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पैरों का फैट कम करने के लिए अपनाएं ये 6 टिप्स

मोटापा लोगों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. मोटापा कम करने के लिए लोग तरह तरह के इलाज करवाते हैं. आपको बता दें, मोटापा भी कई तरह का होता है. कई बार पूरा शरीर फैट के चपेट में आ जाता है. तो कभी शरीर के कुछ हिस्से, जैसे शरीर का उपरी हिस्सा या नीचे का हिस्सा मोटा  जाता है.

इस खबर में आपको बताएंगे कि आप शरीर के निचले हिस्से में बढ़ रहे फैट से कैसे छुटकारा पा सकते हैं. हमारे बताए कुछ स्मार्ट टिप्स आपको इस परेशानी से आजादी देंगे. तो आइए जानते हैं इन ट्रिक्स के बारे में.

  1. लो कार्बोहाइड्रेट

अधिक कार्बोहाइड्रेट लेने से शरीर के कई जरूरी हिस्सों में, जैसे मांसपेशियों में, लिवर में पानी भर जाता है जिससे आप अधिक वेट महसूस करते हैं. लो कार्बोहाइड्रेट का सेवन शरीर के लिए काफी अच्छा होता है इससे इससे वाटर वेट निकल जाता है.

2. खूब पिएं पानी

वेटलौस के लिए जरूरी है कि आप हाइड्रेटेड रहें. ज्यादा पानी पीने से आपके शरीर से एक्स्ट्रा साल्ट निकल जाता है.

3. कम करें नमक का सेवन

आमतौर पर नमक को संतुलित मात्रा में सेवन करने की बात लोगों के दिमाग में जल्दी नहीं आती. पर जिस तरह से चीनी का अधिक सेवन सेहत पर नकारात्मक असर डालता है, नमक भी आपके लिए काफी हानिकारक हो सकता है. इस रोग के मरीजों को तुरंत नमक का सेवन कम करना चाहिए. ऐसा करने से जल्दी ही उन्हें शरीर में बदलाव महसूस होगा.

4. कार्डियो में मदद

वजन कम करने के लिए लोग तरह तरह के एक्सरसाइज करते हैं. पर क्या आपको पता है कि एक्सरसाइज से अधिक असरदार कार्डियो होता है. जौगिंग, रनिंग और रस्सी कूदने जैसी चीजें इसमें काफी कारगर हैं.

5. चाय कौफी को कहें ना

चाय या कौफी का सेवन कम कर दें. इनसे दिन की शुरुआत करने से सेहत का काफी नुकसान होता है. इसकी जगह पर आप जीरा पानी, सौंफ पानी का सेवन कर सकते हैं. फैट कम करने में काफी लाभकारी होते हैं.

6. फ्लूड बैलेंस

शरीर में फ्लूड का बैलेंस रहना बेहद जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि आप ऐसे खआद्य पदार्थों का सेवन करें जिनमें पानी की मात्रा अधिक हो. जैसे हरी साग सब्जियां, फल, दही आदि का सेवन काफी लाभकारी होगा. इन चीजों से आपको कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम मिलता है.

मर्यादा : मर्दों की फितरत जान कर फायदा उठाना स्वाति खूब जान गई थी

रात के 12 बज रहे थे, लेकिन स्वाति की आंखों में नींद नहीं थी. वह करवटें बदल रही थी. उस की बगल में लेटा पति वरुण गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. स्वाति दिन भर की थकान के बाद भी सो नहीं पा रही थी. आज का घटनाक्रम बारबार उस की आंखों में घूम रहा था. आज ऐसा कुछ हुआ कि वह कांप कर रह गई. जिसे वह सिर्फ खेल समझती थी वह कितना गंभीर हो सकता है, उसे इस बात का भान नहीं था. वह मर्दों से हलकाफुलका मजाक और फ्लर्टिंग को सामान्य बात समझती थी. स्वाति अपनी फ्रैंड्स और रिश्तेदारों से कहती थी कि उस की मार्केट में इतनी जानपहचान है कि कोई भी सामान उसे स्पैशल डिस्काउंट पर मिलता है.

स्वाति फोन पर अपने मायके में भाभी से कहती कि आज मैं ने वैस्टर्न ड्रैस खरीदी. इतनी बढि़या और अच्छे डिजाइन में बहुत सस्ती मिल गई. मैं ने साड़ी बिलकुल नए कलर में खरीदी. 1000 की है पर मुझे सिर्फ 500 में मिल गई. डायमंड रिंग अपनी फ्रैंड से और्डर दे कर बनवाई. ऐसी रिंग 2 लाख से कम नहीं, परंतु मुझे 11/2 लाख में मिल गई. भाभी की नजरों में स्वाति की छवि बहुत ही समझदार और पारखी महिला के रूप में थी. वह जब भी कोई सामान खरीद कर भेजने को कहती, स्वाति खुशीखुशी भिजवा देती. पूरे परिवार में उस के नाम का डंका बजता था.

स्वाति आकर्षक नैननक्श वाली पढ़ीलिखी महिला थी. बचपन से ही उसे खरीदारी का बेहद शौक था. लाखों रुपए की खरीदारी इतने कम दाम और चुटकियों में करती कि हर कोई हैरान रह जाता. स्वाति का मायका मिडल क्लास फैमिली से था. 15 साल पहले एक बड़े उद्योगपति परिवार में उस की शादी हुई. शादी भले ही करोड़पति घर में हो गई, लेकिन संस्कार वही मिडल क्लास फैमिली वाले ही थे. 1-1 पैसे की कीमत वह जानती थी. घर खर्च में पैसा बचाना और उस पैसे से स्वयं के लिए खरीदारी करने में उसे बहुत मजा आता. पति से भी पैसे मारना स्वाति को अच्छा लगता था. अच्छे संस्कार, पढ़ीलिखी और समझदार स्वाति को एक बात बड़ी आसानी से समझ आ गई थी कि पुरुषों की कमजोरी क्या है. कैसे कम रेट पर खरीदारी करनी है. वह उस दुकान या शोरूम में ही खरीदारी करती जहां पुरुष मालिक होते. वह सेल्समैन से बात नहीं करती. सेल्समैन से वह कहती, ‘‘आप तो सामान दिखा दो, रेट मैं अपनेआप भैया से तय कर लूंगी.’’

और जब हिसाबकिताब की बारी आती, तो वह सेठ की आंखों में आंखें डाल कर कहती, ‘‘भैया सही रेट बताओ. आज की नहीं 10 सालों से आप की शौप पर आ रही हूं.’’

‘‘भाभी, आप को रेट गलत नहीं लगेगा, क्यों चिंता करती हैं?’’ सेठ कहता.

‘‘नहीं, इस बार ज्यादा लगा रहे हो. मुझे तो स्पैशल डिस्काउंट मिलता है, आप की शौप पर,’’ कहते हुए स्वाति काउंटर पर खड़े सेठ के हाथों को बातोंबातों में स्पर्श करती या फिर कहती, ‘‘भैया, आप तो मेरे देवर की तरह हो. देवरभाभी के बीच रुपएपैसे मत लाओ न.’’

अकसर दुकानदार स्वाति की मीठीमीठी बातों में आ कर उसे 10-20% तक स्पैशल डिस्काउंट दे देते थे. एक ज्वैलर से तो स्वाति ने जीजासाली का रिश्ता ही बना लिया था. ज्वैलरी आमतौर पर औरतों की कमजोरी होती है, स्वाति की भी कमजोरी थी. वह अकसर इस ज्वैलर के यहां पहुंच जाती. क्याक्या नई डिजाइनें आई हैं, देखने जाती तो कुछ न कुछ पसंद आ ही जाता. तब जीजासाली के बीच हंसीमजाक शुरू हो जाता.

स्वाति कहती, ‘‘साली आधी घरवाली होती है जीजाजी, इतने ही दूंगी.’’

ज्वैलर स्वाति का स्पर्शसुख पा कर निहाल हो जाता. उस के मन में स्पर्श को आगे बढ़ाने की प्लानिंग चलती रहती, पर स्वाति थी कि काबू में ही नहीं आती थी. सामान खरीदा और उड़न छू. उस दिन भतीजी की शादी के लिए सामान व ज्वैलरी खरीदने स्वाति ज्वैलर के यहां पहुंच गई. उसे भाभी ने बताया था कि क्याक्या खरीदना है.

स्वाति ने घर से निकलने से पहले ही ज्वैलर को फोन किया, ‘‘भतीजी की शादी के लिए ज्वैलरी खरीदने आ रही हूं. आप अच्छीअच्छी डिजाइनों का चयन करा कर रखना. मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं होगा.’’

‘‘आप आइए तो सही साली साहिबा. आप के लिए सब हाजिर है,’’ ज्वैलर ने कहा. ज्वैलरी की यह दुकान कोई बड़ा शोरूम नहीं था, लेकिन वह खुद अच्छा कारीगर था और और्डर पर ज्वैलरी तैयार करता था. शहर की एक कालोनी में उस की दुकान थी जहां कुछ खास लोगों को और्डर पर तैयार ज्वैलरी भी दिखा कर बेच देता था और और्डर देने वाले को कुछ दिन बाद सप्लाई दे देता. स्वाति की एक फ्रैंड रजनी ने उस ज्वैलर्स से उस की मुलाकात कराई थी. लेकिन रजनी कभी यह बात समझ नहीं पाई थी कि आखिर यह ज्वैलर स्वाति पर इतना मेहरबान क्यों रहता है. उसे नईनई डिजाइनें दिखाता है और अतिरिक्त डिस्काउंट भी देता है.

‘‘जीजाजी, कुछ और डिजाइनें दिखाओ. ये तो मैं ने पिछली बार देखी थीं,’’ स्वाति ने ज्वैलर की आंखों में झांकते हुए कहा.

स्वाति को ज्वैलर की आंखों में शरारत नजर आ रही थी. वह बारबार सहज होने की कोशिश कर रहा था. अपनी आदत के मुताबिक स्वाति ने बातोंबातों में ज्वैलर के हाथों पर इधरउधर स्पर्श किया. उस का यह स्पर्श ज्वैलर को बेचैन कर रहा था. उस ने भी स्वाति की हरकतें देख हौसला दिखाना शुरू कर दिया. वह भी बातोंबातों में स्वाति के हाथों पर स्पर्श करने लगा. यह स्पर्श स्वाति को कुछ बेचैन कर रहा था, लेकिन वह सहज रही. उसे कुछ देर की हरकतों से स्पैशल डिस्काउंट जो लेना था. स्वाति ने देखा कि आज दुकान पर सिर्फ एक लड़का ही हैल्पर के तौर पर काम कर रहा था बाकी स्टाफ न था. ज्वैलर ने उसे एक सूची थमाते हुए कहा कि यह सामान मार्केट से ले आओ. और जाने से पहले फ्रिज में रखे 2 कोल्ड ड्रिंक खोल कर दे जाओ.’’

‘‘आप और नई डिजाइनें दिखाइए न,’’ स्वाति ने कहा.

‘‘हां, अभी दिखाता हूं. कल ही आई हैं. आप के लिए ही रखी हुई हैं अलग से.’’

