बाद कैसा लगता होगा. पूछूं ये साल कैसे रहे, क्याक्या किया, अपने बारे में भी बताऊं. फिर अचानक पता नहीं क्या मन में आया मैं चुपचाप स्टोररूम में चली गई. वहां काफी नीचे दबा अपना एक बौक्स उठाया. मेरा यह बौक्स सालों से यहीं पड़ा है. इसे कभी किसी ने नहीं छेड़ा. मैं ने बौक्स खोला, उस में एक और डब्बा था.

सामने अनिरुद्ध के कुछ पुराने पीले पड़ चुके, भावनाओं की स्याही में लिपटे खतों का 1-1 पन्ना पुरानी यादों को आंखों के सामने एक खूबसूरत तसवीर की तरह ला रहा था. न जाने कितनी भावनाओं का लेखाजोखा इन खतों में था. मुझे अचानक महसूस हुआ आजकल के प्रेमियों के लिए तो मोबाइल ने कई विकल्प खोल दिए हैं. फेसबुक ने तो अपनों को छोड़ कर अनजान रिश्तों को जोड़ दिया है.

सारा सामान अपनी गोद में फैलाए मैं अनगिनत यादों की गिरफ्त में बैठी थी जहां कुछ भी बनावटी नहीं होता था. शब्दों का जादू और भावों का सम्मोहन लिए ये खत मन में उतर जाते थे. हर शब्द में लिखने वाले की मौजूदगी महसूस होती थी. अनिरुद्ध ने एक पेपर पर लिखा था, ‘‘खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार. जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.’’

मेरे होंठों पर एक मुसकराहट आ गई. आजकल के बच्चे इन शब्दों की गहराई नहीं समझ पाएंगे. वे तो अपने प्रिय को मनाने के लिए सिर्फ एक आई लव यू स्माइली का सहारा ले कर बात कर लेते हैं. अनिरुद्ध खत में न कभी अपना नाम लिखता था न मेरा, इसी वजह से मैं इन्हें संभाल कर रख सकी थी. अनिरुद्ध की दी हुई कई चीजें मेरे सामने पड़ी थीं. उस का दिया हुआ एक पैन, उस का पीला पड़ चुका एक सफेद रूमाल जो उस ने मुझे बारिश में भीगे हुए चेहरे को साफ करने के लिए दिया था. मुझे दिए गए उस के लिखे क्लास के कुछ नोट्स, कई बार तो वह ऐसे ही कोई कागज पकड़ा देता था जिस पर कोई बहुत ही सुंदर शेर लिखा होता था.

स्टोररूम के ठंडेठंडे फर्श पर बैठ कर मैं उस के खत उलटपुलट रही थी और अब यह अंतिम टैलीग्राम. बहुत सी मीठी, अच्छी, मधुर यादों से भरे रिश्ते की मिठास से भरा, मैं इसे हमेशा संभाल कर रखूंगी पर कहां रख पाऊंगी भला, किसी ने देख लिया तो क्या समझा पाऊंगी कुछ? नहीं. फिर वैसे भी मेरे वर्तमान में अतीत के इस अध्याय की न जरूरत है, न जगह.

फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैं ने अंतिम टैलीग्राम को आखिरी बार भरी आंखों से निहार कर उस के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मुझे उसे कहीं रखने की जरूरत नहीं है. मेरे मन में इस टैलीग्राम में बसी भावनाओं की खुशबू जो बस गई है. अब इसी खुशबू में भीगी फिरती रहूंगी जीवन भर. वह मुझे भूला नहीं है, मेरे लिए यह एहसास कोई ग्लानि नहीं है, प्यार है, खुशी है.

YRKKH Spolier : अभिनव के बच्चे की मां बनने वाली है अक्षरा ! अभिमन्यु जाएगा जेल

Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode : सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इस समय जबरदस्त ट्रैक चल रहा है. इस वक्त कहानी अभिनव के इर्द-गिर्द घूम रही है. कल के एपिसोड में दिखाया गया था कि अभिनव के जन्मदिन के दिन उसका एक्सीडेंट हो जाता है. वह खाई में गिर जाता है लेकिन, आखिरी समय में अक्षरा अभिनव को बचा लेती है और उसे तुरंत हॉस्पिटल ले कर जाती है. वहीं आज के एपिसोड (Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode) में दिखाया जाएगा कि अभिनव का इलाज बिड़ला हॉस्पिटल में होगा. इसके अलावा अभिमन्यु जेल पहुंच जाएगा.