‘‘तो दिखाइए न,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘आप ऐसा करें अंदर वाले कैबिन में आ कर पसंद कर लें. अभी अंदर ही रखी हैं… लड़का भी जा चुका है तो…’’

स्वाति ने देखा लड़का सामान की सूची ले कर जा चुका था. अब दुकान पर सिर्फ ज्वैलर और स्वाति ही थे. स्वाति को एक पल के लिए डर लगा कि अकेली देख ज्वैलर कोई हरकत न कर दे. वह ऐसा कुछ चाहती भी नहीं थी. वह तो सिर्फ कुछ हलकीफुलकी अदाएं दिखा कर दुकानदारों से फायदा उठाती आई थी. आज भी ऐसा कुछ कर के ज्वैलर से स्पैशल डिस्काउंट लेने की फिराक में थी. उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी खरीदारी कर के निकल ले. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था कि क्या करे. वह अपनेआप को संभाल कर कैबिन में ज्वैलरी देखने घुस गई. उस ने अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘जीजाजी, आज कुछ सुस्त लग रहे हो क्या बात है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘कोई तो बात है, मुझ से छिपाओगे क्या?’’

‘‘आप नैकलैस देखिए, साथसाथ बातें करते हैं,’’ ज्वैलर ने कहा. स्वाति गजब की सुंदर लग रही थी. वह बनठन कर निकली थी. ज्वैलर के मन में हलचल थी जो उसे बेचैन कर रही थी. उस ने सोचा कि हिम्मत दिखाई जा सकती है. अत: उस ने स्वाति के हाथ को स्पर्श किया तो वह सहम गई. लेकिन उस ने सोचा कि अगर थोड़ा छू लिया तो उस से क्या फर्क पड़ेगा. स्वाति के रुख को देख ज्वैलर का हौसला बढ़ गया. उस ने स्वाति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा. ज्वैलर की इस आकस्मिक हरकत से वह हड़बड़ा गई.

‘‘क्या कर रहे हो?’’ स्वाति ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

ज्वैलर ने अपनी हरकत जारी रखी. स्वाति घबरा गई. ज्वैलर की हिम्मत देख दंग रह गई वह. मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने की सोच उसे भारी पड़ती नजर आ रही थी. वह कैसे ज्वैलर के चंगुल से बचे, सोचने लगी. फिर उस ने हिम्मत दिखाई और ज्वैलर के गाल पर थप्पड़ों की बारिश कर दी. स्वाति क्रोध से कांप रही थी. उस का यह रूप देख ज्वैलर हड़बड़ा गया. इसी हड़बड़ी में वह जमीन पर गिर गया. स्वाति के लिए यही मौका था कैबिन से बाहर निकल भागने का. अत: वह फुरती दिखाते हुए तुरंत कैबिन से बाहर निकल अपनी कार में जा बैठी. फिर तुरंत कार स्टार्ट कर वहां से चल दी. उस के अंदर तूफान चल रहा था. उसे आत्मग्लानि हो रही थी. लंबे समय से स्वाति जिसे खेल समझती आ रही थी, वह कितना गंभीर हो सकता है, उस ने यह कभी सोचा भी नहीं था.

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और्डर : नेहा ने दूसरों की खुशी के लिए क्या दिया था त्याग ?

‘‘सुनो, मुझे नया फोन लेना है. काफी टाइम हो गया इस फोन को. मैं ने नया फोन औनलाइन और्डर कर दिया है,’’ सुबह औफिस के लिए तैयार होते हुए मैं ने समीर से कहा.

‘‘हांहां, ले लो भई, लिए बिना तुम मानोगी थोड़ी. वैसे, इस फोन का क्या करोगी? इतना महंगा फोन है. बजट है इतना तुम्हारा कि तुम नया फोन अभी ले सको,’’ समीर ने नेहा से हंसते हुए कहा.

‘‘यह बेच कर 4-5 हजार रुपए और डाल कर नया ले लूंगी. तुम से कोई पैसा नहीं लूंगी, बेफिक्र रहो. अच्छा, सुनो, शाम को मुझे मां की तरफ जाना है, इसलिए आज थोड़ा लेट हो जाऊंगी. तुम वहीं से मुझे पिक कर लेना,’’ यह कह कर मैं जल्दी से घर से निकल ली.

औफिस से हाफ डे ले कर मां के घर पहुंची. मां के साथ खाना खा मैं बालकनी में आ कर खड़ी हो गई. मां के यहां बालकनी से बहुत ही खूबसूरत नजारा देखने को मिलता था. चारों ओर हरियाली और चिडि़यों की चहचहाहट. तभी मां भी चाय ले कर वहीं आ गईं. चाय पीतेपीते दूर से एक बुजुर्ग से अंकलजी आते हुए दिखे.

‘‘मां, ये अंकल तो जानेपहचाने से लग रहे हैं. देखो जरा, कौन हैं?’’

‘‘अरे, इन्हें नहीं पहचाना. गुड्डू के पापा ही तो हैं. गुड्डू तो अब विदेश चला गया न. ये यहीं नीचे वाले फ्लैट में अकेले रहते हैं. गुड्डू की मां तो रही नहीं और बहन भी कहीं बाहर ही रहती है,’’ मां ने बताया.

गुड्डू और मैं बचपन में एकसाथ खेलते हुए बड़े हुए थे. लेकिन मैं गुड्डू से ज्यादा नहीं बोलती थी. वैसे, बहुत ही अच्छा लड़का था गुड्डू, सीधासादा, होशियार.

‘‘मां, मैं जरा मिल कर आती हूं अंकल से,’’ कह कर मैं अपना बैग उठा कर नीचे अंकल के घर को चल पड़ी.

‘‘ठीक है, पर बेटा, जरा जल्दी आना,’’ मां ने कहा.

दरवाजे पर घंटी बजाई. अंकल बाहर आए.

‘‘नमस्ते अंकल, पहचाना?’’

‘‘आओआओ बेटी. अच्छे से पहचाना. बैठो. बहुत टाइम बाद देखा. कहां हो आजकल? तुम्हारे मम्मीपापा से तो मुलाकात हो जाती है. बहुत ही अच्छे लोग हैं. खैर, सुनाओ कैसे हैं सब तुम्हारे घरपरिवार में,’’ अंकलजी बहुत खुश थे मुझे देख कर और लगातार बोले जा रहे थे.

‘‘सब बढि़या. आप बताइए. गुड्डू और दीदी कैसे हैं?’’

‘‘सब ठीक हैं, बेटी. दोनों ही बाहर रहते हैं. आना तो कम ही होता है दोनों का. अब तो बस फोन पर ही बात होती है,’’ अंकल बहुत ही रोंआसी आवाज में बोले.

‘‘क्या बात है अंकलजी, सब ठीक है न?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अब क्या बताऊं बेटे, कल रात फोन भी हाथ से छूट कर गिर गया और खराब हो गया,’’ मेरे हाथ में अपना फोन देते हुए अंकलजी बोले, ‘‘जरा देखना यह ठीक हो सकता है क्या? फोन के बिना मेरा गुजारा ही नहीं है. अब तो गुड्डू ही नया फोन भेजेगा.’’

‘‘अरे अंकलजी, गुड्डू को छोड़ें. फोन आने में तो बहुत टाइम लग जाएगा, तब तक आप परेशान थोड़े ही रहेंगे. यह लीजिए आप का फोन,’’ मैं ने बैग से निकाल कर अपना फोन अंकलजी के हाथ में दिया.

‘‘यह तो टचस्क्रीन वाला है. बहुत महंगा होता है यह तो. नहींनहीं, यह मैं नहीं ले सकता. मेरे लिए कोई पुराना सा फोन ही ला दो बेटे अगर ला सकती हो तो या इसी फोन को ठीक करवा कर दे देना. दोचार दिन काम चला लूंगा बिना फोन के,’’ अंकलजी बोले.

‘‘मैं ने आप की सिम इस में डाल दी है. यह लीजिए आप चला कर देखिए और आप का फोन ठीक कराने के लिए मैं ले जा रही हूं. अब आप इस फोन को बेफिक्र हो कर इस्तेमाल करिए.’’ अंकलजी ने झिझकते हुए मेरा फोन अपने हाथ में लिया और खुशी से चला कर देखने लगे. फोन हाथ में ले बच्चों की तरह खुश थे वे.

‘‘इस में गेम्स वगैरह भी खेल सकते हैं न? पर बेटे, गुड्डू मुझे बहुत डांटेगा. तुम रहने ही देतीं. मुझे मेरा फोन ठीक करवा कर दे देना,’’ अंकलजी थोड़ा घबराते हुए बोले.

‘‘अंकलजी, कभीकभी गुड्डू की जगह मुझ गुड्डी को भी अपना बेटा समझ कर अपनी सेवा करने दिया करें,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘जीती रहो बेटी, तुम ने मेरी सारी परेशानी खत्म कर दी,’’ अंकलजी खुशी से बोले.

‘‘अच्छा, मैं चलती हूं. मां इंतजार कर रही होंगी,’’ अंकलजी से बाय बोल कर मैं एक अलग ही अंदाज से घर पहुंची. मन में एक अनजानी संतुष्टि सी थी.

समीर शाम को लेने मां के घर पहुंचे और बोले, ‘‘बड़ी खुश लग रही हो आज मां से मिल कर.’’

मैं बस मुसकरा कर रह गई. घर पहुंच लैपटौप औन कर के नए फोन का और्डर कैंसिल कर दिया.

अंकलजी का फोन ठीक करवा कर अपने बैग में रख लिया. मन में एक खुशी थी. नए फोन की अब मुझे कोई ऐसी चाह नहीं थी.

धार्मिक घोषणाओं के सैलाब में बहता मध्यप्रदेश

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में 15 मई को बुढ़ार ब्लौक के कोटा गांव के लक्ष्मण सिंह  अपनी 13 साल की बेटी माधुरी की तबीयत बिगड़ने पर इलाज के लिए जिला अस्पताल लेकर आए थे जहां उसकी मौत हो गई.अस्पताल में बेटी की मौत होने पर एक पिता को अपनी बाइक में रखकर बेटी का शव घर ले जाना पड़ाक्योंकि अस्पताल प्रशासन ने उसे शववाहन देने से मना कर दिया था.

मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलने वाला यह इकलौता मामला नहीं है. आज भी गांवकसबों के अस्पताल बिना डाक्टर के चल रहे हैं. यही वजह है कि लोग इलाज न करा कर पूजापाठ और झाड़फूंक करवाने को मजबूर हो रहे हैं.

2023 के फरवरी महीने की बात करें तो मध्य प्रदेश के एक गांव में बीते 7 महीने से गांव के लोग अंधेरे में रहने को मजबूर थे. बिजली नहीं होने से गांव वालों को जो परेशानी हुई उस  परेशानी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. उसी समय बच्चों की परीक्षा का दौर चल रहा था और उनको चिरागतले पढ़ना पड़ रहा था. बिजली नहीं होने से किसानों की फसल सूख रही थी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कर्मक्षेत्र विदिशा विधानसभा क्षेत्र के तहत कोठीचार खुर्द का गांव 7 महीने अंधेरे में डूबा रहा और मुखिया मंदिरों में भजन गाते रहे.

डिंडोरी जिले के करंजिया ब्लौक के सैलवार ग्राम पंचायत के बच टोला गांव का सरकारी प्राइमरी स्कूल इतना जर्जर हो चुका है कि छत पर प्लास्टिक पन्नी बांधकर 48 बच्चों को उसी भवन में बैठा कर शिक्षक पढ़ा रहे हैं. सरकार सर्व शिक्षा अभियान पर करोड़ों रुपए हर साल खर्च कर रही है जबकि सैकड़ों स्कूल जर्जर हालत में हैं.

सिवनी के छपारा ब्लौक के अंतर्गत आने वाले मुंडरई ग्राम पंचायत के सूखा गांव में म‌ई महीने में गरमी की दस्तक के साथ सूखे जैसे हालात हो चुके हैं. यहां के तालाबों में अभी से पानी पूरी तरह खत्म हो जाने से सूखा पड़ना शुरू हो गया है. गांव के लोगों को पानी के लिए दूर तक जाना पड़ रहा है.एक हजार की जनसंख्या वाले इस गांव में विगत कई वर्षों से पेयजल समस्या जस की तस बनी हुई है.

वहीं, सरकार से लेकर किसी प्रकार की मदद नहीं मिल पाती है, जिससे साल के 12 महीने गांव में पीने के पानी की किल्लत बनी रहती है. यही कारण है कि इंसानों के अलावा क्षेत्र के जानवर भी पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. इतना ही नहीं, गरमी के मौसम में हालात बेकाबू हो जाते हैं कि लोगों को मीलों दूर जंगल में जाकर वहां से पीने के पानी को लेकर आना पड़ता है. गरमी की शुरुआत होते ही ग्रामीणों की चिंताएं बढ़ने लगती हैं. फिलहाल गांव के ग्रामीण गांव से करीब एक किलोमीटर दूर जंगलों के बीच मौजूद एक कुएं से अपने संसाधनों से पानी लाने को मजबूर हैं.

ये मामले बताते हैं कि पिछले 20 सालों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज सरकार धार्मिक रंग में इस कदर डूबी हुई है कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम रही है. हां, भाजपा सरकार अपनी धार्मिक यात्राओं के साथ बड़ीबड़ी मूर्तियां स्थापित कर भोलीभाली जनता को भी भगवा रंग में रंगने में सफल रही है.

मध्यप्रदेश में 2003 से भाजपा सरकार सत्ता पर काबिज है.15महीनेकी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के अलग करने के बाद भी लगभग साढ़े 18साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है पर विकास के नाम का केवल ढोल ही पीटा जा रहा है.

भाजपा सरकार के पूरे कार्यकाल को देखा जाए तो स्कूल, कालेज, अस्पताल खोलने के बजाय उस ने धार्मिक यात्राओं पर ज्यादा जोर दिया है. दरअसल, भगवा सरकार नहीं चाहती कि प्रदेश के नौजवान पढ़लिख कर काबिल बनें. सरकार के नुमाइंदे चाहते हैं कि पढ़ेलिखे नौजवान कांवड़यात्रा निकालें, दुर्गा पूजा, गणेश पूजा के साथ ढोंगी संत महात्माओं की कथा प्रवचन के कार्यक्रम आयोजित करें. सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का यह कार्यकाल धार्मिक यात्राओं से भरा पड़ा है.

धार्मिक यात्राओं पर जोर

धर्मनिर्पेक्ष देश में भाजपा अपने कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे की वजह से ही सत्ता के सिंहासन पर पहुंची है. भाजपा के पुराने नेता लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी रथयात्राएं निकाल चुके हैं.उन्हं के नक्शेकदम पर चल रहे शिवराज सिंह चैाहान भी एक कदम आगे चलकर धार्मिक कार्यक्रमों को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं.

11 दिसंबर,2016 से शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से नर्मदा सेवा यात्रा शुरू की थी जो लगभग 150 दिनों बाद म‌ई 2017 में खत्म हुई थी. प्रदेश के मुख्यमंत्री साल के आधे दिन इस यात्रा के दौरान पूजापाठ में लगे रहे और प्रदेश में कोई भी विकास कार्य नहीं हुआ. प्रदेश का सरकारी अमला उनकी यात्रा में हवन, पूजन, आरती और भंडारे में लगा रहा. यात्रा में पौधारोपण के नाम पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्च किए गए.

नर्मदा संरक्षण के नाम पर हुई नर्मदा यात्रा में करोड़ों रुपए के घोटाले की बात भी उस समय चर्चा का विषय रही थी. कैग ने अपनी औडिट रिपोर्ट में यात्रा पर किए गए खर्च का ब्योरा नहीं मिलने पर आपत्ति जाहिर की थी. रिपोर्ट में बताया गया था कि नर्मदा यात्रा पर सरकारी खजाने से 21 करोड़ रुपए बिना अनुमति खर्च किए गए जिसमें से 18 करोड़ रुपए के खर्च का हिसाबकिताब ही गायब है. खर्च के लिए जन अभियान परिषद ने नियमों के तहत मंजूरी भी नहीं ली थी.

2 जुलाई,2017 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक ही दिन में 6 करोड़ पौधे लगाने का विश्व रिकौर्ड बनाया था और इस अभियान पर 400 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, पर इन पौधों में से कितने पौधे जीवित हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है.

शिवराज सरकार के इस पौधारोपण पर जब कंप्यूटर बाबा ने सवाल उठाया तो उन्हें मंत्री बना दिया गया था.दिसंबर2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही भाजपा सरकार के इस पौधारोपण अभियान पर फिर से सवाल उठाए गए थे. कांग्रेस सरकार में वन मंत्री उमंग सिंघार द्वारा आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) को पत्र लिखकर जांच की मांग की गई थी. उन्होंने इस मामले में आरोप लगाया था कि नर्मदा नदी के किनारे 6 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगाकर विश्व रिकौर्ड बनाने के लिए 20 रुपए मूल्य के पौधों को 200 रुपए से ज्यादा कीमत पर खरीदा गया. फिर से भाजपा की सरकार प्रदेश में बन गई है तो यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

इसी तरह, शिवराज सिंह ने 19 दिसंबर,2018 से प्रदेश के 4 स्थानों- ओंकारेश्वर, उज्जैन, अमरकंटक और रीवा के पचमठा से एकसाथ एकात्म यात्रा शुरू की थी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस यात्रा का उद्देश्य आदि शंकराचार्य की प्रतिमा के लिए धातु संग्रह करना है.2,175 किलोमीटर की यात्रा का समापन 22 जनवरी को ओंकारेश्वर में हुआ था.वहीं पर उन्होंने ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की 108 फुट की मूर्ति लगवाने की घोषणा की थी.

मुख्यमंत्री की इन धार्मिक यात्राओं में सरकारी अफसर भी पूरी तरह धार्मिक रंग में नजर आए थे. मंडला जिले में जब यह यात्रा पहुंची तो वहां की तत्कालीन कलैक्टर सूफिया फारूकी चरणपादुका अपने सिर पर उठा कर चलीं.

महाकाल लोक की स्थापना

प्रधानमंत्री के काशी विश्वनाथ मंदिर के कायाकल्प के बाद शिवराज सिंह चौहान ने भी  उज्जैन में महाकाल लोक बना डाला.11 अक्टूबर,2022 को उज्जैन में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक कौरिडोर परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन किया था. इस परियोजना की कुल लागत 856 करोड़ रुपए हैजिसमें पहले चरण 351 करोड़ रुपए में पूरा हुआ.

इसमें करोड़ों रुपए की सप्त ऋषियों की 10 से 25 फुट की मूर्तियां लगाई गई थीं. दरअसल, ऊंची मूर्तियां, लाल पत्थर और फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक से बनी हैं. इन पर गुजरात की एमपी बाबरिया फर्म से जुड़े गुजरात, ओडिशा और राजस्थान के कलाकारों ने कारीगरी की है.28 म‌ई,2023की शाम अचानक तूफानी हवाओं के चलते महाकाल लोक में बनी सप्तऋषियों की मूर्तियां जमीन पर गिर गईं तो कई मूर्तियों के हाथ और सिर टूट गए. इस तरह जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा पानी की तरह बह गया.

चुनावी साल में शिवराज सिंह चौहान फिर से सत्ता पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे. प्रदेश के धार्मिक स्थलों पर जाकर वहां ऊंचीऊंची मूर्तियां स्थापित करने की घोषणा कर रहे हैं. टीकमगढ़ जिले के ओरछा में ‘रामराजा लोक’ के नाम से रामराजा सरकार का भव्य मंदिर बनाने और नर्मदा परिक्रमा के लिए नर्मदा पथ बनाने की बात कह चुके हैं. उनके कहे अनुसार, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर के विकास का दूसरा चरण का काम भी चुनावपूर्व शुरू हो जाएगा.

ओंकारेंश्वर में एकात्म धाम की स्थापना की जाएगी और सलकनपुर में महा देवी लोक का निर्माण कार्य होगा. इसके अलावा सलकनपुर, दतिया, भोजपुर, नलखेड़ा, देवास, पचमढ़ी,सांची, खजुराहो समेत क‌ई स्थानों पर बड़े प्लान और निर्माण कार्य जारी हैं. जिस भी धार्मिक कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री शरीक होते हैं, वहां पर एक लोक बनाने की घोषणा कर ही आते हैं. परशुराम की जन्मस्थली पर जाकर परशुराम लोक की स्थापना कर आए तो दतिया में पीताम्बर पीठ में जाकर पीताम्बर लोक बनाने का ऐलान कर दिया.

200 करोड़ का देवी लोक

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के सलकनपुर में करीब 30वर्ष पहले एक ऊंची पहाड़ी पर विजयासन देवी की मूर्ति एक टीनशैड में स्थापित थी. भाजपा सरकार बनते ही यहां भव्य मंदिर बन गया और अब शिवराज सिंह चौहान महाकाल लोक की तर्ज पर सलकनपुर में देवी लोक का निर्माण कराने जा रहे हैं.31 म‌ई को इसके लिए मुख्यमंत्री ने पूरे तामझाम के साथ इसकी शुरुआत कर दी है.

भव्य देवी लोक के निर्माण के लिए सरकारी खजाने से 200 करोड़ रुपए से अधिक की कार्ययोजना बनाई गई है. सरकार का मानना है कि देवी लोक के निर्माण के पश्चात धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही, इस क्षेत्र में पर्यटन पर आधारित आर्थिक गतिविधियों का भी विस्तार होगा. जगदगुरु आदि शंकराचार्य की प्रतिमा के निर्माण की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. मूर्ति बनाने के लिए प्रदेश की 23000 पंचायतों से पंच धातु इकट्ठा की गई थी. मुख्यमंत्री ने एकात्म यात्रा निकल कर 50 करोड़ रूपए मूल्य की पंच धातु सामग्री एकत्रित की थी.

मध्य प्रदेश सरकार ने भारत की एल एंड टी कंपनी को 198 करोड़ का मूर्ति बनाने का ठेका दिया था. एल एंड टी ने टीक्‍यू आर्ट फाउंड्री, चीन के नैनचांग में स्थित जियांग्‍जी टोक्‍वाइन कंपनी को मूर्ति बनाने का काम दे दिया. चर्चा तो यह भी है कि एल एंड टी कंपनी के माध्यम से चीन में बनने वाली आदि शंकराचार्य की प्रतिमा में नौकरशाहों ने 20 प्रतिशत कमीशन भी खा लिया.

तीर्थदर्शन योजना

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा रेलवे से अनुबंध कर बुजुर्ग यात्रियों को तीर्थदर्शन कराने के लिए मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना प्रारंभ की गई थीलेकिन इसका लाभ सबसे ज्यादा पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उठाया था.नरसिंहपुर जिले की करेली तहसील में तीर्थयात्रा करने वालों की सूची में सत्ताधारी दल के कार्यकताओं एवं नेताओं, नगरपालिका के पूर्व उपाध्यक्ष सहित कई आयकर दाताओं के नाम सामने आए थेजबकि यात्रा के नियमों के मुताबिक तीर्थयात्री आयकर दाता नहीं होना चाहिए. कुल मिलाकर, गरीबों को तीर्थदर्शन कराने के नाम पर शुरू की गई मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना राजनीतिक दलों के कार्यकताओं के लिए सैरसपाटा करने की योजना बनकर रह गई थी.