अक्षरा से अपने दिल की बात कहेगा अभिनव

आज के एपिसोड  (yeh rishta kya kehlata hai) में दिखाया जाएगा कि डॉक्टर्स अक्षरा को बताएंगे कि अभिनव को होश आ गया है, जिसे सुनने के बाद अक्षरा खुशी से झूम उठेगी. वह अपने बालों में गुलाब का फूल लगाकर अभिनव से मिलने जाएगी. अभिनव को देख अक्षरा भावुक हो जाएगी और उसे गले लगा लेगी.

वहीं दूसरी तरफ अभिनव (Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode) भी अक्षरा को देख खुश होगा और अक्षरा से अपने दिल की बात करेगा. वह अक्षरा से कहता है, ‘आई लव यू’. ये सुन अक्षरा खुश हो जाएगी और वो भी अभिनव से अपने प्यार का इजहार करती है. लेकिन इस बीच ही अभिनव की मौत हो जाएगी. ये देख अक्षरा घबरा जाएगी और डॉक्टर्स को आवाज देने लगती है.

अभिमन्यु से नफरत करने लगेगी अक्षरा

इसके बाद दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु जेल में कैद होगा. जहां उसके मन में अजीब सी घबराहट हो रही है. वह अभिनव के बारे में सोच-सोचकर परेशान हो रहा होता है. इसके अलावा ये भी कहा जा रहा है कि आने वाले एपिसोड (Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode) में दिखाया जाएगा कि अक्षरा अभिनव के बच्चे की मां बनेगी. साथ ही अभिमन्यु से नफरत करने लगेगी. कुल मिलाकर आने वाले एपिसोड में कई सारे नए-नए ट्विस्ट देखने को मिलेंगे.

फिल्म ‘गदर 2’ की हीरोइन बनने का सपना नहीं देखा था- सिमरत कौर

इन दिनों फिल्म ‘गदर 2’ में तारा सिंह की बहू मुसकान का किरदार निभा कर सुर्खियों में छाई हुई अभिनेत्री
सिमरत कौर इस से पहले दक्षिण भारत में ‘बी’ ग्रेड की ‘प्रेमथो मी कार्तिक’ (2017), ‘परिचयम’ (2017) और ‘सोनी'(2018) जैसी फिल्मों में अभिनय कर दर्शकों का दिल जीत चुकी हैं. लेकिन 2019 में प्रदर्शित तेलुगु भाषा की कामुक, रोमांटिक व रोमांचक फिल्म ‘डर्टी हरी’ में अभिनेता श्रवण रेड्डी के साथ अंतरंग दृश्यों को निभा कर शोहरत के साथ ही आलोचनाओं का भी शिकार हुईं. इसी वजह से उन्होंने कभी बौलीवुड से जुड़ने का सपना भी नहीं देखा था.

लेकिन उन की मेहनत ने उन्हें फिल्म ‘गदर 2’ से बौलीवुड की हीरोइन बना दिया. इस से वे काफी उत्साहित हैं.

पेश हैं, सिमरत कौर से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

आप ने अभिनय को कैरियर बनाने की बात कब सोची?

मेरी परवरिश मुंबई ही हुई है. मेरे मातापिता हैं, बड़ी बहन हैं. मेरे पिता अभी अवकाशप्राप्त जिंदगी गुजार रहे हैं. पहले उन की किताबों की दुकान थी. मिलिट्री व केंद्रीय विद्यालय में किताबें सप्लाई किया करते थे. मेरे दादाजी नेवी में थे. मैं ने कंप्यूटर विषय के साथ बीएससी किया है. मैं स्पोर्ट्स से जुड़ी हुई थी. अभिनय में मेरी कभी दिलचस्पी नहीं थी. 2017 में मुझे कैडबरी के प्रिंट विज्ञापन का औफर मिला, तो मैं ने कालेज के दिनों में ‘पौकेट मनी’ मिल रही है, सोच कर कर लिया था. फिर एक दिन ‘प्रेमाथो मी कार्तिक’ के कास्टिंग डाइरैक्टर ने मुझे इंस्टाग्राम पर देख कर संपर्क किया था. पर मैं ने उन से साफसाफ कह दिया था कि अभिनय में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. पर बाद में उन्होने मेरी मां रंजीत कौर से बात कर उन्हें राजी कर लिया.