मध्य प्रदेश सरकार ने बुजुर्गों को तीर्थयात्रा कराने के लिए मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना शुरू की थी जिसके तहत 60 साल से ज्यादा उम्र के महिलापुरुषों को धार्मिक स्थलों की यात्रा ट्रेन के जरिए कराई गई थी. इंडियन रेलवे और मध्य प्रदेश सरकार के अनुबंध से हुई इस तीर्थदर्शन यात्रा का लाखों रुपयों का भुगतान रेलवे को न होने से उसने हाथ खींच लिए. अब चुनाव नजदीक हैं, तो बुजुर्गो को हवाई जहाज के माध्यम से तीर्थयात्रा की शुरुआत कर दी गई है.

जब विज्ञान का आविष्कार नहीं हुआ थातब कबीर ने मूर्तिपूजा करने वाले अंधभक्तों को चेताया था कि पत्थरों की मूर्ति पूजने से कभी भगवान नहीं मिलता.ऐसी मूर्तियों से तो पत्थर से बनी चक्की ज्यादा उपयोगी है जिसमें पीसा गया आटा लोगों के पेट भरने के काम आता है.अफसोस मगर आज की सभ्य, शिक्षित और वैज्ञानिक सोचसमझ वाली पीढ़ी भी कबीर की इन बातों को मानने को तैयार नहीं है.

दरअसल, जब हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान की दुहाई देने वाले सरकार के जिम्मेदार मंत्री देश में जगहजगह ऊंचीऊंची मूर्तियां बनवाने और मंदिरमसजिद के निर्माण को ही देश का विकास मानते हों, वहां जनता का ऐसा अनुसरण करना ग़लत भी नहीं है. जब देश के वैज्ञानिक  चंद्रयान की सफलता के लिए मंदिरों में हवनपूजन करते हों, जहां राफेल विमान पर नीबू लटकाकर नारियल फोड़े जाते हों, वहां जनता का अंधविश्वासी होना लाजिमी है.

Nana Patekar को Welcome 3 में क्यों नहीं किया गया कास्ट? वजह कर देगी हैरान

Nana Patekar On Welcome 3 : हिन्दी सिनेमा के जाने माने चेहरे नाना पाटेकर (Nana Patekar) ने दशकों से लोगों के दिलों में राज किया हैं. उनकी दमदार एक्टिंग के लोग आज भी मुरीद है. अब जल्द ही एक्टर फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ (The Vaccine War) में नजर आएंगे. इस फिल्म में वह एक साइंटिस्ट का किरदार निभा रहे हैं.

बीते दिनों फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ का ट्रेलर लॉन्च इवेंट रखा गया था. जहां उन्होंने बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिल्म ‘वेलकम 3’ (Welcome 3) पर जमकर अपनी भड़ास निकाली है. हाल ही में अक्षय कुमार और दिशा पाटनी स्टारर ‘वेलकम टू द जंगल यानी वेलकम 3’ का टीजर जारी किया गया, जिसमें ना तो उदय शेट्टी यानी नाना पाटेकर और ना ही मजनू भाई यानी अनिल कपूर नजर आए.

नाना पाटेकर- हम पुराने हो गए

हालांकि जब ‘द वैक्सीन वॉर’ (The Vaccine War) के ट्रेलर लॉन्च के दौरान नाना पाटेकर से ‘वेलकम 3’ में उनका हिस्सा न बनने पर सवाल किया गया. तो उनके जवाब से भी ऐसा लगा कि वो मेकर्स के फैसले से खुश नहीं हैं. दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने जब एक्टर से पूछा कि, “आप फिल्म ‘वेलकम 3’ का हिस्सा क्यों नहीं हैं?” तो इस पर नाना पाटेकर (Nana Patekar On Welcome 3) ने बेबाकी से जवाब देते हुए कहा, “उनको लगता है कि हम पुराने हो गए. इसलिए शायद उन्होंने हमें फिल्म में नहीं लिया. इनको लगता है कि अभी हम पुराने नहीं हुए. इसलिए इन्होंने हमें ले लिया. यह बहुत ही सिंपल सी बात है”.

जानें आगे एक्टर ने क्या कहा ?

इसी के साथ एक्टर (Nana Patekar On Welcome 3) ने ये भी कहा कि, ‘कभी भी आपके लिए इंडस्ट्री बंद नहीं होती है अगर आप अच्छा काम करना चाहते हैं. लोग आएंगे, आपको पूछेंगे. इसलिए आपको यह समझना चाहिए कि आप करना चाहते हैं या कर सकते हैं. मैं ये समझता हूं कि यह मेरा पहला चांस है या आखिरी चांस है, उतनी ही आपको जान डालनी चाहिए.’ साथ ही नाना पाटेकर ने ये भी कहा कि, “हर किसी को काम मिलता है यह तो बस आपके ऊपर है कि आप करना चाहते हैं कि या नहीं.”

आपको बता दें कि अभी तक फिल्म ‘वेलकम 3’ (Welcome 3) के मेकर्स का नाना पाटेकर के बयान पर कोई रिएक्शन सामने नहीं आया है.

‘हमारे पास उच्च शिक्षा और अच्छे इंस्टिट्यूट से डांस की ट्रेनिंग लेने की क्षमता नहीं रही’- अचिंत्य बोस

आपदा को अवसर बना लेने वाले लोग ही हमेशा अनूठी सफलता हासिल कर सकते हैं. यह कटु सत्य है. हम अकसर सुनते हैं कि किसी वाचमैन की बेटी या सब्जी बेचने वाले या रिकशा चलाने वाले के बेटे या बेटी ने आईएएस या ‘नीट’ में सर्वोच्च स्थान पा लिया है.

जी हां, ऐसा होता है. तभी तो अच्छी शिक्षा हासिल करने के पैसे न होने पर भी अंचित्य बोस ने नृत्य में ऐसी महारत हासिल की कि उसे किशोरवय में ही सूनी तारापोरवाला ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म ‘ये बैले’ में नृत्य व अभिनय करने का ऐसा अवसर प्रदान किया कि उस ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर ली.

अचिंत्य बोस के अभिनय से सजी फिल्म ‘ये बैले’ फरवरी 2020 से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. तो वहीं सूनी तारापोरवाला निर्देशित नृत्यप्रधान वैब सीरीज में भी अचिंत्य बोस ने अभिनय किया है जोकि बहुत जल्द नेटफ्लिक्स पर ही स्ट्रीम होगी. यों तो अचिंत्य बोस को अब ‘हिप हौप’, ‘जौज’ और ‘बैले’ नृत्य में महारत हासिल हो चुकी है मगर पश्चिमी नृत्य में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए उन्होंने अमेरिका के कैला आर्ट्स इंस्टिट्यूट में प्रवेश लिया है.

वहां की फीस दे पाना उन के वश की बात नहीं है, इसलिए वे ‘क्राउड फंडिंग’ कर धना जुटा रहे हैं. वैसे, उन्हें आंशिक छात्रवृत्ति मिल चुकी है. अचिंत्य बोस की परवरिश उन की ‘सिंगल मदर’ ने किया है. आपदा में ही अवसर तलाशते, संघर्ष करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे अचिंत्य बोस से हम ने बातचीत की.

बचपन में आप की नृत्य के प्रति रुचि कैसे पैदा हुई थी?

आप यह कह सकते हैं कि मेरी परवरिश अभावों के बावजूद संगीत व नृत्य के माहौल में हुई है. मेरी मां अनुपमा बोस, जोकि ‘सिंगल पेरैंट्स’ हैं, कत्थक, उड़ीसी व भरतनाट्यम इन 3 क्लासिकल आर्ट फौर्म में माहिर हैं. तो घर के अंदर हमेशा डांस का ही माहौल रहा. हमेशा डांस को ले कर ही चर्चाएं होती रहती हैं. मेरे नाना नितीश कुमार बोस और नानी नमिता बोस बंगाली माहौल में पैदा होने के कारण उन्हें भी इंडियन डांस व संगीत में रुचि है. मेरी परवरिश नानानानी के अलावा मां के साथ ही हुई है. इस वजह से मेरे अंदर भी नृत्य के प्रति रुचि पैदा हुई.

सच तो यह है कि मैं ने गायन से शुरुआत की थी, पर गायन से नृत्य तक आ गया. पहले हम ने स्कूल में दोस्तों के साथ एक डांस ‘स्टेप अप’ देखा था, जिस की प्रैक्टिस दोस्तों के साथ करनी शुरू की थी. फिर मैं मुंबई आ गया. यहां मैं ने नृत्य निर्देशक अशेलो लोबो की कंपनी ‘द डांस वक्र्स’ से जुड़ा. वहां पर मैं ने डांस की ट्रेनिंग ली. उस के बाद वहीं पर दूसरे बच्चों को डांस सिखाने भी लगा.

मैं ने सुना है कि आप ने नृत्य का प्रशिक्षण लिया था?

जी, यह भी सच है. शुरुआत में मैं ने तीनचार साल तक कोलकाता में रह कर देवाशीष देव से भारतीय शास्त्रीय संगीत की कुछ ट्रेनिंग जरूर ली थी. इस के अलावा प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय गायन सीखा था. लेकिन मैं ने संगीत या गायन के क्षेत्र में ज्यादा काम नहीं किया.

मतलब?

जब मैं शास्त्रीय संगीत व शास्त्रीय गायन की शिक्षा ले रहा था तभी स्कूल में दोस्तों के साथ मेरी ‘स्टेप अप’ डांस की प्रैक्टिस भी जारी ही थी. हम ने अपने दोस्तों के साथ स्कूल टीम बना रखी थी. उन दिनों मैं डेनियल मार्टिन सहित कई मशहूर डांसरों के वीडियो भी देखता रहता था. इन डांसरों के यूट्यूब वीडियो देख कर मैं सीख रहा था. इसी तरह डांस में मेरी रुचि बढ़ती गई.

आज आप ने जो सफलता हासिल की है उस में आप की मां का बहुत बड़ा योगदान रहा होगा?

बिना मां की मदद के मैं कुछ नहि कर सकता था. बचपन में मैं कोलकाता में रहता था. मेरी मां मुबई शहर में रहती थीं. जब वे कोलकाता जाती थीं तब वे मेरे साथ गाते समय बैठती थीं. उस वक्त वे डांस के भी टिप्स दिया करती थीं. वे थोड़ाबहुत गानाबजाना करा देती थीं. तो मैं कुछ सीखता गया. इसी तरह मैं ने उन से ही तबला वादन भी सीखा. जहां तक डांस का सवाल है तो मेरी मां ने मुझे अपने सपनों को फौलो करना सिखाया. मुझे उन का मार्गदर्शन पलपल मिलता रहता है.

मुंबई आने के बाद किस तरह का संघर्ष रहा?

मेरी मां एक सिंगल मदर हैं, जिस के चलते उन की जिंदगी में तमाम उतारचढ़ाव आए, जिन का असर गाहेबगाहे मुझ पर भी पड़ता रहा. हमारी जिंदगी में कुछ भी आसान तो नहीं रहा पर मेरा और मेरी मां का मानना है कि जीवन संघर्ष का ही नाम है. हम ने कुछ दिन ऐसे भी देखे हैं जब हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. पर हम ने हार नहीं मानी. मेहनत करते रहे. आखिरकार, यहां तक पहुंच गए. मेरी मम्मी हमेशा कहती हैं कि हमारा घर प्यार व मेहनत का घर है.