मां के कहने पर मैं ने यह फिल्म की। उस वक्त मेरी उम्र 17 साल थी. मेरी मां खुद मुझे ले कर हैदराबाद गईं। हैदराबाद में मेरा औडिशन लिया गया. तब तक मुझे बिलकुल एहसास नहीं था कि मेरे अंदर अभिनय के गुण हैं. मगर मैं ने औडिशन दिया और उस फिल्म के लिए मेरा चयन हो गया. पर जब मुझे बताया गया कि मुझे तेलुगु के संवाद बोलने हैं, तो मैं ने उन से कह दिया कि मेरे बस की बात नहीं है. मैं उत्तर भारतीय लड़की हूं, मुंबई में पलीबङी हूं. इसलिए हिंदी, पंजाबी और मराठी ही बोल सकती हूं. पर उन्होंने मुझे तेलुगु सिखाने की बात की. मेरे लिए तेलुगु बोलना बहुत कठिन था. मैं ने 1 माह तक रोते हुए शूटिंग की. मैं बारबार कह रही थी कि मुझे मुंबई अपने घर जाना है.

खैर, इस 1 माह के दौरान मुझे कैमरे के सामने जाने पर मजा आने लगा. पहले मैं कैमरे से ही घबराती थी पर अब मैं कैमरे के सामने जाने पर घबराती नहीं जबकि इस की स्क्रिप्ट व संवाद को ले कर मेरी काफी समस्याएं थीं. मैं तेलुगु के संवाद रटरट कर बोल रही थी. इस फिल्म की शूटिंग पूरी होने में 1 साल लगा
और तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे अंदर अभिनय के गुण थे। मैं इस बात को ले कर खुश हूं कि मुझे मेरे मातापिता का शुरुआती दिनों से ही सहयोग मिला.

स्पोर्ट्स में आप किस खेल से जुड़ी हुई थीं?

मैं कराटे ब्लैकबेल्ट हूं. मैं ने कराटे की विश्व प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है. कुछ प्रतियोगिताएं जीती हैं. मैं गोल्ड मैडलिस्ट भी हूं. इस के अलावा मैं कराटे सिखाती भी हूं. मैं ने 2 साल तक कुछ लोगों को कराटे की ट्रैनिंग भी दी है. इस के अलावा मैं 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ का हिस्सा रही हूं. तो मैं स्पोर्ट्स में बहुत अलग क्षेत्र में थी और अचानक ग्लमैर वर्ल्ड यानी कि अभिनय जगत में आ गई.

कहा जाता है कि हर लड़की को आत्मरक्षा यानि सैल्फ डिफैंस के लिए कराटे सीखना चाहिए. आप क्या कहती हैं?

लोग ऐसा सोचते हैं. मैं ब्लैक बैल्टधारी हूं इसलिए मेरे इलाके में सभी मुझ से डरते बहुत थे. सच यह है कि मैं ने 7 साल की उम्र से ही कराटे सीखना शुरू किया था. उस वक्त मुझे ज्यादा समझ नहीं थी. पर मां ने कहा तो सीखना पड़ा. 11 साल की उम्र में मैं ने नेपाल जा कर पहली बार कराटे प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था. इस प्रतियोगिता में भारत से 23 बच्चे गए थे. हम वहां से ब्राउंज मैडल जीत कर आए थे. मैं भारत की एकमात्र लड़की थी, जो जीत कर आई थी, बाकी 22 बच्चे को कामयाबी नहीं मिली थी।

उस के बाद मुझे लगा कि कराटे सिर्फ लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी सीखना चाहिए. कराटे सीखने पर आप को अपने शरीर पर कंट्रोल करना आ जाता है. गुस्सा आने पर भी आप उस गुस्से पर काबू कर सकते हैं, अपने जज्बातों पर भी कंट्रोल कर सकते हैं. जिंदगी में अनुशासन आ जाता है. इसी के साथ कराटे से आप आत्मसुरक्षा कर सकते हैं. मेरी राय में लड़कियां कमजोर नहीं होतीं.