हर दिन अच्छा नहीं होता. यह बात तो हर इंसान के साथ लागू होती है. मेरा संघर्ष इसलिए भी रहा क्योंकि हमारी पृष्ठभूमि अलग है और हम आर्थिक रूप से इतना सक्षम भी नहीं रहे कि हम अच्छे से अच्छे स्कूल में जा कर पढ़ाई कर पाते.

डांस की ट्रेनिंग बेहतरीन संस्थान से लेने की ताकत हमारे नहीं रही. हम तो सीखने के साथ ही सिखाने का काम भी करते आए हैं. हम ने बारबार स्कौलरशिप के लिए हाथ फैलाया. दूसरों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ी. मेहनत के बल पर हम जितना सीख सकते थे, वह सब हम सीखते रहे. मैं बैले व टैंपरेरी डांस टीचर का सहायक भी था. अभी भी मैं डांस की कुछ क्लासेस लेता हूं. 5 वर्ष तक डांस जगत में अति कठिन मेहनत करने के बाद मुझे महज 16 वर्ष की उम्र में सूनी तारापोरवाला की फिल्म ‘यह बैले’ मिली जो कि ‘नेटफ्लिक्स’ पर स्ट्रीम हो रही है.

सूनी तारापोरवाला ने फिल्म ‘यह बैले’ के लिए आप का चयन किस तरह से किया था?

मैं ‘द डांस वक्र्स’ से जुड़ा हुआ था. और वहीं के एक शिक्षक येहुदा मेअर और उन के 2 डांस के शिष्य अमिरुद्ध शाह व मनीष चौहाण की ही कहानी पर यह फिल्म है. येहुदा और सोनी मैम एकदूसरे से परिचित थीं. पहले इस फिल्म में अमिरुद्ध शाह व मनीष चौहाण ही अभिनय करने वाले थे पर अमिरुद्ध शाह लंदन में फंस गया था, इसलिए उस की जगह उस का किरदार निभाने के लिए येहुदा की ही सलाह पर सोनी मैम ने मेरा चयन किया था. वास्तव में मेरा वार्षिक शो चल रहा था, तब येहुदा के ही कहने पर सोनी मैम मेरा डांस शो देखने आई थीं.

मेरा डांस का शो खत्म हुआ तो उन्होंने मुझे बुलाया और पूछा कि अभिनय करते हो? तब मैं ने सच बता दिया कि मैं अभिनय नहीं करता लेकिन मौका मिला तो जरूर करूंगा. उन्होंने दूसरे दिन मुझे औडीशन देने के लिए बुलाया. मैं ने औॅडीशन दिया. फिर एक माह तक कई बार मेरा औडीशन कई तरह से लिया गया. आखिरकार, मेरा चयन हो गया. उस के बाद मुझे बैले डांस की कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा. उस के बाद मैं ने फिल्म की शूटिंग की. फिर दोबारा ‘द डांस वक्र्स’ पहुंच कर बच्चों को डांस की ट्रेनिंग देने लग गया.

आप ने फिल्म में आसिफ का किरदार निभाया है, क्या उस के बारे में आप पहले से कुछ जानते थे?

सर, जिस किरदार को मैं ने निभाया यानी कि अमीरुद्दीन शाह उर्फ आमिर और दूसरे मनीष चौहाण इन दोनों को जानता था. वैसे, सूनी मैम ने आमिर के किरदार में कुछ कल्पना जोड़ कर उसे आसिफ बनाया. बहरहाल, आमिर व मनीष ये दोनों मुझ से उम्र में व अनुभव में काफी बड़े हैं. मैं इन्हें भैया ही कहता रहा हूं. ये दोनों ‘द डांस वक्र्स’ से ही जुड़े हुए थे, जिस से मैं भी जुड़ा हुआ हूं. जब मैं इस कंपनी में ज्यूनियर में था तो इन्हें डांस करते देखा करता था. इन के बारे में दूसरों से काफीकुछ सुनता रहता था. तब हम से कहा जाता था कि बैले डांस में हमें इन के स्तर तक पहुंचना है.

अंधेरी के स्टूडियो में जब हम क्लासेस के लिए जाते थे, तो अंत में आमिर व मनीष हमें कुछ न कुछ जरूर सिखाते थे. कई बार वे हमें डेमोस्टेट करते थे, तो कभी सैट दिखाया करते थे. हर रविवार को शाम 4 से 6 बजे एक क्लास हुआ करती थी, जो हमारे लिए कम्पलसरी थी. एक दिन आमिर इस क्लास को असिस्ट कर रहे थे और मैं पीछे था. मुझे नींद आ रही थी, तो मैं एक पाइप को पकड़ कर सो गया था. तब आमिर ने आ कर मुझे हलके से थप्पड़ मारते हुए कहा कि, ‘सोना है तो बाहर जा.’ आमिर मुझे बच्चे की ही तरह मानते थे. मनीष से भी मुझे काफीकुछ सीखने का अवसर मिला.

जब आप को पता चला कि आप को आमिर वाला किरदार निभाना है, तो आप के मन में पहली बात क्या आई थी?

मैं अंदर से बहुत डर गया था क्योंकि आमिर बहुत अच्छा डांस करते हैं. मुझे लगा कि मुझ से न हो पाएगा. इस से पहले मैं ने बैले डांस किया भी नहीं था. लेकिन सोनी मैम ने कहा कि तू कर लेगा. उस के बाद मेरी मुलाकात सिंडी से हुई. उस ने तो 5 माह में मुझे रगड़ कर अच्छा बैले डांसर बना दिया. इस तरह मेरा आत्मविशवास बढ़ा कि मैं परदे पर आमिर का किरदार निभा पाऊंगा.

फिल्म ‘ये बैले’ में आप को डांस के साथ अभिनय करने का अवसर मिल रहा था, इसलिए की?

‘ये बैले’ करने की कई वजहें रहीं. मेरी मां सूनी तारापोरवाला की बहुत बड़ी फैन हैं और इस फिल्म की कहानी लिखने के साथ ही सूनी तारापोरवाला इस का निर्देशन कर रही थीं, इसलिए मुझे यह फिल्म करनी थी. सूनी जी तो व्हिशलिंग वुड इंटरनेशनल स्कूल, सत्यजीत रे स्कूल में जा कर अभिनय सिखाती हैं. मेरी मम्मी को सूनी की फिल्म ‘लिटिल जिजो’ काफी पसंद है.

क्या आप ने अभिनय की भी ट्रेनिंग ले रखी थी?

जी नहीं. लेकिन पूजा स्वरूप और विजय मौर्य ने मेरे साथ अभिनय की वर्कशौप कर मुझे अभिनय में निपुण किया. पहले मुझे आता नहीं था कि अभिनय कैसे करना है, फीलिंग कहां से निकलेगी, मुझे संवाद कैसे बोलना है क्योंकि फिल्म में निर्देशक ने थोड़ी सी जबान बदली कराई है. पहले मेरे लिए यह सब बहुत कठिन था लेकिन मेरी ट्रेनिंग ऐसी हुई कि हर माह मेरे लिए आसान होता चला गया. फिर जब सिंडी ने मुझे बैले डांस की ट्रेनिंग दी, तो कमाल हो गया.

उन्हें देख कर लगता है कि उन के शरीर में पैदाइशी बैले नृत्य है. सिंडी जब कूदती हैं तो कम से कम 3 से 4 फुट ऊंचा उठ जाती हैं और आराम से बात करते हुए छलांग मारती हैं कि पता ही नहीं चलता. मुझे तो 4 माह केवल ऊंचाई लाने में ही चले गए. तो ये सारी चुनौतियां थीं जिन्हें सूनी मैम की टीम ने मुझे ट्रेनिंग दे कर दूर करा दीं. 6 माह मेरी कठिन मेहनत रही.

फिल्म के अपने किरदार को ले कर क्या कहना चाहेंगे?

फिल्म में मेरे किरदार का नाम आसिफ है. आसिफ जिस चीज से प्यार करता है उस में अपनी पूरी जान डाल देता है. जब उस ने ठान लिया कि वह बैले डांस करेगा, तो उस ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी. जब उसे अपने मम्मी, पापा व चाचू को समझाना था तो वह उन्हें समझा लेता है. वह जितना लोगों से प्यार करता है, जितना लोगों के प्रति खुद को कमिट कर देता है, वह भी कमाल का है. वह एनर्जेटिक है. उसे बहुत जल्दी गुस्सा भी आ जाता है.

आसिफ का किरदार निभाने के बाद आप के अंदर क्या बदलाव आए?

सब से बड़ा बदलाव यही रहा कि मैं बैले डांस करने में माहिर हो गया. इतना ही नहीं, फिल्म पूरी करने के बाद जब मैं फिर ‘द डांस वक्र्स’ पहुंचा तो मेरे टीचरों ने कहा कि, ‘अचिंत्य, तू थोड़ा मैच्योर हो गया है. अब तू डांसर लगता है.’ आसिफ का किरदार निभाते हुए मेरा काफी विकास हुआ. मैं ने पहली बार जीवन के अलगअलग क्षेत्र से बड़ी हस्तियों को आ कर एक फिल्म को बनाते हुए देखा व अनुभव किया था. मैं ने हर किसी से काफीकुछ सीखा था.

मैं ने बहुतकुछ ऐसा सीखा था जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता. तो फिल्म ‘ये बैले’ करते हुए मेरे अंदर जो मैच्योरिटी आई है वह शायद बाद में नहीं आएगी. आसिफ का किरदार निभाते हुए मेरी डांसर के रूप में जो ट्रेनिंग हुई वह तो कमाल की रही.

क्या यह माना जाए कि आसिफ के किरदार से अचिंत्य काफी रिलेट कर रहे थे?

काफी हद तक. देखिए, आमिर व आसिफ थोड़ा सा अलग हैं क्योंकि आसिफ को थोड़ा सा फिक्शनलाइज किया गया है. सोनी मैम ने मुझ से कहा था कि मैं आसिफ को अपने निजी अनुभवों से निभाऊं. आसिफ ‘अंडर प्रिविलेज्ड चाइल्ड’ है. उस के पास धन, साधन व सुविधाओं का अभाव है. ऐसा ही मेरे साथ भी है. कुछ दृश्यों में मुझे वास्तव में महसूस हुआ कि यह तो मेरे पास भी नहीं है. तो कई दृश्य ऐसे रहे जिन्हें मैं ने अपने निजी जीवन के अनुभवों से प्रेरणा ले कर निभाया.

आप की फिल्म ‘ये बैले’ तो 3 वर्ष से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. अब तक किस तरह के रिस्पौंस आए हैं?

प्रतिक्रियाएं तो 197 देशों से आईं. पहले ही दिन मेरे पास रशिया, ब्राजील से संदेश आए थे. लोगों ने संदेश में लिखा था कि फिल्म बहुत इंस्पायरिंग है. कुछ दिनों पहले निर्देशक सोमी ने एक स्पैशल स्क्रीनिंग रखी थी. उस वक्त दर्शकों में एक शख्स नेपाल से आए थे. फिल्म देखने के बाद वे मेरे पास रोतेरोते आए. उन्होंने मुझ से रोतेरोते कहा, ‘मैं भी बचपन में डांस करता था. अब तो मैं कविताएं लिखता हूं. लेकिन आज ‘ये बैले’ फिल्म देख कर मुझे मेरा बचपन याद आ गया.