इस 1 साल के दौरान आप ने क्याक्या सीखा?

-देखिए, मैं स्पोर्ट्स में थी इसलिए टौमबौय वाली मेरी कार्यशैली थी. लड़कियों की तरह चलना, लड़कियों की तरह बात करना मेरे अंदर था ही नहीं. इस की वजह से सब से पहली कठिनाई साड़ी पहनने में आई फिर कानों की बालियां पहनने में. साड़ी पहनने के बाद हमें एक अलग ही लहजे में उठनाबैठना होता है. 1 साल में मैं ने यह सब ज्यादा सीखा. संवाद की प्रैक्टिस करना, लड़कियों की तरह के लुक में खुद को ढालना वगैरह. शुरुआत के 1-2 माह में तो लगा था कि मुझे यह अभिनय वगैरह छोड़ कर मुंबई भाग जाना चाहिए. दक्षिण में शूटिंग करना मुझ से हो ही नहीं रहा था. हमें तेलुगु भाषा के संवाद बोलने होते थे. यह भाषा मुझे नहीं आती थी. हम संवाद रटते थे और निर्देशक के ‘ऐक्शन’ कहने पर कैमरे के सामने बोल देते थे. कई बार निर्देशक के ऐक्शन बोलते ही मैं संवाद भूल जाती थी. मैं पूरी तरह से ब्लैंक हो जाती थी. धीरेधीरे मैं सामने वाले कलाकार के चेहरे के भावों से कुछ समझने लगी थी.

अनिल शर्मा निर्देशित फिल्म ‘गदर 2’ से कैसे जुङीं?

सच तो यह है कि मैं ने सपने में भी बौलीवुड से जुड़ने की बात नहीं सोची थी. मेरे अंदर आत्मविश्वास ही नहीं था कि मैं बौलीवुड फिल्मों में हीरोइन बन सकती हूं. मेरे पास ‘गदर 2’ के लिए औडीशन भेजने का संदेश आया था, पर मैं ने इसलिए नहीं भेजा कि मुझे ‘गदर 2’ जैसी फिल्म कहां से मिलने वाली.

एक दिन मुझे कास्टिंग डाइरैक्टर मुकेश छाबड़ा के कार्यालय से फोन पर औडीशन का संदेश आया और मैं ने फोन पर औडीशन भेज दिया. फिर मुझे अगले औडीशन के लिए पालमपुर, हिमाचल प्रदेश जाने के लिए कहा गया. मैं वहां लुक टेस्ट के लिए गई पर वहां पर भी मोबाइल पर ही टेस्ट हुआ. फिर मैं मुंबई वापस आ गई और 20 दिनों तक टीम से कोई जवाब नहीं मिला.

उस के बाद मुंबई में अनिल शर्मा के औफिस में मेरे 3-4 औडिशन लिए गए. इधर मेरे औडिशन हो रहे थे, उधर मैं सुन रही थी कि ‘गदर 2’ के लिए नई लड़की की तलाश हो रही है. इसलिए मैं कुछ निराश भी थी. एक दिन मैं ने हिम्मत जुटा कर अनिलजी से पूछ लिया कि माजरा क्या है? तब उन्होंने सब से पहले मुझे मिठाई खिलाई और कहा कि तुम्हारा चयन हो गया है. घर जाओ और आज रात ठीक से सो जाओ. मैं ने जा कर अपनी मां को बताया. 3 दिन बाद जब मैं ने अपनी बड़ी बहन को यह सूचना दी, तब मुझे वास्तव में एहसास हुआ कि ‘गदर 2’ के लिए मेरा चयन हो गया है.

आप के मन में ‘गदर 2’ को ले कर हौआ क्यों था?

इस की मूल वजह यह थी कि मैं गैर फिल्मी परिवार से हूं. मतलब मेरा या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य का बौलीवुड से कोई नाता नहीं रहा है. मैं अपने खानदान की पहली लड़की हूं जोकि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हूं। ‘गदर 2’ बहुत बड़ी फिल्म है. तो स्वाभाविक तौर पर इस में कोई न कोई स्टारकिड ही रहेगा. अथवा किसी मशहूर कलाकार को लेंगे. वे एक नई लड़की को तो फिल्म के साथ नहीं जोड़ेंगे. फिर मुझे साइड करैक्टर या दोस्त का किरदार नहीं निभाना था. मेरे मन में कई विचार चल रहे थे.