मुझे अपना बचपन इसलिए भी याद आया कि आज मैं जहां हूं, उस के लिए मैं ने बहुत लड़ाई की है. मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि आप ने भले ही डांस के माध्यम से किया हो पर मेरा प्रतिनिधित्व इतने बड़े प्लेटफौर्म पर किया है. मेरी बात कितने लोगों तक पहुंचाई, यह मेरे लिए गर्व की बात है.’ मेरे लिए यही प्रतिक्रिया सब से प्यारी है. मेरे दिल के करीब है. ऐसा मुझ से किसी ने पहली बार कहा था. उस के बाद मैं ने घर पर आ कर पुराने संदेश पढ़े तो पाया कि इसी तरह की बात किसी न किसी अंदाज में कईयों ने लिख कर भेजी हुई थी.

क्या इस के बाद आप को दूसरी फिल्म का औफर मिला?

फिल्म इंडस्ट्री से कई लोगों ने बधाई दी और एकसाथ काम करने की बात भी कही. फिलहाल मैं अपनी एक वैब सीरीज के आने का इंतजार कर रहा हूं. यह वैब सीरीज भी डांस पर ही है. इस का लेखन, निर्माण व निर्देशन सोनी तारापोरवाला ने ही किया है. इस वैब सीरीज के बारे में ज्यादा नहीं बता सकता. मगर इस के फिल्मांकन में एक वर्ष से अधिक का समय लगा. यह वैब सीरीज कमाल करने वाली है. कुछ और भी काम किया है.

आप खुद को किस डांस फौर्म में माहिर समझते हैं?

मुझे लगता है कि स्पैशलिस्ट बनने में तो अभी बहुत समय है. मेरे लिए अभी मंजिल काफी दूर है. अभी तो मुझे बहुतकुछ सीखना है. अभी मैं अमेरिका के कैला आर्ट्स में 4 वर्ष की डांस की ट्रेनिंग के लिए जा रहा हूं. वहां से आने के बाद देखूंगा कि अब क्या किया जाए. यहां की फीस व रहने आदि के खर्च वहन करने की मेरी क्षमता नहीं है. मुझे कुछ आंशिक छात्रवृत्ति मिल गई है. बाकी की रकम मैं क्राउड फंडिंग से जुटाने के लिए प्रयासरत हूं.

आप ने अमेरिका के इस इंस्टिट्यूट जाने का निर्णय क्या सोच कर लिया?

अगर अमेरिका में कोई कत्थक करे, तो मैं उस से यही कहूंगा कि आइए हमारे भारत देश में कत्थक सीखिए क्योंकि कत्थक हमारे देश का है. इसी तरह से जिस फौर्म के डांस मैं कर रहा हूं वे अकेरिका के हैं, तो वहां जा कर ट्रेनिंग लेने की जरूरत मैं ने महसूस की.

दूसरी बात, मुझे कालेज में पढ़ने का अवसर नहीं मिल पाया, तो इसी बहाने कालेज में पढ़ लूंगा. मैं हमेशा से डांस में या डांस सायकोलौजी में ही कुछ करना चाहता था. मैं डांस लिटरेचर वगैरह पढ़ना चाहता था. बैले तो यूरोप का है. पर बाकी हिप हौप, जैज आदि डांस के जो फौर्म अमेरिका से आए हैं. सो, वहां जा कर अथैंटिकली सीख कर आऊंगा. मेरी मम्मी की भी यही इच्छा है.

सुना है कि अमेरिका में 4 वर्ष की डांस की ट्रेनिंग में लंबा खर्च आने वाला है?

जी हां, आप की बात सच है. यह रकम बहुत बड़ी है. और कड़वा सच यह है कि उस खर्च को वहन करने की क्षमता मुझ में नहीं है. मैं क्राउड फंडिंग का सहारा ले रहा हूं. मैं हर किसी से कह रहा हूं कि जो भी मेरी मदद छोटी राशि से भी करना चाहे, वह कर सकता है. वैसे तो मुझे आंशिक स्कौलरशिप मिली है, मगर बाकी की राशि इकट्ठा करने में लगा हुआ हूं. सैमिस्टर वन के लिए राशि इकट्ठा हो गई है. बाकी के लिए भी राशि मिल जाएगी, ऐसी उम्मीद है. लेकिन मैं यह कभी नहीं कहता कि भारत में नृत्य प्रशिक्षण के अवसर कम हैं. भारत में डांस का महत्त्व कम नहीं है.

मां की बनारसी साड़ी : मां की अमानत सहेज कर रखती बेटी की कहानी

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कथा : क्या थी नीरज की परेशानी ?

19 जुलाई, 2014 को शाम करीब पौने 7 बजे नीरज के मोबाइल फोन पर उस के जीजा नितिन का फोन आया, जिस में उस ने बताया कि मेरा और पारुल के बीच झगड़ा हो गया है. अब हमारा सब कुछ खत्म हो गया है. इस के बाद फोन कट गया. इतना सुनते ही नीरज परेशान हो गया कि जीजा यह किस तरह की बातें कर रहे हैं. उस ने महसूस किया कि फोन करते समय जीजा की आवाज में घबराहट थी.

नीरज जानना चाहता था कि ऐसा क्या हो गया, जो उन्होंने इस तरह की बात कही. जानने के लिए उस ने नितिन को फोन लगाया, लेकिन किसी वजह से उन से उस की उस से बात नहीं हो सकी.

नितिन पत्नी पारुल और 4 साल की बेटी आयुषि के साथ नोएडा सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर ई-402 में रहता था.

बात गंभीर थी, इसलिए नीरज ने यह बात अपने पिता सुरेंद्र कुमार को फोन कर के बता दी. सुरेंद्र कुमार धीपरवाड़ा, रेवाड़ी, हरियाणा में रहते थे. रेवाड़ी से नितिन का फ्लैट बहुत दूर था. जल्द फ्लैट पर पहुंचना उन के लिए असंभव था, इसलिए उन्होंने भी दामाद से बात करने के लिए कई बार फोन मिलाया. लेकिन किसी वजह से उन की बात नहीं हो सकी और न ही बेटी पारुल से कोई संपर्क हो सका.

सुरेंद्र कुमार भी इस बात की चिंता कर रहे थे कि बेटी और दामाद में से किसी का भी फोन क्यों नहीं लग रहा. नितिन ने नीरज से फोन पर जो शब्द कहे थे, उस से उन्हें अंदेशा हो रहा था कि कहीं उन लोगों के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. इस तरह की तमाम आशंकाएं उन के मन में आ रही थीं.

नोएडा में सुरेंद्र कुमार के एक रिश्तेदार रहते थे. उन्होंने अपने उस रिश्तेदार को फोन कर के दामाद के फ्लैट पर जा कर पता लगाने को कहा.

उसी समय वह रिश्तेदार लोरियल अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर ई-402 पर पहुंचा तो उसे वह फ्लैट बंद मिला. फ्लैटों में रहने वाले अधिकांश लोग अपने पड़ोसी तक से वास्ता नहीं रखते. वे केवल अपने काम से मतलब रखते हैं. तभी तो उस रिश्तेदार ने जब नितिन का फ्लैट बंद देखा तो उस ने आसपास वालों से नितिन के बारे में पूछा. लेकिन उसे कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

उस रिश्तेदार ने यही बात फोन पर सुरेंद्र कुमार को बता दी. फ्लैट बंद था, बेटी और दामाद का फोन नहीं मिल रहा था. सभी लोग कहां चले गए, यही सोच कर घर के सदस्य चिंतित थे.  अब तक रात भी गहरा चुकी थी. ऐसे में उन के सामने रात भर इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था. उन्होंने सुबह होते ही नोएडा जा कर बेटीदामाद का पता लगाने का निश्चय किया. चिंता में उन्हें रात भर नींद नहीं आई.

अगले दिन 20 जुलाई, 2014 को सुरेंद्र कुमार अपनी पत्नी और बेटे के साथ नोएडा स्थित अपने दामाद के फ्लैट पर पहुंचे. उन्हें भी फ्लैट बंद मिला तो उन्होंने सोसायटी के पदाधिकारियों को इस की सूचना दी. फ्लैट बंद और उस में रहने वालों का कोई अतापता नहीं चलने पर मामला संदिग्ध लग रहा था. सोसायटी के एक पदाधिकारी ने इस की सूचना थाना सेक्टर-58 को दे दी.

थाने में खबर मिलने के थोड़ी देर बाद ही थानाप्रभारी चरण सिंह शर्मा सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट पहुंच गए. तब सोसायटी वाले पुलिस को उस फ्लैट तक ले गए, जिस में नितिन परिवार के साथ रहता था. फ्लैट का दरवाजा बंद होने से पुलिस भी चौंकी. फ्लैट खोलना जरूरी था, उस के बाद ही नितिन और उस की बीवीबच्ची का पता लग सकता था.

वहां मौजूद लोगों की मौजूदगी में थानाप्रभारी ने नितिन के फ्लैट का ताला तोड़ कर अंदर घुसे तो उन्हें तेज बदबू का अहसास हुआ. फ्लैट का नजारा चौंकाने वाला था. जमीन पर बिछे गद्दे पर नितिन की 4 साल की बेटी आयुषि मृत पड़ी थी. नातिन की लाश देख कर सुरेंद्र कुमार और उन की पत्नी जोरजोर से रोने लगी.

बच्ची की लाश मिलने के बाद पुलिस नितिन और पारुल को ढूंढते हुए फ्लैट की लौबी में पहुंची तो कुरसी पर 28 वर्षीया पारुल की लाश मिली. लेकिन नितिन फ्लैट में नहीं मिला.

दोनों लाशों से तेज बदबू आने से लग रहा था कि उन की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मौके पर चाकू तथा फर्श पर खून के धब्बे थे. पारुल के हाथ पर भी कटने का निशान था. घटनास्थल की स्थिति से लग रहा था कि पारुल की हत्या चाकू से की गई थी और उस की बेटी आयुषि का गला घोंटा गया था.

नितिन के गायब होने से सभी का अनुमान था कि यह सब उसी ने किया होगा. पारुल के मातापिता यह नहीं समझ पा रहे थे कि नितिन की घरगृहस्थी जब ठीक से चल रही थी तो ऐसी क्या बात हो गई कि उस ने उन की बेटी और नातिन को मार डाला.

अपार्टमेंट में रहने वाले जिस किसी ने भी सुना कि फ्लैट नंबर ई-402 में 2 हत्याएं हुई हैं, वह उसी ओर चल दिया. उधर दोहरे मर्डर की सूचना थानाप्रभारी ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. प्रीतिंदर सिंह को दी तो वह भी थोड़ी देर में मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस ने बारीकी से फ्लैट का मुआयना किया तो वहां सभी सामान अपनीअपनी जगह रखे मिले. यानी ऐसा नहीं लग रहा था कि किसी ने लूट के इरादे से दोनों हत्याएं की हों.

ऐसा लग रहा था कि हत्यारे ने पारुल की मरजी से फ्लैट में एंट्री की थी और दोनों की हत्या कर के आसानी से ताला बंद कर के चला गया था. हत्यारा पारुल का कोई परिचित ही रहा होगा. चूंकि पारुल का पति नितिन गायब था, इसलिए पारुल के घर वालों को इस बात का शक था कि उसी ने दोनों की हत्या की होगी.

पुलिस ने मौके से जरूरी सुबूत इकट्ठे कर के दोनों लाशों का पंचनामा करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. संदेह के आधार पर पारुल के पति नितिन रोहिला के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर के पुलिस ने आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

हरियाणा के रोहतक के रहने वाले नितिन रोहिला की शादी सन 2008 में धीपरवाड़ा, रेवाड़ी के रहने वाले सुरेंद्र कुमार की बेटी पारुल से हुई थी. नितिन ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित यामाहा कंपनी में इंजीनियर था. पारुल आर्किटेक्ट की डिग्री लिए हुए थी.