ऐसे में जब ‘गदर 2’ में हीरोइन का किरदार मिला, तो मुझे लगा कि मुझ से ज्यादा खुश कोई नहीं हो सकता. अब जबकि ‘गदर 2’ अगस्त महीने में प्रदर्शित होने वाली है, तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया है.

फिल्म ‘गदर 2’ के किरदार के बारे में बताएं?

मैं ने इस में मुसकान का किरदार निभाया है, जो हमेशा मुसकराती रहती है. अपने मातापिता की प्यारी है. मैं इस से अधिक अभी नहीं बता सकती. मगर मुसकान ‘गदर 2’ की नई सदस्य है. इस फिल्म के तारा सिंह, सकीना व जीते से तो सभी परिचित हैं. इन किरदारों से भारत की जनता को बहुत प्यार है. मगर अब ‘गदर 2’ में एक नई लड़की मुसकान आ रही है। इसे भी लोगों का प्यार मिलेगा, ऐसी मुझे उम्मीद है. मुसकान का किरदार फिल्म में बहुत महत्त्वपूर्ण है.

मुसकान के किरदार में खुद को ढालने के लिए आप ने किस तरह की तैयारी की?

देखिए, फिल्म की कहानी 1971 की पृष्ठभूमि की है. तो मुसकान भी 1971 की लड़की है. इत्तिफाक से मुझे अभिनेत्री बनने से पहले से ही पुरानी फिल्में देखना, पुराने गाने सुनने का शौक रहा है. मैं 40-50 के दशक की फिल्में देखती रही हूं. मैं ने मीना कुमारी, नूतन, मधुबाला, वैजयंती माला की फिल्में काफी देखी हैं. तो मुझे पता है कि उस वक्त की लड़कियां किस तरह की होती थीं. उन का पहनावा, बोलचाल की समझ थी.1971 में लड़कियां दब्बू नहीं थीं. वे स्मार्ट थीं. सर ने कहा कि लड़की 1971 की होते हुए भी मौडर्न है. उस वक्त लड़कियां कौनवैंट में इंग्लिश माध्यम से पढ़ाई करती थीं.

इस के अलावा मैं ने 1 माह की कत्थक नृत्य की ट्रेनिंग ली. वास्तव में 1971 की लड़कियों में ग्रेस बहुत हुआ करता था. उन के बात करने के तरीके, हाथपैर हिलाने आदि में ग्रेस बहुत हुआ करता था और कत्थक नृत्य से ग्रेस आता है.

मुसकान का किरदार निभाते हुए आप ने निजी जीवन के अनुभवों का उपयोग किया?

देखिए, मुसकान के किरदार में मेरी निजी जिंदगी के अनुभव भी काफी हैं. मुसकान की ही तरह मैं यानि कि सिमरत कौर भी अपने मातापिता की लाड़ली है. मैं सब से छोटी बेटी हूं, तो मुझे पता है कि जब आप घर में लाड़ली हो तो किस तरह अपनी बात मनवा सकते हो. वही मैं ने मुसकान का किरदार निभाते हुए उपयोग किया. इस के अलावा हंसमुख लड़की और फिल्मों की दीवानी बनाया मुसकान को.

कत्थक नृत्य सीखने पर उस की क्या उपयोगिता नजर आई? कत्थक नृत्य की तालीम अभिनय में किस तरह से मदद करती है?

कत्थक नृत्य सीखने से चाल में एक लचकपन आ जाता है, जोकि हर लड़की में होनी चाहिए. उस दौर की लड़कियों में यह खूबी कुदरती थी. 70-80 के दशक की हीरोइन में आप देखिए कितना ग्रेस था. कत्थक नृत्य करने के बाद मेरे हाथ हिलाने व मेरी चाल में अंतर आ गया.

इस के अलावा अब हम हर शब्द पर अपनी आंखों व आंखों की भौहों से भाव व्यक्त कर लेतेे हैं. चेहरे, मुंह और आंखों से शरारत करना आ गया.