उच्चशिक्षित पारुल और नितिन की गृहस्थी हंसीखुशी से बीत रही थी. शादी के कुछ दिनों बाद पारुल एक बेटी की मां बनी, जिस का नाम आयुषि रखा. बेटी के जन्म के बाद दोनों बेहद खुश थे.

नितिन ने नोएडा के सैक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. वहीं पर वह पत्नी और बेटी के साथ रहता था. पारुल हाउसवाइफ थी. पति के ड्यूटी पर जाने के बाद वह बेटी के साथ घर पर मस्त रहती थी.

पुलिस नितिन रोहिला की तलाश में जुट गई. वह यामाहा कंपनी में नौकरी करता था. वहां जा कर पुलिस ने पता किया तो जानकारी मिली कि 17 जुलाई को नितिन ने तबीयत खराब होने की बात कह कर औफिस आने से मना कर दिया था. यानी वह 16 जुलाई तक औफिस आया था, उस के बाद नहीं आया था.

पारुल और आयुषि के शव देख कर लग रहा था कि उन की हत्याएं 3-4 दिन पहले की गई थीं. कई दिनों से नितिन के औफिस न पहुंचने पर पुलिस का शक नितिन की तरफ और बढ़ गया. पुलिस मान कर चल रही थी कि हत्या करने के बाद वह फरार हो गया है. पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, शायद उस से उस के बारे में कोई सुराग मिल सके.

पुलिस नितिन की सरगर्मी से तलाश कर रही थी कि रात 8 बजे पुलिस को खबर मिली कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर एक कार में आग लगी है. सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ी मौके पर पहुंच गईं. आधा घंटे की मशक्कत के बाद कार में लगी आग बुझाई गई. पुलिस ने जांच की तो उस सैंट्रो कार में एक आदमी जला हुआ मिला.

उस सैंट्रो कार की जांच की गई तो पता चला कि वह कार नोएडा के सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट में रहने वाले नितिन रोहिला की है. स्थानीय पुलिस ने यह जानकारी सेक्टर-58 थाना पुलिस को दी तो थानाप्रभारी रात में ही एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर पहुंच गए. लाश झुलस चुकी थी, इसलिए वह पहचानने में नहीं आ रही थी.

जब कार नितिन की है तो इस में जली लाश किस की है? यह बात कोई समझ नहीं पा रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद नितिन ने अपनी जीवनलीला खत्म कर ली हो. यह बात यकीन के साथ तब तक नहीं कही जा सकती थी, जब तक कार में जली लाश की शिनाख्त न हो जाए.

थानाप्रभारी चरण सिंह शर्मा ने नितिन रोहिला के घर वालों को बुलाया तो नितिन के भाई ने उस की शिनाख्त अपने भाई के रूप में की. इस के बाद पुलिस ने वह लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और एक सैंपल डीएनए जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया, जिस से पता चल सके कि लाश किस की थी?

पुलिस यह भी मान कर चल रही थी कि कहीं यह नितिन की कोई गहरी साजिश तो नहीं है, जिस में उस ने पत्नी व बेटी की हत्या करने के बाद खुद को बचाने के लिए किसी और को बलि का बकरा बना दिया हो. नितिन को ले कर पुलिस असमंजस की स्थिति में आ गई.

पारुल और उस की बेटी आयुषि की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, उस में बताया गया था कि पारुल की हत्या गला दबा कर की गई थी और आयुषि की मौत भी सांस रुकने की वजह से हुई थी. नाक और मुंह बंद कर के आयुषि की सांस रोकी गई थी और दोनों की हत्या 16-17 जुलाई, 2014 की रात को की गई थी.

नोएडा के जिस अपार्टमेंट में नितिन रहता था, पुलिस ने वहीं से जांच की शुरुआत की. पुलिस के पास नितिन के फोन की काल डिटेल्स भी आ चुकी थी. काल डिटेल्स के अध्ययन से पता चला कि जिस रात पारुल और आयुषि की हत्या की गई थी, नितिन के फोन की लोकेशन प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट की ही थी.

अपार्टमेंट की लिफ्ट में लगे सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि 16 जुलाई के बाद पारुल और आयुषि फ्लैट से नहीं निकले थे. शाम के समय नितिन को फ्लैट में जरूर जाते देखा गया था. इस का मतलब 16 जुलाई की शाम को नितिन फ्लैट में आया था. उस समय वह सूरजपुर स्थित अपने औफिस से आया था. उस के औफिस से पता चला कि 16 जुलाई को ड्यूटी करने के बाद वह वहां से 5 बजे निकला था. औफिस से वह शाम 6 बजे के करीब अपने फ्लैट पर पहुंचा था.

17 जुलाई को नितिन ड्यूटी पर नहीं गया था. उस ने फोन कर के बता दिया था कि उस की तबीयत खराब है. 16 जुलाई की शाम को अपने फ्लैट में घुसा नितिन 19 जुलाई को सुबह साढ़े 7 बजे के करीब बाहर निकला था. यानी 16-17 जुलाई की रात को पत्नी व बेटी की हत्या करने के बाद. वह 19 जुलाई तक दोनों लाशों के साथ फ्लैट में ही रहा.

19 जुलाई को सुबह साढ़े 7 बजे फ्लैट से निकलने के बाद वह दोपहर ढाई बजे तक सोसायटी के आसपास घूमता रहा. उसी दिन शाम साढ़े 6 बजे वह सीढि़यों के रास्ते फ्लैट में पहुंचा. पौने 7 बजे के करीब उस ने अपने साले नीरज को फोन कर के कहा कि मेरा और पारुल का झगड़ा हो गया है. अब हमारा सब कुछ खत्म हो गया है.

साले को फोन करने के 17 मिनट बाद नितिन लिफ्ट के जरिए बिल्डिंग से बाहर निकला और शाम साढ़े 7 बजे ग्रेटर नोएडा के नालेज पार्क पहुंच गया. यह सारी जानकारी उस के फोन की लोकेशन की जांच के बाद मिली. इस के आधे घंटे बाद 8 बजे नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर उस की सैंट्रो कार के जलने की खबर मिली.

पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि 16 से 19 जुलाई तक नितिन फ्लैट में रह कर क्या करता रहा? जबकि वहीं पर उस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी थीं. 19 जुलाई को फ्लैट से उस का बाहर जाना और 7 घंटे बाद फ्लैट में वापस आने का यह संकेत मिल रहा है कि उस ने लाशों को अपार्टमेंट से बाहर ले जाने का प्लान बनाया होगा. लेकिन चौकस सुरक्षा व्यवस्था को देख कर उस का प्लान चौपट हो गया होगा. इसलिए वह 7 बजे के करीब वहां से अकेला ही चला गया.

नितिन के भाई ने भले ही जली हुई कार में मिली लाश की शिनाख्त नितिन के रूप में कर दी है, लेकिन पुलिस को अभी भी संदेह है. तभी तो उस ने डीएनए जांच के लिए सैंपल भिजवाए हैं. अगर डीएनए जांच में इस बात की पुष्टि हो जाती है कि कार में मिली लाश नितिन रोहिला की थी तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद नितिन ने भी सुसाइड कर लिया है.

और अगर डीएनए जांच रिपोर्ट नितिन के अलावा और किसी आदमी की निकली तो पुलिस के लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. फिर उसे नितिन को तलाशना होगा. इस के बाद ही पता लग सकेगा कि उस ने खुद को बचाने के लिए किस शख्स को अपनी कार में जलाया था. बहरहाल पुलिस के लिए यह मामला अब बहुत पेचीदा हो गया है.

कोचिंग संस्थानों का सच

प्रतियोगिता के इस दौर में कोचिंग एक आवश्यक शर्त बन गई है. पिछले लगभग 25 सालों में तो इस क्षेत्र में बहुत उबाल आया है. कोचिंग की बढ़ती मांग को देखते हुए लोगों ने अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ कर कोचिंग सैंटर शुरू कर दिए हैं. अनगिनत मातापिता के ख्वाब पलते हैं इन कोचिंग सैंटर के तले, क्योंकि ख्वाब दरअसल बच्चों के नहीं मातापिता के होते हैं, जिन्हें अंजाम तक पहुंचाने का माध्यम बच्चे होते हैं. मगर उन का क्या, जिन्होंने अपने पैसे लगाए और बच्चा भी खो दिया.

मौत का गलियारा बने कोटा शहर को ही ले लीजिए. यहां कोचिंग सैंटरों की भरमार है. पूरा शहर तैयारी करने वाले छात्रों से अटा पड़ा है. छात्र अपने घर से दूर चाहेअनचाहे माहौल में रहने को मजबूर हो जाते हैं. अधिकांश 15-16 साल की उम्र यानी 10वीं के बाद ही वहां के स्कूलों में प्राइवेट एडमिशन ले लेते हैं, मगर समय कोचिंग संस्थान में बिताते हैं. बननेबिगड़ने की इस उम्र में छात्र भावनात्मक रूप से संवेदनशील होते हैं. महीनेमहीने में होने वाले टैस्ट में बेहतर करने का प्रैशर तो होता ही है, फोन पर मातापिता की हिदायतें भी, “हम इतने पैसे खर्च कर रहे हैं, तुम्हें अच्छी रैंक ले कर आनी है.” जैसी ही कई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बातें उन्हें समझनी होती हैं. यहां से शुरू होता है दबाव में आने का सिलसिला. हर तरह के छात्र यहां पर होते हैं, जिन का आर्थिक स्तर भी भिन्नभिन्न होता है. दूसरे से तुलना करने पर खुद को कमजोर पाना भी इस उम्र में कहीं न कहीं सालता है.

कुछ व्यवहार से इतने भावुक होते हैं कि वे मातापिता को शतप्रतिशत न दे पाने के बाद से तनावग्रस्त हो जाते हैं और कई बार मौत को गले लगा लेते हैं. मलाल के सिवा कुछ नहीं बचता पेरेंट्स के पास. कई मातापिता अपनी पूंजी, चलअचल संपत्ति को बंधक रख कर भी बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं.

बच्चे की मरजी हमें समझनी होगी. यदि बच्चे की रुचि मैडिकल, इंजीनियरिंग फील्ड में नहीं है तो क्यों बनेगा जबरन डाक्टर या इंजीनियर? वह संगीत या प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में बेहतर कर सकता है. आजकल कक्षा 7-8 से बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की कोचिंग, कोडिंग कराना एक शौक बन गया है. इस की इतनी जरूरत नहीं है, जितनी हम समझते हैं.

विदेशों का उदाहरण लें, तो वहां बच्चों को इन मामलों में स्वतंत्र छोड़ा जाता है. उस की अभिरुचि को परखने के बाद ही उसे किसी क्षेत्र विशेष में भेजा जाता है.

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून तो शुरू से ही ऐजूकेशन हब रही है. यहां अनेक कोचिंग सैंटर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं. इन कोचिंग सैंटर में नोट्स तैयार करवाना, परीक्षा की तैयारी वाले वीडियो लैक्चर, फैकेल्टी के साथ लाइव क्लासेज चैट सुविधा भी उपलब्ध होती है. दैनिक टैस्ट सीरीज भी यहां पर करवाए जाते हैं. सिविल सेवा के अंतर्गत आईएएस, पीसीएस सेवाओं में इन संस्थानों के मार्गदर्शन में छात्रों का चयन भी हुआ है. लेकिन शिक्षा का व्यवसायीकरण पिछले कुछ सालों में बेहिसाब हुआ है. बैंकिंग, एसएससी, रेलवे, एनडीए, सीडीएस जैसी कई परीक्षाएं हैं, जहां कोचिंग का सहारा लिया जाता है. कई कोचिंग संस्थान ऐसे हैं, जहां पर शिक्षक काबिल नहीं होते. छात्रों को कुछ समझ में नहीं आता. केवल समय बरबाद होता है. कुछ खास छात्रों पर खास ध्यान देना भी कमजोर छात्रों के साथ नाइंसाफी है. ज्यादातर संस्थाओं का उद्देश्य पैसा कमाना है.

उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित पटवारी भरती परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक होने के बाद जांच से बचने के लिए कई कोचिंग सैंटर संचालक भूमिगत हो गए थे. इन आरोपियों के संबंध कोचिंग सैंटर संचालकों से होने की बात सामने आई.

हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में मोटी फीस ले कर चलने वाले कोचिंग सैंटर के संचालक घेरे में आए. ये संचालक बड़ीबड़ी संपत्तियों के मालिक हैं. 8 जनवरी को पटवारी परीक्षा हुई थी, पर पेपर पहले ही लीक हो गया था.

सैल्फ स्टडी का महत्व आज भी बरकरार है. पर, एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ ने कोचिंग के व्यापार को फलनेफूलने में मदद की है. इस से छात्रों का स्ट्रैस लैवल बढ़ता है. दिनचर्या बहुत कष्टकारी हो जाती है. बड़े शहरों के कई प्राइवेट स्कूल जो कोचिंग कराते हैं, उन का भी यही हाल है. स्कूल से छुट्टी के एक घंटे बाद फिर से कोचिंग की ओर कदम. दिमाग कितना ग्रहण कर पाएगा आखिरकार? हर घर में एक या 2 बच्चे हैं. मातापिता का एकमात्र उद्देश्य कमाना और बच्चे को बेहतर ऐजूकेशन देना है. ऐसे बचपन को जब स्नेह, दुलार और संबल नहीं मिलता तो वह संवेदनशील हो जाता है. समय बीतने के साथ उन के लिए घर से बाहर भी एडजैस्ट करना मुश्किल हो जाता है. बीते 12 फरवरी को गुजरात के रहने वाले इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष के छात्र ने आईआईटी, मुंबई में आत्महत्या कर ली थी, जहां पर प्रवेश पाना ही बहुत बड़ी बात है.

ऐसे क्या कारण रहे होंगे, क्या तनाव रहा होगा इस बच्चे को. हमारी मौजूदा परीक्षा प्रणाली तनाव को बढ़ावा देने वाली है. आईएएस परीक्षा सब से कठिन परीक्षा मानी जाती है, उस के बाद आईआईटी विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा. निर्धारित कटऔफ भी तनाव का कारण बनती है. 90 फीसदी से अधिक अंक न आ पाने पर भविष्य अंधकारमय लगता है.

समाज का नजरिया ही कुछ ऐसा है. छात्र अलगअलग कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं. भारत में हर एक घंटे में एक छात्र आत्महत्या कर रहा है. 130 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में महज 5,000 ही मनोचिकित्सक हैं. हमारा दुर्भाग्य है, मानसिक बीमारी को हमारे देश में बीमारी ही नहीं समझा जाता है. वर्ष 2014 से 2016 तक 26,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की थी.

हैरानी तो यह कि सब से समृद्ध राज्य महाराष्ट्र इन में पहले स्थान पर था. मनचाहे कालेज में प्रवेश न मिलना भी एक बहुत बड़ा कारक है. मातापिता समझदारी से काम लें. अपनी उम्मीदों का बोझ अपने बच्चों पर न लादें.

भारत में कोचिंग व्यवसाय के बारे में पुणे स्थित कंसलटैंसी फर्म इन्फिनियम रिसर्च की सूचना के अनुसार, भारत का मौजूदा कोचिंग बाजार राजस्व 58,000 करोड़ रुपए से अधिक है, जो आने वाले 5-6 वर्षों में बढ़ कर 1 लाख, 34 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है.

अगर आज से 25-30 वर्ष पीछे जाएं, तो देश में कोचिंग सैंटरों की संख्या काफी कम थी. धीरेधीरे गलाकाट प्रतिस्पर्धा होने लगी, कालेज में सीट कम और अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ने लगी. एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति में इन कोचिंग सैंटरों ने कमान संभाली. बस फिर समय के साथ यह हर छात्र की आवश्यकता बन गई. इस की आड़ में छोटे कसबाई इलाकों में कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग सैंटर खोल दिए गए, जहां पर गुणवत्ता नगण्य थी. लेकिन छात्र उन्हें भी मिल रहे हैं, क्योंकि अभिभावक आंख बंद किए हुए हैं या गुणवत्ता की उन्हें पहचान नहीं.

कई कोचिंग सैंटर तो छात्रों से भी सौदा कर देते हैं. इश्तिहार में सफल छात्रों की तसवीर अपने पासआउट छात्रों के तौर पर लगा देते हैं, ताकि दूसरे छात्र भी संस्थान से प्रभावित हो कर वहां प्रवेश ले लें. तरहतरह के हथकंडे कुछ संस्थानों द्वारा अपनाए जाते हैं.
मगर कोचिंग सैंटरों की इतनी आवश्यकता क्यों पड़ी? अगर इस बारे में गौर करें तो देखते हैं कि किसी भी परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम अहर्ता तो छात्र प्राप्त कर ही लेता है. उस के बावजूद भी उसे कोचिंग लेनी होती है. इस का एक स्पष्ट और साधारण कारण यही है कि स्कूली और विश्वविद्यालय शिक्षा में संपूर्ण और अपेक्षित ज्ञान अर्जित नहीं कर पाता है. हिंदी बैल्ट के छात्र अंगरेजी में पढ़ाई नहीं समझ पाते तो मन में हीन भावना घर कर जाती है. शिक्षा के निजीकरण ने भी इस समस्या को काफी हद तक बढ़ाया है.

वैधअवैध हर तरह के सैंटर हैं, जहां सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जाती है और दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. बिजली उपकरणों को सुरक्षित और मानकों के अनुसार लगाने की आवश्यकता है. पर कई जगह ये सैंटर बिना एनओसी पर चलते हैं, जब तक धरपकड़ न हो जाए. दुकानों, छोटे कमरों, बेसमैंट में तक में कोचिंग का व्यवसाय फलफूल रहा है. कोटा में लगभग 150 कोचिंग सैंटर हैं, जो जेईई और नीट के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं. हर साल लगभग 2 लाख छात्र यहां पर आते हैं. एकेडमी और फिजिक्स वाला, औनलाइन कोर्स देने वाले 2 संस्थान भी अब औफलाइन मोड में आ कर कोटा पहुंचे हैं. बंसल, एलन, फिटजी, एकलव्य, श्री चैतन्य जैसे सैंटर वर्षों पहले आए, कुछ सफल रहे और कुछ बोरियाबिस्तर बांध कर वापस चले गए.

श्री चैतन्य, नारायण दक्षिण भारत के इंस्टिट्यूट थे, जो 5-6 वर्षों में ही निबट गए. एलन, रिजोनेंस, मोशन, आकाश, बायजू, कैरियर प्वाइंट, वाईब्रैंट जैसे संस्थान आज भी अच्छे चल रहे हैं. कारण इन की गुणवत्ता है.

कोटा शहर में तो यह आलम है कि देश के अलगअलग हिस्सों से मांएं अपने बच्चों के साथ कमरा ले कर यहां रह रही हैं. पर यह शिक्षा प्रणाली का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. वर्ष 2022 में 20 छात्रों की मौत हुई, जिन में से 18 ने आत्महत्या की थी. छात्र में तनाव का होना एक गंभीर मुद्दा है. यह बात अलग है कि काउंसलिंग की नाममात्र की सुविधा हमारे छात्रों को प्राप्त है. वर्ष 2019 से 2022 तक 53 आत्महत्या के मामले आए हैं.

छात्रों की काउंसलिंग बहुत आवश्यक है. कोचिंग के मंथली टैस्ट में पिछड़ जाना, आत्मविश्वास की कमी, पढ़ाई संबंधित तनाव, आर्थिक तंगी या किसी तरह का भावनात्मक टूटन जैसे कई कारण हो सकते हैं, जो बच्चे को आत्मघाती कदम उठा लेने की ओर धकेलते हैं.

शारीरिक गतिविधियां, खेलकूद, योग, मनोरंजन इन होस्टलर्स के लिए जरूरी है. होम सिकनैस भी एक बहुत बड़ा कारण है. इस उम्र में बच्चा अपनी परेशानी मांबाप से कह नहीं पाता. कई बार संस्थान में ब्रेक के दौरान भी वे घर नहीं जाते, क्योंकि उन्हें पढ़ाई में पिछड़ने का डर रहता है, लेकिन घर की याद मन ही मन उस का पीछा करती है. बच्चा घर से बाहर रह रहा हो तो उस के रैगुलर संपर्क में रहें. समझने की कोशिश करें कि उसे कोई समस्या तो नहीं है. उसे बताएं कि जीवन और स्वास्थ्य पहली जरूरत है. हर कोई पढ़ाई पर विशेष मुकाम हासिल नहीं कर सकता. सब की अपनीअपनी क्षमता है और समाज में हर तरह के लोगों की जरूरत है. समयसमय पर अपने बच्चे से जा कर जरूर मिलें. उस की क्षमताओं को पहचानें. उसे किसी भी तरह के दबाव में आ कर काम न करने को कहें. मातापिता का सकारात्मक व्यवहार एनर्जी बूस्टर का काम करता है.

मैं खुद एक आईआईटियन की मां हूं. समय रहते समझ में आ गया था कि बच्चे को प्रैशराइज नहीं करना है. यह सुखद संयोग रहा कि उस ने इंटरमीडिएट में भी कोई कोचिंग नहीं ली. अपने पिता और सैल्फ स्टडी के बल पर जेई एडवांस की परीक्षा पास की, लेकिन हर बच्चे का मानसिक लैवल बराबर नहीं होता और न ही मेहनत करने का रुझान और दक्षता. हां, प्रोत्साहित कर के उचित माहौल बना कर काफी मदद जरूर की जा सकती है.

आज कोटा मौत की नगरी बनता जा रहा है. कई छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. इतनी मेहनत के बाद उच्च तकनीकी संस्थानों में प्रवेश पाने के बावजूद भी छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. इस प्रवृत्ति को देखते हुए कई कालेजों के होस्टल में तो पंखे तक हटा दिए गए हैं, ताकि इन का दुरुपयोग न हो. इस बीच नई तकनीकी से बने पंखों के बारे में भी पढ़ रही थी, जिस पर ज़रा भी जोर देने पर वह पहले ही नीचे आ जाएगा.
बच्चा जितना भी कर रहा है, उसे प्रोत्साहित करें. अगर वह काबिल नहीं है तो उसे हतोत्साहित न करें. कोई न कोई काम उस के लिए अवश्य नियत है. रटाने और पटाने दोनों की प्रवृत्ति घातक है.

अन्य व्यवसायों की तरह कोचिंग भी एक व्यवसाय बन गया है और संस्थान के अधिकारी अधिक से अधिक मुनाफा कमाना अपना उद्देश्य समझते हैं, जिस से बेवजह मातापिता की जेब कटती है. लेकिन इस प्रवृत्ति पर रोक लगा पाना तभी संभव होगा, जब स्कूली और विश्वविद्यालयी शिक्षा ठोस हो और 12वीं के बाद प्रवेश पाने की प्रक्रिया थोड़ी सरल बना दी जाए और छात्रों को बेवजह कोचिंग की सहायता की आवश्यकता न हो.

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