आप ने कुछ म्यूजिक वीडियो भी किए हैं?

जी हां, मैं ने कुछ पंजाबी म्यूजिक वीडियो काफी पहले किए थे. पर इन में नृत्य नहीं करना था. जैसाकि मैं ने पहले ही कहा कि मैं गैरफिल्मी परिवार से हूं, तो मेरे लिए संघर्ष ज्यादा था. मेरे लिए जरूरी था कि मैं कुछ काम करती रहूं और लोगों की नजरों में आती रहूं. उस वक्त हम ने म्यूजिक वीडियो यह सोच कर किए थे कि 10 जगह काम करेंगे, तो 10 अलगअलग तरह के लोगों की नजरों में आएंगे. मुझे यहां तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करना पङा. मुकेश छाबड़ा ने भी मुझे किसी म्यूजिक वीडियो में या कहीं और देखा होगा, तभी उन्होंने मुझ से संपर्क कर ‘गदर 2’ के लिए औडीशन देने को कहा तो तेलुगु फिल्में व पंजाबी म्यूजिक वीडियो करतेकरते इस मुकाम तक पहुंची हूं. पर मैं संघर्ष भूल नहीं सकती. फिल्म ‘गदर 2’ के ट्रेलर लांच के वक्त मेरी आंखों के सामने 15 सैकंड में ही घूम गया था और मेरी आंखों से आंसू निकल आए थे.

तेलुगु फिल्म ‘डर्टी हरी’ के आप के अंतरंग दृश्यों को ले कर काफी कुछ कहा जा रहा है?

जी हां, मुझे पता है. मैं एक कलाकार हूं और इस तरह की बातें तो मुझे आजीवन सुननी पड़ेंगी जिन्हें दूसरों को ट्रोल करने में मजा आता है, वह तो हमेशा अवसर की तलाश में रहते हैं. यह व्यवसाय का एक हिस्सा है. आज किसी चीज के लिए, कल किसी और चीज के लिए. मैं ने ट्रोलिंग को नजरंदाज कर ‘गदर 2’ पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. मेरे लिए ‘गदर 2’ का हिस्सा बनना मेरे आसपास किसी भी तरह की नकारात्मकता से कहीं बड़ा है. मुझे उम्मीद नहीं है कि लोग रातोंरात मेरे बारे में अपने विचार बदल देंगे.

हर किसी की एक अलग राय होती है. लोग इसे व्यक्त करने के लिए उत्तरदायी हैं. मैं एक संवेदनशील और भावुक लड़की हूं. जब मैं अभिनेत्री नहीं थी, तब भी मैं दूसरों को जज करती थी और सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करती थी. लेकिन मैं जानती हूं कि जब हम कुछ अभद्र टिप्पणी करते हैं, तो इस से दूसरे व्यक्ति को ठेस पहुंच सकती है. इसलिए मैं सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने से पहले हमेशा समझदार रही हूं.

वास्तव में एक महिला अभिनेत्री को इस तरह की ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है क्योंकि लोग हमेशा
सुंदरता के बारे में बात करते हैं. लोग इस की ओर आकर्षित होते हैं. मेरा मानना है कि महिलाएं खूबसूरत होती हैं. आज ही नहीं बल्कि 100 साल पहले भी हरकोई महिलाओं के बारे में बात करता था. आज से 100 साल बाद भी वह हमारे बारे में बात करेंगे. मुझे लगता है कि महिला होना गर्व की बात है क्योंकि आप के बारे में हमेशा बात की जाएगी.

इन दिनों ओटीटी पर काफी कलाकार काम कर रहे हैं. आप भी करना चाहेंगी?

मैं किसी भी मीडियम में काम करने के लिए तैयार हूं, बशर्ते किरदार अच्छा हो. मैं मजबूत स्क्रिप्ट की तलाश में रहती हूं, जिस में अच्छी विषयवस्तु हो.

अब कंटैंट प्रधान सिनेमा का जोर है. किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?

मैं एक खिलाड़ी की भूमिका निभाना चाहती हूं क्योंकि मैं ने राष्ट्रीय स्तर पर कराटे चैंपियनशिप में भाग लिया है. मैं किसी बायोपिक में अपना किरदार निभाना पसंद करूंगी.

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